Download App

काश, आप ने ऐसा न किया होता: भाग 3

भैया मेरा कंधा थपक कर चले गए और पीछे छोड़ गए ढेर सारा धुआं जिस में मेरा दम घुटने लगा. एक तरह से सच ही तो कह रहे हैं भैया. आखिर मु?ा में ही इतनी दिलचस्पी लेने का क्या कारण हो सकता है.

दोपहर लंच में वह सदा की तरह चहचहाती हुई ही मु?ो मिली. बड़े स्नेह, बड़े अपनत्व से.

‘‘आप भैया से पहली बार कब मिली थीं? सिर्फ सहयोगी ही थे आप या कंपनी का ही माध्यम था?’’

मुसकान लुप्त हो गई थी उस की.

‘‘नहीं, हम सहयोगी कभी नहीं रहे. बस, कंपनी के काम की ही वजह से मिलनाजुलना होता था. क्यों? तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘नहीं, आप मेरा इतना खयाल जो रखती हैं और फिर भैया का नाम सुनते ही आप की दिलचस्पी मु?ा में बढ़ गई. इसीलिए मैं ने सोचा शायद भैया से आप की गहरी जानपहचान हो. भैया के पास समय ही नहीं होता वरना उन से ही पूछ लेता.’’

‘‘अपनी भाभी को ले कर कभी आओ न हमारे घर. बहुत अच्छा लगेगा मु?ो. तुम्हारी भाभी कैसी हैं? क्या वह भी काम करती हैं?’’

तनिक चौंका मैं. भैया से ज्यादा गहरा रिश्ता भी नहीं है और उन की पत्नी में भी दिलचस्पी. क्या वह यह नहीं जानतीं, भैया ने तो शादी ही नहीं की अब तक.

‘‘भाभी बहुत अच्छी हैं. मेरी मां जैसी हैं. बहुत प्यार करती हैं मु?ा से.’’

‘‘खूबसूरत हैं, तुम्हारे भैया तो बहुत खूबसूरत हैं,’’ मुसकराने लगी वह.

‘‘आप के घर आने के लिए मैं भाभी से बात करूंगा. आप अपना पता दे दीजिए.’’

उस ने अपना कार्ड मु?ो थमा दिया. रात वही कार्ड मैं ने भैया के सामने रख दिया. सारी बातें जो सच नहीं थीं और मैं ने उस महिला से कहीं वह भी बता दीं.

‘‘कहां है तुम्हारी भाभी जिस के साथ उस के घर जाने वाले हो?’’

भाभी के नाम पर पहली बार मैं भैया के होंठों पर वह पीड़ा देख पाया जो उस से पहले कभी नहीं देखी थी.

‘‘वह आप में इतनी दिलचस्पी क्यों लेती है भैया? उस ने तो नहीं बताया, आप ही बताइए.’’

‘‘तो चलो, कल मैं ही चलता हूं तुम्हारे साथ…सबकुछ उसी के मुंह से सुन लेना. पता चल जाएगा सब.’’

अगले दिन हम दोनों उस पते पर जा पहुंचे जहां का श्रीमती गोयल ने पता दिया था. भैया को सामने देख उस का सफेद पड़ता चेहरा मु?ो साफसाफ सम?ा गया कि जरूर कहीं कुछ गहरा था बीते हुए कल में.

‘‘कैसी हो शोभा? गिरीश कैसा है? बालबच्चे कैसे हैं?’’

पहली बार उन का नाम जान पाया था. आफिस में तो सब श्रीमती गोयल ही पुकारते हैं. पानी सजा लाई वह टे्र में जिसे पीने से भैया ने मना कर दिया.

‘‘क्या तुम पर मु?ो इतना विश्वास करना चाहिए कि तुम्हारे हाथ का लाया पानी पी सकूं?

‘‘अब क्या मेरे भाई पर भी नजर डाल कुछ और प्रमाणित करना चाहती हो. मेरा खून है यह. अगर मैं ने किसी का बुरा नहीं किया तो मेरा भी बुरा कभी नहीं हो सकता. बस मैं यही पूछने आया हूं कि इस बार मेरे भाई को सलाखों के पीछे पहुंचा कर किसे मदद करने वाली हो?’’

श्रीमती गोयल चुप थीं और मु?ा में काटो तो खून न था. क्या भैया कभी सलाखों के पीछे भी रहे थे? हमें क्या पता था यहां बंगलौर में भैया के साथ इतना कुछ घट चुका है.

‘‘औरत भी बलात्कार कर सकती है,’’ भैया भनक कर बोले, ‘‘इस का पता मु?ो तब चला जब तुम ने भीड़ जमा कर के सब के सामने यह कह दिया था कि मैं ने तुम्हें रेप करने की कोशिश की है, वह भी आफिस के केबिन में. हम में अच्छी दोस्ती थी, मु?ो कुछ करना ही होता तो क्या जगह की कमी थी मेरे पास? हर शाम हम साथ ही होते थे. रेप करने के लिए मु?ो आफिस का केबिन ही मिलता. तुम ने गिरीश की प्रमोशन के लिए मु?ो सब की नजरों में गिराना चाहा…साफसाफ कह देतीं मैं ही हट जाता. इतना बड़ा धोखा क्यों किया मेरे साथ? अब इस से क्या चाहती हो, बताओ मु?ो. इसे अकेला लावारिस मत सम?ाना.’’

‘‘मैं किसी से कुछ नहीं चाहती सिर्फ माफी चाहती हूं. तुम्हारे साथ मैं ने जो किया उस का फल मु?ो मिला है. अब गिरीश मेरे साथ नहीं रहता. मेरा बेटा भी अपने साथ ले गया…सोम, जब से मैं ने तुम्हें बदनाम करना चाहा है एक पल भी चैन नहीं मिला मु?ो. तुम अच्छे इनसान थे, सारी की सारी कंपनी तुम्हें बचाने को सामने चली आई. तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा…मैं ही कहीं की नहीं रही.’’

‘‘मेरा क्या नहीं बिगड़ा…जरा बताओ मु?ो. मेरे काम पर तो कोई आंच नहीं आई मगर आज किसी भी औरत पर विश्वास कर पाने की मेरी हिम्मत ही नहीं रही. अपनी मां के बाद तुम पहली औरत थीं जिसे मैं ने अपना माना था और उसी ने अपना ऐसा रूप दिखाया कि मैं कहीं का नहीं रहा और अब मेरे भाई को अपने जाल में फंसा कर…’’

‘‘मत कहो सोम ऐसा, विजय मेरे भाई जैसा है. अपने घर बुला कर मैं तुम्हारी पत्नी से और विजय से अपने किए की माफी मांगनी चाहती थी. मेरी सांस बहुत घुटती है सोम. तुम मु?ो क्षमा कर दो. मैं चैन से जीना चाहती हूं.’’

‘‘चैन तो अपने कर्मों से मिलता है. मैं ने तो उसी दिन तुम्हारी और गिरीश की कंपनी छोड़ दी थी. तुम्हें सजा ही देना चाहता तो तुम पर मानहानि का मुकदमा कर के सालों अदालत में घसीटता. लेकिन उस से होता क्या. दोस्ती पर मेरा विश्वास तो कभी वापस नहीं लौटता. आज भी मैं किसी पर भरोसा नहीं कर पाता. तुम्हारी सजा पर मैं क्या कह सकता हूं. बस, इतना ही कह सकता हूं कि तुम्हें सहने की क्षमता मिले.’’

अवाक् था मैं. भैया का अकेलापन आज सम?ा पाया था. श्रीमती गोयल चीखचीख कर रो रही थीं.

‘‘एक बार कह दो मु?ो माफ कर दिया सोम.’’

‘‘तुम्हें माफ तो मैं ने उसी पल कर दिया था. तब भी गिरीश और तुम पर तरस आया था और आज भी तुम्हारी हालत पर अफसोस हो रहा है. चलो, विजय.’’

श्रीमती गोयल रोती रहीं और हम दोनों भाई वापस गाड़ी में आ कर बैठ गए. मैं तो सकते में था ही भैया को भी काफी समय लग गया स्वयं को संभालने में. शायद भैया शोभा से प्यार करते होंगे और शोभा गिरीश को चाहती होगी, उस का प्रमोशन हो जाए इसलिए भैया से प्रेम का खेल खेला होगा, फिर बदनाम करना चाहा होगा. जरा सी तरक्की के लिए कैसा अनर्थ कर दिया शोभा ने. भैया की भावनाओं पर ऐसा प्रहार सिर्फ तरक्की के लिए. भैया की तरक्की तो नहीं रुकी. शोभा ने सदा के लिए भैया को अकेला जरूर कर दिया. कब वह दिन आएगा जब भैया किसी औरत पर फिर से विश्वास कर पाएंगे. यह क्या किया था श्रीमती गोयल आप ने मेरे भाई के साथ? काश, आप ने ऐसा न किया होता.

उस रात पहली बार मु?ो ऐसा लगा, मैं बड़ा हूं और भैया मु?ा से 10 साल छोटे. रो पड़े थे भैया. खाना भी खा नहीं पा रहे थे हम.

‘‘आप देख लेना भैया, एक प्यारी सी, सुंदर सी औरत जो मेरी भाभी होगी एक दिन जरूर आएगी…आप कहते हैं न कि हर कीमती राह तरसने के बाद ही मिलती है और किसी भी काम का एक निश्चित समय होता है. जो आप की थी ही नहीं वह आप की हो कैसे सकती थी. जो मेरे भाई के लायक होगी कुदरत उसे ही हमारी ?ोली में डालेगी. अच्छे इनसान को सदा अच्छी ही जीवनसंगिनी मिलनी चाहिए.’’

