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थप्पड़ – सवाल आत्‍मसम्‍मान का

‘‘फाइनली शिफ्ट हो रही हूं.’’

‘‘हमेशा खुश रहो बच्चे. बीचबीच में आती रहना. भूलना नहीं हमें.’’

चौधरी चाचा ने यह कहा तो वसुधा की नम आंखें झाक गईं. अपने आंसू उन्हें कैसे दिखाती जिन्होंने पिता की तरह सदा ही सिर पर हाथ रखा. बस, हाथ जोड़ कर विदा ले ली और अपने कैरियर की ऊंचाइयों के सफर पर निकल पड़ी. ओह, चौदह घंटे, पूरे चौदह घंटे बिताने हैं जो आसान कतई नहीं है. मां के लिए एक कौमेडी सिनेमा लगाया और बेटे के लिए कार्टून मूवी और खुद अपने ही जीवन के चलचित्र में खो गई.

इंटर में थी जब सिर से पिता का साया उठ गया था. दो छोटे भाई, जवान मां और संपत्ति के नाम पर घर के अलावा कुछ नहीं था. गणित में अच्छी थी. गलीमहल्ले वाले ट्यूशन के लिए अपने बच्चे भेजने लगे. कुछ तो अपने बच्चों की शरारतों से निश्ंिचत होना था तो कुछ का मकसद उस के परिवार की मदद करना भी एक उद्देश्य था. ट्यूशन से भला कितने पैसे आते? स्कूल, कालेज की फीस का इंतजाम ही हो पाता.

किशोरवय के बढ़ते बच्चों की और भी आवश्यकताएं होती हैं. मां ने महल्ले के ही कपड़ों की दुकान पर नौकरी कर ली. घरबाहर कड़ी मेहनत करती मां सुषमाजी के मुख का तेज मलिन हुआ जा रहा था. यह सब देखती वसुधा जाने कैसे खुद को अभिभावक समझने लगी थी. छोटे भाइयों पर अंकुश रखती और मां की चिंता करती. उस ने मन ही मन तय कर लिया था कि पहली नौकरी मिलते ही मां को आराम देगी.

सब अपने स्कूलकालेज में अच्छा कर रहे थे. उसे अच्छी तरह से याद है बी कौम फाइनल ईयर का आखिरी परचा. दोनों भाइयों को उन की स्कूलबस में चढ़ा कर जब कालेज के लिए बस में चढ़ने लगी तब ध्यान आया कि अपना पर्स तो घर में ही भूल आई है. चुपचाप बस से उतर गई. कालेज काफी दूर था. घर वापस जा कर कालेज जाना संभव नहीं था. परीक्षाभवन बंद हो जाता और इस तरह उस का पूरा साल बरबाद हो जाता.

‘का हुआ बिटिया? बस से काहे उतर गई?’ चौधरी चाचा बसस्टौप के पास अपनी पान की दुकान से बैठेबैठे ही आवाज दे रहे थे.

‘वह मैं पर्स घर पर ही…,’ आंखों से बड़ीबड़ी बूंदें बरसने लगीं. बात पूरी ही न कर पाई. चाचा को जब पूरी बात पता चली तो उन्होंने औटो वाले को रोक कर उसे आनेजाने के पैसे दे दिए और कहा, ‘बड़े अच्छे इंसान थे तुम्हारे पिता. अगर तुम्हारे किसी काम आ सका तो उस लोक में उन्हें अपना मुंह तो दिखा सकूंगा. जा बिटिया, अच्छे से इम्तिहान देना. सब ठीक होगा.’

सचमुच चाचाजी का आशीर्वाद उस के काम आ गया था. उस ने यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त किया और साथ ही कैंपस सेलेक्शन से जौब भी लग गई. तभी से वह हर काम चौधरी चाचा के आशीर्वाद से ही शुरू करती. नौकरी लगते ही उस रोज भी उन का आशीर्वाद ले कर घर पहुंची थी तो मौसाजी को मां से बातें करते सुना.

‘घर की बड़ी बेटी है वसुधा. उस का रिश्ता समय पर कर दो. रोजरोज नहीं आते ऐसे रिश्ते,’ मौसाजी अपने भतीजे के लिए उस का हाथ मांग रहे थे.

‘लेकिन जीजाजी, अभी तो लड़की ने नौकरी शुरू ही की है. थोड़ा रुक कर करेंगे तो कुछ पैसे भी जमा हो जाएंगे.’

‘तुम्हें दुनियादारी की कोई समझ नहीं है, सुषमा. कमाऊ लड़की सोने की चिडि़या समान होती है. देर किया तो कोई और ले उड़ेगा.’

उस की भोली मां मौसाजी की चाल समझ ही नहीं पाई. वह एकमात्र कमाने वाली उसे घरगृहस्थी में फंसा कर मां की गृहस्थी चरमराना चाहते थे, साथ ही, अपने आवारा भतीजे को उस से शादी कर निबटाना भी ताकि किसी भी तरह यह परिवार, उन के परिवार से अधिक उन्नति न कर पाए. वैसे भी नानीमां का वह व्यवहार मौसीजी को नहीं भूला था कि मां के ब्याह के बाद वे अपने छोटे दामाद यानी उस के पिता को अधिक मान देती आई थीं और उन की इज्जत एक पैसे की भी न रह गई थी. बस, इस तरह से वे अपना बदला लेने पर आमदा थे.

‘‘वसुधा, बड़ी अच्छी लगी यह पिक्चर. तू ने नहीं देखी?’’ मां की आवाज सुन कर जैसे वह गहरी नींद से जागी.

‘‘जानती हो न मां, मैं फिल्में नहीं देखती.’’

‘‘हां बेटा, फिल्में भी उन्हें अच्छी लगती हैं जिन की खुद की जिंदगी में शांति हो.’’ मां की आवाज भर्राई तो उस से रहा न गया.

‘‘क्या कहती हो, मां, भूल जाओ सब.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं? तुम ने हमारे लिए इतना कुछ किया और मैं ने तुम्हारी जिंदगी बरबाद. मां का कहतेकहते गला भर आया.’’

‘‘अरे, बहुत बढि़या जिंदगी है मेरी. तुम हो, रोहन है और साथ में इतनी बढि़या नौकरी, खुश रहने के लिए भला और क्या चाहिए,’’ कह कर वह रोहन से बातें करने लगी और सुषमाजी भारी मन से अतीत के गलियारे में खोती चली गईं.

वसुधा की शादी के 2 साल बाद अमित को अकाउंटैंट की नौकरी मिल गई थी. तब छोटे भाई सुमित को पढ़ाने की जिम्मेदारी उस ने अपने सिर ले ली. जीवन ठीकठाक ही चल रहा था जब तक सुमित के इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा का रिजल्ट न आया था. सुमित को राज्य के टौप कालेज में एडमिशन मिला था. एडमिशन फीस के लिए उसे 50 हजार रुपयों की नितांत आवश्यकता थी. अमित के पास जोड़ कर दस ही निकले और दस उन्होंने अपनी ओर से मिला दिए. सुषमाजी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि बाकी के पैसों के लिए किस से कहें. रिश्तेदारों ने तो पहले ही हाथ खड़े कर दिए थे. ऐसे में ‘आशा की किरण’ तो वसुधा ही थी. इधर वह भी काफी परेशान थी. क्रिकेट खेलते हुए दामादजी के पैरों में फ्रैक्चर हो गया था और वसुधा अस्पताल, घर व औफिस भागभाग कर तंग आ गई थी. ऐसे में बेटी से कहे या न कहे? तभी वसुधा की तरफ से ही फोन आ गया.

‘अम्मा, सुमित के एंट्रैंस का रिजल्ट आया क्या?’

‘हां, पर पैसे पूरे नहीं पड़ रहे. इस साल एडमिशन रहने देते हैं.’

‘अगले साल वह सीट भी न मिली तो? नहीं, यह नहीं होने दूंगी मैं. मेरा भाई एडमिशन लेगा और इसी साल लेगा. तू उसे मेरे औफिस भेज दे. मैं 30 हजार का चैक लिखती हूं.’

और उसी शाम वह हमेशा के लिए ससुराल छोड़ कर अपने घर वापस आ गई थी. उस के कानों से लगातार रक्तस्राव हो रहा था. कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा तब जा कर उस के सुनने की शक्ति वापस आ सकी थी. बहुत पूछने पर ही उस ने बताया कि बैंक मैनेजर ने वैरीफिकेशन के लिए पति को फोन कर दिया था कि वे यह रकम सचमुच निकालना चाहते हैं या किसी और ने… खैर, अपनी ही कमाई के पैसों को खर्चने की वीभत्स सजा पाई थी उस ने और वह भी उस वक्त जब वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़े पति के स्नेह से वशीभूत खाने का निवाला उस के मुंह में धर रही थी. तड़ाक की जोरदार आवाज!

तभी उस ने फैसला कर लिया था कि अब वह ससुराल में कभी कदम नहीं रखेगी. सवाल एक थप्पड़ का नहीं था. सवाल उस के आत्मसम्मान का था. दिनरात की मेहनत के बाद भी एक नौकरानी का जीवन बसर कर रही थी. इस संघर्ष का अंत तो होना ही था. भाई की फीस तो एक माध्यम मात्र था. अब वह उस घर से आजाद होने के लिए तड़प उठी थी. एक साल के रोहन को गोद में उठा वह निकल आई थी. अपने बच्चे की किलकारी और क्रंदन दोनों ही वापस सुनने में उसे पूरा एक वर्ष लग गया था. घरेलू हिंसा के नाम पर तलाक आसानी से मिल गया था पर उस के जख्म अब भी हरे थे. बीते दिनों की याद से द्रवित हो सुषमाजी उस के गालों को सहलाती हुई बड़बड़ाने लगीं.

‘शादी के पहले कैसा बिल्ली सा था और बाद में शेर.’

‘‘शेर भी ढेर होते हैं मां. लेकिन यह क्या? तुम फिर से वही सब सोचने लगीं. पुरानी बातों को भुला कर हम लोग सुखचैन से रह सकें, इसीलिए तो सुमित ने अमेरिकी कंपनी जौइन की और तुम…’’

‘‘क्या करूं मेरे बच्चे? तेरा दुख.’’

‘‘वह देखो ‘स्टैच्यू औफ लिबर्टी,’ हम लैंड करने वाले हैं.’’

‘‘नानी, कानों में कौटन बौल्स रख लो वरना चिल्लाओगी आप,’’ रोहन बोला.

‘‘ला, शैतान दे जल्दी,’’ कह कर सुषमाजी हंस पड़ीं. सुमित एयरपोर्ट पर खड़ा था. उस के साथ ही एक जानीपहचानी सी शक्ल देख वसुधा बुरी तरह से चौंक गई. उस का सहपाठी विकास यहां सुमित के साथ, भला कैसे?

‘‘नो सवालजवाब दीदी. मैं जब से यहां आया हूं, विकास भैया ने मेरी हर तरह से मदद की है. इतना ही नहीं, वे तो कब से आप की राह देख रहे हैं. उन्होंने ही आप का जौब ट्रांसफर कराया है.’’

‘‘तुम ने सुमित का सहारा लिया, विकास, सीधेसीधे मुझ से भी तो कह सकते थे?’’

‘‘कब कहता? पहले तुम्हारे लायक बनने की कोशिश कर रहा था. पैरों पर खड़े होने के बाद तुम्हारी शादी और उस दुर्घटना की बात पता चली तो सामने आने की हिम्मत ही नहीं हुई.’’

‘‘और तुम छोटे मियां, तुम्हारी मिलीभगत है इस में,’’ वसुधा ने सुमित के कान पकड़े.

‘‘अरे दीदी, न न, कान नहीं.’’ सहसा वसुधा को अपना कान ध्यान आ गया तो वह फिर से सहम गई. सारा दर्द भूल पाना आसान तो नहीं था.

