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एक्टिंग छोड़ निर्माता बनीं दिपानिता शर्मा, जंगल में की फिल्म ‘‘पीपर चिकन’’ की शूटिंग

बॉलीवुड में हमेशा  पूर्वोत्तर भारत की उपेक्षा की जाती रही है.पूर्वोत्तर भारत से आने वाले कलाकारों को बॉलीवुड में कभी भी अहमियत नहीं मिली.जबकि पूर्वोत्तर भारत खासकर असम ने दिपानिता शर्मा, परिणीता बोरठाकुर,प्लाबिता बोरठाकुर, आदिल हुसेन सहित कई बेहतरीन कलाकार दिए है.पूर्वोत्तर भारत के प्रति बॉलीवुड उदासीन रवैए के ही चलते अभिनेत्री दिपानिता शर्मा को बहुत ज्यादा काम नही मिला.जबकि दिपानिता शर्मा ने ‘16 दिसंबर’, ‘दिल विल प्यार व्यार’ ,‘असंभव’,‘जोड़ी बे्रकर’,‘टेक इट इजी’,‘काफी विथ डी’ और ‘वार’सहित कई फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाया है.

बहरहाल,अब दिपानिता शर्मा ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए बतौर निर्माता एक मनोवैज्ञानिक रोमांचक फिल्म‘‘पीपर चिकन’’का निर्माण किया ैहै,जिसके निर्देशक रतन सील शर्मा हैं.इस फिल्म में दिपानिता शर्मा ने स्वयं बोलोराम दास, बहारुल इस्लाम, रवि सरमा और मोनूज बोरकोतोकी के साथ अभिनय भी किया है.इस फिल्म का प्रदर्शन छह नवंबर से ‘‘शेमारूमी बाक्स ऑफिस’’ पर होगा.

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असम के प्राचीन जंगलो में फिल्मायी गयी इस फिल्म की कहानी के केंद्र में कार सवारी है.जिसमें कैब ड्राइवर और सवारी के बीच मनोवैज्ञानिक स्तर पर चूहे बिल्ली का खेल शुरू हो जाता है और कई रोमांचक घटनाएं घटित होती हैं.

इस फिल्म के किरदार को लेकर अभिनेत्री व निर्माता दीपानिता शर्मा कहती हैं-“मेरा किरदार पूरी फिल्म में भावनाओं से भरा है. उसकी यात्रा काफी सशक्त है और यह एक ऐसी भूमिका थी जिसे मैंने पूरी तरह से सराहा था. यह न केवल अभिनय करने के लिए बल्कि निर्माण के दृष्टिकोण से भी बहुत जिम्मेदारी है, लेकिन यह तथ्य कि पीपर चिकन अब शेमारू बॉक्स मी बाक्स ऑफिस पर रिलीज हो रही है.यह वास्तव में मेरे दिल के करीब हैं.भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से में बेहतरीन प्रतिभाओं द्वारा बनाई गई एक जुनूनी फिल्म है”

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मशहूर रंगकर्मी और फिल्म ‘कारवां’ में नजर आ चुके अभिनेता बोलोराम दास इस फिल्म के अपने किरदार की चर्चा करते हुए कहते हैं-‘‘अभिनेता हमेशा अच्छी भूमिकाओं की तलाश में रहता हैं,जो उन्हें कलाकार के रूप में चुनौती देते हैं.इस दृष्टिकोण से ‘पीपर चिकन’ एक ऐसी फिल्म थी,जिसका मुझे हिस्सा बनना था. यह एक दुष्ट और कुटिल कथा है।मैं सतह पर बस एक ड्राइवर की तरह लग सकता हूं, लेकिन जैसा कि कहानी सामने आती है, अप्रत्याशित की उम्मीद करते हैं’’

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असम के भयावह जंगलों में फिल्म की शूटिंग करना कलाकारों के लिए सहज नही था.खुद अभिनेता बोलाराम कहते हैं-‘‘हमारी फिल्म की अस्सी प्रतिषत षूटिंग रात में हुई है.हमारी शूटिंग का अंतिम दिन था.हम वाइल्ड लाइफ सेंचुरी,असम में शूटिंग कर रहे थे.जंगल के बीचो बीच मेरे व दिपानिता के बीच एक्षन दृष्य फिल्माया जा रहा था.पूरी टीम ने सुरक्षा के लिए बिस्तर बिछाकर पत्ते डाल दिए थे.शूटिंग शुरू होने से पहले जैसे ही लाइट जलायी गयी,हमने देखा कि उस बिस्तर पर एक बड़ा सा सांप बैठा हुआ है,जिस पर एक्षन दृष्य की शूटिंग करते हुए हमें गिरना था.यदि किसी की नजर सांप पर न पड़ी होती,तो बहुत बुरा हो सकता था.क्योंकि नजदीक में कोई अस्पताल भी नही है.’’

आदित्य नारायण और श्वेता अग्रवाल का हुआ रोका, घरवालों ने खुद को बताया लकी

कुछ दिनों पहले सिंगर आदित्या नारायण ने ऐलान किया था कि वह जल्द ह अपने प्यार के साथ शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. करवाचौथ के शुभ दिन इन दोनों की ‘रोका’ सेरेमनी हुई. इस फंक्शन की तस्वीर सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रही है.

तस्वीर में आदित्या और श्वेता अपने परिवार के साथ दिख रहे हैं. आदित्या और श्वेता की जोड़ी बहुत ज्यादा प्यारी लग रही है. आदित्या ने हाथ में नारियल रखा है तो वहीं श्वेता ने अपने हाथ में गहना और बाकी अन्य समान पकड़ रखा है.

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श्वेता बला की खूबसूरत लग रही हैं. दोनों के चेहरे के स्माइल को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है दोनों इस रिश्ते से बहुत ज्यादा खुश हैं. आदित्या ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया है जिसमें उसने लिखा है कि हम दोनों आखिरकर शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं. 11 साल पहले श्वेता मेरी सोलमेट मिली.

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बता दें कि आदित्या के पिता उनके शादी को लेकर काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं. वो इस बारे में खुलकर बता भी चुके हैं. इस बार उन्होंने बताया कि वह अपने बेटे की शादी बहुत ज्यादा धूमधाम से करना चाहते हैं लेकिन कोरोना के कारण लगता नहीं है कि ऐसा हो सकता है. आगे उन्होंने बताया कि कम लोगों के बीच यह शादी मुंबई के एक मंदिर में होगी.

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आदित्या के साथ –साथ उनके परिवार वाले भी इस शादी को लेकर काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं. सभी घर वाले अपने आप को लकी बता रहे हैं क्योंकि श्वेता उनके घर पर बहू बनकर आने वाली है.

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काफी वक्त पहले से श्वेता और आदित्या एक-दूसरे के साथ रिलेशन में थें. अब दोनों जल्द हमेशा के लिए एक- दूसरे के होने वाले हैं.

लम्हों ने खता की थी- भाग 1: रिया के भारी डिप्रैशन के क्या कारण थे?

गुरमीत पाटनकर के 30 साल के लंबे सेवाकाल में ऐसा पेचीदा मामला शायद पहली दफा सामने आया था. इस बहुराष्ट्रीय कंपनी में पिछले वर्ष पीआरओ पद पर जौइन करने वाली रिया ने अपनी 6 वर्ष की बच्ची के लिए कंपनी द्वारा शिक्षण संबंधित व्यय के पुनर्भरण के लिए प्रस्तुत आवेदन में बच्ची के पिता के नाम का कौलम खाली छोड़ा था. अभिभावक के नाम की जगह उसी का नाम और हस्ताक्षर थे. उन्होंने जब रिया को अपने कमरे में बुला कर बच्ची के पिता के नाम के बारे में पूछा तो वह भड़क कर बोली थी, ‘‘इफ क्वोटिंग औफ फादर्स नेम इज मैंडेटरी, प्लीज गिव मी बैक माइ एप्लीकेशन. आई डोंट नीड एनी मर्सी.’’ और बिफरती हुई चली गई थी. पाटनकर सोच रहे थे, अगर इस अधूरी जानकारी वाले आवेदनपत्र को स्वीकृत करते हैं तो वह (रिया) भविष्य में विधिक कठिनाइयां पैदा कर सकती है और अस्वीकृत कर देते हैं तो आजकल चलन हो गया है कि कामकाजी महिलाएं किसी भी दशा में उन के प्रतिकूल हुए किसी भी फैसले को उन के प्रति अधिकारी के पूर्वाग्रह का आरोप लगा देती हैं.

अकसर वे किसी पीत पत्रकार से संपर्क कर के ऐसे प्रकरणों का अधिकारी द्वारा महिला के शारीरिक शोषण के प्रयास का चटपटा मसालेदार समाचार बना कर प्रकाशितप्रसारित कर के अधिकारी की पद प्रतिष्ठा, सामाजिक सम्मान का कचूमर निकाल देती हैं. रिया भी ऐसा कर सकती है. आखिर 2 हजार रुपए महीने की अनुग्रह राशि का मामला है. टैलीफोन की घंटी बजने से उन की तंद्रा भंग हुई. उन्होंने फोन उठाया, मगर फोन सुनते ही वे और भी उद्विग्न हो उठे. फोन उन की पत्नी का था. वह बेहद घबराई हुई लग रही थी और उन से फौरन घर पहुंचने के लिए कह रही थी.

घर पहुंच कर उन्होंने जो दृश्य देखा तो सन्न रह गए. रिया भी उन के ही घर पर थी और भारी डिप्रैशन जैसी स्थिति में थी. कुछ अधिकारियों की पत्नियां उसे संभाल रही थीं, दिलासा दे रही थीं, मगर उसे रहरह कर दौरे पड़ रहे थे. बड़ी मुश्किल से उन की पत्नी उन्हें यह बता पाई कि उस की 6 वर्षीय बच्ची आज सुबह स्कूल गई थी. लंचटाइम में वह पता नहीं कैसे सिक्योरिटी के लोगों की नजर बचा कर स्कूल से कहीं चली गई. उस के स्कूल से चले जाने का पता लंच समाप्त होने के आधे घंटे बाद अगले पीरियड में लगा. क्लासटीचर ने उस को क्लास में न पा कर उस की कौपी वगैरह की तलाशी ली. एक कौपी में लिखा था, ‘मैं अपने पापा को ढूंढ़ने जाना चाहती हूं. मम्मी कभी पापा के बारे में नहीं बतातीं. ज्यादा पूछने पर डांट देती हैं. कल तो मम्मी ने मुझे चांटा मारा था. मैं पापा को ढूंढ़ने जा रही हूं. मेरी मम्मी को मत बताना, प्लीज.’

स्कूल प्रशासन ने फौरन बच्ची की डायरी से अभिभावकों के टैलीफोन नंबर देख कर इस की सूचना रिया को दे दी और स्कूल से बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी. सभी स्तब्ध थे यह सोचते हुए कि क्या किया जाए. तभी कालोनी कैंपस में एक जीप रुकी. जीप में से एक पुलिस इंस्पैक्टर और कुछ सिपाही उतरे और पाटनकर के बंगले पर भीड़भाड़ देख कर उस तरफ बढ़े. पाटनकर खुद चल कर उन के पास गए और उन के आने का कारण पूछा. इंस्पैक्टर ने बताया कि स्कूल वालों ने जिस हुलिए की बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट लिखाई है उसी कदकाठी की एक लड़की किसी अज्ञात वाहन की टक्कर से घायल हो गई. जिसे अस्पताल में भरती करा कर वे बच्ची की मां और कंपनी के कुछ लोगों को बतौर गवाह साथ ले जाने के लिए आए हैं.

