दिल्ली के शाहीनबाग की तरह इलाहाबाद के रोशनबाग मे सीएए और एनआरसी के खिलाफ महिलाएं लगातार  सत्याग्रह पर डटी हैं. मंसूर अली पार्क मे चल रहे आन्दोलन की शुरुआत प्रतिदिन जन मन गण के गायन के साथ होती है. फिर लगता है हिन्दुस्तान जिन्दाबाद का नारा. दिन भर लोग आजादी के तरानों के साथ देश की आजादी में बलिदान हुए लोगों का ज़िक्र करते हैं. गांधी जी के पांच मूलमंत्र पर यह आन्दोलन आगे बढ़ रहा है. महिलाएं ये भी कहती हैं कि बोल के लब आजाद हैं तेरे. अपने पल्लू को परचम बना चुकी धरने पर बैठी इन महिलाओं को न्यायपालिका के अलावा सिर्फ प्रधानमंत्री पर भरोसा है कि वो उनकी बात सुन सकते हैं और मान सकते हैं. प्रयागराज में इस समय हर साल संगम किनारे लगने वाला माघ मेला अब समाप्त हो रहा है  और  पांच दिवसीय गंगा यात्रा खत्म हो गई है. इसलिए  उनको शिकायत है कि इस दौरान प्रदेश सरकार के तमाम मंत्री और ओहदेदार लोग इलाहाबाद आयें लेकिन उनकी आवाज सुनने रोशनबाग कोई नही आया. धरने में शामिल महिलाओं को जितनी आपत्ति सीएए और एनआरसी से है,उससे ज्यादा हैरानी इस बात पर भी  है कि उनकी बात सुनने के लिए कोई नहीं आ रहा है. कालेज की छात्रा परवीन रुंधे गले से बोलीं,आख़िर क्या ये हमारे नुमाइंदे नहीं हैं, जो वो हम लोगों के लिए ऐसी बात कह रहे हैं. रैली करके लोगों को समझा रहे हैं लेकिन हमारे पास आने का भी तो वक्त निकाल सकते हैं. आंदोलन के समर्थन में जुटी महिलाओं के साथ आए पुरुषों ने पतली रस्सी से बनी बैरिकेडिंग के बाहर डेरा डाल रखा है.

पुरुषों को वहां आने की इजाज़त नहीं है. लेकिन बाहर से उन्हें समर्थन देने आए लोगों को इस नियम में ढील देदी जाती  है. धरने में शामिल तमाम महिलाओं के साथ उनके छोटे बच्चे भी हैं, बच्चों को वहां लाने की बड़ी उचित वजह भी इन महिलाओ के पास है. वह कहती हैं कि बच्चों को हम कहां छोड़कर आएं? और फिर क्यों छोड़कर आएं? आखिर हम लोग इन्हीं बच्चों के भविष्य के लिए ही तो रात-दिन धरने पर बैठे हैं. सत्याग्रह मे घरेलू महिलाओं के अलावा छात्राएं भी यहां काफी संख्या में हैं.

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धरने के दौरा एक खास बात देखने को मिली कि रोशनबाग की महिलाओं ने दिल्ली के शाहीनबाग और जामिया मे फायरिगं करने वाले दोनों युवकों की तस्वीर भी लगा रखी थी.लेकिन उस पर लिखा था कि भाईयों अल्लाह तुमको बुरी संगत से बचाये, महिलाओं ने कहा कि ये उनलोगों के लिए संदेश है जो इस शांतिप्रिय आंदोलन को बदनाम कर धार्मिक रूप देना चाह रहे हैं.वह गर्व से भारत माता की जयकार कर के कहती हैं कि हमारी पूजा की प्रक्रिया अलग जरूर है लेकिन हम एक हैं और एक रहेगें.आन्दोलन को दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता,वैज्ञानिक,शायर गौहर रजा ने आनदोलनरत महिलाओं व नौजवानों को सम्बोधित करते हुए धैर्य एवं शांतिपूर्वक गांधी जी के पांच मंत्र उपहास, उपेक्षा, तिरिस्कार,दमन को बर्दाश्त करते हुए सम्मान से आगे बढ़ने की बात कही. कहा गांधी जी की वाणी थी के अगर सम्मान तक पहुंचना है तो उपहास और उपेक्षा को नजर अन्दाज करो तिरिस्कार और दबाव के चंगुल से निकलो तो सम्मान तुमहारे कदम चूमेगा.जब से शाहीन बाग का आन्दोलन शुरु हुआ तब से यही हो रहा पहले उपहास उड़ाया गया की यह बिल तो संसद से पास हो गया अब क्या करोगे. उसके बाद उपेक्षा की बारी आई .कहा गया उन्की परवाह न करो हमारे पास धनबल,जनबल की शक्ति है.फिर तिरिस्कार किया गया की यह सब बागी हैं ,गालियां दी गईं. लेकिन हमे विचलित होने की जरुरत नहीं. फिर आई दबाव बनाने के बारी. हमारे आन्दोलन को क्रश करने के लिए पावर  से दमन किया जाने लगा है. लेकिन हमारे हक की लड़ाई अब अन्तिम दौर में पहुंच चुकी है. अब हमे गांधी जी का पांचवां मंत्र सम्मान मिलने वाला है. इसके लिए हमें धैर्य और संयम से अपनी लड़ाई को अहिंसात्मक तरीके से आगे बढ़ाना होगा. हमें कामयाबी ज़रुर मिलेगी.तेईसवें दिन भी लगातार लोगों का आना जारी रहा तमाम सामाजिक कार्यकर्ता ,राजनितिक दलों के लोग, बुद्धिजिवियों ने भी एनपीआर एनआरसी और सीएए के खिलाफ आवाज बुलन्द की. धरने में पहले दिन से सबीहा मोहानी,सायरा अहमद डटी हुई हैं. सनद रहे कि प्राइवेट नौकरी करने वाली सायरा अहमद ने ही इस धरने की शुरुआत केवल दस महिलाओं को साथ ले कर की थी. वह बताती है कि धरने को मजबूत करने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी अब छोड़ दी है.उनके तरह की ऐसी कई लड़कियां और महिलाएं हैं जो अब अपने काम या कालेज नहीं जा रही हैं. मोहम्मद असरकारी बताते हैं कि वह रोज अपनी दुकान नहीं जाते हैं. तीन दिन में कुछ घंटों के लिए ही दुकान जा पाते हैं. ये कहने की जरूरत नहीं कि इस धरने को मंजिल तक पहुंचाने के लिए लोग अपना आर्थिक नुकसान भी कर रहें हैं. असकरी कहते हैं कि उनके जैसे तमाम लोग ऐसे ही समय निकाल कर अपना सहयोग दें रहें हैं. रोशन बाग इलाहाबाद शहर का पुराना इलाका है और नये शहर के लोग इसे मुस्लिम इलाके के नाम से पहचानते हैं. बल्कि ये शहर के सस्ते बाजार के रूप में भी जाना जाता है. कपड़े से लेकर यहां हर तरह की जरूरत का सामान शहर के दूसरे इलाकों से कम कीमत पर मिल जाता है. मंसूर पार्क में जब भी किसी तरह की अफवाह फैलती है या हलचल बढ़ जाती है यहां के शटर भी गिर जाते हैं.यानी आर्थिक नुकसान की कीमत पर भी धरना जारी है. अलबत्ता पार्क के आसपास की खाने पीने की दुकानों की आमदनी बढ़ गई है. लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि वह भी किसी न किसी रूप में अपना सहयोग दे रहें हैं. फिलहाल महिलाएं धरने को समाप्त करने के मूड में नहीं है.

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