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इन चीजों को खाएं भिगोकर, कई बीमारियां रहेंगी कोसों दूर

Foods that are healthy for Body : कई ऐसे फूड्स हैं जिन्हें हम पूरी रात भिंगोकर खाएं तो हमारे स्वास्थ्य के लिए ज्यादा लाभकारी होते हैं. क्योंकि ये अंकुरित होने के बाद इनके न्यूट्रीशन वैल्यू बढ़ जाती है. साथ ही यह आशानी से पच भी जाते हैं जो हमारे सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है.

इन फूड्स में फाइबर भरपूर मात्रा में पाएं जाते हैं. जो डाइबिटीज के रोगियों के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है. वहीं कुछ फूड्स तो ऐसे होते हैं जो महिलाओं के पीरिय़ड्स में होने वाले दर्द में भी राहत देता है.

खसखस

यह फोलेट विटामिन और पेंटोथेनिक एसिड़ का अच्छा स्त्रोत होता है. इसमें मौजूद विटामिन मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है. जो वजन को नियंत्रित करने में काम करता है.

अलसी 

अलसी एक ऐसा फूड्स है जिसे ओमेगा 3 का सबसे अच्छा स्त्रोत माना जाता है. यह एक मात्र ऐसा शाकाहारी सोर्स है जिसे लोग खाना पसंद करते हैं.

मुनक्का

यह मैग्नेशियम पोटैशियम का एक मात्र ऐसा स्त्रोत है, जिसे लोग खूब खआना पंसद करते हैं. यह कौलस्ट्रोल को भी कम करता है.

इसमें आयरन की काफी ज्यादा मात्रा होती है. इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है. बीपी के मरीजों को इसका रोज सेवन करना चाहिए.

ईसीआई, एससी और पीएमओ

देश की मौजूदा केंद्र सरकार भारतीय चुनाव आयोग (इलैक्शन कमीशन औफ इंडिया- ईसीआई) और सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट- एससी) को भी पंगु बना कर अपने अभिन्न मगर अदृश्य व अनिर्वाचित प्राइम मिनिस्टर औफिस (पीएमओ) के फंदे में ले आना चाहती है. नए प्रस्तावित चुनाव आयोग के कानून में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में जो परदे डालने का प्रावधान है वह चुनाव आयोग को पूर्व चुनाव आयुक्त टी एन शेषन के पहले वाले युग में ले जाने वाला है जिस में चुनाव आयोग सरकार का एक अंग होता था.

आज सरकार का मतलब संसद या विधानसभाएं नहीं रह गई हैं. आज सभी फैसले प्राइम मिनिस्टर औफिस द्वारा लिए जा रहे हैं. पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय ही आज नई योजनाएं बनाता है और वह ही उन्हें लागू करता/करवाता है. आज संसद में बहस नहीं होने दी जाती. केंद्रीय मंत्री केवल पीएमओ से स्वीकृत भाषण पढ़ते हैं. नीतियां पीएमओ बनाता है और संसद आंख मूंद कर उन्हें पास करती है. यहां तक कि भाजपा के नएपुराने मुख्यमंत्री भी जनादेश की नहीं,  मंत्रियों की नहीं, मंत्रिमंडल की नहीं बल्कि पीएमओ पर निर्भर होने को मजबूर हैं.

जहां भी शब्द ‘सरकार’ आता है वहां अर्थ पीएमओ हो गया है क्योंकि वही तय करता है कि देश कब वहां कैसा फैसला लेगा. चुनाव आयुक्त की नीति, उस के कार्यकाल, आयुक्त की शक्तियां, सुविधाएं, पहुंच अब धीरेधीरे खिसक कर पीएमओ के हाथ में पहुंच रही हैं. देश को दिशा देने के लिए यूपीएससी की परीक्षाओं से निकल कर आए व 20-25 वर्ष की नौकरी के बाद घाघ बन गए सरकारी अफसर अब जनता के माईबाप बन गए हैं. मंत्रियों की तो कोई पूछ है ही नहीं, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जो फैसले लेते हैं, उन की सारी पृष्ठभूमि भी पीएमओ तैयार करता है.

भारतीय जनता पार्टी का हर नेता जानता है कि पीएमओ ने इतने अधिकार अपने पास रख रखे हैं और इतने राज वहां फाइलों में रखे हैं कि वह जब चाहे किसी की भी बांहें मरोड़ सकता है. चुनाव आयुक्त भी आमतौर पर इसी पीएमओ के तहत आते हैं और वे यह जानते हैं कि पीएमओ की सामूहिक शक्ति कितनी है, कैसी है और कहांकहां तक फैली है.

आज पीएमओ में वे वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस अफसर हैं जो कभी न कभी गुजरात में रहे हैं और एक तरह से उन पर मोदी व शाह का विश्वास है. यह विश्वास इस तरह का हो गया है कि मोदी और शाह अब उन की सहमति के बिना कोई काम नहीं करते.

नेहरू और इंदिरा के शासन में फैसले मंत्रिमंडल लेता था जिस का जमीन से जुड़ाव था. आज जमीन से जुड़े लोगों के हक गायब हो गए हैं. वे मोहरे बना दिए गए हैं और चुनाव आयोग भी ऐसा ही एक मोहरा है.

अगर चुनाव आयोग की विश्वसनीयता कम होती गई तो एक दिन देश की जनता का लोकतंत्र से विश्वास उठ जाएगा. और तब, जनता पर थानेदार, टैक्स कलैक्टर, इंस्पैक्टर, नगरनिकाय विभाग उसी तरह से कहर ढाने लगेंगे जैसे मुगलराज के पतन के बाद हुआ था, जिस का पूरा लाभ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उठाया जो व्यापार करतेकरते शासक बन बैठी.

चुनाव आयुक्त वह नियंत्रक है जो देश के लोकतंत्र को बचा सकता है पर अगर वह लोकतंत्र की लूट होते देख चुप रहता है तो इस लूट का भागीदार उसे भी माना जाएगा. विपक्षी दल इस ओर दबे मुंह से शिकायत कर रहे हैं पर वे मुखर नहीं हो रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि चुनाव आयोग भी पीएमओ के कीकर के जंगल का हिस्सा ही है.

हिस्टेरेक्टौमी सर्जरी के बाद भी क्या सैक्स किया जा सकता है या नहीं ?

सवाल 

मेरी उम्र 48 साल है, 2 बच्चों की मां हूं. कई सालों से मुझे पीरियड्स की प्रौब्लम हो रही थी. बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती थी. आखिरकार डाक्टर ने लास्ट औप्शन हिस्टेरेक्टौमी सर्जरी ही बताया और मैं ने सर्जरी करवा ली. अभी तक मैं और मेरे पति अपनी सैक्सलाइफ काफी एंजौय कर रहे थे. क्या इस सर्जरी के बाद पहले जैसी बात रहेगी?

जवाब

आप ही नहीं, कई महिलाओं के जेहन में यह सवाल आता है क्योंकि कई महिलाएं हिस्टेरेक्टौमी यानी यूट्रस रिमूवल सर्जरी से गुजरती हैं और सर्जरी के बाद हैल्थ की चिंता के अलावा वे इस बारे में भी चिंतित होती हैं कि उन की सैक्सलाइफ अब कैसी होगी. जबकि इस सर्जरी के बाद सैक्सलाइफ पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है.

एक अध्ययन से पता चला है कि हिस्टेरेक्टौमी का एक महिला के यौन जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. खासकर, अगर वह सर्जरी से पहले, चिकित्सकीय रूप से संबंधित सैक्सुअल प्रौब्लम का सामना कर रही थी. हालांकि हर किसी की स्थिति अलग होती है.

डाक्टर सलाह देते हैं कि हिस्टेरेक्टौमी के बाद सैक्स के लिए महिलाओं को तब तक परहेज करना चाहिए जब तक वैजाइनल डिस्चार्ज बंद न हो जाए और घाव ठीक न हो जाएं. कुछ महिलाओं को सर्जरी के बाद कई हफ्तों तक वैजाइनल ब्लीडिंग और दर्द का अनुभव हो सकता है और उन्हें सैक्स में बहुत कम रुचि हो सकती है. शारीरिक प्रभावों के अलावा भावनात्मक प्रभाव भी हो सकता है. यह महिला की सैक्स करने की इच्छा को भी कम कर सकता है. हालांकि हिस्टेरेक्टौमी के बाद सैक्स में रुचि हर महिला की व्यक्तिगत स्थिति पर अलगअलग हो सकती है.

क्या आप भी शेयर करते हैं अपने निजी पलों को, तो हो जाएं सावधान

हिमाचल प्रदेश की महिला नेता के बाथरूम का बना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो उनको इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. पार्टी ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसके अलावा समाज में उनकी बदनामी अलग से हुई. पूरे वीडियो को देखने के बाद साफ लगता है कि यह वीडियो दोनो की मर्जी से बना था और उनका कोई गलत उद्देश्य भी नहीं था. ना कोई एक दूसरे को ब्लैकमेल करने के इरादे से इसको बना ही रहा था. अचानक सोशल मीडिया पर इसके आने से यह वीडियो उनके लिये हर तरह से नुकसान दायक साबित हो रहा है. यह कोई पहला मामला नहीं है. जिसमें अंतरंग पलों के बने फोटो और वीडियो गले की हड्डी बन गये.

कुछ समय पहले ऐसा ही मामला मथुरा के एक कथावाचक का भी समाने आया था. कथावचाक का अपनी विदेशी शिष्या के साथ अंतरग पलो के कई वीडियो थे. यह सब उनके अपने लैपटौप पर थे. एक दिन लैपटौप खराब हो गया. कथावाचक ने जब लैपटौप बनने के लिये दिया तो वहां से वह वीडियो सीडी के जरीये बाजार में पहुंच गये. उस समय वाट्सएप प्रयोग में नहीं था. इस वजह से मथुरा की वह घटना सीडी के जरीये ही चर्चा में आई थी.

सोशल मीडिया के सक्रिय होने के बाद ऐसे कई मामले सामने आ चुके है जिनमें नेताओं सहित कई प्रमुख लोगों के अंतरंग पलों में बने वीडियो वायरल होकर चर्चा में आ चुके है. जिनका प्रभाव लोगों की अपनी जिदंगी पर पड़ चुका है. कई लोगों ने ऐसे वीडियो या फोटो के वायरल होने के बाद खुद को नुकसान पंहुचाने का प्रयास भी किया है. सोशल मीडिया के जानकार राजीव कुमार बताते हैं कि पतिपत्नी के बीच बनने वाले ऐसे वीडियो वायरल होने के बाद आपकी छवि को नुकसान पहुंचा सकते है ऐसे में जरूरी है कि ऐसे वीडियो या फोटो ना ही बनाये जाये.

ब्लैकमेलिंग का साधन:

20 साल की रेखा ने अपने बौयफ्रेंड विशाल के साथ ‘किस’ करते हुये एक वीडियो बना लिया था. खेल खेल में बना यह वीडियो केवल आपसी रिश्तों की गहराई को दिखाने के लिये दोनो ने बनाया था. कुछ समय के बाद वह वीडियो डिलीट भी कर दिया. रेखा की एक सहेली पूनम ने रेखा का मेमोरी कार्ड ले लिया था. उसमें से पूनम का आपना कोई डेटा डिलीट हो गया. जो बहुत जरूरी था. उसने अपने एक साथी दीपक से पूछा तो उसने बताया कि एक ऐसा साफ्टवेयर है जिसमें से डिलीट डेटा भी रिकवर किया जा सकता है. दीपक ने पूनम से मेमोरी कार्ड लेकर उसका डेटा रिकवर किया. उसमें रेखा और उसके बौयफ्रेंड विशाल का ‘किस’ वाला वीडियो भी रिकवर हो गया. अब दीपक ने रेखा को ब्लैकमेल करना शुरू किया. ऐसे अंतरंग पलों के वीडियों से इस तरह की परेशानियों के भी उदाहरण मिलते है.

साफ्रटवेयर इंजीनियर दीपक रस्तोगी बताते हैं कि अब ऐसे ऐसे साफ्रटवेयर जो मेमोरी कार्ड या कंप्यूटर लैपटौप से वह फोटो या वीडियो भी रिकवर कर सकते हैं जो काफी लंबे समय पहले डिलीट किये जा चुके हो. ऐसे में एक ही रास्ता होता है कि ऐसे अंतरंग पलों के फोटो या वीडियो बनाने से बचे. भले ही आपके आपस में कैसे ही गहरे रिश्ते क्यों ना हो?  कई बार यह देखा गया है कि जब आपस में रिश्ते टूटते है तो लोग ऐसे फोटो या वीडियों वायरल कर देते है. सोशल मीडिया अब ऐसा माध्यम बन गया है कि देश दुनिया के एक कोने से ऐसी चीजों का दूसरे कोने तक पहुंचने में समय नहीं लगता है. ऐसी घटनायें जीवन के बहुत महत्वपूर्ण समय पर सामने आते है. उस समय लोग यही सोचते है कि ऐसा काम किया ही क्यों था ?

कैरियर की तबाही:

अंतरंग पलों के यह फोटो और वीडियों कई बार ऐसे समय पर सामने आते है जब कैरियर में कुछ बेहतर हासिल करना होता है. कई नेताओं के हाल में ऐसे वीडियो वायरल हुए है. अब तो साफ्टवेयर के जरीये वीडियो में भी चेहरे को बदला जा सकता है. पिछले दिनो गुजरात के नेता हार्दिक पटेल का ऐसा ही वीडियो वायरल हुआ जब वह वहां की सरकार खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ रहे थे. ऐसे नेताओं, अफसरों, फिल्म और समाजसेवियों की तादाद कम नहीं है.

सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल होना कोई बडी अचंभे वाली बात नहीं रह गई है. ऐसी घटनाएं भले ही कानूनी रूप से गलत मानी जाती हो. वायरल करने वालों के खिलाफ आईटी एक्ट में मुकदमा भी हो सकता है पर यह काफी कठिन काम होता है. सजा के पहले ही जिसका वीडियो फोटो वायरल होता है वह टूट कर तबाह हो जाता है.

सोशल मीडिया का माध्यम होने के बाद ऐसे वीडियो और फोटो बहुत तेजी से वायरल होने लगे है. जिनका प्रभाव समाज पर खराब पड़ने लगा है. हाल के कुछ दिनों में लोगो का हौसला इतना बढ़ गया कि बलात्कार जैसी घटनाओं के वीडियो उसमें शामिल लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी धाक जमाने के लिये वायरल कर दिये पर यही वीडियो उनके खुद के गले ही फांस बन गए.

पुलिस ने उसी वीडियों को आधार बनाकर पहले उनकी पहचान की बाद में उनको जेल भेज दिया. ऐसे में यह वीडियो अपराधी को जेल भेजने का साधन भी बन गये. अपराधी प्रवृत्ति के लोग ऐसे वीडियों बना कर पोर्न साइडों को बेचने का धंधा भी करते है. यह लोग लड़कियों को प्रेम के झांसे लेकर यह लोग पहले उनके साथ पोर्न वीडियों शूट करते है. इसके बाद पोर्न साइड पर इसको बेच भी देते है.

ऐसे में अंतरंग पलों के बने ये वीडियो कितने घातक हो सकते है. इसका अदाजा लगाना भी सरल नहीं होता है. इनसे बचने का एक ही तरीका होता है कि अंतरंग पलों के ऐसे वीडियो को बनाने से बचे. कई बार भावुकता और प्रेम की गहराई को जताने के लिये बने वीडियों कब वायरल हो कर गले की हड्डी बन जायेगे यह पता ही नहीं चलेगा. ऐसी शर्मनाक हालत से बचने के लिये जरूरी है कि अंतरंग पलों के वीडियो और फोटो लेने से बचे. अंतरंग पल आपके अपने होते है, उनको अपने तक ही रखने के लिये फोटो और वीडियों से उनको दूर रखे.

निर्णय : वक्त के दोराहे पर खड़ी मां की कहानी

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इंसानियत का तकाजा : डर को इंसानियत पर हावी न होने देती महिला की कहानी

सुबह व्यस्तताओं में गर्त हो कर उगते सूरज से नजरें चुरा रही थी. सिंदूरी सुबह अपने चढ़ते यौवन की ओर छवि को आकर्षित करती रही, लेकिन अपने प्रेमी मन के बावजूद उस के हाथ नाश्ते को सरंजाम देने  में लगे रहे. बैकयार्ड में बने छोटे से झरने का कलरव और वहां पानी पीती व जलक्रीड़ा करतीं चिड़ियों के सुरीले सुरों के पार छवि के कान बैडरूम में सोती ढाई साल की सिया पर लगे थे. सिया की एकएक करवट पर ध्यान धरे छवि बीचबीच में मुसकरा कर एक नज़र अपने किचन की खिड़की से झांकती सूरज की उस किरण पर भी डाल लेती जो शरारती बच्चे सी उस के चेहरे से अठखेलियां कर रही थी.

जुलाईअगस्त ही साल के वो महीने होते हैं जब कनाडा के इस ठंडेतरीन शहर कैलगरी में सूरज की किरणें गरमाहट के कुछ दिनों का तोहफा इस शहर की झोली में भी डाल देती हैं जब यहां भी खिड़कीदरवाजे खोल कर रखे जा सकते हैं और खुली फिजा का आनंद लिया जा सकता है. वरना, यह शहर ज्यादातर बर्फ की सफेद चादर में लिपटा ही रहता है.

रजत को औफिस भेज कर छवि ने अपने लिए चाय का पानी गैस पर रखा ही था कि सिया की  कुनमुनाने की आवाज उस के कानों में पड़ी. गैस मंदी कर के वह बैडरूम की तरफ जाती सीढ़ियों की ओर बढ़ी, तभी दरवाजे की घंटी बज उठी.

सीढ़ियों के बीचोंबीच खड़ी वह बड़बड़ाई-

‘सुबहसुबह कौन आ गया? यहां तो बिना फोन किए कोई नहीं आता. जरूर ये क्रिश्चियनिटी वाले होंगे या फिर चैरिटी वाले’ और जल्दी से सिया को गोद में उठा कर दरवाजे की ओर लपकी.

दरवाजा खोलने पर उस ने आठनौ साल की बच्ची का हाथ थामे एक ब्लैक (अफ्रीकन मूल की) महिला    को सामने खड़े पाया.

उस लंबीतगड़ी महिला को सामने खड़ी देख छवि थोड़ा सावधान हो गई और उसे पिछले हफ्ते अपनी सहेली से हुई बात याद हो आई, जिस ने बताया था कि- आजकल शहर में ब्लैक औरतों का कोई गैंग आया हुआ है. उस कि सदस्य सड़कों पर रास्ता पूछने के बहाने औरतों को रोकती हैं और चैन, ईयररिंग आदि खींच कर भाग जाती हैं. घरों में भी सेल्सवुमन बन कर या किसी और बहाने से घुस जाती हैं और औरत को अकेली पा कर उस पर अटैक कर देती हैं व ज्वैलरी, कैश आदि ले भागती हैं और ये सभी घटनाएं भारतीय मूल की महिलाओं के साथ ही ज्यादा घट रही हैं.

‘भारतीय ही क्यों?’ छवि ने पूछा था.

‘तो बाइस कैरेट गोल्ड ज्वैलरी और कौन पहनता है यहां? हम ही लोग न. और हमारे ही घरों में ज्यादा ज्वैलरी मिल भी जाती है. वरना व्हाइट लोग तो चौदह कैरेट से आगे बढ़ते नहीं. फिर वैडिंग रिंग और ज्यादा से ज्यादा चैन के इलावा इन के पास गोल्ड होता भी नहीं है.

इस बातचीत के याद आते ही छवि ने “हमें कुछ नहीं चाहिए” कहते हुए दरवाजा बंद कर लिया. बंद होते  दरवाजे से छवि को उस स्त्री की आवाज सुनाई दी-

“अरे नहींनहीं, मैं कोई सेल्सपर्सन नहीं हूं. मुझे तो अपनी बेटी को उस का घर दिखाना था.”

बेटी को उस का घर. क्या मतलब है इस बात का, छवि ने सोचा और दरवाजे पर चैन चढ़ा कर पूछा-

“कौन सा घर दिखाना है और क्यों?” जरा से खुले दरवाजे के सामने आ कर वह बोली.

“मेरा नाम बरा है और ये मेरी बेटी ली है. क्या मैं आप से दो मिनट बात कर सकती हूं?” वह महिला बड़े नरम और सभ्य लहज़े में बोली.

“कहिए,” उस ने  बिना दरवाजा खोले, चैन लगे दरवाजे की झिरी से झांक कर बेज़ारी से कहा.

“जी, आप से पहले हम लोग इस घर में रहते थे. ली इसी घर में पैदा हुई थी. यहीं उस ने अपना पहला कदम रखा और यहीं अपना पहला शब्द बोला था. हम यहां से गुजर रहे थे तो मैं ने ली को ये सब बातें बताई. सब जानने पर उस ने घर में वह जगह देखने की इच्छा जाहिर की जहां उस ने अपना पहला कदम रखा, जिस फर्श पर वह घुटनों के बल चली थी, पहली चोट खाई थी और जहां उस ने पहली बार मोम बोला था.”

सिया को गोदी में उठाए वह एक तरफ ली की आंखों से झांकती मासूम जिज्ञासा को देख रही थी तो दूसरी ओर अपने हलकेफुलके 50 किलो के वजूद और अपनी नन्ही सी सिया को. सामने खड़ी उस 6 फुट की हट्टीकट्टी महिला को देख कर और अपनी सहेली की बात को याद कर छवि सोच में पड़ी रही.

उस की आंखों से झांकती शंका और असमंजसता को समझते हुए बरा ने कहा–

“मैं समझती हूं, आप को हमें अंदर आने देना ठीक नहीं लग रहा होगा. कोई बात नहीं, लेकिन यदि आप दरवाजा खोल देतीं तो मैं यहीं बाहर से ही ली को घर दिखा देती.”

अब दरवाजा खोलने की बात पर उस की शंका फिर सिर उठाने लगी. उस के अंदर बैठा कोई कह रहा था- ‘तू अपनी तरफ देख, मुश्किल से 5 फुट की है. 50 किलो भी वज़न नहीं है तेरा. इस का एक घूंसा तुझे रास्ते से ही नहीं, इस दुनिया से भी हटा सकता है. फिर सिया कि भी तो सोच’.

बरा की बातों से झांकती ममता को नज़रअंदाज कर के उस ने “सौरी” बोलते हुए दरवाजा बंद कर लिया.

असमंजसता अभी तक उस के दिलदिमाग पर छाई थी. क्या उस ने सही किया?

अपना और सिया का नाश्ता लगा कर वे दोनों नाश्ता करने बैठे, तो सिया अपनी तोतली ज़बान में पूछ बैठी, “ममा, आनती को अंदर क्यों नहीं बुलाया? आप तो हर आनती को चाय पिलाती हो न?”

“हां बेटा, पिलाती तो हूं,” वह शर्मिंदगी से बोली.

“मम्मा, इछ आनती के छात तो दीदी बी आई थी. मम्मा मुझे दीदी के छात खेलना है. दीदी को बुलाओ न.”

उस की सारी समझदारी सिया के इन मासूम सवालों के सामने सिर झुकाए खड़ी थी. वह सोच रही थी कि ‘एक इंसान दूसरे से इतना भयभीत क्यों है? आज भी संसार में अच्छे लोगों की संख्या बुरों से बहुत ज्यादा हैं, फिर भी हम सब में बुराई को ही पहले देखते हैं. क्या बुराई का साम्राज्य बुरे लोगों के कारण आबाद है या हम शरीफ़ों में बैठे डर के कारण? इस डर और दहशत में दबे मातापिता क्या कभी बच्चों को सिखा पाएंगे कि निडर बनो.’

छवि और उस का पति रजत शादी के एक साल बाद ही यहां कनाडा के कैलगरी शहर में रहने आ गए थे और अभी 4 वर्षों पहले ही उन्होंने यह घर खरीदा था. सिया इसी घर में पैदा हुई. छवि की प्रैगनैंसी का एकएक पल, सिया को इस घर में पहली बार ले कर आने का दिन, उस की एकएक हरकत, एकएक शरारत का यह घर उतना ही साक्षी रहा है जितना कि वह खुद और रजत.

यह इस परदेस में उन का पहला आशियाना है. इस को सजानेसंवारने में उस ने अपनी जेब से ज्यादा अपनी भावनाएं खर्च की हैं.

हर जगह उन की यादें बिखरी पड़ी हैं. हर चीज के पीछे एक कहानी है. उन की सिया का इस दुनिया में यह पहला घर है.

तो क्या यही भावनाएं, यही लगाव बरा और ली का भी होगा इस घर के लिए?

तो क्या बरा सच बोल रही थी? क्या पता. यों भी इस देश में प्रौपर्टी की खरीदबेच रियलेटर के द्वारा ही की जाती है. खरीदने और बेचने वाले का कभी एकदूसरे से पाला ही नहीं पड़ता.

छवि अपने दिल और दिमाग के बीच चलते सवालजवाबों के झंझावात से जूझ रही थी. कभी रजत की हिदायतें याद आतीं तो कभी सहेली की बातें.

फिर वह सिया की ओर देखती जो मासूम से सवाल अपनी आंखों में लिए अभी भी उस की ओर देखते हुए कह रही थी- “मम्मा, दीदी को बुलाओ न.”

क्या करूं, खोल दूं दरवाजा? वैसे भी वह बाहर से ही तो देखना चाहती है. बाहर से भला क्या बिगाड़ लेगी. मैं भी सिया को ले कर बाहर ही खड़ी हो जाऊंगी’. यह सोचते हुए उस ने दरवाजा खोल दिया. लेकिन बरा और ली वहां नहीं थीं. वह दौड़ कर बाहर आई और सामने बिछी सड़क पर इधरउधर नजरें दौडाने लगी. तभी उस ने अपने घर को निहारते हुए 2 जोड़ी कदमों को धीरेधीरे जाते देखा. वे कदम जो चल तो आगे रहे थे, लेकिन बढ़ पीछे रहे थे.

छवि ने उन्हे आवाज दी और इशारे से बुलाया. उस का इशारा पाते ही बरा और ली, दोनों तेजी से वापस आ गईं.

उस ने अपने घर का दरवाजा पूरा खोल दिया और बरा बाहर से ही ली को ड्राइंगरूम दिखाते हुए बताने लगी- “ली. तुम ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा था और एक बार स्क्रौल करते हुए तुम मेरे पीछे पीछे यहां तक आ गई थी (उस ने मेन गेट के तुरंत बाद वाली जगह की ओर इशारा किया जहां फर्श का लैवल थोड़ा लो था) और जोर से गिर पड़ी थी. यह जो दीवारों पर येलो कलर है न, यह भी तुम्हारी पसंद का है. मैं ने खुद पेंट किया था.”

मैं सिया को गोद में लिए वहीं खड़ी उन की बातें सुन रही थी और उन के चेहरे पर आतेजाते अनगिनत भावों को देखते हुए उन के उस घर में रहनेसहने, घूमनेफिरने की कल्पना कर रही थी. अचानक बरा पूछ बैठी- “क्या ऊपर के राइट साइड के बैडरूम का पिंक कलर और लेफ्ट साइड के बैडरूम का ब्लू कलर भी वैसा ही है या आप ने बदल दिया है?”

“जी, जी हां,” मैं जैसे सोते से जागी, “हां, वैसा ही है. ब्लू को हम ने गेस्टरूम बनाया है. पिंक सिया को पसंद है, इसलिए वह उस का रूम है.”

“रिएली, सिया को भी पिंक पसंद है? ली का भी फेवरेट कलर पिंक ही है. इसीलिए हम ने उस का रूम खुद पिंक पेंट किया था,” वह खुशी से बोली और एक लंबी सांस खींच कर उस ने ऊपर की ओर नजर दौड़ाई. लेकिन घर का डिजाइन कुछ ऐसा था कि नीचे खड़े हो कर ऊपर के रूम्स देखना असंभव था. ली की एड़ी पर उचकउचक कर अपना बैडरूम देखने की असफल कोशिश जारी थी.

उन की आंखों से झांकती जिज्ञासा और उत्सुकता देख एक पल को छवि के अंदर जैसे कुछ बदल सा  गया, जैसे इंसानियत ने डर को हरा दिया, जैसे शंका का स्थान विश्वास ने ले लिया.

अचानक अपनी गोद में सिया को उठाए वह अंदर दाखिल हुई और पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली-

“इट्स ओके, बरा एंड ली. तुम दोनों अंदर आ कर घर देख सकती हो.”

“आर यू श्योर?” वे दोनों आंखों में आश्चर्य और चेहरे पर खुशी छलकाती हुई पूछ रही थीं.

“यस, आई एम श्योर”. जैसे अंदर बैठा कोई कह रहा था डर को इंसानियत पर हावी मत होने दो, छवि, इंसान हो, इंसानियत को समझो.

कानों तक खिंची मुसकराहट लिए दोनों ने उस के घर में प्रवेश किया और अपने घर के कोनेकोने में घूमघूम कर अपनी झोली को पुरानी यादों से मालामाल कर लिया. छवि के आग्रह पर एकएक जूस का गिलास पिया और आंखों में आंसू लिए उस के गले लग कर बरा बोली– “यू इंडियंस आर वन्डरफुल एंड बिग हर्टेड पीपल. मैं ने इतने बड़े दिल और इतने खुले दिल वाले लोग पहले कभी नहीं देखे. मैं आप को कभी नहीं भूलूंगी. मेरी बेटी का जो बचपन यहां बीता था उस में आप की उदारता ने अनमोल इज़ाफ़ा कर के उसे अविस्मरणीय बना दिया. आप की बेटी का जीवन खुशियों से और साथ आप जैसे लोगों से भरा रहे.

सिया के लिए ढेर सारे आशीर्वाद बरसाती उन आंखों में मुझे एक बहुत प्यारी सी दोस्त नज़र आई और मैं ने उस से विदा ले कर, मुसकराते हुए शान से अपनी प्रिंसैस की ओर देखा जिस के चेहरे पर एक नई दीदी के मिलने की धूप खिली थी.

सीमा रेखा : निर्मला के किस रूप से परिवार वाले हक्के बक्के रह गए ?

समधिन निर्मला के व्यवहार से दिवाकर इतने प्रभावित हुए थे कि रूपा को अपने बेटे के लिए झट पसंद कर लिया. लेकिन विवाह के बाद जब निर्मला का ऐसा रूप उन के सामने आया कि वह हक्केबक्के रह गए.

समधिन की बात सुन कर दिवाकर सकते में आ गए. नागिन की तरह फुफकार कर निर्मला बोली, ‘‘आप लोग मेरी बेटी को तरहतरह से तंग करते हैं. मैं ने बेटी का ब्याह किया है, उसे आप के हाथों बेचा नहीं है. मेरी बेटी अब आप के घर नहीं जाएगी.’’

दिवाकर ने पिछले साल ही अपने बड़े बेटे मुकुल की शादी पटना से सटे इस कसबे के निवासी गुलाबचंद की बड़ी बेटी रूपा से की थी. लड़की देखने आए तो गुलाबचंद और निर्मला के व्यवहार से इतना प्रभावित हुए थे कि आननफानन में रिश्ते के लिए ‘हां’ कर दी थी.

रूपा भी साधारण तौर पर नापसंद करने लायक नहीं थी. साफ रंग, छरहरा शरीर, नैननक्श भी ठीक ही थे. उस समय वह बीए की परीक्षा की तैयारी कर रही थी. दिवाकर को भी पढ़ीलिखी लड़की की ही तलाश थी सो रूपा हर तरह से उन लोगों को जंच गई. मुकुल को भी पसंद आई.

शादी बिना दानदहेज के बड़ी धूमधाम से हुई. बाजेगाजे और पूरे वैवाहिक कार्यक्रम की वीडियोग्राफी  हुई. रूपा के ससुराल आने पर दिवाकर ने एक शानदार प्रीतिभोज का आयोजन किया था.

दिवाकर को इस रिश्ते के लिए सब से अधिक लड़की की मां के व्यवहार और उन्मुक्तता ने प्रभावित किया था. कसबे के माहौल में ऐसी गृहिणियां भी हो सकती हैं, दिवाकर की कल्पना में भी नहीं था. गुलाबचंद दब्बू किस्म के मर्द लगे पर ऐसा ही होता है. दब्बू किस्म के मर्दों की पत्नियां मुखर होती हैं.

लेकिन दिवाकर को निर्मला से इस तरह से बातचीत या ऐसे तेवर की उम्मीद नहीं थी.

पिछले 2 महीने से नाराज हो कर आने के बाद रूपा मायके में थी. दिवाकर ने सोचा था पटना का अपना काम निबटाने के बाद समधी से मिल कर रूपा की विदाई के बारे में बात कर लेंगे. सीधे लौट जाने पर गुलाबचंद और निर्मला को बुरा लगने वाली बात होती. लेकिन समधिन के तीखे स्वर और तीखी बातों ने दिवाकर को बेचैन कर दिया. असहजता महसूस करते हुए बोले, ‘‘क्या कह रही हैं आप, समधिनजी?’’

‘‘मैं ठीक कह रही हूं दिवाकरजी,’’ निर्मला बोली, ‘‘आप ने मेरी बेटी को ले जा कर पिंजरे में बंद कर दिया. ऊपर से कई तरह की पाबंदियां कि यह मत करो, वैसा मत पहनो, ऐसे मत खाओ, उधर मत जाओ. वह क्या जानवर है जो गाय समझ कर गोशाला में खूंटे से बांध दी? इस पर हमें ही दोषी ठहराते हैं कि बच्चों पर हमारा कंट्रोल नहीं है.’’

दिवाकर को अब समझ में आया कि समधिन का गुस्सा उन की उस बात पर है जो उन्होंने गुलाबचंद से, जब वह रूपा को लाने गए थे, कही थी.

शादी के बाद ससुराल आई रूपा की चालढाल और व्यवहार से दिवाकर संतुष्ट नहीं थे. रूपा घर के अदब व कायदों को मानने को राजी नहीं थी. वह उसे बंदिश लगते थे. दिवाकर रूढि़वादी नहीं थे परंतु अमर्या- दित आजादी और खुलापन उन्हें पसंद नहीं था.

मुकुल की मां की सोच बहू के बारे में पारंपरिक थी. बहू सुशील और मृदुभाषी हो. घरगृहस्थी का काम जाने, बड़ों का सम्मान करे, हमेशा हंसती- मुसकराती रहे और अपने व्यवहार से घर में खुशियां बिखेरे.

रूपा उन की बहू की उस तसवीर से बिलकुल अलग थी. वह देर रात तक टीवी पर सिनेमा व धारावाहिक देखती. देर से सो कर उठती. उठने के बाद उसे बेड टी चाहिए थी. रसोई का नाम सुनते ही उस का सिर दर्द करने लगता. वह सिर्फ मुकुल को अपना समझती थी. घर के बाकी किसी सदस्य से उसे कोई मतलब नहीं था.

दिवाकर ने रूपा को बेटी की तरह मानते हुए हर तरह से समझाने की कोशिश की कि बेटी, यह तुम्हारा घर है, तुम इस घर की बड़ी बहू हो. घर की जिम्मेदारियों को समझो. लेकिन रूपा में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ. दिवाकर को लगा कि उन्होंने निर्मला की बाहरी चमक से प्रभावित हो कर भारी भूल की, भीतर झांक कर तह तक जाने का प्रयास नहीं किया.

फिर भी दिवाकर को विश्वास था कि रूपा समय के साथ धीरेधीरे इन बातों और अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगेगी. आखिर बच्ची ही तो थी. उस से इतनी जल्दी प्रौढ़ता की उम्मीद करना भूल होगी. फिर जिस घर में उन्मुक्तता का वातावरण हो और जहां मातापिता ने अपनी संतानों को जिम्मेदारियों का पाठ न पढ़ाया हो, बेटियों को बेटी और बहू का अंतर न समझाया हो वहां ऐसा होना बहुत स्वाभाविक है. इस में दोष रूपा का नहीं उस के मातापिता का है.

इसी बीच एक घटना घट गई. रूपा के छोटे भाई राजेश ने मां के डांटने पर अपने कपड़ों पर तेल छिड़क कर आग लगा ली थी. सतर्कता के कारण वह बच गया लेकिन यह भयंकर हादसा हो सकता था.

गुलाबचंद रूपा को लेने आए तो बातों ही बातों में दिवाकर कह बैठे, ‘‘भाई साहब बुरा मत मानिएगा, आप के घर में बच्चों पर आप का नियंत्रण नहीं है.’’

असल में दिवाकर का इशारा रूपा की ओर था जिसे समझा कर वह हार चुके थे और हर तरह का प्रयत्न कर के भी परिवार की धारा में नहीं ला पा रहे थे.

यह बात गुलाबचंद निर्मला को कह देंगे और वह इस का इतना बुरा मान जाएंगी दिवाकर ने सोचा भी नहीं था. लेकिन निर्मला ने जब तेवर और तैश से इसे दोहराया तो जैसे दिवाकर का आत्मसम्मान जाग उठा. क्षण भर को यही खयाल जागा कि यह औरत उन्हें भी गुलाबचंद समझती है क्या. गुलाबचंद उस की धौंस सह सकते हैं. उन पर क्यों धौंस जमाएगी यह औरत?

विवाद वहीं उत्पन्न होता है जहां व्यक्ति सीमा रेखा का उल्लंघन करता है. दिवाकर को लगा निर्मला अपनी पारिवारिक सीमा लांघ कर उन की पारिवारिक व्यवस्था में दखल देने की ज्यादती कर रही है. वह बोल उठे, ‘‘सचमुच आप के घर में किसी पर किसी का नियंत्रण नहीं है. सभी अपने मन के हैं. बड़ों की इज्जत की किसी को परवा नहीं है. राजेश ने आग लगा ली. गनीमत थी सिर्फ थोड़ा सा पैर जला. बड़ा हादसा हो जाता तो क्या होता?’’

दिवाकर ने यह भी समझाने के लिए कहा था परंतु निर्मला को यह बात उस की सत्ता को चुनौती और व्यंग्य सी लगी. वह तिलमिला उठी.

उसी समय गुलाबचंद वहां आ गए. दिवाकर ने गुलाबचंद से कहा, ‘‘भाई साहब, मैं पटना अपने किसी काम से आया था तो आप लोगों से मिलने भी चला आया. रूपा को आए 2 महीने हो गए हैं. आप कब उसे विदा करेंगे?’’

‘‘यह क्या बोलेंगे?’’ निर्मला तमतमाए स्वर में बोली, ‘‘मैं कह चुकी हूं कि मेरी बेटी अब उस घर में कभी नहीं जाएगी.’’

‘‘आप एक बात भूल रही हैं, समधिनजी,’’ दिवाकर कुरसी छोड़ कर खड़े हो गए और समझाते हुए बोले, ‘‘रूपा अब हमारे घर की बहू है. उस पर आप का नहीं, हमारा हक बनता है. आप अपने अहं को बेटी के भविष्य से जोड़ कर अच्छा नहीं कर रही हैं. ठंडे दिमाग से सोच कर देखिएगा. मैं जा रहा हूं लेकिन अब मैं या मुकुल रूपा को विदा कराने नहीं आएंगे. आप लोगों की इच्छा होगी तो बेटी भेज दीजिएगा या फिर सारी जिंदगी अपने घर पर ही रखे रहिएगा.’’

निर्मला ने चीख कर कहा, ‘‘हां, हम उसे सारी जिंदगी रखेंगे पर आप के घर कभी नहीं भेजेंगे.’’

दिवाकर निर्मला की बात सुनते हुए भी अनसुनी कर बाहर निकल गए.

दिवाकर के जाने के बाद निर्मला थके हुए योद्धा की तरह धम से सोफे पर बैठ गई. उसे लगा कि दिवाकर नाम के इस मर्द का दर्प आज उस ने चूर कर दिया है पर दूसरे ही पल ऐसा महसूस हुआ कि नहीं, इस जंग में वह जीत नहीं सकी. और इस के लिए गुलाबचंद को दोषी मानते हुए वह उन पर बरस पड़ी, ‘‘दिवाकर इतनी बड़ीबड़ी बातें कह गए और आप को कुछ बोलते नहीं बना?’’

‘‘मैं क्या कहता? तुम तो बोल ही रही थीं,’’ गुलाबचंद ने सफाई दी.

‘‘आप मर्द हैं या माटी का लोंदा? वह आदमी आप की पत्नी का अपमान कर गया और आप चुपचाप उस का चेहरा देखते रहे.’’

गुलाबचंद ने देखा कि निर्मला बहुत नाराज है और अपनी आदत के अनुसार जो भी उस के सामने पड़ेगा उसी पर झल्लाएगी, इसलिए वहां से हट जाना ही उचित समझा.

गुलाबचंद के जाने के बाद निर्मला ने तेज स्वर में रूपा को आवाज दी, ‘‘रूपा…’’

‘‘आई, मम्मी…’’ के साथ ही रूपा बगल के कमरे से निकल कर सामने आ गई.

निर्मला ने सीधे रूपा की ओर देखा. उस की मांग में सिंदूर भरा हुआ था. वह गुस्से में तिलमिला कर बोली, ‘‘मैं ने तुझे सिंदूर लगाने को मना किया है न, तू मानती क्यों नहीं?  जा, जा कर सिंदूर धो दे.’’

रूपा वहां से चली आई.

रूपा पसोपेश में थी, क्या करे, क्या न करे. इस बार सास और पति से झगड़ कर गुस्से में आई थी. मम्मी को रोरो कर उस ने सारा हाल बताया था और यह भी कहा था कि वह उस घर में नहीं जाना चाहती. मम्मी ने भी कहा था वह उस घर में नहीं जाएगी और उन्होंने सिंदूर लगाने को मना किया था. रूपा ने तब मम्मी के कहने पर सिंदूर पोंछ दिया था पर बालों में कंघा करते वक्त अनायास ही उस के हाथ सिंदूर की डिबिया और मांग तक पहुंच जाते.

रूपा अभी ऊहापोह में ही थी कि उसे अपनी छोटी बहन गुडि़या की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘क्या चिंता कर रही हो, दीदी? मम्मी ने कहा है मांग का सिंदूर धो दो तो धो डालो. तुम भी तो यही चाहती हो.’’

गुडि़या, रूपा की तरह उन्मुक्त और लापरवा नहीं बल्कि गंभीर प्रवृत्ति की थी. 12वीं कक्षा में पढ़ती थी. पापा से बहुत कम ही बातें करती थी. हां, छोटे भाइयों से बहुत स्नेह रखती थी.

रूपा ने कहा, ‘‘मैं तय नहीं कर पा रही हूं गुडि़या कि इस समय मुझे क्या करना चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’ गुडि़या ने करीब आ कर कहा, ‘‘तुम्हारा तो उस घर में दम घुटता है. उस घर के सभी लोग तुम पर अत्याचार करते हैं. तुम पर तरहतरह की बंदिशें लगाते हैं. वह घर है या जेलखाना. बचपन से मम्मी से आजादी का पाठ पढ़ा है तुम ने. फिर तुम उस जेलखाने में कैसे रह सकती हो?’’

‘‘जेलखाना तो सचमुच ही है परंतु…’’

‘‘परंतु क्या, दीदी?’’ गुडि़या ने रूपा की बात को बीच में काटते हुए कहा, ‘‘यही मौका है. बंधन तोड़ कर बाहर निकल आओ और आजाद पंछी की तरह घूमो. इस सिंदूर में क्या रखा है? शादी तो एक धोखा है, पवित्र धोखा. आत्मा के बंधन के नाम पर धोखा. असल में यह औरतों को मर्दों का गुलाम बनाने का फंदा है. है न दीदी?’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो, गुडि़या,’’ रूपा को लगा गुडि़या उस का समर्थन कर रही है पर अगले ही पल गुडि़या का जवाब सुन कर वह चकरा गई.

‘‘मेरी बात मानोगी, दीदी. तुम अभी ही ससुराल वापस चली जाओ. वही तुम्हारा घर है. हम बेटियों के लिए मांबाप का घर शादी के पहले तक ही होता है, शादी के बाद ससुराल ही हमारा अपना घर होता है. तुम अपने आसपास देखो, कहीं दिखाई पड़ता है ऐसा कि शादी के बाद बेटी पिता के घर पर रह रही है.’’

रूपा को कुछ उत्तर देते न बना.

‘‘सच तो यह है दीदी कि मम्मी तुम्हारे कष्टों के लिए यह रिश्ता नहीं तोड़ रहीं, अपने अहं की तुष्टि के लिए तोड़ रही हैं. उन्हें आप के ससुर का कहना बुरा लगा है. मम्मी को तो तुम जानती ही हो और मैं भी. जरा सोचो दीदी, रिश्ता टूटने से उन का क्या बिगड़ेगा? लड़के वाले हैं. जीजाजी की दूसरी शादी हो जाएगी पर तुम्हारा क्या होगा? तुम्हें शादी के बंधन में नहीं बंधना हो तो अलग बात है. वरना परित्यक्ता का दाग तो लग ही जाएगा. फिर मुकुल जीजाजी या उन के घर वाले जालिम हैं ऐसा तो नहीं लगता और मैं भी तो तुम्हारे ससुराल हो आई हूं.’’

‘‘मुझे उन की पाबंदियों वाली बातें बरदाश्त नहीं होतीं,’’ रूपा ने अपना पक्ष रखने की नीयत से कहा.

‘‘ठीक है, तुम्हें उन की नसीहत, उन की सीख अच्छी नहीं लगती. और इसी को तुम ने अत्याचार का नाम दे कर बारबार मम्मी से शिकायत की है लेकिन जब मम्मी डांटती हैं तो कैसे बरदाश्त कर लेती हो?’’

‘‘तुम कहना चाहती हो गुडि़या, मुझे ससुराल लौट जाना चाहिए?’’

‘‘हां, दीदी, इसी में हम सब की भलाई है,’’ गुडि़या ने कहा, ‘‘इस से तुम्हारी इज्जत और जिंदगी बर्बाद होने से बच जाएगी. दोनों परिवारों की इज्जत रह जाएगी. यदि ऐसा नहीं हुआ तो मेरी शादी नहीं हो पाएगी.’’

‘‘वह कैसे?’’ रूपा ने विस्मय से पूछा.

‘‘जिस परिवार की बेटी साधारण समस्याओं के लिए पति और ससुराल छोड़ कर पिता के घर में बैठी हो उस परिवार में कौन रिश्ता जोड़ने आएगा?’’ गुडि़या ने कहा.

‘‘लेकिन मम्मी…’’

‘‘मम्मी की परवा मत करो, दीदी, तुम अपना भविष्य देखो. मम्मी भी तो किसी घर की बेटी हैं. वह क्यों नहीं रहीं अपने मायके में जो तुम्हारी ससुराल छुड़ाना चाहती हैं.’’

रूपा ने आश्चर्य से गुडि़या को देखा कि इतनी छोटी सी लड़की और इतनी समझदारी, इतना ज्ञान कहां से आया उस के पास.

‘‘एक बात तुम्हें और बताती हूं, दीदी, लड़का हो या लड़की, उम्र के साथ जिम्मेदारियां भी बदलती हैं और उसी के साथ विचार भी. आज मम्मी जींस पहनें तो अच्छा लगेगा? बोलो न, अच्छा लगेगा?’’

रूपा ने तात्पर्य न समझते हुए भी कहा, ‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक उसी तरह बहू के लिबास में मर्यादा की मांग की जाए तो बुरा क्यों लगना चाहिए? तुम तो सलवारकमीज ही पहनती रहीं. मुझे जींस पसंद है परंतु शादी के बाद बहू की मर्यादा वाला लिबास ही पहनूंगी.’’

गुडि़या और भी कुछ कहती पर रूपा अपने भीतर चल रहे मंथन में डूब गई.

अगली सुबह रूपा मम्मी के सामने आई तो निर्मला ने अवाक् हो कर उसे देखा. वह ससुराल की साड़ी पहने और शृंगार किए हुए थी. मांग में सिंदूर दमक रहा था. निर्मला चीख उठी, ‘‘यह क्या किया तू ने? मैं ने तुझे सिंदूर धो देने को कहा था.’’

‘‘पति के जीवित रहते सिंदूर नहीं धो सकती,’’  रूपा ने साहस कर के कहा.

‘‘कौन पति? कैसा पति?  मर गया तेरा पति.’’

‘‘मम्मी, ऐसा मत कहिए. मैं ससुराल जाने के लिए आप से अनुमति लेने आई  हूं.’’

‘‘क्या? ससुराल जाएगी. दिमाग फिर गया है तेरा?’’

‘‘दिमाग तो पहले फिरा हुआ था, मम्मी,’’ बगल के कमरे से निकल कर गुडि़या सामने आ गई, ‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि दीदी अपने घर जा रही हैं. इस के साथ ही महीनों से चला आ रहा दोनों परिवारों के बीच का तनाव खत्म हो जाएगा.’’

‘‘तू चुप रह, बड़ी समझदार हो गई है. मेरी कोख से जन्मी मुझी को सबक सिखा रही है,’’ निर्मला गरजीं.

‘‘तुम चाहे जितना बिगड़ लो, मम्मी, दीदी अब यहां नहीं रहेंगी, अपनी ससुराल जाएंगी, आज और अभी.’’

‘‘देखती हूं कौन ले जाता है इसे,’’ निर्मला चीखीं.

‘‘पापा ले कर जाएंगे, और यदि पापा नहीं ले गए तो मैं दीदी को छोड़ कर आऊंगी.’’

निर्मला अपना गुस्सा नहीं रोक सकी. उठ कर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया गुडि़या के गाल पर. फिर उस की गरदन पकड़ कर झकझोरने लगी, ‘‘नालायक, मुझे जवाब देती है.’’

रूपा गुडि़या को छुड़ा कर निर्मला के सामने सीधी खड़ी हो गई. उस की आंखों में आज तेज था. निर्मला की आंखों में देखते हुए बोली, ‘‘बस कीजिए, मम्मी. हद हो गई. मैं बच्ची नहीं बालिग हूं. अपने बारे में सोचनेसमझने और फैसला लेने का मुझे पूरा हक है. मैं ने ससुराल वापस जाने का फै सला कर लिया है और जाऊंगी ही. मुझे कोई नहीं रोक सकता.’’

निर्मला गश खा कर धम से सोफे पर बैठ गई. कल दिवाकर के साथ बहस की जंग में जीती थी या हारी थी, ठीकठीक नहीं मालूम पर आज अपनी सत्ता और अहं के युद्ध में पूरी तरह परास्त हो गई थी वह.

जिंदगी न मिलेगी दोबारा: भाग 3

शोभित के जाने के बाद अकसर हमारे रहनसहन और खर्चों को देख कर नातेरिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों की इस तरह की बातें हमारे कानों में पड़ ही जाती थीं. मसलन, ‘इन की किस्मत में तो बच्चा है ही नहीं. खुद का हुआ नहीं और जिसे गोद लिया उसे कुदरत ने ले लिया. कोई खर्चा तो है नहीं, आगे नाथ न पीछे पगहा… किस के लिए छोड़ कर जाएंगे…’

जिसे देखो वही हमारे पैसे पर नजर गङाए दिखता था. कभीकभी मन भी करता था कि उन की हर बात का जबाब दूं. पर अनुज मुझे हमेशा यह कह कर रोक देते कि शुभी, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना…और इसलिए किसी की बातों पर जरा भी ध्यान देने की जरूरत नहीं है. हमारी जिंदगी, हमारा पैसा हम चाहे खर्च करें या आग लगाएं हमारी मरजी. और सच कहूं तो अब हम दोनों इस के आदि हो चले थे पर हां, कभीकभी भविष्य का सोच कर घबराहट अवश्य होती थी और लाख संभालने के बाद भी मन निराशा से भर उठता था.

आज स्कूल में नई प्रिंसिपल पदभार ग्रहण करने वाली थीं…इसलिए पूरे स्कूल में उत्साह था. अकसर लेटलतीफ स्कूल पहुंचने वाले टीचर्स भी आज अप टू डेट हो कर टाइम से पहले ही कक्षाओं में पहुंच गए थे. आखिर नई प्रिंसिपल को इंप्रैस जो करना था. इंग्लिश में पीएचडी, नई प्रिंसिपल डाक्टर कोमल बेहद काबिल, कर्मठ और खुशमिजाज थीं. बेहद सलीके से पहनी गई प्योर सिल्क की बौर्डर पल्ले वाली साड़ी, माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, शैंपू किए खुले बाल, मैरून लिपस्टिक और हील वाले सैंडल पहने वे बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी लग रही थीं. आते ही उन्होंने पूरे स्टाफ की मीटिंग ली.

उन्हें देख कर मुझे अपने पर तो शर्म ही आने लगी थी क्योंकि शोभित के जाने के बाद से मेरा तो कुछ करने का मन ही नहीं करता था. यहां तक कि कुकिंग की बेहद शौकीन मैं ने शोभित के जाने के बाद से पूरी किचन ही मेड के हवाले कर दी थी. कवर्ड में ढेरों साड़ियां पड़ी थीं पर मेरा सजनेसंवरने और पहनने का मन ही नहीं करता था. बस, किसी तरह सूट डाल कर स्कूल आ जाती थी. संगीत की शिक्षिका होने के कारण अनेक कार्यक्रमों में संगीत के प्रोग्राम देने वाली और हर दिन हारमोनियम पर रियाज करने वाली मैं ने शोभित के जाने के बाद से न तो कोई प्रस्तुति दी थी और न ही हारमोनियम को हाथ लगाया था.

कोमल मैम को जौइन किए 15 दिन हो गए थे और अपने जोशीले और हंसमुख स्वभाव, स्टाफ के साथ सरलसहज व्यवहार और बच्चों के साथ आत्मीयता के साथ बातचीत कर उन्होंने 15 दिनों में ही सब का दिल जीत लिया था. उन्हें देख कर मैं हमेशा सोचती कि वाह, क्या जिंदगी है. जीना तो कोई इन से सीखे. कोई कमी नहीं है तभी तो इतनी खुशमिजाज रह पाती हैं.

टीचर्सडे आने वाला था. उन्होंने इस अवसर पर स्कूल की टीचर्स के लिए एक अच्छीखासी पार्टी का आयोजन किया था. डाउन पल्ले में पहनी बनारसी साड़ी, मैचिंग ज्वैलरी और खुले बालों में वे किसी अप्सरा जैसी लग रहीं थीं. पूरे दिन ऐंजौय करने के बाद शाम को जब सब घर जाने लगे तो स्कूल गेट पर उन्होंने मुझे देख कर अपनी कार रुकवाई और बोलीं,
“क्या हुआ आज कार नहीं लाईं?”

“आज गाडी सर्विसिंग में है. मैं कैब से निकल जाउंगी.”

“अरे, कैब क्यों…आओ, मेरा ड्राइवर आप को छोड़ देगा,” अपनी कार का गेट खोलते हुए वे बोलीं. उनका आग्रह इतना प्यारा था कि मैं मना नहीं कर पाई और झट से उन की गाड़ी में बैठ गई.

“आप काफी कुछ मैनेज कर लेतीं हैं. आप की साड़ियां तो बहुत ही सुंदर होती हैं, साथ ही आप उन्हें बांधतीं भी बहुत अच्छे से हैं. मेरी तो कब से अनछुई ऐसे ही कवर्ड में पड़ी हैं,” कार में बैठ कर मैं ने उन की तरफ मुखातिब होते हुए कहा.

“मुझे बहुत शौक है साड़ी पहनने का….और अप टू डेट रहने का,” वे बोलीं.

बातें करते कब उन का घर आ गया पता ही न चला. गाङी से उतर कर वे बोलीं,”आओ न शुभी, चाय पी कर जाना. मैं चाय बहुत अच्छी बनाती हूं. अदरक वाली एकदम मस्त…” यों भी कौन मेरा घर में इंतजार कर रहा है. अनुज को आने में भी 2 घंटे शेष हैं और इस बहाने मैडम के घर के लोगों से भी मुलाकात हो जाएगी, यह सोच कर उन के पीछेपीछे घर में प्रवेश कर गई. सलीके से सजे, हर चीज करीने से रखी, आधुनिक सुखसुविधाओं से सुसज्जित उन के घर को देख कर मैं दंग रह गई.

मैं ने अचानक ही पूछ लिया,”मैम, आप के हसबैंड और बच्चे…”
अब तक वे चाय बना कर ले आई थीं. चाय की चुसकी लेते हुए बोलीं,” शुभी मैं यहां अकेली रहती हूं. बिलकुल अकेली.”

“क्यों आप के पति… बच्चे…’’मैं ने अचकचाते हुए कहा क्योंकि मैडम के हंसमुख और बिंदास स्वभाव को देख कर यह कोई सोच भी नहीं सकता था कि वे अकेली रहती हैं.

“शुभी मेरे पति की एक बीमारी से उस समय मौत हो गई थी जब मेरा बेटा रोहित केवल 12 वर्ष का था. बेटे को पढ़ानेलिखाने में मैं ने कोई कसर नहीं छोड़ी…आईआईटी, दिल्ली से मैकेनिकल में इंजीनियरिंग करने के बाद उस की यूएस में जौब लगी तो उस ने इंडिया में ही कोई दूसरी नौकरी करनी चाही ताकि मेरे साथ रह सके पर मैं ने उसे कहा कि मेरे कारण तुम अपनी प्रोग्रैस मत रोको…तुम इंडिया में रह कर भी क्या हमेशा मेरे पास रह पाओगे? बेहतर है कि तुम अपनी जिंदगी अपने तरीके से जिओ.

“फिर…वह अभी अमेरिका में है. अपनी कंपनी में बहुत अच्छी पोजीशन पर है. अपनी पसंद की लड़की से ही वहां उस ने शादी कर ली है और उस ने साफ कर दिया है कि वह अब इंडिया नहीं आएगा. मुझ से बहुत कहा कि वीआरएस ले कर मेरे साथ रहो. पर मैं ने भी कहा कि मैं अपनी नौकरी और इंडिया नहीं छोडूंगी और अपने तरीके से रहूंगी…”

“पर आप को कभी अकेलापन नहीं लगता. मैं तो शोभित के जाने के बाद से ही सब त्याग बैठी हूं मन ही नहीं करता कुछ करने का. जीवन ही निरुद्देश्य सा लगता है.” और आंखों में आंसू भरे मैं ने जब उन्हें शोभित के बारे में बताया तो वे बोलीं,”शुभी, किसी का जाना तो हम रोक नहीं सकते पर अपने जीने का तरीका तो तय कर सकते हैं न. तुम्हारा बेटा तो इस दुनिया में है ही नहीं पर मेरा बेटा तो हो कर भी मेरे पास नहीं है. यदि मुझे कुछ होगा तो तुम्हें क्या लगता है कि सात समुंदर पार बैठा वह आ पाएगा? और फिर मेरे जाने के बाद वह आए या न आए मैं देखने तो नहीं आऊंगी न. तुम्हारे साथ तो तुम्हारे पति हैं, सासूमां हैं. मेरे साथ तो वह भी नहीं. मैं तो निपट अकेली हूं. तुम जानती हो, मेरे पति के जाने के साथ ही पति के घर वालों ने मुझ से नाता ही तोड़ लिया था. अब तुम ही बताओ, क्या मैं जीना छोड़ दूं या फिर हरदम अकेलेपन का रोना रोती रहूं? सब की दया की पात्र बनी रहूं? नहीं इस तरह की जिंदगी मुझे मंजूर नहीं. मेरी जिंदगी मुझे एक बार ही मिली है और मैं इसे भरपूर जीना चाहती हूं. अपने तरीके से और वैसे ही जी भी रही हूं और अंतिम समय तक ऐसे ही जीती भी रहूंगी.”

“पर कभी आप को नहीं लगता कि बुढ़ापे में हर इंसान को एक सहारा चाहिए होता है….कभी इस बारे में सोच कर घबराहट नहीं होती? मैं कभीकभी इस बात को ले कर बहुत परेशान भी हो जाया करती हूं,” मैं ने उत्सुकतावश कहा.

“कभी नहीं लगता शुभी, क्योंकि मेरा मानना है कि इंसान खुद अपना सब से बड़ा सहारा होता है. कोई भी किसी का सहारा नहीं बन सकता. हमें खुद को ही अंदर से इतना मजबूत बनाना होगा कि कभी किसी के सहारे की जरूरत न पड़े. और उस के लिए सब से जरूरी है खुश रहना, अपने मन का ओढ़नापहनना और मन का करना. यह तभी हो पाएगा जब हम अपनेआप पर भरोसा रखेंगे, बिना लोगों की परवाह करे अपनी मरजी से जीएंगे.”

उन की बातें सुन कर तो मानों मेरी आंखें ही खुल गई थी. सच कहूं तो कोमल मैम की सोच ने मुझे खुद पर सोचने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने अपने ड्राइवर से मुझे घर छोड़ने के लिए कहा और गेट पर आ कर कहने लगीं,”तुम तो संगीत की टीचर हो, बस उसे ही अपना सहारा बनाओ और खुश रहो डियर. यह जिंदगी दोबारा न मिलेगी…”

“जी… आप से मिल कर, बातें कर के बहुत अच्छा लगा,” कह कर मैं अपने घर की तरफ प्रफुल्लित मन से रवाना हो गई.

अगले दिन अवकाश था. इसलिए सुबहसुबह ही मैं ने डबलबैड के बौक्स में धूल खा रहे अपने हारमोनियम को निकाला और रियाज करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो मेरी सोच पर से निराशा का कोहरा पूरी तरह छंट गया. मैं ने अपने साथसाथ अनुज को भी गाना सिखा दिया. यही नहीं, भविष्य में शोभित संगीत ऐकेडमी खोलने तक की प्लानिंग कर डाली थी और अब हम दोनों इतने व्यस्त रहने लगे कि किसी और की बातें सुनने और कुछ उलटापुलटा सोचने का तक भी हमारे पास समय नहीं था.

चारों पीठों के शंकराचार्य नाराज, राम सब के हैं तो मंदिर किस का है, सवाल क्यों?

राम सबके होते तो इन शंकराचार्यों को प्राणप्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार न करना पड़ता. विवाद क्या है, इसे जानने से पहले हिंदू धर्म की संरचना को मौटेतौर पर समझना होगा कि वह प्रमुख रूप से 2 मतों में बंटा है. उन में से पहला है शैव और दूसरा है वैष्णव संप्रदाय. शैव संप्रदाय को मानने वाले शिव की पूजा, उपासना और आराधना करते हैं जबकि वैष्णव अनुयायी विष्णु और उस के अवतारों को मानते हैं.
हालांकि, धर्मग्रंथों के मुताबिक हिंदू प्रमुख रूप से 4 संप्रदायों में बंटे हुए हैं. तीसरा शाक्त संप्रदाय है जो देवी को परमशक्ति मानता है, चौथा स्मार्त संप्रदाय है जो ईश्वर के विभिन्न रूपों को एकसामान मानता है. इन के अलावा और भी कई संप्रदायों का उल्लेख धर्मग्रंथों में मिलता है, मसलन वैदिक, गणपत्य, कौमारम, नाथ और तांत्रिक सहित चार्वाक संप्रदाय वगैरह जो अप्रासंगिक तो नहीं हुए हैं लेकिन महत्त्व खो रहे हैं.

यह है नया विवाद ?

ऐसा कहा जाता है कि एक वक्त में शैव और वैष्णवों के आपसी झगड़ों के चलते समाज में हिंसा बढ़ गई तो शाक्त संप्रदाय का उदय हुआ जो इन दोनों में सुलह या मध्यस्थता कराता था. यह स्त्री को आदिशक्ति मानता है. इस के ज्यादतर मंदिर और उपासक देश के बाहरी इलाकों में मिलते हैं. पश्चिम बंगाल, असम, कश्मीर और दक्षिणी राज्य इन में प्रमुख हैं.

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने 2 दिनों पहले ही एक बयान दिया था कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, शैव शाक्त और संन्यासियों का नहीं. न कोई मौका था न कोई मौसम था. इस के बाद भी चंपत राय को यह बयान देने का दस्तूर निभाना पड़ा तो इस के अपने अलग माने भी हैं.

असल में शंकराचार्यों की उजागर नाराजगी से हिंदुओं में भ्रम की स्थिति पैदा हो रही थी और धर्म के जानकारों में यह मैसेज गया था कि शैव लोग वैष्णव मंदिर में नहीं जाते. इसलिए शंकराचार्य लोग ड्रामा कर रहे हैं. गोवर्धन पीठ जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद ने दोटूक कहा था कि, ‘मैं कार्यक्रम में ताली बजाने नहीं जाऊंगा क्योंकि प्राण प्रतिष्ठा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे कर संत समाज को नजरंदाज किया जा रहा है. मेरी एक मर्यादा है वहां जा कर मैं अपनी प्रतिष्ठा को कम नहीं करूंगा.’

चंपत राय के बयान से कई हिंदुओं ने पहली बार रामानंद संप्रदाय के बारे में जाना कि यह वैष्णवों का है और इस का एक नाम वैरागी संप्रदाय भी है. इस का एक और नाम श्री संप्रदाय भी प्रचलित है. लेकिन यहां श्री से मतलब लक्ष्मी न हो कर सीता होता है. इस के जनक रामानंद स्त्रियों और शूद्रों को भी शिष्य बना लिया करते थे.

मशहूर सूफी कवि कबीर से उन का लिंक मिलता है. कुछ ब्राह्मणवादी लोग तो कबीर को उन का शिष्य बताते हैं, लेकिन यह संदिग्ध है. वैरागी संप्रदाय के लोग मुख्यतया उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में प्रमुखता से मिलते हैं. ये लोग खुद को योद्धा ब्राह्मण और राम के बेटों लव-कुश का वंशज मानते हैं.

क्यों आक्रामक हो रहे शंकराचार्य ?

चंपत राय ने एक दीर्घकालिक योजना के तहत एक तरह से स्पष्ट कर दिया कि राम मंदिर वैष्णवों का है, शैवों का नहीं. तो एक और शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद विफर कर बोले, ‘अगर राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है तो उसे उन्हें सौंप देना चाहिए. संत समाज को इस पर कोई आपत्ति नहीं.’

उन्होंने सनातनी ज्ञान जताते यह भी कहा कि चारों पीठों के शंकराचार्यों को कोई रागद्वेष नहीं है लेकिन उन का मानना है कि शास्त्र सम्मत विधि का पालन किए बिना मूर्ति स्थापित किया जाना सनातनी जनता के लिए उचित नहीं है. उन्होंने रामानंद संप्रदाय को मंदिर व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपने के साथसाथ निर्मोही अखाड़े को पूजा का अधिकार देने की बात भी कही.

इस के पहले निश्चलानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राम लला की मूर्ति छूने को भी एक खास अंदाज में बयान किया था जिस का आम लोगों ने मतलब यही निकाला था कि चूंकि वर्ण व्यवस्था के मुताबिक नरेंद्र मोदी शूद्र हैं, इसलिए उन्हें राम की मूर्ति छूने का अधिकार नहीं. एक न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में इन शंकराचार्य ने विधानों की बात करते यह भी कहा था कि आंबेडकर की मूर्ति लगाने और रामलला की मूर्ति लगाने के विधान में तो अंतर है ही. यदि इन का पालन नहीं होगा तो भगवान का वास होने के बजाय भूतप्रेतों का वास हो जाएगा.

वर्चस्व और दक्षिणा की है लड़ाई

इन बयानों से हिंदू धर्म की वास्तविकता एक बार फिर उधड कर बाहर आ गई कि इस पर दबदबा तो पंडेपुजारियों और पेशवाओं का ही है. बाकी लोग तो हल्ला मचाने, भीड़ बढ़ाने और शोबाजी के अलावा दानदक्षिणा देने के लिए हैं. अब चंपत राय के बयान के बाद तो और स्पष्ट हो गया है कि राम मंदिर शैव अनुयायियों के लिए नहीं, वैष्णवों के लिए है.

और ये वैष्णव और कोई नहीं बल्कि ऊंची जाति वाले हिंदू हैं जो 22 जनवरी को ले कर ज्यादा उत्साहित हैं और धूमधड़ाका कर रहे हैं. इन के पूजाघरों में हालांकि राम, कृष्ण, शंकर, हनुमान, काली, दुर्गा, गणेश सहित साईं बाबा से ले कर लोकल देवीदेवता सब पूजे जाते हैं लेकिन मन से ये वैष्णव हैं जो शूद्रों से परहेज ही करते हैं क्योंकि उन के देवीदेवता अलग हैं.

झुग्गी, गरीब और दलित बस्तियों में राम और कृष्ण के नहीं बल्कि शिव, हनुमान और देवी के मंदिर ज्यादा होते हैं. और यही चंपत राय कह रहे हैं, जो एक तीर से दो निशाने साधने जैसी बात है. अब भाजपा गलीगली जा कर कहेगी कि राम तो सबके हैं और उन का मंदिर भी उस रामानंदी संप्रदाय का है जिस के गुरु रामानंद जी महाराज जो दलितों को भी गले लगाते थे और औरतें भी उन की शिष्य होती थीं.

दूसरी लड़ाई पैसों की है. हर कोई देख रहा है कि राम मंदिर अब अरबोंखरबों का हो गया है और जिस के हिस्से में यह जाएगा उस की 7 पीढ़ियां तर जाएंगी. अयोध्या अब भाजपा का अघोषित कार्यालय हो गया है और अभी लोकसभा चुनाव तक रहेगा. इस के बाद उस का हाल भी सोमनाथ मंदिर जैसा होना तय दिख रहा है.

हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर आने वाले दिनों में राम मंदिर को ले कर शैव और वैष्णव अदालत का रुख करें. रही बात नरेंद्र मोदी की, तो उन्हें भी धर्म का शिकार होना पड़ा है कि वे मूर्ति स्पर्श नहीं कर सकते. यही अपमान कभी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रधानमंत्री रहते इंदिरा गांधी को भी सहना पड़ा था लेकिन उन का स्वाभिमान भी सत्ता के आगे बौना पड़ गया था.

सपा और कांग्रेस बीच विलेन बनी बसपा

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ही लोकसभा चुनाव की नजर से सब से प्रमुख विपक्षी दल हैं. 2019 में सपा 5, बसपा 10 और कांग्रेस को 1 सीट मिली थी. बीतें 5 सालों में हुए उपचुनावों में सपा 2 सीटें भारतीय जनता पार्टी से हार गई. इस से अब उस के पास केवल 3 सांसद हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव भी हुए, उन में भी सपा को छोड़ कांग्रेस और बसपा मुकाबले में कहीं नजर नहीं आईं. सभी दलों को अपनी राजनीतिक जमीन का पूरा अंदाजा है.

2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा मिल कर लड़ी थीं. कांग्रेस गठबंधन में शामिल नहीं थी लेकिन अमेठी और रायबरेली सीट पर सपा फ्रैंडली समर्थन दे रही थी. मोटामोटा देखें तो सपा, बसपा, कांग्रेस और लोकदल पिछले चुनाव में एकसाथ थे. बसपा अभी बाहर है पर उस की लड़ाई भी भाजपा से अधिक है. इंडिया गठबंधन में भले ही बसपा न हो पर कांग्रेस की सोच यह है कि बसपा साथ आए. बसपा को साथ लेने से सपा को एतराज है. कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि वह सपा-बसपा को एक मंच ले आएगी.

मोदीविरोधी मोरचे की शुरुआत भले ही बिहार के मुख्यमंत्री जनता दल युनाइटेड नीतीश कुमार ने की हो पर उस को आगे बढ़ाने का काम कांग्रेस ने किया. उस की वजह यह है कि कांग्रेस इंडिया गठबंधन का सब से बड़ा पार्टनर है. वह इस भूमिका को अदा करने का काम भी कर रही है. ‘दक्षिणापंथी’ हर संभव इस कोशिश में थे कि सीट बंटवारे के मसले पर इंडिया गठबंधन बिखर जाए. सपा, टीएमसी और आप इस झांसे में आ कर सीट बंटवारे पर तूतू मैंमैं करने भी लगीं. कांग्रेस ने धैर्य दिखाया, जिस से बंटवारा नहीं हो सका.

बड़ी कुर्बानी को तैयार कांग्रेस

कांग्रेस की तरफ से यह कह दिया गया कि उस का फोकस लोकसभा की उन 128 सीटों पर है जहां लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच है. 308 सीटें ऐसी हैं जहां पर इंडिया गठबंधन के दल भी मुकाबले में हैं. कांग्रेस इन समीकरणों को देख कर कुल 255 सीटों पर फोकस कर रही है. ऐसे में उस के और सहयोगी दलों के बीच बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं है. कांग्रेस अपने से ज्यादा सहयोगी दलों को ले कर परेशान है. पश्चिम बंगाल में टीएमसी और सीपीआईएम, उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा एकसाथ नहीं जुट रहे.

कांग्रेस इंडिया गठबंधन को एकजुट रखने के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार है. वह सीट बंटवारे को नाक का सवाल नहीं बनाने जा रही. इस के साथ ही साथ कांग्रेस अपना प्रधानमंत्री भी नहीं बनाना चाहती. कांग्रेस इस के लिए मायावती के नाम पर विचार कर रही है. इस के सब से मुखर विरोधी सपा और टीएमसी हैं. कांग्रेस इन दलों को विश्वास में ले कर ही कोई निणर्य लेना चाहती है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने सीट फामूर्ला 2 तरह के प्लान के साथ तैयार किया है. पहला प्लान जिस में कांग्रेस, सपा और लोकदल है. उस में कांग्रेस अपने लिए 12 से 15 सीटें चाहती है. दूसरे प्लान में कांग्रेस सपा के साथ बसपा को जोड़ कर चल रही है. इस में कांग्रेस 10 सीटों पर तैयार हो जाएगी. बची 70 सीटों पर बसपा और सपा व लोकदल होंगे. 2019 के लोकसभा में सपा 36 और बसपा 37 पर चुनाव लड़ी थीं. कुछ इसी तरह के बंटवारे की राह निकलने की उम्मीद है.

सत्ता नहीं, मुद्दे हैं खास

15 जनवरी को मायावती का जन्मदिन है. राजनीतिक हलकों में यह कयास लगाया जा रहा है कि इस दिन कुछ बड़ा हो सकता है. बसपा और सपा के बीच कांग्रेस सीटों की कुर्बानी देने का तैयार है. कांग्रेस के लिए सत्ता से अधिक मुद्दे खास हैं. केंद्र की सरकार को हटाना जरूरी है. अगर भाजपा को नहीं हटाया गया तो सभी दलों पर खतरा मंडरा रहा है. यह बात कांग्रेस ही नहीं, इंडिया गठबंधन के दूसरे दल भी जानते हैं. इसलिए आपस में सीट बंटवारे को ले कर कोई दिक्कत नहीं है. इन सब का एक ही फामूर्ला है कि जहां जो दल भाजपा को हरा सकता है वह हराए. आपस में टकराव न करें.

बारबार ‘दक्षिणापंथी’ मीडिया के समर्थक इस बात को दिखाते रहते हैं कि इंडिया गठबंधन सीट बंटवारा कैसे करेगी? उन के बीच लड़ाई है. असल में आपस में कोई लड़ाई नहीं है. गठबंधन की लड़ाई केवल भाजपा से होगी. जो भी दिक्कतें आएंगी, कांग्रेस बड़े पार्टनर के रूप में उन की कांउसलिंग करती है, अपने को दो कदम पीछे हटाती है.

राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की जोड़ी अलग तरह की राजनीति देश के सामने पेश करने के रोडमैप पर चल रही है. अब छोटे दल भी इस बात को समझ रहे हैं. इंडिया गठबंधन की मीटिग न होने की एक वजह यह होती है कि हर मीटिंग के बाद कोई न कोई नेता कोई ऐसी बात बोल देता है जिस को दक्षिणपंथी समर्थक मीडिया तिल का ताड़ बना देती है. जिस से खटास बढ़ रही है. अब सभी दलों के नेता आपस में बात कर के मसले सुलझा रहे हैं.

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