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बिग बौस 13 : शहनाज और सिद्धार्थ की दोस्ती में आई दरार

कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाला विवादित शो Big Boss 13 के घर में आए दिन घरवालों के बीच रिश्ते बनते भी है और टूटते भी हैं. तो चलिए आपको बताते हैं, घर में क्या नया ट्विस्ट चल रहा है. Shehnaz Gill और Siddharth Shukla के बीच जमकर लड़ाई हुई Shehnaz के तो आंसू भी निकल पड़े.

घर में शहनाज से सिद्धार्थ शुक्ला से दोस्ती को लेकर पूछा जाता है तो वह दावा करती हैं कि वह सिद्धार्थ से भावुक तौर पर जुड़ी हैं, लेकिन फिर बाद में वह सिद्धार्थ के दुश्मन ग्रुप के साथ जाकर बैठती हैं. वहीं उनकी और सिद्धार्थ की दोस्ती पर जब सवाल उठाया गया और पूछा गया कि क्या यह सिर्फ गेम के लिए हैं, जिसे वह मान लेती हैं. इसके बाद सिद्धार्थ उनसे बहस करने लगते हैं.

इसके बाद शहनाज और सिद्धार्थ को बाथरुम में लड़ते हुए देखा जाता है और शहनाज को रश्मि देसाई से बात करते देखा जाता है. शहनाज रश्मि से कहती हैं, “ऐसा फेम नहीं चाहिए मीडिया में.”

एक रिपोर्ट के मुताबिक  एक प्रोमो क्लिप में देखा जा सकता है कि घर की प्रतिभागी माहिरा शर्मा की शहनाज को ‘गंद’ कहने को लेकर आलोचना की जाती है. ऐसे में माहिरा को आगे कहते सुना जाता है कि शहनाज ने एक बार उनसे कहा था कि, “तू क्या है, तेरा लेवल क्या है.”

पिछले एपिसोड में आपने देखा कि सिद्धार्थ और शहनाज आपस में बात तक भी नहीं कर रहे थे और जब शहनाज सिद्धार्थ से बात करने गई तो सिद्धार्थ ने ये कह कर माना कर दिया कि मैं ऐसे फेक लोगों से दूर ही रहता हूं. इसके बाद जब शहनाज से सिद्धार्थ से इसकी वजह पूछी तो सिद्धार्थ ने ये कहा कि जो लड़की अपने मां बाप की सगी नहीं हुई वो दूसरों की कैसे हो सकती है.

‘हैक्ड’ इस बात पर रोशनी डालती है कि किस तरह इंटरनेट लोगों की जिंदगी बर्बाद कर रहा है : विक्रम भट्ट

अपने 27 साल के कैरियर में निर्देशक Vikram Bhatt अमिताभ बच्चन से लेकर Aamir Khan तक कई दिग्गज कलाकारों के साथ फिल्में बना चुके हैं. इन दिनों वह टीवी कलाकारों को अपनी फिल्म में लेकर कंटेंट प्रधान सिनेमा बना रहे हैं. इसी कड़ी में उनकी नई फिल्म Hacked सात फरवरी को प्रदर्शित होने वाली है. फिल्म Hacked इंटरनेट से किस तरह लोगों की निजी जिंदगी पर हमला हो रहा है, उसकी कथा बयां करती हैं.
आपकी पिछली फिल्म‘‘घोस्ट’’को बाक्स आफिस पर दर्शकों ने पूरी तरह से नकार दिया था ?

जी हां! आपने एकदम सही फरमाया. आप भी जानते हैं और हम भी जानते हैं कि यह फिल्म सही ढंग से प्रदर्शित नहीं की गयी थी. लेकिन मैं अपने कैरियर में बहुत पहले ही यह बात समझ चुका था कि फिल्म की लाश सिर्फ निर्देशक ही अकेले अपने कंधे पर उठाता है. मार्केटिंग ठीक से नहीं हुई. प्रचार ठीक से नहीं हुआ. फिल्म सिर्फ दो थिएटर में ही रिलीज हुई थी. 18 फिल्मों के साथ प्रदर्शित हुई थी. इसके बावजूद सारा आरोप निर्देशक पर ही लगा. इसलिए मैंने पहले से ही मान लिया है कि कसूर किसी का भी हो, अंततः कसूर मेरा ही है. कुछ भी हो हाथ जोड़ लो, माफी मांग लो कि आगे से नहीं करेंगे और आगे बढ़ जाओ. हम गलती स्वीकार कर यह निर्णय ले सकते हैं कि भविष्य में इनके साथ काम नहीं करना है. आप यह निर्णय ले सकते हैंं कि अब भविष्य में इस निर्माता या इस डिस्टिब्यूटर के संग काम नहीं करना है. मैं बहाना बनाने में यकीन नहीं करता. दोष चाहे जिसका भी हो, मैं उसे अपना ही दोष मान लेता हूं.

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तो फिल्म का प्रदर्शन टेढ़ी खीर हो गया है ?

जी हां! फिल्म बनाने से ज्यादा मुश्किल फिल्म चलाना हो गया है. मैं अपनी फिल्म को थिएटर की बजाय सीधे डिजिटल माध्यम में रिलीज करने में यकीन नही करता. ऐसे में थिएटर के लिए फिल्म बनाना बहुत बड़ी चुनौती हो गयी है. ‘जीस्टूडियो’ वाले फिल्में रिलीज कर पा रहे हैं. इसलिए अब फिल्म में कुछ हटकर बात कहनी पड़ेगी. कुछ नया कहना होगा.अब सवाल यह हो गया है कि आप अपनी फिल्म देखने के लिए लोगों को ढाई सौ से तीन सौ रूपए खर्च करने के लिए तैयार कर पाते हैंं या नहीं.अब हमारी फिल्म के ट्रेलर का रिस्पांस बहुत ही जबरदस्त है.यह ट्रेंडिंग  है. इससे हमारी जान मेंं जान आयी. लोगों की इस फिल्म को दर्शकों की रूचि जागृत हुई है.

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नई फिल्म ‘‘हैक्ड’’ में क्या नया है ?

यह फिल्म वर्तमान समय की अति ज्वलंत समस्या पर है,जिसका कोई निदान नही है. इंटरनेट व डिजिटिलाइजेशन के चलते जिस तरह से लोगो की निजी जिंदगी के सारे रहस्य पूरी दूनिया के पास पहुंच गए है और कुछ लोग किस तरह हमारी निजी जिंदगी की जानकारियां इंटरनेट से चुुराकर उसका उपयोग हमें बर्बाद करने के लिए कर रहे हैं,उसकी बात करती है.

यह फिल्म बनाने से पहले किस तरह का शोधकार्य किया ?

सबसे पहले तो मेेरे निजी जीवन से जुड़ी घटना है. एक शख्स जो लदन में रहता है, उसने मेरे नाम व मेरी ही फोटो के साथ अपना फेशबुक एकाउंट बना रखा है और लड़कियों को फिल्म में हीेरोईन बनाने के नाम पर उनसे धोखाधड़ी कर रहा है. मैंने कई शिकायतें की,प्रयास किए,पर उसका एकाउंट आज भी बंद नहीं हुआ है. फिल्म बनाने का निर्णय करने के बाद मैंने गहन शोधकार्य किया. तो पता चला कि हम इस नई तकनीक@इंटरनेट की गिरफ्त में हैं, हम खुद नहीं जानते. शोधकार्य से पता चला कि हमारे बैंक एकाउंट, आधार कार्ड,पैन कार्ड सब कुछ इंटरनेट पर है और यदि काई आपको इंटरनेट पर बर्बाद करने पर उतर जाए, तो समझ लीजिए कि आप गए और यह कितना डरावना हो सकता है, इसकी हम कल्पना भी नही कर सकते. यह कहानी तीन चार वास्तविक कहानियों का मिश्रण है. क्लायमेक्स को छोड़कर हमारी फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है, वह सब रीयल @वास्तविक है.

फिल्म की कहानी के संदर्भ में क्या कहना चाहेंगे ?

यह कहानी एक फैशन मैगजीन की एडीटर समीरा खान (हीना खान) की है,जिसकी इमारत में रहने वाला 19 साल का हैकर विवेक (रोहन शाह) उसके प्यार में पागल होकर किस तरह उसे अपने प्यार को स्वीकार करने के लिए समीरा के बैंक एकाउंट सहित सारी जानकारियां हैक्ड कर उसकी जिंदगी नरक बना देता है.
आपने पिछली फिल्म ‘‘घोष्ट’’ में टीवी कलाकार सनाया को लिया था.

इस फिल्म में भी आप टीवी कलाकार हीना खान और रोहन शाह को लिया है ?

