सरकार व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, टिकटौक जैसे औनलाइन डिजिटल प्लेटफौर्मों के पीछे पड़ी है कि उन पर डाली गई सामग्री का सोर्स पता चल जाए और अगर कोई गलत सामग्री हो, तो पोस्ट करने वाले को पकड़ा जा सके. यह तो साफ है कि डिजिटल पोस्ट प्लैटफौर्म युवाओं को अपनी बात कहने और अपनी कला दिखाने का अद्भुत मौका दे रहे हैं. अब तक मजमा जमा करना, महंगे इक्विपमैंट से वीडियो बनाना और किसी भी तरह जानेअनजाने लोगों को दिखाना या उन से कुछ कहना संभव नहीं था. चाय की दुकान पर 5-7 लोगों को दिखाने या बताने में क्या मजा है?
ऐसे प्लेटफौर्मों पर लोगों ने खुल कर कहना और दिखाना शुरू किया है. अगर गालियों, पौर्न की भरमार है तो नाच, चुटकुलों, नाटकों, अभिनय की भी. इन पर बंदिशें लगाने के पीछे सरकार का मतलब एक ही है. कोई बात जो सरकार के खिलाफ हो उसे कहने वाले को पकड़ा जा सके. किसी भी सरकारविरोधी बात को आतंक या देश की अखंडता के खिलाफ करार देना सरकार का बाएं हाथ का खेल है. एक बार मामला दर्ज हुआ नहीं कि कहनेकरने वाले को दिनों नहीं, सालों जेल में बंद करना बाएं हाथ का खेल है. पी चिदंबरम को 3 महीने तक बंद कर रखा गया बिना किसी ठोस आरोप के. शक के चलते सरकार किसी को भी बंद कर सकती है. यदि ये प्लेटफौर्म बंद हो गए तो देश एक बड़ी डिक्टेटरशिप में बदल जाएगा.
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सदियों तक राजाओं और धर्माधीशों ने अपने खिलाफ झूठ तो क्या, सच बोलने वालों तक का मुंह बंद कराया है ताकि वे खुद अपने पक्ष में झूठ का प्रचार पर प्रचार कर सकें. हर सरकार चाहती है कि उस की जयजयकार होती रहे. कोई सरकार नहीं चाहती कि सड़कों पर बने गड्ढे दिखाए जाएं, पुलिस वालों की पिटाई दिखाई जाए, भूखेनंगे बच्चे दिखाए जाएं, सरकारी आदमी रिश्वत लेते दिखाए जाएं, सरकारी ढहते मकान दिखाए जाएं. धर्माधीश नहीं चाहते कि उन की बलात्कार की करतूतें दिखाई या छापी जाएं. वे नहीं चाहते कि उन की अपार संपत्ति के बारे में आमजन को बताया जाए.
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