Download App

Adani Controversy : ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और नरेंद्र मोदी

मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है। इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवङियां बहुतों में बंटती हैं। किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी और नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है…

अब गौतम अडानी क्या करेंगे, यह सवाल हर किसी के जेहन में है लेकिन साथ में यह आस और एहसास भी है कि उन का कुछ नहीं बिगड़ने वाला क्योंकि उन और उन जैसे धन कुबेरों के साथ अदृश्य भगवान और उस की कृपा तो हमेशा रहती ही है और यहां धरती पर तो न केवल नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप बल्कि एक हद तक अमेरिकी कानून भी उन के साथ है जो ऐसे मामलों में सेटलमैंट, समझौते या निबटान की व्यवस्था करता है. क्या है यह अमेरिकी कानून और कैसे अडानी का मददगार साबित हो सकता है? उस से पहले बहुत थोड़े से में यह समझ लें कि दरअसल में हंगामा क्यों बरपा है.

बीते 20 नवंबर, 2024 को अमेरिका से एक सनसनाती खबर आई कि भारत के अडानी ग्रुप ने भारत सरकार के कई अधिकारियों को कोई ₹25 करोड़ डौलर की घूस देने की योजना को अंजाम दिया। यहां एक मामूली सा सवाल यह उठ खड़ा होता है कि जब कंपनी भी भारत की और रिश्वतखोर भी देसी तो अमेरिका का इस में क्या रोल? इस सवाल का जवाव यह है कि दरअसल में इस रिश्वत का पैसा अमेरिकी लोगों यानी निवेशकों से धोखाधडी से इकट्ठा किया गया था जिस के लिए प्रतिभूतियां और वायर धोखाधङी करने की साजिश रची गई। इस बारे में पूर्वी न्यूयार्क जिले में स्थित अमेरिकी अटार्नी कार्यालय ने एक प्रैस नोट जारी करते आरोप लगाया था कि इस अनूठे घपले में भारतीय सरकारी अधिकारियों को 250 मिलियन डौलर की रिश्वत देने और अरबों डौलर जुटाने के लिए निवेशकों और बैंकों से झूठ बोलने और न्याय में बाधा डालने की योजना बनाई गई जिस के चलते सौर टैंडर अडानी ग्रीन ऐनर्जी और एक और कंपनी एज्योर को दिया गया.

अधिकारियों से शिकायत

अमेरिका की एक कंपनी ट्रिनी ऐनर्जी ने अमेरिकी अधिकारियों से शिकायत की थी कि अडानी ग्रीन के अधिकारियों ने कथित तौर पर ओडिशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और जम्मू कश्मीर सहित दूसरे कई राज्यों के सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दी ताकि उन की बिजली वितरण कंपनियों पर बाजार दर से ऊपर सौर उर्जा खरीदने के लिए राजी करने का दबाब बनाया जा सके। यह रिश्वत भारतीय मुद्रा में लगभग ₹2,200 करोड़ होती है. जिस सौर उर्जा के अनुबंध के लिए यह घूस दी गई उस से 20 सालों में तकरीबन ₹16,895 करोड़ का मुनाफा होना संभावित था.

चूंकि वहैसियत निवेशक यह मामला अमेरिकी लोगों के हितों से जुड़ा हुआ था इसलिए अमेरिकी कानूनों के तहत वहीं की अदालतों के न्याय क्षेत्र में आता है. इन कानूनों के मुताबिक अगर अमेरिकी नागरिक और अमेरिकी कंपनियां दुनिया में कहीं भी निवेश कर रही हैं और इस में उन के आर्थिक हितों का नुकसान होता है या कोई भी गड़बड़झाला पाया जाता है तो मुकदमा अमेरिकी अदालतों में ही चलेगा. यह कानून है एफसीपीए जिस का पूरा नाम है विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम जो 1977 में बना था. इस कानून का एक खास मकसद विदेशी अधिकारियों की घूसखोरी को रोकना भी है। हालांकि यह अमेरिकी कंपनियों पर भी लागू होता है। इस ऐक्ट के चक्रव्यूह में कई विदेशी कंपनियां फंस चुकी हैं जिन में से एक प्रमुख और लोकप्रिय हैं जरमनी की सीमेंस जिस का कारोबार दुनियाभर में फैला हुआ है.

गिरफ्तारी वारंट

इसलिए अमेरिका के न्यूयार्क फैडरल कोर्ट ने किसी किस्म का लिहाज न करते हुए गौतम अडानी और उन के 8 और सहयोगियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. इन नामों में उन के भतीजे सागर अडानी का नाम भी शुमार है। यह मामला 24 अक्तूबर, 2024 को दर्ज हुआ था।

54 पृष्ठों के इस अभियोजन में 139 बिंदु हैं. इन की प्रस्तावना से ही साफ हो जाता है कि मामला यों ही हंसीमजाक में टलने वाला नहीं है और 3-4 साल तो आराम से खिंच जाएगा तब तक डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ले चुके होंगे और अमेरिकी जज उन की मंशा के खिलाफ जाने की जुर्रत करेंगे, ऐसा सोचने की भी कोई वजह नहीं.

अमेरिकी अभियोजकों की मानें तो अडानी की कंपनी को पिछले दिनों केंद्र सरकार की कंपनी सोलर ऐनर्जी कौरपोरेशन औफ इंडिया यानी सेकी से 12 हजार मेगावाट सौर उर्जा देने का अनुबंध मिला है. लेकिन दिक्कत यह थी कि सेकी को भारत में खरीददार नहीं मिल रहे थे. ऐसे में उक्त रिश्वत की भारीभरकम राशि भारत के विभिन्न राज्यों के नेताओं और अफसरों को दी गई ताकि वे महंगे दामों में यह सौर उर्जा खरीद लें. घूस की मेहरबानी से ऐसा हुआ भी और आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ बिजली खरीदने को तैयार भी हो गए और अनुबंध भी कर लिया.

अडानी को नुकसान

इस सिलसिले में गौतम अडानी घोषित तौर पर जिन खास नेताओं से मिले उन में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी का नाम प्रमुख है. फिर जो घालमेल शुरू हुआ वह महाभारत के चक्रव्यूह सरीखा है.

इस चक्रव्यूह में आखिर में जनता ही फंसी और आगे भी फंसती अगर इस का खुलासा न हुआ होता. खुलासे से तात्कालिक रूप से अडानी को नुकसान हुआ और उन की कंपनियों के शेयर के भाव 23 फीसदी तक गिरे और केन्या ने अडानी समूह के साथ हुआ ₹73 करोड़ का करार तोड़ लिया. इस की घोषणा बाकायदा केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुतो ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कर एक मिसाल कायम कर दी कि हम ऐसे घूसखोर बेईमानों से कोई डील नहीं करेंगे. लेकिन अडानी के देश में किसी के कान पर जूं भी नही रेंगी उलटे भक्त लोग उन के बचाव में तर्क ढूंढ़ते नजर आए.

ऐसे और कई नुकसान अडानी को हुए लेकिन इस से उन की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना क्योंकि ऐसा हिंडनबर्ग खुलासे के वक्त भी हुआ था. हलका सा लड़खड़ाने के बाद अडानी ग्रुप सरपट दौड़ने लगा था. समुद्र से कुछ लोटे पानी निकल जाने से उस की जलराशि पर कोई फर्क नहीं पड़ता और यह अभी भी हो रहा है. अडानी नाम के आर्थिक समुद्र की हिफाजत के लिए भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितने गंभीर और प्रतिबद्ध हैं यह 2014 से हरकोई देख रहा है.

अब गौतम अडानी आगे की सोच रहे हैं. नामी वकीलों और कानूनविदों की फौज चक्रव्यूह भेदने के रास्ते खोजने में दिनरात जुटी है. रास्ता मिलता दिख भी रहा है जिस के लिए सटीक नाम बजाय समझौते या सेटलमैंट का निबटान है.

अफसोस की बात तो यह है…

अमेरिका के विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनयम में रिश्वत मामलों के निबटान की व्यवस्था है जबकि भारत में ऐसा नहीं है. बेईमानी के या गलत कामों की स्वीकृति के नफानुकसान अपनी जगह हैं. लेकिन अफसोस की बात यह है कि अभी तक किसी ने खासतौर से विपक्ष ने सरकार पर हमलावर रवैया और जांच की जोरदार मांग नहीं उठाई है कि सरकार कम से कम उन लोगों की धरपकङ तो करे जिन्होंने अडानी से घूस ली.

राहुल गांधी उम्मीद के मुताबिक हल्ला मचाने और नरेंद्र मोदी को घेरने में कामयाब जरूर रहे लेकिन आंशिक तौर पर, क्योंकि न तो उन के साथ मुख्यधारा वाले ‘जागरूक’ सवर्ण थे न ही उन की अगुवाई करने वाला मीडिया था जिस के लिए बागेश्वर बाबा की हिंदू राष्ट्र की मांग करती भगवायात्रा टीआरपी बढ़ाने वाली खबर थी.

महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी नतीजों का पूर्वानुमान उस के लिए मुनाफे वाला था जिस में कुछ छुटभैये स्वयंभू विशेषज्ञों के विश्लेषण परोसे जा रहे थे. सटोरियों और ज्योतिषियों की राय भी वैसे ही व्यक्त की जा रही थी जैसे सडक पर बैठे तोता चाप ज्योतिषी ग्राहक के कार्ड निकलवाया करते हैं
समझौते या निबटान की राह भी अडानी के लिए बहुत ज्यादा आसान नहीं है . गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें खुद अमेरिकी कानून के तहत कोर्ट में पेश होना पड़ेगा या वकीलों के मार्फत अपनी बात कहना पड़ेगी जिसे भारत में उम्मीद और रिवाज के मुताबिक वह कह ही रहे हैं कि आरोप गलत हैं लेकिन कोर्ट में इन्हें साबित कर पाना टेढ़ी खीर है. हालफिलहाल तो उन्हें अमेरिकी अदालत के सामने जमानत की अर्जी लगाते और फैडरल कोर्ट द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट रद्द करने की याचना करनी पड़ेगी.

ट्रंप की दया पर निर्भर

अमेरिका में राष्ट्रपति को फैडरल कोर्ट द्वारा जारी वारंट रद्द करने का अधिकार हासिल है लेकिन बात निकली है तो मुमकिन है कि सुप्रीम कोर्ट तक भी जाए. अगले साल 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप शपथ लेने के बाद ऐसा कर भी सकते हैं लेकिन इस की क्या कीमत वे नरेंद्र मोदी और भारत से वसूलेंगे यह कह पाना मुश्किल है. ट्रंप जानते हैं कि यह अब मोदी की साख का सवाल है इसलिए अपने कारोबारी दिमाग का भरपूर इस्तेमाल करेंगे और कारोबार में दोस्ती के लिए उतना स्पेस नहीं रहता जितना कि इस मामले में चाहिए।

अब बात उस सुराख यानी प्रावधान की जिस के तहत गलत की स्वीकृति को एक गिल्ट के साथ ही सही, मगर भारी कीमत वसूल कर माफ कर दिया जाता है.

इस दिलचस्प किस्से की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी जब कई अमेरिकी डाक्टरों ने यह महसूस किया कि अधिकतर देशवासी बदनदर्द से पीड़ित हैं. लिहाजा उन के लिए कोई कारगर दवा खोजी जानी चाहिए. इस के बाद तो अमेरिकी दवा कंपनियों में ऐसी दवा खोजने की होड़ मच गई. इस होड़ में बाजी मारी पडर्यू दवा कंपनी ने, जिस का कर्ताधर्ता सैकलर परिवार था। डाक्टरों के इस कुनबे के मुखिया रिचर्ड सैकलर थे. उन्होंने औक्सिकोटिन नाम की दवा खोज निकाली। यह दवा वाकई दर्द पर असरकारी थी लिहाजा चल निकली और इतनी बिक्री की कि सैकलर परिवार खरबों में खेलने लगा.

जान की कीमत

औक्सिकोटिन की मार्केटिंग ताबडतोड़ तरीके से की गई. नतीजतन 2012 में ही कोई 25 करोड़ अमेरिकियों ने डाक्टरों की अनुशंसा पर इसे लिया। उन्हें दर्द से मुक्ति तो मिली लेकिन जल्द ही यह हकीकत भी सामने आने लगी कि यह दवा दरअसल में एक तरह का नशा है जिस के लोग इतने आदी हो चले हैं कि यह न मिले तो वे छटपटाने लगते हैं.

हल्ला मचा तो अमेरिकी सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन तब तक लाखों लोग इस के न मिलने पर या इस का ओवरडोज लेने से मर चुके थे और जो बच गए वे अफीम, हेरोइन और स्मैक जैसे नशे वाले पदार्थो के अलावा इन से भी ज्यादा घातक फैटेनाइल नाम की ड्रग का इस्तेमाल करने लगे थे। लाखों की तादाद में लोग इन की गिरफ्त में आ चुके थे. 2015 में लगभग 52 हजार लोग इस के ओवरडोज से मारे गए थे जिन्हें इस के नशे की लत लग चुकी थी जबकि 2022 में 1 लाख से भी ज्यादा लोग मारे गये थे।

महामारी की तरह फैले इस नशे को अमेरिका में ओपिआयड संकट नाम दे दिया गया था. दवा पर रोक लगाई गई लेकिन लोग इस के नशे के इतने आदी हो गए थे कि इसे चोरीछिपे खाने लगे थे। साल 2007 में पडर्यू दवा कंपनी पर धोखाधडी का मुकदमा दर्ज हुआ था जो 12 साल तक चला। देखते ही देखते तकरीबन 2,300 मुकदमे इस कंपनी पर विभिन्न राज्यों में दर्ज हो चुके थे जिन से बचने के लिए कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था। कई अदालतों ने पडर्यू दवा कंपनी को आदेश दिया कि वह पीड़ितों को मुआवजा दे जोकि उस ने दिया भी था.

जल्द ही अदालतों ने कंपनी को दोषी करार देना शुरू कर दिया तो मुकदमों की मार और परेशानी के अलावा किश्तों में मुआवजे से बचने सैकलर परिवार ने एकमुश्त 6 बिलियन डौलर मुआवजा देने का फैसला किया. लेकिन एवज में उस के व कंपनी के खिलाफ नए मुकदमे लेने से रोक की मांग की.

झूठ और बेईमानी

आखिरकर अदालत ने इस पेशकश को मान लिया और 6 बिलियन डौलर के हरजाने से एक सार्वजनिक लाभार्थी ट्रस्ट बना दिया.

मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन फसाद की जङ यह थी कि पडर्यू ने जानबूझ कर औक्सिकोटिन के साइड इफैक्ट छिपाए थे और उस एनजीओ को भी ₹155 करोड़ की रिश्वत दी थी जो दवाइयों को ले कर सरकार से नीतियां बनाने का सुझाव देता है.

अडानी ग्रुप से इस मामले का इतना संबंध तो है कि झूठ उस ने भी बोला और षड्यंत्रपूर्वक पैसे इकट्ठे किए. मामला तय है, सुप्रीमकोर्ट तक जाने से रोकने की कोशिश की जाएगी और निबटान की पेशकश की जाएगी। बेईमानी और धोखे से ₹2,200 करोड़ से भी ज्यादा रुपए इकट्ठा कर चुके गौतम अडानी को कीमत तो अदा करनी पड़ेगी बशर्ते ट्रिनी ऐनर्जी जैसे अभियोजक अड़े रहें और ट्रंप के दबाब में न आएं तो.

 

Couple Fight : पत्नियों से परेशान है पति बेचारे, 22 हजार पुरुषों ने कहा सताती हैं बीवियां

Husband Wife Relationship : पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसतेखेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताडि़त किया जाना शुरू हो जाता है.

उत्तर प्रदेश मानव अधिकार आयोग में 25 सितंबर तक 22,255 परेशान पति अपनी शिकायतें दर्ज करा चुके थे कि उन की पत्नियां किसी न किसी तरह उन्हें प्रताडि़त करती हैं. यह संख्या अभी और बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि साल 2023-24 में पत्नी पीडि़त पतियों की संख्या 31,285 थी जबकि 2022-23 में 36,409 पति इसी तरह की शिकायतें दर्ज कराने को आयोग पहुंचे थे.

यह खबर दिलचस्प भी है और चिंताजनक भी. दिलचस्प इस लिहाज से है कि आमतौर पर यह उम्मीद नहीं की जाती कि पत्नियां भी पतियों को इतना हैरानपरेशान व प्रताडि़त कर सकती हैं कि वे इतनी बड़ी तादाद में हायहाय करते मानव अधिकार आयोग गुहार लगाने जाएं.

चिंताजनक इस लिहाज से है कि अगर यह सिलसिला यों ही जारी रहा तो पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था की धुरी कहे जाने वाले पतिपत्नी के रिश्ते का अंजाम क्या होगा. प्रताडि़त या पत्नियों से दुखी पतियों की संख्या निश्चित रूप से इस से कहीं ज्यादा होगी क्योंकि सभी पति इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते, कुछ को अपनी मर्दानगी और मूंछों की इज्जत की चिंता रहती है कि बात आम हो गई तो उन का मजाक बनाया जाएगा. कुछ पति परिवार और परिजनों की खातिर खामोश रहते हालात से समझता करते जिंदगी को जैसेतैसे ढोते रहते हैं.

 

अब से कोई 75 वर्ष पहले आती

 

तो यह या ऐसी खबर मजाक व अविश्वसनीय लगती, क्योंकि तब पति ऐसी पत्नी को घर से बाहर निकाल देने में देर न करता और इस के बाद वह मुड़ कर देखता भी नहीं कि बेचारी अर्धांगिनी का हश्र क्या हुआ, उसे मायके वालों ने पनाह दी या कहीं दरदर की ठोकरें खाते उस वक्त को कोस रही है जब उस ने पति की ज्यादती का विरोध करने की हिम्मत जुटाई थी. इधर, पति नजदीकी लगन में ही दूसरी शादी कर चुका होता.

पति ऐयाश हो, नपुंसक हो या शारीरिक रूप से पत्नी को संतुष्ट व खुश न रख पाता हो तो भी हिंदू धर्म में वह परमेश्वर और भगवान ही होता है. इस की मिसाल वे पत्नियां हैं जिन्होंने गुलामी की जिंदगी से बगावत की थी या खुद के लिए जिम्मेदारियों के साथ कुछ हक भी मांगे थे. लेकिन वे कहीं की नहीं रह गई हैं. यकीन न हो तो फलानी या ढिकानी को देख लो जो मायके में बाप, भाइयों और भाभियों की मुहताज होते गुलामी ही कर रही हैं. उन के पास न जमीनजायदाद है, न औलाद का सुख है. फिर, जिस्मानी सुख का तो सवाल ही नहीं उठता. अगर गुलामी ही करनी थी तो ससुराल में करतीं.

 

कानून का मिला सहारा

 

जब संविधान ने महिलाओं को पुरुषों की बराबरी के हक दिए तो माहौल बदलना शुरू हुआ. इस के बाद हिंदू कोड बिल टुकड़ोंटुकड़ों में संसद से पारित हुआ तो महिलाओं को नारकीय जिंदगी से आजादी का रास्ता खुलने लगा. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 ने तो भारतीय परिवारों में हाहाकार मचा दिया जिस

के तहत महिलाओं को भी तलाक का अधिकार मिल गया. इतना ही नहीं, एक बड़ा और अहम काम यह हुआ कि मर्दों से एक से ज्यादा शादियां करने की सहूलियत छिन गई. धार्मिक और राजनीतिक हलकों में इस और ऐसे कानूनों का जम कर विरोध सड़कों से संसद तक यह अफवाह फैलाते हुआ कि ये कानून सनातन धर्म विरोधी हैं और इन्हें बना कर पारित करवाने वाले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मंशा हिंदू धर्म और संस्कृति को नष्टभ्रष्ट कर देने की है. सरिता के सितंबर (प्रथम) अंक में पाठक इसे विस्तार से पढ़ सकते हैं. इस लेख में तथ्य भी हैं और तर्क भी.