क्योंकि टीवी कलाकार लोकप्रिय हैं. सुंदर है और प्रतिभाशाली हैं.

Vikram-Bhatt

पर टीवी कलाकारों के साथ काम करना ?

देखिए,टीवी कलाकारों की समस्या यह है कि उनके दिमाग में अजीब अजीब से टीवी के नियम बस गए हैं. मसलन-12 घंटे काम करेंगे, प्रति दिन के हिसाब से मेहनताने की बात करेंगे. उन्हें फिल्म का कल्चर समझ में नही आता. मैंने टीवी किया नहीं. मैंने तो अमिताभ बच्चन से लेकर आमीर  खान तक सभी के साथ काम किया है, किसी ने भी मुझसे घंटे या प्रति दिन वाली बात नहीं की.

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हीना खान पांच वर्ष तक ‘‘सेक्सिएट एशियन ओमन’’ का खिताब जीतती रही हैं. क्या इस कारण उन्हें अपनी फिल्म का हिस्सा बनाया ? 

देखिए,सेक्सी लड़कियों की संख्या कम नहीं है. आप इंस्टाग्राम पर जाएं, तो आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी, इतनी सेक्सी लड़कियां नजर आएंगी. हीना खान एक बेहतरीन अदाकारा हैं. मुझे अच्छी कलाकार चाहिए थी. महज खूबसूरती देखकर किसी को काम नही देता.

पर अब कई फिल्मकार इंस्टाग्राम पर कलाकार के फौलोअर्स की संख्या देखकर उन्हे फिल्में देने लगे हैं ?

यह बेवकूफों की रीत है. गूगल ट्रेंडस से अच्छा तो बैरोमीटर कुछ है ही नहीं. आप एक लाख फालोवर्स वाली लड़की और एक मिलियन फालोवर्स वाली लड़की को लेकर गूगल ट्रेंड पर कम्पेअर कीजिए, आपको जवाब मिल जाएगा. दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा. इंस्टाग्राम के आधार पर लोकप्रियता को जज करने वाले यह नहीं देखते कि यह कलाकार कहां पर लोकप्रिय हैं? इनके दो मिलियन फालोअर्स भारत के है या चीन के हैं या अमरीका के हैं? या इसे क्यों फालो कर रहे हैं. इसने खरीदे हुए तो नहीं हैं? पर भारतीय फिल्मकार इन सारे तथ्यों पर गौर नहीं करते. सिर्फ देखा कि इसके दो मिलियन फालोअर्स हैं, चलो इसे ले लेते हैं. मैं इसमें यकीन नही करता.

आर्थिक नुकसान के बाद भी डटी हैं अपने पल्लुओं को परचम बना चुकीं महिलाएं

दिल्ली के शाहीनबाग की तरह इलाहाबाद के रोशनबाग मे सीएए और एनआरसी के खिलाफ महिलाएं लगातार  सत्याग्रह पर डटी हैं. मंसूर अली पार्क मे चल रहे आन्दोलन की शुरुआत प्रतिदिन जन मन गण के गायन के साथ होती है. फिर लगता है हिन्दुस्तान जिन्दाबाद का नारा. दिन भर लोग आजादी के तरानों के साथ देश की आजादी में बलिदान हुए लोगों का ज़िक्र करते हैं. गांधी जी के पांच मूलमंत्र पर यह आन्दोलन आगे बढ़ रहा है. महिलाएं ये भी कहती हैं कि बोल के लब आजाद हैं तेरे. अपने पल्लू को परचम बना चुकी धरने पर बैठी इन महिलाओं को न्यायपालिका के अलावा सिर्फ प्रधानमंत्री पर भरोसा है कि वो उनकी बात सुन सकते हैं और मान सकते हैं. प्रयागराज में इस समय हर साल संगम किनारे लगने वाला माघ मेला अब समाप्त हो रहा है  और  पांच दिवसीय गंगा यात्रा खत्म हो गई है. इसलिए  उनको शिकायत है कि इस दौरान प्रदेश सरकार के तमाम मंत्री और ओहदेदार लोग इलाहाबाद आयें लेकिन उनकी आवाज सुनने रोशनबाग कोई नही आया. धरने में शामिल महिलाओं को जितनी आपत्ति सीएए और एनआरसी से है,उससे ज्यादा हैरानी इस बात पर भी  है कि उनकी बात सुनने के लिए कोई नहीं आ रहा है. कालेज की छात्रा परवीन रुंधे गले से बोलीं,आख़िर क्या ये हमारे नुमाइंदे नहीं हैं, जो वो हम लोगों के लिए ऐसी बात कह रहे हैं. रैली करके लोगों को समझा रहे हैं लेकिन हमारे पास आने का भी तो वक्त निकाल सकते हैं. आंदोलन के समर्थन में जुटी महिलाओं के साथ आए पुरुषों ने पतली रस्सी से बनी बैरिकेडिंग के बाहर डेरा डाल रखा है.

पुरुषों को वहां आने की इजाज़त नहीं है. लेकिन बाहर से उन्हें समर्थन देने आए लोगों को इस नियम में ढील देदी जाती  है. धरने में शामिल तमाम महिलाओं के साथ उनके छोटे बच्चे भी हैं, बच्चों को वहां लाने की बड़ी उचित वजह भी इन महिलाओ के पास है. वह कहती हैं कि बच्चों को हम कहां छोड़कर आएं? और फिर क्यों छोड़कर आएं? आखिर हम लोग इन्हीं बच्चों के भविष्य के लिए ही तो रात-दिन धरने पर बैठे हैं. सत्याग्रह मे घरेलू महिलाओं के अलावा छात्राएं भी यहां काफी संख्या में हैं.

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धरने के दौरा एक खास बात देखने को मिली कि रोशनबाग की महिलाओं ने दिल्ली के शाहीनबाग और जामिया मे फायरिगं करने वाले दोनों युवकों की तस्वीर भी लगा रखी थी.लेकिन उस पर लिखा था कि भाईयों अल्लाह तुमको बुरी संगत से बचाये, महिलाओं ने कहा कि ये उनलोगों के लिए संदेश है जो इस शांतिप्रिय आंदोलन को बदनाम कर धार्मिक रूप देना चाह रहे हैं.वह गर्व से भारत माता की जयकार कर के कहती हैं कि हमारी पूजा की प्रक्रिया अलग जरूर है लेकिन हम एक हैं और एक रहेगें.आन्दोलन को दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता,वैज्ञानिक,शायर गौहर रजा ने आनदोलनरत महिलाओं व नौजवानों को सम्बोधित करते हुए धैर्य एवं शांतिपूर्वक गांधी जी के पांच मंत्र उपहास, उपेक्षा, तिरिस्कार,दमन को बर्दाश्त करते हुए सम्मान से आगे बढ़ने की बात कही. कहा गांधी जी की वाणी थी के अगर सम्मान तक पहुंचना है तो उपहास और उपेक्षा को नजर अन्दाज करो तिरिस्कार और दबाव के चंगुल से निकलो तो सम्मान तुमहारे कदम चूमेगा.जब से शाहीन बाग का आन्दोलन शुरु हुआ तब से यही हो रहा पहले उपहास उड़ाया गया की यह बिल तो संसद से पास हो गया अब क्या करोगे. उसके बाद उपेक्षा की बारी आई .कहा गया उन्की परवाह न करो हमारे पास धनबल,जनबल की शक्ति है.फिर तिरिस्कार किया गया की यह सब बागी हैं ,गालियां दी गईं. लेकिन हमे विचलित होने की जरुरत नहीं. फिर आई दबाव बनाने के बारी. हमारे आन्दोलन को क्रश करने के लिए पावर  से दमन किया जाने लगा है. लेकिन हमारे हक की लड़ाई अब अन्तिम दौर में पहुंच चुकी है. अब हमे गांधी जी का पांचवां मंत्र सम्मान मिलने वाला है. इसके लिए हमें धैर्य और संयम से अपनी लड़ाई को अहिंसात्मक तरीके से आगे बढ़ाना होगा. हमें कामयाबी ज़रुर मिलेगी.तेईसवें दिन भी लगातार लोगों का आना जारी रहा तमाम सामाजिक कार्यकर्ता ,राजनितिक दलों के लोग, बुद्धिजिवियों ने भी एनपीआर एनआरसी और सीएए के खिलाफ आवाज बुलन्द की. धरने में पहले दिन से सबीहा मोहानी,सायरा अहमद डटी हुई हैं. सनद रहे कि प्राइवेट नौकरी करने वाली सायरा अहमद ने ही इस धरने की शुरुआत केवल दस महिलाओं को साथ ले कर की थी. वह बताती है कि धरने को मजबूत करने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी अब छोड़ दी है.उनके तरह की ऐसी कई लड़कियां और महिलाएं हैं जो अब अपने काम या कालेज नहीं जा रही हैं. मोहम्मद असरकारी बताते हैं कि वह रोज अपनी दुकान नहीं जाते हैं. तीन दिन में कुछ घंटों के लिए ही दुकान जा पाते हैं. ये कहने की जरूरत नहीं कि इस धरने को मंजिल तक पहुंचाने के लिए लोग अपना आर्थिक नुकसान भी कर रहें हैं. असकरी कहते हैं कि उनके जैसे तमाम लोग ऐसे ही समय निकाल कर अपना सहयोग दें रहें हैं. रोशन बाग इलाहाबाद शहर का पुराना इलाका है और नये शहर के लोग इसे मुस्लिम इलाके के नाम से पहचानते हैं. बल्कि ये शहर के सस्ते बाजार के रूप में भी जाना जाता है. कपड़े से लेकर यहां हर तरह की जरूरत का सामान शहर के दूसरे इलाकों से कम कीमत पर मिल जाता है. मंसूर पार्क में जब भी किसी तरह की अफवाह फैलती है या हलचल बढ़ जाती है यहां के शटर भी गिर जाते हैं.यानी आर्थिक नुकसान की कीमत पर भी धरना जारी है. अलबत्ता पार्क के आसपास की खाने पीने की दुकानों की आमदनी बढ़ गई है. लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि वह भी किसी न किसी रूप में अपना सहयोग दे रहें हैं. फिलहाल महिलाएं धरने को समाप्त करने के मूड में नहीं है.

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प्यार का आधा-अधूरा सफर : भाग 1

12सितंबर, 2019 को कानपुर नगर के मोहल्ला रामादेवी के रहने वाले कुछ लोगों ने कानपुर-फतेहपुर रेलवे लाइन के किनारे 2 लाशें पड़ी देखीं तो उन्होंने यह खबर मोहल्ले के लोगों को दे दी. चूंकि रामादेवी मोहल्ला लाइनों के नजदीक था, इसलिए कुछ ही देर में दरजनों लोग मौके पर पहुंच गए.

रेलवे लाइनों से किनारे रेल से कटे हुए 2 शव पड़े थे. उन में एक शव युवती का था और दूसरा युवक का. युवती की उम्र करीब 17-18 साल थी, जबकि युवक 21-22 साल का रहा होगा. लाशों को देखने से लग रहा था कि वे प्रेमीप्रेमिका रहे होंगे.

इस घटना की जानकारी स्थानीय सभासद के.के. पांडेय को हुई तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाइन किनारे 2 शव पड़े होने की सूचना थाना चकेरी पुलिस को दे दी.

थाना चकेरी के थानाप्रभारी रणजीत राय ने पहले यह जानकारी अपने अफसरों को दी फिर श्यामनगर चौकी इंचार्ज राघवेंद्र आदि के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन के वहां पहुंचने के कुछ देर बाद एसएसपी अनंत देव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी भी घटनास्थल पर आ गई थीं. आला अधिकारियों ने आते ही घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण शुरू कर दिया.

पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से शवों की शिनाख्त कराने का प्रयास किया, लेकिन एकत्र लोगों में से कोई भी उन की शिनाख्त नहीं कर पाया. तब एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने एक सिपाही को मृतक के बैग की तलाशी लेने को कहा.

सिपाही ने बैग की तलाशी ली तो उस में से मृतक का ड्राइविंग लाइसेंस, मोबाइल फोन, युवती के साथ खिंचाई गई फोटो तथा आई लव यू लिखा तकिया मिला. फोटो से लग रहा था कि प्रेमी युगल वैष्णो देवी गए थे.

युवती की लाश के पास एक लेडीज बैग पड़ा था. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस के अंदर एक लेडीज पर्स मिला, जिस के ऊपर दिबियापुर (औरैया) ज्वैलर्स लिखा था. पर्स के अंदर मोबाइल फोन, चूडि़यां, बिंदी तथा शृंगार का सामान था.

बैग से कुछ कपड़े तथा हाईस्कूल की मार्कशीट मिली. मार्कशीट में उस का नाम शिवांगी तथा पिता का नाम कन्हैयालाल गौतम लिखा था. इस से अनुमान लगाया कि युवती शायद दिबियापुर की रहने वाली रही होगी.

मृत युवक के बैग से जो ड्राइविंग लाइसेंस बरामद हुआ, उस में उस का नाम नागेंद्र सिंह यादव, पिता का नाम जितेंद्र सिंह यादव, निवासी बाला का पुरवा (खागा) जिला फतेहपुर लिखा था.

निरीक्षण के बाद एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने थाना चकेरी थानाप्रभारी रणजीत राय को आदेश दिया कि वह दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाएं और उन के परिजनों को सूचना दे दें.

थानाप्रभारी रणजीत राय ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु कानपुर के लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही मृतकों के घर वालों को भी सूचना भेज दी.

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दूसरे रोज मृतक के घर वाले लाला लाजपत राय अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. एसआई राघवेंद्र कुमार वहां मौजूद थे. राघवेंद्र ने परिजनों को मृतक युवक की लाश दिखाई तो वे फफक पड़े और बोले, ‘‘यह लाश नागेंद्र सिंह की है.’’

लाश की शिनाख्त नागेंद्र के पिता जितेंद्र सिंह यादव, चाचा राजेंद्र तथा बुआ आशा देवी ने की थी.

मृतक युवक के परिजन अभी मोर्चरी में ही थे कि युवती के घर वाले भी वहां आ गए. एसआई राघवेंद्र ने उन्हें युवती का शव दिखाया तो पिता कन्हैयालाल गौतम फफक कर रो पड़े और बोले, ‘‘साहब, यह शव मेरी बेटी शिवांगी उर्फ बिट्टो का है. वह पिछले 2 सप्ताह से घर से गायब थी.’’

शव की शिनाख्त शिवांगी के पिता कन्हैयालाल गौतम, दादा शिवराम तथा फूफा सुंदर ने की थी. शिनाख्त के बाद दोनों शवों का पोस्टमार्टम कराया गया. इस के बाद शव उन के परिजनों को सौंप दिए गए. दोनों के घर वालों ने आपसी सहमति से भैरवघाट पर एक ही चिता पर दोनों का दाहसंस्कार कर दिया.

नागेंद्र और शिवांगी कौन थे, वे प्यार के बंधन में कैसे बंधे, फिर ऐसी क्या परिस्थिति बनी, जिस से उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा, यह सब जानने के लिए हमें उन के अतीत की ओर लौटना पड़ेगा.

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर की खागा तहसील के अंतर्गत एक गांव बाला का पुरवा है. इसी गांव में जितेंद्र सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी माया देवी के अलावा 3 बेटे नागेंद्र सिंह, शेर सिंह, वीर सिंह तथा 3 बेटियां थीं. जितेंद्र कानपुर के फजलगंज स्थित एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ट्रक ड्राइवर की नौकरी करता था.

जितेंद्र सिंह यादव का बड़ा बेटा नागेंद्र सिंह शारीरिक रूप से हृष्टपुष्ट और स्मार्ट था. उस का मन न तो पढ़ाई में लगता था और न ही खेतीकिसानी के काम में. जितेंद्र चाहता था कि नागेंद्र पढ़लिख कर कोई सरकारी नौकरी करे पर नागेंद्र ने हाईस्कूल पास करने के बाद पढ़ाई बंद कर दी थी.

बेटा कहीं आवारा लड़कों की संगत में न पड़ जाए, इसलिए जितेंद्र ने उसे भी ट्रक चलाना सिखा दिया. वह उसे अपने साथ ले जाने लगा.

नागेंद्र जब ट्रक चलाने में एक्सपर्ट हो गया तो उस ने उस का हैवी ड्राइविंग लाइसेंस बनवा दिया. जितेंद्र ने अपने बेटे नागेंद्र को भी अपनी कंपनी में काम पर लगा दिया. पितापुत्र जब दोनों ट्रक चलाने लगे तो उन्होंने गडरियनपुरवा में एक कमरा किराए पर ले लिया. नागेंद्र जब ट्रक ले कर धनबाद या कोलकाता जाता, तब जितेंद्र कमरे में आराम करता और जब जितेंद्र बाहर जाता तो नागेंद्र आराम करता था.

जितेंद्र की बहन आशा देवी की ससुराल औरैया जिले के गांव बूढ़ादाना में थी. आशा देवी अपनी बेटी आरती की शादी कर रही थीं. शादी की तारीख 8 मार्च, 2019 तय हुई थी. रीतिरिवाज के अनुसार शादी का पहला निमंत्रण मामा को भेजा जाता है. इसलिए आशा देवी भी निमंत्रण कार्ड ले कर अपने भाई जितेंद्र के घर बाला का पुरवा पहुंची.

चूंकि शादी वाली तारीख पर जितेंद्र को ट्रक ले कर बिहार जाना था, इसलिए उस ने नागेंद्र को उस की बुआ के घर शादी समारोह में शामिल होने के लिए बूढ़ादाना भेज दिया. नागेंद्र ने अपनी फुफेरी बहन आरती की शादी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और खूब काम किया.

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इसी शादी समारोह में नागेंद्र की नजर शिवांगी पर पड़ी. शिवांगी आरती की नजदीकी सहेली थी, जो उस के पड़ोस में ही रहती थी. वह सहेली की शादी में खूब सजधज कर आई थी. अपनी सहेलियों में वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत दिख रही थी. जैसे ही नागेंद्र की नजरें शिवांगी से मिलीं तो वह मुसकरा पड़ी. इस से नागेंद्र के दिल में हलचल मच गई. शिवांगी का गुलाब सा चेहरा नागेंद्र के दिल में बस गया.

शिवांगी के पिता कन्हैयालाल गौतम बूढ़ादाना गांव में आशा देवी के घर के पास ही रहते थे. उन की पत्नी सविता का निधन हो चुका था. परिवार में बेटी शिवांगी तथा बेटा विकास था. कन्हैयालाल हलवाई का काम करते थे. विवाह समारोह में वह खाना बनाते. सहालग के दिनों में उन्हें रातदिन काम करना पड़ता था.

जब शिवांगी की मां का निधन हुआ था, तब वह केवल 3 महीने की थी. पत्नी की मौत के बाद कन्हैयालाल ने ही बच्चों का पालनपोषण किया था.

येलो और्किड : भाग 4

कुछ सोचविचार करने के बाद उस ने उन्हें फोन कर के अगली शाम को घर पर डिनर के लिए आमंत्रित कर लिया और साथ ही, बता दिया कि वह उन्हें अपने बच्चों से मिलाना चाहती है. उस का इरादा यही था कि बच्चे एक बार सुरेंदर से मिल लें, फिर मधु विकास और सुरभि को विवाह के प्रस्ताव के बारे में बताएगी. यह सोच कर ही उस के मन में लाजभरी हंसी फूट गई. उस के बच्चे जैसे उस के अभिभावक बन गए हों और वह कोई कमउम्र लड़की थी जैसे.

दूसरे दिन सुबह उस ने बच्चों की पसंद का नाश्ता बना कर खिलाया. विकास और सुरभि के बच्चे हमउम्र थे. एक नई फिल्म लगी थी, सब ने मिल कर देखने का मन बनाया. मधु ने सब को यह कह कर भेज दिया कि तुम लोग जाओ, मुझे शाम के खाने की तैयारी करनी है.

‘‘कौन आ रहा है मां, शाम को डिनर पर?’’ सुरभि ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘है कोई, एक बहुत अच्छे दोस्त समझ लो, शाम को खुद ही मिल लेना,’’ मधु ज्यादा नहीं बताना चाहती थी.

विकास, मोनिका और सुरभि ने एकदूसरे को देख कर कंधे उचकाए. आखिर यह नया दोस्त कौन बन गया था मां का.

शाम को डिनर टेबल पर ठहाकों पे ठहाके लग रहे थे. सुरेंदर के चटपटे किस्सों में सब को मजा आ रहा था, उस पर उन का शालीन स्वभाव. सब का मन मोह लिया था उन्होंने. मधु संतोषभाव से सब की प्लेटों में खाना परोसती जा रही थी.

सुरेंदर के जाने के बाद सब लिविंगरूम में बैठ गए. मोनिका सब के लिए कौफी बना लाई. यही उचित मौका था बात करने का. सब सुरेंदर से भी मिल लिए थे, तो बात करना आसान हो गया था मधु के लिए.

उस ने धीरेधीरे सारी बात सब के सामने रखी, सुरेंदर के विवाह प्रस्ताव के बारे में भी बताया.

उस ने बेटे की तरफ देखा प्रतिक्रिया के लिए, कुछ देर पहले के खुशमिजाज चेहरे पर संजीदगी के भाव थे. उस के माथे पर पड़ी त्योरियां देख मधु का मन बुझ गया. उस ने सुरभि की तरफ देखा, वह भी भाई के पक्ष में लग रही थी.

‘‘मां, इस उम्र में आप को यह सब क्या सूझी, इस उम्र में कोई शादी करता है भला? हमें तो लगा था, आप दोनों अच्छे दोस्त हैं, बस,’’ तल्ख स्वर में सुरभि बोली.

‘‘हम अच्छे दोस्त हैं, यही सोच कर तो इस बारे में सोचा. हमारे विचार मिलते हैं, एकदूसरे के साथ समय बिताना अच्छा लगता है, और इसी उम्र में तो किसी के साथ और अपनेपन की जरूरत महसूस होती है.’’

‘‘आप, बस, अपने बारे में सोच रही हैं, मां, लोग क्या कहेंगे कभी सोचा है? इतना बड़ा फैसला लेने से हमारी जिंदगी में क्या असर पड़ेगा. निधि और विधि अब बड़ी हो रही हैं. उन्हें कितनी शर्मिंदगी होगी इस बात से कि उन की दादी इस उम्र में शादी कर रही हैं,’’ आवेश में विकास की आवाज ऊंची हो गई.

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मोनिका ने उसे शांत कराया और मधु से बोली, ‘‘मां, आप अकेले बोर हो जाती हैं, तो कोई हौबी क्लास या क्लब जौइन कर लीजिए. हमारे पास आ कर रहिए या फिर दीदी के पास. और वैसे भी, इस उम्र में आप को पूजापाठ में मन लगाना चाहिए. इस तरह गैरमर्द के साथ घूमनाफिरना आप को शोभा नहीं देता.’’

कितना कुछ कह रहे थे सब मिल कर और मधु अवाक सुनती जा रही थी. उस का मन कसैला हो आया. ऐसा लगा मानो ये उस के अपने बच्चे नहीं, बल्कि समाज की सड़ीगली सोच बोल रही है. अपने ही घर में अपराधिन सा महसूस होने लगा उसे. खिसियाई सी टूटे हुए मन से वह उठी और सब को शुभरात्रि बोल कर अपने कमरे में चली आई.

जिस बेटे को पढ़ालिखा कर विदेश भेजा, वह विदेशी परिवेश में इतने वर्ष रहने के बाद भी दकियानूसी सोच से बाहर नहीं निकल पाया था. और सुरभि, कम से कम उस को तो मधु का साथ देना चाहिए था बेटी होने के नाते. जब सुरभि ने अपने लिए विजातीय लड़का पसंद किया तो सारे रिश्तेनाते वालों न जम कर विरोध किया था, विकास भी खिलाफ हो गया था. एक मधु ही थी जिस ने सुरभि के फैसले का न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि अपने बलबूते पर धूमधाम से सुरभि की शादी भी कराई.

एक मां के सारे फर्ज मधु बखूबी निभाती आईर् थी. कोई कमी नहीं रखी परवरिश में कभी. लेकिन, मां होने के साथ वह एक औरत भी तो थी. क्या उस की अस्मिता, खुशी कोई माने नहीं रखती थी? क्या उसे अपने बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं था? अकेलेपन का दर्र्द उस से बेहतर कौन समझ सकता था. कितनी ही बार घबरा कर वह रातों को चौंक कर उठ जाती थी. कभी बीमार पड़ती, तो कोई पानी पिलाने वाला न होता.

एक दुख और आक्रोश उस के भीतर उबलने लगा. अपनों का स्वार्थ उस ने देख लिया था. बड़ी देर तक उसे नींद नहीं आई. बात जितनी सरल लग रही थी, उतनी थी नहीं. मधु अपनी जिम्मेदारियों से फारिग हो चुकी थी. अपने बच्चों को पढ़ालिखा कर उस ने पैरों पर खड़ा कर दिया था. दोनों बच्चों के सामने कभी उस ने हाथ नहीं फैलाया था. आखिर ऐसा क्या मांग लिया था उस ने जो अपने बच्चे ही खिलाफ हो गए. सोचतेसोचते कब सुबह हुई, पता नहीं चला उसे.

कुछ भी हो, उसे सब का सामना करना ही था. बच्चे कुछ दिनों के लिए आए थे, उन्हें वह नाराज नहीं देखना चाहती थी. आखिरकार, मां की ममता औरत पर भारी पड़ गई. नहाधो कर मधु रसोई में आई, तो देखा बहू मोनिका टोस्ट तैयार कर रही थी नाश्ते के लिए.

‘‘अरे, तुम रहने देतीं, मैं छोलेपूरी बना देती हूं जल्दी से, विकास को बहुत पसंद है न.’’

‘‘विकास नाश्ता हलका खाते हैं आजकल, सो, आप रहने दीजिए,’’ मोनिका रुखाई से बोली.

सब के तेवर बदले नजर आ रहे थे. मधु भरसक सामान्य बनने की चेष्टा करती रही. 2 दिनों बाद ही सुरभि वापस जाने लगी, तो विकास ने भी सामान बांध लिया.

‘‘तू तो महीनाभर रहने वाला था न?’’ मधु ने उस से पूछा.

‘‘सोचा तो यही था, मगर…’’

‘‘मगर क्या? साफ बोल न,’’ बोलते मधु का गला भर आया.

सुरभि ने मधु का तमतमाया चेहरा देखा, तो बचाव के लिए बीच में आ गई.

‘‘मां, निधि और विधि कुछ दिन मुंबई घूमना चाहते हैं, तो मैं ने सोचा, सब साथ ही चलें. कुछ दिन रह कर लौट आएंगे.’’

मधु की भी छुट्टियां अभी बची थीं. लेकिन किसी ने उसे साथ चलने को नहीं कहा. सब मुंबई चले गए. तो मधु ने काम पर जाना शुरू कर दिया. अकेली घर पर करती भी तो क्या.

जो कुछ उस के दिल में था, उस ने उड़ेल कर सुरेंदर के सामने रख दिया. आंखों में आंसू लिए भर्राए स्वर में वह बोली, ‘‘कभी सोचा नहीं था बच्चों की नजरों में यों गिर जाऊंगी, नाराज हो कर सब चले गए. गलती उन की नहीं, मेरी है जो स्वार्थी हो गई थी मैं,’’ यह कह कर मधु सिसक पड़ी.

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उसे ऐसी हालत में देख कर सुरेंदर को खुद पर ग्लानि हुई. मधु के परिवार में उन की वजह से ही यह तूफान आया था.

उन्होंने मधु को सब ठीक हो जाने का दिलासा दिया. पर दिल ही दिल में वे खुद को इस सारे फसाद की जड़ मान रहे थे.

2 दिन बीत चुके थे. सुरभि और विकास का कोईर् फोन नहीं आया था. मधु अंदर से बेचैन थी. रातभर उसे नींद नहीं आती थी. दोनों उस से इतने खफा थे कि एक फोन तक नहीं किया. वह बेमन से एक किताब के पन्ने पलट रही थी, तभी फोन की घंटी बजी.

सुरभि की आवाज कानों

में पड़ी, ‘‘मां, सौरी,

आप को अपने पहुंचने की सूचना भी नहीं दे पाए. यहां आते ही भैया बीमार हो गए थे. डाक्टर ने टाइफाइड बताया है. भैया अस्पताल में ऐडमिट हैं. वे आप को बहुत याद कर रहे हैं. मां, हो सके तो आप जल्द से जल्द मुंबई पहुंच जाएं.’’

मधु रिसीवर कान से लगाए गुमसुम सुनती जा रही थी. पहले भी 2 बार विकास को टाइफाइड हो चुका था. जब भी वह बीमार पड़ता था, मां को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ता था. मां की ममता बेटे की बीमारी की खबर सुन बेचैन हो गई.

‘‘मां, आप सुन रही हो न. मां, कुछ तो बोलो,’’ दूसरी तरफ से सुरभि की परेशान आवाज सुनाई दी. मां का कोई जवाब न पा कर उसे फिक्र होने लगी.

‘‘मैं सुन रही हूं. मैं आज ही आ रही हूं. तू चिंता मत कर. बस, विकास का ध्यान रखना. मैं पहुंच रही हूं वहां,’’ मधु ने जल्दी से फोन रखा. अपने पहचान के ट्रैवल एजेंट को फोन कर के पहला उपलब्ध टिकट बुक करा लिया. फ्लाइट जाने में अभी वक्त था, उस ने कुछ जोड़ी कपड़े और जरूरी सामान एक बैग में डाला. दरवाजे की घंटी बजी तो मधु झल्ला गई. इस वक्त उसे किसी से नहीं मिलना था.

उस ने उठ कर दरवाजा खोला. एक आदमी गुलदस्ता थामे खड़ा था. मधु ने उसे पहचान लिया. वह सुरेंदर के यहां काम करता था.

‘‘साहब ने भेजा है,’’ उस ने गुलदस्ता मधु को पकड़ा दिया और चला गया.

येलो और्किड के ताजे फूल, साथ में एक लिफाफा भी था. मधु ने लिफाफा खोल कर चिट्ठी निकाली –

‘‘प्रिय मधु,

‘‘ये फूल हमारी उस दोस्ती के नाम जो किसी रिश्ते या बंधन की मुहताज नहीं है. मैं ने तुम्हें एक कशमकश में डाला था जिस ने तुम्हारी जिंदगी की शांति और खुशी छीन ली और आज मैं ही तुम्हें इस कशमकश से आजाद करना चाहता हूं. दोस्ती की जगह कोई दूसरा रिश्ता नहीं ले सकता क्योंकि यही एक रिश्ता है जहां कोई स्वार्थ नहीं होता.

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‘‘एक मां को उस के बच्चों का प्यार और सम्मान हमेशा मिलता रहे, यही कामना करता हूं.

‘‘सदा तुम्हारा शुभचिंतक.’’

उस ने खत को पहले वाले खत के साथ सहेज कर रख दिया. मन का भारीपन हट चुका था. दोस्ती की अनमोल सौगात की निशानी येलो और्किड उसे देख कर, जैसे मुसकरा रहे थे.  येलो और्किड : भाग 2

येलो और्किड : भाग 3

दोनों बालकनी में बैठ कर शाम की चाय पी रही थीं. पम्मी ऐसी दोस्त थी जो मधु को जिंदगी खुल कर जीने के लिए प्रेरित करती थी.

‘‘सच कहूं, मुझे यकीन नहीं होता कि किसी से खुल कर बातें करने से दिमागी तौर पर इतना सुकून मिलता है. एक तू है जो समझती थी और अब सुरेंदर भी मुझे समझने लगे हैं.’’

मधु खुश थी और पम्मी यह देख कर खुश थी.

उसी शाम बेटे विकास ने फोन कर के बताया कि वह कुछ दिनों के लिए सपरिवार इंडिया आ रहा है. पिछले 3 सालों से हर बार वह मधु को अपने आने की सूचना देता, मगर कभी अपने काम या किसी और वजह से आना नहीं हो पा रहा था. बेटेबहू और दोनों नातिनों को देखने के लिए मधु का दिल कब से तरस रहा था, वह बेसब्री से दिन गिनने लगी.

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बेटे के परिवार के आने से 2 दिनों पहले मधु का जन्मदिन आया. वह अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाती थी. मगर उस के लाख मना करने के बावजूद डिनर का प्रोग्राम बन गया और सुरेंदर ने 2 लोगों के लिए टेबल बुक करा दी रैस्तरां में. दोनों जब शाम को मिले तो सुरेंदर बत्रा मधु को देखते ही रह गए. गुलाबी लहरिया साड़ी में मेकअप के साथ मधु का रूप आज कुछ अलग था. उस ने जब उन्हें इस तरह निहारते देखा तो शर्म की लाली उस के गालों पर दौड़ गई.

उस के चहेते येलो और्किड का गुलदस्ता उसे थमाते सुरेंदर मधु पर दिल हार बैठे थे. मधु कोई दूध पीती बच्ची नहीं थी जो उन आंखों में अपने लिए आकर्षण को न समझ पाती.

‘‘बहुत सुंदर फूल हैं,’’ मधु ने कहा.

‘‘बिलकुल आप की आंखों की तरह,’’ सुरेंदर अनायास ही बोल उठे और फिर अपने कहे पर खुद ही झेंप गए. यह सच था कि मधु उन के जीवन में आई वह पहली औरत थी जिस के लिए उन के मन में प्रीत की कोमल भावनाएं जागी थीं. सेना की नीरस जिंदगी और परिवार के प्रति उत्तरदायित्व के चलते उन के मन का वह कोना रीता ही रह गया था जहां प्रेम का रस बहता है.

दोनों ने प्रेमपूर्वक कैंडल लाइट डिनर का आनंद लिया. हलकी फुहार सी पड़ने लगी तो ठंडी बयार तन सिहराने लगी. कुछ मौसम का खुमार था, कुछ दिल में उमड़ते जज्बात. बहुत दिनों में सुरेंदर जिस बात को दिल में दबाए हुए थे वह आज इस एकांत में मधु के समक्ष रखना चाहते थे.

शाम बहुत यादगार गुजरी. मधु को याद नहीं आया पिछली बार उस ने अपना जन्मदिन इस तरह कब मनाया था. घर के पास पहुंच कर मधु जब गाड़ी से उतर रही थी, तो सुरेंदर ने गाड़ी की पिछली सीट पर रखा खूबसूरत गिफ्ट पैक में लिपटा हुआ एक चौकोर डब्बा उसे भेंट किया.

यह उन की तरफ से जन्मदिन का तोहफा था मधु के लिए. घर पहुंच कर मधु ने उपहार खोला. सफेद मोतियों की नाजुक सी माला डब्बे में थी और साथ ही, एक खत भी. सुरेंदर जैसे मुखर व्यक्ति को दिल का हाल बताने के लिए खत की जरूरत क्यों पड़ी, उत्सुकतावश उस ने खत पढ़ना शुरू किया.

खत में उसे संबोधित करते हुए सुरेंदर ने अपने दिल की वे सारी भावनाएं बयान की थीं जो वे मधु के लिए महसूस करते थे. मधु खत पढ़ कर दुविधा में पड़ गई. कम उम्र में ही विधवा हो गई थी वह. पर उस ने आज तक किसी भी परपुरुष के बारे में नहीं सोचा था.

इतने सालों बाद किसी ने उसे प्रेमपाती भेज कर विवाह का प्रस्ताव भेजा था. उसे समझ नहीं आया इस बात की प्रतिक्रिया वह कैसे दे. सुरेंदर जैसे सज्जन इंसान का साथ भी उसे पसंद था पर शादी जैसी बात उस के मन में नहीं थी. इस उम्र में तन से ज्यादा मन की कुछ जरूरतें होती हैं. रिश्ते स्वार्थ की बुनियाद पर चलते हैं, लेकिन दोस्ती में कोई स्वार्थ निहित नहीं होता.

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अकेलेपन में घुटघुट कर जीना भी तो जिंदगी नहीं है, उस ने खुद से ही तर्क किया. किस से पूछे वह कि क्या सही है क्या गलत. जीवन की ढलती शाम किसी साथी की तलबगार थी, मगर समाज क्या कहेगा, परिवार क्या सोचेगा जैसे तमाम प्रश्न मुंहबाए खड़े थे. उस ने खत सहेज कर अपनी अलमारी में रख दिया. कुछ वक्त चाहिए था उसे इस बारे में सोचने के लिए. उस ने चिट्ठी का न जवाब दिया, न ही सुरेंदर को फोन किया.

विकास और बहू मोनिका आ चुके थे. बेटी सुरभि भी कुछ दिनों के लिए मायके आईर् थी. घर पर चहलपहल का माहौल बन गया था. मधु ने बच्चों के साथ अधिक वक्त गुजारने के लिए कुछ दिनों के लिए अवकाश ले लिया. रोज ही सब मिल कर कोई प्रोग्राम बनाते, कहीं फिल्म देख आते या कहीं घूमने चले जाते.

एक दिन सुरेंदर का फोन आया. मधु की तरफ से कोई जवाब न पा कर उन्हें लगा शायद वह नाराज है. दोनों की इस बीच बात नहीं हो पाई थी. मधु को अपने व्यवहार और स्वार्थीपन पर शर्मिंदगी हुई. वह अपने परिवार के आते ही उस दोस्ती की अहमियत भूल गई थी जो तनहाई में उस का संबल बनी थी.

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येलो और्किड : भाग 2

उन की बातें दुनिया के झमेले से शुरू हो कर अकसर कालेज की कभी न लौटने वाली सुनहरी यादों पर खत्म हो जाती थीं. मेहंदी के रंग की तरह वक्त के साथ और भी गहरी हो चली थी उन की दोस्ती. हर सुखदुख दोनों साझा करती थीं.

अपने रिटायर्ड कर्नल पति के साथ पम्मी जिंदगी को जिंदादिली से जीने में यकीन रखती थी. इस उम्र में भी जवान दिखने की हसरत बरकरार थी उस की. बच्चों की जिम्मेदारियों से फारिग हो चुके थे वे लोेग. कर्नल साहब और पम्मी मौके तलाशते थे लोगों से मिलनेमिलाने के.

अगले ही रविवार की शाम एक पार्टी रखी थी दोनों ने अपने घर पर अपनी शादी की एक और शानदार सालगिरह का जश्न मनाने के लिए. कर्नल साहब के फौजी मित्र और पम्मी की कुछ खास सहेलियां, सब वही लोग थे जो ढलती उम्र में हमजोलियों के साथ हंसीमजाक के पल बिता कर अकेलेपन का बोझ कुछ कम कर लेना चाहते थे.

कालेज की लाइब्रेरी से मोटीमोटी किताबें ला कर मधु सप्ताहांत की छुट्टियां बिता लेती थी. कोई खास जानपहचान वाला था नहीं जहां उठानाबैठना होता. पति के जाने के बाद मधु की दुनिया बहुत छोटी हो चली थी.

जिन बच्चों की परवरिश में जवानी गुजर गई, वे अब बुढ़ापे के अकेलेपन में साथ नहीं थे. इस में उन का ही क्या दोष था, यह तो जमाने का चलन है.

विकास के विदेश में नौकरी का सपना अकेले विकास का ही नहीं, मधु का भी था. बेटे की कामयाबी मधु के माथे का गौरव बनी थी. अपने दोनों बच्चों का भविष्य संवारने में मधु ने क्याक्या त्याग नहीं किए थे. अकेली विधवा औरत समाज में दामन बचाती चली, कभी दोनों को पिता की कमी महसूस नहीं होने दी.

बावजूद इस सब के, उस के मन का एक कोना कहीं रीता ही रह गया था. वह एक मां थी, लेकिन एक औरत भी तो थी उस से पहले. विकास और सुरभि जब छोटे थे, उन की दुनिया, बस, मां के चारों ओर घूमती थी. घर में रहते तो मधु को एक पल की फुरसत नहीं मिलती थी उन की फरमाइशों से. कालेज से आते ही दोनों घेर लिया करते थे उसे.

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उन पुराने दिनों को याद कर के एक गहरी टीस सी हुई सीने में. पम्मी ने फोन कर के उसे फिर से याद दिलाया कि पार्टी में वक्त से पहुंच जाए. न चाहते हुए भी पम्मी के बुलावे में जाना जरूरी था उस के लिए, खास दोस्त को नाराज नहीं कर सकती थी.

अपनी अलमारी में करीने से टंगी एक से एक खूबसूरत साडि़यों में से साड़ी छांटते हुए एक हलके फिरोजी रंग की शिफोन साड़ी पर उस की नजर पड़ी. साड़ी को बड़ी नफासत से पहन कर जब वह तैयार हो कर शीशे के सामने खड़ी हुई तो दिल में एक हूक सी उठी. गले में सफेद मोतियों की लड़ी और उस से मेलखाते बुंदों ने चेहरे के नूर में चारचांद लगा दिए थे. यह रंग उस पर कितना फबता था. सहसा उस की नजर उन सफेद तारों पर पड़ी जो काले बालों के बीच में से झांक रहे थे. उम्र भी तो हो चली थी. आखिर कब तक छिपा सकता है कोईर् वक्त के निशानों को. मधु अपवाद नहीं थी. शीशे में खुद को निहारते हुए उस ने एक बार फिर से अपना पल्लू ठीक किया.

हाथ में बुके लिए वह टैक्सी से उतर कर आलीशान बंगले के लौन की तरफ बढ़ चली जहां पार्टी का आयोजन किया गया था. जगमगाती रोशनी की लडि़यों से सजा लौन मेहमानों के स्वागत को तैयार था.

कर्नल साहब दोस्तों के साथ चुहलबाजी कर रहे थे. उन की जिंदादिल हंसी से महफिल गूंज रही थी. वहां आए हुए अधिकांश मेहमान दंपती थे. सब दावत की रौनक में डूबे हुए युवाजोश के साथ मिलमिला रहे थे. लौन के एक कोने में फूलों की सुंदर सजावट की गई थी. हरी घास पर येलो और्किड के फूल बरबस ही ध्यान खींच रहे थे. और्किड के फूल हमेशा से उसे खासतौर पर पसंद थे. जिस ने भी उन की सुंदर सजावट की थी, वह सराहना का पात्र था.

‘‘हैलो, आप से दोबारा मिल कर अच्छा लगा. कैसी हैं आप?’’ अपने पीछे एक आवाज सुन कर उस ने पलट कर देखा.

वही अजनबी जो उस दिन बिना नाम बता निस्वार्थ मदद कर के चला गया था.

‘‘अरे आप? इस तरह फिर से अचानक मुलाकात हो जाएगी, सोचा नहीं था,’’ मधु ने कहा.

‘‘आई एम सुरेंदर, कर्नल मेरा पुराना यार है.’’

‘‘और मैं मधु शर्मा, पम्मी की सहेली.’’

‘‘आइए, बैठते हैं’’, पास ही एक टेबल के पास उन्होंने मधु के लिए कुरसी खींच दी.

‘‘देखिए न, उस दिन आप ने इतनी मदद की और मैं आप को चायपानी तक नहीं पूछ पाई. इस बात का अफसोस है मुझे.’’

‘‘छोडि़ए अफसोस करना, अब दोबारा मुलाकात हुईर् है तो फिर किसी दिन आप बदला चुका देना,’’ जोर का ठहाका लगा कर सुरेंदर बोले.

हवा के ठंडे झोंकों से मौसम खुशगवार हो चला था. एक खूबसूरत गजल पार्श्व में बज रही थी. मधु को सुरेंदर बहुत हंसमुख और सलीकेदार इंसान लगे. उस शाम बहुत देर तक दोनों बातें करते रहे और यह मुलाकात उन के बीच एक मधुर दोस्ती की नींव डाल गई.

उस दिन के एहसान की भरपाई मधु ने सुरेंद्र के साथ एक रैस्टोरैंट में कौफी पीते हुए की. मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. कभी दोनों मिलते तो कभी पम्मी की चाय पार्टी में मुलाकात हो जाती. अविवाहित सुरेंदर सेवानिवृत्त होने के बाद कईर् एकड़ जमीन पर बनी नर्सरी और हौर्टिकल्चर बिजनैस चलाते थे. मधु जब भी उन की नर्सरी जाती, सुरेंदर फूलों से खिले गमले उसे सौगात में देते. अब तक वे जान चुके थे मधु को फूलों और बागबानी से बेहद प्यार था. उस के घर की बालकनी किस्मकिस्म के फूल वाले पौधों से सजी गुलिस्तान बन गई थी.

सुरेंदर अविवाहित थे जबकि मधु परिवार होते हुए भी अकेली. दोनों अपनी जिंदगियों का खालीपन भरने के लिए खाली वक्त साथ गुजारने लगे जिस के लिए कभी बाहर खाने का मंसूबा बनता तो कभी सुरेंदर की गाड़ी में दोनों लौंग ड्राइव के लिए निकल जाते. एक निर्दोष रिश्ते में बंधते वे सुखदुख बांटने लगे थे.

एक दिन रैस्टोरैंट में बैठ कर कौफी पीते हुए मधु ने पूछा, ‘‘आप ने शादी क्यों नहीं की?’’

आंखों पर धूप का चौड़ा चश्मा चढ़ाए, अपनी उम्र से कम नजर आते सुरेंदर आकर्षक व्यक्तित्व के इंसान थे. उस पर लंबे कद और मजबूत कदकाठी के चलते उन का समूचा व्यक्तित्व प्रभावशाली लगता था. ऐसे सुकुमार व्यक्ति को किसी सुंदरी से प्रेम न हुआ हो, कैसा आश्चर्य था.

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‘‘कुछ जिम्मेदारियां ऐसी थीं जिन का निर्वाह बहुत जरूरी था मेरे लिए. पिताजी के न रहने पर भाईबहनों की पढ़ाई और शादी की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर थी. दोनों भाइयों का घर बस गया तो उन्होंने मां को वृद्धाश्रम में रखने की बात की क्योंकि कोई मां को रखना नहीं चाहता था.

‘‘मधुजी, मैं ने भारत मां की सेवा की कसम खाईर् थी मगर मेरी मां को भी मेरी जरूरत थी. बहुत साल नौकरी करने के बाद मैं ने स्वैच्छिक रिटायरमैंट ले लिया. जब तक मां थीं, उन की सेवा की. कुछेक रिश्ते तो आए पर कहीं संयोग नहीं बना. बिना किसी मलाल के जी रहा हूं, खुश रहता हूं. बस, दोस्तों का स्नेह चाहिए.’’ और हमेशा की तरह एक उन्मुक्त ठहाका लगा कर सुरेंदर हंस दिए.

मधु के दिल में सुरेंदर के लिए सम्मान कुछ और बढ़ गया. जो खुद से ज्यादा अपनों की खुशी का खयाल रखे, ऐसे इंसान विरले ही होते हैं.

‘‘सुना है सुरेंदर के साथ आजकल खूब छन रही है,’’ पम्मी ने एक दिन मधु को छेड़ा.

यह सुन कर मधु के गाल सुर्ख हो गए. पम्मी फिर बोली, ‘‘मुझे अच्छा लग रहा है. आखिरकार, तू कुछ अपनी खुशी के लिए भी कर रही है.’’

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येलो और्किड : भाग 1

पति के बाद बच्चों को पालपोस कर किसी काबिल बनाने में मधु के मन का एक कोना रीता रह गया था. सुरेंदर का सान्निध्य, उस की बातों ने जैसे एक बार फिर मधु के शुष्क जीवन में मीठी फुहार भर दी थी. लेकिन फिर से खुशियां पाना उस के लिए आसान न था…

तपा देने वाली गरमी में शौपिंग बैग संभाले एकएक पग रखना दूभर हो गया मधु के लिए. गलती कर बैठी जो घर से छाता साथ नहीं लिया. पल्लू से उस ने माथे का पसीना पोंछा. शौपिंग बैग का वजन ज्यादा नहीं था, मगर जून की चिलचिलाती धूप कहर ढा रही थी. औटो स्टैंड थोड़ी दूर ही था. वहां से औटो मिलने की आस में उस ने दोचार कदम आगे बढ़ाए ही थे कि सिर तेजी से घूमने लगा. अब गिरी तब गिरी की हालत में उस का हाथ बिजली के खंबे से जा टकराया और उस का सहारा लेने की कोशिश में संतुलन बिगड़ा और वह सड़क पर गिर पड़ी. शौपिंग बैग हाथ से छूट कर एक तरफ लुढ़क गया.

कुछ लोगों की भीड़ ने उसे घेर लिया.

‘‘पता नहीं कैसे गिर गई? शायद चक्कर आ गया हो.’’

‘‘इन को अस्पताल ले कर चलो, बेहोश है बेचारी.’’

‘‘अरे, कोई जानता है क्या, कहां रहती हैं.’’

अर्धमूर्च्छित हालत में पड़ी मधु को देख कर लोग अटकलें लगाए जा रहे थे. मगर अस्पताल या घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कोई लेना नहीं चाहता था. तभी वहां से गुजरती एक सफेद गाड़ी सड़क के किनारे आ कर रुक गई. एक लंबाचौड़ा आदमी उस गाड़ी से उतरा और लोगों का मजमा लगा देख भीड़ को चीरता आगे आया. मधु की हालत देख कर उस ने तुरंत गाड़ी के ड्राइवर की मदद से उसे उठा कर गाड़ी में बिठा लिया.

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‘‘यहां पास में कोई हौस्पिटल है क्या?’’ उस आदमी ने भीड़ की तरफ मुखातिब हो कर पूछा.

‘‘जी सर, यहीं, अगले चौक से दाहिने मुड़ कर एक नर्सिंगहोम है.’’

और गाड़ी उसी दिशा में आगे बढ़ गई जहां नर्सिंग होम का रास्ता जाता था.

हौस्पिटल के बैड पर लेटी मधु की बांह में ग्लूकोस की नली लगी हुई थी. कमजोरी का एहसास तो हो रहा था पर हालत में कुछ सुधार था. नर्स से उसे मालूम हुआ कि उसे गाड़ी में किसी ने यहां तक पहुंचा दिया था. वह उस सज्जन का शुक्रिया अदा करना चाहती थी जिस ने उसे बीच सड़क से उठा कर अस्पताल तक पहुंचाया था. वरना कौन मदद करता है भला किसी अनजान की.

तभी दरवाजा खोल कर एक आदमी वार्ड में आया. ‘‘कैसी तबीयत है आप की अब? वैसे डाक्टर ने कहा है कि खतरे की कोई बात नहीं है, आप को कुछ देर में डिस्चार्ज कर दिया जाएगा.’’ रोबदार चेहरे पर सजती हुई मूंछों वाला वह आदमी बड़ी शालीनता से मधु के सामने खड़ा था. मधु कुछ सकुचाहट और एहसान से भर उठी.

‘‘आप ने बड़ी मदद की, आप का धन्यवाद कैसे करूं समझ नहीं आ रहा,’’ वह कुछ और भी जोड़ना चाह रही थी कि उस आदमी ने उसे टोक दिया.

‘‘इस सब की चिंता मत कीजिए, इंसानियत भी एक चीज है. लेकिन हां, आप को एक बात जरूर कहना चाहूंगा, जब आप को शुगर की गंभीर समस्या है तो आप को अपनी सेहत का खास ध्यान रखना चाहिए. यह आप के लिए बड़ा खतरनाक हो सकता है.’’

मधु से कुछ कहते न बना, गलती उस की ही थी. सुबह शुगर की दवा खाना भूल गई थी. उस पर से धूप में इतना पैदल चली. शुगर लैवल बिलकुल कम होने से वह चक्कर खा कर गिर पड़ी थी. उस की खुद की लापरवाही का नतीजा उसे भुगतना पड़ा था. किसी अजनबी का एहसान लेना पड़ गया.

मगर वह अजनबी उस पर एहसान पर एहसान किए जा रहा था. अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर मधु को उस ने घर तक अपनी गाड़ी में छोड़ा और मधु उस का नाम तक नहीं जान पाई. वह पछताती रह गई कि मेहमान को एक कप चाय के लिए भी नहीं पूछ पाई.

थोड़ा फारिग होते ही उस ने अपनी बेटी को फोन लगाया. मोबाइल पर उस की कई मिसकौल्स थीं. फोन पर्स के अंदर ही था. अब घर आ कर वह देख पाई थी.

सुरभि ने उस का फोन रिसीव करते

ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी. मधु

के फोन न उठाने की वजह से वह बेहद चिंतित हो रही थी. उस ने बताया कि वह अभी विकास को फोन कर के बताने ही वाली थी.

‘‘अच्छा हुआ जो तू ने विकास को फोन नहीं किया, नाहक ही परेशान होता, बेचारा इतनी दूर बैठा है.’’

‘‘मां, आप को सिर्फ भैया की फिक्र है और मेरा क्या, जो मैं इतनी देर से परेशान हो रही थी आप के लिए. जानती हो, अभी सुमित से कह कर गाड़ी ले के आ जाती आप के पास.’’

मधु ने सुरभि को पूरा किस्सा बताया और यह भी कि कैसे एक अनजान शख्स ने उस की सहायता की. पूरी बात सुन कर सुरभि की जान में जान आई. मुंबई से पूना कोई इतना पास भी नहीं था, अगर चाहती भी तो इतनी जल्दी नहीं पहुंच सकती थी मधु के पास.

‘‘मां, तुम ठीक हो, यही खुशी की बात है. मगर आइंदा इस तरह लापरवाही की, तो मैं भैया को सच में बता दूंगी कि तुम अपना ध्यान नहीं रखती हो.’’

मधु उसे आश्वस्त करती जा रही थी कि वह अब पूरी तरह ठीक है.

एकलौता बेटा बीवीबच्चों के साथ सात समंदर पार जा कर बस गया था और बेटी अपने भरेपूरे ससुराल में खुश थी. मधु अकेली रहते हुए भी बच्चों की यादों से घिरी रहती थी हमेशा. विकास जब नयानया विदेश गया तो हर दूसरे दिन मां से फोन पर बातें कर लेता था, मगर अब महीने में एक बार फोन आता था तो भी मधु इसे गनीमत समझती थी. खुद को ही तसल्ली दे देती कि बच्चे मसरूफ हैं अपनी जिंदगी में.

दिल की बीमारी से उस के पति की जब असमय ही मौत हो गई थी तो कालेज में लाईब्रेरियन की नौकरी उस का सहारा बनी थी. नौकरी के साथ घर और बच्चों को संभालने में ही कब उम्र गुजर गई, वह जान ही न पाई. अब जब बेटेबेटी का संसार बस गया, तो मधु के पास अकेलापन और ढेर सारा वक्त था जो काटे नहीं कटता था. स्टाफ में सब लोग मिलनसार और मददगार थे, सारा दिन किसी तरह किताबों के बीच गुजर जाता था मगर शाम घिरते ही उसे उदासी घेर लेती. कभी उस अकेलेपन से वह घबरा उठती तो फैमिली अलबम के पन्ने टटोल कर उन पुरानी यादों में खो जाती जब पति और बच्चे साथ थे.

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बेटा विकास और बहू मोनिका कनाडा में बस गए थे. उस की 2 बेटियां भी विदेशी परिवेश में पल रही थीं. 2 बार मधु भी उन के पास जा कर रह आई थी. मोनिका और विकास दोनों नौकरी करते थे. दोनों पोतियां विदेशी संस्कृति के रंग में रंगी तेजरफ्तार जिंदगी जीने की शौकीन थीं. उन की अजीबोगरीब पोशाक और रहनसहन देख कर मधु को चिंता होने लगती. आखिर कुछ तो अपने देश के संस्कार सीखें बच्चे, यही सोच कर मधु कुछ समझाने और सिखाने की कोशिश करती, तो दोनों पोतियां उसे ओल्ड फैशन बोल कर तिरस्कार करने लगतीं. उस ने जब बहू और बेटे से शिकायत की तो वे उलटा मधु को ही समझाने लग गए.

‘मां, यह इंडिया नहीं है, यहां तो यही सब चलता है.’

मधु चुप हो गई. घर में बड़ों का फर्ज छोटों को समझाना, उन्हें सहीगलत का भेद बताना होता है, लेकिन, उस की बातों का उपहास उड़ाया जाता था.

बेटाबहू छुट्टी वाले दिन अपने दोस्तों के साथ क्लब या पार्टी में चले जाते. किसी के पास मधु से दो बातें करने की फुरसत नहीं थी.

ठंडे देश के लोग भी ठंडे थे. बाहर गिरती बर्फ को खिड़की से देखती मधु और भी उदास हो जाती. अपने देश की तरह यहां पासपड़ोस का भी सहारा नहीं था, सब साथ रहते हुए भी अकेले थे. उस मशीनी दिनचर्या में मधु का मन न रम पाया और कुछ ही दिनों के भीतर वह अपने देश लौटने को तड़प उठी.

विकास ने उस के बाद कई बार उसे अपने पास बुलाया, मगर मधु जाने को राजी न हुई.

‘न भाई, ऐसी भागदौड़भरी जिंदगी तुम्हें ही मुबारक हो. तुम लोग तो बिजी रहते हो, अपने काम में. मैं क्या करूंगी सारा दिन अकेले. इस से भली मेरी नौकरी है, कम से कम सारा दिन लोगों से बतियाते मन तो बहल जाता है.’

ठीक ही कहती थी उस की सहेली पम्मी कि दूर के ढोल हमेशा सुहाने लगते हैं.

‘कुछ नहीं रखा है, पम्मी, वहां की जिंदगी में हम जैसे बूढ़ों के लिए.’

‘सही गल है मधु, पर तू बड़ा किसनू दस रई है? खुद को कह रही है तो ठीक है, मैं तो अभी जवान ही हूं,’ और दोनों सहेलियां चुहल कर के ठहाके मार कर हंस पड़तीं.

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ब्रेकफास्ट रेसिपी: ओट्स आमलेट

अगर आप सुबह आफिस जाने के लिए लेट हो रहे हैं और आपको जल्दी में स्वादिष्ट और पोषण से भरपूर नाश्ता बनाना है तो आप ओट्स आमलेट ट्राई कर सकते हैं. यह झटपट बन भी जाता है और खाने में भी काफी लाजवाब होता है.

सामग्री

अंडे

जितने अंडे हो उसका एक चौथाई ही ओट्स लें

दूध

चुटकी भर हल्दी

सूखे मसाले

काली मिर्च

तेल या मक्खन अपनी जरूरत के अनुसार

प्याज

गाजर

शिमला मिर्च

हरी मिर्च

धनिया पत्ती

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बनाने की विधि

ओट्स को पीस कर आटा बना लें, इस आटे में हल्दी, नमक, काली मिर्च आदि मसाले एक कटोरे में डाल लें. इसमें थोड़ा दूध डाल कर इसका मिश्रण बना लें.

इस मिश्रण में अब अंडे डालकर अच्छे से फेंट लें. अब इसमें सब्जियां डाल दें.

सभी को अच्छे से मिलाने के बाद मिश्रण को तवा पर डालकर आमलेट बना लें. अब गर्मा गर्म ओट्स आमलेट सर्व करें.

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