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रिंग टोन्स के गाने, बनाएं कितने अफसाने

मैं जैसे ही घर में घुसा कि पप्पू की भुनभुनाहट सुनाई दी, ‘‘जमाना कहां से कहां पहुंच रहा है और एक पापा हैं कि वहीं के वहीं अटके हैं. कब से कह रहा हूं कि इस टंडीरे को हटा कर मोबाइल फोन ले लो, पर नहीं, चिपके रहेंगे अपने उन्हीं पुराने बेमतलब, बकवास सिद्धांतों से. मेरे सभी दोस्तों के पापा अपने पास एक से बढ़ कर एक मोबाइल रखते हैं और जाने क्याक्या बताते रहते हैं वे मुझे मोबाइल के बारे में. एक मैं ही हूं जिसे ढंग से मोबाइल आपरेट करना भी नहीं आता.’’

अंदर से अपने लाड़ले का पक्ष लेती हुई श्रीमतीजी की आवाज आई, ‘‘अब घर में कोई चीज हो तब तो बच्चे कुछ सीखेंगे. घर में चीज ही न होगी तो कहां से आएगा उसे आपरेट करना. वह तो शुक्र मना कि मैं थी तो ये 2-4 चीजें घर में दिख रही हैं, वरना ये तो हिमालय पर रहने लायक हैं… न किसी चीज का शौक न तमन्ना…मैं ही जानती हूं किस तरह मैं ने यह गृहस्थी जमाई है. चार चीजें जुटाई हैं.’’

श्रीमतीजी की आवाज घिसे टेप की तरह एक ही सुर में बजनी शुरू हो उस से पहले ही मैं ने सुनाने के लिए जोर से कहा, ‘‘घर में घुसते ही गरमगरम चाय के बजाय गरमागरम बकवास सुनने को मिलेगी यह जानता तो घर से बाहर ही रहता.’’

श्रीमतीजी दांत भींच कर बोलीं, ‘‘आते ही शुरू हो गया नाटक. जब घर में कोई चीज लेने की बात होती है तो ये घर से बाहर जाने की सोचना शुरू कर देते हैं.’’

मैं कुछ जवाब देता इस से पहले ही अपना पप्पू बोल पड़ा, ‘‘पापा, ये लैंड लाइन फोन आजकल किसी काम के नहीं रहे हैं. आजकल तो सभी कंपनियां बेहद सस्ते दामों पर मोबाइल उपलब्ध करवा रही हैं. आप अब एक मोबाइल फोन ले ही लो.’’

इस तरह मैं श्रीमतीजी और पप्पू के बनाए चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि मुझे मोबाइल फोन लेना ही पड़ा. अब जितनी देर मैं घर में रहता हूं, पप्पू मोबाइल से चिपका रहता है. पता नहीं कहांकहां की न्यूज निकालता, मुझे सुनाता. एसएमएस और गाने तो उस के चलते ही रहते.

यह सबकुछ कुछ दिनों तक तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगा था, कहीं भी रहो, कभी भी, कैसे भी, किसी से भी कांटेक्ट  कर लो. पर कुछ ही दिनों में उलझन सी होने लगी. कहीं भी, कभी भी, किसी का भी फोन आ जाता. थोड़ी देर की भी शांति नहीं. सच तो यह है कि मोबाइल पर बजने वाली रिंग टोन मुझे परेशानी में डालने लगी थी.

एक दिन मेरे दफ्तर में एक जरूरी मीटिंग थी कि कंपनी की सेल को कैसे बढ़ाया जाए. सुझाव यह था कि कर्मचारियों के काम के घंटे बढ़ा दिए जाएं और उन्हें कुछ बोनस दे दिया जाए. अभी इस पर बातचीत चल ही रही थी कि मेरा मोबाइल बजा, ‘…बांहों में चले आओ हम से सनम क्या परदा…’

मीटिंग में बैठे लोग मूंछों में हंसी दबा रहे थे और मैं खिसिया रहा था. फोन घर से था. मैं ने फोन सुनने के बजाय स्विच आफ कर दिया. मुझे लगा कि मेरे ऐसा करने से वे समझ जाएंगे कि मैं किसी काम में व्यस्त हूं. पर नहीं, जैसे ही मैं ने सहज होने का असफल प्रयास करते हुए चर्चा शुरू करने की कोशिश की, रिंग टोन फिर से सुनाई पड़ी, ‘…बांहों में चले आओ…’

‘‘सर,’’ मीटिंग में मौजूद एक सज्जन बोले, ‘‘लगता है आज भाभीजी आप को बहुत मिस कर रही हैं. हमें कोई एतराज नहीं अगर इस मीटिंग को हम कल अरेंज कर लें.’’

मैं ने हाथ के इशारे से उन्हें रोकते हुए जल्दी से फोन उठाया और जरा गुस्से से भर कर बोला, ‘‘क्या आफत है, जल्दी बोलो. मैं इस समय एक जरूरी मीटिंग में हूं.’’

‘‘कुछ नहीं. मैं  कह रही थी कि आज शाम को मेरी कुछ सहेलियां आ रही हैं तो आप आते समय बिल्लू चाट भंडार से गरम समोसे लेते आना,’’ श्रीमतीजी गरजते स्वर में बोलीं.

अब मौजूद सदस्यों की व्यंग्यात्मक हंसी के बीच चर्चा आगे बढ़ाने की मेरी इच्छा ही नहीं हुई सो मीटिंग बरखास्त कर दी. घर आ कर मैं ने पप्पू को आड़े हाथों लिया कि मेरे मोबाइल पर फिल्मी गानों की रिंग टोन लेने की जरूरत नहीं है, सीधीसादी कोई रिंग टोन लगा दे, बस. बेटे ने सौरी बोला और चला गया.

