Surrogacy : संतानहीन दंपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में सरोगेसी प्रक्रिया बेहतर विकल्प है. लेकिन देश का सरोगेसी कानून कोख पर पहरा जैसा है. इस के कई बिंदुओं में सुधार किए जाने की बात देश का सर्वोत्तम न्यायालय भी कह रहा है.

समाज में अपनी कोख की संतान का बहुत महत्त्व होता है. जिन औरतों की कोख से संतान नहीं होती उन को समाज ‘बांझ’ कहता है. कुरीतियां तो यहां तक हैं कि सुबहसुबह बांझ औरत का मुंह देखना भी अशुभ माना जाता है. पितृसत्तात्मक समाज में ‘बांझ’ औरत को केवल ‘अधूरी औरत’ ही नहीं कहा जाता बल्कि तमाम शुभ और सामाजिक माने जाने वाले कामों से उस को दूर भी रखा जाता है.

ऊपरी तौर पर आज इस में सुधार दिखता है. जैसे ‘बांझ’ की जगह पर अब ‘नि:संतान’ शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है. इस के बाद भी बांझ औरत के प्रति सामाजिक भेदभाव बना हुआ है. समाज ही नहीं, पति की नजरों में भी बांझ पत्नी के प्रति बदलाव आ जाता है. कई बार पति और उस का परिवार संतान न होने पर डाक्टर से इलाज कराने की जगह पर दूसरी शादी करना सही समझते हैं. असल में पौराणिक कहानियों में कई ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं जहां एक राजा की संतान न होने पर वह दूसरीतीसरी शादियां कर लेता था.

महाभारत और रामायण में इस तरह की कथाएं भरी पड़ी हैं. रामायण और महाभारत के दौर में सरोगेसी जैसे उपाय नहीं थे. अपनी संतान के लिए दूसरे तमाम उपाय किए जाते थे. अपनी संतान के प्रति मातापिता का अलग ही मोह होता है. कानून की बात करें तो वही संतान असल माने में उत्तराधिकारी होती है जो अपनी हो. किसी दूसरे की संतान या गोद लिए बच्चे को तभी उत्तराधिकारी माना जा सकता है जब उसे कानूनी रूप से उत्तराधिकारी घोषित किया जाए.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...