इंस्पैक्टर का बयान सुन कर रिया तो मिसेज पाटनकर की गोदी में ही लुढ़क गई तो वे इंस्पैक्टर से बोलीं, ‘‘देखिए, आप बच्ची की मां की हालत देख रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि वह इस हालत में कोई मदद कर पाएगी. हम सभी इसी कालोनी के हैं और वह बच्ची स्कूल से आने के बाद इस की मां के औफिस से लौटने तक मेरे पास रहती है इसलिए मैं चलती हूं आप के साथ.’’ अब तक कंपनी के अस्पताल की एंबुलैंस भी मंगा ली गई थी. इसलिए कुछ महिलाएं अचेत रिया को ले कर एंबुलैंस में सवार हुईं और 2-3 महिलाएं मिसेज पाटनकर के साथ पुलिस की जीप में बैठ गईं. अस्पताल पहुंचते ही शायद मातृत्व के तीव्र आवेग से रिया की चेतना लौट आई. वह जोर से चीखी, ‘‘कहां है मेरी बच्ची, क्या हुआ है मेरी बच्ची को, मुझे जल्दी दिखाओ. अगर मेरी बच्ची को कुछ हो गया तो मैं किसी को छोड़ूंगी नहीं, और मिसेज पाटनकर, तुम तो दादी बनी थीं न पिऊ की,’’ कहतेकहते वह फिर अचेत हो गई.

बच्ची के पलंग के पास पहुंचते ही मिसेज पाटनकर और कालोनी की अन्य महिलाओं ने पट्टियों में लिपटी बच्ची को पहचान लिया. वह रिया की बेटी पिऊ ही थी. बच्ची की स्थिति संतोषजनक नहीं थी. वह डिलीरियम की स्थिति में बारबार बड़बड़ाती थी, ‘मुझे मेरे पापा को ढूंढ़ने जाना है, मुझे जाने दो, प्लीज. मम्मी मुझे पापा के बारे में क्यों नहीं बतातीं, सब बच्चे मेरे पापा के बारे में पूछते हैं, मैं क्या बताऊं. कल मम्मी ने मुझे क्यों मारा था, दादी, आप बताओ न…’ कहतेकहते अचेत हो जाती थी. बच्ची की शिनाख्त होते ही पुलिस इंस्पैक्टर ने मिसेज पाटनकर को बच्ची की दादी मान कर उस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले वे दोपहर को महिला कल्याण समिति की बैठक में जाने के लिए निकली थीं. तभी रिया की बच्ची, जो अपनी आया से बचने के लिए अंधाधुंध दौड़ रही थी, उन से टकरा गई थी. बच्ची ने उन से टकराते ही उन की साड़ी को जोर से पकड़ कर कहा था, ‘आंटी, मुझे बचा लो, प्लीज. आया मुझे बाथरूम में बंद कर के अंदर कौकरोच छोड़ देगी.’

बच्ची की पुकार की आर्द्रता उन्हें अंदर तक भिगो गई थी. इसलिए उन्होंने आया को रुकने के लिए कहा और बच्ची से पूछा, ‘क्या बात है?’ तो जवाब आया ने दिया था कि यह स्कूल में किसी बच्चे के लंचबौक्स में से आलू का परांठा अचार से खा कर आई है और घर पर भी वही खाने की जिद कर रही है. मेमसाब ने इसे दोपहर के खाने में सिर्फ बर्गर और ब्रैड स्लाइस या नूडल्स देने को कहा है. यह बेहद जिद्दी है. उसे बहुत तंग कर रही है, इस ने खाना उठा कर फेंक दिया है, इसलिए वह इसे यों ही डरा रही थी. मगर बच्ची उन की साड़ी पकड़ कर उन से इस तरह चिपकी थी कि आया ज्यों ही उस की तरफ बढ़ी वह उन से और भी जोर से चिपक कर बोली, ‘आंटी प्लीज, बचा लो,’ और उन की साड़ी में मुंह छिपा कर सिसक उठी तो उन्होंने आया को कह दिया, ‘बच्ची को वे ले जा रही हैं, तुम लौट जाओ.’

कालोनी में उन की प्रतिष्ठा और व्यवहार से आया वाकिफ थी, इसलिए ‘मेमसाब को आप ही संभालना’, कह कर चली गई थी. उन्होंने मीटिंग में जाना रद्द कर दिया और अपने घर लौट पड़ी थीं. घर आने तक बच्ची उन की साड़ी पकड़े रही थी. पता नहीं कैसे बच्ची का हाथ थाम कर घर की तरफ चलते हुए वे हर कदम पर बच्ची के साथ कहीं अंदर से जुड़ती चली गई थीं. घर आ कर उन्होंने बच्ची के लिए आलू का परांठा बनाया और उसे अचार से खिला दिया. परांठा खाने के बाद बच्ची ने बड़े भोलेपन से उन से पूछा था, ‘आंटी, आप ने आया से तो बचा लिया, आप मम्मी से भी बचा लोगी न?’

मासूम बच्ची के मुंह से यह सुन कर उन के अंदर प्रौढ़ मातृत्व का सोता फूट निकला था कि उन्होंने बच्ची को गोद में उठा लिया और प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर कर बोलीं, ‘हां, जरूर, मगर एक शर्त है.’

‘क्या?’ बच्ची ने थोड़ा असमंजस से पूछा. जैसे वह हर समझौता करने को तैयार थी.

‘तुम मुझे आंटी नहीं, दादी कहोगी, कहोगी न?’

बच्ची ने उन्हें एक बार संशय की नजर से देखा फिर बोली, ‘दादी, आप जैसी होती है क्या? उस के तो बाल सफेद होते हैं, मुंह पर बहुत सारी लाइंस होती हैं. वह तो हाथ में लाठी रखती है. आप तो…’

‘हां, दादी वैसी भी होती है और मेरी जैसी भी होती है, इसलिए तुम मुझे दादी कहोगी. कहोगी न?’

‘हां, अगर आप कह रही हैं तो मैं आप को दादी कहूंगी,’ कह कर बच्ची उन से चिपट गई थी.

उस दिन शाम को जब रिया औफिस से लौटी तो आया द्वारा दी गई रिपोर्ट से उद्विग्न थी, मगर एक तो मिस्टर पाटनकर औफिस में उस के अधिकारी थे, दूसरे, कालोनी में मिसेज पाटनकर की सामाजिक प्रतिष्ठा थी, इसलिए विनम्रतापूर्वक बोली, ‘मैडम, यह आया बड़ी मुश्किल से मिली है. इस शैतान ने आप को पूरे दिन कितना परेशान किया होगा, मैं जानती हूं और आप से क्षमा चाहती हूं. आप आगे से इस का फेवर न करें.’ इस पर उन्होंने बड़ी सरलता से कहा था, ‘रिया, तुम्हें पता नहीं है, हमारी इस बच्ची की उम्र की एक पोती है. हमारा बेटा यूएसए में है इसलिए मुझे इस बच्ची से कोई तकलीफ नहीं हुई. हां, अगर तुम्हें कोई असुविधा हो तो बता दो.

‘देखो, मैं तो सिर्फ समय काटने के लिए महिला वैलफेयर सोसायटी में बच्चों को पढ़ाने का काम करती हूं. मैं कोई समाजसेविका नहीं हूं. मगर पाटनकर साहब के औफिस जाने के बाद 8 घंटे करूं क्या, इसलिए अगर तुम्हें कोई परेशानी न हो तो बच्ची को स्कूल से लौट कर तुम्हारे आने तक मेरे साथ रहने की परमिशन दे दो. मुझे और पाटनकर साहब को अच्छा लगेगा.’

‘मैडम, देखिए आया का इंतजाम…’ रिया ने फिर कहना चाहा तो उन्होंने बीच में टोक कर कहा, ‘आया को तुम रखे रहो, वह तुम्हारे और काम कर दिया करेगी.’ सब तरह के तर्कों से परास्त हो कर रिया चलने लगी तो उन्होंने कहा, ‘रिया, तुम सीधे औफिस से आ रही हो. तुम थकी होगी. मिस्टर पाटनकर भी आ गए हैं. चाय हमारे साथ पी कर जाना.’

‘जी, सर के साथ,’ रिया ने थोड़ा संकोच से कहा तो वे बोलीं, ‘सर होंगे तुम्हारे औफिस में. रिया, तुम मेरी बेटी जैसी हो. जाओ, बाथरूम में हाथमुंह धो लो.’

उस दिन से रिया की बेटी और उन में दादीपोती का जो रिश्ता कायम हुआ उस से वे मानो इस बच्ची की सचमुच ही दादी बन गईं. मगर जब कभी बच्ची उन से अपने पापा के बारे में प्रश्न करती, तो वे बेहद मुश्किल में पड़ जाती थीं. इंस्पैक्टर को यह संक्षिप्त कहानी सुना कर वे निबटी ही थीं कि डाक्टर आ कर बोले, ‘‘देखिए, बच्ची शरीर से कम मानसिक रूप से ज्यादा आहत है. इसलिए उसे किसी ऐसे अटैंडैंट की जरूरत है जिस से वह अपनापन महसूस करती हो.’’ स्थिति को देखते हुए मिसेज पाटनकर ने बच्ची की परिचर्या का भार संभाल लिया.

करीब 4-5 घंटे गुजर गए. बच्ची होश में आते ही, उसी तरह, ‘‘मुझे पापा को ढूंढ़ने जाना है, मुझे जाने दो न प्लीज,’’ की गुहार लगाती थी.

बच्ची की हालत स्थिर देखते हुए डाक्टर ने फिर कहा, ‘‘देखिए, मैं कह चुका हूं कि बच्ची शरीर की जगह मैंटली हर्ट ज्यादा है. हम ने अभी इसे नींद का इंजैक्शन दे दिया है. यह 3-4 घंटे सोई रह सकती है. मगर बच्ची की उम्र और हालत देखते हुए हम इसे ज्यादा सुलाए रखने का जोखिम नहीं ले सकते. बेहतर यह होगा कि बच्ची को होश में आने पर इस के पापा से मिलवा दिया जाए और इस समय अगर यह संभव न हो तो उन के बारे में कुछ संतोषजनक उत्तर दिया जाए. आप बच्ची की दादी हैं, आप समझ रही हैं न?’’

अब मिसेज पाटनकर ने डाक्टर को पूरी बात बताई तो वह बोला, ‘‘हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं मगर बच्ची के पापा के विषय में आप को ही बताना पड़ेगा.’’ बच्ची को मिसेज सान्याल को सुपुर्द कर मिसेज पाटनकर रिया के वार्ड में आ गईं. रिया को होश आ गया था. वह उन्हें देखते ही बोली, ‘‘मेरी बेटी कहां है, उसे क्या हुआ है, आप कुछ बताती क्यों नहीं हैं? इतना कहते हुए वह फिर बेहोश होने लगी तो मिसेज पाटनकर उस के सिरहाने बैठ गईं और बड़े प्यार से उस का माथा सहलाने लगीं.

लम्हों ने खता की थी

देशी गाय से दूध उत्पादन बेहतर तरीकों से ज्यादा कमाई

वाकई विदेशी चीजों की चमक में देशी चीजों का वजूद गुम सा हो गया है. ऐसा ही कुछ हाल भारत की देशी गायों का भी है. वैसे हकीकत तो यह है कि हिंदुस्तान की देशी गायें लाजवाब होती हैं. आखिर क्याक्या खूबियां पाई जाती हैं, भारत की देशी गायों में? आइए जानते है.

