‘‘गुरुजी की बात सुन कर मैं बैठ गई.
‘‘गुरुजी बोले, ‘साध्वीजी, आश्रम में दुखियारी स्त्रियों के लिए जो भवन बनने वाला था, उस के बारे में तो आप को बताया था.’
‘‘‘देखो, आप के कदम हमारे आश्रम के लिए कितने लाभकारी हैं. ये
2 परोपकारी मनुष्य सहयोग करने को तैयार हैं.’
‘‘‘अरे वाह, गुरुदेव,’ मैं ने खुशी जाहिर की.
‘‘‘अब, आप लोग आपस में बात कर लो. क्योंकि इस प्रोजैक्ट की पूरी जिम्मेदारी मैं आप को देना चाहता हूं, साध्वीजी,’ गुरुजी ने गेंद मेरे पाले में डाल दी.
‘‘‘क्या बात कह रहे हैं आप गुरुजी? मुझ में कहां इतनी काबिलीयत है?’ मैं ने दिल की सचाई को बयान कर दिया.
‘‘‘आप तो कमाल की हैं. हम से पूछिए अपनी काबिलीयत दूसरा आदमी बोला.’
‘‘‘आप चुप रहें, लालजी, हम बात कर रहे हैं न,’ गुरुजी ने उसे चुप कराया.
‘‘‘साध्वी सौंदर्या, यह तो एक शुरुआत है. बहुत जल्द पूरे आश्रम की जिम्मेदारी मैं आप को देना चाहता हूं.’
‘‘मैं तो भावविभोर हो गई, ‘गुरुजी, शब्द नहीं हैं मेरे पास आप का आभार व्यक्त करने के लिए, मेरे जीवन को एक दिशा देने के लिए.’
‘‘‘परंतु उस के लिए आप को…’ उन दो में से एक व्यक्ति बोला तो गुरुजी ने ‘चुप रह रामदास’ कह कर उसे चुप करा दिया, फिर मेरी तरफ मुखातिब हुए, ‘साध्वीजी को पता है सामाजिक उत्थान के लिए यदि थोड़ा व्यक्तिगत नुकसान भी उठाना पड़े तो उस में कोई बुराई नहीं है.’
‘‘‘जी, मैं मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटती.’ मैं उत्साहित हो गई थी.
‘‘‘अरेअरे, आप को मेहनत कौन करने देगा? मेहनत तो हम कर लेंगे. आप तो बस…’ एक व्यक्ति बोला तो गुरुजी ने कहा, ‘चुप रह भगत, मैं बात कर रहा हूं न.’
‘‘मेरे अंदर संशय का नाग फन उठा चुका था, परंतु मेरी अंधश्रद्घा ने उसे कुचल दिया.
‘‘‘आप को कुछ नहीं करना, साध्वीजी. बस, जगत कल्याण का कार्य करना है,’ गुरुजी के शब्द थे.
‘‘‘जी,’ मैं ने धीरे से कहा, तो फिर उन्होंने इशारा किया, ‘आप को तो पता ही है, पुराने समय में देवदासी होती थीं. वे होती तो भगवान की ब्याहता थीं, परंतु जगतकल्याण के लिए ईश्वर के सभी भक्तों को सुख प्रदान करती थीं.’
‘‘‘जी, क्या?’ मैं कांप गई थी.
‘‘‘जी, बस, वही सुख आप को मुझे तथा परमपिता के भक्तों को प्रदान करना है.’
‘‘‘आप पागल हो गए हो क्या?’ क्रोधित हो कर मैं बोली.
‘‘गुरुजी थोड़ा नाराजगी के साथ बोले, ‘आप शब्दों का चुनाव सोचसमझ कर करें तो सही रहेगा. और वैसे भी, दुखीजनों के कल्याण से पुण्य ही मिलेगा. और आप की भी दबी हुई कामनाओं को…आखिर उम्र ही क्या है आप की?’
‘‘‘केवल 38 साल’ एक भक्त बोला.
‘‘‘गुरुजी, नहीं…नहीं,’ मैं सिसकते हुए बोली.
‘‘भक्त जब अपने भगवान का घिनौना रूप देख ले तो उस के जीने की रहीसही इच्छा भी दम तोड़ देती है. कई बार छली गई थी मैं, परंतु आज मैं टूट गई थी. मेरे आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. रोती हुई मैं आगे बोली, ‘मैं तो आप की पूजा करती थी, गुरुजी.’
‘‘‘मेरा प्रेम तो आप के साथ रहेगा ही, उस प्रेम को भी तो पूर्णरूप देना अभी बाकी है.’