इन कानूनों से जो बदलाव हुए उन्हें भी आप इस रिपोर्ट में पढ़ सकते हैं कि यह प्रचार दुष्प्रचार ही निकला कि औरतों को मर्दों के बराबर हक देने से धर्म नष्टभ्रष्ट हो जाएगा. अब देश अगर तेजी से तरक्की कर रहा है तो उस में धर्म या मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार का कोई योगदान या हाथ नहीं है. बल्कि, यह सब इसलिए मुमकिन हुआ कि अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी और योगदान दोनों बढ़े.

 

जागरूकता बढ़ी

 

पारिवारिक और सामाजिक तौर पर भी उन्हें खुल कर सांस लेने की आजादी मिली. वे शिक्षित भी हुईं, कामकाजी भी हुईं. आज जो जागरूकता और आत्मविश्वास  महिलाओं में दिखते हैं उन की वजह नेहरू सरकार द्वारा बनाए गए कानून हैं. यह और बात है कि महिलाओं को इस का अंदाजा या एहसास नहीं.

औरतें दलितों की तरह कई बंधनों और रूढि़यों से कानूनी तौर पर आजाद हैं पर यह भी पूरी तरह संतोषजनक नहीं है क्योंकि धर्म के धंधेबाजों ने उन्हें घेरने के लिए नएनए तरीके ईजाद कर लिए हैं. उन में से अहम हैं उन्हें पूजापाठ का अधिकार देना, श्मशान में जा कर पिता या पति का अंतिम संस्कार करने देना और पितृपक्ष के दिनों में श्राद्ध व पिंडदान करने का अधिकार देना. इस से धर्म के धंधेबाजों का पेट पलता है.

लेकिन उत्तर प्रदेश सहित देशभर से आ रही इस तरह की खबरें चिंता पैदा करने वाली हैं और विचार करने वाली भी कि कहीं औरतें कानूनी सहूलियतों और पारिवारिक व सामाजिक आजादी का बेजा फायदा तो नहीं उठा रहीं. कुछ मामलों में ऐसा होना संभव और स्वाभाविक भी है लेकिन सभी मामलों पर यह थ्योरी फिट नहीं बैठती. यह दरअसल, पति या पत्नी के अनुपयोगी हो जाने के चलते ज्यादा हो रहा है.

एक पत्नी कैसेकैसे पति को परेशान कर सकती है, इस पर खूब चुटकुले सोशल मीडिया मंडी में इधर से उधर होते रहते हैं. हास्यव्यंग्य के कवियों और लेखकों ने भी अपनी कलम इस पर चलाई है और निर्माताओं ने फिल्में भी बनाई हैं जिन में पति अपनी पत्नी से परेशान रहता है. लेकिन पति उसे पहले की तरह मारपीट नहीं सकता, न ही बिना तलाक दिए दूसरी शादी कर सकता और न ही घर से निकाल सकता. उलटे, कई मामलों में तो यह देखा गया है कि पत्नी ही पति को घर से निकाल देती है और ऐसे मामलों में अकसर वह आर्थिक रूप से सक्षम यानी कमाऊ हो कर पति की कमाई की मुहताज नहीं रहती.

इस स्थिति की तुलना दलित आदिवासियों से की जा सकती है जिन का अपमान अब दंडनीय अपराध है. कोई उन्हें जातिसूचक शब्दों या संबोधन से ताने कसता है तो कानूनन गुनाहगार होता है. कुछ मामलों में एससी/एसटी एक्ट का भी बेजा इस्तेमाल दहेज कानून की तरह देखने में आता है लेकिन इन कानूनों से नुकसान आटे में नमक बराबर ही हुए हैं, जो कुदरती बात है. मुद्दे की बात पतिपत्नी में से किसी एक का अनुपयोगी हो जाना है, जिस की वजह से रिश्ते ज्यादा दरक रहे हैं.

 

निकम्मा पति पत्नी क्यों सहे

 

कोई भी पत्नी यह बरदाश्त नहीं कर पाती कि वह मेहनत कर कमाए और निकम्मा पति उसे दूसरी औरत पर या शराबकबाब, जुएसट्टे में उड़ा दे. जाहिर है, जो पति कमाएगाधमाएगा नहीं वह बेकार हो कर पत्नी और घर पर बोझ ही बनेगा तिस पर भी दादागीरी यह कि मैं पति हूं, तेरा भगवान हूं; तो पत्नी तिलमिला उठती है क्योंकि वह 75-80 साल पुरानी नहीं बल्कि आज के दौर की पत्नी है जिसे अपने अधिकार भी मालूम हैं और जिम्मेदारियों का भी एहसास है. लेकिन यह बात आजकल की ही उन पत्नियों पर लागू नहीं होती है जो दिनभर मोबाइल फोन या फिर किटी पार्टियों में व्यस्त रहती हैं और पति अगर इस पर एतराज जताए, समझाए या गुस्सा भी करे तो उस के कान काटने लगती हैं. यहां से शुरू होती है एक अंतहीन और बेवजह की कलह जिस का अंत अगर बड़े पैमाने पर मानव अधिकार आयोगों में हो रहा है जिन के पास सम?ाइश देने के अलावा कुछ नहीं होता.

सिर्फ खाना बना देना या बच्चों को संभालना ही पत्नी होने के माने अब नहीं रह गए हैं बल्कि उसे पैसा कमाने की भी जरूरत है वरना वह फालतू ही लगती है. जिन घरों में पतिपत्नी दोनों कमाते हैं उन में कलह कम होती है क्योंकि दोनों अपनी उपयोगिता बनाए रखते हैं.

खातेपीते घरों में पत्नियां नौकरी कर रही हैं तो उन से नीचे के तबके की पत्नियां अपनी हैसियत और शिक्षा के मुताबिक छोटेमोटे काम कर घर चलाने में अपना सहयोग दे रही हैं, फिर भले ही

वे घरों में झाडूपोंछा बरतन करती नजर आएं या कपड़े धोएं. बहरहाल, किसी भी तरह वे अपनी उपयोगिता बनाए रखती हैं. यानी, मैट्रो सिटी के पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं और आमतौर पर एकदूसरे से संतुष्ट रहते हैं, कुछ वही हाल निम्न वर्ग का है कि पतिपत्नी दोनों में से कोई अनुपयोगी नहीं रहता. दिक्कत तब खड़ी होती है जब दोनों में से कोई एक, वजहें कुछ भी हों, फालतू या बेकार हो जाता है तो दूसरा झल्लाने लगता है.

 

पति को सैक्स से वंचित रखना

 

अब अगर ऐसा पतियों के मामले में ज्यादा हो रहा है तो उन्हें किसी आयोग का दरवाजा खटखटाने से पहले अपना दिल और दिमाग टटोल कर देख लेना चाहिए कि क्यों पत्नियां उन्हें तंग कर रही हैं. हालांकि इन में पत्नियों का सब से बड़ा और कारगर हथियार सैक्स सुख से वंचित रखना है जो निहायत ही गलत है. कानून भी इसे जायज नहीं मानता बल्कि इसे तलाक के अधिकार के रूप में देखता है. ऐसे कई फैसले इस की गवाही भी देते हैं कि पत्नी द्वारा जानबूूझ कर पति को शारीरिक सुख न देना उस के प्रति क्रूरता है. एक अहम और चर्चित फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुनील कुमार और राजेंद्र कुमार ने कहा था कि जीवनसाथी को लंबे समय तक संभोग की इजाजत न देना मानसिक क्रूरता है.

26 मई, 2023 को आए इस फैसले में पीडि़त पति वाराणसी के रवींद्र यादव ने हाईकोर्ट में फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.

कुछ पतियों की लापरवाही और बुरी आदतें भी पत्नियों की परेशानी का सबब बन जाती हैं जिन के चलते वे पति को परेशान करने लगती हैं. कहने का मतलब यह नहीं कि पत्नी हमेशा सही होती होगी या होती है. कुछ पत्नियां गुस्सैल भी होती हैं और जिद्दी भी, जिन पर समझने बुझने का कोई असर नहीं होता और इसलिए वे पति को तंग करने लगती हैं कि तुम मुझे रोकोगेटोकोगे तो मैं तुम्हें यों समझाऊंगी.

ऐसी हालत में इकलौता हल आपसी बातचीत है. उस से बात न बने तो तलाक बेहतर रास्ता है. हालांकि बातचीत से कई दफा बात बन जाती है और मनमुटाव व गलतफहमी दूर हो जाते हैं. अब अगर पति प्रताड़ना की शिकायत कर रहे हैं तो बात कतई हैरानी की नहीं. उन्हें तो खुश होना चाहिए कि शिकायत करने कोई मंच उन्हें मिला हुआ है जिस के पास कानूनी अधिकार भले ही कम हों लेकिन वह मामला सुलझाने की कोशिश तो करता है. इस के बाद अदालत ही बचती है जहां जा कर इंसाफ मांगना पत्नी की तरह पति का भी हक है.

 

 

 

ममता : पश्चात्ताप के आंसू

एक वक्त था जब गायत्री के सामने प्रिया उन की छोटी सी प्यारी बच्ची थी और आज वही प्रिया मां के रूप में अपनी बच्ची के सामने खड़ी थी. लेकिन ममता का रूप कभी नहीं बदलता. जो ममता गायत्री के मन में प्रिया के लिए थी वही आज प्रिया के हृदय में अपनी बेटी के लिए भी.

दालान से गायत्री ने अपनी बेटी की चीख सुनी और फिर तेजी से पेपर वेट के गिरने की आवाज आई तो उन के कान खड़े हो गए. उन की बेटी प्रिया और नातिन रानी में जोरों की तूतू, मैंमैं हो रही थी. कहां 10 साल की बच्ची रानी और कहां 35 साल की प्रिया, दोनों का कोई जोड़ नहीं था. एक अनुभवों की खान थी और दूसरी नादानी का भंडार, पर ऐसे तनी हुई थीं दोनों जैसे एकदूसरे की प्रतिद्वंद्वी हों.

‘‘आखिर तू मेरी बात नहीं सुनेगी.’’

‘‘नहीं, मैं 2 चोटियां करूंगी.’’

‘‘क्यों? तुझे इस बात की समझ है कि तेरे चेहरे पर 2 चोटियां फबेंगी या 1 चोटी.’’

‘‘फिर भी मैं ने कह दिया तो कह दिया,’’ रानी ने अपना अंतिम फैसला सुना डाला और इसी के साथ चांटों की आवाज सुनाई दी थी गायत्री को.

रात गहरा गई थी. गायत्री सोने की कोशिश कर रही थीं. यह सोते समय चोटी बांधने का मसला क्यों? जरूर दिन की चोटियां रानी ने खोल दी होंगी. वह दौड़ कर दालान में पहुंचीं तो देखा कि प्रिया के बाल बिखरे हुए थे. साड़ी का आंचल जमीन पर लोट रहा था. एक चप्पल उस ने अपने हाथ में उठा रखी थी. बेटी का यह रूप देख कर गायत्री को जोरों की हंसी आ गई. मां की हंसी से चिढ़ कर प्रिया ने चप्पल नीचे पटक दी. रानी डर कर गायत्री के पीछे जा छिपी.

‘‘पता नहीं मैं ने किस करमजली को जन्म दिया है. हाय, जन्म देते समय मर क्यों नहीं गई,’’ प्रिया ने माथे पर हाथ मार कर रोना शुरू कर दिया.

अब गायत्री के लिए हंसना मुश्किल हो गया. हंसी रोक कर उन्होंने झिड़की दी, ‘‘क्या बेकार की बातें करती है. क्या तेरा मरना देखने के लिए ही मैं जिंदा हूं. बंद कर यह बकवास.’’

‘‘अपनी नातिन को तो कुछ कहती नहीं हो, मुझे ही दोषी ठहराती हो,’’ रोना बंद कर के प्रिया ने कहा और रानी को खा जाने वाली आंखों से घूरने लगी.

‘‘क्या कहूं इसे? अभी तो इस के खेलनेखाने के दिन हैं.’’

इस बीच गायत्री के पीछे छिपी रानी, प्रिया को मुंह चिढ़ाती रही.

प्रिया की नजर उस पर पड़ी तो क्रोध में चिल्ला कर बोली, ‘‘देख लो, इस कलमुंही को, मेरी नकल उतार रही है.’’

गायत्री ने इस बार चौंक कर देखा कि प्रिया अपनी बेटी की मां न लग कर उस की दुश्मन लग रही थी. अब उन के लिए जरूरी था कि वह नातिन को मारें और प्रिया को भी कस कर फटकारें. उन्होंने रानी का कान ऐंठ कर उसे साथ के कमरे में धकेल दिया और ऊंची आवाज में बोलीं, ‘‘प्रिया, रानी के लिए तू ऐसा अनापशनाप मत बका कर.’’

प्रिया गायत्री की बड़ी लड़की है और रानी, प्रिया की एकलौती बेटी. गरमियों में हर बार प्रिया अपनी बेटी को ले कर मां के सूने घर को गुलजार करने आ जाती है.

गायत्री ने अपने 8 बच्चों को पाला है. उन की लड़कियां भी कुछ उसी प्रकार बड़ी हुईं जिस तरह आज रानी बड़ी हो रही है. बातबात पर तनना, ऐंठना और चुप्पी साध कर बैठ जाना जैसी आदतें 8-10 वर्ष की उम्र से लड़कियों में शुरू होने लगती हैं. खेलने से मना करो तो बेटियां झल्लाने लगती हैं. पढ़ने के लिए कहो तो काटने दौड़ती हैं. घर का थोड़ा काम करने को कहो तो भी परेशानी और किसी बात के लिए मना करो तो भी.

 

प्रिया के साथ जो पहली घटना घटी थी वह गायत्री को अब तक याद है. उन्होंने पहली बार प्रिया को देर तक खेलते रहने के लिए चपत लगाई थी तो वह भी हाथ उठा कर तन कर खड़ी हो गई थी. गायत्री बेटी का वह रूप देख कर अवाक् रह गई थीं.

प्रिया को दंड देने के मकसद से घर से बाहर निकाला तो वह 2 घंटे का समय कभी तितलियों के पीछे भागभाग कर तो कभी आकाश में उड़ते हवाई जहाज की ओर मुंह कर ‘पापा, पापा’ की आवाज लगा कर बिताती रही थी पर उस ने एक बार भी यह नहीं कहा कि मां, दरवाजा खोल दो, मैं ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगी.

घड़ी की छोटी सूई जब 6 को भी पार करने लगी तब गायत्री स्वयं ही दरवाजा खोल कर प्रिया को अंदर ले आई थीं और उसे समझाते हुए कहा था, ‘ढीठ, एक बार भी तू यह नहीं कह सकती थी कि मां, दरवाजा खोल दो.’

प्रिया ने आंखें मिला कर गुस्से से भर कर कहा था, ‘मैं क्यों बोलूं? मेरी कितनी बेइज्जती की तुम ने.’

अपने नन्हे व्यक्तित्व के अपमान से प्रिया का गला भर आया था. गायत्री हैरान रह गई थीं. उस दिन के बाद से प्रिया का व्यवहार ही जैसे बदल सा गया था.

ऐसी ही एक दूसरी घटना गायत्री को नहीं भूलती जब वह सिरदर्द से बेजार हो कर प्रिया से बोली थीं, ‘बेटा, तू ये प्लेटें धो लेना, मैं डाक्टर के पास जा रही हूं.’

प्रिया मां की गोद में बिट्टो को देख कर ही समझ गई थी कि बाजार जाने का उस का पत्ता काट दिया गया है.

गायत्री बाजार से घर लौट कर आईं तो देखा कि प्रिया नदारद है और प्लेट, पतीला सब उसी तरह पड़े हुए थे. गायत्री की पूरी देह में आग लग गई पर बेटी से उलझने का साहस उन में न हुआ था. क्योंकि पिछली घटना अभी गायत्री भूली नहीं थीं. गोद के बच्चे को पलंग पर बैठा कर क्रोध से दांत किटकिटाते हुए उन्होंने बरतन धोए थे. चूल्हा जला कर खाना बनाने बैठ गई थीं.

इसी बीच प्रिया लौट आई थी. गायत्री ने सभी बच्चों को खाना परोस कर प्रिया से कहा था, ‘तुझे घंटे भर बाद खाना मिलेगा, यही सजा है तेरी.’

प्रिया का चेहरा फक पड़ गया था. मगर वह शांत रह कर थोड़ी देर प्रतीक्षा करती रही थी. उधर गायत्री अपने निर्णय पर अटल रहते हुए 1 घंटे बाद प्रिया को बुलाने पहुंचीं तो उस ने देखा कि वह दरी पर लुढ़की हुई थी.

गायत्री ने उसे उठ कर रसोई में चलने को कहा तो प्रिया शांत स्वर में बोली थी, ‘मैं न खाऊंगी, अम्मां, मुझे भूख नहीं है.’

गायत्री ने बेटी को प्यार से घुड़का था, ‘चल, चल खा और सो जा.’

प्रिया ने एक कौर भी न तोड़ा. गायत्री के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. इस के बाद उन्होंने बहुत मनाया, डांटा, झिड़का पर प्रिया ने खाने की ओर देखा भी नहीं था. थक कर गायत्री भी अपने बिस्तर पर जा बैठी थीं. उस रात खाना उन से भी न खाया गया था.

दूसरे दिन प्रिया ने जब तक खाना नहीं खाया गायत्री का कलेजा धकधक करता रहा था.

उस दिन की घटना के बाद गायत्री ने फिर खाने से संबंधित कोई सजा प्रिया को नहीं दी थी. प्रिया कई बार देख चुकी थी कि गायत्री उस की बेहद चिंता करती थीं और उस के लिए पलकें बिछाए रहती थीं. फिर भी वह मां से अड़ जाती थी, उस की कोई बात नहीं मानती थी. इतना ही नहीं कई बार तो वह भाईबहन के युद्ध में अपनी मां गायत्री पर ताना कसने से भी बाज नहीं आती, ‘हां…हां…अम्मां, तुम भैया की ओर से क्यों न बोलोगी. आखिर पूरी उम्र जो उन्हीं के साथ तुम्हें रहना है.’

 

गायत्री ने कई घरों के ऐसे ही किस्से सुन रखे थे कि मांबेटियों में इस बात पर तनातनी रहती है कि मां सदा बेटों का पक्ष लेती हैं. वह इस बात से अपनी बेटियों को बचाए रखना चाहती थीं पर प्रिया को मां की हर बात में जैसे पक्षपात की बू आती थी.

ऐसे ही तानों और लड़ाइयों के बीच प्रिया जवानी में कदम रखते ही बदल गई थी. अब वह मां का हित चाहने वाली सब से प्यारी सहेली हो गई थी. जिस बात से मां को ठेस लग सकती हो, प्रिया उसे छेड़ती भी नहीं थी. मां को परेशान देख झट उन के काम में हाथ बंटाने के लिए आ जाती थी. मां के बदन में दर्द होता तो उपचार करती. यहां तक कि कोई छोटी बहन मां से अकड़ती, ऐंठती तो वही प्रिया उसे समझाती कि ऐसा न करो.

बेटों के व्यवहार से मां गायत्री परेशान होतीं तो प्रिया उन की हिम्मत बढ़ाती. गायत्री उस के इस नए रूप को देख चकित हो उठी थीं और उन्हें लगने लगा था कि औरत की दुनिया में उस की सब से पक्की सहेली उस की बेटी ही होती है.

यही सब सोचतेविचारते जब गायत्री की नींद टूटी तो सूरज का तीखा प्रकाश खिड़की से हो कर उन के बिछौने पर पड़ रहा था. रात की बातें दिमाग से हट गई थीं. अब उन्हें बड़ा हलका महसूस हो रहा था. जल्दी ही वह खाने की तैयारी में जुट गईं.

 

आटा गूंधते हुए उन्होंने एक बार खिड़की से उचक कर प्रिया के कमरे में देखा तो उन के होंठों पर हंसी आ गई. प्रिया रानी के सिरहाने बैठी उस का माथा सहला रही थी. गायत्री को लगा वह प्रिया नहीं गायत्री है और रानी, रानी नहीं प्रिया है. कभी ऐसे ही तो ममता और उलझन के दिन उन्होंने भी काटे हैं.