आमतौर पर माना जाता है कि भैंस के मुकाबले गाय और वह भी यदि देशी हो तो दूध कम देती है. हमारे समाज में गाय के नाम पर राजनीति, गौपूजा के नाम पर पाखंड, गोहत्या के नाम पर होहल्ला व लड़ाईझगड़े तो खूब होते हैं, लेकिन कोई यह नहीं देखता कि देशी गायों को सड़कों पर खुला छोड़ दिया जाता है और वे अपना पेट भरने के लिए प्लास्टिक, कूड़ाकचरा, कील व कांच आदि खाती फिरती हैं. ठीक से देखभाल न होने की वजह से देशी गायें दूध कम व बच्चे कमजोर देती हैं. वे अकसर बीमार रहती हैं और बेवक्त मर जाती हैं. यदि उम्दा नस्ल की देशी गाय सही तरीके से पालें, पौष्टिक चारा, खली, मिनरल मिक्सचर व दवाएं आदि समय से दें तो उन से ज्यादा दूध लिया जा सकता है.

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भारत सरकार के कृषि मंत्री खुद मानते हैं कि हमारे देश में देशी नस्ल की गायों को बचाने व बढ़ाने के लिए अब तक खास ध्यान नहीं दिया गया. लिहाजा देशी गायें अपने ही देश में लाचार हो गई हैं. अंधी होड़ में फंसे ज्यादातर पशुपालक नहीं देखते कि रोज 25-30 लीटर दूध देने वाली विदेशी गायें भारत में रह कर 10 लीटर दूध पर ही अटकी रहती हैं. जर्सी गायें देशी के मुकाबले जल्दी दूध देना बंद कर देती हैं. उन के लिए ज्यादा चारा व पानी चाहिए होता है. इसलिए देशी गायों के मुकाबले जर्सी नस्ल की गायों के खानपान पर खर्च ज्यादा होता है. नतीजतन विदेशी गायों के रखरखाव व उन के दूध की लागत ज्यादा आती है और पशुपालकों को डेरी के काम में कमाई कम होती है.

देशी नस्लें

गिर, लालसिंधी, थारपारकर, राठी, साहिवाल, कंकरेज, ओनगोल, हरियाणा, मालवी, भगनाड़ी, नागौरी, निमाड़ी, पवांर, दज्जल, निलोर, गावलाव और वेचूर आदि 39 नस्लों की देशी गायें हमारे देश के कृषि मंत्रालय के रिकार्ड में दर्ज हैं. बहुत से किसान नहीं जानते कि इन में  सिंधी, थारपारकर, राठी, साहिवाल व कंकरेज नस्लों की देशी गायें ज्यादा दूध देती हैं. गुजरात की मशहूर गिर नस्ल की गाय रोजाना 62 लीटर तक दूध देती है. डेरी चलाने वाले माहिरों का मानना है कि भारत में भी देशी गायों को पालने में खर्च कम होता है, लेकिन यदि उन्हें पूरा व पौष्टिक खाना और सही माहौल मिले तो उन के दूध देने की कूवत बढ़ा कर दोगुनी की जा सकती है. अपने देश में देशी गायों के दूध में कमी के कई कारण हैं. मसलन ज्यादातर पशुपालक गायपालन का बुनियादी ढाचा बेहतर नहीं करते, चारा खराब व कम देते हैं और उम्दा नस्ल की गायें नहीं चुनते. जर्सी गाय रोजाना 20-25 लीटर व होलस्टीन फ्रेजियन गाय रोजाना 30-40 लीटर तक दूध दे सकती हैं, लेकिन देशी गायों की दूध देने की कूवत को हमारे देश में ठीक तरह से परखा ही नहीं गया. उन की नस्लों, उन के चारे व रखरखाव आदि में सुधार न कर के हम ने उन्हें भुला दिया व अंजाम पर नजर डाले बिना ही विदेशी नस्लों की गायों को अपना लिया.

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जानकारी जरूरी है

हमारे देश में ज्यादातर पशुपालक अनपढ़ हैं. उन में जागरूकता व समझदारी नहीं है. उन्हें नहीं पता कि देशी गायों के दूध में ए 2 जैसे फायदेमंद व बेमिसाल कुदरती गुण होते हैं. फिर भी देशी गाय के दूध की वाजिब कीमत नहीं मिलती, क्योंकि उस का बाजार ही तैयार नहीं किया गया. गौशालाओं को बढ़ावा न देने से भी देशी गायों की हालत खराब है. ब्राजील ने साल 1850 में गिर, कांकरेज व ओनगोल गायें भारत से मंगाई थीं. वहां इन नस्लों के सुधार पर ऐसा काम किया गया, जो पूरी दुनिया में मिसाल है. आज हमारा देश ब्राजील से उन नस्लों का सीमन मंगा रहा है. साल 2000 में देशी गायों की नस्ल सुधार के लिए 11,000 करोड़ रुपए जारी किए गए थे, लेकिन 16 सालों में कोई खास सुधार नहीं हुआ.

देशीविदेशी गायों में अंतर

देशी और विदेशी गायों में बहुत अंतर है. मसलन देशी गाय पर रोज का खर्च करीब 150 रुपए होता है, जबकि विदेशी गाय पर रोजाना 450 रुपए के आसपास खर्च होते?हैं, क्योंकि विदेशी गायें ज्यादा खाती हैं. देशी गाय के दूध में फैट 6-7 फीसदी और विदेशी में सिर्फ 2-3 फीसदी होता है. इसी तरह देशी गायों की ब्यांत जीवन में 10-12 बार, लेकिन विदेशी की सिर्फ 4-5 बार ही होती है. इस के अलावा एक अहम बात यह भी है कि देशी गाय की देखभाल करना आसान है. उस की डाक्टरी जांच महीने में 1 बार कराने से भी काम आसानी से चल जाता है, लेकिन विदेशी गाय नाजुक होने की वजह से उस की डाक्टरी जांच हर हफ्ते करानी होती है. दरअसल, हमारे देश की आबोहवा विदेशी नस्ल की गायों के माफिक नहीं है. इसलिए वे यहां आराम महसूस नहीं करतीं और देशी गायों से ज्यादा खर्चीली साबित होती हैं.

देशी गायों के लिए माहौल माकूल होने से वे कम बीमार होती हैं. उन में सर्दी व सूखे की मार सहने की कूवत होती है. उन के इलाज पर खर्च कम होता है. विदेशी गायों को यहां गरमी ज्यादा लगती है, लिहाजा उन पर खर्च ज्यादा होता है. देशी गाय का मूत्र 80 रुपए प्रति लीटर तक बिकता है, लेकिन विदेशी गायों के मूत्र की कुछ कीमत नहीं मिलती. देशी गाय का मूत्र खेती में कीड़े मारने का देशी घोल बनाने के काम आता है.

कामयाब गायपालक

मेरठ में कई सालों से कामयाबी के साथ चल रही संस्था गऊ धाम ने मवाना के पास एक गांव में 100 से भी ज्यादा देशी नस्लों की गायें नए, सुधरे व पूरे वैज्ञानिक तरीके से पाल रखी हैं. ये गायें भरपूर दूध देती हैं. उन का दूध 69 रुपए प्रति लीटर की दर से घरों में सप्लाई होता है. उन के दूध से बना मक्खन 800 रुपए व देशी घी 1,000 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है. इस के अलावा दही, मट्ठा ,सफेद रसगुल्ले, सुगंधित दूध व गोबर से अगरबत्ती जैसे उत्पाद भी बना कर बेचे जाते हैं. शहरी अमीरों में देशी गाय के दूध की मांग बहुत है, लेकिन हर इलाके में यह आसानी से नहीं मिलता. इसलिए किसान अपने बच्चों को यह काम करा सकते हैं. इसी तर्ज पर पटौदी रेवाड़ी रोड पर बसे गांव मौजाबाद में एचएस डेरी चल रही है.इस के संचालक व युवा उद्यमी अरविंद कुमार देशी गाय का ताजा दूघ 1 लीटर वाली कांच की बोतलों में रोज सुबह कार से गुड़गांव की पौश कालोनियों में घरघर पहुंचाने का काम कर रहे हैं.

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माहिरों से मेल जरूरी

गायपालन से कमाई बढ़ाने के लिए नई, सही व पूरी जानकारी व माहिरों से तालमेल रख कर हर पहलू की गहराई में जाना जरूरी है. नए तरीके अपना कर बेहतर नतीजे हासिल करना जरूरी है. डेरी चलाने के बेहतर तरीके नेशनल डेरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, एनडीआरआई, करनाल से सीखे जा सकते हैं. जानवरों को होने वाली बीमारियों की रोकथाम, इलाज, दवाओं व बेहतर चारे आदि की जानकारी भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, आईवीआरआई, इज्जतनगर, बरेली से हासिल की जा सकती है. सरकारी स्कीमों की जानकारी कृषि मेलों व गोष्ठियों में हिस्सा ले कर या पशुपालन महकमे से हासिल की जा सकती है.

देशी गायों को बचाने, बढ़ाने, उन पर खोजबीन करने, उन की नस्ल सुधारने व उन की उत्पादकता बढ़ाने का सब से जरूरी काम मेरठ में चल रहे केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान ने किया है. वहां के माहिरों ने होलस्टीन फ्रेजियन व देशी नस्ल की साहीवाल गाय के मेल से फ्रीजवाल नाम की संकर गाय निकाली है, जो देश के 4 हिस्सों में लगभग 300 दिनों के दौरान 3600 लीटर तक दूध दे रही है. फिलहाल हमारे देश में फ्रीजवाल नस्ल की 17, 116 गायें व 105 सांड़ हैं. इस गाय की पहली ब्यांत 974 दिनों में होती है और उस के बाद दूसरी बार में 426 दिनों का अंतर रहता है. इस के अलावा इस संस्थान में गिर व कंकरेज आदि देशी नस्लों के उन्नत साड़ों का सीमन भी महफूज रखा जाता है, जिसे पशुपालक वहां से ले सकते हैं.

उम्दा नस्ल की गायों के बारे में ज्यादा जानकारी व नई तकनीक हासिल करने के लिए पशुपालक इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:

निदेशक, केंद्रीय गोपशु अनुसंधान संस्थान, ग्रास फार्म रोड, मेरठ कैंट, पिन: 250001, उत्तर प्रदेश. फोन: 0121-2657136

राजकुमार सेवक : एक सफल गौपालक

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में कांठ से 4 किलोमीटर दूर मेन रोड पर बसा एक गांव है रसूलपुर गूजर. वहां के पढ़ेलिखे व जागरूक किसान राजकुमार सेवक ने 11 जून 2015 को राज्य सरकार की कामघेनु स्कीम के तहत 50 गायें खरीद कर अपनी मिनी डेरी खोली थी. इस काम में कुल लागत का 25 फीसदी यानी करीब 13 लाख रुपए उन्होंने अपने पास से लगाए थे व 39 लाख 50 हजार रुपए का लोन कर्नाटक बैंक से लिया था. सेवक ने बताया कि यदि लगन, मेहनत व सेवा भाव से काम किया जाए तो गाय पाल कर डेरी चलाना मुश्किल नहीं है. लिए गए लोन पर बतौर छूट 12 फीसदी ब्याज का भुगतान पशुपालन महकमा बैंक को कर रहा है. इसलिए 5 साल की 60 मासिक किश्तों में सिर्फ कर्ज की मूल रकम अदा करनी है. अब डेरी में देशी नस्ल की साहीवाल व क्रास ब्रीड की 42 गायें, 20 बछिया व 15 मुलाजिम हैं. रोज करीब डेढ़ क्विंटल दूध निकलता है. आगे गोबर गैस प्लांट, रिटेल पैक्ड दूध की सप्लाई व गोबर से अगरबत्ती बनाने की योजना है.

सोने की खान है गाय का गोबर

अमीर देशों में गाय का सूखा गोबर टर्बाइन में जला कर व गोबर गैस प्लांट की मदद से भरपूर बिजली बनाई जा रही है. अपने देश में भी 200 किसान गाय के गोबर, मुर्गी की बीट व सड़े फलसब्जी आदि खेती के कचरे से बिजली बनाने के प्लांट लगा चुके हैं. 1 गाय रोज 15 से 25 किलोग्राम गोबर करती है. 20 किलोग्राम गोबर से 1 घन मीटर गैस बनती है, जिस से 2 किलोवाट बिजली बन जाती है. अपने देश में जनरेटर व डाइजेस्टर आदि के जरीए गाय के गोबर से 3 से 125 किलोवाट तक बिजली बनाने के प्लांट लगाए जा रहे हैं. इस बारे में किसान इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:मै.परफेक्ट बायोवेस्ट एंड पावर मैनेजमैंट प्राइवेट लिमिटेड बी 301, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज 1, नई दिल्ली 110020, फोन : 9311160471

गाय के गोबर व पेशाब से मशीन के जरीए अगरबत्ती, घूपबत्ती व मच्छर भगाने की क्वाइल आदि भी बनाई जाती हैं. इस के लिए किसान इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:

मै. सीएस एंड सन, 39 अमर कांपलेक्स,भगवती गार्डन, उत्तम नगर, नई दिल्ली 110059. फोन : 088750005514

इस के अलावा गाय के गोबर की सड़ी खाद नर्सरी वालों को खुली व थोक भाव में 2-2 किलोग्राम के पैकेट बना कर भी बेची जा रही है. ईंधन में इस्तेमाल के लिए सदियों पुराने तरीके से गोबर के उपले गोल, बेडौल व बड़े साइज के बनते थे, लेकिन अब नई तकनीक का जमाना है. लिहाजा गोबर के कंडे, टिक्की, लट्ठे व बरतन आदि बनाने की भी मशीनें आ गई हैं. 10000 से 30000 हजार रुपए तक की इन मशीनें के इस्तेमाल से पैसे, समय व मेहनत बचती है और काम जल्दी और ज्यादा बेहतर तरीके से होता है. ज्यादातर पशुपालक नहीं जानते कि देशी गाय के गोबर से बने कंडे पूजापाठ में इस्तेमाल के लिए 125 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकते हैं. आनलाइन मंगाने पर छोटे साइज में बने व पन्नी में पैक्ड 200 ग्राम काउ डंग केक (यानी गाय के गोबर के केक) व टिक्की की कीमत 25 रुपए है. इन्हें बनाने की मशीनों के बारे में ज्यादा जानकारी इस पते से हासिल की जा सकती है:

मैं. डिप टेक्नोलाजी, 10 उमिया एस्टेट, राबरी कालोनी, उमरैवाडी, अहमदाबाद : 380021.

फोन : 08048018796

देशी दवाएं बनाने में देशी गाय के उत्पादों का इस्तेमाल सदियों से हो रहा है. अब गौमूत्र को डिस्टिल्ड यानी आसवित कर के बदबू रहित गो अर्क बनाया जाता है. देशी गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र व गोबर से पंचगव्य मशहूर नुस्खा बनता है. यह नशे की लत व खानपान की बुरी आदतों से छुटकारा दिलाने, धीमे जहर के खराब असर को कम करने व तनबदन की प्रतिरोधक कूवत बढ़ाने की अच्छी दवा है. इसलिए इसे बना कर व बेच कर खासी कमाई की जा सकती है.

फायदेमंद सरकारी स्कीमें

देशी नस्ल की गायों को बढ़ाने व उन की नस्लों का सुधार करने के मकसद से सरकार ने कई तरह की स्कीमें चला रखी हैं. पशुपालन महकमे से उन सब की जानकारी ले कर मिल रही सहूलियतों का भरपूर फायदा उठाना चाहिए.  मसलन केंद्र सरकार ने 28 जुलाई 2014 को राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरू करने का ऐलान किया था. 500 करोड़ रुपए की इस स्कीम में पहले साल में खर्च करने के लिए 150 करोड़ रुपए दिए गए थे. इस के तहत 60 फीसदी दुघारू व 40 फीसदी बूढ़ी या बीमार हो चुकी गायों को रखने वाले संगठनों को सरकार माली इमदाद देगी. हर गाय का एक अलग पहचान नंबर होगा व देश भर में गोग्राम व पीपीपी मौडल पर गोपालक संघ बनाए जाएंगे. इस स्कीम के तहत गाय के गोबर व पेशाब से कार्बनिक खाद बना कर भी किसानों को बढ़ावा दिया जाएगा. उत्तर प्रदेश की सरकार ने पशुपालकों को बढ़ावा देने के लिए कामघेनु स्कीम चला रखी है. इस के तहत 100 दुधारू पशुओं की कामघेनु डेरी, 50 पशुओं की मिनी कामघेनु डेरी व 25 पशुओं की माइक्रो मिनी कामघेनु डेरी खोलने पर लागत का 75 फीसदी तक का कर्ज रियायती दरों पर सरकार बैंक से दिलाती है और कर्ज पर ब्याज खुद देती है.

हरियाणा सरकार ने भी देशी नस्लों की गायों को बचाने व बढ़ाने की खास स्कीम बनाई है. इस के तहत आनलाइन बुकिंग करने के बाद देशी गाय का दूध अब बिना किसी अलग खर्च के घर बैठे मिला करेगा. 1 नवंबर 2016 से यह काम हरियाणा सहकारी डेरी फेडरेशन ने शुरू किया है. इस के अलावा बाजार की सहूलियत मुहैया कराने के लिए हरियाणा में चल रहे इंडियन आयल के सभी 3 हजार पैट्रोल पंपों पर अब वीटा दूध के उत्पाद भी मिला करेंगे. जाहिर है कि इस से दूध उत्पादकों को फायदा पहुंचेगा.

Diwali Special : घर पर बनाएं बादाम का हलवा

बादाम का हलवा खाने में बहुत ही टेस्टी लगता है. इसमें बादाम को ​छीलकर उसका पेस्ट बनाकर घी में भूना जाता है, और इसे बनाना भी बेहद आसान है.

सामग्री

बादाम (250 ग्राम)

देसी घी (13 टेबल स्पून)

स्पून चीनी (10 टेबल)

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बनाने की वि​धि

-गर्म पानी में बादाम हो हल्का से उबाल लें.

-बादाम को छील लें.

बादाम का पेस्ट बनाने के लिए इन्हें ब्लेंडर में डालकर दरदरा पेस्ट बना लें.

-एक पैन में देसी घी गर्म करें और इसमें बादाम का पेस्ट डालें.

-इसमें चीनी डालें और धीमी आंच पर गोल्डन ब्राउन होने तक भूनें.

-हलवा तैयार है, इसे कटे हुए बादाम से गार्निश करें.

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Crime Story: नफरत की आग

बात 18 फरवरी, 2019 की है. शाम करीब 5 बजे रमाशंकर गुप्ता एडवोकेट पदमा गुप्ता के केशव नगर स्थित घर पहुंचे तो उन के मकान का मेनगेट बंद था. गेट के बाहर 2 युवक खड़े थे. दोनों आपस में बतिया रहे थे. रमाशंकर ने उन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम क्रमश: मोहित और शुभम बताए. उन्होंने बताया कि वे दोनों औनलाइन शौपिंग कुरियर डिलिवरी बौय हैं. स्नेह गुप्ता ने औनलाइन कोई सामान बुक कराया था, वह उस सामान को देने आए हैं. लेकिन आवाज देने पर वह न तो गेट खोल रही हैं और न ही फोन रिसीव कर रही हैं.

रमाशंकर गुप्ता स्नेह के मौसा थे. वह उसी से मिलने आए थे. कुरियर बौय मोहित की बात सुन कर रमाशंकर का माथा ठनका. उन्होंने भी स्नेह का मोबाइल नंबर मिलाया. लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ. इस के बाद रमाशंकर ने स्नेह की मां एडवोकेट पदमा गुप्ता को फोन किया. वह उस समय कचहरी में थीं. पदमा गुप्ता ने उन्हें बताया कि स्नेह घर पर ही है. शायद वह सो गई होगी, जिस की वजह से काल रिसीव नहीं कर रही होगी.

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रमाशंकर गुप्ता ने किसी तरह गेट खोला और अंदर गए. उन्होंने स्नेह को कई आवाजें दीं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. मेनगेट से लगा बरामदा था. बरामदे में पदमा का पालतू पामेरियन कुत्ता टहल रहा था. 2 कमरों के दरवाजे भी खुले थे.

रमाशंकर स्नेह को खोजते हुए पीछे वाले कमरे में पहुंचे तो उन के मुंह से चीख निकल गई. स्नेह खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. उस की सांसें चल रही थीं या थम गईं, कहना मुश्किल था. स्नेह की यह हालत देख कर कुरियर बौय मोहित व शुभम भी घर के अंदर पहुंच गए. कमरे में एक लड़की की लाश देख कर वह भी आश्चर्यचकित रह गए.

रमाशंकर ने पुलिस को खबर देने के लिए कई बार 100 नंबर पर काल की, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया तो वह डिलिवरी बौय की मोटर साइकिल पर बैठ कर उस्मान पुलिस चौकी पहुंचे और उन्होंने वारदात की सूचना दी. चौकी से सूचना थाना नौबस्ता को दे दी गई. उस के बाद थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह पुलिस टीम के साथ डब्ल्यू ब्लौक केशव नगर स्थित एडवोकेट पदमा गुप्ता के घर पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी.

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थानाप्रभारी उस कमरे में पहुंचे, जहां 24 वर्षीय स्नेह खून से लथपथ पड़ी थी. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. स्नेह के पैर दुपट्टे से बंधे थे और दोनों हाथों की कलाइयां किसी तेजधार वाले हथियार से काटी गई थीं. सिर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, जिस से सिर फट गया था. गरदन को रेता गया था और चेहरे पर भी कट का निशान था.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने स्नेह के दुपट्टे से बंधे पैर खुलवाए फिर जीवित होने की आस में एंबुलैंस मंगवा कर तत्काल चकेरी स्थित कांशीराम ट्रामा सेंटर भिजवाया. लेकिन वहां डाक्टरों ने स्नेह को देखते ही मृत घोषित कर दिया था. थानाप्रभारी ने पदमा गुप्ता की बेटी की घर में घुस कर हत्या करने की जानकारी पुलिस के बड़े अधिकारियों को दी तो हड़कंप मच गया.

इधर पदमा गुप्ता कचहरी से सीधे अपने साथियों के साथ कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंचीं और बेटी का शव देख कर गश खा कर गिर पड़ीं. महिला पुलिसकर्मी व उन के सहयोगी वकीलों ने उन्हें संभाला. होश आने पर वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं.

चूंकि मामला एक वकील की जवान बेटी की हत्या का था. अत: सूचना पाते ही एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएसपी अनंत देव ने मौके पर डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

सूचना पा कर आईजी आलोक सिंह अस्पताल पहुंचे और उन्होंने पदमा गुप्ता को धैर्य बंधाया. उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि हत्यारा कितना भी पहुंच वाला क्यों न हो, बच नहीं पाएगा. इस के बाद आईजी घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में खून ही खून फैला था. कमरे में अंदर रखी अलमारी खुली थी और सामान पलंग पर बिखरा पड़ा था. पालतू कुत्ता बरामदे से ले कर गेट तक चहलकदमी कर रहा था. वह डरासहमा नजर आ रहा था.

पुलिस अधिकारियों ने अलमारी खुली होने व सामान बिखरे पड़े होने से अनुमान लगाया कि हत्या शायद लूट के इरादे से की गई होगी. शव के पास मृतका का मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने अपने पास सुरक्षित रख लिया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. टीम ने अलमारी व पलंग और कई जगह से फिंगरप्रिंट लिए. घटनास्थल के पास ही खून सनी एक ईंट पड़ी थी. इस ईंट से भी टीम ने फिंगरप्रिंट लिए और जांच हेतु ईंट को भी सुरक्षित कर लिया. टीम को वाशिंग मशीन पर रखा पानी से धुला एक चाकू मिला. इस धुले चाकू की जब टीम ने जांच की तो पुष्टि हुई कि उस पर लगा खून धोया जा चुका है. टीम ने चाकू को भी अपने पास सुरक्षित कर लिया.

खोजी कुतिया ‘जूली’ घटनास्थल को सूंघ कर भौंकते हुए पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी के घर जा घुसी. उस के घर के अंदर चक्कर काटने के बाद जूली वापस आ गई. पुलिस ने संदेश चतुर्वेदी से बात की लेकिन उन से हत्या के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी मृतका की मां पदमा गुप्ता से पूछताछ करना चाहते थे. अत: वह कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंच गए. वह बेटी के शव के पास बदहवास बैठी थीं. उन के आंसू थम नहीं रहे थे. उस समय उन की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन से कुछ पूछताछ की जा सके. जरूरी काररवाई के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

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पुलिस अधिकारियों को इस बात का अंदेशा था कि कहीं वकील उग्र न हो जाएं, अत: उन्होंने पोस्टमार्टम हाउस पर पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

भारी पुलिस सुरक्षा के बीच दूसरे दिन 3 डाक्टरों के पैनल ने स्नेह का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ राकेशपति तिवारी, कांशीराम ट्रामा सेंटर के डा. अभिषेक शुक्ला और विधनू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डा. श्रवण कुमार शामिल रहे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर के पीछे भारी वस्तु के प्रहार करने, चाकू से गले पर वार करने के 3 निशान और चेहरे पर एक निशान मिला. इस के अलावा रिपोर्ट में यह भी बताया कि उस के दोनों हाथों की कलाइयां चाकू से काटी गई थीं. बताया कि स्नेह की मौत खून ज्यादा मात्रा में निकलने की वजह से हुई थी. वहीं दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइडें भी बना ली गईं.

महिला एडवोकेट की बेटी की हत्या का समाचार दैनिक समाचार पत्रों की सुर्खियां बना तो कानपुर कचहरी खुलते ही वकीलों में रोष छा गया. एडवोकेट पंकज कुमार सिंह, ताराचंद रुद्राक्ष, रतन अग्रवाल, टीनू शुक्ला, डी.एन. पाल, संजीव कनौजिया, शरद कुमार शुक्ला आदि अधिवक्ता भवन पर एकत्र हुए.

इस के बाद इन वकीलों ने हत्या के विरोध में न्यायिक काम ठप करा दिया. इस के बाद वकीलों ने एसएसपी कार्यालय के बाहर सड़क पर वाहन खड़े कर रास्ता बंद कर दिया, जिस से लंबा जाम लग गया.

एसएसपी अनंत देव ने सीओ (कोतवाली) राजेश पांडेय को प्रतिनिधि के रूप में वकीलों के पास भेजा. श्री पांडेय ने उग्र वकीलों को आश्वासन दिया कि स्नेह के हत्यारे जल्द ही पकड़ लिए जाएंगे. इस आश्वासन पर वकील शांत हुए.

कानपुर बार एसोसिएशन ने इस बात का भी फैसला लिया कि स्नेह के हत्यारोपियों की कोई भी वकील पैरवी नहीं करेगा. अब तक पदमा गुप्ता सामान्य स्थिति में आ चुकी थीं. अत: एसपी (साउथ) रवीना त्यागी उन से पूछताछ करने उन के आवास पर पहुंचीं.

पूछताछ में पदमा गुप्ता ने बताया कि 18 फरवरी की सुबह सब कुछ सामान्य था. बेटी स्नेह ने खाना बनाया और उसे टिफिन लगा कर दिया. इस के बाद वह कोर्ट चली गईं. शाम सवा 5 बजे बहनोई रमाशंकर द्वारा ही उन्हें बेटी की हत्या के बारे में सूचना मिली.

‘‘आप की बेटी की हत्या किस ने की? आप को किसी पर शक है?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, मुझे 2-3 लोगों पर शक है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

‘‘किस पर?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी और उस के बेटे सूरज तथा मोहल्ले के शोहदे अन्नू अवस्थी पर.’’

‘‘वह कैसे?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

पदमा गुप्ता ने बताया, ‘‘संदेश चतुर्वेदी और उस का बेटा पिछले 3 महीने से उन के साथ विवाद कर रहे हैं. दोनों बापबेटे हर समय झगड़ा व मारपीट के लिए उतारू रहते हैं. इन लोगों ने सन 2012 में उन पर जानलेवा हमला भी करवाया था और मोहल्ले का शोहदा अन्नू अवस्थी उन की बेटी से छेड़छाड़ करता था. लोकलाज के कारण उस की शिकायत नहीं की. इन्हीं कारणों से इन लोगों पर शक है.’’

‘‘घर में क्या लूटपाट भी हुई?’’ एसपी रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, अलमारी से कुछ गहने व मामूली नकदी गायब है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

पदमा गुप्ता से पूछताछ के बाद एसपी रवीना त्यागी ने स्नेह की हत्या के खुलासे के लिए एक विशेष टीम गठित की. इस टीम में क्राइम ब्रांच, सर्विलांस टीम व सिविल पुलिस के तेजतर्रार दरजन भर पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

पदमा गुप्ता ने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी, उस के बेटे सूरज तथा एक अन्य युवक अन्नू अवस्थी को उठा लिया. पुलिस टीम को यह भी संदेह था कि किसी बेहद नजदीकी ने ही स्नेह की हत्या की है.

अत: पुलिस ने मृतका स्नेह के मौसा रमाशंकर को भी उठा लिया. क्योंकि रमाशंकर ही सब से करीबी रिश्तेदार थे और उन का स्नेह के घर आनाजाना था. दूसरे वह अचानक घटना वाले दिन स्नेह के घर पहुंचे भी थे.

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर संदेश चतुर्वेदी ने पदमा गुप्ता से विवाद की बात तो स्वीकार की लेकिन हत्या करने या कराने से साफ इनकार कर दिया. पूछताछ और बौडी लैंग्वेज से पुलिस को भी लगा कि संदेश व उस के बेटे सूरज का स्नेह की हत्या में हाथ नहीं है. अत: इस हिदायत के साथ उन्हें छोड़ दिया कि जरूरत पड़ने पर उन्हें फिर से थाने आना पड़ सकता है.

शोहदे अन्नू अवस्थी से भी टीम ने सख्ती से पूछताछ की. अन्नू ने स्वीकार किया कि वह स्नेह से एकतरफा प्यार करता था. उस ने उस के साथ एकदो बार छेड़खानी भी की थी, पर हत्या जैसा जघन्य अपराध उस ने नहीं किया है.

पुलिस ने उस के मोबाइल को चैक किया तो घटनास्थल वाले दिन उस की लोकेशन स्नेह के घर के आसपास की मिली. इस शक के आधार पर पुलिस टीम ने पुन: उस से सख्त रुख अपना कर पूछताछ की लेकिन उस से कोई खास जानकारी नहीं मिली.

पुलिस किसी निर्दोष को जेल नहीं भेजना चाहती, अत: अन्नू अवस्थी को भी हिदायत के साथ छोड़ दिया.

रमाशंकर गुप्ता, मृतका स्नेह का मौसा थे और वह बेहद करीबी रिश्तेदार भी थे. पुलिस ने जब उन से पूछा कि घटना वाले दिन वह अचानक स्नेह के घर क्यों और कैसे पहुंचे.

इस पर रमाशंकर ने बताया कि स्नेह ने उन से मोबाइल पर बतियाते हुए कहा था कि 20 फरवरी को उस के इंस्टीट्यूट में कोई कार्यक्रम है. उसे भी कार्यक्रम में हिस्सा लेना है, अत: कुछ पैसे चाहिए. मैं ने उसे पैसे देने का वादा कर लिया था.

18 फरवरी को वह रतनलाल नगर आए थे. यहीं उन्हें याद आया कि स्नेह ने उन से पैसे मांगे थे. इसलिए वह रतनलाल नगर से सीधा डब्ल्यू ब्लौक केशवनगर स्थित स्नेह के घर पहुंचे. वहां 2 युवक कुरियर लिए खड़े थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि वह काफी देर से गेट खटखटा रहे हैं. न तो दरवाजा खुल रहा है और न ही स्नेह फोन रिसीव कर रही है. इस के बाद जब वह घर में गए तो वहां स्नेह की लाश देखी.

रमाशंकर पुलिस की निगाह में संदिग्ध थे. इसलिए उन की सच्चाई जानने के लिए पुलिस टीम ने पदमा गुप्ता से उन के बारे में जानकारी ली. पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट देते हुए कहा कि वह उस की बहन का सुहाग है. समयसमय पर वह उन की मदद करते रहते हैं. स्नेह को वह बेटी जैसा प्यार करते थे. स्नेह भी उन से खूब हिलीमिली थी. वह उन से अकसर फोन पर बतियाती रहती थी.

पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट दी तो पुलिस ने भी रमाशंकर को छोड़ दिया. इस के बाद पुलिस टीम ने कुरियर बौय मोहित और शुभम को उठाया. पुलिस को शक था कि कहीं वारदात को अंजाम दे कर दोनों बाहर तो नहीं आ गए और तभी रमाशंकर के आ जाने पर उन्होंने कहानी बनाई हो.

पुलिस ने मोहित से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किदवईनगर में रहता है, जबकि उस का साथी शुभम यशोदा नगर में रहता है. स्नेह ने औनलाइन कोई सामान मंगाया था. उसी का पैकेट ले कर वह दोनों उस के घर गए थे. पैकेट पर स्नेह का मोबाइल नंबर लिखा था. उस नंबर को उस ने कई बार मिलाया. लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं

इंतेहा से आगे

वे दोनों जाने ही वाले थे कि रमाशंकर आ गए. उन्होंने सारी बात उन्हें बताई. पुलिस को कुरियर बौय की बातों पर विश्वास हो गया तो दोनों कुरियर बौय की डिटेल्स ले कर उन्हें भी थाने से भेज दिया.

स्नेह के मोबाइल से पुलिस टीम को 10 संदिग्ध फोन नंबर मिले. जांच करने पर पता चला कि यह नंबर स्नेह के घर काम कर चुके राजमिस्त्री, मजदूर, टिन शेड डालने वाले लोगों के थे. पुलिस ने इन नंबरों पर बात की और एकएक को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

इन में से एक नंबर ऐसा था, जो बंद था. इस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया तो पता चला कि यह नंबर घटना वाली शाम से बंद है. लेकिन उस रोज उस नंबर से दूसरे एक नंबर पर बात हुई थी. इस नंबर को पुलिस ने ट्रैस किया तो पता चला कि यह नंबर दबौली निवासी अमित का है. पुलिस टीम अमित की तलाश में जुट गई.

आखिर टीम ने नाटकीय ढंग से अमित को धर दबोचा. थाना नौबस्ता ला कर जब अमित से सख्ती से पूछताछ की तो अमित टूट गया. उस ने बताया कि बंद मोबाइल नंबर जुबेर आलम का है, जो मेहरबान सिंह पुरवा में रहता है. रतनलाल नगर में उस की वैल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान है. जावेद ने उसे बताया कि उस ने स्नेह की हत्या कबाड़ी सुरेश वाल्मिकी की मदद से की थी.

अमित के बयान से पुलिस टीम की टेंशन दूर हो गई. अमित के सहयोग से पुलिस ने महादेव नगर निवासी सुरेश वाल्मिकी को पकड़ लिया. पुलिस ने उस के पास से सोने के 4 कंगन भी बरामद कर लिए, जो उस ने पदमा गुप्ता के यहां से चुराए थे.

इस के बाद पुलिस टीम ने जुबेर आलम के मेहरबान सिंह पुरवा स्थित किराए के मकान पर छापा मारा लेकिन वह वहां नहीं मिला. वहां पता चला कि जुबेर आलम मकान खाली कर मुरादाबाद में अपने किसी रिश्तेदार के घर चला गया है. अब जुबेर आलम को पकड़ने के लिए पुलिस टीम ने गहरा जाल बिछाया. साथ ही मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

7 मार्च, 2019 को प्रात: 8 बजे एक खास मुखबिर से पुलिस टीम को पता चला कि जुबेर आलम अपनी दुकान का सामान निकालने व उसे बेचने आया है. वह इस समय चिंटिल इंग्लिश मीडियम स्कूल के पास मौजूद है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस वहां पहुंच गई और घेराबंदी कर उसे दबोच लिया.

थाने में जब उस का सामना सुरेश वाल्मिकी से हुआ तो वह सब समझ गया. फिर उस ने बिना किसी हीलाहवाली के पदमा गुप्ता की बेटी स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल लिया. जुबेर आलम ने चुराए गए जेवरों में से झुमका और एक अंगूठी दबौली के एक ज्वैलर्स के यहां बेची थी. पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से अंगूठी व झुमके बरामद कर लिए. साथ ही जुबेर के पास से 900 रुपए भी बरामद कर लिए.

चूंकि सुरेश और जुबेर आलम ने स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और उन से जेवर, नकदी भी बरामद हो गई थी, इसलिए पुलिस ने स्नेह की हत्या के जुर्म में जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को गिरफ्तार कर लिया.

यह जानकारी एसएसपी अनंतदेव तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को हुई तो दोनों अधिकारी थाने पहुंच गए और उन्होंने टीम की सराहना करते हुए 25 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की. फिर एसएसपी अनंतदेव ने प्रैस वार्ता कर इस चर्चित हत्याकांड का खुलासा पत्रकारों के समक्ष किया. पत्रकार वार्ता के दौरान अभियुक्तों ने स्नेह की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के नौबस्ता थानांतर्गत एक मोहल्ला केशवनगर पड़ता है. इसी मोहल्ले के डब्ल्यू ब्लौक में एडवोकेट पदमा गुप्ता अपनी बेटी स्नेह के साथ रहती थीं. यह उन का निजी मकान था. पदमा गुप्ता के पति राजकुमार गुप्ता अलग रहते हैं. दांपत्य जीवन में मनमुटाव के चलते उन्होंने पदमा को तलाक दे दिया था.

पदमा गुप्ता कानपुर कोर्ट में वकालत करती हैं. स्नेह की उम्र जब एक साल से भी कम थी, तभी उन के पति ने उन का साथ छोड़ दिया था.

पिता के प्यार से वंचित स्नेह की पदमा गुप्ता ने बड़े ही लाड़प्यार से परवरिश की थी. स्नेह बेहद खूबसूरत थी. पढ़ाई में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. इस के बाद उस ने पौलिटेक्निक में प्रवेश पा लिया था. वह महिला पौलिटेक्निक से फार्मेसी की पढ़ाई कर रही थी.

पदमा गुप्ता अपने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी से दुखी रहती थीं. वह और उस का बेटा सूरज हमेशा झगड़े पर उतारू रहते थे. पदमा गुप्ता मोहल्ले के अन्नू अवस्थी से भी परेशान थीं. पौलिटेक्निक आतेजाते वह स्नेह को परेशान करता था.

हालांकि स्नेह कड़े मिजाज की थी और वह अन्नू को पास नहीं फटकने देती थी. लेकिन अन्नू एकतरफा प्यार में पागल था, जिस से वह उस से छेड़छाड करने से बाज नहीं आता था. पदमा गुप्ता अन्नू को सबक तो सिखाना चाहती थीं, किंतु लोकलाज के कारण चुप बैठ जाती थीं.

पदमा गुप्ता की बहन जरौली निवासी रमाशंकर गुप्ता को ब्याही थी. रमाशंकर पीओपी कारोबारी थे. उन का पदमा गुप्ता के घर आनाजाना था. घरबाहर का कोई काम हो वह रमाशंकर के बिना नहीं कराती थी.

अक्तूबर 2018 में पदमा गुप्ता ने अपने मकान का निर्माण कराया था. इस में राजमिस्त्री, मजदूर, कारपेंटर आदि की व्यवस्था रमाशंकर ने ही कराई थी. प्लास्टिक की शेड डालने का ठेका रमाशंकर ने जुबेर आलम को दिया था. जुबेर आलम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर हापुड़ का रहने वाला था. कानपुर में वह परिवार सहित रहता था.

रतनलाल नगर में उस की वेल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान थी. वह शेड डालने का भी काम करता था. पदमा गुप्ता के घर शेड डालने का ठेका उस ने 14 हजार रुपए में लिया था. काम खत्म होने पर जुबेर आलम को पदमा गुप्ता ने 12 हजार रुपए दे कर उस के 2 हजार रुपए रोक लिए थे.

पदमा गुप्ता के घर के सामने शशि शुक्ला का मकान था. काम के दौरान पदमा गुप्ता ने जुबेर आलम को उन के यहां लोहे की जाली लगाने का ठेका दिलवा दिया था. साथ ही तय रकम भी दिलवा दी थी. लेकिन जुबेर आलम ने आधा काम किया. शशि शुक्ला पदमा को उलाहना देती थी. स्नेह के पास सभी कामगारों के फोन नंबर थे. वह जब भी जुबेर आलम को शशि शुक्ला के यहां जाली लगाने का काम पूरा करने को कहती तो वह बहाना बना देता था.

जुबेर आलम का एक दोस्त सुरेश वाल्मिकी था. सुरेश कबाड़ का काम करता था. सुरेश जुबेर की दुकान से भी कबाड़ खरीदता था. सो दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों की अकसर शराब की महफिल जमती थी.

दोनों पर लाखों का कर्ज था. सुरेश को कबाड़ के काम में घाटा हो गया था जबकि जुबेर आलम का बेटा बीमारी से जूझ रहा था, जिस से उस पर कर्ज हो गया था. दोनों कर्ज चुकाने की जुगत में परेशान रहते थे.

इधर एकडेढ़ माह से जुबेर आलम अपने 2 हजार रुपए मांगने स्नेह के घर आने लगा था. स्नेह उसे यह कह कर पैसा देने से मना कर देती थी कि पहले शशि आंटी के घर का काम पूरा करो. बारबार पैसा मांगने पर जब स्नेह ने पैसे नहीं दिए तो वह नफरत से भर उठा.

वह सोचने लगा कि वकील की लड़की जानबूझ कर उस की बेइज्जती कर रही है और उसे उस की मेहनत का पैसा नहीं दे रही. उस ने इस बाबत दोस्त सुरेश से सलाहमशविरा किया फिर निश्चय किया कि इस बार अगर उस ने पैसे देने से इनकार किया तो वह अपनी बेइज्जती का बदला ले कर ही रहेगा. इस के बाद उस ने 2 दिन स्नेह के घर की रेकी कर सुनिश्चित कर लिया कि सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे के बीच स्नेह घर में अकेली रहती है.

18 फरवरी, 2019 की दोपहर जुबेर आलम स्कूटर से अपने दोस्त सुरेश के साथ स्नेह के घर पहुंचा. जुबेर आलम ने गेट खटखटाया तो स्नेह ने गेट खोला. स्नेह उस समय घर पर अकेली थी. उस की मां पदमा गुप्ता कोर्ट गई हुई थीं.

जुबेर आलम का साथी सुरेश गेट के बाहर स्कूटर लिए खड़ा रहा और जुबेर आलम बरामदे में पहुंच गया. जुबेर को देख कर स्नेह का कुत्ता भौंका तो स्नेह ने इशारा कर के कुत्ते को शांत करा दिया. फिर स्नेह ने जुबेर से पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘बेबी, मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है, इसलिए हिसाब का बाकी 2 हजार रुपए लेने आया हूं.’’

‘‘देखो जुबेर, तुम्हें बाकी पैसा तभी मिलेगा जब तुम शशि शुक्ला आंटी का काम पूरा कर दोगे. वैसे भी मां घर पर नहीं हैं. शाम को जब वह आ जाएं, तब हिसाब लेने आ जाना.’’ स्नेह कड़ी आवाज में बोली.

जुबेर गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘बेबी, मेरा बेटा बीमार है. उसे दिखाने डाक्टर के पास जाना है. पूरा पैसा न सही 500 रुपए ही दे दो.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बेटे की बीमारी से क्या लेनादेना. इस समय मैं तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगी. समझे.’’ वह बोली.

स्नेह की बात सुन कर जुबेर तिलमिला उठा. उस की आंखों में क्रोध की ज्वाला धधक उठी. जुबेर अभी यह सोच ही रहा था कि वह इस बदमिजाज लड़की को सबक कैसे सिखाए, तभी स्नेह बोल पड़ी, ‘‘जुबेर, मुझे पलंग के पास एक अलमारी बनवानी है. उस की नाप ले लो.’’

इस के बाद वह जुबेर को अंदर के कमरे में ले गई. जुबेर ने स्नेह को इंचटेप पकड़ाया और वह पलंग पर चढ़ कर नाप लेने लगी. इसी समय नफरत से भरे जुबेर आलम की नजर जीने में रखी ईंट पर पड़ गई. उस ने लपक कर ईंट उठाई और भरपूर वार स्नेह के पीछे सिर में किया. स्नेह का सिर फट गया और वह पलंग के नीचे आ गिरी.

इसी समय खून से लथपथ पड़ी स्नेह के पैर उस ने उसी के दुपट्टे से बांध दिए. फिर रसोई में जा कर चाकू उठा लाया. इस के बाद उस ने चाकू से उस के गले को रेत दिया तथा दोनों हाथों की कलाइयों की नसें काट दीं. उस ने उस के चेहरे पर भी चाकू से वार कर दिया.

स्नेह को मौत के घाट उतारने के बाद जुबेर ने अलमारी का सामान पलंग पर बिखेर दिया और अलमारी से सोने के 4 कंगन, एक जोड़ी झुमके, एक अंगूठी और 900 रुपए निकाल लिए. यह सब ले कर वह घर के बाहर आ गया.

बाहर उस का दोस्त सुरेश स्कूटर स्टार्ट किए खड़ा था. इस के बाद स्कूटर से दोनों भाग गए. लेकिन शास्त्री चौक पर उस का स्कूटर खराब हो गया. तब उस ने मोबाइल फोन पर अपने एसी मैकेनिक दोस्त दबौली निवासी अमित को सारी घटना बताई और मोटरसाइकिल ले कर आने को कहा. लेकिन अमित घबरा गया. उस ने दोबारा फोन न करने की चेतावनी दे कर अपना फोन बंद कर दिया.

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इस के बाद सुरेश ने स्कूटर ठीक कराया और जुबेर को उस के घर छोड़ा. जुबेर ने 4 कंगन तो सुरेश को दे दिए तथा झुमके और अंगूठी उस ने उसी शाम दबौली के ज्वैलर के यहां 24 हजार रुपए में बेच दिए और रात में ही मिनी ट्रक पर सामान लाद कर पत्नीबच्चों सहित मुरादाबाद में रिश्तेदार के यहां रवाना हो गया. इधर घटना की जानकारी तब हुई जब कुरियर देने मोहित व शुभम आए.

8 मार्च, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अमित को पुलिस ने सरकारी गवाह बना लिया था.

 

लम्हों ने खता की थी- भाग 3: रिया के भारी डिप्रैशन के क्या कारण थे?

‘‘मैं सन्न रह गई थी संजय की बातें सुन कर. क्या यही सब सुनने के लिए मैं मौडर्न, फौरवर्ड और बोल्ड बनी थी? आज कई साल पहले कालेज में एक विदुषी लेखिका का भाषण का एक वाक्य याद आने लगा, ‘हमें नारी मुक्ति चाहिए, मुक्त नारी नहीं,’ और इन दोनों की स्थितियों में अंतर भी समझ में आ गया.

‘‘मैं ने इस स्थिति में एक प्रख्यात नारी सामाजिक कार्यकर्ता से बात की तो वह बड़ी जोश में बोली कि परिवार के लोगों और युगयुगों से चली आ रही सामाजिक संस्था विवाह की अवहेलना कर के और वयस्क होने तथा विरोध नहीं करने पर भी शारीरिक संबंध बनाना स्वार्थी पुरुष का नारी के साथ भोग करना बलात्कार ही है. इस के लिए वह अपने दल को साथ ले कर संजय के विरुद्ध जुलूस निकालेगी, उस का घेराव करेगी, उस के कालेज पर प्रदर्शन करेगी. इस में मुझे हर जगह संजय द्वारा किए गए इस बलात्कार की स्वीकृति देनी होगी. इस तरह वह संजय को विवाह पूर्व यौन संबंध बनाने को बलात्कार सिद्ध कर के उसे मुझ से कानूनन और सामाजिक स्वीकृति सम्मत विवाह करने के लिए विवश कर देगी अथवा एक बड़ी रकम हरजाने के रूप में दिलवा देगी, मगर इस के लिए मुझे कुछ पैसा लगभग 20 हजार रुपए खर्च करने होंगे. सामाजिक कार्यकर्ता की बात सुन कर मुझे लगा कि मुझे अपनी मूर्खता और निर्लज्जता का ढिंढोरा खुद ही पीटना है और उस के कार्यक्रम के लिए मुझे ही एक जीवित मौडल या वस्तु के रूप में इस्तेमाल होने के लिए कहा जा रहा है.

‘‘इस के बाद मैं ने एक प्रौढ़ महिला वकील से संपर्क किया जो वकील से अधिक सलाहकार के रूप में मशहूर थीं. उन्होंने साफ कह दिया, ‘अगर संजय को कानूनी प्रक्रिया में घसीट कर उस का नाम ही उछलवाना है तो वक्त और पैसा बरबाद करो. अदालत में संजय का वकील तुम से संजय के संपर्क से पूर्व योनि शुचिता के नाम पर किसी अन्य युवक के साथ शारीरिक संबंध नहीं होने के बारे में जो सवाल करेगा, उस से तुम अपनेआप को सब के सामने पूरी तरह निर्वस्त्र खड़ा हुआ महसूस करोगी. मैं यह राय तुम्हें सिर्फ तुम से उम्र में बड़ी होने के नाते एक अभिभावक की तरह दे रही हूं.

‘अगर तुम किसी तरह अदालत में यह साबित करने में सफल भी हो गईं कि यह बच्चा संजय का ही है और संजय ने उसे सामाजिक रूप से अपना नाम दे भी दिया तो जीवन में हरदम, हरकदम पर कानून से ही जूझती रहोगी क्या. देखो, जिन संबंधों की नींव ही रेत में रखी गई हो उन की रक्षा कानून के सहारे से नहीं हो पाएगी. यह मेरा अनुभव है. तुम्हारा एमबीए पूरा हो रहा है. तुम्हारा एकेडैमिक रिकौर्ड काफी अच्छा है. मेरी सलाह है कि तुम अपने को मजबूत बनाओ और बच्चे को जन्म दो. एकाध साल तुम्हें काफी संघर्ष करना पड़ेगा. 3 साल के बाद बच्चा तुम्हारी प्रौब्लम नहीं रहेगा. फिर अपना कैरियर और बच्चे का भविष्य बनाने के लिए तुम्हारे सामने जीवन का विस्तृत क्षेत्र और पूरा समय होगा.’

‘‘‘मगर जब कभी बच्चा उस के पापा के बारे में पूछेगा तो…’ मैं ने थोड़ा कमजोर पड़ते हुए कहा था तो महिला वकील ने कहा था, ‘मैं तुम से कोई कड़वी बात नहीं कहना चाहती मगर यह प्रश्न उस समय भी अपनी जगह था जब तुम ने युगयुगों से स्थापित सामाजिक, पारिवारिक, संस्था के विरुद्ध एक अपरिपक्व भावुकता में मौडर्न तथा बोल्ड बन कर निर्णय लिया था. मगर अब तुम्हारे सामने दूसरे विकल्प कई तरह के जोखिमों से भरे हुए होंगे. क्योंकि प्रैग्नैंसी को समय हो गया है. वैसे अब बच्चे के अभिभावक के रूप में मां के नाम को प्राथमिकता और कानूनी मान्यता मिल गई है. बाकी कुछ प्रश्नों का जवाब वक्त के साथ ही मिलेगा. वक्त के साथ समस्याएं स्वयं सुलझती जाती हैं.’’’

इतना सब कह कर रिया शायद थकान के कारण चुप हो गई. थोड़ी देर चुप रह कर वह फिर बोली, ‘‘मुझे लगता है आज समय वह विराट प्रश्न ले कर खड़ा हो गया है, मगर उस का समाधान नहीं दे रहा है. शायद ऐसी ही स्थिति के लिए किसी ने कहा होगा, ‘लमहों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई,’’’ यह कह कर उस ने बड़ी बेबस निगाहों से मिसेज पाटनकर को देखा. मिसेज पाटनकर किसी गहरी सोच में थीं. अचानक उन्होंने रिया से पूछा, ‘‘संजय का कोई पताठिकाना…’’ रिया उन की बात पूरी होने के पहले ही एकदम उद्विग्न हो कर बोली, ‘‘मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं मिसेज पाटनकर, मगर मुझे संजय से कोई मदद या समझौता नहीं चाहिए, प्लीज.’’

‘‘मैं तुम से संजय से मदद या समझौते के लिए नहीं कह रही, पर पिऊ के प्रश्न के उत्तर के लिए उस के बारे में कुछ जानना तो होगा. जो जानती हो वह बताओ.’’

‘‘उस का सिलेक्शन कैंपस इंटरव्यू में हो गया था. पिछले 4-5 साल से वह न्यूयार्क के एक बैंक में मैनेजर एचआरडी का काम कर रहा था. बस, इतना ही मालूम है मुझे उस के बारे में किसी कौमन फ्रैंड के जरिए से,’’ रिया ने मानो पीछा छुड़ाने के लिए कहा. रिया की बात सुन कर मिसेज पाटनकर कुछ देर तक कुछ सोचती रहीं, फिर बोलीं, ‘‘हां, अब मुझे लगता है कि समस्या का हल मिल गया है. तुम्हें और संजय को अलग हुए 6-7 साल हो गए हैं. इस बीच में तुम्हारा उस से कोई संबंध तो क्या संवाद तक नहीं हुआ है.

‘‘उस के बारे में बताया जा सकता है कि वह न्यूयार्क में रहता था. वहीं काम करता था. वहां किसी विध्वंसकारी आतंकवादी घटना के बाद उस का कोई पता नहीं चल सका कि वह गंभीर रूप से घायल हो कर पहचान नहीं होने से किसी अस्पताल में अनाम रोगी की तरह भरती है या मारा गया. अस्पताल के मनोचिकित्सक को यही बात पिऊ के पापा के बारे में बता देते हैं. वे अपनेआप जिस तरह और जितना चाहेंगे पिऊ को होश आने पर उस के पापा के बारे में अपनी तरह से बता देंगे और आज से यही औफिशियल जानकारी होगी पिऊ के पापा के बारे में.’’

‘‘लेकिन जब कभी पिऊ को यह पता चलेगा कि यह झूठ है तो?’’ कह कर रिया ने बिलकुल एक सहमी हुई बच्ची की तरह मिसेज पाटनकर की ओर देखा तो वे बोलीं, ‘‘रिया, वक्त अपनेआप सवालों के जवाब खोजता है. अभी पिऊ को नर्वस ब्रैकडाउन से बचाना सब से बड़ी जरूरत है.’’

‘‘ठीक है, जैसा आप ठीक समझें. पिऊ ठीक हो जाएगी न, मिसेज पाटनकर?’’ रिया ने डूबती हुई आवाज में कहा.

‘‘पिऊ बिलकुल ठीक हो जाएगी, मगर एक शर्त रहेगी.’’

‘‘क्या, मुझे आप की हर शर्त मंजूर है. बस, पिऊ…’’

‘‘सुन तो ले,’’ मिसेज पाटनकर बोलीं, ‘‘अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर पिऊ स्वस्थ होने तक मेरे पास रहेगी और बाद में भी तुम्हारी अनुपस्थिति में वह हमेशा अपनी दादी के पास रहेगी. बोलो, मंजूर है?’’ उन्होंने ममतापूर्ण दृष्टि से रिया को देखा तो रिया डूबती सी आवाज में ही बोली, ‘‘आप पिऊ की दादी हैं या नानी, मैं कह नहीं सकती. मगर अब मुझे लग रहा है कि मेरे कुछ मूर्खतापूर्ण भावुक लमहों की जो लंबी सजा मुझे भोगनी है उस के लिए मुझे आप जैसी ममतामयी और दृढ़ महिला के सहारे की हर समय और हर कदम पर जरूरत होगी. आप मुझे सहारा देंगी न? मुझे अकेला तो नहीं छोड़ेंगी, बोलिए?’’ कह कर उस ने मिसेज पाटनकर का हाथ अपने कांपते हाथों में कस कर पकड़ लिया.

‘‘रिया, मुझे तो पिऊ से इतना लगाव हो गया है कि मैं तो खुद उस के बिना रहने की कल्पना कर के भी दुखी हो जाती हूं. मैं हमेशा तेरे साथ हूं. पर अभी इस वक्त तू अपने को संभाल जिस से हम दोनों मिल कर पिऊ को संभाल सकें. अभी मेरा हाथ छोड़ तो मैं यहां से जा कर मनोचिकित्सक को सारी बात बता सकूं,’’ कह कर उन्होंने रिया के माथे को चूम कर उसे आश्वस्त किया, बड़ी नरमी से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया और डाक्टर के कमरे की ओर चल पड़ीं.

लम्हों ने खता की थी- भाग 2 : रिया के भारी डिप्रैशन के क्या कारण थे?

उन के ममतापूर्ण स्पर्श से रिया को कुछ राहत मिली. उस की चेतना लौटी. वह कुछ बोलती, इस से पहले मिसेज पाटनकर उस से बोलीं, ‘‘रिया, बच्ची को कुछ नहीं हुआ. मगर वह शरीर से ज्यादा मानसिक रूप से आहत है. अब तुम ही उसे पूरी तरह ठीक होने में मदद कर सकती हो.’’ मिसेज पाटनकर बोलते हुए लगातार रिया का माथा सहला रही थीं. रिया ने इस का कोई प्रतिवाद नहीं किया तो उन्हें लगा कि वह उन से कहीं अंतस से जुड़ती जा रही है.

थोड़ी देर में वह क्षीण स्वर में बोली, ‘‘मैं क्या कर सकती हूं?’’

‘‘देखो रिया, बच्ची अपने पापा के बारे में जानना चाहती है. हम उसे गोलमोल जवाब दे कर या उसे डांट कर चुप करा कर उस के मन में संशय व संदेह की ग्रंथि को ही जन्म दे रहे हैं. इस से उस का बालमन विद्रोही हो रहा है. मैं मानती हूं कि वह अभी इतनी परिपक्व नहीं है कि उसे तुम सबकुछ बताओ, मगर तुम एक परिपक्व उम्र की लड़की हो. तुम खुद निर्णय कर लो कि उसे क्या बताना है, कितना बताना है, कैसे बताना है. मगर बच्ची के स्वास्थ्य के लिए, उस के हित के लिए उसे कुछ तो बताना ही है. यही डाक्टर कह रहे हैं,’’ इतना कहते हुए मिसेज पाटनकर ने बड़े स्नेह से रिया को देखा तो उन्हें लगा कि वह उन के साथ अंतस से जुड़ गई है.

रिया बड़े धीमे स्वर में बोली, ‘‘अगर मैं ही यह सब कर सकती तो उसे बता ही देती न. अब आप ही मेरी कुछ मदद कीजिए न, मिसेज पाटनकर.’’

‘‘तुम मुझे कुछ बताओगी तो मैं कुछ निर्णय कर पाऊंगी न,’’ मिसेज पाटनकर ने रिया का हाथ अपने हाथ में स्नेह से थाम कर कहा.

रिया ने एक बार उन की ओर बड़ी याचनाभरी दृष्टि से देखा, फिर बोली, ‘‘आज से 7 साल पहले की बात है. मैं एमबीए कर रही थी. हमारा परिवार आम मध्य परिवारों की तरह कुछ आधुनिकता और कुछ पुरातन आदर्शों की खिचड़ी की सभ्यता वाला था. मैं ने अपनी पढ़ाई मैरिट स्कौलरशिप के आधार पर पूरी की थी. इसलिए जब एमबीए करने के लिए बेंगलुरु जाना तय किया तो मातापिता विरोध नहीं कर सके. एमबीए के दूसरे साल में मेरी दोस्ती संजय से हुई. वह भी मध्यवर्ग परिवार से था. धीरेधीरे हमारी दोस्ती प्यार में बदल गई. मगर आज लगता है कि उसे प्यार कहना गलत था. वह तो 2 जवान विपरीत लिंगी व्यक्तियों का आपस में शारीरिक रूप से अच्छा लगना मात्र था, जिस के चलते हम एकदूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा रहना चाहते थे.

‘‘5-6 महीने बीत गए तो एक दिन संजय बोला, ‘रिया, हमतुम दोनों वयस्क हैं. शिक्षित हैं और एकदूसरे को पसंद करते हैं, काफी दिन से साथसाथ घूमतेफिरते और रहते हुए एकदूसरे को अच्छी तरह समझ भी चुके हैं. यह समय हमारे कैरियर के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है. इस में क्लासैज के बाद इस तरह रोमांस के लिए मिलनेजुलने में समय बिताना दरअसल समय का ही नहीं, कैरियर भी बरबाद करना है. अब हमतुम जब एकदूसरे से इतना घुलमिल गए हैं तो होस्टल छोड़ कर किसी किराए के मकान में एकसाथ मिल कर पतिपत्नी बन कर क्यों नहीं रह लेते. आखिर प्रोजैक्ट में भी किसी पार्टनर की जरूरत होगी.’

‘‘‘मगर एमबीए के बीच में शादी, वह भी बिना घर वालों को बताए, उन की रजामंदी के…’ मैं बोली तो संजय मेरी बात बीच में ही काट कर बोला था, ‘मैं बैंडबाजे के साथ शादी करने को नहीं, हम दोनों की सहमति से आधुनिक वयस्क युवकयुवती के एक कमरे में एक छत के नीचे लिव इन रिलेशनशिप के रिश्ते में रहने की बात कर रहा हूं. इस तरह हम पतिपत्नी की तरह ही रहेंगे, मगर इस में सात जन्म तो क्या इस जन्म में भी साथ निभाने के बंधन से दोनों ही आजाद रहेंगे.’

‘‘मैं संजय के कथन से एकदम चौंकी थी. तो संजय ने कहा था, ‘तुम और्थोडौक्स मिडिल क्लास की लड़कियों की यही तो प्रौब्लम है कि तुम चाहे कितनी भी पढ़लिख लो मगर मौडर्न और फौरवर्ड नहीं बन सकतीं. तुम्हें तो ग्रेजुएशन के बाद बीएड कर के किसी स्कूल में टीचर का जौब करना चाहिए था. एमबीए में ऐडमिशन ले कर अपना समय और इस सीट पर किसी दूसरे जीनियस का फ्यूचर क्यों बरबाद कर दिया.’

‘‘उस के इस भाषण पर भी मेरी कोई प्रतिक्रिया नहीं देख कर वह मानो समझाइश पर उतर आया, बोला, ‘अच्छा देखो, आमतौर पर मांबाप लड़की के लिए अच्छा सा लड़का, उस का घरपरिवार, कारोबार देख कर अपने तमाम सगेसंबंधी और तामझाम जोड़ कर 8-10 दिन का वक्त और 8-10 लाख रुपए खर्च कर के जो अरेंज्ड मैरिज नाम की शादी करते हैं क्या उन सभी शादियों में पतिपत्नी में जिंदगीभर निभा पाने और सफल रहने की गारंटी होती है? नहीं होती है न. मेरी मानो तो मांबाप का अब तक का जैसेतैसे जमा किया गया रुपया, उन के भविष्य में काम आने के लिए छोड़ो. देखो, यह लिव इन रिलेशनशिप दकियानूसी शादियों के विरुद्ध एक क्रांतिकारी परिवर्तन है.

हम जैसे पढ़ेलिखे एडवांस्ड यूथ का समर्थन मिलेगा तभी इसे सामाजिक स्वीकृति मिलेगी. अब किसी को तो आगे आना होगा, तो हम ही क्यों नहीं इस रिवोल्यूशनरी चेंज के पायोनियर बनें. सो, कमऔन, बी बोल्ड, मौडर्न ऐंड फौरवर्ड. कैरियर बन जाने पर और पूरी तरह सैटल्ड हो जाने पर हम अपनी शादी डिक्लेयर कर देंगे. सो, कमऔन. वरना मुझे तो मेरे कैरियर पर ध्यान देना है. मुझे अपने कैरियर पर ध्यान देने दो.’ ‘‘एक तो संजय से मुझे गहरा लगाव हो गया था, दूसरे, मुझे उस के कथन में एक चुनौती लगी थी, अपने विचारों, अपनी मान्यताओं और अपने व्यक्तित्व के विरुद्ध. इसलिए मैं ने उस का समर्थन करते हुए उस के साथ ही अपना होस्टल छोड़ दिया और हम किराए पर एक मकान ले कर रहने लगे. ‘‘मकानमालिक एक मारवाड़ी था जिसे हम ने अपना परिचय किसी प्रोजैक्ट पर साथसाथ काम करने वाले सहयोगियों की तरह दिया. वह क्या समझा और क्या नहीं, बस उस ने किराए के एडवांस के रुपए ले व मकान में रहने की शर्तें बता कर छुट्टी पाई.

‘‘धीरेधीरे 1 साल बीत चला था. इस बीच हम ने कई बार पतिपत्नी वाले शारीरिक संबंध बनाए थे. इन्हीं में पता नहीं कब और कैसे चूक हो गई कि मैं प्रैग्नैंट हो गई. ‘‘मैं ने संजय को यह खबर बड़े उत्साह से दी मगर वह सुन कर एकदम खीझ गया और बोला, ‘मैं तो समझ रहा था कि तुम पढ़ीलिखी समझदार लड़की हो. कुछ कंट्रासैप्टिव पिल्स वगैरह इस्तेमाल करती रही होगी. तुम तो आम अनपढ़ औरतों जैसी निकलीं. अब फटाफट किसी मैटरनिटी होम में जा कर एमटीपी करा डालो. बच्चे पैदा करने के लिए और मां बनने के लिए जिंदगी पड़ी है. अगले महीने कुछ मल्टीनैशनल कंपनी के प्रतिनिधि कैंपस सिलैक्शन के लिए आएंगे इसलिए एमटीपी इस सप्ताह करा लो.’

बिग बॉस 14: जान कुमार सानू से नाराज हुई अर्शी खान, बोली मराठी भाषा में मांगे माफी

बिग बॉस 11 से अपनी कैरियर की शुरुआत करने वाली आर्शी खान ने बिग बॉस 14 कंटेस्टेंट जान कुमार सानू की माफी से संतुष्ट नहीं है. दरअसल, जान कुमार सानू ने एक एपिसोड में मराठी भाषा पर गलत टिप्पणी क थी. जिसके बाद से लगातार उन्हें ट्रोल किया जानें लगा था.

हालांकि बिग बॉस के कहने पर उन्होंने माफी मांग ली थी. जिसके बाद भी अर्शी खान ने उनपर नाराजगी जताई है.

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अर्शी खान इन दिनों एक मराठी भाषा के गाने पर काम कर रही हैं जिसमें उन्हें खुद पर गर्व महसूस हो रहा है इस भाषा पर. अर्शी खान ने कहा है कि मैं पहली बार मराठी भाषा के एलबम पर काम कर रही हूं और मुझे इस पर गर्व है.

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मैं एक पारंपरिक महिला के लुक को काफी एंजॉय कर रही हूं. मुझे मराठी भाषा बोलने  पर माजा आ रहा है. मैं अपने आप को खुशनसीब मानती हूं कि मैं भारत में पैदा हुई हूं जहां कई तरह के कल्चर हैं. मैं चाहती हूं हर भाषा को सीखूं.

अर्शी खान ने कहा है कि जान कुमार सानू ने मराठी भाषा का अपमान किया है उनका माफी मांगना को काम नहं आएगा उन्हें मराठी में माफी मांगनी होगी.

मैं समझती हूं कि बिग बॉस एक हिंदी शो है लेकिन यहां बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अंग्रेजी भाषा में बात करते हैं. ऐसे में कुछ कहा नहीं जा सकता है.

जान इस भाषा का सम्मान करें नहीं तो फीडबैक देने से बचें. अगर मैं शो में होती तो मराठी बोल- बोलकर उसे और भी ज्यादा परेशान कर देती. उसे सच में मराठी भाषा में सॉरी बोलना चाहिए.

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