माहौल की गंभीरता देख विकास बोल उठा, ‘‘इस बेचारे की क्या गलती है, इस ने तो मेरा काम आसान किया है?’’ कह कर विकास ने सुमित के कंधे पर हाथ रखा पर नजरें वसुधा से जा टकराईं तो उस ने निगाहें नीची कर लीं. उस की पलकें जैसे लाज का परदा बन गई थीं.

‘‘कोई बताएगा मुझे कि क्या हो रहा है?’’ सुषमाजी चिल्ला पड़ीं.

‘‘दीदी की शादी हो रही है विकास भैया के साथ,’’ कह कर सुमित हंसने लगा. वसुधा अपने मित्र में अपना प्यार पा कर शर्म से दोहरी हो रही थी जबकि विकास ने बढ़ कर सुषमाजी के चरण छू लिए और हंसते हुए सुमित से कहा कि, ‘‘सही कहते हैं कि सारी खुदाई एक तरफ और जोरू का भाई एक तरफ.’’

उस की बात पर सभी हंस पड़े पर वसुधा रोहन को एयरपोर्ट के नियम समझने में व्यस्त थी. जानती थी कि इस रिश्ते में बंधने से पहले उसे नए सिरे से अपने 10 वर्षीय बेटे को मानसिक रूप से तैयार करना होगा और इस वक्त यही उस की सब से बड़ी जिम्मेदारी है और चुनौती भी. विकास वसुधा के मन के भावों को अच्छी तरह से समझ रहा था. भविष्य की कल्पना कर वह मन ही मन मुसकरा उठा.

लेखक – आर्या झा

सोचेंसमझें और फिर ही किसी को जज करें

कुछ दिन पहले सोसाइटी में सामने वाले घर में दो नए लोग रहने आए थे. लड़के की उम्र 28 और लड़की की 22 साल के करीब होगी. दोनों सुबहसुबह तैयार हो कर बाइक पर निकल जाते. देर रात को घर आते. घर के दरवाजे हमेशा बंद रहते. मेरी पड़ोसन जब भी मिलती उन दोनों की बुराइयां करती. पता नहीं कैसे लोग आए हैं, न किसी से बात करते, पता नहीं क्या काम करते हैं. लड़की को देखा है कैसे कपड़े पहनती है. मैं उस की बात का कोई जवाब नहीं देती. क्योंकि मैं दूसरों की जज करने की अपनी पड़ोसन की आदत को जानती थी.

बाद में जब मैं दोनों से मिली तो पता चला दोनों भाईबहन हैं, मातापिता कोविड में इस दुनिया से चले गए. दोनों भाईबहन अपनी ज़िंदगी को पटरी पर लाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं. इसीलिए सुबहसुबह नौकरी पर निकल जाते हैं और देर रात घर आते हैं.

“कैसे कपड़े पहन कर आया था, इसलिए मैं ने उसे इंटरव्यू में रिजेक्ट कर दिया, वह मुझे बड़ी अजीब सी लगी, बहुत कम बोलती है. कैसे कपड़े पहनती है.” अपने आसपास लोगों की आपसी बातचीत में ऐसे वाक्यांश अकसर सुनने को मिलते हैं. कई बार हम भी जानेअनजाने में दूसरों के प्रति अपनी ऐसी ही राय बना लेते हैं.

सोचेंसमझें, समय दें फिर करें जज

किसी भी इंसान के व्यक्तित्व के कई पहलू होते हैं जो दूसरों के सामने धीरेधीरे खुलते हैं. इसलिए पहली मुलाकात में ही किसी के बारे में अपनी राय बनाना गलत होता है. बेहतर यही होगा कि किसी भी व्यक्ति से पहली बार मिलने के बाद उसे समझने के लिए खुद को थोड़ा समय दें.

– कुछ चालाक या धोखेबाज लोग पहली मुलाकात में दूसरों के सामने अच्छा इंप्रेशन जमाने की कला में माहिर होते हैं. ऐसे लोगों से इम्प्रेस न होना चाहिए और उन्हें जाननेपरखने के बाद ही उन के बारे में कोई राय बनानी चाहिए.

– अगर बातचीत के दौरान कोई व्यक्ति लगातार सिर्फ अपने बारे में ही बोल रहा हो और आप को बोलने का मौका भी न दे तो आप को ऐसे सेल्फ प्रेज़ करने वाले लोगों की बातों पर जल्दी भरोसा नहीं करना चाहिए और उन्हें जज करने या उन के बारे में राय में समय लेना चाहिए.

– जब कोई स्ट्रेस में होता है तो आमतौर पर किसी से पहली बार मिलते वक्त वह उस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते और उसे गलत समझते हैं. इसलिए जब आप अच्छे मूड में हों तभी किसी से पहली बार मिलें और जल्दबाजी में कोई राय न बनाएं.

जज करने की आदत को ऐसे करें दूर

बुराई में अच्छाई खोजें

जिन लोगों की किसी को भी बात बात में या पहली मुलाकात में जज करने की आदत होती है वे अकसर सामने वाले व्यक्ति में खामियों खोजते हैं. इसलिए अगली बार जब आप किसी से मिलें तो उस की पॉजिटिव चीजों पर फोकस करें. व्यक्ति की छोटीमोटी बुराइयों को नजरअंदाज कर उस की अच्छी बातों पर ध्यान दें. ऐसा जब आप अकसर करने लगेंगे तो धीरेधीरे आप की जज करने की आदत बंद हो जाएगी.

हर दिन 10 अच्छी बातें करें

अपने दिमाग को पोजिटिव बातों पर फोकस करने की ट्रेनिंग दें. ऐसा करने के लिए आप हर दिन कम से कम 10 लोगों को या उन के लिए पोजिटिव बातें कहें. ऐसा करने से धीरेधीरे आप की निगेटिव सोच दूर होगी और आप की लोगों को जज करने की आदत भी खत्म होगी.

जज करने की आदत से होगा आप का नुकसान

कुछ लोग हमेशा दूसरों को जज करते हैं. किसी को जज करना कभीकभी सामान्य हो सकता है, लेकिन हमेशा नहीं. दूसरों को जज करने की आदत धीरेधीरे व्यक्ति को तनाव और गुस्से से भर देती है और वह अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ पाता. इस के अलावा जज करने की आदत परिवार, दोस्तों और करीबियों से भी दूर ले जा सकती है. इसलिए अगर आप को जीवन में आगे बढ़ना है तो दूसरों को जज करने की आदत छोड़नी होगी.

किसी को भी जज करने से पहले उसकी अच्छाइयों पर गौर करें

प्रत्येक व्यक्ति में कुछ अच्छाइयां और कुछ बुराइयां दोनों होती हैं. लेकिन जब कोई किसी को जज करता है तो उसे सामने वाली की केवल बुराइयां ही नजर आती हैं और उस की अच्छाइयों पर ध्यान नहीं जाता. किसी को जज करने की आदत से बचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाइयों पर ध्यान दें.

• किसी के रंग रूप जैसे गोरे काले, पतले मोटे, लंबे, नाटे होने पर जज न करें
• किसी ने क्या पहना है, जींस या सलवार, इंडियन या वेस्टर्न इस बात पर जज न करें
• किसी के एग्जाम में कितने नंबर आए हैं इस बात पर जज न करें
• कोई क्या काम करता है, उस की जौब क्या है इस बात पर जज न करें
• किस उम्र में क्या करना चाहिए, इस उम्र में लड़कों के साथ घूमती हैं, रात देर से आती है, सुबह जल्दी निकल जाती है इन बातों पर जज न करें
• किस के साथ घूमती या घूमता है, किसी के कैरेक्टर को ले कर जज करना सही नहीं है
• किसी की उम्र के हिसाब से उसे घर का काम आता है या नहीं आता, खाना बनाना नहीं आता इस से भी जज न करें
• बेटी 25 की हो गई, अभी तक शादी नहीं की यह जज करने लायक बात नहीं

बुढ़ापे को बोझ बनाना है या ग्रेसफुल, निर्भर आप पर ही करता है, जानिए कैसे

सरकारी नौकरी से रिटायर हुए गुप्ताजी जीवन के 80 बसंत देख चुके हैं. वर्तमान में वे एक प्राइवेट स्कूल में एडमिनिस्ट्रेटिव औफिसर के पद पर कार्य कर रहे हैं. बुढ़ापे में खुद को बेचारा बनाए रखने के बजाए उन्होंने अपने जीवन के इस गोल्डन पीरियड को ग्रेसफुल तरीके से अकेले इंजोय करने का निर्णय लिया. वहीं दूसरी ओर 80 वर्ष शर्माजी बेटे की शादी के बाद उन के साथ रह रहे हैं और रोज किसी न किसी बात पर घर में कलह हो जाता है क्योंकि वे न तो घर के किसी काम में मदद करते हैं, न अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं, बाजार जा कर उलट सीधा जंक फूड खा कर आ जाते हैं फिर तबीयत खराब होने की वजह से खुद तो परेशान होते ही हैं नौकरीपेशा बेटाबहू को भी परेशान करते हैं.

बुढ़ापा जीवन का वह समय होता है जिस में कई लोगों को बहुत तरह की चिंताएं और गंभीर चिकित्सा परेशानियां हो सकती हैं. इस समय बुजुर्गों को अपनी स्वतंत्रता खोने और लोगों के दूर जाने का एहसास होने लगता है. अधिकतर बुजुर्ग बुढ़ापे के बारे में सोचसोच कर डिप्रेशन में आ जाते हैं. इस से उन का स्वास्थ्य और खराब हो जाता है. घर में खाली बैठे रहने से बुजुर्गों के प्रति लोगों का सम्मान भी कम हो जाता है. ऐसे में जरूरत होती है सकारात्मक सोच के साथ खुद को किसी काम में व्यस्त रखने की.

बुढ़ापे को बोझ न बनाएं

बुढ़ापे के फेज़ को ग्रेसफुल तरीके से जीना या नाकारा बनाना दोनों अपने हाथ में होता है. यह पड़ाव हरेक की जिंदगी में आना है इसलिए जरूरी है कि बुढ़ापे के लिए प्लानिंग (शारीरिक, मानिसक, आर्थिक और कानूनी रूप से) समय रहते कर लें. उम्र बढ़ने के साथ साथ अपनी दिनचर्या को सही रखना शुरू कर दें. सुबह उठने से ले कर रात के सोने तक अपना सभी काम नियमित रूप से करें. सोना, जागना, भोजन, व्यायाम, टहलना, ध्यान पठनपाठन, मनोरंजन आदि सभी जीवन को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं.

खुद को व्यस्त रखेँ

बुढ़ापे को नाकारा न बनाएं, व्यर्थ में समय न गंवाएं. घरपरिवार के छोटेछोटे काम में सहयोग करें. उन से घुलमिल कर समय बिताएं. बच्चे, बड़ों से ले कर हम उम्र के व्यक्ति से, पड़ोसी एवं अपने आसपास के लोगों से मित्रतापूर्ण व्यवहार रखें. इस से परेशानियां कम होंगी, उम्र बढ़ेगी, स्वस्थ रहेंगे और समय का सदुपयोग होगा.

एक्टिव रहें

टीवी या फोन में समय बरबाद करने की बजाय वे कार्य करें जिस से शारीरिक सक्रियता बनी रहे क्योंकि ऐसा करने से बीमारियां दूर रहती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है. डाक्टर द्वारा बताई गई दवा निर्धारित समय पर लें. समयसमय पर डाक्टर से मिलते रहें. फालतू खर्च न करें. व्यर्थ का तनाव न पालें. घरपरिवार की परेशानी से भागें नहीं परिवार के साथ मिल कर उसे सुलझाएं. परिवार के सदस्यों के साथ घुलेंमिलें, हंसेहंसाएं, खामोश न रहें.

