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Emotional Drama : पाक बीबी नयनतारा

Emotional Drama : जव्वाद शाह के खानदान में किसी लड़की का निकाह बिरादरी से बाहर करने की सख्त मनाही थी. इस की कई वजहें थीं लेकिन मूल यह थी कि इसे वे अपनी शान के खिलाफ मानते थे. नयनतारा इसे अच्छे से भुगत चुकी थी. अब बारी गेतीआरा की थी. क्या नयनतारा की तरह ही गेतीआरा की इच्छाओं की बलि चढ़ा दी गई? जागीरदार जव्वाद शाह की हवेली में आज खूब चहलपहल थी. करीबी रिश्तेदर, दोस्त सभी जमा थे. उन का बेटा फव्वाद शाह पढ़ने के लिए इंग्लैंड जा रहा था. शानदार दावत रखी थी. जव्वाद शाह सिंध के पुश्तैनी रईस थे, कई एकड़ जमीनों के मालिक और समद शाह के इकलौते बेटे. उन की 2 बहनें थीं.

बड़ी बहन की शादी मामू के बेटे से कर दी गई थी और उसे उस का शरई हिस्सा दे दिया गया था. छोटी बहन नयनतारा उन्हीं के साथ रहती थी. बाकी की सारी जायदाद जव्वाद शाह के नाम थी. बड़ी बहन मामू के यहां इसलिए ब्याही गई थी कि जमीन खानदान में ही जाएगी. जागीरदार लोग जमीनजायदाद, खानदान से बाहर जाना कतई पसंद नहीं करते. इस के लिए खूनखराबा तक हो जाता है.

जव्वाद शाह के 3 बच्चे थे. 2 बेटियां गेतीआरा और गुलआरा और बेटा फव्वाद शाह जिस ने इस साल ग्रेजुएशन किया था और कानून पढ़ने के लिए लंदन जा रहा था. दोनों बड़ी बहनें कीमती कपड़े पहने बड़ी हसीन लग रही थीं.

घर में खूब रौनक लगी थी. मुंशी करीम अली ने सारा कामकाज संभाल रखा था. फंक्शन का इंतजाम उन के बेटे अजमत अली ने संभाल रखा था, जोकि एमबीबीएस कर के कसबे के अस्पताल में ही डाक्टर था. जव्वाद शाह के घर के बहुत से बाहरी काम उस के जिम्मे लगे हुए थे.

आज सवेरे से ही वह हवेली में था और बड़ी मीठीमीठी नजरों से गेतीआरा को देख रहा था. सामने हुस्न था, दिल में सच्ची मोहब्बत के जज्बात थे, जो आंखों से बयान हो रहे थे. गेतीआरा का चेहरा शर्म से गुलनार हुआ जा रहा था. परदा, अदब, रुतबा और अदब की दीवारें इतनी ऊंची थीं कि गेतीआरा की उसे निगाह उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. अजमत दूरदूर से ही हुस्न का नजारा कर रहा था.

छोटी बहन गुलआरा भाई के आसपास मंडरा रही थी. उस ने भाई के कान में कुछ कहा और फव्वाद उठ कर उस का हाथ थामे हवेली से जुड़े हुए हिस्से की तरफ चला गया. यह पोर्शन हवेली में ही था पर अलगथलग बना था. बड़ा सा बरामदा, शानदार ड्राइंगरूम उस के बाद नयनतारा का कमरा था. जोकि कीमती फर्नीचर से सजा हुआ था. बड़े से पलंग पर सफेद कपड़ों में नयनतारा बैठी हुई तस्बीह पढ़ रही थी.

‘फूफीबीबी सलाम’ कह कर दोनों भाईबहन फूफी के गले लग गए. नयनतारा ने बहुत प्यार से दोनों की पेशानी चूमी और उन से बातें करने लगी. पूरा कमरा सफेद चादरों और सफेद परदों से ढका हुआ था. माहौल में हलकी सी लोबान की खुशबू फैली हुई थी. कहीं से भी खुली हवा, खुला आसमान और चमकते सूरज का गुजर न था. ठंडा पुरसुकून कमरा.

नयनतारा सफेद कपड़े ही पहनती थी. पेशानी तक सिर ढका रहता था. हाथों में हीरों की चूडि़यां, कानों में हीरों के टौप्स, निगाहें नीचे ?ाकी हुईं, धीमी आवाज में बातें करती किसी संगमरमर के बुत की तरह मालूम होती थी. उस का सब मर्दों से परदा रहता था. कभीकभार भाई जव्वाद शाह इतिला कर के बहन से मिलने आते थे. भतीजा फव्वाद अकसर ही उस के पास आता रहता था. उस के अलावा किसी गैरमर्द की परछाईं पड़ना भी गुनाह था. एक उस की खास नौकरानी रशीदा थी. वही हवेली से उन का खाना वगैरह ले कर आती थी और उन की खिदमत करती थी.

नयनतारा जव्वाद शाह की छोटी बहन थी. जब वह जवान हुई तो उस की खूबसूरती के चर्चे दूरदूर तक फैल गए. गुलाबी रंग, बड़ीबड़ी शरबती आंखें, कमर तक लहराती काली जुल्फें. जो एक नजर डाले, देखता ही रह जाए. हुस्न के साथ दौलत, रुतबा, खानदान और इज्जत- किसी चीज की कमी न थी. एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे थे पर जव्वाद शाह के वालिद समद शाह ने हर रिश्ते को बेरुखी से इनकार कर दिया और अच्छी तरह से सब को सम?ा दिया.

‘‘हमारे खानदान में बिरादरी से बाहर लड़की देने का रिवाज नहीं है. हमारे सैयदों के खून में मिलावट आ जाएगी. हम अपने ही रिश्तेदारों में बेटी दे सकते हैं, बाहर नहीं देते. भाई या बहन या कजिन की आलौद को लड़की दे सकते हैं. हम खानदान के बाहर लड़की दे कर अपनी नस्ल खराब नहीं कर सकते.’’ बदनसीबी से उन के भाई या बहन के यहां नयनतारा के जोड़ का कोई लड़का न था.

जव्वाद शाह के दोस्त कर्नल हमीद के बेटे निसार लंदन से बैरिस्टर का कोर्स कर के वापस आए. जव्वाद शाह ने उन की शानदार दावत का इंतजाम किया. निसार ऊंचे पूरे खूबसूरत मर्द थे. इल्म व सम?ादारी की दौलत से मालामाल. दावत में उन की मुलाकात नयनतारा से हुई. दोनों में बातचीत भी हुई. बैरिस्टर निसार एक नजर में ही नयनतारा पर आशिक हो गए और एक फैसला कर लिया कि शादी करेंगे तो नयनआरा से ही करेंगे वरना सारी उम्र कुंआरे रहेंगे.

दिल की मांगें भी अजीब ही होती हैं. अंदाज भी निराले हैं उस के. जो वह चाहता है उसे पाना जिंदगी का मकसद बन जाता है. उन्होंने अपनी मरजी कर्नल हमीद को बताई. कर्नल हमीद बेहद खुश हुए. वे भी खानदानी व अमीर लोग थे. कर्नल हमीद अपने बेटे का रिश्ता ले कर जव्वाद शाह के यहां गए और बहुत चाहत से उन की बहन नयनतारा का हाथ मांगा.

जव्वाद शाह ने उन की अच्छी खातिर की पर नयनतारा का रिश्ता देने से साफ इनकार कर दिया, कहा कि हमारे यहां खानदान से बाहर लड़की देने का रिवाज नहीं है. कर्नल साहब ने बड़ी मिन्नतें कीं पर जव्वाद शाह टस से मस न हुए. वे लोग मायूस और नाकाम लौट आए.

नयनतारा को भी बैरिस्टर निसार बहुत पसंद आए थे. पढ़ालिखा, चाहने वाला हमसफर हर किसी की ख्वाहिश हो सकती है. उस के दिल में भी मोहब्बत के जज्बात उभर आए. लगातार 3-4 महीने तक कर्नल हमीद चक्कर लगाते रहे. तरहतरह की दलीलें दीं पर जव्वाद शाह ने रस्मोरिवाज, रिवायतों की दुहाई दे कर अपने इनकार को नहीं बदला.

यह सब देखसुन कर नयनतारा ने अम्माजी से कहा, ‘अम्माजी, रिश्ता अच्छा है, निसार पढ़ालिखा व सुल?ा हुआ इंसान है, खानदान भी अच्छा है. फिर अब्बा और भाई इस रिश्ते का विरोध क्यों कर रहे हैं? आप उन्हें बता दीजिए कि यह रिश्ता मु?ो मंजूर है, इसलिए निसार का रिश्ता कुबूल कर लें.’

मासूम नयनतारा यह नहीं जानती कि इस रिवायत, खानदान और रुतबे के पीछे जायदाद का मसला था. समद शाह और जव्वाद शाह नहीं चाहते थे कि उन की जमीनजायदाद खानदान से बाहर जाए, क्योंकि इसलाम में बहन का शरई हक हिस्से के रूप में देना जरूरी है और शरई हक में अच्छीखासी जमीन नयनतारा को देनी पड़ती, जो खानदान से बाहर चली जाती और एक खयाल यह भी था कि सैयद खून में मिलावट आ जाएगी. इसलिए खानदान में शादी करने का रिवाज एक रिवायत बन गया जिसे इन जमीनजायदाद वालों ने बड़ी मजबूती से पकड़ लिया और इस के लिए अपने पीरों को खुश कर के एक गैरइंसानी तरीका ढूंढ़ निकाला.

इस तरीके के पीछे जागीरदारों की जमीन की हवस और खुदगर्जी शामिल थी. आखिर में हमीद साहब ने अपने एक मिनिस्टर दोस्त के जरिए जव्वाद शाह पर दबाव डलवाया. इस का भी कुछ असर न हुआ. इस बार बेइज्जत कर के इनकार कर दिया गया. अब की बार नयनतारा ने भी निसार के हक में आवाज उठाई तो जव्वाद शाह को लगा, खतरा सिर पर मंडरा रहा है. नयनतारा के दिल में भी मोहब्बत की आग भड़क उठी है. समद शाह और जव्वाद शाह गुस्से से भड़क उठे. लगा, कहीं नयनतारा बगावत न कर बैठे, उसे निसार का साथ हासिल है.

सब प्लानिंग में लग गए. उन के पीरसाहब भी आए. 4 दिनों बाद जव्वाद शाह ने खानदानभर में ऐलान कर दिया कि नयनतारा का रिश्ता तय हो गया. अगले जुम्मे को उस का निकाह है. सारे लोग ताज्जुब में पड़ गए कि इतनी जल्दी लड़का भी मिल गया और शादी भी तय कर दी.

सभी जानने की कोशिश में लगे थे कि आखिर कहां शादी हो रही थी. नयनतारा की शादी को सुन कर निसार के दिल पर खंजर चल गए. करीबी रिश्तेदारों को असलियत पता थी. जुम्मे की शाम को पूरा खानदान व मेहमान जमा हो गए. निसार भी दिल पर पत्थर रख कर शादी में पहुंचे. वहां बाकायदा नयनतारा का निकाह कुरान शरीफ से कर दिया गया. अब नयनतारा पाक बीबी थी, उस को हवेली के एक अलग पोर्शन में परदे में बिठा दिया गया. अब उस की शादी किसी और से नहीं हो सकती थी, कोई गैरमर्द उस से नहीं मिल सकता था.

वह अब ‘पाक बीबी’ बन कर जिंदगी गुजारेगी. दुनिया व दुनियादारी से उस का कोई ताल्लुक न होगा. जब उस की शादी कुरान शरीफ से की गई, वह सिर्फ  19 साल की थी. वह बहुत रोई थी, गिड़गिड़ाई थी कि उस की शादी कुरान शरीफ से न की जाए.

उस ने इनकार की धमकी भी दी पर बाप और भाई ने खुद को गोली मार कर मर जाने की धमकी दी. बेटी मांबाप की मोहब्बत के आगे मजबूर हो जाती है. लाख पढ़ीलिखी सही, पर बाप की इल्तजा और बेबसी ठुकरा न सकी और कुरान शरीफ से शादी करने पर राजी हो गई. इस तरह खानदान, इज्जत व रुतबे की दुहाई दे कर एक मासूम लड़की को तिलतिल मरने के लिए छोड़ दिया गया.

पीरसाहब ने भी उसे खुदा की राह में खुद को कुरबान करने की नसीहत दी? नयनतारा की शादी कुरान शरीफ से हो ही गई. आज इस बात को 10 साल गुजर चुके थे. वह 10 साल से तनहाई का अजाब काट रही है. सारे जवान जज्बात, रेशमी ख्वाब और पुरशबाब हुस्न पाक बीबी के नाम पर दफन कर दिए गए.

उस के पास कसबे की औरतें अपने दुखदर्द व मसले ले कर आती हैं. वह उन्हें सलाह देती है, बीवी होने के फर्ज सही तरीके से निबाहने की नसीहत देती है. वह, जिस की शादी मर्द से नहीं हुई, जिसे शादीशुदा जिंदगी का कोई तजरबा नहीं है, शादीशुदा महिलाओं को खुशहाल शादीशुदा जिंदगी जीने का फलसफा सम?ाती है, यह कैसा मजाक है?

नयनतारा की कुरान से शादी के एक साल बाद ही समद शाह पर फालिज का असर हो गया. 3 साल बिस्तर पर टांगें रगड़ते रहे. नयनतारा का नाम सुनते ही रोने लगते. अब शायद अपने किए पर पछता रहे थे. पर अब तो जबान भी बंद हो चुकी थी. मरने से पहले बेटी से मिलने ले जाया गया, हाथ जोड़ कर बस, आंसू बहाते रहे और फिर खत्म हो गए, कुछ कह न सके.

गुलआरा और फव्वाद को फूफी से बड़ी मोहब्बत थी. अकसर उन के पास आते और उन्हें देख कर बेचैन हो जाते. वे लोग भी सड़ीगली रिवायतों व दस्तूर के आगे मजबूर थे. फव्वाद शाह के लंदन जाने के बाद हवेली में सन्नाटा खिंच गया. गुलआरा मैट्रिक का एग्जाम दे रही थी और गेतीआरा प्राइवेट बीए कर रही थी. यह अच्छा था कि जव्वाद शाह ने लड़कियों को तालीम से नहीं रोका.

वक्त अपनी रफ्तार से गुजर रहा था कि जव्वाद शाह को सीवियर हार्टअटैक हुआ. मजबूरी में डा. अजमत का हवेली में रोज का आनाजाना हो गया और यह मजबूरी 2 तड़पते दिलों के लिए खुशगवार हवा का ?ांका साबित हुई. अजमत और गेतीआरा की रोज ही मुलाकात हो जाती, कभीकभी बात करने का मौका भी मिल जाता. जव्वाद शाह को कंपलीट आराम की सलाह दी गई थी.

मुंशी करीम अली ने जमीनजायदाद के साथसाथ घर के कामकाज भी संभाल लिए थे. इलाज व दवा लाने की पूरी जिम्मेदारी अजमत अली पर थी. मजबूरी का पौधा जितना तेजी से बढ़ रहा था, मुहब्बत के फूल उतने ही ?ाम कर निकल रहे थे.

जव्वाद शाह को मौत की आहट सुनाई दे रही थी. वे बड़ी बेचैनी से फव्वाद शाह का इंतजार कर रहे थे. उन्हें गेतीआरा की फिक्र सता रही थी. कुछकुछ अंदाज उन्हें भी हो रहा था कि अजमत का बारबार आना, पूरी तवज्जुह से उन का इलाज करना, हर खिदमत के लिए तैयार रहना कहीं कोई गुल न खिला दे. उन्हें बेटे के आने के बाद पहला काम गेतीआरा की शादी करना था. फव्वाद एक साल बाद कानून की डिग्री ले कर लौट आया. उन्होंने फौरन मुंशी करीम अली से जमीन के सारे काम ले कर बेटे को सौंप दिए कि बारबार मुंशीजी को हवेली में आना न पड़े.

फव्वाद नई नस्ल का पढ़ालिखा नौजवान था. उस ने सारे जायदाद के काम मुंशीजी को वापस सौंप दिए, जो सुधार उसे जरूरी लगे उस ने उसे करना शुरू कर दिया. जो गरीब किसानों की घर व जमीनें थोड़ीथोड़ी रकम के एवज में जव्वाद शाह के पास गिरवी रखी थीं, वह सारा कर्ज माफ कर के उस ने गरीबों की जमीनें उन्हें लौटा दीं. कसबे में अपनी जमीन पर एक अच्छे अस्पताल की बुनियाद रखी. लड़कियों का हाईस्कूल खोलने की मुहिम शुरू कर दी. लाखों रुपया जो तिजोरी में सड़गल रहा था उस का सदुपयोग शुरू कर दिया.

मुंशी करीम अली पूरी तरह फव्वाद के साथ थे. नई नस्ल के नौजवान अच्छे कामों में उस का पूरा सहयोग कर रहे थे. जव्वाद शाह काफी कमजोर हो गए थे. इस लायक नहीं थे कि जायदाद या हिसाबकिताब देखते. सारा कुछ फव्वाद शाह के हाथ में था. उस का इरादा कसबे में नई रोशनी लाने का था. पैसे, दिमाग व तकनीक की कमी न थी. नई पीढ़ी साथ थी ही.

 

ADANI, Adani और अडानी

ADANI: हम भारतवासी ही नहीं, दुनिया के बहुत से देशों के लोग खुलेआम विश्वास करते हैं कि ‘समर्थ को दोष नहीं गुसाईं’. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परम मित्र व भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी पर भारतीय नेताओं, अफसरों, मंत्रियों को 2,000 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का अमेरिका की जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया है तो यह न सम  झें कि गौतम अडानी (Gautam Adani) या उन के परिवार या अफसरों का कुछ बिगड़ेगा. बस, वकीलों पर कुछ सौ करोड़ रुपए खर्च जरूर होंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. मालूम हो कि यह आरोप अमेरिका में मौजूद अडानी की एक कंपनी पर अमेरिकी जांच एजेंसियों ने लगाया है.

 

इस खुलासे के बाद एक रोज तो स्टौक मार्केट में अडानी के शेयर गिरे पर दूसरे दिन संभल गए जो साफ करता है कि आम अमीर को अडानी के गोरखधंधों से कोई परेशानी नहीं है और उसे पूरा, पक्का, दृढ़, हिमालय जैसा विश्वास है कि एकदो लैंडस्लाइडों का मतलब यह नहीं है कि जो ‘अडानी हिमालय’ भारत के आधिकारिक शक्तिशाली नेता नरेंद्र मोदी की ठोस जमीन पर खड़ा है, वह कहीं जाने वाला नहीं है.

