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Hindi Story : क्षणिक प्‍यार की बोली

सौरभ दफ्तर के काम में बिजी था कि अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी. मोबाइल की स्क्रीन पर कावेरी का नाम देख कर उस का दिल खुशी से उछल पड़ा.

कावेरी सौरभ की प्रेमिका थी. उस ने मोबाइल फोन पर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से कावेरी की आवाज आई, ‘तुम्हारा प्यार पाने के लिए मेरा मन आज बहुत बेकरार है. जल्दी से घर आ जाओ.’

‘‘तुम्हारा पति घर पर नहीं है क्या?’’ सौरभ ने पूछा.

‘नही,’ उधर से आवाज आई.

‘‘वह आज दफ्तर नहीं आया, तो मुझे लगा कि वह छुट्टी ले कर तुम्हारे साथ मौजमस्ती कर रहा है,’’ सौरभ मुसकराते हुए बोला.

‘ऐसी बात नहीं है. वह कुछ जरूरी काम से अपने एक रिश्तेदार के घर आसनसोल गया है. रात के 10 बजे से पहले लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए मैं तुम्हें बुला रही हूं. तनमन की प्यास बुझाने के लिए हमारे पास अच्छा मौका है. जल्दी से यहां आ जाओ.’

‘‘मैं शाम के साढ़े 4 बजे तक जरूर आ जाऊंगा. जिस तरह तुम मेरा प्यार पाने के लिए हर समय बेकरार रहती हो, उसी तरह मैं भी तुम्हारा प्यार पाने के लिए बेकरार रहता हूं.

‘‘तुम्हारे साथ मुझे जो खुशी मिलती है, वैसी खुशी अपनी पत्नी से भी नहीं मिलती है. हमबिस्तरी के समय वह एक लाश की तरह चुपचाप पड़ी रहती है, जबकि तुम प्यार के हर लमहे में खरगोश की तरह कुलांचें मारती हो. तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूं.’’

थोड़ी देर तक कुछ और बातें करने के बाद सौरभ ने मोबाइल फोन काट दिया और अपने काम में लग गया.

4 बजे तक उस ने अपना काम निबटा लिया और दफ्तर से निकल गया.

सौरभ कावेरी के घर पहुंचा. उस समय शाम के साढ़े 4 बज गए थे. कावेरी उस का इंतजार कर रही थी.

जैसे ही सौरभ ने दरवाजे की घंटी बजाई, कावेरी ने झट से दरवाजा खोल दिया. मानो वह पहले से ही दरवाजे पर खड़ी हो.

वे दोनों वासना की आग से इस तरह झुलस रहे थे कि फ्लैट का मेन दरवाजा बंद करना भूल गए और झट से बैडरूम में चले गए.

कावेरी को बिस्तर पर लिटा कर सौरभ ने उस के होंठों को चूमा, तो वह भी बेकरार हो गई और सौरभ के बदन से मनमानी करने लगी.

जल्दी ही उन दोनों ने अपने सारे कपड़े उतारे और धीरेधीरे हवस की मंजिल की तरफ बढ़ते चले गए.

अभी वे दोनों मंजिल पर पहुंच भी नहीं पाए थे कि किसी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

वे दोनों घबरा गए और झट से एकदूसरे से अलग हो गए.

सौरभ ने दरवाजे की तरफ देखा, तो बौखला गया. दरवाजे पर कावेरी का पति जयदेव खड़ा था. उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.

उन दोनों को इस बात का एहसास हुआ कि उन्होंने मेन दरवाजा बंद नहीं किया था.

कावेरी ने झट से पलंग के किनारे रखे अपने कपड़े उठा लिए. सौरभ ने भी अपने कपड़े उठाए, मगर जयदेव ने उन्हें पहनने नहीं दिया.

जयदेव उन को गंदीगंदी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं चुप रहने वालों में से नहीं हूं. अभी मैं आसपड़ोस के लोगों को बुलाता हूं.’’

कावेरी ने जयदेव के पैर पकड़ लिए. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए. अब ऐसी गलती कभी नहीं करूंगी.’’

‘‘मैं तुम्हें हरगिज माफ नहीं कर सकता. तुम तो कहती थीं कि मैं कभी किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने नहीं दूंगी. फिर अभी सौरभ के साथ क्या कर रही थीं?’’

कावेरी कुछ कहती, उस से पहले जयदेव ने सौरभ से कहा, ‘‘तुम तो अपनेआप को मेरा अच्छा दोस्त बताते थे. यही है तुम्हारी दोस्ती? दोस्त की पत्नी के साथ रंगरलियां मनाते हो और दोस्ती का दम भरते हो. मैं तुम्हें भी कभी माफ नहीं करूंगा.

‘‘फोन कर के मैं तुम्हारी पत्नी को बुलाता हूं. उसे भी तो पता चले कि उस का पति कितना घटिया है. दूसरे की पत्नी के साथ हमबिस्तरी करता है.’’

‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरी पत्नी को कावेरी के बारे में पता चल जाएगा, तो वह मुझे छोड़ कर चली जाएगी.

‘‘मैं कसम खाता हूं कि अब कभी कावेरी से संबंध नहीं बनाऊंगा,’’ सौरभ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सौरभ के गिड़गिडाने का जयदेव पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम दोनों को कभी माफ नहीं कर सकता. तुम दोनों की करतूत जगजाहिर करने के बाद आज ही कावेरी को घर से निकाल दूंगा. उस के बाद तुम्हारी जो मरजी हो, वह करना. कावेरी से संबंध रखना या न रखना, उस से मुझे कोई लेनादेना नहीं.’’

जयदेव चुप हो गया, तो कावेरी फिर गिड़गिड़ा कर उस से माफी मांगने लगी. सौरभ ने भी ऐसा ही किया. जयदेव के पैर पकड़ कर उस से माफी मांगते हुए कहा कि अगर वह उसे माफ नहीं करेगा, तो उस के पास खुदकुशी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाएगा, क्योंकि वह अपनी पत्नी की नजरों में गिर कर नहीं जी पाएगा.

आखिरकार जयदेव पिघल गया. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम्हें माफ तो नहीं कर सकता, मगर जबान बंद रखने के लिए तुम्हें 3 लाख रुपए देने होंगे.’’

‘‘3 लाख रुपए…’’ यह सुन कर सौरभ की घिग्घी बंध गई. उस का सिर भी घूमने लगा.

बात यह थी कि सौरभ की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह जयदेव को 3 लाख रुपए दे सके. उसे जितनी तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा तो चल जाता था, मगर बचत नहीं हो पाती थी.

सौरभ ने अपनी माली हालत के बारे में जयदेव को बताया, मगर वह नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी माली हालत से मुझे कुछ लेनादेना नहीं है. अगर तुम मेरा मुंह बंद रखना चाहते हो, तो रुपए देने ही होंगे.’’

सौरभ को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस मुसीबत से कैसे निबटे?

सौरभ को चिंता में पड़ा देख कावेरी उस के पास आ कर बोली, ‘‘तुम इतना सोच क्यों रहे हो? रुपए बचाने की सोचोगे, तो हमारी इज्जत चली जाएगी. लोग हमारी असलियत जान जाएंगे.

‘‘तुम खुद सोचो कि अगर तुम्हारी पत्नी को सबकुछ मालूम हो जाएगा, तो क्या वह तुम्हें माफ कर पाएगी?

‘‘वह तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी, तो तुम्हारी जिंदगी क्या बरबाद नहीं हो जाएगी? मेरी तो कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी तो औलाद है, वह भी बेटी. अभी उस की उम्र भले ही 6 साल है, मगर बड़ी होने के बाद जब उसे तुम्हारी सचाई का पता चलेगा, तो सोचो कि उस के दिल पर क्या गुजरेगी. तुम से वह इतनी ज्यादा नफरत करने लगेगी कि जिंदगीभर तुम्हारा मुंह नहीं देखेगी.’’

सौरभ पर कावेरी के समझाने का तुरंत असर हुआ. वह जयदेव को 3 लाख रुपए देने के लिए राजी हो गया, मगर इस के लिए उस ने जयदेव से एक महीने का समय मांगा. कुछ सोचते हुए जयदेव ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक महीने की मुहलत दे सकता हूं, मगर इस के लिए तुम्हें कोई गारंटी देनी होगी.’’

‘‘कैसी गारंटी?’’ सौरभ ने जयदेव से पूछा.

‘‘मैं कावेरी के साथ तुम्हारा फोटो खींच कर अपने मोबाइल फोन में रखूंगा. बाद में अगर तुम अपनी जबान से मुकर जाओगे, तो फोटो सब को दिखा दूंगा.’’

मजबूर हो कर सौरभ ने जयदेव की बात मान ली. जयदेव ने कावेरी के साथ सौरभ का बिना कपड़ों वाला फोटो खींच कर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

शाम के 7 बजे जब सौरभ कावेरी के फ्लैट से बाहर आया, तो बहुत परेशान था. वह लगातार यही सोच रहा था कि 3 लाख रुपए कहां से लाएगा?

सौरभ कोलकाता का रहने वाला था. उलटाडांगा में उस का पुश्तैनी मकान था. उस की शादी अनीता से तकरीबन 8 साल पहले हुई थी.

सौरभ की पत्नी अनीता भी कोलकाता की थी. अनीता जब बीए के दूसरे साल में थी, तभी उस के मातापिता ने उस की शादी सौरभ से कर दी थी. सौरभ ने उस की पढ़ाई छुड़ा कर उसे घर के कामों में लगा दिया. अनीता भी आगे नहीं पढ़ना चाहती थी, इसलिए तनमन से घर संभालने में जुट गई थी.

शादी के समय सौरभ के मातापिता जिंदा थे, मगर 2 साल के भीतर उन दोनों की मौत हो गई थी. तब से अनीता ने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.

मगर शादी के 5 साल बाद अचानक सौरभ ने अपना मन अनीता से हटा लिया था और वह मनचाही लड़की की तलाश में लग गया था.

बात यह थी कि एक दिन सौरभ ने अपने दोस्त के घर ब्लू फिल्म देखी थी. उस के बाद उस का मन बहक गया था. ब्लू फिल्म की तरह उस ने भी मजा लेने की सोची थी.

उसी दिन दोस्त से ब्लू फिल्म की सीडी ले कर सौरभ घर आया. बेटी जब सो गई, तो टैलीविजन पर उस ने अनीता को फिल्म दिखाना शुरू किया.

कुछ देर बाद अनीता समझ गई कि यह कितनी गंदी फिल्म है. फिल्म बंद कर के वह सौरभ से बोली, ‘‘आप को ऐसी गंदी फिल्म देखने की लत किस ने लगाई?’’

‘‘मैं ने यह फिल्म आज पहली बार देखी है. मुझे अच्छी लगी, इसलिए तुम्हें दिखाई है कि फिल्म में लड़की ने अपने मर्द साथी के साथ जिस तरह की हरकतें की हैं, उसी तरह की हरकतें तुम मेरे साथ करो.’’

‘‘मुझ से ऐसा नहीं होगा. मैं ऐसा करने से पहले ही शर्म से मर जाऊंगी.’’

‘‘तुम एक बार कर के तो देखो, शर्म अपनेआप भाग जाएगी.’’

‘‘मुझे शर्म को भगाना नहीं, अपने साथ रखना है. आप जानते नहीं कि शर्म के बिना औरतें कितनी अधूरी रहती हैं. मेरा मानना है कि हर औरत को शर्म के दायरे में रह कर ही हमबिस्तरी करनी चाहिए.

‘‘आप अपने दिमाग से गंदी बातें निकाल दीजिए. हमबिस्तरी में अब तक जैसा चलता रहा है, वैसा ही चलने दीजिए. सच्चा मजा उसी में है. अगर मुझ पर दबाव बनाएंगे, तो मैं मायके चली जाऊंगी.’’

उस समय तो सौरभ की बोलती बंद हो गई, मगर उस ने अपनी चाहत को दफनाया नहीं. उस ने मन ही मन ठान लिया कि पत्नी न सही, कोई और सही, मगर वह मन की इच्छा जरूर पूरी कर के रहेगा.

उस के बाद सौरभ मनचाही लड़की की तलाश में लग गया. इस के लिए एक दिन उस ने अपने दोस्त रमेश से बात भी की. रमेश उसी कंपनी में था, जिस में वह काम करता था.

रमेश ने सौरभ को सुझाव दिया, ‘‘तुम्हारी इच्छा शायद ही कोई घरेलू औरत पूरी कर सके, इसलिए तुम्हें किसी कालगर्ल से संबंध बनाना चाहिए.’’

सौरभ को रमेश की बात जंच गई. कुछ दिन बाद उसे एक कालगर्ल मिल भी गई.

एक दिन सौरभ रात के 9 बजे कालगर्ल के साथ होटल में गया. वह कालगर्ल के साथ मनचाहा करता, उस से पहले ही होटल पर पुलिस का छापा पड़ गया. सौरभ गिरफ्तारी से बच न सका.

सौरभ ने पत्नी को बताया था कि एक दोस्त के घर पार्टी है. पार्टी रातभर चलेगी, इसलिए वह अगले दिन सुबह ही घर आ पाएगा या वहीं से दफ्तर चला जाएगा. इसी वजह से पत्नी की तरफ से वह बेखौफ था.

गिरफ्तारी की बात सौरभ ने फोन पर रमेश से कही, तो अगले दिन उस ने जमानत पर उसे छुड़ा लिया.

सौरभ को लगा था कि उस की गिरफ्तारी की बात कोई जान नहीं पाएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. न जाने कैसे धीरेधीरे दफ्तर के सारे लोगों को इस बात का पता चल गया. शर्मिंदगी से सौरभ कुछ दिनों तक अपने दोस्तों से नजरें नहीं मिला पाया, लेकिन 2-3 महीने बाद वह सामान्य हो गया. इस में उस के एक दोस्त जयदेव ने मदद की था.

जयदेव 6 महीने पहले ही पटना से तबादला हो कर यहां आया था. कालगर्ल मामले में सौरभ दफ्तर में बदनाम हो गया था, तो जयदेव ने ही उसे टूटने से बचाया था.

एक दिन जयदेव उसे अकेले में ले गया और तरहतरह से समझाया, तो उस ने अपने दोस्तों से मुकाबला करने की हिम्मत जुटा ली.

अब दफ्तर में सारे दोस्त सौरभ से पहले की तरह अच्छा बरताव करने लगे, तो सौरभ ने जयदेव की खूब तारीफ की और उस से दोस्ती कर ली.

दोस्ती के 6 महीने बीत गए, तो एक दिन जयदेव सौरभ को अपने घर ले गया.

जयदेव की पत्नी कावेरी को सौरभ ने देखा, तो उस की खूबसूरती पर लट्टू  हो गया.

कुछ देर तक कावेरी से बात करने पर सौरभ ने महसूस किया कि वह जितनी खूबसूरत है, उस से ज्यादा खुले विचार की है.

सौरभ जयदेव के घर से जाने लगा, तो कावेरी उसे दरवाजे पर छोड़ने आई. कावेरी उस से बोली, ‘जब भी मौका मिले, आप  बेखटक आइएगा. मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

उस समय जयदेव वहां पर नहीं था, इसलिए सौरभ ने मुसकराते हुए मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘क्या मैं जयदेव की गैरहाजिरी में भी आ सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं? आप का जब जी चाहे आ जाइएगा, मैं स्वागत करूंगी.’’

‘‘तब तो मैं जरूर आऊंगा. देखूंगा कि उस की गैरहाजिरी में आप मेरा स्वागत कैसे करती हैं?’’

‘‘जरूर आइएगा. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं होनें दूंगी. तनमन से स्वागत करूंगी. जो कुछ चाहिएगा, वह सबकुछ दूंगी. घर जा कर सौरभ कावेरी की बात भूल गया. भूलता क्यों नहीं? उस की बात को उस ने मजाक जो समझ लिया था.’’

एक हफ्ता बाद जयदेव के कहने पर सौरभ उस के घर फिर गया. मौका पा कर कावेरी ने उस से कहा, ‘‘आप तो अपने दोस्त की गैरहाजिरी में आने वाले थे? मैं इंतजार कर रही थी. आप आए क्यों नहीं? कहीं आप मुझ से डर तो नहीं गए?’’

सौरभ सकपका गया. वह कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले वहां जयदेव आ गया. फिर तो चाह कर भी वह कुछ कह न सका.

उस के बाद सौरभ यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं कावेरी उसे चाहती तो नहीं है?

बेशक कावेरी उस की पत्नी से ज्यादा खूबसूरत थी, मगर वह उस के दोस्त की पत्नी थी, इसलिए वह कावेरी पर बुरी नजर नहीं रखना चाहता था. फिर भी वह उस के मन की चाह लेना चाहता था.

3 दिन बाद ही सुबहसवेरे दफ्तर से छुट्टी ले कर सौरभ कावेरी के घर पहुंच गया.

सौरभ को आया देख कावेरी चहक उठी, ‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे रूप का जादू आप पर इतनी जल्दी असर करेगा.’’

सौरभ ने भी झट से कह दिया, ‘‘आप का जादू मुझ पर चल गया है, तभी तो मैं दोस्त की गैरहाजिरी में आया हूं.’’

‘‘आप ने बहुत अच्छा किया. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं करूंगी. मैं जानती हूं कि आप अपनी पत्नी से खुश नहीं हैं, वरना कालगर्ल के पास जाते ही क्यों? मैं आप को वह सबकुछ दे सकती हूं, जो अपनी पत्नी से आप को नहीं मिला.’’

