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अंधविश्वास: बाबाओं का जंजाल, कैसे कटेगा जाल

19 सितंबर, 2015 को जनता की जागरूकता के चलते जयपुर के प्रताप नगर की हल्दीघाटी कालोनी में रहने वाली गरिमा का 9 महीने का बेटा मयंक एक ओझा की काली करतूत का शिकार होने से समय रहते बचा लिया गया. मयंक का अपहरण उसी की सगी बूआ सावित्री ने किया था, जो बेऔलाद थी. वह एक ओझा से अपना इलाज करा रही थी.

यह महज एक घटना नहीं है. साल 2014 में शीतल का केस अजमेर से जयपुर आया था. वह दिमागी तौर पर बीमार थी. उस समय इलाज अजमेर में ही ‘दरगाह मुर्रान वाले बाबा’ कर रहे थे. शीतल घर पर अजीबोगरीब हरकतें करती थी, मगर जैसे ही बाबा के पास जाती थी, ठीक हो जाती थी. शीतल के मातापिता बाबा से इलाज तो करा रहे थे, पर सिलसिला बढ़ता देख कर जयपुर भागे. जब शीतल को काउंसलर के सामने बैठाया गया, तो ‘हकीकतेइश्क’ बयान हो गया.

‘दरगाह मुर्रान वाले बाबा’ जवान थे और शीतल उन के प्यार में फंस चुकी थी, पर घर  वालों को कैसे बताए, इसलिए भूतों का सहारा लिया गया.

शीतल को यह कौन समझाए कि उस बाबा के चक्कर में न जाने कितनी लड़कियां खुद को बरबाद कर चुकी होंगी. एक और मामला जयपुर के गंवई इलाके के थाने चाकसू का है. एक दिन कविता के पेट में दर्द उठा, तो पिता झाड़ा लगवाने एक बाबा के पास ले गए. 15-16 साल की कविता पर बाबा मेहरबान हो गए और पिता की कमजोरी पकड़ी ‘शराब’. अब बाबा पिता को शराब और बेटी को झाड़ा लगाने घर पहुंचने लगे. मां ने बाबा की नीयत भांपी और थाने में मामला दर्ज करा कर उसे गिरफ्तार कराया. ये तीनों मामले मीडिया, थाना और जनता के सामने अपराध के रूप में उभर कर आए, पर दिलचस्प बात तो यह है कि हर चार कदम की दूरी पर ऐसे अपराध हो रहे हैं. साधुओं के झांसे में धार्मिक आस्था में जकड़े परिवारों की छोटी उम्र की लड़कियां आसानी से आ जाती हैं. इन तांत्रिकों का नैटवर्क इतना तगड़ा होता है कि हर कदम पर इन के दूत हैं. ये चौकन्ने ‘दूत’ ही शिकार की कमजोरियां पकड़ते हैं.

हर दो कदम पर इस तरह की दुकान चलती है. जयपुर के टोंक रोड के आसपास महज 4-5 किलोमीटर के दायरे में ऐसी 20 जगहें हैं, जहां सुबहसुबह भूत उतारने का काम होता है. मेहंदीपुर बालाजी में तो अंधविश्वास का ऐसा तांडव देखने को मिलता है कि आम आदमी की रूह कांप जाए. भूतों के इलाज का ऐसा फलताफूलता कारोबार शायद ही कहीं और देखने को मिले. यहां धूपअगरबत्ती के धुएं में घुटते लोग न जाने कितने दिनों से बिना नहाए, बिना खाए घूमते रहते हैं. किसी को रस्सी से बांध कर रखा गया है, तो किसी को जंजीर से. किसी को उलटा लटका दिया गया है, तो किसी को पेड़ से बांध दिया गया है.

माना जाता है कि मरीज को किसी भी तरह की चोट पहुंचाना ऊपर वाले का प्रसाद है. यहां पर किसी तरह का मानवाधिकार लागू नहीं होता. यहां कोई स्वयंसेवी संस्था भी नजर नहीं आती. यहां पुलिस प्रशासन का जोर नहीं चलता है, क्योंकि सबकुछ धर्म की आड़ में जो होता है.

एक मामला यह भी

‘‘बता तू कौन है, वरना तुझे जला कर भस्म कर दूंगा?’’ मंदिर के पुजारी व बाबा रामकेश ने सुनीता की चोटी पकड़ कर जब उस से पूछा, तो वह दर्द के मारे चीख पड़ी, ‘‘बाबा, मुझे छोड़ दो.’’ सुनीता को दर्द से कराहते देख कर भी बाबा को उस पर जरा भी तरस नहीं आया. वह उसे सोटा मारने लगा, तो वह दर्द से चीखती हुई वहीं औंधे मुंह गिर पड़ी.

उसे गिरता देख बाबा ने उस पर पानी के दोचार छींटे मारे, फिर भी जब वह नहीं उठी, तो बाबा घबरा गया. उस ने अपनी जान बचाने के लिए लोगों से कहा, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं, कुछ देर बाद इसे होश आ जाएगा…’’ ‘‘अभी आता हूं,’’ कह कर बाबा जो गया, तो लौट कर आया ही नहीं. इधर सुनीता को काफी देर बाद भी होश नहीं आया, तो उसे डाक्टर के पास ले जाया गया. डाक्टर ने सुनीता की नब्ज टटोली, तो पता चला कि वह मर चुकी थी. सुनीता की मौत की सूचना मिलने पर पुलिस ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस ने सुनीता के भाई की शिकायत पर आरोपी बाबा के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज तो कर लिया, लेकिन भूत भगाने वाला वह पाखंडी बाबा आज भी पुलिस की पकड़ से कोसों दूर है. एक घटना राजस्थान के पोखरण इलाके की है. पिछले दिनों बिमला के घर वाले उसे ऐसे ही झाड़फूंक वाले बाबा के पास ले गए. बिमला की कहानी भी सुनीता से काफी मिलतीजुलती है. 22 साला बिमला की शादी रमेश के साथ हुई थी. शादी के 5 साल बीत जाने के बाद भी जब उसे बच्चा नहीं हुआ, तो उस की सास उसे बाबा के पास ले गई.

