Download App

समर्पण : रिश्‍ते की गहराई

लेखिका : डा. के रानी

 

बेटी अनु का बेरोजगार तुषार से शादी करने का निर्णय सुधा पचा नहीं पा रही थी. लेकिन अनु को तुषार की काबिलीयत और समझदारी पर पूरा विश्वास था. तुषार ने भी अनु को अपने प्रति प्यार को  अपने समर्पण की महक से और भी सराबोर कर दिया.

 

 

 

 

सुबहसुबह अनु का फोन आ रहाथा. सुधा ने झट से फोन उठा लिया. अनु के पापा शर्माजी भी पास में खड़े थे. सुधा ने हमेशा की तरह स्पीकर औन कर दिया जिस से वे दोनों उस से बात कर सकें. अनु ने उन्हें तुरंत खुशखबरी सुनाई, ‘‘मम्मी, मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है.’’

 

सुधा ने सुना तो अवाक रह गई. उसे अनु से अभी ऐसी उम्मीद नहीं थी. उस ने पूछा, ‘‘कौन है वह खुशनसीब जिसे हमारी बेटी ने अपना साथी चुना है?’’

 

‘‘तुषार. हम दोनों यहां साथ ही कंपीटिशन की तैयारी कर रहे हैं,’’

 

यह सुनते ही सुधा के हाथ कांपने और जबान लड़खड़ाने लगी.

 

अनु के पापा ने जब यह बात सुनी तो वे सन्न रह गए, ‘‘अनु, तुम क्या कह रही हो? तुम पर तो हमारी बहुत सारी उम्मीदें लगी हुई हैं.’’

 

‘‘पापा, मैं आप की उम्मीदें पूरी करने की पूरी कोशिश करूंगी. मैं तुषार को अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हूं. वह बहुत अच्छा लड़का है. मुझे पूरा यकीन है कि जब आप उस से मिलेंगे तो आप को भी वह बहुत पसंद आएगा.’’

 

‘‘बेटा, वह तो अभी जौब पर भी नहीं है.’’

 

‘‘इस से क्या फर्क पड़ता है पापा? जौब में तो मैं भी नहीं हूं. हम दोनों संघर्ष कर रहे हैं और हमारा संघर्ष एक दिन जरूर रंग लाएगा.’’

 

‘‘अनु एक बार फिर से सोच लो.’’

 

‘‘इस में सोचना क्या है, पापा?

 

मुझे अपने जीवनसाथी के रूप में तुषार पसंद है. मैं उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हूं. अगर मेरी पसंद को आप लोग खुले दिल से स्वीकार करेंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा, मम्मी.’’

 

‘‘हम तो हमेशा से तुम्हारे साथ हैं.  तुम्हारी इच्छा हमारे लिए बहुत माने रखती है. हम चाहते थे कि पहले तुम कोई अच्छा जौब चुन लो उस के बाद शादी के बारे में सोचो.’’

 

‘‘पापा, कल किस ने देखा है? आप लोग निश्चिंचिंत रहिए. हम दोनों आप के ऊपर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं डालेंगे. मुझे नैट क्वालीफाई करने के बाद इतनी फैलोशिप मिलती है कि उस से एक छोटे से घर में हम गुजारा कर लेंगे.’’

 

 

अनु के तर्कों के आगे मम्मीपापा की एक न चली. तुषार ने भी अपने मम्मीपापा को मना लिया था. वे भी चाहते थे लड़का पहले कुछ बन जाए और उस के बाद शादी के बारे में सोचे पर तुषार नहीं माना. उस ने अनु के बारे में उन्हें सबकुछ बता दिया. वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सके. उन्होंने भी भारी मन से शादी की सहमति दे दी. दोनों परिवारों ने दिल्ली आ कर एकदूसरे से मुलाकात कर ली थी. उन की एकदूसरे से कोई अपेक्षाएं भी नहीं थीं.

 

बहुत सादे तरीके से सुधा ने अपनी बेटी को विदा कर दिया. तुषार और अनु बहुत खुश थे. उन्हें अपने फैसले पर नाज भी था. कोचिंग के दौरान अनु की दोस्ती तुषार से हो गई थी. वह बिहार का रहने वाला साधारण घर का लड़का था. वह पढ़नेलिखने में बहुत होशियार था. प्रशासनिक सेवा में हाथ आजमाने के लिए उस के मांबाप ने उसे कोचिंग के लिए दिल्ली  भेज दिया था. एक ही सैंटर पर कोचिंग के दौरान वे एकदूसरे के नजदीक आ गए थे.

 

अनु और तुषार दोनों की परवरिश साधारण परिवार में हुई थी. उन की सोच भी एकजैसी थी. बहुत जल्दी उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. अभी तक दोनों को किसी प्रतियोगिता में सफलता नहीं मिल पाई थी लेकिन वे दोनों अपनी मंजिल की ओर लगातार अग्रसर थे. वे दोनों एकसाथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते और अपने दिल का हाल भी एकदूसरे को बताते.

 

एक दिन अवसर पा कर तुषार ने अनु के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया और अनु के सामने अपने दिल की बात रख दी, ‘अनु, हम एकदूसरे को 2 सालों से अच्छी तरह से जानते हैं. मैं चाहता हूं कि हम हमेशा एकसाथ रहें. क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’

 

 

उस की बात सुन कर अनु चौंक गई थी. उसे उम्मीद नहीं थी कि तुषार उसे इतनी जल्दी प्रपोज कर देगा.

 

‘यह तुम क्या कह रहे हो? अभी तो हम दोनों ही अपने कैरियर के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में शादी की बात तुम्हारे दिमाग में कहां से आ गई?’

 

‘मेरे हिसाब से तो अभी शादी करना ठीक रहेगा. क्या पता कल अच्छी जगह नौकरी मिलने के बाद हमतुम एकदूसरे से कितनी दूर चले जाएं?’

 

‘ऐसा कभी नहीं होगा.’

 

‘वक्त का कुछ पता नहीं होता, अनु. हम अभी से कोशिश करेंगे कि एकदूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं. नौकरी के बाद घर वालों का दबाव भी हम पर बढ़ जाएगा.’

 

‘क्या तुम उन के दबाव में आ कर शादी करोगे?’

 

‘नहीं अनु, मेरे कहने का मतलब यह नहीं. मैं किसी को नाराज नहीं करना चाहता. यह समय है जब हम अपनी इच्छाओं को पूरा करते हुए दूसरों के दिल को दुखाए बगैर आराम से शादी कर सकते हैं और अपना ज्यादा से ज्यादा समय एकसाथ बिता सकते हैं,’ तुषार बोला.

 

तुषार स्वभाव से गंभीर था. अनु उस की बातों की गहराई को समझ गई. उन से शादी के लिए हां कह दी. सुधा के परिवार, पड़ोसी और रिश्तेदारों ने कभी सोचा भी नहीं था कि अनु इतने अच्छे कैरियर के साथ बिना व्यवस्थित हुए शादी कर लेगी? पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने सुधा की बहुत खिंचाई की थी. पड़ोस वाली गुप्ता आंटी तो जैसे इसी मौके की तलाश में थीं, ‘सुधा, तुम तो कहती थीं कि मेरा दामाद कोई आईएएस औफिसर होगा. मेरी अनु के लिए लड़कों की कोई कमी नहीं रहेगी.’

 

‘अनु ने बहुत सोचसम?ा कर अपने लिए जीवनसाथी चुना है. आखिर उसे तुषार में कुछ खास तो दिखाई दिया होगा, तभी उस ने इतना बड़ा कदम उठाया है. उस का चुनाव कभी गलत नहीं हो सकता.’

 

‘वह तो दिखाई दे रहा है,’ गुप्ता आंटी कटाक्ष करती बोलीं.

 

सुधा को सभी से ऐसी बातें सुनने को मिल रही थीं. अनु ने मम्मीपापा के सपनों को दरकिनार करते हुए, किसी की परवाह किए बगैर शादी कर ली थी.

 

सुधा को छुटपन से ही अपनी बेटी पर बड़ा नाज था. बचपन से ही अनु पढ़ने में बहुत होशियार थी. एक साधारण से परिवार में पैदा होने के कारण उस के पास बहुत सारी सुविधाएं तो नहीं थीं पर एक तेज दिमाग जरूर था, जिस के बल पर वह अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रही थी. शर्माजी को भी अपनी बेटी पर गर्व था. वे उस की हर इच्छा पूरी करते. अनु के बड़े होने के साथ मम्मीपापा की अपेक्षाएं भी बड़ी हो गई थीं.

 

‘अनु पढ़नेलिखने में विलक्षण है. वह जिस काम में हाथ डालेगी वही बन जाएगी,’ हरकोई यही कहता. यह सुन कर सुधा और शर्माजी फूले न समाते. अनु ने पहले ही बता दिया था कि वह डाक्टर या इंजीनियर नहीं बनेगी. वह पढ़लिख कर किसी अन्य क्षेत्र में जाएगी. अनु ने अर्थशास्त्र से एमए प्रथम श्रेणी में करने के साथ ही कालेज में टौप किया था. उस के प्रोफैसर चाहते थे कि वह इसी विषय में पीएचडी कर प्रोफैसर बन जाए पर अनु कहीं और अपना भविष्य तलाश रही थी. वह प्रशासनिक सेवाओं में जाने की इच्छुक थी.

 

 

अपने सपने पूरे करने के लिए अनु कोचिंग के लिए दिल्ली चली आई. सुधा और शर्माजी को उस के कोचिंग लेने पर कोई एतराज नहीं था. उन्हें पूरा विश्वास था कि इस के बल पर अनु एक दिन उन का नाम जरूर रोशन करेगी. लेकिन बिना कुछ बने तुषार से शादी कर के अनु ने मम्मीपापा के सपनों को एक ?ाटके में तोड़ डाला था.

 

अनु की शादी के बाद भी कई दिनों तक सुधा अपनेआप को सामान्य नहीं कर पाई. तुषार से मिल कर उसे भी अच्छा लगा था. वह एक सुल?ा हुआ युवक था लेकिन एक बेरोजगार दामाद को अपनाने में उसे हिचक हो रही थी. बेटी की खुशी के आगे उन्होंने कुछ नहीं कहा.

 

 

उन्हें यकीन था एक दिन अनु जरूर कुछ न कुछ अच्छा ही करेगी. कुछ ही महीने में अनु की मेहनत रंग लाई. उस ने पीसीएस की मुख्य परीक्षा पास कर ली थी. अनु ने साक्षात्कार की बहुत अच्छी तैयारी की थी पर वह उस में रह गई. तुषार अभी भी संघर्षरत था. उन दोनों को इस बात का काफी मलाल हुआ. ऐसी परिस्थिति में भी तुषार ने अनु को हिम्मत बंधाई, ‘‘अनु, तुम्हें दिल छोटा नहीं करना चाहिए. तुम बहुत मेहनती और होशियार हो. एक दिन तुम्हें अपनी मेहनत का पूरा श्रेय जरूर मिलेगा.’’

 

‘‘तुषार, तुम ही तो मेरी प्रेरणा हो. तुम्हारी बातों से मु?ो बड़ी हिम्मत मिलती है. मैं और मेहनत करूंगी और एक दिन कुछ बन कर दिखाऊंगी,’’ अनु बोली.

 

इसे कोई संयोग ही कहें कि जितना उस ने सोचा था, वह वहां तक न पहुंच पाई. नैट परीक्षा उत्तीर्ण करने के कारण उस का यूनिवर्सिटी में असिस्टैंट प्रोफैसर के लिए चयन हो गया था. परिस्थितियों को देखते हुए अनु ने यह जौब खुशीखुशी स्वीकार कर ली. अब उस के सामने आर्थिक परेशानी नहीं थी.

 

2 महीने बाद तुषार का सलैक्शन  यूपीएससी परीक्षा के माध्यम से ही समीक्षा अधिकारी के लिए हो गया था. दोनों बेहद खुश थे. आखिरकार उन्हें एक ही शहर में नौकरी तो मिल गई थी. ये नौकरियां उन के योग्यता और सपनों के अनुरूप नहीं थीं लेकिन घरगृहस्थी चलाने के लिए पर्याप्त थीं. अनु ने यह खबर मम्मीपापा को सुनाई तो उन्हें ज्यादा खुशी नहीं हुई.

 

सुधा बोली, ‘‘अनु, तुम आगे भी  तैयारी करते रहना. यह नौकरी तो तुम्हें इसी शहर में रह कर पढ़ने से भी मिल सकती थी.’’

 

‘‘आप बिलकुल ठीक कहती हैं, मम्मी. मैं आगे भी प्रयास करती रहूंगी.’’

 

अनु अपने काम के प्रति बहुत समर्पित थी. वह पीएचडी करना चाहती थी ताकि अपने कैरियर में किसी से पीछे न रहे. नैट की बदौलत वह इस नौकरी तक पहुंच गई थी. तुषार के सहयोग के कारण उसे आगे पढ़ने में कोई परेशानी नहीं थी. वे दोनों अभी भी प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे थे पर उन का समय साथ नहीं दे रहा था. तुषार की नौकरी लगने के सालभर बाद अनु ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. सुधा ऐसे समय में बेटी को अकेले पा कर मात्र 2 हफ्ते के लिए अनु के पास आई थी. उस के नर्सिंगहोम से घर आ जाने पर वह वापस लौट आई थी. तुषार जिस तरह से अनु का खयाल रखता था, सुधा उस से संतुष्ट थी.

 

 

अनु के 6 महीने मातृत्व अवकाश के साथ आराम से कट गए. उस ने कुछ महीने और शिशु देखभाल अवकाश ले लिया था. अब नौकरी के साथसाथ बच्चे को देखने के लिए एक आदमी की घर पर जरूरत थी.

 

अनु ने कहा, ‘‘तुषार, क्यों न हम अपने पेरैंट्स को यहां बुला लें.’’

 

‘‘क्या उन का दिल हमारे साथ लगेगा? हम एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं. मम्मीपापा को इस प्रकार से रहने की आदत नहीं है.’’

 

‘‘तुम ठीक कहते हो. उन के लिए यह घर जेल के समान हो जाएगा, भले ही हम अपनी ओर से उन के लिए कोई कसर नहीं रखेंगे. एक सामान्य जिंदगी जीने वाले को बड़े शहरों की आदत नहीं होती. उन की अपनी एक दिनचर्या है, जिसे वे यहां अच्छे से नहीं निभा पाएंगे. इस के साथ एक दूसरी बात भी है.’’

 

‘‘वह क्या?’’

 

‘‘तुम तो जानती हो कि उन के सपनों को तोड़ कर हम दोनों ने शादी की. उन की अपेक्षाएं हम से कुछ और थीं और हम उन की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे. हमें देख कर उन्हें यह बात भी याद आती रहेगी. अच्छा होगा कि हम बच्चे की देखभाल के लिए एक आया रख लें.’’

 

 

जल्दी ही अनु ने अपने सहकर्मियों की मदद से एक आया का इंतजाम कर दिया पर उस के भरोसे रिया को छोड़ने में दोनों को बड़ी परेशानी हो रही थी. किसी तरह 2 महीने बीते. एक बार रिया की तबीयत बिगड़ गई. ऐसी हालत में उन की हिम्मत रिया को आया के भरोसे छोड़ने की न हो सकी. तब समस्या का समाधान तुषार ने निकाला, ‘‘अनु, मैं कुछ समय के लिए रिया की देखभाल के लिए छुट्टी ले लेता हूं.’’

 

‘‘यह क्या कर रहे हो तुम?’’

 

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं. हम दोनों में से छुट्टी कोई भी ले क्या फर्क पड़ता है? बच्चा हमारा है. इतने महीने तुम उस की देखभाल कर चुकी हो. तुम्हें अभी अपना पीएचडी का काम भी पूरा करना है. मैं औफिस से छुट्टी ले लेता हूं.’’

 

‘‘तुम्हें छुट्टी कहां मिलेगी?’’

 

‘‘तो क्या हुआ? अवैतनिक अवकाश ले लूंगा. हमारे बच्चे की परवरिश में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए,’’ तुषार ने कहा तो अनु उस के परिवार के प्रति समर्पण को देख कर नतमस्तक हो गई.

