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भारत बना वर्ल्ड चैंपियन, रोहित और कोहली की ‘रोको’ जोड़ी ने ट्वेंटी20 क्रिकेट को छलकती आंखों से कहा अलविदा

साल 2014 और जगह दुबई. क्रिकेट अंडर19 का फाइनल मुकाबला. दक्षिण अफ्रीका ने तब पाकिस्तान को हरा कर यह खिताब अपने नाम किया था. कप्तान का नाम था एडेन मार्करम. अब साल 2024 और जगह बारबाडोस.

 

 

20 क्रिकेट का फाइनल मुकाबला. दक्षिण अफ्रीका बनाम भारत. कप्तान का नाम फिर एडेन मार्करम. दक्षिण अफ्रीका को 24 गेंद पर महज 26 रन चाहिए थे और तब लगा था कि इस बार जीत का सेहरा दक्षिण अफ्रीका के सिर पर बंधेगा और उस का सीनियर क्रिकेट में वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना पूरा हो जाएगा, पर सामने थी रोहित शर्मा की मजबूत इरादों से लबरेज टीम, जिस ने इस फाइनल मुकाबले को फाइनल पलों में दक्षिण अफ्रीका के हलक से छीन लिया और दूसरी बार ट्वेंटी20 वर्ल्ड चैंपियन बन गई. इस से पहले महेंद्र सिंह धौनी की अगुआई में भारत ने साल 2007 में यह कारनामा किया था.

यह वर्ल्ड कप भारत के 2 खिलाड़ियों के लिए बहुत खास था, रोहित शर्मा और विराट कोहली, क्योंकि वे इस के बाद क्रिकेट के ट्वेंटी20 फौर्मेट को अलविदा कहने वाले थे और उन्होंने ऐसा किया भी. फाइनल मुकाबले में बल्लेबाजी में एक छोर संभालने वाले ‘किंग कोहली’ विराट कोहली ने नम आंखों से नए खिलाड़ियों को शुभकामनाएं देते हुए इस फौर्मेट में अपने बल्ले को विराम दिया, तो ‘शर्माजी के बेटे’ रोहित शर्मा ने भी थोड़ी देर के बाद ट्वेंटी20 फौर्मेट से संन्यास ले लिया. ‘रोको’ (रोहित और कोहली) की यह जोड़ी अपने आखिरी ट्वेंटी20 मैच में इतिहास रचने के बाद किसी फिल्मी अंदाज में अमर हो गई है.

 

रोमांच से लबरेज फाइनल मुकाबला

 

अब बात करते हैं फाइनल मुकाबले की, जिस के लिए हम ने इतनी बड़ी भूमिका बांधी है. 29 जून, 2024 को बारबाडोस में बने किंग्स्टन ओवल के मैदान पर भारत और दक्षिण अफ्रीका आमनेसामने थे, जिन्होंने इस वर्ल्ड कप में अपना एक भी मैच नहीं हारा था.

भारत ने टौस जीत कर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला लिया, पर शुरुआत में वह फैसला गलत साबित होता दिखा, क्योंकि भारत ने अपने पहले 3 विकेट महज 34 रनों पर गंवा दिए थे, जिन में कप्तान रोहित शर्मा (9 रन ), ऋषभ पंत (0 रन) और सूर्यकुमार यादव (3 रन) शामिल थे. पर दूसरी तरफ विराट कोहली (76 रन) खड़े थे और उन्होंने अपने मजबूत इरादों और अक्षर पटेल (47 रन) की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से भारतीय टीम की पारी को संभाला. बाद में एक छोटी, पर आतिशी पारी शिवम दुबे (27 रन) के बल्ले से आई और भारत ने 20 ओवर में 7 विकेट खो कर 176 रन बनाए, जो फाइनल मैच में दक्षिण अफ्रीका को टक्कर देने के लिए काफी लग रहे थे.

पर चूंकि दक्षिण अफ्रीका की टीम भी इस खिताब को हासिल करने के लिए मचल रही थी, लिहाजा भारतीय टीम का गेंदबाजी पक्ष मजबूत होने के बावजूद रोहित शर्मा कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे और उन्होंने फील्ड पर किसी खिलाड़ी को भी कोई गलती न करने की प्रेरणा दे कर गेंद अर्शदीप सिंह को थमाई.

 

भारत ने जल्दी ही मैच पर अपनी पकड़ बना ली थी और दक्षिण अफ्रीका के 2 बल्लेबाजों रीजा हेंड्रिक्स (4 रन) और एडेन मार्करम (4 रन) को सस्ते में आउट कर दिया. पर दूसरी तरफ क्विंटन डी कौक (39 रन) जमे हुए थे. ट्रिस्टन स्टब्स (31 रन) ने उन का अच्छा साथ दिया, पर एक बार को भारत के हाथ से मैच खींचने में कामयाब दिखने वाले बल्लेबाज हेनरिच क्लासेन (52 रन) ने भारतीय गेंदबाजों को निराशा की कगार पर खड़ा कर दिया था, क्योंकि जब वे आउट हुए तब दक्षिण अफ्रीका को 24 गेंद पर महज 26 रन चाहिए थे और उस के हाथ में 5 विकेट थे, जबकि एक छोर पर ‘किलर मिलर’ डेविड मिलर खड़े थे, पर उन आखिरी ओवरों में भारतीय गेंदबाजों ने गजब की गेंदबाजी की और जब हार्दिक पांड्या और मैच के आखिरी ओवर की पहली गेंद पर डेविड मिलर के छक्के को सूर्यकुमार यादव ने एक यादगार कैच में बदला, तो भारत ने तभी जीत सूंघ ली थी और ऐसा हुआ भी. भारत यह मुकाबला 7 रन से जीता और ट्रॉफी भी अपने नाम कर ली.

 

आंसुओं में डूबा भारतीय खेमा

आप सोचिए कि मैच जीतने के बाद जब रोहित शर्मा ने तिरंगा मैदान में गाड़ दिया था, तब उन ने दिल में भावनाओं का उफान किस हद तक मचल रहा था. भारतीय टीम का हर खिलाड़ी खुशी के आंसुओं से अपने पसीने में और चमक ला रहा था.

भारत के लिए यह टूर्नामेंट इस लिहाज से भी ऐतिहासिक था, क्योंकि राहुल द्रविड़ अब भारतीय कोच का पद छोड़ देंगे और जब उन के हाथ मे चमचमाती ट्रौफी आई तो वे भी भावुक हो गए. उन्होंने हर खिलाड़ी को किसी अभिभावक की तरह गले से लगाया.

 

रोहित शर्मा जमीन पर लेट गए थे तो विराट कोहली हाथ में तिरंगा लिए ठुमकते हुए अपनी सेल्फी ले रहे थे. जसप्रीत बुमराह, हार्दिक पांड्या मोहम्मद सिराज के अलावा दूसरे तमाम खिलाड़ियों की आंखों में आई नमी ने बता दिया था कि यह जीत उन के लिए कितनी खास है. हो भी क्यों न, भारत जीता भी तो बड़ी शान से है, जश्न तो बनता है.

पूरे साल अपने पौधों की कैसे करें देखभाल

गर्मियों में पौधों की देखभाल

खाद डालते समय ध्यान दें

खाद बनाने से पौधों, खासकर फल देने वाले और फूल वाले पौधों को पानी देने के साथसाथ हाइड्रेटेड और स्वस्थ रखने में मदद मिलती है. वैसे गर्मी में रासायनिक खाद से ज्यादा अच्छी पोटैशियम वाली खाद होती है इसलिए उसका ही उपयोग करें. साथ ही मिट्टी का पीएच मान यदि सामान्य से अधिक है तो एल्युमिनियम सल्फेट की खाद नए पौधों में डालें.

अपने बगीचे से खरपतवार हटाएं

खरपतवार कीटों और बीमारियों को भी बुलावा दे सकते हैं. यदि आप छोटे बगीचे या गमलों और फूलदानों में पौधे उगा रहे हैं, तो आप उन्हें उखाड़कर खरपतवारों को नियंत्रित कर सकते हैं और बड़े बगीचे या पौधों के लिए, कुदाल और कुदाल जैसे बागवानी उपकरणों का उपयोग करें.

पौधों को धूप में न रखें

तेज धूप में पौधें झुलस जाते हैं और ज्यादा देर धूप में रहने पर ये सूख जाते हैं इसलिए पौधों को केवल कुछ घंटों के लिए सुबह ही धूप में रखे. इसके आलावा रो कवर का उपयोग वसंत या पतझड़ में पौधों को गर्म रखने के लिए किया जाता है. साथ ही, वे गर्मियों के दौरान तेज धूप को रोककर कीटों को दूर रखने में मदद करते हैं. लंबे समय तक तेज धूप के दौरान, आप कई दिनों या हफ़्तों तक रो कवर छोड़ सकते हैं. इनका उपयोग भी पौधों को धूप से बचाने के लिए किया जा सकता है.

पौधों को पानी दें

गर्मी में पौधों को सही तरीके से पानी दें. सुबह और शाम दोनों समय पानी देना जरूरी होता है. पौधों में नमी बनी रेहनी चाहिए अगर वह जल्दीजल्दी सुख रहे है तो दिन में भी थोड़े पानी का छिड़काव कर दें.

मल्च का प्रयोग करें

मल्च एक ऐसी सामग्री है जिसे पौधे को ठंडा रखने के लिए मिट्टी की सतह पर फैलाया जाता है. इसके अलावा, मल्च खरपतवारों को रोकता है और नमी बनाए रखने में मदद करता है. मल्च में खाद, पेड़ की छाल, अखबार, घास के टुकड़े, चूरा और कटे हुए पत्ते शामिल हैं। साथ ही, मल्च को हर कुछ दिनों में पलट दें और जब यह सड़ जाए तो इसे बदलना न भूलें.

संक्रमित पौधों को अलग कर दें

जब भी आप ऐसे किसी पौधे को देखें, जो ब्राउन हो रहा हो, सूखा, मुरझाया या फिर और किसी तरह से बीमार नजर आ रहा हो, कैंची या गार्डनिंग शियर्स की एक पेयर लें और उस शाखा को बेस से पूरा काटकर अलग कर दें. इन शाखाओं को अपने गार्डन में कम्पोस्ट के लिए रखने की बजाय, अलग कर दें, क्योंकि अगर इनमें कोई भी पौधे की बीमारी हुई, तो ये अभी आसपास के पौधों में फैल सकती है.

बारिश में पौधों की देखभाल

  • पौधों को बारिश का पानी सोखने दें
  • बारिश के पानी से पौधें अच्छी तरह पनपते हैं. लेकिन अगर बारिश ज्यादा हो रही हो और रुकने का नाम नहीं ले रहीं तो पौधों को घर के अंदर रखे. वरना पौधों की जड़े गल जाएंगी.
  • ड्रेनेज होल को चेक करें
  • बरसात में समय समय पर ड्रेनेज होल को चेक करें और उसे खोलते रहे. ताकि वहां पानी न रुकें.
  • कीटनाशक का प्रयोग करते रहे.
  • बरसात के मौसम में कीड़ों और फंगस लगने का डर भी आना रहता है. इसलिए कीड़ों से बचाव के लिए दवाई डालते रहें.
  • पौधों को बांधकर रखें.
  • बरसात में कई बार बारिश के साथ तेज आंधी भी चलने लगती है जिससे पौधों के गिरकर टूट जाने का डर बना रहता है. इसलिए जिन पौधों के गिरने का डर हो उन पौधों को किसी रस्सी आदि से बांध कर रखें .
  • गमलों की प्लेट्स की क्लीनिंग पर धयान दें.
  • इन प्लेट्स में पानी भर जाता है इसलिए हर रोज नियमित रूप से इसकी साफ़ सफाई पर धयान दे.
  • खाद अच्छे से डालें.
  • इस मौसम में पौधों की ग्रोथ काफी अच्छी होती है. इसलिए खाद आदि डालने का पूरा धयान रखे.
  • गमले को पूरी तरह से भरें.
  • गमले में पौधे लगाते समय, पूरे गमले में दो भाग मिट्टी और एक भाग गोबर डालें. इससे पानी ऊपर से जमने से बच जाएगा. अगर गमला आंशिक रूप से भरा है, तो सुनिश्चित करें कि अतिरिक्त पानी बाहर निकलने के लिए जल निकासी खुली हो.

पौधों को धूप भी दिखाएं

कई बार हम पौधों को तेज बारिश से बचाने के लिए अंदर रख देते है लेकिन उन्हें सूरज की रौशनी देखन भी जरूरी होता है इसलिए धुप आ रही हो तो पौधों को धुप दिखाएं.

सर्दियों में पौधों की देखभाल करने के कुछ टिप्स

पानी देते समय ध्यान दें

सर्दी के मौसम में हर रोज पौधों को पानी देना जरूरी नहीं है. एक दो दिन छोड़कर भी पानी दिया जा सकता है. वैसे पानी देने से पहले पौधों की नमी चेक कर लें. पानी भी कम ही दें, ज्यादा पानी देने से पौधा मर जायेगा.

मल्चिंग का प्रयोग करें

सामान्य भाषा में बोले तो मल्च (मूलच) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग मिट्टी में नमी बनाए रखने, खरपतवारों को दबाने, सर्दियों में पाले की समस्या से पौधों को सुरक्षित रखने के लिए मल्चिंग का प्रयोग किया जाता है. मल्चिंग मिट्टी को कठोर परत बनने से भी रोकती है. दरअसल वातावरण में नमी ज्यादा होने पर पौधें खराब होने लगते है. पौधों की जड़ों को मल्चिंग से गर्माहट मिलती है, जिससे पौधे सुरक्षित रहते हैं. इसके लिए आप 3-5 इंच मोटी परत से मल्चिंग कर सकते हैं.

पौधों को ढक्कर रखें

पौधों को पॉलीथिन, फैब्रिक प्लांट कवर, कार्डबोर्ड बॉक्स या प्लास्टिक बॉक्स से कवर कर सकते हैं. तुलसी आदि के पौधों को किसी चुन्नी से ढक सकते हैं.

पौधों को घर के अंदर रखें

ज्यादा ठंड में पौधों को भी ठंड लगने लगती है जिससे उनके खराब होने का खतरा बढ़ जाता है., लेकिन यह याद रखें कि इन पौधों को घर में वह रखें जहां सूरज की रौशनी आती हो क्यूंकि वह भी पौधों के लिए जरूरी है.

पौधों की छटाईकटाई कैसे करें

पौधों को छटाईकटाई करने से पहले देख ले कि उनमे कीड़े कहां लगे हैं और कितने पत्ते खुद ही मर कर टूट कर बिखर रहें है. पेड़ पौधों की प्रूनिंग के बाद गमले या ग्रो बैग की मिट्टी में हमेशा हल्की खाद डालें। अगर पौधों का तना ख़राब हो गया है तो उसे भी निकल कर फेक दे.

कहीं रील्स देखने की लत कर ना दे आपकी जेब खाली

मुझे तो तेरी लत लग गई, लग गई
“लत ये ग़लत लग गई”

भारत में रोजाना औसतन 4 घंटे 40 मिनट सोशल मीडिया पर यूजर्स समय बिताते हैं और इंस्टाग्राम पर एक आम यूजर दिन में 20 बार आता है. इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी ‘मेटा’ के मुताबिक ऐप पर आने वाले लोग अपना 20% समय शौर्ट वीडियो यानी रील्स देखने में बिताते हैं। भारत इंस्टा रील का सबसे बड़ा मार्केट है .

 

भारत में रील्स देखने का एडिक्शन जनरेशन Z यानी 1995 के बाद जन्म लेने वाली पीढ़ी में सबसे ज्यादा है . इसकी लत युवाओं को ऐसी लगी है कि कुछ लोग घंटो रील और वीडियो देखने में बिता देते हैं. रील की लत से परेशान युवा 5 से 6 घंटे तक रील देखते हैं. सोशल मीडिया की लत किसी नशे से कम नहीं है. हाल ही में इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग फर्म कोफ्लुएंस की रिपोर्ट सामने आई है. जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में रोजाना औसतन 4 घंटे 40 मिनट सोशल मीडिया पर यूजर्स समय बिताते हैं और इंस्टाग्राम पर एक आम यूजर दिन में 20 बार आता है. इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी ‘मेटा’ के मुताबिक ऐप पर आने वाले लोग अपना 20% समय शौर्ट वीडियो यानी रील्स देखने में बिताते हैं। भारत इंस्टा रील का सबसे बड़ा मार्केट है .

कुछ लोगों को तो फोन पर रील्स देखने की इतनी आदत होती है कि वो वाशरूम में भी फोन अपने साथ ले जाते हैं. छोटे तो छोटे बड़ों को भी इसकी लत होती है.

जेब खाली करती रील देखने की आदत

पहले के जमाने में संयुक्त परिवार हुआ करते थे . घर में बच्चे बड़े बुजुर्ग सभी एक साथ रहते थे . बच्चों को चाचा ताऊ के बच्चों का साथ मिलता था ,बड़े घर की जिम्मेदारी संभालने में व्यस्त रहते थे . घर के बच्चों के साथ उनका अच्छा समय व्यतीत होता था . लेकिन अगर आज की बात की जाए तो बच्चे या तो अगर अपने पेरेंट्स के साथ रह रहे हैं तो भी उन्हें अपनी प्राइवेसी चाहिए ,उनके पास करने को कुछ नहीं टेक्नोलौजी ,इंटरनेट की सुविधा के स्तर के बढ़ने से वे अपने अपने कमरों में अकेले अकेले घंटों एक ही जगह पर बिना हिलेडुले फोन की स्क्रीन पर आंखें गड़ाए रहते हैं . चाहे बच्चे हों या युवा वे न तो घर के काम में कोई हाथ बंटाते हैं न ही किताबों से कोई जानकारी लेने की कोशिश करते हैं . पहले लड़कियां घर के रसोई के कामकाज सीखती थीं, लड़के पिता के काम में हाथ बँटाते थे लेकिन आज वे सिर्फ बैठे बैठे रील्स देखकर डेटा खर्च कर रहे हैं और ज़ोमेटो स्विगी जैसे औनलाइन फूड डिलीवरी एप्प से फूड आर्डर करते रहते हैं और न केवल अपनी हेल्थ के साथ खिलवाड़ करके अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियों को इन्वाइट कर रहे हैं बल्कि अपनी जेब भी खाली कर रहे हैं .

आप सोचिए एक 13 -14 साल का बच्चा या 20 -22 साल का युवा घर में बैठे रील्स देखते समय जब उसे भूख लगी वह उठ कर रसोई में जाकर अपने लिए कुछ बनाकर खाने की बजाय ज़ोमेटो स्विगी से जो खाने की डिश 50 -100 रुपये में घर में हाइजीनिक तरीके से बन सकती हैं उसके लिए 200 -250 रुपये खर्च कर देता है .उसी समय में जब वह नकारा बैठ कर बेकार की उल जलूल रील्स देख रहा है और जेब खाली कर रहा है वहीं उससे समय किसी रेस्टोरेंट में कोई उसके लिए खाना बना रहा है कोई उसे वह फूड डिलिवरी कर रहा है और अपनी जेब को भारी कर रहा है . आप ही सोचिए वह युवा या बच्चा आखिर कितने दिन तक निठल्ला बैठकर बिना कमाए रील्स देखकर समय और पैसे बर्बाद कर पाएगा . कभी तो वह समय आएगा जब उसके माँ बाप की कमाई और उसकी सेहत बर्बादी के कगार पर पहुंच जाएगी !

जब तक कोई भी अपनी उम्र के अनुसार पढ़ाई ,कैरियर,कमाई के जरिए पर ध्यान नहीं देगा ,सिर्फ घंटों रील्स देखता रहेगा वह दिन दूर नहीं जब बाप दादाओं की जायदाद भी डूब जाएगी !

न कोई फैक्ट ,न कोई लॉजिक न कोई जानकारी

सबसे बड़ी बात वे लोग जो घंटों रील्स में समय बर्बाद करते हैं अगर वास्तविकता देखी आए तो उन रील्स में न तो कोई जानकारी होती है न कोई फैक्ट ,न कोई लॉजिक होता है, लेकिन क्योंकि अपना भला बुरा सोचने समझने की शक्ति खत्म हो चुकी है इसलिए बस समय की बर्बादी और जेब खाली करने में लगे पड़े हैं ! यह समझने की जरूरत है कि रील्स देखने से जेब खाली होने के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा !

NEET Examके लिए 25 लाख से अधिक युवा आवेदन करते हैं लेकिन सफल होने वालों की संख्या 1 लाख के लगभग होती है इसका मतलब बाकी युवा अपने पेरेंट्स के पैसों की बर्बादी कर रहे हैं वे सिर्फ दिखाने को एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं और अकेले में रील्स देखकर समय और जेब खाली कर रहे हैं!

कुल मिलाकर आज का युथ अपनी एनर्जी और समय गलत जगह यानी रील्स देखने में बर्बाद कर रहा है . और तो और रील्स में जहां देखिए जिसे देखो वो बाबा बना हुआ है ,कोई टैरो ,कोई ज्योतिष ,कोई ग्रहों की आधी अधूरी जानकारी देकर अंधविश्वास फैला रहा है.

इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक पर पॉपुलर एक इन्फलुएंसर का कहना है कि रील्स देखने का फायदा तभी है जब आप इनसे कुछ बेहतर सीख सकें। अगर कोई जिसे ज्यादा जानकारी नहीं है या अपने विषय का एक्सपर्ट नहीं है तो इस तरह की रील्स बनाना और देखना दोनों ही समय की बर्बादी है. मोबाइल पर रील और वीडियो देखना युवाओं को नकारा बना रहा है.

हाल ही में द स्पोटर्स हब में टॉक शो में शामिल हुए लेखक चेतन भगत ने भी युवाओं की रील्स देखने की लत के बारे में कहा कि दिन के 5-6 घंटे रील्स देखने वाले देखने वाले युवा रील्स से कुछ सीख नहीं रहे बल्कि अपनी बौद्धिक क्षमता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सोचिये कोई अगर मोबाइल पर रील और वीडियो देखकर डॉक्टर बना है तो क्या उससे इलाज कराया जा सकता है, नहीं। यह पूरी तरह से समय की बर्बादी है.

Health Tips : जाने क्यों है हंसना जरूरी

आज के समय में स्ट्रैस यानी तनाव जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है. एक अमेरिकी वैज्ञानिक के मुताबिक स्ट्रैस मस्तिष्क में दबी हर प्रेरणा मांसपेशियों और त्वचा में दबाव पैदा करती है. जब तक इसे किसी क्रिया से निकाला नहीं जाता, मांसपेशियों में स्ट्रैस बना रहता है. इस स्ट्रैस से थकान और डिप्रैशन जन्म लेता है जो धीरेधीरे किसी गंभीर बीमारी का रूप ग्रहण कर लेता है. फिर क्यों न इस स्ट्रैस से बचा जाए और खुशहाल जिंदगी जी जाए.

दिल खोल कर हंसें

मत भूलिए कि हंसी कुदरत का अनुपम उपहार है. दिल खोल कर हंसना रूप को निखारता है वहीं यह कई रोगों की अचूक दवा भी है. सुबह का स्वागत खुद को आईने में मुसकराते हुए देख कर करें. पूरा दिन खिलाखिला गुजरेगा. फिर हंसी पर किसी प्रकार का टैक्स तो लगता नहीं, इसलिए बेझिझक मुसकराहटों का आदानप्रदान करें. मशहूर डा. ली बर्क के अनुसार, हंसी शरीर के इलाज का प्राकृतिक व मान्य तरीका है.

गिनिए हंसी के फायदे

हंसी ह्यूमन सिस्टम को सक्रिय करती है. इस से प्राकृतिक किलर सैल्स में वृद्धि होती है जो वायरस से होने वाले रोगों और ट्यूमर सैल्स को नष्ट करते हैं. हंसी दिल की सब से अच्छी ऐक्सरसाइज है. यह टी सेल्स की संख्या में बढ़ोतरी करती है. इस से एंटीबौडी इम्यूनोग्लोब्यूलिन-ए की मात्रा बढ़ती है. यह सांस की नली में होने वाले इन्फैक्शन से बचाव करती है. हंसने से तनाव पैदा करने वाले हारमोंस का लेवल कम होता है. खुल कर हंसना चेहरे और गले की मांसपेशियों के लिए शानदार ऐक्सरसाइज है.

कैफीन को कहें बाय

आमतौर पर लोग स्ट्रैस कम करने के लिए चाय, कौफी, चौकलेट या सौफ्टडिं्रक वगैरह लेते हैं. इन में ड्रग्स की तरह तेजी से असर करने वाले तत्त्व होते हैं. ये तत्त्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम कर के स्ट्रैस पैदा करते हैं. कहावत है, जहर को जहर मारता है. कैफीन इसी सिद्धांत पर काम कर के स्ट्रैस कम करती है. यह शरीर में कुछ विषैले तत्त्व पैदा करती है जो फ्री रैडिकल्स पैदा करते हैं. ये मस्तिष्क में तंतुओं की संवेदनशीलता को कम करते हैं. इसी कारण स्ट्रैस कम होने का झूठा एहसास होता है और व्यक्ति दिनप्रतिदिन इस की मात्रा बढ़ाने के लिए मजबूर होता जाता है.

कैफीनरहित दिन बिता कर आप इस से होने वाले स्ट्रैस से छुटकारा पा सकते हैं. आप बदलाव महसूस करेंगे. उत्साह, ऊर्जा, अच्छी नींद, कम हार्टबर्न और मांसपेशियों को लचीला पाएंगे. अगर आप अचानक कैफीन छोड़ते हैं तो माइग्रेन जैसे तेज दर्द के शिकार हो सकते हैं. इसलिए कैफीन से छुटकारा पाने का सब से आसान तरीका अपने डेली रुटीन से प्रतिदिन एक प्याला कौफी कम करना है.

पैदल चलें

पैदल चलना सब से अच्छी ऐक्सरसाइज है. खाने से पहले तेजतेज चलना आंतों को गति देता है जिस से पाचन शक्ति बढ़ जाती है. खाने के बाद टहलने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है. पैदल चलते समय ली जाने वाली गहरी सांसें फेफड़ों की क्षमता बढ़ाती हैं और खून का प्रवाह भी नियंत्रित करती हैं. नंगे पैर चलने से एक्यूप्रैशर जैसा लाभ मिलता है.

स्ट्रैस एड्रीनल हारमोन के तीखे हमले से पैदा होता है. यह दिल की धड़कन और ब्लडप्रैशर को बढ़ा देता है. ध्यान करना एड्रीनल हारमोन की गति को नियंत्रित कर के स्ट्रैस शिथिल करता है. ध्यान करने का मतलब शरीर और खुद के प्रति जागरूक होना है. अगर इसे बढ़ा लिया जाए तो उन समस्याओं के समाधान खुद ही मिलने शुरू हो जाते हैं जिन के कारण स्ट्रैस पैदा होता है. ऐक्सरसाइज और ध्यान को रुटीन में शामिल कर के तनमन को चुस्त बनाया जा सकता है.

आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में व्यक्ति अपनी क्षमता का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रहा है. शारीरिक गतिविधियों के कारण घुटनों में लैक्टिक एसिड पैदा होता है. जब शरीर में इस की मात्रा बहुत बढ़ जाती है तो हम थकान महसूस करते हैं.

दरअसल, इंटरल्यूकिन-6 नामक अणु मस्तिष्क को धीमा चलने का संकेत भेजते हैं. इस का अर्थ होता है कि अब मांसपेशियों से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता. लंबे समय तक चली शारीरिक गतिविधियों के बाद इंटरल्यूकिन-6 का लेवल सामान्य से 60 से 100 गुना तक बढ़ जाता है. तब हमें आराम की जरूरत महसूस होती है.

नींद है जरूरी

सोना स्ट्रैस दूर करने का सब से आसान तरीका है. 8 घंटे की नींद फिर से काम करने के लिए एनर्जी देती है. इसलिए काम में व्यस्त क्षणों के बीच थोड़ा सा ब्रेक ले कर मीठी झपकी लेनी चाहिए ताकि तनमन तरोताजा हो कर फिर काम करने के लिए तैयार हो जाए. कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 20 मिनट तक ली गई झपकी जादू सा असर करती है. यह काम के उबाऊ क्षणों के बीच आप के तनमन को फूलों पर बिखरी ओस जैसी ताजगी से भर देती है.

याद रखें, हम सभी में ऊर्जा की लहरें कुलांचें भरती हैं. उन्हें बहने का सही रास्ता दीजिए. गार्डनिंग, बुक्स रीडिंग, स्विमिंग, म्यूजिक सुनना, पेंटिंग, ड्राइविंग जैसे अपने मनपसंद शौक को कुछ समय दे कर आप स्ट्रैस से कोसों दूर रह सकते हैं.

चावल पर लिखे अक्षर

जिंदगी और मौत की लड़ाई तो सीमा ने जीत ली थी लेकिन मोहब्बत की जंग में हार गई. जिस अनवर के साथ जीवन भर साथ निभाने की कसमें खाई थीं, सपने संजोए थे.

दशहरे की छुट्टियों के कारण पूरे 1 महीने के लिए वर्किंग वूमेन होस्टल खाली हो गया था. सभी लड़कियां हंसतीमुसकराती अपनेअपने घर चली गई थीं. बस सलमा, रुखसाना व नगमा ही बची थीं. मैं उदास थी. बारबार मां की याद आ रही थी. बचपन में सभी त्योहार मुझे अच्छे लगते थे. दशहरे में पिताजी मुझे स्कूटर पर आगे खड़ा कर रामलीला व दुर्गापूजा दिखाने ले जाते. दीवाली के दिन मां नाना प्रकार के पकवान बनातीं, पिताजी घर सजाते. शाम को धूमधाम से गणेशलक्ष्मी पूजन होता. फिर पापा ढेर सारे पटाखे चलाते. मैं पटाखों से डरती थी. बस, फुलझडि़यां ही घुमाती रहती. उस रात जगमगाता हुआ शहर कितना अच्छा लगता था. दीवाली के दिन यह शहर भी जगमगाएगा पर मेरे मन में तब भी अंधेरा होगा. 10 वर्ष की थी मैं जब मां का देहांत हो गया. तब से कोई भी त्योहार, त्योहार नहीं लगा. सलमा वगैरह पूछती हैं कि मैं अपने घर क्यों नहीं जाती? अब मैं उन्हें कैसे कहूं कि मेरा कोई घर ही नहीं.

मन उलझने लगा तो सोचा, कमरे की सफाई कर के ही मन बहलाऊं. सफाई के क्रम में एक पुराने संदूक को खोला तो सुनहरे डब्बे में बंद एक शीशी मिली. छोटी और पतली शीशी, जिस के अंदर एक सींक और रुई के बीच चावल का एक दाना चमक रहा था, जिस पर लिखा था, ‘नोरा, आई लव यू.’ मैं ने उस शीशी को चूम लिया और अतीत में डूबती चली गई. यह उपहार मुझे अनवर ने दिया था. दिल्ली के प्रगति मैदान में एक छोटी सी दुकान है, जहां एक लड़की छोटी से छोटी चीजों पर कलाकृतियां बनाती है. अनवर ने उसी से इस चावल पर अपने प्रेम का प्रथम संदेश लिखवाया था.

अनवर मेरे सौतेले बडे़ भाई के मित्र थे, अकसर घर आया करते थे. पिताजी की लंबी बीमारी, फिर मृत्यु के समय उन्होंने हमारी बहुत मदद की थी. भाई उन पर बहुत विश्वास करता था. वह उस के मित्र, भाई, राजदार सब थे पर भाई का व्यवहार मुझ से ठीक न था. कारण यह था कि पिताजी ने अपनी आधी संपत्ति मेरे नाम लिख दी थी. वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी मेरी शादी कर के बाकी संपत्ति पर अधिकार कर ले. पर मैं आगे पढ़ना चाहती थी.

एक दिन इसी बात को ले कर उस ने मुझे काफी बुराभला कहा. मैं ने गुस्से में सल्फास की गोलियां खा लीं पर संयोग से अनवर आ गए. वह तत्काल मुझे अस्पताल ले गए. भाई तो पुलिस केस के डर से मेरे साथ आया तक नहीं. जहर के प्रभाव से मेरा बुरा हाल था. लगता था जैसे पूरे शरीर में आग लग गई हो. कलेजे को जैसे कोई निचोड़ रहा हो. उफ , इतनी तड़प, इतनी पीड़ा. मौत जैसे सामने खड़ी थी और जब डाक्टर ने जहर निकालने  के लिए नलियों का प्रयोग किया तो मैं लगभग बेहोश हो गई.

जब होश आया तो देखा अनवर मेरे सिरहाने उदास बैठे हुए हैं. मुझे होश में देख कर उन्होंने अपना ठंडा हाथ मेरे तपते माथे पर रख दिया. आह, ऐसा लगा किसी ने मेरी सारी पीड़ा खींच ली हो. मेरी आंखों से आंसू बहने लगे तो उन की भी आंखें नम हो आईं. बोले, ‘पगली, रोती क्यों है? उस जालिम की बात पर जान दे रही थी? इतनी सस्ती है तेरी जान? इतनी बहादुर लड़की और यह हरकत…?’

मैं ने रोतेरोेते कहा, ‘मैं अकेली पड़ गई हूं, कोई मेरे साथ नहीं है. मैं क्या करूं?’

वह बोले, ‘आज से यह बात मत कहना, मैं हूं न, तुम्हारा साथ दूंगा. बस, आज से इन प्यारी आंखों में आंसू न आने पाएं. समझीं, वरना मारूंगा.’

मैं रोतेरोते हंस पड़ी थी.

अनवर ने भाई को राजी कर मेरा एम.ए. में दाखिला करा दिया. फिर तो मेरी दुनिया  ही बदल गई. अनवर घर में मुझ से कम बातें करते पर जब बाहर मिलते तो खूब चुटकुले सुना कर हंसाते. धीरेधीरे वह मेरी जिंदगी की एक ऐसी जरूरत बनते जा रहे थे कि जिस दिन वह नहीं मिलते मुझे सूनासूना सा लगता था.

एक दिन मैं अपने घर में पड़ोसी के बच्चे के साथ खेल रही थी. जब वह बेईमानी करता तो मैं उसे चूम लेती. तभी अनवर आ गए और हमारे खेल में शामिल हो गए. जब मैं ने बच्चे को चूमा तो उन्होंने भी अपना दायां गाल मेरी तरफ बढ़ा दिया. मैं ने शरारत से उन्हें भी चूम लिया. जब उन्होंने अपने होंठ मेरी तरफ बढ़ाए तो मैं शरमा गई पर उन की आंखों का चुंबकीय आकर्षण मुझे खींचने लगा और अगले ही पल हमारे अधर एक हो चुके थे. एक अजीब सा थरथराता, कोमल, स्निग्ध, मीठा, नया एहसास, अनोखा सुख, होंठों की शिराओं से उतर कर विद्युत तरंगें बन रक्त के साथ प्रवाहित होने लगा. देह एक मद्धिम आंच में तपने लगी और सितार के कसे तारों से मानो संगीत बजने लगा. तभी भाई की चीखती आवाज से हमारा सम्मोहन टूट गया. अनवर भौचक्के से खड़े हो गए थे. भाई की लाललाल आंखों ने बता दिया कि हम कुछ गलत कर रहे थे.

‘क्या कर रही थी तू बेशर्म, मैं जान से मार डालूंगा तुम्हें,’ उस ने मुझे मारने के लिए हाथ उठाया तो अनवर ने उस का हाथ थाम लिया.

‘इस की कोई गलती नहीं. जो कुछ दंड देना हो मुझे दो.’

भाई चीखा, ‘कमीने, मैं ने तुझे अपना दोस्त समझा और तू…जा, चला जा…फिर कभी मुंह मत दिखाना. मैं गद्दारों से दोस्ती नहीं रखता.’

अनवर आहत दृष्टि से कुछ क्षण भाई को देखते रहे. कल तक वह उस के लिए आदर्श थे, मित्र थे और आज इस पल इतने बुरे हो गए. उन्होंने लंबी सांस ली और धीरेधीरे बाहर चले गए.

मेरा मन तड़पने लगा. यह क्या हो गया? अनवर अब कभी नहीं आएंगे. मैं ने क्यों चूम लिया उन्हें? वह बच्चे नहीं हैं? अब क्या होगा? उन के बिना मैं कैसे जी सकूंगी? मैं अपनेआप में इस प्रकार गुम थी कि भाई क्या कह रहा है, मुझे सुनाई ही नहीं दे रहा था.

उस घटना के कई दिन बाद अनवर मिले और मुझे बताया कि भाई उन्हें घर से ले कर आफिस तक बदनाम कर रहा है. उन के हिंदू मकान मालिक ने उन से कह दिया कि जल्द मकान खाली करो. आफिस में भी काम करना मुश्किल हो रहा है. सब उन्हें अजीब  निगाहों से घूरते हुए मुसकराते हैं, मानो वह कह रहे हों, ‘बड़ा शरीफ बनता था?’ सब से बड़ा गुनाह तो उन का मुसलमान होना बना दिया गया है. मुझे भाई पर क्रोध आने लगा.

अनवर बेहद सुलझे हुए, शरीफ, समझदार व ईमानदार इनसान के रूप में प्रसिद्ध थे. कहीं अनवर बदनामी के डर से कुछ कर  न बैठें, यही सोच कर मैं ने दुखी स्वर में कहा, ‘यह सब मेरी नासमझी के कारण हुआ, मुझे माफ कर दें.’ वह प्यार से बोले, ‘नहीं पगली, इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं, दोष उमर का है. मैं ने ही कब सोचा था कि तुम से’…वाक्य अधूरा था पर मुझे लगा खुशबू का एक झोंका मेरे मन को छू कर गुजर गया है, मन तितली बन कर उस सुगंध की तलाश में उड़ने लगा.

अचानक उन्होंने चुप्पी तोड़ी, ‘सीमा, मुझ से शादी करोगी?’ यह क्या, मैं अपनेआप को आकाश के रंगबिरंगे बादलों के बीच दौड़तेभागते, खिल- खिलाते देख रही हूं. ‘सीमा, बोलो सीमा, क्या दोगी मेरा साथ?’ मैं सम्मोहित व्यक्ति की तरह सिर हिलाने लगी.

वह बोले, ‘मैं दिल्ली जा रहा हूं, वहीं नौकरी ढूंढ़ लूंगा…यहां तो हम चैन से जी नहीं पाएंगे.’

अनवर जब दिल्ली से लौटे थे तो मुझे चावल पर लिखा यह प्रेम संदेश देते हुए बोले थे, ‘आज से तुम नोरा हो…सिर्फ मेरी नोरा’…और सच  उस दिन से मैं नोरा बन कर जीने लगी थी.

अनवर देर कर रहे थे. उधर भाई की ज्यादतियां बढ़ती जा रही थीं. वह सब के सामने मुझे अपमानित करने लगा था. उस का प्रिय विषय ‘मुसलिम बुराई पुराण’ था. इतिहास और वर्तमान से छांटछांट उस ने मुसलमानों की गद्दारियों के किस्से एकत्र कर लिए थे और उन्हें वह रस लेले कर सुनाता. मुझे पता था कि यह सब मुझे जलाने के लिए कर रहा था. भाई जितनी उन की बुराई करता, उतनी ही मैं उन के नजदीक होती जा रही थी. हम अकसर मिलते. कभीकभी तो पूरे दिन हम टैंपो से शहर का चक्कर लगाते ताकि देर तक साथ रह सकें. अजीब दिन थे, दहशत और मोहब्बत से भरे हुए. उन की एक नजर, एक मुसकराहट, एक बोल, एक स्पर्श कितना महत्त्वपूर्ण हो उठा था मेरे लिए.

वह अपने प्रेमपत्र कभी मेरे घर के पिछवाडे़ कूडे़ की टंकी के नीचे तो कभी बिजली के खंभे के पास ईंटों के नीचे दबा जाते.

मैं कूड़ा फेंकने के बहाने जा कर उन्हें निकाल लाती. वे पत्र मेरे लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रेमपत्र होते थे.

उन्हें मेरा सतरंगी दुपट्टा विशेष प्रिय था, जिसे ओढ़ कर मैं शाम को छत पर टहलती और वह दूर सड़क से गुजरते हुए फोन पर विशेष संकेत दे कर अपनी बेचैनी जाहिर करते. भाई घूरघूर कर मुझे देखता और मैं मन ही मन रोमांचकारी खुशी से भर उठती.

एक दिन जब मैं विश्वविद्यालय से घर पहुंची तो ड्राइंग रूम से भाई के जोरजोर से बोलने की आवाज सुनाई दी. अंदर जा कर देखा तो धक से रह गई. अनवर सिर झुकाए खडे़ थे. अनवर को यह क्या सूझा? आखिर वही पागलपन कर बैठे न, कितना मना किया था मैं ने? पर ये मर्द अपनी ही बात चलाते हैं. इतना आसान तो नहीं है जातिधर्म का भेदभाव मिट जाना? चले आए भाई से मेरा हाथ मांगने, उफ, न जाने क्याक्या कहा होगा भाई ने उन्हें. भाई मुझे देख कर और भी शेर हो गया. उन का हाथ पकड़ कर बाहर की तरफ धकेलते हुए गालियां बकने लगा. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ थी. बाहर कालोनी के कुछ लोग भी जमा हो गए थे. मैं तमाशा बनने के डर से कमरे में बंद हो गई. रात भर तड़पती रही.

दूसरे दिन शाम को किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. खोल कर देखा तो अनवर के एक मित्र थे. किसी भावी आशंका से मेरा मन कांप उठा. वह बोले, ‘अनवर ने काफी मात्रा में जहर खा लिया है और मेडिकल कालिज में मौत से लड़ रहा है. बारबार नोरानोरा पुकार रहा है. जल्दी चलिए.’ मैं घबरा गई. मैं ने जल्दी से पैरों में चप्पल डालीं और सीढि़यां उतरने लगी. देखा तो आखिरी सीढ़ी पर भाई खड़ा था. मैं ठिठक गई. फिर साहस कर बोली, ‘मुझे जाने दो, बस, एक बार देखना चाहती हूं उन्हें.’

‘नहीं, तुम नहीं जाओगी, मरता है तो मर जाने दो, साला अपने पाप का प्रायश्चित्त कर रहा है.’

‘प्लीज, भाई, चाहो तो तुम भी साथ चलो, बस, एक बार मिल कर आ जाऊंगी.’

‘कदापि नहीं, उस गद्दार का मुंह भी देखना पाप है.’

‘भाई, एक बार मेरी प्रार्थना सुन लो, फिर तुम जो चाहोगे वही करूंगी. अपने हिस्से की जायदाद भी तुम्हारे नाम कर दूंगी.’

‘सच? तो यह लो कागज, इस पर हस्ताक्षर कर दो.’ उस ने जेब से न जाने कब का तैयार दस्तावेज निकाल कर मेरे सामने लहरा दिया. मेरा मन घृणा से भर उठा. जी तो चाहा कागज के टुकडे़ कर के उस के मुंह पर दे मारूं पर इस समय अनवर की जिंदगी का सवाल था. समय बिलकुल नहीं था और बाहर कालोनी वाले जुटने लगे थे. मैं ने भाई के हाथ से पेन ले कर उस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए और तेजी से लोगों के बीच से रास्ता बनाती अनवर के मित्र के स्कूटर पर बैठ गई.

जातेजाते भाई के कुछ शब्द कान में पडे़, ‘देख रहे हैं न आप लोग, यह अपनी मर्जी से जा रही है. कल कोई यह न कहे, सौतेले भाई ने घर से निकाल दिया. विधर्मी की मोहब्बत ने इसे पागल कर दिया है. अब मैं इसे कभी घर में घुसने नहीं दूंगा. मेरे खानदान का नाम और धर्म सब भ्रष्ट कर दिया है इस कुलकलंकिनी ने.’

स्कूटर मेडिकल कालिज की तरफ बढ़ा जा रहा था. मेरी आंखों में आंसू छलछला आए, ‘तो यह…यह है मां के घर से मेरी विदाई.’ अनवर खतरे से बाहर आ चुके थे. उन्हें होश आ गया पर मुझे देखते ही वह थरथरा उठे, ‘तुम…तुम कैसे आ गईं? जाओ, लौट जाओ, कहीं पुलिस…’ मैं ने अनवर का हाथ दबा कर कहा, ‘आप चिंता न करें, कुछ नहीं होगा.’ पर अनवर का भय कम नहीं हो रहा था. वह उसी तरह थरथराते रहे और मुझे वापस जाने को कहते रहे. मैं उन्हें कैसे समझाती कि मैं सबकुछ छोड़ आई हूं, अब मेरी वापसी कभी नहीं होगी.

वह नीमबेहोशी में थे. जहर ने उन के दिमाग पर बुरा असर डाला था. उन को चिंतामुक्त करने के लिए मैं बाहर इमली के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ गई. बीचबीच में जा कर उन के पास पडे़ स्टूल पर बैठ जाती और निद्रामग्न उन के चेहरे को देखती रहती और सोचती, ‘किस्मत ने मुझे किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है?’ आगे का रास्ता सुझाई नहीं पड़ रहा था.

पक्षी चहचहाने लगे तो पता चला कि सुबह हो चुकी है. मैं अनवर के सिरहाने बैठ कर उन का सिर सहलाने लगी. उन्होंने आंखें खोल दीं और मुसकराए. उन की मुसकराहट ने मेरे रात भर के तनाव को धो दिया. मारे खुशी के मेरी आंखें नम हो आईं.

‘सच ही सुबह हो गई है क्या?’ मैं ने उन की तरफ शिकायती नजरों से देखा, ‘तुम ने ऐसा क्यों किया अनवर, क्यों…मुझे छोड़ कर पलायन करना चाहते थे. एक बार भी नहीं सोचा कि मेरा क्या होगा?’

उन्होंने शायद मेरी आंखें पढ़ ली थीं. कमजोर स्वर में बोले, ‘मैं ने बहुत सोचा और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ये मजहबी लोग हमें कहीं भी साथ जीने नहीं देंगे. इन के दिलों में एकदूसरे के लिए इतनी घृणा है कि हमारा प्रेम कम पड़ जाएगा. नोरा, तुम ने सुना होगा, बाबरी मसजिद गिरा दी गई है. चारों तरफ दंगेफसाद, आगजनी, उफ, इतनी जानें जा रही हैं पर इन की खून की प्यास नहीं बुझ रही है. तब सोचा, तुम्हें पाने का एक ही उपाय है, तुम्हारे भाई से तुम्हारा हाथ मांग लूं. आखिर वह मेरा पुराना मित्र है, शायद इनसानियत की कोई किरण उस में शेष हो, पर नहीं.’ अनवर की आंखों से आंसू टपक पडे़.

मेरे मन में हाहाकार मचा हुआ था. एक पहाड़ को टूटते देख रही थी मैं. मैं बोली, पर हमें हारना नहीं है अनवर. जैसे भी जीने दिया जाएगा हम जीएंगे. यह हमारा अधिकार है. तुम ठीक हो जाओ फिर सोचेंगे कि हमें क्या करना है. मैं यहां से वर्किंग वूमन होस्टल चली जाऊंगी…’ बात अधूरी रह गई. उसी समय कुछ लोग वहां आ कर खडे़ हो गए. उन की वेशभूषा ने बता दिया कि वे अनवर के रिश्तेदार हैं. वे लोग मुझे ऐसी नजरों से देख रहे थे कि मैं कट कर रह गई. अनवर ने मुझे चले जाने का संकेत किया. मैं वहां से सीधे बस अड्डे आ गई.

 

महीनों गुजर गए. अनवर का कोई समाचार नहीं मिला. न जाने उन के रिश्तेदार उन्हें कहां ले गए थे. मेरे पास सब्र के सिवा कोई रास्ता न था. एक दिन अचानक उन का खत मिला. मैं ने कांपते हाथों से उसे खोला. लिखा था, ‘नोरा, मुझे माफ करना. मैं तुम्हारा साथ न निभा सका. मुझे सब अपनी शर्तों पर जीने को कहते हैं. मैं कमजोर पड़ गया हूं. तुम सबल हो, समर्थ हो, अपना रास्ता खोज लोगी. मैं तुम से बहुत दूर जा रहा हूं, शायद कभी न लौटने के लिए.’

छनाक की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी तो देखा वह पतली शीशी हाथ से छूट कर टूट गई पर चावल का वह दाना साबुत था और उस पर लिखे अक्षर उसी ताजगी से चमक रहे थे.

शादी के लिए पैंतरेबाजी : दुल्हन के पिताजी की पैंतरेबाजी कैसे धरी रह गयी

लड़की का पिता चहका, ‘‘जनाब, मैं ने सारी उम्र रिश्वत नहीं ली. ऐसा नहीं कि मिली नहीं. मैं चाहता तो ठेकेदार मेरे घर में नोटों के बंडल फेंक जाते कि गिनतेगिनते रात निकल जाए. मगर नहीं ली, बस. सिद्धांत ही ऐसे थे अपने और जो संस्कार मांबाप से मिलते हैं, वे कभी नहीं छूटते.’’ यह कह कर उस ने सब को ऐसे देखा मानो वे लोग उसे अब पद्मश्री पुरस्कार दे ही देंगे. मगर इस बेकार की बात में किसी ने हामी नहीं भरी. लड़के की मां को यह बेकार का खटराग जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था. हर बात में सिद्धांतों का रोड़ा फिट करना कहां की शराफत है भला. लड़की के बाप की बेमतलब की शेखी उसे अच्छी नहीं लगी. वह बोली, ‘‘भाईसाहब, ऐसा कर के आप अपना अगला जन्म सुधार रहे हैं मगर हमें तो इस जन्म की चिंता सताती है. बच्चों के भविष्य की फिक्र है. समाज में एकदूसरे के हिसाब से चलना ही पड़ता है. बच्चे भले हमारे एक या दो हैं मगर एक सिंपल सी शादी में आजकल 50 लाख रुपए का खर्च तो आ ही जाता है. सोना, ब्रैंडेड कपड़े, एसी बैंक्वेट हौल, 2 हजार रुपए प्रति व्यक्ति खाने की प्लेट. कुछ न पूछो. अब तो शादी में लड़के वालों के भी पसीने छूट जाते हैं.’’

लड़की की मां हर बात टालने में माहिर थी. लेनदेन की बात को खुल कर उभरने नहीं दे रही थी. उस का तर्क भी अपनी जगह सही था. मेहनत की कमाई से पेट काटकाट कर उन्होंने अपनी लड़की को डाक्टर बनाया था और अब उस के बराबर का दूल्हा ढूंढ़ने में उन्हें बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था. इस बार फिर उस ने पैंतरा बदला, ‘‘लेनदेन की बातें तो होती रहेंगी, पहले लड़का और लड़की एकदूसरे को पसंद तो कर लें.’’ लड़के का पिता काफी चुस्त और मुंह पर बात करने वाला चालाक लोमड़ था. अपनेआप को कब तक रोके रखता. 2 घंटे हो गए थे लड़की वालों के घर बैठे. लड़के ने सिगनल दे दिया था कि उसे लड़की जंच रही है. अब उस की बोली शुरू की जा सकती है. मगर इन लोगों ने आदर्शों की ढोंगपिटारी खोल ली थी. बेकार में समय बरबाद हो रहा था. कई जगह और भी बात अटकी हुई है. लड़कियां तो सब जगह एकजैसी ही होती हैं. असली चीज है नकदनामा. औफिस में लड़के के बाप ने बिना लिए अपने कुलीग तक का काम नहीं किया था कभी. तभी तो इतनी लंबीचौड़ी जायदाद बना ली. बड़ीबड़ी 3 कारें हैं. और पैसे की भूख फिर भी बढ़ती ही जा रही थी.

लड़के के बाप ने गला खखार कर अपने डाक्टर बेटे की शादी के लिए बोली की रिजर्व प्राइस की घोषणा करने के लिए अपनी आवाज बुलंद की. बेकार की इधरउधर की हजारों बातें हो चुकी थीं. बिना किसी लागलपेट के लड़के का बाप बोला, ‘‘देखिए भाईसाहब, मैं हमेशा साफ बात करने का पक्षधर रहा हूं. हमारे पास सबकुछ है – शोहरत है, इज्जत है, पैसा है. शहर में लोग हमारा नाम जानते हैं. जिस घर से कहें, लड़की के मांबाप न नहीं कहेंगे. अब आप को क्यों पसंद करते हैं हम. दरअसल, आप शरीफ, इज्जतदार और संस्कारी हैं. मेरा लड़का डाक्टर है तो आप की लड़की भी डाक्टर है. सरकारी नौकरी से ये क्या कमा लेंगे. मैं क्लीनिक के लिए जगह ले दूंगा तो भी विदेशों से कीमती मशीनें मंगवाने में 1 करोड़ रुपए से ज्यादा लग ही जाएंगे. वैसे दिल्ली की एक पार्टी तो करोड़ रुपया लगाने के लिए हां कर चुकी है मगर आप का खानदान और संस्कार…’’ लड़की की मां ने आखिरी अस्त्र से वार किया, ‘‘भाईसाहब, हमारी 2 ही लड़कियां हैं. यह 4 करोड़ की कोठी हमारे बाद इन्हें ही तो मिलेगी…’’

लड़के की मां को यह तर्क पसंद नहीं आया. नौ नकद न तेरह उधार. आखिरकार बात सिरे तक न पहुंची. अगले रविवार ये दोनों परिवार एक बार फिर अलगअलग परिवारों के साथ अपनेअपने बच्चों की शादी के लिए पैंतरेबाजी कर रहे थे

मेरे पति की बहन घर आना चाहती है लेकिन मैं नहीं चाहती , ऐसे में मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी ननद के पति यानी ननदोई कुछ दिन हमारे घर आ कर रहना चाहते हैं. मैं नहीं चाहती कि वे हमारे घर में रहें. उन के यहां आते ही मेरी सारी खुशी खत्म हो जाती है. लेकिन मेरे पति यह बात नहीं समझते. उन का कहना है कि हमें रिश्ते निभाने चाहिए और अतिथि का आदर करना चाहिए. मगर अतिथि एक दिन के लिए आए तो अच्छा है न, घर में 15 दिन बसने के लिए आ जाए, यह तो सही नहीं है. उन के आने के एक मिनट बाद से ही मैं अनकंफर्टेबल फील करने लगती हूं, पर पति को कैसे समझाऊं?

जवाब

आप यदि नहीं चाहतीं कि कोई आप के घर में इतने लंबे समय के लिए आए तो अपने पति से साफ शब्दों में कह दीजिए, यह भी बताएं कि आप अनकंफर्टेबल महसूस करती हैं. हो सकता है इस बात से आप पतिपत्नी की आपस में बहस भी हो लेकिन अपनी बात रखना गलत नहीं है. आखिर आप किसी के प्रति खुशी जाहिर तभी कर सकते हैं न जब आप सच में खुश हों. आप अपने पति को समझाइए कि 15 दिन ज्यादा हैं, बात एकदो दिन की हो तो आप एडजस्ट करने के लिए तैयार हैं.

 

ममता, मायावती की सोच भी भतीजावादी, पौलिटिक्स में महिलाएं उत्तराधिकार के मामले में पीछे

भारतीय राजनीति में मायावती जैसी फायरब्रांड नेता हो या कभी सियासी दांवपेच से बंगाल के पूर्व सीएम ज्योतिबसु की सत्ता हिला देनेवाली ममता बनर्जी या फिर सोनिया गांधी, इनके सामने जब बात उत्तराधिकारी चुनने की आई तो सबने पुरुषों को ही चुना. 

शायद यही वजह है कि साल 1996 में एचडी देवगौड़ा की गर्वन्मेंट ने जिस वुमन रिजर्वेशन बिल को संसद में पेश किया था, उसे केंद्रीय कैबिनेट को मंजूरी देने में सालों लग गए,  बिल को 18 सितंबर 2023 को मंजूरी दी गई. इसके पास होने के बाद  संसद में महिलाओं को  33 प्रतिशत का आरक्षण मिलेगा. 

आकाश आनंद और अखिलेश यादव में कोई फर्क नहीं
बहुजन समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मायावती अनौपचारिक रूप से साल 2017 में  भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के नेताओं के साथ यह कहकर मिलाने लगी थीं कि वह लंदन से एमबीए कर चुके हैं और अब पार्टी  की गतिविधियों में शामिल होंगे. साल 2019 में ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने भाई को पार्टी का वाइस प्रेसिडेंट बनाया और भाई के बेटे आकाश आनंद को राष्ट्रीय संयोजक घोषित किया था. कुछ समय पहले मायावती ने अभिषेक को पार्टी संयोजक और उत्तराधिकारी के पद से यह कहकर हटा दिया था कि वे अभी इम्मैच्योर हैं. लेकिन हाल में बसपा की एक बैठक में उन्हें दोबारा उनसे छीने गए पद पर बिठा दिया गया, आनंद ने भी बुआ के पांव छूए और बुआ ने उसके सिर पर हाथ फेरा. ऐसा करके यूपी की राजनीति में दिवंगत सीएम मुलायम सिंह यादव के बाद मायावती ने भी नेपोटिज्म को सलाम ठोक दिया.

ममता दीदी को भी पुरुषों पर भरोसा
ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी साल 2014 में पहली बार डायमंड हार्बर से सांसद बने. ममता के इस उत्तराधिकारी का दमखम तृणमूल कांग्रेस पार्टी के अंदर कुछ इस तरह से बढ़ गया कि साल 2019 में एक के बाद कई नेताओं ने इस पार्टी को टाटाबायबाय कह दिया, तब ममता दीदी ने अहम फैसले अपनी तरफ से लेने शुरू किए. लेकिन अब दोबारा पार्टी पर अभिषेक की पकड़ मजबूत हो गई है, एक समय लालू और मुलायम के परिवारवाद पर कटाक्ष करने वाली ममता अब अपने ही परिवार को आगे करने में लगी हैं. पार्टी के अंदर और बाहर दोनों तरफ के लोगों को यह पता है कि जौइंट फैमिली में पलीबढ़ी ममता के मन में भतीजे अभिषेक के लिए सदा ही सौफ्ट कौर्नर रहा है.
जहां तक अभिषेक को उत्तराधिकारी बनाने की बात है, तो ममता दीदी के 6 भाइयों के परिवार में से कोई भी लड़की सामने नहीं आई, संंभव है कि घर में लड़कियां हो ही नहीं. अगर घर में लड़कियां नहीं भी है, तो पार्टी में से किसी महिला को उत्तराधिकारी तो बनाया ही जा सकता था. ममता बनर्जी ने टीएमसी में नुसरत जहां, मिमी चटर्जी जैसी खूबसूरत एक्ट्रैसेस को शामिल तो कर लिया लेकिन केवल उनकी सुंदरता को वोट बैंक के रूप में कैश करने के लिए. महुआ मोइत्रा को संसद का रास्ता तो दिखाया लेकिन केवल चिल्लाचिल्ला कर बोलने के लिए, बात जब उत्तराधिकारी की आई, तो दीदी ने पार्टी की महिलाओं की तरफ नजर उठा कर भी नहीं देखा, भतीजे को चुनना केवल यह नहीं बताता की वह नेपोटिज्म को बढ़ावा दे रही हैं बल्कि यह भी बताता है कि वह महिलाओं के हाथों में पार्टी की बागडोर नहीं सौंपना चाहती इसका मतलब तो यही निकलता है कि महिलाओं की कार्यक्षमता पर उनको भरोसा नहीं है. 

पुरानी कथा का नया रूपान्तरण
बुआ का प्यार भतीजे के लिए सदियों पुराना है.  होलिका और प्रह्लाद से बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है. पौराणिक कथाओं को ही देखें, तो कृष्ण और रानी कुन्ती भी इसका उदाहरण है शायद पांडवों की तरफ कृष्ण के झुकाव की यही वजह रहेगी होगी. लेकिन इसमें भी दो राय नहीं होनी चाहिए कि बुआ को भतीजे से ही नहीं भतीजियों से भी लाड़ होता है. इसकी वजह है कि वे दोनों एक ही परिवार की अलगअलग पीढ़ी की महिलाएं होती हैं और दोनों की भावनाएं और नियति लगभग समान ही होती है. इसके बावजूद राजनीतिक बुआओं ने किसी भी भतीजी को राजनीति की पकीपकाई थाली नहीं परोसी. चलिए भतीजाभतीजी की बात ही छोड़ दें, लेकिन महिला राजनीतिज्ञ होने के नाते उन्होंने परिवार से बाहर की किसी महिला को तवज्जो क्यों नहीं दी. मायावती और ममता दोनों ने जब राजनीति में जाने की सोची, तो उनका कोई राजनैतिक बैकग्राउंड नहीं था लेकिन दोनों के अटल इरादे और सूझबूझ ने उन्हें पुरुष राजनेताओं के बीच में अलग पहचान दी, ऐसे में महिला होकर भी महिलाओं से मुंह फेर लिया, और तो और आम औरतों की तरह परिवार को ही आगे रखा. इसका मतलब तो यही है कि महिलाएं सोच में परिवार और पुरुष से आगे बढ़ ही नहीं पाती.  उनकी सोच आज भी पुरुषवादी मानसिकता की गुलाम है

 

बेटी की काबलियत पर आज भी प्रश्नचिह्न क्यों
बुआ की बात छोड़ दीजिए, जब नेहरू जी की एकमात्र औलाद मिसेज इंदिरा गांधी थी, ऐसे में उनके उत्तराधिकारी के रूप में इंदिरा को सहर्ष स्वीकार लिया गया लेकिन दशकों बीतने के बाद उसी पार्टी की पहचान बन चुके परिवार के दो लोगों की उत्तराधिकार की बात उठती है, तो प्रियंका गांधी की बजाय राहुल गांधी को आगे बढ़ा दिया जाता है, लड़की हूं लड़ सकती हूं की वकालत करने वाली कांग्रेस पार्टी में भी लड़कियों के लेकर वही पुरानी रूढिवादी सोच काम कर रही है कि जब तक पुरुष घर में है, तो सत्ता पर महिला का हक नहीं हो सकता.

जूलियन असांजे : क्या गारंटी कि अब कोई नई खुराफात नहीं करेंगे

3 जुलाई को जूलियन असांजे अब अपना 53वां जन्मदिन अपने ढंग से मना सकते हैं. 3 दिन पहले ही जब वे साइपन के अदालत से बाहर निकले तो चेहरे पर मुसकराहट थी. कोर्ट के बाहर मौजूद उन के कुछ प्रशंसकों और समर्थकों ने उन का स्वागत तालियां बजा कर किया तो उन्होंने भी हाथ हिला कर अभिवादन स्वीकारते किसी सैलिब्रेटी की तरह प्रतिक्रिया दी.

साइपन उत्तरी अमिरिका द्वीप समूह के तहत आता है जिस का प्रशासनिक नियंत्रण अमेरिका करता है. जूलियन असांजे मामले की सुनवाई की औपचारिकताएं निभा रहे साइपन अदालत के जज रमोना मैग्लोना ने उन्हें सब से पहले जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनाएं दीं. उन्होंने कहा, “मुझे पता है कि अगले सप्ताह आप का जन्मदिन है. मुझे उम्मीद है कि आप अपनी नई जिंदगी सकारात्मक तरीके से शुरू करेंगे.”

जज रमोना मैग्लोना की तरह हर कोई उम्मीद ही कर सकता है कि खुराफाती दिमाग के मालिक जूलियन असांजे अपने परिवार जिसमे बुजुर्ग पिता, पत्नी व दो बच्चे हैं के साथ सुकून की जिंदगी जिएं लेकिन उन का अतीत देखते इस की गारंटी कोई नहीं ले सकता. वह ऐसे वक्त में एक डील के तहत रिहा हो कर अपने देश आस्ट्रेलिया पहुंचे हैं जब अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव की गहमागहमी है, हालांकि इस रिहाई से ऐसा लग नहीं रहा कि दुनिया के सब से ताकतवर देश के मुखिया के चुनाव पर कोई खास फर्क पड़ेगा.

लेकिन एक वक्त में इन्हीं जूलियन असांजे ने अमेरिका में ऐसी उथलपुथल मचा दी थी कि दुनियाभर में तहलका मच गया था. हर किसी की जुबान पर जूलियन असांजे और उन से भी ज्यादा विकीलीक्स का नाम था. आइए संक्षेप में इस दिलचस्प मामले को क्रमवार समझें.

जूलियन असांजे एक पत्रकार और विकीलीक्स नाम की वेबसाइट के संपादक हैं. व्हिसिल ब्लोअर भी उन्हें कहा जा सकता है. उन का असली नाम जूलियन पाल हाकिंस है. आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के कस्बे टाउंसविले में जन्मे जूलियन असांजे की जिंदगी में कभी कुछ भी सामान्य और सहज नहीं रहा. जब वे पैदा भी नहीं हुए थे यानी गर्भ में ही थे तभी उन की मां क्रिस्टीन और पिता जान शिप्टन में तलाक हो गया था. जूलियन के जन्म के एक साल बाद ही क्रिस्टीन ने ब्रेट असांजे से शादी कर ली. ये दोनों मिल कर एक थिऐटर कम्पनी चलाते थे. जूलियन ने होश अपने सौतेले पिता के साए में संभाला और उन्ही के सरनेम असांजे को अपनाया. हालांकि वे पूरे 10 साल के भी नहीं हुए थे कि क्रिस्टीन ने ब्रेट से भी तलाक ले लिया.

अपने कारोबार के सिलसिले में क्रिस्टीन और ब्रेट को अकसर शहरशहर घूमना पड़ता था. इसलिए जूलियन कभी नियमित स्कूल नहीं जा पाए. उन की अधिकतर पढ़ाईलिखाई घर पर ही हुई या फिर पत्राचार पाठ्यक्रमों के जरिए हुई. 15 साल की उम्र तक यह परिवार आस्ट्रेलिया के कोई 30 शहरों में रहा. इस भागादौड़ी में अच्छी बात यह रही कि जूलियन बुरी सोहबत में नहीं पड़े और न ही पढ़ाई में पिछड़े. नहीं तो ऐसे बच्चों के आवारा, नशेड़ी और अपराधी हो जाने की आशंका हमेशा बनी रहती है जो बचपन में ही पेरैंट्स का अलगाव और तलाक देख और भुगत चुके होते हैं.

खासतौर से यह आशंका उस वक्त और बढ़ जाती है जब पिता का संरक्षण न मिले या न के बराबर रहे. फिर यहां तो जूलियन ने अपने जैविक पिता को लम्बे समय तक देखा ही नहीं था. लेकिन उन के बारे में सुन जरुर रखा था. यह स्थिति किसी भी बच्चे या टीनएजर के कदम भटका देने पर्याप्त होती है. शायद ही नहीं तय है कि यह क्रिस्टीन की परवरिश का नतीजा था कि जूलियन भटके नहीं बल्कि और एकाग्र होते गए. इस प्रतिभाशाली लेकिन खुराफाती शख्स की लम्बी कहानी का फिल्मों सरीखा एक दिलचस्प मोड़ यह भी है कि 26 जून को रिहा होने के बाद उन्होंने केनबरा एयरपोर्ट पर पत्नी स्टेला के बाद जिस पिता को भावुक होते गले लगाया वे ब्रेट असांजे नहीं बल्कि जान शिप्टन थे.

यू ही गिरतेपड़ते आपाधापी की जिंदगी जीते 1994 से ले कर 2006 तक जूलियन गणित, प्रोग्रामिंग और फिजिक्स में डिग्रियां हासिल कीं. लेकिन हैरतंगेज तरीके से जूलियन 16 साल की उम्र में ही एक माहिर हैकर बन चुके थे. हैकिंग को उन्होंने नया शब्द मेंडक्स दिया था जिस का अर्थ कुलीन असत्य होता है. 1987 में हैकिंग के आरोप में पुलिस ने उन के घर छापा मारते सारे उपकरण जब्त कर लिए थे. हालांकि तब उन पर कोई आरोप नहीं लगाया गया था. लेकिन पुलिस की यह भूल , लापरवाही या उदारता कुछ भी कह लें ने जूलियन को एक कुख्यात और एक्सपर्ट हैकर बना दिया. इस दौरान उन्होंने कई दफा हैकिंग की लेकिन कुछ इस तरह कीं कि उन पर आरोप साबित नहीं हो सका. इस से उत्साहित हो कर जूलियन ने अपने दो दोस्तों के साथ मिल कर एक हैकिंग ग्रुप बना डाला.

1991 में इस हैकिंग गिरोह ने अमेरिकी सेना द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाले डाटा नेटवर्क मिलेंट को निशाने पर ले डाला. इस के बाद तो उन्हें हैकिंग की लत सी पड़ गई. कई बार वे शक के दायरे में आए लेकिन हैकिंग का आरोप साबित करना कोई आसान काम नहीं होता इसलिए बचते भी रहे. आस्ट्रेलिया की पुलिस उन की इस लत जो दरअसल में उन की प्रतिभा का भी उदाहरण थी से आजिज आ चुकी थी. मीडिया ने भी नौजवान जूलियन के कारनामों को हाथोंहाथ लेना शुरू कर दिया था. अब हर कहीं इस किशोर हैकर की चर्चा होने लगी थी.

आख़िरकार 1994 में जूलियन पर 31 अपराधों के आरोप लगाए गए जिन में से टेलीकौम आस्ट्रेलिया को धोखा देना और टेलीकौम नेटवर्क का धोखाधड़ी में इस्तेमाल करना सहित सूचना को हासिल करना, डेटा मिटाना और उस में फेरबदल करना प्रमुख थे. ये मामले अदालत में गए तो जूलियन इतने डिप्रेशन का शिकार हो गए कि उन्हें मेंटल अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. यहां से छुट्टी होने के बाद वे मेलबर्न के जंगलो में भटकते रहे लेकिन इस से मुकदमे खत्म नहीं हो गए. उन्हें 1996 के आखिर में 290 साल की सैद्धांतिक सजा सुनाई गई. लेकिन बाद में अच्छे चालचलन और 5 हजार आस्ट्रेलियन डौलर का जुर्माना भर देने के कारण उन्हें रिहा भी कर दिया गया.
रिहा होने के बाद वे सुधरे नहीं बल्कि और ज्यादा बिगड़ गए. हिंदी फिल्मों में अकसर दिखाया जाता है कि कम उम्र हीरो सच्चे झूठे आरोप में जेल जाता है और जब बाहर निकलता है तो उस के इरादे और हौसले और बुलंद हो जाते हैं. देखते ही देखते वह बड़ा मुजरिम या गैंग्स्टर बन जाता है. यही जूलियन के साथ हुआ जो हिंसक नहीं बल्कि बौद्धिक और तकनीकी अपराध करने के मास्टर हो चुके थे. कम्प्यत्र प्रोग्रामिंग कोडिंग और हैकिंग भी तब उन्हीं की उम्र की तरह जवान हो रहीं थीं लेकिन जूलियन उम्र और वक्त से बहुत आगे चल रहे थे.

जेल में रहते उन्हें यह तो समझ आ गया था कि किसी भी देश का कानून उन पर रहम नहीं करेगा इसलिए वे बचाव के तरीके ढूंढने लगे थे लेकिन हैकिंग की अपनी लत से समझौता करने का कोई इरादा उन का नहीं था. यहीं से जन्म हुआ हैकिंग के नए तौरतरीकों और विकीलीक्स नाम की वेबसाइट का, जिस के जरिये कई अहम जानकारियां और सूचनाएं एक खास मकसद से लीक की जातीं थीं.

बाहर आ कर जूलियन ने खुद के लिए पैसा, स्थायित्व और समर्थन जुटाना भी शुरू कर दिया. आज भी अधिकतर बुद्धिजीवी और मीडिया यह तय नहीं कर पा रहा है कि जूलियन को विलेन कहा जाए या नहीं. यूरोप सहित एशिया और अफ्रीका के कई देशों की यात्रा जूलियन ने की और व्यवसायिक मीडिया घरानों से नजदीकियां बढ़ाई. इन दिनों वे अपना एक नया फलसफा विकसित यह कहते कर रहे थे कि दरअसल में वितीय संस्थाओं के अंदर जो घालमेल होता है उसे सार्वजनिक करना कोई गुनाह नहीं होना या माना जाना चाहिए. यही बात तमाम सरकारी दफ्तरों पर भी लागू होती है जिसे आसान शब्दों में कहें तो जूलियन ट्रांसपेरेंसी की हिमायत कर रहे थे.

दिसम्बर 2006 में उन्होंने विकीलीक्स से अपना पहला पोस्ट लीक किया था जिस में उन्होंने यह समझाने की कोशिश की थी –

– कोई संगठन जितना अधिक गुप्त या अन्यायपूर्ण होता है उतना ही अधिक लोक नेतृत्व और नियोजन मंडली में भय और व्यामोह पैदा करता है. इस का परिणाम कुशल आंतरिक संचार तंत्रों में कमी (संज्ञानात्मक गोपनीयता कर में वृद्धि) और परिणामस्वरूप सिस्टम व्यापी संज्ञानात्मक गिरावट के रूप में सामने आता है. जिस के परिणामस्वरूप पर्यावरण अनुकूलन की मांग के अनुसार सत्ता पर पकड़ बनाए रखने की क्षमता में कमी आती है.

सैद्धांतिक रूप से जूलियन गलत नहीं कह रहे थे लेकिन उन की यह फिलौसफी कहीं न कहीं त्रुटिपूर्ण तो थी जो एकदम किसी की समझ नहीं आई थी. सहमत लोगों की संख्या बढ़ी तो उत्साहित जूलियन असांजे ने विकीलीक्स से एक के बाद एक लीक धमाके शुरू कर दिए.

विकीलीक्स से पहला चर्चित लीक नवम्बर 2007 में किया गया था जो ग्वांतानामो बे जेल से जुड़े गोपनीय दस्तावेजों का था. इन दस्तावेजों से यह उजागर हुआ था कि बगैर पुख्ता सबूतों के कई लोगों को सालों से जेल में बंद रखा गया था और समाज के लिए बेहद खतरनाक अपराधियों को आसानी से रिहा किया गया था.

इस के पहले जुलाई 2007 में विकीलीक्स से ही बगदाद हवाई हमले की फुटेज जारी की गई थीं. इन वीडियोज में साफतौर दिख रहा था कि किस तरह अमेरिकी सैनिक इराक के पत्रकारों को निशाना बना रहे हैं. इस वीडियो को दुनिया भर में कोलेटरल मर्डर वीडियो के नाम से जाना गया था.

अमेरिका पर 9/11 के आतंकी हमलों से ताल्लुक रखते कोई 5 लाख मैसेज विकीलीक्स ने 24 घंटो के अंदर आम कर दिए थे जिस से भयंकर तहलका मचा था क्योंकि इन में से अधिकतर मैसेज अमेरिकी रक्षा मंत्रालय, एफबीआई और न्यूयौर्क पुलिस के अफसरों से जुड़े हुए थे.

विकीलीक्स का सब से चर्चित खुलासा जिस से तहलका मचा था वह साल 2010 के युद्ध का था जब अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की थी. इस कार्रवाई से जुड़े लाखों दस्तावेज आम हो गए थे. इन में सरकार की ख़ुफ़िया जानकारियां थीं. जिन से पता चलता था कि अमेरिकी सेना ने युद्ध के दौरान कई घटनाओं में सैकड़ों नागरिकों को जान से मार डाला था. इस लीक में प्रमुखता से अमेरिका सेना की ख़ुफ़िया विश्लेषक चेल्सी मैनिंग का नाम आया था लेकिन असली हाहाकार एक उस वीडियो के वायरल होने के बाद मचा था जिस पर अमेरिका की दुनिया भर में छीछलेदार हुई थी. इस वीडियो में इराक की राजधानी बगदाद में नागरिकों को मारा जाता हुआ दिखाया गया था. फसाद और विवाद की बड़ी वजह इस वीडियो को अमेरिकी सैन्य हेलीकाप्टर से बनाया जाना था.

लीक स्टोरीज यहीं खत्म नहीं होतीं क्योंकि जूलियन असांजे के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुके थे और अमेरिका उन पर खार खाए बैठा था. साल 2010 में उन्हें स्वीडिश पुलिस ने हिरासत में ले लिया क्योंकि उन पर एक महिला के साथ दुष्कर्म किए जाने का आरोप भी था. इस गिरफ्तारी को जूलियन ने विकीलीक्स खुलासों अमेरिकी साजिश बताया था. क्योंकि गिरफ्तारी के तुरंत बाद उन के प्रत्यर्पण की मांग भी जोर पकड़ने लगी थी. इस स्थिति से बचने के लिए उन्होंने लंदन स्थित इक्वाडोर के दूतावास में शरण ले ली. यहां जूलियन ने 7 साल गुजारे इस दौरान कई हस्तियां उन से मिलने आती रहीं. इन में मशहूर सिंगर लेडी गागा और ऐक्ट्रैस पामेला एंडरसन के भी नाम शामिल हैं.

इसके बाद इक्वाडोर के राष्ट्रपति ने उन्हें दूतावास छोड़ने का फरमान जारी किया तो तुरंत ही ब्रिटेन की पुलिस के हाथों गिरफ्तार कर लिए गए. 5 साल जेल में रहने के बाद जूलियन को राहत मिली क्योंकि 2019 में स्वीडिश अधिकारीयों ने उन के खिलाफ मामला यह कहते वापस ले लिया कि उन के द्वारा किए कथित अपराध को काफी वक्त बीत चुका है.

इस दौरान प्रत्यर्पण से बचने जूलियन ने लम्बी कानूनी लड़ाई कोई फैसला इस पर हो पाता इस से पहले ही अमेरिकी जस्टिस विभाग से उन की कानून के तहत यह डील हो गई कि अगर वे अपना अपराध स्वीकार लें तो उन्हें सजा नहीं होगी क्योंकि 5 साल की सजा वे भुगत चुके हैं. इस मामले में उन्हें राष्ट्रपति जो बाइडेन की सहानुभूति मिली. जूलियन का यह डर वाजिब था कि अगर अमेरिका गए तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है क्योंकि वे वहां जासूसी के आरोप में मोस्ट वांटेड अपराधी थे.
डील के तहत तय हुआ कि सुनवाई साइपन की अदालत में होगी जो कि आस्ट्रेलिया के नजदीक है. वादे और समझौते के कानून के मुताबिक जज रमोना मैग्लोना ने उन्हें रिहा कर दिया.

अब जूलियन असांजे घर पहुंच गए हैं तो उन्हें लाखों लोग बधाई दे रहे हैं. हवाई अड्डे पर पत्नी स्टेला असांजे से वे गले मिले तो एक लव स्टोरी भी जीवंत हो गई कि उन्होंने जेल में ही शादी की थी और पेशे से वकील स्टेला उन का मुकदमा लड़तेलड़ते विकीलीक्स की कानूनी टीम का हिस्सा बन गईं थीं.

लेकिन खुद एक कहानी बन चुके जूलियन असांजे की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है. वे अब चुपचाप बैठ जाएंगे ऐसा सोचने की भी कोई वजह नहीं क्योंकि खुराफात उन के दिमाग में है और उस पर तकनीकी ज्ञान का एक ऐसा कवर चढ़ा है जिसे वही भेद सकते हैं, यह ज्ञान एक दुधारी तलवार है जिस का सही इस्तेमाल अगर आस्ट्रेलिया सरकार करें तो एक बेहतरीन और प्रतिभावान पत्रकार उभर कर सामने आएगा जिस की सोच में कोई खास खोट नहीं, खोट उस के करने के तरीके में है.

नेता प्रतिपक्ष के पद पर राहुल गांधी दिखाएंगे अपनी ताकत

हाथ में संविधान की कौपी ले कर लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेने वाले राहुल गांधी देश की 18वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं. अपने 20 साल के राजनीतिक सफर में राहुल गांधी पहली बार किसी संवैधानिक पद पर आसीन हुए हैं. बीते दस सालों में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा अपने लिए अपशब्दों के खूब थपेड़े झेले. प्रधानमंत्री मोदी सहित तमाम भाजपा नेताओं ने खुले मंच से, सोशल मीडिया और टीवी चैनलों की डिबेट में उनका खूब मजाक उड़ाया. लेकिन 18वीं लोकसभा में प्रधानमंत्री ने जब सदन का अभिवादन किया तो उन्होंने राहुल गांधी की तरफ भी हाथ जोड़ कर ना सिर्फ ‘नमस्ते राहुल जी’ कह कर उन का अभिवादन किया, बल्कि स्पीकर ओम बिरला से मिलते वक़्त बाकायदा राहुल गांधी से हाथ मिलाया.

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया है. ये वही राहुल गांधी हैं जिन्हें अब तक भाजपा पप्पू, कांग्रेस के शहजादे और न जाने किन किन उपनामों से नवाजती रही है. आज जब उसी पप्पू को प्रधानमंत्री नमस्कार कर रहे हैं तो लोकतंत्र की इस ताकत और ख़ूबसूरती को देख कर लोगों के होंठों पर मुस्कान दौड़ जाती है. सदन के भीतर पूरे दस सालों बाद विपक्ष को राहुल गांधी के रूप में अपना ताकतवर और आक्रामक सेनापति मिला है, जिस के नेतृत्व में सदन के अंदर विपक्ष की सहमतिअसहमति पर सत्ता पक्ष को पूरा संज्ञान लेना होगा.

नेता प्रतिपक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद राहुल गांधी ने अपनी कठोर मेहनत से पाया है. इस से पहले उन की मां सोनिया गांधी भी अक्टूबर 1999 से फरवरी 2004 तक नेता प्रतिपक्ष रह चुकी हैं. लेकिन उन को तब वह स्थान एक पकी पकाई खीर के रूप में मिला था, जबकि राहुल को यह पद जमीनी संघर्ष और जनता से जुड़ाव के नतीजे के तौर पर हासिल हुआ है.

उन के पिता स्व. राजीव गांधी भी नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं. राजीव गांधी 18 दिसंबर 1989 से 24 दिसंबर 1990 तक नेता विपक्ष थे. राहुल गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं जो इस पद को सुशोभित करेंगे. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से काफी पहले से ही राहुल काफी सक्रिय हो गए थे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा, भारत जोड़ो न्याय यात्रा और चुनाव प्रचार के दौरान संविधान बचाओ अभियान के साथ पार्टी को एक नेतृत्व दिया. इस बीच कई पुराने धुरंधर जैसे गुलाम नबी आजाद सरीखे कांग्रेसी नेता बगावती सुर दिखाते हुए अलग भी हो गए, जिन्हें मनाने या वापस लाने की कोशिश नहीं की गई.

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने देश भर में घूमघूम कर दरिद्र और लाचार महिलाओं, अशिक्षित, कुपोषित और धूल में लोटते बच्चों, हाथ जोड़ कर रोजगार की भीख मांगते युवाओं और सस्ती दवाओं की आस में बीमारी से जूझते बुजुर्गों के भारत को बहुत नजदीक से देखा, समझा और जज़्ब किया. इस असली भारत को देखने की जहमत कभी प्रधानमंत्री या उन के नेताओं ने बीते 10 सालों में नहीं उठाई. बकौल प्रधानमंत्री भारत तो विश्वगुरु बनने की राह पर है.

भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी से सचमुच लोग जुड़े और खुद राहुल ने देश के मिजाज को समझा. लोगों की जरूरतों और उम्मीदों को जानने के बाद उन में एक परिपक्वता भी आई है. उन्हें समझ में आ चुका है कि देश की गरीब जनता को उस का हक़ दिलाने के लिए सत्ता से किस किस तरह मोर्चा लेना होगा. अब लोकसभा के भीतर राहुल की सक्रियता बढ़ेगी और वे महत्वपूर्ण विषयों पर उसी तेवर के साथ बोलते दिखाई देंगे, जैसे पिछले दिनों चुनाव प्रचार के दौरान उन के तेवर नजर आते रहे हैं. राहुल का यह बदला रूप निश्चित रूप में सत्ता पक्ष के लिए परेशानी भी पैदा करेगा और उन की मनमानियों पर भी रोक लगाएगा.

नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी सरकार के आर्थिक फैसलों की लगातार समीक्षा और सरकार के फैसलों पर कड़ी टिपण्णी भी करेंगे. Leaders Of Opposition In Parliament Act 1977 के अनुसार नेता प्रतिपक्ष के अधिकार और सुविधाएं ठीक वैसी ही होती हैं, जो एक कैबिनेट मंत्री की होती हैं. नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल को पद भी मिला है और उन का कद भी बढ़ गया है. लिहाजा अब राहुल गांधी को कैबिनेट मंत्री की तरह सरकारी सचिवालय में एक दफ्तर मिलेगा. कैबिनेट मंत्री की रैंक के अनुसार उच्च स्तर की सुरक्षा मिलेगी और मासिक वेतन और दूसरे भत्तों के लिए 3 लाख 30 हज़ार रुपये मिलेंगे, जो एक सांसद के वेतन से कहीं ज्यादा है. एक सांसद को वेतन और दूसरे भत्ते मिला कर हर महीने लगभग सवा दो लाख रुपये मिलते हैं. राहुल गांधी को एक ऐसा सरकारी बंगला मिलेगा, जो कैबिनेट मंत्रियों को मिलता है और उन्हें मुफ्त हवाई यात्रा, रेल यात्रा, सरकारी गाड़ी और दूसरी सुविधाएं भी मिलेंगी.

राहुल गांधी के पास क्या शक्तियां होंगी?

नेता प्रतिपक्ष कई जरूरी नियुक्तियों में प्रधानमंत्री के साथ बैठता है. मतलब कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी एक टेबल पर आमनेसामने होंगे और साथ मिलकर कई फैसले लेंगे. दोनों की राय से ही कई फैसले लिए जाएंगे.

चुनाव आयुक्त, केन्द्रीय सतर्कता आयोग के अध्यक्ष, मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जैसे पदों पर अधिकारियों का चयन एक पैनल के जरिए किया जाता है, जिस में प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष शामिल रहते हैं. अब तक राहुल गांधी कभी भी मोदी के साथ किसी पैनल में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन अब विपक्ष के नेता के रूप में उनकी सहमति आवश्यक होगी.

राहुल गांधी भारत सरकार के खर्चों की जांच करने वाली लोक लेखा समिति के अध्यक्ष होंगे. राहुल सरकार के कामकाज की लगातार समीक्षा करेंगे. वह ये जानने की कोशिश करेंगे कि सरकार कहां पर कितना पैसा खर्च कर रही है.

राहुल गांधी दूसरे देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण देने के लिए भारत बुला सकते हैं. अगर वह किसी मुद्दे पर विदेशी मेहमानों से चर्चा करना चाहें तो वह ऐसा कर पाएंगे.

नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के प्रमुखों के चयन में भी अहम भूमिका निभाने वाले हैं. वह पिछले 10 साल से इन एजेंसियों पर काफी आरोप लगाते आए हैं और इन एजेंसियों ने उनके जीजा रौबर्ट वाड्रा को परेशान करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी, जिसका असर प्रियंका गांधी पर उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान काफी पड़ा.

राहुल का नेता प्रतिपक्ष बनना बेहद खास है क्योंकि वह जब से चुनावी राजनीति में आए कोई पद लेने से बचते रहे हैं. यहां तक कि पार्टी प्रमुख के पद से भी उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. 2004 से 2014 तक देश में कांग्रेस की सत्ता रही लेकिन उस समय भी राहुल ने कोई मंत्री पद नहीं लिया. उन पर कैबिनेट पद के लिए दबाव भी था, लेकिन फिर भी उन्होंने मना कर दिया था. 2014 में कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई तो नेता प्रतिपक्ष बनाने लायक सीटें हासिल नहीं कर पाई थी. शायद राहुल को लगता था कि अभी उन्होंने देश को पूरी तरह जाना नहीं है. देश को समझने के लिए ही उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की. भाजपा ने उनका खूब मजाक उड़ाया. कहा अभी तक इटली घूमते थे अब देश में थोड़ा घूमफिर लेने दो. भाजपा को अंदाजा ही नहीं था कि इस यात्रा में देश की जनता से उनका किसकदर आत्मीय सम्बन्ध बन जाएगा. भाजपा की आँखें तो तब खुली जब उसने राहुल की यात्राओं में उमड़ता हुआ जनसैलाब देखा. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

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