डबडबाई आंखों में ढेर सारा प्यार और अनुराग लिए भैया ने मु?ो गले लगा लिया. कुछ देर हम दोनों भाई एकदूसरे के गले लगे रहे. तनिक संभले भैया और बोले, ‘‘बहुत तेज चलने वालों का यही हाल होता है. जो इनसान किसी दूसरे के सिर पर पैर रख कर आगे जाना चाहता है प्रकृति उस के पैरों के नीचे की जमीन इसी तरह खींच लेती है. मैं तुम्हें बताना ही भूल गया. कल पापा से बात हुई थी. बौबी का बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुआ है. उस ने 2 बच्चों को कुचल कर मार दिया. खुद टूटाफूटा अस्पताल में पड़ा है और मांबाप पुलिस से घर और घर से पुलिस तक के चक्कर लगा रहे हैं. जिन के बच्चे मरे हैं वे शहर के नामी लोग हैं. फांसी से कम सजा वे होने नहीं देंगे. अब तुम्हीं बताओ, तेज चलने का क्या नतीजा निकला?’’

वास्तव में निरुत्तर हो गया मैं. भैया ने सच ही कहा था बौबी के बारे में. उस का आचरण ही उस की सब से बड़ी सजा बन जाने वाला है. मनुष्य काफी हद तक अपनी पीड़ा के लिए स्वयं ही जिम्मेदार होता है.

दूसरे दिन कंपनी के काम से जब मु?ो श्रीमती गोयल के पास जाना पड़ा तब उन का ?ाका चेहरा और तरल आंखें पुन: सारी कहानी दोहराने लगीं. उन की हंसी कहीं खो गई थी. शायद उन्हें मु?ा से यह भी डर लग रहा होगा कि कहीं पुरानी घटना सब को सुना कर मैं उन के लिए और भी अपमान का कारण न बन जाऊं.

पहली बार लगा मैं भी भैया जैसा बन गया हूं. क्षमा कर दिया मैं ने भी श्रीमती गोयल को. बस मन में एक ही प्रश्न उभरा :

आप ने ऐसा क्यों किया श्रीमती गोयल जो आज आप को अपनी नजरें शर्म से ?ाकानी पड़ रही हैं. हम आज वह अनिष्ट ही क्यों करें जो कब दुख का तूफान बन कर हमारे मानसम्मान को ही निगल जाए. इनसान जब कोई अन्याय करता है तब वह यह क्यों भूल जाता है कि भविष्य में उसे इसी का हिसाब चुकाना पड़ सकता है.

काश, आप ने ऐसा न किया  होता.

भाजपा का धर्मजाल कैसे तोड़ेगी कांग्रेस

इतवार, 17 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में लाखों की भीड़ के सामने लच्छेदार भाषण देते लोकसभा चुनाव की दुंदुभी फूंक रहे थे ठीक उसी वक्त कोलकाता से कांग्रेसी दिग्गज पी चिदंबरम भी भाजपा की ही तारीफों में कसीदे गढ़ते कह रहे थे कि हवा उस के पक्ष में है और भाजपा हर चुनाव को आखिरी चुनाव समझते लड़ती है.

पूर्व वित्तमंत्री की मंशा हालांकि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को आगाह करने की थी लेकिन तरीका उन का ठीक वैसा ही था जैसे कोई पिता अपने आलसी और सुस्त बेटे को जिम जाने के फायदे न गिना कर पड़ोसी के लड़के के सिक्स पैक और सेहत की मिसाल देने लगे.

लोकतंत्र में नेता विपक्षी नेताओं की तारीफ करें, यह नई बात नहीं है. इंदिरा गांधी के दौर में जनसंघ सहित कई गैरकांग्रेसी नेता उन के प्रशंसक थे. इन में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम उल्लेखनीय है लेकिन उन्होंने कभी कांग्रेस की नीतियोंरीतियों और खूबियों की तारीफ नहीं की.

आजकल उल्टा हो रहा है नरेंद्र मोदी की तारीफ करने से बचने के लिए कांग्रेसी नेता भाजपा के चुनावी प्रबंधन की तारीफ करने लगे हैं जबकि उन्हें इस की आलोचना करनी चाहिए कि भाजपा धर्म के नाम पर वोट मांग कर लोकतंत्र की गरिमा और खूबसूरती खत्म कर रही है जो देश के लिए नुकसानदेह है.

काशी में बोले मोदी

चिदंबरम ने हालांकि यह भी कहा कि हवाएं दिशाएं बदल भी देती हैं लेकिन इस के लिए भगवान भरोसे बैठ जाना बुद्धिमानी या तुक की बात नहीं. यह हवा जिस की पीड़ा उन के मुंह से निकली कैसे भाजपा अपने पक्ष में मोड़े हुए है. इस के लिए वाराणसी में मोदी ने क्या कुछ कहा उस पर एक नजर डालें तो स्पष्ट होता है कि अब धर्म के साथसाथ भाजपा एक नया काम यह कर रही है कि जिन लोगों को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं से लाभ मिला है उन के मुंह से ही वह विज्ञापन करवा रही है.

मसलन – मुझे प्रधानमंत्री आवास योजना में घर मिला जिस से मेरी गरीबी दूर हो गई. स्कूल कालेजों में पढ़ रहे मेरे बच्चों में आत्मविश्वास आ गया, अब वे दोस्तों के सामने इस बात पर शर्मिंदा नहीं होते कि वे झेंपड़े या कच्चे घर में रहते हैं.

मसलन – मैं एक गरीब महिला हूं, मुझे उज्ज्वला योजना में गैस सिलैंडर मिला जिस से मेरी गरीबी दूर हो गई, मुझे लकडि़यों के धुएं से मुक्ति मिल गई.

मसलन – मैं गरीब हूं और अपना इलाज नहीं करा सकता था लेकिन आयुष्मान कार्ड बनने से मेरा लाखों का इलाज होता है. इस से अब मैं गरीब नहीं रहा. मेरा औपरेशन हुआ, अब मैं फिर से काम कर सकता हूं. यह कार्ड नहीं होता तो जिंदगी जैसेतैसे गुजारता.

यह ब्रैंडिंग ठीक वैसी ही है जैसी देर रात टीवी के विज्ञापनों में दिखाई जाती है कि पहले मैं बहुत दुबला और कमजोर था, फिर मुझे फलां प्रोडक्ट मिल गया. अब मैं बहुत ताकतवर हूं और कुछ भी कर सकता हूं. मेरी कमजोरी दूर हो गई है और इस से मेरी परफौर्मैंस सुधरी है. अब मैं बहुत खुश हूं.

तो बकौल मोदीजी, देश में सब खुश हैं, खुशहाल हैं क्योंकि उन की जरूरतें सरकारी योजनाओं से पूरी हो रही हैं. 80 करोड़ भूखों को सरकार अन्न दान कर रही है. बेघरों को दान में आवास दिया जा रहा है और बाकी बचे लोगों, जिन्हें रोटी, कपड़ा और मकान की भी जरूरत नहीं उन के दुखदर्द दूर करने के लिए राममंदिर लगभग बन चुका है. वहां भीड़ हो तो मथुरा, काशी ये लोग आ सकते हैं नहीं तो प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार, ऋषिकेश, गया, बैजनाथ और चारों धाम सहित मंदिरों की लंबी शृंखला है. जिसे जहां सहूलियत हो, दक्षिणा चढ़ा कर मानसिक संतुष्टि और सुखसंपत्ति की गारंटी ले सकता है. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि वोट भाजपा को ही दिया जाए.

जिन्हें विष्णु के क्षीर सागर में होने न होने पर शक हो वे चाहें तो सीधे नरेंद्र मोदी को भी पूज सकते हैं क्योंकि अयोध्या के एक ताजे बुलेटिन में उन्हें विष्णु अवतार घोषित कर दिया गया है. रामजन्म भूमि ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने मोदी के काशी दौरे के बाद यह पाताल वाणी की है.

मुमकिन है ऊपर कहीं से उन्हें यह निर्देश मिला हो कि अभी कल्कि अवतार में विलंब है, इसलिए नरेंद्र मोदी को ही विष्णु अवतार घोषित कर दिया जाए. बाद की खानापूर्तियां वक्त रहते होती रहेंगी. हालफिलहाल तो नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को मानव रूप में ही विष्णु अवतार के दर्शन करेंगे.

कितना सच कितना झठ ?

वाराणसी में नरेंद्र मोदी ने सरकार की उपलब्धियां गिनाते चाहा यही है कि लोग योजनाओं का लाभ लें और वोटों की दक्षिणा भाजपा को दें. अब यह और बात है कि वे और दूसरे भाजपाई जितना और जैसे गिनाते हैं उतने का 10वां हिस्सा ही आमजन को मिलता है. मिसाल आयुष्मान कार्ड की लें तो भाषणों से तो लगता ऐसा है कि सभी लोग इस का फायदा उठा रहे हैं. लेकिन हकीकत कुछ और है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने 17 दिसंबर को ही आंकड़े जारी कर बताया है कि आयुष्मान योजना की पात्रता तो 33 करोड़ लोगों को है लेकिन अभी तक सिर्फ 3 करोड़ लोगों को ही ये कार्ड जारी किए गए हैं. इन में से भी लगभग आधे उत्तर प्रदेश के लाभार्थी हैं. कम काम में ज्यादा हल्ला कैसे मचाया जाता है, भाजपा को इस में मास्टरी हासिल हो चुकी है.

मोदीजी 4 करोड़ परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना से लाभान्वित बता चुके हैं यानी एक परिवार में 4 सदस्य भी माने जाएं तो 16 करोड़ लोगों को छत मिल चुकी है. आयुष्मान की तरह यह दावा और आंकड़ा भी शक के दायरे में है.

उज्ज्वला योजना में सिलैंडर बंटे जरूर हैं लेकिन हकीकत यह है कि बड़ी तादाद में महिलाएं दोबारा सिलैंडर भरवा ही नहीं पाईं क्योंकि वे गरीब हैं और उन के पास हजार रुपए गैस सिलैंडर खरीदने को नहीं. इसी तरह स्वच्छ भारत अभियान के चीथड़े किसी भी शहरकसबे या गांव में उड़ते देखे जा सकते हैं, जहां शौचालयों में कुत्तों ने डेरा डाला हुआ है या टीन के वे डब्बे गायब ही हो चुके हैं. महिलाएं पहले की तरह लोटा या बोतल ले जाते दिख जाती हैं.

कांग्रेस खामोश क्यों ?