 

नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी का साथ पुराना है. वैसे, हर नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री किसी न किसी उद्योगपति को पाले रखता है और न महात्मा गांधी, न जवाहरलाल नेहरू, न सरदार वल्लभभाई पटेल, न इंदिरा गांधी या बीसियों मुख्यमंत्री और सैकड़ों सांसद इस से परे हैं और न आने वाले होंगे.

 

नेताओं को उद्योगपति तो पालने ही होते हैं क्योंकि नेतागीरी मुफ्त में नहीं चलती. घर के खर्च, कपड़ों, खाने, घूमनेफिरने सब में खर्च होता है. कोई समाज नेताओं को इतनी तनख्वाह नहीं देता जितनी उन की आवश्यकता होती है.

 

वही समाज जो मंदिरों में अपने मतलब को सिद्ध करवाने व   झूठे आश्वासन या भरोसे पर भरभर के पैसे देता है, वह नेताओं से लेता है पर सीधे देते हुए कतराता है. नेताओं के घर के सामने पांचसात ताले लगे गुल्लकें नहीं रखे होते हैं जिन में आने वाले अपनी श्रद्धा से पैसे डाल सकें पर हर मंदिर, चर्च, मसजिद, गुरुद्वारे में ये दिख जाएंगे. आमतौर पर तो एक नहीं बल्कि आठ से दस हुंडियां, अलमारियां, दानपात्र, डोनेशन बौक्स वहां रखे होते हैं.

 

नेताओं को पैसा तो उद्योगपति देता है पर वह मुफ्त में नहीं देता. वह जानता है कि उसे कुछ मिलने वाला है. सरदार वल्लभभाई पटेल की महान प्रशंसा करने वाली एक किताब ‘द मैन हू सेव्ड इंडिया’ में लेखक हिंडोल सेनगुप्ता उद्योगपति जी डी बिड़ला की आत्मकथा का एक प्रसंग उद्धृत करता है- ‘‘मु  झे टैलीग्राम मिलता था, ‘कम इमीडिएटली’ (तुरंत आओ) और जब मैं आता तो वे (पटेल) बताते कि मु  झे क्या करना है. आखिरकार बात जमा (पैसा) करने पर ही आ जाती थी. मैं ने एक बार पटेल को बताया भी कि गांधी ने कहा था, ‘मैं सरदार का पैसा इकट्ठा करना पसंद नहीं करता.’ इस पर पटेल का उत्तर था, यह उस की (गांधी) चिंता नहीं है. गांधी महात्मा है, मैं नहीं. मु  झे काम करना है.

 

जब आजादी से पहले, सत्ता में न होने के बावजूद, नेताओं का यह हाल था तो आज दशकों से सत्ता में काबिज नरेंद्र मोदी जिन को गुजरात से सब से ज्यादा पैसा मिलता है, वहीं के गौतम अडानी (ADANI)  अगर कोई छोटामोटा कांड कर रहे हों तो कोई दूसरा उन का क्या बिगाड़ सकता है. इतिहास गवाह है कि न ब्रिटिश शासकों ने घनश्याम दास बिड़ला का कुछ बिगाड़ा, आजादी के बाद न नेहरू या इंदिरा ने.

 

इसी तरह अमेरिकी अदालत गौतम अडानी का कुछ बिगाड़ सकेगी, इस में संदेह है. पटरी पर दुकान लगाने वाले से पुलिस वाले को पूरा हफ्ता न मिले तो वह उसे 8 दिन तक जेल में बिना कागज तैयार किए रख सकता है, किसी मेहुल चौकसी, किसी ललित मोदी, किसी नीरव मोदी, किसी विजय माल्या, किसी नए पटेल का कोई नहीं बिगाड़ सकता. नेता तो आतेजाते रहते हैं. जिन 4 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अडानी ग्रुप (ADANI) से अमेरिकी अदालत के अनुसार रिश्वत ली भी, उन में से 3 को विदा किया जा चुका है. एक बाकी है. कौन जाने कि राजनीतिक विदाई के पीछे यही रिश्वत कांड था जो उस समय जांच के दायरे में था जब चुनाव हो रहे थे.

 

जनता से आग्रह है कि वह इस मामले में चुप रहे. उसे अपने पुराणों की कहानियां पढ़नी चाहिए जिन में राजा जनता से पैसा वसूल कर यज्ञ कराते थे और ऋषियों, मुनियों को यज्ञ के बाद भरपूर सोना, गाएं, वस्त्र, दास, दासियां देते थे. आज ऋषि भी समर्थ है, राजा भी, अडानी भी (ADANI) . इन सब का कोई दोष नहीं है.

 

Inner Beauty : तीखे नैननक्श नहीं Smartness बनाता है ‘सबसे हटके’

Inner Beauty : “अरे, ये आप की बेटी है? आप का रंग तो बहुत साफ है ! इस के नैननक्श और रंग आप जैसे बिल्कुल नहीं हैं. शायद आपने बचपन में इसे उबटन नहीं लगाया…”

पड़ोस वाली आंटी की बात सुन कर 17 साल की रिया अपनी मौम की तरफ देखने लगी. रिया की मौम और रिया की आंखोंआंखों में बात हुई और दोनों मुसकरा दिए और पड़ोसन को कुछ समझ नहीं आया और वह खिसिया कर वहां से चली गई !

दरअसल, रिया की मौम ने रिया को बचपन से यह बात सिखाई थी कि अगर आप को दुनिया और अपनी नज़रों में खूबसूरत  बनना है तो रंग, नाकनक्श और फिगर से ज्यादा अंदर की खूबसूरती निखारनी चाहिए. अपनी पर्सनालिटी पर ध्यान देना चाहिए और लोगों की बाहरी सुंदरता (inner Beauty) के पैमाने के तराजू में खुद को नहीं तोलना चाहिए. यही कारण था कि रिया को पड़ोस वाली आंटी की बात का कोई फर्क नहीं पड़ा.

आमतौर पर हमारे समाज में जब लड़कियों की खूबसूरती की बात आती है तो लोग रंग, नाकनक्शर और फिगर की बात करते हैं. उन्हें बचपन से ही सिखाया जाता है कि तुम्हारे लिए खूबसूरत दिखना जरूरी है. लोग उन्हें क्यों नहीं सिखाते कि यदि आप शिक्षित नहीं हैं आप में आत्मविश्वास नहीं है आप में इंसानियत नहीं है तो उस सुंदरता का कोई मोल नहीं है.

सुंदरता से जरूरी Inner Beauty 

बाहरी खूबसूरती (inner Beauty) के साथ दिल की खूबसूरती यानी इनर ब्यूरटी बहुत मायने रखती है. कोई भी भले ही दिखने में चाहे कितना ही खूबसूरत हो लेकिन उस के अंदर इंसानियत, आत्मविश्वास, अपने आसपास के लोगों के प्रति प्याोर और दुलार नहीं है वह भरोसेमंद नहीं है तो बाहरी खूबसूरती किसी को अपनी ओर अट्रैक्ट नहीं कर पाएगी.

व्यवहार की Beauty

बाहरी सुंदरता (Inner Beauty) से ज्यादा जरूरी यह है कि आप का लोगों के साथ व्यवहार कैसा है, उन के लिए आप की सोच कैसी है. लोगों के साथ सही तरीके से बात करने वाले, अच्छे से व्यवहार करने वाले को लोग पसंद करते हैं क्योंकि सुंदरता सिर्फ चेहरे से नहीं बल्कि व्यवहार से भी होती है.
कोई भी लड़की दिखने में चाहे कितनी ही गुड लुकिंग क्यों न हो लेकिन वह सैल्फिश हो हमेशा खुद के बारे में सोचती हो, किसी की परवाह न करती हो तो ऐसी लड़की को कोई पसंद नहीं करेगा लेकिन अगर वहीं अगर वह खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचती हो, खुद को भूल कर सब की मदद करने की कोशिश करती हो, उस के अंदर इंसानियत हो तो उस के पीछे पूरी दुनिया खड़ी रहती है और उस के आसपास के लोग उस की इज्जउत करते हैं.
इसी तरह अगर किसी के मन में सभी के लिए प्याेर या दुलार का भाव हो तो यकीन मानिए वह लड़की हर दिल पर राज कर सकती है.

इंटेलिजेंस और आत्मविश्वास

आत्म विश्वापस किसी की भी पर्सनैलिटी को कई गुना निखारने में मदद करता है. आप ही सोचिए आप के सामने दो लड़कियां हैं, एक सिर्फ दिखने में अच्छी है लेकिन उसे अपने काम की कोई समझ या जानकारी नहीं है, वह अपनी बात सही से प्रेजेंट नहीं कर पाती वहीं दूसरी ओर एक लड़की है जो दिखने में भले ही साधारण हो लेकिन उसे अपने काम की पूरी नौलेज है, वह आपनी बात को सही तरीके से कौन्फिडेंटली प्रेजेंट कर पाती है तो आप पक्का दूसरी लड़की से ही इंप्रेस होंगे.

जिंदादिली

कोई भी लड़की सुंदर है लेकिन वह एरोगेंट है किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती ,चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहते हैं तो आप भी बताइए क्या आप उसे पसंद करेंगे? वहीं एक साधारण दिखने वाली लड़की जो लोगों के साथ काफी गर्मजोशी से खुश हो कर मिलती है और लोगों के साथ उस का व्यवहार अच्छाम है तो यकीन मानिए यहां भी आप की चौइस दूसरी लड़की ही होगी.

स्मार्ट दिखना है अधिक जरूरी

खूबसूरती से ज्यादा जरूरी है किसी का भी स्मार्ट दिखना. कोई भी अगर कितना भी खूबसूरत हो लेकिन उसे ड्रैसिंग सेंस सही नहीँ हो, उसे किसी सिचुएशन को हैंडल करना नहीं आता हो, वह छोटीछोटी बात में पैनिक कर जाती हो, मेंटली स्ट्रौंग न हो, लोगों से बात करते समय आई कान्टेक्ट न करता हो, आप का बौडी पोस्चर सही न हो तो उसे कोई पसंद नहीं करेगा क्योंकि सिर्फ बाहरी खूबसूरती(inner Beauty)  किसी काम की नहीं, अगर कोई स्मार्ट न हो.

स्मार्ट और अट्रैक्टिव दिखने के तरीके

अट्रैक्टिव और स्पैशल दिखने के लिए कुछ बातों को, कुछ खास आदतों को अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बना कर, पर्सनैलिटी में शामिल कर के आप खुद को आसानी से निखार सकती हैं. लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकती हैं.

सेल्फ केयर रूटीन

भरपूर नींद लेने से ले कर डेली वर्कआउट और साफसफाई का सैल्फ केयर फार्मूला फौलो कर के पर्सनैलिटी में निखार लाया जा सकता है.

काम में एक्टिव रवैया

घर और औफिस के कामों में ढीलाढाला रवैया रखने की बजाय एक्टिव रेस्पोन्सिव और एनर्जेटिक रवैया रख कर अपने सैल्फ कान्फिडेंस को बूस्ट किया जा सकता है, आसपास के लोगों को इंप्रेस किया जा सकता है.

विनम्रता और शिष्टता

बाहरी खूबसूरती (Beauty) में निखार की जगह अपने साथ रहने वाले लोगों के साथ विनम्रता और शिष्टता से पेश आना सहानुभूति रखना, लोगों की ज्यादा से ज्यादा मदद करना किसी की भी पर्सनैलिटी को अट्रैक्टिव बनाएगा.

पौजिटिव एटीट्यूड

हर बात में निराशा, लोगों में कमियां ढूंढने के रवैये की जगह पौजिटिव एटीट्यूड की मदद से भी व्यक्तित्व को निखारा जा सकता है. ऐसे में हमेशा खुद की स्ट्रेंथ पर फोकस कर के और हर चीज को पौजिटिव सोच के साथ देख कर पर्सनैलिटी में निखार लाया जा सकता है.

रिश्तों और काम में ईमानदारी

कोई भी लड़की घर बाहर, औफिस में अपने काम, रिश्तों के प्रति ईमानदार और औनेस्ट एटीट्यूड फौलो कर के खुद को अट्रैक्टिव बना सकती हैं. ऐसा कर के वह दूसरों को आसानी से इंप्रेस कर सकती है और लोगों के सामने अपनी पौजिटिव इमेज भी बरकरार रख सकती है.

Neighbours : पड़ोसी है पहरेदार तो काहे का डर

Neighbours :  पड़ोसी ही हैं जिन की जरूरत हर छोटीबड़ी चीजों में पड़ ही जाती है. एक पल के रिश्तेदारों से भले संबंध बिगड़ जाएं पर पड़ोसियों से बिगाड़ कर हरगिज न रखें.

पहले के जमाने में जहां लोग आसपड़ोस में रहने वाले लोगों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखते थे. महल्ले में पड़ोसियों (Neighbours) का जमावड़ा लगता था वो अब नजर नहीँ आता. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों की ज़िंदगी अपने तक ही सीमित होती जा रही है. अब तो आलम यह है कि बड़े शहरों में लोगों को ये भी नहीं पता कि उन के पड़ोसी कौन हैं. लोग भूल रहे हैं कि पड़ोसी से अच्छी जानपहचान, नजदीकियां और बेहतरीन रिश्ते जिंदगी के तनाव को कम कर के खुशियों को बढ़ाने का काम कर सकते हैं.

दरअसल, पड़ोसी ही हमारे सुखदुख के साथी होते हैं. कभी भी अचानक ज़रूरत पड़ने पर पड़ोस में रहने वाले लोग ही आप की मदद के लिए आते हैं. कुछ समय पहले जब मुझे और मेरी बेटी को वायरल फीवर हुआ तब दो दिन तक मेरे लिए बिस्तर से उठ पाना भी मुश्किल था. उस समय मेरी पड़ोसन ही थी, जिन्होंने मेरे और मेरी बेटी के लिए खाना बनाया और ठीक होने तक हमारी देखभाल की. इसीलिए कहते हैं कि पड़ोसी से हमेशा अपने रिश्ते को मजबूत बना कर रखना चाहिए.

घर में कोई बीमार है और डाक्टर के पास ले जाने वाला नहीं है तो पड़ोसी से अच्छे रिश्ते होने पर वे मदद कर सकते हैं. इस के अलावा बच्चों की देखभाल, मार्केट से सामान मंगाना, और भी छोटेमोटे काम में पड़ोसी से मदद ले सकते हैं. जमेटो, ब्लिंकइट के भरोसे रहने की बजाय पड़ोसी के घर चाय पीने चले जाएं. पड़ोसियों को इन्वाइट करें, जरूरत न हो तब भी धनिया, नींबू मांग लें और उन के साथ एक मजबूत रिश्ता बनाएं. आप चाहें तो अपने पड़ोसी के साथ मार्निंग वाक का रूटीन भी बना सकते हैं.

भविष्य की जरूरत के लिए आज रिश्ता बनाएं

यह न सोचें कि आज पड़ोसी से कोई काम नहीं है या उन की जरूरत नहीं है तो आज उन से रिश्ता बनाने की जरूरत नहीं है, जब जरूरत पड़ेगी तब मदद मांग लेंगे. भविष्य की जरूरत के लिए आज से अभी से तैयारी शुरु करें. क्योंकि जरूरी नहीं जब आप को जरूरत होगी तब आप को पड़ोसी से मनचाही मदद मिल जाएगी.

Neighbours लंच-डिनर प्लान करें

बिजी लाइफस्टाइल के चलते अकसर लोगों का कई दिनों तक पड़ोसियों (Neighbours ) से आमनासामना नहीं हो पाता है. ऐसे में कुछ समय निकाल कर आप उन के घर जा सकते हैं. उन्हें अच्छी तरह से जाननेसमझने के लिए आप उन्हें घर पर लंच या डिनर के लिए भी बुला सकते हैं और उन से अच्छे रिश्ते बनाने की शुरुआत कर सकते हैं. इस से आप को पड़ोसी के साथ अच्छा समय गुजारने का मौका मिलेगा और आप उन के व्यवहार और कल्चर को भी अच्छी तरह से समझ सकेंगे.

रिश्तों में गलतफहमी न होने दें

पड़ोसियों (Neighbours )  के साथ अपने रिश्तों में कभी कोई गलतफहमी न होने दें. इस से आप के और पड़ोसी के बीच में रिश्तों में दरार आ सकती है. अगर उन से किसी बात पर शिकायत हो या उन की कोई बात गलत लगने पर आप उन से उस विषय में बात कर के गलतफहमी और गिलेशिकवे दूर कर सकते हैं. इस से उन के साथ आप के रिश्तों में मिठास बनी रहेगी.

इस के अलावा निम्न तरीके अपना कर भी आप पड़ोसियों के साथ रिश्ते मजबूत और मधुर बना सकते हैं.

– पड़ोसियों से जब भी मिलें मुसकराते हुए मिलें. देख कर मुंह न फेरें. उन के साथसाथ उन के घरपरिवार के हालचाल के बारे में भी पूछें.
– आप के घर में कोई भी फंक्शन हो, तो उन्हें बुलाएं और आप भी उन के इवेंट्स में शामिल होने की कोशिश करें. इवेंट्स में जो भी मदद हो सके करें.
– जब तक पड़ोसी खुद आप से सलाह या मदद न मांगे, उन के पर्सनल मामलों में दखल देने की कोशिश न करें और न ही यह जानने की कोशिश करें कि उन के घर-परिवार में क्या चल रहा है.
– अगर पड़ोसी (Neighbours )  ने आप के साथ कुछ पर्सनल चीज़ें शेयर की हैं तो उसे खुद तक ही सीमित रखें, न कि दूसरे लोगों से शेयर कर उन का विश्वास तोड़ने की गलती करें.
– पड़ोसी से रिश्ते मजबूत बनाए रखने के लिए भूल कर भी एक पड़ोसी की तुलना दूसरे पड़ोसी (Neighbours ) से न करें और साथ ही एकदूसरे की चुगली करने से भी बचें. इस से न सिर्फ आप के पड़ोसी की नजर में आप की इमेज खराब होगी बल्कि आप की उन से लड़ाई भी हो सकती है.
– देर रात तक जोर से म्यूजिक चलाना, कौमन एरिया को गंदा रखना, पार्किंग के लिए लड़ाई झगड़ा करना जैसे काम न करें. इस से पड़ोसियों को परेशानी हो सकती है.
– अगर आप लंबे समय के लिए बाहर जा रहे हैं, तो पड़ोसियों (Neighbours) के बता कर जाएं जिस से आप की गैरमौजूदगी में वे आप के घर का ध्यान रख सकें. इसी तरह उन के घर से बाहर जाने पर आप भी उन के घर की देखभाल करें.
– जरूरत की कोई चीज़ मांगने पर मना न करें. अगर आपने कोई खास डिश बनाई है, तो उसे उन के साथ शेयर करें. इस से रिश्तों में मिठास आती है.
– कभी भी अपने परिवार, धन-दौलत और प्रोफैशन के बारे में बढचढ़ कर बातें न करें और न ही उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करें. ऐसा करने से वे आप को घमंडी और शानची समझेंगे.
– हमेशा सिर्फ मदद मांगने के लिए ही पड़ोसियों का दरवाजा न खटखटाएं. कभीकभी हल्कीफुल्की बातचीत करने के लिए हालचाल जानने के लिए भी बात करें. ऐसा करने से भी रिश्तों में ताजगी आती है.
– त्योहारों, पड़ोसियों के बर्थडे, एनिवर्सरी आदि मौकों पर उन्हें विश करें और जैसा लें दें हो एक दूसरे को गिफ्ट दें.
– पड़ोसियों की गैरमौजूदगी में उन से फोन पर सलाह कर के उन का कोरियर आदि रिसीव करें और उसे संभाल कर रखें.