अगले दिन मुझे एक गांव में परिवार नियोजन पर भाषण देने जाना था. अपने भाषण से पहले मैं कुछ गांव वालों के बीच बैठा उन्हें  यह समझा रहा था कि ज्यादा बच्चे हों तो व्यक्ति न उन की देखभाल अच्छी तरह से कर सकता है न उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ा सकता है. बच्चे ज्यादा हों तो घर में एक तरह से शोर ही मचता रहता है और अधिक बच्चों का असर घर की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है.

अभी मैं और भी बहुत कुछ कहता कि मेरे मोबाइल की रिंग टोन बज उठी, ‘बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आंख के तारे….’ और इसी के साथ वहां मौजूद सभी गांव वाले खिलखिला कर हंस पड़े. कल ही पप्पू को रिंग टोन बदलने के लिए डांटा था तो वह मुझे इस तरह समझा रहा था कि बच्चों को डांटो मत. इच्छा तो मेरी हुई कि मोबाइल पटक दूं पर खुद पर काबू पाते हुए मैं ने कहा, ‘‘बच्चे 1 या 2 ही अच्छे होते हैं. ज्यादा नहीं,’’ और फोन सुनने लगा.

घर पहुंचने पर मैं ने बेटे को फिर लताड़ा तो वह बिना कुछ बोले ही वहां से हट गया. मेरे साथ दिक्कत यह थी कि मुझे अच्छी तरह से मोबाइल आपरेट करना नहीं आता था. मुझे सिर्फ फोन सुनने व बंद करने का ही ज्ञान था. इसलिए भी रिंग टोन के लिए मुझे बेटे पर ही निर्भर रहना पड़ता था. अब उसे डांटा है तो वह बदल ही देगा यह सोचता हुआ मैं वहां से चला  गया था.

हमारी कंपनी ने मुंबई के बाढ़  पीडि़तों को राहत सामग्री पहुंचाने का जिम्मा लिया था. सामग्री बांटने के दौरान मैं भी वहां मौजूद था जहां वर्षा से परेशान लोग भगवान को कोसते हुए चाह रहे थे कि बारिश बंद हो. तभी मेरे मोबाइल की रिंग टोन पर यह धुन बज उठी, ‘बरखा रानी जरा जम के बरसो…’

यह रिंग टोन सुन कर लोगों के चेहरों पर जो भाव उभरे उसे देख कर मैं फौरन ही अपने सहायक को बाकी का बचा काम सौंप कर वहां से हट गया.

अब की बार मैं ने पप्पू को तगड़ी धमकी दी और डांट की जबरदस्त घुट्टी पिलाई कि अब अगर उस ने सादा रिंग टोन नहीं लगाई तो मैं इस मोबाइल को तोड़ कर फेंक दूंगा.

कुछ दिनों तक सब ठीकठाक चलता रहा. मैं निश्ंिचत हो गया कि अब वह रिंग टोन से बेजा छेड़छाड़ नहीं करेगा.

एक सुबह उठा तो पता चला कि हमारे घर से 2 घर आगे रहने वाले श्यामबाबू का 2 घंटे पहले हृदयगति रुक जाने से देहांत हो गया है. आननफानन में मैं वहां पहुंचा. बेहद गमगीन माहौल था. लोग शोक में डूबे मृतक के परिवार के लोगों को सांत्वना दे रहे थे कि तभी मेरे मोबाइल की रिंग टोन बज उठी, ‘चढ़ती जवानी मेरी चाल मसतानी…’

मैं लोगों की उपहास उड़ाती नजरों से बचते हुए फौरन घर पहुंचा और पहले तो बेटे को बुरी तरह से डांट लगाई फिर वहीं खड़ेखड़े उस से रिंग टोन बदलवाई.

अब पप्पू ने मेरे मोबाइल से छेड़छाड़ तो बंद कर दी है पर घर में उस ने एक नई तान छेड़ दी है कि अब मुझे भी मोबाइल चाहिए. क्योेंकि मेरे सभी दोस्तों के पास मोबाइल है. सिर्फ एक मैं ही ऐसा हूं जिस के पास मोबाइल नहीं है. मेरे पास अपना मोबाइल होगा तो मैं जो गाना चाहूं अपने मोबाइल की रिंग टोन पर फिट कर सकता हूं.

श्रीमतीजी हर बार की तरह इस बार भी बेटे के पक्ष में हैं और मैं सोच रहा हूं कि मैं तो बिना मोबाइल के ही भला हूं. क्यों न विरासत मेें रिंग टोन के साथ यही मोबाइल बेटे को सौंप दूं.

सेल्फी लेने के लिये ऐसा हो मेकअप

आज कल हर किसी पर सेल्‍फी का भूत सवार है. लेकिन हर सेल्‍फी में आप खूबसूरत दिखे ये जरुरी तो नहीं. आप इस बात को तो जानती ही होंगी कि सेल्‍फी तभी अच्‍छी आती है जब आपका मेकअप सही ढंग से अवसर के अनुरूप किया गया हो.

अगर सेल्‍फी लेने के बाद आपकी हर वक्‍त यही शिकायत रहती है कि इस सेल्‍फी में आपकी फोटो अच्‍छी नहीं आई तो यदि आप हमारे बताए गए तरीके से मेकअप करेंगी तो यकीन मानिये कि अगली बार आप खुद के चेहरे को फोटोजनिक मानेंगी.

कैसा हो मेकअप

सेल्‍फी किस जगह पर और किस अवसर के लिये खींच रही हैं उस बात का ध्‍यान रखें. जैसे अगर आप कौलेज में हैं तो न्‍यूड मेकअप रखें यानी की त्‍वचा के रंग से मिलता जुलता मेकअप.

BB क्रीम का प्रयोग

अपने चेहरे को स्‍मूथ और डेलिकेट लुक देने के लिये आप चाहें तो बीबी क्रीम या फिर टिंटिड मौइस्‍चराइजर का प्रयोग कर सकती हैं. इससे आपका चेहरा नेचुरल लगेगा.

आईब्रो करें डार्क

एक शेड डार्क आई ब्रो पेंसिल का इस्‍तमाल करें. क्‍योंकि ज्‍यादातर कैमरे के फ्लैश से आई ब्रो हल्‍की दिखने लगती हैं तो ऐसे में अगर वो गहरी और सेट रहेंगी तो अच्‍छा रहेगा.

बाहर के लिये मेकअप

अगर आप प्राकृतिक लाइट में सेल्‍फी ले रही हैं तो मेकअप हल्‍का रखें. आंखों पर काजल और मस्‍कारा लगाएं और चेहरे से मेल खाता फाउन्‍डेशन लगाएं. इसके बाद ट्रान्‍सुलेट पावडर और पिंक कलर का ब्‍लशर हल्‍का लगाएं.

ना करें बालों को ब्लो ड्राई

कई बार सुबह-सुबह जब हम बालों में शैंपू करते हैं तो हमारे पास इतना समय नहीं होता कि हम अपने बालों को खुला छोड़ कर सुखा सके. ऐसे में हममे से कई लोग ब्लो ड्राय का सहारा लेते हैं. हममें से कई लोगों को लगता है कि ऐसा करने से बाल जल्‍दी सूख जाएंगे और इससे उनका कीमती समय भी बच जाएगा. लेकिन क्या आप जानती हैं कि रोज-रोज ब्लो ड्राय करने से बालों पर बहुत बुरा असर पड़ता है? तो चलिये जानते हैं इसके बारें में…

बालों की जड़ो पर असर

ब्लो ड्राय से बालों पर अत्यधिक गर्मी और तेज हवा का प्रेशर डाला जाता हैं. इससे बालों की जडें खराब हो जाती हैं. इसलिये अच्छा होगा कि ब्लो ड्राय का प्रयोग बहुत ही सीमित समय के लिये करें और रोज रोज इसका प्रयोग करने से बचें.

बाल झड़ते हैं

नहाने के बाद ब्लो ड्राय करने से बालों का झड़ना शुरू हो जाता है. बाल ऐसे हो जाते हैं मानों की इनमें जान ही ना हो. इस वजह से आपका भी चेहरा मुर्झाया सा लगने लगता है. तो आप ऐसा क्यों नहीं करती कि बालों को थोड़ी देर के लिये खुला झोड़ दें.

बाल अपनी बनावट और आकार खो देते हैं

यदि आप अपने बालों को ब्लो ड्राय करें तो आप पाएंगी कि आप के बाल कुछ समय की एक निश्चित अवधि के बाद डल हो चुके होंगे और अपनी प्राकृतिक चमक खो चुके होंगे. यह बालों की बाहरी परत भी खराब कर देती है. तो आप समझ सकती हैं कि कैसे अपने थोड़े से समय को बचाने के प्रयास में आप अपने बालों को नुकसान पहुंचाती हैं.

दो मुहें बाल

आप सोंच भी नहीं सकती कि ब्लो ड्राय करने से आपके बालों को कितना नुकसान पहुंच सकता है. थोंड़ा सा समय बचाने के चक्कर में आप अपने बालों का अच्छा टेक्सचर खराब कर देती हैं. बालों को ज्यादा गरम करने से वह जल जाते हैं और दोमुंहे हो जाते हैं

बढ़ती उम्र में सेक्स से डरने वाली महिलाओं के लिए अच्छी खबर

अमेरिका का एक सर्वे कहता है कि बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं को सेक्स करना चाहिए यह सेहत के लिए अच्छा है. सेक्स समय के साथ बेहतर होता जाता है. यह उम्र से डरने वाली महिलाओं के लिए अच्छी खबर है क्योंकि सर्वे में शामिल अधिकांश महिलाओं का तो यह मानना है की मध्य आयु में सेक्स पहले से ज्यादा संतुष्टिदायक हो जाता है. उनका यह भी कहना है कि ज्यादा सेक्स से अच्छा है बेहतर सेक्स और यह उम्र बढ़ने पर ही संभव है. कम सेक्स या सेक्स की कम चाह का बढती उम्र के साथ अच्छे सेक्स से कुछ ख़ास लेना देना नहीं है. जब बात संतुष्टि की हो तो शारीरिक और मानसिक अंतरंगता का प्रभाव ज्यादा पड़ता है.

800 महिलाओं पर किए गया सर्वे…

30 या 40 की उम्र आने का मतलब यह नहीं है कि आपका सेक्स जीवन कोई बुरा मोड़ ले लेगा. बल्कि इसके विपरीत सम्भावना है कि वह पहले से बेहतर होने लगेगा. 40 से अधिक आयु वाली 50 प्रतिशत महिलाओं को सेक्स की चाह, ऑर्गज्म सब कुछ असामान्य या पहले से बेहतर होता है. 800 महिलाओं पर किए गए एक अमेरिकी सर्वे से पता चलता है.

Sex After 40

बढ़ती उम्र के साथ कम हुई सेक्स की चाहत…

जिन महिलाओं पर सर्वे किया गया उनकी औसत आयु 67 वर्ष थी. उनसे पूछा गया कि उनका सेक्स जीवन बीते माह में कैसा रहा. उम्मीद के अनुसार, सेक्स की चाह बढती उम्र के साथ कम होती है- लगभग 40 प्रतिशत महिलाओं ने सेक्स से जुडी एक्टिविटी में दिलचस्पी कम होने की बात मानी. बढती उम्र के साथ सेक्स के अंतराल में भी गिरावट पाई गई. जो अधिक उम्र की महिलाएं सेक्स में एक्टिव थीं, वह दूसरों की अपेक्षा बेहतर मानसिक और शारीरिक हेल्थ की स्थिति में थी.

Sex After 40

40 के बाद बेहतर हुई सेक्स लाइफ…

इन महिलाओं के लिए सेक्स की कम होती चाह कोई चिंता का विषय नहीं था. 60 प्रतिशत महिलाएं, चाहे वो नियमित सेक्स न करती हों, अपने सेक्स जीवन से संतुष्ट और खुश थीं. अध्ययन से यह भी पता चला कि 40 से अधिक आयु की महिलाओं के लिए सेक्स उम्र के साथ बेहतर ही हुआ था. 80 और उस से अधिक उम्र की महिलाएं अपने सेक्स जीवन से संतुष्ट थी, उनकी तुलना में जो 40 से 55 वर्ष की थीं.

वजन और डाइजेशन की परेशानी में असरदार हैं ये एक्सरसाइजेज

अनहेल्दी लाइफस्टाइल और खानपान के कारण लोगों में डाइजेशन की समस्या आम हो गई है. पाचन में परेशानी होने से लोग पूरे दिन असहज महसूस करते हैं. डाइजेशन ठीक ना हो तो अपच और एसिडिटी की समस्या होती है. डाइजेशन की परेशानियों को ठीक करने के लिए लोग तरह तरह के तरीके आजमाते हैं पर कई बार इसका परिणाम सकारात्मक नहीं होता. ऐसे में हम आपको कुछ एक्सरसाइजेज बताने वाले हैं, जिसकी मदद से आप डाइजेसन के साथ साथ बढ़ रहे वजन की समस्या ठीक कर सकते हैं.

तो आइए जाने इन एक्सरसाइजेज के बारे में.

साइकिलिंग

exercises affecting in digestion and weight problems

पाचन क्रिया को बेहतर बनाने के लिए साइकिलिंग एक बढ़िया एक्सरसाइज है. नियमित रूप से साइकिलिंग करने से आपका डाइजेस्टिव सिस्टम सुचारू ढंग से काम करता है. डाइजेशन बेहतर करने के लिए और वजन कम करने के लिए ये एक बेहतरीन एक्सरसिज है.

क्रंचेस

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गैस की समस्या को दूर करने के लिए ये एक प्रभावशाली एक्सरसाइज है. इसे करने से आपकी पेट की मांसपेशियों पर काफी जोर पड़ता है जिससे आपका पाचन तंत्र सही तरह के काम करता है. ये कई तरह के होते हैं जैसे कि लेग क्रंच, लान्ग आर्म क्रंच आदि. आप अपनी सहूलियत के अनुसार कोई भी क्रंच कर सकते हैं.

तेज गति से चलें

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तेज गति से चलना एक बेहतरीन एक्सरसाइज है. डाइजेशन ठीक करने के लिए आप 30 से 45 मिनट चलिए. इससे वजन कम होने के साथ साथ बहुत सी बीमारियां भी दूर रहेंगी.

लें गहरी सांसें

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गहरी सांस लेना डाइजेशन के लिए काफी असरदार एक्सरसाइज है. सीने में जलन और भारीपन की शिकायत में ये एक्सरसाइज प्रभावशाली है. बस आपको सीधे बैठकर गहरी सांसें लेनी है, इससे आप रिलेक्सड महसूस करेंगे और तनाव भी कम होगा.

रिस्कनामा : अपरिपक्व लेखन

रेटिंग : दो स्टार

गांव के पुरुष के अत्याचार से अकाल मृत्यु प्राप्त लड़की भूतनी बनकर किस तरह पूरे गांव के मर्दों से बदला लेती है, उसी की कहानी है फिल्म ‘‘रिस्कनामा’’. पर पूरे परिवार के साथ देखने योग्य नही है.

फिल्म की कहानी राजस्थान के एक गांव की है, जहां के सरपंच शेरसिंह गुर्जर (सचिन गुर्जर) का हुकुम ही सर्वोपरी है. कोई भी इंसान उनके खिलाफ जाने की जुर्रत नही करता. पंचायत के सभी सदस्य शेरसिंह की ही बात का समर्थन करते हैं. शेरसिंह का दावा है कि वह हर काम देश व समाज की संस्कृति को बचाने व गांव की भलाई के लिए ही करते हैं. शेरसिंह के गांव में प्यार करना अपराध है. जो युवक व युवती प्यार करते हुए पकड़े जाते हैं, उन दोनों को शेरसिंह मौत की नींद सुला देता है. गांव के काका (प्रमोद माउथो) की लड़की दामिनी जब एक लड़के राजू के प्यार में पड़कर गांव से बाहर जा रही होती है, तो काका पंचायत पहुंचते हैं, जहां प्रेम की सजा मौत सुनाई जाती है. सरपंच शेरसिंह का मानना है कि दामिनी अपनी मनमर्जी से राजू के साथ गयी है. दोनो को ढूंढकर मौत की सजा दी जाए. गांव के लोग दामिनी व राजू को ढूंढकर लाते हैं, और दोनों को मौत की नींद सुला दिया जाता है. पर दामिनी भूतनी बनकर एक पेड़ पर रहने लगती है. उसके बाद आए दिन किसी न किसी गांव के युवक का शव गांव के उसी पेड़ पर लटकते हुए मिलता है, जिस पर दामिनी के भूत ने कब्जा जमा रखा है.

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सरपंच शेरसिंह जितने नेक दिल इंसान हैं, उनका भाई वीर सिंह (सचिन गुर्जर) उतना ही बदचलन है. हर दिन गांव की किसी न किसी लड़की की इज्जत लूटना उसका पेशा सा बन गया है. दिन भर शराब में डूबा रहता है या जुआ खेलता है. मगर शेरसिंह कि ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है. पड़ोसी गांव के चौधरी (शहबाज खान) अपनी बेटी मोहिनी (अनुपमा) की शादी शेरसिंह के भाई वीर सिंह से करने का प्रस्ताव यह सोचकर रखते हैं कि शेरसिंह की ही तरह वीर सिंह भी अच्छा आदमी होगा. शादी के बाद पहली रात ही मोहिनी को पता चल जाता है कि उसकी शादी गलत इंसान से हुई है. वीर सिंह हर दिन रात में शराब पीकर किसी तरह कमरे में पहुंचता है. कुछ दिन बाद चौधरी अपनी बेटी मोहिनी को बिदा कराने आते हैं. जब वह मोहिनी को बिदा कराकर जा रहे होते हैं, तो कुछ पलों के लिए उसकी गाड़ी उसी पेड़ के नीचे रूकती है और दामिनी का भूत मोहिनी में समा जाता है. घर पहुंचने पर मोहिनी बीमार हो जाती है. बेसुध रहती है. डाक्टरों को बीमारी की वजह समझ नही आती. डाक्टर कहते हैं कि यह किसी सदमे में है. इसे खुश रखने की कोशिश की जाए. समय गुजरता है. पर वीर सिंह अपनी पत्नी मोहिनी को बिदा कराने नही जाता. तब शेरसिंह की पत्नी सरला (कल्पना अग्रवाल), शेरसिंह को घर की इज्जत बचाने के लिए मोहिनी को बिदा कराने भेजती है. पर चौधरी गांव की पंचायत बुलाकर शेरसिह पर आरोप लगाते हुए मोहिनी को भेजने से मना कर देते हैं.

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शेरसिंह अपनी गलती कबूल करते हुए कहते हैं कि वह एक बार मोहिनी से मिलना चाहेंगे. शेरसिंह, मोहिनी से मिलने घर के अंदर जाता है. मोहिनी इस शर्त पर जाने के लिए राजी होती हैं कि वह उसके साथ पत्नी जैसा व्यवहार करेंगे. क्योंकि उसके पिता ने उसकी शादी उन्ही को देखकर की थी ना कि वीरसिंह को. अपने गांव व घर में अपनी इज्जत बचाने के लिए शर्त मान लेते हैं. मोहिनी बिदा होकर आ जाती है. अब मोहिनी हर रात शराब में डूबे वीरसिंह को कमरे से बाहर कर शेरसिंह के साथ रात गुजारती है. एक दिन रात में मोहिनी के कमरे से शेरसिंह को निकलते हुए शेरसिंह की बहन ज्योति देख लेती है. शेरसिंह कहता है कि वह मोहिनी को समझाने गया था. फिर ज्योति की सलाह पर शेरसिंह, वीर व मोहिनी को पिकनिक मनाने भेजते हैं. जहां वीर सिंह सुधर जाता है. फिर कहानी तेजी से बदलती है. फिर हालात ऐसे बनते हैं कि वीरसिंह, शेरसिंह और मोहिनी को रंगेहाथों पकड़ता है. वीरसिंह के हाथों गोली चलती है. शेरसिंह व मोहिनी मारे जाते हैं, पर फिर मोहिनी खड़ी हो जाती है, पता चलता है कि उसके अंदर तो दामिनी का भूत है, जिसने बदला लेने के लिए  शेरसिंह से यह सब करवाया. अंततः वीरसिंह भी मारा जाता है और सरला को गांव का सरपंच बना दिया जाता है.

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बदला लेने की कहानी ‘‘रिस्कनामा’’ एक बोझिल फिल्म है. इसमें मनोरंजन का घोर अभाव है. फिल्म में गंदी गालियों की भरमार है, जिसके चलते पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्म नहीं देखी जा सकती. जबकि इस विषय पर यह बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. मगर अपरिपक्व लेखन व निर्देशन के चलते फिल्म एकदम सतही बनकर रह गयी. कई जगह लगता है कि पटकथा लिखते समय लेखक खुद स्पष्ट नही रहें कि उन्हें अपनी फिल्म को वास्तव में किस दिशा की तरफ ले जाना है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म में एक भी कलाकार अपने किरदार के साथ न्याय करने में पूर्णतः सफल नही है. दोहरी भूमिका में सचिन गुर्जर है, मगर शेरसिंह के किरदार में वह कुछ हद तक सफल रहे हैं, पर वीर सिंह के किरदार में वह बेवजह लाउड हो गए हैं. अनुपमा तो सुंदर लगी हैं. कल्पना अग्रवाल ठीक ठाक हैं. प्रमोद माउथो एक गरीब व मजबूर गांव वाले के छोटे किरदार में अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

लगभग पौने दो घंटे की फिल्म ‘रिस्कनामा’ का निर्माण अर्जुन सिंह ने किया है. फिल्म के निर्देशक गुर्जर अर्जन नागर हैं.

फोटोग्राफ : अति धीमी गति से सरकती फिल्म

रेटिंग: डेढ़ स्टार

‘‘लंच बाक्स’’ जैसी सफल फिल्म के सर्जक रितेश बत्रा इस बार रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘फोटोग्राफ’’ लेकर आए हैं.  जिसे देखने के बाद रितेश बत्रा पर ‘‘वन फिल्म वंडर’’ की ही कहावत सटीक बैठती है. इस रोमांटिक कौमेडी फिल्म में प्यार की भावनाएं तो कहीं उभरती ही नही है.

फिल्म की कहानी मुंबई की है. मुंबई के गेटवे आफ इंडिया पर घूमने आए लोगों के फोटो तुरंत खींचकर देकर कुछ फोटोग्राफर अपनी जीविका चलाते हैं. उन्हीं में से एक है मो.रफीक (नवाजुद्दीन सिद्दीकी). रफीक के माता पिता बचपन में ही खत्म हो गए थे. उनकी दादी ने उसे व उसकी दो बहनों को पाल पोसकर बड़ा किया. रफीक ने अपनी दोनों बहनों की शादी अच्छे ढंग से की. पर अब तक उनकी शादी नहीं हुई है. उसकी दादी चाहती हैं कि रफीक जल्द से जल्द शादी कर ले. दादी उसके पीछे पड़ी हुई हैं पर रफीक को कोई लड़की नहीं मिली. एक दिन वह गेटवे आफ इंडिया पर घूमने आयी गुजराती परिवार की लड़की मिलोनी (सान्या मल्होत्रा) की तस्वीर खींचता है. और यूं ही उसकी तस्वीर अपनी दादी (जफर) के पास भेज देता है कि वह चिंता न करें उसे एक अच्छी लड़की मिल गयी है. दादी को वह उसका नाम नूरी बता देता है क्योंकि उसने मिलोनी से नाम पूछा ही नहीं था. अब दादी का पत्र आ जाता है कि वह मुंबई नूरी से मिलने के लिए आ रही हैं तो रफीक परेशान हो जाता है. पर जल्द ही रफीक व मिलोनी की मुलाकात हो जाती है. रफीक,मिलोनी से निवेदन करता है कि वह उसकी दादी के मुंबई आने पर उनकी प्रेमिका बनकर मिल ले और वह बता देता है कि उसने दादी को उसका नाम नूरी बताया है. मिलोनी अमीर गुजराती परिवार की लड़की है, जो कि सी ए की तैयारी कर रही है. जब दादी मुंबई पहुंचती हैं तो रफीक मिलोनी को नूरी कहकर अपनी दादी से मिलवाता है. उसके बाद मिलोनी व रफी की मुलाकातें बढ़ती हैं. दोनों एक दूसरे के साथ एडजस्ट करने के लिए खुद को बदलने पर विचार करना शुरू करते हैं. पर एक दिन दादी रफीक से कह देती हैं कि उन्हे पता चल गया है कि नूरी का नाम कुछ और है और वह मुस्लिम नही है. उसके बाद रफीक, मिलोनी को लेकर फिल्म देखने जाता है. मिलोनी बीच में ही फिल्म छोडकर बाहर बैठ जाती है. रफीक भी उसके पीछे आता है और फिल्म की आगे की कहानी बताते हुए कहता है कि लड़की व लड़के के माता पिता को इनके प्यार पर एतराज होगा. और फिर दोनो चल पड़ते हैं.

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पटकथा लेखन व कथा कथन की कमजोरी के चलते दस मिनट बाद ही दर्शक सोचने लगते हैं कि यह फिल्म कब खत्म होगी. फिल्म का अंत होने से पहले ही दर्शक कह उठता है कि ‘‘कहां फंसायो नाथ.’’ फिल्म बहुत ही धीमी गति से सरकती रहती है. इतना ही नहीं लेखक व निर्देशक ने बेवजह कोचिंग क्लास के अंदर का लंबा दृश्य, फिर कोचिंग क्लास के शिक्षक की सड़क पर मिलोनी से मुलाकात, अपने माता पिता के कहने पर एक गुजराती लड़के से होटल मे मिलोनी की मुलाकात के दृश्य गढ़कर कहानी को भटकाने का ही काम किया है. यह गैरजरुरी दृश्य कहानी में पैबंद लगाने का ही काम करते हैं. बतौर निर्देशक व लेखक रितेश बत्रा की यह सबसे कमजोर फिल्म कही जाएगी. एडीटिंग टेबल पर भी इस फिल्म को कसने की जरूरत थी. यह रोमांटिक कौमेडी फिल्म है पर दर्शक को एक बार भी हंसी नही आती. इतना ही नहीं मिलोनी या रफीक के चेहरे पर एक बार भी प्रेम की भावनाएं नजर नहीं आती.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो नवाजुद्दीन सिद्दीकी और सान्या मल्होत्रा दोनों ने ही निराश किया है. दादी के किरदार में फारुख जफर जरूर कुछ छाप छोड़ती हैं.

एक घंटा 51 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘फोटोग्राफ’’ का निर्माण रितेश बत्रा, रौनी स्क्रूवाला, नील कोप, विंसेट सेनियो ने किया है. निर्देशक रितेश बत्रा, संगीतकार पीटर रैबुम, कैमरामैन टिम गिलिस व बेन कुचिन्स तथा कलाकार हैं- नवाजुद्दीन सिद्दिकी, सान्या मल्होत्रा, फारूख जफर, विजय राज, जिम सर्भ, आकाश सिन्हा, ब्रिंदा त्रिवेदी नायक, गीतांजली कुलकर्णी, सहर्ष कुमार शुक्ला व अन्य.

बेबी औयल : लगाए आपकी खूबसूरती में चार चांद

बेबी औयल के काफी फायदे हैं. इससे शरीर में नमी आने के साथ ही वह चमकदार भी बनती है. अगर आप केवल अपने बच्चे को बेबी औयल लगाती हैं तो खुद भी इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दीजिए क्योंकि जिस तरह आप बेबी औयल को अपने बच्‍चे के शरीर पर प्रयोग करने के लिये सुरक्षित महसूस करती हैं, ठीक उसी तरह से यह तेल आपके सौंदर्य को भी कई गुना बढ़ा सकता है. इसमें कार्बनिक तेलों की तरह कोई सुगंध नहीं होती, न ही इसे प्रयोग करने के बाद शरीर पर चकत्‍ते पड़ते हैं.

बेबी औयल कई त्‍वचा संबन्‍धित समस्‍याओं को ठीक कर सकता है. अगर आपकी कमर पर भद्दे स्‍ट्रेच मार्क्‍स हैं तो इसे लगाने से वह सही हो सकते हैं. सर्दियों में अगर आपकी त्‍वचा भी ड्राई हो रही है तो इससे अपने शरीर पर मालिश करें और देखें कि आपकी त्‍वचा कितनी नरम बन जाती है.

  • बेबी औयल को चेहरे पर लगाने से त्‍वचा बिल्‍कुल नरम हो जाती है खासतौर पर सर्दियों मे तो इसका कोई मुकाबला ही नहीं है. नहाने से पहले इसे अपने पूरे शरीर पर लगाएं.
  • चेहरे से मेकअप उतारना हो तो बेबी औयल का प्रयोग करें, इससे त्‍वचा के रोम छिद्र बंद नहीं होते. कौटन बौल ले कर उसमें बेबी डालिये और मेकअप साफ कीजिये.
  • बेबी औयल को बाथ औयल की तरह भी प्रयोग किया जा सकता है. ऐसा करने के लिए आप अपना मन पसंद कोई भी परफ्यूम की कुछ बूंदे ¼ कप बेबी औयल में मिला कर उसे मिक्‍स कर के पानी में मिला लें. इससे आप तरोजाता हो जाएंगी और पूरे दिन रिलैक्‍स रहेगीं.
  • सर्दियों के दिनों में इस तेल से मालिश करने पर आप गरम रहेंगी. इसके इस्तेमाल से आप रूखी सूखी और बेजान त्वचा से भी छुटकारा पा सकती हैं.
  • इस तेल से शरीर की मसाज करने से त्‍वचा नरम होती है और कोमल बनती है. साथ ही उसमें चमक भी आती है.
  • इस तेल को प्रयोग कर के आप हाथ, पैर, बगल और दाढी की शेविंग कर के बालों को नरम बना सकते हैं. बस शेविंग वाली जगह पर हल्‍का सा बेबी औयल लगाएं और शेव कर लें.
  • कई बार महिलाओं को सलाह दी जाती है कि प्रेगनेंसी के दौरान वे अपने पेट पर बेबी औयल से मसाज करें. इससे शरीर पर पड़ी लकीरें साफ होती हैं.

जब हो हाई पोनीटेल बनाने पर दर्द

बाल चाहे लंबे हों या फिर छोटे उस पर हाई या मीडियम पोनीटेल हर लड़की बांधती है. यह देखने में स्‍टाइलिश और आरामदायक होती है. लेकिन कई बार ऊंची या फिर हाई पोनीटेल को खोलने के बाद सिर के उस हिस्‍से में दर्द होने लगता है जहां पर वह पोनीटेल बंधी होती है. आइये जानते हैं कि आखिर सिर में पोनीटेल बांधने पर दर्द क्‍यों होता है और उससे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है.

– यदि आप बहुत टाइट पोनीटेल बांधेगी तो आपके सारे बाल पीछे की ओर खिंच जाएंगे और स्‍कैल्‍प में खिंचाव पैदा होगा. अगर बाल टाइट हो गए हों तो बैंड को पीछे खींच कर थोड़ा ढीला कर लें. इससे पोनीटेल खोलने पर आपके सिर में दर्द नही होगा.

– अगर आपका सिर ड्राई है तो पोनीटेल बांधने से पहले बालों में हल्‍का सा तेल लगा कर पोनीटेल बांधे. इससे आपको तुरंत राहत मिलेगी.

– आप पोनीटेल बांधने के लिये कौन सा बैंड प्रयोग कर रही हैं? क्‍या वह रबर बैंड है या फिर मेटल का इलास्‍टिक वाला बैंड है. ये सभी बैंड बालों को खींचते हैं और सिर में दर्द पैदा करते हैं इसलिए इसे तुरंत फेक दीजिये. ऐसा बैंड इस्‍तेमाल करें जो आराम से खोला जा सके और बालों को खींचे भी न.

विराट, ऐसे खेलोगे क्या वर्ल्ड कप में?

दिल्ली की सर्दी ने इस बार यहां के लोगों को खूब चकमा दिया है. यह मौसम की ही बेवफाई थी कि मार्च महीने की 13 तारीख को जैसेजैसे फिरोजशाह कोटला के क्रिकेट ग्राउंड पर औस्ट्रेलिया और भारत के बीच खेला जा रहा 5वां और आखिरी वनडे मैच रोमांच की गरमी बढ़ा रहा था, वैसेवैसे बादलों से घिरी दिल्ली ने मेहमान टीम को जीत का तोहफा देना शुरू कर दिया था.

नतीजतन, टौस जीत कर पहले बल्लेबाजी करने उतरी औस्ट्रेलिया की टीम ने भारतीय टीम को 35 रनों से हरा दिया. उस ने तय 50 ओवरों में 9 विकेट खो कर 272 रनों का स्कोर खड़ा किया था. वैसे, जब उस्मान ख्वाजा और पीटर हैंड्सकौम्ब क्रीज पर थे तब लग रहा था कि कहीं वे फिर से 300 के पार न स्कोर को पहुंचा दें पर उन के मिडिल आर्डर के बल्लेबाजों ने कोई खास खेल नहीं दिखाया और पौने 300 से पहले वे सिमट गए.

फिरोजशाह कोटला का मैदान ज्यादा बड़ा नहीं है और यहां की पिच भी बल्लेबाजों के हक में रहती है, इसलिए लग रहा था कि भारत को यह मैच जीतने में दिक्कत नहीं होगी पर जवाब में भारतीय टीम लगातार विकेट गंवाती रही और अपने सभी विकेट खो कर वह 237 रन ही बना सकी. नतीजतन, हमारे कप्तान विराट कोहली के होम ग्राउंड पर 35 रनों की हार के साथ ही यह सीरीज भी हमें गंवानी पड़ी.

इस सीरीज की एक खासीयत यह थी कि इस के पहले 2 मुकाबले भारत ने जीते थे, जबकि औस्ट्रेलियाई टीम ने जबरदस्त वापसी करते हुए लगातार 3 मैच जीत कर सीरीज पर 3-2 से कब्जा जमा लिया. अपनी उम्दा बल्लेबाजी के लिए औस्ट्रेलिया के बल्लेबाज उस्मान ख्वाजा को ‘मैन औफ द मैच’ और ‘मैन औफ द सीरीज’ चुना गया.

भारतीय टीम की इस करारी हार के बाद कुछ खिलाड़ियों की फौर्म को ले कर ही सवाल उठने लगे हैं. हो भी क्यों न, औस्ट्रेलिया ने इस से पहले साल 2009 में भारत में द्विपक्षीय वनडे सीरीज जीती थी. इतना ही नहीं, मेहमान टीम 0-2 से पिछड़ने के बाद आज तक कोई वनडे सीरीज नहीं जीत पाई थी लेकिन अब उस ने यह कारनामा कर दिया गया है.

आगे भारत में मार्च के आखिरी हफ्ते से इंडियन प्रीमियर लीग खेले जाने के बाद 30 मई, 2019 से इंगलैंड में वनडे मैचों का वर्ल्ड कप होने जा रहा है और 23 अप्रैल, 2019 तक वर्ल्ड कप के लिए आखिरी 15 खिलाड़ियों के नाम देने हैं, जबकि यह सीरीज हार कर भारत का कमजोर बैटिंग लाइनअप उजागर हो गया है. फील्डिंग में भी कोई खास कमाल नहीं दिखा है. नंबर 4 और नंबर 5 पर खेलने के दावेदार अंबाती रायुडू और लोकेश राहुल को दिल्ली वनडे के लिए टीम में शामिल नहीं किया गया. महेंद्र सिंह धौनी को किस नंबर पर खेलने का मौका मिलेगा, यह भी पक्का नहीं है. उन्हें भी इस सीरीज के आखिरी 2 मैचों में आराम दिया गया था. इस वजह से विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत को खुद को साबित करने का मौका मिला था लेकिन वे बुरी तरह नाकाम रहे. उन की विकेटकीपिंग भी औसत दर्जे की ही रही. कई मौकों पर वे स्टंप के पीछे चूके जिस का नतीजा पूरी टीम को भुगतना पड़ा. ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या नंबर 4 पर महेंद्र सिंह धौनी की जगह और पक्की होगी? क्या ऋषभ पंत के बजाय दिनेश कार्तिक को बैकअप विकेटकीपर के तौर पर टीम में जगह मिलेगी?

गेंदबाजी में भी यह अभी पक्का नहीं है कि केदार जाधव, कुलदीप यादव, यजुवेंद्र चहल और रविचंद्रन अश्विन जैसे स्पिन गेंदबाजों में से किस को वर्ल्ड कप में मौका मिलेगा.

तेज गेंदबाजी की बात करें तो जसप्रीत बुमराह अपनी शानदार फौर्म में हैं. मोहम्मद शमी, उमेश यादव और भुवनेश्वर कुमार इंग्लैंड की पिचों पर अपना रंग दिखा सकते हैं पर जगह किस की बनेगी यह तो कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री ही तय करेंगे.

कुल मिलाकर समय कम रह गया है और काम बहुत बाकी है. बल्लेबाजी में रोहित शर्मा और विराट कोहली के दम पर हम इस वर्ल्ड कप में बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. इस के लिए तो सभी खिलाड़ियों को अपनीअपनी जिम्मेदारी संभालनी होगी तभी 2011 वाला इतिहास दोहराया जाएगा।.

वर्ल्ड कप की हमारी संभावित 15 खिलाडियों की टीम : रोहित शर्मा, शिखर धवन, विराट कोहली (कप्तान), महेंद्र सिंह धौनी (विकेटकीपर), केदार जाधव, हार्दिक पंड्या, यजुवेंद्र चहल, कुलदीप यादव, जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार, केएल राहुल, दिनेश कार्तिक (विकेटकीपर), विजय शंकर और अंबाती रायुडू.

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