 

वैसे तो उन के घर में भी काम करने  वाले आते थे लेकिन उन के ऊपर भी देखभाल के लिए घर पर कोई तो चाहिए था. तुषार ने यह जिम्मेदारी बडे़ अच्छे से संभाल ली. रिया बड़ी हो रही थी. अनु उस की ओर से बिलकुल बेफिक्र थी. तुषार एक जिम्मेदार पिता की तरह उस की बहुत अच्छी देखभाल करता. शाम को अनु थक कर घर आती तो उस के साथ भी बहुत अच्छा व्यवहार करता. अनु अपनेआप को धन्य मानती कि उसे पति के रूप में तुषार मिला. अनु ने यह बात मम्मी को बताई कि अब तुषार नौकरी छोड़ कर बच्चे की देखभाल करेंगे.

 

‘‘मम्मी, रिया हम दोनों की बेटी है. क्या फर्क पड़ता है कि देखभाल मैं करूं या तुषार करें?’’

 

‘‘बेटी, यह काम औरतों को ही शोभा देता है.’’

 

‘‘मम्मी, आप तुषार से मिल चुकी हैं. वे बहुत ही अच्छे इंसान है. उन्होंने मु?ो कभी एहसास तक नहीं होने दिया कि मैं एक औरत हूं और वे मेरे पति. वे घर को मु?ा से अच्छे तरीके से संभालते हैं और बेटी का भी बहुत ध्यान रखते हैं.’’

 

‘‘तो क्या घर तेरी तनख्वाह से चलेगा बेटी?’’

 

 

‘‘परिवार के बीच में तेरामेरा कहां से आ गया मम्मी? मेरा और तुषार का जो कुछ है वह हम सब का है. इस से क्या फर्क पड़ जाता है कि घर कौन चला रहा है? फर्क इस बात से पड़ता है कि घर अच्छे से चलना चाहिए. उस में सब के लिए स्थान होना चाहिए. सब की कद्र होनी चाहिए. रिया को घर पर आया की नहीं मम्मीपापा की जरूरत है. तुषार उस की बहुत अच्छे से देखभाल करते हैं. अगर तुम्हें कुछ गलत लगता है तो तुम यहां आ जाओ.’’

 

‘‘तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हारे पापा को अकेला नहीं छोड़ सकती और इतने दिन वे बेटी के घर पर रहेंगे नहीं.’’

 

‘‘तो तुम ही बताओ कि रिया की देखभाल कौन करेगा?’’

 

‘‘तुम तुषार के मम्मीपापा को बुला लो.’’

 

‘‘वह भी तो आप की ही तरह हैं. आप यह क्यों नहीं सम?ातीं?’’ अनु बोली तो सुधा चुप हो गई. उन्हें जरा भी अच्छा नहीं लगा था कि दामाद नौकरी से छुट्टी ले कर घर बैठ कर औरतों की तरह अपनी बेटी की देखभाल कर रहा है. इस दौरान वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करते रहे पर सफलता हाथ नहीं लगी.

 

समय कट रहा था. 3 साल बाद अनु ने एक और बेटी प्रिया को जन्म दिया. मातृत्व अवकाश में अनु ने घर संभाला. उस ने बच्चों की देखभाल के लिए एक साल की और छुट्टी ली. उस के बाद बच्चों को देखने की समस्या फिर खड़ी हो गई थी. तुषार बच्चों की परवरिश में कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहता था.

 

वह इस पक्ष में नहीं था कि बच्चों को दिनभर आया के हवाले छोड़ कर खुद नौकरी पर जाया जाए. वह जानता था कि शाम को जब थक कर मम्मीपापा दोनों घर आते हैं तो उन के तनाव का बच्चों पर क्या असर पड़ता है. वे किस तरह से बच्चों की परवरिश के लिए एकदूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं. समस्या गंभीर थी और इस का हल निकालना भी जरूरी था.

 

एक दिन तुषार बोला, ‘‘मैं सोचता हूं कि नौकरी छोड़ कर अपना समय परिवार को दे दूं.’’

 

‘‘नहीं, तुषार नौकरी छोड़ने की नौबत आई तो नौकरी मैं छोड़ूंगी तुम नहीं.’’

 

‘‘भला क्यों?’’

 

‘‘एक पुरुष का इस तरह नौकरी छोड़ कर अपने को घर पर कैद कर लेना किसी को भी अच्छा नहीं लगता.’’

 

 

‘‘मैं किसी की नहीं तुम्हारी बात पूछ रहा हूं. तुम तो जानती हो घर पर रह कर भी मैं अपने लिए कुछ न कुछ काम ढूंढ़ ही लूंगा. मुझे जितना वक्त मिलेगा उस दौरान मैं मार्केटिंग का औनलाइन काम कर लूंगा.’’

 

‘‘यह काम इतना सरल नहीं है.’’

 

‘‘मन में लगन हो तो कठिन काम भी सरल हो जाते हैं. तुम्हें मुझ पर भरोसा तो है?’’

 

‘‘खुद से भी ज्यादा. सच कहूं तो मैं यही चाहती हूं कि तुम इस बारे में न सोचो.’’

 

‘‘मैं ने कभी ऐसा नहीं सोचा कि मेरी पत्नी नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाए. मैं जानता हूं कि तुम में मुझसे ज्यादा टेलैंट है.’’

 

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

 

‘‘मैं सही कह रहा हूं. तुम मु?ा से अच्छी नौकरी पर हो. तुम्हारी नौकरी के घंटे कम हैं और साथ ही नौकरी का तनाव भी कम है. मेरी नौकरी का समय तुम से ज्यादा है और उस में तनाव भी बहुत है. अकसर नौकरी के सिलसिले में टूर पर जाना पड़ता है. मैं नौकरी से ऊपर अपने घर को तवज्जो देता हूं.’’

 

‘‘तुम ठीक कहते हो पर तुम्हारे मम्मीपापा क्या सोचेंगे?’’

 

‘‘तुम मेरे मम्मीपापा की नहीं अपने मम्मीपापा की फिक्र करो. उन्हें अच्छा नहीं लगता कि दामाद नौकरी छोड़ कर घर पर रहे. मैं ने इसे अपना घर नहीं हमारा घर सम?ा है. इस घर का गुजारा एक के काम करने से अच्छे से चल जाता है. हम बच्चों को देखने के लिए घर पर आया का प्रबंध करते हैं. उस के बदले भी उसे अच्छाखासा मेहनताना देना पड़ता है. उस पर भी दिनभर तनाव रहता है. शाम को बच्चों के काम की चिंता लगी रहती है. इस सब को संभालने के लिए हम दोनों में से एक का घर पर रहना जरूरी है. वैसे, मैं घर पर रह कर भी अच्छाखासा कमा लूंगा. अब तुम खुद सोचो तुम क्या चाहती हो?’’

 

‘‘मैं ने अपनी इच्छा तुम्हें बता दी है.’’

 

‘‘अनु, तुम नौकरी छोड़ती हो तो तुम पर काम का बो?ा अधिक पड़ेगा और तुम्हें शायद नौकरी छोड़ने का पछतावा भी हो.’’

 

‘‘अभी नौकरी छोड़ने की क्या जरूरत है. मैं अवैतनिक अवकाश भी ले सकती हूं.’’

 

‘‘वह तो ठीक है लेकिन तुम जिस जगह पर हो वहां पर तुम्हें अपने स्टूडैंट्स के भविष्य का खयाल भी रखना चाहिए. मेरे ऊपर इस प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है. औफिस में एक काम छोड़ता है उस की जगह दूसरा ले लेता है,’’ तुषार ने अनु को सम?ाया.

 

‘‘तुम ठीक कहते हो, तुषार. तुम्हारी सोच बहुत बड़ी है और मेरी छोटी.’’

 

‘‘ऐसी बात नहीं है, अनु. तुम्हारी सोच मुझ से भी बड़ी है लेकिन समाज का दबाव देख कर शायद तुम ?ाक जाती हो. मुझे अपने घर की परवाह है समाज की नहीं.’’

 

 

तुषार का निर्णय अनु को बहुत अच्छा लगा. तुषार ने पहले अवैतनिक अवकाश का प्रार्थनापत्र दिया उस के बाद उस ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया.

 

अनु ने यह बात जब मम्मी को बताई तो वह अवाक रह गई, ‘‘अनु, मैं यह क्या सुन रही हूं?’’

 

‘‘मम्मी आप ने ठीक सुना है. तुषार ने नौकरी छोड़ दी है.’’

 

‘‘ऐसी क्या मजबूरी आ गई?’’

 

‘‘मम्मी, घर पर बच्चों को हमारी जरूरत है. उसे पूरा करने के लिए किसी एक को तो यह सब करना ही था. हम दोनों ने सोचा और तुषार ने नौकरी छोड़ने का निर्णय ले लिया.’’

 

‘‘तो क्या दामादजी दिनभर औरतों की तरह घर का काम देखेंगे?’’

 

‘‘मम्मी, आप घर के काम को छोटा समतीहैं. जब 2 लोग घर से बाहर निकल कर दिनभर काम करते हैं तो दोनों के ऊपर घर और बाहर दोनों का दवाब रहता है. तुषार नहीं चाहते मैं इस प्रकार का तनाव झेलूं. उन्हें मेरी चिंता रहती है. तभी तो उन्होंने इतना बड़ा फैसला लिया है. हर किसी पुरुष के बस का यह सब नहीं होता,’’ अनु बोली तो सुधा चुप हो गई.

 

वह आज तक तुषार को दिल से अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकी थी. उन्हें लगता था कि इस के कारण ही अनु उस मुकाम तक न पहुंच सकी थी जहां उसे होना चाहिए था. तुषार के चक्कर में पड़ कर उस ने अपना कैरियर बरबाद कर लिया था. कितनी उम्मीदें थीं उन्हें अनु से? उस के मन में कहीं बहुत बड़ी कसक थी. उन की  बेटी ने हमेशा अपनी ही मनमानी की है और उन की कभी नहीं सुनी. जब कैरियर बनाने का समय था तब शादी कर ली. अब जरा स्थिति सुधरी थी तो उस के पति ने नौकरी छोड़ दी है और घर बैठ कर बच्चे पाल रहा है. वे समाज और रिश्तेदारों को क्या जवाब देंगे कि उन का दामाद नौकरी छोड़ कर घर में औरतों की तरह आया का काम कर रहा है?

 

तुषार ने जल्दी ही अपना घर और मार्केटिंग का काम बहुत अच्छे से संभाल लिया. वह सुबह दोनों बच्चों को स्कूल भेजता और दोपहर उन्हें लेने जाता. इस बीच वह अपना मार्केटिंग का काम भी कर लेता. इस से उस की अच्छीखासी कमाई भी होने लगी थी. शाम को दोनों बच्चों को घुमाने भी ले जाता. अनु कालेज से थकीहारी घर आती तो उस से प्यार से बात करता और उस की इच्छा का मान रखता. दोनों को समय मिलता तो वे इधरउधर घूमने भी चले जाते.

 

एक दिन सुधा का फोन आया. वह बहुत घबराई हुई थी, ‘‘अनु, तुम्हारे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई है. तुम तुरंत यहां आ जाओ.’’

 

‘‘मम्मी, मैं वहां आ कर क्या करूंगी? दिल्ली में बहुत अच्छे डाक्टर हैं. तुम प्लीज पापा को ले कर तुरंत यहां आ जाओ.’’

 

मरता क्या न करता. ऐसी हालत में शर्माजी को दिखाने के लिए दिल्ली लाना पड़ा. अनु ने साफ कह दिया था कि मम्मीपापा मेरे ही साथ आ कर रुकेंगे. मजबूर हो कर सुधा को वहीं रुकना पड़ा. पापाजी की हालत ऐसी न थी कि वह अकेले भागदौड़ कर सकते. तुषार एक बेटे से भी बढ़ कर उन की सेवा में लगा रहा. वह सुबहसवेरे उन के साथ डाक्टर के पास जाता. दिनभर वह उन की हर जरूरत का खयाल रखता और साथ के साथ अपना औनलाइन मार्केटिंग का काम भी निबटा लेता.

 

 

तुषार की देखभाल और भागदौड़ का नतीजा था कि पापाजी की हालत में जल्दी सुधार हो गया था. इस दौरान सुधा घर पर रह कर बच्चों की देखभाल कर लेती. तुषार दिनभर पापाजी के साथ रह कर जब घर लौटता तो सब से पहले रिया को होमवर्क करवाता. ऐसी विषम परिस्थिति में भी उस ने अनु पर पापाजी की तबीयत की जरा सी भी जिम्मेदारी नहीं डाली.

 

पहली बार सुधा को एहसास हुआ कि तुषार के रूप में उन्हें दामाद नहीं एक हीरा मिला है जिस की पहचान अनु को बहुत पहले हो गई थी. घर चलाने की उन की रूढि़वादी सोच को तुषार ने तारतार कर दिया था. तुषार का अपने परिवार के प्रति समर्पण किसी स्त्री से भी बढ़ कर था. यहां पर स्त्रीपुरुष का कहीं कोई भेद न था. उन के परिवार की गाड़ी बहुत ही अच्छी तरह से प्यार से सरोबार हो आगे बढ़ रही थी.

 

 

अनु और तुषार अपनी जिम्मेदारियां  बखूबी निभा रहे थे. अनु घर से बाहर निकल नौकरी कर रही थी और तुषार घर की जिम्मेदारियां निभाते हुए अपना मार्केटिंग का काम भी कर रहा था? जिस से उस की अच्छीखासी कमाई भी हो रही थी. तुषार के मम्मीपापा यह बात पहले से जानते थे कि उन्हें अपने बेटे से कोई शिकायत नहीं थी.

 

यह सब देख कर उन्हें अब अनु के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं थी. उन की समझ में आ गया था कि दुनिया में रुतबा बहुत माने रखता है लेकिन इस से बढ़ कर घर की सुखशांति और पतिपत्नी के बीच की समझदारी होती है. घर में कितना भी पैसा आ जाए और वहां शांति न हो तो सब बेकार है.

 

सुधा के मम्मीपापा को पहली बार परिवार के प्रति समर्पण और आत्मविश्वास से भरे तुषार के सामने अपनी रूढि़वादी सोच बहुत तुच्छ लगी. तुषार की नई पहल पर अब उन्हें भी बहुत गर्व हो रहा था. अनु की हंसतीमुसकराती गृहस्थी देख कर उस के मम्मीपापा बहुत खुश थे

online story : प्‍यार का खामियाजा

कुलमिला कर उस की जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. श्वेता से उस का परिचय होने के बाद तो जिंदगी में कोई कमी ही नहीं रह गई थी. बीचबीच में श्वेता उस के पास आती थी और उस की रातों को गुलजार कर जाया करती थी. वह अपनी जिंदगी से काफी संतुष्ट था खासकर श्वेता के आने के बाद से.

श्वेता समयसमय पर उस से थोड़ेबहुत पैसे लेती रहती थी, पर उसे इस का जरा भी अफसोस नहीं था, क्योंकि बदले में उसे श्वेता से काफीकुछ मिलता भी था.

परेशानी तब हुई, जब श्वेता की मांग दिनबदिन बढ़ने लगी. एक दिन तो उस ने उस से बड़ी मांग कर दी, ‘‘आनंद, मुझे 50,000 रुपए की सख्त जरूरत है,’’ यह उस ने आनंद के बालों में प्यार से हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘क्या… 50,000 रुपए? तुम पागल तो नहीं हो गई हो क्या श्वेता?’’ आनंद ने चौंक कर उठते हुए कहा था.

‘‘क्या तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते? पहली बार तुम मुझे मना कर रहे हो. क्या इतना ही प्यार है तुम्हारे दिल में मेरे लिए या फिर मुझ से मन भर गया है?’’ श्वेता ने प्यार से कहा.

‘‘देखो, जो रकम मेरे बस में है, वह मैं तुम्हें दे सकता हूं, पर 50,000 रुपए… इतने रुपए तो मेरी सालभर की तनख्वाह के बराबर हैं,’’ आनंद ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘7 साल की तनख्वाह के बराबर तो नहीं हैं न?’’ एकाएक श्वेता का रुख बदल गया.

‘‘अगर मैं पुलिस में शिकायत कर दूं तो 7 साल के लिए हवालात में चले जाओगे. सीसीटीवी कैमरे में सुबूत हैं कि तुम मुझे अपने साथ लाते रहे हो. यहां की हर गलीनुक्कड़ में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. मेरे कपड़ों पर तुम्हारी करतूत के सुबूत भी हैं. वैसे भी आजकल ‘मी टू’ के चलते बड़ेबड़ों की हालत खराब है, फिर तुम्हारी क्या बिसात है?’’

‘‘देखो, 50,000 रुपए तो मुझे हर हाल में चाहिए ही चाहिए. तुम कैसे इंतजाम करोगे, यह तुम जानो. एक हफ्ते का समय है तुम्हारे पास,’’ कहते हुए श्वेता चली गई और आनंद हैरान सा उसे जाते हुए देखता रहा.

इस के बाद से आनंद काफी चिंतित रहने लगा था. उस की कुल तनख्वाह 6,000 रुपए महीने थी जिस में से 2-3 हजार रुपए तो वह श्वेता पर ही लुटा देता था. 1,000 रुपए घर भेज दिया करता था. बाकी उस के खानेपीने पर खर्च हो जाया करते थे. पैसों के लिए एकमात्र सहारा उस का मालिक था

जो 1-2 महीने से ज्यादा की एडवांस तनख्वाह नहीं दे सकता था.

तो फिर क्या किया जाए? अगर श्वेता ने पुलिस में शिकायत कर दी तो उसे लेने के देने पड़ जाएंगे. एक साल पहले ही वह मुंबई आया था. कोई ऐसा जानकार भी नहीं था जिस से उसे पैसों की मदद मिल सके.

आनंद मुंबई के दादर इलाके में एक प्लाट पर बने छोटे से झोंपड़ीनुमा मकान में रहता था. प्लाट के मालिक ने प्लाट की देखभाल के लिए उसे वहां टिका दिया था. प्लाट के मालिक की उस प्लाट पर एक बहुमंजिला अपार्टमैंट्स बनाने की योजना थी जिस के लिए बिल्डरों से बात चल रही थी.

आनंद को महज 6,000 रुपए तनख्वाह मिलती थी. घर पर बेकार बैठे रहने के बजाय यह भी बुरा न था. न जाने कितने लोग मुंबई जैसे बड़े शहरों में मामूली तनख्वाह पर काम करने आते हैं क्योंकि उन के पास और कोई काम नहीं होता. कइयों को तो काफी खराब हालात में रहना पड़ता है, पर वह संतुष्ट था. रहने को झोंपड़ी थी ही. वहीं कुछ कच्चापक्का बना कर खा लेता था. बिजलीपानी की सुविधा चौबीसों घंटे थी जिस का बिल मालिक अदा करता था.

ये भी पढ़ें- बुरी संगत

काफी सोचविचार के बाद आनंद के दिमाग में एक ही उपाय आया श्वेता को रास्ते से हटाने का. उस की हत्या कर देना, पर लाश को कहां और कैसे ठिकाने लगाएगा, यह बहुत बड़ी समस्या थी.

काफी सोचविचार के बाद आनंद ने लाश को प्लाट के एक कोने में फेंक कर खुद पुलिस को सूचित करने की योजना सोची. वह खुद शिकायत करेगा तो पुलिस को शक भी नहीं होगा.

अगली बार जब श्वेता आई तो आनंद ने उस का दिल खोल कर स्वागत किया.

‘‘जैसेतैसे मैं ने रुपयों का इंतजाम किया है. आगे से इतनी बड़ी रकम मत मांगना. मैं गरीब आदमी कहां से इतनी बड़ी रकम लाऊंगा?’’ आनंद ने श्वेता को बांहों में भरते हुए कहा.

श्वेता को इस बात से मतलब नहीं था कि आनंद ने रुपयों का इंतजाम कहां से किया है. मन ही मन उस ने सोचा, ‘रुपए तो मैं तुम से हमेशा मांगूंगी. आखिर मजबूरी में तुम्हें अपना जिस्म देती हूं तो उस का भुगतान तो देना ही होगा.’

श्वेता बोली, ‘‘अगर जरूरत नहीं होती तो तुम्हें क्यों तकलीफ देती…’’

फिर वे दोनों एकदूसरे के आगोश में समा गए. आनंद सोच रहा था कि वह आखिरी बार श्वेता के जिस्म को भोग रहा है, इस के बाद तो इसे खत्म कर देना है इसलिए वह जम कर उस के बदन का मजा ले रहा था.

श्वेता सोच रही थी कि आज 50,000 रुपए लेने के बाद फिर कब उस से रकम मांगनी है.

मौका पा कर आनंद ने श्वेता

का गला दबा दिया, फिर चाकू से

गले को रेत दिया और लाश को एक कोने में जा कर फेंक दिया.

आनंद को अपने प्लान पर पूरा भरोसा था, इसलिए वह आराम से सो गया. अगले दिन सुबह उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर जानकारी दी कि एक औरत की लाश प्लाट के एक कोने में पड़ी हुई है.

आनंद को यह गुमान था कि पुलिस को आसानी से चकमा दिया जा सकता है और इस के लिए उस ने खुद पुलिस से शिकायत करने की तरकीब अपनाई थी. शिकायत करने वाले पर पुलिस भला क्यों शक करेगी, उस ने यही सोचा था.

पुलिस ने आ कर सब से पहले श्वेता को अस्पताल पहुंचाया, जहां उसे ‘मृत लाया गया’ घोषित कर दिया. पुलिस ने अनजान शख्स के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

ये भी पढ़ें- अपनी खूबी ले डूबी

आनंद बहुत खुश हुआ. उसे अपनी योजना कामयाब होती दिखाई दी, पर उसे पता नहीं था कि पुलिस शक के आधार पर उस से पूछताछ शुरू कर देगी. विरोधाभाषी बयानों के चलते वह पकड़ में आ गया और फिर मामला सुलझ गया.

आनंद ज्यादा देर तक पुलिस के सामने टिक नहीं पाया और उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. वही पुलिस को उस जगह पर भी ले गया जहां उस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू छिपा कर रखा था.

इस तरह श्वेता के लालच ने उस की जिंदगी खत्म करवा दी और जिस्मानी आकर्षण ने आनंद की जिंदगी बरबाद कर दी.

Modern Story : बौस और वो नई लड़की

इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

ये भी पढ़ें- चाहत की शिकार

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

 

Funny Story : रिटायरमैंट के क्विक लौस

मेरे रिटायरमैंट का दिन नजदीक आते ही मेरे आसपास के लोग मेरा मन बहलाने के लिए मुझे सपने दिखाते रहे कि रिटायर होने के बाद जो मजा है, वह सरकारी नौकरी में रहते नहीं. लेकिन रिटायरमैंट के बाद मेरे जो क्विक लौस हुए उन्हें मैं ही जानता हूं.

रिटायर होने के 4 दिनों बाद ही पता चल गया कि रिटायर होने के कितने क्विक लौस हैं. लौंग टर्म लौस तो धीरेधीरे सामने आएंगे. आह रे रिटायरी. बीते सुख तो कम्बख्त औफिस में ही छूट गए रे भैये. रिटायरमैंट के बाद के सब्जबाग दिखाने वालो, हे मेरे परमादरणियो, मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें कभी समय पर पैंशन न मिले.

बंधुओ, घर के कामों से न मैं पहले डरता था, न अब डरता हूं. इन्हीं कम्बख्त घर के कामों के कारण ही तो हर रोज लेट हो जाने के बाद अगले दिन समय पर औफिस जाने की कसम खा कर भी रिटायर होने तक समय पर औफिस न पहुंचा.

वैसे मु झे इस बात पर पूरा संतोष है कि मैं ने सरकारी नौकरी में रहते घर के कामों को औफिस के कामों से अधिक प्राथमिकता दी, इन की, उन की, सब की तरह. औफिस के कामों का क्या? वे तो होते ही रहते हैं. आज नहीं तो कल. कल नहीं तो परसों. परसों नहीं तो चौथे. और जो ज्यादा ही हुआ तो अपना काम सरका दिया किसी दूसरे की ओर. पर घर के काम तो भाईसाहब आप को ही करने होते हैं, अपने हिस्से के भी, अपनी बीवी के हिस्से के भी घर में शांति रखनी हो तो. वरना, महाभारत के लिए कुरुक्षेत्र ढूंढ़ने की कतई जरूरत नहीं.

दूसरी ओर, जोजो औफिस के कामों को कम घर के कामों को अधिक प्राथमिकता देते हैं, उन का घर नरक होते हुए भी स्वर्ग होता है. और जो औफिस के कामों को अधिक प्राथमिकता देते हैं और घर के कामों से हाथ चुराते हैं वे रिटायरमैंट के बाद तो छोडि़ए, रिटायर होने से पहले ही स्वर्ग जैसे औफिस में रहने के बाद भी नरक ही भोगते हैं.

 

जौब लगने से ले कर रिटायरमैंट तक लेट औफिस जाने, जाने तो जाने, न जाने तो न जाने का, बिन छुट्टी लिए औफिस से जल्दी घर आने का मु झे तनिक भी मलाल नहीं क्योंकि मैं उस देश का वासी हूं जहां जल्दी तो सब को रहती है, पर समय पर कोई कहीं भी नहीं पहुंचता.

तो मित्रो, अब मैं फील कर रहा हूं कि रिटायरमैंट के बाद मेरा सब से बड़ा क्विक लौस जो हुआ है, वह यह है कि अब मैं सरकारी पैसे पर निजी मस्ती करने नहीं जा सकूंगा. सरकारी नौकरी में रहते सरकार के पैसों पर घूमने के आप के पास हजारों बहाने होते हैं. न भी हों तो भी किसी भी बहाने घूमने की अति आवश्यक जरूरत बता बहाने बना लिए जाते हैं. बस, आप के पास  झूठा इनोवेटिव दिमाग होना चाहिए.

ऐसा करने से सरकारी कामों में गतिशीलता बनी रहती है. बाहर के लोगों से संपर्क बढ़ते हैं जो रिटायरमैंट से पहले और रिटायरमैंट के बाद बड़े काम आते हैं. वैसे भी, जो मैं ने रिटायरमैंट तक फील किया, वह यह कि सरकारी नौकरी मेलमिलाप के सिवा और कुछ भी नहीं, काम तो जाए भाड़ में.

जब हम अंगरेजों के रहते हुए भी सरकारी काम का बहिष्कार सीने पर गोली खाने के बाद कर सकते हैं तो भाईसाहब, अब तो हम आजाद हैं, आजाद. और आजाद भी ऐसे कि हमारी आजादी हम सब से कुछ करवा सकती है पर, औफिस में काम कदापि नहीं करवा सकती. हम और तो सब कुछ कर सकते हैं, पर औफिस में रह कर औफिस का काम नहीं कर सकते, तो बस, नहीं कर सकते. जिस में दम हो, करवा कर देख ले. चौथे दिन अपनेआप ही काम करना न भूल जाए तो रिटायरमैंट के बाद उस का जूता मेरा सिर.

सच कहूं तो अपनी जेब से पैसे दे कर आज तक मैं शौचालय भी नहीं गया था. शौचालय जाता तो उस का 5 के बदले 50 रुपए का बिल ले औफिस आ कर वापस ले लेता. कई बार तो मैं ने ऐसा भी किया कि शौच खुले में कर दिया और शौचालय वाले से बिल ले उसे सगर्व औफिस में प्रोड्यूस कर रीइंबर्स करवा लिया. अब मैं सच बोल कर अपना मन हलका कर लेना चाहता हूं. सो, जो शौचालय के बाहर जानपहचान का निकल आता, उस से अलतेचलते यों ही 50 रुपए का बिल ले लेता. शौच के जाली बिल के 10 रुपए निकालने वाला खा लेता, 40 अपुन रख लेते अदब से.

दूसरा क्विक लौस जो मैं फील कर रहा हूं वह यह कि घर में अब सारा दिन इस भीषण गरमी में पंखा पूरी स्पीड में चलाना पड़ रहा है. पड़ेगा ही, अपने मीटर के साथ. औफिस में ऐसीऐसी गंदी आदतें पड़ गई थीं कि अब पता चल रहा है कि वे गंदी नहीं, बहुत गंदी आदतें थीं. औफिस में कई बार तो हीटर और पंखा तक एकसाथ चला देता था. पर अब 2 दिन में ही घर के पंखे को औन करने में भी दम निकल रहा है. अभी से ही यह हाल है तो सर्दी में सूरज ही जाने, हीटर कैसे लगा पाऊंगा?

 

रिटायरमैंट का एक और क्विक लौस जो मैं फील कर रहा हूं वह यह भी है कि औफिस में तो जिसे जो मन में आता था, बक देता था. बेचारे प्यून टेबल साफ होने के बाद भी मेरे गालियां देने पर साफ करते रहते थे. इतना साफ कि हर महीने टेबल का माइका नया लगवाना पड़ता था. इस बहाने लाख पगार लेने वाले के ऊपर या नीचे कहीं से भी 2-4 सौ और बन जाते थे. पर अब घर में सब मु झ पर बकते रहते हैं. जबकि मु झे बेवजह अपने पर बकना तक पसंद नहीं.

रिटायरमैंट का एक और क्विक लौस…कल तक जो कुत्ता मेरे घर से औफिस जाने और औफिस से घर आने पर मेरे तलवे चाटता था, आज मु झे उसी के तलवे चाटने पड़ रहे हैं. जिस बंदे ने औफिस में सब को उंगलियों पर नचाया, आज वही घर, गली के गधे से गधे की उंगलियों पर नाचने को विवश है.

कुल मिला कर, जमा के नाम पर कुछ नहीं, सब घटघटा कर ही अपनी हालत वह हो गई है कि… अपने रिटायरमैंट के कगार पर बैठे मित्रों से सारे सच कहना चाहता हूं पर इस बात से डरता हूं कि कल को कहीं वे रिटायर होने के डर के बदले एक्सटैंशन की टैंशन ले कर वैसे ही रिटायर न हो जाएं.

Romantic Stories : वो जो सबसे हसीन है

लेखक : केशव राम वाड़दे

सुहागसेज पर बैठी थी अनुजा, लेकिन अनछुई ही रह गई थी. परीक्षित का उसे अनछुआ छोड़ कर चले जाना और फिर लौट आना अनापेक्षित सा था उस के लिए. कुछ भी समझ नहीं आ रहा था उस को.

इन दिनों अनुजा की स्थिति ‘कहां फंस गई मैं’ वाली थी. कहीं ऐसा भी होता है भला? वह अपनेआप में कसमसा रही थी.

ऊपर से बर्फ का ढेला बनी बैठी थी और भीतर उस के ज्वालामुखी दहक रहा था. ‘क्या मेरे मातापिता तब अंधेबहरे थे? क्या वे इतने निष्ठुर हैं? अगर नहीं, तो बिना परखे ऐसे लड़के से क्यों बांध दिया मु झे जो किसी अन्य की खातिर मु झे छोड़ भागा है, जाने कहां? अभी तो अपनी सुहागरात तक भी नहीं हुई है. जाने कहां भटक रहा होगा. फिर, पता नहीं वह लौटेगा भी या नहीं.’

उस की विचारशृंखला में इसी तरह के सैकड़ों सवाल उमड़तेघुमड़ते रहे थे. और वह इन सवालों को  झेल भी रही थी.  झेल क्या रही थी, तड़प रही थी वह तो.

लेकिन जब उसे उस के घर से भाग जाने के कारण की जानकारी हुई, झटका लगा था उसे. उस की बाट जोहने में 15 दिन कब निकल गए. क्या बीती होगी उस पर, कोई तो पूछे उस से आ कर.

सोचतेविचारते अकसर उस की आंखें सजल हो उठतीं. नित्य 2 बूंद अश्रु उस के दामन में ढुलक भी आते और वह उन अश्रुबूंदों को देखती हुई फिर से विचारों की दुनिया में चली जाती और अपने अकेलेपन पर रोती.

अवसाद, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी से उस का हृदय तारतार हुआ जा रहा था. लगने लगा था जैसे वह अबतब में ही पागल हो जाएगी. उस के अंदर तो जैसे सांप रेंगने लगा था. लगा जैसे वह खुद को नोच ही डालेगी या फिर वह कहीं अपनी जान ही गंवा बैठेगी. वह सोचती, ‘जानती होती कि यह ऐसा कर जाएगा तो ब्याह ही न करती इस से. तब दुनिया की कोई भी ताकत मु झे मेरे निर्णय से डिगा नहीं सकती थी. पर, अब मु झे क्या करना चाहिए? क्या इस के लौट आने का इंतजार करना चाहिए? या फिर पीहर लौट जाना ही ठीक रहेगा? क्या ऐसी परिस्थिति में यह घर छोड़ना ठीक रहेगा?’