 

Family Ki Kahani : संस्कारी बहू

मुझे गुमसुम और उदास देख कर मां ने कहा, ‘‘क्या बात है, रति, तू इस तरह मुंह लटकाए क्यों बैठी है? कई दिन से मनोज का भी कोई फोन नहीं आया. दोनों ने आपस में झगड़ा कर लिया क्या?’’

‘‘नहीं, मां, रोज रोज क्या बात करें.’’

‘‘कितने दिनों से शादी की तैयारी कर रहे थे, सब व्यर्थ हो गई. यदि मनोज के दादाजी की मौत न हुई होती तो आज तेरी शादी को 15 दिन हो चुके होते. वह काफी बूढ़े थे. तेरहवीं के बाद शादी हो सकती थी पर तेरे ससुराल वाले बड़े दकियानूसी विचारों के हैं. कहते हैं कि साए नहीं हैं. अब तो 5-6 महीने बाद ही शादी होगी.

‘‘हमारी तो सब तैयारी व्यर्थ हो गई. शादी के कार्ड बंट चुके थे. फंक्शन हाल को, कैटरर्स को, सजावट करने वालों को, और भी कई लोगों को एडवांस पेमेंट कर चुके थे. 6 महीने शादी सरकाने से अच्छाखासा नुकसान हो गया है.’’

‘‘इसी बात से तो मनोज बहुत डिस्टर्ब है, मां. पर कुछ कह नहीं पाता.’’

‘‘बेटा, हम भी कभी तुम्हारी उम्र के थे. तुम दोनों के एहसास को समझ सकते हैं, पर हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. मैं ने तो तेरी सास से कहा भी था कि साए नहीं हैं तो क्या हुआ, अच्छे काम के लिए सब दिन शुभ होते हैं…अब हमें शादी कर देनी चाहिए.

‘‘मेरा इतना कहना था कि वह तो भड़क गईं और कहने लगीं, आप के लिए सब दिन शुभ होते होंगे पर हम तो सायों में भरोसा करते हैं. हमारा इकलौता बेटा है, हम अपनी तरफ से पुरानी मान्यताओं को अनदेखा कर मन में कोई वहम पैदा नहीं करना चाहते.’’

रति सोचने लगी कि मम्मी इस से ज्यादा क्या कर सकती हैं और मैं भी क्या करूं, मम्मी को कैसे बताऊं कि मनोज क्या चाहता है.

नर्सरी से इंटर तक हम दोनों साथसाथ पढ़े थे. किंतु दोस्ती इंटर में आने के बाद ही हुई थी. इंटर के बाद मनोज इंजीनियरिंग करने चला गया और मैं ने बी.एससी. में दाखिला ले लिया था. कालिज अलग होने पर भी हम दोनों छुट्टियों में कुछ समय साथ बिताते थे. बीच में फोन पर बातचीत भी कर लेते थे. कंप्यूटर पर चैट हो जाती थी.

एम.एससी. में आते ही मम्मीपापा ने शादी के लिए लड़का तलाशने की शुरुआत कर दी. मैं ने कहा भी कि मम्मी, एम.एससी. के बाद शादी करना पर उन का कहना था कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो, शादी कौन सी अभी हुई जा रही है, अच्छा लड़का मिलने में भी समय लगता है.

शादी की चर्चा शुरू होते ही मनोज की छवि मेरी आंखों में तैर गई थी. यों हम दोनों एक अच्छे मित्र थे पर तब तक शादी करने के वादे हम दोनों ने एकदूसरे से नहीं किए थे. साथ मिल कर भविष्य के सपने भी नहीं देखे थे पर मम्मी द्वारा शादी की चर्चा करने पर मनोज का खयाल आना, क्या इसे प्यार समझूं. क्या मनोज भी यही चाहता है, कैसे जानूं उस के दिल की बात.

मुलाकात में मनोज से मम्मी द्वारा शादी की पेशकश के बारे में बताया तो वह बोला, ‘‘इतनी जल्दी शादी कर लोगी, अभी तो तुम्हें 2 वर्ष एम.एससी. करने में ही लगेंगे,’’ फिर कुछ सोचते हुए बोला था, ‘‘सीधेसीधे बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी…पर अभी मुझे सैटिल होने में कम से कम 2-3 वर्ष लगेंगे.’’

प्रसन्नता की एक लहर तनमन को छू गई थी, ‘‘सच कहूं मनोज, जब मम्मी ने शादी की बात की तो एकदम से मुझे तुम याद आ गए थे…क्या यही प्यार है?’’

‘‘मैं समझता हूं यही प्यार है. देखो, जो बात अब तक नहीं कह सका था, तुम्हारी शादी की बात उठते ही मेरे मुंह पर आ गई और मैं ने तुम्हें प्रपोज कर डाला.’’

‘‘अब जब हम दोनों एकदूसरे से चाहत का इजहार कर ही चुके हैं तो फिर इस विषय में गंभीरता से सोचना होगा.’’

‘‘सोचना ही नहीं होगा रति, तुम्हें अपने मम्मीपापा को इस शादी के लिए मनाना भी होगा.’’

‘‘क्या तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे?’’

‘‘देखो, अभी तो मेरा इंजीनियरिंग का अंतिम साल है. मेरी कैट की कोचिंग भी चल रही है…उस की भी परीक्षा देनी है. वैसे हो सकता है इस साल किसी अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट मिल जाए क्योंकि कालिज में बहुत सी कंपनियां आती हैं और जौब आफर करती हैं. अच्छा आफर मिला तो मैं स्वीकार कर लूंगा और जैसे ही शादी की चर्चा शुरू होगी मैं तुम्हारे बारे में बता दूंगा.’’

प्यार का अंकुर तो हमारे बीच पनप ही चुका था और हमारा यह प्यार अब जीवनसाथी बनने के सपने भी देखने लगा था. अब इस का जिक्र अपनेअपने घर में करना जरूरी हो गया था.

मैं ने मम्मी को मनोज के बारे में बताया तो वह बोलीं, ‘‘वह अपनी जाति का नहीं है…यह कैसे हो सकता है, तेरे पापा तो बिलकुल नहीं मानेंगे. क्या मनोज के मातापिता तैयार हैं?’’

‘‘अभी तो इस बारे में उस के घर वाले कुछ नहीं जानते. फाइनल परीक्षा होने तक मनोज को किसी अच्छी कंपनी में जौब का आफर मिल जाएगा और रिजल्ट आते ही वह कंपनी ज्वाइन कर लेगा. उस के बाद ही वह अपने मम्मीपापा से बात करेगा.’’

‘‘क्या जरूरी है कि वह मान ही जाएंगे?’’

‘‘मम्मी, मुझे पहले आप की इजाजत चाहिए.’’

‘‘यह फैसला मैं अकेले कैसे ले सकती हूं…तुम्हारे पापा से बात करनी होगी…उन से बात करने के लिए मुझे हिम्मत जुटानी होगी. यदि पापा तैयार नहीं हुए तो तुम क्या करोगी?’’

‘‘करना क्या है मम्मी, शादी होगी तो आप के आशीर्वाद से ही होगी वरना नहीं होगी.’’

इधर मेरा एम.एससी. फाइनल शुरू हुआ उधर इंजीनियरिंग पूरी होते ही मनोज को एक बड़ी कंपनी में अच्छा स्टार्ट मिल गया था और यह भी करीबकरीब तय था कि भविष्य मेें कभी भी कंपनी उसे यू.एस. भेज सकती है. मनोज के घर में भी शादी की चर्चा शुरू हो गई थी.

मैं ने मम्मी को जैसेतैसे मना लिया था और मम्मी ने पापा को किंतु मनोज की मम्मी इस विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थीं. इस फैसले से मनोज के घर में तूफान उठ खड़ा हुआ था. उस के घर में पापा से ज्यादा उस की मम्मी की चलती है. ऐसा एक बार मनोज ने ही बताया था…मनोज ने भी अपने घर में ऐलान कर दिया था कि शादी करूंगा तो रति से वरना किसी से नहीं.

आखिर मनोज के बहनबहनोई ने अपनी तरह से मम्मी को समझाया था, ‘‘मम्मी, आप की यह जिद मनोज को आप से दूर कर देगी, आजकल बच्चों की मानसिक स्थिति का कुछ पता नहीं चलता कि वह कब क्या कर बैठें. आज के ही अखबार में समाचार है कि मातापिता की स्वीकृति न मिलने पर प्रेमीप्रेमिका ने आत्महत्या कर ली…वह दोनों बालिग हैं. मनोज अच्छा कमा रहा है. वह चाहता तो अदालत में शादी कर सकता था पर उस ने ऐसा नहीं किया और आप की स्वीकृति का इंतजार कर रहा है. अब फैसला आप को करना है.’’

मनोज के पिता ने कहा था, ‘‘बेटा, मुझे तो मनोज की इस शादी से कोई एतराज नहीं है…लड़की पढ़ीलिखी है, सुंदर है, अच्छे परिवार की है… और सब से बड़ी बात मनोज को पसंद है. बस, हमारी जाति की नहीं है तो क्या हुआ पर तुम्हारी मम्मी को कौन समझाए.’’

‘‘जब सब तैयार हैं तो मैं ही उस की दुश्मन हूं क्या…मैं ही बुरी क्यों बनूं? मैं भी तैयार हूं.’’

मम्मी का इरादा फिर बदले इस से पहले ही मंगनी की रस्म पूरी कर दी गई थी. तय हुआ था कि मेरी एम.एससी. पूरी होते ही शादी हो जाएगी.

मंगनी हुए 1 साल हो चुका था. शादी की तारीख भी तय हो चुकी थी. मनोज के बाबा की मौत न हुई होती तो हम दोनों अब तक हनीमून मना कर कुल्लूमनाली, शिमला से लौट चुके होते और 3 महीने बाद मैं भी मनोज के साथ अमेरिका चली जाती.

पर अब 6-7 महीने तक साए नहीं हैं अत: शादी अब तभी होगी ऐसा मनोज की मम्मी ने कहा है. पर मनोज शादी के टलने से खुश नहीं है. इस के लिए अपने घर में उसे खुद ही बात करनी होगी. हां, यदि मेरे घर से कोई रुकावट होती तो मैं उसे दूर करने का प्रयास करती.

पर मैं क्या करूं. माना कि उस के भी कुछ जजबात हैं. 4-5 वर्षों से हम दोस्तों की तरह मिलते रहे हैं, प्रेमियों की तरह साथसाथ भविष्य के सपने भी बुनते रहे हैं किंतु मनोज को कभी इस तरह कमजोर होते नहीं देखा. यद्यपि उस का बस चलता तो मंगनी के दूसरे दिन ही वह शादी कर लेता पर मेरा फाइनल साल था इसलिए वह मन मसोस कर रह गया.

प्रतीक्षा की लंबी घडि़यां हम कभी मिल कर, कभी फोन पर बात कर के काटते रहे. हम दोनों बेताबी से शादी के दिन का इंतजार करते रहे. दूरी सहन नहीं होती थी. साथ रहने व एक हो जाने की इच्छा बलवती होती जाती थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, सपनों के रंगीन समुंदर में गोते लगाते दिन मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे. शादी के 10 दिन पहले हम ने मिलना भी बंद कर दिया था कि अब एकदूसरे को दूल्हादुलहन के रूप में ही देखेंगे पर विवाह के 7 दिन पहले बाबाजी की मौत हमारे सपनों के महल को धराशायी कर गई.

बाबाजी की मौत का समाचार मुझे मनोज ने ही दिया था और कहा था, ‘‘बाबाजी को भी अभी ही जाना था. हमारे बीच फिर अंतहीन मरुस्थल का विस्तार है. लगता है, अब अकेले ही अमेरिका जाना पडे़गा. तुम से मिलन तो मृगतृष्णा बन गया है.’’

तेरहवीं के बाद हम दोनों गार्डन में मिले थे. वह बहुत भावुक हो रहा था, ‘‘रति, तुम से दूरी अब सहन नहीं होती. मन करता है तुम्हें ले कर अनजान जगह पर उड़ जाऊं, जहां हमारे बीच न समाज हो, न परंपराएं हों, न ये रीतिरिवाज हों. 2 प्रेमियों के मिलन में समाज के कायदे- कानून की इतनी ऊंची बाड़ खड़ी कर रखी है कि उन की सब्र की सीमा ही समाप्त हो जाए. चलो, रति, हम कहीं भाग चलें…मैं तुम्हारा निकट सान्निध्य चाहता हूं. इतना बड़ा शहर है, चलो, किसी होटल में कुछ घंटे साथ बिताते हैं.’’

जो हाल मनोज का था वही मेरा भी था. एक मन कहता था कि अपनी खींची लक्ष्मण रेखा को अब मिटा दें किंतु दूसरा मन संस्कारों की पिन चुभो देता कि बिना विवाह यह सब ठीक नहीं. वैसे भी एक बार मनोज की इच्छा पूरी कर दी तो यह चाह फिर बारबार सिर उठाएगी, ‘‘नहीं, यह ठीक नहीं.’’

‘‘क्या ठीक नहीं, रति. क्या तुम को मुझ पर विश्वास नहीं? पतिपत्नी तो हमें बनना ही है. मेरा मन आज जिद पर आया है, मैं भटक सकता हूं, रति, मुझे संभाल लो,’’ गार्डन के एकांत झुटपुटे में उस ने बांहों में भर कर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया था. मैं ने भी आज उसे यह छूट दे दी थी ताकि उस का आवेग कुछ शांत हो किंतु मनोज की गहरीगहरी सांसें और अधिक समा जाने की चाह मुझे भी बहकाए उस से पूर्व ही मैं उठ खड़ी हुई.

‘‘अपने को संभालो, मनोज. यह भी कोई जगह है बहकने की? मैं भी कोई पत्थर नहीं, इनसान हूं…कुछ दिन अपने को और संभालो.’’

‘‘इतने दिन से अपने को संभाल ही तो रहा हूं.’’

‘‘जो तुम चाह रहे हो वह हमारी समस्या का समाधान तो नहीं है. स्थायी समाधान के लिए अब हाथपैर मारने होंगे. चलो, बहुत जोर से भूख लगी है, एक गरमागरम कौफी के साथ कुछ खिला दो, फिर इस बारे में कुछ मिल कर सोचते हैं.’’

रेस्टोरेंट में बैरे को आर्डर देने के बाद मैं ने ही बात शुरू की, ‘‘मनोज, तुम्हें अब एक ही काम करना है… किसी तरह अपने मातापिता को जल्दी शादी के लिए तैयार करना है, जो बहुत मुश्किल नहीं. आखिर वे हमारे शुभचिंतक हैं, तुम ने उन से एक बार भी कहा कि शादी इतने दिन के लिए न टाल कर अभी कर दें.’’

‘‘नहीं, यह तो नहीं कहा.’’

‘‘तो अब कह दो. कुछ पुराना छोड़ने और नए को अपनाने में हरेक को कुछ हिचक होती है. अपनी इंटरकास्ट मैरिज के लिए आखिर वह तैयार हो गए न. तुम देखना बिना सायों के शादी करने को भी वह जरूर मान जाएंगे.’’

मनोज के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई थी, ‘‘तुम ठीक कह रही हो रति, यह बात मेरे ध्यान में क्यों नहीं आई? खाने के बाद तुम्हें घर पर छोड़ देता हूं. कोर्ट मैरिज की डेट भी तो पास आ गई है, उसे भी आगे नहीं बढ़ाने दूंगा.’’

‘‘ठीक है, अब मैरिज वाले दिन कोर्ट में ही मिलेंगे.’’

‘‘मेरे आज के व्यवहार से डर गईं क्या? इस बीच फोन करने की इजाजत तो है या वह भी नहीं है?’’

‘‘चलो, फोन करने की इजाजत दे देते हैं.’’

रजिस्ट्रार के आफिस में मैरिज की फार्र्मेलिटी पूरी होने के बाद हम दोनों अपने परिवार के साथ बाहर आए तो मनोज के जीजाजी ने कहा, ‘‘मनोज, अब तुम दोनों की शादी पर कानून की मुहर लग गई है. रति अब तुम्हारी हुई.’’

‘‘ऐ जमाई बाबू, ये इंडिया है, वह तो वीजा के लिए यह सब करना पड़ा है वरना इसे हम शादी नहीं मानते. हमारे घर की बहू तो रति विवाह संस्कार के बाद ही बनेगी,’’ मेरी मम्मी ने कहा.

‘‘वह तो मजाक की बात थी, मम्मी, अब आप लोग घर चलें. मैं तो इन दोनों से पार्टी ले कर ही आऊंगा.’’

होटल में खाने का आर्डर देने के बाद मनोज ने अपने जीजाजी से पूछा, ‘‘जीजाजी, मम्मी तक हमारी फरियाद अभी पहुंची या नहीं?’’

‘‘साले साहब, क्यों चिंता करते हो. हम दोनों हैं न तुम्हारे साथ. अमेरिका आप दोनों साथ ही जाओगे. मैं ने अभी बात नहीं की है, मैं आप की इस कोर्ट मैरिज हो जाने का इंतजार कर रहा था. आगे मम्मी को मनाने की जिम्मेदारी आप की बहन ने ली है. इस से भी बात नहीं बनी तो फिर मैं कमान संभालूंगा.’’

‘‘हां, भैया, मैं मम्मी को समझाने की पूरी कोशिश करूंगी.’’

