प्यार नहीं वासना : भाग 1

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कविन ने कविता का निखरानिखरा रूप देखा तो बोला, ‘‘भाभी, आज तो आप अप्सरा सी सुंदर लग रही हो. काश! आप जैसी सुंदर बीवी होती तो मैं ताउम्र के लिए दिल में छिपा लेता. लगता है कुलदीप भैया को आप के बजाए अपनी नौकरी से ज्यादा प्यार है.’’

‘‘सही कह रहे हो. बताओ, ऐसे में मैं क्या करूं?’’ कविता आह भर कर बोली.

इस के बाद कविन ने बिना देर किए कविता को बांहों में भर लिया. कविता बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली, ‘‘ये क्या कर रहे हो. मैं तुम्हारी...’’

इस के आगे कविन ने कविता के मुंह से शब्द नहीं निकलने दिए. वह उस के होंठों को चूमते हुए बोला, ‘‘तुम आज से मेरी गर्लफ्रेंड हो, मेरी प्रेमिका हो और कोई रिश्ता नहीं है हम दोनों का. मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार दूंगा. तुम्हें हर खुशी दूंगा. बस, तुम मान जाओ.’’

कविता के बदन को कविन ने छुआ तो उस के तनबदन में आग सी लग गई. इस के बाद घर का दरवाजा बंद कर के दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. दोनों के बीच एक बार अवैध संबंध बने तो मौका मिलने पर दोनों यह खेल खेलने लगे.

कहते हैं कि गलत काम को ज्यादा दिनों तक छिपा कर नहीं रखा जा सकता. एक न एक दिन वह सामने आ ही जाता है. कुलदीप अपनी ड्यूटी पर था. उसे नहीं पता था कि उस की बीवी ने उस के चचेरे भाई को अपना सब कुछ मान लिया है.

कविन ने कविता को एक मोबाइल भी खरीद कर के दे दिया था. इस मोबाइल से कविता उस समय कविन से बातें करती थी, जब उस के सासससुर घर में नहीं होते थे. वह फोन कर के कविन को घर बुला लेती थी.

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