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धार्मिक संकीर्णता के दाग अच्छे नहीं हैं

सर्फ एक्सेल के नए विज्ञापन पर विवाद हो रहा है. यह विज्ञापन होली के त्यौहार को ध्यान में रख कर बनाया गया था. विज्ञापन में हिंदू मुस्लिम एकता का संदेश देने की कोशिश की गई है पर हिंदू कट्टरपंथियों को यह विज्ञापन रास नहीं आया औैर विरोध शुरू हो गया. सोशल मीडिया पर खूब विरोध चल रहा है. ट्विटर पर बायकौटसर्फएक्सेल और बायकौटहिंदुस्तानलिवर जैसे हैशटैग चलना शुरू हो गए. इस तरह सर्फ पाउडर के बहिष्कार का अभियान चल पड़ा.

विज्ञापन में एक हिंदू बच्ची और मुस्लिम बच्चे को दिखाया गया है. मुस्लिम बच्चा नवाज पढ़ने के लिए घर से निकलना चाहता है पर गली के मकानों में बच्चे पिचकारी और रंग भरे गुब्बारे लिए खड़े हैं. उसे डर इस बात का है कि नवाज पढ़ने से पहले उस का सफेद कुर्ता खराब न हो जाए. तभी एक हिंदू बच्ची साइकिल से आती है और गली के सारे बच्चों का रंग अपने ऊपर फिंकवा लेती है ताकि बच्चों का सारा रंग खत्म हो जाए और मुस्लिम बच्चे पर रंग न पड़े. बच्चों का सारा रंग खत्म हो जाता है. बच्ची मुस्लिम बच्चे को अपनी साइकिल पर बैठा कर मस्जिद तक छोड़ कर आती है. जाते समय बच्चा उस से कहता है, नमाज पढ़ कर आता हूं तो बच्ची जवाब देती है, बाद में रंग पड़ेगा.

विज्ञापन की टैगलाइन है, ‘अपनेपन के रंग से औरों को रंगने में दाग लग जाए तो दाग अच्छे हैं.

इस विज्ञापन से सद्भाव की जगह उन्माद फैल रहा है. विज्ञापन को हिंदू विरोधी कहा जा रहा है. बात लव जिहाद तक पहुंच गई.

आपत्ति इस बात की बताई जा रही है कि विज्ञापन में बच्ची हिंदू और बच्चा मुस्लिम क्यों दिखाया गया. ऐसे विज्ञापनों से लव जिहाद बढ़ेगा, बच्चों के मन पर दकियानूसी परंपराओं के दाग गहरा असर डाल रहे हैं, बच्चों को धोती, टोपी, कंठीमाला, तिलक से दूर रखा जाना चाहिए. उन को ऐसी दकियानूसी परंपराओं की पहचान से दूर रखा जाना चाहिए.

यह भी कहा जा रहा है कि विज्ञापन देख कर बच्चे पूछेंगे नहीं क्या कि इस बच्चे ने टोपी क्यों पहन रखी है? होली के रंग से बच्चा बच क्यों रहा है?

विज्ञापन को ले कर इस तरह तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं यानी धर्म को ले कर समाज में जो बुराइयां पहले से व्याप्त हैं उस का ठीकरा इस एक विज्ञापन पर फोड़ा जा रहा है.

तिलक, चोटी, दाढ़ी, टोपी और धोती जैसे धार्मिक प्रतीकों से अलगअलग बांट कर इंसानों की  पहचान की परंपरा किस ने बनाई?

क्या विरोध करने वाले पहले अपनी धोती, चोटी, तिलक, टोपी उतार फेंकेंगे?  इस तरह के धार्मिक परंपराओं के चिन्ह धारण करने वाले लोग क्या चलतेफिरते बच्चों में नफरत जगाने, बांटने वाले विज्ञापन नहीं हैं? गुरुकुल और मिशनरी स्कूलों में क्या पढाया जा रहा है? बच्चों को धार्मिक शिक्षा कौन दे रहा है? वह भी अलगअलग. उस के बारे में बच्चे नहीं पूछेंगे? आप धार्मिक जुलूस निकालते हैं, उस का बच्चों पर असर नहीं पड़ता?