गायत्री ने चाहा एक बार आवाज दे कर रानी को उठा ले फिर कुछ सोच कर वह कड़ाही में मठरियां तलने लगीं. उन्हें लगा, प्रिया उठ कर अब बाहर आ रही है. लगता है रानी भी उठ गई है क्योंकि उस की छलांग लगाने की आवाज उन के कानों से टकराई थी.

अचानक प्रिया के चीखने की आवाज आई, ‘‘मैं देख रही हूं तेरी कारस्तानी. तुझे कूट कर नहीं धर दिया तो कहना.’’

कितना कसैला था प्रिया का वाक्य. अभी थोड़ी देर पहले की ममता से कितना भिन्न पर गायत्री को इस वाक्य से घबराहट नहीं हुई. उन्होंने देखा रानी, प्रिया के हाथों मंजन लेने से बच रही है. एकाएक प्रिया ने गायत्री की ओर देखा तो थोड़ा झेंप गई.

‘‘देखती हो अम्मां,’’ प्रिया चिड़चिड़ा कर बोली, ‘‘कैसे लक्षण हैं इस के? कल थोड़ा सा डांट क्या दिया कि कंधे पर हाथ नहीं धरने दे रही है. रात मेरे साथ सोई भी नहीं. मुझ से ही नहीं बोलती है मेरी लड़की. तुम्हीं बोलो, क्या पैरों में गिर कर माफी मांगूं तभी बोलेगी यह,’’ कह कर प्रिया मुंह में आंचल दे कर फूटफूट कर रो पड़ी.

ऐंठी, तनी रानी का सारा बचपन उड़ गया. वह थोड़ा सहम कर प्रिया के हाथ से मंजनब्रश ले कर मुंह धोने चल दी.

गायत्री ने जा कर प्रिया के कंधे पर हाथ रखा और झिड़का, ‘‘यह क्या बचपना कर रही है. रानी आखिर है तो तेरी ही बच्ची.’’

‘‘हां, मेरी बच्ची है पर जाने किस जन्म का बैर निकालने के लिए मेरी कोख से पैदा हुई है,’’ प्रिया ने रोतेसुबकते कहा, ‘‘यह जैसेजैसे समझदार होती जा रही है, इस के रंगढंग बदलते जा रहे हैं.’’

‘‘तो चिंता क्यों करती है?’’ गायत्री ने फुसफुसा कर बेहद ममता से कहा, ‘‘थोड़ा धीरज से काम ले, आज की सूखे डंडे सी तनी यह लड़की कल कच्चे बांस सी नरम, कोमल हो जाएगी. कभी इस उम्र में तू ने भी यह सब किया था और मैं भी तेरी तरह रोती रहती थी पर देख, आज तू मेरे सुखदुख की सब से पक्की सहेली है. थोड़ा धैर्य रख प्रिया, रानी भी तेरी सहेली बनेगी एक दिन.’’

‘‘क्या?’’ प्रिया की आंखें फट गईं.

‘‘क्यों अम्मां, मैं ने भी कभी आप का इसी तरह दिल दुखाया था? कभी मैं भी ऐसे ही थी सच? ओह, कैसा लगता होगा तब अम्मां तुम्हें?’’

बेटी की आंखों में पश्चात्ताप के आंसू देख कर गायत्री की ममता छलक उठी और उन्होंने बेटी के आंसुओं को आंचल में समेट कर उसे गले से लगा लिया.

Love Story : पहला पहला प्यार

विकी ने अपने मातापिता से कभी कोई बात नहीं छिपाई थी, लेकिन बरखा के साथ अपनी मुहब्बत की बात बताने से वह  झिझक रहा था. आखिर ऐसा क्या हुआ कि मां को अपने बेटे की पसंद का आभास हो गया और उन्होंने बेटे की पसंद पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी.

 

‘‘दा,तुम मेरी बात मान लो और आज खाने की मेज पर मम्मीपापा को सारी बातें साफसाफ बता दो. आखिर कब तक यों परेशान बैठे रहोगे?’’

बच्चों की बातें कानों में पड़ीं तो मैं रुक गई. ऐसी कौन सी गलती विकी से हुई जो वह हम से छिपा रहा है और उस का छोटा भाई उसे सलाह दे रहा है. मैं ‘बात क्या है’ यह जानने की गरज से छिप कर उन की बातें सुनने लगी.

‘‘इतना आसान नहीं है सबकुछ साफसाफ बता देना जितना तू समझ रहा है,’’ विकी की आवाज सुनाई पड़ी.

‘‘दा, यह इतना मुश्किल भी तो नहीं है. आप की जगह मैं होता तो देखते कितनी स्टाइल से मम्मीपापा को सारी बातें बता भी देता और उन्हें मना भी लेता,’’ इस बार विनी की आवाज आई.

‘‘तेरी बात और है पर मुझ से किसी को ऐसी उम्मीद नहीं होगी,’’ यह आवाज मेरे बड़े बेटे विकी की थी.

‘‘दा, आप ने कोई अपराध तो किया नहीं जो इतना डर रहे हैं. सच कहूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मम्मीपापा आप की बात सुन कर गले लगा लेंगे,’’ विनी की आवाज खुशी और उत्साह दोनों से भरी हुई थी.

‘बात क्या है’ मेरी समझ में कुछ नहीं आया. थोड़ी देर और खड़ी रह कर उन की आगे की बातें सुनती तो शायद कुछ समझ में आ भी जाता पर तभी प्रेस वाले ने डोर बेल बजा दी तो मैं दबे पांव वहां से खिसक ली.

बच्चों की आधीअधूरी बातें सुनने के बाद तो और किसी काम में मन ही नहीं लगा. बारबार मन में यही प्रश्न उठते कि मेरा वह पुत्र जो अपनी हर छोटीबड़ी बात मुझे बताए बिना मुंह में कौर तक नहीं डालता है, आज ऐसा क्या कर बैठा जो हम से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. सोचा, चल कर साफसाफ पूछ लूं पर फिर लगा कि बच्चे क्या सोचेंगे कि मम्मी छिपछिप कर उन की बातें सुनती हैं.

जैसेतैसे दोपहर का खाना तैयार कर के मेज पर लगा दिया और विकीविनी को खाने के लिए आवाज दी. खाना परोसते समय खयाल आया कि यह मैं ने क्या कर दिया, लौकी की सब्जी बना दी. अभी दोनों अपनीअपनी कटोरी मेरी ओर बढ़ा देंगे और कहेंगे कि रामदेव की प्रबल अनुयायी माताजी, यह लौकी की सब्जी आप को ही सादर समर्पित हो. कृपया आप ही इसे ग्रहण करें. पर मैं आश्चर्यचकित रह गई यह देख कर कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उलटा दोनों इतने मन से सब्जी खाने में जुटे थे मानो उस से ज्यादा प्रिय उन्हें कोई दूसरी सब्जी है ही नहीं.

बात जरूर कुछ गंभीर है. मैं ने मन में सोचा क्योंकि मेरी बनाई नापसंद सब्जी या और भी किसी चीज को ये चुपचाप तभी खा लेते हैं जब या तो कुछ देर पहले उन्हें किसी बात पर जबरदस्त डांट पड़ी हो या फिर अपनी कोई इच्छा पूरी करवानी हो.

खाना खा कर विकी और विनी फिर अपने कमरे में चले गए. ऐसा लग रहा था कि किसी खास मसले पर मीटिंग अटेंड करने की बहुत जल्दी हो उन्हें.

विकी सी.ए. है. कानपुर में उस ने अपना शानदार आफिस बना लिया है. ज्यादातर शनिवार को ही आता है और सोमवार को चला जाता है. विनी एम.बी.ए. की तैयारी कर रहा है. बचपन से दोनों भाइयों के स्वभाव में जबरदस्त अंतर होते हुए भी दोनों पल भर को भी अलग नहीं होते हैं. विकी बेहद शांत स्वभाव का आज्ञाकारी लड़का रहा है तो विनी इस के ठीक उलट अत्यंत चंचल और अपनी बातों को मनवा कर ही दम लेने वाला रहा है. इस के बावजूद इन दोनों भाइयों का प्यार देख हम दोनों पतिपत्नी मन ही मन मुसकराते रहते हैं.

 

अपना काम निबटा कर मैं बच्चों के कमरे में चली गई. संडे की दोपहर हमारी बच्चों के कमरे में ही गुजरती है और बच्चे हम से सारी बातें भी कह डालते हैं, जबकि ऐसा करने में दूसरे बच्चे मांबाप से डरते हैं. आज मुझे राजीव का बाहर होना बहुत खलने लगा. वह रहते तो माहौल ही कुछ और होता और वह किसी न किसी तरह बच्चों के मन की थाह ले ही लेते.

मेरे कमरे में पहुंचते ही विनी अपनी कुरसी से उछलते हुए चिल्लाया, ‘‘मम्मा, एक बात आप को बताऊं, विकी दा ने…’’

उस की बात विकी की घूरती निगाहों की वजह से वहीं की वहीं रुक गई. मैं ने 1-2 बार कहा भी कि ऐसी कौन सी बात है जो आज तुम लोग मुझ से छिपा रहे हो, पर विकी ने यह कह कर टाल दिया कि कुछ खास नहीं मम्मा, थोड़ी आफिस से संबंधित समस्या है. मैं आप को बता कर परेशान नहीं करना चाहता पर विनी के पेट में कोई बात पचती ही नहीं है.

हालांकि मैं मन ही मन बहुत परेशान थी फिर भी न जाने कैसे झपकी लग गई और मैं वहीं लेट गई. अचानक ‘मम्मा’ शब्द कानों में पड़ने से एक झटके से मेरी नींद खुल गई पर मैं आंखें मूंदे पड़ी रही. मुझे सोता देख कर उन की बातें फिर से चालू हो गई थीं और इस बार उसी कमरे में होने की वजह से मुझे सबकुछ साफसाफ सुनाई दे रहा था.

विकी ने विनी को डांटा, ‘‘तुझे मना किया था फिर भी तू मम्मा को क्या बताने जा रहा था?’’

‘‘क्या करता, तुम्हारे पास हिम्मत जो नहीं है. दा, अब मुझ से नहीं रहा जाता, अब तो मुझे जल्दी से भाभी को घर लाना है. बस, चाहे कैसे भी.’’

विकी ने एक बार फिर विनी को चुप रहने का इशारा किया. उसे डर था कि कहीं मैं जाग न जाऊं या उन की बातें मेरे कानों में न पड़ जाएं.

अब तक तो नींद मुझ से कोसों दूर जा चुकी थी. ‘तो क्या विकी ने शादी कर ली है,’ यह सोच कर लगा मानो मेरे शरीर से सारा खून किसी ने निचोड़ लिया. कहां कमी रह गई थी हमारे प्यार में और कैसे हम अपने बच्चों में यह विश्वास उत्पन्न करने में असफल रह गए कि जीवन के हर निर्णय में हम उन के साथ हैं.

आज पलपल की बातें शेयर करने वाले मेरे बेटे ने मुझे इस योग्य भी न समझा कि अपने शादी जैसे महत्त्वपूर्ण फैसले में शामिल करे. शामिल करना तो दूर उस ने तो बताने तक की भी जरूरत नहीं समझी. मेरे व्यथित और तड़पते दिल से एक आवाज निकली, ‘विकी, सिर्फ एक बार कह कर तो देखा होता बेटे तुम ने, फिर देखते कैसे मैं तुम्हारी पसंद को अपने अरमानों का जोड़ा पहना कर इस घर में लाती. पर तुम ने तो मुझे जीतेजी मार डाला.’

पल भर के अंदर ही विकी के पिछले 25 बरस आंखों के सामने से गुजर गए और उन 25 सालों में कहीं भी विकी मेरा दिल दुखाता हुआ नहीं दिखा. टेबल पर रखे फल उठा कर खाने से पहले भी वह जहां होता वहीं से चिल्ला कर मुझे बताता था कि मम्मा, मैं यह सेब खाने जा रहा हूं. और आज…एक पल में ही पराया बना दिया बेटे ने.

कलेजे को चीरता हुआ आंसुओं का सैलाब बंद पलकों के छोर से बूंद बन कर टपकने ही वाला था कि अचानक विकी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी, ‘‘तुम ने देखा नहीं है मम्मीपापा के कितने अरमान हैं अपनी बहुओं को ले कर और बस, मैं इसी बात से डरता हूं कि कहीं बरखा मम्मीपापा की कल्पनाओं के अनुरूप नहीं उतरी तो क्या होगा? अगर मैं पहले ही इन्हें बता दूंगा कि मैं बरखा को पसंद करता हूं तो फिर कोई प्रश्न ही नहीं उठता कि मम्मीपापा उसे नापसंद करें, वे हर हाल में मेरी शादी उस से कर देंगे और मैं यही नहीं चाहता हूं. मम्मीपापा के शौक और अरमान पूरे होने चाहिए, उन की बहू उन्हें पसंद होनी चाहिए. बस, मैं इतना ही चाहता हूं.’’

‘‘और अगर वह उन्हें पसंद नहीं आई तो?’’

‘‘नहीं आई तो देखेंगे, पर मैं ने इतना तो तय कर लिया है कि मैं पहले से यह बिलकुल नहीं कह सकता कि मैं किसी को पसंद करता हूं.’’

तो विकी ने शादी नहीं की है, वह केवल किसी बरखा नाम की लड़की को पसंद करता है और उस की समस्या यह है कि बरखा के बारे में हमें बताए कैसे? इस बात का एहसास होते ही लगा जैसे मेरे बेजान शरीर में जान वापस आ गई. एक बार फिर से मेरे सामने वही विकी आ खड़ा हुआ जो अपनी कोई बात कहने से पहले मेरे चारों ओर चक्कर लगाता रहता, मेरा मूड देखता फिर शरमातेझिझकते हुए अपनी बात कहता. उस का कहना कुछ ऐसा होता कि मना करने का मैं साहस ही नहीं कर पाती. ‘बुद्धू, कहीं का,’ मन ही मन मैं बुदबुदाई. जानता है कि मम्मा किसी बात के लिए मना नहीं करतीं फिर भी इतनी जरूरी बात कहने से डर रहा है.

सो कर उठी तो सिर बहुत हलका लग रहा था. मन में चिंता का स्थान एक चुलबुले उत्साह ने ले लिया था. मेरे बेटे को प्यार हो गया है यह सोचसोच कर मुझे गुदगुदी सी होने लगी. अब मुझे समझ में आने लगा कि विनी को भाभी घर में लाने की इतनी जल्दी क्यों मच रही थी. ऐसा लगने लगा कि विनी का उतावलापन मेरे अंदर भी आ कर समा गया है. मन होने लगा कि अभी चलूं विकी के पास और बोलूं कि ले चल मुझे मेरी बहू के पास, मैं अभी उसे अपने घर में लाना चाहती हूं पर मां होने की मर्यादा और खुद विकी के मुंह से सुनने की एक चाह ने मुझे रोक दिया.

रात को खाने की मेज पर मेरा मूड तो खुश था ही, दिन भर के बाद बच्चों से मिलने के कारण राजीव भी बहुत खुश दिख रहे थे. मैं ने देखा कि विनी कई बार विकी को इशारा कर रहा था कि वह हम से बात करे पर विकी हर बार कुछ कहतेकहते रुक सा जाता था. अपने बेटे का यह हाल मुझ से और न देखा गया और मैं पूछ ही बैठी, ‘‘तुम कुछ कहना चाह रहे हो, विकी?’’

‘‘नहीं…हां, मैं यह कहना चाहता था मम्मा कि जब से कानपुर गया हूं दोस्तों से मुलाकात नहीं हो पाती है. अगर आप कहें तो अगले संडे को घर पर दोस्तों की एक पार्टी रख लूं. वैसे भी जब से काम शुरू किया है सारे दोस्त पार्टी मांग रहे हैं.’’

‘‘तो इस में पूछने की क्या बात है. कहा होता तो आज ही इंतजाम कर दिया होता,’’ मैं ने कहा, ‘‘वैसे कुल कितने दोस्तों को बुलाने की सोच रहे हो, सारे पुराने दोस्त ही हैं या कोई नया भी है?’’

‘‘हां, 2-4 नए भी हैं. अच्छा रहेगा, आप सब से भी मुलाकात हो जाएगी. क्यों विनी, अच्छा रहेगा न?’’ कह कर विकी ने विनी को संकेत कर के राहत की सांस ली.

मैं समझ गई थी कि पार्टी की योजना दोनों ने मिल कर बरखा को हम से मिलाने के लिए ही बनाई है और विकी के ‘नए दोस्तों’ में बरखा भी शामिल होगी.

 

अब बच्चों के साथसाथ मेरे लिए भी पार्टी की अहमियत बहुत बढ़ गई थी. अगले संडे की सुबह से ही विकी बहुत नर्वस दिख रहा था. कई बार मन में आया कि उसे पास बुला कर बता दूं कि वह सारी चिंता छोड़ दे क्योंकि हमें सबकुछ मालूम हो चुका है, और बरखा जैसी भी होगी मुझे पसंद होगी. पर एक बार फिर विकी के भविष्य को ले कर आशंकित मेरे मन ने मुझे चुप करा दिया कि कहीं बरखा विकी के योग्य न निकली तो? जब तक बात सामने नहीं आई है तब तक तो ठीक है, उस के बारे में कुछ भी राय दे सकती हूं, पर अगर एक बार सामने बात हो गई तो विकी का दिल टूट जाएगा.

4 बजतेबजते विकी के दोस्त एकएक कर के आने लगे. सच कहूं तो उस समय मैं खुद काफी नर्वस होने लगी थी कि आने वालों में बरखा नाम की लड़की न मालूम कैसी होगी. सचमुच वह मेरे विकी के लायक होगी या नहीं. मेरी भावनाओं को राजीव अच्छी तरह समझ रहे थे और आंखों के इशारे से मुझे धैर्य रखने को कह रहे थे. हमें देख कर आश्चर्य हो रहा था कि सदैव हंगामा करते रहने वाला विनी भी बिलकुल शांति  से मेरी मदद में लगा था और बीचबीच में जा कर विकी की बगल में कुछ इस अंदाज से खड़ा होता मानो उस से कह रहा हो, ‘दा, दुखी न हो, मैं तुम्हारे साथ हूं.’

ठीक साढ़े 4 बजे बरखा ने अपनी एक सहेली के साथ ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. उस के घुसते ही विकी की नजरें विनी से और मेरी नजरें इन से जा टकराईं. विकी अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और उन्हें हमारे पास ला कर उन से हमारा परिचय करवाया, ‘‘बरखा, यह मेरे मम्मीपापा हैं और मम्मीपापा, यह मेरी नई दोस्त बरखा और यह बरखा की दोस्त मालविका है. ये दोनों एम.सी.ए. कर रही हैं. पिछले 7 महीने से हमारी दोस्ती है पर आप लोगों से मुलाकात न करवा सका था.’’

 

हम ने महसूस किया कि बरखा से हमारे परिचय के दौरान पूरे कमरे का शोर थम गया था. इस का मतलब था कि विकी के सारे दोस्तों को पहले से बरखा के बारे में मालूम था. सच है, प्यार एक ऐसा मामला है जिस के बारे में बच्चों के मांबाप को ही सब से बाद में पता चलता है. बच्चे अपना यह राज दूसरों से तो खुल कर शेयर कर लेते हैं पर अपनों से बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं.

बरखा को देख लेने और उस से बातचीत कर लेने के बाद मेरे मन में उसे बहू बना लेने का फैसला पूर्णतया पक्का हो गया. विकी बरखा के ही साथ बातें कर रहा था पर उस से ज्यादा विनी उस का खयाल रख रहा था. पार्टी लगभग समाप्ति की ओर अग्रसर थी. यों तो हमारा फैसला पक्का हो चुका था पर फिर भी मैं ने एक बार बरखा को चेक करने की कोशिश की कि शादी के बाद घरगृहस्थी संभालने के उस में कुछ गुण हैं या नहीं.