‘‘हां, तू कोशिश कर ले, न माने तो मेरा नाम ले कर कह देना, ‘आप अब शादी करो या न करो भैया भाभी को साथ ले कर ही जाएंगे.’’’

‘‘वाह भैया, आज तुम सचमुच बड़े हो गए हो.’’

‘‘आफ्टर आल अब मैं एक पत्नी का पति हो गया हूं.’’

‘‘ओके, भैया, अब हम लोग चलेंगे, आप लोगों का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘कुछ देर घूमघाम कर पहले रति को उस के घर छोडूंगा फिर अपने घर जाऊंगा.’’

मेरे गले में बांहें डालते हुए मनोज ने शरारत से देखा, ‘‘हां, रति, अब क्या कहती हो, तुम्हारे संस्कार मुझे पति मानने को तैयार हैं या नहीं?’’

आंखें नचाते हुए मैं चहकी, ‘‘अब तुम नाइंटी परसेंट मेरे पति हो.’’

‘‘यानी टैन परसेंट की अब भी कमी रह गई है…अभी और इंतजार करना पडे़गा?’’

‘‘उस दिन का मुझे अफसोस है मनोज…पर अब मैं तुम्हारी हूं.’’

Funny Story : व्यथा दो घुड़सवारों की

Funny Story : जो  भी घोड़ी पर बैठा उसे रोता हुआ ही देखा है. घोड़ी पर तो हम भी बैठे थे. क्या लड्डू मिल गया, सिवा हाथ मलने के. एक दिन एक आदमी घोड़ी पर चढ़ रहा था. मेरा पड़ोसी था इसलिए मैं ने जा कर उस के पांव पकड़ लिए और बोला, ‘‘इस से बढि़या तो बींद राजा, सूली पर चढ़ जाओ. धीमा जहर पी कर क्यों घुटघुट कर मरना चाहते हो?’’

मेरा पड़ोसी बींद राजा, मेरे प्रलाप को नहीं समझ सका और यह सोच कर कि इसे बख्शीश चाहिए, मुझे 5 का नोट थमाते हुए बोला, ‘‘अब दफा हो जा, दोबारा घोड़ी पर चढ़ने से मत रोकना मुझे,’’ यह कह कर पैर झटका और मुझ से पांव छुड़ा कर वह घुड़सवार बन गया. बहुत पीड़ा हुई कि एक जीताजागता स्वस्थ आदमी घोड़ी पर चढ़ कर सीधे मौत के मुंह में जा रहा है.

 

मैं ने उसे फिर आगाह किया, ‘‘राजा, जिद मत करो. यह घोड़ी है बिगड़ गई तो दांतमुंह दोनों को चौपट कर देगी. भला इसी में है कि इस बाजेगाजे, शोरशराबे तथा बरात की भीड़ से अपनेआप को दूर रखो.’’

बींद पर उन्माद छाया था. मेरी ओर हंस कर बोला, ‘‘कापुरुष, घोड़ी पर चढ़ा भी और रो भी रहा है. मेरी आंखों के सामने से हट जा. विवाह के पवित्र बंधन से घबराता है तथा दूसरों को हतोत्साहित करता है. खुद ने ब्याह रचा लिया और मुझे कुंआरा ही देखना चाहता है, ईर्ष्यालु कहीं का.’’

मैं बोला, ‘‘बींद राजा, यह लो 5 रुपए अपने तथा मेरी ओर से यह 101 रुपए और लो, पर मत चढ़ो घोड़ी पर. यह रेस बहुत बुरी है. एक बार जो भी चढ़ा, वह मुंह के बल गिरता दिखा है. तुम मेरे परिचित हो इसलिए पड़ोसी धर्म के नाते एक अनहोनी को मैं टालना चाहता हूं. बस में, रेल में, हवाईजहाज में, स्कूटर पर या साइकिल पर चढ़ कर कहीं चले जाओ.’’

बींद राजा नहीं माने. घोड़ी पर चढ़ कर ब्याह रचाने चल दिए. लौट कर आए तो पैदल थे. मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘लाला, कहां गई घोड़ी?’’

 

‘‘घोड़ी का अब क्या काम? घोड़ी की जहां तक जरूरत थी वहीं तक रही, फिर चली गई.’’

‘‘इसी गति से तुम्हें साधनहीन बना कर तुम्हारी तमाम सुविधाएं धीरेधीरे छीन ली जाएंगी. कल घोड़ी पर थे, आज जमीन पर. कल तुम्हारे जमीन पर होने पर आपत्ति प्रकट की जाएगी. तब तुम कहोगे कि मैं ने सही कहा था.’’

इस बार भी बींद ने मेरी बात पर गौर नहीं फरमाया तथा ब्याहता बींदणी को ले कर घर में घुस गया. काफी दिनों बाद बींद राजा मिले तो रंक बन चुके थे. बढ़ी हुई दाढ़ी तथा मैले थैले में मूली, पालक व आलूबुखारा ले कर आ रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘राजा, क्या बात है? क्या हाल बना लिया? कहां गई घोड़ी. इतना सारा सामान कंधे पर लादे गधे की तरह फिर रहे हो?’’

‘‘भैया, यह तो गृहस्थी का भार है. घोड़ी क्या करेगी इस में.’’

‘‘लाला, दहेज में जो घोड़ी मिली है, उस के क्या हाल हैं. वह सजीसंवरी ऊंची एड़ी के सैंडलों में बनठन कर निकलती है और आप चीकू की तरह पिचक गए हो. भला ऐसे भी घोड़ी से क्या उतरे कि कोई सहारा देने वाला ही नहीं रहा?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इस बीच मुझे पुत्र लाभ हो चुका है तथा अन्य कई जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. बाकी विशेष कुछ नहीं है,’’ बींद राजा बोले.

‘‘अच्छाभला स्वास्थ्य था राजा आप का. किस मर्ज ने घेरा है कि अपने को भुरता बना बैठे हो.’’

‘‘मर्ज भला क्या होगा. असलियत तो यह है, महंगाई ने इनसान को मार दिया है.’’

‘‘झूठ मत बोलो भाई, घोड़ी पर चढ़ने का फल महंगाई के सिर मढ़ रहे हो. भाई, जो हुआ सो हुआ, पत्नी के सामने ऐसी भी क्या बेचारगी कि आपातकाल लग जाता है. थोड़ी हिम्मत से काम लो. पत्नी के रूप में मिली घोड़ी को कामकाज में लगा दो, तभी यह उपयोगी सिद्ध होगी. किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर बनवा दो,’’ मैं ने कहा.

‘‘बकवास मत करो. तुम मुझे समझते क्या हो? इतना कायर तो मैं नहीं कि बीवी की कमाई पर बसर करूं.’’

‘‘भैया, बीवी की कमाई ही अब तुम्हारे जीवन की नैया पार लगा सकती है. ज्यादा वक्त कंधे पर बोझ ढोने से फायदा नहीं है. सोचो और फटाफट पत्नी को घोड़ी बना दो. सच, तुम अब बिना घुड़सवार बने सुखी नहीं रह सकते,’’ मैं ने कहा.

पर इस बार भी राजा बनाम रंक पर मेरी बातों का असर नहीं हुआ और हांफता हुआ घर में जा घुसा तथा रसोईघर में तरकारी काटने लगा.

एक दिन बींद राजा की बींदणी मिली. मैं ने कहा, ‘‘बींदणीजी, बींद राजा पर रहम खाओ. दाढ़ी बनाने को पैसे तो दिया करो और इस जाड़े में एक डब्बा च्यवनप्राश ला दो. घोड़ी से उतरने के बाद वह काफी थक गए हैं?’’

बींदणी ने जवाब दिया, ‘‘लल्ला, अपनी नेक सलाह अपनी जेब में रखो और सुनो, भला इसी में है कि अपनी गृहस्थी की गाड़ी चलाते रहो. दूसरे के बीच में दखल मत दो.’’

मैं ने कहा, ‘‘दूसरे कौन हैं. आप और हम तो एकदूसरे के पड़ोसी हैं. पड़ोसी धर्म के नाते कह रहा हूं कि घोड़े के दानापानी की व्यवस्था सही रखो. उस के पैंटों पर पैबंद लगने लगे हैं. कृपया उस पर इतना कहर मत बरपाइए कि वह धूल चाटता फिरे. किस जन्म का बैर निकाल रही हैं आप. पता नहीं इस देश में कितने घुड़सवार अपने आत्मसम्मान तथा स्वाभिमान के लिए छटपटा रहे हैं.’’

बींदणी ने खींसें निपोर दीं, ‘‘लल्ला, अपना अस्तित्व बचाओ. जीवन संघर्ष में ऐसा नहीं हो कि आप अपने में ही फना हो जाओ.’’

वह भी चली गई. मैं सोचता रहा कि आखिर इस गुलामी प्रथा से एक निर्दोष व्यक्ति को कैसे मुक्ति दिलाई जाए. अपनी तरह ही एक अच्छेभले आदमी को मटियामेट होते देख कर मुझे अत्यंत पीड़ा थी. एक दिन फिर राजा मिल गए. आटे का पीपा चक्की से पिसा कर ला रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘अरे, राजा, तुम चक्की से पीपा भी लाने लगे. मेरी सलाह पर गौर किया?’’

‘‘किया था, वह तैयार नहीं है. कहती है हमारे यहां प्रथा नहीं रही है. औरत गृहशोभा होती है और चारदीवारी में ही उसे अपनी लाज बचा कर रहना चाहिए.’’

‘‘लेकिन अब तो लाज के जाने की नौबत आ गई. उस से कहो, तुम्हारे नौकरी करने से ही वह बचाई जा सकती है. तुम ने उसे घोड़ी पर बैठने से पहले का अपना फोटो दिखाया, नहीं दिखाया तो दिखाओ, हो सकता है वह तुम्हारे तंग हुलिया पर तरस खा कर कोई रचनात्मक कदम उठाने को तैयार हो जाए. स्त्रियों में संवेदना गहनतम पाई जाती है.’’

इस पर पूर्व घुड़सवार बींद राजा बिदक पड़े, ‘‘यह सरासर झूठ है. स्त्रियां बहुत निष्ठुर और निर्लज्ज होती हैं. तुम ने घोड़ी पर बैठते हुए मेरा पांव सही पकड़ा था. पर मैं उसे समझ नहीं पाया. आज मुझे सारी सचाइयां अपनी आंखों से दीख रही हैं.’’

‘‘घबराओ नहीं मेरे भाई, जो हुआ सो हुआ. अब तो जो हो गया है तथा उस से जो दिक्कतें खड़ी हो गई हैं, उन के निदान व निराकरण का सवाल है.’’

 

इस बार वह मेरे पांव पड़ गया और रोता हुआ बोला, ‘‘मुझे बचाओ मेरे भाई. मेरे साथ अन्याय हुआ है. मैं फिल्म संगीत गाया करता था, तेलफुलेल तथा दाढ़ी नियमित रूप से बनाया करता था. तकदीर ने यह क्या पलटा खाया है कि तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया.’’

मैं ने उसे उठा कर गले से लगाया और रोने में उस का साथ देते हुए मैं बोला, ‘‘हम एक ही पथ के राही हैं भाई. जो रोग तुम्हें है वही मुझे है. इसलिए दवा भी एक ही मिलनी चाहिए. परंतु होनी को टाले कौन, हमें इसे तकदीर मान कर हिम्मत से काम करना चाहिए.’’

दोनों घोड़ी से उतरे और जमीन से जुड़े आदमी अपने घरों की ओर देखने लगे. अंधेरा वहां तेजी से घना होता जा रहा था. हम ने एकदूसरे को देखा और टप से आंसू आंखों से ढुलक पड़े. भारी मन से अपनेअपने घरों में जा घुसे.

 

Sad Story : यादों के पन्‍ने


Sad Story : विभा ने झटके से खिड़की का परदा एक ओर सरका दिया तो सूर्य की किरणों से कमरा भर उठा.

‘‘मनु, जल्दी उठो, स्कूल जाना है न,’’ कह कर विभा ने जल्दी से रसोई में जा कर दूध गैस पर रख दिया.

मनु को जल्दीजल्दी तैयार कर के जानकी के साथ स्कूल भेज कर विभा अभी स्नानघर में घुसी ही थी कि फिर घंटी बजी. दरवाजा खोल कर देखा, सामने नवीन कुमार खड़े मुसकरा रहे थे.

‘‘नमस्कार, विभाजी, आज सुबहसुबह आप को कष्ट देने आ गया हूं,’’ कह कर नवीन कुमार ने एक कार्ड विभा के हाथ में थमा दिया, ‘‘आज हमारे बेटे की 5वीं वर्षगांठ है. आप को और मनु को जरूर आना है. अच्छा, मैं चलूं. अभी बहुत जगह कार्ड देने जाना है.’’

 

निमंत्रणपत्र हाथ में लिए पलभर को विभा खोई सी खड़ी रह गई. 6-7 दिन पहले ही तो मनु उस के पीछे पड़ रही थी, ‘मां, सब बच्चों की तरह आप मेरा जन्मदिन क्यों नहीं मनातीं? इस बार मनाएंगी न, मां.’

‘हां,’ गरदन हिला कर विभा ने मनु को झूठी दिलासा दे कर बहला दिया था.

जल्दीजल्दी तैयार हो विभा दफ्तर जाने लगी तो जानकी से कह गई कि रात को सब्जी आदि न बनाए, क्योंकि मांबेटी दोनों को नवीन कुमार के घर दावत पर जाना था.

घर से दफ्तर तक का बस का सफर रोज ही विभा को उबा देता था, किंतु उस दिन तो जैसे नवीन कुमार का निमंत्रणपत्र बीते दिनों की मीठी स्मृतियों का तानाबाना सा बुन रहा था.

मनु जब 2 साल की हुई थी, एक दिन नाश्ते की मेज पर नितिन ने विभा से कहा था, ‘विभा, जब अगले साल हम मनु की सालगिरह मनाएंगे तो सारे व्यंजन तुम अपने हाथों से बनाना. कितना स्वादिष्ठ खाना बनाती हो, मैं तो खाखा कर मोटा होता जा रहा हूं. बनाओगी न, वादा करो.’

नितिन और विभा का ब्याह हुए 4 साल हो चुके थे. शादी के 2 साल बाद मनु का जन्म हुआ था. पतिपत्नी के संबंध बहुत ही मधुर थे. नितिन का काम ऐसी जगह था जहां लड़कियां ज्यादा, लड़के कम थे. वह प्रसाधन सामग्री बनाने वाली कंपनी में सहायक प्रबंधक था. नितिन जैसे खूबसूरत व्यक्ति के लिए लड़कियों का घेरा मामूली बात थी, पर उस ने अपना पारिवारिक जीवन सुखमय बनाने के लिए अपने चारों ओर विभा के ही अस्तित्व का कवच पहन रखा था. विभा जैसी गुणवान, समझदार और सुंदर पत्नी पा कर नितिन बहुत प्रसन्न था.

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विलेपार्ले के फ्लैट में रहते नितिन को 6 महीने ही हुए थे. मनु ढाई साल की हो गई थी. उन्हीं दिनों उन के बगल वाले फ्लैट में कोई कुलदीप राज व सामने वाले फ्लैट में नवीन कुमार के परिवार आ कर रहने लगे थे. दोनों परिवारों में जमीन- आसमान का अंतर था. जहां नवीन कुमार दंपती नित्य मनु को प्यार से अपने घर ले जा कर उसे कभी टौफी, चाकलेट व खिलौने देते, वहीं कुलदीप राज और उन की पत्नी मनु के द्वारा छुई गई उन की मनीप्लांट की पत्ती के टूट जाने का रोना भी कम से कम 2 दिन तक रोते रहते.

एक दिन नवीन कुमार के परिवार के साथ नितिन, विभा और मनु पिकनिक मनाने जुहू गए थे. वहां नवीन का पुत्र सौमित्र व मनु रेत के घर बना रहे थे.

अचानक नितिन बोला, ‘विभा, क्यों न हम अपनी मनु की शादी सौमित्र से तय कर दें. पहले जमाने में भी मांबाप बच्चों की शादी बचपन में ही तय कर देते थे.’

नितिन की बात सुन कर सभी खिलखिला कर हंस पड़े तो नितिन एकाएक उदास हो गया. उदासी का कारण पूछने पर वह बोला, ‘जानती हो विभा, एक ज्योतिषी ने मेरी उम्र सिर्फ 30 साल बताई है.’

विभा ने झट अपना हाथ नितिन के होंठों पर रख उसे चुप कर दिया था और झरझर आंसू की लडि़यां बिखेर कर कह उठी थी, ‘ठीक है, अगर तुम कहते हो तो सौमित्र से ही मनु का ब्याह करेंगे, पर कन्यादान हम दोनों एकसाथ करेंगे, मैं अकेली नहीं. वादा करो.’

बस रुकी तो विभा जैसे किसी गहरी तंद्रा से जाग उठी, दफ्तर आ गया था.

लौटते समय बस का इंतजार करना विभा ने व्यर्थ समझा. धीरेधीरे पैदल ही चलती हुई घंटाघर के चौराहे को पार करने लगी, जहां कभी वह और नितिन अकसर पार्क की बेंच पर बैठ अपनी शामें गुजारते थे.

 

सभी कुछ वैसा ही था. न पार्क बदला था और न वह पत्थर की लाल बेंच. विभा समझ नहीं पा रही थी कि उस दिन उसे क्या हो रहा था. जहां उसे घर जाने की जल्दी रहती थी, वहीं वह जानबूझ कर विलंब कर रही थी. यों तो वह इन यादों को जीतोड़ कोशिशों के बाद किसी कुनैन की गोली के समान ही सटक कर अपनेआप को संयमित कर चुकी थी.

हालांकि वह तूफान उस के दांपत्य जीवन में आया था, तब वह अपनेआप को बहुत ही कमजोर व मानसिक रूप से असंतुलित महसूस करती थी और सोचती थी कि शायद ही वह अधिक दिनों तक जी पाएगी, पर 3 साल कैसे निकल गए, कभी पीछे मुड़ कर विभा देखती तो सिर्फ मनु ही उसे अंधेरे में रोशनी की एक किरण नजर आती, जिस के सहारे वह अपनी जिंदगी के दिन काट रही थी.

उस दिन की घटना इतना भयानक रूप ले लेगी, विभा और नितिन दोनों ने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी.

एक दिन विभा के दफ्तर से लौटते ही एक बेहद खूबसूरत तितलीनुमा लड़की उन के घर आई थी, ‘‘आप ही नितिन कुमार की पत्नी हैं?’’

‘‘जी, हां. कहिए, आप को पहचाना नहीं मैं ने,’’ विभा असमंजस की स्थिति में थी.

उस आधुनिका ने पर्स में से सिगरेट निकाल कर सुलगा ली थी. विभा कुछ पूछती उस से पहले ही उस ने अपनी कहानी शुरू कर दी, ‘‘देखिए, मेरा नाम शुभ्रा है. मैं दिल्ली में नितिन के साथ ही कालिज में पढ़ती थी. हम दोनों एकदूसरे को बेहद चाहते थे. अचानक नितिन को नौकरी मिल गई. वह मुंबई चला आया और मैं, जो उस के बच्चे की मां बनने वाली थी, तड़पती रह गई. उस के बाद मातापिता ने मुझे घर से निकाल दिया. फिर वही हुआ जो एक अकेली लड़की का इस वहशी दुनिया में होता है. न जाने कितने मर्दों के हाथों का मैं खिलौना बनी.’’

 

विभा को तो मानो सांप सूंघ गया था. आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया था. उस ने झट फ्रिज से बोतल निकाल कर पानी पिया और अपने ऊपर नियंत्रण रखते हुए अंदर से किवाड़ की चटखनी चढ़ा कर उस लड़की से पूछा, ‘‘तुम ने अभी- अभी कहा है कि तुम नितिन के बच्चे की मां बनने वाली थीं…’’

‘‘मेरा बेटा…नहीं, नितिन का बेटा कहूं तो ज्यादा ठीक होगा, वह छात्रावास में पढ़ रहा है,’’ युवती ने विभा की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘तुम अब क्या चाहती हो? मेरे विचार से बेहतर यही होगा कि तुम फौरन  यहां से चली जाओ. नितिन तुम्हें भूल चुका होगा और शायद तुम से अब बात भी करना पसंद नहीं करेगा. तुम्हें पैसा चाहिए? मैं अभी चेक काट देती हूं, पर यहां से जल्दी चली जाओ और फिर कभी इधर न आना?’’ विभा ने 10 हजार रुपए का चेक काट कर उसे थमा दिया.

 

‘‘इतनी आसानी से चली जाऊं. कितनी मुश्किल से तो अपने एक पुराने साथी से पैसे मांग कर यहां तक पहुंची हूं और फिर नितिन से मुझे अपने 6 साल का हिसाब चुकाना है,’’ युवती ने व्यंग्य- पूर्वक मुसकराते हुए कहा.

थोड़ी देर बाद घंटी बजी. विभा ने दौड़ कर दरवाजा खोला. नितिन ने अंदर कदम रखते हुए कहा, ‘‘शुभ्रा, तुम…तुम यहां कैसे?’’

विभा की तो रहीसही शंका भी मिट चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. युवती ने अपनी कहानी एक बार फिर नितिन के सामने दोहरा दी थी.

विभा के अंदर जो घृणा नितिन के प्रति जागी थी, उस ने भयंकर रूप ले लिया था. नितिन बारबार उसे समझा रहा था, ‘‘विभा, यह लड़की शुरू से आवारा है. मेरा इस से कभी कोई संबंध नहीं था. हर पुराने सहपाठी या मित्र को यह ऐसे ही ठगती है. विभा, नासमझ न बनो. यह नाटक कर रही है.’’

पर विभा ने तो अपना सूटकेस तैयार करने में पलभर की भी देरी नहीं की थी. वह नितिन का घर छोड़ कर चली गई. कोशिश कर के नवीन कुमार के दफ्तर में उसे नौकरी भी मिल गई. कुछ समय मनु के साथ एक छोटे से कमरे में गुजार कर बाद में विभा ने फ्लैट किराए पर ले लिया था.

 

घर छोड़ने के 5-6 माह बाद ही विभा को पता चला कि वह लड़की धोखेबाज थी. उस ने डराधमका कर नितिन से बहुत सा रुपया ऐंठ लिया था. उस हादसे से वह एक तरह से अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठा था. चाह कर भी विभा फिर नितिन से मिलने न जा सकी.

नवीन कुमार के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में विभा नहीं गई. जब विभा घर पहुंची तो मनु सो चुकी थी. विभा कपड़े बदल कर निढाल सी पलंग पर जा लेटी. उस दिन न जाने क्यों उसे नितिन की बेहद याद आ रही थी.

रात के 11 बजे कच्ची नींद में विभा को जोरजोर से किवाड़ पर दस्तक सुनाई दी. स्वयं को अकेली जान यों ही एक बार तो वह घबरा उठी. फिर हिम्मत जुटा कर उस ने पूछा, ‘‘कौन है?’’

बाहर से कुलदीप राज की आवाज पहचान उस ने द्वार खोला. पुलिस की वर्दी में एक सिपाही को देख एकाएक उस के पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई.

‘‘आप ही विभा हैं?’’ सिपाही ने पूछा.

‘‘ज…ज…जी, कहिए.’’

‘‘आप के पति का एक्सीडेंट हो गया है. नशे की हालत में एक टैक्सी से टकरा गए हैं. उन की जेब में मिले कागजों व आप के पते तथा फोटो से हम यहां तक पहुंचे हैं. आप तुरंत हमारे साथ चलिए.’’

 

‘‘कैसे हैं वह?’’

‘‘घबराएं नहीं, खतरे की कोई बात नहीं है,’’ सिपाही ने सांत्वना भरे स्वर में कहा.

विभा का शरीर कांप रहा था. हृदय की धड़कन बेकाबू सी हो गई थी. एक पल में ही विभा सारी पिछली बातें भूल कर तुरंत मनु को पड़ोसियों को सौंप कर अस्पताल पहुंची.

नितिन गहरी बेहोशी में था. काफी चोट आई थी. डाक्टर के आते ही विभा पागलों की भांति उसे झकझोर उठी, ‘‘डाक्टर साहब, कैसे हैं मेरे पति? ठीक तो हो जाएंगे न…’’

डाक्टर ने विभा को तसल्ली दी, ‘‘खतरे की कोई बात नहीं है. 2-3 जगह चोटें आई हैं, खून काफी बह गया है. लेकिन आप चिंता न करें. 4-5 दिन में इन्हें घर ले जाइएगा.’’

विभा के मन को एक सुखद शांति मिली थी कि उस के नितिन का जीवन खतरे से बाहर है.

5वें दिन विभा नितिन को ले कर घर आ गई थी. अस्पताल में दोनों के बीच जो मूक वार्त्तालाप हुआ था, उस में सारे गिलेशिकवे आंसुओं की नदी बन कर बह गए थे.

 

बचपन में विभा के स्कूल की एक सहेली हमेशा उस से कहती थी, ‘विभा, एक बार कुट्टी कर के जब दोबारा दोस्ती होती है तो प्यार और भी गहरा हो जाता है.’ उस दिन विभा को यह बात सत्य महसूस हो रही थी.

नितिन ने विभा से फिर कभी शराब न पीने का वादा किया था और उन की गृहस्थी को फिर एक नई जिंदगी मिल गई थी.

इतने वर्ष कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला था. उस दिन विभा की बेटी मनु की शादी हो रही थी.

‘‘नितिन, वह ज्योतिषी कितना ढोंगी था, जिस ने तुम्हें फुजूल मरनेजीने की बात बता कर वहम में डाला था. चलो, मनु का कन्यादान करने का समय हो रहा है,’’ विभा ने मुसकराते हुए कहा.

विदाई के समय विभा ने मनु को सीख दी थी, ‘‘मनु, कभी मेरी तरह तुम भी निराधार शक की शिकार न होना, वरना हंसतीखेलती जिंदगी रेगिस्तान के तपते वीराने में बदल जाएगी.’’

 

Stories : प्रश्‍नचिह्न

Stories : आयुष का बिलखने का स्वर सुन कर अंबिका लपक कर अपने ड्राइंगरूम में आई थी.

‘‘क्या हुआ, बेटे?’’ उस ने आयुष से पूछा.

‘‘पापा ने मारा,’’ आयुष गाल सहलाते हुए बोला.

‘‘यश, क्यों मारा तुम ने? 4 साल के बच्चे पर हाथ उठाते तुम्हें शर्म नहीं आई?’’ अंबिका गुस्से में पलटी, पर उस का स्वर तो मानो किसी पत्थर से टकरा कर लौट आया था. यश तक तो उस का स्वर शायद पहुंचा ही नहीं था.

एक क्षण के लिए अंबिका का मन हुआ कि बुरी तरह बिफर कर यश को इतनी खरीखोटी सुनाए कि वह फिर कभी नन्हे मासूम आयुष पर हाथ उठाने की बात सोच भी न सके. पर कुछ सोच कर चुप रह गई थी.

आयुष अब भी सिसक रहा था.

उस पर जान छिड़कने वाले पिता ने उसे क्यों मारा, यह बात उस की समझ से परे थी.

यश अपना फोन कान से लगाए न जाने किस से बातचीत में उलझा था. उस के लिए तो मानो अंबिका और आयुष हो कर भी नहीं थे वहां.

अंबिका ने आयुष को शांत कर के खिलापिला कर सुला तो दिया था पर उस के मुख पर चिंता की स्पष्ट रेखाएं थीं.

‘क्या हो गया था यश को? ऐसा तो नहीं था वह,’ अंबिका सोच में डूब गई.

परिवार का हीरेजवाहरात का पुराना कारोबार था जिसे यश और उस के बड़े भाई रतनराज मिल कर संभालते थे. उन के पिता ने घर और व्यापार का बंटवारा दोनों बेटों के बीच इतनी सावधानी से किया था कि दोनों के बीच मनमुटाव की गुंजाइश ही नहीं थी.

कारोबार में कुशल यश को जीवन की हर आकर्षक वस्तु से लगाव था. पार्टियां देना और पार्टियों में जाना हर रोज लगा ही रहता था, पर पिछले 3-4 माह से यश में आ रहे परिवर्तनों को देख कर वह हैरान थी. कभीकभी उसे लगता कि कहीं कुछ नहीं बदला, पर दूसरे ही क्षण वह कुछ घटनाओं को याद कर के घबरा उठती. हर क्षण उसे आभास होता कि यश अब पहले जैसा नहीं रहा, लेकिन बहुत सोचने पर भी उसे इस परिवर्तन का कारण समझ में नहीं आ रहा था.

कार स्टार्ट होने की आवाज सुनते ही अंबिका की तंद्रा टूटी थी. फोन पर हुई लंबी बातचीत के बाद यश कहीं चला गया था.

आयुष को उस के बिस्तर में सुला कर अंबिका बाहर निकली. वहां ड्राइवर माधव को चौकीदार से हंसीठिठोली करते देख हैरान रह गई.

‘‘तुम यहां बैठे हो, माधव? साहब की कार कौन चला कर ले गया है?’’

‘‘साहब अपनेआप चला कर ले  गए हैं. मुझे बुलाया ही नहीं,’’ माधव का उत्तर था.

‘‘तुम यहां रहते ही कब हो? पान खाने या सिगरेट पीने गए होगे. साहब कब तक तुम्हारी प्रतीक्षा करते?’’ अंबिका का सारा गुस्सा माधव पर ही उतरा था.

‘‘मैं तो यहीं चौकीदार के पास बैठा था. कार स्टार्ट होने की आवाज सुन कर भाग कर उन के पास पहुंचा, पर साहब ने मेरी ओर देखा तक नहीं.’’

‘‘ठीक है,’’ अंबिका अंदर चली गई.

सोफे पर बैठ कर अंबिका देर तक शून्य में ताकती रही. यही सब बातें तो हैं जो उस के मन को खटकती हैं. यश का इस तरह उसे बिना बताए चले जाना, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ. भीड़भाड़ वाली सड़कों पर स्वयं कार चलाने से यश सदा बचता था. यदि माधव जरा भी इधरउधर चला जाए तो वह चीखचिल्ला कर घर सिर पर उठा लेता था. आज वही यश माधव को छोड़ कर स्वयं ही चला गया. अंबिका को चिंता होने लगी. उस ने यश को कौल किया पर यश ने मोबाइल फोन स्विच औफ कर रखा था.

अंबिका को अब पूरा विश्वास हो चला था कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. वह किसी से बात कर के अपने मन का बोझ हलका करना चाहती थी. अपने मातापिता को असमय फोन कर के वह परेशान नहीं कर सकती थी. यश के बड़े भाई रतनराज का विचार भी आया मन में, पर उन से फोन पर कुछ कहना ठीक न समझा. आखिर में उस ने अपनी प्रिय सहेली हर्षिता को फोन लगाया. हर्षिता उस की सब से करीबी सहेली तो थी ही, संकट की घड़ी में उस पर आंख मूंद कर विश्वास भी किया जा सकता था.

हर्षिता से फोन पर बात करते हुए अंबिका का गला भर आया, आवाज भर्रा गई.

‘‘क्या बात है, अंबिका? तुम इतनी परेशान हो और मुझे बताया तक नहीं. ये सब बातें फोन पर नहीं होतीं. तुम इंतजार करो. मैं 5 मिनट में तुम्हारे घर पहुंचती हूं,’’ हर्षिता ने आश्वासन दिया.

कुछ ही देर में हर्षिता उस के घर में थी. आते ही बोली, ‘‘अब विस्तार से बता, बात क्या है?’’

उत्तर में अंबिका उस के गले लग कर फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘पता नहीं हमारे हंसतेखेलते घर को किस की नजर लग गई, हर्षिता. यश को न अब मेरी चिंता है न आयुष की.’’

‘‘तुम ने उस से बात करने का प्रयत्न किया?’’

‘‘कई बार, पर यश कुछ बोलता ही नहीं. बस, मूक बन कर बैठा रहता है.’’

‘‘सारे लक्षण तो वही हैं, तुझे बहुत सावधानी से काम लेना पड़ेगा,’’ हर्षिता किसी बड़े विशेषज्ञ की तरह बोली.

‘‘कैसे लक्षण?’’

‘‘प्रेमरोग के लक्षण. मैं तो तुझे बहुत समझदार समझती थी, पर तू तो निरी बुद्धू निकली. मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि यश के जीवन में कोई और स्त्री आ गई है. उसी ने तुम लोगों के जीवन में उथलपुथल मचा दी है.’’

‘‘मैं नहीं मानती. यश में चाहे कितनी भी बुराइयां हों पर उस के चरित्र में कोई खोट नहीं है.’’

‘‘बड़ी भोली हो तुम. ऐसी स्त्रियां बहुत फरेबी होती हैं. इन के प्रभाव से तो विश्वामित्र जैसे ऋषिमुनि भी नहीं बच सके थे. यश तो फिर भी मनुष्य है.’’

‘‘ठीक है. मैं कल ही यश से बात करूंगी.’’

‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. मैं ने कहा न, तुम्हें सावधानी से काम  लेना पड़ेगा.’’

‘‘तो क्या करूं?’’

‘‘तुम्हें यश की हर गतिविधि पर नजर रखनी होगी. अच्छा होगा कि एक डायरी बना लो और उस में प्रतिदिन की घटनाएं लिखती जाओ.’’

‘‘पर कौन सी घटनाएं?’’

‘‘यही कि यश कब आता है, कब जाता है, किसकिस से मिलताजुलता है. घर आने पर उस की हर चीज का ध्यान से निरीक्षणपरीक्षण करो. सब से बड़ी बात कि यश के विरुद्ध कुछ सुबूत इकट्ठा करो.’’

‘‘उस से क्या होगा, मैं कौन सा उस के विरुद्ध कोर्टकचहरी के चक्कर लगाऊंगी?’’ अंबिका बोली.

‘‘तुम कुछ समझती नहीं हो. जब तुम यश पर किसी और स्त्री के चक्कर में होने का आरोप लगाओगी तो सुबूत तो पेश करने ही होंगे.’’

‘‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी. मुझे पूरा विश्वास है कि यश बेवफा हो ही नहीं सकता. तुम्हें तो स्वयं पता है कि यश किस तरह हमारा खयाल रखता था.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो. हम सब यश का उदाहरण देते थकते नहीं थे, पर अब तुम खतरे की घंटी स्वयं सुन रही हो तो तुम क्या अपने परिवार को सुरक्षित नहीं रखना चाहोगी?’’ हर्षिता ने प्रश्न किया.

‘‘क्यों नहीं, इसीलिए तो तुम्हें फोन किया था. पर मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती कि स्थिति और बिगड़ जाए.’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम्हें केवल थोड़ा सावधान रहना होगा. तुम कहती हो कि यश लंबे समय तक फोन पर बात करता है. कम से कम फोन नंबर पता करो. एक दिन जैसे ही यश घर से निकले, तुम पीछा करो. पता तो लगे कि सचाई क्या है?’’

‘‘मैं कोशिश करूंगी, हर्षिता, पर कोई वादा नहीं करती.’’

‘‘मेरे चाचाजी पुलिस में बड़े अफसर हैं. तुम चाहो तो हम उन की मदद ले सकते हैं. वे यश से बातचीत कर के कोई न कोई समाधान अवश्य निकाल लेंगे,’’ हर्षिता ने सुझाव दिया था.

‘‘नहीं, हर्षिता, यह परिवार के सम्मान की बात है. रतन भैया को सूचित किए बिना मैं ने ऐसा कुछ किया तो वे नाराज होंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम अच्छी तरह सोचविचार लो. क्या करना है, यह निर्णय तो तुम्हें ही लेना होगा. पर तुम्हें जब भी मेरी मदद की जरूरत हो, मैं तैयार हूं. स्वयं को कभी अकेला मत समझना,’’ हर्षिता ने आश्वासन दे कर विदा ली.

अंबिका देर तक अकेली बैठी सोचती रही. कहीं से कोई प्रकाश की किरण नजर नहीं आ रही थी. तभी अचानक उसे याद आया कि 3 दिन बाद ही आयुष का जन्मदिन है. हर वर्ष आयुष का जन्मदिन वे बड़ी धूमधाम से मनाते रहे हैं. उसे लगा कि इतनी सी बात भला उसे समझ में क्यों नहीं आई. पिछले जन्मदिन पर सब ने कितना धमाल किया था.

पांचसितारा होटल में ऐसी शानदार थीम पार्टी का आयोजन किया था यश ने कि सब ने दांतों तले उंगली दबा ली थी.

अंबिका को बड़ी राहत मिली थी. यश अवश्य ही आयुष के जन्मदिन पर ‘सरप्राइज पार्टी’ का आयोजन कर रहा है. तभी तो उस ने कुछ बताया नहीं. आज आने दो घर, खूब खबर लूंगी. कम से कम गेस्ट लिस्ट के बारे में तो उस से सलाह लेनी ही चाहिए थी.