चिदंबरम जैसे नेता इन दावों और आंकड़ों का पोस्टमार्टम करें तो जो हकीकत सामने आएगी वह जरूर हवा का रुख कांग्रेस की तरफ मोड़ सकती है, इस के साथसाथ उसे यह भी लोगों को बताते रहना होगा कि दरअसल धर्म से रोजगार नहीं मिलने वाला, उस के लिए तो खुद लोगों को मेहनत करनी पड़ेगी. अभी कांग्रेसी यह बात यदाकदा कह जरूर रहे हैं लेकिन खुद इस बात को ले कर शंकित हैं कि लोग इसे स्वीकारेंगे और समझेंगे या नहीं.

सियासी बाजार में बिलाशक झठ बेचना आसान है लेकिन सच बेचना उस से भी ज्यादा आसान काम है. धर्म स्थलों से समस्याएं हल नहीं होतीं और रोजगार नहीं मिलता, यह जनता भी जानती और समझती है लेकिन उस की शंका कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को ले कर यह है कि वे उसे भरोसा नहीं दिला पा रहे कि धर्म की राजनीति से हट कर यह काम कैसे होगा या हो भी सकता है.

इसी असमंजस का लाभ नरेंद्र मोदी और भाजपा उठा रहे हैं. इसीलिए हवा उन के पक्ष में है. और तो और उन्हें विष्णु अवतार घोषित करने पर आमजनों की धार्मिक भावनाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता. वे इस बात पर आहत नहीं होतीं कि सरासर एक आदमी को भगवान बनाया जा रहा है, जिस पर किसी को कोई एतराज नहीं.

दरअसल धर्म का डर जो सदियों से हिंदुओं के दिलोदिमाग में बैठा हुआ है को भगवा गैंग ने कुछ इस तरह हौआ बनाया है कि लोग उस के मकड़जाल से निकलने में डरने लगे हैं. कांग्रेसी और इंडिया गठबंधन नास्तिक कहलाने से डरते हैं और उन में से अधिकतर नास्तिक हैं भी नहीं, फिर भी मात खा रहे हैं तो इस की वजह भाजपा का बिछाया धर्मजाल है, जिसे काटने का जोखिम तो विपक्ष को उठाना पड़ेगा, नहीं तो योजनाओं के लाभार्थी पैसा और वोट दोनों लुटाते खुद भी लुटते रहेंगे.

नरेंद्र मोदी अब अस्पताल और स्कूल बनाने की बात कभीकभार ही करते हैं क्योंकि शिक्षा और इलाज दोनों महंगे होते जा रहे हैं. विधानसभा चुनावप्रचार के दौरान प्रियंका गांधी ने इस मुद्दे को उठाने की कोशिश राजस्थान से की थी लेकिन कांग्रेसियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया था कि कैसे इसे जनता के सामने पेश करें कि हकीकत उन्हें समझ आए. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्ष को आधेअधूरे नहीं बल्कि पूरे मन से इसे उठाना होगा तभी हवा उन की तरफ चलेगी.

पिछड़ते भारतीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण यह दोहराते अघाते नहीं हैं कि भारत दुनिया की सब से तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है. जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने की वजह से यह सही हो तो भी यह नहीं भूलना चाहिए कि औसत भारतीय ज्यादातर दूसरे देशों के मुकाबले लगातार पिछड़ रहा है.

वियतनाम से थोड़ी तुलना ही इस फूलते गुब्बारे को पंचर करने के लिए काफी है. वियतनाम वह है जो 1980 तक अमेरिकी सोच का निशाना रहा. भारी संख्या में अमेरिकी सेना, जिस में हवाई जहाज, मिसाइल शामिल थीं, वियतनाम पर हमला कर के जो थोड़ाबहुत वहां बना हुआ था, उसे नष्ट करती रही.

भारत के साथ ऐसा पिछले 400 साल में नहीं हुआ. यहां शहरों के शहर कभी नहीं जलाए गए. हां, 1947 के विभाजन पर गहरा आघात यहां के पंजाब व बंगाल के निवासियों पर पड़ा पर बाकी देश में शांति रही, धार्मिक दंगों में छोटीमोटी हत्याएं हुईं और कुछ मकान व गाडि़यां जलीं. लेकिन वियतनाम की तरह खतरनाक बम नहीं गिरे जिन में मीलों तक आग लग जाती है.

उस वियतनाम की प्रति व्यक्ति डौलरों में आय वर्ष 2000 में 394 थी और उस के मुकाबले भारत की प्रति व्यक्ति आय 447 डौलर थी. भारतीय आम आदमी वियतनामी से अमीर था.

पर उस के बाद जहां भारत मंदिर निर्माण में लग गया, वहां वियतनामी फैक्ट्री निर्माण में लग गए. 2015 तक वियतनामी की औसत आय 2,055 डौलर हो गई और भारतीय पिछड़ कर 1,617 पर रह गया. अच्छे दिनों को लाने, भ्रष्टाचारमुक्त शासन, महान नेतृत्व का दावा करने वाली सरकार के 6 साल बाद 2021 में भारतीय की औसत आय 2,041 डौलर रह गई जबकि वियतनामी की औसत आय 2021 में 3,025 डौलर हो गई.

यह जो अंतर हुआ है, इस का जिम्मेदार कौन है? 2000 में हम से 50 डौलर पीछे रहने वाला वियतनामी 2021 आतेआते हम से 1,000 डौलर आगे हो गया है तो फिर नरेंद्र मोदी का ढोल बजाने का कोई कारण नहीं बनता.

असल में हमें अपना गुणगान करने की आदत पुराणों से मिली है. वही अब इतिहास की पुस्तकों में ठूंसी जा रही है. आदमी तब पढ़ता जब अपनी कमियां निकाल सके. हमें यह नहीं बताया जाता कि 2000 में सिंगापुर की प्रति व्यक्ति आय आम भारतीय से 15 गुना थी जो 2021 आने तक 69,896 डौलर यानी 30 गुना हो गई. यह स्वीकार कर के ही देश आगे बढ़ सकता है. मंदिरों, संसदों में पूजा कर के, दंडवत प्रणाम कर के नहीं.

पोषक तत्वों से भरपूर है अंडे, इसे अपनी डाइट में इन तरीकों से करें शामिल

Eggs Recipes : सेहत के लिए अंडे का सेवन करना बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है. इसमें प्रोटिन, विटामिंस और मिनरल्स की भी भरपूर मात्रा होती है. इसी वजह से डॉक्टर भी कई बीमारियों में अंडे खाने की सलाह देते है. अंडे से आप कई स्वादिष्ट रेसिपी बना सकते हैं.

चाइनीज आमलेट स्टार्टर

सामग्री : 4 अंडे, 1/2 कप उबले हुए नूडल्स, 1 हरी मिर्च कटी हुई, 1 टमाटर कटा हुआ, 1/2 प्याज बारीक कटा हुआ, 4-5 छोटे चम्मच तेल, 2-3 छोटे चम्मच कटा हुआ सफेद प्याज, नमक स्वादानुसार.

विधि : अंडों को अच्छी तरह फेंट लें. इस में सारी सामग्री मिला लें. फ्राइंगपैन में तेल गरम करें और अंडे वाले मिक्स्चर से आमलेट बना लें. इस आमलेट को टुकड़ों में काट कर स्टार्टर की तरह सर्व करें. इन टुकड़ों को टोस्ट या बिस्कुट पर रख कर भी सर्व किया जा सकता है.

एग डेविल

सामग्री : 6-7 उबले आलू मध्यम आकार के, 4 उबले अंडे, 1/2 कप हरे मटर, 3 स्लाइस ब्रेड, 1 हरी मिर्च कटी हुई, 1/2 छोटा चम्मच जीरा, 2 छोटे चम्मच नीबू का रस, नमक स्वादानुसार.

विधि : पहले मटर को पीस लें. फिर ब्रेड स्लाइस के टुकड़े कर के मिक्सी में ग्राइंड कर क्रम्स बना लें. उस के बाद उबले आलुओं को मैश करें और इस में पिसे हुए मटर, ब्रेड क्रम्स, सभी मसाले और नीबू रस मिला कर अच्छी तरह मिक्स्चर तैयार कर लें. अंडों को छील कर एक तरफ रख लें. फिर आलू के बनाए मिश्रण के 4 भाग करें. एक भाग को हाथ में ले कर 1 अंडे को अच्छी तरह उस मिश्रण में लपेटें. बाकी अंडों को भी इसी तरह मिश्रण में लपेटें. अंडे की शेप की 4 चाप बना लें. पैन में तेल गरम कर के 2-2 चाप कर के डीप फ्राई करें. तले हुए चाप को बीच से काट कर सर्व करें.

कैरेमल एग पुडिंग

सामग्री : 1 लिटर दूध, 10-12 छोटे चम्मच चीनी, 5 अंडे.

विधि : 1 एल्यूमिनियम बरतन लें जो गोल आकार का हो. इस में 3 छोटे चम्मच चीनी डाल कर धीमी आंच पर पिघला कर पूरे बरतन में फैला दें. इस कैरेमल को ठंडा होने के लिए रखें. इस बीच दूध को उबालें और धीमी आंच पर इस को आधा होने तक गाढ़ा करें. जब दूध की मात्रा आधी हो जाए तो बाकी चीनी मिलाएं और गैस से उतार लें. फिर दूध को ठंडा होने दें. अंडे फेंट लें और ठंडे दूध में अच्छी तरह मिला लें. फिर दूध व अंडे के मिक्स्चर को कैरेमल के ऊपर डालें. इस मिक्स्चर को स्टीमर में 35-40 मिनट तक स्टीम करें. पुडिंग सेट करने के लिए फ्रिज में 1-2 घंटे तक रखें. सर्व करते समय एल्यूमिनियम बरतन पर प्लेट रखें. फिर पुडिंग प्लेट पर उलटा दें ताकि कैरेमल ऊपर की तरफ नजर आए.

पीटा पाकेट्स

सामग्री : 2 पीटा ब्रेड, 6 अंडे, 1/2 कप तेल, 1 हरी मिर्च कटी हुई,  1 कटा प्याज, थोड़ी सी हरी धनियापत्ती कटी हुई, नमक स्वादानुसार.

