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कांग्रेस ने तोड़ी परंपरा, वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य को दिया टिकट

कांग्रेस ने आखिरकार हिमाचल प्रदेश में एक परिवार के दो सदस्यों को टिकट नहीं देने की परंपरा तोड़ दी है. पार्टी ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह और कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर को टिकट देने का ऐलान कर दिया है.

कांग्रेस ने विक्रमादित्य को शिमला ग्रामीण से और चंपा को मंडी से टिकट देने का ऐलान किया है. दरअसल पार्टी ने रविवार शाम सात सीट पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया था, जिसमें दोनों के नाम शामिल नहीं थे. लेकिन मुख्यमंत्री के दबाव में पार्टी ने एक और सूची निकाली जिसमें विक्रमादित्य और चंपा के नाम दर्ज थे.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, दूसरी सूची में विक्रमादित्य का नाम शामिल नहीं होने से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह काफी नाराज थे. उन्होंने साफ कर दिया था कि यदि पार्टी परिवार के एक व्यक्ति को टिकट देना चाहती है तो वह अर्की सीट से अपना नामांकन वापस लेने को तैयार हैं. लेकिन शिमला ग्रामीण से उनके बेटे विक्रमादित्य चुनाव लड़ेंगे.

कांग्रेस इस वक्त वीरभद्र को नाराज करना नहीं चाहती थी. इसलिए आनन-फानन तीसरी सूची जारी कर विक्रमादित्य और चंपा को टिकट देने की औपचारिक घोषणा की गई. कांग्रेस अमूमन विधानसभा चुनाव में एक परिवार से एक सदस्य को ही टिकट देती रही है, लेकिन मुख्यमंत्री के दबाव के चलते उसने यह परंपरा तोड़ दी.

हिंदी सिनेमा के सबसे करिश्माई एक्टर्स में से एक थे शम्मी कपूर

अपने जमाने के बेहतरीन अभिनेताओं में शामिल शम्मी कपूर 21 अक्टूबर, 1931 को बौम्बे के अजिंक्य हौस्पिटल में पैदा हुए थे. पहले उनका नाम शमशेर राज कपूर था. शमशेर राज कपूर के जन्म के समय उनके पिता पृथ्वीराज कपूर और मां रामशरणी और परिवार के लोग बहुत बेचैन थे.

इसकी वजह ये थी कि जब शम्मी गर्भ में थे तब राज कपूर से छोटे उनके दो भाई – देवी और बिंदी एक ही हफ्ते के अंतराल में चल बसे थे. बताया जाता है वे अपने परिवार के अकेले बच्चे थे जिनका जन्म अस्पताल में हुआ. पैदा होने के बाद उनका राजकुमारों सा खयाल रखा गया. उन्हें पहाड़ी गाने बेहद पसंद थे. शूटिंग पर, गाड़ी चलाते समस या खाली समय में वे गुनगुनाते रहते थे.

फिल्में सफल होने लगीं तो लोगों ने राज से उनकी तुलना करनी बंद कर दी.

शम्मी कपूर को शुरुआती फिल्मों में सफलता नहीं मिली थी. उन्हें बहुत दुख और दर्द होता था जब लोग कहते थे कि ये अपने भाई राज कपूर की नकल करने की कोशिश कर रहा है. जब उनकी फिल्में सफल होने लगीं तो लोगों ने राज से उनकी तुलना बंद कर दी.

वो उछल-कूद करना आसान काम नहीं था.

एक्टिंग और एक्टर्स को लेकर उनका कहना था कि एक्टिंग खुदा की देन होती है. आपके लुक्स भी अच्छे होने चाहिए जो ऊपरवाला देता है. आपमें प्रतिभा होनी चाहिए. आपको इतना शिक्षित भी होना होता है कि आप यह जान सकें क्या-कैसे करना हैं. डायलौग याद करना, हाथों का इस्तेमाल करना, चेहरे के भाव देने, आंखों का इस्तेमाल करना, आवाज का इस्तेमाल करना, इन सबके लिए बहुत कड़ी मेहनत जरूरी है. उनका कहना था, जो सफलता फिल्म इंडस्ट्री में मैंने हासिल की, उसमें 96 प्रतिशत बहुत ही कड़ी मजदूरी थी. वो उछल-कूद करना आसान काम नहीं था. वो सब मैंने खुद किया. और वो जो बचा हुआ 4 परसेंट है न, वो गुडलक है.

नूतन शम्मी बचपन की गर्लफ्रेंड थीं.

डेब्यू के पहले ही साल में शम्मी कपूर ने नूतन के साथ ‘लैला मजनू’ (1953) की. इन दोनों का रिश्ता हालांकि बहुत पुराना था. नूतन 3 और शम्मी 6 साल की उम्र से ही दोस्त थे और पड़ोस में ही रहते थे. नूतन उनकी बचपन की गर्लफ्रेंड थीं. शम्मी के पिता पृथ्वीराज और नूतन की मां शोभना समर्थ बहुत अच्छे दोस्त थे इसलिए दोनों के बच्चे भी हमेशा मिलते और साथ खेलते-कूदते रहते थे. बड़े होने के बाद शम्मी-नूतन ने डेटिंग शुरू कर दी. शम्मी नूतन से शादी भी करना चाहते थे लेकिन शोभना समर्थ नहीं मानीं. ‘नगीना’ के रिलीज होने के कुछ ही वक्त बाद उन्हें स्विट्जरलैंड के एक फिनिशिंग स्कूल ‘ला शेतेलेन’ भेज दिया गया.

नगीना’ फिल्म के प्रीमियर पर नूतन को छोड़ने बतौर बौयफ्रेंड आए थे शम्मी कपूर.

इन दोनों की एक मजेदार घटना याद आती है कि नूतन ने दिलीप कुमार के छोटे भाई नसीर के साथ 1951 में ‘नगीना’ फिल्म में काम किया था. उनकी इस डेब्यू फिल्म का प्रीमियर बंबई के न्यू एंपायर सिनेमा में हुआ. इस प्रीमियर पर नूतन को छोड़ने बतौर बौयफ्रेंड शम्मी कपूर आए थे. ये और बात है कि दरबान ने नूतन को घुसने ही नहीं दिया था क्योंकि नगीना ‘केवल वयस्कों के लिए’ थी और नूतन तब सिर्फ 15 बरस की थीं.

पिता ने उन्हें कोई स्टार किड वाली लौन्चिंग नहीं दी.

उनके पिता ने उन्हें कोई स्टार किड वाली लौन्चिंग नहीं दी. 1948 में शम्मी ने फिल्मों में बतौर जूनियर आर्टिस्ट काम करना शुरू किया था. जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर उन्हें महीने के 150 रुपए मिलते थे.

उनकी निजी जिंदगी बहुत रंगीन थी.

उनकी निजी जिंदगी बहुत रंगीन थी. उनकी बहुत सारी महिला मित्र थीं. इसका पता उनके परिवार के लोगों और दोस्तों को भी था. एक समय में उन्होंने कायरो (ईजिप्ट) की एक बैली डांसर को भी डेट किया था जिससे बाद में ब्रेकअप हो गया.

उन्होंने 23 की उम्र में गीता बाली की मांग में लिपस्टिक भर कर ली थी शादी

एक्ट्रेस गीता बाली से शम्मी पहली बार फिल्म ‘काफी हाउस’ के सेट पर मिले थे. बाद में दोनों ने साथ में केदार शर्मा की फिल्म ‘रंगीन रातें’ (1959) में काम किया. शूट के दौरान वे दोनों रानीखेत हिल स्टेशन गए थे. वहीं प्यार हो गया. उनके शादी का किस्सा भी काफी दिलचस्प रहा. शम्मी रोज गीता से पूछा करते थे कि क्या तुम मुझसे प्यार करती हो, क्या तुम मुझसे शादी करोगी? उनके इस सवाल पर गीता कभी भी हां नहीं कहती थीं. एक दिन वो अचानक बोलीं, “चलो, शादी करते हैं.” शम्मी एकदम खुश हो गए. फिर गीता ने कहा, “लेकिन शादी आज ही करनी होगी.” वे चौंक गए. बोले, “ऐसे कैसे हो सकता है?” वे बोलीं, “क्यों? वो जौनी वाकर ने नहीं की थी पिछले हफ्ते.” शम्मी ने कहा, “बहुत अच्छा. चलो!” फिर वे लोग जौनी के पास गए. शम्मी बोले, “हम लोग एक दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं. ठीक तुम्हारी तरह. जौनी बोले, “तुम लोग पागल हो! मैं मस्जिद में गया हूं, मैं मुसलमान आदमी हूं. आप लोग मंदिर में जाओ.” तो फिर वे लोग मंदिर गए. पुजारी ने उनके फेरे करवाए. दोनों ने एक दूसरे को हार पहनाए. गीता ने अपने बैग में से लिपस्टिक निकाल कर शम्मी को दी और उन्होंने लिपस्टिक से उनकी मांग भर दी. हो गई शादी. शम्मी ने आखिरी वक्त तक कहा था कि ये उनकी जिंदगी के सबसे यादगार वक्त में से एक था.