यह अलग धार्मिक पहचान की वजह ही है कि मौब लिंचिंग हो रही हैं, माथे पर लाल, भगवा पट्टी बांध कर, हाथों में तलवारें, लाठियां लें कर सड़कों, बाजारों में हुड़दंग मचाया जा रहा है, वैलेंटाइन डे पर दुकानों पर तोड़फोड़ और पार्कों में बैठे प्रेमी जोड़ों को मारापीटा जा रहा है. गोधरा, गुजरात दंगे होते हैं, धार्मिक व्रत, त्यौहारों के प्रदर्शन को देख कर बच्चे नहीं पूछेंगे कि उन में सभी लोग शामिल क्यों नहीं होते?

आप ने अलगअलग जातियां, उपजातियां बना रखी हैं, बच्चे नहीं पूछते? आप ने अलगअलग मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे और तीर्थस्थल बना रखे हैं, जहां दूसरे धर्म वालों को जाने की इजाजत नहीं है. बच्चे पूछते नहीं हैं? इस तरह की धार्मिक पहचान की परंपरा से बच्चे कैसे बचेंगे?

धार्मिक पहचान को ले कर हर रोज लाखों बच्चे न केवल सवालों, उलझनों से जूझते हैं, धर्मजनित भेदभाव, हिंसा, अपमान, अमानवीयता भी सहते हैं.

विज्ञापन को दोष मत दीजिए. इस तरह आप प्रेम, शांति, सौहार्द को खत्म कर रहे हैं. ईद, बकरीद, क्रिसमस जैसे त्यौहार क्या आप मिलजुल कर मनाते हैं? हिंदू  त्योहारों को जातियों में बांट दिया गया हैं. ब्राह्मण रक्षा बंधन, क्षत्रिय विजयादशमी, दिवाली वैश्य और होली शूद्र मनाएंगे.

कट्टरपंथियों को असल आपत्ति यह है कि विज्ञापन में सौहार्द दिखाया गया है जबकि कट्टरपंथी दोनों समुदायों के बीच कभी प्रेम, शांति, सौहार्द नहीं चाहते. ऐसे विज्ञापनों से उन के नफरत के धंधे पर चोट पहुंचती है. वे तो नफरत का व्यापार और घृणा की मार्केटिंग चलाना चाहते हैं ताकि उन की सामाजिक और राजनीतिक सत्ता बनी रहे और अपनी धार्मिक दुकानदारी कायम रह सके.

‘चायवाले’ के बाद ‘चौकीदार’ बने प्रधानमंत्री

लोकसभा चुनाव में नोटबंदी, जीएसटी और आतंकवाद अब प्रचार का मुद्दा नहीं रह गया है. चायवाला और 15 लाख नकद के पुराने जुमलों की जगह पर चौकीदार नया जुमला उभर कर प्रचार का जरीया बन गया है. ऐसे जुमलों से साफ लग रहा है कि देश के नेताओं की नजर में लोकसभा चुनाव क्या महत्व रखते है? सत्ता पक्ष अपने 5 साल के काम को मुद्दा बनाने की जगह पर चौकीदार को मुद्दा बना रही है. 25 सौ रूपये माह का वेतन पाने वाला चौकीदार की व्यथा देखने वाला भले ही कोई ना हो पर सोशल मीडिया पर चौकीदार बनने की होड़ में नेता ही नहीं कार्यकर्ता कोई भी किसी से पीछे चलने को तैयार नहीं है.

पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद को ‘चायवाला’ कहा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद को ‘मैं भी चौकीदार’ कह कर अपना प्रचार शुरू किया. प्रधानमंत्री ने खुद के टिवट्र एकांउट में चौकीदार शब्द जोड़ा. इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और दूसरे नेताओं ने खुद को चौकीदार लिखना शुरू कर दिया. ‘चायवाला’ की बात हो या ‘चौकीदार’ चुनावी मुद्दा बनने के बाद भी इनके जीवन में कोई बदलाव नही आया है.

2014 के चुनाव के बाद किसी भी चाय बेचने वाले की जिदंगी में कोई बदलाव नहीं आया है. सड़क के किनारे चाय बेचने वाले पुलिस, नगर पलिका और स्थानीय नेताओं का शिकार होते हैं. इनकी दुकानों को बारबार उठाकर फेंक दिया जाता है. इसके बाद ज्यादा पैसा लेकर ही दोबारा दुकान लगाने दी जाती है. ‘चायवाला’ को चुनावी मुद्दा बनाकर भले ही नरेन्द्र मोदी सत्ता तक पहुंच गये हों पर चाय बेचने वालों की जिदंगी में कोई बदलाव नहीं आया है.

2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद को चौकीदार कहा है. उनकी ‘मैं भी चौकीदार’ मुहिम रंग ला रही है. देश की बहुत सारी परेशानियों से बचकर ‘मैं भी चौकीदार’ नया नारा बन गया है. नोटबंदी, जीएसटी और आतंकवाद के मुद्दे पर सरकार मौन है. अब ‘मैं भी चौकीदार’ नया मुद्दा बना रहा है. देश में चैकीदारो की हालत खराब है.

देश में कितने चौकीदार हैं कितने पद खाली हैं इसका कोई आंकड़ा नहीं है. कैसे चौकीदार बनता है ऐसा कोई एक सा रास्ता नहीं है. उत्तर प्रदेश की नजर से देखें तो करीब 70 हजार ग्राम चौकीदार के पद हैं. इनमें केवल आधे पद ही भरे हुये हैं. बाकी खाली है.राजधनी लखनऊ में 8 सौ गांव हैं. इनमें केवल 4 सौ चौकीदार ही काम कर रहे हैं. आधे पद खाली हैं. एक चौकीदार पर दो गांवों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है.

चौकीदार कौन है:

चौकीदार का चलन अंग्रेजो के जमाने से हुआ था. चौकीदार गांव में खेती के अलावा अपना काम करते थे. इनका काम गांव में होने वाली आपराधिक घटनाओं की सूचना पुलिस को देना था. यह रक्षा और सुरक्षा का काम करते थे. रात के समय पहरा देना इनकी जिम्मेदारी होती थी. अंग्रेजो के समय में यह आजादी की लड़ाई की सूचना भी देते थे. इनको एक तरह से अंग्रेजो को मुखबिर माना जाता था. आजादी के बाद चौकीदार गांव की सुरक्षा की जगह पर पुलिस के मुखबिर तंत्र का हिस्सा बन गये. इसके बाद भी उनकी हालत में कोई बदलाव नहीं आया.

एक साल पहले तक चौकीदार को केवल 15 सौ रूपये माह का वेतन मिलता था. इस मानदेय को बढ़ाकर 25 सौ रूपये कर दिया गया. इसके बाद भी यह न्यूनतम मजदूरी से भी बेहद कम है. बढ़ी हुई मंहगाई में यह किसी भी तरह से जीवनयापन के लायक नहीं है. चौकीदार पिछले 20 साल से यह मांग कर रहे है कि उनको चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की तरह से वेतन और सुविधयें दी जाये. बहुत बार धरना प्रदर्शन के बाद भी किसी ने यह मांग नहीं मानी.

चैकीदारों की खराब हालत का अंदाजा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि उनको 2500 रूपये मिलते हैं जबकि निजी गार्ड को 15 हजार रूपये का वेतन मिलता है. नियम के हिसाब से देखे तो चौकीदार को सापफा, डंडा, टार्च, जूते और वर्दी मिलनी चाहिये. यह सब केवल दिखावा होकर रह गया है. इसके बाद भी चौकीदार बनना सरल नहीं रह गया है.

पुलिस बनाती है चौकीदार:

चौकीदार में भर्ती के लिये किसी शिक्षा की जरूरत नहीं है. इसके बाद भी आधे से अधिक पद खाली हैं. इसका आवेदन डीएम कार्यालय में होता है. पर वहां इसके लिये कब आवेदन पत्र मंगाए जाते है इसका कोई तय समय नहीं है. इसके बाद इन नामों की सूचना पुलिस थानों को दी जाती है. चौकीदार का चरित्र सही पाये जाने पर एसपी यानि पुलिस अधिक्षक की रिपोर्ट पर नौकरी पर रखा जाता है. जिलाधिकारी कार्यालय चैकीदारों की सूची जारी कर नियुक्ति की सूचना देता है. यह चौकीदार की नियुक्ति का सरल सीधा रास्ता लगता है. असल में यह बहुत कठिन रास्ता है. इसका पता ही लोगों को नहीं चलता कि कब क्या कैसे करना होता है. यह पूरी तरह से पुलिस और प्रशासन के उपर निर्भर रहता है कि किसको कैसे चौकीदार बनाता है.

‘चौकीदार’ को लेकर अब नेताओं में आपसी बयानबाजी तेज हो गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को ‘चौकीदार’ कहा तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया. अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी चौकीदार को चुनावी नारा बना दिया है. सोशल मीडिया पर इसका तेजी से प्रचार हो रहा है. राजनीतिक टिप्पणीकार दिनेश लाल कहते है ‘मैं भी चौकीदार’ नारा पूरी तरह से भावनाओं से जुड़ा हुआ है. ‘चायवाला’ की तरह ‘चौकीदार’ को भी चुनाव लाभ का बनाया जा रहा है. जिससे लोगों का खासकर सोशल मीडिया पर ऐसे प्रचार होते रहे जो जमीनी मुद्दो से ना जुड़े हो.

सबसे अमीर स्पोर्ट्स टीम के मालिकों में मुकेश अंबानी टौप पर

हाल ही में बेटे आकाश अंबानी की भव्य शादी करने वाले देश के नामी बिजनेस मैन मुकेश अंबानी एक बार फिर सुर्खियों में हैं. जिसकी वजह है उनकी आईपीएल टीम. दरअसल, फोर्ब्स ने दुनियाभर की स्पोर्ट्स टीमों के सबसे अमीर मालिकों की लिस्ट जारी की है. जिसमे भारतीय व्यवसायी मुकेश अंबानी शीर्ष पर हैं.

मुकेश अंबानी सहित 20 लोगों के नाम शामिल…

मुकेश अंबानी इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में मुंबई इंडियंस टीम के मालिक हैं. फोर्ब्स ने सूची में कुल 20 लोग को शामिल किया गया है.

नाम टीम खेल नेटवर्थ
मुकेश अंबानी मुंबई इंडियंस आईपीएल 50 बिलियन डॉलर
स्टीव बालमर लॉस एंजिलिस क्लिपर्स एनबीए 41.2 बिलियन डॉलर
डिएट्रिच माटेशिट्ज रेड बुल ऑटो रेसिंग 18.9 बिलियन डॉलर
हासो प्लैटनर एंड फैमिली सान जोस शार्क आइस हॉकी 13.5 बिलियन डॉलर
रोमन अब्रामोविच चेल्सी क्लब फुटबॉल 12.4 बिलियन डॉलर

13 टीम मालिकों की संपत्ति में इजाफा…

सूची के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में 13 टीम मालिकों की संपत्ति में इजाफा हुआ है. पांच की संपत्ति में कुछ कमी आई है, जबकि दो की संपत्ति ज्यों की त्यों बनी है. 3.6 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति वाले अंबानी ने 2008 में मुंबई इंडियंस टीम खरीदी थी.

ये बड़े नाम भी हैं शामिल…

लिस्ट में एनबीए टीम लॉस एंजिलिस क्लिपर्स के मालिक स्टीव बालमर दूसरे और ऑटो रेसिंग टीम रेड बुल के मालिक डिएट्रिच माटेशिट्ज तीसरे स्थान पर हैं. इनके अलावा आइस हॉकी टीम सान जोस शार्क के मालिक हासो प्लैटनर एंड फैमिली, चेल्सी फुटबॉल क्लब के मालिक रोमन अब्रामोविच और कैरोलिना पैंथर्स फुटबॉल टीम के मालिक डेविड टेपर भी लिस्ट में शामिल हैं.

अब व्हाट्सऐप पर ले सकेंगे इन्श्योरेंस क्लेम, इस कंपनी ने की पहल

अब आप इन्श्योरेंस क्लेम व्हाट्सऐप पर फाइल कर सकेंगे. इसके लिए आपको बीमा कंपनी की ब्रांच में नहीं जाना होगा. निजी क्षेत्र की बीमा कंपनी भारती एक्सा लाइफ इन्श्योरेंस ने यह सुविधा शुरू की है. कंपनी क्लेम की जांच के बाद क्लेम का पैसा आपके अकाउंट में जमा कर देगी. कैसे फाइल होगा क्लेम

भारती एक्सा लाइफ इन्श्योरेंस के चीफ एग्जीक्यूटिव औफिसर विकास सेठ ने कहा कि नौमिनी को क्लेम मांगने के लिए व्हाट्सऐप पर उपलब्ध कंपनी के नंबर पर टैक्स्ट मैसेज भेजना होगा. इसके बाद एक कंपनी की टीम एक सदस्य नौमिनी के नंबर पर संपर्क करेगा. इसके बाद नौमिनी को एक लिंक पर क्लेम के डाक्युमेंट अपलोड करने होंगे. यह लिंक क्लेम टीम उसके साथ साझा करेगी. इसके बाद भारती एक्सा लाइफ इन्श्योरेंस कंपनी क्लेम पर अपना फैसला नौमिनी को उसके व्हाट्सऐप नंबर पर बताएगी और क्लेम मिलने की स्थिति में क्लेम का पैसा उसके अकाउंट में जमा कराएगी. कंपनी ने व्हाट्सऐप पर मिले कई क्लेम सफलतापूर्वक प्रोसेस किए हैं.

व्हाट्सऐप पर मिलेगी इन्श्योरेंस पौलिसी

विकास सेठ ने कहाकि कंपनी सोशल नेटवर्किंग प्लेटफौर्म व्हाट्सऐप के माध्यम से अपने ग्राहकों को पौलिसी की डिलीवरी एवं पौलिसी की सेवा मुहैया कराने के लिए काम कर रही है. हमें विश्वास है कि व्हाट्सऐप के उपयोग से हमें क्लेम की प्रकि्या को कस्टमर के लिए आसाने बनाने में मिलेगी.

अक्षय कुमार बनेंगे ‘पृथ्वीराज’, मुंबई में बनाया जाएगा राजस्थान का महल

‘कलंक’, ‘तख्त’, ‘तानाजी’, ‘पानीपत’ और अब ‘पृथ्वीराज चौहान’ ऐसा लग रहा है जैसे बौलीवुड के सभी ए-लिस्टर्स ने पीरियड ड्रामा में काम करने का मूड बना लिया है. बात करें फिल्म ‘पृथ्वीराज चौहान’ की तो इस फिम में बौलीवुड एक्टर अक्षय कुमार चौहान वंश के आखिरी राजा पृथ्वीराज चौहान के किरदार में नजर आएंगे. अब खबर है कि यशराज बैनर इस प्रोजेक्ट से बतौर प्रोड्यूसर जुड़ चुका है और इसकी शूटिंग इस साल अगस्त में शुरू हो जाएगी. फिल्म की कहानी दसवीं सदी की है और मेकर्स उस दौर को बिग स्क्रीन पर री-क्रिएट करने के लिए मेहनत कर रहे हैं. इसके लिए मुंबई में ही राजस्थान के महल को बनाया जाएगा.

स्टूडियो में बनाया जाएगा…

मेकर्स ने फिल्म सिटी में मौजूद बड़े मैदानों को शूटिंग के लिए बुक कर लिया है. यहां दसवीं सदी के राजस्थान का सेट रीक्रिएट किया जाएगा. इतना ही नहीं फिल्म के लिए महल और रेगिस्तान को भी मुंबई स्थित स्टूडियोज में बनाया जाएगा. फिल्म के डायरेक्टर डॉ. चंद्रप्रकाश  द्विवेदी ही इसमें सूत्रधार की भूमिका निभाएंगे. पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी के खिलाफ युद्ध करने के लिए जाना जाता है. यह जंग 1191-92 में हुई थी और इसे तराइन का दूसरा युद्ध भी कहा जाता है.

सूर्यवंशी में अक्षय के अपोजिट जैकलीन…

बात करें अक्षय कुमार की दूसरी नई फिल्म की तो वो इन दिनों रोहित शेट्टी की फिल्म सूर्यवंशी में जुटे हुए हैं. इस फिल्म में अक्षय कुमार पुलिस अधिकारी का किरदार निभाएंगे. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस फिल्म में अक्षय के अपोजिट जैकलीन फर्नाडींज नजर आ सकती हैं. अक्षय के साथ उनकी जोड़ी हिट रही है और दोनों इससे पहले कई फिल्मों में साथ काम कर चुके हैं.

तनाव को रखें दूर, ये तीन टिप्स करेंगे आपकी मदद

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में खुद के लिए समय निकाल पाना किसी चुनौती से कम नहीं है. काम के दबाव में हम बहुत सी छोटी छोटी बातों से परेशान हो जाते हैं. इन्हीं छोटी छोटी बातों का तनाव इतना बढ़ जाता है कि वो डिप्रेशन का रूप ले लेता है. कई तरह के शोधों में पाया गया है कि अगर हम किसी काम को पूरे मन से ना करें तो वो सही ढंग से नहीं होता है. इस लिए मानसिक सेहत के लिए जरूरी है कि तनाव से मुक्त रहें और हमेशा मूड फ्रेश रखें.

हम आपको तीन टिप्स देने वाले हैं जिनको अपना कर आप अपने बिगड़े मूड को ठीक कर सकते हैं.

फौलो करें हेल्दी डाइट

tips of mental peace

हम जैसा खाना खाते हैं हमारा स्वभाव भी वैसा होता है. इस लिए हमेशा हेल्दी खाना खाइए. बहुत सी स्टडीज में पाया गया है कि हरी साग-सब्जियां, मछली और अंडे को अपनी डाइट में शामिल कर के आप तनाव को कम कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में डार्क चौकलेट भी लाभकारी होते हैं.

एक्सरसाइज करें

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एक्सरसाइज करना शरीर और दिमाग, दोनों के लिए अच्छा होता है. इससे हमारे शरीर से हैप्पी हार्मोन्स रिलीज होते हैं और हमारा तनाव तुरंत गायब हो जाता है. अगर आपके पास एक्सरसाइज के लिए समय नहीं है तो कम से कम टहलने के लिए जरूर वक्त निकालें.

पूरी नींद लें

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बहुत से लोग अपने रोजमर्रा के काम में इतने मशगूल हो जाते हैं कि उनके लिए अपनी नींद पूरी करना भी एक चुनौती बन जाता है. अगर आपकी नींद पूरी नहीं होती है तो आपको कई शारीरिक और मानसिक बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं. अच्छी नींद लेने से शरीर में उर्जा बनी रहती है और मूड भी ठीक रहेगा. आपको बता दें कि एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए 7 से 9 घंटे की नींद जरूरी होती है.

घर पर ऐसे बनाए गाजर पाक

सामग्री

– 2 लिटर दूध फुलक्रीम

– 700 ग्राम गाजर कद्दूकस की

–  150 ग्राम चीनी

– 100 ग्राम काजू पाउडर

– 2 बड़े चम्मच घी

बनाने की विधि

दूध को कड़ाही में डाल आंच पर रख लगातार चलाते हुए गाढ़ा होने दें.

जब दूध आधा रह जाए तो उस में गाजर डाल कर चलाती रहें.

जब खोए की तरह गाढ़ा होने लगे तो उस में चीनी डाल कर उस को पिघलने तक चलाती रहें.

जब चीनी सूख जाए तो उस में घी डाल कर भूनें.

जब बिलकुल गाढ़ा हो जाए तो आंच से उतार कर ठंडा होने तक चलाती रहें.

फिर काजू पाउडर डाल कर थाली में फैला दें.

जब सैट हो जाए तो उसे टुकड़ों में काट लें जैसे बरफी के टुकड़े काटते हैं.

काजू या खोए से सजा सकती हैं.

होली स्पेशल डिश : रवा गुपचुप

सामग्री

– 200 ग्राम रवा

– कुछ बूंदें केवड़ा ऐसेंस

– 250 ग्राम चीनी

– 2 बड़े चम्मच मिल्क पाउडर

– 2 छोटे चम्मच काजू पाउडर

– 2 छोटे चम्मच चीनी पाउडर

– 1 चुटकी इलायची पाउडर

–  300 मिलीग्राम दूध

– 100 ग्राम नारियल पाउडर

बनाने की विधि

– कड़ाही में रवा को हलका सा भूनें और फिर उस में दूध डाल कर चलाती रहें.

– जब रवा कड़ाही छोड़ने लगे तो उसे प्लेट में निकाल कर ठंडा होने पर उस में 2-3 चम्मच नारियल             पाउडर, 2-3 चम्मच काजू पाउडर व ऐसेंस मिला कर अच्छी तरह चिकना होने तक गूंध लें.

– लंबे पेड़े बना कर अलग रखें.

– दूसरी कड़ाही में चाशनी के लिए 250 एमएल पानी चढ़ा लें.

– इस में इतनी ही चीनी डाल दें.

– जब 1 तार की चाशनी तैयार हो जाए तो इलायची पाउडर डालें.

– फिर लंबे पेड़े डाल कर आंचा धीमी कर 4-5 मिनट ढक कर पकने दें.

– फिर उलटेंपलटें और आंच बंद कर कड़ाही में ही ठंडा होने दें.

– अब एक प्लेट में नारियल पाउडर फैला कर 1-1 पेड़े को उस में लपेटें.

व्यंजन सहयोग: कमलेश संधू 

इन 6 फैशन टिप्स से दिखें फिट और स्लिम

क्या आप भी खुद को दूसरी महिलाओं की तरह फिट और स्लिम दिखाना चाहती हैं? तो आपको यह खबर जरूर पढ़नी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह के कपड़े और एसेसरीज आप पहनती हैं उससे आपकी पर्सनैलिटी पर बहुत अधिक फर्क पड़ता है. इसलिए थोड़ी सी कुशलता से और सही कपड़े पहनकर आप खुद को फिट और स्लिम दिखा सकती हैं.

उचित फिटिंग के कपड़े पहनें

बहुत अधिक टाइट (कसे हुए) कपड़े पहनने से आपके शरीर का मोटापा उभरकर दिखता है; जिसके कारण बहुत बुरा असर पड़ता है. इस प्रकार के कपड़ों के कारण आपको असुविधा भी होती है. अत: ऐसे कपड़े पहने जो आपको अच्छे से फिट आते हों. लंबी ड्रेस पहनें जिसमें खड़ी लंबी पट्टियां हों.

एक रंग के कपड़े पहनें

अपने शरीर के मोटे भाग को छुपाने के लिए गहरे और एक रंग के कपड़े पहनें. नेवी ब्लू या काले रंग के कपड़े पहनें. गहरे रंग के कपड़ों के साथ रंग बिरंगे जूते, नेकलेस और ब्रेसलेट पहनें.

अपने पास्चर (मुद्रा) पर ध्यान रखें

अच्छे पास्चर से भी आप दुबली दिख सकती हैं. सीधे खड़ी रहें. आपके कंधे पीछे की तरफ खिंचे हुए हों तथा सिर ऊंचा होना चाहिए. विश्वास रखें. हील्स (ऊंची एड़ियां) पहनने से आप दुबली दिखती हैं. अत: जींस के साथ हील्स पहनें.

अपनी विशेषताओं पर प्रकाश डालें

अपने शरीर के अच्छे भागों पर प्रकाश डालकर आप अपने शरीर के अन्य भागों पर से ध्यान हटा सकती हैं. आप अपने चेहरे, ऊपरी भाग और पतली गर्दन के द्वारा लोगों को आकर्षित कर सकती हैं.

सही पैटर्न चुनें

टौप, पैंट, स्कर्ट या अन्य ड्रेसेज में कभी भी बड़ा पैटर्न न चुनें क्योंकि इससे आप मोटे दिखते हैं. छोटे और नाजुक प्रिंट पहनने से आप सुडौल और सुंदर दिखते हैं.

शरीर के निचले भाग को दुबला दिखाने के लिए

– प्लीटेड (चुन्नट) स्कर्ट की जगह ए – लाइन स्कर्ट पहनें.

– शरीर के उभारों को छुपाने के लिए लो-राइज और लूज फिट जींस पहनें. इन जींस के साथ लंबे टौप पहनें.

– अपने बड़े कूल्हों को बूट कट पैंट से छुपायें, जिसका डिजाइन सरल हो और जिसमें बहुत अधिक जेबें न हों.

शरीर के ऊपर के भाग को दुबला दिखाने के लिए

– आपकी बांहों पर ध्यान केंद्रित न हो इसके लिए विशेष रूप से गर्मियों में टैंक टौप न पहनें.

– यदि आपके कंधे सुडौल हैं तो आप बोट नेक (नाव के आकार का गला) टौप पहन सकती हैं.

राजनीति में उतरी प्रियंका

कांग्रेस का प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने का फैसला अपना अंदरूनी है और न जाने क्यों भारतीय जनता पार्टी कुछ ज्यादा ही परिवारवाद का हल्ला मचा रही है. यह तो अब पक्का है कि राजनीति कोई जनता की सेवा करने के लिए नहीं की जाती है. यह तो सत्ता पाने या सत्ता बनाए रखने के लिए की जाती है और पंच से ले कर प्रधानमंत्री तक इसीलिए राजनीति में कूदते हैं.

राजनीति कोई बच्चों का खेल नहीं है. यह खेलों से भी ज्यादा मेहनत का काम है और सिर्फ मजबूत बदन व मजबूत दिलवालों के लिए है. इस में उसी को जगह मिलती है जो कुछ कर सकता है और जमा रह सकता है. करने का मतलब जनता के लिए करना नहीं होता, अपने लिए करना होता है. अपने लिए कुछ करतेकरते यदि जनता के लिए कुछ हो जाए तो यह सिर्फ इसलिए कि अपने को साया देने के लिए जो पेड़ लगाया उस में फल भी निकलने लगें और पक्षी घोंसले बनाने लगें.

प्रियंका गांधी के पास न कोई जादुई ताकत है और न ही कुछ अनुभव. वह वर्षों से सत्ता के पास बनी रह कर भी नौसिखिया ही है और उस से डरने की किसी को जरूरत नहीं. भाजपा के नेताओं को न जाने क्यों डर लग रहा है जबकि उन के यहां खुद दूसरीतीसरी पीढ़ी के लोग नेतागीरी कर रहे हैं. ज्यादातर मंदिरों में, जो भाजपा का बड़ा धंधा है, पुजारी पुश्तैनी ही होते हैं और अदालतें ऐसे मामलों से भरी हैं जहां चढ़ावे को ले कर पंडों की संतानें लड़ रही हैं. उस परिवारवाद पर तो भाजपा कोई नाक भौं नहीं चढ़ाती.

कांग्रेस में संतानों की भरमार है. कांग्रेसियों को इतना तो समझ आ गया है कि अगर कोई धंधा चोखा है तो राजनीति का है और सब अपने बच्चों को विरासत में अपनी पार्टी देना चाहते हैं. कांग्रेस ही क्यों, बाकी सब दलों में भी यही हाल है. जब देश का दस्तूर ही यह है तो फिर होहल्ला क्यों?

इस के पीछे असल वजह यह है कि हमारे समाज में दूसरों की सेवा का कोई भाव कभी पैदा ही नहीं होता. हमें पट्टी पढ़ाई जाती है कि खुद के लिए या अपनों के लिए काम करो, दूसरों के लिए नहीं. मुक्ति तो अपने लिए किए गए धर्मकाज से मिलेगी और मरने के बाद उस का फल खुद को मिलेगा. देश के दूसरे नागरिकों के लिए कोई क्यों मरे. यहां तक कि सेना, पुलिस, समाजसेवा में अपने हितों का ध्यान रखा जाता है. सब के हित में अपना हित है, यह कुछ सिरफिरों की सोच है. आप की है क्या? गांधी परिवार की नहीं है तो फिर रोना कैसा?

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