वक्त पर कोई न कोई उसे खाने की थाली पहुंचा जाता. बीचबीच में आ कर कोई न कोई हालचाल भी पूछ जाता. पूरा घर तनावग्रस्त था. मरघट सा सन्नाटा था उस चौबारे में. सन्नाटा भी ऐसा, जो भीतर तक चीर जाए. परिवार का हर सदस्य एकदूसरे से नजरें चुराता दिखता. ऐसे में वह खुद को कैसे संभाले हुए थी, वह ही जानती थी.

दुलहन के ससुराल आने के बाद अभी तो कई रस्में थीं जिन्हें उसे निभाना था. वे सारी रस्में अपने पूर्ण होने के इंतजार में मुंहबाए खड़ी भी दिखीं उसे. नईनवेली दुलहन से मिलनजुलने वालों का आएदिन तांता लग जाता है, वह भी वह जानती थी. ऐसा वह कई घरों में देख चुकी थी. पर यहां तो एकबारगी में सबकुछ ध्वस्त हो चला था. उस के सारे संजोए सपने एकाएक ही धराशायी हो चले थे. कभीकभार उस के भीतर आक्रोश की ज्वाला धधक उठती. तब वह बुदबुदाती, ‘भाड़ में जाएं सारी रस्मेंरिवाज. नहीं रहना मु झे अब यहां. आज ही अपना फैसला सुना देती हूं इन को, और अपने पीहर को चली जाती हूं. सिर्फ यही नहीं, वहां पहुंच कर अपने मांबाबूजी को भी तो खरीखोटी सुनानी है.’ ऐसे विचार उस के मन में उठते रहे थे, और वह इस बाबत खिन्न हो उठती थी.

इन दिनों उस के पास तो समय ही समय था. नित्य मंथन में व्यस्त रहती थी और फिर क्यों न हो मंथन, उस के साथ ऐसी अनूठी घटना जो घटी थी, अनसुल झी पहेली सरीखी. वह सोचती, ‘किसे सुनाऊं मैं अपनी व्यथा? कौन है जो मेरी समस्या का निराकरण कर सकता है? शायद कोईर् भी नहीं. और शायद मैं खुद भी नहीं.’

फिर मन में खयाल आता, ‘अगर परीक्षित लौट भी आया तो क्या मैं उसे अपनाऊंगी? क्या परीक्षित अपने भूल की क्षमा मांगेगा मुझ से? फिर कहीं मेरी हैसियत ही धूमिल तो नहीं हो जाएगी?’ इस तरह के अनेक सवालों से जू झ रही थी और खुद से लड़ भी रही थी अनुजा. बुदबुदाती, ‘यह कैसी शामत आन पड़ी है मु झ पर? ऐसा कैसे हो गया?’

तभी घर के अहाते से आ रही खुसुरफुसुर की आवाजों से वह सजग हो उठी और खिड़की के मुहाने तक पहुंची. देखा, परीक्षित सिर  झुकाए लड़खड़ाते कदमों से, थकामांदा सा आंगन में प्रवेश कर रहा था.

उसे लौट आया देखा सब के मुर झाए चेहरों की रंगत एकाएक बदलने लगी थी. अब उन चेहरों को देख कोई कह ही नहीं सकता था कि यहां कुछ घटित भी हुआ था. वहीं, अनुजा के मन को भी सुकून पहुंचा था. उस ने देखा, सभी अपनीअपनी जगहों पर जड़वत हो चले थे और यह भी कि ज्योंज्यों उस के कदम कमरे की ओर बढ़ने लगे. सब के सब उस के पीछे हो लिए थे. पूरी जमात थी उस के पीछे.

इस बीच परीक्षित ने अपने घर व घर के लोगों पर सरसरी निगाह डाली. कुछ ही पलों में सारा घर जाग उठा था और सभी बाहर आ कर उसे देखने लगे थे जो शर्म से छिपे पड़े थे अब तक. पूरा महल्ला भी जाग उठा था.

जेठानी की बेटी निशा पहले तो अपने चाचा तक पहुंचने के लिए कदम बढ़ाती दिखी, फिर अचानक से अपनी नई चाची को इत्तला देने के खयाल से उन के कमरे तक दौड़तीभागतीहांफती पहुंची. चाची को पहले से ही खिड़की के करीब खड़ी देख वह उन से चिपट कर खड़ी हो गई. बोली कुछ भी नहीं. वहीं, छोटा संजू दौड़ कर अपने चाचा की उंगली पकड़ उन के साथसाथ चलने लगा था.

परीक्षित थके कदमों से चलता हुआ, सीढि़यां लांघता हुआ दूसरी मंजिल के अपने कमरे में पहुंचा. एक नजर समीप खड़ी अनुजा पर डाली, पलभर को ठिठका, फिर पास पड़े सोफे पर निढाल हो बैठ गया और आंखें मूंदें पड़ा रहा.

मिनटों में ही परिवार के सारे सदस्यों का उस चौखट पर जमघट लग गया. फिर तो सब ने ही बारीबारी से इशारोंइशारों में ही पूछा था अनुजा से, ‘कुछ बका क्या?’

उस ने एक नजर परीक्षित पर डाली. वह तो सो रहा था. वह अपना सिर हिला उन सभी को बताती रही, अभी तक तो नहीं.’

एक समय ऐसा भी आया जब उस प्रागंण में मेले सा समां बंध गया था. फिर तो एकएक कर महल्ले के लोग भी आते रहे, जाते रहे थे और वह सो रहा था जम कर. शायद बेहोशी वाली नींद थी उस की.

अनुजा थक चुकी थी उन आनेजाने वालों के कारण. चौखट पर बैठी उस की सास सहारा ले कर उठती हुई बोली, ‘‘उठे तो कुछ खिलापिला देना, बहू.’’ और वे अपनी पोती की उंगली पकड़ निकल ली थीं. माहौल की गर्माहट अब आहिस्ताआहिस्ता शांत हो चुकी थी. रात भी हो चुकी थी. सब के लौट जाने पर अनुजा निरंतर उसे देखती रही थी. वह असमंजस में थी. असमंजस किस कारण से था, उसे कहां पता था.

परिवार के, महल्ले के लोगों ने भी सहानुभूति जताते कहा था, ‘बेचारे ने क्या हालत बना रखी है अपनी. जाने कहांकहां, मारामारा फिरता रहा होगा? उफ.’

आधी रात में वह जगा था. उसी समय ही वह नहाधो, फिर से जो सोया पड़ा, दूसरी सुबह जगा था. तब अनुजा सो ही कहां पाई थी. वह तो तब अपनी उल झनोंपरेशानियों को सहेजनेसमेटने में लगी हुई थी.

वह उस रात निरंतर उसे निहारती रही थी. एक तरफ जहां उस के प्रति सहानुभूति थी, वहीं दूसरी तरफ गहरा रोष भी था मन के किसी कोने में.

सहानुभूति इस कारण कि उस की प्रेमिका ने आत्महत्या जो कर ली थी और रोष इस बात पर कि वह उसे छोड़ भागा था और वह सजीसंवरी अपनी सुहागसेज पर बैठी उस के इंतजार में जागती रही थी. वह उसी रात से ही गायब था. फिर सुहागरात का सुख क्या होता है, कहां जान पाई थी वह.

उस रात उस के इंतजार में जब वह थी, उस का खिलाखिला चेहरा पूनम की चांद सरीखा दमक रहा था. पर ज्यों ही उसे उस के भाग खड़े होने की खबर मिली, मुखड़ा ग्रहण लगे चांद सा हो गया था. उस की सुर्ख मांग तब एकदम से बु झीबु झी सी दिखने लगी थी. सबकुछ ही बिखर चला था.

तब उस के भीतर एक चीत्कार पनपी थी, जिसे वह जबरन भीतर ही रोके रखे हुए थी. फिर विचारों में तब यह भी था, ‘अगर उस से मोहब्बत थी, तो मैं यहां कैसे? जब प्यार निभाने का दम ही नहीं, तो प्यार किया ही क्यों था उस से? फिर इस ने तो 2-2 जिंदगियों से खिलवाड़ किया है. क्या इस का अपराध क्षमायोग्य है? इस के कारण ही तो मु झे मानसिक यातनाएं  झेलनी पड़ी हैं. मेरा तो अस्तित्व ही अधर में लटक गया है इस विध्वंसकारी के कारण. जब इतनी ही मोहब्बत थी तो उसे ही अपना लेता. मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का हक इसे किस ने दिया?’ तब उस की सोच में

यह भी होता, ‘मैं अनब्याही तो नहीं कहीं? फिर, कहीं यह कोई बुरा सपना

तो नहीं?’

दूसरे दिन भी घर में चुप्पी छाई रही थी. वह जागा था फिर से. घर वालों को तो जैसे उस के जागने का ही इंतजार था.  झटपट उस के लिए थाली परोसी गई. उस ने जैसेतैसे खाया और एक बार फिर से सो पड़ा और बस सोता ही रहा था. यह दूसरी रात थी जो अनुजा जागते  बिता रही थी. और परीक्षित रातभर जाने क्याक्या न बड़बड़ाता रहा था. बीचबीच में उस की सिसकियां भी उसे सुनाई पड़ रही थीं. उस रात भी वह अनछुई ही रही थी.

फिर जब वह जागा था, अनुजा के समीप आ कर बोला, तब उस की आवाज में पछतावे सा भाव था, ‘‘माफ करना मु झे, बहुत पीड़ा पहुंचाई मैं ने आप को.’’

‘आप को,’ शब्द जैसे उसे चुभ गया. बोली कुछ भी नहीं. पर इस एक शब्द ने तो जैसे एक बार में ही दूरियां बढ़ा दी थीं. उस के तो तनबदन में आग ही लग गई थी.

रिमझिम, जो उस का प्यार थी, इस की बरात के दिन ही उस ने आत्महत्या कर ली थी. लौटा, तो पता चला. फिर वह भाग खड़ा हुआ था.

लौटने के बाद भी अब परीक्षित या तो घर पर ही गुमसुम पड़ा रहता या फिर कहीं बाहर दिनभर भटकता रहता. फिर जब थकामांदा लौटता तो बगैर कुछ कहेसुने सो पड़ता.

ऐसे में ही उस ने उसे रिमझिम झोड़ कर उठाया और पहली बार अपनी जबान खोली थी. तब उस का स्वर अवसादभरा था, ‘‘मैं पराए घर से आई हूं. ब्याहता हूं आप की. आप ने मु झ से शादी की है, यह तो नहीं भूले होंगे आप?’’

वह निरीह नजरों से उसे देखता रहा था. बोला कुछ भी नहीं. अनुजा को उस की यह चुप्पी चुभ गई. वह फिर से बोली थी, तब उस की आवाज विकृत हो आई थी.

‘‘मैं यहां क्यों हूं? क्या मु झे लौट जाना चाहिए अपने मम्मीपापा के पास? आप ने बड़ा ही घिनौना मजाक किया है मेरे साथ. क्या आप का यह दायित्व नहीं बनता कि सबकुछ सामान्य हो जाए और आप अपना कामकाज संभाल लो. अपने दायित्व को सम झो और इस मनहूसियत को मिटा डालो?’’

चंद लमहों के लिए वह रुकी. खामोशी छाई रही. उस खामोशी को खुद ही भंग करते हुए बोली, ‘‘आप के कारण ही पूरे परिवार का मन मलिन रहा है अब तक. वह भी उस के लिए जो आप की थी भी नहीं. अब मैं हूं और मु झे आप का फैसला जानना है. अभी और अभी. मैं घुटघुट कर जी नहीं सकती. सम झे आप?’’

अनुजा के भीतर का दर्द उस के चेहरे पर था, जो साफ  झलक रहा था. परीक्षित के चेहरे की मायूसी भी वह भलीभांति देख रही थी. दोनों के ही भीतर अलगअलग तरह के  झं झावात थे,  झुं झलाहट थी.

परीक्षित उसे सुनता रहा था. वह उस के चेहरे पर अपनी नजरें जमाए रहा था. वह अपने प्रति उपेक्षा, रिमिझम के प्रति आक्रोश को देख रहा था. जब उस ने चुप्पी साधी, परीक्षित फफक पड़ा था और देररात फफकफफक कर रोता ही रहा था. अश्रु थे जो उस के रोके नहीं रुक रहे थे. तब उस की स्थिति बेहद ही दयनीय दिखी थी उसे.

वह सकपका गई थी. उसे अफसोस हुआ था. अफसोस इतना कि आंखें उस की भी छलक आई थीं, यह सोच कर कि ‘मु झे इस की मनोस्थिति को सम झना चाहिए था. मैं ने जल्दबाजी कर दी. अभी तो इस के क्षतविक्षत मन को राहत मिली भी नहीं और मैं ने इस के घाव फिर से हरे कर दिए.’

उस ने उसे चुप कराना उचित नहीं सम झा. सोचा, ‘मन की भड़ास, आंसुओं के माध्यम से बाहर आ जाए, तो ही अच्छा है. शायद इस से यह संभल ही जाए.’ फिर भी अंतर्मन में शोरगुल था. उस में से एक आवाज अस्फुट सी थी, ‘क्या मैं इतनी निष्ठुर हूं जो इस की वेदना को सम झने का अब तक एक बार भी सोचा नहीं? क्या स्त्री जाति का स्वभाव ही ऐसा होता है जो सिर्फ और सिर्फ अपना खयाल रखती है? दूसरों की परवा करना, दूसरों की पीड़ा क्या उस के आगे कोई महत्त्व नहीं रखती? क्या ऐसी सोच होती है हमारी? अगर ऐसा ही है तो बड़ी ही शर्मनाक बात है यह तो.’

उस की तंद्रा तब भंग हुई थी जब वह बोला, ‘‘शादी हो जाती अगर हमारी तो वह आप के स्थान पर होती आज. प्यार किया था उस से. निभाना भी चाहता था. पर इन बड़ेबुजुर्गों के कारण ही वह चल बसी. मैं कहां जानता था कि वह ऐसा कर डालेगी.’’

‘‘पर मेरा क्या? इस पचड़े में मैं दोषी कैसे? मु झे सजा क्यों मिल रही है? आप कहो तो अभी, इसी क्षण अपना सामान समेट कर निकल जाऊं?’’

‘‘देखिए, मु झे संभलने में जरा वक्त लगेगा. फिर मैं ने कब कहा कि आप यह घर छोड़ कर चली जाओ?’’

तभी अनुजा फिर से बिफर पड़ी, ‘‘वह हमारे वैवाहिक जीवन में जहर घोल गई है. अगर वह भली होती तो ऐसा कहर तो न ढाती? लाज, शर्म, परिवार का मानसम्मान, मर्यादा भी तो कोई चीज होती है जो उस में नहीं थी.’’

ये भी पढ़ें- रिटायरमैंट के क्विक लौस

‘‘इतनी कड़वी जबान तो न बोलो उस के विषय में जो रही नहीं. ऊलजलूल बकना क्या ठीक है? फिर उस ने ऐसा क्या कर दिया?’’ वह एकाएक आवेशित हो उठा था.

वह एक बार फिर से सकपका गई थी. उसे, उस से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा तो नहीं थी. फिर वह अब तक यह बात सम झ ही नहीं पाई थी कि गलत कौन है. क्या वह खुद? क्या उस का पति? या फिर वह नासपीटी?

देखतेदेखते चंद दिन और बीत गए. स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी रही थी. अब उस ने उसे रोकनाटोकना छोड़ दिया था और समय के भरोसे जी रही थी.

परीक्षित अब भी सोते में, जागते में रोतासिसकता दिखता. कभी उस की नींद उचट जाने पर रात के अंधेरे में ही घर से निकल जाता. घंटों बाद थकाहारा लौटता भी तो सोया पड़ा होता. भूख लगे तो खाता अन्यथा थाली की तरफ निहारता भी नहीं. बड़ी गंभीर स्थिति से गुजर रहा था वह. और अनुजा  झुं झलाती रहती थी.

ऐसे में अनुजा को उस की चिंता सताने भी लगी थी. इतने दिनों में परीक्षित ने उसे छुआ भी नहीं था. न खुद से उस से बात ही की थी उस ने.

उस दिन पलंग के समीप की टेबल पर रखी रिमझिम की तसवीर फ्रेम में जड़ी रखी दिखी तो वह चकित हो उठा. उस ने उस फ्रेम को उठाया, रिमझिम की उस मुसकराती फोटो को देर तक देखता रहा. फिर यथास्थान रख दिया और अनुजा की तरफ देखा. तब अनुजा ने देखा, उस की आंखें नम थीं और उस के चेहरे के भाव देख अनुजा को लगा जैसे उस के मन में उस के लिए कृतज्ञता के भाव थे.

अनुजा सहजभाव से बोली, ‘‘मैं ने अपनी हटा दी. रिमझिम दीदी अब हमारे साथ होंगी, हर पल, हर क्षण. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’

उस ने उस वक्त कुछ न कहा. काफी समय बाद उस ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने खाना खाया?’’ फिर तत्काल बोला, ‘‘हम दोनों इकट्ठे खाते हैं. तुम बैठी रहो, मैं ही मांजी से कह आता हूं कि वे हमारी थाली परोस दें.’’

खाना खाने के दौरान वह देर तक रिमझिम के विषय में बताता रहा. आज पहली बार ही उस ने अनुजा को, ‘आप’ और ‘आप ने’ कह कर संबोधित नहीं किया था. और आज पहली बार ही वह उस से खुल कर बातें कर रहा था. आज उस की स्थिति और दिनों की अपेक्षा सामान्य लगी थी उसे. और जब वह सोया पड़ा था, उस रात, एक बार भी न सिसका, न रोया और न ही बड़बड़ाया. यह देख अनुजा ने पहली बार राहत की सांस ली.

मानसिक यातना से नजात पा कर अनुजा आज गहरी नींद में थी. परीक्षित उठ चुका था और उस के उठने के इंतजार में पास पड़े सोफे पर बैठा दिखा. पलंग से नीचे उतरते जब अनुजा की नजर  टेबल पर रखी तसवीर पर पड़ी तो चकित हो उठी. मुसकरा दी. परीक्षित भी मुसकराया था उसे देख तब.

 

अब उस फोटोफ्रेम में रिमझिम की जगह अनुजा की तसवीर लगी थी.

‘तुम मेरी रिमझिम हो, तुम ही मेरी पत्नी अनुजा भी. तुम्हारा हृदय बड़ा विशाल है और तुम ने मेरे कारण ही महीनेभर से बहुत दुख  झेला है, पर अब नहीं. मैं आज ही से दुकान जा रहा हूं.’

और तभी, अनुजा को महसूस हुआ कि उस की मांग का सिंदूर सुर्ख हो चला है और दमक भी उठा है. कुछ अधिक ही सुर्ख, कुछ अधिक ही दमक रहा है.

Bjp freebie : लाडली बहन योजना क्‍या भाजपा की रेवड़ी नहीं

फ्री की रेवडि़यां आजकल भारतीय जनता पार्टी और उस के नेता नरेंद्र मोदी की खासा पसंद बनी हुई हैं जिन्हें वे बारबार दोहराते रहते हैं. फ्री चिकित्सा, फ्री बिजली, फ्री बस यात्रा के लालच भारतीय जनता पार्टी की घमासान धार्मिक दानपुण्य की सामाजिक मुहिम का बहुत सही जवाब हैं. भाजपा पौराणिकता वाले सामाजिक गठन पर टिकी है जिस में राज्य अगर कुछ देता है तो सिर्फ ऋषिमुनियों को देता है. पौराणिक गाथाएं उन्हीं राजाओं के गुणगान से भरी हैं जिन्होंने यज्ञ कराए और फिर अंत में ऋषियों को ढेर सारा धन, अनाज, सैकड़ों गाएं, दासियां दीं.

 

केंद्र सरकार लगातार ऋषियोंमुनियों के लिए नएनए तीर्थ बना रही है. उन तीर्थों तक पहुंचाने के लिए हाईवे बना रही है, हवाई अड्डे बना रही है. नदियों के किनारे धार्मिक व्यापार के लिए घाट बना रही है जहां भक्तों से दान कराया जा सके.

मुफ्त में बिजली देना, मुफ्त में चिकित्सा देना, मुफ्त में शिक्षा देना इस सरकार का उद्देश्य है ही नहीं क्योंकि यह कहीं से हिंदू पौराणिक सोच का हिस्सा नहीं है. मुफ्त पाने वाले लोग हमारे यहां राक्षस प्रवृत्ति के माने गए हैं. यह सोच कि सरकार का काम जनता के लिए कुछ सुविधाएं जुटाना होता है, भारतीय जनता के लिए एक मजबूरी है. भाजपा की केंद्र सरकार व इसी पार्टी की राज्य सरकारें भी जनता को खुश करने के लिए अब कुछ देने को मजबूर हैं.

 

कर्नाटक में औरतों को मुफ्त बस सेवा, दिल्ली में मुफ्त बिजली व चिकित्सा आदि गैरभाजपा सरकारों ने शुरू की तो भारतीय जनता पार्टी को भी मन मार कर करना पड़ा पर यह नरेंद्र मोदी को हमेशा खलता रहता है और बीचबीच में वे मुफ्त की रेवडि़यां कह कर इन का मजाक उड़ाते रहते हैं. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की लाड़ली बहना कार्यक्रम ऐसे ही हैं.

 

दुनिया के बहुत से अमीर देशों ने यह फार्मूला अपनाया है कि अमीरों को काम करने की पूरी छूट हो, उन के लिए सुविधाएं हों, उन के लिए सड़कों, हवाई अड्डों का जाल बिछाओ, उन्हें भरपूर कमाने दो ताकि देशों की सरकारें उन के मुनाफे से टैक्स ले सकें और उस टैक्स से गरीबों, आम किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों को मुफ्त में सेवाएं दे सकें. अर्थव्यवस्था का यह फार्मूला अरसे से सफल है क्योंकि अमीर अपनी आदत के अनुसार कमाना जानते हैं पर टैक्स देने के अलावा जनता के लिए वे खर्च नहीं कर सकते.

 

18वीं सदी के बाद धर्म पर बहुत कम देश खर्च कर रहे हैं. जनता पर खर्च कर रहे हैं. भारत सरकार इस का एक बड़ा अपवाद है. इसे सैकड़ों मंदिरों, आश्रमों, आयुर्वेद शास्त्र की नकली शिक्षा देने व कुंभों में पैसा बरबाद करने से कोई दिक्कत नहीं है. जनता को सीधे कुछ दिया जाए, वह रेवड़ी है, खाली बैठे पुजारियों के लिए मंदिर बनाए जाएं, वह जनकल्याण है.

 

Donald Trump : अमेरिका में ट्रंप सरकार का बनना, कितना सही कितना गलत

राष्ट्रपति और कांग्रेस के दोनों सदनों (सीनेट एवं हाउस औफ रिप्रेजेन्टेटिव्स) में मिले बहुमत- ने उन्हें एक खतरनाक डिक्टेटर बनने का मौका दे दिया है.  अमेरिका ग्रेट अगेन और बाहरी लोगों के रोजगार के मौकों की तलाश में गैरकानूनी तौर पर अमेरिका में घुसने जैसे सतही मुद्दों पर डोनाल्ड ट्रंप को मिली जीत असल में कैथोलिक व इवेंजेलिस्ट चर्चों की जीत है जिन पर गोरे अमीरों का कब्जा है.

 

200 सालों से दुनियाभर में लोकतंत्र व व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं के लिए लड़ रहे अमेरिका ने दुनिया का नेतृत्व छोड़ कर अपने गोरे संपन्न नागरिकों के लिए एक स्वर्ग सा बनाने का फैसला लिया है जिसे दुनिया के दूसरे कोनों में क्या हो रहा है, इस से तब ही सरोकार होगा जब उस में उस का मुनाफा होता दिखेगा.

 

एक नेता की जगह एक लंपट, सैक्स आरोपों से घिरे, फितूरों में भरोसा करने वाले, लोकतंत्र के बहाने पैसा कमाने वाले नेता को चुन कर अमेरिकावासियों ने दुनिया के देशों के नेताओं को यह सिखा सा दिया है कि जनहित की नहीं, स्वहित की बात ही लोकतंत्र का असल मूल मंत्र है. लोकतंत्र पर पड़ने वाली काली स्याही अमेरिका की जनता ने खुद लगाई है और दुनियाभर के लोकतांत्रिक देश अब भयभीत हैं जबकि कट्टरपंथी नेता/शासक मन ही मन खुश हैं. अब अमेरिका की लोकतांत्रिक मूल्यों पर उठने वाली आवाज 4 सालों के लिए तो धीमी हो ही गई है, हो सकता है यह हमेशा के लिए बंद भी हो जाए.

 

इतिहास गवाह है कि कितनी ही बार बड़े समाज एक गलत शासक के कारण संकट में पड़े. हमारे अपने ज्ञात-लिखित इतिहास के अनुसार, मुगल शासक औरंगजेब की कट्टरता ने मुगल वंश को ही समाप्त नहीं कर दिया बल्कि पूरे देश को अराजकता में ?ांक भी दिया जिस का लाभ विदेशियों ने जम कर उठाया.

 

उस के बाद मराठाओं ने शिवाजी के नेतृत्व में कुछ सही राज की स्थापना की लेकिन पेशवाओं के आते ही मराठा राज सामाजिक कहर बन गया और जो थोड़ीबहुत न्याय व व्यवस्था बननी शुरू हुई थी, खत्म हो गई. मुट्ठीभर विदेशियों ने बचेखुचे मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य को आसानी से हरा कर देश पर पूरा कब्जा कर लिया.

 

यह अमेरिका में हो सकता है क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप का खब्तीपन अमेरिकियों की रगरग में घुस चुका है. डोनाल्ड ट्रंप ने फौक्स टीवी और एक्स (पहले ट्विटर) जैसे प्रचार साधनों का भरपूर इस्तेमाल किया जिन के मालिक, मैनेजर, शेयरहोल्डर मुख्यतया चर्च जाने वाले गोरे हैं और वे गोरे हैं जो कट्टरपंथियों का राज नई उभरती टैक्नोलौजी के सहारे चलाना जानते हैं और चाहते भी हैं.

 

अमेरिकी टैक्नोलौजी डोनाल्ड ट्रंप के राज में फलेगीफूलेगी क्योंकि अब वह हर बात की पूरी, हो सका तो ज्यादा भी, कीमत वसूलेगी. जैसे गूगल ने पहले मुफ्त का लौलीपौप दे कर भारत के पोस्टऔफिसों को खत्म सा कर दिया और अब अपने दाम आसमान छूने जैसे बढ़ा दिए हैं वैसा ही अब अमेरिका में होगा.

 

कालों, लेटिनों, भारतीय मूल के वोटरों ने खासी संख्या में डोनाल्ड ट्रंप को वोट दिया है क्योंकि गरीब, कमजोर हमेशा ही हाकिमों के मानसिक व शारीरिक दोनों तरह के गुलाम रहे हैं. अपनेआप में ये धार्मिक कट्टर लोग अमेरिका के विशेष गुण, उस के खुलेपन, के कारण अमेरिका में आ कर बसे थे, अब वह खत्म होने लगे तो आश्चर्य नहीं.

 

डोनाल्ड ट्रंप, जो व्यक्तिगत तौर पर औरतों को खिलौना व सैक्स औब्जैक्ट समझते हैं, अपना यह विशेष अवगुण वे पूरे अमेरिका में फैला देंगे और अमेरिकी औरतें कहीं चर्च के बहाने, कहीं पैसे की खातिर, कहीं डर की वजह से ट्रंप समर्थक की बिनखरीदी गुलाम बन कर रह जाएंगी. हो सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी जीत के बाद अमेरिका की सेना और ताकतवर हो जाए क्योंकि अमेरिकी मूलतया कर्मठ व लड़ाकू हैं. वहां आम लोगों में हरेक के पास एक से ज्यादा बंदूकें हैं और डोनाल्ड ट्रंप के मुख्य समर्थकों में पावरफुल अमेरिकी राइफल एसोसिएशन भी है.

 

वे बड़े हथियार बनाएंगे पर दुनिया पर धौंस जमाने के लिए, लोकतंत्रों की रक्षा के लिए नहीं. दुनिया की गरीबी, भेदभाव, सरकारों के अपनी जनता पर अत्याचारों के खिलाफ अमेरिका सेना अब आगे नहीं आएगी, वह अमेरिकियों के हितों, अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए आगे आएगी.

 

डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने अमेरिकी जनता पर पड़ी वैचारिक उदारता की परत को फाड़ दिया है. ‘टर्मिनेटर’ की ह्यूमन स्किन के नीचे बेजान मशीन है जिस में भावनाएं नहीं और जो सिर्फ अपनी खातिर काम करती है. अमेरिकी जनता ने ग्रेट अमेरिका को विदा कर ‘ग्रेट अमेरिकी रुलर’ को स्थापित किया है.

 

Women Health Problem : ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज

बारबार पेशाब करने को मजबूर होना ओवरऐक्टिव ब्लैडर  होने का संकेत होता है. यह समस्या पुरुष और महिलाओं? दोनों को हो सकती है. महिलाओं में तो ओएबी और मेनोपौज का कुछ संबंध भी होता है.

 

ओवरऐक्टिव ब्लैडर  यानी ओएबी एक क्रौनिक समस्या है. इस के चलते बारबार पेशाब करना पड़ता है. इसे थोड़ी देर भी रोक पाना बहुत ही मुश्किल होता है. अकसर वाशरूम जाने के रास्ते में ही यूरिन लीक हो जाता है. यह समस्या पुरुष और महिला दोनों को हो सकती है. महिलाओं में मेनोपौज और ओएबी का परस्पर कुछ संबंध भी है.

 

महिलाओं के अंतिम मेन्सुरल साइकिल को मेनोपौज कहते हैं. किसी महिला को लगातार 12 महीनों तक पीरियड न हुआ हो तो डाक्टर इसे निश्चित तौर पर मेनोपौज कहते हैं. इस बीच के समय को पेरीमेनोपौज कहते हैं. मेनोपौज का मतलब आप के ‘मासिक पीरियड’ का अंत. पेरीमेनोपौज और मेनोपौज के दौरान शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं.

 

मेनोपौज के सिम्प्टम्स

  •     पीरियड में बदलाव जो आप के सामान्य पीरियड से भिन्न हो.

 

  •  हौट फ्लैशेज यानी शरीर के ऊपरी भाग में अचानक गरमी महसूस होना.

 

  •   नींद में समस्या.

 

  •  मूड चेंज.

 

  •    सैक्स के प्रति रुचि में बदलाव.

 

  • योनि में बदलाव.

 

  •   ब्लैडर कंट्रोल में बदलाव, यह बदलाव ओएबी (ओवरऐक्टिव ब्लैडर का संकेत हो सकता है.)

 

ओएबी के सिम्प्टम्स

 

बारबार यूरिन करना, अचानक यूरिन करने की इच्छा, ब्लैडर कंट्रोल में कठिनाई और वाशरूम तक जाते समय कुछ मात्रा में यूरिन का लीक होना, रात में दो या दो से ज्यादा बार यूरिन करना.

 

ओएबी से होने वाली परेशानियां

 

ओएबी के चलते क्वालिटी औफ लाइफ, सैक्स एक्टिविटी, दैनिक कार्यप्रणाली और प्रोडक्टिविटी, सामाजिक जीवन, थकावट, डिप्रैशन, डिहाइड्रेशन, इन्फैक्शन और दुर्घटना यानी वाशरूम जाने की जल्दबाजी में गिरने की समस्या हो सकती है.

 

मेनोपौज और ब्लैडर कंट्रोल : एस्ट्रोजन का रिश्ता

 

मेनोपौज के कारण हुआ ओएबी स्त्रियों के मुख्य सैक्स हार्मोन एस्ट्रोजन में हुए बदलाव के चलते हो सकता है. एस्ट्रोजन सिर्फ सैक्स हैल्थ और प्रजनन के लिए ही जरूरी नहीं है, यह शरीर के अन्य अंगों (पेल्विक मसल, ब्लैडर और मूत्र नली) और टिश्यू हैल्थ के लिए भी जरूरी है. एस्ट्रोजन इन अंगों को मजबूत और फ्लेक्सिबल बनाए रखता है.