सौरभ हैरान रह गया. उस ने कभी नहीं सोचा कि कोई औरत इस तरह खुल कर अपने दिल की बात किसी मर्द से कह सकती है.

सौरभ कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले ही वह बोली, ‘‘आप मुझे बेहया समझ रहे होंगे. मगर ऐसी बात नहीं है. बात यह है कि मैं आप को अपना दिल दे बैठी हूं…

‘‘दरअसल, जिस तरह आप अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं हैं, उसी तरह मैं भी अपने पति से संतुष्ट नहीं हूं. जब मैं ने आप को देखा, तो न जाने क्यों मुझे लगा कि अगर आप मेरी जिंदगी में आ जाएंगे, तो मेरी प्यास भी बुझ जाएगी.’’

कावेरी को सौरभ ने बुरी नजर से कभी नहीं देखा था. मगर कावेरी ने जब उसे अपने दिल की बात कही, तो उसे लगा कि उस से संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं है.

उस के बद सौरभ ने अपनेआप को आगे बढ़ने से रोका नहीं. झट से उस ने कावेरी को बांहों में भर लिया. उस के होंठों और गालों को चूम लिया.

कावेरी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह बोली, ‘‘आप बैडरूम में चलिए, मैं दरवाजा बंद कर के आती हूं.’’

सौरभ बैडरूम में चला गया. दरवाजा बंद कर कावेरी बैडरूम में आई, तो सौरभ ने बगैर देर किए उसे बांहों में भर लिया. उस के बाद दोनों अपनीअपनी हसरतों को पूरा करने में लग गए.

सौरभ जैसा चाहता था, कावेरी ने ठीक उसी तरह से उस की हवस को शांत किया.

सौरभ ने कावेरी की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘मुझे आप से जो प्यार मिला है, वह मैं कभी नहीं भूल सकता.’’

‘‘यही हाल मेरा भी है सौरभजी. मेरी शादी हुए 5 साल बीत गए हैं. देखने में मेरे पति हट्टेकट्टे भी हैं, मगर उन से मैं कभी संतुष्ट नहीं हुई. अब मैं आप से एक गुजारिश करना चाहिती हूं.’’

‘‘गुजारिश क्यों? हुक्म कीजिए. मैं आप की हर बात मानूंगा,’’ कहते हुए सौरभ ने कावेरी के होंठों को चूम लिया.

‘‘आप शादीशुदा हैं. मैं भी शादीशुदा हूं. हम चाह कर भी कभी एकदूसरे से शादी नहीं कर सकते, लेकिन मैं चाहती हूं कि हम दोनों का संबंध जिंदगीभर बना रहे. हम दोनों कभी जुदा न हों. क्या ऐसा हो सकता है?’’

कावेरी ने जैसे उस के दिल की बात कह दी हो, इसलिए झट से उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं हो सकता. मैं भी तो यही चाहता हूं.’’

उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, सौरभ दफ्तर न जा कर कावेरी के घर चला जाता था.

इस तरह 4 महीने बीत गए. इस बीच सौरभ ने 7-8 बार कावेरी से हमबिस्तरी की. हर बार कावेरी ने उसे पहले से ज्यादा मस्ती दी.

सौरभ ने यह मान लिया था कि कावेरी के साथ उस का संबंध जिंदगीभर चलेगा. दोनों के बीच कोई दीवार नहीं आएगी, मगर उस का सोचा नहीं हुआ. आज जो कुछ भी हुआ, उस की सोच से परे था.

सौरभ अपने घर आया, तो वह बहुत परेशान था. अनीता ने उस की परेशानी ताड़ ली. अनीता ने उस से पूछ लिया, ‘‘क्या बात है? आप बहुत परेशान दिखाई दे रहे हैं?’’

सौरभ ने बहाना बना दिया, ‘‘परेशान नहीं हूं. थका हुआ हूं.’’

सौरभ ने अनीता पर शक तो नहीं होने दिया, मगर उसी दिन से उस की सुखशांति छीन गई. दिनरात वह इस फिराक में रहने लगा कि 3 लाख रुपए का इंतजाम वह कैसे करे?

25 दिन बीत गए, मगर रुपए का इंतजाम नहीं हुआ, तो सौरभ ने मकान पर रुपए लेने का फैसला किया.

सौरभ मकान पर रुपए लेता, उस से पहले अनीता को सबकुछ मालूम हो गया. वह चुप रहने वालों में से नहीं थी.  वह सौरभ से बोली, ‘‘मुझे पता चला है कि आप मकान पर 3 लाख रुपए लेना चाहते हैं. सच बताइए कि रुपए की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि आप को मकान गिरवी रखना पड़ रहा है? कहीं आप किसी बजारू लड़की के चक्कर में तो नहीं पड़ गए हैं.’’

सौरभ घबरा गया. उस ने सच छिपाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अनीता के सामने उस की एक न चली.

‘‘मैं जानती थी कि आप का शौक एक दिन आप को डुबो देगा.’’

‘‘कैसा शौक?’’ सौरभ हकला गया.

‘‘ब्लू फिल्म की तरह हरकतें करने का शौक,’’ सौरभ हैरान रह गया.

‘‘मैं जानती हूं कि आप अपना शौक पूरा करने के लिए कालगर्ल के साथ होटल में गए थे. वहां रेड पड़ी और पुलिस ने आप को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन आप के दोस्त ने आप को जमानत पर छुड़ाया. मैं ने आप से इसलिए कुछ नहीं कहा कि शर्मिंदगी से आप मुझ से नजरें नहीं मिला पाएंगे.’’

अब सौरभ ने भी अपनी गलती मानने मे देर नहीं की. कावेरी के साथ अपने नाजायज संबंध के बारे में सबकुछ बताने के बाद अनीता से उस ने माफी मांगी. उस से कहा कि वह ऐसी गलती नहीं करेगा.

‘‘मैं तो आप को माफ करूंगी ही, क्योंकि मैं अपना घर तोड़ना नहीं चाहती. मगर सवाल है कि कावेरी के चक्रव्यूह से आप कैसे निकलेंगे?’’

‘‘कैसा चक्रव्यूह?’’

‘‘आप अभी तक यही समझ रहे हैं कि कावेरी के साथ हमबिस्तरी करते समय उस के पति ने आप को अचानक देख लिया और आप के साथ सौदा कर लिया?’’

‘‘मैं तो यही समझ रहा हूं,’’ सौरभ बोला.

लेकिन सच यह नहीं है. मेरी सोच यह है कि कावेरी और उस के पति ने मिल कर आप को फंसाया है. अगर ऐसा नहीं होता, तो उस का पति आप के साथ सौदा क्यों करता? पत्नी की बेवफाई देख कर उसे अपने घर से निकाल देता या माफ कर देता. आप के साथ सौदा किसी भी हाल में नहीं करता.’’

कुछ सोचते हुए अनीता ने कहा, ‘‘जो होना था, वह तो हो गया. अब आप चिंता मत कीजिए. कावेरी के चक्रव्यूह से मैं आप को निकालूंगी.’’

‘‘आप तो जानते ही हैं कि मेरा मौसेरा भाई जयंत पुलिस इंस्पैक्टर है. जब उसे सारी बात बताऊंगी, तो वह हकीकत का पता लगा लेगा और सबकुछ ठीक भी कर देगा.’’

उसी दिन अनीता सौरभ के साथ जयंत से मिली. सारी बात जानने के बाद जयंत अगले दिन से छानबीन में जुट गया.

4 दिन बाद जयंत ने अनीता को फोन पर कहा, ‘‘छानबीन करने के बाद मैं ने जयदेव और कावेरी को गिरफ्तार कर लिया है. दोनों ने अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया है. अब जीजाजी को किसी से डरने की जरूरत नहीं है.

‘‘दरअसल, जयदेव और कावेरी का यही ध्ांधा था. कोलकाता से पहले दोनों पटना में थे. वहां कई लोगों को अपना शिकार बनाने के बाद जयदेव ने अपना ट्रांसफर कोलकाता करा लिया था.

‘‘जब जीजाजी को कालगर्ल के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, तो उन के दफ्तर के ही किसी ने थाने में उन्हें देख लिया और दफ्तर में सब को बता दिया.

‘‘दफ्तर बदनाम हो गया, तो जयदेव ने उन्हें अपना अगला शिकार बनाने का फैसला कर लिया.

‘‘अपनी योजना के तहत जयदेव ने पहले जीजाजी से दोस्ती की, उस के बाद उन्हें अपनी पत्नी कावेरी से मिलाया.

‘‘उस के बाद कावेरी ने अपना खेल शुरू किया. उस ने जीजाजी पर अपने रूप का जादू चलाया और उन के साथ वही सब किया, जो अब तक औरों के साथ करती आई थी.’’

जयदेव और कावेरी की सचाई जानने के बाद सौरभ ने राहत की सांस ली. अनीता को अपनी बांहों में भर कर उस की खूब तारीफ की.

अनीता ने भी सौरभ को निराश नहीं किया. रात में बिस्तर पर उस ने शर्म छोड़ कर उस के साथ वैसा ही सबकुछ किया, जिस की चाह में वह कावेरी के चंगुल में फंस गया था.

भरपूर मजे के बाद सौरभ ने अनीता से कहा, ‘‘तुम तो सबकुछ कर सकती हो, फिर उस दिन जब मैं ने ऐसा करने के लिए कहा था, तो मना क्यों किया था?’’

‘‘सिर्फ मैं ही नहीं, हर पत्नी अपने पति के साथ ऐसा कर सकती है, मगर सभी ऐसा करती नहीं हैं, कुछ ही करती हैं.’’

‘‘जिस तरह मेरा मानना है कि औरतों को शर्म के दायरे में रह कर हमबिस्तरी करनी चाहिए, उसी तरह बहुत सी पत्नियां ऐसा मानती हैं. इसी वजह से बहुत सी पत्नियां ब्लू फिल्म की तरह हरकतें नहीं करतीं.’’

‘‘मैं ने आज शर्म की दीवार तोड़ कर आप का मनचाहा तो कर डाला, मगर बराबर नहीं कर सकती, क्यों कि मुझे बेहद शर्म आती है.’’

अनीता के चुप होते ही सौरभ ने कहा, ‘‘अब इस की जरूरत भी नहीं है. मैं समझ गया कि गलत चाहत में लोग बरबाद हो जाते हैं. मैं अपनी गलत चाहत को आदत नहीं बनाना चाहता, इसलिए हमबिस्तरी के समय वैसा ही सबकुछ चलेगा, जैसा अब तक चलता रहा है.’’

अनीता खुशी से सौरभ से लिपट गई. सौरभ ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया.

Abhinav Arora, माधव दास जैसे बाल कथावाचक बनाने का धंधा

बाल कथावाचकों की सोशल मीडिया पर लंबीचौड़ी भीड़ खड़ी हो गई है, सारी जद्दोजेहद फौलोअर्स और सब्सक्राइबर्स पाने की है. जिस उम्र में इन्हें स्कूल में होना चाहिए, हाथों में किताबकौपीकलम होनी चाहिए, वहां इस तरह का धर्मांध ढोंग करने की प्रेरणा इन्हें मिल कहां से रही है, जानिए.

अपनी कृष्णभक्ति से मशहूर 10 वर्षीय कथावाचक अभिनव अरोड़ा इन दिनों खूब चर्चा में है. अभिनव को अकसर सोशल मीडिया पर आध्यात्मिक वीडियो शेयर करते देखा जाता है. वह रील बनाता है. रील पर भक्ति में नाचता, गाता और रोता भी है.

इस छोटी उम्र में अभिनव अरोड़ा एक यूट्यूबर और इंफ्लुएंसर के साथसाथ कथावाचक के रूप में भी पहचाना जाता है. सोशल मीडिया पर उस के वीडियोज छाए रहते हैं. इंस्टाग्राम पर उस के 9 लाख से अधिक, फेसबुक पर 2.2 लाख और यूट्यूब चैनल पर 1.3 लाख सब्सक्राइबर्स हैं. यह बड़ी संख्या है. हैरानी यह कि वह अपनी भक्ति की ऊटपटांग रील के चलते सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. वह खुद को श्रीकृष्ण का बड़ा भाई मानता है.
कुछ समय पहले तक स्कूल में कोई भी अभिनव अरोड़ा के बगल में नहीं बैठना चाहता था पर आज उस की क्लास का हर बच्चा उस के साथ बैठना चाहता है, उन्हें रोस्टर बनाना पड़ता है. स्कूल में पढ़ाई के बीच उस के टीचर उसे भजन गाने के लिए कहते हैं. यह पौपुलैरिटी अभिनव ने हासिल कर ली है.
वह अपनी रील्स में धार्मिक उपदेश देता है. जैसे, वह कहता है, ‘आप का कोई भी काम नहीं बन रहा हो या अटक रहा हो तो गोपाष्टमी के दिन गाय के कान में जा कर वह बात कह दें, आप का काम हो जाएगा.’
अभिनव अरोड़ा ट्रोल भी खूब हुआ. भक्ति जाहिर करने के लिए जिस तरह की हरकतें वह अपनी रील्स में करता है उसे ले कर लोग उसे नकली और दिखावा बताते हैं. इस पर अभिनव ने कहा, ‘मैं चाहता नहीं था मुझे कोर्ट जाना पड़े लेकिन जाना पड़ा. जैसे भगवान रामजी का मन नहीं था खरदूषण का वध करना, लेकिन उस ने इतना उत्पात मचा दिया कि उन्हें करना पड़ा. मेरी भक्ति को नकली कहा जा रहा है. मुझे लोग जान से मारने की धमकियां दे रहे हैं.’

दरअसल, अभिनव अरोड़ा के पिता तरुण अरोड़ा ने पहले आइसक्रीम कंपनी खोली, कंपनी फेल हो गई तो दूसरा बिजनैस किया, वह भी फेल हो गया तो अपने बच्चे अभिनव अरोड़ा पर दांव खेला. उन्होंने उसे धर्म से पैसा कैसे कमाया जाता है, वह सिखाया. अब इस चलते कई लोग अभिनव के पिता को कोसने लगे हैं कि वे अपने बेटे का इस्तेमाल कर रहे हैं. मगर इस में क्या गलत है? क्या यह काम बड़ेबड़े कथावाचक, अनिरुद्धाचारी, बाबा बागेश्वर, देवकीनंदन वगैरह नहीं कर रहे? फिर कोस सिर्फ अभिनव को क्यों रहे हैं?
क्या ये सारी चीजें वह इन्हीं कथावाचकों से नहीं सीख रहा? क्या धर्म के नाम पर लूटपाट नहीं चल रही? क्या धर्म के नाम पर सरकार नहीं बनाई जा रही? मुसीबत यह है कि लपेटे में सिर्फ अभिनव है.

इस पर उसे दोष देने की जगह क्या खुद को दोषी नहीं मानना चाहिए कि जिस उम्र में उसे कोर्स के चैप्टर याद करने चाहिए थे वहां वह अंटशंट धार्मिक बातें रट रहा है. अभिनव अरोड़ा की वीडियो से साफ पता चलता है कि वह जो कुछ भी करता और कहता है वह सब स्क्रिप्टेड होता है. सरयू नदी में स्नान करते हुए अभिनव अरोड़ा एक वीडियो में कह रहा है, ‘केवल गंगा नदी ही काफी है हम सब के पापों को धोने के लिए.’

यूजर्स अभिनव अरोड़ा के वीडियोज पर कर रहे हैं कमैंट्स

एक यूजर ने अभिनव अरोड़ा के एक वीडियो में यहां तक कमैंट किया कि, “ये कथावाचक ऊटपटांग नौटंकी कर सकते हैं पर स्कूल जाने और पढ़ने के नाम पर इन्हें मौत आती है.’
एक दूसरे यूजर ने लिखा, ‘इस का बाप इतना शातिर है कि उस ने इस को इतने जबरदस्त तरीके की ट्रेनिंग दे कर बकवास करने में माहिर बना दिया है कि इस को बकवास के अलावा अब कुछ नहीं आता. भारत विश्वगुरु बने न बने लेकिन इस जैसे शातिर लोग भारत की जनता को बेवकूफ़ भलीभांति बना रहे हैं.’ किसी भी पोडकास्ट में उस से क्या पूछा जाएगा, वह भी पहले से ही निर्धारित होता है और इस तरह से एक साधारण से बच्चे को बाबा बना कर पैसे कमाने का जुगाड़ हमारे समाज ने किया है.
यूज़र्स अभिनव अरोड़ा के लिए लिख रहे हैं, ‘भाई ने भारत के एल्गोरिदम को क्रैक कर लिया है.’ ‘बेटा, क्या तुम ने अपना होमवर्क किया है?’ और ‘वो आज स्कूल भी नहीं गया.’
कुछ यूजर्स ने लिखा है-
‘यह बच्चा पक्का आगे चल कर बड़ा ढोंगी बाबा बनेगा और अंधभक्तों को लूटेगा.’
‘इस के मातापिता ने सब से अच्छा बिजनैस मौडल ढूंढ़ लिया है.’

बचपन से वायरल कथावाचक बनाने का धंधा

अभिनव अरोड़ा सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. लेकिन सिर्फ अभिनव अरोड़ा ही नहीं, कई सारे ऐसे बाल संत हैं, जिन्हें लाखों की संख्या में लोग फौलो करते हैं. इन के वीडियोज पर खूब व्यूज आते हैं.
जयपुर के 5 वर्षीय ‘भक्त भागवत’ के इंस्टाग्राम पर 22 लाख से ज़्यादा फौलोअर्स हैं. उन का दावा है कि वे एक गुरुकुल में पढ़ते हैं. अभिनव अरोड़ा की तरह वे भी कृष्ण और राधा का भक्त है और उस के मातापिता उस के अकाउंट को मैनेज करते हैं.

इंस्टाग्राम ने 13 साल से कम उम्र के बच्चों को अकाउंट होस्ट करने से प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन मातापिता को उन्हें चलाने की अनुमति है. वह कहता है, ‘हायहेलो छोड़ो, हरे कृष्ण बोलो.’ यह लफ्फाजी कोई रटवा ही सकता है. उस के पिता अकम भक्ति दास एक सौफ्टवेयर इंजीनियर से गीता प्रचारक बन गए हैं और अब उसी वैदिक अध्ययन के गुरुकुल में रहते हैं और काम करते हैं. भक्त भागवत के मातापिता का कहना है कि वे चाहते हैं कि वह डाक्टर या इंजीनियर बनने के बजाय सनातन धर्म और भगवद गीता का प्रसिद्ध प्रचारक बने. यानी, ऐसा काम जिस से लोगों का तो भला होना नहीं है जबकि खुद पर बैठेबिठाए पैसों की बरसात होती है.

ऐसे ही वृंदावन के 10 साल के बाल कथावाचक माधव दास ने न केवल देशभर में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है. इन के पिता भी इस्कान मंदिर के भक्त हैं. कृष्णा किशोरी महज 6 साल की है. यूकेजी में पढ़ने वाली फतेहपुर की कृष्णा किशोरी राधा-कृष्ण को मामामामी मानती है.
इसी तरह देविका दीक्षित वृंदावन निवासी पंडित अरुण दीक्षित व आंगनवाड़ी वर्कर अर्चना दीक्षित की बेटी है, जिस की उम्र महज 9 साल है और अभी चौथी क्लास में है. देविका तो 6 साल की उम्र से ही भागवत कथा सुनाने लगी थी. उस की पढ़ाई को ले कर जब किसी रिपोर्टर ने उस से पूछा तो देविका दीक्षित ने कहा कि वह अपने कथावाचन के कार्यक्रमों में इतना व्यस्त रहती है कि स्कूल में अटेंडेंस पूरी नहीं हो पाती. बाल कथावाचकों की इस लिस्ट में कृष्ण नयन उम्र 7 साल, श्रृंगवेरपुर धाम की अनुष्का पाठक जो केवल 8 साल की है, ये दोनों भी कथावाचन कर रहे हैं.

बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़

इन सभी के पेरैंट्स के लिए ये बच्चे लौटरी जैसे बन चुके हैं. जाहिर है, इन में रटने की कला है, छोटी उम्र से ही शास्त्रों को दिमाग में बैठा लेते हैं. लोग इन बाल कथावाचकों की रील्स और वीडियो को देख कर अपना समय व एनर्जी बरबाद कर रहे हैं क्योंकि ये कथावाचक ही अपने फौलोअर्स से प्रवचनों में कहते हैं, ‘मोहमाया छोड़ दो, कुछ मत करो, भक्तिभाव में डूब जाओ.’
अंकित नाम के एक यूट्यूबर ने अपने चैनल ‘ओनली देसी’ पर हाल ही में अभिनव अरोड़ा की पोल खोलते हुए कहा कि अभिनव के मातापिता अपने बच्चे का ब्रेनवाश कर रहे हैं और उस का बचपन ब्रैंड एंगेजमैंट, मीडिया प्रचार और पैसा कमाने के लिए बरबाद कर रहे हैं. यूट्यूबर का कहना है कि अभिनव को कैमरा के सामने कुछ चीजें कहने के लिए ब्रेनवाश किया गया है और इस के लिए केवल उस के मातापिता ही जिम्मेदार है. जबकि, हकीकत में उस के मातापिता तो उसे यह सब करा कर ऐशोआराम की जिंदगी देंगे, जिम्मेदार तो यह धर्मांध समाज है जो इन्हें देख रहा है.

कथावाचन कोई प्रोडक्टिव काम नहीं

क्या इस के जिम्मेदार हम खुद नहीं हैं जो अपने ब्च्चों को किसी साइंस म्यूजियम, हिस्टोरिकल प्लेसेस, तार्किक बनाने की जगह ऐसी कथाओं में ले कर जाते हैं जहां वे प्रोडक्टिव या स्किल सीखने की जगह कुतार्किक व पाखंडी चीजें सीखते हैं.
बचपन से अपने छोटेछोटे बच्चों को कथावाचन से जोड़ने की सब से दुखद बात यह है कि बच्चों की क्रिएटिविटी ख़त्म होती है. पेरैंट्स नहीं समझ रहे हैं कि कथावाचन कोई प्रोडक्टिव काम नहीं है. उस से किसी का भला नहीं हो रहा.
जैसे, अगर मजदूर सड़क बनाता है तो उस सड़क का प्रयोग जनता करती है, कोई होटल में खाना बना रहा है तो उस से लोगों का पेट भर रहा है, कोई कपड़े बना रहा है तो लोग उसे इस्तेमाल करते हैं लेकिन कथावाचन से किसी का क्या भला होता है, सिवा कथावाचकों और पंडों को चंदा व दानदक्षिणा देने की सोच दिमाग में भरने के.

कथावाचक बनने का क्रैश कोर्स

आजकल बाल कथावाचक बनना काफी ट्रैंड में है. आप को जानकर हैरानी होगी कि बाल कथावाचकों की बढ़ती लोकप्रियता और इस से होने वाली कमाई के लालच ने इंस्टेंट कथावाचक पैदा करने के इंस्टिट्यूट भी खोल दिए हैं. इन इंस्टिट्यूट में ऐसे कथावाचक हैं जो सत्संग के गुर सिखा रहे हैं और वह भी मुफ़्त नहीं, बल्कि गुरुदक्षिणा में फीस ले कर.
वृंदावन में एंटर पास करते ही वहां की दीवारों पर आप को इंस्टेंट कथावाचक बना देने वाले विज्ञापन दिखाई दे जाएंगे. वृंदावन में कथावाचक बनने की ट्रेनिंग देने वाले एकदो नहीं बल्कि 100 के करीब इंस्टिट्यूट खुल गए हैं. इन में से कुछ तो ऐसे इंस्टिट्यूट हैं जो 3 से 6 महीने में ही एक्सपर्ट कथावाचक बनाने का दावा करते हैं.
‘श्रीमद्भागवत कथा’ के लिए इस्कान में भी डिप्लोमा कोर्स कराया जाता है. अलगअलग अवधि के कोर्स की फीस अलग होती है. इसी तरह वृंदावन में भी कई गुरुकुल हैं जहां आप अलगअलग धर्मग्रंथों का पठनपाठन कर के कथावाचक बन सकते हैं. इस में बांके बिहारी भागवत प्रशिक्षण केंद्र और वैदिक यात्रा गुरुकुल प्रमुख हैं. इसी तरह देश के अलगअलग आध्यात्मिक केंद्र, जैसे कि बनारस, उज्जैन, इगतपुरी इत्यादि पर मौजूद गुरुकुल में गुरुदक्षिणा के नाम पर फीस दे कर ऐसे कथावाचक बनने की ट्रेनिंग दी जाती है.

कथावाचन के नाम पर बिजनैस

आजकल कथावाचन एक बहुत बड़ा बिजनैस हो गया है. ‘बाबा’ या ‘कथावाचक’ की मुख्य कमाई कथावाचन के लिए मिलने वाली फीस होती है. इस के साथ उन्हें दक्षिणा के रूप में भी खासी राशि मिलती है. हर कथा का बजट लाखों में होता है जिस का लगभग 40 से 50 फीसदी कथावाचक की जेब में चला जाता है.
कथावाचन के नाम पर चंदा उगाही, भीड़ जुटाना, प्रपंच करना जैसे कार्य हो रहे हैं. ये घंटे के हिसाब से चार्ज करते हैं और 20 हजार रुपए प्रति घंटे से ले कर 2 लाख रुपए प्रति घंटे तक इन का चार्ज होता है. ऊपर से प्लेन के बिजनैस क्लास में आनेजाने का टिकट का चार्ज भी ये लेते हैं. वहीं, कथावाचक बनने के बाद ज्यादातर ‘बाबा’ अपने आश्रम भी खोल लेते हैं. ये आमतौर पर ‘नौन प्रौफिट और्गेनाइजेशन’ होते हैं.

ऐसे में उन की इनकम टैक्स की बचत भी होती है और जमीन से ले कर कई अन्य सुविधाएं भी सस्ते दामों पर मिल जाती हैं. ये वही कथावाचक हैं जो अपने प्रवचनों में कहते हैं कि रुपयापैसा जिंदगी में कुछ नहीं है, सब मोहमाया है, और खुद लक्जरी लाइफ जीते हैं. इन्फ्लुएंसर और कथावाचक जया किशोरी हाल ही में लगभग ढाई लाख रुपए का डीओर का बैग लिए देखी गईं.
सीधी सी बात है, यह सारा तामझाम ही लोगों को आस्थावान बना कर लूटने का है. इस में बड़ेबड़े कथावाचक पहले ही जमे हुए थे, अब छोटेछोटे कथावाचकों की नई पौध भी उगाई जा रही है ताकि दानदक्षिणा, कर्मकांड चलते रहें.

रोज औसतन 86 Rape लेकिन कितने अपराधी जाते हैं सलाखों के पीछे

देश भर में हर दिन औसतन 86 बलात्कार होते हैं. इन में से अधिकतर आरोपी जानपहचान के होते हैं. लाज शर्म, समाज और लचर कानूनी प्रक्रिया के चलते औरतों को न्याय मिलना दूर की बात हो जाती है.

बलात्कार – दिनांक 19 . 11 . 2024
एक – मध्य प्रदेश के देवास में एक सीमेंट कारोबारी वीरेन्द्र को पुलिस ने गिरफ्तार किया उस पर एक महिला जिसे उस ने अपनी बहन बनाया था के यौन शोषण का आरोप था.
दो – विकासनगर ( देहरादून ) में एक नाबालिग लड़की का दुष्कर्म कर उस का वीडियो बनाने वाला आरोपी समद सहारनपुर से गिरफ्तार.
तीन – नोएडा में एक युवती को बहला फुसला कर होटल ले जा कर बलात्कार करने वाला आरोपी गिरफ्तार.
चार – हरियाणा के फरीदाबाद में अपनी ही 2 नाबालिग बेटियों से बलात्कार करना वाला नशेड़ी पिता गिरफ्तार, मां ने लिखाई थी रिपोर्ट.
पांच – नागपुर में एक बस स्टैंड के पास 26 वर्षीय कालेज छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया.
छह – मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की पिछोर तहसील के एक गांव की विवाहिता ने केन्द्रीय मंत्री और क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को चिट्ठी लिखते कहा कि उस के साथ गजेन्द्र गुर्जर, रुपेश गुर्जर, अरविन्द पाल व मातादीन कुशवाह ने सामूहिक बलात्कार किया लेकिन अमोला थाने वालों ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की.
सात – उत्तर प्रदेश के जालोन के उरई थाने में पीड़िता अपने मकान मालिक के खिलाफ दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखाने गई तो कार्रवाई के एवज या घूस कुछ भी समझ लें में दो सिपाहियों ने उस का अकेले में ले जा कर बलात्कार कर डाला. महिला ने उच्च अधिकारियों से शिकायत की तो आरोपियों ने उस पर समझौते के लिए दबाब डाला. अब अपर पुलिस अधीक्षक मामले की जांच कर रहे हैं. क्या पता ऐसी जांचें क्यों होती हैं. सीधेसीधे इन भक्षकों के खिलाफ बलात्कार का आरोप क्यों दर्ज नहीं किया गया.

बीती 19 नंवबर को हुए ये बलात्कार के चंद मामले हैं जिन में रिपोर्ट दर्ज हुई. यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कितने मामलों में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई होगी. वैसे एक एजेंसी मिंट के अंदाजे के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के करीब 85 फीसदी मामले दर्ज नहीं किए जाते. मिंट ने यह अनुमान साल 2015 – 16 के नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की रिपोर्ट और एनसीआरबी के 2014 से 2016 के आंकड़ों के आधार पर लगाया था.

ऐसा क्यों इस सवाल का जवाब हर कोई जानता समझता है कि इस में बदनामी पीड़िता की ही होती है और समाज उसे ही दोषी मानता है. अलावा इस के पीड़िता और उस के परिवार जनों को इस बात का भी भरोसा नहीं रहता कि आरोपी को सजा होगी ही. बलात्कार के कितने मामलों में दोषियों को सजा होती है और कितने बाइज्जत बरी हो जाते हैं और अकसर कोई जानपहचान वाला ही बलात्कारी होता है यह भी आगे आंकड़ों की शक्ल में बताया जा रहा है. लेकिन उस के पहले एक नजर मोदी राज में महिलाओं के खिलाफ होने बाले अपराधों और बलात्कारों पर.

पिछले 10 सालों में यानी मोदी राज में महिलाओं के प्रति होने बाले अपराधों में लगभग 75 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस आंकड़े से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश भर में महिलाएं किस कदर असुरक्षित हो चली हैं. ऐसा क्यों और इस का जिम्मेदार कौन इन सवालों का जबाब ढूंढने से पहले एक नजर आंकड़ों पर डालें तो समझ आता है कि इन 10 सालों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था को परोक्ष रूप से शह मिली है. किसी भी महिला के प्रति सब से गंभीर अपराध बलात्कार ही होता है इस के आंकड़े तो और भी चिंताजनक हैं.

नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश भर में महिलाओं के प्रति 4 लाख से भी ज्यादा अपराध दर्ज किए जाते हैं इन में बलात्कार के अलावा अपहरण, दहेज हत्या, एसिड अटैक, ट्रेफिकिंग सहित छेड़छाड़ भी शामिल है.
साल 2022 में बलात्कार के दर्ज मामलों की संख्या 31516 थी. जबकि 10 साल पहले 2012 में यह संख्या 24923 थी यानी हर दिन कोई 86 बलात्कार उस देश में होते हैं जहां यत्र नारी पूज्यन्ते तत्र… का हांका हर कभी गर्व से लगाया जाता है.
इस साल महिलाओं के प्रति होने बाले कुल दर्ज अपराधों की संख्या 2.44 लाख थी जो 2022 में बढ़ कर 4.45 लाख का आंकड़ा पार कर गई. क्या खा कर और किस मुंह से औरत को देवी कहा जाता है यह तो भगवान कहीं हो तो वही जाने.

आंकड़े बताते हैं कि बलात्कार के 95 फीसदी से भी ज्यादा मामलों में आरोपी परिचित होता है. एनसीआरबी के मुताबिक साल 2022 में 2324 मामलों में बलात्कारी पीड़िता के परिवार का सदस्य था. 14 हजार से भी ज्यादा मामलों में आरोपी कोई परिचित दोस्त औनलाइन फ्रैंड भूतपूर्व पति या फिर लिव इन पार्टनर था. 13 हजार मामलों में आरोपी एम्प्लायर, फैमिली फ्रैंड या फिर पड़ोसी था. महज 1062 मामलों में ही बलात्कार का आरोपी कोई अपरिचित था.

बलात्कार को शह मिलने की एक अहम वजह न्याय व्यवस्था भी है. इसे भी ये आंकड़े साबित करते हैं कि साल 2021 में पिछले साल यानी 2022 के लगभग 13 हजार मामले लम्बित थे. कोई 4 हजार मामलों में फाइनल रिपोर्ट गलत निकली. हैरानी की बात तो यह भी कि 1921 मामलों में दोष सच होते हुए भी पर्याप्त सबूत नहीं जुटाए जा सके.
साल 2022 की बात करें तो बलात्कार के लगभग 1 लाख 70 हजार से भी ज्यादा मामले अदालतों में लम्बित थे. इसी साल दोष सिद्धि की दर 27.4 फीसदी थी यानी 100 में से करीब 27 लोगों को ही सजा सुनाई गई. बाकी 73 मूंछों पर ताव देते समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए जबकि पीड़िताएं मुंह छिपाने बाध्य हुईं मानो खुद ही दोषी हों. और हों क्यों नहीं आखिर औरत जात जो ठहरीं.

बलात्कार और कितना घिनोना हो सकता है इस का अंदाजा इस हकीकत से भी लगाया जा सकता है कि आरोपियों ने 110 उन महिलाओं को भी नहीं बख्शा जो शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग थीं.
2022 में ही 34 गर्भवती महिलाओं के साथ भी बलात्कार हुआ था. यह जानकर और भी हैरानी हो सकती है कि 4681 मामले एक ही महिला के साथ बारबार बलात्कार करने के दर्ज हुए थे. हवस के पुजारियों ने मासूम बच्चियों और वृद्धाओं को भी नहीं छोड़ा. 87 मामलों में पीड़िताओं की उम्र 60 साल से ज्यादा थी तो 32 मामलों में पीड़िताओं की उम्र 6 साल से कम थी.

2022 में देश भर की जेलों में लगभग 73 हजार कैदी ऐसे थे जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ अपराध किए थे. इन में से भी 47 हजार यानी 64 फीसदी बलात्कार के आरोपी थे. और हैरान व चिंतित होने यह आंकड़ा पर्याप्त है कि 2022 में ही बलात्कार के 5 फीसदी मामलों में ही ट्रायल पूरा हो पाया था यानी 95 फीसदी मामले लम्बित थे.

इस पर भी देश की सबसे ताकतवर और असरदार कुर्सियों पर विराजे कर्णधार यह कहें कि बस बहुत हो चुका. नहीं अब और नहीं. अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं और पीड़ित डर के साए में रहते हैं तो लगता है यह सुप्रीम बेबसी बोल रही है. या यह भी कि महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्षम्य हैं. दोषी कोई भी हो वो बचना नहीं चाहिए. उस को किसी भी रूप में मदद करने वाले बचने नहीं चाहिए, तब लगता है कि होना जाना कुछ नहीं है क्योंकि बलात्कार के दोषियों के सब से बड़े मददगार तो कानून, पुलिस, वकील और उन से भी उपर समाज होता है.

आंकड़े तो गवाही यह देते हैं कि होता वही है जो मंजूरे वकील होता है. छोटी बड़ी हर अदालत में हिंदी फिल्म का डिफेन्स लायर बोल रहा है जो आरोपी को चुटकियों में निकाल ले जाता है. बिलकुल बीआर चौपड़ा की फिल्म इंसाफ का तराजू के वकील श्रीराम लागु की तरह जो अपने मुवक्किल राज बब्बर को छुड़ा ले गए थे. तब इंसाफ पीड़िता जीनत अमान को भरी अदालत में राज बब्बर की हत्या करना पड़ा था.

वह फिल्म थी सो क्लाइमेक्स हर किसी को भाया था लेकिन हकीकत में पीड़िता अपने साथ हुई ज्यादती को छिपाने में ही भलाई समझती है या फिर मारे डर और शर्म के खुद ही ख़ुदकुशी कर लेती है क्योंकि वाकई में एक बलात्कार के बाद कई बलात्कार और होते हैं.

 

मोस्‍ट वांटेड लिस्‍ट में है अर्श डाला, जानें Lawrence Bishnoi से उसका रिश्‍ता

Lawrence Bishnoi and Arsh Dalla : लौरेंस बिश्‍नोई के बाद जिस गैंगस्‍टर का नाम तेजी से चर्चा में आया है वह है अर्श डाला. कनाडा में नवंबर के आखिरी सप्‍ताह में शूट आउट हुआ था. इसी को लेकर अर्श को अरेस्‍ट किया गया है. कौन है ये अर्श, क्‍यों उतरा वह अपराध की दलदल में, पढ़ें.

अर्श डाला को कनाडा में अरेस्‍ट कर लिया गया है. इसे हरदीप निज्‍जर का करीबी बताया जा रहा है. अर्श डाला को कुछ लोग अर्श दल्‍ला के नाम से भी जानते हैं, वैसे इसका पूरा नाम अर्शदीप सिंह है. यह भारत की मोस्‍ट वांटेड अपराधि‍यों की सूची में भी शामिल है. आजकल यह गैंगस्‍टर अपनी पत्‍नी के साथ कनाडा में ही रहता है.

अर्श डाला को कनाडा में अरेस्‍ट करने के साथ ही पंजाब के फरीदकोट से इसके दो गुर्गों को भी गिरफ्तार कर लिया गया है. इन शूटर्स ने बताया कि अर्श के कहने पर उन्‍होंने 7 नवंबर को मध्‍य प्रदेश के ग्‍वालियर में जसवंत सिंह गिल की हत्‍या की थी.

 

अर्श कैसे बना अपराधी

 

अर्शदीप पहली बार उस समय चर्चा में आया जब उसने सोशल मीडिया पर एक पोस्‍ट डाल कर एक व्‍यक्ति की हत्‍या की जिम्‍मेदारी ली थी. इस पोस्‍ट में अर्श ने यह लिखा था कि इसी व्‍यक्ति की वजह से उसका फ्यूचर बरबाद हो गया. उसे अपराध की दुनिया में लाने वाला यही आदमी है. यहां तक कि इस व्‍यक्ति की वजह से ही उसकी मां को पुलिस हिरासत में रखा गया. जिस व्‍यक्ति पर अर्श ने इतने सारे आरोप लगाए वह पंजाब के मोगा का कांग्रेस नेता बलजिंदर सिंह बल्‍ली था.

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, केवल अपने और अपनी मां पर हुए जुल्‍मों का बदला लेने के लिए ही अर्श डाला ने अपराध की दुनिया में कदम रखा. पिछले 4 सालों से अर्श डाला कनाडा में रख कर ही पंजाब के अपराध जगत को कंट्रोल कर रहा है.

 

इसके इशारे पर काम करते हैं 700 शूटर्स

 

अर्श के बारे में कहा जाता है कि वह सोशल मीडिया के जरिए अपने गैंग में पंजाब और हरियाणा के लोगों को शामिल करता है. वह इन युवाओं को कनाडा में बसने का लालच देकर अपने झांसे में लेता है. अर्श के बारे में कहा जाता है कि पाकिस्‍तानी सीक्रेट एजेंसी आईएसआई इसकी मददगार है.

गैंगस्‍टर अर्श डाला को राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी, पंजाब पुलिस और दिल्‍ली पुलिस ने अपने मोस्‍ट वांटेड की लिस्‍ट में शामिल कर रखा है. इसके बारे में यह मशहूर है कि इसके करीब 700 शूटर्स भारत भर में हैं, जो इसके एक इशारे पर किसी की जान ले लेते हैं. अर्श का गैंग एक्‍सटौर्शन, टारगेट किलिंग, टैरर फंडिंग, ड्रग्‍स की स्‍मलिंग समेत कई अपराधों में लिप्‍त है.

आतंकवादी घोषित

ऐसा कहा जा रहा है कि अर्शदीप की गिरफ्तारी कनाडा के एक हिंदू मंदिर पर हुए हमले के बाद हुई. यह हमला खालिस्‍तानी आतंकवादियों की ओर से किया गया था. भारत के गृह मंत्रालय की ओर से अर्श डाला को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत आतंकवादी घोषित किया जा चुका है. वहीं राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी उसे भगोड़ा घोषित कर चुकी है. उसके सिर पर 5 लाख का इनाम भी है.

अर्श और लौरेंस के बारे में दो तरह की बात की जाती हैं, कुछ लोग यह मानते हैं कि लौरेंस बिश्‍नोई और लौरेंस के दोस्‍त गोल्‍डी बराड़ के साथ अर्श डाला की बहुत अच्‍छी दोस्‍ती है. वहीं कुछ का कहना है कि अर्श डाला जिस बम्बिहा नाम के गैंग से जुड़ा है, वह लौरेंस का एंटी गैंग माना जाता है. कहा जाता है कि जिस तरह से भारतीय सीक्रेट एजेंसियां अर्श के गतिविधियों पर नजर रखती है उसी तरह से लौरेंस बिश्‍नोई गैंग भी उस पर नजर गड़ाए रहती है.

Emotional Story : मन की मुंडेर पर

लेखिका – डा. रंजना जायसवाल

 

औरत के संघर्ष को औरत ही बेहतर ढंग से समझ सकती है और आज अम्माजी ने भी इस बात को अच्छी तरह सम?ा लिया था.

‘‘म म्मी, मैं कालेज जा रही हूं. आज थोड़ा लेट जाऊंगी, सैमिनार है.’’

‘‘ठीक है, अनु. जरा संभल कर जाना,’’ जया बोली.

‘‘क्या मम्मी, आप भी न आज भी मुझे छोटी सी बच्ची ही समझती हो, यहां मत जाया कर, वहां मत जाया कर.’’

‘‘हांहां, जानती हूं कि तू बहुत बड़ी हो गई है पर मेरे लिए तो तू आज भी वही गोलमटोल सी मेरी प्यारी सी अनु है.’’

अनु के चेहरे पर मासूम सी मुसकराहट तैरने लगी.

‘‘अच्छाअच्छा, अब जल्दी भी कर, ज्यादा बातें न बना, कालेज पहुंचने में देर हो जाएगी.’’

मांबेटी में मधुर नोकझोंक चल ही रही थी कि तब तक अम्माजी प्रकट हुईं.

‘‘कहां चली सवारी इतनी सुबहसुबह?’’

‘‘दादी, मेरी एक्स्ट्रा क्लासेस हैं, बस, कालेज के लिए निकल रही हूं.’’

‘‘ठीक है, ठीक है, पढ़ाईलिखाई तो होती रहेगी पर कभीकभी अपनी दादी के पास भी बैठ जाया कर, तेरी दादी का भी क्या भरोसा, कब प्रकृति के यहां से बुलावा आ जाए.’’

अम्माजी ने दार्शनिकों की तरह कहा. यह रोज का ही किस्सा था. जब तक दादी दोचार ऐसी बातें न बोल दें तब तक उन को चैन नहीं मिलता था. अनु ने दादी के गले में हाथ डाल कर कर कहा, ‘‘मेरी प्यारी दादी, अभी आप इतनी जल्दी मुझे छोड़ कर नहीं जा रहीं. अभी तो आप को मेरी शादी में तड़कताभड़कता डांस भी करना है.’’

‘‘चल हट, तू भी न, जब देखो तब.’’

अनु की बात सुन कर अम्मा लजा गईं. तभी अनु ने मां की तरफ रुख किया,  ‘‘मम्मी, मैं सोच रही हूं कि मैं भी कंप्यूटर की क्लासेस जौइन कर लूं. इधर पढ़ाई का लोड भी थोड़ा कम है.’’

‘‘अरे, यह सब छोड़ अब चौके में मां का हाथ बंटाया कर. तुझे दूसरे घर भी जाना है. कंप्यूटरसंप्यूटर कुछ काम नहीं आने वाला. मां के साथ घर का काम करना सीख, नहीं तो ससुराल वाले उलाहना देने लगेंगे.’’

‘‘क्या दादी, आप भी न, किस जमाने की बात कर रही हैं?’’

दादी ने अनु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, तू कुछ भी कर ले, कुछ भी सीख ले पर चौके का काम नहीं सीखा तो सब बेकार है. यह समाज औरतों के लिए कभी नहीं बदलता.’’

और भी न जाने क्या सोच कर अम्मा की आंखें भर आईं. जया भी अम्मा को इस तरह से भावुक देख कर आश्चर्य में पड़ गई. आज सुबहसुबह ही बाबूजी से अम्मा की किसी बात पर नोक?ांक हो गई थी. बाबूजी ने अम्माजी से कह दिया था कि तुम दिनभर करती क्या हो? यह बात शायद उन के दिल को चुभ गई थी. जया अम्माजी से कुछ कहना चाह रही थी पर शब्द उस के गले में ही अटक गए. अम्मा ने अपनेआप को संभाला और जया की तरफ रुख कर कहा, ‘‘अब इस को अपने साथ चौके में भी काम सिखाया करो. पढ़ाईलिखाई तो होती रहेगी और अनु, यह जो कंप्यूटरसंप्यूटर का भूत है न, इसे अपने घर जा कर पूरा करना.’’

 

जया सोच में पड़ गई. अपना घर अम्माजी की नजर में अपना घर आखिर कौन सा था. जहां अनु रहती थी क्या वह घर उस का अपना घर नहीं था. शादी के पहले जब उस ने अपनी मां से कत्थक सीखने के लिए जिद की थी तो बाबूजी कितना नाराज हुए थे. अच्छे घर की लड़कियां यह सब नहीं सीखतीं. जब तुम अपने घर जाना तब यह सब नाटक करना. मेरे घर यह सब चोंचलेबाजी नहीं चलेगी. जया सोचने लगी, वक्त बदल गया, पीढि़यां बदल गईं पर आज भी यह निर्णय नहीं हो पाया कि बेटियों का असली घर कौन सा होता है. अनु कालेज चली गई और जया घर के कामों में लग गई.

दिनभर काम करतेकरते उस की कमर अकड़ गई थी. न जाने क्यों उस का मन बारबार विचलित हो रहा था. कल रात में ही अम्मा ने एक तसवीर दिखाई थी. अनु अब शादी लायक हो गई है. अब जल्दी से जल्दी इस के हाथ पीले करने हैं. तुम्हारे बाबूजी की यही अंतिम इच्छा है कि मरने से पहले वे पोती को विदा कर दें. जया अम्मा का मुंह आश्चर्य से देखती रह गई. अभी अनु की उम्र ही क्या है, अभी तो उस का कालेज भी पूरा नहीं हुआ है और अभी से शादी, उस ने न जाने कितने सपने देखे हैं, उस के उन मासूम सपनों का क्या.

‘अम्माजी, अभी तो अनु बहुत छोटी है, अभी से शादी की बातें?’

‘अरे, मैं ने ऐसा क्या कह दिया. लड़की जब कंधे के बराबर आने लगे तो उस के हाथ पीले कर देने चाहिए. वक्त का क्या पता न जाने कोई ऊंचनीच हो जाए तो. क्या तुम किसी ऊंचनीच का इंतजार कर रही हो?’

 

जया अम्मा का मुंह देखती रह गई, क्या उन्हें अपनी परवरिश पर जरा भी भरोसा नहीं है. बाबूजी की अंतिम इच्छा के लिए अनु की बलि देना कहां तक सही है. आनंद हमेशा की तरह अपनी मां के सामने मुंह नहीं खोल पाए. आज भी वही हुआ, जया आखिर कहां तक अनु की पैरवी करती. आनंद ने तसवीर पर निगाह डाली, लड़का सुंदर, सजीला और संभ्रांत लग रहा था.

‘अम्मा, लड़का तो देखने में काफी अच्छा लग रहा है.’

‘मैं भी तो यही कह रही हूं खातापीता परिवार है, अपनी अनु खुश रहेगी. अपनी मैडम को समझ लो, इन्हीं को न जाने क्या दिक्कत है?’

अम्मा की तीर सी चुभती बातों ने जया को बेचैन कर दिया. आनंद चुपचाप अम्मा की बातों को सुनते रहे. जया को इस से ज्यादा आनंद से कोई उम्मीद भी न थी.

‘अनु को यह तसवीर दिखा देना, कल यह न हो कि तुम्हारी लाड़ली कहे कि बिना पूछे शादी कर दी.’

जया कसमसा कर रह गई. तभी किसी आवाज से उस की आंखें खुल गईं, सामने अम्माजी खड़ी थीं. वह हड़बड़ा कर पलंग पर बैठ गई.

‘‘क्या हुआ अम्माजी, किसी चीज की जरूरत थी क्या? मुझे आवाज दे दी होती, मैं आ गई होती.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. सारे घर की चिंता तो मुझे ही करनी है, फिर मुझे मिलने आना ही पड़ता. अपनी बिटिया को फोटो दिखाई कि नहीं कि वैसे ही दराज में पड़ी हुई है?’’

जया के पास उन की बात का जवाब न था.

‘‘समझ गई, अभी तक तुम ने कोई बात नहीं की होगी अपनी लाडो से. एक काम ठीक से नहीं करती. लाओ वह तसवीर मुझे दे दो, मैं ही बात कर लूंगी.’’

‘‘नहींनहीं अम्माजी, ऐसी कोई बात नहीं है. काम की व्यस्तता में मैं भूल गई थी.’’

‘‘भूल गई थी?’’

अम्मा ने तिरछी निगाह से जया को देखा जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. सच में जब जया ही इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी, वह अनु से क्या कहती. ऐसा नहीं था कि उसे लड़का पसंद नहीं था पर वह इतनी जल्दी अनु की शादी नहीं करना चाहती थी. उस के भी कुछ सपने थे. कुछ अरमान थे. वह नहीं चाहती थी कि घर वालों की इच्छाओं के आगे उस के सपने दम तोड़ दें.

‘‘मैं आज जरूर पूछ लूंगी.’’

‘‘तुम तो रहने ही दो, तुम से कोई काम ठीक से नहीं होता. मुझे फोटो दे दो, मैं ही पूछ लूंगी.’’

‘‘नहींनहीं अम्माजी, ऐसी कोई बात नहीं है, आज शाम तक का समय दीजिए, मैं उस से जरूर पूछ लूंगी.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. आज जरूर पूछ लेना और अगर तुम से न हो पाए तो मुझे बता देना, मैं यह काम भी कर लूंगी.’’

जया चुपचाप अम्मा की बातों को सुनती रही. अम्मा कमरे से बाहर चली गई, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. शाम हो गई थी, लगता है अनु कालेज से वापस आ गई. जया ने साड़ी के पल्लू को ठीक किया और दरवाजे की ओर बढ़ी. अनु के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ रही थी.

‘‘मम्मीमम्मी, मैं आज बहुत खुश हूं. पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था. हर व्यक्ति की आंखों में मेरे लिए प्रशंसा का स्वर था. जानती हो मम्मी, आर के सर ने कहा, ‘तुम बहुत अच्छा बोलती हो, इसी तरह पढ़ाई पर ध्यान दो, एक न एक दिन तुम कुछ न कुछ जरूर करोगी.’ मम्मी. तुम जानतीं नहीं, मैं आज कितनी खुश हूं.’’

 

जया उस के मासूम चेहरे पर खुशी देख कर मन ही मन भावुक हो रही थी, कैसे सम?ाए घर वालों को और कैसे बताए अनु को कि उस की खुशियों को, उस के सपनों को तोड़ने की तैयारी शुरू हो चुकी थी. अनु न जाने कितनी देर तक बोलती रही. जया सम?ा नहीं पा रही थी कि वह अपनी बात कहां से शुरू करे, कैसे इस मासूम सी बच्ची के अरमानों का गला घोंट दे.

‘‘क्या हुआ मां, कुछ कहना चाहती हो?’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसी तो कोई बात नहीं.’’

अनु ने बड़े ही लाड़ से उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘मां, मैं इतनी बड़ी तो हो ही गई हूं कि तुम्हारे दिल की बातों को समझ सकूं.’’

जया का दिल भर आया, ‘‘अनु, तुम्हारी दादी तुम्हारे लिए एक रिश्ता ले कर आई हैं, बहुत ही अच्छा रिश्ता है, एक बार फोटो देख लो.’’ जया ने धीरे से तसवीर अनु की तरफ सरका दी. अनु का हाथ कांप गया. उस के हाथ के कंपन को जया ने भी महसूस किया.

‘‘मां, इतनी जल्दी भी क्या है. अभी तो मुझे जिंदगी में बहुतकुछ करना है और आप सब अभी से शुरू हो गए.’’

‘‘एक बार तसवीर तो देख लो, हो सकता है लड़का तुम्हें पसंद आ जाए.’’

अनु गुस्से से बिफर उठी, ‘‘बात पसंद या नापसंद की नहीं है, बात मेरे जीवन की है. सच बताओ मां, क्या तुम भी यही चाहती हो?’’

जया के पास अनु की किसी भी बात का कोई जवाब नहीं था. अनु ने बड़े ही संजीदा स्वर में कहा, ‘‘मां, क्या तुम भी यही चाहती हो जो सारी दुनिया चाहती है तो मैं तुम्हारी बात नहीं टालूंगी?’’

जया अनु को देखती रह गई. उस छोटे से वाक्य ने न जाने कितनाकुछ कह दिया. जया चुपचाप तसवीर को उठा कर अपने कमरे में चली आई पर बात वहीं खत्म नहीं हुई थी. बात तो अब शुरू हुई थी. दादी ने दूसरे दिन जया को रोक कर पूछ लिया, ‘‘जया, अनु से कोई बात हुई, उसे तसवीर दिखाई?’’

‘‘जी, वह…’’

‘‘अगर तुम से नहीं हो सकता तो मुबताओ, मैं अभी अनु से पूछती हूं. अनु अनु…’’

 

अनु कालेज जाने के लिए तैयार हो रही थी. अम्मा की आवाज सुन कर आनंद, बाबूजी और अनु कमरे से बाहर आ गए, ‘‘क्या हुआ दादी, आप इतनी जोरजोर से क्या चिल्ला रही हैं?’’

‘‘अनु, मु?ो लागलपेट कर बात करनी नहीं आती. तुम्हारी शादी के लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया है. तुम्हारी मां ने शायद उस की तसवीर दिखाई होगी. हम सब को रिश्ता बहुत पसंद है. तुम भी तसवीर देख लो, लड़के वालों को जवाब देना है.’’

‘‘दादी, ऐसी क्या जल्दी है, अभी मेरी उम्र ही क्या है, अभी तो मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई और आप सब मुझे विदा करने के लिए तैयार बैठे हुए हैं.’’

‘‘हर चीज का एक वक्त होता है. शादी की उम्र निकल जाएगी तो हाथ मलते रह जाओगी.’’

‘‘पर दादी.’’

‘‘परवर कुछ नहीं, मैं ने जो कह दिया, सो कह दिया. तुम्हारे दादाजी की भी यही इच्छा है.’’

ड्राइंगरूम में अजीब सा सन्नाटा पसर गया. तभी एक गंभीर सी आवाज ने इस सन्नाटे को तोड़ा, ‘‘अम्माजी, अगर अनु नहीं चाहती है कि उस की शादी अभी न हो तो हमें उस की शादी अभी नहीं करनी चाहिए.’’

अम्माजी ने जलती हुई निगाह से जया की तरफ देखा, ‘‘देख रहे हैं आनंद के पापा, इन के भी पर निकल आए हैं. कैसी मां हो तुम, अपनी बेटी को सम?ाना चाहिए, उलटे तुम उस के गलत फैसले में उस को बढ़ावा दे रही हो?’’

‘‘नहीं अम्माजी, यह उस की जिंदगी है, उस की जिंदगी के फैसले भी उसी के होंगे. हम सब उस की जिंदगी के फैसले नहीं लेंगे.’’

‘‘वाहवाह, क्या बात कही,’’ अम्माजी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘इस का मतलब यह है कि हमारे मांबाप और उन के मांबाप ने अब तक अपनी बेटियों के लिए जो फैसले लिए वे गलत थे. जय हो, यही सुनना बाकी था.’’

जया ने बड़े ही संजीदा स्वर में कहा, ‘‘काश, मेरे पापा ने भी मु?ा से शादी करने से पहले सिर्फ एक बार पूछा होता.’’

आनंद जया को आश्चर्य से देख रहे थे.

‘‘क्या कमी है तुम्हारी जिंदगी में, सबकुछ तो है, आनंद जैसा पति, इतना अच्छा घर, संतान का सुख और क्या चाहिए औरत को?’’ अम्माजी ने अपनी बात की पैरवी की.

‘‘अम्माजी, क्या औरत को सिर्फ पति का प्यार, पैसा और एक अच्छा घर ही चाहिए होता है? क्या औरत सिर्फ यही चाहती है, सोच कर देखिए. जिस उम्र में हमारी शादी हुई तब उस नाजुक उम्र में गृहस्थी का बोझ सहने लायक हमारी उम्र थी क्या पर बहू के तौर पर मुझे वह सबकुछ करना पड़ा जो मैं करना नहीं चाहती थी. बात सिर्फ कमी की नहीं है, अम्माजी. बात आत्मसम्मान की है.

‘‘शादी की वजह से मेरी पढ़ाई बीच में ही छूट गई, यह आप सब जानते हैं. मेरे भी बहुत सारे सपने थे, मैं भी चाहती थी औरों की तरह कि पढ़लिख सकूं और अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं पर यह सपना, सपना ही रह गया. हम बेटी को पढ़ाने की बात तो कहते हैं पर उसे सपने देखने और फैसले लेने का अधिकार नहीं देते. सो, फिर ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा.

 

‘‘मुझे अपने पति से कोई शिकायत नहीं है पर जब किसी मुद्दे पर मेरी उन से बहस होती है तो अकसर वे मुझ से कह देते हैं, ‘तुम चुप रहो, तुम्हें

समझ में नहीं आएगा.’ आप की गृहस्थी को देखने वाली, आप के बच्चों को पालने वाली, आप के मातापिता की सेवा करने वाली आप की पत्नी आप से सिर्फ इसलिए कम है क्योंकि वह आप की तरह पढ़ीलिखी नहीं है. यह अफसोस मु जीवनभर रहा और आगे भी रहेगा कि काश, मैं ने अपने पिता के फैसले का विरोध किया होता, काश, मेरे पिता ने मुझ से मेरी राय मांगी होती तो शायद मेरा जीवन और भी खुशहाल होता और मैं आप सभी को आत्मसम्मान के साथ स्वीकार कर पाती.’’

बाबूजी एकटक जया को देख रहे थे, उन्होंने जया के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘दूसरे के सुखदुख को समझने वाली मेरी बहू के दर्द को इस घर ने कभी नहीं समझ. पर बेटा, मुझ तुम पर गर्व है कि तुम ने हमें एक बहुत बड़े गलत काम को करने से बचा लिया. मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मुझे फख्र है कि मुझे तुम्हारी जैसी बहू मिली.’’

अम्मा की आंखों से भी झर झर आंसू बह रहे थे, शायद एक औरत के संघर्ष को एक औरत ही बेहतर ढंग से समझ सकती है और आज अम्माजी ने भी इस बात को अच्छी तरह समझ लिया था. सभी की आंखों में आंसू भरे हुए थे और चेहरे पर एक सहज मुसकान. आज सूरज दिलों के अंधेरों को दूर कर एक नए प्रकाश के साथ आसमान में दैदीप्यमान था, आज मन की मुंडेर पर उम्मीद का दीया टिमटिमा रहा था.

भाभीजी कहां हैं

 

लेखक : अश्विनी कुमार भटनागर

 

केशव की पत्नी तरला खाना बनाने की शौकीन थी तो नरेश की पत्नी मनीषा को अपनी साजसज्जा से फुरसत नहीं मिलती थी. उन के इन रवैयों से परेशान केशव व नरेश ने एक ऐसी युक्ति अपनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, आखिर वह युक्ति क्या थी?

 

हैलोहैलो से परिचय की शुरुआत हो कर केशव और नरेश में आत्मीयता हो गई थी. अब तो दोपहर का खाना भी दोनों साथ बैठ कर खाते थे.

 

‘‘आज मैं इडली, चटनी और सांभर लाया हूं.’’ केशव ने अपना लंच बौक्स खोलते हुए कहा, ‘‘मेरी पत्नी बहुत अच्छा बनाती है.’’

 

‘‘यार, घर के खाने की बात ही कुछ और है,’’ नरेश ने अपना डब्बा खोल कर कुछ उदासी से कहा, ‘‘मेरा मन तो अकसर बाहर खाने को करता है.’’

 

‘‘हम लोगों की मानसिकता भी विचित्र है,’’ केशव ने हंस कर कहा, ‘‘होटल में घर जैसा खाना ढूंढ़ते हैं और घर में होटल जैसा.’’

 

दरअसल, नरेश के खाने में न तो कोई विविधता होती थी और न ही अच्छा स्वाद. लगभग रूखा सा. नरेश की पत्नी की रुचि खाना बनाने में कतई नहीं थी. वह तो बस, पत्नी का कर्तव्य निभा रही थी. अगर नरेश ने कभी कुछ कह दिया तो वह तुनक जाती थी.

 

‘‘इतने सारे होटल हैं. अब तो वहां जाना भी नहीं पड़ेगा. सब मुफ्त में होम डिलीवरी करते हैं. मनचाहा मंगाओ और खाओ,’’ उस की पत्नी का सदा यही जवाब होता था.

 

केशव को नरेश की स्थिति का एहसास था, इसीलिए वह अपनी पत्नी तरला से कहता, ‘‘नरेश को तुम्हारा खाना बहुत अच्छा लगता है. थोड़ा ज्यादा ही रख देना.’’

 

तरला इठला कर उत्तर देती, ‘‘मेरा खाना किसे पसंद नहीं? मुझ तो घर में सब हल्दीराम भी कहने लगे थे. बस, एक बार रसोई में घुस जाऊं तो नए से नया स्वादिष्ठ व्यंजन बना कर ही निकलती थी. ठीक बात है न?’’

 

केशव कटाक्ष करने से नहीं चूकता,  ‘‘हां, एक गुण हो तो बाकी सारे अवगुण नजरअंदाज हो जाते हैं.’’

 

तरला नाराज हो कर मुंह बिचकाती. वैसे, वह कोई खास सुंदर नहीं थी और न ही उस में ठीक से रहने का सलीका ही था. काफी समय किचन और मसालों में रहने से उस के कपड़ों से ही नहीं, शरीर से भी मसालों की गंध आती थी. अब तो केशव उस गंध का इतना आदी हो गया था कि अगर वह कभी घर में नहीं होती तो दूर से ही उस की अनुपस्थिति का एहसास उसे हो जाता था.

 

 

खाली घर में ऊंचे स्वर में केशव अपनेआप से कहता था, ‘‘कहां हो मेरी हल्दी, मेरी सरसों, मेरी नमक, मेरी मिर्च, अब अधिक न तड़पाओ और जल्दी से प्रकट हो जाओ.’’

 

बाहर से अंदर आते हुए जब तरला यह नाटकीय संवाद सुनती तो खिलखिला कर हंस पड़ती थी.

 

एक दिन केशव ने कहा, ‘‘सुनो, मैं चाहता हूं नरेश और मनीषा को खाने पर बुला लूं. तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?’’

 

नरेश के बारे में तरला बहुतकुछ सुनती रहती थी. उसे भी नरेश से मिलने की इच्छा थी, सो तुरंत कहा, ‘‘हांहां, बुला लो, कम से कम एक प्रशंसक तो और बढ़ेगा.’’

 

जिस दिन जाना था, मनीषा और नरेश समय से पहले ही पहुंच गए. घंटी बजाई तो दरवाजा केशव ने खोला. वह बनियान और पाजामा पहने था. यह देख कर दोनों को हंसी आ गई.

 

‘‘माफ करना, यार,’’ केशव ने सोेफे पर से सामान हटा कर उन के बैठने की जगह बनाते हुए कहा, ‘‘भाभी, आप बैठिए. मैं अभी तैयार हो कर आता हूं.’’

 

घर को बिखरा देख कर दोनों थोड़ा चौंक गए थे. अब आने का पता था तो कुछ तो सजावट सभी करते हैं. और तो और, घर में अगरबत्ती की जगह मसालों की खुशबू ने स्वागत किया.

 

केशव के जाते ही नरेश और मनीषा ने एकदूसरे को देखा. आंखों में एक ही प्रश्न था. यह घर है या कोई गोदाम?

 

केशव को तैयार हो कर आने में आधा घंटा लगा. तब तक दोनों बैठे बोर होते रहे.

 

जब केशव आया तो नरेश ने पूछा, ‘‘भाई, हमारी भाभीजी कहां हैं? अभी तक दर्शन नहीं हुए. कहीं ब्यूटीपार्लर तो नहीं चली गईं.’’

 

‘‘मेरी इन को तो ब्यूटीपार्लर का नाम छोड़ो, काम भी पता नहीं,’’ केशव ने मनीषा की ओर प्रशंसा से देखते हुए कहा, ‘‘ये तो साक्षात ब्यूटीपार्लर स्वयं हैं.’’

 

 

मनीषा को सजनेसंवरने का बड़ा चाव था. केश हों या कपडे़, सौंदर्य प्रसाधन हों या चलनेबैठने का अंदाज, सब में एक अदा थी. अपनी प्रशंसा सुन कर वह मुसकरा दी.

 

‘‘अब यही तो एक गुण है मेरी इन अच्छी आधी में,’’ नरेश ने हंस कर कहा, ‘‘जो भी इन्हें देखता है, लट्टू हो जाता है.’’

 

केशव अभी मनीषा को निहार ही रहा था कि अंदर से तरला बाहर आ गई.

 

‘‘माफ करना भैया और मनीषाजी,’’ तरला ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘सुबह से खाना बनाने में लगी थी. आप लोग पहली बार आए हैं तो कुछ तो विशेष बनाना ही था न.’’

 

तरला को देख कर नरेश और मनीषा चौंक गए. अभी तक वह रसोई वाली साड़ी पहने थी. केशों की लटें गालों पर झुल रही थीं. पता न होता तो जरूर ही उसे नौकरानी समझने की भूल हो जाती.

 

‘‘आज परीक्षा हो जाएगी,’’ मनीषा ने हंस कर कहा, ‘‘वैसे तो आप स्वयं कुशल हैं, लेकिन मैं आप की कुछ मदद कर सकती हूं?’’

 

‘‘अरे नहीं,’’ केशव ने कहा, ‘‘आप का शृंगार खराब हो जाएगा.’’

 

‘‘आप इन को सूप दीजिए, मशरूम का है,’’ तरला ने केशव से कहा और बोली, ‘‘बस, आधे घंटे में आती हूं.’’

 

सूप इतना स्वादिष्ठ था कि नरेश को और लेने की इच्छा हुई, लेकिन रुक गया. मनीषा ने भी प्रशंसा की.

 

तरला हाथमुंह धो कर और साड़ी बदल कर आई, लेकिन कोई अंतर नहीं पड़ा.

 

मेज पर तरहतरह के व्यंजन थे. इतने स्वादिष्ठ थे कि सब उंगलियां चाटते रह गए. तरला हर एक व्यंजन का विस्तार से वर्णन भी कर रही थी. सबकुछ इतना अच्छा था कि नरेश और मनीषा भूल गए कि जब घर में आए थे तो कितना बुरा प्रभाव पड़ा था.

 

नरेश बारबार पत्नी से कहता, ‘‘तुम को भाभी से प्रशिक्षण लेना पड़ेगा. कुछ दिनों के लिए यहीं छोड़ जाऊंगा. क्यों भाभी?’’

 

नरेश और मनीषा के जाने के बाद तरला खाना और बरतन समेटने लगी. केशव आराम से बैठा तरला को भागदौड़ करते देख रहा था.

 

थोड़ी देर बाद पल्लू से हाथ पोंछते हुए तरला ने पास आ कर बैठते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘कहो, कैसा रहा? खाने की तो बहुत तारीफ कर रहे

थे न.’’

 

‘‘तारीफ तो होटल के खाने की भी लोग करते हैं,’’ केशव ने चिढ़ कर कहा, ‘‘मु?ो तो शरम आ रही थी.’’

 

‘‘शरम, कैसी शरम?’’ तरला ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अच्छे खाने में शरम की क्या बात हुई?’’

 

‘‘शरम खाने से नहीं, तुम्हारे से आई,’’ केशव ने तनिक क्रोध से कहा, ‘‘देखा नहीं, मनीषा कैसा शृंगार कर के आई थी. कपड़े और जेवर पहनने के ढंग से लगता था कि अच्छे खानदान की है. घरवाली को ऐसा लगना चाहिए कि पति को गर्व हो.’’

 

तरला झटके से उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘अब खाना बनवा लो या मुझे कोई मेम बना दो. ठीक है, कल से खाना अपनेआप बना लेना. मैं सजती

और संवरती रहूंगी. मुझे भी तो पाउडरलिपस्टिक लगाना आता है.’’

तरला पति के मुंह से प्रशंसा के दो शब्द सुनने आई थी. उस की जगह कांटे चुभो दिए. क्रोध से केशव को देखने लगी.

 

‘‘नरेश तो यह भी कह रहा था कि उस का घर देखो तो हमेशा आईने की तरह चमकता है,’’ केशव ने क्रोध से कहा, ‘‘एक हमारा घर देखा, पूरा गोदाम है.’’

 

‘‘हां, और नरेश सुबह उठ कर चाय बनाता है तब महारानी बिस्तर से उठती है,’’ तरला ने ऊंचे स्वर से कहा, ‘‘और अगर कहीं नरेश ने जूतेचप्पल इधरउधर रख दिए तो सारे घर में झाड़ू लगवाती है. मुझे सब मालूम है. आधा महीना तो खाना बाहर से आता है.’’

 

अगले दिन तरला बिस्तर से नहीं उठी. सुबह न चायनाश्ता बना न दफ्तर के लिए लंच. केशव चुपचाप खाली लंचबौक्स उठा कर चला गया. भोजन अवकाश पर नरेश और केशव आमनेसामने थे. दोनों का मुंह लटका हुआ था.

 

लंचबौक्स खोलते हुए आश्चर्य का नाटक कर केशव ने कहा, ‘‘अरे, लंच वाला डब्बा तो घर पर ही रह गया. खाली डब्बा आ गया. चलो, तुम्हारे पास तो कुछ होगा.’’

 

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ नरेश ने उत्साह से कहा, ‘‘आज भरवां परांठे बना रही थी, सो मैं ने तुम्हारा खयाल कर के और परांठे रखने को कह दिया था. अब तुम्हारे घर जैसे तो नहीं.’’

 

 

नरेश ने डब्बा खोला और आश्चर्य से बोला, ‘‘अरे, यह भी खाली, लगता है मेरा डब्बा भी घर पर रह गया.’’

 

दोनों एकदूसरे को काफी देर तक देखते रहे और फिर ठठा कर हंस पड़े.

 

केशव ने हंसते हुए कहा, ‘‘यार, ये पत्नियां भी खूब हैं. तारीफ करो तो मुश्किल, बुराई करो तो भी मुश्किल. अब पति बेचारा क्या करे?’’

 

‘‘अब मैं ने मनीषा से यही तो कहा था कि भाभी कितना अच्छा खाना बनाती हैं,’’ नरेश ने कहा, ‘‘तुम कुछ दिन उन के पास रह कर सीख लो.’’

 

‘‘और मैं ने क्या कहा, यही तो कि मनीषा कितनी अच्छी तरह से अपने को और अपने घर को रखती है. थोड़ा उस से सीख लो,’’ केशव ने कंधे उचका कर कहा, ‘‘बस, हो गई महाभारत शुरू.’’

 

कैंटीन में कौफी पीते हुए नरेश ने कहा, ‘‘यार, पत्नी बदल लेते हैं. शायद कुछ दिन सुकून मिले.’’

 

‘‘विचार तो बुरा नहीं है,’’ केशव ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लेकिन संभव नहीं.’’

 

‘‘क्यों?’’ नरेश ने आश्चर्य से पूछा.

 

‘‘उसे झेल नहीं पाओगे,’’ केशव ने उत्तर दिया, ‘‘और इतनी सफाईपसंद औरत को झेलना मेरे लिए भी मुश्किल होगा. आदतें तो पत्नियों ने पहले ही बिगाड़ दी हैं.’’

 

‘‘बात तो ठीक है,’’ नरेश ने सहमत हो कर कहा, ‘‘फिर करें क्या?’’

 

‘‘कुछ नहीं, बस, झेलते रहो,’’ केशव ने फलसफा झाड़ते हुए कहा, ‘‘सात फेरे लिए हैं और सात जनम साथ निभाने के वादे किए हैं.’’

 

‘‘चलो, हम ही सुधर जाते हैं,’’ नरेश ने गहरी सांस ले कर कहा.

 

2 दिनों के शीतयुद्ध के बाद दोनों का जीवन सामान्य होने लगा. चेहरों पर हलकी मुसकान आ गई.

 

 

कुछ दिन और बीतने के बाद केशव को लगा दफ्तर से आने के बाद घर कुछ अधिक साफसुथरा था. तरला भी धुले और साफ कपड़ों में दिखाई दी.

 

जब न रहा गया तो केशव ने नरेश से कहा, ‘‘पता नहीं मेरा सपना है या सच देख रहा हूं.’’

 

‘‘क्या मतलब?’’ नरेश ने आश्चर्य से पूछा. केशव ने घर की सुधरती स्थिति को स्पष्ट किया.

 

‘‘ताज्जुब है,’’ नरेश ने कहा, ‘‘मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है.’’

 

‘‘क्या मतलब?’’

 

‘‘आजकल खाना पहले से कुछ अधिक स्वादिष्ठ लग रहा है. खाने में विविधता भी है,’’ नरेश ने खुलासा किया, ‘‘लगता है मनीषा भाभी से टिप ले रही है.’’

 

‘‘हो सकता है,’’ केशव ने हंस कर कहा.

 

‘‘क्या मतलब?’’ नरेश ने पूछा.

 

केशव ने हंसते हुए कहा, ‘‘मेरा टैलीफोन का बिल बढ़ रहा है. और तेरा?’’

 

‘‘वाह, क्या बात है,’’ नरेश ठठा कर हंस पड़ा, ‘‘और मेरा भी.’’

 

‘‘और हां, याद रखना,’’ केशव ने मंत्र पढ़ा, ‘‘तारीफ अपनी पत्नी की और बुराई दूसरी पत्नी की. वह भी अगर मजबूरी हो.’’

 

कुछ सोच कर नरेश ने कहा, ‘‘यार, अगर मेरी कोई संतान लड़की हुई तो उसे पूरी शिक्षा दूंगा. आधीअधूरी नहीं.’’

 

‘‘यानी, घरगृहस्थी चलाने की पूरी शिक्षा और अपने ऊपर भी खर्च करने में कोई कंजूसी न करे,’’ केशव ने कहा, ‘‘जहां जाए, पूरा योगदान दे और हर क्षेत्र में दिलों को जीत ले.’’

 

 

 

समर्पण : रिश्‍ते की गहराई

लेखिका : डा. के रानी

 

बेटी अनु का बेरोजगार तुषार से शादी करने का निर्णय सुधा पचा नहीं पा रही थी. लेकिन अनु को तुषार की काबिलीयत और समझदारी पर पूरा विश्वास था. तुषार ने भी अनु को अपने प्रति प्यार को  अपने समर्पण की महक से और भी सराबोर कर दिया.

 

 

 

 

सुबहसुबह अनु का फोन आ रहाथा. सुधा ने झट से फोन उठा लिया. अनु के पापा शर्माजी भी पास में खड़े थे. सुधा ने हमेशा की तरह स्पीकर औन कर दिया जिस से वे दोनों उस से बात कर सकें. अनु ने उन्हें तुरंत खुशखबरी सुनाई, ‘‘मम्मी, मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है.’’

 

सुधा ने सुना तो अवाक रह गई. उसे अनु से अभी ऐसी उम्मीद नहीं थी. उस ने पूछा, ‘‘कौन है वह खुशनसीब जिसे हमारी बेटी ने अपना साथी चुना है?’’

 

‘‘तुषार. हम दोनों यहां साथ ही कंपीटिशन की तैयारी कर रहे हैं,’’

 

यह सुनते ही सुधा के हाथ कांपने और जबान लड़खड़ाने लगी.

 

अनु के पापा ने जब यह बात सुनी तो वे सन्न रह गए, ‘‘अनु, तुम क्या कह रही हो? तुम पर तो हमारी बहुत सारी उम्मीदें लगी हुई हैं.’’

 

‘‘पापा, मैं आप की उम्मीदें पूरी करने की पूरी कोशिश करूंगी. मैं तुषार को अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हूं. वह बहुत अच्छा लड़का है. मुझे पूरा यकीन है कि जब आप उस से मिलेंगे तो आप को भी वह बहुत पसंद आएगा.’’

 

‘‘बेटा, वह तो अभी जौब पर भी नहीं है.’’

 

‘‘इस से क्या फर्क पड़ता है पापा? जौब में तो मैं भी नहीं हूं. हम दोनों संघर्ष कर रहे हैं और हमारा संघर्ष एक दिन जरूर रंग लाएगा.’’

 

‘‘अनु एक बार फिर से सोच लो.’’

 

‘‘इस में सोचना क्या है, पापा?

 

मुझे अपने जीवनसाथी के रूप में तुषार पसंद है. मैं उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हूं. अगर मेरी पसंद को आप लोग खुले दिल से स्वीकार करेंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा, मम्मी.’’

 

‘‘हम तो हमेशा से तुम्हारे साथ हैं.  तुम्हारी इच्छा हमारे लिए बहुत माने रखती है. हम चाहते थे कि पहले तुम कोई अच्छा जौब चुन लो उस के बाद शादी के बारे में सोचो.’’

 

‘‘पापा, कल किस ने देखा है? आप लोग निश्चिंचिंत रहिए. हम दोनों आप के ऊपर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं डालेंगे. मुझे नैट क्वालीफाई करने के बाद इतनी फैलोशिप मिलती है कि उस से एक छोटे से घर में हम गुजारा कर लेंगे.’’

 

 

अनु के तर्कों के आगे मम्मीपापा की एक न चली. तुषार ने भी अपने मम्मीपापा को मना लिया था. वे भी चाहते थे लड़का पहले कुछ बन जाए और उस के बाद शादी के बारे में सोचे पर तुषार नहीं माना. उस ने अनु के बारे में उन्हें सबकुछ बता दिया. वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सके. उन्होंने भी भारी मन से शादी की सहमति दे दी. दोनों परिवारों ने दिल्ली आ कर एकदूसरे से मुलाकात कर ली थी. उन की एकदूसरे से कोई अपेक्षाएं भी नहीं थीं.

 

बहुत सादे तरीके से सुधा ने अपनी बेटी को विदा कर दिया. तुषार और अनु बहुत खुश थे. उन्हें अपने फैसले पर नाज भी था. कोचिंग के दौरान अनु की दोस्ती तुषार से हो गई थी. वह बिहार का रहने वाला साधारण घर का लड़का था. वह पढ़नेलिखने में बहुत होशियार था. प्रशासनिक सेवा में हाथ आजमाने के लिए उस के मांबाप ने उसे कोचिंग के लिए दिल्ली  भेज दिया था. एक ही सैंटर पर कोचिंग के दौरान वे एकदूसरे के नजदीक आ गए थे.

 

अनु और तुषार दोनों की परवरिश साधारण परिवार में हुई थी. उन की सोच भी एकजैसी थी. बहुत जल्दी उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. अभी तक दोनों को किसी प्रतियोगिता में सफलता नहीं मिल पाई थी लेकिन वे दोनों अपनी मंजिल की ओर लगातार अग्रसर थे. वे दोनों एकसाथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते और अपने दिल का हाल भी एकदूसरे को बताते.

 

एक दिन अवसर पा कर तुषार ने अनु के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया और अनु के सामने अपने दिल की बात रख दी, ‘अनु, हम एकदूसरे को 2 सालों से अच्छी तरह से जानते हैं. मैं चाहता हूं कि हम हमेशा एकसाथ रहें. क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’

 

 

उस की बात सुन कर अनु चौंक गई थी. उसे उम्मीद नहीं थी कि तुषार उसे इतनी जल्दी प्रपोज कर देगा.

 

‘यह तुम क्या कह रहे हो? अभी तो हम दोनों ही अपने कैरियर के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में शादी की बात तुम्हारे दिमाग में कहां से आ गई?’

 

‘मेरे हिसाब से तो अभी शादी करना ठीक रहेगा. क्या पता कल अच्छी जगह नौकरी मिलने के बाद हमतुम एकदूसरे से कितनी दूर चले जाएं?’

 

‘ऐसा कभी नहीं होगा.’

 

‘वक्त का कुछ पता नहीं होता, अनु. हम अभी से कोशिश करेंगे कि एकदूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं. नौकरी के बाद घर वालों का दबाव भी हम पर बढ़ जाएगा.’

 

‘क्या तुम उन के दबाव में आ कर शादी करोगे?’

 

‘नहीं अनु, मेरे कहने का मतलब यह नहीं. मैं किसी को नाराज नहीं करना चाहता. यह समय है जब हम अपनी इच्छाओं को पूरा करते हुए दूसरों के दिल को दुखाए बगैर आराम से शादी कर सकते हैं और अपना ज्यादा से ज्यादा समय एकसाथ बिता सकते हैं,’ तुषार बोला.

 

तुषार स्वभाव से गंभीर था. अनु उस की बातों की गहराई को समझ गई. उन से शादी के लिए हां कह दी. सुधा के परिवार, पड़ोसी और रिश्तेदारों ने कभी सोचा भी नहीं था कि अनु इतने अच्छे कैरियर के साथ बिना व्यवस्थित हुए शादी कर लेगी? पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने सुधा की बहुत खिंचाई की थी. पड़ोस वाली गुप्ता आंटी तो जैसे इसी मौके की तलाश में थीं, ‘सुधा, तुम तो कहती थीं कि मेरा दामाद कोई आईएएस औफिसर होगा. मेरी अनु के लिए लड़कों की कोई कमी नहीं रहेगी.’

 

‘अनु ने बहुत सोचसम?ा कर अपने लिए जीवनसाथी चुना है. आखिर उसे तुषार में कुछ खास तो दिखाई दिया होगा, तभी उस ने इतना बड़ा कदम उठाया है. उस का चुनाव कभी गलत नहीं हो सकता.’

 

‘वह तो दिखाई दे रहा है,’ गुप्ता आंटी कटाक्ष करती बोलीं.

 

सुधा को सभी से ऐसी बातें सुनने को मिल रही थीं. अनु ने मम्मीपापा के सपनों को दरकिनार करते हुए, किसी की परवाह किए बगैर शादी कर ली थी.

 

सुधा को छुटपन से ही अपनी बेटी पर बड़ा नाज था. बचपन से ही अनु पढ़ने में बहुत होशियार थी. एक साधारण से परिवार में पैदा होने के कारण उस के पास बहुत सारी सुविधाएं तो नहीं थीं पर एक तेज दिमाग जरूर था, जिस के बल पर वह अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रही थी. शर्माजी को भी अपनी बेटी पर गर्व था. वे उस की हर इच्छा पूरी करते. अनु के बड़े होने के साथ मम्मीपापा की अपेक्षाएं भी बड़ी हो गई थीं.

 

‘अनु पढ़नेलिखने में विलक्षण है. वह जिस काम में हाथ डालेगी वही बन जाएगी,’ हरकोई यही कहता. यह सुन कर सुधा और शर्माजी फूले न समाते. अनु ने पहले ही बता दिया था कि वह डाक्टर या इंजीनियर नहीं बनेगी. वह पढ़लिख कर किसी अन्य क्षेत्र में जाएगी. अनु ने अर्थशास्त्र से एमए प्रथम श्रेणी में करने के साथ ही कालेज में टौप किया था. उस के प्रोफैसर चाहते थे कि वह इसी विषय में पीएचडी कर प्रोफैसर बन जाए पर अनु कहीं और अपना भविष्य तलाश रही थी. वह प्रशासनिक सेवाओं में जाने की इच्छुक थी.

 

 

अपने सपने पूरे करने के लिए अनु कोचिंग के लिए दिल्ली चली आई. सुधा और शर्माजी को उस के कोचिंग लेने पर कोई एतराज नहीं था. उन्हें पूरा विश्वास था कि इस के बल पर अनु एक दिन उन का नाम जरूर रोशन करेगी. लेकिन बिना कुछ बने तुषार से शादी कर के अनु ने मम्मीपापा के सपनों को एक ?ाटके में तोड़ डाला था.

 

अनु की शादी के बाद भी कई दिनों तक सुधा अपनेआप को सामान्य नहीं कर पाई. तुषार से मिल कर उसे भी अच्छा लगा था. वह एक सुल?ा हुआ युवक था लेकिन एक बेरोजगार दामाद को अपनाने में उसे हिचक हो रही थी. बेटी की खुशी के आगे उन्होंने कुछ नहीं कहा.

 

 

उन्हें यकीन था एक दिन अनु जरूर कुछ न कुछ अच्छा ही करेगी. कुछ ही महीने में अनु की मेहनत रंग लाई. उस ने पीसीएस की मुख्य परीक्षा पास कर ली थी. अनु ने साक्षात्कार की बहुत अच्छी तैयारी की थी पर वह उस में रह गई. तुषार अभी भी संघर्षरत था. उन दोनों को इस बात का काफी मलाल हुआ. ऐसी परिस्थिति में भी तुषार ने अनु को हिम्मत बंधाई, ‘‘अनु, तुम्हें दिल छोटा नहीं करना चाहिए. तुम बहुत मेहनती और होशियार हो. एक दिन तुम्हें अपनी मेहनत का पूरा श्रेय जरूर मिलेगा.’’

 

‘‘तुषार, तुम ही तो मेरी प्रेरणा हो. तुम्हारी बातों से मु?ो बड़ी हिम्मत मिलती है. मैं और मेहनत करूंगी और एक दिन कुछ बन कर दिखाऊंगी,’’ अनु बोली.

 

इसे कोई संयोग ही कहें कि जितना उस ने सोचा था, वह वहां तक न पहुंच पाई. नैट परीक्षा उत्तीर्ण करने के कारण उस का यूनिवर्सिटी में असिस्टैंट प्रोफैसर के लिए चयन हो गया था. परिस्थितियों को देखते हुए अनु ने यह जौब खुशीखुशी स्वीकार कर ली. अब उस के सामने आर्थिक परेशानी नहीं थी.

 

2 महीने बाद तुषार का सलैक्शन  यूपीएससी परीक्षा के माध्यम से ही समीक्षा अधिकारी के लिए हो गया था. दोनों बेहद खुश थे. आखिरकार उन्हें एक ही शहर में नौकरी तो मिल गई थी. ये नौकरियां उन के योग्यता और सपनों के अनुरूप नहीं थीं लेकिन घरगृहस्थी चलाने के लिए पर्याप्त थीं. अनु ने यह खबर मम्मीपापा को सुनाई तो उन्हें ज्यादा खुशी नहीं हुई.

 

सुधा बोली, ‘‘अनु, तुम आगे भी  तैयारी करते रहना. यह नौकरी तो तुम्हें इसी शहर में रह कर पढ़ने से भी मिल सकती थी.’’

 

‘‘आप बिलकुल ठीक कहती हैं, मम्मी. मैं आगे भी प्रयास करती रहूंगी.’’

 

अनु अपने काम के प्रति बहुत समर्पित थी. वह पीएचडी करना चाहती थी ताकि अपने कैरियर में किसी से पीछे न रहे. नैट की बदौलत वह इस नौकरी तक पहुंच गई थी. तुषार के सहयोग के कारण उसे आगे पढ़ने में कोई परेशानी नहीं थी. वे दोनों अभी भी प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे थे पर उन का समय साथ नहीं दे रहा था. तुषार की नौकरी लगने के सालभर बाद अनु ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. सुधा ऐसे समय में बेटी को अकेले पा कर मात्र 2 हफ्ते के लिए अनु के पास आई थी. उस के नर्सिंगहोम से घर आ जाने पर वह वापस लौट आई थी. तुषार जिस तरह से अनु का खयाल रखता था, सुधा उस से संतुष्ट थी.

 

 

अनु के 6 महीने मातृत्व अवकाश के साथ आराम से कट गए. उस ने कुछ महीने और शिशु देखभाल अवकाश ले लिया था. अब नौकरी के साथसाथ बच्चे को देखने के लिए एक आदमी की घर पर जरूरत थी.

 

अनु ने कहा, ‘‘तुषार, क्यों न हम अपने पेरैंट्स को यहां बुला लें.’’

 

‘‘क्या उन का दिल हमारे साथ लगेगा? हम एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं. मम्मीपापा को इस प्रकार से रहने की आदत नहीं है.’’

 

‘‘तुम ठीक कहते हो. उन के लिए यह घर जेल के समान हो जाएगा, भले ही हम अपनी ओर से उन के लिए कोई कसर नहीं रखेंगे. एक सामान्य जिंदगी जीने वाले को बड़े शहरों की आदत नहीं होती. उन की अपनी एक दिनचर्या है, जिसे वे यहां अच्छे से नहीं निभा पाएंगे. इस के साथ एक दूसरी बात भी है.’’

 

‘‘वह क्या?’’

 

‘‘तुम तो जानती हो कि उन के सपनों को तोड़ कर हम दोनों ने शादी की. उन की अपेक्षाएं हम से कुछ और थीं और हम उन की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे. हमें देख कर उन्हें यह बात भी याद आती रहेगी. अच्छा होगा कि हम बच्चे की देखभाल के लिए एक आया रख लें.’’

 

 

जल्दी ही अनु ने अपने सहकर्मियों की मदद से एक आया का इंतजाम कर दिया पर उस के भरोसे रिया को छोड़ने में दोनों को बड़ी परेशानी हो रही थी. किसी तरह 2 महीने बीते. एक बार रिया की तबीयत बिगड़ गई. ऐसी हालत में उन की हिम्मत रिया को आया के भरोसे छोड़ने की न हो सकी. तब समस्या का समाधान तुषार ने निकाला, ‘‘अनु, मैं कुछ समय के लिए रिया की देखभाल के लिए छुट्टी ले लेता हूं.’’

 

‘‘यह क्या कर रहे हो तुम?’’

 

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं. हम दोनों में से छुट्टी कोई भी ले क्या फर्क पड़ता है? बच्चा हमारा है. इतने महीने तुम उस की देखभाल कर चुकी हो. तुम्हें अभी अपना पीएचडी का काम भी पूरा करना है. मैं औफिस से छुट्टी ले लेता हूं.’’

 

‘‘तुम्हें छुट्टी कहां मिलेगी?’’

 

‘‘तो क्या हुआ? अवैतनिक अवकाश ले लूंगा. हमारे बच्चे की परवरिश में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए,’’ तुषार ने कहा तो अनु उस के परिवार के प्रति समर्पण को देख कर नतमस्तक हो गई.

 

वैसे तो उन के घर में भी काम करने  वाले आते थे लेकिन उन के ऊपर भी देखभाल के लिए घर पर कोई तो चाहिए था. तुषार ने यह जिम्मेदारी बडे़ अच्छे से संभाल ली. रिया बड़ी हो रही थी. अनु उस की ओर से बिलकुल बेफिक्र थी. तुषार एक जिम्मेदार पिता की तरह उस की बहुत अच्छी देखभाल करता. शाम को अनु थक कर घर आती तो उस के साथ भी बहुत अच्छा व्यवहार करता. अनु अपनेआप को धन्य मानती कि उसे पति के रूप में तुषार मिला. अनु ने यह बात मम्मी को बताई कि अब तुषार नौकरी छोड़ कर बच्चे की देखभाल करेंगे.

 

‘‘मम्मी, रिया हम दोनों की बेटी है. क्या फर्क पड़ता है कि देखभाल मैं करूं या तुषार करें?’’

 

‘‘बेटी, यह काम औरतों को ही शोभा देता है.’’

 

‘‘मम्मी, आप तुषार से मिल चुकी हैं. वे बहुत ही अच्छे इंसान है. उन्होंने मु?ो कभी एहसास तक नहीं होने दिया कि मैं एक औरत हूं और वे मेरे पति. वे घर को मु?ा से अच्छे तरीके से संभालते हैं और बेटी का भी बहुत ध्यान रखते हैं.’’

 

‘‘तो क्या घर तेरी तनख्वाह से चलेगा बेटी?’’

 

 

‘‘परिवार के बीच में तेरामेरा कहां से आ गया मम्मी? मेरा और तुषार का जो कुछ है वह हम सब का है. इस से क्या फर्क पड़ जाता है कि घर कौन चला रहा है? फर्क इस बात से पड़ता है कि घर अच्छे से चलना चाहिए. उस में सब के लिए स्थान होना चाहिए. सब की कद्र होनी चाहिए. रिया को घर पर आया की नहीं मम्मीपापा की जरूरत है. तुषार उस की बहुत अच्छे से देखभाल करते हैं. अगर तुम्हें कुछ गलत लगता है तो तुम यहां आ जाओ.’’

 

‘‘तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हारे पापा को अकेला नहीं छोड़ सकती और इतने दिन वे बेटी के घर पर रहेंगे नहीं.’’

 

‘‘तो तुम ही बताओ कि रिया की देखभाल कौन करेगा?’’

 

‘‘तुम तुषार के मम्मीपापा को बुला लो.’’

 

‘‘वह भी तो आप की ही तरह हैं. आप यह क्यों नहीं सम?ातीं?’’ अनु बोली तो सुधा चुप हो गई. उन्हें जरा भी अच्छा नहीं लगा था कि दामाद नौकरी से छुट्टी ले कर घर बैठ कर औरतों की तरह अपनी बेटी की देखभाल कर रहा है. इस दौरान वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करते रहे पर सफलता हाथ नहीं लगी.

 

समय कट रहा था. 3 साल बाद अनु ने एक और बेटी प्रिया को जन्म दिया. मातृत्व अवकाश में अनु ने घर संभाला. उस ने बच्चों की देखभाल के लिए एक साल की और छुट्टी ली. उस के बाद बच्चों को देखने की समस्या फिर खड़ी हो गई थी. तुषार बच्चों की परवरिश में कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहता था.

 

वह इस पक्ष में नहीं था कि बच्चों को दिनभर आया के हवाले छोड़ कर खुद नौकरी पर जाया जाए. वह जानता था कि शाम को जब थक कर मम्मीपापा दोनों घर आते हैं तो उन के तनाव का बच्चों पर क्या असर पड़ता है. वे किस तरह से बच्चों की परवरिश के लिए एकदूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं. समस्या गंभीर थी और इस का हल निकालना भी जरूरी था.

 

एक दिन तुषार बोला, ‘‘मैं सोचता हूं कि नौकरी छोड़ कर अपना समय परिवार को दे दूं.’’

 

‘‘नहीं, तुषार नौकरी छोड़ने की नौबत आई तो नौकरी मैं छोड़ूंगी तुम नहीं.’’

 

‘‘भला क्यों?’’

 

‘‘एक पुरुष का इस तरह नौकरी छोड़ कर अपने को घर पर कैद कर लेना किसी को भी अच्छा नहीं लगता.’’

 

 

‘‘मैं किसी की नहीं तुम्हारी बात पूछ रहा हूं. तुम तो जानती हो घर पर रह कर भी मैं अपने लिए कुछ न कुछ काम ढूंढ़ ही लूंगा. मुझे जितना वक्त मिलेगा उस दौरान मैं मार्केटिंग का औनलाइन काम कर लूंगा.’’

 

‘‘यह काम इतना सरल नहीं है.’’

 

‘‘मन में लगन हो तो कठिन काम भी सरल हो जाते हैं. तुम्हें मुझ पर भरोसा तो है?’’

 

‘‘खुद से भी ज्यादा. सच कहूं तो मैं यही चाहती हूं कि तुम इस बारे में न सोचो.’’

 

‘‘मैं ने कभी ऐसा नहीं सोचा कि मेरी पत्नी नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाए. मैं जानता हूं कि तुम में मुझसे ज्यादा टेलैंट है.’’

 

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

 

‘‘मैं सही कह रहा हूं. तुम मु?ा से अच्छी नौकरी पर हो. तुम्हारी नौकरी के घंटे कम हैं और साथ ही नौकरी का तनाव भी कम है. मेरी नौकरी का समय तुम से ज्यादा है और उस में तनाव भी बहुत है. अकसर नौकरी के सिलसिले में टूर पर जाना पड़ता है. मैं नौकरी से ऊपर अपने घर को तवज्जो देता हूं.’’

 

‘‘तुम ठीक कहते हो पर तुम्हारे मम्मीपापा क्या सोचेंगे?’’

 

‘‘तुम मेरे मम्मीपापा की नहीं अपने मम्मीपापा की फिक्र करो. उन्हें अच्छा नहीं लगता कि दामाद नौकरी छोड़ कर घर पर रहे. मैं ने इसे अपना घर नहीं हमारा घर सम?ा है. इस घर का गुजारा एक के काम करने से अच्छे से चल जाता है. हम बच्चों को देखने के लिए घर पर आया का प्रबंध करते हैं. उस के बदले भी उसे अच्छाखासा मेहनताना देना पड़ता है. उस पर भी दिनभर तनाव रहता है. शाम को बच्चों के काम की चिंता लगी रहती है. इस सब को संभालने के लिए हम दोनों में से एक का घर पर रहना जरूरी है. वैसे, मैं घर पर रह कर भी अच्छाखासा कमा लूंगा. अब तुम खुद सोचो तुम क्या चाहती हो?’’

 

‘‘मैं ने अपनी इच्छा तुम्हें बता दी है.’’

 

‘‘अनु, तुम नौकरी छोड़ती हो तो तुम पर काम का बो?ा अधिक पड़ेगा और तुम्हें शायद नौकरी छोड़ने का पछतावा भी हो.’’

 

‘‘अभी नौकरी छोड़ने की क्या जरूरत है. मैं अवैतनिक अवकाश भी ले सकती हूं.’’

 

‘‘वह तो ठीक है लेकिन तुम जिस जगह पर हो वहां पर तुम्हें अपने स्टूडैंट्स के भविष्य का खयाल भी रखना चाहिए. मेरे ऊपर इस प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है. औफिस में एक काम छोड़ता है उस की जगह दूसरा ले लेता है,’’ तुषार ने अनु को सम?ाया.

 

‘‘तुम ठीक कहते हो, तुषार. तुम्हारी सोच बहुत बड़ी है और मेरी छोटी.’’

 

‘‘ऐसी बात नहीं है, अनु. तुम्हारी सोच मुझ से भी बड़ी है लेकिन समाज का दबाव देख कर शायद तुम ?ाक जाती हो. मुझे अपने घर की परवाह है समाज की नहीं.’’

 

 

तुषार का निर्णय अनु को बहुत अच्छा लगा. तुषार ने पहले अवैतनिक अवकाश का प्रार्थनापत्र दिया उस के बाद उस ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया.

 

अनु ने यह बात जब मम्मी को बताई तो वह अवाक रह गई, ‘‘अनु, मैं यह क्या सुन रही हूं?’’

 

‘‘मम्मी आप ने ठीक सुना है. तुषार ने नौकरी छोड़ दी है.’’

 

‘‘ऐसी क्या मजबूरी आ गई?’’

 

‘‘मम्मी, घर पर बच्चों को हमारी जरूरत है. उसे पूरा करने के लिए किसी एक को तो यह सब करना ही था. हम दोनों ने सोचा और तुषार ने नौकरी छोड़ने का निर्णय ले लिया.’’

 

‘‘तो क्या दामादजी दिनभर औरतों की तरह घर का काम देखेंगे?’’

 

‘‘मम्मी, आप घर के काम को छोटा समतीहैं. जब 2 लोग घर से बाहर निकल कर दिनभर काम करते हैं तो दोनों के ऊपर घर और बाहर दोनों का दवाब रहता है. तुषार नहीं चाहते मैं इस प्रकार का तनाव झेलूं. उन्हें मेरी चिंता रहती है. तभी तो उन्होंने इतना बड़ा फैसला लिया है. हर किसी पुरुष के बस का यह सब नहीं होता,’’ अनु बोली तो सुधा चुप हो गई.

 

वह आज तक तुषार को दिल से अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकी थी. उन्हें लगता था कि इस के कारण ही अनु उस मुकाम तक न पहुंच सकी थी जहां उसे होना चाहिए था. तुषार के चक्कर में पड़ कर उस ने अपना कैरियर बरबाद कर लिया था. कितनी उम्मीदें थीं उन्हें अनु से? उस के मन में कहीं बहुत बड़ी कसक थी. उन की  बेटी ने हमेशा अपनी ही मनमानी की है और उन की कभी नहीं सुनी. जब कैरियर बनाने का समय था तब शादी कर ली. अब जरा स्थिति सुधरी थी तो उस के पति ने नौकरी छोड़ दी है और घर बैठ कर बच्चे पाल रहा है. वे समाज और रिश्तेदारों को क्या जवाब देंगे कि उन का दामाद नौकरी छोड़ कर घर में औरतों की तरह आया का काम कर रहा है?

 

तुषार ने जल्दी ही अपना घर और मार्केटिंग का काम बहुत अच्छे से संभाल लिया. वह सुबह दोनों बच्चों को स्कूल भेजता और दोपहर उन्हें लेने जाता. इस बीच वह अपना मार्केटिंग का काम भी कर लेता. इस से उस की अच्छीखासी कमाई भी होने लगी थी. शाम को दोनों बच्चों को घुमाने भी ले जाता. अनु कालेज से थकीहारी घर आती तो उस से प्यार से बात करता और उस की इच्छा का मान रखता. दोनों को समय मिलता तो वे इधरउधर घूमने भी चले जाते.

 

एक दिन सुधा का फोन आया. वह बहुत घबराई हुई थी, ‘‘अनु, तुम्हारे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई है. तुम तुरंत यहां आ जाओ.’’

 

‘‘मम्मी, मैं वहां आ कर क्या करूंगी? दिल्ली में बहुत अच्छे डाक्टर हैं. तुम प्लीज पापा को ले कर तुरंत यहां आ जाओ.’’

 

मरता क्या न करता. ऐसी हालत में शर्माजी को दिखाने के लिए दिल्ली लाना पड़ा. अनु ने साफ कह दिया था कि मम्मीपापा मेरे ही साथ आ कर रुकेंगे. मजबूर हो कर सुधा को वहीं रुकना पड़ा. पापाजी की हालत ऐसी न थी कि वह अकेले भागदौड़ कर सकते. तुषार एक बेटे से भी बढ़ कर उन की सेवा में लगा रहा. वह सुबहसवेरे उन के साथ डाक्टर के पास जाता. दिनभर वह उन की हर जरूरत का खयाल रखता और साथ के साथ अपना औनलाइन मार्केटिंग का काम भी निबटा लेता.

 

 

तुषार की देखभाल और भागदौड़ का नतीजा था कि पापाजी की हालत में जल्दी सुधार हो गया था. इस दौरान सुधा घर पर रह कर बच्चों की देखभाल कर लेती. तुषार दिनभर पापाजी के साथ रह कर जब घर लौटता तो सब से पहले रिया को होमवर्क करवाता. ऐसी विषम परिस्थिति में भी उस ने अनु पर पापाजी की तबीयत की जरा सी भी जिम्मेदारी नहीं डाली.

 

पहली बार सुधा को एहसास हुआ कि तुषार के रूप में उन्हें दामाद नहीं एक हीरा मिला है जिस की पहचान अनु को बहुत पहले हो गई थी. घर चलाने की उन की रूढि़वादी सोच को तुषार ने तारतार कर दिया था. तुषार का अपने परिवार के प्रति समर्पण किसी स्त्री से भी बढ़ कर था. यहां पर स्त्रीपुरुष का कहीं कोई भेद न था. उन के परिवार की गाड़ी बहुत ही अच्छी तरह से प्यार से सरोबार हो आगे बढ़ रही थी.

 

 

अनु और तुषार अपनी जिम्मेदारियां  बखूबी निभा रहे थे. अनु घर से बाहर निकल नौकरी कर रही थी और तुषार घर की जिम्मेदारियां निभाते हुए अपना मार्केटिंग का काम भी कर रहा था? जिस से उस की अच्छीखासी कमाई भी हो रही थी. तुषार के मम्मीपापा यह बात पहले से जानते थे कि उन्हें अपने बेटे से कोई शिकायत नहीं थी.

 

यह सब देख कर उन्हें अब अनु के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं थी. उन की समझ में आ गया था कि दुनिया में रुतबा बहुत माने रखता है लेकिन इस से बढ़ कर घर की सुखशांति और पतिपत्नी के बीच की समझदारी होती है. घर में कितना भी पैसा आ जाए और वहां शांति न हो तो सब बेकार है.

 

सुधा के मम्मीपापा को पहली बार परिवार के प्रति समर्पण और आत्मविश्वास से भरे तुषार के सामने अपनी रूढि़वादी सोच बहुत तुच्छ लगी. तुषार की नई पहल पर अब उन्हें भी बहुत गर्व हो रहा था. अनु की हंसतीमुसकराती गृहस्थी देख कर उस के मम्मीपापा बहुत खुश थे

online story : प्‍यार का खामियाजा

कुलमिला कर उस की जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. श्वेता से उस का परिचय होने के बाद तो जिंदगी में कोई कमी ही नहीं रह गई थी. बीचबीच में श्वेता उस के पास आती थी और उस की रातों को गुलजार कर जाया करती थी. वह अपनी जिंदगी से काफी संतुष्ट था खासकर श्वेता के आने के बाद से.

श्वेता समयसमय पर उस से थोड़ेबहुत पैसे लेती रहती थी, पर उसे इस का जरा भी अफसोस नहीं था, क्योंकि बदले में उसे श्वेता से काफीकुछ मिलता भी था.

परेशानी तब हुई, जब श्वेता की मांग दिनबदिन बढ़ने लगी. एक दिन तो उस ने उस से बड़ी मांग कर दी, ‘‘आनंद, मुझे 50,000 रुपए की सख्त जरूरत है,’’ यह उस ने आनंद के बालों में प्यार से हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘क्या… 50,000 रुपए? तुम पागल तो नहीं हो गई हो क्या श्वेता?’’ आनंद ने चौंक कर उठते हुए कहा था.

‘‘क्या तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते? पहली बार तुम मुझे मना कर रहे हो. क्या इतना ही प्यार है तुम्हारे दिल में मेरे लिए या फिर मुझ से मन भर गया है?’’ श्वेता ने प्यार से कहा.

‘‘देखो, जो रकम मेरे बस में है, वह मैं तुम्हें दे सकता हूं, पर 50,000 रुपए… इतने रुपए तो मेरी सालभर की तनख्वाह के बराबर हैं,’’ आनंद ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘7 साल की तनख्वाह के बराबर तो नहीं हैं न?’’ एकाएक श्वेता का रुख बदल गया.

‘‘अगर मैं पुलिस में शिकायत कर दूं तो 7 साल के लिए हवालात में चले जाओगे. सीसीटीवी कैमरे में सुबूत हैं कि तुम मुझे अपने साथ लाते रहे हो. यहां की हर गलीनुक्कड़ में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. मेरे कपड़ों पर तुम्हारी करतूत के सुबूत भी हैं. वैसे भी आजकल ‘मी टू’ के चलते बड़ेबड़ों की हालत खराब है, फिर तुम्हारी क्या बिसात है?’’

‘‘देखो, 50,000 रुपए तो मुझे हर हाल में चाहिए ही चाहिए. तुम कैसे इंतजाम करोगे, यह तुम जानो. एक हफ्ते का समय है तुम्हारे पास,’’ कहते हुए श्वेता चली गई और आनंद हैरान सा उसे जाते हुए देखता रहा.

इस के बाद से आनंद काफी चिंतित रहने लगा था. उस की कुल तनख्वाह 6,000 रुपए महीने थी जिस में से 2-3 हजार रुपए तो वह श्वेता पर ही लुटा देता था. 1,000 रुपए घर भेज दिया करता था. बाकी उस के खानेपीने पर खर्च हो जाया करते थे. पैसों के लिए एकमात्र सहारा उस का मालिक था

जो 1-2 महीने से ज्यादा की एडवांस तनख्वाह नहीं दे सकता था.

तो फिर क्या किया जाए? अगर श्वेता ने पुलिस में शिकायत कर दी तो उसे लेने के देने पड़ जाएंगे. एक साल पहले ही वह मुंबई आया था. कोई ऐसा जानकार भी नहीं था जिस से उसे पैसों की मदद मिल सके.

आनंद मुंबई के दादर इलाके में एक प्लाट पर बने छोटे से झोंपड़ीनुमा मकान में रहता था. प्लाट के मालिक ने प्लाट की देखभाल के लिए उसे वहां टिका दिया था. प्लाट के मालिक की उस प्लाट पर एक बहुमंजिला अपार्टमैंट्स बनाने की योजना थी जिस के लिए बिल्डरों से बात चल रही थी.

आनंद को महज 6,000 रुपए तनख्वाह मिलती थी. घर पर बेकार बैठे रहने के बजाय यह भी बुरा न था. न जाने कितने लोग मुंबई जैसे बड़े शहरों में मामूली तनख्वाह पर काम करने आते हैं क्योंकि उन के पास और कोई काम नहीं होता. कइयों को तो काफी खराब हालात में रहना पड़ता है, पर वह संतुष्ट था. रहने को झोंपड़ी थी ही. वहीं कुछ कच्चापक्का बना कर खा लेता था. बिजलीपानी की सुविधा चौबीसों घंटे थी जिस का बिल मालिक अदा करता था.

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काफी सोचविचार के बाद आनंद के दिमाग में एक ही उपाय आया श्वेता को रास्ते से हटाने का. उस की हत्या कर देना, पर लाश को कहां और कैसे ठिकाने लगाएगा, यह बहुत बड़ी समस्या थी.

काफी सोचविचार के बाद आनंद ने लाश को प्लाट के एक कोने में फेंक कर खुद पुलिस को सूचित करने की योजना सोची. वह खुद शिकायत करेगा तो पुलिस को शक भी नहीं होगा.

अगली बार जब श्वेता आई तो आनंद ने उस का दिल खोल कर स्वागत किया.

‘‘जैसेतैसे मैं ने रुपयों का इंतजाम किया है. आगे से इतनी बड़ी रकम मत मांगना. मैं गरीब आदमी कहां से इतनी बड़ी रकम लाऊंगा?’’ आनंद ने श्वेता को बांहों में भरते हुए कहा.

श्वेता को इस बात से मतलब नहीं था कि आनंद ने रुपयों का इंतजाम कहां से किया है. मन ही मन उस ने सोचा, ‘रुपए तो मैं तुम से हमेशा मांगूंगी. आखिर मजबूरी में तुम्हें अपना जिस्म देती हूं तो उस का भुगतान तो देना ही होगा.’

श्वेता बोली, ‘‘अगर जरूरत नहीं होती तो तुम्हें क्यों तकलीफ देती…’’

फिर वे दोनों एकदूसरे के आगोश में समा गए. आनंद सोच रहा था कि वह आखिरी बार श्वेता के जिस्म को भोग रहा है, इस के बाद तो इसे खत्म कर देना है इसलिए वह जम कर उस के बदन का मजा ले रहा था.

श्वेता सोच रही थी कि आज 50,000 रुपए लेने के बाद फिर कब उस से रकम मांगनी है.

मौका पा कर आनंद ने श्वेता

का गला दबा दिया, फिर चाकू से

गले को रेत दिया और लाश को एक कोने में जा कर फेंक दिया.

आनंद को अपने प्लान पर पूरा भरोसा था, इसलिए वह आराम से सो गया. अगले दिन सुबह उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर जानकारी दी कि एक औरत की लाश प्लाट के एक कोने में पड़ी हुई है.

आनंद को यह गुमान था कि पुलिस को आसानी से चकमा दिया जा सकता है और इस के लिए उस ने खुद पुलिस से शिकायत करने की तरकीब अपनाई थी. शिकायत करने वाले पर पुलिस भला क्यों शक करेगी, उस ने यही सोचा था.

पुलिस ने आ कर सब से पहले श्वेता को अस्पताल पहुंचाया, जहां उसे ‘मृत लाया गया’ घोषित कर दिया. पुलिस ने अनजान शख्स के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

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आनंद बहुत खुश हुआ. उसे अपनी योजना कामयाब होती दिखाई दी, पर उसे पता नहीं था कि पुलिस शक के आधार पर उस से पूछताछ शुरू कर देगी. विरोधाभाषी बयानों के चलते वह पकड़ में आ गया और फिर मामला सुलझ गया.

आनंद ज्यादा देर तक पुलिस के सामने टिक नहीं पाया और उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. वही पुलिस को उस जगह पर भी ले गया जहां उस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू छिपा कर रखा था.

इस तरह श्वेता के लालच ने उस की जिंदगी खत्म करवा दी और जिस्मानी आकर्षण ने आनंद की जिंदगी बरबाद कर दी.

Modern Story : बौस और वो नई लड़की

इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

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‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

 

Funny Story : रिटायरमैंट के क्विक लौस

मेरे रिटायरमैंट का दिन नजदीक आते ही मेरे आसपास के लोग मेरा मन बहलाने के लिए मुझे सपने दिखाते रहे कि रिटायर होने के बाद जो मजा है, वह सरकारी नौकरी में रहते नहीं. लेकिन रिटायरमैंट के बाद मेरे जो क्विक लौस हुए उन्हें मैं ही जानता हूं.

रिटायर होने के 4 दिनों बाद ही पता चल गया कि रिटायर होने के कितने क्विक लौस हैं. लौंग टर्म लौस तो धीरेधीरे सामने आएंगे. आह रे रिटायरी. बीते सुख तो कम्बख्त औफिस में ही छूट गए रे भैये. रिटायरमैंट के बाद के सब्जबाग दिखाने वालो, हे मेरे परमादरणियो, मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें कभी समय पर पैंशन न मिले.

बंधुओ, घर के कामों से न मैं पहले डरता था, न अब डरता हूं. इन्हीं कम्बख्त घर के कामों के कारण ही तो हर रोज लेट हो जाने के बाद अगले दिन समय पर औफिस जाने की कसम खा कर भी रिटायर होने तक समय पर औफिस न पहुंचा.

वैसे मु झे इस बात पर पूरा संतोष है कि मैं ने सरकारी नौकरी में रहते घर के कामों को औफिस के कामों से अधिक प्राथमिकता दी, इन की, उन की, सब की तरह. औफिस के कामों का क्या? वे तो होते ही रहते हैं. आज नहीं तो कल. कल नहीं तो परसों. परसों नहीं तो चौथे. और जो ज्यादा ही हुआ तो अपना काम सरका दिया किसी दूसरे की ओर. पर घर के काम तो भाईसाहब आप को ही करने होते हैं, अपने हिस्से के भी, अपनी बीवी के हिस्से के भी घर में शांति रखनी हो तो. वरना, महाभारत के लिए कुरुक्षेत्र ढूंढ़ने की कतई जरूरत नहीं.

दूसरी ओर, जोजो औफिस के कामों को कम घर के कामों को अधिक प्राथमिकता देते हैं, उन का घर नरक होते हुए भी स्वर्ग होता है. और जो औफिस के कामों को अधिक प्राथमिकता देते हैं और घर के कामों से हाथ चुराते हैं वे रिटायरमैंट के बाद तो छोडि़ए, रिटायर होने से पहले ही स्वर्ग जैसे औफिस में रहने के बाद भी नरक ही भोगते हैं.

 

जौब लगने से ले कर रिटायरमैंट तक लेट औफिस जाने, जाने तो जाने, न जाने तो न जाने का, बिन छुट्टी लिए औफिस से जल्दी घर आने का मु झे तनिक भी मलाल नहीं क्योंकि मैं उस देश का वासी हूं जहां जल्दी तो सब को रहती है, पर समय पर कोई कहीं भी नहीं पहुंचता.

तो मित्रो, अब मैं फील कर रहा हूं कि रिटायरमैंट के बाद मेरा सब से बड़ा क्विक लौस जो हुआ है, वह यह है कि अब मैं सरकारी पैसे पर निजी मस्ती करने नहीं जा सकूंगा. सरकारी नौकरी में रहते सरकार के पैसों पर घूमने के आप के पास हजारों बहाने होते हैं. न भी हों तो भी किसी भी बहाने घूमने की अति आवश्यक जरूरत बता बहाने बना लिए जाते हैं. बस, आप के पास  झूठा इनोवेटिव दिमाग होना चाहिए.

ऐसा करने से सरकारी कामों में गतिशीलता बनी रहती है. बाहर के लोगों से संपर्क बढ़ते हैं जो रिटायरमैंट से पहले और रिटायरमैंट के बाद बड़े काम आते हैं. वैसे भी, जो मैं ने रिटायरमैंट तक फील किया, वह यह कि सरकारी नौकरी मेलमिलाप के सिवा और कुछ भी नहीं, काम तो जाए भाड़ में.

जब हम अंगरेजों के रहते हुए भी सरकारी काम का बहिष्कार सीने पर गोली खाने के बाद कर सकते हैं तो भाईसाहब, अब तो हम आजाद हैं, आजाद. और आजाद भी ऐसे कि हमारी आजादी हम सब से कुछ करवा सकती है पर, औफिस में काम कदापि नहीं करवा सकती. हम और तो सब कुछ कर सकते हैं, पर औफिस में रह कर औफिस का काम नहीं कर सकते, तो बस, नहीं कर सकते. जिस में दम हो, करवा कर देख ले. चौथे दिन अपनेआप ही काम करना न भूल जाए तो रिटायरमैंट के बाद उस का जूता मेरा सिर.

सच कहूं तो अपनी जेब से पैसे दे कर आज तक मैं शौचालय भी नहीं गया था. शौचालय जाता तो उस का 5 के बदले 50 रुपए का बिल ले औफिस आ कर वापस ले लेता. कई बार तो मैं ने ऐसा भी किया कि शौच खुले में कर दिया और शौचालय वाले से बिल ले उसे सगर्व औफिस में प्रोड्यूस कर रीइंबर्स करवा लिया. अब मैं सच बोल कर अपना मन हलका कर लेना चाहता हूं. सो, जो शौचालय के बाहर जानपहचान का निकल आता, उस से अलतेचलते यों ही 50 रुपए का बिल ले लेता. शौच के जाली बिल के 10 रुपए निकालने वाला खा लेता, 40 अपुन रख लेते अदब से.

दूसरा क्विक लौस जो मैं फील कर रहा हूं वह यह कि घर में अब सारा दिन इस भीषण गरमी में पंखा पूरी स्पीड में चलाना पड़ रहा है. पड़ेगा ही, अपने मीटर के साथ. औफिस में ऐसीऐसी गंदी आदतें पड़ गई थीं कि अब पता चल रहा है कि वे गंदी नहीं, बहुत गंदी आदतें थीं. औफिस में कई बार तो हीटर और पंखा तक एकसाथ चला देता था. पर अब 2 दिन में ही घर के पंखे को औन करने में भी दम निकल रहा है. अभी से ही यह हाल है तो सर्दी में सूरज ही जाने, हीटर कैसे लगा पाऊंगा?

 

रिटायरमैंट का एक और क्विक लौस जो मैं फील कर रहा हूं वह यह भी है कि औफिस में तो जिसे जो मन में आता था, बक देता था. बेचारे प्यून टेबल साफ होने के बाद भी मेरे गालियां देने पर साफ करते रहते थे. इतना साफ कि हर महीने टेबल का माइका नया लगवाना पड़ता था. इस बहाने लाख पगार लेने वाले के ऊपर या नीचे कहीं से भी 2-4 सौ और बन जाते थे. पर अब घर में सब मु झ पर बकते रहते हैं. जबकि मु झे बेवजह अपने पर बकना तक पसंद नहीं.

रिटायरमैंट का एक और क्विक लौस…कल तक जो कुत्ता मेरे घर से औफिस जाने और औफिस से घर आने पर मेरे तलवे चाटता था, आज मु झे उसी के तलवे चाटने पड़ रहे हैं. जिस बंदे ने औफिस में सब को उंगलियों पर नचाया, आज वही घर, गली के गधे से गधे की उंगलियों पर नाचने को विवश है.

कुल मिला कर, जमा के नाम पर कुछ नहीं, सब घटघटा कर ही अपनी हालत वह हो गई है कि… अपने रिटायरमैंट के कगार पर बैठे मित्रों से सारे सच कहना चाहता हूं पर इस बात से डरता हूं कि कल को कहीं वे रिटायर होने के डर के बदले एक्सटैंशन की टैंशन ले कर वैसे ही रिटायर न हो जाएं.

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