पतिपत्नी के अलावा स्त्रीपुरुष संबंध एक अजीब गोरखधंधा हैं और कितनी ही बार दोनों के लिए मुसीबतें खड़ी करते हैं. पहले तो इस तरह के संबंधों की शिकार केवल औरतें हुआ करती थीं, जिन्हें कुएं या पहाड़ पर नजात मिलती थी पर अब पुरुष लपेटे में आने लगे हैं और बुरी तरह फंसने लगे हैं. देश की अदालतें ऐसे मामलों से भरी हुई हैं, जिन में वयस्क, जिम्मेदार, होश में रहने वाली औरतें मासूमियत का लबादा ओढ़ कर आती हैं कि जज साहब, इस आदमी ने मुझे बहका कर मुझ से महीनों नहीं वर्षों जबरन सैक्स संबंध बनाए और अब या तो शादी नहीं कर रहा या पैसा नहीं दे रहा. इसे बलात्कार के जुर्म में जेल भेज दो.

सहमति से बने सैक्स संबंध आजकल पुरुषों के लिए आफत हो गए हैं, क्योंकि 10 साल बाद भी कोई औरत अदालत में खड़ी हो सकती है. अदालतें न्याय के नाम पर पुलिस की मारफत पुरुष को गिरफ्तार करा कर बुला लेती हैं और एक मुसीबत खड़ी हो जाती है. सैक्स सुख के दिन हवा हो जाते हैं और मैली अदालतों में काले कोटों के झुडों के बीच बेचारा सा पुरुष सिर लटकाए अपनी सफाई घिघियाते हुए देता है और औरत रणचंडी बनी ललकारती है कि इस नासपीटे ने जिंदगी खराब कर दी. सैक्स स्वाभाविक है, सुखदायक है और शादी से जुड़ा नहीं है. यह स्त्रीपुरुष की सामान्य आवश्यकता है और प्रेम को परिभाषित करता है. पर यह सब जब बोझ बन जाए तो क्या करें?

मुंबई के एक मामले में अदालत ने फैसला तो सही दिया कि एक विवाहिता, एक 9 साल के बच्चे की मां कैसे कह सकती है कि उसे बहका कर, गलतबयानी कर बिस्तर पर ले जाया गया? अदालत ने हालांकि पुरुष को दोषमुक्त कर दिया पर यह हतेहोते 4 साल लग गए. इन 4 सालों में पुरुष ने क्याक्या सहा होगा, कितना खर्च किया होगा इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. न्याय मिला पर पिटपिटा कर. अब समय आ गया है कि प्रेम करते समय पूरी तरह सहमति से सैक्स का सुबूत रखा जाए. यह प्रेम नहीं सौदा बनने लगा है, प्रेमिका के साथ भी, क्योंकि चाहने वाली प्रेमिका से सैक्स हो सकता है पर कोठे पर बैठी औरत से महंगा और असुरक्षित भी पड़ सकता है.

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