इसी ऊहापोह में कब आंख लग गई, अंबिका को पता ही नहीं लगा. पर जब नींद खुली और यश का बिस्तर खाली देखा तो वह धक् से रह गई. यश रात को घर लौटा ही नहीं था. यदि वह घर नहीं लौटा तो उसे वह कहां ढूंढ़ने जाए. फूटफूट कर रोने का मन हो रहा था पर इस कठिन समय में आंसू भी उस का साथ छोड़ गए थे.

उस ने मशीनी ढंग से आयुष को तैयार कर स्कूल भेजा. तभी यश की कार की आवाज आई तो वह लपक कर मुख्यद्वार पर पहुंची.

‘‘कहां थे अब तक? कम से कम एक फोन ही कर दिया होता. चिंता के कारण मेरा बुरा हाल था. कल शाम से खाना तो क्या, मुंह में पानी की बूंद तक नहीं गई है,’’ अंबिका एक ही सांस में बोल गई थी पर यश बिना कोई उत्तर दिए अंदर चला गया.

‘‘मैं कुछ पूछ रही हूं, यश. मुझे अपने प्रश्नों के उत्तर चाहिए.’’

‘‘बाहर नौकरों के सामने तमाशा करने की क्या जरूरत है? ये प्रश्न घर में आ कर भी पूछे जा सकते हैं,’’ यश बोला.

‘‘तो अब बता दो, यश. रातभर कहां थे तुम? और यह भी कि मुझ से ऐसा क्या अपराध हो गया है कि तुम ने इस तरह मुंह फेर लिया है? तुम बहुत बदल गए हो, यश.’’

‘‘समय के साथ हर व्यक्ति बदल जाता है. तुम्हें नहीं लगता कि तुम आजकल इतने प्रश्न पूछने लगी हो कि स्वयं एक प्रश्नचिह्न बन कर रह गई हो. बारबार मैं कहां गया था, क्यों गया था जैसे प्रश्न मत किया करो, क्योंकि मेरे पास इन के उत्तर हैं ही नहीं. तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. कल से पानी भी नहीं पिया, जैसे ताने दे कर अपनी निरीहता भी मुझे मत दिखाओ. घर में क्या खाने का सामान नहीं है? मेरी 10 से 5 की नौकरी नहीं है. तुम लोगों के ऐशोआराम के लिए बहुत खटना पड़ता है. हर समय इन बातों का ब्योरा मत मांगा करो,’’ यश ने टका सा उत्तर दिया था. हालांकि मीठा बोल बोलने वाले यश ने अपना स्वर ऊंचा नहीं किया, पर उस की बातों से अंबिका का दिल छलनी हो गया.

अगले दिन आयुष का जन्मदिन था. सुबह से ही उसे शुभकामनाएं देने वालों के फोन आने लगे थे. पर यश भोर में ही उठ कर कहीं चला गया था. आयुष कई बार पूछ चुका था कि उस के जन्मदिन की पार्टी कहां होगी?

‘सरप्राइज पार्टी’ की प्रतीक्षा करते हुए शाम घिर आई थी. आयुष कंप्यूटर गेम्स खेलने में व्यस्त था. अपने जन्मदिन की बात शायद अब वह भूल ही गया था.

‘‘आयुष, कहां हो तुम? अंबिका, यश, घर में कोई है या नहीं?’’ जैसे प्रश्नों से सारा घर गूंज उठा था. यश के बड़े भाई रतनलाल, उन की पत्नी अंजलि व उन के दोनों बच्चे आए थे.

‘‘तुम लोग तो हमें याद करते नहीं, हम ने सोचा हम ही मिल आएं. आयुष बेटे, जन्मदिन मुबारक हो,’’ रतन ने बड़ा सा डब्बा आयुष को पकड़ा दिया.

‘‘इस की जरूरत नहीं थी, भाईसाहब. हम कोई पार्टी नहीं कर रहे,’’ अंबिका उदास स्वर में बोली.

‘‘पार्टी नहीं भी कर रहे तो क्या हुआ? आयुष को जन्मदिन का उपहार तो मिलना ही चाहिए,’’ अंजलि ने प्यार से आयुष का माथा चूम लिया.

‘‘यश कहां है? तुम लोग आजकल रहते कहां हो, महीनों से यश घर नहीं आया? तुम भी हमें भूल ही गई हो,’’ अंजलि ने उलाहना दिया.

उत्तर में अंबिका के मुख से एक शब्द भी नहीं निकला. वह स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सकी और फफक कर रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ?’’ अंजलि और रतन ने हैरानपरेशान स्वर में पूछा. बच्चे भी टकटकी लगा कर अंबिका को ही घूर रहे थे.

‘‘तुम लोग अंदर जा कर खेलो,’’ रतन ने बच्चों से कहा.

अंबिका ने आंसुओं को संभालते हुए रतन और अंजलि को सबकुछ बता दिया.

‘‘यश के रंगढंग बदले हुए हैं, यह तो मुझे भी लगा था. आजकल उस की किसी काम में रुचि नहीं रही, पर तुम लोगों के घरेलू जीवन में ऐसी उथलपुथल मची हुई है, इस की तो हम ने कल्पना भी नहीं की थी.

‘‘चिंता मत करो, अंबिका. मैं एकदो दिन में सब पता कर लूंगा. पहले तो मैं कल ही बच्चू से सब उगलवा लूंगा. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. आज आयुष के जन्मदिन की पार्टी हम ‘इंद्रप्रस्थ रिजोर्ट’ में करेंगे,’’ रतन ने कहा.

इंद्रप्रस्थ रिजोर्ट में आयुष का जन्मदिन मना कर रात में देर से लौटी थी अंबिका. आयुष प्रसन्नता से झूम रहा था.

अगली सुबह अंबिका पर मानो वज्रपात हुआ. फोन की घंटी बजी तो उनींदी सी अंबिका ने फोन उठाया.

‘‘हैलो, क्या मैं अंबिका राज से बात कर सकती हूं?’’ दूसरी ओर से किसी स्त्री का स्वर गूंजा था.

‘‘बोल रही हूं,’’ अंबिका बोली.

‘‘तुम से अधिक बेशर्म स्त्री मैं ने दूसरी नहीं देखी. जब यशराज तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता तो क्यों उस के गले पड़ी हो? छोड़ क्यों नहीं देतीं उसे?’’

‘‘कौन हो तुम? और मुझ से इस तरह बात करने का साहस कैसे हुआ तुम्हारा?’’ अंबिका की नींद हवा हो गई थी. वह ऐसे तड़प उठी मानो किसी ने बिजली का नंगा तार छुआ दिया हो.

‘‘मैं कौन हूं, यह महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, मैं जो कह रही हूं वह महत्त्वपूर्ण है. यशराज तुम्हारे साथ नहीं, मेरे साथ जीवन बिताना चाहता है. अपना और अपने बेटे का भला चाहती हो तो तुरंत बिस्तर बांधो और मुक्त कर दो मेरे यश को.’’

‘‘नहीं तो क्या कर लोगी तुम?’’ अंबिका चीखी.’’

‘‘यह तो समय आने पर ही पता चलेगा,’’ दूसरी ओर से अट्टहास सुनाई दिया.

काफी देर तक अंबिका पत्थर की मूर्ति की भांति बैठी रह गई. धीरेधीरे दिन बीता, शाम आई. देर रात गए यश घर लौटा और सोफे पर ही पसर गया. वह अब भी गहरी नींद में था.

पर आज अंबिका के संयम का बांध टूट गया. उस ने झिंझोड़ कर यश को जगाया. हैरान यश आंखें मलते हुए उठ बैठा.

‘‘तुम्हारी प्रेमलीला इस सीमा तक पहुंच जाएगी यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था. पर मेरे जीवन में जहर घोल कर तुम इस तरह चैन से नहीं सो सकते,’’ अंबिका बिफर उठी.

‘‘बात क्या है, अंबिका? इस तरह रोष में क्यों हो?’’

‘‘मेरे रोष का कारण जानना चाहते हो तुम? मुझ से मुक्ति चाहते हो? एक बार कह कर तो देखते, मैं यह उपकार भी कर देती. पर तुम ने तो अपनी प्रेमिका से कहलवा कर मुझे अपमानित करना ही उचित समझा.’’

‘‘किस ने अपमानित किया तुम्हें, अंबिका?’’ यश सन्न रह गया.

‘‘सबकुछ जानते हुए बनने का प्रयत्न मत करो. तुम्हारी सहमति के बिना किसी का मुझ से इस तरह बात करने का साहस नहीं हो सकता.’’

‘‘आओ, अंबिका, यहां बैठो मेरे पास. मैं तुम्हें सब सच बताऊंगा. मैं ने आज तक तुम्हें कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि जिस नर्क की आग में मैं जल रहा था, वह मेरे हंसतेखेलते परिवार को भस्म कर दे. पर अब शायद पानी सिर से गुजर गया है.’’

‘‘कौन है वह? मुझे इस तरह धमकी देने का साहस कैसे हुआ उस का?’’

‘‘वह एक डांसर है. बार में, होटलों में और छोटेमोटे उत्सवों में नाचगा कर अपना काम चलाती है. मेरा परिचय उस से मेरे मित्र तेजाश्री ने कराया था. मैं भी शराब के नशे में शायद बहक गया था. तब से वह मुझे यह कह कर ब्लैकमेल करती रही कि मेरे संबंध के बारे में वह तुम्हें बता देगी, पत्रपत्रिकाओं में फोटो छपवा देगी. अब तक वह मुझ से लाखों रुपए ऐंठ चुकी है और अब उस ने मुझ पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि तुम्हें छोड़ कर उस से विवाह कर लूं वरना अपने गुंडों से हमारे पूरे परिवार को तबाह करवा देगी.’’

‘‘इतना कुछ हो गया और तुम ने मुझे हवा तक नहीं लगने दी. पतिपत्नी यदि सुखदुख के साथी न हों तो दांपत्य जीवन का अर्थ ही क्या है?’’ अंबिका क्रोधित स्वर में बोली.

‘‘मुझे लगा था कि इस समस्या से मैं स्वयं निबट लूंगा पर मैं जितना इसे सुलझाने का प्रयत्न करता उतना ही उलझता जाता. अब यह नाराजगी छोड़ो और सोचो कि आगे क्या करना है,’’ यश याचनाभरे स्वर में बोला.

‘‘मैं रतन भैया को फोन कर के बुलाती हूं. रतन भैया और अंजलि भाभी कल आए थे. हम सब साथ गए थे आयुष का जन्मदिन मनाने. मैं ने उन्हें सब बता दिया था.’’

रतनराज तुरंत चले आए थे. सारी बातें विस्तार से सुन कर उन के आश्चर्य की सीमा नहीं रही. यश ऐसी मुसीबत में फंस सकता है, यह उन की समझ से परे था. अंबिका ने हर्षिता को भी बुला लिया था. वे सब मिल कर हर्षिता के चाचाजी से मिलने गए.

‘‘यह तो सीधासादा ब्लैकमेल का चक्कर है. हमारे पास तो हरदिन ऐसी सैकड़ों शिकायतें आती हैं. आप मेरी मानें तो पुलिस में रपट कर दें. इन लोगों का साहस इतना बढ़ गया है कि अब ये बड़े मुरगों को फंसाने की ताक में रहते हैं,’’ हर्षिता के अंकल ने सलाह देते हुए कहा.

रतनराज और यशराज जैसे रसूख वाले परिवार के साथ ऐसा हो सकता है, यह सोच कर सभी हैरान थे.

रतन की सलाह से यश अपने परिवार के साथ विएना चला गया.

‘‘मैं यहां सब संभाल लूंगा. तुम वहां के कार्यालय की जिम्मेदारी संभालो. वैसे भी मैं तुम्हें कुछ समय के लिए विएना भेजने की सोच रहा था,’’ रतनराज ने कहा.

हवाई जहाज में बैठने के बाद यश ने चैन की सांस ली थी. आज उसे एहसास हुआ कि अपनी परेशानियों को परिवारजनों से न बांट कर न केव?ल उस ने भूल की थी बल्कि उन पर अन्याय भी किया था. अब उसे लग रहा था कि यह तो अक्षम्य अपराध था जिस ने उसे बरबादी के कगार पर ला कर खड़ा कर दिया था.

 

Best Hindi Story : छोटी बेटी कुहू

 

Best Hindi Story : वह अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. 3 बहनें उस से बड़ी थीं. हम लोग उस के पड़ोस में रहते थे. उस के लालनपालन को देख कर बचपन से ही मैं उस से जलता था.

वह मुझ से 5 साल छोटा था, पर उसे वे सारी सुविधाएं मुहैया थीं, जिन की चाह अकसर हर बच्चे को होती है.

उस के पास खेलने के लिए महंगे खिलौने थे, पहनने को एक से एक मौडर्न पोशाकें थीं, पढ़ने के लिए तरहतरह की पत्रिकाएं और कहानियों की ढेरों किताबें थीं.

कम आमदनी के बावजूद भी उस के पिता उस की तमाम जायज और नाजायज जरूरतों को पूरा करने में खुशी महसूस करते थे, जिस की भरपाई बहनों से होती थी. उन की तो आम जरूरतें ही पूरी नहीं होती थीं.

वे तीनों एक जोड़ी कपड़े में साल निकाल देती थीं. पढ़नेलिखने के लिए किताबें और कौपियां भी नहीं होती थीं. लड़कियां पढ़लिख लें, इस की चिंता मांबाप को कतई नहीं थी. लड़कियां घर के कामकाज में लगी रहती थीं और मांबाप बेटे की देखभाल में.

दोनों बड़ी बहनों की पढ़ाई 5वीं-6ठी क्लास तक ही सिमट कर रह गई. उन्हें इस की कोई शिकायत नहीं थी, बल्कि उन्होंने तो छोटी उम्र से ही  झाड़ूपोंछा से ले कर चौकाबरतन तक सभी कामों में अपनेआप को ढाल लिया था, घर का सारा काम संभाल लिया था, बल्कि ऐसा करने पर उन्हें मजबूर किया गया था, क्योंकि नौकरचाकर को तो खर्च में कटौती के लिए हटाया जा चुका था. तकलीफें तो बहनों को सहनी पड़ी थीं.

लेकिन, जो सब से ज्यादा अनदेखी की शिकार हुई थी, वह थी कुहू. बस, इसी के चलते उसे बचपन से ही पढ़ाईलिखाई में बेहद दिलचस्पी थी. घर के कामकाज से उसे न कोई लगाव था और न ही कोई इच्छा थी. वह दिनभर पढ़नेलिखने में ही लगी रहती थी, जिस का खमियाजा उसे मां की डांटफटकार से भुगतना पड़ता था.

मां से डांट पड़ती… वे कहतीं, ‘‘क्या कर लेगी पढ़लिख कर. लड़की जात है, कुछ भी कर ले, चूल्हाचौका में सिमट कर रह जाएगी. बेहतर है कि अभी से घरगृहस्थी के काम सम झ ले, नहीं तो बाद में पछताएगी. फिर न कहना कि मां ने यह सब सिखाया नहीं था.’’

कभीकभी उसे मार भी पड़ती थी. बड़ी दोनों बहनें काम करती थीं, इसलिए उन्हें मार नहीं पड़ती थी. ये सब बातें कुहू के दिलोदिमाग पर इस तरह से रचबस गई थीं कि बरसों बाद आज जब मैं उस से मिला, तो आगबबूला हो कर अपनी भड़ास निकालते हुए मु झे बताने लगी.

दरअसल, मैं उस की बड़ी बहन की शादी में शरीक होने आया था. इधरउधर की बातों के बाद जब मैं ने उस के भाई संतु के बारे में जानने की इच्छा जाहिर की, तो वह भड़क गई और अनापशनाप बकने लगी.

गुस्से में कुहू न जाने क्याक्या कह गई, ‘‘तीसरी बेटी के रूप में पैदा होना जैसे मेरे लिए एक कलंक था… शायद मांबाप की इच्छा के खिलाफ मैं पैदा हो गई थी. एक साल के बाद ही संतोष उर्फ संतु पैदा हुआ था. बेटे के आते ही घर में रौनक का माहौल बन गया था. मांबाप का उस के प्रति जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार से मैं असहज महसूस करती. अपनेआप को मातापिता की नजरों में हमेशा गिरा हुआ पाती. अपने प्रति मां के भेदभाव को तब मैं अच्छी तरह सम झने लगी थी. मेरे पैदा होते ही गुस्से से पिता ने भगवान की फोटो को नदी में फेंक कर घर में पूजापाठ पर रोक लगा दी थी,’’ ऐसा बताते हुए कुहू फूटफूट कर रो पड़ी थी.

संतु के पैदा होते ही भगवान को घर में फिर से प्रतिष्ठित किया गया था और घर में पूजापाठ फिर से शुरू हो गया था. ऐसा कुहू ने सुना था और भी उस ने बताया कि किस तरह खानेपहनने में उन की मां उन के साथ भेदभाव किया करती थीं… ‘‘सुबह नाश्ते में अकसर हम बहनों के लिए बासी रोटी होती थी और वे भी रूखीसूखी, जबकि संतु के लिए परांठे और मक्खन. दूध, दही, फल वगैरह के लिए तो हम बहनें तरस ही जाती थीं.

‘‘संतु के खाने के बाद अगर कुछ बचता तो ही हमें नसीब होता था. एक जोड़ी स्कूल के कपड़ों से हफ्ता निकाल देती थीं… पसीने की बदबू आती थी, सहेलियां फब्तियां कसती थीं, जबकि संतु की पोशाक हमेशा लौंड्री से धुली हुई होती थी.

‘‘इस्तरी वाले पोशाक हम बहनें सिर्फ किसी खास मौके पर, जैसे गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस पर ही पहनती थीं, जिस के लिए हम शाम को स्कूल के बाद खुद अपने कपड़े धोतीं और पंखे के नीचे सुखाया करतीं…

‘‘बड़ी दीदी कपड़ों पर इस्तरी कर देतीं. कभीकभी कपड़े सूख नहीं पाते और गीले कपड़ों में ही स्कूल जाना पड़ता था… और वहीं संतु… जिसे मांबाप ने सिर पर बिठा रखा था, आज..’’  कहतेकहते कुहू दोबारा फफक कर रो पड़ी.

कुहू की इन बातों से कुछ पता चले या न चले, पर इतना तो साफ हो गया था कि संतु के किसी गैरजिम्मेदाराना बरताव से उसे गहरा सदमा पहुंचा है और वह दुखी है. ऐसे समय में मैं ने उसे कुरेदना ठीक नहीं सम झा. मैं ने उसे हिम्मत बंधा कर चुप कराया.

शादी में काफी लोग थे. पर न जाने क्यों चहलपहल में कमी कहीं न कहीं मु झे डरा रही थी. मैं 10 साल बाद इस परिवार से मिल रहा था.

मेरी 10वीं जमात के बाद पिताजी का तबादला हो गया और उस के बाद कभी कोई ऐसा मौका नहीं आया कि हम मिलते. कुहू से कालेज में बातचीत हो जाती थी… पर सीमित रूप से. कई पुराने दोस्तों से वहां मुलाकात हुई. उन लोगों से ही संतु के बारे में जानकारी मिली और उस के वहां न होने की वजह साफ हो गई.

दरअसल, कालेज में फर्स्ट ईयर के दौरान संतु पिंकी के प्रेमपाश में फंस गया था, जिस पर कुहू ने एतराज जताया था, क्योंकि कुहू पिंकी के चरित्र से अच्छी तरह वाकिफ थी.

पिंकी कुहू की हमउम्र थी. दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. पिंकी को डांस में दिलचस्पी थी. वह बचपन से ही कथक डांस की तालीम ले रही थी. स्कूल हो या कालोनी… सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में डांस करने के लिए उसे कहा जाता था. डांस के सिलसिले में उसे अपने ग्रुप के साथ शहर से बाहर भी जाना पड़ता था.

कुहू और पिंकी दोनों अच्छी सहेली हुआ करती थीं. दोनों का एकदूसरे के घर पर आनाजाना था. उन का एकसाथ पढ़नालिखना और घूमनाफिरना भी था. तब पिंकी के कई बौयफ्रैंड हुआ करते थे, जो शायद पिंकी के मुताबिक डांस ग्रुप से ही जुड़े थे, इसलिए कुहू उन से अनजान थी.

स्कूल जाते हुए या कभी शाम को टहलते हुए उन दोस्तों में से कोई न कोई पिंकी से मिलने आ जाता था. कई बार कुहू को उन के मिलनेजुलने का ढंग अच्छा नहीं लगता था. वह पिंकी से इस की शिकायत भी करती, पर वह किसी न किसी बहाने सबकुछ टाल जाती.

कई बार तो पिंकी रातरात भर घर से बाहर रहती, पर अपने घर पर बता कर आती कि वह कुहू के घर जाएगी गणित की प्रैक्टिस करने. कभीकभी तो किसी कार्यक्रम के लिए डांस की प्रैक्टिस करने का बहाना बना कर रातभर घर से नदारद रहती थी.

पिंकी की मां के पूछने पर कुहू वैसा ही बताती, जैसा कि उसे पिंकी के द्वारा कहने को कहा जाता था. उस के लिए कुहू को बेवजह ही  झूठ बोलना पड़ता था, जो वह नहीं चाहती थी. उन लड़कों के चालचलन पर उसे शक होने लगा था. यकीनन, ये आवारा लड़के ही थे, जिन से पिंकी का मेलजोल था.

पूछने पर पहले तो कुहू ने आनाकानी की, पर असलियत का पता चलते ही फौरन कुहू ने पिंकी से दूरी बना ली. फिर भी पिंकी कहीं न कहीं किसी रैस्टोरैंट में, पार्क में या सड़क पर किसी पेड़ की आड़ में लड़कों के साथ मटरगश्ती करती दिख ही जाती. कभी किसी के साथ तो कभी कोई और होता था. खुले आसमान में चिडि़या अपने पंख फैला कर उड़ रही थी… न कोई दिशा थी और न ही कोई मंजिल.

अब संतु की बारी थी. वह भी पिंकी के प्यार के चंगुल से बच नहीं पाया. वह पिंकी पर फिदा हो चुका था. सरेआम दोनों का मिलनाजुलना होता था.

पिंकी के साथ संतु का मेलजोल कुहू को बिलकुल बरदाश्त नहीं था, क्योंकि पिंकी की कोई भी बात उस से छिपी तो थी नहीं.

कुहू नहीं चाहती थी कि उस का भाई पिंकी के साथ रह कर बिगड़ जाए. उस की पढ़ाई में कहीं बाधा न हो.

जब कुहू ने अपना कड़ा एतराज जताया, तो संतु ने अपनी बहन को ही भलाबुरा कह डाला. तमतमाए चेहरे से अपनी बहन को ओछी सोच वाला बताया और यह भी कह डाला कि वह पिंकी से जलती है.

कुहू संतु को साफसाफ कहना चाहती थी, ‘गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड का होना हर किसी का निजी मामला है. किसी को उस में दखल देने का कोई हक नहीं है. फिर किसी के तुम्हारी गर्लफ्रैंड होने से भला मु झे कोई शिकायत या परेशानी क्यों होगी. दरअसल, परेशानी की बात यह है कि पिंकी की बुरी संगति से एतराज है.’

पर कुहू ने चुप रहना ही उचित सम झा, क्योंकि उसे यकीन था कि जल्दी ही पिंकी आदतन संतु को भी अपने हाल पर छोड़ कर किसी और को फंसा लेगी.

आखिर हुआ भी वही…  संतु को ठुकरा कर पिंकी पैसों के लिए किसी और के साथ अठखेलियां करने लगी

थी. पर एक पागल प्रेमी की तरह संतु अपनेआप को पिंकी से अलग होने की बात सोच भी नहीं सकता था.

वह पिंकी के पीछे हाथ धो कर पड़ गया. उस ने दाढ़ी बढ़ा ली और पिंकी के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगा, ताकि पिंकी उस पर तरस खा कर फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ा ले.

पर पिंकी तो पुरानी खिलाड़ी निकली. उस ने अपना पुराना नुसखा आजमाया. नतीजतन, संतु चोटिल हालत में अस्पताल के बैड पर कराहता मिला. इन सब बातों के बावजूद अपनी बहन के साथ उस का संबंध बिगड़ा ही रहा.

संतु का पिंकी की निजी जिंदगी में दखल पिंकी और उस के बौयफ्रैंड को गवारा न हुआ. संतु से छुटकारा पाने के लिए पिंकी और उस के बौयफ्रैंड ने कोर्टमैरिज कर ली. इस में शायद उस के बौयफ्रैंड की ही पहल रही होगी.

अब तो संतु पढ़ाई वगैरह छोड़ पागलों की तरह भटकने लगा. उसे शराब की लत लग गई थी. घर पर वह कभीकभार ही आता था.

संतु की बदहाली पर घर के सभी सदस्य परेशान थे. जिस लड़के को मांबाप ने बेटियों की सामान्य जरूरतों की अनदेखी कर लाड़प्यार से पालापोसा, उस की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी.

आज संतु दरदर भटक रहा है. किस मांबाप से यह सब सहन होगा… घर पर पहली शादी थी और घर का एकलौता बेटा इस खुशी के मौके पर नहीं था. खुशी के माहौल में वहां मातम सा पसरा था.

संतु कुछेक साल यों ही गुमशुदा रहा. हुआ यों कि आखिरी बार जब वह घर आया था और मांबाप ने उस की शादी की बात चलाई थी, तो उस ने साफ मना कर दिया था.

संतु ने कहा था कि वह शादी नहीं करेगा और अगर करेगा भी तो किसी विधवा से करेगा. शादी और विधवा से? ऐसे बेतुके लगने वाले प्रस्ताव पर किसी की रजामंदी नहीं थी.

पहले कुहू ने ही अपना विरोध जताया था, मातापिता ने बस कुहू के फैसले पर हामी भरी थी, पर उन के अंदर की सुगबुगाहट किसी से छिपी नहीं थी. आखिर बेटा जो ठहरा.

दरअसल, उन्हें अपने बेटे के द्वारा लिए गए फैसले को किसी क्रांतिकारी कदम से कम नहीं सू झा. पर, खुल कर कुछ कहने से बचे रहे. वे कुहू के खिलाफ जा कर उसे नाराज नहीं करना चाहते थे. कुहू ही तो एकमात्र सहारा थी. वैसे भी दोनों बड़ी बहनें शादी के बाद ससुराल में थीं. संतु अपने फैसले पर अडिग रहा.

जातेजाते संतु ने इसे अपना फैसला बताते हुए कहा कि चाहे कुछ भी हो, वह ऐसा कर दिखलाएगा. संतु के मुंह से विधवा विवाह वाली बात सभी की समझ से परे थी.

संतु कहीं बाहर चला गया. किसी ने भी उसे ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की. सुनीसुनाई खबर थी कि आजकल वह हरिद्वार के किसी आश्रम में रह रहा है और योग सिखा रहा है. इस बात से पता नहीं क्यों मु झे बड़ा सुकून मिला.

मु झे महसूस हुआ कि शायद अब संतु सुधर गया है, वरना किसी विधवा से विवाह की बात उस के मन में क्यों आई. उस में मु झे समाजसुधारक की छवि नजर आने लगी. उस से मिलने की इच्छा मेरे मन में जाग गई, पर सिर्फ मन मसोस कर रह जाना पड़ा. सिवा इस के मेरे पास कोई उपाय नहीं था.

बूढ़े मांबाप के साथ अब अकेली कुहू ही रह गई. अपने मांबाप को साथ लिए इलाहाबाद आ गई. वहां वह कालेज में टीचिंग का काम कर रही है.

कुहू को दुख इस बात का था कि मांबाप की हर खुशी का ध्यान रखते हुए भी उस के लिए उन्हें कोई फिक्र न थी, बल्कि बातबात में संतु को याद कर के वे परेशान होते.

इसी सदमे में पिताजी चल बसे. संतु का कोई ठिकाना नहीं था. उसे यह खबर नहीं दी जा सकी. मैं पहुंच गया था.

कुहू की मां को अब अपने पति के खोने का गम सताने लगा था. वे कुछ ज्यादा ही बेचैन रहने लगी थीं. उन्हें शायद यह डर था कि कुहू शादी कर लेगी, तो उन का क्या होगा? वे कहां रहेंगी? इस शक से तो वह शायद पति के रहते हुए भी चिंतित थीं, लेकिन कभी खुलासा नहीं किया था.

आजकल मां के हावभाव से कुहू सम झने लगी है. कभीकभार तो अनायास ही इशारेइशारे में कुछ कह जाती हैं. अब पहले की तरह कोसती नहीं. बचपन में बातबात पर कोसती थीं. पढ़नेलिखने में बाधा पैदा करती थीं.

कितनी छोटी सोच थी कि बेटा पढ़लिख कर मांबाप के बुढ़ापे का सहारा बनेगा. बेटी पढ़ेगी तो क्या कर लेगी, आखिर ससुराल ही तो जाएगी. अपने मांबाप के लिए तो पराई ही होगी…

तभी तो बचपन से कुहू ने अपने घर में पराई होने जैसी दुखद घडि़यों को जिया है. बचपन से ही उसे पढ़ने की जिद रही है. माहौल न होने के बावजूद भी उस ने पढ़ाई जारी रखी. बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती और उन्हीं पैसों से पढ़ाई का खर्च निकालती.

एमए के बाद कुहू टीचिंग में आ गई. साथसाथ पीएचडी भी कर रही है. अपनी हैसियत पर हर टारगेट को हासिल किया है उस ने. दोनों बहनों की शादी में हाथ बंटाया, वरना उस के पिताजी की आमदनी ही कितनी थी. उस ने अपनी जिम्मेदारी से कभी मुंह नहीं मोड़ा. अब इस हालत में मां को छोड़ कर अपनी शादी की बात कैसे सोच सकती थी वह.

बचपन से ही हम एकदूसरे को चाहते थे. बड़े हुए तो बड़ी सादगी से मिलते थे. रिश्ते को निभाने में शुरू से हम ने कभी ऐसी कोई फूहड़ हरकत नहीं की, जिस से हमारे संबंध की भनक तक किसी को पड़ती.

हम दोनों के रिश्ते की बात सिर्फ हम ही जानते थे. हम एकदूसरे की तकलीफों और मजबूरियों को बखूबी सम झते थे. किसी ने भी कभी कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई, तभी तो हमारे संबंध मजबूत थे.

कुहू ने बताया कि एक दिन अचानक संतु मां को लेने आ गया. उस ने शादी कर ली थी. यही बताया था संतु ने मां को. मां तो जैसे बेटे के इंतजार में बिलकुल तैयार बैठी थीं. बेटे के साथ ऐसी गईं, मानो अचानक तय समय से पहले किसी कैदी की सजा माफ कर दी गई हो. ऐसा लगा जैसे वह यहां कैदी

की जिंदगी जी रही थीं और छुटकारा मिलते ही भाग खड़ी हुईं. कुछ कह कर भी नहीं गईं.

कुहू उन्हें जाते हुए देखती रह गई. मुड़ कर भी पीछे नहीं देखा था उन्होंने. यहां से चले जाने के बाद वह अकेली कैसे रहेगी, पूछा तक नहीं.

कुहू की 10 साल की तपस्या एक पल में भंग हो गई, मानो इस जमाने में लड़की के रूप में जन्म लेना ही पाप है. रोरो कर कुहू का बुरा हाल था. उसे दिलासा देने वाला कोई भी साथ नहीं था. उस के कहने पर एक परची में संतु अपना पता छोड़ गया था.

अचानक एक दिन कुहू ने मु झे आने को कहा. आननफानन में ही हम दोनों ने आर्य समाज विधि से शादी कर ली. सिर्फ मेरे घर के लोग शादी में थे.

कुहू ने किसी को भी नहीं बुलाया था. मां, बहनें और भाई किसी को भी नहीं. जब किसी को उस की फिक्र नहीं है, तो वह क्यों उन्हें बुलाए.

उन लोगों के प्रति कुहू के मन में गुस्सा होना मुझे लाजिमी लगा. मेरे घर के लोग इस शादी से बेहद खुश लगे.

कई महीने बीत गए. पता नहीं अचानक कुहू को मां की याद आने लगी. हम दोनों ने उन से मिलने का मन बनाया. हरिद्वार के किसी आश्रम का पता परची में लिखा था.

जब हम वहां आश्रम में पहुंच कर संतु के बारे में पूछताछ कर रहे थे, तो मैलीकुचैली साड़ी में लिपटी एक दुबली सी बुढि़या कुहू से लिपट कर रोने लगीं.

वे मां हो सकती हैं, हम ने कल्पना भी नहीं की थी. वे सूख कर कांटा हो चुकी थीं, पहचानना मुश्किल हो रहा था.

मां की हालत पर कुहू भी बिलख कर रोने लगी थी. उन्हें शांत कराया. मां हमें संतु के घर पर ले गईं. वहां संतु नहीं था और न ही उस की पत्नी. वे कई दिनों से शहर से बाहर किसी योग शिविर में गए हुए थे.

मां ने बताया कि महीने में 20 दिन वे लोग घर से बाहर रहते हैं. हमें मां की बदहाली की वजह सम झते देर नहीं लगी. वहां दीवार पर टंगी फोटो में संतु के साथ पिंकी थी.

पिंकी के पति की मौत में हत्या का जो शक जताया जा रहा था, उस की तसदीक तो नहीं हो पाई थी, पर संतु को जिस विधवा विवाह की बात पर जिद थी, उस के पीछे की कहानी साफ हो गई थी.

तकरीबन घंटाभर रहने के बाद जब हम निकलने लगे, तो मां एक साफ साड़ी में तैयार हो कर बड़ी बेबसी से कुहू के चेहरे पर उभरते भावों को अपनी सूनी निगाहों से टोह रही थीं. कुहू ने विनम्र आंखों से मेरी रजामंदी मांगी थी. मां को साथ ले कर हम वहां से वापस आ गए.

लेखक – प्रदीप कुमार रॉय 

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Online Hindi Story : देवरानी की मुहिम

Online Hindi Story : संयुक्त परिवार की छोटी बहू बने हुए रचना को एक महीना ही हुआ था कि उस ने घर के माहौल में अजीब सा तनाव महसूस किया. कुछ दिन तो विवाह की रस्मों व हनीमून में हंसीखुशी बीत गए पर अब नियमित दिनचर्या शुरू हो गई थी. निखिल औफिस जाने लगा था. सासूमां राधिका, ससुर उमेश, जेठ अनिल, जेठानी रेखा और उन की बेटी मानसी का पूरा रुटीन अब रचना को समझ आ गया था. अनिल घर पर ही रहते थे. रचना को बताया गया था कि वे क्रौनिक डिप्रैशन के मरीज हैं. इस के चलते वे कहीं कुछ काम कर ही नहीं पाते थे. उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था. यह बीमारी उन्हें कहां, कब और कैसे लगी, किसी को नहीं पता था.वे घंटों चुपचाप अपने कमरे में अकेले लेटे रहते थे.

जेठानी रेखा के लिए रचना के दिल में बहुत सम्मान व स्नेह था. दोनों का आपसी प्यार बहनों की तरह हो गया था. सासूमां का व्यवहार रेखा के साथ बहुत रुखासूखा था. वे हर वक्त रेखा को कुछ न कुछ बुराभला कहती रहती थीं. रेखा चुपचाप सब सुनती रहती थी. रचना को यह बहुत नागवार गुजरता. बाकी कसर सासूमां की छोटी बहन सीता आ कर पूरा कर देती थी. रचना हैरान रह गई थी जब एक दिन सीता मौसी ने उस के कान में कहा, ‘‘निखिल को अपनी मुट्ठी में रखना. इस रेखा ने तो उसे हमेशा अपने जाल में ही फंसा कर रखा है. कोई काम उस का भाभी के बिना पूरा नहीं होता. तुम मुझे सीधी लग रही हो पर अब जरा अपने पति पर लगाम कस कर रखना. हम ने अपने पंडितजी से कई बार कहा कि रेखा के चक्कर से बचाने के लिए कुछ मंतर पढ़ दें पर निखिल माना ही नहीं. पूजा पर बैठने से साफ मना कर देता है.’’ रचना को हंसी आ गई थी, ‘‘मौसी, पति हैं मेरे, कोई घोड़ा नहीं जिस पर लगाम कसनी पड़े और इस मामले में पंडित की क्या जरूरत थी?’’

इस बात पर तो वहां बैठी सासूमां को भी हंसी आ गई थी, पर उन्होंने भी बहन की हां में हां मिलाई थी, ‘‘सीता ठीक कह रही है. बहुत नाच लिया निखिल अपनी भाभी के इशारों पर, अब तुम उस का ध्यान रेखा से हटाना.’’ रचना हैरान सी दोनों बहनों का मुंह देखती रही थी. एक मां ही अपनी बड़ी बहू और छोटे बेटे के रिश्ते के बारे में गलत बातें कर रही है, वह भी घर में आई नईनवेली बहू से. फिर वह अचानक हंस दी तो सासूमां ने हैरान होते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात पर हंसी आ रही है?’’

‘‘आप की बातों पर, मां.’’

सीता ने डपटा, ‘‘हम कोई मजाक कर रहे हैं क्या? हम तुम्हारे बड़े हैं. तुम्हारे हित की ही बात कर रहे हैं, रेखा से दूर ही रहना.’’ सीता बहुत देर तक उसे पता नहीं कबकब के किस्से सुनाने लगी. रेखा रसोई से निकल कर वहां आई तो सब की बातों पर बे्रक लगा. रचना ने भी अपना औफिस जौइन कर लिया था. उस की भी छुट्टियां खत्म हो गई थीं. निखिल और रचना साथ ही निकलते थे. लौटते कभी साथ थे, कभी अलग. सुबह तो रचना व्यस्त रहती थी. शाम को आ कर रेखा की मदद करने के लिए तैयार होती तो रेखा उसे स्नेह से दुलार देती, ‘‘रहने दो रचना, औफिस से आई हो, आराम कर लो.’’

‘‘नहीं भाभी, सारा काम आप ही करती रहती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘कोई बात नहीं रचना, मुझे आदत है. काम में लगी रहती हूं तो मन लगा रहता है वरना तो पता नहीं क्याक्या टैंशन होती रहेगी खाली बैठने पर.’’ रचना उन का दर्द समझती थी. पति की बीमारी के कारण उस का जीवन कितना एकाकी था. मानसी की भी चाची से बहुत बनती थी. रचना उस की पढ़ाई में भी उस की मदद कर देती थी. 6 महीने बीत गए थे. एक शनिवार को सुबहसुबह रेखा की भाभी का फोन आया. रेखा के मामा की तबीयत खराब थी. रेखा सुनते ही परेशान हो गई. इन्हीं मामा ने रेखा को पालपोस कर बड़ा किया था. रचना ने कहा, ‘‘भाभी, आप परेशान मत हों, जा कर देख आइए.’’

‘‘पर मानसी की परीक्षाएं हैं सोमवार से.’’

‘‘मैं देख लूंगी सब, आप आराम से जाइए.’’

सासूमां ने उखड़े स्वर में कहा, ‘‘आज चली जाओ बस से, कल शाम तक वापस आ जाना.’’

रेखा ने ‘जी’ कह कर सिर हिला दिया था. उस का मामामामी के सिवा कोई और था ही नहीं. मामामामी भी निसंतान थे. रचना ने कहा, ‘‘नहीं भाभी, मैं निखिल को जगाती हूं. उन के साथ कार में आराम से जाइए. यहां मेरठ से सहारनपुर तक बस के सफर में समय बहुत ज्यादा लग जाएगा. जबकि इन के साथ जाने से आप लोगों को भी सहारा रहेगा.’’ सासूमां का मुंह खुला रह गया. कुछ बोल ही नहीं पाईं. पैर पटकते हुए इधर से उधर घूमती रहीं, ‘‘क्या जमाना आ गया है, सब अपनी मरजी करने लगे हैं.’’ वहीं बैठे ससुर ने कहा, ‘‘रचना ठीक तो कह रही है. जाने दो उसे निखिल के साथ.’’ राधिका को और गुस्सा आ गया, ‘‘आप चुप ही रहें तो अच्छा होगा. पहले ही आप ने दोनों बहुओं को सिर पर चढ़ा रखा है.’’ निखिल पूरी बात जानने के बाद तुरंत तैयार हो कर आ गया था, ‘‘चलिए भाभी, मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगा, जब तक मामाजी ठीक नहीं होते हम वहीं रहेंगे.’’ रचना ने दोनों को नाश्ता करवाया और फिर प्रेमपूर्वक विदा किया. अनिल बैठे तो वहीं थे पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी. दोनों चले गए तो वे भी अपने बैडरूम में चले गए. शनिवार था, रचना की छुट्टी थी. वह मेड अंजू के साथ मिल कर घर के काम निबटाने लगी.

शाम तक सीता मौसी फिर आ गई थीं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी और अपने बेटेबहू से उन की बिलकुल नहीं बनती थी इसलिए घर में उन का आनाजाना लगा ही रहता था. उन का घर दो गली ही दूर था. दोनों बहनें एकजैसी थीं, एकजैसा व्यवहार, एकजैसी सोच. सीता ने आराम से बैठते हुए रचना से कहा, ‘‘तुम्हें समझाया था न अपने पति को जेठानी से दूर रखो?’’

 

रचना मुसकराई, ‘‘हां मौसी, आप ने समझाया तो था.’’

‘‘फिर निखिल को उस के साथ क्यों भेज दिया?’’

‘‘वहां अस्पताल में मामीजी और भाभी को कोई भी जरूरत पड़ सकती है न.’’

सीता ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘दीदी, छोटी बहू को तो जरा भी अक्ल नहीं है.’’

राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.’’ रचना घर का काम खत्म कर सुस्ताने के लिए लेटी तो सीता मौसी वहीं आ गईं. रचना उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘आओ, मौसी.’’ आराम से बैठते हुए सीता ने पूछा, ‘‘तुम कब सुना रही हो खुशखबरी?’’

‘‘पता नहीं, मौसी.’’

‘‘क्या मतलब, पता नहीं?’’

‘‘मतलब, अभी सोचा नहीं.’’

‘‘देर मत करो, औलाद पैदा हो जाएगी तो निखिल उस में व्यस्त रहेगा. कुछ तो भाभी का भूत उतरेगा सिर से और आज तुम्हें एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘हां बताइए.’’

‘‘मैं ने सुना है मानसी निखिल की ही संतान है. अनिल के हाल तो पता ही हैं सब को.’’ रचना भौचक्की सी सीता का मुंह देखती रह गई, ‘‘क्या कह रही हो, मौसी?’’

‘‘हां, बहू, सब रिश्तेदार, पड़ोसी यही कहते हैं.’’ रचना पलभर कुछ सोचती रही, फिर सहजता से बोली, ‘‘छोडि़ए मौसी, कोई और बात करते हैं. अच्छा, चाय पीने का मूड बन गया है. चाय बना कर लाती हूं.’’ सीता हैरानी से रचना को जाते देखती रही. इतने में राधिका भी वहीं आ गई. सीता को हैरान देख बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे, यह तुम्हारी छोटी बहू कैसी है? इसे कुछ भी कह लो, अपनी धुन में ही रहती है.’’ राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, धोखा खाएगी किसी दिन, अपनी आंखों से देख लेगी तो आंखें खुलेंगी. हम बड़े अनुभवी लोगों की कौन सुनता है आजकल.’’ रचना ने टीवी देख रहे ससुरजी को एक कप चाय दी, फिर जा कर रेखा के बैडरूम में देखा, अनिल गहरी नींद में था. फिर राधिका और सीता के साथ चाय पीनी शुरू ही की थी कि रचना का मोबाइल बज उठा. निखिल का फोन था. बात करने के बाद रचना ने कहा, ‘‘मां, भाभी के मामाजी को 3-4 दिन अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. ये छुट्टी ले लेंगे, भाभी को साथ ले कर ही आएंगे.

‘‘मैं ने भी यही कहा है वहां आप दोनों देख लो, यहां तो हम सब हैं ही.’’ राधिका ने डपटा, ‘‘तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रहा. जो रेखा चाहती है निखिल वही करता है. तुम से कहा था न निखिल को उस से दूर रखो.’’

‘‘आप चिंता न करें, मां. मैं देख लूंगी. अच्छा, मानसी आने वाली है, मैं उस के लिए कुछ नाश्ता बना लेती हूं और मैं भाभी के आने तक छुट्टी ले लूंगी जिस से घर में किसी को परेशानी न हो.’’ दोनों को हैरान छोड़ रचना काम में व्यस्त हो गई.

सीता ने कहा, ‘‘इस की निश्चिंतता का आखिर राज क्या है, दीदी? क्यों इस पर किसी बात का असर नहीं होता?’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, सीता.’’ निखिल और रेखा लौट आए थे. रेखा और रचना स्नेहपूर्वक लिपट गईं. उमेश वहां के हालचाल पूछते रहे. अनिल ने सब चुपचाप सुना, कहा कुछ नहीं. उन का अधिकतर समय दवाइयों के असर में सोते हुए ही बीतता था. उन्हें अजीब से डिप्रैशन के दौरे पड़ते थे जिस में वे कभी चीखतेचिल्लाते थे तो कभी घर से बाहर भागने की कोशिश करते थे. सासूमां को रेखा फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि वे खुद ही उसे बहू बना कर लाई थीं. बेटे की अस्वस्थता का सारा आक्रोश रेखा पर ही निकाल देती थीं. घर का सारा खर्च निखिल और रचना ही उठाते थे. उमेश रिटायर्ड थे और अनिल तो कभी कोई काम कर ही नहीं पाए थे. उन की पढ़ाई भी बहुत कम ही हुई थी. 3 साल बीत गए, रचना ने एक स्वस्थ व सुंदर पुत्र को जन्म दिया तो पूरे घर में उत्सव का माहौल बन गया. नन्हे यश को सब जीभर कर गोद में खिलाते. रेखा ने ही यश की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. रचना के औफिस जाने पर रेखा ही यश को संभालती थी. कई पड़ोसरिश्तेदार यश को देखने आते रहते और रचना के कानों में मक्कारी से घुमाफिरा कर निखिल और रेखा के अवैध संबंधों की जानकारी का जहर उड़ेलते चले जाते. कुछ औरतें तो यहां तक मजाक में कह देतीं, ‘‘चलो, अब निखिल 2 बच्चों का बाप बन गया.’’

रचना के कानों पर जूं न रेंगती देख सब हैरान हो, चुप हो जाते. रेखा और रचना के बीच स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही गया था. रचना जब भी बाहर घूमने, डिनर पर जाती, रेखा और मानसी को भी जरूर ले जाती. रचना के कानों में सीता मौसी का कथापुराण चलता रहता था, ‘‘देख, तू पछताएगी. अभी भी संभल जा, सब लोग तुम्हारा ही मजाक बना रहे हैं.’’ पर रचना की सपाट प्रतिक्रिया पर राधिका और सीता हैरान हुए बिना भी न रहतीं. वे दोनों कई बार सोचतीं, यह क्या राज है, यह कैसी

औरत है, कौन सी औरत इन बातों पर मुसकरा कर रह जाती है, समझदार है, पढ़ीलिखी है. आखिर राज क्या है उस की इस निश्ंिचतता का? एक साल और बीत रहा था कि एक अनहोनी घट गई. मानसी के स्कूल से फोन आया. मानसी बेहोश हो गई थी. निखिल और रचना तो अपने आौफिस में थे. यश को राधिका के पास छोड़ रेखा तुरंत स्कूल भागी. निखिल और रचना को उस ने रास्ते में ही फोन कर दिया था. मानसी को डाक्टर देख चुके थे. उन्होंने उसे ऐडमिट कर कुछ टैस्ट करवाने की सलाह दी. रेखा निखिल के कहने पर मानसी को सीधा अस्पताल ही ले गई. स्कूल में फर्स्ट ऐड मिलने के बाद वह होश में तो थी पर बहुत सुस्त और कमजोर लग रही थी. निखिल और रचना भी अस्पताल पहुंच गए थे. निखिल ने घर पर फोन कर के सारी स्थिति बता दी थी.

मानसी ने बताया था, सुबह से ही वह असुविधा महसूस कर रही थी. अचानक उसे चक्कर आने लगे थे और वह शायद फिर बेहोश हो गई थी. हैरान तो सब तब और हुए जब उस ने कहा, ‘‘कई बार ऐसा लगता है सिर घूम रहा है, कभी अचानक अजीब सा डिप्रैशन लगने लगता है.’’ रेखा इस बात पर बुरी तरह चौंक गई, रोते हुए बोली, ‘‘रचना, यह क्या हो रहा है मानसी को. अनिल की भी तो ऐसे ही तबीयत खराब होनी शुरू हुई थी. क्या मानसी भी…’’

‘‘अरे नहीं, भाभी, पढ़ाई का दबाव  होगा. कितना तनाव रहता है आजकल बच्चों को. आप परेशान न हों. हम सब हैं न,’’ रचना ने रेखा को तसल्ली दी. मानसी के सब टैस्ट हुए. राधिका और उमेश भी यश को ले कर अस्पताल पहुंच गए थे. सीता मौसी अनिल की देखरेख के लिए घर पर ही रुक गई थीं. रात को निखिल ने सब को घर भेज दिया था. अगले दिन रचना अनिल को अपने साथ ही सुबह अस्पताल ले गई. वहां वे थोड़ी देर मानसी के पास बैठे रहे. फिर असहज से, बेचैनी से उठनेबैठने लगे तो रचना उन्हें वहां से वापस घर ले आई. रेखा मानसी के पास ही थी.

राधिका ने रचना को डपटा, ‘‘अनिल को क्यों ले गई थी?’’

‘‘मां, मानसी की बीमारी का पता लगाने के लिए भैया का डीएनए टैस्ट होना था,’’ कह कर रचना किचन में चली गई. रचना ने थोड़ी देर बाद देखा राधिका और सीता की आवाजें मानसी के कमरे से आ रही थीं. सीता जब भी आती थीं, मानसी के कमरे में ही सोती थीं. रचना दरवाजे तक जा कर रुक गई. सीता कह रही थीं, ‘‘अब पोल खुलने वाली है. रिपोर्ट में सच सामने आ जाएगा. बड़े आए हर समय भाभीभाभी की रट लगाने वाले, आंखें खुलेंगी अब, कब से सब कह रहे हैं पति को संभाल कर रखे. निखिल पिता की तरह ही तो डटा है अस्पताल में.’’ राधिका ने भी हां में हां मिलाई, ‘‘मुझे भी देखना है अब रेखा का क्या होगा. निखिल मेरी भी इतनी नहीं सुनता है जितनी रेखा की सुनता है. इसी बात पर गुस्सा आता रहता है मुझे तो. जब से रेखा आई है, निखिल ने मेरी सुनना ही बंद कर दिया है.’’ बाहर खड़ी रचना का खून खौल उठा. घर की बच्ची की तबीयत खराब है और ये दोनों इस समय भी इतनी घटिया बातें कर रही हैं. अगले दिन मानसी की सब रिपोर्ट्स आ गई थीं. सब सामान्य था. बस, उस का बीपी लो हो गया था.

डाक्टर ने मानसी की अस्वस्थता का कारण पढ़ाई का दबाव ही बताया था. शाम तक डिस्चार्ज होना था, निखिल और रेखा अस्पताल में ही रुके. रचना घर पहुंची तो सीता ने झूठी चिंता दिखाते हुए कहा, ‘‘सब ठीक है न? वह जो डीएनए टैस्ट होता है उस में क्या निकला?’’ यह पूछतेपूछते भी सीता की आंखों में मक्कारी दिखाई दे रही थी. रचना ने आसपास देखा. उमेश कुछ सामान लेने बाजार गए हुए थे. अनिल अपने रूम में थे. रचना ने बहुत ही गंभीर स्वर में बात शुरू की, ‘‘मां, मौसी, मैं थक गई हूं आप दोनों की झूठी बातों से, तानों से. मां, आप कैसे निखिल और भाभी के बारे में गलत बातें कर सकती हैं? आप दोनों हैरान होती हैं न कि मुझ पर आप की किसी बात का असर क्यों नहीं होता? वह इसलिए कि विवाह की पहली रात को ही निखिल ने मुझे बता दिया था कि वे हर हालत में भाभी और मानसी की देखभाल करते हैं और हमेशा करेंगे. उन्होंने मुझे सब बताया था कि आप ने जानबूझ कर अपने मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटे का विवाह एक अनाथ, गरीब लड़की से करवाया जिस से वह आजीवन आप के रौब में दबी रहे. निखिल ने आप को किसी लड़की का जीवन बरबाद न करने की सलाह भी दी थी, पर आप तो पंडितों की सलाहों के चक्कर में पड़ी थीं कि यह ग्रहों का प्रकोप है जो विवाह बाद दूर हो जाएगा.

‘‘आप की इस हरकत पर निखिल हमेशा शर्मिंदा और दुखी रहे. भाभी का जीवन आप ने बरबाद किया है. निखिल अपनी देखरेख और स्नेह से आप की इस गलती की भरपाई ही करने की कोशिश  करते रहते हैं. वे ही नहीं, मैं भी भाभी की हर परेशानी में उन का साथ दूंगी और रिपोर्ट से पता चल गया है कि अनिल ही मानसी के पिता हैं. मौसी, आप की बस इसी रिपोर्ट में रुचि थी न? आगे से कभी आप मुझ से ऐसी बातें मत करना वरना मैं और निखिल भाभी को ले कर अलग हो जाएंगे. और इस अच्छेभले घर को तोड़ने की जिम्मेदार आप दोनों ही होगी. हमें शांति से स्नेह और सम्मान के साथ एकदूसरे के साथ रहने दें तो अच्छा रहेगा,’’ कह कर रचना अपने बैडरूम में चली गई. यश उस की गोद में ही सो चुका था. उसे बिस्तर पर लिटा कर वह खुद भी लेट गई. आज उसे राहत महसूस हो रही थी. उस ने अपने मन में ठान लिया था कि वह दोनों को सीधा कर के ही रहेगी. उन के रोजरोज के व्यंग्यों से वह थक गई थी और डीएनए टैस्ट तो हुआ भी नहीं था. उसे इन दोनों का मुंह बंद करना था, इसलिए वह अनिल को यों ही अस्पताल ले गई थी. उसे इस बात को हमेशा के लिए खत्म करना था. वह कान की कच्ची बन कर निखिल पर अविश्वास नहीं कर सकती थी. हर परिस्थिति में अपना धैर्य, संयम रख कर हर मुश्किल से निबटना आता था उसे. लेटेलेटे उसे राधिका की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, तुम कहां चली, सीता?’’

‘‘कहीं नहीं, दीदी, जरा घर का एक चक्कर काट लूं. फिर आऊंगी और आज तो तुम्हारी बहू की निश्‍चिंतता का राज भी पता चल गया. एक बेटा तुम्हारा बीमार है, दूसरा कुछ ज्यादा ही समझदार है, पहले दिन से ही सबकुछ बता रखा है बीवी को.’’ कहती हुई सीता के पैर पटकने की आवाज रचना को अपने कमरे में भी सुनाई दी तो उसे हंसी आ गई. पूरे प्रकरण की जानकारी देने के लिए उस ने मुसकराते हुए निखिल को फोन मिला दिया था.

 

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