 

मेनोपौज में एस्ट्रोजन लैवल में काफी कमी आ जाती है, इसलिए इन अंगों के मसल और टिश्यू कमजोर हो जाते हैं. एस्ट्रोजन लैवल में कमी के चलते यूटीआई की भी संभावना रहती है.

 

ओएबी के अन्य कारण

 

बढ़ती उम्र में पेल्विक एरिया के मसल्स की कमजोरी के चलते भी ओएबी की समस्या हो सकती है. इस के अलावा प्रैग्नैंसी, प्रसव, किसी दुर्घटना से योनि में हुए बदलाव, दवा के साइड इफैक्ट, अत्यधिक कैफीन और अल्कोहल का सेवन भी ओएबी का कारण हो सकते हैं.

 

ओएबी को कैसे मैनेज करें

 

ओएबी में अचानक यूरिन आ रहा महसूस होता है. तब अकसर असंयमिता के चलते वाशरूम तक जातेजाते कुछ बूंदें लीक हो जाती हैं. इसे कुछ हद तक आप खुद मैनेज कर सकते हैं. इसे लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव कर और ऐक्सरसाइज द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है.

 

कीगल ऐक्सरसाइज : कीगल ऐक्सरसाइज को पेल्विक मसल ऐक्सरसाइज भी कहते हैं. इस का असर 6 से 8 सप्ताह के बाद महसूस होगा.

 

ब्लैडर ट्रेनिंग : इस के लिए जब यूरिन महसूस हो, उसे यथासंभव कुछ देर संयमपूर्वक रोक कर रखें.

 

डबल वौयडिंग : मूत्रत्याग के बाद कुछ मिनट इंतजार कर फिर यूरिन करें, ब्लैडर पूरी तरह खाली हो गया, इसे सुनिश्चित करें.

 

एब्जौर्बेंट पैड : इस पैड को पहनने से आप को बाथरूम तक जाने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा और यूरिन के लीक होने की संभावना नहीं रहेगी, साथ ही, कुछ देर रोक कर आप अन्य जरूरी एक्टिविटी कर सकते  हैं.

 

वजन कंट्रोल : सामान्य से ज्यादा वजन के चलते ब्लैडर पर ज्यादा दबाव पड़ता है और यूरिन जल्दीजल्दी आता है, सो शरीर के वजन को नियंत्रित करें.

 

खानपान : कैफीन, अल्कोहल और अन्य कार्बोनेटेड ड्रिंक का सेवन न करें या कम से कम लें.

 

दवा

 

यदि ऐक्सरसाइज और उपरोक्त विधि से ओएबी कंट्रोल नहीं होता है तब डाक्टर की सलाह से दवा लें. इस से ब्लैडर रिलैक्स करेगा और ओएबी सिम्प्टम  में कमी आएगी.

 

एस्ट्रोजन ट्रीटमैंट : मेनोपौज में एस्ट्रोजन की कमी दूर करने के लिए हार्मोन थेरैपी द्वारा इसे ठीक कर सकते हैं. हालांकि कुछ डाक्टरों का मानना है कि एस्ट्रोजन थेरैपी कोई कारगर तरीका नहीं है फिर भी कुछ महिलाओं का कहना है कि इस से उन्हें लाभ हुआ है.

 

डाइट कंट्रोल और ओएबी : ओएबी में ब्लैडर मसल कमजोर होने के कारण ब्लैडर फुल होने के पहले ही कौन्टैक्ट करने लगता है और बारबार यूरिन आता  है.

 

रात्रि में पानी न पिएं : यथासंभव रात  में पानी की मात्रा कम करें.

 

इन चीजों से परहेज करें

 

कुछ खाद्य पदार्थ खासकर ड्रिंक ब्लैडर, यूरेथ्रा और पेल्विक मसल को इरिटेट कर ओवरऐक्टिव ब्लैडर सिम्प्टम को और भी बढ़ा देते हैं.

 

  •    कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, स्पोर्ट्स ड्रिंक और बीवरेज.

 

  •   कैफीन यानी चाय और कौफी.

 

  •  चौकलेट

 

  •  अल्कोहल.

 

  •    टमाटर और उस से बने सूप, कैचप और सौस.

 

  •   साइट्रस फल.

 

  •  मसालेदार चीजें, कच्चा प्याज, मधु, चीनी, फ्लेवर और प्रिजर्वेटिव वाले भोजन.

 

अगर आप ग्लूटेन (गेहूं, बार्ले आदि में पाया जाने वाला प्रोटीन) के प्रति संवेदनशील हैं तब ऐसे पदार्थ न खाएं,  जैसे ब्रैड या ब्रैड से बनी चीजें, ब्रेकफास्ट सीरियल, ओट्स आदि. उपरोक्त चीजों का सेवन थोड़ी मात्रा में कभीकभी ही किया जा सकता है.

 

डाक्टर की सलाह कब लें

 

ओएबी के चलते आप की जिंदगी या दैनिक गतिविधियों में बाधा न पड़े, इस के लिए निम्न सिम्प्टम बढ़ने से पहले डाक्टर की सलाह लें-

 

  •   दिन में 8 बार से ज्यादा यूरिन करना.
  •   यूरिन करने के लिए रात में दो या ज्यादा बार रैगुलर उठना पड़े.
  •    यूरिन लीक होना.
  •   ओएबी के चलते आप को अपनी जरूरी दैनिक गतिविधियों से सम?ाता करना पड़ रहा हो आदि.

 

 Interview : FIR, Bhabhi ji Ghar Par Hain और ‘हप्पू की उलटन पलटन’ की निर्माता हैं बिनायफर कोहली

‘एफआईआर’, ‘भाभीजी घर पर हैं’, ‘हप्पू की उलटन पलटन’ जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.

 

बहुमुखी प्रतिभा की धनी बिनायफर कोहली ने मौडलिंग से कैरियर की शुरुआत की थी. महज 16 साल की उम्र में वे कोरियोग्राफर बन गई थीं. बिनायफर ने बौम्बे डाइंग, मफतलाल, आईडब्ल्यूएस, पोर्श, एस्टी लौडर आदि के लिए भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैशन शोज की कोरियोग्राफी व मौडलिंग की. फिर एडवरटाइजिंग एजेंसी का काम संभाला. उस के बाद वे लेखिका, टीवी सीरियल निर्मात्री बनीं.

पिछले 32 वर्षों में अपने पति संजय कोहली के साथ मिल कर ‘एडिट 2 प्रोडक्शन’ के तहत ‘माही वे’, ‘निलांजना’, ‘एफआईआर’, ‘भाभीजी घर पर हैं’, ‘हप्पू की उलटन पलटन’, ‘जीजा जी छत पर हैं’, ‘फैमिली नंबर 1’, ‘में आई कम इन मैडम’ और ‘शादी नंबर वन’ सहित 32 से अधिक सामाजिक एवं कौमेडी टीवी सीरियलों का निर्माण कर चुकीं बिनायफर कोहली की गिनती सर्वश्रेष्ठ लेखिका, निर्माता, कोरियोग्राफर के साथसाथ समाजसेवक के रूप में भी होती है.

रतन टाटा को अपनी प्रेरणास्रोत मानने वाली बिनायफर कोहली मूलतया पारसी हैं, जिन्होंने मौडलिंग के दौरान उस वक्त के मशहूर मौडल व पंजाबी युवक संजय कोहली संग विवाह रचाया था. आज वे एक बेटे व एक बेटी की मां हैं.

बिनायफर के पिता एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के सीईओ और मां अपने समय की फैशनपरस्त व एलआईसी की गोल्ड मैडलिस्ट थीं. मुंबई में पलीबढ़ी बिनायफर की स्कूली शिक्षा क्राइस्ट चर्च स्कूल और के सी कालेज से पूरी हुई. टीवी इंडस्ट्री में बिनायफर कोहली की पहचान एक कड़क मास्टर लेकिन मुसीबत के वक्त हर किसी की मदद करने वाली टीवी निर्माता के रूप में होती है.

पुलवामा हमले में शहीद हुए महाराष्ट्र के 2 शहीदों के परिवारों को आर्थिक सहायता देने, भुज में आए भूकंप के दौरान 9 मैडिकल टीमें भेजने से ले कर अभिनेता दीपेश भान की सामयिक मौत के बाद दीपेश के 40 लाख रुपए के कर्ज को अपनी पूरी टीम व क्राउड फंडिंग की मदद से चुकता करवाने से ले कर कई तरह से लोगों की मदद बिना किसी शोरशराबा के करती रहती हैं. तभी तो कई तकनीशियन उन के साथ 30 वर्षों से काम कर रहे हैं तो कई कलाकार 20 वर्षों से उन के साथ काम कर रहे हैं.

बिनायफर कोहली अपने सामाजिक व कौमेडी सीरियलों के माध्यम से हमेशा महिला सशक्तीकरण सहित कई संदेश देती आई हैं. उन्हें सीरियल के किसी भी महिला पात्र को शौर्ट्स पहनाना पसंद नहीं.

आप खुद को टीवी सीरियल निर्माता, कोरियोग्राफर या लेखिका में से क्या बेहतरीन मानती हैं? उन से जब यह सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो तीनों में खुद को बेहतरीन मानती हूं. मैं भारत की लीडिंग कोरियोग्राफर थी. हमारी एडवरटाइजिंग एजेंसी भी थी. मैं और मेरे पति संजय कोहली मिल कर एड भी बनाते थे. मैं स्पष्ट कर दूं कि हमारी प्रोडक्शन कंपनी ‘एडिट 2’ को मेरे पति संजय कोहली हैड करते हैं. हम ने जी टीवी का लौंच इवैंट किया और पहला सीरियल जसपाल भट्टी को ले कर ‘हाय जिंदगी बाय जिंदगी’भी बनाया.

‘‘फिर हम ने सोनी टीवी के लिए ‘फैमिली नंबर वन’ बनाया. कौमेडी में तो संजय को महारत हासिल है. लोग उन्हें ‘किंग औफ कौमेडी’ कहते हैं. टीवी पर 10 अतिलोकप्रिय व बेहतरीन कौमेडी सीरियलों में से 6 सीरियल तो हमारे ही हैं. हमारी कंपनी यानी कि ‘एडिट 2’ का सीरियल ‘एफआईआर’ पूरे 10 साल तक प्रसारित होता रहा. ‘भाभीजी घर पर हैं’ को भी 10 साल हो गए. ‘हप्पू की उलटन पलटन’ 5वें वर्ष में है. ‘मे आई कम इन मैडम’ के 3 सीजन टैलीकास्ट हो चुके हैं. ‘जीजा जी छत पर हैं’ के 2 सीजन टैलीकास्ट हुए. हमारे सीरियल ‘फैमिली नंबर वन’ की गिनती पहले पांच में होती है. हम ने कई सामाजिक सीरियल भी बनाए, जिन्हें पुरस्कृत भी किया गया. मु?ो सामाजिक सीरियल लिखने में महारत हासिल है तो वहीं संजय कोहली को कौमेडी में महारत है तो वे अपनी टीम के साथ कौमेडी सीरियलों पर काम करते हैं. इसलिए मैं अपनेआप को तीनों क्षेत्रों में बेहतरीन मानती हूं.

‘‘हम ने कई नएनए प्रयोग किए. पहले सीरियल के टाइटल में हर कोई सीरियल या एपिसोड के ही कुछ सीन्स को काट कर, उन्हें जोड़ कर उस पर टाइटल चलाते थे. लेकिन सोनी टीवी के लिए जब हम ने पहला सीरियल ‘फैमिली नंबर वन’ बनाया तो हम ने टाइटल के लिए भी कोरियोग्राफ किया. ऐसा काम सब से पहले मैं ने ही किया था. हम ने एक परिवार को नीले और दूसरे परिवार को हरे रंग के कौस्ट्यूम पहना कर डांस कराया. तो वे टाइटल्स एकदम अलग बन गए थे. फिर मैं ने यही काम अपने दूसरे शो ‘मस्ती’ में किया. धीरेधीरे दूसरे निर्माताओं ने हमारी नकल करते हुए टाइटल्स के लिए अलग शूट करना शुरू किया और अब तो सीरियल के टाइटल्स और प्रोमो को फिल्माने के लिए अलग से यूनिट बुलाई जाती है. मैं ने कई सीरियल लिखे. मैं ने एक फिल्म ‘बारिश’ लिखी थी, जिसे ‘स्टार’ ने रिलीज किया था. इस फिल्म को सुखवंत ढड्ढा ने पंजाब में फिल्माया था.’’

कहा जाता है कि आप खुद को मल्टीटास्किंग मानती हैं? यह पूछे जाने पर वे कहती हैं, ‘‘जी. मैं मल्टीटास्कर और वर्कहौलिक हूं. मैं प्रतिदिन 16 से 18 घंटे काम करती हूं और मुझे यह पसंद है. दूसरी बात मेरे पास एक टीम है, जो वास्तव में पुरानी और मजबूत है. इन में से कुछ 32 साल से हमारे साथ हैं, कुछ 20 साल से हैं. इन में से अधिकांश की शुरुआत हमारे साथ हुई. हमारे कैमरामैन राजा दादा मेरे पहले सीरियल से हमारे साथ काम कर रहे हैं. यानी कि 32 वर्षों से हमारे साथ हैं. निर्देशक शशांक बाली ने हमारे स्टार प्लस पर प्रसारित सीरियल ‘शादी नंबर वन’ में बतौर सहायक निर्देशक काम किया था. हम ने उन्हें सीरियल ‘एफआईआर’ में निर्देशक बना दिया. शशांक बाली पहले मशहूर हास्य निर्देशक राजन वागधरे के सहायक थे. समीर कुलकर्णी भी राजन वागधरे के सहायक थे, जिन्होंने ‘फैमिली नंबर वन’ निर्देशित किया था.

‘एफआईआर’ के बाद शशांक बाली तो संजय के छोटे भाई बन चुके हैं. शशांक की सहायक हर्षदा भी हमारे सीरियल निर्देशित करती है. रघुबीर शेखावत ने सब से पहले हमारे लिए ‘फैमिली नंबर वन’ लिखा, अब वे 5 वर्षों से ‘हप्पू की उलटन पलटन’ लिखते हैं. फिर मनोज संतोषी हमारे साथ जुड़े. मनोज संतोषी जैसा कौमेडी लेखक मैं ने टीवी इंडस्ट्री में नहीं देखा. संजय के मुकाबले मैं थोड़ी कड़क हूं. लेकिन मेरा कोई भी तकनीशियन मु?ो रात के एक बजे भी फोन कर सकता है और उस का फोन आते ही मैं तुरंत पहुंचती हूं क्योंकि वह मेरी ‘वर्किंग फैमिली’ है. मेरे आर्ट डायरैक्टर अरूप 30 साल से मेरे साथ हैं. अब तो वे काफी सीनियर आर्ट डायरैक्टर हैं. शशांक का सहायक रित्विक अब हमारा ‘हप्पू की उलटन पलटन’ निर्देशित कर रहा है.

आप ने सामाजिक सीरियलों के मुकाबले कौमेडी सीरियल ज्यादा बनाए. जब एकसाथ दोतीन कौमेडी सीरियल प्रसारित हो रहे होते हैं तो यह कितनी चुनौती होती है? इस सवाल पर उन्होंने बताया, ‘‘जब कई कौमेडी सीरियल एकसाथ प्रसारित होते हैं तो अलगअलग ट्रैक के बारे में सोचना एक चुनौती होती है और कहानी के हिसाब से कुछ समान नहीं होना चाहिए. अलगअलग ट्रैक के बारे में सोचना एक चुनौती बन जाता है.

‘‘कभीकभी आप के पास समान ट्रैक भी हो सकते हैं क्योंकि यदि आप स्वच्छता पर कुछ कर रहे हैं, आप ईर्ष्या पर कुछ कर रहे हैं तो ये समान ट्रैक हो सकते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि हरकोई एकजैसा ट्रैक बना सकता है, लेकिन जो भी इसे अच्छा बनाएगा, वह देखने लायक के मामले में इसे अच्छी तरह से बेचेगा. साथ ही, प्रत्येक कहानी अलग है और पात्रों का एक अलग सैट है. हम सर्वश्रेष्ठ के लिए प्रयास करते हैं और कुछ सुपर कौमेडी सीरियल बनाते हैं.’’