शिकायत करने की बजाय थैंकफुल बनें

बच्चों को जज न करें, सारा समय शिकायत न करें कि वे आप का ध्यान नहीं रखते, अपने साथ नहीँ ले जाते. आप पर खर्च नहीं करते. बच्चों की भी अपनी जिंदगी अपनी जिम्मेदारियां हैं आप को अपना ध्यान खुद रखने की आदत डालनी चाहिए.

अगर बच्चे आप के साथ समय नहीं बिता पाते तो “वो सारा दिन बाहर रहती या रहता है, उसे हमारी परवाह नहीं है, हमारे लिए तो समय ही नहीं है. बच्चे हमारी केयर नहीं करते” ऐसा सोचना एक बहुत बड़ी प्रौब्लम है. अगर आज के वक्त को देखें तो आज की भगदौड़ वाली लाइफ बहुत टफ है, आज के बच्चे बहुत प्रेशर में काम करते हैं इसलिए बच्चे आप के लिए जो भी कर पा रहे हैं उस के लिए पेरैंट्स को उन का थैंकफुल होना चाहिए.

अपना सोशल नेटवर्क बनाएं

“बुजुर्ग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपने हम उम्र लोगों का ग्रुप बनाएं. ग्रुप पर अपने हम उम्र लोगों से बात करना सुबहशाम गप्पे जैसा लगेगा. आप उन चीज़ों में अपनी खुशी ढूंढ सकते हैं जो आप को खुशी देती हैं जैसे कुकिंग, सिंगिंग, योगा, म्यूजिक क्लासेज.

घर में अपनी जिम्मेदारी निभाएं

बच्चों की शादी या उन के सेटल होने के बाद कोशिश करें. अकेले रहें लेकिन अगर किसी परिस्थिति में जरूरत पड़ने पर बेटी या बेटे के साथ रहना पड़े तो उन पर बोझ न बनें, उन के काम आएं. घर के कामों जैसे बच्चों को स्कूल कोचिंग सेंटर छोड़ने या लाने की जिम्मेदारी या सब्जी लाने की जिम्मेदारी निभाएं इस से बेटी दामाद या बहू बेटा को मदद होगी. आप में भी घर में सहभागिता और उन से जुड़े होने का अहसास पैदा होता है.

सेहत का खास ध्यान रखें

चाहिए बुजुर्ग अकेले रह रहे हों या बच्चों के साथ उन्हें अपनी सेहत की अनदेखी बिल्कुल नहीं करनी चाहिए . कमजोरी महसूस होना, भूलने की शिकायत, रास्ता भूल जाना और चलनेबैठने में संतुलन खो देना, जैसे कुछ जरूरी शारीरिक और मानसिक बदलाव पर नजर बनाए रखें. उन्हें अपनी केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक बीमारी पर भी ध्यान रखने की जरूरत है. अपनी दवाइयां समय पर लें. योग, मौर्निंग वौक का अपना रूटीन बनाएं.

रागिनी (बदला हुआ नाम) दिल्ली में रहती हैं और एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती हैं. कुछ साल पहले रागिनी के डैड इस दुनिया में नहीं रहे. डैड के जाने के बाद रागिनी की मौम उस के साथ रहती हैं. रागिनी की मौम न तो घर के कामों में, न रागिनी के बच्चों की देखभाल में रागिनी की कोई मदद करती हैं और छोटीछोटी बात पर गुस्सा हो जाती हैं. रिश्तेदारों से रागिनी की फोन पर बुराई करती रहती हैं, कई बार तो वे रागिनी और अपने दामाद रोहित से बात करना बंद कर देती हैं.

अकसर देखा जाता है कि बुजुर्ग बच्चों की जरा सी भी बात सहन नहीं कर पाते. कभी वे बहुत खुश रहते हैं तो कभी छोटी सी बात का बुरा मान जाते हैं तो कभी अपनी मन की बात पूरी न होने पर शिकायत करने, चीखनेचिल्लाने लगते हैं. ऐसे में बेटा बहू या बेटी दामाद के लिए उन की देखभाल करना या साथ रखना कठिन हो जाता है.

अगर पेरैंट्स को बेटा या बेटी के घर में उन के साथ रहना पड़े तो मुख्यतः इन कमज़ोरियों पर ख़ास ध्यान दें –

• शादी के बाद साथ रहने वाले मातापिता को अपने बेटे या बेटी के पारिवारिक जीवन में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप न करें. जीवन उन का है, जीने की जिम्मेदारी उन की है और उस से जुड़े नुकसान अथवा फायदे उन के हैं इसलिए अपने बच्चों की लाइफ में दखलंदाजी न करें. उन्हें अपनी जिंदगी जीने दें.

• मातापिता होने के नाते आप ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया. कभीकभी उन्हें अपना मत अवश्य दें परन्तु निर्णय उन्हें लेने दें और यदि उन्होंने आप के मत को नहीं माना तो गांठ बांध कर न बैठें.

ब्रेकअप के बाद खुद में लाएं बदलाव

प्यार जीवन का सब से खूबसूरत एहसास होता है और जब इंसान प्यार में होता है तो उस के अंदर एक अलग तरह की खुशी होती है लेकिन उसी प्यार के रिश्ते में अलग होने का दौर किसी के लिए भी भावनात्मक रूप से तोड़ कर रख देने वाला अनुभव होता है और अगर रिश्ता ज्यादा पुराना और गहरा होता है तो उस के खत्म होने का असर भी उतना ही दर्द देता है.

ब्रेकअप के बाद अकसर लोग अपने प्यार को भुलाने में काफी समय निकाल देते हैं और उस से जुड़ी यादों और खास पलों को याद करतेकरते अपनी पहचान और खुद को ही कहीं खो देते हैं. लेकिन यही वह समय होता है जिस में व्यक्ति को अपनी भावनाओं पर कंट्रोल कर के समझदारी से इसे डील करना चाहिए और खुद के लिए, अपने कैरियर, दोस्त, फैमिली की तरफ ध्यान देना चाहिए.

एक्स से जुड़ी यादों को करें लाइफ से इरेज

ब्रेकअप के बाद अपने एक्स से जुड़ी चीजों को दूर करना बेहद जरूरी होता है. बारबार अपने एक्स की डीपी को देखने, बारबार उसे ब्लौक अनब्लौक करने, डीपी देखने या उस के स्टेटस चेक करने से आप उसे बिल्कुल नहीं भूल पाएंगे इसलिए खुद को इन सब चीजों से दूर रखें.
डायरी से करें दोस्ती

ब्रेकअप के बाद कुछ बातों को दोस्तों या परिवार वालों के साथ शेयर हिचकिचाहट महसूस होती है. ऐसे में डायरी में अपनी भावनाओं को लिख कर शेयर करना एक अच्छा तरीका हो सकता है. ऐसा करने से आप को मौजूदा परिस्थिति से बाहर निकलने में मदद मिलेगी.

डेली रूटीन में लाएं बदलाव

जब कोई लंबे समय तक किसी रिलेशनशिप में होता है तो उस की जिंदगी अपने पार्टनर की पसंद नपसंद के हिसाब से चलती है लेकिन ब्रेकअप के बाद इन आदतों को छोड़ कर अपनी पसंद नपसंद और अपने मुताबिक रूटीन तय करना चाहिए और अगर आपके एक्स का दिया हुआ कुछ सामान आप के पास हो तो उन चीजों को खुद से दूर कर दें. ऐसा करने से आप को नई शुरुआत करने में मदद मिलेगी.

दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताएं

ब्रेकअप का असर हर इंसान पर अलगअलग तरह से होता है और इस के दर्द से निकलने और नए रिश्ते में आने में लगने वाला समय भी सब के लिए कम या ज्यादा हो सकता है. लेकिन कई रिलेशनशिप एक्सपर्ट का मानना है कि किसी भी नए रोमांटिक रिश्ते पर विचार करने या उस में शामिल होने से पहले ब्रेकअप के बाद 21 दिनों का समय महत्वपूर्ण होता है. क्योंकि हर गुजरते दिन के साथ किसी घटना विशेष से जुड़ी आप की भावना कई तरह से बदलती है और लगभग 3 हफ्ते में स्टैंड क्लियर होता है.

ब्रेकअप के बाद लोग मन ही मन ब्रेकअप को किसी गलती की तरह समझने लगते हैं लेकिन ऐसे वक्त में आप का परिवार व दोस्त आप को इस गलत सोच से निकालने में मदद करते हैं.

ब्रेकअप के बाद डिप्रेशन से निकलने में मदद करेंगे ये टिप्स

• अपनी फिजिकल और मेंटल हैल्थ का विशेष ख्याल रखें
• ब्रेकअप के बाद खुद को संभलने और संवरने का समय दें.
• अपने खुद के विकास पर ध्यान दें. ऐसा करने से दिमाग रिलैक्स होता है, और चीजों को नए नजरिए से समझने की कोशिश करता है.
• अपने जीवन का उद्देश्य तय करें और उस पर काम करें.
• अपने साथ समय बिताएं और खुद को जाननेसमझने की कोशिश करें.
• अपनी अपेक्षाओं के साथ अपनी सीमाओं को पहचानें, ताकि कोई दूसरा व्यक्ति वापस आप को इस स्तर पर दुख न पहुंचा सके.
• अपनी पसंद के हिसाब से कोई नई स्किल, ट्रेनिंग या कोर्स ज्वाइन करें. इस से आप के भविष्य को भी फायदा होगा.
• अगर इस सब के बाद भी बाद ब्रेकअप के दर्द से न निकल पा रहे हैं तो किसी अच्छे प्रोफेशनल की मदद लें .Community-verified icon

मेरी पत्नी का अफेयर मेरे छोटे भाई से चल रहा है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मैं इंदौर का रहने वाला हूं और घर के पास ही मेरा एक छोटा सा कारोबार है. मेरे परिवार में मैं, मेरी पत्नी, मेरा एक बच्चा, मेरा छोटा भाई और साथ में मांबाप रहते हैं. मेरा और मेरी पत्नी का रिश्ता काफी अच्छा चल रहा था पर कुछ समय से मैं देख रहा हूं कि मेरी पत्नी मेरे भाई के साथ कुछ ज्यादा ही समय बिताने लगी है. वह मेरे भाई के साथ ही बाजार जाती है और अकसर जब मैं काम पर होता हूं तो उसी के कमरे में रहती है और वह भी दरवाजा बंद कर के. पहले मैं ने इस बात को नजरअंदाज किया पर मेरे साथसाथ मेरे घर वालों को भी पता चल चुका है कि मेरी पत्नी का अफेयर मेरे छोटे भाई से चल रहा है. ऐसे में मैं परिवार में मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

देवर और भाभी का रिश्ता बेहद पवित्र होता है, मगर यदि वे दोनों इस रिश्ते में अपनी सीमाएं लांघ चुके हैं तो आप की चिंता स्वभाविक है.

एक पति को अपनी पत्नी से सिर्फ यही चाहिए होता है कि चाहे कुछ भी हो जाए, उस की पत्नी उस के साथ वफादार रहे पर यहां तो शायद आप की पत्नी के साथसाथ आप के सगे भाई ने भी आप को धोखा दिया है.

ऐसा भी हो सकता है कि जैसा आप सोच रहे हैं वैसा कुछ न हो लेकिन आप की पत्नी का आप के भाई के कमरे में दरवाजा बंद कर के रहना बिलकुल गलत है और इस से यही पता चलता है कि उन के बीच कुछ चल रहा है. देवरभाभी के साथ हंसीमजाक आम है मगर इस का मतलब यह कतई नहीं कि दोनों एक कमरे में दरवाजा बंद कर के रहें.

अगर यह नौर्मल होता और सिर्फ आप का शक होता तो हो सकता है कि आप के परिवार वालों को गलत न लगता पर अगर आप के मांबाप को भी लग रहा है कि यह सही नहीं है तो आप को सब से पहले अपनी पत्नी से बात करनी चाहिए.

आप को अपनी पत्नी को समझाना चाहिए कि वह जो कर रही है बिलकुल गलत है और अगर ऐसा ही चलता रहा और किसी बाहर वाले को पता चल गया तो आप की समाज में इज्जत बिलकुल खत्म हो सकती है.

आप उन्हें समझाइए कि आप दोनों का एक बच्चा भी है तो उन्हें यह सब करने से पहले सोचना चाहिए कि वह जो कर रही है बिलकुल गलत है. अगर फिर भी आप की पत्नी अपनी गलती नहीं मानती तो आप उन्हें धमकी दे सकते हैं कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो हम दोनों अलग घर में रहने चले जाएंगे. अगर आप के घर में से किसी को परेशानी नहीं है तो कुछ दिन आप कोई अलग मकान ले कर भी रह सकते हैं जिस से कि आप की पत्नी का आप के भाई के साथ मिलना कम हो सके.

आप की पत्नी को समझना चाहिए कि आप के बच्चे पर इस का बहुत बुरा असर पड़ सकता है तो उन्हें अपने नाजायज संबंध खत्म करने ही होंगे. आप कोशिश कीजिए कि अगर आप के भाई की शादी की उम्र हो गई है तो उस की भी जल्द शादी करवा दीजिए जिस से कि वे अपने परिवार में मस्त हो जाए.

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थूक, रोटी और अफवाह- ए- बाजार

सौ बात की एक बात, सरकार को बड़ी गंभीरता के साथ इस मामले पर एक जांच बैठा कर देश को बताना चाहिए – इस तरह की घटनाओं का सच क्या है. क्योंकि कुल मिला कर यह विकृत मानसिकता का परिणाम है या फिर अफवाह फैला कर के समाज में सामाजिक दूरियां व भ्रम बढ़ाने का काम.

 

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दरअसल, सहारनपुर जिले में एक होटल में तंदूर से रोटी निकाल कर उस पर कथित रूप से थूकने का वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आने के बाद, पुलिस ने होटल मालिक और उस के कारीगर को हिरासत में ले लिया. इस मामले में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने तहरीर दी थी. इस आधार पर हम कर सकते हैं कि मामला अफवाह फैलाने का मानसिक विकृति का या फिर समाज में आपसी तकरार बढ़ने का हो सकता है.

यह एक गंभीर मामला है क्योंकि इस तरह की घटनाएं 10 वर्ष से पूर्व कभी घटित नहीं हुई, अर्थात केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार और राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद ही इस तरह की घटनाएं सामने क्यों आ रही हैं? पुलिस अपना काम कर रही है, कानून अपना काम करता है मगर समाज में माहौल खराब करने का काम करने वाले सत्ता को अपनी उंगलियों पर नाचने का काम अगर करते हैं तो यह चिंता की बात है.

कानून को अपनी आंखों में पट्टी बांध कर मुक्ति नहीं मिल सकती. पुलिस यह नहीं कह सकती कि हमारे पास शिकायत आई है पुलिस और कानून का काम जांच कर के सच को उजागर करना भी है और यह काम इस प्रसंग में गंभीरता को देखते हुए जल्द से जल्द होना चाहिए मगर होता नहीं है और धीरेधीरे समझ में एक विभ्रम की स्थिति पैदा हो रही है.

पुलिस अधीक्षक के मुताबिक होटल मालिक और कारीगर से पूछताछ की जा रही है और आगे की जांच के बाद इस मामले में आगे की कार्यवाही की जाएगी. मगर यह छोटी सी खबर देश के कोनेकोने में फैल रही है जिस का परिणाम सुखद नहीं कहा जा सकता.

दोषियों पर एक्शन का सच राज्य और केंद्र सरकार को यह बताना चाहिए कि ऐसे मामले वर्तमान में ज्यादा क्यों आ रहे हैं? दूसरी बात जांच के बाद इस के परिणाम क्या सामने आए हैं? क्योंकि इस तरह की घटनाएं तो सुर्खियां बटोर कर दो तक पहुंच जाती हैं मगर जब ऐसे घटनाक्रम अफवाह पाए जाते हैं तो खबर नहीं बनती.

उक्त घटना के बाद से ही पुलिस इस मामले की जांच में जुटी हुई है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही जा रही है. और सजा मिलनी भी चाहिए मगर कानून को यह भी ध्यान रखना होगा कि अगर कोई इस तरह की घटनाओं के झूठे वीडियो वायरल कर रहा है तो उसे भी कड़ी सी कड़ी सजा दी जाए. इस घटना के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद लोगों में आक्रोश है और घटना की निंदा की जा रही है.

सहारनपुर जिले में एक होटल में तंदूर से रोटी निकाल कर उस पर कथित रूप से थूकने का वीडियो वायरल हुआ. इसी तरह कई राजनीतिक नेताओं के भाषण और बयान वायरल हुए हैं.

बौलीवुड और हौलीवुड की नवीनतम खबरें और वीडियोज़ अकसर वायरल होते हैं.

सोशल मीडिया पर विभिन्न चुनौतियां और ट्रेंड्स वायरल होते रहते हैं.

यह कुछ उदाहरण हैं जो हम को वायरल वीडियो की विविधता का अंदाजा दिलाते हैं.

निस्संदेह रोटी में या खाने में थूकने की घटनाएं बहुत ही गंभीर और अस्वीकार्य हैं. यह न केवल स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि यह समाज में विश्वास और सम्मान को भी कम करता है.

कैसे रोक सकते हैं

सचमुच समाज में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं और संभावना है तो इसे गंभीरता से लेते हुए एक जागरूक समाज का निर्माण करना होगा. एक जागरूक नागरिक का कर्तव्य निभाने के लिए हमें आगे आना होगा.

स्वच्छता और स्वास्थ्य का ध्यान रखें.

खाना बनाते समय हाथ धोएं और साफ कपड़े पहनें.

खाने को साफ और स्वच्छ जगह पर रखें.

कानून और समाज

1. जागरूकता अभियान चलाएं.
2. सामाजिक संगठनों और एनजीओ की मदद लें.
3. स्कूलों और कालेजों में स्वच्छता और स्वास्थ्य की शिक्षा दें.
4. समुदाय में स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए कार्यक्रम आयोजित करें.

स्वच्छता और स्वास्थ्य अधिनियमों का पालन करें.

खाने में थूकने पर कठोर दंड निर्धारित करें.

पुलिस और प्रशासन को शिकायत दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित करें.

अदालत में मामला दर्ज करें और दोषियों को सजा दिलाएं.

मीडिया और सोशल मीडिया

1. स्वच्छता और स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाएं.
2. खाने में थूकने की घटनाओं को उजागर करें.
3. सामाजिक दबाव बनाएं और दोषियों को सजा दिलाएं.
4. स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए अभियान चलाएं.

इन कदमों को उठा कर हम खाने में थूकने की घटनाओं पर अंकुश लगा सकते हैं और समाज में स्वच्छता और स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकते हैं.
उत्तराखंड में खाद्य पदार्थों में थूकने और गंदगी मिलाने की घटनाओं को ले कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. इस के बाद, खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने खाद्य कारोबारियों को दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिस में दोषी पाए जाने पर 25 हजार रुपए से ले कर एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा.

इस मामले में मसूरी में लाइब्रेरी चौक पर चाय की रेहड़ी लगाने वाले दो भाइयों को चाय के बर्तन में थूकने और उसे ग्राहकों को पिलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. मुख्यमंत्री के मुताबिक राज्य में इस तरह की घटनाओं को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.

इस के अलावा, स्वास्थ्य मंत्री डा. धन सिंह रावत ने कहा है, त्योहारों के दौरान किसी भी प्रकार की अशुद्धता या असामाजिक गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि ये सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए एक्टरों से कराए गए हों क्योंकि इस तरह के वीडियोज में कैरेक्टर कैमरे की ओर देखता ही नहीं है. यह स्पष्ट दिखता है कि फोटोग्राफी कुक की सहमति से हो रही है. लौजिक के अनुसार कोई भी कुक इस तरह के वीडियो को शूट करने पर औबजैक्ट करेगा.

इन सब बातों से पहले आवश्यकता है देश में इस तरह की अफवाह किसी भी तरह नहीं फैलनी चाहिए, उस का पर्दाफाश होना चाहिए. चंद लोग जो देश का माहौल खराब कर रहे हैं उन्हें कठोर सजा मिलनी चाहिए.

मेरा बौयफ्रैंड चाहता है कि मैं उस के दोस्तों के साथ रोमांस करूं. क्या यह सही है?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मैं काफी समय से एक लड़के साथ रिलेशनशिप में हूं और वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करता है. उसे और उस के दोस्तों को पार्टी करने का काफी शौक है. मैं कई बार उस के साथ उन की औफिस पार्टीज में भी गई हूं जहां मैं उस के दोस्तों और उन की गर्लफ्रैंड से मिली. हाल ही में सब ने मिल कर प्लान बनाया कि वे सब मेरे बौयफ्रैंड के घर पर हाउस पार्टी करेंगे जिस में मैं भी शामिल हुई. हम सब ने खूब ऐंजौय किया और मेरी उस के दोस्तों की गर्लफ्रैंड से अच्छी दोस्ती भी हो गई. हम सब ने साथ में शराब पी और ढेर सारे गेम्स भी खेले. ऐसे में सब लड़कों ने मिल कर एक प्लान बनाया जोकि मुझे बिलकुल पसंद नहीं आया. मुझे बाकी लड़कियों का तो नहीं पता पर जब मैं ने यह बात सुनी तो मुझे बहुत गुस्सा आया. दरअसल, उन सब ने मिल कर प्लान बनाया कि अगली बार हम किसी ट्रिप कर चलेंगे तो एक गेम खेलेंगे जिस में जिस लड़की का नाम जिस भी लड़के के साथ आएगा उन दोनों को आपस में रोमांस करना होगा. मैं अपने बौयफ्रैंड से बहुत प्यार करती हूं और किसी और लड़के के साथ रोमांस करने के बारे में सोच भी नहीं सकती. मुझे डर है कि अगर मैं ने मना किया तो वह मुझे छोड़ कर कोई और गर्लफ्रैंड न बना ले. मैं क्या करूं?

जवाब –

आजकल सोशल मीडिया से प्रभावित हो कर कई लोग अपनी जिंदगी को किसी मूवी से कम नहीं समझते. जैसे बौलीवुड या फिर हौलीवुड मूवीज में दिखाया जाता है कि लोग पार्टी करते समय अपने दोस्त के साथ अपनी बीवी या गर्लफ्रैंड ऐक्सचैंज कर लेते हैं, ठीक वैसे ही आजकल के लोग भी उसे कौपी करने लगे हैं जोकि काफी शर्मनाक है. मौडर्न होना अच्छी बात है लेकिन मौडर्न होने और बेशर्म होने में काफी अंतर होता है.

यह अच्छी बात है कि आप को उन सब की बात बिलकुल पसंद नहीं आई और आप ऐसा कुछ नहीं करना चाहतीं. सब से पहले तो अगर आप का बौयफ्रैंड आप से प्यार करता है तो उसे ऐसी घिनौनी बात कभी नहीं करनी चाहिए लेकिन फिर भी अगर वह ऐसी बात के लिए माना है तो उस के मन में किसी और लड़की के साथ रोमांस करने का लालच है, जिस से साफ पता चलता है कि वह आप से प्यार नहीं करता.

अगर वह अपने दोस्तों के बहकावे में आ कर ऐसा कुछ करना चाह रहा है तो और अपने बौयफ्रैंड को अकेले में समझाइए कि यह सब करना बिलकुल गलत है. हर लड़की की अपनी सैल्फ रिस्पैक्ट होती है तो ऐसे में अगर लड़कियां किसी के साथ भी रोमांस करने लग जाएंगी तो उन की इज्जत का क्या होगा.

अगर आप का बौयफ्रैंड फिर भी नहीं मानता तो आप उस पार्टी में बिलकुल मत जाइए और अपने बौयफ्रैंड से दूरी बना लें. एक समझदार और इज्जतदार लड़की कभी ऐसा कुछ करने के लिए तैयार नहीं होगी.