‘‘आप जाइए, सोच लीजिए. आप के पास 2 दिनों का समय है,’ गुरुजी के शब्द थे.
‘‘मुझे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. भाग कर जाती भी तो कहां, कोई दरवाजा मेरे लिए नहीं खुला था. किसी को मेरा इंतजार नहीं था. उस समय ही मैं ने आत्महत्या के विकल्प के बारे में सोचा. जहर खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. नस काटने के लिए चाकू लाना होगा. साड़ी से फंदा लगा कर मरना ही मुझे सही लग रहा था. साड़ी तो मैं ने पहनी हुई थी, बस, उस का फंदा लगाना था. चादर का भी इस्तेमाल कर सकती थी. फंदा लगाने के लिए मैं ऊपर कील ढूंढ़ने लगी थी. परंतु तभी एक आवाज ने मेरे विचारों की शृंखला को तोड़ दिया.
‘‘‘कोई कील नहीं है इस कमरे में, पंखा भी नहीं है.’
‘‘मेरे सामने एक 15-16 साल की सुंदर लड़की थी. ऐसा लगा जैसे रजनी खड़ी हो. मां का दिल ऐसा ही होता है, चाह कर भी अपनी संतान से नफरत नहीं कर पाती. मैं ने उस से पूछा, ‘तुम, तुम्हें कैसे पता…?’
‘‘‘शुरुआत में सभी ऐसा करने की सोचते हैं. देखती नहीं, कमरे में एसी लगा हुआ है, पंखा नहीं है. बहुत जल्द कैमरा भी लग जाएगा. वैसे, कैमरा नहीं है तो क्या? नम्रता मैडम की आंखें उस से कम हैं क्या?’ वह लड़की बोली तो मैं ने कहा, ‘बेटा, तुम यहां कब…’ मेरा वाक्य खत्म होने से पहले वह बोल पड़ी,‘चुप कर, खबरदार, जो मुझे बेटा कहा. इस शब्द से छली गई हूं मैं. तू राधा मैडम बोलेगी मुझे, समझी.’
‘‘‘क्या?’ मैं हैरान रह गई.
‘‘मुझे डांटती हुई सी वह आगे बोली, ‘सीनियर की रिस्पैक्ट करना नहीं सीखा क्या? उम्र में भले ही तू मुझ से बड़ी होगी, पर इस लाइन में मैं तेरी सीनियर हूं. पढ़ीलिखी नहीं है क्या तू? सीनियर का मतलब तो पता होगा?’
‘‘ऐसे समय में भी अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी मैं. ‘आप काफी पढ़ीलिखी लगती हैं, राधा मैडम?’ अपनी हंसी दबाते हुए मैं ने उस से पूछा था.
‘‘‘किताब नहीं मैडम, मैं ने जिंदगी पढ़ी है. तुम्हें भी तैयार कर दूंगी,’ वह बोली.
‘‘‘यहां, यह सब. मेरा मतलब है…’ मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह बोली, ‘यहां जितनी साध्वियां दिख रहीं, वे सब…’ उस ने अपनी बात जारी रखी, ‘तेरे साथ एक नई लड़की भी आई है. नम्रता दीदी उसे ले कर आती होंगी. देखा तो है उसे तूने. क्या नाम है उस का? हां, गुडि़या, यही है उस का नाम.’
‘‘‘पर वह तो बहुत छोटी है,’ मैं ने चिंता प्रकट की.
‘‘‘छोटी, इस काम में क्या छोटी, क्या बड़ी? अब खुद को ही देख लें,’ राधा बोली थी.
‘‘‘सिर्फ 7 साल की है वह,’ मैं ने कहा था.
‘‘‘मैं 10 साल की थी जब इस लाइन में आई थी,’ राधा के शब्द थे.
‘‘सचमुच, उम्र में बड़ी होते हुए भी मैं उस के सामने कितनी छोटी थी, मैं सोच रही थी.
‘‘‘देख, तेरा नाम क्या है?’ राधा ने पूछा तो मैं ने कहा, सौंदर्या.
‘‘‘अरे वाह, मांबाप ने नाम बड़ा चुन कर रखा,’ राधा ने अपनी सोच प्रकट की.
‘‘मैं कुछ न बोली.’’
‘‘‘देखो, ऐसा है, कुछ लोगों को तेरी जैसी अनुभवी औरतें पसंद आती हैं तो कुछ को हमारे जैसी. वहीं, कुछ लोगों को गुडि़या की उम्र की लड़कियां चाहिए होती हैं. डिमांड और सप्लाई का खेल है.’ उस ने बताया.
‘‘‘ढोंगी हैं ये सारे?’ मैं ने घृणा भरे लहजे में कहा.
‘‘‘सही कहा. चल सो जा, वरना नम्रता दीदी आ जाएंगी,’ राधा बोली थी.
‘‘‘वे कौन हैं?’ मैं ने जानना चाहा.
‘‘‘इन सब से भी बढ़ कर,’ राधा ने कह कर ठहाका लगाया.’
‘‘राधा चली गई थी. वह मेरी बगल में सो रही थी. पता नहीं, कब मेरे आंसू बहने लगे. क्या हुआ मौसी? कहीं चोट लगी है? दर्द हो रहा है?’
‘‘अब क्या बताऊं उस मासूम को? कैसे दिखाऊं उसे अपनी चोट? खुद ही रिश्ता जोड़ लिया था उस ने. मौसी, …मां सी… मेरा अपना बचपन कौंध गया था मेरे सामने. ‘नहीं, गुडि़या को मैं एक और सौंदर्या या राधा नहीं बनने दूंगी.’ मेरे लक्ष्यविहीन जीवन को एक लक्ष्य मिल गया था.
‘‘अपने अंदर आए इस बदलाव से मैं खुद ही आश्चर्यचकित थी. अगले दिन मैं खुद उस पाखंडी के पास गई थी.
‘‘‘जयजय गुरुजी.’
‘‘‘साध्वी सौंदर्या, आइए,आइए. जयजय.’
‘तो क्या सोचा आप ने?’
‘‘‘कुछ सोचने लायक कहां छोड़ा आप ने?’
‘‘जी?’
‘‘‘गुरुजी, आज तक मैं अपने सौंदर्य को अपना शत्रु मानती थी. परंतु आप की कृपा से मैं यह जान पाई हूं कि इस का इस्तेमाल कर के मैं कितना कुछ प्राप्त कर सकती हूं. इसी की माया है कि आप जैसा पुरुष भी मेरा दास बनने को तैयार है. कहिए गुरुजी, कुछ गलत कहा मैं ने.’
‘‘‘बिलकुल भी नहीं.’
‘‘‘मैं इस कार्य के लिए सहमत हूं, परंतु आप से एक विनती है?’
‘‘‘तुम तो हुक्म करो.’
‘‘‘मुझे आप अभी अपनी सेवा में ही रहने दें.’
‘‘‘देखो, वैसे तो भगत तुम्हें बहुत पसंद करता है परंतु…अच्छा, परसों समागम का आयोजन किया गया है. उस के बाद बात करते हैं.’
‘‘‘ठीक है.’
‘‘उस ढोंगी से अनुमति मिल चुकी थी. अब मुझे सिर्फ एक काम करना था, वह भी उस के चाटुकारों की फौज से छिप कर. इस काम में मेरी मदद की सुषमा ने. सुषमा एक इलैक्ट्रौनिक इंजीनियर थी. अंधविश्वास और अंधश्रद्घा एक मनुष्य का कितना पतन कर सकती है, इस का वह जीताजागता उदाहरण थी. एक बड़ी कंपनी में काम करने वाली सुषमा आज इस कामी के पिंजरे में बंद थी.
‘‘समागम का जम कर प्रचार हुआ था. वैसे भी इस देश में धर्र्म के नाम पर तो पैसे लुटाने के लिए लोग तत्पर रहते ही हैं. परंतु एक गरीब को उस के हक का पैसा भी देने में लोग सौ तरह के बहाने करते हैं. पंक्तियों के हिसाब से बैठने का रेट निर्धारित था. प्रथम पंक्ति वीआईपी लोगों की थी. जिस देश में भगवान के दर्शन में भी मुद्रा की माया चलती है, उस देश में भगवान के इन तथाकथित मैनेजरों के दर्शन आप मुफ्त में कैसे पा सकते हैं. ईश्वर से संवाद तो आखिर यही बेचारे करते हैं.
‘‘प्रथम पंक्ति में कुछ खास लोगों तथा पत्रकारों को मुफ्त पास दिए गए थे. बाकी जो लोग उस पंक्ति में बैठना चाहते थे उन्हें 15 हजार रुपए देने पड़े थे. इसी प्रकार हर पंक्ति का अपना रेट फिक्स था. जो बेचारे मूल्य चुका नहीं सकते थे, परंतु गुरुजी को सुनने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे थे, वे आसपास के पेड़ों पर टंगे हुए थे.
‘‘नियत समय पर लोगों का आना शुरू हो गया. सुधाकर और नम्रता उन लोगों को समझा रहे थे जिन्हें गुरुजी भीड़ में से बीचबीच में उठाने वाले थे. उन्हें बस यही कहना था कि गुरुजी के उन के जीवन में आने से उन की जिंदगी में कितना सुधार हुआ है. किसी को नौकरी मिल गई थी, किसी के बच्चे की बीमारी ठीक हो गई थी. आखिर प्रोडक्ट का प्रचार भी तो करना होता है.
‘‘गुरुजी का समागम में आने का समय 12 बजे का था, उस के पहले उन्होंने राधा को बुलाया था. वह ढोंगी एक टोटके को मानता था. उस का मानना था कि समागम के पहले अगर वह किसी लड़की के साथ संबंध बनाएगा तो उस का वह आयोजन काफी सफल होगा.
‘‘‘गुरुजी’ राधा पहुंच गई थी.
‘‘‘आ गई. चल, कपड़े उतार और लेट जा. क्या हुआ, खड़ी क्यों है,’ गुरुजी बोले.
‘‘‘गुरुजी वह…मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मेरा महीना…’ राधा बनावटीपन में कह रही थी.
‘‘‘क्या आज पहली बार कर रहा हूं, चल.’’
‘‘दर्द हो…’’
‘‘नाटक कर रही है. उतार साड़ी…’
‘‘‘नहीं उतारूंगी,’ राधा अब दहाड़ी थी.’
‘‘‘तेरी इतनी हिम्मत, भूल गई, पहली बार तेरा क्या हाल किया था. 10 दिनों तक उठ नहीं पाई थी.’
‘‘‘याद है भेडि़ए, सब याद है. पर अब तेरा खेल खत्म. अब किसी और लड़की को तू छू भी नहीं पाएगा?’
‘‘राधा ने यह कहा तो गुरुजी के भेष में वह घिनौना अपराधी जवाब में बोला, ‘‘‘अच्छा, कैसे भला, कौन बचाएगा उन्हें?’
‘‘‘मैं, दरवाजे पर मुझे देख कर वह ढोंगी चौंक गया.’
‘‘‘तू, वह मक्कारी का ठहाका लगा रहा था.’’
‘‘‘हां, मैं और ये सब लोग…’
‘‘उस कमीने और चाटुकारों की उस की फौज को पता ही नहीं चला था. एक रात पहले सुषमा ने समागम के लिए आए कैमरों में से 2 कैमरे गुरुजी के कमरे में लगा दिए थे. और अंदर का सारा नाटक, बाहर बैठे उस के भक्तगण देख चुके थे. और फिर उस भीड़ ने वही किया जिस की उम्मीद थी.
‘‘गुरुजी के प्राणपखेरु भीड़ की पिटाई से उड़ गए थे. सभी चाटुकारों तथा गुरुजी के सभी ग्राहकों के खिलाफ आश्रम की हर स्त्री ने गवाही दी थी.
‘‘जिंदगी ने मुझे सिखा दिया है, मेरी सुंदरता कभी भी मेरी दुश्मन नहीं थी. अगर कोई मुझे गलत नजर से देखता था, तो दोष उस की नजर का था. खुद से प्रेम करना हम सभी सीख गए हैं.
‘‘अब हम से कोई भी साध्वी नहीं है. सब अपनी इच्छानुसार चुने हुए क्षेत्रों में कार्यरत हैं. हमारा कोई आश्रम नहीं है. एक कारवां है हम सब पथिकों का जो एक ही राह के राही हैं. मेरी इस पुस्तक में इन सभी पथिकों के संघर्ष की कहानियां हैं.
‘‘मेरा और मेरी सखियों का सफर अभी समाप्त नहीं हुआ है, न कभी होगा. कई नए साथी आएंगे, कई पुराने हंसते हुए हम से विदा हो जाएंगे परंतु यह कारवां बढ़ता ही जाएगा, चलता ही जाएगा.
‘‘अपनी और अपने कारवां की सखियों की सभी कहानियों का निचोड़ इन पंक्तियों द्वारा व्यक्त कर रही हूं-
‘‘चले थे इस पथ पर खुशियों को खोजते
मगर इस तलाश में खुद को ही खो दिया
स्वयं को खो कर, ढूंढ़ना था मुश्किल
चल पड़े हैं यारो, शायद रस्ते में मिल जाएं.’?’