पहली फिल्म ‘जीवन ज्योति’ के लिए उन्हें 11,111 रुपए मिले थे.

1953 में रिलीज हुई उनकी पहली फिल्म ‘जीवन ज्योति’ के लिए उन्हें 11,111 रुपए मिले थे. इसके डायरेक्टर महेश कौल अपने दोस्त और प्रोड्यूसर ए. आर. कारदार के साथ उनका प्ले ‘पठान’ देखने आए थे जिसमें शम्मी ने अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ काम किया था. प्ले देखने के बाद कौल ने शम्मी को दफ्तर बुलाया और कहा कि हमें आपका काम पसंद आया है और हम चाहेंगे कि आप हमारी फिल्म मे काम करें.

तुमसा नहीं देखा’ न चलती तो फिल्म छोड़ देते

जब शम्मी ने गीता से शादी की तो वे उनकी तुलना में कम चर्चित एक्टर थे. वे बड़ी स्टार थीं. उस दौर में उन्होंने शम्मी का बहुत हौसला बढ़ाया. एक वक्त की बात है. रात में वे दोनों किसी होटल की सीढ़ियों पर बैठे हुए थे. शम्मी कपूर ने उनसे कहा, “मेरा करियर आगे नहीं बढ़ रहा है. मैं अब एक पिक्चर में काम करने वाला हूं ‘तुमसा नहीं देखा’ (1957). मेरी ये फिल्म अगर नहीं चली तो मैं फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दूंगा और असम में चाय बागान में मैनेजर बन जाऊंगा. इस पर गीता बाली ने उनको बहुत मोटिवेट किया. बाद में फिल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई. लोगों ने फिल्म और शम्मी की एक्टिंग को बहुत पसंद किया.

इसके बाद ‘दिल देके देखो’ (1958), ‘जंगली’ (1961), ‘राजकुमार’ (1964), ‘कश्मीर की कली’ (1964) और ‘जानवर’ (1965) जैसी उनकी फिल्में आती गईं और शम्मी ने सफलता के कई आयाम तक पहुंचे.

निजी जीवन में मिला उन्हें बहुत बड़ा झटका

लेकिन फिर निजी जीवन में उन्हें बहुत बड़ा झटका मिला. उनकी पत्नी गीता बाली 1965 में गुजर गईं. शम्मी सदमे में चले गए. तीन महीने तक शूटिंग नहीं कर पाए. फिर तीन महीने के बाद जिस सेट पर शूटिंग की, वहीं उनका गाना शूट हुआ ‘तुमने मुझे देखा होकर मेहरबां’. फिल्म थी ‘तीसरी मंजिल’ जो 1966 में रिलीज हुई.

नरगिस से किस नहीं ग्रामोफोन प्लेयर लिया

नरगिस शम्मी के बड़े भाई राज कपूर के साथ फिल्म ‘बरसात’ की शूटिंग कर रही थीं. शम्मी भी वहां गए. वहां उन्होंने देखा कि नरगिस अपने मेकअप रूम में बैठी रो रही हैं. उन्होंने कहा, उनकी तमन्ना थी कि राज कपूर की अगली फिल्म ‘आवारा’ में काम करें लेकिन उनके घरवाले इसके खिलाफ हैं. नरगिस ने कहा, शम्मी तुम किसी तरह भगवान से प्रार्थना करो कि मैं ये फिल्म कर सकूं. अगर मैंने आवारा में काम किया तो मैं तुम्हें किस दूंगी. शम्मी ने कहा, हां, मैं करूंगा प्रार्थना, तुम जरूर मेरे भाई की फिल्म करोगी  और आखिर ‘आवारा’ में नरगिस ने काम किया. शूटिंग शुरू हुई तो शम्मी कपूर भी पहुंचे. नरगिस ने उन्हें देखा और कहा, नहीं नहीं, मैं तुम्हें किस नहीं करने वाली हूं. वे वहां से भाग गईं. शम्मी भी पीछे गए. नरगिस ने कहा, “तुम किस के लिहाज से अब काफी बड़े हो. इसके अलावा कुछ भी मांग लो.” शम्मी ने कहा, मुझे किस नहीं चाहिए.” नरगिस ने पूछा, “तो फिर?” उन्होंने जवाब दिया, ग्रामोफोन प्लेयर.

ये सुनकर नरगिस की आंखों में आंसू आ गए. वे बोलीं, “तुम्हे बस ग्रामोफोन प्लेयर चाहिए? फिर वो उन्हें एचएमवी की दुकान के ऊपर के माले में ले जाकर बोलीं, “पसंद करो.” शम्मी ने एक लाल रंग का खूबसूरत रिकार्ड प्लेयर चुना. वहां से वो उन्हें रिद्म हाउस ले गईं. बोलीं, “अपनी पसंद के 20 रिकार्ड चुन लो.” शम्मी ने वेस्टर्न म्यूजिक से लेकर कई तरह के अपनी पसंद के रिकार्ड लिए. इसी प्लेयर और रिकार्ड से शम्मी के वेस्टर्न म्यूजिक की तरफ लगाव की शुरुआत हुई जो बाद में चलकर फिल्मों में उनका स्टाइल बना.

डांस करने वाले हीरोज इंडियन फिल्म इंडस्ट्री को शम्मी कपूर की ही देन है. उनकी फिल्मों के बाद हर फिल्म में हीरो यूं नाचने लगे. वे खुद एल्विस प्रेस्ले वगैरह से प्रभावित थे. कहा जाता है कि शम्मी कपूर ने अपनी किसी फिल्म में कोरियोग्राफर की मदद नहीं ली. वे खुद ही अपने डांस स्टेप्स और अंदाज बनाते थे.

रणबीर कपूर उन्हें शम्मी दादाजी कहकर बुलाते थे. उन्होंने ही शम्मी को इम्तियाज अली के साथ अपनी फिल्म ‘रौकस्टार’ में काम करने के लिए राजी किया था. उस फिल्म में शम्मी ने सीनियर क्लासिकल आर्टिस्ट उस्ताद जमील खान का रोल किया था. इस फिल्म का नाम एक तरह से शम्मी कपूर को समर्पित था क्योंकि म्यूजिक और परफार्मेंस के लिहाज से वे अपने समय के रौकस्टार थे. ये फिल्म अगस्त 2011 में रिलीज हुई और उनकी आखिरी फिल्म रही. तीन महीने बाद नवंबर में शम्मी अलविदा कह गए.

अब डिश टीवी अपने ग्राहकों के लिए लेकर आया ‘एचडी फार आल’

सभी ग्राहकों को एचडी चैनल मुहैया कराने के उद्देश्य से डीटीएच ब्रांड डिश टीवी ने ‘एचडी फार आल’ की पेशकश की है. इस कदम से एसडी दर्शक खुद ब खुद एचडी में अपग्रेड हो जाएंगे. कंपनी ने अपने एक बयान में यह जानकारी देते हुए कहा कि एचडी का क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है और यहां पर विकास के जबरदस्त अवसर देखे जा रहे हैं. अन्य डीटीएच सेवा प्रदाताओं द्वारा एचडी चैनल उपलब्ध कराने के लिए फीस ली जाती है, लेकिन डिश टीवी अब अपने सभी ग्राहकों को मशहूर एचडी चैनलों तक पहुंच प्रदान कराएगा.

डिश टीवी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (समूह) अनिल दुआ ने कहा, डिश टीवी ने अपने दर्शकों को सर्वश्रेष्ठ मनोरंजन उपलब्ध कराने में कभी भी कोई कसर नहीं छोड़ी है. ‘एचडी फार आल’ की हमारी नई पहल को एक ऐड कैम्पेन ‘हर डिश एचडी’ के साथ पेश किया जा रहा है. इसी के साथ, हम एचडी को सभी तक पहुंचाकर स्टैंडर्ड एवं हाइ-डेफिनिशन के बीच के अंतर को भी पूरा कर रहे हैं. एचडी फार आल पहल के जरिये पहले एचडी के कई ट्रायल्स किए जाएंगे और उसके बाद अपग्रेड किया जाएगा. इसके सभी मशहूर पैक्स की कीमत सिर्फ 169 रुपये (कर अतिरिक्त) से शुरू हो रही है.

डिश टीवी के द्वारा पेश की गई टीवी ऐड कैम्पेन ‘हर डिश एचडी’ के नए टेलीविजन विज्ञापन में शाहरुख खान नजर आएंगे. वह एचडी चैनलों को पेश करने के डिश टीवी के प्रस्ताव के बारे में बतायेंगे.

डिश टीवी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुखप्रीत सिंह ने कहा, हमारा नया टीवी विज्ञापन लोगों को बिना अतिरिक्त शुल्क दिए एचडी अनुभव प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित करता है. इस कैम्पेन में शाहरुख खान की उपस्थिति से दर्शकों का भरोसा बढ़ गया है. शाहरुख हमारी टैगलाइन ‘हर डिश एचडी’ को प्रभावी तरीके से बता रहे हैं.

इस तरीके को आजमाकर पाएं अनचाहे नोटिफिकेशन से छुटकारा

अधिकांश स्मार्टफोन यूजर्स फोन में आने वाले पौप अप नोटिफिकेशन या विज्ञापन से परेशान रहते हैं. ये नोटिफिकेशन आपके फोन के इंटरनेट डाटा को भी खत्म करते है. कभी कभी नेट सर्फिंग के दौरान कुछ विज्ञापन आपके फोन में बार बार आते रहते हैं.

ऐसे नोटिफिकेशंस से अगर आप भी परेशान हैं तो हमारी यह खबर आपके लिए मददगार साबित हो सकती है. तो आइए जानते हैं कि किस तरह आप इन नोटिफिकेशन से छुटकारा पा सकते हैं.

  • आप अपने डिवाइस में जिस ब्राउजर का इस्तेमाल करते हैं उसको लौन्च करें.
  • अब आपको इसके दाईं ओर तीन डौट्स नजर आएंगे उस पर क्लिक करें.
  • इसके बाद सेटिंग औप्शन पर जाएं.
  • सेटिंग में आपको कई विकल्प दिखेंगे. इनमें से साइट सेटिंग विकल्प को सेलेक्ट करें.
  • इन सब के बाद आपको पौपअप नोटिफिकेशन का औप्शन नजर आएगा. इस विकल्प को सेलेक्ट करें.
  • अब इस पर टैप कर आप नोटिफिकेशन को औफ कर सकते हैं. इस पूरी प्रक्रिया के बाद आपके फोन में नोटिफिकेशन नजर नहीं आएगा.

आपके फोन में कई एप्स होंगी, जिनकी नोटिफिकेशन आपको आती होगी. ऐसे में हम आपको एक तरीका बताने जा रहे हैं, जिसके जरिए आप इस परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं. सिर्फ मूवी ही नहीं, अगर आप किसी अहम मीटिंग में हैं तो भी ये नोटिफिकेशन परेशानी का कारण बन जाती हैं. ऐसे में अगर आप इस परेशानी से निजात पाना चाहते हैं तो हमारे इन स्टेप्स को फौलो करें.

  • सबसे पहले फोन की सेटिंग में जाएं.
  • जिस एप की नोटिफिकेशन आपको बंद करनी है, उसे क्लिक करें.
  • अब आपके सामने एक नई विंडो ओपन होगी. उसमें कई सारे विकल्प दिए होंगे.
  • इन्हीं विकल्पों में आपको नोटिफिकेशन का औप्शन मिलेगा.
  • अगर आप नोटिफिकेशन को ब्लौक करना चाहते हैं या फिर बंद करना चाहते हैं तो ‘शो नोटिफिकेशन’ के औप्शन को बंद कर दें.
  • किसी फोन में यह ब्लौक औल के नाम से हो सकता है.
  • जैसे ही आप इसे बंद करेंगे आपके उस एप से नोटिफिकेशन आना बंद हो जाएंगे.

सहमति से बने संबंध पुरुषों के लिए आफत

पतिपत्नी के अलावा स्त्रीपुरुष संबंध एक अजीब गोरखधंधा हैं और कितनी ही बार दोनों के लिए मुसीबतें खड़ी करते हैं. पहले तो इस तरह के संबंधों की शिकार केवल औरतें हुआ करती थीं, जिन्हें कुएं या पहाड़ पर नजात मिलती थी पर अब पुरुष लपेटे में आने लगे हैं और बुरी तरह फंसने लगे हैं. देश की अदालतें ऐसे मामलों से भरी हुई हैं, जिन में वयस्क, जिम्मेदार, होश में रहने वाली औरतें मासूमियत का लबादा ओढ़ कर आती हैं कि जज साहब, इस आदमी ने मुझे बहका कर मुझ से महीनों नहीं वर्षों जबरन सैक्स संबंध बनाए और अब या तो शादी नहीं कर रहा या पैसा नहीं दे रहा. इसे बलात्कार के जुर्म में जेल भेज दो.

सहमति से बने सैक्स संबंध आजकल पुरुषों के लिए आफत हो गए हैं, क्योंकि 10 साल बाद भी कोई औरत अदालत में खड़ी हो सकती है. अदालतें न्याय के नाम पर पुलिस की मारफत पुरुष को गिरफ्तार करा कर बुला लेती हैं और एक मुसीबत खड़ी हो जाती है. सैक्स सुख के दिन हवा हो जाते हैं और मैली अदालतों में काले कोटों के झुडों के बीच बेचारा सा पुरुष सिर लटकाए अपनी सफाई घिघियाते हुए देता है और औरत रणचंडी बनी ललकारती है कि इस नासपीटे ने जिंदगी खराब कर दी. सैक्स स्वाभाविक है, सुखदायक है और शादी से जुड़ा नहीं है. यह स्त्रीपुरुष की सामान्य आवश्यकता है और प्रेम को परिभाषित करता है. पर यह सब जब बोझ बन जाए तो क्या करें?

मुंबई के एक मामले में अदालत ने फैसला तो सही दिया कि एक विवाहिता, एक 9 साल के बच्चे की मां कैसे कह सकती है कि उसे बहका कर, गलतबयानी कर बिस्तर पर ले जाया गया? अदालत ने हालांकि पुरुष को दोषमुक्त कर दिया पर यह हतेहोते 4 साल लग गए. इन 4 सालों में पुरुष ने क्याक्या सहा होगा, कितना खर्च किया होगा इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. न्याय मिला पर पिटपिटा कर. अब समय आ गया है कि प्रेम करते समय पूरी तरह सहमति से सैक्स का सुबूत रखा जाए. यह प्रेम नहीं सौदा बनने लगा है, प्रेमिका के साथ भी, क्योंकि चाहने वाली प्रेमिका से सैक्स हो सकता है पर कोठे पर बैठी औरत से महंगा और असुरक्षित भी पड़ सकता है.

औरतों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता जिस में सैक्स की स्वतंत्रता भी शामिल है अतिउत्साही औरतों के कारण अब समाप्ति के कगार पर है, क्योंकि अब लिव इन तो छोडि़ए, युवा जानीपहचानी के साथ पार्टी में जाने से पहले या स्कूटर या गाड़ी पर बैठने पर भी 4 बार सोचेंगे. अदालतें इस बात से जागरूक हैं और एक के बाद एक फैसले दे रही हैं, जिन में पुरुषों को सहमति के बाद हुए सैक्स के मामलों में बरी करा जा रहा है पर हर मामले में पुरुष पहले ही अदालती चक्की में पिस चुका होता है. अदालत उस चक्की की पिसाई को अनडू नहीं कर सकती. जीतने के बाद आदमी गेहूं का गंदा आटा सा बन कर निकलता है, जो सड़क पर कूड़े की तरह फेंक दिया जाता है. उस में बदबू आती है. कोई उसे छूता नहीं है. बाहर वालों की तो छोडि़ए मातापिता भी त्याग देते हैं.

ये 13 उपाय बना देंगे बालों को घना और लंबा

दूषित पर्यावरण और मिलावटी खानपान के चलते बालों पर पड़ने वाले बुरे असर को आसानी से देखा जा सकता है. पहले जहां महिलाओं के बाल उन की एडि़यां छूते थे, वहीं अब उन का कमर तक होना ही बड़ी बात है. यदि किसी के बाल एडि़यों तक लंबे हैं भी तो बेहद पतले हैं. जिन महिलाओं ने स्टाइल के मद्देनजर बालों को छोटा करा रखा है, वे भी बालों में बाउंस और वौल्यूम न होने से परेशान हैं.

मगर बालों का घना न होना उतनी बड़ी समस्या नहीं है. थोड़ा सा प्रयास कर बालों को घना और बाउंसी बनाया जा सकता है. आइए, जानते हैं कुछ ऐसे ही टिप्स जो बालों को घना बनाने में मददगार साबित होंगे:

1. यह अच्छी बात है कि आप बाजार में आ रहे हर नए उत्पाद की जानकारी रखती हैं. खासतौर पर बालों की देखभाल से जुड़े हर उत्पाद पर आप की विशेष नजर रहती है. लेकिन हर नए प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर लेना अकलमंदी नहीं, क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हर प्रोडक्ट आप के बालों की जरूरत के मुताबिक ही तैयार किया गया हो. यदि आप की आदत हर नए प्रोडक्ट को बिना हेयर स्पैशलिस्ट से पूछे इस्तेमाल करने की है, तो उसे तुरंत बदल लें, क्योंकि हो सकता है कि आप जिस समस्या के समाधान के लिए उत्पाद का इस्तेमाल कर रही हैं वह आप के बालों पर विपरीत असर करे.

2. कई महिलाएं अपने बालों में रोज शैंपू करती हैं. दरअसल, कुछ महिलाओं की स्कैल्प में प्राकृतिक रूप से तेल बनता है, जिस से बाल चिपचिपे और चपटे से हो जाते हैं. ऐसे में उन का घनापन गायब हो जाता है. ज्यादातर शैंपुओं में मिले क्लीनिंग एजेंट भले ही स्कैल्प की तेल की परत को साफ कर दें, लेकिन वे बालों को कमजोर भी बनाते हैं. फिर एक समय ऐसा आता है कि बाल झड़ने लगते हैं. इसलिए रोज बालों को शैंपू करने की जगह हफ्ते में 2-3 दफा ही करें.

3. यदि आप के बाल बहुत अधिक औयली हैं तो ड्राई शैंपू का उपयोग करें और औयली बालों के लिए मिलने वाला कंडीशनर ही लगाएं. कंडीशनर की जगह इनटैरम का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. यह उत्पाद लगभग सभी अच्छे ब्रैंड्स में उपलब्ध है.

4. शरीर के हर हिस्से में सही तरह से रक्तसंचार होने पर ही इनसान स्वस्थ रहता है. बालों के मामले में भी यह बात लागू होती है. इसलिए रोजाना स्कैल्प की मसाज जरूरी है. स्कैल्प मसाज के लिए उंगलियों को हलकेहलके चलाते हुए छोटेछोटे सर्कल बनाएं. यदि आप के बाल उलझे हुए हैं, तो आप ऐसा करते हुए उन्हें उंगलियों से ही सुलझा सकती हैं. ऐसा करने पर बालों की जड़ें मजबूत होंगी.

5. बालों को कलर करना अब केवल जरूरत नहीं, बल्कि फैशन भी है. लड़कियां अकसर कभी पूरे बालों को तो कभीकभी बालों की कुछ लटों को कलर करवाती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा करने से बालों पर कैमिकल लेयर चढ़ जाती है, जिस से उन की जड़ों तक औक्सीजन नहीं पहुंचती और वे कमजोर हो जाते हैं?

ब्यूटीशियन रेनू महेश्वरी के अनुसार जरूरत पड़ने पर ही बालों में कलर करें. यदि आप के बाल सफेद हो रहे हैं तो केवल रूट टचअप दें. पूरे बाल कलर न करें.

6. आजकल स्टे्रटनिंग का महिलाओं में बहुत क्रेज है. लेकिन इस बात पर कोई भी महिला ध्यान नहीं देती कि स्ट्रेटनिंग कराने के बाद बालों की उचित देखभाल भी जरूरी है. खासतौर पर टैंपरेरी स्ट्रेटनिंग की शौकीन महिलाएं रोज बालों पर मशीन चला देती हैं. ऐसा करने से बाल खराब हो जाते हैं और वे टूटने लगते हैं. ध्यान रहे स्टे्रटनिंग करने से पहले बालों में अच्छे ब्रैंड का सीरम जरूर लगाएं. इस से बाल हीट इक्विपमैंट के सीधे संपर्क में आने से बच जाते हैं.

7. यदि आप कामकाजी हैं तो जाहिर है आप को घर से बाहर निकलना पड़ता होगा. ऐसे में आप के बाल धूल, मिट्टी और धुएं के संपर्क में आते होंगे, जिस से स्कैल्प में बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं और बाल झड़ने लगते हैं. रेनू बताती हैं कि कमजोर जड़ वाले बालों में ओजोन ट्रीटमैंट करवाना चाहिए. यह हाई फ्रीक्वैंसी ट्रीटमैंट होता है. इस से कमजोर जडें़ मजबूत हो जाती हैं और बैक्टीरिया भी खत्म हो जाते हैं.

8. जब भी धूप में बाहर निकलें बालों को कपड़े या कैप से ढक लें. इस से बाल सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क से बचे रहते हैं. दरअसल, सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें बालों की इलास्टिसिटी छीन लेती हैं और उन्हें रूखासूखा और बेजान सा बना देती हैं, जिस से वे टूटने लगते हैं.

9. कई महिलाएं बालों पर कलर तो बड़े शौक से लगा लेती हैं, लेकिन उस के बाद उन की देखभाल करना भूल जाती हैं. परिणामस्वरूप बाल झड़ने लगते हैं. रेनू महेश्वरी बताती हैं कि कलर्ड बालों में कलर हेयर केयर शैंपू और कंडीशनर का इस्तेमाल करना चाहिए. इस से बालों में रंग भी ज्यादा दिनों तक टिकता है और उन पर कैमिकल का बुरा असर भी नहीं पड़ता है.

10. हमेशा आईड्रेटिंग और स्मूदनिंग शैंपू का ही इस्तेमाल करें. बाजार में मिलने वाले कैमिकलबेस्ड शैंपू हो सकता है आप के बालों को तुरंत अच्छा लुक दे दें,लेकिन असल में ऐसे शैंपू बालों को नुकसान ही पहुंचाते हैं.

11. यदि हेयर फाल ज्यादा हो रहा हो तो सिर्फ प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल से उन्हें गिरने से नहीं रोका जा सकता. इस के लिए हेयर फाल ट्रीटमैंट लेना जरूरी है. इस में इंपल्स हेयर ट्रीटमैंट का इस्तेमाल किया जाता है, जो बालों के झड़ने को रोकने में मदद करता है. इस ट्रीटमैंट की 8 सिंटिंग्स होती हैं. पहले 20-20 दिन में सिटिंग्स लेनी होती हैं और फिर 1-1 महीने के अंतराल पर. इस का खर्चा प्रति सिटिंग क्व300 से क्व500 आता है.

12. बालों को लंबा करने के चक्कर में उन्हें कटवाने से न हिचकें. समय पर उन्हें ट्रिम जरूर करवाएं या फिर कोई अच्छा हेयर कट लें. दरअसल, बाल जब दोमुंहे हो जाते हैं तब आपस में उलझ कर टूटने लगते हैं. ऐसा न हो इस के लिए हर 3-4 महीने में बालों को ट्रिम जरूर करवाएं.

13. बालों को घना बनाने के लिए सिर्फ उत्पाद ही नहीं, बल्कि आहार का भी सही होना जरूरी है. बालों को प्रोटीन की सब से अधिक जरूरत होती है. इसलिए प्रोटीन युक्त आहार जरूर लें, साथ ही आहार में विटामिन बी और आयरन भी जरूर शामिल करें. ये बालों की जड़ों को मजबूती प्रदान करते हैं.

धर्म के धंधेबाजों की देन है भारत में बाल विवाह

भारत में 20 से 49 साल की उम्र की तकरीबन 27 फीसदी औरतें ऐसी हैं, जिन की शादी 15 साल से कम उम्र में हुई. वहीं 31 फीसदी औरतें ऐसी हैं, जिन की शादी 15 से 18 साल की उम्र के बीच हुई. भारत में शादी की औसत उम्र 19 साल है. गरीब औरतों के मुकाबले अमीर व ऊंचे घराने की औरतें तकरीबन 4 साल बाद शादी करती हैं. लड़कियां जायदाद नहीं हैं. उन्हें अपने भविष्य को चुनने का हक है. जब वे ऐसा करेंगी, तो इस से सभी को फायदा होगा. अपनी बेटी के लिए काबिल वर तलाशने, दहेज के लिए मोटी रकम जुटाने और धार्मिक परंपराओं के दबाव के अलावा और भी कई वजहें हैं, जिन से ज्यादातर भारतीय मातापिता अपनी बेटी को बोझ समझते हैं.

बन रहे हैं गैरजिम्मेदार

हमारे देश की आबादी का एक बड़ा तबका अभी भी बेटेबेटियों की शादी कम उम्र में ही कर देता है. इस से नाबालिग जोड़े समय से पहले ही मांबाप बन जाते हैं और चूल्हाचौका व बच्चों में उलझ कर रह जाते हैं. ऐसी लड़कियां 15 साल की उम्र में मां व 30 से 35 साल की उम्र में दादीनानी बन जाती हैं. राजस्थान में टोंक जिले की मालपुरा तहसील की डिग्गी धर्मशाला में बाल विवाह का ऐसा ही मामला सामने आया, जिस में सरकारी अफसरों समेत लोकल विधायक, पंचायत समिति के प्रधान व सरपंचों ने न केवल जम कर खाना खाया, बल्कि नाबालिग वरवधू जोड़े को आशीर्वाद भी दिया.

यह शादी कोई आम शादी नहीं थी, बल्कि नाबालिग बच्चों की शादी का बड़ा विवाह सम्मेलन था, जिस में लड़के लड़कियों की उम्र 8 से 16 साल थी. लेकिन सरकार के झंडाबरदारों, समाज के ठेकेदारों व जनता के पैरोकारों को यह सब दिखाई नहीं दिया.पता चला कि मंदिर, धर्मशाला, पंडों, समाज के ठेकेदारों व लोकल प्रशासन की मिलीभगत से यह बाल विवाह सम्मेलन खुल्लमखुल्ला हुआ. कानून की हत्या पर कोई भगवाधारी देश को बचाने नहीं आया. आशीर्वाद देने वालों में ज्यादातर तिलक लगाए  घूम रहे थे. इस तरह के किसी मामले को जब ज्यादा तूल दिया जाता है या राजनीतिक रंग दिया जाता है, तो कभीकभार एकाध मामले में कुसूरवारों पर हलकी कार्यवाही कर पुलिस प्रशासन चादर तान कर सो जाता है. जो विरोध करता है, उसे हिंदू विरोधी कह कर डराया जाता है. जाहिर है, लोगों की दिलचस्पी इस बुराई को खत्म करने में कम तमाशा करने में ज्यादा रहती है. यह तमाशा खड़ा करने वाले खास तरह के लोगों का मकसद सिर्फ शोहरत पाना रहता है.

यह है वजह पिछले साल समाज कल्याण विभाग, जयपुर ने ‘बचपन बचाओ’ नामक एक गैरसरकारी संगठन की मदद से प्रदेश की राजधानी जयपुर से सटे देहाती इलाकों में एक सर्वे कराया था.

छोटी उम्र में ही ब्याही गई औरतों पर किए गए इस सर्वे से पता चला कि जयपुर जैसे तरक्कीपसंद व रोजगार देने वाले शहर के नजदीक बसे होने के बावजूद ये औरतें गरीबी व पिछडे़पन और पंडों के लगातार प्रचारप्रसार की वजह से इस दलदल से बाहर नहीं निकल पा रही हैं. इस की सब से बड़ी वजह है, कम उम्र में शादी. शादी होने के बाद ये औरतें कई बच्चों की मां बन गईं और उन को पालने व ज्यादा खर्च के गोरखधंधे में उलझ कर रह गईं. गंवई इलाकों के परिवारों में 65 फीसदी लड़कियों की शादी विवाह के लिए बनाई गई कानूनी उम्र के पहले ही हो गई. पर कहीं देशभक्ति के नाम पर कोई जुलूस नहीं निकले, बयान नहीं दिए गए. 80 फीसदी मांबाप को कहा जाता है कि अपने बच्चों की जल्दी शादी करो और अपनी जिंदगी की सब से बड़ी जिम्मेदारी से छुटकारा पाओ. 85 फीसदी मांबाप मानते हैं कि उन्हें अपनी लड़की की शादी की चिंता तभी से सताने लग गई थी, जब वह 8 से 10 साल की थी.

75 फीसदी औरतें जल्दी शादी व फिर जल्दीजल्दी बच्चे पैदा होने की वजह से खून की कमी से पीडि़त हो जाती हैं. मां बनने के बाद मां व बच्चे की सब से ज्यादा मृत्युदर भी इन्हीं इलाकों में है. बच्चा होने के समय मृत्युदर का आंकड़ा भले ही शहरी इलाकों में सौ में से 2 हो, लेकिन इन गंवई इलाकों में यह आंकड़ा प्रति सौ में से 10 से 12 तक है. मांबाप अपने बच्चों के सुनहरे कल के बारे में नहीं सोच पाते और इस तरह उन के बच्चे भी इसी गोरखधंधे में फंसे रहते हैं. 50 फीसदी बच्चे हाईस्कूल से पहले ही पढ़ाई छोड़ देते हैं. कम पढ़ेलिखे होने की वजह से तरक्की की तमाम सुविधाएं मिलने के बावजूद ये उस का फायदा नहीं उठा पाते और पिछड़ जाते हैं.

सामने आया घिनौना रूप

महज 13 साल की मासूम बच्ची सीमा के साथ जयपुर शहर से सटे कसबे चाकसू में हुआ हादसा बाल विवाह के एक घिनौने व शर्मनाक पहलू का एहसास कराता है.  एक छोटी सी बाल उम्र, जो लड़कियों के खेलनेखाने, पढ़ने व सेहत बनाने की होती है, इस उम्र में ही सीमा को तमाम तरह की हिंसा का शिकार होना पड़ा. मासूम सीमा के तथाकथित 26 साला पति द्वारा उस के मुंह में कपड़ा ठूंस कर उसे बैल्ट से मारापीटा जाता था और उस के साथ जबरन सैक्स संबंध बनाया जाता था. यह मामला तब सामने आया, जब सीमा की मां कमला जयपुर के गांधी नगर महिला थाने में महिला सुरक्षा व सलाह केंद्र पर शिकायत ले कर गईं. कमला की शिकायत के मुताबिक, सीमा की शादी उस समय कर दी गई थी, जब वह ठीक से चलना भी नहीं सीख पाई थी. जब सीमा की सास की बीमारी के चलते मौत हो गई, तो तीसरे की बैठक के दिन सीमा को ससुराल भेजना पड़ा. तीसरे की बैठक व 12वें की रस्म के बीच सीमा के पति ने इस घिनौनी हरकत को अंजाम दिया.

पंडेपुरोहित जिम्मेदार

बाल विवाह को ले कर ऐसा नहीं है कि शहरी और देहाती इलाकों में जागरूकता न हो या लोगों को मालूम न हो कि यह कानूनन जुर्म है. दरअसल, धार्मिक लिहाज से अंधविश्वासी लोग इतने बेखौफ रहते हैं कि वे जानतेबूझते हुए भी किसी की परवाह नहीं करते. शादी के पंडाल में बैठा पंडित उन के लिए बड़े सहारे और ढाल का काम करता है. जिन जगहों पर बच्चों की शादी रुकवाई जाती है, वहां आज तक यह सुनने में नहीं आया कि शादी करा रहे पंडे के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर कोई कार्यवाही की गई हो. देश में सालभर जो तीजत्योहार मनाए जाते हैं और धार्मिक जलसे होते हैं, वे भी इस खास मकसद से कराए जाते हैं कि ज्यादा से?ज्यादा लोग देवीदेवताओं की लीलाएं देख कर पैसा चढ़ाएं. रामलीला हो या कृष्णलीला, इन में?भगवान के बालरूप की शादी मंच पर जरूर दिखाई जाती है. छोटे बच्चे जब?भगवान का रूप धरे शादी करते नजर आते हैं, तो शारदा ऐक्ट जैसे कानूनों पर तरस ही खाया जा सकता है.

ऐसी कोई बंदिश नहीं है कि जो इस हरकत को रोके, जिस में किरदार छोटे बच्चे होते हैं, लेकिन वे माथे पर मुकुट और शरीर पर भगवानों जैसे कपड़े पहने होते?हैं. लोग भगवान बने इन बच्चों के पैर छू कर अपनी अंधश्रद्धा जाहिर कर लीलाओं की शादियों पर मुहर लगा देते हैं, जो बाल विवाह की कुप्रथा को बढ़ावा देने वाली साबित होती हैं. इस से यह संदेशा जाता है कि जब भगवान बचपन में शादी कर सकते?हैं, तो आम बच्चों की शादी क्यों नहीं की जा सकती? अभी भी ज्यादातर लोग दिमागी तौर पर धार्मिक रीतिरिवाजों व पाखंडों के गुलाम हैं. उन्हें बरगलाए रखने के लिए राम व कृष्ण की लीलाएं हर जगह बिना नागा की जाती हैं. इन लीलाओं में भगवान बने बच्चों की शादी का नाटक चूंकि कानूनन गुनाह नहीं?है, न ही इस पर कोई एतराज जताता है, इसलिए देश में बाल विवाह के माहौल का बना रहना हैरत की बात नहीं है.

जयपुर के एक कसबे कोटखावदा में रामलीला हुई. इस धार्मिक जलसे में रामसीता विवाह की लीला को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया था. कम उम्र का एक लड़का राम बना था, तो उसी के उम्र की एक लड़की ने सीता का रोल निभाया था. राम व सीता बने बच्चों के दोस्त भी इस शादी में शामिल हुए थे. इस शादी को देखने के लिए वहां हजारों लोग मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी यह नहीं सोचा कि धर्म की आड़ में मंच से बाल विवाह को बढ़ावा दिया जा रहा है. पंडेपुजारी तो लोगों को उकसाने में लगे रहते हैं. एक भी मिसाल ऐसी नहीं मिलती, जिस में किसी पंडे ने बाल विवाह को रोकने की कोशिश की हो, जबकि जब कभी इन के हकों पर लाठी पड़ती है, तो तिलमिलाए पंडेपुरोहित सड़क पर आ कर प्रदर्शन, विरोध व नारेबाजी करने से नहीं चूकते. राज्य व केंद्र सरकार हिंदू धर्म और देशभक्ति को एक मान कर कहर ढाने लगती हैं.

इस तबके की हमेशा ही यह कोशिश रहती है कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों की शादियां हों, जिस से उन्हें दक्षिणा मिलती रहे. इस के लिए यजमानों को वे हमेशा धर्म की मिसालें दिया करते हैं कि रामकृष्ण की शादी कम उम्र में ही हुई थी. पंडों को इन बातों से कोई वास्ता नहीं रहता कि वे समाज का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं. उन्हें तो अपनी जेब भरने से मतलब रहता है, इसलिए भागवत, रामायण व पुराणों का हवाला दे कर वे यह जताया करते हैं कि बाल विवाहों को ले कर मचा विरोध बकवास है, यह तो पुराने समय से ही चली आ रही सनातन परंपरा है. सीधे तौर पर भले ही कोई पंडितपुरोहित किसी से यह न कहे कि कम उम्र में अपने बच्चों की शादी कर दो, लेकिन सचाई यह है कि यह तबका लोगों के बीच इस तरह का माहौल बनाता है कि कम पढ़ेलिखे व गंवई इलाके के लोग अपने बच्चों की छोटी उम्र में ही शादी करने के लिए चिंतित हो उठते हैं.

दरअसल, पुरोहित तबके द्वारा बारबार बोले जाने वाले कुछ जुमलों से ऐसा होता है. मसलन, लड़की तो पराया धन होती है यानी यह आप पर एक तरह का कर्ज है, इसलिए जितना जल्दी हो सके, इस कर्ज को उतारो. जमाने की हवा लगने से बच्चे बिगड़ जाते हैं, इसलिए लंगर डाल दो यानी शादी कर दो, तो जिम्मेदारी का भाव आ जाएगा. पुरोहित तबका लोगों के दिलोदिमाग में बच्चों की शादी को इतना बड़ा काम बना कर भर देता है कि उन्हें बच्चों की शादी जिंदगी की एक बड़ी कामयाबी लगने लगती है. धर्म के ये धंधेबाज कहते हैं कि अगर लड़की का कन्यादान पिता अपनी गोद पर बैठा कर करता है, तो वह 10 हजार कुएं बनवाने के बराबर पुण्य का हकदार है. इस के बाद अगर लड़की रजस्वला हो जाती है, तो उस की शादी के समय पिता उसे बगल में बैठा कर कन्यादान करता है, तो उस का फल कम हो जाता है. कन्या की शादी कच्ची उम्र में करने से पिता को 10 हजार कुएं बनवाने का फल मिलता है या नहीं, इसे तो आज तक कोई नहीं देख पाया, लेकिन उस मासूम बच्ची की जिंदगी जरूर बदतर हो जाती है. उसे तो जीतेजी कुएं में धकेल दिया जाता है.

कई इलाकों में तो यह भी देखा गया है कि अगर किसी शख्स के लड़की नहीं है, तो वह किसी दूसरे की लड़की का कन्यादान करते हैं, क्योंकि दूसरे की बेटी का कन्यादान करने वालों को गंगा स्नान का फल मिलता है. पंडित इस सफेद झूठ को लोगों के मन में बिठाते रहते हैं.

हो सख्त कार्यवाही

बाल विवाह रोकने की मुहिम चलनी चाहिए, मगर उस की दिशा पंडेपुजारियों की मोटी गरदन तक होनी चाहिए. यह हर कोई जानता है कि बगैर पंडे के शादी नहीं होती. लेकिन बाल विवाहों की कानूनी कार्यवाही में शादी कराने वाले इस गिरोह को एक तरह से छूट ही मिली हुई है. पंडों के साथ कानूनन सख्ती की जाए कि अगर उन्होंने धोखे से भी किसी बच्चे की शादी कराई, तो कानूनी गाज उस पर ही गिरेगी, तो बात बन सकती है. दूल्हादुलहन की उम्र कितनी है, इस पर पंडे मुंह नहीं खोलते, सवाल जजमान से दक्षिणा पाने का जो है. खामी यह है कि जरूरत पड़ने पर पंडे उम्र के मामले में यह कह कर चुप हो जाते हैं कि हमें क्या मालूम. धूर्ततता की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं मिले. मुहिम पंडों के साथसाथ बचपन को बहकाने वाली धार्मिक लीलाओं और फुटपाथी धार्मिक किताबों के खिलाफ भी चलनी चाहिए. ऐसे धार्मिक आयोजनों पर कानूनी बंदिश लगाना जरूरी है, जिन में बच्चों की शादी भगवान बना कर की जाती है.

पोंगापंथ के मकड़जाल में फंसे कुष्ठ रोगी और बढ़ती समस्याएं

कोई कहता है कि कुष्ठ रोग (लेप्रोसी) गलत काम करने की वजह से होता है. किसी की यह राय है कि यह बीमारी पिछले जन्मों के पापों का नतीजा है. कोई यह राग आलापता रहता है कि रिश्तेदारी में सेक्स करने से कुष्ठ की बीमारी हो जाती है. कोई यह ढिंढोरा पीट रहा है कि मां-बाप की सेवा नहीं करने वाला कुष्ठ का शिकार होता है. किसी की यह दलील है कि बच्ची का बलात्कार करने वालों को भगवान कुष्ठ की बीमारी देता है. कुष्ठ बीमारी को लेकर समाज में पोंगापंथियों ने जम कर भरम फैला रखा है. बाबाओं ने यह प्रचार कर रखा है कि गलत काम करने, गलत संबध बनाने, खून गंदा होने या सूखी मछली खाने से कुष्ठ रोग होता है. इसके नाम पर कई बाबानुमा ठग अपनी दुकान चला रहे हैं और आम लोगों की मेहनत की कमाई को लूट रहे हैं.

हकीकत में यह सारी बातें झूठ और अफवाह ही हैं. पटना के मशहूर डाक्टर दिवाकर तेजस्वी कहते हैं कि जिस किसी को कुष्ठ रोग हो जाता है, उस मरीज को ज्यादा देखभाल और सहानूभूति की जरूरत होती है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है. परिवार और समाज उससे नफरत करने लगता है और उसे ठुकरा कर दर-दर भटकने और तिल-तिल कर मरने के लिए छोड़ देता है. यह माइक्रो बैक्टिरियल लेप्री से फैलता है. इस बीमारी को सही तरीके से इलाज किया जाए जो पूरी तरह से ठीक हो जाता है. साल 1991 में आई एमडीटी दवा से यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो सकती है.

भारत में करीब 16 लाख से ज्यादा कुष्ठ रोगी हैं, इनमें से 24 फीसदी बिहार में हैं. सूबे में कुष्ठ रोगियों की 40 बस्तियां है, जिसमें कुष्ठ रोगी बद से बदतर जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं. बिहार में प्रति 10 हजार की आबादी पर 1.12 कुष्ठ रोगी हैं. बिहार के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में सबसे ज्यादा कुष्ठ के मरीज हैं. बिहार अनुसूचित एवं पिछड़ी जाति संघर्ष मोर्चा के संयोजक किशोरी दास कहते हैं कि गरीब और पिछड़ों के दर्द को सुनने और उसे दूर करने वाला कोई नहीं है. उनके नाम पर पटना से लेकर दिल्ली तक सत्ता की रोटियां सेंकी जाती रही हैं, पर उनके हालात में बदलाव आजादी के बाद से अब तक नहीं हो सका है. कुष्ठ के ज्यादातर रोगी भीख मांग कर अपनी जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर हैं.

मिसाल के तौर पर पटना का एक कुष्ठ रोगी है बालेश्वर साव. कुष्ठ की बीमारी होने के बाद उसके परिवार वालों ने उसे घर से निकाल दिया है. गरीब होने की वजह से समय पर सही तरीके से इलाज नहीं हो सका. जिस्म के कई हिस्सों में गहरे जख्म हो गए हैं. हाथों और पैरों की कई उगंलियां गल चुकी है. पिछले 12 सालों से वह सरकारी मदद के इंतजार में है, पर आज तक केवल भरोसे के अलावा और कुछ नहीं मिल सका. कोई एनजीओ वाले कभी कभार खाने को कुछ अनाज और पहनने को कुछ कपड़े दे जाते हैं. इससे गुजारा नहीं चल पाता है. पटना की सड़कों पर वह लकड़ी की गाड़ी पर बैठ कर दिन भर घूमता है. ‘माता-बहिन करिए दान, बाबू भईया करिए दान’ की गुहार लगा-लगा कर भीख मांगता है तो दिन भर में 40-50 रुपया जमा हो जाता है.

बिहार के आरा रेलवे स्टेशन के पास अनाइठ इलाके में रहने वाले कुष्ठ रोगी शिवलाल यादव के झोपड़े के अंदर घुसने पर हर ओर अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है. अंधेरे के बीच कुछ चमकती आंखों को देखकर अहसास होता है कि झोपड़े में कुछ और लोग रह रहे हैं. शिवलाल बताता है कि उसके साथ 3 और कुष्ठ रोगी रहते हैं. वह दिन भर भीख मांगते हैं और जिससे 50-60 रुपया मिल जाता है. कभी कभार जब तबीयत ज्यादा खराब हो जाती है तो 100 रूपया कर्ज लेने पर 10 रूपया रोज के हिसाब से सूद चुकाना पड़ता है.

वह कहता है कि सुनते हैं कि कुष्ठ रोगियों और गरीब लाचारों के लिए सरकार ने बहुत सारी योजनाएं बनाई है, पर आज तक उसके पास एक पैसा भी नहीं पहुंच सका है. वह हंसते हुए कहता भी है कि सारा पैसा तो अफसरों और बाबूओं के पेट में चला जाता होगा, उनकी भूख से कुछ बचेगा तब न हम गरीबों तक पैसा आएगा. हंसते-हंसते हुए शिवलाल बड़ी ही मासूमियत से अफसरशाही के मुंह पर करारा तमाचा जड़ देता हैं और एक झटके में सरकारी योजनाओं की पोल-पट्टी भी खोल देता है.

कुष्ठ रोगी ललिता बेगम का यह दर्द है कि लालू और राबड़ी के राज में आश्रम के लोगों ने रहने के लिए थोड़ी से जमीन मुहैया करने के लिए आवेदन दिया गया था. पिछले 12-13 साल में करीब 50 बार से ज्यादा आवेदन दिया जा चुका है. मुखिया, बीडीओ, एसडीओ, डीएम, विधायक से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री को आवेदन दिया गया पर अभी तक कुछ भी नहीं हो सका है. हर कोई जमीन देने का भरोसा देकर चल देता है. गंदी झोपड़ी में रहने से और भी कई तरह की बीमारियां हो गई है. किसी को टीबी हो गया है तो किसी के आंत में अल्सर हो गया है. किसी का लीवर खराब हो चुका है, तो किसी की आंखों की रोशनी ही चली गई है. कुष्ठ रोग के साथ-साथ कई और बीमारियों की चंगुल में फंस चुके कुष्ठ रोगी परिवार, समाज और सरकार की बेरूखी झेल कर बदतर जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर हैं और उनकी फरियाद को सुनने वाला कोई नहीं है.

सोशल वर्कर आलोक कुमार बताते हैं कि बिहार सरकार की नजर तो इन कुष्ठ रोगियों पर नहीं पड़ सकी है पर जर्मनी के एनजीओ लिबेल औन लेप्रा की कोशिश से कुष्ठ रोगियों को थोड़ी ही सही पर मदद मिल रही है. कुष्ठ रोगियों का सही इलाज कराने का इंतजाम करने के साथ अगर उन्हें किसी काम में ट्रेंड कर दिया जाए तो वे भीख मांगने के बाजाए मेहनत कर 2 वक्त की रोटी कमा सकते हैं.

कुष्ठ रोगियों की बदतर हालत देखकर यही महसूस होता है कि वहां तक सरकारी योजनाओं और दावों-वादों का छटांक भर भी नहीं पहुंच सका है. गरीब कुष्ठ रोगियों को राहत और मदद देने की तमाम सरकारी योजनाओं और एनजीओ की डपोरशंखी कामकाज का छोटा सा लाभ भी उन्हें नहीं मिल पाता है. उनकी बदहाली को देख कर सहसा ही मुंह से निकल पड़ता है- ‘यहां तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियां, मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा होगा..’                              

सिक्रेट सुपरस्टार : जायरा वसीम का दमदार अभिनय

संसार में हर जगह अच्छे व बुरे दोनो लोग हैं, इसी के चलते यह संसार चल रहा है. लेकिन आमिर खान की नजर में ऐसा नहीं है. तभी तो आमिर खान प्रोडक्शन की फिल्म ‘सिक्रेट सुपरस्टार’ के सभी पुरुष पात्र नकारात्मक हैं. फिल्म में इंसिया के पिता फारुख को जिस तरह का दिखाया गया है, उस तरह के यदि पुरुषों की संख्या हमारे समाज में सर्वाधिक है, तो यह बहुत ही ज्यादा घातक है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है. मगर सिनेमा में उसी को पेश किया जाना चाहिए या जाता है, जो कि समाज में सर्वाधिक घटित हो रहा हो. इस कसौटी पर यदि हम फिल्म ‘सिक्रेट सुपरस्टार’ को कसते हैं, तो यह फिल्म अति घटिया साबित होती है और घरेलू हिंसा और बेटी पढ़ाओ के उत्कृष्ट संदेश भी दबकर रह जाता है.

फिल्म ‘सिक्रेट सुपरस्टार’ की कहानी के केंद्र में बौलीवुड में मशहूर गायक बनने का सपना देख रही पंद्रह वर्षीय बड़ोदरा में रह रही मुस्लिम लड़की इंसिया (जायरा वसीम) है. उसके परिवार में उसकी दादी, उसके पिता फारुख (राज अर्जुन), मां नजमा (मेहर विज) और छोटा भाई (कबीर साजिद) है. इंसिया को उसके पिता पसंद नहीं करते. फारुख के सिर पर हमेशा गुस्सा सवार रहता है. कभी भी पत्नी नजमा को पीट देना उसकी आदत सी है. इसलिए घर के अंदर सभी फारुख से डरे व सहमे से रहते हैं. इसी डर की वजह से इंसिया अपने पिता से इंटर स्कूल संगीत प्रतियोगिता का हिस्सा बनने की इजाजत नही मांग पाती, जिसमें विजेता को लैपटाप मिलना है. पर दूसरे दिन फारुख कुछ समय के लिए विदेश चले जाते हैं, तब नजमा अपने पिता का दिया हुआ हार बेचकर बेटी नजमा को लैपटाप लाकर देती है. नजमा पिता के डर की वजह से बुरखा पहनकर अपना चेहरा छिपाकर गाना रिकार्ड कर यूट्यूब पर सिक्रेट सुपरस्टार के नाम से डालती है, जिसे ग्यारह हजार से भी अधिक लोग एक ही दिन में पसंद कर लेते हैं. फिर वह अपना दूसरा वीडियो बनाकर अपने यूट्यूब चैनल पर डालती है. अब हर तरफ उसके गाने व उसकी यानी कि सिक्रेट सुपरस्टार की ही चर्चा होने लगती है. उसका फेसबुक और ट्विटर एकाउंट प्रशंसाओं से भरा हुआ है.

स्कूल में इंसिया का सहपाठी चिंतन (तीर्थ शर्मा) उससे प्यार करता है और हमेशा उसकी मदद करता रहता है. चिंतन बताता है कि उसकी मां ने भी उसके पिता को छोड़ रखा है.

उधर बौलीवुड मे संगीतकार शक्ति कुमार के अपने जलवे हैं. उसके तीन तलाक हो चुके हैं. पहले उनके संगीत की तारीफ होती थी, पर अब नहीं. अब वह गुस्सैल हो गए हैं. अब तो टीवी के रिएलिटी शो में भी प्रतियोगी बच्चे को डांटते नजर आते हैं. उनकी हरकतों से तंग आकर संगीतकार एसोसिएशन उनका बौयकाट कर देती है. अब कोई भी गायक उनके निर्देशन में नहीं गा सकता. इंसिया भी शक्ति कुमार को पसंद नहीं करती.

कुछ सप्ताह बाद जब फारुख वापस लौटता है, तो उसे पता चलता है कि हार बेचकर लैपटाप खरीदा गया है, तो वह नजमा की जमकर पिटाई करता है. इंसिया को लैपटाप को मकान से नीचे फेंकने पर मजबूर करता है. पर चिंतन की मदद से इंसिया माता पिता से छिपकर स्कूल के वक्त में ही मुंबई जाकर शक्ति कुमार के लिए गाना रिकार्ड कर आती है. वह मुंबई की वकील से अपनी मां के लिए तलाक के कागज तैयार कराकर लाती है. पर नजमा उन कागजों पर हस्ताक्षर करने की बजाय उसे डांटती है और साफ साफ कह देती है कि उसे भी पिता के साथ ही रियाद चलना हागा, जहां उसकी शादी उसके पिता ने तय कर रखी है.

जिस दिन इंसिया पूरे परिवार के लिए मुंबई होते हुए रियाद जा रही होती है, उसी दिन मुंबई के अवार्ड समारोह में सिक्रेट सुपरस्टार भी नोमीनेटेड होती है. एअरपोर्ट पर फारुख के एक कदम की वजह से नजमा बिफर जाती है और तलाक के कागज पर हस्ताक्षर कर बेटी इंसिया व बेटे के साथ रियाद जाने से मना कर देती है तथा अवार्ड समारोह में पहुंच जाती है.

वहां मंच पर जाते हुए इंसिया अपना बुरखा उतारकर असली रूप में आ जाती है और मां की तकलीफों को बयां करते हुए उन्हें सुपरस्टार बताती है.

फिल्म की शुरुआत से ही एहसास होने लगता है कि यह फिल्म सरकार के ‘बेटी पढाओ’ और ‘नारी उत्थान’ के अलावा घरेलू हिंसा व नारी उत्पीड़न की बात कर रही है. मगर इस तरह के अच्छे मकसद को बयां करने के लिए एक बेहतरीन कहानी लिखने पर मेहनत नहीं की गयी. परिणामतः फिल्म बिखरी हुई नजर आती है. इंटरवल से पहले फिल्म धीमी गति से घिसटती है. इंटरवल के बाद घटनाक्रमों में तेजी आती है और फिल्म के अंतिम बीस मिनट दर्शकों को पूरी तरह से बांधकर रखते हैं. यानी कि फिल्म की लंबाई इसकी सबसे बड़ी दुश्मन है. फिल्म को एडीटिंग टेबल के साथ साथ पटकथा के स्तर पर भी कसने की जरुरत थी. फिल्म के कुछ दृश्य जरूर भावुक करते हैं. फिल्म में फारुख अपनी बेटी इंसिया के खिलाफ क्यों हैं, इसको लेकर कोई बात नहीं की गयी है. फिल्म में फारुख को इंसिया के गिटार बजाने पर भी तब तक कोई समस्या नहीं है, जब तक वह परीक्षा में फेल नहीं होती. वह चाहता है कि इंसिया अच्छा पढ़े. जब इंसिया फेल होती है, तब वह उसके गिटार के तार तोड़ता है. पर रियाद के मित्र से शादी तय करने के सवाल पर वह कहता है कि इंसिया का पढ़ना जरूरी नहीं. यानी कि पिता पुत्री के संबंधों को उकेरने में भी लेखक बुरी तरह से द्विविधाग्रस्त नजर आता है. फिल्म का अगला दृष्य क्या होगा, इसकी कल्पना दर्शक पहले ही कर लेता है. यह भी लेखक की असफलता है. इंसिया व चिंतन की क्यूट प्रेम कहानी वाले दृश्य अच्छे बन पड़े हैं.

फिल्म ‘सिक्रेट सुपरस्टार’ सही मायनों में आमिर खान की नहीं बल्कि जायरा वसीम की फिल्म है. इंसिया की चाहत, सपने को पूरा करने के संघर्ष, पिता की वजह से घर कें अंदर डरी व सहमी रहने आदि सभी भावों को जायरा वसीम ने अपने अभिनय से बाखूबी उकेरा है. वह कमजोर कहानी व पटकथा, घिसे पिटे गिमिक के बावूजद फिल्म की शुरुआत से अंत तक दर्शकों को अपने साथ बांधकर रखती है. सिनेमा घर से बाहर निकलते हुए दर्शक के जेहन में जायरा वसीम अपने लिए जगह बना लेती है, मगर फिल्म ‘सिक्रेट सुपरस्टार’ उस तरह से दर्शक के दिलों दिमाग पर नहीं छाती है. मां नजमा के किरदार में मेहर विज और पिता फारुख के किरदार में राज अर्जुन ने भी बेहतरीन अभिनय का परिचय दिया है.

आमिर खान तो हमेशा ही प्रशंसा बटोरते हैं पर इस फिल्म में वह कुछ चूक गए हैं. फिल्म की लोकेशन अच्छी है. कैमरामैन अनिल मेहता बधाई के पात्र हैं. संगीतकार अमित त्रिवेदी का संगीत प्रभावित नहीं करता.

दो घंटे तीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘सिक्रेट सुपरस्टार’ का निर्माण आमिर खान ने ‘आमिर खान प्रोडक्शन’ के तहत ‘जी स्टूडियो’ के साथ मिलकर किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक अद्वैत चंदन, कैमरामैन अनिल मेहता, संगीतकार अमित त्रिवेदी तथा कलाकार हैं आमिर खान, जायरा वसीम, मेहर विज, राज अर्जुन, तीर्थ शर्मा, कबीर साजिद, मनोज शर्मा व अन्य.

टीम इंडिया ने ‘केक थेरेपी’ कर मनाया पांड्या का जन्मदिन

आज कल भारतीय टीम में अपने शानदार प्रदर्शन के लिए सबकी वाहवाही लूटने वाले टीम इंडिया के स्टार आलराउंडर हार्दिक पांड्या ने हाल ही में अपना 24 वां जन्मदिन मनाया. उन्होंने अपना यह जन्मदिन टीम इंडिया के दिग्गज खिलाड़ियों के साथ मनाया. पांड्या ने अपने जन्मदिन के जश्न का एक वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है, जो काफी वायरल हुआ. वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने टीम इंडिया को आड़े हाथों लेते हुए उन्हें भारत की गरीबी के बारे में बता दिया. बता दें कि इस वीडियो को देखकर जहां कुछ लोगों ने जमकर तारीफ की, वहीं कई यूर्जस ने जमकर उनकी अलोचना भी की.

वीडियो में हार्दिक शर्टलेस होकर केक काट रहे हैं, उनके पास टीम इंडिया के खिलाड़ी भी खड़े हैं, जो पांड्या को केक लगाते और केक थेरेपी करते नजर आ रहें हैं.

पांड्या के केक काटते ही अक्षर पटेल, मनीष पांडे और यजुवेंद्र चहल उनके चेहरे और पूरे शरीर पर केक लगा देते हैं, रोहित शर्मा पांड्या पर ऐसे केक फेंक रहे हैं, जैसे कि विकेट पर गेंद मारने की प्रैक्टिस कर रहे हों. जबकि साथ में खड़े धोनी वहां सबको कुछ बताते हुए नजर आ रहे हैं.

दरअसल, 11 अक्टूबर को पांड्या ने अपना 24वां जन्मदिन मनाया था, जिसका वीडियो उन्होंने अब सोशल मीडिया पर शेयर किया है. साथ ही उन्होंने लिखा, ‘सभी का जन्मदिन साल में एक बार आता है, जिसका बदला ‘मीठा’ होगा.’वैसे उस दिन पंड्या के साथ-साथ टीम इंडिया के बैटिंग कोच संजय बांगर और फिजियो पैट्रिक फारहार्ट का भी जन्मदिन था. इसलिए, पंड्या के अलावा उनकी भी केक थेरेपी की गई है.

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