विधि : पीटा ब्रेड को बीच से काट कर 2 टुकड़े करें. फिलिंग के लिए पहले अंडों को फेंट लें. फिर उस में नमक, प्याज, धनियापत्ती और कटी हरी मिर्च मिलाएं. फ्राइंगपैन में तेल गरम करें और अंडे के मिक्स्चर की भुरजी बना लें. इस भुरजी को पीटा पाकेट्स में डाल कर स्नैक्स की तरह सर्व करें.

एग पुलाव

सामग्री : 1 कप बासमती चावल, 4 छोटे चम्मच घी, 1 तेजपत्ता, 2 सूखी लाल मिर्च, 2 फेंटे हुए अंडे, 2 उबले हुए अंडे, नमक स्वादानुसार.

विधि : प्रैशर कुकर में घी गरम करें फिर इस में साबुत मसाले डालें. अब चावल मिला कर 2-3 मिनट के लिए फ्राई कर लें. 11/2 कप पानी मिला कर एक सीटी लगा लें.

फिर कुकर खोल कर उस में फेंटे हुए अंडे मिला लें और चावल में मिक्स कर लें. फिर कुकर बंद कर लें और 5-7 मिनट बंद कर के रखें. चावल को सर्विंग प्लेट में परोसें और उबले हुए अंडों को काट कर सजाएं.

एग फ्रूट सलाद

सामग्री : 1 सेब कटा हुआ (छिलका सहित), 1 हरी शिमलामिर्च कटी हुई, 7-8 मौसमी फल, 2-3 गाजर कटी हुई, 3 उबले अंडे गोल कटे हुए, 1 छोटा चम्मच सलाद आयल, 2 छोटे चम्मच नीबू का रस.

विधि : सभी मौसमी फलों को काट कर प्लेट में सजा लें. अंडे भी सजा लें फिर ऊपर से नीबू रस, तेल और पिज्जा स्पाइस छिड़क कर सर्व करें.

ठंड के मौसम में मछली खाना है बहुत जरूरी, इन समस्याओं से मिल सकती राहत

Health Benefits of Fish : मछली खाना स्वास्थ के लिए बेहद फायदेमंद होता है. मछली में लो फैट होता है. इसके अलावा इसमें भारी मात्रा में प्रोटीन, ओमेगा-3 होता है. फैटी एसिड के कारण भी मछली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है. मछली में कई जरूरी विटामिन और पोषक तत्व मौजूद होते हैं. शरीर की कई जरूरतों को पूरा करने में इनका अहम योगदान होता है. इसके अलावा आंखों की सेहत के लिए भी मछली काफी असरदार होता है.

कैंसर से करे बचाव

मछली का नियमित रूप से सेवन करने वालों में कैंसर का खतरा काफी कम होता है. मछली में ओमेगा-3 फैटी एसिड बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है, जो कैंसर से बचाव करता है. इसे खाने से ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर से बचाव होता है. अगर आप नौनवेज खानों के शौकीन हैं तो मछली का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होगा.

दिमाग होता है तेज

बच्चों में तेज दिमाग के लिए उन्हें मछली खिलाना शुरू कर दें. मछली में पाए जाने वाले पोषक तत्व दिमाग को तेज करने में काफी लाभकारी होते हैं. इसमें पाए जाने वाला फैटी एसिड दिमाग तेज करता है और लोगों की स्मरम शक्ति बढ़ाता है.

करे दिल की सुरक्षा

दिल को स्वस्थ रखने में मछली काफी कारगर है, इसमें माए जाने वाला ओमेगा-3 फैटी एसिड दिल और उसकी मांस-पेशि‍यों को मजबूत बनाता है. ओमेगा-3 में लो फैट होता है, जिससे कोलेस्ट्रौल की मात्रा कम रहती है.

त्वचा और बालों  को रखे स्वस्थ

मछली में मिलने वाले ओमेगा-3 से त्वचा और बालों की खूबसूरती बनी रहेगी. इससे त्वचा में नमी बरकरार रहती है और बाल भी चमकदार रहते हैं.

डिप्रेशन को करे दूर

अवसाद में मछली काफी फायदेमंद है. गर्भावस्था में अक्सर महिलाएं अवसाद से घिरी रहती हैं, ऐसे में डॉक्टर उन्हें ओमेगा-3 की कैप्सूल लेने की सलाह देते हैं लेकिन मछली का सेवन करते रहने से कैप्सूल लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

ट्रोलिंग का कड़वा सच प्रांशु की आत्महत्या

21नवंबर, 2023 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में 10वीं में पढ़ने वाले 16 साल के छात्र ने सुसाइड कर लिया. वह सोशल मीडिया पर ऐक्टिव था. मेकअप में इंटरैस्ट होने के कारण अकसर वह अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर मेकअप के साथ पोस्ट और रील शेयर किया करते था. ऐसे ही दीवाली के दिन प्रांशु ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी मेकअप और ब्यूटी से जुड़ी रील शेयर की, जिस में उस ने साड़ी पहनी हुई थी.

इस पर आए कमैंट्स से परेशान हो कर उस ने आत्महत्या कर ली. उसे सोशल मीडिया यूजर्स ने जम कर ट्रोल किया. प्रांशु अपनी मां के साथ रहा करता था. उस के मातापिता का 3 साल पहले तलाक हो चुका था. ये कमैंट्स इतने अश्लील और गंदे थे कि उन का जिक्र करना यहां उचित नहीं है.

‘मेड इन हैवन’ वैब सीरीज की ऐक्टर त्रिनेत्र हलदर गुम्माराजू ने दावा किया कि प्रांशु का इंस्टाग्राम हैंडल का कमैंट सैक्शन 4,000 से अधिक होमोफोबिक यानी गे समुदाय को ले कर नापसंदगी और पूर्वाग्रह वाले कमैंट्स से भरा था, जबकि प्रांशु के अकांउट से इस बात की कोई पुष्टि नहीं होती कि वह एलजीबीटी समुदाय से संबंध रखता था या नहीं.

मामले हैरान करते हैं

ऐसा ही कुछ हुआ ग्वालियर में साइबर बुलिंग की शिकार एक 14 साल की लड़की, जो कि 8वीं क्लास की स्टूडैंट थी, के साथ. वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर 3 मनचलों का शिकार हुई थी. पड़ोस में रहने वाले ये तीनों आवारा लड़के उस स्टूडैंट के साथ मैसेंजर पर चैटिंग करने लगे और उस की चैट को वायरल करने की धमकी देने लगे.

इन तीनों ने लड़की से उस के सोशल मीडिया अकाउंट की आईडी और पासवर्ड ले लिए थे और वे उस के अकाउंट से अश्लील पोस्ट भी करते थे, जिस से तंग आ कर उस स्टूडैंट ने आत्महत्या कर ली.

ऐसा सिर्फ आम लोगों के साथ होता है, यह कहना गलत होगा. इस का शिकार होने वाले कई बार जानेमाने लोग भी होते हैं. सितारों के लिए तो बात आम हो चुकी है लेकिन आम लोगों के लिए इसे बरदाश्त करना मुश्किल हो जाता है.

साइबर बुलिंग से देश में ही नहीं, विदेशों में भी हजारों की संख्या में लोग आत्महत्या करते हैं जिन में ज्यादातर 14 से 30 वर्ष तक के युवा होते हैं.

क्या है परिदृश्य ?

जब से सोशल मीडिया आया है, युवा और टीन बड़ी संख्या में इस का हिस्सा बनने लगे, खासकर भारत में जहां 448.8 मिलियन फेसबुक, 252.41 मिलियन इंस्टाग्राम, 26.5 मिलियन ट्विटर और 467 मिलियन यूट्यूब के ऐक्टिव यूजर हैं.

इतनी बड़ी संख्या लगातार सोशल मीडिया पर ऐक्टिव है जो नैगेटिव और पौजिटिव हर तरह के कमैंट करने से बाज नहीं आती. जो कई बार हद पार कर देते हैं. गालियों से ले कर सैक्सुअली एब्यूज आम हो चुका है. कई बार तो कमैंट इतने भद्दे होते हैं कि उन्हें देख कर शर्म आ जाती है.

यह तबका बड़ी ही आसनी से समाज के दायरे से बाहर निकलते युवकयुवतियों को अपने ट्रोल्स का शिकार बनाता है. चाहे कुछ भी हो, इस संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों को जो भी पसंद नहीं आता उसे वे ट्रोल करना शुरू कर देते हैं. एक के बाद एक नैगेटिव कमैंट आते हैं. जानकारी के लिए बता दें, सोशल मीडिया पर नैगेटिव कमैंट्स को ट्रोलिंग कहा जाता है. यह एक तरह किसी पर की गई व्यक्तिगत टिप्पणी होती है.

ये नैगेटिव कमैंट कभीकभी किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को इतना आघात पहुंचाते हैं कि वह डिप्रैशन में चला जाता है और आत्महत्या तक कर लेता है या हमेशा के लिए सोशल मीडिया से किनारा कर लेता है.

ऐसा ही कुछ टीवी की जानीमानी ऐक्ट्रैस नीति टेलर के साथ भी हुआ. साल 2014 के शो ‘कैसी ये यारियां’ से उन्हें ट्रोल किया जा रहा है, ऐसा उन्होंने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा. वे कहती हैं, ‘‘ट्रोलर ने मेरे घरवालों को मेरी ही एडिट की हुई फोटोज में टैग करना शुरू कर दिया है.’’ ऐक्ट्रैस आगे कहती हैं, ‘‘ये लोग बेहद गंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं. शिकायत करने पर पुलिस का साइबर सैल कुछ नहीं कर पा रहा.’’

ऐसी न जाने कितनी शिकायतें साइबर सैल के पास रोजाना आती हैं जिन का निबटारा नहीं किया जाता, जिस के कारण ये हरकतें सोशल मीडिया पर लगातार जारी रहती हैं.

एनसीआरबी के मुताबिक, साल 2020 में भारत में साइबर अपराध के 50,035 मामले सामने आए, जिन में साइबर स्टौकिंग के 1614, साइबर ब्लैकमेलिंग के 762, मानहानि …

गर्भनिरोधक गोलियों के साथ-साथ कंडोम का भी इस्तेमाल करना जरूरी है क्या ?