बाबा ने बिमला की सास से कहा, ‘‘इसे किसी ने कुछ कर दिया है. इस का अमावस की काली रात में इलाज करना पड़ेगा.’’ औलाद की चाह में बिमला की सास जब अमावस की रात में उसे बाबा के पास ले आई, तो उस ने बिमला की सास को प्रसाद खिला कर बेहोश कर दिया और बिमला के साथ बलात्कार किया. बेसुध बिमला को जब होश आया, तो अपनेआप को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. ऐसी तमाम औरतें अपनी कोख न भर पाने के चलते ऐसे पाखंडी बाबाओं के चक्कर में पड़ जाती हैं. भूत भगाने के नाम पर फैले पाखंड का शिकार हर धर्म व मजहब का इनसान होता है. समीना बताती है कि उस की अम्मी उसे एक ऐसे बाबा के पास ले गईं, जिस ने उस के साथ पूरे 6 महीने तक बलात्कार किया. वह चाह कर भी उस का विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि बाबा ने उस के पूरे परिवार को अपने वश में कर रखा था.

एक दिन उसे ‘अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति’ के कुछ सदस्य मिले. उस ने उन्हें अपनी आपबीती सुनाई. ‘अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति’ के लोगों ने बाबा का भांड़ा ही नहीं फोड़ा, बल्कि बाबा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर उसे जेल की हवा भी खिलाई. ड्रग्स ऐंड मैजिक ऐक्ट के तहत ऐसे पाखंडी बाबाओं के खिलाफ पुलिस कार्यवाही भी करती है. चाकसू में एक थानाधिकारी रोहिताश देवंदा कहते हैं, ‘‘कानून में ऐसे ठगों के खिलाफ कठोर दंड का प्रावधान है, पर शिकायतकर्ता को अपने बयान पर टिके रहना चाहिए.’’ महिला उत्थान से जुड़ी एक संस्था की संचालिका कविता कहती हैं, ‘‘औरतों को बाबा और ओझा के चक्कर में पड़ने के बजाय डाक्टरों का सहारा लेना चाहिए.’’ कविता ने एक ऐसी ही घटना के बारे में बताया, ‘‘कोटा जैसे शहर में मीरा नाम की एक औरत भी किसी भूत भगाने वाले बाबा के चक्कर में फंस गई थी. उसे मिरगी के दौरे पड़ते थे, लेकिन परिवार के लोग उसे प्रेत का साया बता कर उस का इलाज बाबाओं से कराते चले आ रहे थे.’’ पिछले कई सालों से कोटा में जगन्नाथ साइंस सैंटर  भूतप्रेत के नाम पर होने वाले पाखंडों का परदाफाश करता चला आ रहा है. इस साइंस सैंटर के सदस्य दूरदराज के गांवों में जा कर इस तरह के अंधविश्वास को वैज्ञानिक आधार पर चुनौती दे कर बाबा और ओझा जैसे लोगों की पोल खोल कार्यक्रम जारी रखे हुए हैं.

डाक्टरों और काउंसलरों का मानना है कि आज हर कोई दुखी है. किसी को बच्चे की कमी, तो किसी को कारोबार में घाटा. कोई इश्क में फंसा है, तो कोई घर में ही अनदेखी का शिकार है, पर दिमागी बीमारी में खासतौर पर 2 वजहें सामने आती हैं. पहली, सैक्स से जुड़ी और दूसरी, अपनों द्वारा अनदेखी. पहली वजह में कई बातें हो सकती हैं, जैसे पति से खुल कर बात न कर पाना. इस में गैरकुदरती सैक्स करना भी शामिल है. जानेमाने डाक्टर शिव गौतम के मुताबिक, पाली जिले के एक गांव से एक केस उन के पास आया. मैडिकल जांच से पता चला कि पति के करीब आते ही सुधा पर भूत आ जाता था. 70 फीसदी पागलपन की शुरुआत कुछ उन्हीं वजहों से होती है. गंवई माहौल और परिवार की इज्जत के चलते औरतें आखिर अपना बचाव कैसे करें?

वहीं दूसरी तरफ ज्यादातर गंवई औरतें सैक्स के दौरान पति से पूरा सुख न मिलने की वजह से धीरेधीरे बीमार हो जाती हैं, क्योंकि आज भी भारत के कई इलाकों में पतिपत्नी सैक्स को ले कर खुल कर शायद ही बात करते हों. इसी तरह की कमजोरी का फायदा तथाकथित तांत्रिक उठाते हैं. राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष मयंक सुमन शर्मा के मुताबिक, भूत भगाने के नाम पर बाबाओं के गोरखधंधे को बंद किया जा सकता है. अगर राजस्थान सरकार दूरदराज के गांवों में ‘अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति’ जैसे संगठनों के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को उन तक पहुंचाए. पर इन अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति वालों के दूतों के भगवाई दुश्मन हैं, जो सत्ता में अपनी पहुंच के चलते धर्म के इस धंधे को बंद नहीं होने देना चाहते हैं.

अपनों से बचाएं बच्चियों को

10 साल की सोनी रोज की तरह तैयार हो कर स्कूल पहुंची. उस की क्लास के मौनीटर ने उस से कहा कि उस के हाथ का नाखून काफी बढ़ा हुआ है, इसलिए डायरैक्टर साहब ने उसे अपने चैंबर में बुलाया है. सोनी के साथ उस की एक सहेली भी डायरैक्टर के चैंबर में पहुंची. डायरैक्टर ने सोनी की सहेली को क्लास में भेज दिया और उस के साथ जबरन अपना मुंह काला किया. स्कूल की छुट्टी होने पर सोनी को स्कूल की गाड़ी से उस के घर पहुंचा दिया गया. सोनी की मां को बताया गया कि वह स्कूल में बेहोश हो गई थी. जब सोनी को होश आया, तो उस ने अपनी मां को सारी बातें बताईं. इस के बाद सोनी के परिवार वाले और आसपास के लोग स्कूल पहुंच गए और जम कर तोड़फोड़ की. डायरैक्टर को गिरफ्तार करने की मांग को ले कर सड़क जाम कर दी गई.

पटना के पुराने इलाके पटना सिटी के पटना सिटी सैंट्रल स्कूल, दर्शन विहार के डायरैक्टर पवन कुमार दर्शन की इस घिनौनी करतूत ने जहां एक ओर टीचर और स्टूडैंट के रिश्तों पर कालिख पोत दी है, वहीं दूसरी ओर मासूम बच्चियों की सुरक्षा पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सच तो यह है कि मासूम बच्चियां स्कूल टीचर, प्रिंसिपल, ड्राइवर, खलासी, नौकर, चपरासी, पड़ोसी समेत करीबी रिश्तेदारों की घटिया सोच की शिकार हो रही हैं.

फिरौती के लिए मामा ने किया भांजी को अगवा, घरेलू विवाद में चाचा ने किया मासूम भतीजी का कत्ल, स्कूल टीचर ने किया 9 साल की लड़की के साथ बलात्कार, किराएदारों ने की 11 साल की लड़की के साथ छेड़छाड़, रुपयों के लालच में पड़ोसी ने किया 6 साल की बच्ची का अपहरण जैसी वारदातों की खबरें अकसर सुनने को मिलती रहती हैं. पिछले कुछ समय से इस तरह के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पटना हाईकोर्ट के सीनियर वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि पहले लोग करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों के पास अपने बच्चों को छोड़ कर किसी काम से बाहर चले जाते थे, पर आज ऐसा नहीं के बराबर हो रहा है. अपनों द्वारा भरोसा तोड़ने के बढ़ते मामलों की वजह से लोग पासपड़ोस में बच्चियों को छोड़ने से कतराने लगे हैं.

पुलिस अफसर राकेश दुबे कहते हैं कि अपने आसपास खेलतीकूदती, स्कूल आतीजाती और छोटीमोटी चीज खरीदने महल्ले की दुकानों पर जाने वाली बच्चियों के साथ छेड़छाड़ करना काफी आसान होता है. परिवार और पड़ोस के लोगों की आपराधिक सोच और साजिश का पता लगा पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है. पता नहीं, कब किस के अंदर का शैतान जाग उठे और वह किसी मासूम को अपनी खतरनाक साजिश का निशाना बना डाले. ऐसे में हर मांबाप को अपने बच्चों पर खास ध्यान देने की जरूरत है. मासूम बच्चियों की हिफाजत को ले कर तो मांबाप को किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतनी चाहिए.

समाजशास्त्री अजय मिश्र बताते हैं कि समाज की टूटती मर्यादाओं और घटिया सोच की वजह से ही बच्चियों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है. अब इनसान अपने भाई, चाचा, मामा, दोस्तों समेत अपनों से लगने वाले पड़ोसियों पर भरोसा न करें, तो फिर किस पर करें? आज के हालात तो ये हैं कि लोगों की नीयत बदलते देर नहीं लगती है. अपने ही अपनों के भरोसे का खून कर रहे हैं. यह सब रिश्तों और समाज के लिए बहुत ही खतरनाक बन चुका है. प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद कहते हैं कि बच्चियों के कोचिंग जाने, खेलनेकूदने पर या बाजारस्कूल जाने पर हर समय हर जगह उन पर नजर रखना मांबाप के लिए मुमकिन नहीं है.

अकसर ऐसा होता है कि पति दफ्तर में और पत्नी बाजार में है. इस बीच बच्चा स्कूल से आ जाता है, तो वह पड़ोस के ही अंकल या आंटी के पास मजे में रहता है. लेकिन अब कुछ शैतानी सोच वाले लोगों की वजह से यह भरोसा ही कठघरे में खड़ा हो चुका है. करीबी रिश्तेदारों, पड़ोसियों, नौकरों और ड्राइवरों द्वारा बच्चियों से छेड़छाड़ करने और उन के साथ जबरन सैक्स संबंध बनाने की वारदातें तेजी से बढ़ रही हैं. ऐसी वारदातों के बढ़ने की सब से बड़ी वजह पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों और मर्यादाओं का तेजी से टूटना है.

समाजसेवी किरण कुमारी कहती हैं कि पहले परिवार के करीबी रिश्तेदारों के बीच कुछ सीमाएं और लिहाज होता था, जो आज की भागदौड़ की जिंदगी में खत्म होता जा रहा है. यही वजह है कि करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों की गंदी नजरों की शिकार मासूम बच्चियां बन रही हैं. ऐसे मांबाप को अपनी बच्चियों को ऐसे अनजान खतरों से आगाह करते रहना चाहिए. साथ ही, वे खुद भी सतर्क रहें.

व्हाट्सएप पर आसानी से शेयर करें हैवी फाइल्स..!

व्हाट्सएप, फेसबुक मैसेंजर व अन्य कई एप्स हैं जिनके जरिए हम अपने दोस्तों व अन्य लोगों से आपस में जुड़े रहते हैं. इन दिनों चैट के लिए सबसे अधिक व्हाट्सएप इस्तेमाल किया जाता है. फोटोज, विडियोज आदि शेयर करना भी इस एप में काफी आसान है.

लेकिन यदि बात करें हैवी फाइल्स की तो ये थोड़ा मुश्किल हो जाता है. व्हाट्सएप पर बड़ी साइज़ की फाइल्स शेयर नहीं की जा सकती हैं. ऐसी फाइल्स के लिए हमें मेल या गूगल ड्राइव का सहारा लेना पड़ता है. जिसमें काफी समय लगता है.

पर क्या हमें इस टेक दुनिया में परेशान होने की जरुरत है, शायद नहीं! टेक्नोलॉजी ने जैसे हमारी कई समस्याओं का समाधान निकला है वैसे ही यह परेशानी भी आज की तकनीक ने हल कर दी है. चलिए आपको बताते हैं एक ऐसे एप की के बारे में जिसके जरिए 1 जीबी तक की फाइल्स शेयर की जा सकती है. ये एप है व्हाट्स टूल, इससे आप विडियो, पीडीएफ फाइल आदि भी शेयर कर सकते हैं. यह एप व्हाट्सएप के साथ मिल कर काम करता है. लेटेस्ट तकनीक की मदद से यह एप व्हाट्सएप को हैवी फाइल्स शेयर करने में मदद करता है.

कैसे करता है काम

इस ऐप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं. जब यह एप आपके फोन में इंस्टॉल हो जाएगा तो यह सीधे गूगल ड्राइव से कनेक्ट हो जाएगा. अब जब भी आप कोई फाइल शेयर करने के लिए व्हाट्स ऐप के ऊपर दिए अटैचमेंट पिन पर क्लिक करेंगे तो आपके मैसेज बॉक्स पर डॉक्युमेंट, Ebook, वीडियो जैसे छह दूसरे आइकन मिलेंगे.

ये व्हाट्स टूल्स का बिल्ड अप टूल है. इसके जरिए आप क्वालिटी लूज किए बगैर फाइल अटैच कर सकते हैं. यूजर को जिस फाइल को भेजना है उसे सिलेक्ट करें. इसके बाद फाइल अपलोड होगी और फिर आप इसे शेयर कर सकते हैं. वैसे आप इसे भेजने से पहले चेक भी कर सकते हैं.

 

जी हां…खेत का कचरा है खेत का सोना

हमारे देश में सदियों से किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर या तो खेत में ही जला देते हैं या फिर उन्हें पशुओं को खिलाने के काम में लेते हैं. ज्यादातर देखने में आता है कि खासतौर पर पुआल वगैरह तो खेत में ही जला दिया जाता है, जिस से खेत को काफी नुकसान होता है. ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषकतत्त्वों के बगैर रह जाती है. ऐसे में जरूरत है कचरा समझे जाने वाले फसल के बचे भागों को खेत में सोना समझ कर मिला देने की. 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने लगाई अवशेषों को जलाने पर पाबंदी

फसल अवशेषों को जलाने पर न केवल वायु प्रदूषण से पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ रही है. हाल ही में 4 नवंबर, 2015 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर भारत के राज्यों दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के खेतों में फसल अवशेषों को जलाने पर सख्त फैसला लेते हुए किसानों पर 15 हजार रुपए तक जुर्माना लगाने का फैसला किया है.

क्या है एनजीटी का आदेश

4 नवंबर, 2015 को एनजीटी ने कहा कि जिन राज्यों में पुआल जलाए जाने संबंधी रोक की सूचना जारी नहीं की गई है, वहां उसे फौरन जारी किया जाए. एनजीटी ने पर्यावरण शुल्क के तौर पर सभी प्रकार के छोटे, मंझोले और बड़े किसानों से 15 हजार रुपए तक जुर्माना वसूल करने का फरमान सभी राज्यों को दिया है. इस के साथ ही एनजीटी ने सभी राज्यों को फसल अवशेषों के निस्तारण (डिसपोजल) के लिए किसानों को मशीनें मुहैया कराने का आदेश भी दिया है.

कैसे हो रहा है दुरुपयोग

खासतौर से गेहूंगन्ने की हरी पत्तियां और सागसब्जियों के हरे पत्ते व डंठल पशुओं को खिलाए जाते हैं, जबकि धान के पुआल, गन्ने की सूखी पत्तियों व सनई आदि को खेत में ही जला दिया जाता है. यह समस्या उन खेतों में अधिक होती है, जहां गेहूं की कटाई हारवेस्टर द्वारा की जाती है, हारवेस्टर से कटाई के बाद फसल के अवशेष खड़े रह जाते हैं, जिसे लोग जलाना ज्यादा ठीक समझते हैं. यदि फसलों के अवशेषों को जला कर नष्ट न कर के खेत में ही जुताई के समय मिला दिया जाए, तो ये जीवांश खाद में बदल जाएंगे.

कैसे होगा सही इस्तेमाल

वर्तमान में हमारे देश में इस काम को बेहतर तरीके से करने के लिए रोटावेटर जैसी मशीनें आसानी से इस्तेमाल में लाई जा सकती हैं. यह मशीन पहली बार में ही जुताई के साथ फसल अवशेशों को कतर कर मिट्टी में मिला देती है. जिन इलाकों में नमी की कमी हो, वहां पर फसल अवशेषों का सही इस्तेमाल करने के लिए जरूरी है कि उन से कंपोस्ट तैयार कर के खेत में इस्तेमाल की जाए. उन इलाकों में जहां चारे की कमी नहीं होती, वहां मक्के की करबी व धान के पुआल को खेत में ढेर बना कर खुला छोड़ने के बजाय गड्ढों में कंपोस्ट बना कर इस्तेमाल करना मुनासिब रहता है. आलू व मूंगफली जैसी फसलों की खुदाई के बाद बचे अवशेषों को खेत में जुताई के साथ मिला देना चाहिए. मूंग व उड़द की फसलों से फलियां तोड़ कर बचे भाग खेत में मिला देने चाहिए. इसी प्रकार से केले की फसल के बचे अवशेषों से भी कंपोस्ट तैयार कर लेनी चाहिए.

कचरे में ही भरा है सोना

किसान आमतौर पर फसल के अवशेषों को कचरा समझ कर जला देते हैं, मगर वही कचरा यदि खेतों में मिला दिया जाए तो वह सोने से कम नहीं होता है. इस से खेतों को कई पोषक तत्त्व तो मिलते ही हैं, साथ ही मिट्टी के जीवांश कार्बन की मात्रा में भी इजाफा हो जाता है. इन अवशेषों से मिट्टी की जलधारण की कूवत बढ़ जाती है और सूक्ष्म जीवों की मात्रा में भी इजाफा हो जाता है. इन सब के अलावा मिट्टी में कई भौतिक, जैविक व रासायनिक सुधार होते हैं. 

कुछ और ध्यान देने वाली बातें

फसल की कटाई के बाद खेत में बचे अवशेषों यानी घासफूस, पत्तियों व ठूंठ आदि को सड़ाने के लिए किसानों को 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर के रोटावेटर या कल्टीवेटर से जुताई कर के मिट्टी में मिला देनी चाहिए. इस से पड़े हुए अवशेष खेत में विघटित होने लगेंगे और करीब 1 महीने में पूरी तरह विघटित हो कर आगामी बोई जाने वाली फसल को पोषक तत्त्व प्रदान करेंगे. कटाई के बाद डाली गई नाइट्रोजन अवशेषों के सड़ने की गति को तेज कर देती है.

यदि फसल अवशेष खेत में ही पड़े रहे तो फसल बोने पर जब नई फसल के पौधे छोटे रहते हैं, तो वे पीले पड़ जाते हैं, क्योंकि उस समय अवशेषों को सड़ाने में जीवाणु जमीन की नाइट्रोजन का इस्तेमाल कर लेते हैं. नतीजतन शुरुआत में फसल पीली पड़ जाती है. लिहाजा फसल अवशेषों को नाइट्रोजन छिड़क कर मिट्टी में मिलाने में चूक नहीं होनी चाहिए. ऐसा कर के हम अपनी जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा में तेजी से इजाफा कर के जमीन को खेती लायक बरकरार रख सकते हैं.

दुनिया पर छाने की तैयारी में है बिहार ब्रांड

जल्दी ही बिहार में पैदा होने वाले खास जैव उत्पाद बिहार ब्रांड के नाम से दुनिया भर में डंका बजाएंगे. राज्य में जैविक खेती में आई तेजी को देखते हुए जैव उत्पादों की ब्रांडिंग की कवायद शुरू की गई है. बिहार में उपजाए गए जैव उत्पादों की ब्रांडिंग और उन के सर्टिफिकेशन की कवायद शुरू की गई है. इस के लिए बिहार राज्य बीज एवं जैविक प्रमाणीकरण एजेंसी का गठन किया जाएगा. कृषि विभाग का दावा है कि एजेंसी के गठन का काम अंतिम चरण में है.

किसी भी कृषि उत्पाद के जैविक होने पर पहले उसे सी 1 और उस के बाद सी 2 सर्टिफिकेट दिया जाएगा. तीसरे साल उसे सी 3 का सर्टिफिकेट मिलेगा. उस के बाद से जैविक उत्पाद किसी भी बड़े बाजार में भेजे जा सकेंगे या उन का इंटरनेशनल लेबल पर निर्यात किया  जा सकेगा. इस से बिहार में जैविक खेती कर रहे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलेगा और बाकी किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन मिलेगा.

फिलहाल अपने जैव उत्पादों को बाजार में भेजने के लिए किसानों को केंद्रीय एजेंसी ‘एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट एजेंसी’ से सर्टिफिकेट लेना पड़ता है. यह सर्टिफिकेट हासिल करने का काम काफी पेचीदा होने की वजह से किसान इस से कन्नी काटते रहे हैं. जल्द ही बिहार समेत पूरे देश में बिहार ब्रांड का गेहूं और चावल मिलने लगेगा. बिहार सरकार चावल और गेहूं के आटे की ब्रांडिंग कर के देश भर में इस की पहचान बनाने की मशक्कत में लगी हुई है.

बिहार से काफी मात्रा में गेहूं और चावल दूसरे राज्यों में जाते हैं, पर उन की ब्रांडिंग नहीं हो पाती. कृषि विभाग और राज्य  के उद्यमियों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद कतरनी, बासमती, आनंदी, गोविंदभोग और बादशाहभोग किस्म के चावलों की ब्रांडिंग पर सहमति बन गई है. राज्य सरकार इस बात पर भी जोर दे रही है कि जिन इलाकों में जिस अनाज, सब्जी और फल का ज्यादा उत्पादन होता है, वहां उन्हीं उत्पादों पर आधारित उद्योग लगाए जाएं. जो उद्यमी इसे ध्यान में रख कर उद्योग लगाएंगे उन्हें खास रियायत दी जाएगी. पिछले 6 सालों में 16 चावल मिलों, 5 गेहूं मिलों व 3 मकई मिलों के अलावा 4 फल आधारित, 2 शहद आधारित और 1 मखाना आधारित उद्योग लगाए गए हैं, जिन में उत्पादन चालू हो गया है.

इसी तरह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की मशहूर शाही लीची बिहार ब्रांड के तहत विश्व बाजार में चीन और थाईलैंड को टक्कर देने की तैयारी में है. शाही लीची की क्वालिटी और उत्पादन में सुधार की कवायद का बेहतर नतीजा मिला है. इस के लिए किसानों को स्पेशल ट्रेनिंग दी गई है, जिस के बाद किसानों को प्रति हेक्टेयर 10 लाख रुपए तक की आमदनी हो सकेगी. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र से मिली जानकारी के मुताबिक बिहार के लीची उत्पादकों के लिए साल भर की योजना तैयार की गई है. इस के तहत फसल काटने के दूसरे दिन से ही अगली फसल की तैयारी शुरू कर दी जाएगी. क्वालिटी में सुधार के लिए मिट्टी की सेहत और कीटप्रबंधन का पुख्ता इंतजाम किया गया है. इस योजना पर काम करने वाले किसानों को सरकार माली मदद भी देगी.

गौरतलब है कि बिहार की शाही लीची पश्चिमी देशों में खूब पसंद की जाती है. सूबे में 30 लाख हेक्टेयर में लीची की खेती होती है और 10 लाख टन लीची का उत्पादन होता?है. वैज्ञानिक सलाहों की कमी और नई तकनीकों को नहीं अपनाने की वजह से शाही लीची चीन की लीची के मुकाबले क्वालिटी में थोड़ी कमजोर साबित होती है और 20 से 25 फीसदी लीची का नुकसान भी हो जाता है.

कृषि वैज्ञानिक वीएन सिंह कहते हैं कि वर्ल्ड मार्केट में बने रहने और बेहतर स्थिति बनाने के लिए बिहार सरकार ने कमर कसी है. आमतौर पर लीची उत्पादक फसल के समय ही खेतों पर ध्यान देते हैं, जबकि क्वालिटी के लिए पूरे साल काम करने की दरकार है. क्वालिटी में सुधार होने से बाजार में लीची  की मांग निश्चित रूप से बढ़ेगी और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी. यूरोपीय देशों में 700 से 1500 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से लीची की बिक्री होती है. लीची के साथ ही बिहार में पिछले एक दशक से बड़े पैमाने पर मशरूम का उत्पादन हो रहा है. राज्य में फिलहाल 1500 टन मशरूम का उत्पादन हो रहा है. किसानों को इस के उत्पादन के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल करने के लिए ट्रेंड किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री नीतीश कई मौकों पर कहते रहे हैं कि बिहार के किसानों ने धान और आलू के उत्पादन का वर्ल्ड रिकार्ड तोड़ा है और अब हाई क्वालिटी के मशरूम उत्पादन की बारी है. बिहार के भागलपुर जिले के कतरनी चावल के दीवाने देशविदेश में हैं. यह एक किस्म का खुशबूदार चावल है, जिस के दाने लंबे व पतले होते हैं. भागलपुर के किसान इस चावल को सैकड़ों सालों से पैदा कर रहे हैं. इस किस्म के धान की रोपनी चाहे जब की जाए, मगर उस में फूल 20 अक्तूबर से 30 अक्तूबर के बीच ही आते हैं. दिसंबर के पहले हफ्ते तक फसल तैयार हो जाती है.

कृषि वैज्ञानिक ब्रजेंद्र मणि बताते हैं कि कतरनी धान के पौधे 140 से 160 सेंटीमीटर लंबे होते हैं. खुशबूदार होने की वजह से इस का चावल और चूड़ा देश भर में काफी पसंद किया जाता है. इस के खुशबूदार पुलाव और बिरयानी का जायका लाजवाब होता है. विदेशों में इस की खासी मांग है. किसान और कतरनी चावल के व्यापारी सरकार से मांग कर रहे हैं कि भागलपुर में कतरनी चावल एक्सपोर्ट जोन बनाया जाए, जिस से विदेशों में आसानी से इस की सप्लाई की जा सके. बिहार में पैदा होने वाली देसी मछलियों की भी ब्रांडिंग का काम शुरू किया गया है. बिहार में मछली का उत्पादन भले ही कम हो, पर विदेशों में बिहार की देसी मछलियों की काफी मांग है. ‘पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग’ से मिली जानकारी के मुताबिक पूर्वी और पश्चिमी चंपारण से कतला और रोहू मछलियां नेपाल भेजी जा रही हैं, जबकि दरभंगा में पैदा होने वाली बुआरी और टेंगरा मछलियां भूटान में खूब पसंद की जा रही हैं. वहीं भागलपुर और खगडि़या जिलों में पैदा की जाने वाली मोए और कतला मछलियां सिलीगुड़ी भेजी जा रही हैं. मुजफ्फरपुर और बख्तियारपुर से बड़ी तादाद में मछलियां चंडीगढ़ और पंजाब के व्यापारियों के द्वारा मंगवाई जा रही हैं.

दरभंगा के मछलीउत्पादक रामचंद्र झा बताते हैं कि बिहार की मछलियों के लाजवाब स्वाद की वजह से दूसरे राज्यों और देशों के लोग इन के दीवाने बन रहे हैं. इस से जहां बिहार की मछलियों की दुनिया में डिमांड बढ़ रही है, वहीं उत्पादकों को तगड़ी कीमत भी मिल रही है. इसी वजह से मछलीउत्पादक भी मछलियों को दूसरे देशों और राज्यों में भेजने में दिलचस्पी ले रहे हैं. गौरतलब है कि बिहार में मछली की सालाना खपत 5 लाख 80 हजार टन है, जबकि सूबे का अपना उत्पादन 4 लाख 30 हजार टन है. बाकी मछलियों को आंध्र प्रदेश समेत दूसरे राज्यों से मंगवाया जाता है.

 

 

सिनेमा में बदलाव की बात से असहमत हैं रणबीर कपूर

बौलीवुड में हर कोई सिनेमा में आए बदलाव की चर्चा कर रहा है. मगर अभिनेता रणबीर कपूर इस बात से पूरी तरह से सहमत नहीं है. वह साफ तौर पर कहते हैं पहचान के संकट के चलते ही सिनेमा  नहीं बदल रहा.

अपनी बात को विस्तार से स्पष्ट करते हुए रणबीर कपूर कहते हैं-‘‘सिनेमा में महज यह बदलाव  आया है कि पहले की तरह अब कलाकार हर साल चार पांच फिल्में और लगभग उसी तरह के किरदारों में नजर नहीं आता है. शाहरुख खान साहब को देखिए, तो वह कुछ अलग काम कर रहे हैं. शाहरुख खान की ‘फैन’, सलमान की ‘सुल्तान’, आमिर खान की ‘दंगल’ आने वाली हैं. यह सब अलग तरह की फिल्में हैं.

हर कलाकार कुछ नया करने की कोशिश  कर रहा है. नई प्रतिभाएं सिनेमा से जुड़ रही हैं. नए लेखक व निर्देशक सिनेमा से जुड़ रहे हैं. अब ‘तलवार’, ‘पीकू’ जैसी फिल्में भी बाक्स आफिस पर अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, जिनमें स्टार कलाकार नहीं हैं. पर कहानी अच्छी नहीं दिखाओगे, तो सिनेमा का यह अच्छा समय ज्यादा दिन नहीं रहेगा. अब वह सिनेमा बन रहा है, जिसके साथ दर्शक जुड़ा हुआ महसूस कर रहा है. पर अभी भी सिनेमा में काफी बदलाव की जरुरत है.

सिनेमा में सही तौर पर बदलाव न आने की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम खुद बदल रहे हैं. हमें खुद पता नहीं है कि हम कौन हैं. हमारे जीवन मूल्य क्या है? अब हम सब की जिंदगी पर पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति के साथ साथ पोलीटिकल प्रभाव भी है. हम कोई और बनने की कोषिष कर रहे हैं, जो हम नही है.

तो पहली समस्या हमें खुद को पहचानने की है.अगर हम अपने आपको जाने या पहचानेंगे नहीं तो हम अपनी भारतीय सभ्यता व संस्कृति से दूर होकर पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति में रंग जाएंगे. जब हम खुद को पहचानेंगे तो हिंदुस्तान की जड़ में तमाम कहानियां हैं, जिन्हे कहा जाना चाहिए.’’

रणबीर कपूर आगे कहते हैं-‘‘सच कहॅूं तो पहचान का संकट हर इंसान के साथ है. हम जो नही है, वह बनने की कोशिश कर रहे हैं. हम सभी रोबोट बनकर अनचाहे ही सिस्टम का ही हिस्सा बनते जा रहे हैं. हम एक स्क्रू ड्रायवर जैसे छोटे मषीनी टुकड़े बनते जा रहे हैं. जरुरत है कि हमें खुद को चुनौती देनी पड़ेगी? हमें खुद को चुनौती देनी ही पड़ेगी कि हम कौन हैं? हमें पूरे आत्मविश्वास व दिल के साथ अपने काम को अंजाम देना होगा.’’

रणबीर-दीपिका की जोड़ी पर ये क्या बोल गए रणवीर सिंह

रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह के त्रिकोण ने बौलीवुड में अजीब सी हलचल मचा दी है. बौलीवुड में लोग रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की जोड़ी को शाहरुख खान की जोड़ी से भी ज्यादा बेहतरीन मानते हैं. पर यह बात रणवीर सिंह को पसंद नहीं है. रणवीर सिंह खुलकर कहते हैं-‘‘ऐसा मानने वालों की संख्या बहुत कम है. मैं आज भी अपने इस बयान पर कायम हूं कि मेरी और दीपिका की जोड़ी ज्यादा सेक्सी और ज्यादा हॉट है. मैं यह सब ऑन स्क्रीन की बात कर रहा हूं. देखिए, हर जोड़ी का अपना एक चार्म होता है. हर जोड़ी की अपनी एक अलग अपील होती है. हर जोड़ी की अपनी एक यात्रा होती है. हर जोड़ी के अपने प्रशंसक होते हैं.

शाहरूख और काजोल तथा रणबीर और दीपिका अलग अलग हैं. उसी तरह रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की जोड़ी भी अलग है. जोडि़यों की आपस में तुलना की ही नहीं जा सकती. रणबीर कपूर और दीपिका की जोड़ी को ‘यह जवानी है दीवानी’ और ‘तमाशा’ में पसंद किया गया. मगर इनकी जोड़ी बड़ी क्वीट मानी गयी. जबकि हम जिस तरह की फिल्में करते हैं,वह अलग हैं. ‘‘गोलियों की रासलीलाः रामलीला’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ तो बहुत ही ज्यादा सेंसुअल और संजीदा प्रेम कहानी वाली फिल्में हैं. इनमें बहुत ही ज्यादा सेंसुअल और संजीदा रोमांस है. ऐसे में आप रणवीर सिंह और दीपिका की जोड़ी को हॉट नहीं कहेंगे,तो कैसे चलेगा?’’ 

एक उपन्यास, चार फिल्में: दो भारत में, दो हालीवुड में

मशहूर अंग्रेजी लेखक ग्रिम ब्रदर्स (GRIMM BROTHERS)  के क्लासिक फेरी टेल ‘‘स्नो व्हाइट्स एंड सेवन द्वार्फ्स’’ ( Snow White and the Seven Dwarfs)  पर भारत के दो फिल्मकार आषुतोष गोवारीकर और विनय सप्रू व राधिक राव फिल्में बनाने जा रहे हैं. जबकि हालीवुड में भी इसी क्लासिक फेरी टेल पर दो फिल्में बन रही हैं. यह कहानी उस सुंदर राजकुमारी की है, जिसे उसकी सौतेली मां मारना चाहती है

प्रदर्शन के लिए तैयार फिल्म ‘‘सनम तेरी कसम’’ की निर्देशक जोड़ी विनय सप्रू और राधिका राव तकरीबन सात सौ म्यूजिक वीडियो और ‘लक्की’ सहित कई फिल्मों के गाने निर्देशित कर चुकी हैं. विनय सप्रू और राधिका राव को बड़े स्तर पर फेरी टेल कहने में महारत हासिल है. अब विनय सप्रू व राधिका राव अब ग्रिम ब्रदर्स के क्लासिक फेरी टेल ‘‘स्नो व्हाइट्स एंड सेवन द्वार्फ्स’’ पर ‘‘स्नो व्हाइट’’ नामक फिल्म का निर्माण व निर्देशन कर रहे हैं, जो कि 2016 में ही रिलीज होगी.

सूत्रों के अनुसार विनय सप्रू व राधिका राव अपनी इस फिल्म की शूटिंग  मार्च माह तक शुरू कर देंगे. यह फिल्म उत्तर भारत की पृष्ठभूमि पर होगी. राधिका राव कहती हैं- ‘‘हमारी फिल्म में स्नो व्हाइट एक भारतीय लड़की है. वह आम लड़कियों की तरह सुंदर नही है, बल्कि सांवली रंगत की बादामी आंखों वाली, शांत व डरपोक किस्म की है. सात बौने उसे जंगल में मार देना चाहते हैं, पर फिर वह उसे छोड़ देते हैं. और वह राज कुमार की तरह हीरो बनकर उभरती हैं. पर यह बौने आम बौनों से कुछ ज्यादा लंबे कद के हैं.’

सूत्रों के अनुसार ग्रिम ब्रदर्स के ही क्लासिक फेरी टेल पर आशुतोष गोवारीकर आधुनिक नजरिए के साथ फिल्म बना रहे है. सूत्रों की माने तो आशुतोष गोवारीकर की फिल्म की शुरूआत 2016 के अंत तक हो पाएगी. शायद उससे पहले विनय सप्रू व राधिका राव की फिल्म रिलीज हो चुकी होगी.

इस बारे में राधिका राव कहती हैं-‘‘यह ऐसी क्लासिक फेरी टेल कहानी है,जिस पर कई लोग काम कर सकते हैं. हर फिल्मकार अपने नजरिए से इस पर फिल्म बना सकता है. कोई भी फिल्मकार इस पर अपना एकाधिकार नहीं जता सकता. वैसे भी इस पर 1937 में हालीवुड में  डेविड हंड के निर्देशन में वाल्ट डिज्नी संगीत प्रधान एनीमेशन फिल्म बना चुकी है. इतना ही नही इस वक्त हालीवुड के दो अन्य फिल्मकार इस पर फिल्म बना रहे हैं. हर फिल्मकार एक ही कहानी को अपने अपने विजन के अनुसार प्रस्तुत कर सकता है.’’

‘भोजपुरी दबंग’ ने 1 करोड़ 65 लाख जुटाकर रचा इतिहास

भारतीयों के बीच खेल और सिनेमा दो पसंदीदा मनोरंजन के साधन है. इसी के चलते अब इन दोनो का मिश्रण भी हो रहा है. एक तरफ खेलों पर आधारित फिल्में बन रही हैं, तो दूसरी तरफ कई फिल्म स्टार अब कबड्डी, फुटबाल या क्रिकेट टीमें खरीदकर खेलते हुए भी धन कमा रहे हैं. इतना ही नहीं अब तो यह अभिनेता अपनी टीम के लिए स्पांसर्स जुटाने के लिए ‘बिडिंग’ यानी कि बोली तक लगवाने लगे हैं.

जी हां! 23 जनवरी से शुरू हो रहे छठे ‘‘सेलीब्रिटी क्रिकेट लीग’’ के मैच में आठ टीमें है, लेकिन इसकी एक टीम ‘‘भोजपुरी दबंग’’ने पहली बार अपनी टीम के लिए स्पांसर्स जुटाने के लिए स्पांसर्स के बीच बोली लगवाकर एक करोड़ पैंसठ लाख रूपए जुटाकर एक नया रिकार्ड बना डाला. यह पहला मौका है, जब ‘आईपीएल’ या सरकारी क्रिकेट संस्थाओं से अलग किसी फिल्म कलाकार की टीम ने अपनी टीम के लिए स्पांसर्स जुटाने के लिए बोली लगवायी हो.

‘‘भोजपुरी दबंग’’टीम ने बोली लगवाकर स्पांर्सस जुटाने का काम भले ही किया हो, मगर इस बोली को लेकर बालीवुड में कई तरह की चर्चाएं गर्म हैं. वास्तव में‘‘भोजपुरी दबंग’’टीम के मालिक भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार अभिनेता व गायक मनोज तिवारी तथा सोहेल खान हैं. इतना ही नहीं मनोज तिवारी इन दिनों भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली से सांसद भी है.‘‘भोजपुरी दबंग’’ के कैप्टन मनोज तिवारी तथा उप कैप्टन भोजपुरी फिल्मों के चर्चित अभिनेता दिनेशलाल यादव निरहुआ हैं.

बालीवुड में चर्चाएं गर्म है कि मनोज तिवारी ने सांसद होने का फायदा उठाते हुए अपनी ‘‘भोजपुरी  दबंग’’टीम के लिए बोली लगाकर स्पांसर्स जुटाकर नया इतिहास रचने का कारमाना कर दिखाया है. अन्यथा बालीवुड के स्टारों की टीम या चेन्नई की दक्षिण भारतीय कलाकारों की  टीम भी पिछले छह साल के दौरान बोली लगवाकर स्पांसर्स जुटाने का साहस नहीं जुटा सकी. मनोज तिवारी दिल्ली से सांसद हैं और ‘‘भोजपुरिया दबंग’’की टाइटल स्पांसर्सशिप 88 लाख रूपए देकर दिल्ली की भवन निर्माण  कंपनी ‘‘रेवांता ग्रुप’ ’ने खरीदा है.

बालीवुड की इन चर्चाओं को लेकर जब मनोज तिवारी से बात हुई,तो मनोज तिवारी ने कहा-‘‘हमने एक नया इतिहास रचा है. पहली बार ऐसा हुआ है, जब ‘सेलीब्रिटी क्रिकेट लीग’’की किसी टीम ने पूरी पारदर्शिता के साथ बोली लगाकर अपनी टीम के लिए स्पांसर्स जुटाए हैं. इसलिए लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं. मै सांसद होने का फायदा लेना चाहता, तो बोली लगाने का कार्यक्रम दिल्ली में रखता न कि मुंबई में. हमने अपनी टीम के लिए स्पांसर्स जुटाने के लिए बोली लगाने का कार्यक्रम मुंबई में रखा और इस कार्यकम में हमने मुंबई के कई पत्रकारों व भोजपुरी इंडस्ट्री की बड़ी बड़ी हस्तियों को भी बुलाया था. सब कुछ सभी के सामने हुआ. हां! मैं यह मान सकता हूं कि मेरे फिल्म अभिनेता होने की वजह से हमारी टीम को फायदा मिला होगा. सांसद के रूप में हम कोई फायदा उठाने का प्रयास नहीं करते.’’

वाका की पिच पर आस्ट्रेलिया को नचाने के लिए तैयार भारत

आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम भले ही वाका की उछाल भरी पिच का फायदा उठाकर मंगलवार को होने वाले पहले वनडे से ही भारतीय टीम पर दबाव का लक्ष्य लेकर चल रही हो लेकिन अनुभवी भारतीय टीम मेजबान टीम के युवा और कमोबेश गैर अनुभवी खिलाडिय़ों को अपनी धुन पर नचाने के लिए कमर कस चुकी है. अपने पहले ट्वंटी और दूसरे वनडे अभ्यास मैच में भारत ने 74 रन और क्रमश: 64 रन से जीत दर्ज की थी और अपनी तैयारियों को पुख्ता किया.

ओपनर रोहित शर्मा ने वनडे अभ्यास मैच में अर्धशतक ठोककर फार्म में वापसी का संकेत दिया जबकि रहाणे, शिखर धवन, विराट कोहली की मौजूदगी से भी अनुभवी टीम इंडिया बराबरी की टक्कर देने के लिए तैयार दिख रही है. दूसरी ओर घरेलू परिस्थितियों में खेल रही विश्व चैंपियन आस्ट्रेलिया भले ही बड़े बड़े दावे कर रही हो और खुद को सीरीज जीतने की प्रबल दावेदार मानती हो, लेकिन फिलहाल उसके पास अनुभवी चेहरों की भारी कमी दिखती है जिसके शीर्ष खिलाड़ी या तो रिटायर हो चुके हैं और या फिर चोटिल हैं.

भारत और आस्ट्रेलिया आखिरी बार वनडे विश्वकप कप फाइनल में जगह बनाने के इरादे से एक दूसरे से भिड़े थे और उस समय टूर्नामेंट की सह मेजबान टीम ने टीम इंडिया को उसके खिताब बचाओ अभियान से रोक दिया था लेकिन लगभग 10 महीने के इस समय में आस्ट्रेलिया के लिए स्थिति काफी बदल चुकी है. मेजबान टीम के पास अब माइकल क्लार्क, मिशेल जानसन, ब्रैड हैडिन जैसे चेहरे नहीं हैं तो तेज गेंदबाज मिशेल स्टार्क चोटिल हैं. वहीं चयनकर्ताओं ने अनुभवी आलराउंडर शेन वाटसन को टीम में चुना ही नहीं है. ऐसे में युवा कप्तान स्टीवन स्मिथ के नेतृत्वमें जोएल पेरिस जैसे पदार्पण खिलाड़ी अनुभवी भारतीय टीम के सामने फिलहाल दमदार नहीं दिख रहे हैं.

विराट की फार्म निश्चित ही भारत के लिये अहम है जिसका लक्ष्य सीरीज की शुरूआत विजयी अंदाज में करना है. पहले टी 20 अभ्यास मैच में जहां विराट ने अर्धशतक ठोका था तो वहीं वनडे अभ्यास में उन्होंने केवल सात रन बनाए जबकि शिखर भी चार रन ही बना सके. लेकिन इस मैच में रोहित ने 67 रन की पारी से फार्म में वापसी का संकेत दिया. रोहित की फार्म दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भी कुछ खास नहीं थी. वहीं भरोसेमंद खिलाड़ी रहाणे भी अहम होंगे जबकि कप्तान धोनी की निजी फार्म भी पिछले काफी समय से आलोचनाओं के घेरे में है.

भारत को आस्ट्रेलिया दौरे पर आने से पहले सीमित ओवर सीरीज के लिए अभ्यास का बहुत समय नहीं मिला है क्योंकि वह यहां दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज संपन्न होने के कुछ दिनों के अंतर पर आई है. इसलिए अभ्यास की कमी भी टीम इंडिया के लिए कुछ परेशानी कर सकती है. इसके अलावा घरेलू क्रिकेट में कमाल का प्रदर्शन करने वाले जडेजा और नंबर एक टेस्ट गेंदबाज और आलराउंडर रविचंद्रन अश्विन टीम की ढाल बन सकते हैं.

आस्ट्रेलियाई टीम लगातार मान रहा है कि उसे वाका की उछाल भरी पिच का फायदा मिलेगा लेकिन दोनों ही टीमों के पास बराबरी का मौका होगा. यहां पिच पर उछाल और तेजी की उम्मीद है. लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि कौन सी टीम इन परिस्थितियों का फायदा उठा पाएगी. वैसे आस्ट्रेलिया में आस्ट्रेलिया के खिलाफ भारतीय टीम का वनडे में कोई खास रिकार्ड नहीं रहा है और वर्ष 2008 के बाद से कुल छह वनडे में उसने एक ही जीता है.

पर्थ में होने वाला मुकाबला भारत के लिये रैंकिंग के लिहाज से भी खास होगा क्योंकि आईसीसी के अनुसार यदि भारत पांच मैचों में एक भी जीत जाता है तो वह वनडे में रैंकिंग में अपने दूसरे स्थान पर बना रहेगा. वैसे टीम इंडिया के पास विराट, शिखर और धोनी के रूप में तीन ऐसे खिलाड़ी हैं जो वनडे रैंकिंग में शीर्ष 10 में हैं जबकि आस्ट्रेलिया से केवल ग्लेन मैक्सवेल ही हैं. लेकिन भारत के लिए यह याद रखना अहम होगा कि मैदान पर समीकरण बदलते देर नहीं लगती है और आस्ट्रेलिया को किसी भी वक्स हल्के में लेना उसकी भारी भूल साबित हो सकती है.

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