मेरा मानना है कि लड़की कितने ही उच्च पद पर आसीन हो पर घरपरिवार को उस के मार्गदर्शन की आवश्यकता सदैव एक बच्चे की तरह होती है. वह चूल्हेचौके में अपना दिन भले ही न गुजारे पर चौके में क्या कैसे होता है, इस की जानकारी उसे अवश्य होनी चाहिए ताकि वह अच्छा बना कर खिलाने का वक्त न रखते हुए भी कम से कम अच्छा बनवाने का हुनर तो अवश्य रखती हो.

मैं शादी से पहले घरगृहस्थी में निपुण होना आवश्यक नहीं मानती पर उस का ‘क ख ग’ मालूम रहने पर ही उस जिम्मेदारी को निभा पाने की विश्वसनीयता होती है. बहुत से रिश्तों को इन्हीं बुनियादी जिम्मेदारियों के अभाव में बिखरते देखा था मैं ने, इसलिए विकी के जीवन के लिए मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

मैं ने बरखा को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटा, सुबह से पार्टी की तैयारी में लगे होने की वजह से इस वक्त सिर बहुत दुखने लगा है. मैं ने गैस पर तुम सब के लिए चाय का पानी चढ़ा दिया है, अगर तुम्हें चाय बनानी आती हो तो प्लीज, तुम बना लो.’’

‘‘जी, आंटी, अभी बना लाती हूं,’’ कह कर वह विकी की तरफ पलटी, ‘‘किचन कहां है?’’

‘‘उस तरफ,’’ हाथ से किचन की तरफ इशारा करते हुए विकी ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम्हें चीनी और चायपत्ती बता देता हूं,’’ कहते हुए वह बरखा के साथ ही चल पड़ा.

‘‘बरखाजी को अदरक कूट कर दे आता हूं,’’ कहता हुआ विनी भी उन के पीछे हो लिया.

चाय चाहे सब के सहयोग से बनी हो या अकेले पर बनी ठीक थी. किचन में जा कर मैं देख आई कि चीनी और चायपत्ती के डब्बे यथास्थान रखे थे, दूध ढक कर फ्रिज में रखा था और गैस के आसपास कहीं भी चाय गिरी, फैली नहीं थी. मैं निश्चिंत हो आ कर बैठ गई. मुझे मेरी बहू मिल गई थी.

एकएक कर के दोस्तों का जाना शुरू हो गया. सब से अंत में बरखा और मालविका हमारे पास आईं और नमस्ते कर के हम से जाने की अनुमति मांगने लगीं. अब हमारी बारी थी, विकी ने अपनी मर्यादा निभाई थी. पिछले न जाने कितने दिनों से असमंजस की स्थिति गुजरने के बाद उस ने हमारे सामने अपनी पसंद जाहिर नहीं की बल्कि उसे हमारे सामने ला कर हमारी राय जाननेसमझने का प्रयत्न करता रहा. और हम दोनों को अच्छी तरह पता है कि अभी भी अपनी बात कहने से पहले वह बरखा के बारे में हमारी राय जानने की कोशिश अवश्य करेगा, चाहे इस के लिए उसे कितना ही इंतजार क्यों न करना पड़े.

मैं अपने बेटे को और असमंजस में नहीं देख सकती थी, अगर वह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा है तो उस की बात को मैं ही कह कर उसे कशमकश से उबार लूंगी.

 

बरखा के दोबारा अनुमति मांगने पर मैं ने कहा, ‘‘घर की बहू क्या घर से खाली हाथ और अकेली जाएगी?’’

मेरी बात का अर्थ जैसे पहली बार किसी की समझ में नहीं आया. मैं ने विकी का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तेरी पसंद हमें पसंद है. चल, गाड़ी निकाल, हम सब बरखा को उस के घर पहुंचाने जाएंगे. वहीं इस के मम्मीडैडी से रिश्ते की बात भी करनी है. अब अपनी बहू को घर में लाने की हमें भी बहुत जल्दी है.’’

मेरी बात का अर्थ समझ में आते ही पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. मम्मीपापा को यह सब कैसे पता चला, इस सवाल में उलझाअटका विकी पहले तो जहां का तहां खड़ा रह गया फिर अपने पापा की पहल पर बढ़ कर उन के सीने से लग गया.

इन सब बातों में समय गंवाए बिना विनी गैरेज से गाड़ी निकाल कर जोरजोर से हार्न बजाने लगा. उस की बेताबी देख कर मैं दौड़ते हुए अपनी खानदानी अंगूठी लेने के लिए अंदर चली गई, जिसे मैं बरखा के मातापिता की सहमति ले कर उसे वहीं पहनाने वाली थी.

चार सहेलियां चार समधिनें

डा. अनिता राठौर मंजरी

चार सहेलियां, चारों का अलगअलग धर्म लेकिन दोस्ती चारों में जम कर थी क्योंकि दोस्ती धर्म थोड़े न देखती है. बवाल तो तब खड़ा हुआ जब उन के बच्चों में आंखें चार हुईं. सारा मामला तब उलझ गया.

नोएडा की एक सोसाइटी में 4 सहेलियों को नियमित रूप से सुबहशाम देखा जाता था जिन्हें देख कर वहां के निवासी ‘चार सहेलियां खड़ीखड़ी…’ गीत जरूर गुनगुनाते थे. सर्दीगरमी, धूपकुहरा हो लेकिन वे आती जरूर थीं, बारिश में भी छाता ले कर अपना दोस्ताना निभाती थीं. वे कोई बचपन, स्कूल, कालेज या औफिस की दोस्त नहीं थीं. इसी सोसाइटी में उन की मित्रता ने जन्म लिया था. चारों सुबहशाम सैर करने की शौकीन थीं. इसी शौक ने उन्हें दोस्ती के मजबूत बंधन में बांध दिया था. उम्र के मामले में भी समान थीं लगभग 50 और 55 के बीच की. चारों युवा बच्चों की मां थीं.

 

पहली सहेली राधिका थी जो अपने सासससुर और नोएडा में ही बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत अपने युवा बेटे के साथ रहती थी. उस के पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.

 

दूसरी थी शाहाना जो अपने पति और छोटी बेटी सारा के साथ रहती थी. बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी. तीसरी थी गुरबीर कौर जो अपने पति, सास और बड़े बेटे के साथ रहती थी और जिस का नोएडा में ही मैडिकल स्टोर था और छोटा बेटा पुणे में बीटैक कर रहा था. चौथी थी कैथरीन जिस का अपने पति से तलाक हो गया था और वह अपनी एकलौती बेटी एंजेलिका के साथ रहती थी.

 

चारों एकदूसरे के धर्म का पूरा मानसम्मान करती थीं. किसी के धर्म को ले कर कोई कुतर्क, वादविवाद या बहस में नहीं पड़ती थीं. दीवाली, बड़ा दिन, ईद और बैसाखीलोहड़ी पर एकदूसरे को बधाई देती थीं और सभी के त्योहार सम्मिलित रूप से मनाती थीं. अपनेअपने त्योहारों पर मिठाई, सेवईं, मक्के की रोटी, सरसों का साग और केक इत्यादि का आदानप्रदान होता रहता था.

 

एक दिन शाहाना की खूबसूरत बेटी सारा राधिका के यहां मेवे वाली मीठी सेवइयां देने गई. उस दिन राधिका का बेटा समर घर पर अकेला था. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही प्यार हो गया और यह प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ने लगा. इधर सोसाइटी क्लब में कैथरीन की खूबसूरत बेटी एंजेलिका की आंखें गुरबीर कौर के बेटे अमरीक से चार हो गईं और उन की मुहब्बत ने शताब्दी एक्सप्रैस की तरह रफ्तार पकड़ ली.

 

 

चारों सहेलियों को अपने बच्चों की मासूम मुहब्बत का पता ही नहीं चला. कहावत है, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यहां यह कहावत चरितार्थ हुई. जब वे चारों सहेलियां ओपन जिम में थीं तभी किसी ने जुमला कसा, ‘चार समधिन खड़ीखड़ी…’ यह सुन कर राधिका बोली, ‘यह महिला क्या बोल रही है? हमारा स्लोगन तो चार सहेलियां खड़ीखड़ी है लेकिन यह चार समधिन  खड़ीखड़ी क्यों बोल रही है?’

 

शाहाना  सीआईडी सीरियल के एसीपी प्रद्युमन की तरह बोली, ‘दया, कुछ तो है?’

 

गुरबीर कौर उस महिला से पंगा लेने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी, कैथरीन ने उसे रोक दिया, ‘जाने दे यार, इन लोगों को हमारी दोस्ती से ईर्ष्या होती है, इसलिए हमें छेड़ते हैं.’

 

उस दिन तो वे चारों चुप ही रहीं लेकिन अब यह रोज का नियम हो गया था. कोई न कोई यह गीत जुमले के रूप में उन की तरफ उछाल ही देता था. आखिर एक दिन राधिका बोली, ‘‘दोस्तो, आग वहीं लगती है जहां चिनगारी होती है. क्यों न हम अपनीअपनी चिनगारियों  से खुद ही इस विषय में पूछ लें.’’

 

‘‘हां, यह सही रहेगा. हमारी साहबजादी सारा देररात तक न जाने मोबाइल पर किस से बतियाती रहती हैं,’’ शाहाना ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘और  हमारे सुपुत्र समर भी आजकल प्रेमरस में डूबी कविताएं फेसबुक पर धड़ाधड़ पोस्ट कर रहे हैं,’’ कह कर जोर से हंस पड़ी राधिका.

 

‘‘हमारी डौटर भी आजकल आईने के सामने बहुत सजनेसंवरने लगी है,’’ कैथरीन ने भी चिंता व्यक्त की.

 

‘‘मेरा मुंडा भी आजकल खूब मुहब्बतभरे नगमे गुनगुनाने लगा है,’’ गुरबीर कौर भी हंसते हुए बोली.

 

 

घर पहुंचते ही राधिका ने अपने बेटे की क्लास ली, ‘‘समर, मैं मां हूं तुम्हारी. सच बताओ, आजकल क्या चल रहा है? देखो, ?ाठ मत बोलना.’’ पहले तो वह घबरा गया, फिर भावुक स्वर में बोला, ‘‘मम्मी, प्रौमिस करो कि आप मेरा साथ दोगे.’’

 

‘‘अगर साथ देने वाली बात होगी तो जरूर साथ दूंगी.’’

 

‘‘मम्मी, मैं आप की दोस्त शाहाना आंटी की बेटी सारा से बहुत प्यार करता हूं और उस से ही शादी करूंगा.’’ समर दृढ़ स्वर में बोला.

 

यह सुन कर राधिका के पैरोंतले जमीन खिसक गई. वह तो सारा को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लेगी मगर सासुमां शायद कभी नहीं क्योंकि समर के पिता संजय किसी दूसरी जाति की लड़की से प्यार करते थे लेकिन उन्होंने वह शादी नहीं होने दी और जबरदस्ती संजय से उस की शादी करवा दी. संजय ने पहली रात को ही उसे सब सच बता दिया लेकिन वे अपना पहला प्यार भुला न सके और शराब का सहारा ले लिया. एक रात अत्यधिक नशे के कारण रोड ऐक्सिडैंट में उन की मौत हो गई. यह सोच कर वह एकदम बुत सी बन गई.

 

‘‘मम्मीमम्मी, क्या हुआ?’’ समर उसे ? झिड़कते हुए बोला.

 

‘‘कुछ नहीं हुआ, बेटा,’’ कहते हुए वह रसोई में चली गई.

 

इधर, शाहाना ने जब सारा से पूछा तो उस ने भी समर के साथ अपनी मुहब्बत का खुलासा करते हुए कहा कि वह समर से ही शादी करेगी. यह सुन कर शाहाना को चक्कर सा आ गया.

 

 

उसे इस शादी से कोई एतराज नहीं था बल्कि वह तो खुश थी कि राधिका जैसी सहेली का खूबसूरत और स्मार्ट बेटा उस का दामाद बन जाएगा लेकिन उसे अपने बड़े भाई का चेहरा याद आ गया जिन्होंने बचपन में ही कह दिया था शाहाना तेरी बेटी को मैं अपने बेटे आसिफ के लिए मांगता हूं. जब उन्हें पता चलेगा कि सारा किसी हिंदू लड़के से प्यार करती है और उस से शादी करना चाहती है तो वे धर्म के नाम पर अड़ंगा जरूर लगाएंगे, यह सोच कर वह सिहर उठी.

 

गुरबीर कौर के बेटे ने भी कैथरीन की बेटी एंजेलिका से शादी का ऐलान कर दिया और कैथरीन की बेटी ने भी अपनी मां से साफसाफ बोल दिया कि मैं अमरीक से ही शादी करूंगी. कैथरीन के बुजुर्ग मातापिता चाहते थे कि अमरीक ईसाई धर्म अपना कर कैथरीन के यहां घरजंवाई बन कर रहे जिस के लिए गुरबीर कौर की सास किसी भी हालत में राजी नहीं होती क्योंकि उन की जान दोनों पोतों में बसती थी.

 

एक शाम को पार्क में घास पर चारों सहेलियां गंभीर सी बैठी हुई थीं. शाहाना ने थर्मस से डिस्पोजल गिलासों में चाय उड़ेलते हुए कहा, ‘‘तुम सब अपने मन की बात बताओ, क्या चाहती हो? सचसच बताना. हम चारों के धर्म बेशक अलग हैं लेकिन दोस्ती और मुहब्बत का कोई धर्म नहीं होता. जब हम लोगों की दोस्ती हुई थी तब हम ने एकदूसरे की धर्मजाति नहीं पूछी थी. हमारे बच्चों ने भी धर्मजाति देख कर मुहब्बत नहीं की है. उन्होंने सिर्फ प्यार किया है. सच्चा प्यार,’’ कहते हुए शाहाना खासी भावुक हो गई.

 

राधिका ने उस के  हाथों को मजबूती से थामते हुए कहा, ‘‘शाहाना, दिल से कह रही हूं मैं यह दोस्ती रिश्तेदारी में बदलना चाहती हूं लेकिन यहां मेरी सास नाम की एक मजबूत दीवार है जिन्हें आप धर्म की दीवार भी कह  सकती हैं. वे यह शादी नहीं होने देंगी, मैं यह जानती हूं. वे धर्मजाति के मकड़जाल में बुरी तरह फंसी हुई हैं. अगर वे अपने बेटे की बात मान लेतीं तो शायद आज संजय जिंदा होते मगर मेरे नहीं किसी और के होते,’’ कहते हुए राधिका अपने आंसू रोक न सकी. उस के आंसू पोंछते सभी गमगीन स्वर में बोलीं, ‘राधिका, हम दुख समझते हैं तुम्हारा.’

 

गुरबीर कौर निराशाभरे लहजे में बोली, ‘‘मैं तो तैयार हूं कैथरीन की बेटी से अपने बेटे की शादी के लिए और कैथरीन के मातापिता की शर्त भी मंजूर है मु?ो. मेरे पास 2 बेटे हैं. कोई प्रौब्लम नहीं है अगर मेरा एक बेटा अपनी ससुराल में बेटा बन कर रहे. लेकिन चाईजी, तौबातौबा, वे राजी नहीं होंगी.’’

 

‘‘मेरी भी ख्वाहिश है कि मैं भी अपनी बेटी को विदा करूं लेकिन मेरे मातापिता का कहना है कि तुम्हारे बुढ़ापे के सहारे लिए दामाद को घरजंवाई बन कर रहना होगा.’’

 

जिस की उम्मीद थी वही हुआ. राधिका की सास को जैसे ही पता चला, होहल्ला कर के पूरा घर सिर पर उठा लिया.

 

‘‘समर, तुझे अपने धर्म में कोई लड़की नहीं मिली जो दूसरे धर्म की लड़की को लाएगा. उस के आने से हमारा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा.’’

 

 

इधर शाहाना के भाई ने जब यह सुना कि सारा हिंदू लड़के से प्यार करती है और उस से ही शादी करना चाहती है तो उन्होंने शाहाना को ही आड़ेहाथों लिया, ‘‘और करो हिंदुओं से दोस्ती, कितनी चालाकी से अपने लड़के के जरिए सारा को फंसा लिया.’’

 

चाईजी ने भी जिद पकड़ ली. वे बारबार यही कहे जा रही थीं, ‘‘एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा यानी एक तो लड़की ईसाई, ऊपर से लड़के को बनाना चाहती है घरजंवाई. मेरे सीधेसादे पुत्तर को हथियाने की पूरी साजिश कर रही है जो मैं होने नहीं दूंगी.’’

 

कैथरीन के मातापिता भी अड़ गए. उन का कहना था, एंजेलिका चली जाएगी तो कैथरीन की देखभाल कौन करेगा? इसलिए उसे घरजंवाई बनना ही होगा.

 

पूरी सोसाइटी में चारों की दोस्ती और उन के बच्चों के प्यार के चर्चे थे. उन के रिश्तेदार, शुभचिंतक, पासपड़ोसियों ने उन चारों सहेलियों के दिमाग में धर्म का कीड़ा डाल दिया और अपनेअपने तरीकों से ऐसी शादी से होने वाले नुकसान की लंबीचौड़ी एक लिस्ट पकड़ा दी और उन्हें मजबूर किया कि वे ये शादियां न करें और अपनी दोस्ती तोड़ लें. जिन लोगों के पास उन से बात करने का समय नहीं था, अब उन के पास उन्हें बिन मांगी सलाह देने का खूब वक्त था.

 

 

चारों सहेलियों के कथित धर्मसमूहों ने अपनेअपने धर्म की खूबी और दूसरे धर्म की खामियों को बता कर उन के मन में जहर घोलने का काम युद्धस्तर पर शुरू कर दिया. ऐसे लोगों की बेबुनियादी बातों और उन के बिन मांगे ज्ञान व सलाह से चारों सहेलियां मानसिक रूप से परेशान हो गईं और उन के बच्चे भी परेशान हो कर सोचने लगे, जो कल तक हम से सीधे मुंह बात नहीं करते थे, आज हमारे भावी जीवन को ले कर इस तरह ऐक्टिव हो जाएंगे, यह तो हम ने कभी सोचा ही नहीं था. चलतेफिरते, जिम में, क्लब में,  लिफ्ट में सभी के पास यही काम था उन्हें बिन मांगी सलाह देना.

 

अपनी मांओं को इस तरह परेशान देख कर बच्चों ने कहा, ‘‘मां, कोई बात नहीं, हम कभी शादी ही नहीं करेंगे. लेकिन आप को इस तरह जलील और परेशान नहीं होने देंगे.’’

 

अपने प्रति बच्चों के प्रेम और त्याग की भावना को देख कर चारों सहेलियों ने  परिवार, रिश्तेदार, शुभचिंतकों, पड़ोसियों रूपी कथित समाज से दोदो हाथ करने का फैसला किया. राधिका अपनी सास से बोली, ‘‘मांजी, आप की जिद और जातिधर्म के कुचक्र में मैं अपने पति को खो चुकी हूं, अब अपने एकलौते बेटे को नहीं खोना चाहती. उस को वह हर खुशी दूंगी जिस का वह हकदार है. वह सारा से प्यार करता है, उस की शादी सारा से ही होगी.’’

 

‘‘बहू, तुम यह क्या बोल रही हो? सारा दूसरे धर्म की है अगर मैं मान भी जाऊं तो यह समाज क्या कहेगा?’’

 

‘‘जो कहे, उसे कहने दो. मुझे किसी की परवा नहीं.’’

 

‘‘सब रिश्तेदार हम से रिश्ता खत्म कर लेंगे.’’

 

‘‘शौक से खत्म कर लेने दो, कोई फर्क नहीं पड़ता. हमारा मुख्य रिश्ता तो हमारे बेटे से है,’’ राधिका ने दृढ़ स्वर में बोल कर अपनी सास को आगे न बोलने पर मजबूर कर दिया. उस की सास ने लाचारभाव से अपने पति की तरफ देखा, शायद वे उस का साथ दें. लेकिन वे खामोशी से सासबहू के वार्त्तालाप को सुन रहे थे. उन्होंने राधिका के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटा, समर की शादी सारा से करने की तुम तैयारी करो, इस समाज को जवाब देने के लिए मैं हूं.’’

