ADANI: हम भारतवासी ही नहीं, दुनिया के बहुत से देशों के लोग खुलेआम विश्वास करते हैं कि ‘समर्थ को दोष नहीं गुसाईं’. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परम मित्र व भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी पर भारतीय नेताओं, अफसरों, मंत्रियों को 2,000 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का अमेरिका की जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया है तो यह न सम  झें कि गौतम अडानी (Gautam Adani) या उन के परिवार या अफसरों का कुछ बिगड़ेगा. बस, वकीलों पर कुछ सौ करोड़ रुपए खर्च जरूर होंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. मालूम हो कि यह आरोप अमेरिका में मौजूद अडानी की एक कंपनी पर अमेरिकी जांच एजेंसियों ने लगाया है.

 

इस खुलासे के बाद एक रोज तो स्टौक मार्केट में अडानी के शेयर गिरे पर दूसरे दिन संभल गए जो साफ करता है कि आम अमीर को अडानी के गोरखधंधों से कोई परेशानी नहीं है और उसे पूरा, पक्का, दृढ़, हिमालय जैसा विश्वास है कि एकदो लैंडस्लाइडों का मतलब यह नहीं है कि जो ‘अडानी हिमालय’ भारत के आधिकारिक शक्तिशाली नेता नरेंद्र मोदी की ठोस जमीन पर खड़ा है, वह कहीं जाने वाला नहीं है.

 

नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी का साथ पुराना है. वैसे, हर नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री किसी न किसी उद्योगपति को पाले रखता है और न महात्मा गांधी, न जवाहरलाल नेहरू, न सरदार वल्लभभाई पटेल, न इंदिरा गांधी या बीसियों मुख्यमंत्री और सैकड़ों सांसद इस से परे हैं और न आने वाले होंगे.

 

नेताओं को उद्योगपति तो पालने ही होते हैं क्योंकि नेतागीरी मुफ्त में नहीं चलती. घर के खर्च, कपड़ों, खाने, घूमनेफिरने सब में खर्च होता है. कोई समाज नेताओं को इतनी तनख्वाह नहीं देता जितनी उन की आवश्यकता होती है.

 

वही समाज जो मंदिरों में अपने मतलब को सिद्ध करवाने व   झूठे आश्वासन या भरोसे पर भरभर के पैसे देता है, वह नेताओं से लेता है पर सीधे देते हुए कतराता है. नेताओं के घर के सामने पांचसात ताले लगे गुल्लकें नहीं रखे होते हैं जिन में आने वाले अपनी श्रद्धा से पैसे डाल सकें पर हर मंदिर, चर्च, मसजिद, गुरुद्वारे में ये दिख जाएंगे. आमतौर पर तो एक नहीं बल्कि आठ से दस हुंडियां, अलमारियां, दानपात्र, डोनेशन बौक्स वहां रखे होते हैं.

 

नेताओं को पैसा तो उद्योगपति देता है पर वह मुफ्त में नहीं देता. वह जानता है कि उसे कुछ मिलने वाला है. सरदार वल्लभभाई पटेल की महान प्रशंसा करने वाली एक किताब ‘द मैन हू सेव्ड इंडिया’ में लेखक हिंडोल सेनगुप्ता उद्योगपति जी डी बिड़ला की आत्मकथा का एक प्रसंग उद्धृत करता है- ‘‘मु  झे टैलीग्राम मिलता था, ‘कम इमीडिएटली’ (तुरंत आओ) और जब मैं आता तो वे (पटेल) बताते कि मु  झे क्या करना है. आखिरकार बात जमा (पैसा) करने पर ही आ जाती थी. मैं ने एक बार पटेल को बताया भी कि गांधी ने कहा था, ‘मैं सरदार का पैसा इकट्ठा करना पसंद नहीं करता.’ इस पर पटेल का उत्तर था, यह उस की (गांधी) चिंता नहीं है. गांधी महात्मा है, मैं नहीं. मु  झे काम करना है.

 

जब आजादी से पहले, सत्ता में न होने के बावजूद, नेताओं का यह हाल था तो आज दशकों से सत्ता में काबिज नरेंद्र मोदी जिन को गुजरात से सब से ज्यादा पैसा मिलता है, वहीं के गौतम अडानी (ADANI)  अगर कोई छोटामोटा कांड कर रहे हों तो कोई दूसरा उन का क्या बिगाड़ सकता है. इतिहास गवाह है कि न ब्रिटिश शासकों ने घनश्याम दास बिड़ला का कुछ बिगाड़ा, आजादी के बाद न नेहरू या इंदिरा ने.

 

इसी तरह अमेरिकी अदालत गौतम अडानी का कुछ बिगाड़ सकेगी, इस में संदेह है. पटरी पर दुकान लगाने वाले से पुलिस वाले को पूरा हफ्ता न मिले तो वह उसे 8 दिन तक जेल में बिना कागज तैयार किए रख सकता है, किसी मेहुल चौकसी, किसी ललित मोदी, किसी नीरव मोदी, किसी विजय माल्या, किसी नए पटेल का कोई नहीं बिगाड़ सकता. नेता तो आतेजाते रहते हैं. जिन 4 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अडानी ग्रुप (ADANI) से अमेरिकी अदालत के अनुसार रिश्वत ली भी, उन में से 3 को विदा किया जा चुका है. एक बाकी है. कौन जाने कि राजनीतिक विदाई के पीछे यही रिश्वत कांड था जो उस समय जांच के दायरे में था जब चुनाव हो रहे थे.

 

जनता से आग्रह है कि वह इस मामले में चुप रहे. उसे अपने पुराणों की कहानियां पढ़नी चाहिए जिन में राजा जनता से पैसा वसूल कर यज्ञ कराते थे और ऋषियों, मुनियों को यज्ञ के बाद भरपूर सोना, गाएं, वस्त्र, दास, दासियां देते थे. आज ऋषि भी समर्थ है, राजा भी, अडानी भी (ADANI) . इन सब का कोई दोष नहीं है.

 

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