Manipur :  ‘हम एक हैं’ सा नारा लगाना एक बात है पर लोगों को समझना दूसरी. जब एक होने की बात किसी दूसरे के संदर्भों में कही जा रही हो, तो वह कोरा छलावा होती है. मणिपुर इस का बड़ा जलता हुआ उदाहरण है वरना हम और वो का जहर तो पिछले सालों में हमारी नसनस में फैलाया जा चुका है.

मणिपुर पिछले कई दशकों से सुलग रहा था पर पिछले 3-4 सालों के दौरान यह जलने लगा है. कहीं कोई आसार फिलहाल नहीं दिख रहे हैं ‘हम’ होने के. पहाडि़यों में रहने वाले कुकी व जो कबीलों के लोग अपने राज्य को मैतेई लोगों के हवाले करने को तैयार नहीं जो बाहर से आ कर मैदानी घाटियों में बसे हैं.

सरकार को मैतेई पसंद हैं क्योंकि वे उस के धर्म के हैं. कबीलों वाले के अपने अलग धर्म हैं और कुछ ईसाई हैं. वे पंडों को दानदक्षिणा नहीं दे रहे. यहां सवाल यह नहीं कि कौन गलत है, कौन सही है. सवाल यह है कि देश की सरकार आखिर क्यों नहीं इस छोटे से राज्य के छोटे से मुद्दे को सुलटा पा रही और क्यों यह सालदरसाल खराब हो रहा है.

सरकार मणिपुर के नागरिकों को कुचलने के लिए फोर्स पर फोर्स भेज रही है मानो यह रूसयूक्रेन युद्ध हो या इजरायलफिलिस्तीनी खूंखारी लड़ाई. एक जामाने में शांत मणिपुरी अपने विशेष नृत्य के लिए जाना जाता था. इसे भारत के पूरब का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता था जो आज देश का सब से ज्यादा जल रहा इलाका है.

पिछले दशकों में ‘हम अलग हैं’ का जो नारा लगा और जिस के रथ पर चढ़ कर भाजपा को केंद्र की सत्ता मिली है, मंदिर मिले हैं, टैक्स के पैसे से हवाई जहाज मिले हैं, उसे वह आसानी से कैसे छोड़ दे. कुकी और जो कबीलों की हैसियत ही क्या है, जब मौजूदा सरकार द्वारा बड़ीबड़ी पार्टियों को धराशायी कर दिया गया हो. लेकिन यह लड़ाई बहुत महंगी पड़ रही है, हालांकि इस का अंदाजा उस रामनामी टैंट के लगे होने की वजह से नहीं दिख रहा जो अपनेआप में बेहद पतला है. इस के पीछे बेरोजगारी, महंगाई, अमीरीगरीबी का बढ़ता भेद है.

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