 

शाहाना ने अपने बड़े भाई को मुंहतोड़ जवाब दिया, ‘‘भाई, बचपन में आप ने अपने बेटे और सारा का रिश्ता तय किया था लेकिन आसिफ बेरोजगार और आवारा किस्म का लड़का है, मैं उसे अपनी बेटी का हाथ नहीं दे सकती. अगर लायक भी होता तो भी न देती क्योंकि मेरी बेटी समर से प्यार करती है और मैं उस की शादी उस से ही करूंगी.’’

 

‘‘अपनी जबान को लगाम दे, शाहाना. तू सारा की शादी हिंदू लड़के से कर के बहुत पछताएगी,’’ उस का भाई गुस्से से चीखा.

 

‘‘कोई बात नहीं, भाई. मुझे पूरा यकीन है, मेरी सारा समर के साथ हमेशा खुश रहेगी.’’

 

इधर गुरबीर कौर की सास और कैथरीन के मातापिता में दोनों पक्षों (गुरबीर कौर, उस के पति और कैथरीन) के अथक प्रयासों से समझता हो गया कि अमरीक और एंजेलिका एकदूसरे के धर्म का पूरा मानसम्मान करेंगे और दोनों अपने घरों में नहीं रहेंगे बल्कि उसी शहर में अलग घर में रहेंगे लेकिन दोनों अपने घरपरिवार की जिम्मेदारियों का पूरा निर्वाह करेंगे. जल्दी ही सारा और समर की अमरीक और एंजेलिका की शादियां हो गईं. उन चारों सहेलियों की दोस्ती अब भी बरकरार थी पर अब लोग यह वाला जुमला फेंकने लगे थे : ‘चार समधिनें, खड़ीखड़ी.

Pappu Yadav को बिश्‍नोई गैंग की धमकी, ‘24 दिसंबर से पहले ऊपर पहुंचा देंगे…

Pappu Yadav को एक बार फिर धमकी मिली है. यह धमकी उन्‍हें 18 नवंबर को मिली है. उनको यह धमकी फोन पर दी गई, जो पाकिस्‍तान से किया गया था. इस धमकी में उन्‍हें 24 दिसंबर से पहले ऊपर पहुंचाने की बात की गई है. दरअसल 24 दिसंबर को पप्‍पू यादव का जन्‍म दिन है इसलिए उनको धमकाया गया कि उनको जन्‍मदिन के दिन ही मार दिया जाएगा. धमकी में यह कहा गया कि ऊपर जाकर ही अपना जन्‍मदिन मनाना. उस फोन में पप्‍पू यादव को धमकाते हुए कहा गया कि हमारे साथी ने तुम्‍हें नेपाल से फोन किया था कि तुम भाई से माफी मांग लो लेकिन तुम सुधरने का नाम नहीं ले रहे हो.

Pappu Yadav and Lawrence Bishnoi का मामला

मुंबई में बाबा सिद्दकी की हत्‍या हुई . इसके एक दिन बाद पप्‍पू यादव ने एक ऐसा ट्वीट लिखा जिसने तहलका ही मचा दिया. यह ट्वीट गैंगस्‍टर लौरेंस बिश्‍नोई के खिलाफ किया गया था. लौरेंस के खिलाफ इस तरह का ट्वीट और ऐसी बात करते सलमान खान को भी नहीं देखा गया . पप्‍पू यादव बिहार के पूर्णिया से सांसद हैं. उनकी पहचान एक दबंग बाहुबली नेता की रही है. इस ट्वीट में पप्‍पू ने लिखा था,
“यह देश है या हिजड़ों की फौज एक अपराधी जेल में बैठ चुनौती दे लोगों को मार रहा है,सब मुकदर्शक बने हैं, कभी मूसेवाला, कभी करणी सेना के मुखिया अब एक उद्योगपति राजनेता को मरवा डाला, कानून अनुमति दे तो 24घंटे में इस लारेंस बिश्नोई जैसे दो टके के अपराधी के पूरे नेटवर्क को खत्म कर दूंगा.”

पप्‍पू यादव के डर की शुरुआत

इसमें कोई शक नहीं कि इस ट्वीट के बाद हंगामा तो होना ही था. हालांकि सोशल मीडिया पर इन वाक्‍यों को शेयर करने के बाद लौरेंस की जम कर वाहवाही हुई, इनके चाहने वालों को ऐसा लग रहा था कि वाकई पप्‍पू यादव एक बाहुबली नेता है. पर इस घटना का एक सप्‍ताह भी नहीं हुआ था कि पप्‍पू यादव का एक वीडियो वायरल हो गया. इस वीडियो में वे एक पत्रकार को जोर से डांटते नजर आ रहे थे. दरअसल, एक प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने सांसद पप्‍पू यादव से लौरेंस को लेकर सवाल पूछ लिया था. इस पर पप्‍पू यादव गुस्‍से में लाल पीला होते हुए कहने लगे,”हमने पहले ही कह दिया था कि ये सवाल मत पूछिए. आप ज्यादा तेज मत बनिए. ये सवाल नहीं होगा.” इसके बाद यह खबर तेज हो गई कि पप्‍पू यादव को लौरेंस के गैंग से उनके ट्वीट को लेकर धमका दिया गया है. एक धमकी भरा औडियो भी वायरल हुआ जिसके बारे में कहा गया कि धमकी लौरेंस गैंग की ओर से ही दी गई थी, हालांकि इसकी अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है.
धमकी भरे औडियो का अंश , “तुझे बड़ा भाई बनाया, जेल से जैमर बंदकर कांफ्रेंस पर फोन किया. ऊपर से तूने भाई का फोन नहीं उठाया. मजाक समझ रखा है क्या… भाई को ये सिला दिया. शर्मिंदा करवा दिया. बड़े भाई का फर्ज तो निभा देता. तेरे से कुछ मांगा नहीं, फिर ऐसा क्यों किया. भाई से बात करवाऊंगा, मसला सुलझा ले अपना. तेरे सभी ठिकानों की जानकारी भाई के पास है.कच्चा चबा जाऊंगा.” मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसी औडियो में ठिकानों का भी जिक्र किया गया.

हाेम म‍िनिस्‍टर से मांगी मदद

अब सोशल मीडिया पर भी इस बाहुबली नेता को एक धमकी दी गई है. इस धमकी में कहा गया है कि औकात में रहकर चुपचाप राजनीति करो, ज्यादा इधर उधर तीन-पांच करके टीआरपी कमाने के चक्कर में मत पड़ो. वरना रेस्ट इन पीस (rest in peace) कर दिए जाओगे. यह धमकी किस दिन मिली यह अभी स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन पप्‍पू यादव ने होममिनिस्‍टर अमित शाह को पत्र लिखकर अपनी सुरक्षा की मांग की है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पप्‍पू यादव ने अपने लिए ‘वाई श्रेणी’ की सुरक्षा बढ़ाकर ‘जेड श्रेणी’ करने की मांग की है.

उन्‍होंने अपने पत्र में इस बात का जिक्र किया है कि वे अपने जीवन में एक बार बिहार विधान सभा सदस्‍य और 6 बार एमपी रह चुके हैं. इस पत्र में उन्‍होंने यह भी लिखा है कि उन्‍होंने बिहार के सीएम, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को भी इसकी जानकारी दी लेकिन इस पर किसी तरह की सुध नहीं ली गई . एक राजनैतिक व्‍यक्ति होने के कारण मैंने बिश्‍नोई गैंग का विरोध किया, तो मुझे उसकी तरह से धमकी मिलने लगी. उन्‍होंने पत्र में लिखा कि उनके लिए अतिरिक्‍त सुरक्षा की व्‍यवस्‍था की जाए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनकी हत्‍या हो सकती है जिसकी जिम्‍मेदारी केंद्र और बिहार सरकार की होगी. पप्‍पू यादव ने कहा कि उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा को बढ़ा कर जेड श्रेणी का कर दिया जाए.

गैंगस्‍टर हो रहे हैं बेकाबू

बौलीवुड के बाद अब गैंगस्‍टर पौलिटिशियन को खुलेआम धमका रहे हैं, जो चिंताजनक है. सलमान खान, शाहरुख खान, भोजपुरी एक्‍ट्रैस अक्षरा सिंह के बाद अब पौलिटिशियन पप्‍पू यादव को धमकाने की खबरें तेज हो गई है. एक समय था जब दाउद इब्राहीम, छोटा राजन, अबू सलेम की ही तूती बोलती थी, वो भी बौलीवुड तक ही सीमित थी. लेकिन अब लौरेंस बिश्‍नोई ने इस साम्राज्‍य पर कब्‍जा जमा लिया है और देश में ही नहीं विदेशी धरती पर भी अपने डर का सिक्‍का जमाना चाहता है, जो कनाडा में निज्‍जर के मामले में देखने को मिला. इस बार भी जो धमकी पप्‍पू यादव को दी गई है, वह कौल पाकिस्‍तान से आया हुआ बताया जा रहा है. बाबा सिद्दकी, सिद्धू मूसे वाला की हत्‍या कर लौरेंस ने भारत में अपनी दबंगई दिखा दी है

भ्रष्‍टाचार : ठंडे पड़ते रिश्ते

मोहिनी ने पर्स से रूमाल निकाला और चेहरा पोंछते हुए गोविंद सिंह के सामने कुरसी खींच कर बैठ गई. उस के चेहरे पर अजीब सी मुसकराहट थी.

‘‘चाय और ठंडा पिला कर तुम पिछले 1 महीने से मुझे बेवकूफ बना रहे हो,’’ मोहिनी झुंझलाते हुए बोली, ‘‘पहले यह बताओ कि आज चेक तैयार है या नहीं?’’

वह सरकारी लेखा विभाग में पहले भी कई चक्कर लगा चुकी थी. उसे इस बात की कोफ्त थी कि गोविंद सिंह को हिस्सा दिए जाने के बावजूद काम देरी से हो रहा था. उस के धन, समय और ऊर्जा की बरबादी हो रही थी. इस के अलावा गोविंद सिंह अश्लील एवं द्विअर्थी संवाद बोलने से बाज नहीं आता था.

गोविंद सिंह मौके की नजाकत को भांप कर बोला, ‘‘तुम्हें तंग कर के मुझे आनंद नहीं मिल रहा है. मैं खुद चाहता हूं कि साहब के दस्तखत हो जाएं किंतु विभाग ने जो एतराज तुम्हारे बिल पर लगाए थे उन्हें तुम्हारे बौस ने ठीक से रिमूव नहीं किया.’’

‘‘हमारे सर ने तो रिमूव कर दिया था,’’ मोहिनी बोली, ‘‘पर आप के यहां से उलटी खोपड़ी वाले क्लर्क फिर से नए आब्जेक्शन लगा कर वापस भेज देते हैं. 25 कूलरों की खरीद का बिल मैं ने ठीक कर के दिया था. अब उस पर एक और नया एतराज लग गया है.’’

‘‘क्या करें, मैडम. सरकारी काम है. आप ने तो एक ही दुकान से 25 कूलरों की खरीद दिखा दी है. मैं ने पहले भी आप को सलाह दी थी कि 5 दुकानों से अलगअलग बिल ले कर आओ.’’

‘‘फिर तो 4 दुकानों से फर्जी बिल बनवाने पड़ेंगे.’’

‘‘4 नहीं, 5 बिल फर्जी कहो. कूलर तो आप लोगों ने एक भी नहीं खरीदा,’’ गोविंद सिंह कुछ शरारत के साथ बोला.

‘‘ये बिल जिस ने भेजा है उस को बोलो. तुम्हारा बौस अपनेआप प्रबंध करेगा.’’

‘‘नहीं, वह नाराज हो जाएगा. उस ने इस काम पर मेरी ड्यूटी लगाई है.’’

‘‘तब, अपने पति को बोलो.’’

‘‘मैं इस तरह के काम में उन को शामिल नहीं करना चाहती.’’

‘‘क्यों? क्या उन के दफ्तर में सारे ही साधुसंत हैं. ऐसे काम होते नहीं क्या? आजकल तो सारे देश में मंत्री से

ले कर संतरी तक जुगाड़ और सैटिंग में लगे हैं.’’

मोहिनी ने जवाब में कुछ भी नहीं कहा. थोड़ी देर वहां पर मौन छाया रहा. आखिर मोहिनी ने चुप्पी तोड़ी. बोली, ‘‘तुम हमारे 5 प्रतिशत के भागीदार हो. यह बिल तुम ही क्यों नहीं बनवा देते?’’

‘‘बड़ी चालाक हो, मैडम. नया काम करवाओगी. खैर, मैं बनवा दूंगा. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘200-400 रुपए, जो तुम्हारी गांठ से खर्च हों, मुझ से ले लेना.’’

‘‘अरे, इतनी आसानी से पीछा नहीं छूटेगा. पूरा दिन हमारे साथ पिकनिक मनाओ. किसी होटल में ठहरेंगे. मौज करेंगे,’’ गोविंद सिंह बेशर्मी से कुटिल हंसी हंसते हुए मोहिनी को तौल रहा था.

‘‘मैं जा रही हूं,’’ कहते हुए मोहिनी कुरसी से उठ खड़ी हुई. उसे मालूम था कि इन सरकारी दलालों को कितनी लिफ्ट देनी चाहिए.

गोविंद सिंह समझौतावादी एवं धीरज रखने वाला व्यक्ति था. वह जिस से जो मिले, वही ले कर अपना काम निकाल लेता था. उस के दफ्तर में मोहिनी जैसे कई लोग आते थे. उन में से अधिकांश लोगों के काम फर्जी बिलों के ही होते थे.

सरकारी विभागों में खरीदारी के लिए हर साल करोड़ों रुपए मंजूर किए जाते हैं. इन को किस तरह ठिकाने लगाना है, यह सरकारी विभाग के अफसर बखूबी जानते हैं. इन करोड़ों रुपयों से गोविंद सिंह और मोहिनी जैसों की सहायता से अफसर अपनी तिजोरियां भरते हैं और किसी को हवा भी नहीं लगती.

25 कूलरों की खरीद का फर्जी बिल जुटाया गया और लेखा विभाग को भेज दिया गया. इसी तरह विभाग के लिए फर्नीचर, किताबें, गुलदस्ते, क्राकरी आदि के लिए भी खरीद की मंजूरी आई थी. अत: अलगअलग विभागों के इंचार्ज जमा हो कर बौस के साथ बैठक में मौजूद थे.

बौस उन्हें हिदायत दे रहे थे कि पेपर वर्क पूरा होना चाहिए, ताकि कभी अचानक ऊपर से अधिकारी आ कर जांच करें तो उन्हें फ्लौप किया जा सके. और यह तभी संभव है जब आपस में एकता होगी.

सारा पेपर वर्क ठीक ढंग से पूरा कराने के बाद बौस ने मोहिनी की ड्यूटी गोविंद सिंह से चेक ले कर आने के लिए लगाई थी. बौस को मोहिनी पर पूरा भरोसा था. वह पिछले कई सालों से लेखा विभाग से चेक बनवा कर ला रही थी.

गोविंद सिंह को मोहिनी से अपना तयशुदा शेयर वसूल करना था, इसलिए उस ने प्रयास कर के उस के पेपर वर्क में पूरी मदद की. सारे आब्जेक्शन दूर कर के चेक बनवा दिया. चेक पर दस्तखत करा कर गोविंद सिंह ने उसे अपने पास सुरक्षित रख लिया और मोहिनी के आने की प्रतीक्षा करने लगा.

दोपहर 2 बजे मोहिनी ने उस के केबिन में प्रवेश किया. वह मोहिनी को देख कर हमेशा की तरह चहका, ‘‘आओ मेरी मैना, आओ,’’ पर उस ने इस बार चाय के लिए नहीं पूछा.

मोहिनी को पता था कि चेक बन गया है. अत: वह खुश थी. बैठते हुए बोली, ‘‘आज चाय नहीं मंगाओगे?’’

गोविंद सिंह आज कुछ उदास था. बोला, ‘‘मेरा चाय पीने का मन नहीं है. कहो तो तुम्हारे लिए मंगा दूं.’’

‘‘अपनी उदासी का कारण मुझे बताओगे तो मन कुछ हलका हो जाएगा.’’

‘‘सुना है, वह बीमार है और जयप्रकाश अस्पताल में भरती है.’’

‘‘वह कौन…अच्छा, समझी, तुम अपनी पत्नी कमलेश की बात कर रहे हो?’’

गोविंद सिंह मौन रहा और खयालों में खो गया. उस की पत्नी कमलेश उस से 3 साल पहले झगड़ा कर के घर से चली गई थी. बाद में भी वह खुद न तो गोविंद सिंह के पास आई और न ही वह उसे लेने गया था. उन दोनों के कोई बच्चा भी नहीं था.

दोनों के बीच झगड़े का कारण खुद गोविंद सिंह था. वह घर पर शराब पी कर लौटता था. कमलेश को यह सब पसंद नहीं था. दोनों में पहले वादविवाद हुआ और बाद में झगड़ा होने लगा. गोविंद सिंह ने उस पर एक बार नशे में हाथ क्या उठाया, फिर तो रोज का ही सिलसिला चल पड़ा.

एक दिन वह घर लौटा तो पत्नी घर पर न मिली. उस का पत्र मिला था, ‘हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘चलो, बड़ा अच्छा हुआ जो अपनेआप चली गई,’ गोविंद सिंह ने सोचा कि बर्फ की सिल्ली की तरह ठंडी औरत के साथ गुजारा करना उसे भी कठिन लग रहा था. अब रोज रात में शराब पी कर आने पर उसे टोकने वाला कोई न था. जब कभी किसी महिला मित्र को साथ ले कर गोविंद सिंह घर लौटता तो सूना पड़ा उस का घर रात भर के लिए गुलजार हो जाता.

‘‘कहां खो गए गोविंद,’’ मोहिनी ने टोका तो गोविंद सिंह की तंद्रा भंग हुई.

‘‘कहीं भी नहीं,’’ गोविंद सिंह ने अचकचा कर उत्तर दिया. फिर अपनी दराज से मोहिनी का चेक निकाला और उसे थमा दिया.

चेक लेते हुए मोहिनी बोली, ‘‘मेरा एक कहना मानो तो तुम से कुछ कहूं. क्या पता मेरी बात को ठोकर मार दो. तुम जिद्दी आदमी जो ठहरे.’’

‘‘वादा करता हूं. आज तुम जो भी कहोगी मान लूंगा,’’ गोविंद सिंह बोला.

‘‘तुम कमलेश से अस्पताल में मिलने जरूर जाना. यदि उसे तुम्हारी मदद की जरूरत हो तो एक अच्छे इनसान की तरह पेश आना.’’

‘‘उसे मेरी मदद की जरूरत नहीं है,’’ मायूस गोविंद सिंह बोला, ‘‘यदि ऐसा होता तो वह मुझ से मिलने कभी न कभी जरूर आती. वह एक बार गुस्से में जो गई तो आज तक लौटी नहीं. न ही कभी फोन किया.’’

‘‘तुम अपनी शर्तों पर प्रेम करना चाहते हो. प्रेम में शर्त और जिद नहीं चलती. प्रेम चाहता है समर्पण और त्याग.’’

‘‘तुम शायद ऐसा ही कर रही हो?’’

‘‘मैं समर्पण का दावा नहीं कर सकती पर समझौता करना जरूर सीख लिया है. आजकल प्रेम में पैसे की मिलावट हो गई है. पर तुम्हारी पत्नी को तुम्हारे वेतन से संतोष था. रिश्वत के चंद टकों के बदले में वह तुम्हारी शराब पीने की आदत और रात को घर देर से आने को बरदाश्त नहीं कर सकती थी.’’

‘‘मैं ने तुम से वादा कर लिया है इसलिए उसे देखने अस्पताल जरूर जाऊंगा. लेकिन समझौता कर पाऊंगा या नहीं…अभी कहना मुश्किल है,’’ गोविंद सिंह ने एक लंबी सांस ले कर उत्तर दिया.

मोहिनी को गोविंद सिंह की हालत पर तरस आ रहा था. वह उसे उस के हाल पर छोड़ कर दफ्तर से बाहर आ गई और सोचने लगी, इस दुनिया में कौन क्या चाहता है? कोई धनदौलत का दीवाना है तो कोई प्यार का भूखा है, पर क्या हर एक को उस की मनचाही चीज मिल जाती है? गोविंद सिंह की पत्नी चाहती है कि ड््यूटी पूरी करने के बाद पति शाम को घर लौटे और प्रतीक्षा करती हुई पत्नी की मिलन की आस पूरी हो.

गोविंद सिंह की सोच अलग है. वह ढेरों रुपए जमा करना चाहता है ताकि उन के सहारे सुख खरीद सके. पर रुपया है कि जमा नहीं होता. इधर आता है तो उधर फुर्र हो जाता है.

मोहिनी बाहर आई तो श्याम सिंह चपरासी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी, आप के चेक पर साहब से दस्तखत तो मैं ने ही कराए थे. आप का काम था इसलिए जल्दी करा दिया. वरना यह चेक अगले महीने मिलता.’’

मोहिनी ने अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकाला. फिर मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘श्याम सिंह, एक बात सचसच बताओगे, तुम रोज इनाम से कितना कमा लेते हो?’’

‘‘यही कोई 400-500 रुपए,’’ श्याम सिंह बहुत ही हैरानी के साथ बोला.

‘‘तब तो तुम ने बैंक में बहुत सा धन जमा कर लिया होगा. कोई दुकान क्यों नहीं खोल लेते?’’

‘‘मैडमजी,’’ घिघियाते हुए श्याम सिंह बोला, ‘‘रुपए कहां बचते हैं. कुछ रुपया गांव में मांबाप और भाई को भेज देता हूं. बाकी ऐसे ही खानेपीने, नाते- रिश्तेदारों पर खर्च हो जाता है. अभी पिछले महीने साले को बेकरी की दुकान खुलवा कर दी है.’’

‘‘फिर वेतन तो बैंक में जरूर जमा कर लेते होंगे.’’

‘‘अरे, कहां जमा होता है. अपनी झोंपड़ी को तोड़ कर 4 कमरे पक्के बनाए थे. इसलिए 1 लाख रुपए सरकार से कर्ज लिया था. वेतन उसी में कट जाता है.’’

श्याम सिंह की बातें सुन कर मोहिनी के सिर में दर्द हो गया. वह सड़क पर आई और आटोरिकशा पकड़ कर अपने दफ्तर पहुंच गई. बौस को चेक पकड़ाया और अपने केबिन में आ कर थकान उतारने लगी.

मोहिनी की जीवन शैली में भी कोई आनंद नहीं था. वह अकसर देर से घर पहुंचती थी. जल्दी पहुंचे भी तो किस के लिए. पति देर से घर लौटते थे. बेटा पढ़ाई के लिए मुंबई जा चुका था. सूना घर काटने को दौड़ता था. बंगले के गेट से लान को पार करते हुए वह थके कदमों से घर के दरवाजे तक पहुंचती. ताला खोलती और सूने घर की दीवारों को देखते हुए उसे अकेलेपन का डर पैदा हो जाता.

पति को वह उलाहना देती कि जल्दी घर क्यों नहीं लौटते हो? पर जवाब वही रटारटाया होता, ‘मोहिनी… घर जल्दी आने का मतलब है अपनी आमदनी से हाथ धोना.’

ऊपरी आमदनी का महत्त्व मोहिनी को पता है. यद्यपि उसे यह सब अच्छा नहीं लगता था. पर इस तरह की जिंदगी जीना उस की मजबूरी बन गई थी. उस की, पति की, गोविंद सिंह की, श्याम सिंह की, बौस की और जाने कितने लोगों की मजबूरी. शायद पूरे समाज की मजबूरी.

भ्रष्टाचार में कोई भी जानबूझ कर लिप्त नहीं होना चाहता. भ्रष्टाचारी की हर कोई आलोचना करता है. दूसरे भ्रष्टचारी को मारना चाहता है. पर अपना भ्रष्टाचार सभी को मजबूरी लगता है. इस देश में न जाने कितने मजबूर पल रहे हैं. आखिर ये मजबूर कब अपने खोल से बाहर निकल कर आएंगे और अपनी भीतरी शक्ति को पहचानेंगे.

मोहिनी का दफ्तर में मन नहीं लग रहा था. वह छुट्टी ले कर ढाई घंटे पहले ही घर पहुंच गई. चाय बना कर पी और बिस्तर पर लेट गई. उसे पति की याद सताने लगी. पर दिनेश को दफ्तर से छुट्टी कर के बुलाना आसान काम नहीं था, क्योंकि बिना वजह छुट्टी लेना दिनेश को पसंद नहीं था. कई बार मोहिनी ने आग्रह किया था कि दफ्तर से छुट्टी कर लिया करो, पर दिनेश मना कर देता था.

सच पूछा जाए तो इस हालात के लिए मोहिनी भी कम जिम्मेदार न थी. वह स्वयं ही नीरस हो गई थी. इसी कारण दिनेश भी पहले जैसा हंसमुख न रह गया था. आज पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि जीवन का सच्चा सुख तो उस ने खो दिया. जिम्मेदारियों के नाम पर गृहस्थी का बोझ उस ने जरूर ओढ़ लिया था, पर वह दिखावे की चीज थी.

इस तरह की सोच मन में आते ही मोहिनी को लगा कि उस के शरीर से चिपकी पत्थरों की परत अब मोम में बदल गई है. उस का शरीर मोम की तरह चिकना और नरम हो गया था. बिस्तर पर जैसे मोम की गुडि़या लेटी हो.

उसे लगा कि उस के भीतर का मोम पिघल रहा है. वह अपनेआप को हलका महसूस करने लगी. उस ने ओढ़ी हुई चादर फेंक दी और एक मादक अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से अलग खड़ी हुई. तभी उसे शरारत सूझी. दूसरे कमरे में जा कर दिनेश को फोन मिलाया और घबराई आवाज में बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

अचानक मोहिनी का फोन आने से दिनेश घबरा सा गया. उस ने पूछा, ‘‘खैरियत तो है. कैसे फोन किया?’’

‘‘बहुत घबराहट हो रही है. डाक्टर के पास नहीं गई तो मर जाऊंगी. तुम जल्दी आओ,’’ इतना कहने के साथ ही मोहिनी ने फोन काट दिया.

अब मोहिनी के चेहरे पर मुसकराहट थी. बड़ा मजा आएगा. दिनेश को दफ्तर छोड़ कर तुरंत घर आना होगा. मोहिनी की शरारत और शोखी फिर से जाग उठी थी. वह गाने लगी, ‘तेरी दो टकिया दी नौकरी में, मेरा लाखों का सावन जाए…’

गीजर में पानी गरम हो चुका था. वह बाथरूम में गई. बड़े आराम से अपना एकएक कपड़ा उतार कर दूर फेंक दिया और गरम पानी के फौआरे में जा कर खड़ी हो गई.

गरम पानी की बौछारों में मोहिनी बड़ी देर तक नहाती रही. समय का पता ही नहीं चला कि कितनी देर से काल बेल बज रही थी. शायद दिनेश आ गया होगा. मोहिनी अभी सोच ही रही थी कि पुन: जोरदार, लंबी सी बेल गूंजने लगी.

बाथरूम से निकल कर मोहिनी वैसी ही गीला शरीर लिए दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी. आई ग्लास से झांक कर देखा तो दिनेश परेशान चेहरा लिए खड़ा था.

मोहिनी ने दरवाजा खोला. दिनेश ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, उसे देख कर उस की आंखें खुली की खुली रह गईं, किसी राजा के रंगमहल में फौआरे के मध्य खड़ी नग्न प्रतिमा की तरह एकदम जड़ हो कर मोहिनी खड़ी थी. दिनेश भी एकदम जड़ हो गया. उसे अपनी आंखों पर भरोसा न हुआ. उसे लगा कि वह कोई सपना देख रहा है, किसी दूसरे लोक में पहुंच गया है.

2 मिनट के बाद जब उस ने खुद को संभाला तो उस के मुंह से निकला, ‘‘तुम…आखिर क्या कर रही हो?’’

मोहिनी तेजी से आगे बढ़ी और दिनेश को अपनी बांहों में भर लिया. दिनेश के सूखे कपड़ों और उस की आत्मा को अपनी जुल्फों के पानी से भिगोते हुए वह बोल पड़ी, ‘‘बताऊं, क्या कर रही हूं… भ्रष्टाचार?’’और इसी के साथ दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े.

Teenage Problem : बेटे को न बनने दे Mama’s boy

जो टीनएजर्स अपनी मां का पल्लू सही समय पर नहीं छोड़ते उन में डिपेंडेंसी की आदत पड़ जाती है, यह आदत आगे जा कर उन के जीवन पर बुरा असर डालती है. कैसे, जानिए आप भी.

वाइफ कहती है तुम तो ममाज बौय हो, कोई काम खुद से नहीं कर सकते. हर काम उन से परमीशन ले कर करते हो. शादी हो गई फिर भी मां के पल्लू से बंधे हो.
उधर मां कहती है, शादी के बाद तू बदल गया है. अपनी बीवी की ही सुनता है. उस के पल्लू से बंधा घूमता है.
यानी मां, बेटा और बीवी तीनों परेशान हैं.
श्रुति जिस की शादी को 14 साल हो गए हैं. उस की शिकायत है कि आज भी छोटीछोटी बातों पर उस का पति अपनी मां के साथ उस की तुलना करता है, जैसे कि परांठे मेरी मौम से बेहतर कोई नहीं बना सकता.
इसी तरह आरती जिस की शादी को अभी सिर्फ 2 ही साल हुए हैं, कहती है, ‘शादी के बाद भी मेरे पति पूरी तरह से अपनी मां पर ही डिपेंडेंट हैं. वे हर छोटीबड़ी बात पर अपनी मां की राय लेते हैं, जैसे लंच या डिनर में क्या बनेगा, हम दोनों घूमने कहां जाएं, अपने कमरे के लिए किस कलर के कर्टेन खरीदें. बहुत इरिटेट करता है मुझे यह सब. कभीकभी तो मुझे लगता है कि ऐसा ही था तो शादी ही क्यों की. मेरे पति हमेशा अपनी मां के पल्लू से बंधे रहते हैं, उन की नजर में मेरी कोई वैल्यू ही नहीं है. मेरे पति की हर बात में अपनी मां को शामिल करने वाले नेचर ने हम दोनों के बीच दूरियां पैदा कर दी हैं.
रोहित की शादी को 6 महीने ही हुए हैं. उस की मौम उस से कहती हैं, ‘शादी के बाद तू बदल गया है. तुझे मेरी तो कोई परवा ही नहीं रही. अब तो तू अपनी बीवी का हो गया है.’ जबकि, रोहित का मानना है कि शादी के बाद मुझ में कोई बदलाव नहीं आया है. हां, पर अब जो लड़की मेरे लिए अपना घर, अपना परिवार छोड़ कर आई है उस का ध्यान भी तो मुझे ही रखना पड़ेगा. ऐसे में शादी के बाद ‘तू बदल गया है’ सुनना बहुत बुरा लगता है.

इस समस्या का आखिर हल क्या है?

ये तो आप सभी जानते हैं कि अंबिलिकल कार्ड यानी गर्भनाल वह होता है जिस से कोई भी बच्चा जन्म से पहले मां से जुड़ा होता है और जब एक मां बच्चे को इस दुनिया में लाती है तब यह कार्ड पहली बार काटी जाती है. लेकिन दूसरी बार जब बेटा 10 -11 साल का हो जाए तब उसे खुद मां से यह कार्ड या कनैक्शन काट लेना चाहिए. खुद को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अपनी फ्यूचर लाइफ को हैप्पी बनाने के लिए उसे हर बात के लिए मां का मुंह ताकना बंद कर देना चाहिए.
ऐसा करना मां, बेटे, बीवी तीनों के लिए सही है क्योंकि तब न मां को शिकायत होगी कि उस का बेटा अब उस का नहीं रहा बीवी का हो गया. मां भी खुद पर ध्यान दे पाएगी.
बीवी को शिकायत नहीं होगी कि वह ममाज बौय है. बेटा भी दो रिश्तों मां और बीवी के बीच सैंडविच नहीं बनेगा. बैलेंस बना कर चल पाएगा. उस की भी अपनी लाइफ होगी, इंडिपेंडैंट होगा.

आइए जानते हैं यह कब और कैसे होगा

बेटा 10 -11 साल का होते ही मां के पल्लू से निकल जाए.
खुद किचन के काम करने लगे
लड़का 10 -11 साल का होते ही किचन में सब्ज़ी काटना, धुले बरतन पोंछ कर जमाना, शाम की चाय बनाना शुरु कर दे, जिस से उसे समझ आ जाए कि खाना बनाना उतना आसान नहीं है जितना उसे लगता है. इस से उसे खाना और खाना बनाने वाले की मेहनत की कद्र भी होगी और झूठा खाना छोड़ कर वह कभी खाना बरबाद भी नहीं करेगा.
लड़का बेसिक खाना बनाना 10 -11 साल की उम्र से सीखना शुरू कर दे जिस से जब वह बड़ा होगा, जौब, पढ़ाई के सिलसिले में अलग रहेगा या शादी के बाद अपनी गृहस्थी बसाएगा तो खुद बना कर खाने के अलावा अपने पार्टनर की भी कुकिंग में मदद कर पाएगा.

अपना बैग ख़ुद पैक करे
सुबहसुबह अपना स्कूलबैग तैयार करने के लिए डिपेंड होने के बजाय जितनी कम उम्र से हो सके अपना स्कूलबैग खुद तैयार करना सीखे. कहीं घूमने भी जाना हो तो अपना बैग ख़ुद तैयार करे. कपड़े फोल्ड करने के साथ टौयलेटरीज़ (ब्रश, साबुन, शैंपू आदि) भी ख़ुद रखना सीख ले.

साफसफाई की आदत
10 -11 साल की उम्र के बाद बच्चा अपने खुद के पर्सनल कपड़े धोना सीखे क्योंकि यह हाइजीन के हिसाब से भी जरूरी है और आगे जा कर उसे होस्टल, पीजी और शादी के बाद मां या वाइफ पर डिपेंड नहीं होना पड़ेगा और मां व बीवी के बीच उसे सैंडविच भी नहीं बनना पड़ेगा.
कुल मिला कर शादी से पहले हर लड़के को इंडिपेंडेंट और बेसिक लाइफ स्किल्स में ट्रेंड हो जाना चाहिए जिस से होने वाली वाइफ को हसबैंड को बेसिक ट्रेनिंग देने में अपनी एनर्जी और टाइम वेस्ट न करना पड़े.

इंडिपेंडैंट बनने में ही भलाई
घर के काम सीख कर जब कोई भी लड़का बचपन से ही जिम्मेदार बनता है, मेहनत करता है तो उन में कौन्फिडैंस आता है और वह रिस्पौन्सिबल बनता है. वैसे भी, जीवन में सफल होने के लिए इंडिपेंडैंट होने की बेहद ज़रूरत होती है. याद रखिए, किसी पर भी डिपेंड लोगों को कोई पसंद नहीं करता, खासकर आजकल की वाइफ तो बिलकुल भी नहीं.

अपनी लाइफ के डिसिजन खुद ले
10 -11 साल का होते ही ‘मम्मा, मैं स्कूल कैंप में चला जाऊं, मैं क्रिकेट एकेडेमी में एडमिशन ले लूं, फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने जाऊं, आज कौन सी शर्ट पहनूं’ जैसे छोटेछोटे निर्णय खुद लें, मां से न पूछें क्योंकि ऐसे बेटे ही आगे चल कर पक्का ममाज बौयज बनते हैं और शादी के बाद बेचारी वाइफ की लाइफ बरबाद कर देते हैं व पूरी तरह उस के नहीं हो पाते.

 

अपने ही घर में खुद के काम करना सीखना कहां से गलत?
ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार भारत में जहां 5 -14 साल के 35 मिलियन से भी ज्यादा बच्चे छोटू बन कर कारखानों में बाल मज़दूरी, होटलों, ढाबों, घरों में काम करने को मजबूर हैं वहां 10 -11 साल में अपने ही घर में खुद के काम करना या सीखना आप को आगे के लिए मजबूत बनाएगा.

Hindi Story : क्षणिक प्‍यार की बोली

सौरभ दफ्तर के काम में बिजी था कि अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी. मोबाइल की स्क्रीन पर कावेरी का नाम देख कर उस का दिल खुशी से उछल पड़ा.

कावेरी सौरभ की प्रेमिका थी. उस ने मोबाइल फोन पर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से कावेरी की आवाज आई, ‘तुम्हारा प्यार पाने के लिए मेरा मन आज बहुत बेकरार है. जल्दी से घर आ जाओ.’

‘‘तुम्हारा पति घर पर नहीं है क्या?’’ सौरभ ने पूछा.

‘नही,’ उधर से आवाज आई.

‘‘वह आज दफ्तर नहीं आया, तो मुझे लगा कि वह छुट्टी ले कर तुम्हारे साथ मौजमस्ती कर रहा है,’’ सौरभ मुसकराते हुए बोला.

‘ऐसी बात नहीं है. वह कुछ जरूरी काम से अपने एक रिश्तेदार के घर आसनसोल गया है. रात के 10 बजे से पहले लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए मैं तुम्हें बुला रही हूं. तनमन की प्यास बुझाने के लिए हमारे पास अच्छा मौका है. जल्दी से यहां आ जाओ.’

‘‘मैं शाम के साढ़े 4 बजे तक जरूर आ जाऊंगा. जिस तरह तुम मेरा प्यार पाने के लिए हर समय बेकरार रहती हो, उसी तरह मैं भी तुम्हारा प्यार पाने के लिए बेकरार रहता हूं.

‘‘तुम्हारे साथ मुझे जो खुशी मिलती है, वैसी खुशी अपनी पत्नी से भी नहीं मिलती है. हमबिस्तरी के समय वह एक लाश की तरह चुपचाप पड़ी रहती है, जबकि तुम प्यार के हर लमहे में खरगोश की तरह कुलांचें मारती हो. तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूं.’’

थोड़ी देर तक कुछ और बातें करने के बाद सौरभ ने मोबाइल फोन काट दिया और अपने काम में लग गया.

4 बजे तक उस ने अपना काम निबटा लिया और दफ्तर से निकल गया.

सौरभ कावेरी के घर पहुंचा. उस समय शाम के साढ़े 4 बज गए थे. कावेरी उस का इंतजार कर रही थी.

जैसे ही सौरभ ने दरवाजे की घंटी बजाई, कावेरी ने झट से दरवाजा खोल दिया. मानो वह पहले से ही दरवाजे पर खड़ी हो.

वे दोनों वासना की आग से इस तरह झुलस रहे थे कि फ्लैट का मेन दरवाजा बंद करना भूल गए और झट से बैडरूम में चले गए.

कावेरी को बिस्तर पर लिटा कर सौरभ ने उस के होंठों को चूमा, तो वह भी बेकरार हो गई और सौरभ के बदन से मनमानी करने लगी.

जल्दी ही उन दोनों ने अपने सारे कपड़े उतारे और धीरेधीरे हवस की मंजिल की तरफ बढ़ते चले गए.

अभी वे दोनों मंजिल पर पहुंच भी नहीं पाए थे कि किसी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

वे दोनों घबरा गए और झट से एकदूसरे से अलग हो गए.

सौरभ ने दरवाजे की तरफ देखा, तो बौखला गया. दरवाजे पर कावेरी का पति जयदेव खड़ा था. उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.

उन दोनों को इस बात का एहसास हुआ कि उन्होंने मेन दरवाजा बंद नहीं किया था.

कावेरी ने झट से पलंग के किनारे रखे अपने कपड़े उठा लिए. सौरभ ने भी अपने कपड़े उठाए, मगर जयदेव ने उन्हें पहनने नहीं दिया.

जयदेव उन को गंदीगंदी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं चुप रहने वालों में से नहीं हूं. अभी मैं आसपड़ोस के लोगों को बुलाता हूं.’’

कावेरी ने जयदेव के पैर पकड़ लिए. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए. अब ऐसी गलती कभी नहीं करूंगी.’’

‘‘मैं तुम्हें हरगिज माफ नहीं कर सकता. तुम तो कहती थीं कि मैं कभी किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने नहीं दूंगी. फिर अभी सौरभ के साथ क्या कर रही थीं?’’

कावेरी कुछ कहती, उस से पहले जयदेव ने सौरभ से कहा, ‘‘तुम तो अपनेआप को मेरा अच्छा दोस्त बताते थे. यही है तुम्हारी दोस्ती? दोस्त की पत्नी के साथ रंगरलियां मनाते हो और दोस्ती का दम भरते हो. मैं तुम्हें भी कभी माफ नहीं करूंगा.

‘‘फोन कर के मैं तुम्हारी पत्नी को बुलाता हूं. उसे भी तो पता चले कि उस का पति कितना घटिया है. दूसरे की पत्नी के साथ हमबिस्तरी करता है.’’

‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरी पत्नी को कावेरी के बारे में पता चल जाएगा, तो वह मुझे छोड़ कर चली जाएगी.

‘‘मैं कसम खाता हूं कि अब कभी कावेरी से संबंध नहीं बनाऊंगा,’’ सौरभ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सौरभ के गिड़गिडाने का जयदेव पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम दोनों को कभी माफ नहीं कर सकता. तुम दोनों की करतूत जगजाहिर करने के बाद आज ही कावेरी को घर से निकाल दूंगा. उस के बाद तुम्हारी जो मरजी हो, वह करना. कावेरी से संबंध रखना या न रखना, उस से मुझे कोई लेनादेना नहीं.’’

जयदेव चुप हो गया, तो कावेरी फिर गिड़गिड़ा कर उस से माफी मांगने लगी. सौरभ ने भी ऐसा ही किया. जयदेव के पैर पकड़ कर उस से माफी मांगते हुए कहा कि अगर वह उसे माफ नहीं करेगा, तो उस के पास खुदकुशी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाएगा, क्योंकि वह अपनी पत्नी की नजरों में गिर कर नहीं जी पाएगा.

आखिरकार जयदेव पिघल गया. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम्हें माफ तो नहीं कर सकता, मगर जबान बंद रखने के लिए तुम्हें 3 लाख रुपए देने होंगे.’’

‘‘3 लाख रुपए…’’ यह सुन कर सौरभ की घिग्घी बंध गई. उस का सिर भी घूमने लगा.

बात यह थी कि सौरभ की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह जयदेव को 3 लाख रुपए दे सके. उसे जितनी तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा तो चल जाता था, मगर बचत नहीं हो पाती थी.

सौरभ ने अपनी माली हालत के बारे में जयदेव को बताया, मगर वह नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी माली हालत से मुझे कुछ लेनादेना नहीं है. अगर तुम मेरा मुंह बंद रखना चाहते हो, तो रुपए देने ही होंगे.’’

सौरभ को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस मुसीबत से कैसे निबटे?

सौरभ को चिंता में पड़ा देख कावेरी उस के पास आ कर बोली, ‘‘तुम इतना सोच क्यों रहे हो? रुपए बचाने की सोचोगे, तो हमारी इज्जत चली जाएगी. लोग हमारी असलियत जान जाएंगे.

‘‘तुम खुद सोचो कि अगर तुम्हारी पत्नी को सबकुछ मालूम हो जाएगा, तो क्या वह तुम्हें माफ कर पाएगी?

‘‘वह तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी, तो तुम्हारी जिंदगी क्या बरबाद नहीं हो जाएगी? मेरी तो कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी तो औलाद है, वह भी बेटी. अभी उस की उम्र भले ही 6 साल है, मगर बड़ी होने के बाद जब उसे तुम्हारी सचाई का पता चलेगा, तो सोचो कि उस के दिल पर क्या गुजरेगी. तुम से वह इतनी ज्यादा नफरत करने लगेगी कि जिंदगीभर तुम्हारा मुंह नहीं देखेगी.’’

सौरभ पर कावेरी के समझाने का तुरंत असर हुआ. वह जयदेव को 3 लाख रुपए देने के लिए राजी हो गया, मगर इस के लिए उस ने जयदेव से एक महीने का समय मांगा. कुछ सोचते हुए जयदेव ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक महीने की मुहलत दे सकता हूं, मगर इस के लिए तुम्हें कोई गारंटी देनी होगी.’’

‘‘कैसी गारंटी?’’ सौरभ ने जयदेव से पूछा.

‘‘मैं कावेरी के साथ तुम्हारा फोटो खींच कर अपने मोबाइल फोन में रखूंगा. बाद में अगर तुम अपनी जबान से मुकर जाओगे, तो फोटो सब को दिखा दूंगा.’’

मजबूर हो कर सौरभ ने जयदेव की बात मान ली. जयदेव ने कावेरी के साथ सौरभ का बिना कपड़ों वाला फोटो खींच कर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

शाम के 7 बजे जब सौरभ कावेरी के फ्लैट से बाहर आया, तो बहुत परेशान था. वह लगातार यही सोच रहा था कि 3 लाख रुपए कहां से लाएगा?

सौरभ कोलकाता का रहने वाला था. उलटाडांगा में उस का पुश्तैनी मकान था. उस की शादी अनीता से तकरीबन 8 साल पहले हुई थी.

सौरभ की पत्नी अनीता भी कोलकाता की थी. अनीता जब बीए के दूसरे साल में थी, तभी उस के मातापिता ने उस की शादी सौरभ से कर दी थी. सौरभ ने उस की पढ़ाई छुड़ा कर उसे घर के कामों में लगा दिया. अनीता भी आगे नहीं पढ़ना चाहती थी, इसलिए तनमन से घर संभालने में जुट गई थी.

शादी के समय सौरभ के मातापिता जिंदा थे, मगर 2 साल के भीतर उन दोनों की मौत हो गई थी. तब से अनीता ने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.

मगर शादी के 5 साल बाद अचानक सौरभ ने अपना मन अनीता से हटा लिया था और वह मनचाही लड़की की तलाश में लग गया था.

बात यह थी कि एक दिन सौरभ ने अपने दोस्त के घर ब्लू फिल्म देखी थी. उस के बाद उस का मन बहक गया था. ब्लू फिल्म की तरह उस ने भी मजा लेने की सोची थी.

उसी दिन दोस्त से ब्लू फिल्म की सीडी ले कर सौरभ घर आया. बेटी जब सो गई, तो टैलीविजन पर उस ने अनीता को फिल्म दिखाना शुरू किया.

कुछ देर बाद अनीता समझ गई कि यह कितनी गंदी फिल्म है. फिल्म बंद कर के वह सौरभ से बोली, ‘‘आप को ऐसी गंदी फिल्म देखने की लत किस ने लगाई?’’

‘‘मैं ने यह फिल्म आज पहली बार देखी है. मुझे अच्छी लगी, इसलिए तुम्हें दिखाई है कि फिल्म में लड़की ने अपने मर्द साथी के साथ जिस तरह की हरकतें की हैं, उसी तरह की हरकतें तुम मेरे साथ करो.’’

‘‘मुझ से ऐसा नहीं होगा. मैं ऐसा करने से पहले ही शर्म से मर जाऊंगी.’’

‘‘तुम एक बार कर के तो देखो, शर्म अपनेआप भाग जाएगी.’’

‘‘मुझे शर्म को भगाना नहीं, अपने साथ रखना है. आप जानते नहीं कि शर्म के बिना औरतें कितनी अधूरी रहती हैं. मेरा मानना है कि हर औरत को शर्म के दायरे में रह कर ही हमबिस्तरी करनी चाहिए.

‘‘आप अपने दिमाग से गंदी बातें निकाल दीजिए. हमबिस्तरी में अब तक जैसा चलता रहा है, वैसा ही चलने दीजिए. सच्चा मजा उसी में है. अगर मुझ पर दबाव बनाएंगे, तो मैं मायके चली जाऊंगी.’’

उस समय तो सौरभ की बोलती बंद हो गई, मगर उस ने अपनी चाहत को दफनाया नहीं. उस ने मन ही मन ठान लिया कि पत्नी न सही, कोई और सही, मगर वह मन की इच्छा जरूर पूरी कर के रहेगा.

उस के बाद सौरभ मनचाही लड़की की तलाश में लग गया. इस के लिए एक दिन उस ने अपने दोस्त रमेश से बात भी की. रमेश उसी कंपनी में था, जिस में वह काम करता था.

रमेश ने सौरभ को सुझाव दिया, ‘‘तुम्हारी इच्छा शायद ही कोई घरेलू औरत पूरी कर सके, इसलिए तुम्हें किसी कालगर्ल से संबंध बनाना चाहिए.’’

सौरभ को रमेश की बात जंच गई. कुछ दिन बाद उसे एक कालगर्ल मिल भी गई.

एक दिन सौरभ रात के 9 बजे कालगर्ल के साथ होटल में गया. वह कालगर्ल के साथ मनचाहा करता, उस से पहले ही होटल पर पुलिस का छापा पड़ गया. सौरभ गिरफ्तारी से बच न सका.

सौरभ ने पत्नी को बताया था कि एक दोस्त के घर पार्टी है. पार्टी रातभर चलेगी, इसलिए वह अगले दिन सुबह ही घर आ पाएगा या वहीं से दफ्तर चला जाएगा. इसी वजह से पत्नी की तरफ से वह बेखौफ था.

गिरफ्तारी की बात सौरभ ने फोन पर रमेश से कही, तो अगले दिन उस ने जमानत पर उसे छुड़ा लिया.

सौरभ को लगा था कि उस की गिरफ्तारी की बात कोई जान नहीं पाएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. न जाने कैसे धीरेधीरे दफ्तर के सारे लोगों को इस बात का पता चल गया. शर्मिंदगी से सौरभ कुछ दिनों तक अपने दोस्तों से नजरें नहीं मिला पाया, लेकिन 2-3 महीने बाद वह सामान्य हो गया. इस में उस के एक दोस्त जयदेव ने मदद की था.

जयदेव 6 महीने पहले ही पटना से तबादला हो कर यहां आया था. कालगर्ल मामले में सौरभ दफ्तर में बदनाम हो गया था, तो जयदेव ने ही उसे टूटने से बचाया था.

एक दिन जयदेव उसे अकेले में ले गया और तरहतरह से समझाया, तो उस ने अपने दोस्तों से मुकाबला करने की हिम्मत जुटा ली.

अब दफ्तर में सारे दोस्त सौरभ से पहले की तरह अच्छा बरताव करने लगे, तो सौरभ ने जयदेव की खूब तारीफ की और उस से दोस्ती कर ली.

दोस्ती के 6 महीने बीत गए, तो एक दिन जयदेव सौरभ को अपने घर ले गया.

जयदेव की पत्नी कावेरी को सौरभ ने देखा, तो उस की खूबसूरती पर लट्टू  हो गया.

कुछ देर तक कावेरी से बात करने पर सौरभ ने महसूस किया कि वह जितनी खूबसूरत है, उस से ज्यादा खुले विचार की है.

सौरभ जयदेव के घर से जाने लगा, तो कावेरी उसे दरवाजे पर छोड़ने आई. कावेरी उस से बोली, ‘जब भी मौका मिले, आप  बेखटक आइएगा. मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

उस समय जयदेव वहां पर नहीं था, इसलिए सौरभ ने मुसकराते हुए मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘क्या मैं जयदेव की गैरहाजिरी में भी आ सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं? आप का जब जी चाहे आ जाइएगा, मैं स्वागत करूंगी.’’

‘‘तब तो मैं जरूर आऊंगा. देखूंगा कि उस की गैरहाजिरी में आप मेरा स्वागत कैसे करती हैं?’’

‘‘जरूर आइएगा. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं होनें दूंगी. तनमन से स्वागत करूंगी. जो कुछ चाहिएगा, वह सबकुछ दूंगी. घर जा कर सौरभ कावेरी की बात भूल गया. भूलता क्यों नहीं? उस की बात को उस ने मजाक जो समझ लिया था.’’

एक हफ्ता बाद जयदेव के कहने पर सौरभ उस के घर फिर गया. मौका पा कर कावेरी ने उस से कहा, ‘‘आप तो अपने दोस्त की गैरहाजिरी में आने वाले थे? मैं इंतजार कर रही थी. आप आए क्यों नहीं? कहीं आप मुझ से डर तो नहीं गए?’’

सौरभ सकपका गया. वह कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले वहां जयदेव आ गया. फिर तो चाह कर भी वह कुछ कह न सका.

उस के बाद सौरभ यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं कावेरी उसे चाहती तो नहीं है?

बेशक कावेरी उस की पत्नी से ज्यादा खूबसूरत थी, मगर वह उस के दोस्त की पत्नी थी, इसलिए वह कावेरी पर बुरी नजर नहीं रखना चाहता था. फिर भी वह उस के मन की चाह लेना चाहता था.

3 दिन बाद ही सुबहसवेरे दफ्तर से छुट्टी ले कर सौरभ कावेरी के घर पहुंच गया.

सौरभ को आया देख कावेरी चहक उठी, ‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे रूप का जादू आप पर इतनी जल्दी असर करेगा.’’

सौरभ ने भी झट से कह दिया, ‘‘आप का जादू मुझ पर चल गया है, तभी तो मैं दोस्त की गैरहाजिरी में आया हूं.’’

‘‘आप ने बहुत अच्छा किया. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं करूंगी. मैं जानती हूं कि आप अपनी पत्नी से खुश नहीं हैं, वरना कालगर्ल के पास जाते ही क्यों? मैं आप को वह सबकुछ दे सकती हूं, जो अपनी पत्नी से आप को नहीं मिला.’’

सौरभ हैरान रह गया. उस ने कभी नहीं सोचा कि कोई औरत इस तरह खुल कर अपने दिल की बात किसी मर्द से कह सकती है.

सौरभ कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले ही वह बोली, ‘‘आप मुझे बेहया समझ रहे होंगे. मगर ऐसी बात नहीं है. बात यह है कि मैं आप को अपना दिल दे बैठी हूं…

‘‘दरअसल, जिस तरह आप अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं हैं, उसी तरह मैं भी अपने पति से संतुष्ट नहीं हूं. जब मैं ने आप को देखा, तो न जाने क्यों मुझे लगा कि अगर आप मेरी जिंदगी में आ जाएंगे, तो मेरी प्यास भी बुझ जाएगी.’’

कावेरी को सौरभ ने बुरी नजर से कभी नहीं देखा था. मगर कावेरी ने जब उसे अपने दिल की बात कही, तो उसे लगा कि उस से संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं है.

उस के बद सौरभ ने अपनेआप को आगे बढ़ने से रोका नहीं. झट से उस ने कावेरी को बांहों में भर लिया. उस के होंठों और गालों को चूम लिया.

कावेरी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह बोली, ‘‘आप बैडरूम में चलिए, मैं दरवाजा बंद कर के आती हूं.’’

सौरभ बैडरूम में चला गया. दरवाजा बंद कर कावेरी बैडरूम में आई, तो सौरभ ने बगैर देर किए उसे बांहों में भर लिया. उस के बाद दोनों अपनीअपनी हसरतों को पूरा करने में लग गए.

सौरभ जैसा चाहता था, कावेरी ने ठीक उसी तरह से उस की हवस को शांत किया.

सौरभ ने कावेरी की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘मुझे आप से जो प्यार मिला है, वह मैं कभी नहीं भूल सकता.’’

‘‘यही हाल मेरा भी है सौरभजी. मेरी शादी हुए 5 साल बीत गए हैं. देखने में मेरे पति हट्टेकट्टे भी हैं, मगर उन से मैं कभी संतुष्ट नहीं हुई. अब मैं आप से एक गुजारिश करना चाहिती हूं.’’

‘‘गुजारिश क्यों? हुक्म कीजिए. मैं आप की हर बात मानूंगा,’’ कहते हुए सौरभ ने कावेरी के होंठों को चूम लिया.

‘‘आप शादीशुदा हैं. मैं भी शादीशुदा हूं. हम चाह कर भी कभी एकदूसरे से शादी नहीं कर सकते, लेकिन मैं चाहती हूं कि हम दोनों का संबंध जिंदगीभर बना रहे. हम दोनों कभी जुदा न हों. क्या ऐसा हो सकता है?’’

कावेरी ने जैसे उस के दिल की बात कह दी हो, इसलिए झट से उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं हो सकता. मैं भी तो यही चाहता हूं.’’

उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, सौरभ दफ्तर न जा कर कावेरी के घर चला जाता था.

इस तरह 4 महीने बीत गए. इस बीच सौरभ ने 7-8 बार कावेरी से हमबिस्तरी की. हर बार कावेरी ने उसे पहले से ज्यादा मस्ती दी.

सौरभ ने यह मान लिया था कि कावेरी के साथ उस का संबंध जिंदगीभर चलेगा. दोनों के बीच कोई दीवार नहीं आएगी, मगर उस का सोचा नहीं हुआ. आज जो कुछ भी हुआ, उस की सोच से परे था.

सौरभ अपने घर आया, तो वह बहुत परेशान था. अनीता ने उस की परेशानी ताड़ ली. अनीता ने उस से पूछ लिया, ‘‘क्या बात है? आप बहुत परेशान दिखाई दे रहे हैं?’’

सौरभ ने बहाना बना दिया, ‘‘परेशान नहीं हूं. थका हुआ हूं.’’

सौरभ ने अनीता पर शक तो नहीं होने दिया, मगर उसी दिन से उस की सुखशांति छीन गई. दिनरात वह इस फिराक में रहने लगा कि 3 लाख रुपए का इंतजाम वह कैसे करे?

25 दिन बीत गए, मगर रुपए का इंतजाम नहीं हुआ, तो सौरभ ने मकान पर रुपए लेने का फैसला किया.

सौरभ मकान पर रुपए लेता, उस से पहले अनीता को सबकुछ मालूम हो गया. वह चुप रहने वालों में से नहीं थी.  वह सौरभ से बोली, ‘‘मुझे पता चला है कि आप मकान पर 3 लाख रुपए लेना चाहते हैं. सच बताइए कि रुपए की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि आप को मकान गिरवी रखना पड़ रहा है? कहीं आप किसी बजारू लड़की के चक्कर में तो नहीं पड़ गए हैं.’’

सौरभ घबरा गया. उस ने सच छिपाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अनीता के सामने उस की एक न चली.

‘‘मैं जानती थी कि आप का शौक एक दिन आप को डुबो देगा.’’

‘‘कैसा शौक?’’ सौरभ हकला गया.

‘‘ब्लू फिल्म की तरह हरकतें करने का शौक,’’ सौरभ हैरान रह गया.

‘‘मैं जानती हूं कि आप अपना शौक पूरा करने के लिए कालगर्ल के साथ होटल में गए थे. वहां रेड पड़ी और पुलिस ने आप को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन आप के दोस्त ने आप को जमानत पर छुड़ाया. मैं ने आप से इसलिए कुछ नहीं कहा कि शर्मिंदगी से आप मुझ से नजरें नहीं मिला पाएंगे.’’

अब सौरभ ने भी अपनी गलती मानने मे देर नहीं की. कावेरी के साथ अपने नाजायज संबंध के बारे में सबकुछ बताने के बाद अनीता से उस ने माफी मांगी. उस से कहा कि वह ऐसी गलती नहीं करेगा.

‘‘मैं तो आप को माफ करूंगी ही, क्योंकि मैं अपना घर तोड़ना नहीं चाहती. मगर सवाल है कि कावेरी के चक्रव्यूह से आप कैसे निकलेंगे?’’

‘‘कैसा चक्रव्यूह?’’

‘‘आप अभी तक यही समझ रहे हैं कि कावेरी के साथ हमबिस्तरी करते समय उस के पति ने आप को अचानक देख लिया और आप के साथ सौदा कर लिया?’’

‘‘मैं तो यही समझ रहा हूं,’’ सौरभ बोला.

लेकिन सच यह नहीं है. मेरी सोच यह है कि कावेरी और उस के पति ने मिल कर आप को फंसाया है. अगर ऐसा नहीं होता, तो उस का पति आप के साथ सौदा क्यों करता? पत्नी की बेवफाई देख कर उसे अपने घर से निकाल देता या माफ कर देता. आप के साथ सौदा किसी भी हाल में नहीं करता.’’

कुछ सोचते हुए अनीता ने कहा, ‘‘जो होना था, वह तो हो गया. अब आप चिंता मत कीजिए. कावेरी के चक्रव्यूह से मैं आप को निकालूंगी.’’

‘‘आप तो जानते ही हैं कि मेरा मौसेरा भाई जयंत पुलिस इंस्पैक्टर है. जब उसे सारी बात बताऊंगी, तो वह हकीकत का पता लगा लेगा और सबकुछ ठीक भी कर देगा.’’

उसी दिन अनीता सौरभ के साथ जयंत से मिली. सारी बात जानने के बाद जयंत अगले दिन से छानबीन में जुट गया.

4 दिन बाद जयंत ने अनीता को फोन पर कहा, ‘‘छानबीन करने के बाद मैं ने जयदेव और कावेरी को गिरफ्तार कर लिया है. दोनों ने अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया है. अब जीजाजी को किसी से डरने की जरूरत नहीं है.

‘‘दरअसल, जयदेव और कावेरी का यही ध्ांधा था. कोलकाता से पहले दोनों पटना में थे. वहां कई लोगों को अपना शिकार बनाने के बाद जयदेव ने अपना ट्रांसफर कोलकाता करा लिया था.

‘‘जब जीजाजी को कालगर्ल के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, तो उन के दफ्तर के ही किसी ने थाने में उन्हें देख लिया और दफ्तर में सब को बता दिया.

‘‘दफ्तर बदनाम हो गया, तो जयदेव ने उन्हें अपना अगला शिकार बनाने का फैसला कर लिया.

‘‘अपनी योजना के तहत जयदेव ने पहले जीजाजी से दोस्ती की, उस के बाद उन्हें अपनी पत्नी कावेरी से मिलाया.

‘‘उस के बाद कावेरी ने अपना खेल शुरू किया. उस ने जीजाजी पर अपने रूप का जादू चलाया और उन के साथ वही सब किया, जो अब तक औरों के साथ करती आई थी.’’

जयदेव और कावेरी की सचाई जानने के बाद सौरभ ने राहत की सांस ली. अनीता को अपनी बांहों में भर कर उस की खूब तारीफ की.

अनीता ने भी सौरभ को निराश नहीं किया. रात में बिस्तर पर उस ने शर्म छोड़ कर उस के साथ वैसा ही सबकुछ किया, जिस की चाह में वह कावेरी के चंगुल में फंस गया था.

भरपूर मजे के बाद सौरभ ने अनीता से कहा, ‘‘तुम तो सबकुछ कर सकती हो, फिर उस दिन जब मैं ने ऐसा करने के लिए कहा था, तो मना क्यों किया था?’’

‘‘सिर्फ मैं ही नहीं, हर पत्नी अपने पति के साथ ऐसा कर सकती है, मगर सभी ऐसा करती नहीं हैं, कुछ ही करती हैं.’’

‘‘जिस तरह मेरा मानना है कि औरतों को शर्म के दायरे में रह कर हमबिस्तरी करनी चाहिए, उसी तरह बहुत सी पत्नियां ऐसा मानती हैं. इसी वजह से बहुत सी पत्नियां ब्लू फिल्म की तरह हरकतें नहीं करतीं.’’

‘‘मैं ने आज शर्म की दीवार तोड़ कर आप का मनचाहा तो कर डाला, मगर बराबर नहीं कर सकती, क्यों कि मुझे बेहद शर्म आती है.’’

अनीता के चुप होते ही सौरभ ने कहा, ‘‘अब इस की जरूरत भी नहीं है. मैं समझ गया कि गलत चाहत में लोग बरबाद हो जाते हैं. मैं अपनी गलत चाहत को आदत नहीं बनाना चाहता, इसलिए हमबिस्तरी के समय वैसा ही सबकुछ चलेगा, जैसा अब तक चलता रहा है.’’

अनीता खुशी से सौरभ से लिपट गई. सौरभ ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया.

Abhinav Arora, माधव दास जैसे बाल कथावाचक बनाने का धंधा

बाल कथावाचकों की सोशल मीडिया पर लंबीचौड़ी भीड़ खड़ी हो गई है, सारी जद्दोजेहद फौलोअर्स और सब्सक्राइबर्स पाने की है. जिस उम्र में इन्हें स्कूल में होना चाहिए, हाथों में किताबकौपीकलम होनी चाहिए, वहां इस तरह का धर्मांध ढोंग करने की प्रेरणा इन्हें मिल कहां से रही है, जानिए.

अपनी कृष्णभक्ति से मशहूर 10 वर्षीय कथावाचक अभिनव अरोड़ा इन दिनों खूब चर्चा में है. अभिनव को अकसर सोशल मीडिया पर आध्यात्मिक वीडियो शेयर करते देखा जाता है. वह रील बनाता है. रील पर भक्ति में नाचता, गाता और रोता भी है.

इस छोटी उम्र में अभिनव अरोड़ा एक यूट्यूबर और इंफ्लुएंसर के साथसाथ कथावाचक के रूप में भी पहचाना जाता है. सोशल मीडिया पर उस के वीडियोज छाए रहते हैं. इंस्टाग्राम पर उस के 9 लाख से अधिक, फेसबुक पर 2.2 लाख और यूट्यूब चैनल पर 1.3 लाख सब्सक्राइबर्स हैं. यह बड़ी संख्या है. हैरानी यह कि वह अपनी भक्ति की ऊटपटांग रील के चलते सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. वह खुद को श्रीकृष्ण का बड़ा भाई मानता है.
कुछ समय पहले तक स्कूल में कोई भी अभिनव अरोड़ा के बगल में नहीं बैठना चाहता था पर आज उस की क्लास का हर बच्चा उस के साथ बैठना चाहता है, उन्हें रोस्टर बनाना पड़ता है. स्कूल में पढ़ाई के बीच उस के टीचर उसे भजन गाने के लिए कहते हैं. यह पौपुलैरिटी अभिनव ने हासिल कर ली है.
वह अपनी रील्स में धार्मिक उपदेश देता है. जैसे, वह कहता है, ‘आप का कोई भी काम नहीं बन रहा हो या अटक रहा हो तो गोपाष्टमी के दिन गाय के कान में जा कर वह बात कह दें, आप का काम हो जाएगा.’
अभिनव अरोड़ा ट्रोल भी खूब हुआ. भक्ति जाहिर करने के लिए जिस तरह की हरकतें वह अपनी रील्स में करता है उसे ले कर लोग उसे नकली और दिखावा बताते हैं. इस पर अभिनव ने कहा, ‘मैं चाहता नहीं था मुझे कोर्ट जाना पड़े लेकिन जाना पड़ा. जैसे भगवान रामजी का मन नहीं था खरदूषण का वध करना, लेकिन उस ने इतना उत्पात मचा दिया कि उन्हें करना पड़ा. मेरी भक्ति को नकली कहा जा रहा है. मुझे लोग जान से मारने की धमकियां दे रहे हैं.’

दरअसल, अभिनव अरोड़ा के पिता तरुण अरोड़ा ने पहले आइसक्रीम कंपनी खोली, कंपनी फेल हो गई तो दूसरा बिजनैस किया, वह भी फेल हो गया तो अपने बच्चे अभिनव अरोड़ा पर दांव खेला. उन्होंने उसे धर्म से पैसा कैसे कमाया जाता है, वह सिखाया. अब इस चलते कई लोग अभिनव के पिता को कोसने लगे हैं कि वे अपने बेटे का इस्तेमाल कर रहे हैं. मगर इस में क्या गलत है? क्या यह काम बड़ेबड़े कथावाचक, अनिरुद्धाचारी, बाबा बागेश्वर, देवकीनंदन वगैरह नहीं कर रहे? फिर कोस सिर्फ अभिनव को क्यों रहे हैं?
क्या ये सारी चीजें वह इन्हीं कथावाचकों से नहीं सीख रहा? क्या धर्म के नाम पर लूटपाट नहीं चल रही? क्या धर्म के नाम पर सरकार नहीं बनाई जा रही? मुसीबत यह है कि लपेटे में सिर्फ अभिनव है.

इस पर उसे दोष देने की जगह क्या खुद को दोषी नहीं मानना चाहिए कि जिस उम्र में उसे कोर्स के चैप्टर याद करने चाहिए थे वहां वह अंटशंट धार्मिक बातें रट रहा है. अभिनव अरोड़ा की वीडियो से साफ पता चलता है कि वह जो कुछ भी करता और कहता है वह सब स्क्रिप्टेड होता है. सरयू नदी में स्नान करते हुए अभिनव अरोड़ा एक वीडियो में कह रहा है, ‘केवल गंगा नदी ही काफी है हम सब के पापों को धोने के लिए.’

यूजर्स अभिनव अरोड़ा के वीडियोज पर कर रहे हैं कमैंट्स

एक यूजर ने अभिनव अरोड़ा के एक वीडियो में यहां तक कमैंट किया कि, “ये कथावाचक ऊटपटांग नौटंकी कर सकते हैं पर स्कूल जाने और पढ़ने के नाम पर इन्हें मौत आती है.’
एक दूसरे यूजर ने लिखा, ‘इस का बाप इतना शातिर है कि उस ने इस को इतने जबरदस्त तरीके की ट्रेनिंग दे कर बकवास करने में माहिर बना दिया है कि इस को बकवास के अलावा अब कुछ नहीं आता. भारत विश्वगुरु बने न बने लेकिन इस जैसे शातिर लोग भारत की जनता को बेवकूफ़ भलीभांति बना रहे हैं.’ किसी भी पोडकास्ट में उस से क्या पूछा जाएगा, वह भी पहले से ही निर्धारित होता है और इस तरह से एक साधारण से बच्चे को बाबा बना कर पैसे कमाने का जुगाड़ हमारे समाज ने किया है.
यूज़र्स अभिनव अरोड़ा के लिए लिख रहे हैं, ‘भाई ने भारत के एल्गोरिदम को क्रैक कर लिया है.’ ‘बेटा, क्या तुम ने अपना होमवर्क किया है?’ और ‘वो आज स्कूल भी नहीं गया.’
कुछ यूजर्स ने लिखा है-
‘यह बच्चा पक्का आगे चल कर बड़ा ढोंगी बाबा बनेगा और अंधभक्तों को लूटेगा.’
‘इस के मातापिता ने सब से अच्छा बिजनैस मौडल ढूंढ़ लिया है.’

बचपन से वायरल कथावाचक बनाने का धंधा

अभिनव अरोड़ा सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. लेकिन सिर्फ अभिनव अरोड़ा ही नहीं, कई सारे ऐसे बाल संत हैं, जिन्हें लाखों की संख्या में लोग फौलो करते हैं. इन के वीडियोज पर खूब व्यूज आते हैं.
जयपुर के 5 वर्षीय ‘भक्त भागवत’ के इंस्टाग्राम पर 22 लाख से ज़्यादा फौलोअर्स हैं. उन का दावा है कि वे एक गुरुकुल में पढ़ते हैं. अभिनव अरोड़ा की तरह वे भी कृष्ण और राधा का भक्त है और उस के मातापिता उस के अकाउंट को मैनेज करते हैं.

इंस्टाग्राम ने 13 साल से कम उम्र के बच्चों को अकाउंट होस्ट करने से प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन मातापिता को उन्हें चलाने की अनुमति है. वह कहता है, ‘हायहेलो छोड़ो, हरे कृष्ण बोलो.’ यह लफ्फाजी कोई रटवा ही सकता है. उस के पिता अकम भक्ति दास एक सौफ्टवेयर इंजीनियर से गीता प्रचारक बन गए हैं और अब उसी वैदिक अध्ययन के गुरुकुल में रहते हैं और काम करते हैं. भक्त भागवत के मातापिता का कहना है कि वे चाहते हैं कि वह डाक्टर या इंजीनियर बनने के बजाय सनातन धर्म और भगवद गीता का प्रसिद्ध प्रचारक बने. यानी, ऐसा काम जिस से लोगों का तो भला होना नहीं है जबकि खुद पर बैठेबिठाए पैसों की बरसात होती है.

ऐसे ही वृंदावन के 10 साल के बाल कथावाचक माधव दास ने न केवल देशभर में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है. इन के पिता भी इस्कान मंदिर के भक्त हैं. कृष्णा किशोरी महज 6 साल की है. यूकेजी में पढ़ने वाली फतेहपुर की कृष्णा किशोरी राधा-कृष्ण को मामामामी मानती है.
इसी तरह देविका दीक्षित वृंदावन निवासी पंडित अरुण दीक्षित व आंगनवाड़ी वर्कर अर्चना दीक्षित की बेटी है, जिस की उम्र महज 9 साल है और अभी चौथी क्लास में है. देविका तो 6 साल की उम्र से ही भागवत कथा सुनाने लगी थी. उस की पढ़ाई को ले कर जब किसी रिपोर्टर ने उस से पूछा तो देविका दीक्षित ने कहा कि वह अपने कथावाचन के कार्यक्रमों में इतना व्यस्त रहती है कि स्कूल में अटेंडेंस पूरी नहीं हो पाती. बाल कथावाचकों की इस लिस्ट में कृष्ण नयन उम्र 7 साल, श्रृंगवेरपुर धाम की अनुष्का पाठक जो केवल 8 साल की है, ये दोनों भी कथावाचन कर रहे हैं.

बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़

इन सभी के पेरैंट्स के लिए ये बच्चे लौटरी जैसे बन चुके हैं. जाहिर है, इन में रटने की कला है, छोटी उम्र से ही शास्त्रों को दिमाग में बैठा लेते हैं. लोग इन बाल कथावाचकों की रील्स और वीडियो को देख कर अपना समय व एनर्जी बरबाद कर रहे हैं क्योंकि ये कथावाचक ही अपने फौलोअर्स से प्रवचनों में कहते हैं, ‘मोहमाया छोड़ दो, कुछ मत करो, भक्तिभाव में डूब जाओ.’
अंकित नाम के एक यूट्यूबर ने अपने चैनल ‘ओनली देसी’ पर हाल ही में अभिनव अरोड़ा की पोल खोलते हुए कहा कि अभिनव के मातापिता अपने बच्चे का ब्रेनवाश कर रहे हैं और उस का बचपन ब्रैंड एंगेजमैंट, मीडिया प्रचार और पैसा कमाने के लिए बरबाद कर रहे हैं. यूट्यूबर का कहना है कि अभिनव को कैमरा के सामने कुछ चीजें कहने के लिए ब्रेनवाश किया गया है और इस के लिए केवल उस के मातापिता ही जिम्मेदार है. जबकि, हकीकत में उस के मातापिता तो उसे यह सब करा कर ऐशोआराम की जिंदगी देंगे, जिम्मेदार तो यह धर्मांध समाज है जो इन्हें देख रहा है.

कथावाचन कोई प्रोडक्टिव काम नहीं

क्या इस के जिम्मेदार हम खुद नहीं हैं जो अपने ब्च्चों को किसी साइंस म्यूजियम, हिस्टोरिकल प्लेसेस, तार्किक बनाने की जगह ऐसी कथाओं में ले कर जाते हैं जहां वे प्रोडक्टिव या स्किल सीखने की जगह कुतार्किक व पाखंडी चीजें सीखते हैं.
बचपन से अपने छोटेछोटे बच्चों को कथावाचन से जोड़ने की सब से दुखद बात यह है कि बच्चों की क्रिएटिविटी ख़त्म होती है. पेरैंट्स नहीं समझ रहे हैं कि कथावाचन कोई प्रोडक्टिव काम नहीं है. उस से किसी का भला नहीं हो रहा.
जैसे, अगर मजदूर सड़क बनाता है तो उस सड़क का प्रयोग जनता करती है, कोई होटल में खाना बना रहा है तो उस से लोगों का पेट भर रहा है, कोई कपड़े बना रहा है तो लोग उसे इस्तेमाल करते हैं लेकिन कथावाचन से किसी का क्या भला होता है, सिवा कथावाचकों और पंडों को चंदा व दानदक्षिणा देने की सोच दिमाग में भरने के.

कथावाचक बनने का क्रैश कोर्स

आजकल बाल कथावाचक बनना काफी ट्रैंड में है. आप को जानकर हैरानी होगी कि बाल कथावाचकों की बढ़ती लोकप्रियता और इस से होने वाली कमाई के लालच ने इंस्टेंट कथावाचक पैदा करने के इंस्टिट्यूट भी खोल दिए हैं. इन इंस्टिट्यूट में ऐसे कथावाचक हैं जो सत्संग के गुर सिखा रहे हैं और वह भी मुफ़्त नहीं, बल्कि गुरुदक्षिणा में फीस ले कर.
वृंदावन में एंटर पास करते ही वहां की दीवारों पर आप को इंस्टेंट कथावाचक बना देने वाले विज्ञापन दिखाई दे जाएंगे. वृंदावन में कथावाचक बनने की ट्रेनिंग देने वाले एकदो नहीं बल्कि 100 के करीब इंस्टिट्यूट खुल गए हैं. इन में से कुछ तो ऐसे इंस्टिट्यूट हैं जो 3 से 6 महीने में ही एक्सपर्ट कथावाचक बनाने का दावा करते हैं.
‘श्रीमद्भागवत कथा’ के लिए इस्कान में भी डिप्लोमा कोर्स कराया जाता है. अलगअलग अवधि के कोर्स की फीस अलग होती है. इसी तरह वृंदावन में भी कई गुरुकुल हैं जहां आप अलगअलग धर्मग्रंथों का पठनपाठन कर के कथावाचक बन सकते हैं. इस में बांके बिहारी भागवत प्रशिक्षण केंद्र और वैदिक यात्रा गुरुकुल प्रमुख हैं. इसी तरह देश के अलगअलग आध्यात्मिक केंद्र, जैसे कि बनारस, उज्जैन, इगतपुरी इत्यादि पर मौजूद गुरुकुल में गुरुदक्षिणा के नाम पर फीस दे कर ऐसे कथावाचक बनने की ट्रेनिंग दी जाती है.

कथावाचन के नाम पर बिजनैस

आजकल कथावाचन एक बहुत बड़ा बिजनैस हो गया है. ‘बाबा’ या ‘कथावाचक’ की मुख्य कमाई कथावाचन के लिए मिलने वाली फीस होती है. इस के साथ उन्हें दक्षिणा के रूप में भी खासी राशि मिलती है. हर कथा का बजट लाखों में होता है जिस का लगभग 40 से 50 फीसदी कथावाचक की जेब में चला जाता है.
कथावाचन के नाम पर चंदा उगाही, भीड़ जुटाना, प्रपंच करना जैसे कार्य हो रहे हैं. ये घंटे के हिसाब से चार्ज करते हैं और 20 हजार रुपए प्रति घंटे से ले कर 2 लाख रुपए प्रति घंटे तक इन का चार्ज होता है. ऊपर से प्लेन के बिजनैस क्लास में आनेजाने का टिकट का चार्ज भी ये लेते हैं. वहीं, कथावाचक बनने के बाद ज्यादातर ‘बाबा’ अपने आश्रम भी खोल लेते हैं. ये आमतौर पर ‘नौन प्रौफिट और्गेनाइजेशन’ होते हैं.

ऐसे में उन की इनकम टैक्स की बचत भी होती है और जमीन से ले कर कई अन्य सुविधाएं भी सस्ते दामों पर मिल जाती हैं. ये वही कथावाचक हैं जो अपने प्रवचनों में कहते हैं कि रुपयापैसा जिंदगी में कुछ नहीं है, सब मोहमाया है, और खुद लक्जरी लाइफ जीते हैं. इन्फ्लुएंसर और कथावाचक जया किशोरी हाल ही में लगभग ढाई लाख रुपए का डीओर का बैग लिए देखी गईं.
सीधी सी बात है, यह सारा तामझाम ही लोगों को आस्थावान बना कर लूटने का है. इस में बड़ेबड़े कथावाचक पहले ही जमे हुए थे, अब छोटेछोटे कथावाचकों की नई पौध भी उगाई जा रही है ताकि दानदक्षिणा, कर्मकांड चलते रहें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें