अफसोस की बात है कि तार्किकता को तरजीह दे कर सत्ता से सवाल करने वाले छात्रों को देशद्रोही घोषित किया जा रहा है. देखा जाए तो यह देश की सामूहिक बौद्धिकता पर घातक हमला है. ऐसा लगता है छात्रों को सुनियोजित तरीके से उलझा कर शिक्षा का व्यवसायीकरण कर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है.

शेक्सपियर का एक दुखांत नाटक है ‘हैमलेट’, इस का खलनायक कत्ल की ‘करामात’ से कुरसी पर कब्जा जमा लेता है. भय के भंवर और भ्रमजाल में उलझे देश की दुर्दशा पर नाटक का नायक प्रिंस हैमलेट यह कहता है, ‘‘देश के शरीर में जोड़ों की हड्डियां उखड़ी हुई हैं. हर तरफ अव्यवस्था का आलम पसरा हुआहै.’’

धर्म, संप्रदाय, जाति आदि की दीवारों को खड़ा कर आदमी को आदमी से जुदा करने की साजिशों को रचने का इतिहास बहुत पुराना है. हम अपने देश पर नजर डालें तो जो कुछ हमें जोड़ता रहा है उसे धर्म जागरण के नाम पर अब जोरजुल्म से तोड़ा जा रहा है.

‘बांटो और राज करो’ की पुरानी नीति का एक नया संस्करण इस वर्तमान दशक में देखने को मिला है. राज पर पकड़ मजबूत करने वालों ने अब जिस नीति को अपनाया है वह है- कुछ नया बखेड़ा खड़ा करते रहो, नया तमाशा दिखाते रहो और जनता का ध्यान मूल मुद्दे से हटा कर राज करते रहो. इसे ‘ध्यान बांटो और राज करो’ कहा जाता है.

यूनिवर्सिटीज और उन में पढ़ने वाली युवा पीढ़ी को बदनाम कर उन पर प्रहार करने का सिलसिला सत्ता ने खूब जोरशोर से जारी कर रखा है. इंग्लिश की प्रख्यात लेखिका और सोशल ऐक्टिविस्ट अरुंधति राय ने इस खतरे को भांपते हुए एकदो साल पहले ठीक ही कहा था कि वर्तमान सरकार देशवासियों को बौद्धिक कुपोषण यानी इंटैलेक्चुअल मालन्यूट्रिशन का शिकार बनाने की साजिश रच रही है. उच्च शिक्षा केंद्रों में वंचित वर्ग के प्रवेश को रोकने के लिए फीस में बेतहाशा वृद्धि की जा रही है. विद्यार्थियों से तर्कशक्ति छीनने के लिए उन्हें अंधआस्था पर आधारित पाठ्यक्रम परोसा जा रहा है. सोचने की शक्ति पैदा करने के बजाय उन के दिमाग में ऊलजलूल सूचनाएं एक षड्यंत्र के तहत ठूंसी जा रही हैं. शिक्षा का मुख्य मकसद तो दिमाग को सोचने के लिए प्रशिक्षित करना है, न कि पौराणिक तथ्यों को रट कर डिगरी का कबाड़ लेना.

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