लेखक-अश्विनी कुमार भटनागर
‘‘क्या रुडयार्ड किपलिंग ने सही कहा था कि पूरब पूरब है और पश्चिम पश्चिम है? ये दोनों कभी नहीं मिल सकते,’’ रौनी ने उदासी से पूछा. मंदिरा हंस पड़ी, ‘‘लगता है मां ने फिर झाड़ लगाई है.’’ ‘‘यह कोई हंसने की बात है,’’ रौनी ने उठते हुए कहा, ‘‘अगर तुम्हें मेरे हाल पर हंसना ही है तो मैं जाता हूं.’’ ‘‘नहींनहीं, नाराज मत हो. मु झे तो कुछ ऐसा याद आया कि बस, हंसी निकल गई. वैसे हंसना सेहत के लिए अच्छा होता है और तनाव से राहत भी देता है,’’ मंदिरा ने अपने भाई रौनी के कंधे पर ममताभरा हाथ रख कर कहा. ‘‘क्या याद आया, जरा सुनूं तो?’’ रौनी ने पूछा.
‘‘एक नदी के दो किनारे मिलने से मजबूर,’’ कहते हुए मंदिरा मुसकराई. ‘‘तुम्हें अच्छा लगता है तो मैं हंस लेता हूं,’’ रौनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘जब शादी करोगी तो देख लूंगा.’’ ‘‘शादी? कभी नहीं. देख तो रही हूं तुम्हारा हाल. न सास होगी और न बहू,’’ मंदिरा हंसी, ‘‘न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी.’’ ‘‘एक और कहावत भूल गई. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी,’’ कह कर रौनी मुसकराया. ‘‘कहावतें क्या हैं, जीवन की सचाई है. पहले मैं गरमागरम कौफी लाती हूं, फिर तुम्हारी नई समस्या पर गौर करूंगी.’’ सारा झं झट तब शुरू हुआ जब रौनक ने मां की मरजी के खिलाफ शादी कर ली. यही नहीं, लड़की बंगाली थी और नाम था झुंपा. सारी बातें मिलजुल कर कुछ ऐसी हो गईं कि मां अब चीखनेचिल्लाने लगी थीं. रौनक ने सोचा था कि शादी के बाद कुछ दिनों तक मां नाराज रहेंगी और फिर सामान्य हो जाएंगी.