सवाल

मैं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती हूं. अभी मैं और मेरे पति परिवार नियोजन के लिए तैयार नहीं हैं. मैं जानना चाहती हूं कि यदि मैं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कर रही हूं तो क्या हमें कंडोम का भी प्रयोग करना चाहिए ?

जवाब

गर्भनिरोधक गोली या गर्भनिरोधक इंजैक्शन आदि अनचाहे गर्भ को रोकने में कारगर साबित होते हैं. लेकिन ये यौन रोगों या यौन संक्रमण से किसी भी प्रकार की सुरक्षा प्रदान नहीं करते. आप का यह भी जानना बहुत जरूरी है कि गर्भनिरोधक गोली क्या होती है. यह वह गोली है, जिस में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन होते हैं. ये हारमोन स्त्री के अंडाशय से अंडे निकलने से रोकते हैं ताकि वह गर्भवती न हो. साथ में ये गोलियां गर्भाशय से निकलने वाले द्रव को गाढ़ा बना देती हैं ताकि पुरुष के स्पर्म गर्भाशय में न जा सकें.

यदि आप परिवार नियोजन के लिए इन की शुरुआत करना चाहती हैं, तो डाक्टर की सलाह जरूर लें. जन्म नियंत्रण के तौर पर कंडोम का प्रयोग आप को और आप के साथी को यौन रोगों से बचाता है, साथ ही अनचाहे गर्भ की भी समस्या को खत्म करता है, इसलिए यौन रोगों से बचने के लिए कंडोम का प्रयोग अच्छा होता है.

ये भी पढ़ें…

अनचाहे गर्भधारण से कैसे बचें

अनचाहा गर्भधारण न केवल एक नवविवाहित स्त्री के स्वास्थ्य पर असर डालता है अपितु उस का संपूर्ण विवाहित जीवन भी प्रभावित होता है. अनचाहा गर्भ ठहरने पर गर्भपात (एबार्शन) कराना इस का उचित समाधान नहीं है. शिशु को जन्म दें या नहीं, इस का निर्णय एक दंपती के जीवनकाल का अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है. गर्भपात कराने से बेहतर है कि अनचाहा गर्भ ठहरने ही न पाए. इस से स्त्रीपुरुष को आर्थिक, सामाजिक व मानसिक रूप से सुकून मिलता है. अनचाहे गर्भ से कैसे बचें? कौन सा गर्भनिरोधक कितना प्रभावी है और क्यों? इस तरह के कई सवाल महिलाओं के जेहन में उठते हैं और इस का सही जवाब उन्हें समय से ज्ञात नहीं हो पाता. सामान्यत: निम्न सवालों का जवाब अधिकांश महिलाएं अवश्य जानना चाहेंगी :

स्त्री कंडोम क्या है?

स्त्री कंडोम एक पतले रबर का बना होता है. इस का बंद सिरा गर्भाशय ग्रीवा को ढक देता है और दूसरा खुला सिरा बाहर रहता है. इसे संबंध बनाने से ले कर 8 घंटे तक धारण किया जा सकता है परंतु सेक्स के बाद लगाने पर इस का कोई उपयोग नहीं रहता है. यह 79.95% सुरक्षा प्रदान करता है.

क्या स्त्री व पुरुष दोनों को कंडोम इस्तेमाल करना चाहिए?

नहीं, इस की आवश्यकता नहीं है, न ही करना चाहिए.

क्या स्त्री कंडोम के साथ जैली लगानी चाहिए?

स्त्री कंडोम में जैली लगी रहती है. इसलिए किसी प्रकार की लुब्रिकेटिंग जैली की जरूरत नहीं होती है, परंतु आवश्यकतानुसार के-वाई जैली या ल्यूबिक जैली इस्तेमाल की जा सकती है. सही तरीके से विधिवत इस्तेमाल करने पर यह 95% सुरक्षित है.

क्या इस के कोई दुष्प्रभाव हैं?

स्त्री कंडोम के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं. गर्भनिरोधक के साथसाथ यह एचआईवी, एड्स व गुप्त रोगों से भी सुरक्षा प्रदान करता है. स्त्री को शुरूशुरू में इसे इस्तेमाल करने में थोड़ी परेशानी व उलझन हो सकती है.

यह कहां उपलब्ध है?

दवा की दुकानों या सुपर बाजार में उपलब्ध है.

गर्भाशय के अंदर लगाए जाने वाली डिवाइस (कौपर टी, मल्टीलोड व मरीना) क्या है?

इन्हें डाक्टरी जांच के बाद डाक्टर द्वारा लगाया जाता है. यह 3, 5 व 10 साल तक प्रभावी होता है. यह अपनी जगह पर ठीक है या नहीं, गर्भाशय ग्रीवा के बाहर लटकते पतले धागे से ज्ञात किया जा सकता है.

इंट्रायूटराइन डिवाइस के क्या लाभ हैं?

यह बिना किसी बेहोशी या आपरेशन के गर्भाशय में डाक्टर द्वारा लगाया जा सकता है.

यह संभोग क्रिया में किसी प्रकार की बाधा नहीं डालता है. डाक्टर इसे स्त्री के इच्छानुसार बिना किसी सूई अथवा बेहोशी के सरलतापूर्वक निकाल सकता है.

निकालने के तुरंत बाद शीघ्र ही गर्भ ठहरने की संभावना रहती है, क्योंकि यह मासिकधर्म चक्र पर कोई परिवर्तन नहीं होने देता है.

इसे गर्भाशय में लगाने में केवल 10 मिनट लगते हैं और तुरंत ही यह प्रभावकारी हो जाता है. यह लगभग 99% सुरक्षा प्रदान करता है.

आई.यू.एस. मरीना माहवारी में अधिक रक्तस्राव को कम करता है. यह गर्भाशय की छोटी रसौली (फायब्रायड) को भी बढ़ने से रोकता है, जिस से भविष्य में गर्भाशय निकालने जैसे बड़े आपरेशन की नौबत नहीं आती है.

इंट्रायूटराइन डिवाइस से क्या फायदे नहीं हैं?

गुप्तरोग, एचआईवी व एड्स जैसे रोगों से सुरक्षा प्रदान नहीं होती है. माहवारी अनियमित हो सकती है. कभीकभी यह खिसक कर अपनी जगह से नीचे आ जाता है, जिस से गर्भ ठहरने का खतरा हो सकता है, विशेषत: यदि माहवारी में टैंपून का इस्तेमाल किया जाए. कभीकभी गर्भाशय में सूजन, सफेद पानी का स्राव, पीठ में दर्द जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

गर्भनिरोधक गोली क्या है और यह किस प्रकार गर्भाधारण को रोकती है?

गर्भनिरोधक खाने की गोली सब से अधिक प्रचलित है. सही तरीके से लिए जाने पर यह अत्यधिक प्रभावी है और साधारणत: इस का कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है. इन गोलियों में वही हारमोंस होते हैं, जो अंडाशय बनाते हैं. इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टरोन या केवल प्रोजस्टरोन, जिन्हें मिनी पिल कहा जाता है. यह गोली प्रत्येक माह अंडाशय से अंडा बनने की प्रक्रिया को रोकती है, जिस से अंडा नहीं बनता है और इस प्रकार माहवारी तो प्रतिमाह अपने समय पर आती है परंतु गर्भ नहीं ठहरने पाता है. मिनी पिल गर्भ ग्रीवा से स्रावित द्रव को गाढ़ा करती है, जिस से शुक्राणु गर्भ के अंदर नहीं पहुंच पाते और इस प्रकार गर्भाधारण नहीं होता है.

बाजार में कितने प्रकार की गोलियां उपलब्ध हैं?

स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह ही सर्वोत्तम है कि कौन सी गोली का सेवन किया जाए. भारत में विभिन्न प्रकार की गर्भनिरोधक गोलियां उपलब्ध हैं- माला डी, ट्राईक्यूलार, ओवेराल-एल, लोएट्, नोवेलोन, फेमिलोन, डायन्, यासमीन इत्यादि.

क्या गर्भनिरोधक गोली के दुष्प्रभाव भी हैं?

अधिकांश महिलाओं पर इस का कोई कुप्रभाव नहीं होता है. कुछ महिलाओं को थोड़ीबहुत परेशानी होती है, जो 3-4 माह गोली का सेवन करने पर स्वत: दूर हो जाती है. अधिकांश महिलाओं को छाती में दर्द व भारीपन, उलटी व मिचली होती है. कभीकभी गोली से चेहरे पर झाइंयां पड़ जाती हैं. कभीकभी महिला को 2 माहवारियों के बीच में भी रक्तस्राव हो जाता है. यदि रक्तस्राव ज्यादा हो तो स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है. गर्भनिरोधक गोली का महिला के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव इस के फायदों की तुलना में लेशमात्र है. अनचाहा गर्भ व एबार्शन का स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है.

गर्भनिरोधक गोली का सेवन क्यों करें, इस के क्या फायदे हैं?

नवदंपती के लिए गर्भाधारण को स्थगित करने का सुरक्षित एवं सरल उपाय है- गर्भनिरोधक गोली. इस के अलावा भी इन गोलियों के अनेक फायदे हैं. यह गोली 20 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में मासिक अनियमितताओं एवं कम रक्तस्राव को नियमित करती हैं. इस से चेहरे पर मुंहासों में कमी, चेहरे की कांति का बढ़ना एवं चेहरे पर अनचाहे बालों के उगने पर भी रोकथाम होती है. गर्भनिरोधक गोली भारी माहवारी एवं असहनीय दर्द को भी कम करती है, यदि दर्द का कोई विशेष कारण न हो. यह अंडाशय एवं स्तनों में पानी की रसौली (सिस्ट) को बनने से रोकती है. यह माहवारी पूर्व के दुष्प्रभाव जैसे-पेट में दर्द, स्तनों में भारीपन व दर्द, शरीर का फूलना, मितली जैसी परेशानी का भी निवारण करती है.

यह विभिन्न प्रकार के कैंसर होने से भी रोकती है जैसे :

अंडाशय कैंसर में 40% की कमी.

गर्भाशय कैंसर में 50% की कमी.

बड़ी आंत के कैंसर में भी कमी.

निरोधक गोली सेवन समाप्त करने पर भी इस का प्रभाव 15 वर्षों तक बना रहता है और कैंसर बनने पर रोकथाम करती हैं.

गर्भनिरोधक गोली सेवन के पूर्व क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

यह गोली शरीर में रक्त के जमने की प्रक्रिया पर प्रभाव डालती है और पैरों में खून के जमने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए जिन महिलाओं में हृदय रोग, मोटापा, हार्ट अटैक या अधिक रक्तचाप जैसी बीमारी हो या इन की संभावना हो तो उन्हें गर्भनिरोधक गोली का सेवन नहीं करना चाहिए. आमलोगों में एवं हमारे समाज में गर्भनिरोधक गोली के विषय में कुछ गलत धारणाएं हैं, जिन का निवारण अत्यंत आवश्यक है. मसलन :

वजन का बढ़ना.

बांझपन और अपंग बच्चों का जन्म होना या एबार्शन हो जाना.

गोलियों का सेवन करने पर, बाद में गर्भाधान का कभी न हो पाना.

संभोग क्रिया में रुझान व इच्छा का कम होना.

मिनी पिल नवजात शिशु को दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को गर्भाधारण से बचाती है. इस के सेवन से नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है, साथ ही महिला के स्तनों में बनने वाली दूध की मात्रा में भी कोई कमी नहीं होती है.

इन सभी बातों पर ध्यान दे कर जीवन में खुशहाली के साथसाथ कई बीमारियों से बचाव भी किया जा सकता है.   

दिल की दहलीज पर : मधुरा का सपना क्यों रह गया अधूरा ?

‘‘आहा, चूड़े माशाअल्लाह, क्या जंच रही हो,’’ नवविवाहिता मधुरा की कलाइयों पर सजे चूड़े देख दफ्तर के सहकर्मी, दोस्त आह्लादित थे. मधुरा का चेहरा शर्म से सुर्ख पड़ रहा था. शादी के 15 दिनों में ही उस का रूप सौंदर्य और निखर गया था. गुलाबी रंगत वाले चेहरे पर बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और लाल रंगे होंठ… कुछ गहने अवश्य पहने थे मधुरा ने, लेकिन उस के सौंदर्य को किसी कृत्रिम आवरण की आवश्यकता न थी. नए प्यार का खुमार उस की खूबसूरती को चार चांद लगा चुका था.

‘‘और यार, कैसी चल रही है शादीशुदा जिंदगी कूल या हौट?’’ सहेलियां आंखें मटकामटका कर उसे छेड़ने लगीं. सच में मनचाहा जीवनसाथी पा मानों उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. मातापिता के चयन और निर्णय से उस का जीवन खिल उठा था.

‘‘वैसे क्या बढि़या टाइम चुना तुम ने अपनी शादी का. क्रिसमस के समय वैसे भी काम कम रहता है… सभी जैसे त्योहार को पूरी तरह ऐंजौय करने के मूड में होते हैं,’’ सहेलियां बोलीं.

‘‘इसीलिए तो इतनी आसानी से छुट्टी मिल गई 15 दिनों की,’’ मधुरा की हंसी के साथसाथ सभी सहकर्मियों की हंसी के ठहाकों से सारा दफ्तर गुंजायमान हो उठा.

तभी बौस आ गए. उन्हें देख सभी चुप हो अपनीअपनी सीट पर चले गए.

‘‘बधाई हो, मधुरा. वैलकम बैक,’’ कहते हुए उन्होंने मधुरा का दफ्तर में पुन: स्वागत किया.

सभी अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए.

‘‘मधुरा, शादी की छुट्टी से पहले जो तुम ने टर्न की प्रोजैक्ट किया था कैरी ऐंड संस कंपनी के साथ, उस का क्लोजर करना शेष है. तुम्हें तो पता हैं हमारी कंपनी के नियम… जो रिसोर्स कार्य आरंभ करता है वही कार्य को पूरी तरह समाप्त कर वित्तीय विभाग से उस का पूर्ण भुगतान करवा कर, फाइल क्लोज करता है. लेकिन बीच में ही तुम्हारे छुट्टी पर जाने के कारण उन का भुगतान अटका हुआ है. उस काम को जल्दी पूरा कर देना,’’ कह कर बौस ने फोन काट दिया.

मधुरा ने फाइल एक बार फिर से देखी. भुगतान के सिवा और कार्य शेष न था. फाइल पूरी करने हेतु उसे कैरी ऐंड संस कंपनी के प्रबंधक जितेन से एक बार फिर मिलना होगा और फिर वह जितेन के विचारों में खो गई.

शाम को घर लौट कर रात के भोजन की तैयारी कर मधुरा अपने कमरे में हृदय के दफ्तर से लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी. समय काटने के लिए उस ने अपनी डायरी उठा ली. पुराने पन्ने पलटने लगी. पुराने पन्ने उसे स्वत: ही पुरानी यादों में ले गए…

29 जुलाई

आज इंप्लोई मीटिंग में बौस ने मेरे काम की तारीफ की. कितनी खुशी हुई, मेरे परिश्रम का परिणाम दिखने लगा है. नए क्लाइंट कैरी ऐंड संस कंपनी का प्रोजैक्ट भी मुझे मिल गया. इस प्रोजैक्ट को मैं निर्धारित समयसीमा में पूरा कर अपने परफौर्मैंस अप्रेजल में पूरे अंक लाऊंगी.

30 जुलाई

क्या बढि़या दफ्तर है कैरी ऐंड संस कंपनी का. मुझे आज तक अपना दफ्तर कितना एवन लगता था, लेकिन आज उन का दफ्तर देख कर मेरे होश फाख्ता हो गए. इंटीरियर डिजाइनर का काम लाजवाब है. इतने बढि़या दफ्तर में अकसर आनाजाना लगा रहेगा. मजा आ जाएगा.

31 जुलाई

सारे विभाग बहुत अच्छी तरह नियंत्रित हैं और आपस में अच्छा समन्वय स्थापित है. कैरी ऐंड संस कंपनी का आईटी विभाग प्रशंसा के काबिल है. आज अपने काम की शुरुआत की मैं ने. लोगों से मिल ली. किंतु जिन के साथ मिल कर काम करना है यानी जितेन, उन से मिलना रह गया. कल उन से भी मिल लूंगी.

1 अगस्त

मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसे हीरो जैसा बंदा दफ्तर में टकराएगा मुझ से.

उफ, कितना खूबसूरत नौजवान है जितेन. लंबाचौड़ा, सुंदर… लगता है सीधे ‘मिल्स ऐंड बून्स’ के उपन्यासों से बाहर आया है… मेरे सपनों का राजकुमार.

6 अगस्त

आज पूरे हफ्ते भर बाद फिर से जितेन से मुलाकात हुई. वे इतना व्यस्त रहते हैं कि मुलाकात ही नहीं हो पाती. इतने ऊंचे पद पर हैं… अभी तक ठीक से बात भी नहीं हो पाई है. पता नहीं कब हम दोनों को बातचीत करने का मौका मिलेगा. अभी तो मैं जितेन को अपने कार्य के बारे में भी ढंग से नहीं बता पाई हूं.

16 अगस्त

जितना देखती हूं उतना ही दीवानी होती जा रही हूं मैं जितेन की. एक बार मेरी ओर देख भर ले वह… मेरी सांस गले में ही अटक जाती है. लगता है जो बोल रही हूं, जो काम कर रही हूं, सब भूल जाऊंगी. इतना स्वप्निल मैं ने स्वयं को कभी नहीं पाया पहले. यह क्या हो जाता है मुझे जितेन के समक्ष. लेकिन वह है कि मुझे समय ही नहीं देता. बस 4-5 मिनट कुछ काम के बारे में पूछ कर चला जाता है. कब समझेगा वह मेरे दिल का हाल? क्या मेरी आंखों में कुछ नहीं दिखता उसे?

3 सितंबर

आज घर लौटते समय एफएम, पर ‘सत्ते पे सत्ता’ मूवी का गाना सुना, ‘प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया. कि दिल करे हाय, कोई तो बताए क्या होगा… गाड़ी चलाते समय पूरा गला खोल कर गाना गाने का मजा ही कुछ और है…’ फिर आज तो गाना भी मेरे दिल का हाल बयां कर रहा था. न जाने जितेन के साथ पल दो पल कब मिलेंगे और मैं अपने दिल का हाल कब कह पाऊंगी.

हृदय के कमरे में आने की आहट से मधुरा अतीत की स्मृतियों से वर्तमान में लौट आई.

‘‘कैसा रहा दफ्तर में शादी के बाद पहला दिन?’’ हृदय ने पूछा.

मधुरा को हृदय की यह बात भी बहुत भाती थी कि वह उस की हर गतिविधि, हर भावना, हर बात का खयाल रखता है. दोनों ने बातचीत की, खाना खाया और अगली सुबह के लिए अलार्म लगा कर सो गए.

अगले दिन मधुरा अपने क्लाइंट कैरी ऐंड संस कंपनी पहुंची. आज उस ने फाइल क्लोजर की पूरी तैयारी कर ली थी. फाइनल पेमैंट का चैक देने वह जितेन के कक्ष में पहुंची. उस के हाथों में चूड़े देख जितेन ने उसे बधाई दी, ‘‘मुझे आप की कंपनी से पता चला था कि आप अपनी शादी हेतु छुट्टियों पर गई हैं.’’

कार्य पूरा करने के बाद मधुरा ने अपने दफ्तर लौटने के लिए कैब बुला ली. सारे रास्ते उस के मनमस्तिष्क में जितेन घूमता रहा. किस औपचारिकता से बात कर रहा था आज… उसे याद हो आया वह समय जब जितेन और मधुरा की मित्रता भी हो गई थी और वह ‘सिर्फ अच्छे दोस्त’ की श्रेणी से कुछ आगे भी बढ़ चुके थे.

मधुरा तब कैरी ऐंड संस कंपनी जाने के बहाने खोजती रहती. जितेन भी हर शाम उसे उस के दफ्तर से पिक करता और दोनों कहीं कौफी पीते समय व्यतीत करते. दोनों को ही एकदूसरे का साथ बेहद भाता था. मधुरा के चेहरे की चमक बढ़ती रहती और जितेन कुछ गंभीर स्वभाव का होने के बावजूद उसे देख मुसकराता रहता. जितेन आए दिन मधुरा को तोहफे देता रहता. कभी ‘शैनेल’ का परफ्यूम तो कभी ‘हाई डिजाइन’ का हैंडबैग.

‘‘जितेन, क्यों इतने महंगे तोहफे लाते हो मेरे लिए? मैं हर बार घर और दफ्तर में झूठ बोल कर इन की कीमत नहीं छिपा सकती.’’

‘‘तो सच बता दिया करो न… मैं ने कब रोका है तुम्हें?’’

‘‘तुम तो जानते हो कि हमारी कंपनी में भरती के समय हर मुलाजिम से कौंफिडैंशियलिटी ऐग्रीमैंट भरवाया जाता है. चूंकि तुम एक क्लाइंट हो, मैं तुम्हें न तो डेट कर सकती हूं और न ही तुम से शादी. इतना ही नहीं मैं तुम्हारी कंपनी अगले 2 वर्षों तक भी जौइन नहीं कर सकती हूं… तुम से शादी के बाद मैं नौकरी से त्यागपत्र दे कहीं और नौकरी ढूंढ़ूंगी…’’

‘‘शादी के बाद? हैंग औन,’’ मधुरा की बात को बीच में ही काटते हुए जितेन ने कहा, ‘‘शादी तक कहां पहुंच गईं तुम? हम एक कपल हैं, बस, मैं अभी शादीवादी के बारे में सोच भी नहीं सकता… वैसे भी शादी तो मां अपने सर्कल की किसी लड़की से करवाना चाहेंगी… तुम समझ रही हो न?’’

मधुरा के माथे पर चिंता की लकीरें और चेहरे पर असमंजस के भाव पढ़ कर जितेन ने आगे कहा, ‘‘तुम इस समय का लुत्फ उठाओ न… ये महंगे तोहफे, ये बढि़या रेस्तरां, अथाह शौंपिंग… ये सब तुम्हें खुश करने के लिए ही तो हैं… कूल?’’

उस शाम मधुरा को पता चला कि सामाजिक स्तर का भेदभाव केवल कहानियों में नहीं, अपितु वास्तविक जीवन में भी है. उस ने सोचा न था कि उसे भी इस भेदभाव का सामना करना पड़ेगा. उस के बाद जब कभी जितेन टकराया, बस एक फीकी सी मुसकान मधुरा के पाले में आई. खैर, उस का भी मन नहीं हुआ कि जितेन से बात करे. उस का मन खट्टा हो चुका था.

फिर उस की मम्मी ने उसे रमा आंटी के बेटे से मिलवाया. अच्छा लगा था मधुरा को वह. खास कर उस का नाम-हृदय. शांत, सुशील और विनम्र. घरपरिवार तो देखाभाला था ही, रहता भी इसी शहर में था. चलो, ‘मिल्स ऐंड बून्स’ के हीरो को भी देख लिया और अब वास्तविकता के नायक को भी. पर क्या करें. जीवन तो वास्तविक है. इस में सपनों से अधिक वास्तविकता का पलड़ा भारी रहना स्वाभाविक है.

जब से मधुरा की मुलाकात हृदय से हुई थी तभी से कितने अच्छे और मिठास भरे मैसेज भेजने लगा था वह. हृदय ने उस का मन पिघला दिया था. जल्दी ही हामी भर दी उस ने इस रिश्ते के लिए. उस की मम्मी और आंटी कितनी खुश हुईं. उस का मन भी खुश था. मन की तहों ने जहां एक तरफ जितेन को छाना था वहीं दूसरी तरफ हृदय को भी टटोल कर देखा था. मधुरा जैसी रुचिर, लुभावनी और मेधावी लड़की आगे बढ़ चुकी थी.

हर अनुभव जीवन में कुछ सबक लाता है और कुछ यादें छोड़ जाता है. चलते रहने का नाम ही जीवन है. मधुरा अपने दफ्तर पहुंच चुकी थी. आज वह अपने परफौर्मैंस अप्रेजल में अपने पूरे किए प्रोजैक्ट को भरने वाली थी.

सच्ची परख : सौंदर्य के झूठे सच में फंसी लड़की की कहानी

बिस्तर पर लेटी वह खिड़की से बाहर निहार रही थी. शांत, स्वच्छ, निर्मल आकाश देखना भी कितना सुखद लगता है. घर के बगीचे के विस्तार में फैली हरियाली और हवा के झोंकों से मचलते फूल वगैरा तो पहले भी यहां थे लेकिन तब उस की नजरों को ये नजारे चुभते थे. परंतु आज…?

शेफाली ने एक ठंडी सांस ली, परिस्थितियां इंसान में किस हद तक बदलाव ला देती हैं. अगर ऐसा न होता तो आज तक वह यों घुटती न रहती. बेकार ही उस ने अपने जीवन के 2 वर्ष मृगमरीचिका में भटकते हुए गंवा दिए, निरर्थक बातों के पीछे अपने को छलती रही. काश, उसे पहले एहसास हो जाता तो…

‘‘लीजिए मैडम, आप का जूस,’’ सुदेश की आवाज ने उसे सोच के दायरे से बाहर ला पटका.

‘‘क्यों बेकार आप इतनी मेहनत करते हैं, जूस की क्या जरूरत थी?’’ शेफाली ने संकोच से कहा.

‘‘देखिए जनाब, आप की सेहत के लिए यह बहुत जरूरी है. आप तो बस आराम से आदेश देती रहिए, यह बंदा आप को तरहतरह के पकवान बना कर खिलाता रहेगा. फिर कौन सी बहुत मेहनत करनी पड़ती है, यहां तो सबकुछ डब्बाबंद तैयार मिलता है, विदेश का कम से कम यह लाभ तो है ही,’’ सुदेश ने गिलास थमाते हुए कहा.

‘‘लेकिन आप काम करें, यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘शेफाली, थोड़े दिनों की बात है. जहां पेट के टांके कटे, वहीं तुम थोड़ाबहुत चलने लगोगी. अभी तो डाक्टर ने तुम्हें पूरी तरह आराम करने को कहा है. अच्छा, देखो, मैं बाजार से सामान ले कर आता हूं, तब तक तुम थोड़ा सो लो. फिर सोचने मत लग जाना. मैं देख रहा हूं, जब से तुम्हारा औपरेशन हुआ है, तुम हमेशा सोच में डूबी रहने लगी हो. सब ठीक से तो हो गया है, फिर काहे की चिंता. खैर, अब आराम करो.’’

सुदेश ने ठीक ही कहा था. जब से उस के पेट के ट्यूमर का औपरेशन हुआ था तब से वह सोचने लगी थी. असल में तो वह इन 2 वर्षों में सुदेश के प्रति किए गए व्यवहार की ग्लानि थी जो उसे निरंतर मथती रहती थी.

सुदेश के साधारण रूपरंग और प्रभावहीन व्यक्तित्व के कारण शेफाली हमेशा उसे अपमानित करने की कोशिश करती. अपने अथाह रूप और आकर्षण के सामने वह सुदेश को हीन समझती. अपने मातापिता को भी माफ नहीं कर पाई थी. अकसर वह मां को चिट्ठी में लिखती कि उस ने उन्हें वर चुनने का अधिकार दे कर बहुत भारी भूल की थी. ऐसे कुरूप पति को पाने से तो अच्छा था वह स्वयं किसी को ढूंढ़ कर विवाह कर लेती. ऐसा लिखते वक्त उस ने यह कभी नहीं सोचा था कि भारत में बैठे उस के मातापिता पर क्या बीत रही होगी.

शेफाली अपनी मां से तब कितना लड़ी थी, जब उसे पता चला था कि सुदेश ने कनाडा में ही बसने का निश्चय कर लिया है. सुदेश ने वहीं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और अच्छी नौकरी मिलने के कारण वह अब भारत नहीं आना चाहता था. शेफाली ने स्वयं एमबीबीएस पास कर लिया था और ‘इंटर्नशिप’ कर रही थी. वह चाहती थी कि भारत में ही रह कर अपना क्लीनिक खोले. नए देश में, नए परिवेश में जाने के नाम से ही वह परेशान हो गई थी. बेटी को नाखुश देख मातापिता को लगा कि इस से तो अच्छा है कि सगाई को तोड़ दिया जाए, पर उस ने उन्हें यह कह कर रोक दिया था कि इस से सामाजिक मानमर्यादा का हनन होगा और उस के भाईबहनों के विवाह में अड़चन आ सकती है. सुदेश से पत्रव्यवहार व फोन द्वारा उस की बातचीत होती रहती थी, इसलिए वह नहीं चाहती थी कि ऐसी हालत में रिश्ता तोड़ कर उस का दिल दुखाया जाए. इसी कशमकश में वह विवाह कर के कनाडा आ गई थी.

अचानक टिं्रन…ट्रिंन…की आवाज से शेफाली का ध्यान भंग हुआ, फोन भारत से आया था. मां की आवाज सुन कर वह पुलकित हो उठी

‘‘कैसी हो बेटी, आराम कर रही हो न? देखो, ज्यादा चलनाफिरना नहीं.’’

उन की हिदायतें सुन वह मुसकरा उठी, ‘‘मैं ठीक हूं मां, सारा दिन आराम करती हूं. घर का सारा काम सुदेश ने संभाला हुआ है.’’

‘‘सुदेश ठीक है न बेटी, उस की इज्जत करना, वह अच्छा लड़का है, बूढ़ी आंखें धोखा नहीं खातीं, रूपरंग से क्या होता है,’’ मां ने थोड़ा झिझकते हुए कहा.

‘‘मां, तुम फिक्र मत करो. देर से ही सही, लेकिन मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है,’’ तभी फोन कट गया.

दूर बैठी मां भी शायद जान गई थीं कि वह सुदेश को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ती. फिर से एक बार शेफाली के मानसपटल पर बीते दिन घूमने लगे.

मौंट्रीयल के इस खूबसूरत फ्लैट में जब उस ने कदम रखा था तो ढेर सारे फूलों और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उस का स्वागत किया गया था. उन के आने की खुशी में सुदेश के मित्रों ने पूरे फ्लैट को सजा रखा था. ऐसी आवभगत की उसे आशा नहीं थी, इसलिए खुशी हुई थी, लेकिन वह उसे दबा गई थी. आखिर किस काम की थी वह खुशी.

सुदेश एकएक कर अपने साथियों से उसे मिलवाता रहा. उस की खूबसूरती की प्रशंसा में लोगों ने पुल बांध दिए.

‘यार, तुम तो इतनी सुंदर परी को भारत से उड़ा लाए,’ सुदेश के मित्र की बात सुन उसे वह मुहावरा याद आ गया था, ‘हूर के साथ लंगूर’. सुदेश जब भी उस का हाथ पकड़ता, वह झटके से उसे खींच लेती. ऐसा नहीं था कि सुदेश उस के व्यवहार से अनभिज्ञ था, लेकिन उस ने सोचा था कि अपने प्यार से वह शेफाली का मन जीत लेगा.

विवाह के कुछ दिन बाद उस ने कहा था, ‘अभी छुट्टियां बाकी हैं. चलो, तुम्हें पूरे कनाडा की सैर करा दें.’

तब शेफाली ने यह कह कर इनकार कर दिया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. उस की हरसंभव यही कोशिश रहती कि वह सुदेश से दूरदूर रहे. अपने सौंदर्य के अभिमान में वह यह भूल गई थी कि वह उस का पति है. उस का प्यार, उस का अपनापन और छोटीछोटी बातों का खयाल रखना शेफाली को तब दिखता ही कहां था.

सुदेश के सहयोगियों ने क्लब में पार्टी रखी थी, पर उस ने साथ जाने से इनकार कर दिया था.

‘देखो शेफाली, यह पार्टी उन्होंने हमारे लिए रखी है.’

पति की इस बात पर वह आगबबूला हो उठी थी, ‘मुझ से पूछ कर रखी है क्या? मैं पूछती हूं, तुम्हें मेरे साथ चलते झिझक नहीं होती. कहां तुम कहां मैं?’

तब सुदेश अवाक् रह गया था.

दरवाजा खुलने से एक बार फिर उस की तंद्रा भंग हो गई, ‘‘अरे, इतना सामान लाने की क्या जरूरत थी?’’ शेफाली ने सुदेश को पैकटों से लदे देख पूछा.

‘‘अरे जनाब, ज्यादा कहां है, बस, कुछ फल हैं और डब्बाबंद खाना. जब तक तुम ठीक नहीं हो जातीं, इन्हीं से काम चलाना है,’’ सुदेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘अच्छा, खाना यहीं लगाऊं या बालकनी में बैठना चाहोगी?’’

‘‘नहींनहीं, यहीं ठीक है और देखो, ज्यादा पचड़े में मत पड़ना, वैसे भी ज्यादा भूख नहीं है.’’

‘‘क्यों, भूख क्यों नहीं है? तुम्हें ताकत  चाहिए और इस के लिए खाना बहुत जरूरी है,’’ सुदेश ने अपने हाथों से उसे खाना खिलाते हुए कहा.

शेफाली की आंखें नम हो आईं. ऐसे व्यक्ति से, जिस के अंदर प्यार का सागर लबालब भरा हुआ है, वह आज तक घृणा करती आई, सिर्फ इसलिए कि वह कुरूप है. लेकिन बाहरी सौंदर्य के झूठे सच में वह उस के गुणों को नजरअंदाज करती रही. अंदर से उस का मन कितना निर्मल, कितना स्वच्छ है. वह कितनी मूर्ख थी, तभी तो वैवाहिक जीवन के 2 सुनहरे वर्ष यों ही गंवा दिए. उस का हर पल यही प्रयत्न रहता कि किसी तरह सुदेश को अपमानित करे इसलिए उस की हर बात काटती.

लेकिन अपनी बीमारी के बाद उस ने जाना कि सच्चा प्रेम क्या होता है. शेफाली की इतनी बेरुखी के बाद भी सुदेश कितनी लगन से उस की सेवा कर रहा था.

‘‘अरे भई, खाना ठंडा हो जाएगा. जब देखो तब सोचती ही रहती हो. आखिर बात क्या है, मुझ से कोई गलती हो गई क्या?’’

‘‘यह क्या कह रहे हो?’’ शेफाली ने सफाई से आंखें पोंछते हुए कहा, ‘‘मुझे शर्मिंदा मत करो. अरे हां, मां का फोन आया था,’’ उस ने बात पलटते हुए कहा.

रसोई व्यवस्थित कर सुदेश बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर दफ्तर हो कर आता हूं, तब तक तुम सो भी लेना. चाय के समय तक आ जाऊंगा. अरे हां, दफ्तर के साथी तुम्हारा हालचाल पूछने आना चाहते हैं, अगर तुम कहो तो?’’ सुदेश ने झिझकते हुए पूछा तो शेफाली ने मुसकरा कर हामी भर दी.

शेफाली जानती थी सुदेश ने क्यों पूछा था. वह उस के साथ न तो कहीं जाती थी, न ही उस के मित्रों का आना उसे पसंद था, क्योंकि तब उसे सुदेश के साथ बैठना पड़ता था, हंसना पड़ता था और वह यह चाहती नहीं थी. कितनी बार वह सुदेश को जता चुकी थी कि उस की पसंदनापसंद की उसे परवा नहीं है, खासकर उन दोस्तों की, जो हमेशा उस के सामने सुदेश की तारीफों के पुल बांधते रहते हैं, ‘भाभीजी, यह तो बहुत ही हंसमुख और जिंदादिल इंसान है. अपने काम और व्यवहार के कारण सब काप्यारा है, अपना यार.’

शेफाली उस की बदसूरती के सामने जब इन बातों को तोलती तो हमेशा उसे सुदेश का पलड़ा हलका लगता. सुदेश जब भी उसे छूता, उसे लगता, कोई कीड़ा उस के शरीर पर रेंग रहा है और वह दूसरे कमरे में जा कर सो जाती.दरवाजे की घंटी बजी तो वह चौंक उठी. सच ही था, वह ज्यादा ही सोचने लगी थी. सोचा, शायद पोस्टमैन होगा. वह आहिस्ता से उठी और पत्र निकाल लाई. मां ने खत में वही सब बातें लिखी थीं और सुदेश का सम्मान करने की हिदायत दी थी. उस का मन हुआ कि वह अभी मां को जवाब दे दे, पर पेन और कागज दूसरे कमरे में रखे थे और वह थोड़ा चल कर थक गई थी. लेटने ही लगी थी कि सुदेश आ गया.

‘‘सुनो, जरा पेन और पैड दोगे, मां को चिट्ठी लिखनी है,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘बाद में, अभी लेटो, तुम्हें उठने की जरूरत ही क्या थी,’’ सुदेश ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘दवा भी नहीं ली. ठहरो, मैं पानी ले कर आता हूं.’’

‘‘सुनो,’’ शेफाली ने उस की बांह पकड़ ली. सुदेश ने कुछ हैरानी से देखा. शेफाली को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपने किए की माफी मांगे.

व्यक्ति की पहचान उस के गुणों से होती है, उस के व्यवहार से होती है, वही उस के व्यक्तित्व की छाप बनती है. सुदेश की सच्ची परख तो उसे अब हुई थी. आज तक तो वह अपनी खूबसूरती के दंभ में एक ऐसे राजकुमार की तलाश में कल्पनालोक में विचर रही थी जो किस्सेकहानियों में ही होते हैं, पर यथार्थ तो इस से बहुत परे होता है. जहां मनुष्य के गुणों को समाज की नजरें आंकती हैं, उस की आंतरिक सुंदरता ज्यादा माने रखती है. अगर खूबसूरती ही मापदंड होता तो समाज के मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लग जाता.

‘‘शेफाली, तुम कुछ कहना चाहती थीं?’’ सुदेश ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘हां…बस, कुछ खास नहीं,’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘मैं जानता हूं, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं. अगर तुम चाहो तो मुझे छोड़ कर जा सकती हो,’’ सुदेश के स्वर में दर्द था.

‘‘बसबस, और कुछ न कहो, मैं पहले ही बहुत शर्मिंदा हूं. हो सके तो मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारा बहुत अपमान किया है. फिर भी तुम ने कभी मुझ से कटुता से बात नहीं की. मेरी हर कड़वाहट को सहते रहे और अब भी मेरी इतनी सेवा कर रहे हो, शर्म आती है मुझे अपनेआप पर,’’ शेफाली उस से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘कैसी बातें कर रही हो, कौन नहीं जानता कि तुम्हारी खूबसूरती के सामने मैं कितना कुरूप लगता हूं.’’

‘‘खबरदार, जो तुम ने अपनेआप को कुरूप कहा. तुम्हारे जैसा सुंदर मैं ने जिंदगी में नहीं देखा. मेरी आंखों को तुम्हारी सच्ची परख हो गई है.’’

दोनों अपनी दुनिया में खोए थे कि तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई और घंटी भी बजी.

‘‘सुदेश, दरवाजा खोलो,’’ बाहर से शोर सुनाई दिया.

‘‘लगता है, मित्रमंडली आ गई है,’’ सुदेश बोला.

दरवाजा खुलते ही फूलों की महक से सारा कमरा भर गया. सुदेश के मित्र शेफाली को फूलों का एकएक गुच्छा थमाने लगे.

‘‘भाभीजी, आप के ठीक होने के बाद हम एक शानदार पार्टी लेंगे. क्यों, देंगी न?’’ एक मित्र ने पूछा.

‘‘जरूर,’’ शेफाली ने हंसते हुए कहा. उसे लग रहा था कि इन फूलों की तरह उस का जीवन भी महक से भर गया है. हर तरफ खुशबू बिखर गई है. गुच्छों के बीच से उस ने देखा, सुदेश के चेहरे पर एक अनोखी मुसकराहट छाई हुई है. शेफाली ने जब सारी शर्महया छोड़ आगे बढ़ कर उस का चेहरा चूमा तो ‘हे…हे’ का शोर मच गया और सुदेश ने उसे आलिंगनबद्ध कर लिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें