सुबह व्यस्तताओं में गर्त हो कर उगते सूरज से नजरें चुरा रही थी. सिंदूरी सुबह अपने चढ़ते यौवन की ओर छवि को आकर्षित करती रही, लेकिन अपने प्रेमी मन के बावजूद उस के हाथ नाश्ते को सरंजाम देने  में लगे रहे. बैकयार्ड में बने छोटे से झरने का कलरव और वहां पानी पीती व जलक्रीड़ा करतीं चिड़ियों के सुरीले सुरों के पार छवि के कान बैडरूम में सोती ढाई साल की सिया पर लगे थे. सिया की एकएक करवट पर ध्यान धरे छवि बीचबीच में मुसकरा कर एक नज़र अपने किचन की खिड़की से झांकती सूरज की उस किरण पर भी डाल लेती जो शरारती बच्चे सी उस के चेहरे से अठखेलियां कर रही थी.

जुलाईअगस्त ही साल के वो महीने होते हैं जब कनाडा के इस ठंडेतरीन शहर कैलगरी में सूरज की किरणें गरमाहट के कुछ दिनों का तोहफा इस शहर की झोली में भी डाल देती हैं जब यहां भी खिड़कीदरवाजे खोल कर रखे जा सकते हैं और खुली फिजा का आनंद लिया जा सकता है. वरना, यह शहर ज्यादातर बर्फ की सफेद चादर में लिपटा ही रहता है.

रजत को औफिस भेज कर छवि ने अपने लिए चाय का पानी गैस पर रखा ही था कि सिया की  कुनमुनाने की आवाज उस के कानों में पड़ी. गैस मंदी कर के वह बैडरूम की तरफ जाती सीढ़ियों की ओर बढ़ी, तभी दरवाजे की घंटी बज उठी.

सीढ़ियों के बीचोंबीच खड़ी वह बड़बड़ाई-

‘सुबहसुबह कौन आ गया? यहां तो बिना फोन किए कोई नहीं आता. जरूर ये क्रिश्चियनिटी वाले होंगे या फिर चैरिटी वाले’ और जल्दी से सिया को गोद में उठा कर दरवाजे की ओर लपकी.

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