टीवी इंडस्ट्री में जिस तरह की औरतें दिखाई जा रही हैं उन से आप कितना सहमत हैं? इस मसले पर उन का कहना था, ‘‘फिलहाल तो टीवी में रीयल औरतें ही दिखाई जा रही हैं. आप टीवी में औरत को वकील के रूप में, औरत को ग्रूमिंग क्लासेस चलाने वाली के रूप में, कुछ सिर्फ घर संभालती हैं पर वे अन्याय नहीं सहन करेंगी. मसलन, आप ‘अनुपमा’ को लीजिए. अनुपमा के साथ बहुतकुछ होता रहता है, उसे कई समस्याओं से जू?ाना पड़ता है पर वह उन सभी से लड़ विजयी बन कर आती है.

‘‘उसे देख कर हर औरत रिलेट करती है, कहती है कि हां, ऐसा तो उस के साथ भी हुआ था. अनुपमा में वह क्लासेस शुरू करती है, फिर शेफ की प्रतियोगिता भी जीतती है. मेरे सीरियल में महिला चुनाव लड़ती है और जीतती है. जबकि औरतें घरेलू हैं पर उन के पति उन का हौसला बढ़ाते हैं. जिंदगी में समस्या आने पर एकसाथ मिलबैठ कर हल करते हैं. ‘भाभीजी घर पर हैं’ में अंगूरी की सास हमेशा अंगूरी का पक्ष लेती है. अंगूरी व उस की सास के बीच बहुत अच्छा रिश्ता है. मेरे निजी जीवन में मेरी सास मेरी बहुत अच्छी दोस्त है तो वही हमारे सीरियल में नजर आता है. मेरे एक सीरियल में ससुरबहू के बीच बेहतरीन रिश्ते हैं. अब तो हम सभी सीरियल के माध्यम से दकियानूसी बातों को हटाने की पहल में लगे हुए हैं. अब विज्ञान का जमाना है.

‘‘हमारा ‘भाभीजी घर पर हैं’ और राजन साही का ‘अनुपमा’ ऐसे सीरियल हैं जहां महिलाओं को सकारात्मक तरीके से महिमामंडित किया गया है. यहां तक कि अंगूरी भाभी और अनुपमा जैसी साधारण महिलाओं को भी उन के जीवन में पुरुष अपना खुद का कुछ शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. भाभीजी विभिन्न चीजें करने का प्रयास करती हैं चाहे वह नृत्य हो या अभिनय और उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया जाता है. ‘भाभीजी घर पर हैं’ और ‘अनुपमा’ ने मानक स्थापित किए हैं और कई लोगों को प्रेरित किया है. लोग अलगअलग चीजों के साथ प्रयोग कर रहे हैं और अपनी विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं.

‘‘निजी जीवन में महिलाएं हमारे सीरियलों के इन मजबूत किरदारों से प्रभावित होती हैं और उन्हें अपना रोल मौडल मानती हैं. जब वे टीवी के परदे पर वंचितों को सफल होते और अपने निर्णय स्वयं लेते हुए व विजेता के रूप में आगे आते हुए, अपनी आकांक्षाओं और जो वह चाहते हैं उसे हासिल करने के सपनों को पूरा करते हुए देखती हैं तो वे व दूसरी सभी महिलाएं प्रेरित होती हैं.’’

तो जिन सीरियलों में किचन पौलिटिक्स तथा औरत को औरत की दुश्मन दिखाया जाता है, उस से आप कितना सहमत हैं? इस सवाल पर वे कहती हैं, ‘‘यह सब भी तो हमारे समाज का हिस्सा है. हमारे देश की 70 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है. ग्रामीण औरत जब बेटी को जन्म देती है तो उस को कितने ताने ?ोलने पड़ते हैं. सास के अत्याचार, पति के अत्याचार आदि खबरें हम आज भी सुनते रहते हैं. ससुर अलग से फायदा उठाने का प्रयास करता है. मैं ने निजी जीवन में एक महिला को डोनेशन के तौर पर एफडी बना कर दिया तो उस ने कहा, ‘मैडम, आप इसे अपने पास ही रखिए, घर पर ले जाएंगे तो हमारे सासससुर इसे तुरंत बंद करा कर पैसा ले लेंगे.’

‘‘समाज में विधवाओं को इज्जत नहीं मिलती. मैं तो सवाल उठाती हूं कि एक देवी की मूर्ति मंदिर में रख कर पूजा करते हो तो फिर घर में दूसरी देवी को क्यों मारते हो? वैसे अब धीरेधीरे बदलाव आ रहा है. शहरों में और मौडर्न विचारों के लोगों में सासबहू के बीच दोस्ताना संबंध हैं पर बड़े स्तर पर बदलाव तभी आ सकता है, जब पुरुष की मानसिकता में बदलाव आए. पुरुष सत्तात्मक सोच बदले.’’

इन सामाजिक बुराइयों को बदलने के लिए टीवी किस तरह से अपनी भूमिका निभा सकता है? इस पर उन का कहना है, ‘‘हम अपने सीरियलों में महिला किरदारों को सिखाते रहते हैं कि किस तरह दूसरों को अपने पक्ष में करना चाहिए, किस तरह होनहार बनना चाहिए. सीरियल ‘दिया बाती और हम’ में तो नायक ने अपनी पत्नी को पढ़ कर पुलिस औफिसर बनने दिया.

‘‘पिछले 8-10 वर्षों में टीवी इंडस्ट्री में काफी बदलाव आया. वह महिलाओं को उठने और आगे बढ़ने के मौके दे रही है. अब सीरियल बताते हैं कि आप की पत्नी आप की अर्धांगिनी है, वह ऊपर उठेगी तो आप भी ऊपर उठेंगे, बच्चों का भी विकास होगा. हम महानगरों में देखते हैं कि अधिकांश औरतें सुबह 4 बजे उठ कर पानी भरती हैं, फिर टिफिन बनाती हैं, फिर लोकल ट्रेन में लटकलटक कर नौकरी पर जाती हैं, शाम को घर वापस आने पर पहले बच्चों को पढ़ाती हैं, फिर रात्रि का भोजन बनाती हैं. खाना बना, खिला कर फिर बरतन धो कर वे कब सोती हैं, कौन पूछता है पर वे मेहनत कर रही हैं और आगे बढ़ने की जुगत में लगी हुई हैं.

‘‘मुझे नहीं पता कि हिंदुस्तान में कितने मर्द हैं जोकि घर में बरतन धोते हैं. देखिए, लिज्जत पापड़ को एक औरत ने शुरू किया था, आज इस में कितनी औरतें काम कर रही हैं. मेरे पड़ोस में एक औरत है, जोकि सिर्फ काजू की बर्फी बना कर बेचने का काम करती है. एक औरत है, जोकि सिर्फ मोहन थाल बेचती है तो एक भी काम अच्छा करो तो पूरा संसार बदल जाता है.’’

तमाम लोगों का मानना है कि टीवी सीरियल की महिलाएं खलनायिका होती हैं? इस सवाल पर उन्होंने अपना मत यों जाहिर किया, ‘‘मैं टीवी की महिलाओं को खलनायिका नहीं मानती. टीवी पर खलनायक की भूमिका निभाने वाले बहुत सारे खूबसूरत पुरुष हैं. भले ही यह एक उचित नकारात्मक चरित्र न हो, फिर भी उन के पास भूरे रंग के बहुत सारे शेड्स हैं. एक समय था जब महिलाएं प्रतिपक्षी की भूमिका निभाती थीं, लेकिन अब बदलाव आ गया है. टीवी का कंटैंट काफी बदल गया है और लोग ऐसे वास्तविक व प्रासंगिक सीरियल बना रहे हैं. वैसे, अब पुरुषों को भी टीवी पर शक्तिशाली किरदार मिलने लगे हैं, जो पहले नहीं होता था. जैसा कि मैं ने कहा कि कंटैंट में प्रगति हुई है, उसी तरह चरित्ररेखाचित्र भी बदल गए हैं. टीवी पर सिर्फ महिला उन्मुख सीरियल नहीं रहे.’’

अक्तूबर 1992 में सैटेलाइट टीवी चैनल की शुरुआत होने पर सीरियलों की टीआरपी 22 से 32 तक जाती थी, अब यह 3 तक नहीं पहुंच पा रही है. ऐसा क्यों? इस सवाल पर वे बताती हैं, ‘‘अब दर्शकों के पास मनोरंजन की चौइस बढ़ गई है. पहले जीटीवी और सोनी टीवी के अलावा दूरदर्शन व फिल्में थीं. अब मनोरंजन चैनलों की भीड़ है. फिल्में हैं, टीवी हैं, ओटीटी प्लेटफौर्म हैं.

‘‘इतना ही नहीं, अब हर इंसान के हाथ में मोबाइल है, जिस पर वह इंस्टाग्राम रील्स से ले कर यूट्यूब पर ढेर सारा कंटैंट देख रहा है. ऐसे में दर्शकों का बंटना स्वाभाविक है. शुरू में सिर्फ जीटीवी था, फिर सोनी टीवी आया. कुछ समय बाद लोग स्टार प्लस पर केवल ‘सांस’ सीरियल देखने के लिए जाने लगे थे. उस के बाद सहारा, इमेजिन, कलर्स, दंगल सहित कई चैनल आए. इस के अलावा आप अपने पसंदीदा सीरियल को समय मिलने पर कभी भी ओटीटी प्लेटफौर्म पर जा कर देख सकते हैं.

‘‘आज की तारीख में मेरे सीरियल का जो नया एपिसोड रात में 8 या 9 बजे आता है, वह पहले उसी दिन सुबह 6 या 7 बजे ओटीटी प्लेटफौर्म अर्थात वैब पर आ चुका होता है. मतलब, पहले एपिसोड ओटीटी प्लेटफौर्म पर आता है, दिनभर में किसी भी समय लोग उसे देख सकते हैं. उस के बाद रात में चैनल पर आता है. अब मैं अपना पसंदीदा सीरियल सुबह उठ कर ओटीटी प्लेटफौर्म पर देख लेती हूं. ऐसे में चैनल पर सीरियल को व्यूवरशिप कैसे मिलेगी? पहले ऐसा नहीं था.

‘‘पहले चैनल पर हर सीरियल का एक ‘रिपीट रन’ था. पहले पूरा परिवार एक समय में एक ही सीरियल देख पाता था. अब तो एक ही समय में परिवार का हर सदस्य अलगअलग सीरियल या इंस्टाग्राम रील्स वगैरह देख सकता है. अब तो एक ही घर के हर कमरे में टीवी सैट है. हर इंसान के हाथ में मोबाइल फोन है. लेकिन अब तनाव बढ़ गया है. अब हम एकसाथ कई चीजों से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.’’

लेकिन चैनल पर सीरियल का एपिसोड टैलीकास्ट होने से पहले ही ओटीटी प्लेटफौर्म पर उसे स्ट्रीम कर देने से नुकसान तो टीवी इंडस्ट्री को ही हो रहा है? इस पर उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, आप सच कह रहे हैं. टीआरपी गई तो चैनल को मिलने वाले एड कम हुए या एड पर मिलने वाली राशि कम हुई. वैसे भी, कोविड के दौरान चैनलों को मिलने वाले एड काफी कम हुए. एड पर मिलने वाली राशि कम हुई. इस से चैनल को काफी नुकसान हुआ.’’        द्य

 

 

 

 

 

’10 हजार से एक घंटे में बनाएं 1 लाख रुपए’ ऐसी बातों से बेफकूफ बनाते finance influencers

सोशल मीडिया पर दर्जनों फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स भरे पड़े हैं. सब एक से बढ़ कर एक अपने सब्सक्राइबर्स को अमीर बनने के तरीके बता रहे हैं, हैरानी यह कि अपने तरीकों से ये खुद अमीर नहीं बन पा रहे हैं, फिर यह फालतू गप हांकने का क्या मतलब?

’10 हजार से एक घंटे में बनाएं 1 लाख रुपए’, ‘एक टिप्स और अमीर होना कंफर्म’, ‘अमीर बनने के ये हैं तरीके’, ‘शेयर बाजार में इन्वैस्ट करना एक कला है, आप भी सीखें’. ऐसे और ऐसी कई तरह की हैडलाइन वाले कंटैंट आप को सोशल मीडिया पर पढ़ने व देखने को मिल जाते हैं. दरअसल, इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब पर रील्स और वीडियोज अब सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि फाइनैंशियल एडवाइस लेने का भी जरिया बन गए हैं. शेयर बाजार में पैसा लगाना है लेकिन कौन सा स्टौक खरीदें, इस की समझ न हो, तो इस के लिए ज्यादातर लोग यूट्यूब की मदद लेते हैं जहां मुफ्त में लोगों को शेयर मार्केट का ज्ञान मिल जाता है.

लेकिन, यह मुफ्त का ज्ञान लोगों के लिए घातक भी साबित हो सकता है क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर स्टौक टिप्स देने वाले लोगों, जिन्हें फाइनैंशियल इंफ्लुएंसर्स कहा जाता है, के पास कोई समझ या अनुभव है, इस की गारंटी नहीं होती है. कई इन्फ्लुएंसर्स अकसर लोगों को तगड़े मुनाफे का लालच दे कर शेयर मार्केट में इन्वैस्ट करने की सलाह देते हैं. बहुत से लोग उन की बातों में आ कर इन्वैस्ट कर देते हैं और बाद में उन्हें भारी नुकसान होता है. इसलिए अगर इस तरह की रील्स देख रहें है तो केवल जानकारी बढ़ाने के लिए देखें. इन की हर बात को सही मान कर उस पर बिना सोचेसमझे विश्वास करना सही नहीं है. इस के लिए रिसर्च करें. कुछ अनुभवी लोगों से बात करें, तब कोई फैसला लें.

फिनफलुएंसर कौन होते हैं

फिनफलुएंसर ऐसे लोगों को कहा जाता है जो सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर फाइनैंस से जुड़ी कई डिटेल्स देते हों. ये लोग सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर जा कर लोगों को शेयरों में इन्वैस्टमैंट, बजट बनाने, प्रौपर्टी खरीदने, क्रिप्टोकरेंसी और फाइनैंशियल ट्रैंड आदि के बारे में सलाह देते व अपना निजी अनुभव शेयर करते हैं. इस के लिए ये लोग वीडियो बनाते हैं, अब फिर वह चाहे 90 सैकंड की रील हो, यूट्यूब पर लौंग वीडियो हो या फिर 60 सैकंड का शौर्ट वीडियो. इन सभी प्लेटफौर्म से उन की जबरदस्त कमाई होती है.

इंस्टाग्राम पर कुछ फेमस फिनफलुएंसर्स हैं. इन के फौलोअर्स की संख्या लाखों में है, जैसे अक्षत श्रीवास्तव के 1.43 लाख फौलोअर्स हैं. वहीं, अंकुर वारिको के 22 लाख, बूमिंग बुल्स के 2.72 लाख, फिनोवेशन जेड के 1.68 लाख, लेबर ला एडवाइजर के 5.12 लाख, प्रांजल कामरा के 7.71 लाख, रचना रानाडे के 9.37 लाख और शरण हेगड़े के 22 लाख फौलोअर्स हैं.

इस के अलावा इन सभी के यूट्यूब, लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर पर भी लाखों फौलोअर्स व सब्सक्राइबर्स हैं. इन प्लेटफौर्म से भी इन सब की कमाई होती है. इस में एक बड़ा हिस्सा गूगल एड और फेसबुक एड से होने वाली कमाई का है. इन सभी को पेड कंटैंट के लिए जेरोधा, फिनशौट, स्मालकेस, क्रेड, मोबिक्विक, अपस्टौक्स, वजीर एक्स, कोटक लाइफ इंश्योरैंस, आईएनडी मनी और डिट्टो जैसी कंपनियां पेमेंट करती हैं.

सोशल मीडिया यानी यूट्यूब, फेसबुक पर ऐसे इंफ्लुएंसर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिन का स्टौक मार्केट से कोई मतलब नहीं है, लेकिन ये स्टौक पर सलाह देते हैं. इन की सलाह मान कर और गलत डेटा शेयर कर लोग नुकसान उठा रहे हैं.

