Beautiful Story : अपनी कंजूसी की आदत पर अब अमन को गुस्सा आने लगा था. जब कंपनी ने पहले दर्जे के टिकट का खर्चा दिया था, तो वह नाहक ही दूसरे दर्जे के डब्बे में सफर क्यों कर रहा था?

‘और पिसो मक्खीचूस...’ खुद को कोसते हुए अमन ने एक नजर पूरे डब्बे में डाली. एक से बढ़ कर एक गंवार किस्म के लोग बैठे हुए थे. न बैठने की तमीज, न खानेपीने की.

सामने बैठा धोती वाला आदमी आधे घंटे से ‘चबरचबर’ की तेज आवाज करते हुए चने खाए जा रहा था. खाए तो ठीक, लेकिन खाने का यह भी कोई ढंग हुआ?

चने खाते हुए अचानक उस आदमी को जोर से छींक आ गई. बगैर मुंह पर हाथ रखे उस ने जो छींका, तो मुंह में पिसते चनों का आधा हिस्सा सीधे अमर के झक सफेद कुरते पर आ गिरा.

गुस्सा तो ऐसा आया कि उठ कर

2-4 तमाचे लगा दे, लेकिन उस की बड़ी उम्र देख कर अमन रुक गया

और तेज आवाज में कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’

अमन सोच रहा था, शायद वह माफी मांगेगा, पर यह क्या? वह तो...

‘‘इस में बदतमीजी की क्या बात है? छींक आ गई, तो इस में मैं क्या कर सकता हूं? जानबूझ कर तो नहीं छींका है,’’ उस आदमी ने दलील दी.

‘‘लेकिन, छींकते वक्त मुंह पर हाथ तो रखा जा सकता है,’’ अमन तमीज सिखाने की गरज से बोला.

धोती वाला आदमी बहाना करने लगा, ‘‘आप की बात ठीक है, पर मैं हाथ रखता उस से पहले ही...’’

‘‘पहले क्या...? मेरे कुरते की तो ऐसी की तैसी हो गई न,’’ अमन बिफरते हुए बोला.

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