जैसाकि आप ने बताया कि आप को यह बात सुनते ही गुस्सा आ गया तो इस से पता लगता है कि आप के अंदर बहुत अच्छे संस्कार हैं और आप की तुलना में आप के बौयफ्रैंड की सोच बिलकुल घटिया है.

आप को ऐसे बौयफ्रैंड को छोड़ देना चाहिए जो अपनी गर्लफ्रैंड को किसी और के साथ रोमांस करने के लिए कह रहा है. आप को उस पार्टी में जाना पूरी तरह से ऐवौइड करना चाहिए क्योंकि शराब पीने के बाद कब क्या हो जाए किसी को नहीं पता और ऐसी सोच वाले लड़कों के साथ तो आप को कभी कहीं नहीं जाना चाहिए.

हां, शराब आदि नशीली चीजों से जितना तक हो दूरी बनाए रखें. शराब की गंदी लत न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए ठीक है और न ही सामाजिक रूप से ही. शराब की लत मनमस्तिष्क को पंगु बना देती है और सोचनेसमझने की क्षमता पर भी घातक असर करती है. इसलिए शराब का सेवन कतई न करें.

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अनुपयोगी होते पतिपत्नी के रिश्ते का बदसूरत मोड़

उत्तर प्रदेश मानव अधिकार आयोग में बीती 25 सितम्बर तक 22,255 परेशान पति अपनी शिकायत दर्ज करा चुके थे कि उन की पत्नियां किसी न किसी तरह उन्हें प्रताड़ित करती हैं. यह संख्या अभी और बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि साल 2023 – 24 में पत्नी पीड़ित पतियों की संख्या 31,285 थी जबकि 2022 – 23 में 36,409 पति आयोग इसी तरह की शिकायतें दर्ज कराने पहुंचे थे. यह खबर दिलचस्प भी है और चिंताजनक भी है. दिलचस्प इस लिहाज से है कि आमतौर पर यह उम्मीद नहीं की जाती कि पत्नियां भी पतियों को इतना हैरानपरेशान और प्रताड़ित कर सकती हैं कि वे इतनी बड़ी तादाद में हायहाय करते मानव अधिकार आयोग गुहार लगाने जाएं.

चिंताजनक इस लिहाज से है कि अगर यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था की धुरी कहे जाने वाले पतिपत्नी के रिश्ते का अंजाम क्या होगा. प्रताड़ित या पत्नियों से दुखी पतियों की संख्या निश्चित रूप से इस से कहीं ज्यादा होगी क्योंकि सभी पति इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते, कुछ को अपनी मर्दानगी और मूंछों की इज्जत की चिंता रहती है कि बात आम हो गई तो उन का मजाक बनाया जाऐगा. कुछ पति परिवार और परिजनों की खातिर खामोश रहते हालातों से समझौता करते जिंदगी को जैसेतैसे ढोते रहते हैं.

अब से कोई 75 साल पहले आती तो यह या ऐसी खबर मजाक और अविश्वसनीय लगती. क्योंकि तब पति ऐसी पत्नियों को घर से बाहर निकाल देने में देर नहीं करता और इस के बाद वह मुड़ कर देखता भी नहीं कि बेचारी अर्धांगनी का हश्र क्या हुआ. उसे मायके वालों ने पनाह दी या कहीं दरदर की ठोकरें खाते उस वक्त को कोस रही है जब उस ने पति की ज्यादती का विरोध करने की हिम्मत जुटाई थी. इधर पति नजदीकी लगन में ही दूसरी शादी कर चुका होता और ठाठ की जिंदगी जीते अपनी दूसरी पत्नी को यह एहसास करा रहा होता कि औरत पांव की जूती और मर्द की गुलाम है जिस का धर्म ही पति और ससुराल वालों की सेवा करना है.

पति अय्याश हो, नपुंसक हो या शारीरिक रूप से उसे संतुष्ट और खुश नहीं रख पाता हो तो भी हिंदू धर्म में वह परमेश्वर और भगवान ही होता है. इस की मिसाल वे पत्नियां हैं जिन्होंने गुलामी की जिंदगी से बगाबत की थी या खुद के लिए जिम्मेदारियों के साथ कुछ हक भी मांगे थे. वे कहीं की नहीं रह गई हैं. यकीन न हो तो फलानी या ढिकानी को देख लो जो मायके में बाप भाइयों और भाभियों की मोहताज होते गुलामी ही कर रही है. उस के पास न जमीन जायदाद है न औलाद का सुख है फिर जिस्मानी सुख का तो सवाल ही नहीं उठता अगर गुलामी ही करनी थी तो ससुराल में ही करती.

जब संविधान ने महिलाओं को पुरुषों की बराबरी के हक दिए तो माहौल बदलना शुरू हुआ. इस के बाद हिंदू कोड बिल टुकड़ोंटुकड़ों में संसद से पारित हुआ तो महिलाओं को नारकीय जिंदगी से आजादी का रास्ता खुलने लगा. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 ने तो भारतीय परिवारों में हाहाकार मचा दिया जिस के तहत महिलाओं को भी तलाक का अधिकार मिल गया. इतना ही नहीं एक बड़ा और अहम काम यह हुआ कि मर्दों से एक से ज्यादा शादियों करने की सहूलियत छिन गई. धार्मिक और राजनातिक हलकों में इस और ऐसे कानूनों का जम कर विरोध सड़कों से संसद तक यह अफवाह फैलाते हुआ कि ये कानून सनातन धर्म विरोधी हैं और इन्हें बना कर पारित करवाने वाले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की मंशा हिंदू धर्म और संस्कृति को नष्ट भृष्ट कर देने की है. सरिता के सितंबर प्रथम अंक में पाठक इसे विस्तार से पढ़ सकते हैं इस लेख में तथ्य भी हैं और तर्क भी हैं.

इन कानूनों से जो बदलाव हुए उन्हें भी आप इस रिपोर्ट में पढ़ सकते हैं कि यह प्रचार दुष्प्रचार ही निकला कि औरतों को मर्दों के बराबर हक देने से धर्म नष्ट भृष्ट हो जाएगा. अब देश अगर तेजी से तरक्की कर रहा है तो उस में धर्म या मौजूदा नरेन्द्र मोदी सरकार का कोई योगदान या हाथ नहीं है. बल्कि यह सब इसलिए मुमकिन हुआ कि अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी और योगदान दोनों बढ़े. पारिवारिक और सामाजिक तौर पर भी उन्हें खुल कर सांस लेने की आजादी मिली. वे शिक्षित भी हुईं कामकाजी भी हुईं. आज जो जागरूकता और आत्मविश्वास महिलाओं में दिखते हैं उन की वजह नेहरु सरकार द्वारा बनाए गए कानून हैं. यह और बात है कि महिलाओं को इस का अंदाजा या एहसास नहीं.

औरतें दलितों की तरह कई बंधनों और रूढ़ियों से क़ानूनी तौर पर आजाद हैं. पर यह भी पूरी तरह संतोषजनक नहीं है क्योंकि धर्म के धंधेबाजों ने उन्हें घेरने नएनए तरीके इजाद कर लिए हैं. जिन में से अहम हैं उन्हें पूजापाठ का अधिकार देना, शमशान में जा कर पिता या पति का अंतिम संस्कार करने देना और पितृ पक्ष के दिनों में श्राद्ध और पिंड दान करने का अधिकार देना. इस से धर्म के धंधेबाजों का पेट पलता है.

लेकिन उत्तर प्रदेश सहित देश भर से आ रही इस तरह की खबरें चिंता पैदा करने वाली हैं और विचार करने वाली भी कि कहीं औरतें कानूनी सहूलियतों और पारिवारिक व सामाजिक आजादी का वेजा फायदा तो नहीं उठा रहीं. कुछ मामलों में ऐसा होना संभव और स्वभाविक भी है लेकिन सभी मामलों पर यह थ्योरी फिट नहीं बैठती. यह दरअसल में पति या पत्नी के अनुपयोगी हो जाने के चलते ज्यादा हो रहा है.

एक पत्नी कैसेकैसे पति को परेशान कर सकती है इस पर खूब चुटकुले सोशल मीडिया मंडी में इधर से उधर होते रहते हैं. हास्य व्यंग के कवियों और लेखकों ने भी अपनी कलम इस पर चलाई है और निर्माताओं ने फिल्में भी बनाई हैं जिन में पति, पत्नी से परेशान रहता है. लेकिन पति उसे पहले की तरह मारपीट नहीं सकता न ही बिना तलाक दिए दूसरी शादी कर सकता और न ही घर से निकाल सकता. उलटे कई मामलों में तो यह देखा गया है कि पत्नी ही पति को घर से निकाल देती है और ऐसे मामलों में अकसर वह आर्थिक रूप से सक्षम यानी कमाऊ हो कर पति की कमाई की मोहताज नहीं रहती.

इस स्थिति की तुलना दलित आदिवासियों से की जा सकती है जिन का अपमान अब दंडनीय अपराध है. कोई उन्हें जाति सूचक शब्दों या संवोधन से ताने कसता है तो कानूनन गुनहगार होता है. कुछ मामलों में एससी/एसटी एक्ट का भी वेजा इस्तेमाल दहेज कानून की तरह देखने में आता है लेकिन इन कानूनों से नुकसान आटे में नमक बराबर ही हुए हैं जो कुदरती बात है. मुद्दे की बात पतिपत्नी में से किसी एक का अनुपयोगी हो जाना है जिस की वजह से रिश्ते ज्यादा दरक रहे हैं.

कोई भी पत्नी यह बर्दाश्त नहीं कर पाती कि वह मेहनत कर कमाए और निकम्मा पति उसे दूसरी औरत पर या शराब कबाब जुए सट्टे में उड़ा दे. जाहिर है जो पति कमाएगा धमाएगा नहीं वह बेकार हो कर पत्नी और घर पर बोझ ही बनेगा तिस पर भी दादागिरी यह कि मैं पति हूं तेरा भगवान हूं तो पत्नी तिलमिला उठती है. क्योंकि वह 75 – 80 साल पुरानी नहीं बल्कि आज के दौर की पत्नी है जिसे अपने अधिकार भी मालूम हैं और जिम्मेदारियों का भी एहसास है लेकिन यह बात आजकल की ही उन पत्नियों पर लागू नहीं होती है जो दिन भर मोबाइल फोन या फिर किटी पार्टियों में व्यस्त रहती हैं और पति अगर इस पर एतराज जताए समझाए या गुस्सा भी करे तो उस के कान काटने लगती हैं. यहां से शुरू होती है एक अंतहीन और बेवजह की कलह जिस का अंत अगर बड़े पैमाने पर मानव अधिकार आयोगों में हो रहा है जिन के पास समझाइश देने के अलावा कुछ नहीं होता.

सिर्फ खाना बना देना या बच्चों को संभालना ही पत्नी होने के माने अब नहीं रह गए हैं. बल्कि उसे पैसा कमाने की भी जरूरत है नहीं तो वह फालतू ही लगती है. जिन घरों में पतिपत्नी दोनों कमाते हैं उन में कलह कम होती है क्योंकि दोनों अपनी उपयोगिता बनाए रखते हैं. खातेपीते घरों में पत्नियां नौकरी कर रही हैं तो उन से नीचे के तबके की पत्नियां अपनी हैसियत और शिक्षा के मुताबिक छोटेमोटे काम कर घर चलाने में अपना सहयोग दे रही हैं. फिर भले ही वे घरों में झाड़ूपोंछा बर्तन करती नजर आएं या कपड़े धोए किसी भी तरह अपनी उपयोगिता बनाए रखती हैं. यानी मेट्रो के पतिपत्नी जो दोनों नौकरी करते हैं और आमतौर पर एकदूसरे से संतुष्ट रहते हैं वही हाल निम्न वर्ग का है कि पतिपत्नी दोनों में से कोई अनुपयोगी नहीं रहता. दिक्कत तब खड़ी होती है जब दोनों में से कोई एक वजहें कुछ भी हों फालतू या बेकार हो जाता है तो दूसरा झल्लाने लगता है.

अब अगर ऐसा पतियों के मामले में ज्यादा हो रहा है तो उन्हें किसी आयोग का दरवाजा खटखटाने से पहले अपना दिल और दिमाग टटोल कर देख लेना चाहिए कि क्यों पत्नी उन्हें तंग कर रही हैं. हालांकि इन में पत्नियों का सब से बड़ा और कारगर हथियार सैक्स सुख से वंचित रखना है जो निहायत ही गलत है. कानून भी इसे जायज नहीं मानता बल्कि इसे तलाक के अधिकार के रूप में देखता है. ऐसे कई फैसले इस की गवाही भी देते हैं कि पत्नी द्वारा जानबूझ कर पति को शारीरिक सुख न देना उस के प्रति क्रूरता है. एक अहम और चर्चित फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुनील कुमार और राजेंद्र कुमार ने कहा था कि जीवन साथी को लम्बे समय तक सम्भोग की इजाजत न देना मानसिक क्रूरता है.

26 मई 2023 को आए इस फैसले में पीड़ित पति वाराणसी के रवींद्र यादव ने हाईकोर्ट में फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.

कुछ पतियों की लापरवाही और बुरी आदतें भी पत्नियों की परेशानी का शबब बन जाती हैं जिन के चलते वे पति को परेशान करने लगती हैं. कहने का मतलब यह नहीं कि पत्नी हमेशा सही होती होगी या होती है. कुछ पत्नियां गुस्सैल भी होती हैं और जिद्दी भीं, जिन पर समझानेबुझाने का कोई असर नहीं होता इसलिए वे पति को तंग करने लगती हैं कि तुम मुझे रोकोगेटोकोगे तो मैं तुम्हे यूं समझाउंगी.

ऐसी हालत में इकलौता हल आपसी बातचीत है उस से भी बात न बने तो तलाक बेहतर रास्ता है. हालांकि बातचीत से कई दफा बात बन जाती है और मनमुटाव और गलतफहमी भी दूर हो जाते हैं. अब अगर पति प्रताड़ना की शिकायत कर रहे हैं तो बात कतई हैरानी की नहीं, उन्हें तो खुश होना चाहिए कि शिकायत करने कोई मंच उन्हें मिला हुआ है जिस के पास क़ानूनी अधिकार भले ही कम हों लेकिन वह मामला सुलझाने की कोशिश तो करता है. इस के बाद अदालत ही बचती है जहां जा कर इंसाफ मांगना पत्नी की तरह पति का भी हक है.

किताबें पढ़ना अपने लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाएं

यह तो आपने सुना ही होगा कि बिन विद्या नर पशु समान. बचपन में जब घरवाले हमें स्कूल भेजते थे, हमें किताबों पुस्तकों का ज्ञान नहीं था. लेकिन हम तब भी अज्ञानी नहीं थे. हम बातों को समझते थे, लेकिन तार्किक क्षमता विकसित नहीं हुई थी.

स्कूल पहुंचे, वहां हमारी शब्दकोश से पहचान कराई गई. तब हमें ये समझ आने लगा कि हम जो कुछ भी बोलते हैं उसे लिखा जाता है. उसे लिखा कैसे जाता है, लिखने के बाद वो शब्द के रूप में कैसा लगता है यह हमें पता चला और तब हम शब्द रूपी कलाकृति से परिचित हुए. लेकिन उस शब्द के कितने और अर्थ हो सकते हैं और उन शब्दों का हमारी जीवनशैली पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये सब हमें हमारे गुरुओं के द्वारा दी गई किताब को पढ़ कर समझ आया.

हम सभी बचपन से यही सुनते आए हैं कि किताबें इंसान की सब से अच्छी दोस्त होती है. जिस से हमारे अंदर चीजों को सोचने समझने का ज्ञान आता है और हम अनुभवी कहलाते हैं. एक किताब, किसी भी व्यक्ति को इंजीनियर, डाक्टर, अफसर, और बिजनेसमैन बनाती है. सिर्फ यही नहीं बल्कि एक किताब, किसी भी व्यक्ति को सफलता के उस श्रेष्ठतम पायदान पर ले जाती है जहां पहुंच कर वो व्यक्ति अपनी कहानी, कागज के महज चंद टुकड़ों में समेट कर एक किताब के रूप में पूरी दुनिया को अपने कीर्तिमान और शौर्य का परिचय करवाती है.

बहरहाल, एक समय था जब हमारे पास पढ़ने के लिए केवल पुस्‍तकें होती थीं. किताबों के बारे में मिसाइल मेन अब्‍दुल कलाम कह गए हैं. ‘एक अच्छी किताब हजार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक पुस्तकालय के बराबर होता है.’

प्रिंटिंग प्रेस के अविष्‍कार ने पुस्‍तक लेखन को आसान बनाया

पहले किताबों का लेखन भी आसान नहीं था. प्राचीन सभ्यता में मिट्टी, पत्‍थर, पेड़ की छाल, धातु की चादरें और हड्डियों का उपयोग लिखने के लिए किया जाता था. जो कि काफी मेहनत का काम था. फिर इन्हें हाथ से ही लिखा जाने लगा. जो कि काफी मेहनत का काम था. यही वजह थी की किताबें बहुत कम और बहुत महंगी मिलती थीं. इस के बाद स्याही आई. इस ने लेखन को थोड़ा आसान बना दिया और लेखन को काला और भूरा रंग दिया. प्रिंटिंग प्रेस के अविष्‍कार ने पुस्‍तक लेखन को ओर भी आसान बना दिया. इस से किताबों को हाथ से लिखे जाने की मेहनत कम हो गई.

किताबों को ‘लिबरी केटेनटी’ कहा जाता था

18वीं शताब्‍दी तक सार्वजनिक पुस्‍तकालय में पुस्‍तकों को अक्‍सर बुक सेल्‍फ या डेस्‍क पर जंजीर से बांध दिया जाता था. ऐसा चोरी के डर से किया जाता था. अब आप समझ ही गए होंगे कि लोगों के जीवन में किताबों की कितनी अहमियत थी कि वे चोरी न हो जाएं, इस डर से उन की हिफाजत की जाती थी. जंजीरों वाली इन किताबों को ‘लिबरी केटेनटी’ के नाम से पुकारा जाता था.

फिर एक दौर आया जब पढ़ाकू लोगों को किताबी कीड़ा कहा जाने लगा

पढ़ाकू लोगों को पहले किताबी कीड़ा के नाम बुलाया जाता था. अब आप सोच रहे होंगे कि यह किताबी कीड़ा नाम क्यों पड़ा? पहले किताबों पर जिल्द जिसे बाइंडिंग कहते थे वह चढ़ाई जाती थी ताकि किताब को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सके. और इन किताबों की जिल्द यानी बाइंडिंग पर छोटे कीड़े अपना भोजन ढूंढते थे जिस वजह से ज्यादा पढ़ने वाले लोगों को ‘किताबी कीड़ा’ कहा जाता था. लोगों में पढ़ने का क्रेज कुछ इस कदर था कि वह दिन में कई कई घंटा पढ़ने में लगते थे. उन के लिए पड़ना सिर्फ ज्ञान अर्जित करने का तरीका ही नहीं था बल्कि टाइम पास करने का जरिया भी था.

पहले किताबें पढ़ने का जनून कुछ इस तरह था –

जवाहरलाल नेहरू का किताबों से था एक खास रिश्ता

पुस्तक प्रेमी भारतीय नेताओं में जवाहरलाल नेहरू का नाम अग्रणी है. जवाहरलाल नेहरू किताबों की दुनिया में गहरी दिलचस्पी रखते थे. पंडित नेहरू को पुस्तकों से बहुत प्रेम था. वे पुस्तकों को इतना संभाल कर रखते थे कि वर्षों नई बनी रहती थी.

बल्कि बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने भारत में पुस्तक-संस्कृति के प्रचारप्रसार की दिशा में हरसंभव योगदान दिया. स्वाधीन भारत में साक्षरता के प्रसार पर ज़ोर देने के साथ ही नेहरू ने पुस्तकालयों के महत्त्व को भी बख़ूबी समझा था. यही वजह थी कि वे भारत के लाखों गांवों और शहरोंकस्बों के लिए छोटेबड़े पुस्तकालयों के महत्त्व पर ज़ोर देते रहे.

नेहरू ने यूरोप की पुस्तकालय संस्कृति का उदाहरण दिया और ऐसे पुस्तकालय स्थापित करने पर जोर दिया जहां पाठक किताबें, पत्र-पत्रिकाएं पढ़ सकें. उन्होंने भारत ही नहीं विदेशों में भी पुस्तकालय खोलने पर जोर दिया. रंगून, कोलम्बो और सिंगापुर में पुस्तकालय खोलने के संदर्भ में यह राय दी कि वहां भारतीय इतनी संख्या में पहले से हैं और इतने सक्षम हैं कि अगर वे चाहें तो ख़ुद ही समूह बना कर ऐसा पुस्तकालय खोल सकते हैं. उन के चलते विदेशों में भी भारतीय पुस्तकालय बने.

रेलवे स्टेशनों के बुक-स्टाल में भी उन की दिलचस्पी रही. रेलवे स्टेशनों के बुक-स्टाल, जो आज प्रायः बंद हो चले हैं, उन के सुधार की लिए भी उन्होंने बहुत काम किया.

नेहरू अंग्रेजी राज के दौरान जेलों में लिखी अपनी किताबों के लिए मशहूर हैं. गौर करने वाली बात यह है कि उन्हें हर दिन निश्चित मात्रा में कागज-कलम दी जाती थी. नेहरू की कृतियों को देशविदेश में व्यापक प्रशंसा मिली.

अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन

अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने स्कूली पढ़ाई केवल कक्षा एक तक की थी लेकिन खुद स्वाध्याय के द्वारा सारा ज्ञान पाया था. आज भी 150 साल बाद हम उन्हें याद करते हैं जबकि इन 150 साल में आए कितने नेता आप को याद होंगे. इंसान अपने काम द्वारा याद किया जाता है. डिग्री एक समय तक ही काम आती है.

किताबों से दूरी की वजह

ई-बुक्स और इंटरनेट का प्रभाव

लेकिन आजकल के बिजी लाइफस्टाइल में बहुत कम लोग ही किताब पढ़ने की आदत (रीडिंग हैबिट) को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना पाते हैं. इस की एक बहुत बड़ी वजह सोशल मीडिया है जिस में टाइम वेस्ट करने को हम ज़माने के साथ चलना कहते हैं. वहां घंटों मोबाइल को चलने, बेकार के वीडियो देखने, रील बनाने और चलने में हम घंटों बरबाद कर रहे हैं. इस का फायदा तो कुछ नहीं है पर हम अपना कीमती समय ख़राब कर रहे हैं और ज्ञान भी कुछ नहीं मिल रहा.

दूसरे, हमें आज ई-बुक्स पढ़ना ज्यादा आसान लगता है. लेकिन ई-बुक्स को पढ़ना उतना आसान नहीं है इन उपकरणों को केवल चार्जिंग और इंटरनेट कनेक्शन द्वारा संचालित किया जाता है. डिस्चार्ज होने पर ये काम नहीं करेंगे. यह शर्त मैन्युअल रूप से किताबें पढ़ने पर लागू नहीं होती है. हम किसी भी समय किताब पढ़ सकते हैं और इस में कुछ भी खर्च नहीं होता है, और सब से महत्वपूर्ण है महसूस होना किताबों के छूने का सुख ई-बुक्स कभी नहीं दे सकता. इसलिए आएं जाने किताबे पड़ना क्यों जरुरी है.

किताबें पढ़ना क्यों है जरूरी

पढ़ने से मैमोरी शार्प होती है

यदि आप कोई काल्पनिक पुस्तक पढ़ते हैं, तो आप का मस्तिष्क विभिन्न पात्रों के नाम और स्वभाव को याद कर लेता है. उन के इतिहास में वापस जाना और घटनाओं या कथानक को याद करना मज़ेदार होता है और आप की याददाश्त में सुधार करता है. कई बार हम बात करतेकरते भी भूल जाते हैं की हम किस विषय पर बात कर रहे थे लेकिन जब हम उस बात को शांति से बैठ कर पढ़ते हैं तो कभी नहीं भूलते.

Vocabulary अच्छी होती है

पढ़ने से हमें नए शब्द सीखने को मिलते हैं. जितना हम पढ़ेंगे उतना ही नए शब्द हमारी मैमोरी में स्टोर होते जाएंगे. वे नए शब्द धीरेधीरे आप की डेली लाइफ के बोलने में अपनी जगह बना लेंगे. इस के आलावा अगर आप के पास ज्यादा शब्द होंगे तो इस से आप की बोलने की शैली भी बेहतर होगी और आप ज्यादा क्लियर तरीके से अपनी बात सामने वाले को समझा पाएंगे. स्पष्ट और अच्छी तरह से बोलने वाला होना किसी भी करियर में मदद कर सकता है और यह जानना कि आप आत्मविश्वास के साथ बोल सकते हैं, आप के आत्म-सम्मान को बहुत बढ़ावा दे सकता है.

स्ट्रेस कम होता है

स्ट्रेस में होना कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक सिचुएशन है और इस सिचुएशन से आप खुद ही बाहर निकल सकते हैं. इस के लिए किताबें बहुत अच्छा रोल प्ले करती हैं. क्योंकि जब आप एक अच्छी स्टोरी में आप खो जाते हैं और आप का दिमाग कहीं और चला जाता है.

आप लेखक की रची हुए कल्पना की दुनिया में गोते लगाने लगते हैं और उस के द्वारा लिखे गए शब्दों के अर्थ समझने में लग जाते हैं और इसे बीच आप का अपना तनाव छू मंतर हो जाता है. हमें याद भी नहीं रहता की कुछ देर पहले हम किस मानसिक तनाव में थे. पढ़ने से तनाव कम हो सकता है, हृदय गति कम हो सकती है और रक्तचाप कम हो सकता है.

सहानुभूति विकसित करती है

पुस्तकें हमें अपने जीवन से बाहर की वास्तविकताओं का अनुभव कराती हैं. वे हमें अकसर कथावाचक के स्थान पर रख कर दूसरों से जुड़ना सिखाती हैं. हमें अपने आलावा दूसरों के दुखदर्द के प्रति भी संवेदनाएं होती हैं. हम उन से भी जुड़ने और समझने की कोशिश करते हैं.

नौलेज और ब्रेनपावर को बढ़ाती है रीडिंग हैबिट

पुस्तकें रोचक तथ्यों से भरी होती हैं. चाहे आप काल्पनिक या गैर-काल्पनिक किताबें पढ़ें, किताबें हमें ऐसी जानकारी दे सकती हैं जो हमें शायद पता न हो. विभिन्न विषयों को पढ़ना आप को अधिक ज्ञानवान व्यक्ति बना सकता है. कई विषय तो ऐसे होते हैं जिन के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं होती लेकिन जब उन के बारे में पढ़ते हैं तो वह इतना रोचक लगता है कि हम पढ़ते ही जातें हैं और कई घंटे बीत जाते हैं.

सोशल मीडिया से हमें दूर कर, नींद को पास बुलाती हैं किताबें

कई शोधों में खुलासा हुआ है कि किताब पढ़ने से नींद अच्छी आती है. हैल्थ एक्सपर्ट्स हमेशा रात में सोने से पहले मोबाइल चलाने के बजाय किताब पढ़ने की सलाह देते हैं. मनपसंद किताब पढ़ने से मस्तिष्क में मेलाटोनिन हार्मोन रिलीज होता है, जो मस्तिष्क को सोने का संकेत देता है. इस के लिए रोजाना रात में सोने से पहले अपनी मनपसंद किताब जरूर पढ़ें.

इलैक्ट्रानिक्स की कृत्रिम लाइट आप के दिमाग को संकेत देती है कि अभी जागने का समय है इसलिए बिस्तर पर आते ही इन चीजों से दुरी बना लें. अपना टैलीविजन बंद करना और अपने फ़ोन पर स्क्रौल न करना शरीर को आराम करने के लिए प्रोत्साहित करता है और बेहतर नींद लाता है. इसलिए हर रोज सोने से पहले कुछ पढ़ कर सोने की आदत डालें इस से काफी जल्दी नींद आ जाएगी.

रीडिंग हैबिट जिज्ञासा को बढ़ाती है

सही मायने में अगर आप में नईनई चीजों को जानने का जुनून है आप तभी आगे बढ़ पाएंगे. और रीडिंग हैबिट आप की जिज्ञासा को विकसित करती है. आप जितनी ज्यादा बुक्स पढ़ेंगे आप की जानने की भूख उतनी ही बढ़ेगी.

सफल बनना है तो रोज अखबार और किताबे पढ़ें

रोज सुबह उठ कर अखबार और किताबें पढ़ने की आदत आप को सफल बनाएगी. उस में आप को देशविदेश की जानकारी मिलेगी. आजकल समाज में क्या हो रहा है? क्या चल रहा है? इस के बारे में अपडेट रहेंगे तो यह आप की पढ़ाई और नौलेज बढ़ाने में भी मदद करेगा. इस के आलावा हमारे इर्दगिर्द बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जिन के पास हर वक्त कुछ नए आइडियाज़ तैयार रहते हैं. उन का माइंड भी हमारे जैसा ही है. मगर वे लोग ज्यादा क्रिएटिव सोच पाते हैं. इस का कारण सुबह सवेरे जल्दी उठ कर कुछ वक्त अपने लिए निकालना ज़रूरी है. हम भी उन के आईडिया से कुछ मदद ले सकें.

अब तो आप समझ ही गए होंगे की हमेशा से हमारे पेरैंट्स और टीचर्स के द्वारा किताबें पड़ने पर क्यों जोर दिया जाता रहा है. अब्राहम लिंकन ने भी कहा है कि “किताबें आदमी को ये बताने के काम आती हैं कि उस के मूल विचार आखिरकार इतने नए भी नहीं हैं.”

किताबों में यदि थोड़ी सी भी रूचि जागृत होती है तो आप से अधिक ख़ुशक़िस्मत व्यक्ति औऱ कोई नहीं हो सकता.

बहुत से पुस्तक प्रमियों का मानना है कि जितनी देर से हम पढ़ना शुरू करते हैं उतना ही अफसोस होता है कि यह काम पहले क्यों नहीं किया. एक से एक किताबें सामने आती जाती हैं. एकमात्र यही आदत है जिस की अति भी हमारा कोई नुकसान नहीं करती, उल्टा कुछ बेहतर करती है. हां, आप को क्या पढ़ना है उस का चुनाव सावधानी से करें.

तो फिर अब सोच क्या रहे हैं. आप भी पढ़ने कि आदत बनाइए चाहे महीने में एक किताब ही पढ़ें दिन में मात्र आधा घंटा सुबह या शाम किताबों को देना शुरू कीजिए. आप के व्यक्तित्व में आप को खुद ही बदलाव नजर आने लगेंगे.

लव यू दादी मां

22 साल की छोटी सी उम्र में इला फैशन इंडस्ट्री की एक जानीमानी हस्ती बन चुकी है. इतना ही नहीं अब इला ने शाहपुरजट इलाके में अपना नया शोरूम बना लिया है. साथ ही अपना ब्रैंड भी लौंच कर लिया है. अब वह बड़ेबड़े फैशन डिजाइनरों को टक्कर देने लगी है.
इला ने अपने नए ब्रैंड का नाम भी अनोखा सा ही रखा है, ‘जे फौर जानकी.’

जब कोई उस से पूछता है कि उस ने अपने ब्रैंड का यह नाम क्यों चूज किया है तो इला फख्र से बताती है कि जानकी मेरी प्यारी दादी मां का नाम है. आज यदि मैं अपनी लाइफ में इस मुकाम तक पंहुची हूं तो सिर्फ दादी मां की वजह से. मेरी दादी मां ही मेरी लाइफ की मैंटोर, मोटीवेटर व नेविगेटर आदि सब हैं.

इला की दादी मां इला के औफिस में हर रोज इला के साथ औफिस में आती हैं. कुछ देर आरामकुरसी पर बैठती हैं और जब थक जाती हैं तो इला ड्राइवर के साथ घर वापस भेज देती है. इला के मन में यह अटल विश्वास है कि दादी मां का चेहरा देख कर दिन की शुरुआत करने से निश्चय ही उस का पूरा दिन बहुत अच्छा गुजरता है.

जब इला उन की तरफ देख कर लोगों को इंगलिश में उन की तारीफ में कसीदे पढ़ती है तो उन शब्दों का पूरापूरा मतलब तो नहीं समझ पाती दादी पर इला के हावभाव से यह जरूर पता लग जाता है कि उन की पोती उन की तारीफ में ही कुछ कह रही है.

दादी मां इला की इस अदा पर मन ही मन खुश हो कर उस को ढेर सारे आशीर्वाद दे डालती हैं. दादी मां के चेहरे पर मंदमंद मुसकराहट खिल जाती है. इस मुसकराहट के पीछे न जाने कितनी दर्द की लकीरें अंकित हैं यह तो सिर्फ वे ही जानती हैं, फिर तुरंत ही अपने मन को यह कह कर समझ लेती हैं कि अंत भला तो सब भला.

इला उन के इकलौते बेटे राघव व बहू नीरा की इकलौती बेटी थी. इला के जन्म के बाद एक साल तक नीरा ने अवकाश ले कर इला की परवरिश की फिर औफिस जौइन करने के लिए यह सवाल सामने आया कि इतनी छोटी बच्ची को न तो घर में अकेले आया के साथ छोड़ा जा सकता है और न किसी डे केयर में.

नीरा ने जब यह समस्या अपनी मां के साथ शेयर की तो इला की नानी उस को अपने घर ले गईं. उन का मानना था कि इतनी छोटी बच्ची को अभी से किसी आया के भरोसे छोड़ना बिलकुल भी ठीक नहीं है. यों भी नीरा को अपनी बच्ची से अधिक अपने कैरियर की अधिक चिंता थी.

नीरा की मां ने लाख समझाया कि इला को अभी तुम्हारी व तुम्हारे प्यार की बहुत जरूरत है और जब तक इला 5 साल की नहीं हो जाती तब तक अपने जौब को भूल जाओ. लाइफ में समय व परिस्थिति के अनुसार कई समझौते करने ही पड़ते हैं. इन 5 सालों में तो मैं अपने कैरियर में इतना पीछे रह जाऊंगी कि फिर मुझे कोई जौब भी देगा या नहीं. मैं अपना कैरियर दांव पर नहीं लगा सकती, नीरा ने अपना दोटूक फैसला अपनी मां को सुना दिया.

काफी सोचविचार के बाद इला की नानी उसे अपने साथ अपने घर ले गई. इला अपनी नानानानी की आंखों का तारा थी. साथ ही इला की बालसुलब चपलता से उन का मन भी बहल जाता था. नीरा भी बीचबीच में अवकाश ले कर इला से मिलने जाती रहती थी. जब भी जाती अपनी बेटी के लिए ढेरों उपहार, टौफी, चौकलेट आदि ले जाती. शायद यही उस का अपनी बेटी को प्यार दिखाने का तरीका था.

इधर कुछ दिनों से इला की नानी की तबीयत खराब रहने लगी तो उन्होंने नीरा से कहा कि अब तुम इला को अपने साथ रखो ओर उस की देखरेख के लिए किसी अच्छी आया का इंतजाम कर लो.

नानानानी के लाड़प्यार ने इला को जिद्दी व बिगड़ैल बना दिया था. राघव व नीरा तो सारा दिन औफिस में व्यस्त रहते. इला अभी इतनी बड़ी नहीं हुई थी कि उसे घर में अकेले छोड़ा जा सके. अभी वह सिर्फ 6 साल की थी.

नीरा ने अपनी समस्या औफिस की कुलीग के साथ शेयर की. किसी ने आया रखने की सलाह दी तो किसी ने घर पर दादीनानी को बुला कर उन के पास छोड़ने की सलाह दी. अधिकांश कुलिग्स का कहना था कि कितनी भी अच्छी आया रख लो फिर भी बच्चे के पास किसी अपने का होना जरूरी है. इस से बच्चा सिक्योर फील करता है.

नीरा ने औफिस से एक सप्ताह का अवकाश लिया, शहर की अच्छी से अच्छी सिक्योरिटी एजेंसियों के बारे में पता किया जो अच्छीअच्छी आया का प्रबंध कर सकती थी. 1-2 कंपनियों ने तो शहर के नामीगिरामी लोगों के नाम भी बताए कि हमारे यहां से भेजी गई आया के व्यवहार से उस के घर वाले संतुष्ट थे. नीरा ने पूरे घर में कैमरे भी फिट करवा दिए जिस से वह औफिस मे बैठेबैठे आया के क्रियाकलापों पर नजर रख सके कि आया उस की बच्ची के साथ कैसा व्यवहार कर रही है.

नीरा इतना करने के बाद काफी संतुष्टि का अनुभव कर रही थी कि वह तसल्ली से अपनी जौब पर फोकस कर सकेगी. राघव के टूर से लौटने पर उस ने अपने इंतजाम के बारे में बताया.

नीरा की सब बात सुनने के बाद राघव ने खुश हो कर कहा, ‘‘नीरा, हमारी बेटी इला के बारे में जो सोचा है बहुत अच्छा सोचा है. लेकिन मेरा मानना अभी भी यही है कि जबकि हम दोनों अपनेअपने जौब में बिजी हैं, ऐसे में आया के अलावा घर में किसी अपने का होना बहुत जरूरी है.

आप का क्या मतलब है कि किसी अपने का होना जरूरी है. अब कोई अपना क्या बाजार से खरीद कर लाया जाएगा? आप को तो मालूम है कि मेरी मां ने 6 साल तक इला को पालापोसा है. अब मेरे परिवार में तो कोई है नहीं जो हमारे घर आ कर रहे इला के साथ.

‘‘क्यों, इला की दादी तो है अभी. वे स्वस्थ भी हैं, अनुभवी भी. उन को जा कर ले आता हूं, वही रहेंगी इला के साथ. फिर जब इला कुछ और बड़ी हो जाएगी तो उसे किसी अच्छे होस्टल में डाल देंगे, जहां उस की पढ़ाईलिखाई व देखरेख दोनों भलीभांति हो जाएगी,’’ राघव के मुंह से इला की दादी को अपने घर में लाने की बात सुन कर नीरा का मूड उखड़ गया.

‘‘आप को तो बस हरदम अपनी मां को ही इस घर में लाने के मौके की तलाश रहती है. आप को तो मालूम है कि मुझे अपने घर में किसी की दखलंदाजी जरा भी पसंद नहीं है फिर वह देहातिन मेरी बच्ची को क्या अच्छी आदतें व संस्कार सिखाएगी.’’

‘‘क्यों, हम भाईबहनों को भी तो उन्होंने ही पाला है और अच्छे संस्कार भी दिए हैं,’’ इस मुद्दे को ले कर राघव व नीरा में काफी बहस हुई. आखिर नीरा को अपनी मौन सहमति देनी ही पड़ी.

भावावेश मे आ कर नीरा ने सासूमां के लिए जो देहातन शब्द का प्रयोग किया था उस पर उसे खुद ही खेद हुआ और इस के लिए राघव से उस ने तुरंत सौरी कह कर माफी मांग ली.

दूसरे दिन इतवार था. राघव कार ले कर गया और दोपहर तक मां को ले कर आ गया. बहू नीरा ने उन्हें देख कर जिस अंदाज मे पैर छुए और जिस तरह मुंह लटका लिया वह उन्हें बहुत खला. आखिर वह बच्ची तो नहीं थीं. अनमने ढंग से किए जाने वाले स्वागत को पहचानने की बुद्धि वह रखती ही थीं. उन की पोती भी उन्हें अजनबी नजरों से देखती रही. फिर राघव ने इला को बताया कि तुम्हारी दादी मां हैं. इन को अपना कमरा नहीं दिखाओगी?

यों तो नीरा ने इला को व्यस्त रखने के लिए उस को कई तरह की ऐक्टिविटीज की क्लासेस जौइन करा दी थीं. इन क्लासेस में वह क्या सीख कर आ रही है या नहीं, यह जानने और पूछने का नीरा को समय कहां था. उस की कौरपोरेट जगत की नौकरी, उस का सारा समय खा जाती थी. नीरा चाहते हुए भी इला से अधिक इंटरैक्शन नहीं कर पाती थी.

नीरा अपने जौब में व्यस्त रहती. सुबह 8 बजे घर से निकल कर शाम 8 बजे तक ही घर पहुंच पाती. तब तक इला सो चुकी होती. यही कारण था कि इला धीरेधीरे अपनी मां से दूर व दादी मां के नजदीक होती जा रही थी.

हां, शुरूशुरू में तो इला को अपने कमरे मे दादी मां का रहना अजीब लगा फिर उन के प्यार व स्नेहभरे व्यवहार से अब उन के साथ घुलनेमिलने लगी थी.

एक दिन ड्राइंग क्लास से लौटी तो बहुत खुश थी. जानकीजी ने उस की खुशी का कारण पूछा तो उस ने अपनी ड्राइंग की कौपी उन को दिखाई और बताया कि मैम ने हैप्पी फैमिली ड्रा करने को बोला था. मैं ने जो बनाया उस को देख कर बहुत खुश हुईं. मुझे शाबाशी दी. उस ने अपनी ड्राइंग कौपी में मम्मीपापा के साथ दादी मां को भी चित्रित किया था. जानकीजी यह जान कर बहुत खुश हुईं.

समय अपनी गति से बीत रहा था. घर में आया के साथसाथ इला की दादी मां है, यह सोच कर नीरा काफी निश्चिंत हो गई थी. इला धीरेधीरे बड़ी हो कर 12 साल की उम्र तक पहुंच रही थी. एक दिन स्कूल से लौटी तो स्कूलबैग पलंग पर पटक कर अपने बैड पर औंधे मुंह गिर कर रोने लगी. जानकीजी ने उस के स्कर्ट पर खून के दाग देखे तो घबरा गई. उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा, ‘‘मुझे बताओ, क्या तुम को कहीं चोट लगी है, स्कूल में खेलते समय.’’

इला ने कहा, ‘‘नहीं, पर मेरे पेट मे जोर का दर्द हो रहा है. मां को 2-3 बार फोन मिलाया पर बात नहीं हो पाई. दादी मां, क्या आप के पास मेरे पेट दर्द को दूर करने की कोई दवा है?’’

‘‘हां, है न, मेरी दवा से तुम्हारा दर्द एकदम छूमंतर हो जाएगा,’’ जानकीजी समझ गईं कि इला को पीरियड्स शुरू हो गए हैं और इसी कारण उस की स्कर्ट पर खून के दाग लगे हैं और पेट दर्द हो रहा है.

उन्होंने आया को बोल कर गरम पानी की बोतल लाने को कहा. इला को अपने पास लिटाया, उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और पेट की सिंकाई की. थोड़ी देर में ही इला को नींद आ गई. जब वह सो कर उठी तो बोली, ‘‘लव यू दादी मां, आप ने तो सच में ही मेरा पेट दर्द गायब कर दिया.’’

इला को अपने पास बैठा कर धीरेधीरे उसे पीरियड्स की जानकारी दी और बताया, ‘‘बेटा, एक उम्र आने पर ऐसा सभी के साथ होता है. अब हर महीने तुम को इस से गुजरना होगा. 3-4 दिन के बाद तुम नौर्मल महसूस करोगी. डरने जैसी कोई बात नहीं है मेरी बच्ची. हां, इस दौरान तुम को अधिक उछलकूद से बचना होगा और अपने खाने में हैल्दी फूड्स शामिल करने होंगे ताकि इस दौरान जो रक्त तुम्हारे शरीर से बाहर निकलेगा उस से कमजोरी महसूस न हो.’’ इला ने दादी मां की सारी बातें बहुत ध्यान से सुनीं और कहा कि आगे से इन बातों का ध्यान रखेगी.
समय धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था. दादी मां को सिलाई व कढ़ाई करते देख उस का रुझान भी इस ओर बढ़ रहा था. इस बार एग्जाम में क्राफ्ट की फाइल में उसे फुल मार्क्स मिले थे क्योंकि दादी मां से सीखे कसीदों ने उस को काफी हुनरबाज बना दिया था.

आज इला खुश थी क्योंकि उस की टीचर ने उस की क्राफ्ट फाइल दिखा कर उस की बहुत तारीफ की थी. घर आते ही इला दादी मां के गले मे बांहें डाल कर लिपट गई और बोली, ‘‘लव यू दादी मां.’’

जानकीजी इला को अब तक गुड टच व बैड टच के बारे में भी बता चुकी थीं. यों तो इला कार से ही स्कूल आनाजाना करती थी. सुबह ड्राइवर स्कूल छोड़ आता. शाम को वापस घर ले आता.

एक दिन इला स्कूल से आ कर अपने कमरे में कपड़े बदल रही थी. उस की क्लास  का लड़का नोट्स लेने के बहाने घुस आया क्योंकि दरवाजा असावधानीवश खुला रह गया था. जानकीजी रसोई में इला के लिए खाना लगा रही थीं. वह लड़का पहले तो इला से छेड़छाड़ करने लगा फिर उस से जबरदस्ती करने की कोशिश की. इला जोर से चिल्लाई. आवाज सुन कर दादी मां तुरंत दौड़ी आई और उस लड़के का कौलर पकड़ कर 2-3 थप्पड़ मारे फिर घर के बाहर खींच कर ले गईं और जोरजोर से आवाज लगा कर पूरे महल्ले को जमा लिया. सभी लोगों ने पूरी बात जान कर उस लड़के की जम कर धुलाई की. तब तक किसी ने पुलिस को बुला लिया था. उस लड़के को पुलिस के हवाले कर दिया गया.

कमरे में आने पर देखा कि इला कोने में डरीसहमी खड़ी थी. वह जानकीजी को देख कर उन से लिपट कर रोने लगी और रोतीरोती बोली, ‘‘लव यू दादी मां. यू आर ग्रेट. यदि आज आप न होतीं तो न जाने क्या हो जाता. आया आंटी तो इन सब से बेखबर घोड़े बेच कर सो रही है.’’

शाम को नीरा के औफिस से वापस आने पर इला ने पूरी घटना अपनी मां को बताई कि किस तरह दादी मां की वजह से आज आप की बेटी किसी अनहोनी का शिकार होने से बच गई. नीरा को महसूस हुआ कि घर में किसी अपने का होना बहुत जरूरी है. साथ ही उस ने जा कर अपनी सासू मां को धन्यवाद दिया और अपने अब तक के व्यवहार के लिए माफी मांगी.

इला ने 12वीं तक जातेजाते जानकीजी से कपड़ों की कटिंग, कढ़ाई व डिजाइनिंग आदि सब सीख लिया था. इसलिए उस ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने का मन बना लिया था. उस की मां ने भी उस की चौइस पर अपनी हां की मुहर लगा दी क्योंकि इला के साथसाथ नीरा भी सासूमां के हुनर को सलाम करने लगी थी और इला वह तो उठतेबैठते हर समय बस एक ही बात बोलती रहती थी, ‘‘लव यू दादी मां.’’

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