नैशनल सैंटर फौर फाइनैंशियल एजुकेशन के 2019 के सर्वेक्षण के अनुसार, इन 10-20 मिनट लंबे वीडियो की लोकप्रियता भारत की 27 प्रतिशत की कम वित्तीय साक्षरता दर से स्पष्ट होती है. इसलिए स्वाभाविक रूप से, पहली बार इन्वैस्टमैंट करने वाले, विशेष रूप से दूरदराज के कसबों और शहरों से, लोग इन फिनफ्लुएंसर की ओर आकर्षित होते हैं. उन के सब से ज़्यादा देखे जाने वाले वीडियोज में से कुछ हैं- ‘अपना पहला शेयर कैसे खरीदें’, ‘सोने से नियमित आय प्राप्त करें’, ‘20 साल में 2.5 करोड़ कमाएं. कैसे?’

गपोड़बाजी से कैसे बेफकूफ बनाते हैं ये फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स

सागर सिन्हा अपने पोडकास्ट पर बता रहे हैं, शेयर मार्केट में पहला शेयर कैसे खरीदें, घर बैठे 1 लाख रुपया महीना कैसे कमाएं. अमीर बनने का 100 परसैंट गारंटेड तरीका.
संजय कथूरिया पोडकास्ट पर बता रहे हैं कि बेहद आसान है अमीर बनना. बस, इन तरीकों को अपनाएं. 20 हजार रुपए महीने की सैलेरी से अमीर कैसे बनें. ध्यान दें तो ये महाशय अपने बताए तरीके अपना कर अभी तक अमीर नहीं बन पाए हैं. बस, गपोड़बाजी करने में लगे हैं.

दीपक बजाज बता रहे हैं, 2024 का बेस्ट इन्वैस्टमैंट प्लान. डाक्टर शिखा शर्मा जल्दी अमीर होने के तरीके बता रही हैं जो कोई नहीं बताता, यह उन के वीडियो का टाइटल है. क्या यह बेवकूफ बनने का तरीका नहीं है. क्या आसान है- शेयर मार्केट में पैसा लगाया और अमीर हो गए.

शेयर बाजार में अफवाहें और स्टौक टिप्स एक बड़ा जाल साबित हो सकते हैं. अकसर इन्वैस्टर्स को ऐसे संदेश और सुझाव मिलते हैं जिन में किसी विशेष कंपनी के शेयर खरीदने की सलाह दी जाती है. इन संदेशों में कहा जाता है कि इस कंपनी के शेयर की कीमत तेजी से बढ़ेगी, जिस से इन्वैस्टर मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन ये संदेश ज्यादातर धोखेबाजों द्वारा भेजे जाते हैं, जिन का उद्देश्य सीधेसाधे इन्वैस्टर्स को गुमराह करना होता है.

एक उदाहरण के तौर पर, 28 सितंबर, 2018 को इंफीबीम एवेन्यूज के स्टौक्स में भारी गिरावट आई, जो लगभग 71 फीसदी गिर कर रुपए 197 से रुपए 50 पर आ गया. इस का कारण एक व्हाट्सऐप संदेश था, जिस ने इन्वैस्टर्स के बीच घबराहट फैला दी. इस घटना ने दिखाया कि अफवाहों और गलत सूचनाओं के कारण इन्वैस्टर्स को कितना बड़ा नुकसान हो सकता है. इस प्रकार के संदेश इन्वैस्टर्स को भ्रमित कर उन्हें ऐसे स्टौक्स में इन्वैस्टमैंट करने के लिए प्रेरित करते हैं जिन का कोई ठोस आधार नहीं होता.

कई लोग उत्साह और जल्दी से अमीर बनने की भावना में आ कर इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं. हालांकि, इस में मुनाफा कमाने की संभावना कम होती है और जोखिम बहुत अधिक होता है. एक गलत ट्रेड पूरे इन्वैस्टमैंट को नष्ट कर सकता है, जिस से इन्वैस्टर्स भारी नुकसान झेलते हैं. कई बार लोग नुकसान की भरपाई करने के चक्कर में और भी ज्यादा नुकसान कर बैठते हैं. इस प्रकार की भावना से प्रेरित ट्रेडिंग अकसर भारी हानि का कारण बनती है.

फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स इस तरह चलाते हैं अपनी दुकान

फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स अक्षत श्रीवास्तव ने अक्टूबर 2024 में एक वीडियो बनाया. उस का टाइटल उन्होंने दिया, ‘एक करोड़ कमाने के प्रैक्टिकल तरीके’.

इस में उन्होंने कहा, “मैं आप को बताऊंगा कि मैं ने अपनी वैल्थ कैसे जनरेट की. मेरा क्या ऐसा थौट प्रोसैस था जिस से मैं ने वैल्थ बनाई. मैं ने जो एक्सीलैंट चीजें चुनीं, आप भी वही चुनें. पैसा इन्वैस्ट करें तभी पैसे से पैसा बनेगा.”

इस तरह की बहुत सी बातें अपने वीडियो में वह बताता है. ये ठीक उसी तरह के दावे हैं जैसे नैटवर्क मार्केटिंग वाले करते हैं. अगर उसे इतना ही मुनाफा हो रहा होता तो क्यों वीडियो बना रहा होता, चुपचाप मुनाफा बनाने के ही काम में न लगा होता. क्या राकेश झुनझुनवाला को ऐसी वीडियो बनाते देखा है?
लोग इन इन्फ्लुएंसर्स को सुनते हैं और इन के कहे अनुसार इन्वैस्ट करते हैं जिस से कई बार उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ता है क्योंकि अपना दिमाग इस्तेमाल करने के बजाय वे किसी और के दिमाग से चल रहे होते हैं, जोकि गलत है.

फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स सोनू शर्मा

येह अपनी एक वीडियो के शीर्षक में लिखते हैं- ‘अमीर बनने के 3 नियम’. अपनी इस वीडियो की शुरुआत में वे कहते हैं, “आज हर कोई यह बता रहा है कि अमीर कैसे बनें, जवान कैसे दिखें. लेकिन इस का कोई फार्मूला नहीं है. लोग आप को बेफकूफ बना रहे हैं.” इस के बाद वे कहते हैं, “आज जो मैं आप को बताने जा रहा हूं उसे एक साल तक लगातार फौलो करो तो पैसों की कभी कोई कमी नहीं होगी.”

यह फार्मूला सोनू ने अपने ऊपर कैसे अप्लाई किया और क्या रिजल्ट मिला, यह वे नहीं बताते. अगर अमीर बनने का फार्मूला उन के पास है तो सरकार को क्यों नहीं दे देता? दूसरी बात वे लोग ही आप से क्या अलग बता रहे थे जिन्हें आप बेवकूफ बनाना कह रहे थे. जरा, इस पर भी गौर फरमाइए कि आप क्या कर रहे हैं.
आगे ये महाशय कहते हैं, ‘एक फील्ड चुनें और उस में 5 साल लगाएं. खुद को घिसते रहें, तभी सफल होंगें. लेकिन साहब अगर फील्ड गलत चुन ली या उस में कोई स्कोप या चांस नहीं है तो पूरे 5 साल उस में बरबाद करना कहां की अक्लमंदी है. लेकिन हमारी युवा पौध इन लोगों पर इतना भरोसा कर बैठती है कि अपना अच्छाबुरा किस में है, यह भूल कर, बस, इन फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स के पीछे लग जाती है. जब यह बात समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स अंकुर वारिको

जनवरी 2024 में अंकुर वारिको ने ‘पैसा होगा 16 गुना वो भी बिना किसी रिस्क के’ के नाम से एक वीडियो बनाई.

सब से पहले से इस के टाइटल पर ही बात कर लें. क्या ऐसा पौसिबल है और अगर ऐसा पौसिबल होता तो ये अंकुर यहां बैठ कर ज्ञान पेलने के बजाय खुद इस से पैसा कमा कर एक लग्जरी लाइफ जी रहा होता. यहां युवाओं को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा न कर रहा होता.

इस वीडियो में वह सवालों के जवाब दे रहा है जैसे कि एक युवा ने पूछा कि, ‘मेरे पापा 50 साल के हैं. इस उम्र में वे कहां और कैसे इन्वैस्ट कर सकते हैं.’ इस पर अंकुर बताता है कि अधिकतर पेरैंट्स का पैसा पीपीएफ में होता है लेकिन अगर आप पीपीएफ के बजाय ईपीएफ में पैसा लगाएं तो 8.1 परसैंट आप को फिक्स रिटर्न मिलता है. जोकि फिक्स डिपौजिट से काफी आगे है.

पीपीएफ आप को 6 परसैंट ही देगा और यहां आप को इस से कहीं ज्यादा मिलेगा. यह ठीक है पर इस में 16 गुना फायदा कहां है? इस तरह की कई सलाह वे लोगों को देते हैं जिन में से कुछ अधकचरी होती हैं और कुछ गलत भी होती हैं, और कुछ सुनने वाला समझ ही नहीं पाता. लेकिन इन लोगों को सुन कर अगर आप सिर्फ जानकारी ले रहे हैं तो कोई बात नहीं पर अगर इन पर डिपैंड हो कर इन की कही हर बात पर आंखें मूंद कर विश्वास कर रहे हैं तो यह गलत होगा.

इन के और वीडियोज के टाइटल देखिए, जैसे-
‘इन 3 जगह इन्वैस्टमैंट से आप बनेंगे करोड़पति’, ‘आई अर्न 9 लाख रुपए इन वन औवर’. हो सकता है कमा लिया हो लेकिन इस से अपने फौलोअर्स और व्यूअर्स बटोरना कौन सी नैतिकता है. क्या यह युवाओं को भ्रमित करना नहीं है ताकि बताने वाले की हर बात वह माने?

इन में से ज्यादातर सर्टिफाइड एडवाइजर नहीं होते हैं. ऐसे में इन की राय पर इन्वैस्टमैंट करना घातक साबित हो सकता है. इस के अलावा, कई फेमस फाइनैंशियल इंफ्लुएंसर किसी कंपनी से लाभ ले कर उस के शेयरों पर खरीदी की राय देते हैं, यह भी इन्वैस्टर्स के हित में नहीं है.

सजल गोयल शौर्ट रील्स

सजल गोयल अपनी एक शौर्ट रील में कुछ ही मिनट में ऐसा बता देते हैं कि एक बार को तो लगता है वाकई कुछ मिस कर दिया. ये बता रहे हैं कि “अगर कुछ समय पहले इस शेयर में आप ने 3 लाख रुपए डाले होते तो आज आप के पास 2 करोड़ रुपए होते. लेकिन कोई बात नहीं. आप ने इस शेयर को मिस कर दिया. हम आप का नुकसान नहीं होने देंगे, इसलिए अब आप को एक नया शेयर बता देते हैं.”

अब इन से हमारा यह सवाल है कि चलो हम ने तो मिस कर दिया लेकिन आप ने अपना तो उद्धार किया ही होगा इस से. आप अरबपति न सही, करोड़पति तो बन ही गए होंगे. दूसरों का इतना फायदा करा रहे हैं तो अपना फायदा तो किया ही होगा.

एक स्टौक टिप ने अभिनव के लाखों रुपए डुबो दिए

सोशल मीडिया पर मिली इसी तरह की एक स्टौक टिप ने अभिनव के लाखों रुपए डुबो दिए हैं. अभिनव शेयर बाजार में ऊंचा रिटर्न कमाने के चक्कर में बरबाद हो गए. दरअसल, अभिनव शेयर बाजार में तेजी से मोटा मुनाफा कामना चाहते थे. वे, बस, इस इंतजार में थे कि स्टौक्स की कहीं से कोई ऐसी टिप मिले कि वे पैसा लगाएं और पूंजी धड़ाधड़ दोगुनीतिगुनी हो जाए. उन के दिमाग में अभी खलबली चल ही रही थी कि किसी ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप पर उन्हें जोड़ लिया और इस ग्रुप में एक स्टौक में पैसा लगाने की राय दी गई. मोटे मुनाफे का पूरा गणित बता दिया गया. बस, अभिनव ने आगापीछा सोचे बगैर झोंक दी मोटी पूंजी और बैठ गए कि अब होगा पैसा डबल. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. एकदो दिन चढ़ने के बाद स्टौक बुरी तरह गिरने लगा.

अभिनव की लगाई रकम का 80 फीसदी हिस्सा खत्म हो चुका है, तो इस से यह सबक मिलता है कि बिना जांचेपरखे सोशल मीडिया के जरिए मिलने वाली टिप्स पर पैसा न लगाएं. लेकिन तमाम लोग इन हथकड़ों का शिकार हो जाते हैं. इन में से ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं जिन्हें बाजार की कम जानकारी होती है.

शेयर बाजार में इन्वैस्टमैंट करने से पहले सही जानकारी, योजना और अनुशासन का होना बहुत जरूरी है. 90 फीसदी लोगों का पैसा डूबने की धारणा इस बात की ओर संकेत करती है कि लोग अकसर बिना तैयारी के इन्वैस्ट करते हैं.

सच तो यह है कि ये इन्फ्लुएंसर्स शेयर मार्केट में पैसे बनाने के तरीके बताते हैं. ये शौर्ट रील्स और वीडियोज बनाते हैं. कभी टाटा, अंबानी के बारे में बता देंगे, कभी किसी बड़े उद्योगपति के बारे में बता देंगे कि इन लोगों को देखो, ये कैसे अमीर बने. फिर इस तरह की मोटिवेशनल स्टोरी सुनाएंगे कि लोगों को लगेगा कि यह चीज वे भी कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो ये इन्फ्लुएंसर्स इसी किस्म की गपोड़बाजी करते हैं. यूथ को बेवफकूफ बनाते हैं. जो चीज नौर्मल है उसे ये ओवरहाइप कर के बताते हैं और अभिनव जैसे लोग इन की बातों में आ जाते हैं. शेयर मार्केट में लौस और प्रौफिट दोनों होता है लेकिन इन्फ्लुएंसर्स सिर्फ फायदे की बात करते हैं.

अगर आप शेयर मार्केट में कहीं पैसा डालते हैं तो वहां लौस और प्रौफिट दोनों होता है. पैसा कमाने का कोई शौर्टकट तरीका नहीं होता. सब स्किल और मेहनत पर डिपैंड करता है. आप को फायदा हो सकता है और नुकसान भी हो सकता है. इन्फ्लुएंसर्स यूथ को अपनी बातों के जाल में फंसाते हैं और मोटीवेट करते हैं ताकि लोग इन के बताए हुए शेयर खरीदें.

ऐसी बातें युवाओं को निकम्मा और आलसी बनाती हैं

अच्छा है कि युवाओं को फाइनैंस के बारे में नौलेज होनी चाहिए लेकिन अमीर होने के शौर्टकट तरीके बता कर युवाओं को भ्रमित करना कहां तक सही है. इस तरह की बातें युवाओं को आलसी व निकम्मा बनाती हैं. युवाओं से यह नहीं बोलना चाहिए की पैसे से पैसे बनता है. बल्कि पैसा मेहनत और काम करने से बनता है. पैसा कमाना पड़ता है. ऐसा नहीं होता कि आप ने किसी कमरे में 10 रुपए रख दिए और कल वो 20 रुपए बन जाएंगे.

आप इन लोगों को फौलो कर भी रहे हो तो पहले जांच लो कि जिसे आप फौलो कर रहे हो वो सही है भी या नहीं. उस के पास कोई नौलेज है भी या नहीं. किसी को भी इन्वैस्टर्स को शेयर से जुड़ी किसी भी तरह की कोई सलाह देने के लिए बाजार नियामक सेबी के पास पंजीकृत होना जरूरी है, जबकि वित्तीय सलाह देने वाले इन फिनफ्लुएंसर्स में से ज्यादातर गैरपंजीकृत हैं.

दरअसल, सेबी एक तरह की संस्था है जो इस तरह की चीजों को कंट्रोल करने के लिए काम करती है. हालांकि इस समय सेबी की चेयरपर्सन माधवी बुच खुद विवादों में घिरी हुई हैं लेकिन इस के बावजूद सेबी इस तरह की चीजों को कंट्रोल करती है.

जरूरी यह है कि आप अपनी भी रिसर्च करिए. हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से कहा गया था कि लोगों को फिनफ्लुएंसर्स की किसी भी सलाह को मानने से पहले उस को अच्छे से जांचपरख लेना चाहिए. एक जगह देखा और खरीदने बैठ गए, यह गलत है. आप उस तरह की पत्रिकाओं को पढ़िए जहां फाइनैंस के बारे में जानकारी दी जाती है क्योंकि वे बारीक जानकारियां आप को देती हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें