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Rap Song : लड़की, सैक्स, पैसा, वौयलैंस, रैप गानों में सिर्फ तूतू मैंमैं

Rap Song : आज हर गलीमहल्ले, स्कूलकालेजों में युवा रैप गाते हुए सुनाई देते हैं. रैप गानों का बड़ा प्रशंसक वर्ग है, खासकर इसे युवा खूब पसंद करते हैं. लेकिन जिस तरह के रैप गाने बनाए जा रहे हैं क्या वे सुनने लायक हैं भी?

माना जाता है कि रैप की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी जब अफ्रीकी लोगों को बंधुआ मजदूरी के लिए अमेरिका लाया जाता था. अपनी तकलीफ और गुस्से का इजहार करने के लिए ये लोग यह गाते थे. आगे चल कर यह अमेरिकीअफ्रीकी समुदाय के बीच एक लोकप्रिय आर्ट फौर्म बन गया और धीमेधीमे इस ने म्यूजिक इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई. रैप कहें तो एक बेसुरे को आवाज देने का जरिया, जिस में धुनों, सुरों व तालों का कोई लेनादेना नहीं. शुरुआती समय में रैप मनोरंजन से कहीं ज्यादा सामाजिक समस्याओं के खिलाफ गुस्सा जाहिर करने का जरिया था.
दूसरे शब्दों में कहें तो रैपिंग की शुरुआत अफ्रीकीनअमेरिकी अल्पसंख्यकों पर अन्याय के विरोध के रूप में हुई थी. उन के रैप आम लोगों को जिंदगी के पाठ पढ़ाते थे. लेकिन अमेरिका समेत दुनियाभर में रैप गानों की थीम में गिरावट बड़ी तेजी से हुई. भारत में भी ये बहुत छिछले तक तक जा पहुंचे हैं, जैसे कि हनी सिंह, बादशाह, रफ्तार, लिलगोलू, एमिवे, किंग ये सब वे नाम हैं जिन्होंने इस विधा की मिट्टी पलीद कर दी है.
इन के गानों में सिर्फ सैक्स, गलियां, नशा, वौयलैंस, ऐयाशी, महिलाओं के लिए अश्लीलता ही भरी पड़ी है. ये अपने गानों में सिर्फ अपनी ‘मैं’ की बात करते हैं और अपनी निजी खुन्नस या किसी भी अनुभव को गाने के रूप में पेश कर देते हैं.
सवाल यह है कि इन की ‘मैंमैं’ से युवाओं का क्या लेनादेना? युवा ऐसे गाने सुन कर क्या सीख लेंगे? सीखना तो दूर, इन के गाने युवाओं को भ्रष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.
ये अपने गानों में आपसी लड़ाई के किस्से जाहिर करते हैं. सालों पुराने झगड़ों को गानों में घसीटते रहते हैं और आर्ट की जगह सस्ते विवादों का सहारा ले कर गाना हिट कराते हैं. क्या यह दुकान चलाने का जरिया नहीं?

उलजलूल गाने

इस समय कुछ नामचीन रैपर्स का इस इंडस्ट्री में बोलबाला है. मगर इन के गाने सुनें तो ऊलजलूल हैं. विजुअल्स में बड़ी कार, बड़ा घर, बैकग्राउंड में लड़कियां होती हैं. पैसों का दिखावा करते हैं. इन के लिरिक्स सुनने लायक नहीं होते.
इन के लगभग सभी गानों में गलीगलौच चल रही होती है. वौयलैंस को ग्लोरिफाई किया जाता है. बड़ीबड़ी बंदूकें ले कर घूमते हैं. यो हनी सिंह का ‘बोनिता’ वाला गाना भी ऐसा ही है.
इस में वे कहते हैं- ‘सब से करीब मेरे तू ही है बनिता. औन स्पौट करती है मर्डर ये. जब वे करती सफाई निकलता आशिकों का मलबा. आजा बरसा दू तेरे हुस्न की बारिश.’
यानी, लड़की के इतने आशिक हैं कि घर की सफाई में उन का मलबा निकलता है. वाकई आप किसी के हुस्न की बारिश कर सकते हैं, हम ने तो नहीं देखी कभी ऐसी बारिश. इसी तरह हनी सिंह ने ‘मिलेनियल’ गाना बनाया है जिस में सिर्फ अमीरी का बखान है. हैरानी यह कि यह गाना वे सुन रहे हैं जो घोर गरीबी में जी रहे हैं.
ऐसा ही एक रैपर निशायर है, उस के बोल कुछ इस तरह हैं, ‘भाड़ में गई तू तेरा वो प्यार. तेरे लिए ली मैं ने किस्तों पे कार. सब ने कहा तू फेक है जब तू रहता है फोन पे वो बातें करें अननोन से. वो सगी नहीं बेटा किसी की. उस की नशीले आंखों ने घर हैं उजाड़े. तूने दिखा ही दी अपनी औकात प्रौमिस है मेरा, तू बरबाद होगी.’
यहां ऐसा लगता है जैसे सिंगर अपने ताजाताजा हुए ब्रेकअप की भड़ास निकाल रहा है. उस से युवा क्या सीख रहे हैं. वो बदला लेने की बात करता है, लड़की को बरबाद करने की बात करता है. क्या ऐसा करना और कहना सही है. यंग एज में जाने कितने ब्रेकअप होते हैं, लोग अपने ब्रेकअप को इस गाने से जोड़ कर देखेंगे और क्या इस सिंगर वाली फीलिंग खुद में ला कर नफरत करना ही सीखेंगे?
रैप सिंगर जो जो हिंद का एक गाना है (लड़की हरामी). इस में अश्लीलता की सारी हदें पार हो गई हैं.
इस गाने को सुन कर शर्म से आंख न झुक जाए तो कहना. यह गाना पूरी तरह सैक्स पर आधारित है. ‘लड़का कहता है मेरी जेब में है रौकेट, फ्लौवर उस का स्ट्रौबैरी हो या वनीला, फर्क नहीं पड़ता, मुझ को चरम सुख देदे…’ इस के आगे ऐसी बातें हैं जो कही नहीं जा सकतीं. अंत में वह कहता है- वो बंदी हरामी थी.
इस गाने में अश्लीलता का वह मंजर दिखाया है जिसे आप सिर्फ अकेले में ही सुन सकते हैं. सवाल यह कि वह गाना ही क्या जिस पर आप थिरक न सकें, जिसे सुनने के लिए बंद कमरे की जरूरत पड़े.
वन ‘बोटल डाउन’ में हनी सिंह कहते हैं- ‘मैं सोता हूं, दिन में पार्टी करूं या रात में. संडे हो या मंडे मैं तो डेली पीता हूं, सब को पता है मैं दारू पे ही तो जीता हूं.’
इस गाने में हनी युवाओं को बता रहा है कि आप को पढ़नेलिखने की कोई जरूरत नहीं है. आप दिन में सोएं और रात को इन के गानों पर नाचनाच कर पार्टी करें. रोज दारू पीने की सलाह भी ये देते हैं. क्या ऐसे नशेड़ियों को आईडियालाइज करना ठीक है? ये सिखा क्या रहे हैं युवाओं को? लड़कियों को चरित्रहीन और खुद बेचारा दिखाने के अलावा इन के गानों में क्या है? फिर ये अपने गानों में जम कर पार्टी करने और नशे करने की बातें करते हैं. अरे भाई, ऐसी हरकतें रहेंगी तो लडकियां छोड़ेंगी ही न.
रैपर बादशाह अपने ‘सनक’ गाने में कहता है, ‘प्यार इतना ज्यादा दिया कि वो रोने लगी, मानसिक संतुलन अपना खोने लगी, पहले गंदा किया फिर खुद ही धोने लगी. एक रात में ही लव उसे होने लगी.’
मतलब क्या लिरिक्स हैं? मानसिक संतुलन तो रैपर का हिला हुआ है. वास्तव में इस अलबम को सनक नाम दे कर सही ही किया है. कोई सनकी व्यक्ति ही ऐसा गाना लिख सकता है. कह रहा है कि अगर लड़की को ज्यादा प्यार दो तो वह अपना मानसिक संतुलन खो देगी. हाऊ रबिश.
रैप सिंगर मोनू का गाना दो कदम आगे है, ‘समस्तीपुर रोसड़ा में रहते हैं जान, बोले तो बीआर 33 है शान. चलचल बेटा तुझे घुमा दूं मैं बस्ती.’
मतलब, इस में रैपर कहना क्या चाह रहा है? लाखों इसे देख चुके हैं, कहीं का कुनबा कहीं का रोड़ा-
‘चले जब तू लटकलटक
लौंडो के दिल पटकपटक
सांसें जाएं अटकअटक
आता माझी सटकसटक
बम तेरा गोते खाये
कमर पे तेरी बटरफ्लाई
बौडी तेरी मक्खन जैसी
खाने में तू बस मटर खाए.’
भोजपुरी गाने तो योंही बदनाम हैं. असल गंद तो इन रैपर्स ने फैलाया हुआ है. वे बेचारे तो ड्योडी और पेटीकोट तक ही सीमित हैं, ये तो लड़कियों के ऐसेऐसे प्राइवेट पार्ट्स को इंग्लिश में बोल जाते हैं जैसे रेशमी जुल्फें और शरबती आंखों की ही बात हो, बस. दिक्कत यह है कि आर्टिस्टिक फ्रीडम के नाम पर ये किसी का भी गाना चुराने से परहेज नहीं करते.

बात सिर्फ रैप सौंग की नहीं

दिक्कत यह है कि इन रैपर्स के छोटेछोटे पोडकास्ट सोशल मीडिया पर काफी वायरल रहते हैं, जिन में ये एकदूसरे को कुछनकुछ बोल रहे होते हैं. ये रील्स बहुत वायरल होती हैं. यंगस्टर इसे खूब देखते हैं और काफी पसंद करते हैं.
यह बात इन्हें भी पता है कि जिस देश की जनता के पास जेसीबी की खुदाई देखने का समय हो वहां इन नौटंकियों के लिए तो समय होगा ही. इसलिए ये एकदूसरे पर कीचड़ भी उछालते हैं क्योंकि इन्हें पता है यहां से इन्हें पब्लिसिटी मिलेगी. जैसे हाल में एक पोडकास्ट में हनी सिंह ने अपनी बहुत सारे रैप सिंगर के साथ लड़ाई को जगजाहिर किया और उस पर काफी बातें कीं. उस ने बादशाह को अपना क्लाइंट बताया. इस के बाद बादशाह ने इस का जवाब दिया.
ये लोग ऐसा ही करते हैं. एक ने कुछ कहा तो दूसरा वैसे ही किसी पोडकास्ट में आ कर उस बात का जवाब देता है. इन लोगों की ऐसी बातें युवा खूब पसंद करते हैं.

वायरल का गेम

जनवरी 2025 में रैपर ओजी 2 लो ने इंटरनैट पर तहलका मचा दिया जब उस का एक वीडियो वायरल हुआ, जिस में वह गलती से अपने पैर में गोली मार लेता है. इस पर वह कहता है, ‘हर बार जब हम एकसाथ मिलते हैं तो इतिहास बनाते हैं. सो, मुझे लगता है कि हम ने अभी इतिहास बनाया है.’
जैसे ही वीडियो औनलाइन वायरल हुआ, लोगों ने रैपर की खूब आलोचना की. और उसे ऐतिहासिक पल नहीं बल्कि उस की लापरवाही बताया. ये लोग कई बार वायरल होने के लिए भी ऐसा करते हैं ताकि लोग इन्हें देखें और सुनें.
मशहूर होने के लिए ये घटिया गाने तक बनाते हैं. सिंगर और रैपर हनी सिंह को 10 साल पुराने विवादित गाने के मामले में राहत मिली. दरअसल कुछ साल पहले ‘मैं हूं बलात्कारी’ गाने को ले कर बवाल हुआ था. ये लोग इस तरह के विवादों में भी फंसते रहते हैं.

आपसी लड़ाई का दिखावा

यह पूरी दुनिया का ट्रैंड है. आप को मशहूर होना है तो विवाद छेड़ो. केंड्रिक लैमर और ड्रेक के बीच रैप विवाद ऐसा ही है. हिपहौप की दुनिया में यह एक बड़ा विवाद रहा है. इस विवाद में दोनों रैपर्स ने एकदूसरे पर कई गाने जारी किए. इस विवाद में ड्रेक ने लैमर पर पीडोफीलिया का आरोप लगाया था. वहीं, लैमर ने ड्रेक पर ‘गुप्त बेटी’ रखने का आरोप लगाया था.
ड्रेक ने लैमर के छोटे कद पर हमला करते हुए कई नासमझी भरे शब्द कहे थे. इस तरह के विवाद होना इन रैप सिंगर्स के बीच आम बात है. कई बार ये विवाद सच में ही हो जाते हैं और कई बार मिलीभगत से होते हैं ताकि इन के गाने को पौपुलैरिटी मिल सके और लोग विवाद के चलते इन के गानों को बारबार सुनें और गाना हिट हो जाए.
ये इसी चलते बस तूतूमैंमैं करते हैं, पीछे सब सैट होता है. ये लोग अपने रैप गानों में आपस में एकदूसरे के बारे में बोलते हैं, लिखते हैं. अपने को बड़ा बताते हैं, दूसरे को छोटा.
ऐसा ही विवाद हनी सिंह और बादशाह के बीच है, लेकिन यह विवाद से ज्यादा पीआर स्ट्रेटेजी जान पड़ती है. इन की आपस में क्रैडिट लेने की होड़ है, पब्लिकली खूब हल्ला मचाते हैं लेकिन कानूनन कुछ और बोलते हैं. ऐसा है तो मुकदमा करें.
इन सब का पैटर्न है, खेमेबंदी या पूछबंदी. खेमेबंदी में अलगअलग रैपर्स के खेमे बंटे हैं और एकदूसरे को गरियाते हैं, पूछबंदी में किसी का गाना रिलीज हो रहा होता है तो कुछ समय के लिए विवाद खड़े करता है. जैसे, हनी सिंह के गाने आएंगे तो वो बादशाह को सुनाएगा, बादशाह अपने गाने के समय जवाब देगा. रफ़्तार अपनी रिलीज के समय किसी को सुनाएगा. बस, यही चलता रहता है. ऐसे लगता है जैसे देश में राज्यों के चुनाव आ रहे हों, जहां चुनाव होने हैं वहां विवाद होने हैं.
इन की ये लड़ाइयां बहुत छोटीछोटी हैं जिन को ये बड़ा बना कर पेश करते हैं. इन के ये 10-15 साल पुराने झगडे हैं जिन्हें ये अभी तक भुना रहे हैं क्योंकि यूथ इन्हें देख रहा है. अंदर से इन का मार्केट बना रहे, यही सब का मकसद है.
सोशल मीडिया पर इन के फैन पेज हैं जो पीआर हैंडल करती हैं, वहां ये आपस में ट्रोल करते हैं. सो, इस तरह के लोगों को सपोर्ट करना अपना समय बरबाद करने जैसा है. दरअसल, इन का कोई झगड़ा है ही नहीं, सिर्फ इंगेजमैंट मिलती रहे, इसलिए बखेड़ा है.
यूथ को भी समझना चाहिए जिन रैपरों को वे सपोर्ट करते हैं उन की हकीकत है क्या. वे किस तरह के गाने बनाते हैं, क्या इस से उन के जीवन में कोई पौजिटिव चेंज आ रहा है? वे इन को सुन का किस तरह की सोच अपने दिमाग में भर रहे हैं.

शोध से खुलासा

शोध प्रमुख और यूटीहैल्थ्स स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ के संकाय सहयोगी किमबर्ले जोनसन बेकर का कहना है, ‘रैप संगीत आप के उस विश्वास को बढ़ाता है कि आप के साथी क्या कर रहे हैं. यह हमें समझाता है कि कुछ चीजें करना ठीक है, जैसे शराब पीना या सैक्स करना. यह आप को यह सोच देता है कि हर कोई यही कर रहा है.’
जोनसन बेकर कहते हैं कि जितना आप इसे सुनते हैं, उतना आप इस पर यकीन करते हैं. सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक, जो टीनएजर रोजाना 3 घंटे या उस से ज्यादा समय तक रैप गाने सुनते हैं, उन की सोच में बदलाव आते हैं.
सिर्फ यही नहीं, जितने भी रैप गाने होते हैं वे लगभग एक ही बीट या धुन पर बने रहते हैं. शब्द कुछ भी डाल दीजिए, कुछ भी फर्क नहीं पड़ता. सोचिए, इन का गाया एक भी रैप पूरा याद नहीं होता जबकि अर्थपूर्ण पुराने गाने आज भी कितने सारे याद रहते हैं.
लेकिन युवा रैप गाने बहुत पसंद करते हैं. लेकिन हमारे देश में रैप एक और कानफोड़ू, उत्तेजक संगीत के रूप में ज्यादा है, जिस में विलासिता, शराब, लड़कियां, गाड़ियां और बेतुकी पंक्तियां हैं.
रैप गानों का भविष्य कितना उज्ज्वल है, इस बारे में कहा जा सकता है कि ये गाने सिर्फ डिस्कोथिक में बजने के लिए बनाए जा रहे हैं, जहां लोग तेज बीट पर डांस कर सकें. गाने के बोल क्या हैं, यह कोई माने नहीं रखता.
नौर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी में की गई एक स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि प्रचलित रैप सौंग डिप्रैशन और खुदकुशी की वजह बनते जा रहे हैं. साथ ही, ये एक मानसिक बीमारी का भी रूप लेते जा रहे हैं.
कैरोलिना की रिसर्च यह बताती है कि रैप आर्टिस्टों के जरिए ही ये मैंटल हैल्थ की समस्या बढ़ रही है. नौजवान जिस तरह के रैप गाने आजकल सुन रहे हैं उस से उन के दिमाग पर सीधा असर पड़ रहा है. 18 से 25 साल के नौजवानों में यह समस्या सब से ज्यादा देखी जा रही है. वे स्ट्रैस की वजह से सुसाइड तक कर लेते हैं. क्रेसोविक कहते हैं कि 125 रैप सौंग्स गानेवाले कलाकारों की औसत आयु भी 28 साल तक की ही है.
शोधकर्ताओं ने जाना कि अमेरिका के 25 सब से ज्यादा पौपुलर रैप सौंग को 1998, 2003, 2008, 2013 और 2018 में बनाया गया. इन में से लीड रैप आर्टिस्ट जो कि काले लोग थे और जिन के एकतिहाई गानों में एंग्जाइटी, 22 फीसदी में डिप्रैशन और 6 फीसदी में सुसाइड वाली चीजें थीं.
हालांकि भारत में इस तरह के रैप सौंग अभी नहीं बं रहे लेकिन यह भी कम दिक्कत वाली बात नहीं कि है रैपर्स यूथ को बेहद घटिया स्तर के रैप परोस रहे हैं.

Majority and Minority : बहुमत और अल्पसंख्यक

Majority and Minority : जो कुछ भारत का भगवा गैंग पिछले 30-40 सालों से देश में मुसलिमों और उन की मसजिदों, मजारों, मदरसों, वक्फों के साथ कर रहा है वैसा ही अब बंगलादेश में होने लगा है जहां अभी भी 13-14 फीसदी हिंदू हैं और अब तक चैन से जी रहे थे. 1971 से पहले कराची और इसलामाबाद से चलने वाली संयुक्त पाकिस्तानों की सरकारों और 1971 में भारत की इंदिरा गांधी की सहायता से बनी बंगलादेश सरकार से कोई खास परेशानी बंगलादेशी हिंदुओं को नहीं हुई.

काफी समय से भारत में हिंदूमुसलिम-हिंदूमुसलिम हो रहा है, सो, बंगलादेश में इस की गूंज उठनी ही थी. शेख हसीना ने लोकतंत्र को जमीन में गाड़ कर तानाशाही सरकार कुछ भारत भरोसे, कुछ आर्मी के सहारे 2009 से 2024 तक चला लिया लेकिन जब उन्होंने कट्टर मुसलिमों को रजाकार कहना शुरू किया तो भारत के भगवाओं की तरह वहां के रजाकारों ने न केवल उन्हें ढाका से निकाल फेंका, बल्कि अब वे पश्चिमी पाकिस्तानियों और भारत के भगवाइयों की तरह हिंदूमुसलिम भी करने लगे हैं.

धर्म के नाम पर राजनीति करना हमेशा खतरनाक होता है पर शासकों को यह हमेशा सहज और सरल लगता है क्योंकि धर्म के एजेंट गांवगांव, महल्लेमहल्ले में फैले होते हैं. जिस के साथ धर्म के दुकानदार होते हैं उस की सरकार लंबी चलती है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान में यही हो रहा है और अब तो दुनिया के सब से समर्थ शक्तिशाली लोकतंत्र अमेरिका में भी यही हुआ है कि चर्च के समर्थन पर डोनाल्ड ड्रंप सत्ता में हैं.

बंगलादेश के हिंदुओं पर हो रहे हमलों को नहीं रोका गया तो स्थिति पूरे महाद्वीप में गड़बड़ा सकती है. भारत आज पाकिस्तान और बंगलादेश से बहुत मजबूत स्थिति में है पर जैसे यूक्रेन ने अपने से चारगुनी बड़ी आबादी वाले रूस की नाक में दम कर रखा है, पाकिस्तान और बंगलादेश मिल कर, अगर वे कभी मिल गए तो, भारत के कई राज्यों में स्थिति को काफी डांवांडोल कर सकते हैं.

इस समस्या का हल सिर्फ और सिर्फ लोकतंत्र के पास है जिस में व्यक्ति के आर्थिक और शारीरिक सुखों की गारंटी पहले होती है. भारत आज लोकतंत्र की दुहाई नहीं दे सकता कि करोड़ों अगर एक तरफ हों तो भी एक अकेला उन के विरुद्ध तर्क और अधिकारों की बात पर खड़ा रह सकता है. जब बात सिर्फ बहुमत की हो और भारत में बहुमत हिंदू यह समझो कि उन का हक है कि वे अल्पसंख्यकों को क्या दें और क्या उन से छीनें तो दूसरे देशों में भी ऐसा ही होगा और तब नई दिल्ली सरकार की हर आवाज बेमतलब हो जाएगी.

बंगलादेश के हिंदू आज डरेसहमे हैं तो उस की वजह केवल और केवल भारत के हिंदू गैंग हैं जो रातदिन सोशल मीडिया पर हिंदूहिंदू करते रहते हैं.

Supreme Court, संसद और संविधान

Supreme Court को संविधान में जो अधिकार मिले हैं वे मूलतया यह देखने को मिले हैं कि संविधान का सरकारें ढंग से पालन करती हैं, संविधान के दायरे के अंदर ही कानून बनाती हैं और जनता को ऐसे कानून या प्रशासनिक निर्णय नहीं सहने पड़ते जो संवैधानिक कानूनों या खुद संविधान के खिलाफ हों.

उम्मीद यह थी कि वोटों से चुन कर आई सरकारें जनता की तकलीफों को समझेगी और सुप्रीम कोर्ट से पहले जनता की सुनेंगी, सुप्रीम कोर्ट को दिखावटी संस्था बना देंगी. हुआ उलटा. आज सुप्रीम कोर्ट सब की सुन रही है, देरसवेर सही, और दोनों पक्षों की सुन कर फैसले देती है.

आम जनता संसद और विधानसभाओं से निकले कानूनों व सरकारी अट्टालिकाओं से लाउडस्पीकरों के जरिए थोपे फैसलों और फरमानों से ज्यादा खुश है. सुप्रीम कोर्ट सब की सुन कर फैसले देती है, जबकि सरकार बंद कमरों में फैसले करती है.

आजकल तो सरकारों ने मंत्रिमंडलों तक की सुनना बंद कर दिया है. सरकारों ने बाबुओं की फौज जमा कर ली जो अपने निजी हितों के अनुसार फैसले लेते हैं, जनता की न तो उन तक पहुंच है, न वे सुनते हैं. उन के कान केवल अंबानियों और अडानियों जैसों के लिए खुलते हैं जहां से उन को जमीनजायदादें, बच्चों के लिए विदेशी दौरे, विदेशों में सैटल होने की सुविधाएं मिल रही हैं.

इस बाबूडम को केवल सुप्रीम कोर्ट हड़का पाती है. नेताओं को तो मालूम भी नहीं होता कि सुप्रीम कोर्ट में क्या चल रहा है, कौन से सवाल पूछे जा रहे हैं, कौन से जवाब दिए जा रहे हैं. यह काम बाबुओं की फौज करती है, वही सुप्रीम कोर्ट में पेश होती है, वही अपने वकीलों को अपना पक्ष सुनाती है.

जो बहस जनता और भाजपा के बीच विधानसभाओं, राज्यसभा, लोकसभा में होनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट के कक्षों में होती है. सुप्रीम कोर्ट के जज चाहे चुन कर आए जनप्रतिनिधि न हों, पर वे जनता के ज्यादा करीब हैं क्योंकि वे किसी फैसले से न तो अपनी जेब भर सकते और न उन्हें नोटों भरे टैंपों की जरूरत होती है.

सुप्रीम कोर्ट ने हाल में एक फैसले में कहा है कि वह अब कानूनों का औडिट भी करेगी कि जो कानून बने वे संवैधानिक ढंग से ठीक थे या नहीं, उन का संवैधानिक लाभ आम जनता को मिला या नहीं और कानून की बारीकियों की आड़ में जनता से कानूनी व संवैधानिक हक छीने तो नहीं गए.

संसद और विधानसभाएं तो लगता है कि सिर्फ नारेबाजी के लिए हैं. अफसोस यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने इस मौलिक व आवश्यक जिम्मेदारी को फरसे से जैसे काटकाट कर गंगा में बहा सा दिया जो पौराणिक गौहत्या से भी ज्यादा जघन्य पाप है.

EX Prime Minister : मनमोहन का जाना

EX Prime Minister : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मृत्यु पर जिस तरह मोदी सरकार ने मौत पर भी राजनीति की है वह उन की पौराणिकता को दर्शाती है. हमारे यहां जन्म से ज्यादा मौत को बदला लेने का हथियार माना गया है. मृत्यु के कर्मकांडों में तरहतरह के विघ्न डाले जाते रहे हैं ताकि यह कहा जा सके कि सद्गति नहीं मिली तो आत्मा भटकती रहेगी और सद्गति अगर पानी है तो वह करो जो पंडितों का समाज कहता है. मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्रित्व काल और वित्त मंत्री के तौर पर 1991 से 1996 का समय अभूतपूर्व रहे हैं. मनमोहन सिंह ने जिस तरह यूपीए गठबंधन को 10 साल बांधे रखा और एक शिखंडी की सहायता से उन की सरकार पर तरहतरह के आरोप लगाए गए (जिन में से एक भी 11 सालों में साबित हुआ ही नहीं) पर तब भी मनमोहन सिंह विचलित नहीं हुए, यह अचंभा था. सीधेसादे, मृदुभावी सरदार मनमोहन सिंह न केवल अर्थशास्त्री थे बल्कि वे लगभग सर्वज्ञाता थे और बहुत से ऐसे मामले जानते थे जिन के बारे में एक आम प्रधानमंत्री को जानना आवश्यक नहीं है.

उन की मृत्यु वृद्धावस्था के कारण हुई. जब वे राजनीति से रिटायर हो चुके थे तो यह कहना गलत होगा कि भारत ने एक कोहेनूर खो दिया है पर जब तक वे प्रधानमंत्री थे वे एक कोहेनूर से ज्यादा कीमती थे और पिछले 11 सालों का अलगाव, तनाव, बढ़ता भेदभाव, बढ़ती शंका इस बात का सुबूत है कि कम सांसदों के वावजूद उन्होंने वह किया जो अधिक सांसदों वाली सरकारें नहीं कर सकीं.

1993 में किए गए बाबरी मसजिद के विध्वंस और 2002 में हुए गुजरात के दंगों, 2001 में अमेरिका के न्यूयौर्क पर किए गए आतंकी हमले के बाद का हमारे पड़ोस इराक, लीबिया, अफगानिस्तान पर कब्जा, 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट और इंफोटैक कंपनियों की बढ़ती ताकत के बावजूद आम नागरिक अपने हकों के बारे में उन के काल में ज्यादा आश्वस्त रहा बजाय आज के कि जब वह एक भारी संख्या के सांसदों वाली मजबूत कई राज्यों में एक पार्टी वाली सरकारों के माहौल में है.

आज हर रोज भय बना रहता है. मनमोहन सिंह की सरकार के दिनों में जनता खतरे में कभी नहीं थी, सरकार चाहे खतरे में रही हो क्योंकि कांग्रेस के पास अपना बहुमत नहीं था और उस ने दूसरे दलों के साथ मिल कर चुनाव नहीं लड़ा था. फिर भी मनमोहन सिंह ने संसद में, देशभर में, विश्वभर में कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि उन की सरकार ढुलमुल है.

ऐसे प्रधानमंत्री के अंतिम दिन राजनीति करना असल में देश के पंडितों का सदियों पुराना तौरतरीका रहा है और मृत्यु को हमेशा अपने हिसाबकिताब निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है.

मोदी सरकार ने जैसा भी सम्मान दिया उस पर अगर सवाल उठ रहे हैं तो यह हमारी संस्कृति ही है. यह ही हमारे संस्कार हैं, यह ही हमारे पूर्वज सिखा गए हैं. इस पर आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है कि मरने वाले महान व्यक्ति को आदर देते समय अड़ंगा डाले गए.

Short Hindi Story : मेरे पापा

Hindi Short Story : दिल्ली आये मुझे अभी तीन महीने ही हुए थे. नया शहर, नया औफिस, नयी नौकरी. अभी ठीक से सेटल भी नहीं हो पायी थी कि अचानक एक दिन सुबह-सुबह लखनऊ से भाई का फोन आया कि पापा का एक्सीडेंट हो गया है, तुरंत आ जाओ. तुम्हें बार-बार याद कर रहे हैं. घर से पांच सौ किलोमीटर दूर मैं यह खबर सुन कर बदहवास सी हो गई. अब अचानक न तो ट्रेन का रिजर्वेशन मिल सकता था और न मैंने कभी हवाई सफर किया था. ट्रेन का टिकट लेकर बैठ भी जाती तब भी दूसरे दिन ही पहुंचती. सिर घूमने लगा कि क्या करूं. अचानक तय किया कि बस पकड़ो और निकल जाओ. मैंने फटाफट एक बैग में दो जोड़ी कपड़े डाले और औटो रिक्शा लेकर दिल्ली आईएसबीटी की ओर भागी. दिल यह सोच-सोच कर धड़क रहा था कि पता नहीं पापा किस कंडीशन में हैं. भाई तो कह रहा था कि खतरे से बाहर हैं, मगर क्या पता कितनी चोट लगी है. भाई ने बताया था कि सुबह मौर्निंग वाक पर निकले थे कि पीछे से एक बाइक वाले ने जोर की टक्कर मारी थी. बुढ़ापे का शरीर, पता नहीं चोट कितनी गहरी पहुंची होगी.

बस अड्डे पर पहुंच कर मैं राज्य परिवहन की बस में जा बैठी. मगर जब बस काफी देर तक नहीं चली तो मैंने कंडक्टर से पूछा. वह बोला कि जब पूरी भर जाएगी तब चलेगी. मैंने सिर घुमा कर देखा, पीछे सारी सीटें खाली पड़ी थीं. इसे भरने में तो घंटा भर लग जाएगा. मै परेशान हो गयी. बाहर प्राइवेट बसों के चालक जोर-जोर से आवाज लगा रहे थे – सात घंटे में सफर पूरा करें… आइये सात घंटे में सफर पूरा करें… लखनऊ-कानपुर-गोरखपुर… आइये… आइये… . मैं सरकारी बस से उतरी और एक बस चालक से पूछा, ‘लखनऊ कब तक पहुंचा दोगे?’ वह बोला, ‘शाम सात बजे तक.’ मैं तुंरत प्राइवेट बस में चढ़ गयी. सरकारी बस का कंडक्टर मुझे रोकता रह गया, ‘बोला, गलती कर रही हो मैडम, उससे पहले सरकारी बस पहुंच जाएगी. वह ज्यादा किराया लेंगे.’ मगर मुझे तो जल्दी से जल्दी पहुंचने की धुन लगी थी. प्राइवेट बस पूरी तरह भरी हुई थी. जल्दी ही चल पड़ेगी. मैं बैग लिये खट-खट उस पर चढ़ गयी.

अन्दर ज्यादातर ग्रामीण इलाके के लोग नजर आ रहे थे. टिकट दर भी सरकारी बस से तीन गुना ज्यादा थी, मगर मुझे संतोष था कि यह बस मुझे अपने पापा के पास जल्दी पहुंचा देगी. मैंने बस में बैठते ही फोन करके भाई को खबर कर दी कि बस ले ली है, शाम तक पहुंच जाऊंगी.

तीन घंटे के सफर के बाद यह बस हाईवे के एक ढाबे पर रुकी. सवारियां उतर कर खाने-पीने के लिए ढाबे में जाने लगीं. मगर मेरी तो भूख-प्यास सब मिटी हुई थी. मैं चुपचाप अपनी सीट पर बैठी रही. थोड़ी देर में बाहर कुछ शोर सा उभरा. बस कंडक्टर चिल्ला रहा था कि किसी ने उसके कमर में बंधे फेंटे में से पांच हजार रुपए निकाल लिए हैं. मैंने खिड़की से झांक कर बाहर देखा तो सभी यात्रियों को लाइन में खड़ा करके तलाशी लेने का काम शुरू होने वाला था. मुझे कोफ्त हो रही थी कि यह क्या नया तमाशा खड़ा हो गया. यहां जल्दी पहुंचने की धुन लगी है और इन लोगों ने यह नया खेल शुरू कर दिया है. मैंने देखा बस ड्राइवर और कंडक्टर के साथ ढाबा मालिक भी जोर-जोर से बोल रहा था कि सब लोग अपनी-अपनी तलाशी दो. सारे ग्रामीण हैरान-परेशान खड़े थे. हर आदमी कुछ बोले बिना तलाशी देने के लिए लाइन में लगा जा रहा था. महिलाएं बच्चे सब. एक लड़का मेरी खिड़की के पास आकर चिल्लाया, ‘मैडम आप भी नीचे आ जाओ और तलाशी दो.’

मेरे सिर पर गुस्सा सवार हो गया. मैं चिल्ला कर बोली, ‘तुम लोग कौन होते हो किसी की तलाशी लेने वाले? पैसा चोरी हुआ है तो बस को पास के किसी थाने में ले लो, वहां होगी कार्रवाई. यहां किसी महिला को हाथ न लगाना वरना तुम्हारी ऐसी की तैसी कर देंगे.’

बस ड्राइवर, कंडक्टर और ढाबे वाला हकबका कर मेरा चेहरा ताकने लगे. मेरी हिम्मत देखकर कुछ लोगों में हिम्मत आयी. एक-एक कर सबने बोलना शुरू किया, ‘हां, हां, बस को थाने पर ले लो… वहीं देंगे तलाशी….’

ड्राइवर, कंडक्टर ढाबे वाले के साथ एक तरफ को होकर कुछ मशवरा करने लगे. थोड़ी देर में ढाबे वाले ने आकर कहा, ‘देखों भाइयों, इसका बड़ा नुकसान हो गया है. थाने जाएंगे तो और देर लगेगी, ऐसा करो तुम सब दो-दो सौ रुपए देकर इसका नुकसान पूरा कर दो.’

मैं फिर आगे आयी, बोली, ‘क्या सबूत कि इसका नुकसान हुआ है? सवारियों से पैसा एंठने का अच्छा धंधा बना रखा है तुम लोगों ने… और तू क्या इनका वकील है? इनके साथ मिला हुआ है? सीधे तरीके से बस को थाने ले चल वरना बैठ यहीं, न कोई तलाशी देगा और न कोई एक पैसा देगा.’

लोगों ने मेरी हां में हां मिलायी. कई महिलाएं आकर मेरे साथ खड़ी हो गयीं. सब कहने लगे कि अब तो बस को थाने ही ले चलो. कोई घंटा भर खराब करने के बाद बस ड्राइवर ने आकर कहा, ‘चलो, चलो, बस में बैठो सब… ’ और वह उचक कर ड्राइवर सीट पर बैठ गया. परेशान यात्री झटपट बस में चढ़ गये. कंडक्टर ने खा जाने वाली नजर से मेरी ओर देखा और जाकर आगे वाली सीट पर बैठ गया. बस रात के एक बजे लखनऊ पहुंची. घर पहुंची तो पापा मुझे देखकर मुस्कुरा दिये. खतरे से बाहर थे मगर सिर और घुटनों पर पट्टियां बंधी हुई थीं. मुझे अपने पास पाकर उनको बड़ी राहत महसूस हो रही थी. मैंने बदमाश बस ड्राइवर-कंडक्टर की कारस्तानी घरवालों को बतायी और दूसरे दिन थाने जाकर एक शिकायत भी दर्ज करवायी. मेरी शिकायत पर कोई कार्रवाई तो क्या ही हुई होगी, मगर सोचती हूं कि अगर मैंने हिम्मत न दिखायी होती तो वह बदमाश अनपढ़ और गरीब ग्रामीण यात्रियों से कितना पैसा वसूलते. ये तो उनका रोज का धंधा ही होगा. रोजाना ये लोग यात्रियों को ऐसे ही परेशान करते होंगे. अगर सचमुच कंडक्टर की जेब कटी होती तो थाने जाने में उसे क्यों संकोच होता? मैंने तय किया कि आगे से कभी इन प्राइवेट बसों में नहीं बैठूंगी, अपनी सरकारी खटारा बसें ही ठीक हैं.

 

Online Hindi Story : धोखे का खुलासा

Online Hindi Story : खुशी से दिशा के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. फ्रैंड्स से बात करते हुए वह चिडि़यों की तरह चहक रही थी. उस की आवाज की खनक बता रही थी कि बहुत खुश है. यह स्वाभाविक भी था. मंगनी होना उस के लिए छोटी बात नहीं थी.

मंगनी की रस्म के लिए शहर के नामचीन होटल को चुना गया था. रात के 9 बज गए थे. सारे मेहमान भी आ चुके थे. फ्रैंड्स भी आ गई थीं. लेकिन मानस और उस के घर वाले अभी तक नहीं आए थे.

देर होते देख उस के पापा घबरा रहे थे. उन्होंने दिशा को मानस से पूछने के लिए कहा तो उस ने तुरंत उसे फोन लगाया. मानस ने बताया कि वे लोग ट्रैफिक में फंस गए हैं. 20-25 मिनट में पहुंच जाएंगे.

दिशा ने राहत की सांस ली. मानस के आने में देर होते देख न जाने क्यों उसे डर सा लगने लगा था. वह सोच रही थी कि कहीं उसे उस के बारे में कोई नई जानकारी तो नहीं मिल गई. लेकिन उस ने अपनी इस धारणा को यह सोच कर पीछे धकेल दिया कि वह आ तो रहा है. कोई बात होती तो टै्रफिक में फंसा होने की बात क्यों बताता.

अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने ‘हैलो’ कहा तो परिमल की आवाज आई, ‘‘2 दिन पहले ही जेल से रिहा हुआ हूं. तुम्हारा पता किया तो जानकारी मिली कि आज मानस से तुम्हारी मंगनी होने जा रही है. मैं एक बार तुम्हें देखना और तुम से बात करना चाहता हूं. होटल के बाहर खड़ा हूं. 5 मिनट के लिए आ जाओ, नहीं तो मैं अंदर आ जाऊंगा.’’

दिशा घबरा गई. जानती थी कि परिमल अंदर आ गया तो उस की फजीहत हो जाएगी. मानस को सच्चाई का पता चल गया तो वह उस से मंगनी नहीं करेगा.

उसे परिमल से मिल लेने में ही भलाई नजर आई. लोगों की नजर बचा कर वह होटल से बाहर चली गई.

गेट से थोड़ी दूर आगे परिमल खड़ा था. उस के पास जा कर दिशा गुस्से में बोली, ‘‘क्यों परेशान कर रहे हो? बता चुकी हूं कि मैं तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है, फिर भी मैं तुम्हें परेशान नहीं कर सकता. मैं तो तुम से सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि मेरी दुर्दशा करने के बाद तुम्हें कभी पछतावा हुआ या नहीं?’’

दिशा ने रूखे स्वर में जवाब दिया, ‘‘कैसा पछतावा? जो कुछ भी हुआ उस में सारा दोष तुम्हारा था. मैं ने तो पहले ही आगाह किया था कि मुझे बदनाम मत करो. आज के बाद अगर तुम ने मुझे फिर कभी बदनाम किया तो याद रखना पहली बार 3 साल के लिए जेल गए थे. अब उम्र भर के लिए जाओगे.’’

अपनी बात कह कर दिशा बिना परिमल का जवाब सुने होटल के अंदर आ गई. उस की फ्रैंडस उसे ढूंढ रही थीं. एक ने पूछ लिया, ‘‘कहां चली गई थी? तेरे पापा पूछ रहे थे.’’स्थिति संभालने के लिए दिशा ने बाथरूम जाने का बहाना कर दिया. पापा को भी बता दिया. फिर राहत की सांस ले कर सोफे पर बैठ गई.

उसे विश्वास था कि परिमल अब कभी परेशान नहीं करेगा और वह मानस के साथ आराम की जिंदगी गुजारेगी. परिमल से दिशा की पहली मुलाकात कालेज में उस समय हुई थी, जब वह बीटेक कर रही थी. परिमल भी उसी कालेज से बीटेक कर रहा था. वह उस की पर्सनैल्टी पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकी थी. लंबी चौड़ी कद काठी, आकर्षक चेहरा, गोरा रंग, स्मार्ट और हैंडसम.

मन ही मन उस ने ठान लिया था कि एक न एक दिन उसे पा कर रहेगी, चाहे कालेज की कितनी भी लड़कियां उस के पीछे पड़ी हों. दरअसल, उसे पता चला था कि कई लड़कियां उस पर जान न्योछावर करती हैं. यह अलग बात थी कि उस ने किसी का भी प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था.

प्यार मोहब्बत के चक्कर में वह अपनी पढ़ाई खराब नहीं करना चाहता था. पढ़ाई में वह शुरू से ही मेधावी था. एक ही कालेज में पढ़ने के कारण दिशा उस से पढ़ाईलिखाई की ही बात करती थी. कई बार वह कैंटीन में उस के साथ चाय भी पी चुकी थी.

एक दिन कैंटीन में परिमल के साथ चाय पीते हुए उस ने कहा, ‘‘इन दिनों बहुत परेशान हूं. मेरी मदद करोगे तुम्हारा बड़ा अहसान होगा.’’

‘‘परेशानी क्या है?’’ परिमल ने पूछा. ‘‘कहते हुए शर्म आ रही है पर समाधान तुम्हें ही करना है. इसलिए परेशानी तो बतानी ही पडे़गी. बात यह है कि पिछले 4-5 दिनों से तुम रातों में मेरे सपनों में आते हो और सारी रात जगाए रहते हो.

‘‘दिन में भी मेरे दिलोंदिमाग में तुम ही रहते हो. शायद इसे ही प्यार कहते हैं. सच कहती हूं परिमल तुम मेरा प्यार स्वीकार नहीं करोगे तो मैं जिंदा लाश बन कर रह जाऊंगी.’’

परिमल ने तुरंत जवाब नहीं दिया. उस ने कुछ सोचा फिर कहा, ‘‘यह तो पता नहीं कि तुम मुझे कितना चाहती हो, पर यह सच है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

दिशा के चेहरे की मुसकान का सकारात्मक अर्थ निकालते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारा प्यार पाना चाहता हूं. लेकिन मैं ने इस डर से कदम आगे नहीं बढ़ाए कि तुम अमीर घराने की हो. तुम्हारे पापा रिटायर जज हैं. भाई पुलिस में बड़े अधिकारी हैं. धनदौलत की कमी नहीं है.’’

दिशा उस की बातों को बडे़ मनोयोग से सुन रही थी. परिमल ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘मैं गरीब परिवार से हूं. पिता मामूली शिक्षक हैं. ऊपर से उन्हें 2 जवान बेटियों की शादी भी करनी है. यह  सच है कि तुम अप्सरा सी सुंदर हो. कोई भी अमीर युवक तुम से शादी कर के अपने आप को भाग्यशाली समझेगा. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा हाथ भला मेरे हाथ में क्यों देंगे?’’

दिशा तुरंत बोली, ‘‘इतनी सी बात के लिए डर रहे हो? मुझ पर भरोसा रखो. हमारा मिलन हो कर रहेगा. हमें एक होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. तुम केवल मेरा प्यार स्वीकार करो, बाकी सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

दिशा ने समझाया तो परिमल ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. उस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता कभी पार्क में, कभी मौल में तो कभी किसी रेस्तरां में जा कर घंटों प्यारमोहब्बत की बातें करते.

सारा खर्च दिशा की करती थी. परिमल खर्च करता भी तो कहां से? उसे सिर्फ 50 रुपए प्रतिदिन पौकेट मनी मिलती थी. उसी में घर से कालेज आनेजाने का किराया भी शामिल था.

2 महीने में ही दोनों का प्यार इतना अधिक गहरा हो गया कि एकदूसरे में समा जाने के लिए व्याकुल हो गए. अंतत: एक दिन दिशा परिमल को अपनी फ्रैंड के फ्लैट पर ले गई.

दिशा का प्यार पा कर परिमल उस का दीवाना हो गया. दिनरात लट्टू की तरह उस के आगेपीछे घूमने लगा. नतीजा यह हुआ कि पढ़ाई से मन हट गया और उसे दिशा के साथ उस की फ्रैंड के फ्लैट पर जाना अच्छा लगने लगा.

सहेली के मम्मीपापा दिन में औफिस में रहते थे. इसलिए उन्हें परेशानी नहीं होती थी. फ्रैंड तो राजदार थी ही.

इस तरह दोनों एक साल तक मौजमस्ती करते रहे. फिर अचानक दिशा को लगा कि परिमल के साथ ज्यादा दिनों तक रिश्ता बनाए रखने में खतरा है. वजह यह कि वह उस से शादी की उम्मीद में था.

दिशा ने परिमल से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उस ने परिमल को छोड़ कर कालेज के ही एक छात्र वरुण से तनमन का रिश्ता जोड़ लिया. वरुण बहुत बड़े बिजनैसमैन का इकलौता बेटा था.

सच्चाई का पता चलते ही परिमल परेशान हो गया. वह हर हाल में दिशा से शादी करना चाहता था. लेकिन दिशा ने उसे बात करने का मौका ही नहीं दिया था. दिशा का व्यवहार देख कर परिमल ने कालेज में उसे बदनाम करना शुरू कर दिया. मजबूर हो कर दिशा को उस से मिलना पड़ा.

पार्क में परिमल से मिलते ही दिशा गुस्से में चीखी, ‘‘मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो. मैं ने कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’‘‘अपना वादा भूल गईं. तुम ने कहा था न कि हमारा मिलन हो कर रहेगा. तभी तो तुम्हारी तरफ कदम बढ़ाया था.’’ परिमल ने उस का वादा याद दिलाया.

‘‘मैं ने मिलन की बात की थी, शादी की नहीं. मेरी नजरों में तन का मिलन ही असल मिलन होता है. मैं ने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर अपना वादा पूरा किया था, फिर शादी के लिए क्यों पीछे पड़े हो? तुम छोटे परिवार के लड़के हो, इसलिए तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

परिमल शांत बैठा सुन रहा था. उस के चेहरे पर तनाव था और मन में गुस्सा. लेकिन उस सब की चिंता किए बगैर दिशा बोली, ‘‘तुम अच्छे लगे थे, इसीलिए संबंध बनाया था. अब हम दोनों को अपनेअपने रास्ते चले जाना चाहिए. वैसे भी मेरी जिंदगी में आने वाले तुम पहले लड़के नहीं हो. मेरी कई लड़कों से दोस्ती रही है. मैं सब से थोड़े ही शादी करूंगी? अगर आज के बाद मुझे कभी भी परेशान  करोगे तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा. बदनामी से बचने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

दिशा का लाइफस्टाइल जान कर परिमल को बहुत गुस्सा आया. इतना गुस्सा कि उस के वश में होता तो उस का गला दबा देता. जैसेतैसे गुस्से को काबू कर के उस ने खुद को समझाया. लेकिन सब की परवाह किए बिना दिशा उठ कर चली गई.

दिशा ने भले ही परिमल से बुरा व्यवहार किया, लेकिन उस ने उस की आंखों में गुस्से को देखा था, इसलिए उसे डर लग रहा था. उसे लगा कि परिमल अगर शांत नहीं बैठा तो उस की जिंदगी में तूफान आ सकता है.  वह बदनाम नहीं होना चाहती थी. इसलिए उस ने भाई की मदद ली. उस का भाई पुलिस में उच्च पद पर था, उसे चाहता भी था.

नमक मिर्च लगा कर उस ने परिमल को खलनायक बनाया और भाई से गुजारिश की कि परिमल को किसी भी मामले में फंसा कर  जेल भिजवा दे. फलस्वरूप परिमल को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर इल्जाम लगाया गया कि उस ने कालेज की एक लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश की थी.

अदालत में सारे झूठे गवाह पेश कर दिए गए. पुलिस का मामला था, सो आरोपी लड़की भी तैयार कर ली गई. अदालत में उस का बयान हुआ तो 2-3 तारीख पर ही परिमल को 3 वर्ष की सजा हो गई.

परिमल हकीकत जानता था, लेकिन चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकता था. लंबी लड़ाई के लिए उस के पास पैसा भी नहीं था. उस ने चुपचाप सजा काटना मुनासिब समझा. इस से दिशा ने राहत की सांस ली. साथ ही उस ने अपना लाइफस्टाइल भी बदलने का फैसला कर लिया. क्योंकि वह यह सोच कर डर गई थी कि परिमल जैसा कोई और उस की जिंदगी में आ गया तो वह घर परिवार और समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

उस के दुश्चरित्र होने की बात पापा तक पहुंच गई तो वह उन की नजर में गिर जाएगी. पापा उसे इतना चाहते थे कि हर तरह की छूट दे रखी थी. उस के कहीं आनेजाने पर भी कोई पाबंदी नहीं थी. यहां तक कि उन्होंने कह दिया था कि अगर उसे किसी लड़के से प्यार हो गया तो उसी से शादी कर देंगे, बशर्ते लड़का अमीर परिवार से हो.

मम्मी थीं नहीं, 7 साल पहले गुजर गई थीं. भाभी अपने आप में मस्त रहती थीं. दिशा जब 12वीं में पढ़ती थी तो एक लड़के के प्रेम में आ कर उस ने अपना सर्वस्व सौंप दिया था. वह नायाब सुख से परिचित हुई तो उसे ही सच्चा सुख मान लिया.

वह बेखौफ उसी रास्ते पर आगे बढ़ती गई. नएनए साथी बनते और छूटते गए. वह किसी एक की हो कर नहीं रहना चाहती थी.

पहली बार परिमल ने ही उस से शादी की बात की थी. जब वह नहीं मानी तो उस ने उसे खूब बदनाम भी किया था.

वह बदनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. इसलिए परिमल के जेल में रहते परिणय सूत्र में बंध जाना चाहती थी. तब उस की जिंदगी में वरुण आ चुका था.

परिमल के जेल जाने के 6 महीने बाद दिशा ने जब बीटेक कर लिया तो उस ने वरुण से अपने दिल की बात कही, ‘‘चोरीचोरी प्यार मोहब्बत का खेल बहुत हो गया. अब शादी कर के तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.’’

वरुण दिशा की तरह इस मैदान का खिलाड़ी था. उस ने शादी से मना कर दिया, साथ ही उस से रिश्ता भी तोड़ दिया.

दिशा को अपने रूप यौवन पर घमंड था. उसे लगता था कि कोई भी युवक उसे शादी करने से मना नहीं करेगा. वरुण ने मना कर दिया तो आहत हो कर उस ने शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा होने का निश्चय किया.

पापा से नौकरी की इजाजत मिल गई तो उस ने जल्दी ही जौब ढूंढ लिया. जौब करते हुए 2 महीने ही बीते थे कि एक पार्टी में उस का परिचय रंजन से हुआ, जो पेशे से वकील था. उस के पास काफी संपत्ति थी. शादी के ख्याल से उस ने रंजन से दोस्ती की, फिर संबंध भी बनाया. लेकिन करीब एक साल बाद उस ने शादी से मना कर दिया.

रंजन से धोखा मिलने पर दिशा तिलमिलाई जरूर लेकिन उस ने निश्चय किया कि पुरानी बातों को भूल कर अब विवाह से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी.

दिशा ने घर वालों को शादी की रजामंदी दे दी तो उस के लिए वर की तलाश शुरू हो गई. 4 महीने बाद मानस मिला. वह बहुत बड़ी कंपनी में सीईओ था. पुश्तैनी संपत्ति भी थी. उस के पिता रेलवे से रिटायर्ड थे. मम्मी हाईस्कूल में पढ़ाती थीं.

मानस से शादी होना तय हो गया तो दिशा उस से मिलने लगी. उस ने फैसला किया था कि शादी से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी. लेकिन अपने फैसले पर वह टिकी नहीं रह सकी. हवस की आग में जलने लगी तो मानस से संबंध बना लिया.

2 महीने बाद जब मानस मंगनी से कतराने लगा तो दिशा ने पूछा, ‘‘सच बताओ, मुझ से शादी करना चाहते हो या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’ मानस ने कह दिया.

‘‘क्यों?’’ दिशा ने पूछा. वह गुस्से में थी.

कुछ सोचते हुए मानस ने कहा, ‘‘पता चला है कि मुझ से पहले भी तुम्हारे कई मर्दों से संबंध रहे हैं.’’

पहले तो दिशा सकते में आ गई, लेकिन फिर अपने आप को संभाल लिया और कहा, ‘‘लगता है, मेरे किसी दुश्मन ने तुम्हारे कान भरे हैं. मुझ पर विश्वास करो तुम्हारे अलावा मेरे किसी से संबंध नहीं रहे.’’

मानस ने सोचने के लिए दिशा से कुछ दिन का समय मांगा, लेकिन उस ने समय नहीं दिया. उस पर दबाव बनाने के लिए दिशा ने अपने घर वालों को बताया कि मानस ने बहलाफुसला कर उस से संबंध बना लिए हैं और अब गलत इलजाम लगा कर शादी से मना कर रहा है.

उस के पिता और भाई गुस्से में मानस के घर गए. उस के मातापिता के सामने ही उसे खूब लताड़ा और दिशा की बेहयाई का सबूत मांगा.

मानस के पास कोई सबूत नहीं था. मजबूर हो कर वह दिशा से मंगनी करने के लिए राजी हो गया. 15 दिन बाद की तारीख रखी गई. आखिर वह दिन आ ही गया. मानस उस से मंगनी करने आ रहा था.

एक सहेली ने दिशा की तंद्रा भंग की तो वह वर्तमान में लौट आई. सहेली कह रही थी, ‘‘देखो, मानस आ गया है.’’

दिशा ने खुशी से दरवाजे की तरफ देखा. मानस अकेला था. उस के घर वाले नहीं आए थे. उस के साथ एक ऐसा शख्स था जिसे देखते ही दिशा के होश उड़ गए. वह शख्स था डा. अमरेंदु.

मानस को अकेला देख दिशा के भाई और पापा भी चौंके. उस का स्वागत करने के बाद भाई ने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर वाले नहीं आए?’’

‘‘कोई नहीं आएगा.’’ मानस ने कहा.

‘‘क्यों नहीं आएगा?’’

‘‘क्योंकि मैं दिशा से शादी नहीं करना चाहता. मुझे उस से अकेले में बात करनी है? वह सब कुछ समझ जाएगी. खुद ही मुझ से शादी करने से मना कर देगी.’’

भाई और पिता के साथ दिशा भी सकते में आ गई. उस की भाभी उस के पास ही थी. उस की बोलती भी बंद हो गई थी.

दिशा के पिता ने उसे अकेले में बात करने की इजाजत नहीं दी. कहा, ‘‘जो कहना है, सब के सामने कहो.’’

मजबूर हो कर मानस ने लोगों के सामने ही कहा, ‘‘दिशा दुश्चरित्र लड़की है. अब तक कई लड़कों से संबंध बना चुकी है. 2 बार एबौर्शन भी करा चुकी है. इसीलिए मैं उस से शादी नहीं करना चाहता.’’

भाई को गुस्सा आ गया. उस ने मानस को जोरदार थप्पड़ मारा और कहा, ‘‘मेरी बहन पर इल्जाम लगाने की आज तक कभी किसी ने हिम्मत नहीं की. अगर तुम प्रमाण नहीं दोगे तो जेल की हवा खिला दूंगा.’’

‘‘भाईसाहब, आप गुस्सा मत कीजिए अभी सबूत देता हूं. जब मेरे शुभचिंतक ने बताया कि दिशा का चरित्र ठीक नहीं है, तभी से मैं सच्चाई का पता लगाने में जुट गया था. अंतत: उस का सच जान भी लिया.’’

मानस ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ जो शख्स हैं, उन का नाम डा. अमरेंदु है. दिशा ने उन के क्लिनिक में 2 बार एबौर्शन कराया था. आप उन से पूछताछ कर सकते हैं.’’

डा. अमरेंदु ने मानस की बात की पुष्टि करते हुए कुछ कागजात दिशा के भाई और पिता को दिए. कागजात में दिशा ने एबौर्शन के समय दस्तखत किए थे.

दिशा की पोल खुल गई तो चेहरा निष्प्राण सा हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था  कि अब उसे क्या करना चाहिए. भाई और पापा का सिर शर्म से झुक गया था. फ्रैंड्स भी उसे हिकारत की नजरों से देखने लगी थीं.

दिशा अचानक मानस के पास जा कर बोली, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी तबाह कर दी. तुम्हें छोडूंगी नहीं. तुम्हारे जिंदगी भी बर्बाद कर के रख दूंगी. तुम नहीं जानते मैं क्या चीज हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह सब तुम्हारे लाइफस्टाइल की वजह से हो रहा है. इस में किसी का कोई दोष नहीं है. जब तक तुम अपने आप को नहीं सुधारोगी, ऐसे ही अपमानित होती रहोगी.’’

पलभर चुप रहने के बाद मानस ने फिर कहा, ‘‘आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो चुकी हो कि तुम से कोई भी शादी करने के लिए तैयार नहीं होगा.’’

वह एक पल रुक कर बोला, ‘‘हां, एक ऐसा शख्स है जो तुम्हें बहुत प्यार करता है. तुम कहोगी तो खुशीखुशी शादी कर लेगा.’’

‘‘कौन?’’ दिशा ने पूछा.

‘‘परिमल…’’ मानस ने कहा, ‘‘गेट पर उस से मिल कर आने के बाद तुम उसे भूल गई थीं, पर वह तुम्हें नहीं भूला है. होटल के गेट पर अब तक इस उम्मीद से खड़ा है कि शायद तुम मुझ से शादी करने का अपना फैसला बदल दो. कहो तो उसे बुला दूं.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’ दिशा ने पूछा.

मानस ने बताया कि वह परिमल को कब और कहां मिला था.

कार पार्क कर मानस डा. अमरेंदु के साथ होटल में आ रहा था तो गेट पर परिमल मिल गया था. न जाने वह उसे कैसे जानता था. उस ने पहले अपना परिचय दिया फिर दिशा और अपनी प्रेम कहानी बताई.

उस के बाद कहा, ‘‘तुम्हें दिशा की सच्चाई भविष्य में उस से सावधान रहने के लिए बताई है. अगर उस से सावधान नहीं रहोगे तो विवाह के बाद भी वह तुम्हें धोखा दे सकती है.’’

मानस ने परिमल को अंदर चलने के लिए कहा तो उस ने जाने से मना कर दिया. कहा, ‘‘मैं यहीं पर तुम्हारे लौटने का इंतजार करूंगा. बताना कि तुम से मंगनी कर वह खुश है या नहीं?’’

कुछ सोच कर मानस ने उस से पूछा, ‘‘मान लो दिशा तुम से शादी करने के लिए राजी हो जाए तो करोगे?’’

‘‘जो हो नहीं सकता, उस पर बात करने से क्या फायदा? जानता हूं कि वह कभी भी मुझ से शादी नहीं करेगी.’’ परिमल ने मायूसी से कहा.

मानस ने परिमल की आंखों में देखा तो पाया कि दिशा के प्रति उस की आंखों में प्यार ही प्यार था. उस ने चाह कर भी कुछ नहीं कहा और डा. अमरेंदु के साथ होटल में चला आया.

मानस ने दिशा को सच्चाई से दोचार करा दिया तो उसे भविष्य अंधकारमय लगा. परिमल के सिवाय उसे कोई नजर नहीं आया तो वह उस से बात करने के लिए व्याकुल हो गई.

उस का फोन नंबर उस के पास था ही, झट से फोन लगा दिया. परिमल ने फोन उठाया तो उस ने कहा, ‘‘तुम से कुछ बात करना चाहती हूं. प्लीज होटल में आ जाओ.’’

कुछ देर बाद ही परिमल आ गया और दिशा ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, परिमल. मैं तुम्हारा प्यार समझ नहीं पाई थी, लेकिन अब समझ गई हूं. मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. अभी मंगनी कर लो, बाद में जब कहोगे शादी कर लूंगी.’’

कुछ सोचने के बाद परिमल ने कहा, ‘‘यह सच है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. पर तुम आज भी मुझ से बेवफाई कर रही हो. सच नहीं बता रही हो. सच यह नहीं है कि मेरा प्यार तुम समझ गई हो, इसलिए मुझ से शादी करना चाहती हो. सच यह है कि आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो गई हो कि तुम से कोई भी शादी नहीं करना चाहता. मानस ने भी शादी से मना कर दिया है. इसीलिए अब तुम मुझ से शादी कर अपनी इज्जत बचाना चाहती हो.

‘‘तुम से शादी करूंगा तो प्यार की नहीं, समझौते की शादी होगी, जो अधिक दिनों तक नहीं टिकेगी. अत: मुझे माफ कर दो और किसी और को बलि का बकरा बना लो. मैं भी तुम्हें सदैव के लिए भूल कर किसी और से शादी कर लूंगा.’’

परिमल रुका नहीं. दिशा की पकड़ से हाथ छुड़ा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. वह देखती रह गई. किस अधिकार से रोकती?

कुछ देर बाद मानस और डा. अमरेंदु भी चले गए. दिशा के घर वाले भी चले गए. सहेलियां चली गईं. महफिल खाली हो गई, पर दिशा डबडबाई आंखों से बुत बनी रही.

Hindi Kahani : बाबा, बाजार और बेचारा करतार

Hindi Kahani : ज्यों ही मेरे सिर में अचानक सफेद बाल दिखा, धर्मभीरुओं ने दांव मिलते ही उपदेश देते कहा, ‘‘हे माया के मोह में पड़ अपने परलोक को भूले मेवालाल, खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गई है. संभल जा. सिर के बालों में एकाएक सफेद बाल उग आने का मतलब होता है कि…सो, अब मोहमाया की गली के फेरे लगाने छोड़, ईश्वर से नाता जोड़. ऐसा न हो कि यहां का खाया भगवान ऐसे निकाले कि सात जन्म तक खाना ही भूल जाए. चल, अब शाकाहारी हो जा.’’

मैं ने उन्हें समझाते कहा, ‘‘हे भगवान से डरने वालो, अभी मेरे खाने के दिन हैं. देखो, सिर तो सिर, सिर से पांव तक हुए सफेद बाल वाले कितने बैठे हैं जो मोहमाया में अभी भी कैसे फिट हैं? मैं तो जिस कुरसी पर बैठा हूं उस पर सोएसोए भी कमाने के दिन हैं. जनता की जेब तो मैं तब तक काटना बंद नहीं करने वाला जब तक मेरे गले में माला पहना मुझे मेरे औफिस वाले घर नहीं धकिया देते.’’

अचानक, पता नहीं कैसे मेरा हृदय परिवर्तन हो गया और मैं साहब के चरणों को छोड़, भगवान के चरणों की खोज करने लगा. और, मैं सब को गुमराह करने वाला खुद ही गुमराह हो चला.

हमारे दंभी जीवन में एक दौर ऐसा भी आता है जब हम औरों को गुमराह करतेकरते अपने दंभ के परिणामस्वरूप खुद को ही गुमराह करने लग जाते हैं. और हमें पता ही नहीं चलता. दिमाग में पता नहीं कहां से सड़ा विचार बदबू मार गया और मुझे अनदेखे परलोक की चिंता होने लगी. मेरे मायाग्रस्त दिमाग में पता नहीं बिन खादपानी ईश्वर के प्रति आस्था का पौधा कैसे पनपने लगा. वैसे, परलोक की चिंता में धर्म के धंधेबाज रहते हैं और तब ही जानलेवा बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं.

जवानी में कोई मौत के बारे में सोचे तो उसे गधे से अधिक कुछ और मत मानिए. जवानी के दिन तो मौज मनाने के दिन होते हैं, मर्यादाओं को अंगूठा दिखाने के दिन होते हैं, भगवान को गच्चा दे अपने को ठगने और औरों को ठगाने के दिन होते हैं.

धर्म की मार्केटिंग इतनी जबरदस्त है कि उस में गच्चा खा कर मैं औफिस के खानपान को छोड़ औफिसटाइम के बीचबीच में भगवान को ढूंढ़ने निकल पड़ता, यह सोच कर कि अगर उस से जरा संवाद हो जाए तो बंदा भवसागर पार हो जाए. भगवान के चक्कर में प्रेमिका के चक्कर से भी अधिक राख छान मारी पर वे निकले ऐसे जैसे हाईकमान किसी रुष्ट नेता से नहीं मिलना चाहता तो नहीं मिलना चाहता. जब भगवान कहीं नहीं मिले तो मैं उदास हो उठा. तब महल्ले के एक नामीगिरामी, पहुंचे हुए विषय वासनाओं से पूर्ण भगवाई बिचौलिए ने बातोंबातों में समझाया, ‘‘हे प्रभु दीवाने, भगवान सीधे किसी से नहीं मिलते. मध्यस्थ की मध्यस्थता बहुत जरूरी है.’’

‘‘मीडिएटर बोले तो…’’

‘‘बाबाजी.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘भगवान को पाने का हर रास्ता आज भी वैसे ही बाबाओं की गली से हो कर जाता है जैसे आत्मा के स्वर्ग का रास्ता जीव के मरने के बाद पंडों के पिछवाड़े से हो कर जाता है.’’

‘‘तो?’’

‘‘तो क्या, जो भगवान से साक्षात्कार करना चाहते हो तो किसी पहुंचे हुए बाबा से तुरंत संपर्क करो. तुम चाहो, तो मेरी नजर में भगवान से साक्षात्कार करवाने वाला एक बाबा है.’’

‘‘उस का नंबर है आप के पास क्या?’’ मैं ने उन के चरण पकड़े तो वे अदब से बोले, ‘‘यह लो, नोट करो.’’ और मैं उन से बाबा का नंबर ले गदगद हुआ.

बड़ी कोशिश के बाद बाबाजी से संपर्क हुआ, तो वे डकारते बोले, ‘‘क्या बात है वत्स?’’

‘‘सर, आप के माध्यम से भगवान के दर्शन करना चाहता हूं.’’

‘‘भगवान बोले तो?’’

‘‘गौड, अल्लाह, ईश्वर के दर्शन करवा देंगे?’’

‘‘पहले यह लो भगवान का बैंक अकाउंट नंबर. और इस में 5 हजार एक सौ रुपए जमा करवा दो.’’

‘‘भगवान का अकाउंट नंबर? ब्लैक मनी के आने के चक्कर में भगवान ने भी अपना बैंक अकाउंट खुलवा लिया?’’ मैं ने अपनी सोच जाहिर की.

‘‘हां, धन की जरूरत किसे नहीं, भक्त? धन है तो भजन है. धन है तो मन है. धन समस्त सृष्टि का आधार है. धन के बिना जीव निराधार है. धन के बिना भगवान बिन चमत्कार है. धन के बिना हर घरगृहस्थी ही नहीं, सरकार से ले कर बाबा तक बीमार है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘धन हर सोच का मूल है. धन है तो आग भी कूल है. धन है तो शूल भी फूल है.’’

‘‘तो?’’

‘‘अभी किस का बना माल खाते हो?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘स्वदेशी या विदेशी?’’

‘‘विदेशी.’’

‘‘स्वदेशी क्यों नहीं? क्या भारतीय नहीं हो?’’

‘‘विशुद्ध भारतीय ही हूं. पर स्वदेशी का रिस्क लेने से डरता हूं.’’

‘‘पाप, घोर पाप, विदेशी खानेपहनने वाले को हमारे भगवान के घर में कोई जगह नहीं. जाओ, पहले धर्म बदल कर आओ, फिर हम से फोन पर जबान लड़ाओ.’’

‘‘फोन लगाया, बाबा, ऐसा न कहो? हूं तो भारतीय मूल का ही मैं, पर भीगी बिल्ली सा कुछ बना.’’

‘‘तो, जो भगवान पाना चाहते हो, तो पहले हमारी कंपनी के स्वदेशी प्रोडक्ट अपनाओ.’’

‘‘भगवान से मिलवाने के धंधे में कमाई कम हो गई क्या, जो अब आप माल भी बेचने लगे?’’

‘‘हम माल नहीं बेचते. भक्तों का कल्याण बेचते हैं. अपने माल से उन में शुद्ध विचार भरते हैं. ऐसा कर उन्हें करतार यानी भगवान के करीब करते हैं. असल में काफी बोझ के बाद हम ने महसूस किया कि भगवान को पाने का सरल रास्ता हमारे बने प्रोडक्टों से हो कर ही गुजरता है.’’

‘‘मतलब? जो आप के प्रोडक्ट खाएगा, करतार को केवल वही पाएगा?’’

‘‘हां, शतप्रतिशत. हमारे बनाए प्रसादरूपी और्गेनिक प्रोडक्टों के सेवन से दूसरे बाबाओं के खाए प्रोडक्टों की अपेक्षा जल्दी तुम अपने भगवान से साक्षात्कार कर सकते हो, हरि ओम, हरि ओम.’’

‘‘मतलब, आज तभी सब बाबा मठ छोड़, बाजार में डटे हैं?’’

‘‘डटना पड़ता है. यह माया महाठगिनी है. इस के मोहपाश से तो भगवान भी नहीं बच पाए और हम तो…और केवल एक प्रोडक्ट से आज किसी की दुकान चली है भला? हर कस्टमर की मांग के हिसाब से हरेक का भगवान लीगली या इल्लीगली रखना ही पड़ता है. इसलिए, पहले मेरे प्रोडक्ट इस्तेमाल करो, फिर करतार से मिलने की बात करो.’’

‘‘माफ करना, बाबा, पहले जो बाबा भगवान को कब्जाने के लिए जाने जाते थे, आज क्या वे बाजार को हथियाने की फिराक में नहीं दिखते? बाबा, बाजार और करतार का आपस में यह क्या संबंध है? जबकि बाजार बाजार है और करतार करतार.’’

‘‘बाजार और करतार का आपस में वही संबंध है जो जीव का परमात्मा से है.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘हमारे प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने से तन का मैल साफ हो जाता है, पापी. जिसजिस ने हमारे बने प्रोडक्टों का इस्तेमाल किया वह तन से भगवान के शर्तिया करीब हुआ.’’

‘‘मन से क्यों नहीं?’’

‘‘मन किसी के पास हो, तभी तो वह मन से करतार पाए. अब तन है तो तन से ही काम चलाना पड़ेगा न?’’

‘‘मतलब, आप के प्रोडक्टों के इस्तेमाल के बिना मैं तन से भगवान नहीं पा सकता?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. साहस हो तो आजमा कर देख लो. परम सत्य है, असल में जब पैसे वाला जीव भौतिक सुखसाधनों से ऊब जाता है, तब ही वह भगवान के चरणों में जा कर गिड़गिड़ाता है. और रुपैयाछाप भक्त उसे त्यागी कह एक  बार फिर धोखा खा जाते हैं. और बाजार में हम जैसे कुछ और चादर बिछा डालते हैं.’’

‘‘हां, ताकि कम से कम गृहस्थियों का पैसा माया से युक्त बाबाओं के पास रहे और…वे समानांतर व्यवस्था चलाएं, सरकार तक को अपने इशारे पर नचाएं. इसीलिए आज हर बाबा बाजार में कुछ न कुछ पेश कर सुधबुध खोए तुम जैसे नास्तिकों के उद्धार के लिए साबुन से ले कर सीडी तक हाथ में लहराता खड़ा है.’’

‘‘हर किस्म के करतार को पाने का रास्ता बाजार से हो कर ही गुजरता है, पुत्र. इसलिए, पहले मेरी दुकान में आ और उस का द्वार पार कर अपना मनवांछित आराध्य पा. यह ले रिंकलफ्री क्रीम. दिमाग में लगा और दिमाग में मोह से पड़ी सारी झुर्रियां हटा. तभी तेरा आगे का रास्ता साफ होगा. ले मेरी पिंपलफ्री क्रीम. चेहरे पर लगा और करतार को अपना सनशाइन चेहरा दिखा, उस का फेवरिट हो जा.’’

वे यह सब कह ही रहे थे कि तभी मुझे लगा, कहीं और से मेरे जैसा उन का भक्त उन से फोन पर संपर्क करना चाह रहा था. सो, मेरा उन का संपर्क टूटा. करतार के नाम पर एक बंदा फिर ठगने से छूटा कि नहीं, यह तो करतार ही जाने.

Hindi Satire : मकान एक लड्डू है

Hindi Satire : रोटी, कपड़ा और मकान इनसान की बुनियादी जरूरतें हैं. मेरे पास कपड़े थे और रोटियां भी, लेकिन मकान किराए का था. मेरे पिताजी का कहना था कि इस बुनियादी जरूरत को जल्दी से जल्दी पूरा कर लेना चाहिए, क्योंकि दूसरे के मकान में थूकने का भी डर होता है और अपने मकान में मनमानी करने की पूरी छूट होती है, इसलिए इस मनमानी को पूरा करने के लिए मेरे मन में उतावलापन मचा हुआ था.

लेकिन मकान का इंतजाम करना बड़ी टेढ़ी खीर होती है. मैं ने नौकरी करते हुए रिश्वतखोरी को बढ़ावा दिया, ताकि जैसेतैसे मैं अपना एक गरीबखाना बना सकूं.

मेरे हर दोस्त ने अपना यह शौक पलक झपकते ही पूरा कर लिया था. कई तो ऐसे थे, जिन के पास हर आवास योजना में एक मकान था. वे हमेशा मकान जैसी अचल जायदाद बनाने में लगे रहे और मैं हमेशा चंचला लक्ष्मी के पीछे पड़ा रहा.

एक दिन मेरे साथ अनहोनी हो गई. मैं ने एक हाउसिंग सोसाइटी में मकान लेने का फार्म भरा हुआ था. इत्तिफाक कहिए कि मुझे प्लौट अलौट हो गया.

यह सुनते ही मेरा शरीर रोमांचित हो उठा. पत्नी समेत बच्चे बल्लियां उछल पड़े. मदहोशी का एक ऐसा आलम था कि उसे मैं यहां बयान नहीं कर सकता.

मुझे रातदिन मकान के रंगीन सपने आने लगे. खाली जमीन पर सपनों में कोठी बनने लगी. उस को बनाने को ले कर घरेलू बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया. नक्शे बनने लगे. सुझाव आने लगे.

पत्नी का कहना था कि अमुक कमरे में पंखा लगेगा, तो मेरा सुझाव था कि कूलर लगवाया जाएगा. बच्चे पढ़ने के बजाय चुपकेचुपके कोर्स की कौपियों में मकान के नक्शे बनाने लगे. बाहर लौनपेड़पौधे और ऊपर खुली बालकनी पर जोर दिया जाने लगा.

मैं इस सारी मुहिम में शामिल तो होता था, लेकिन हमेशा एक हताशा मुझे घेरे रहती थी कि मकान की नींव कैसे खुद पाएगी.

मेरे एक दोस्त हैं महेशजी. 2-3 महीने बाद एक दिन जब वे अचानक मिले, तो उन का हुलिया व चेहरे का भूगोल देख कर मेरे होश फाख्ता हो गए.

मैं ने पूछा, ‘‘क्यों, क्या मकान बनवा रहे हो?’’

वे खुश हो कर बोले, ‘‘आप को कैसे पता चला?’’

मैं ने कहा, ‘‘वह तो आप की शक्ल देख कर ही पता चल गया है. यह आप की बढ़ी हुई दाढ़ी, पिचके हुए गाल, धंसी हुई आंखें, बिना इस्तिरी किए कपड़े… कौन कह सकता है कि आप मकान नहीं बनवा रहे हैं?’’

वे बोले, ‘‘बस, पूछिए मत. भूल कर भी इस करमजले मकान का नाम मत लेना भाई. मुझे पता होता कि यह ऐसे गुल खिलाएगा, तो मैं नींव में सब से पहले खुद कूद जाता.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘हुआ यह कि जनाब, इस देश में जिन की पत्नियां कमाएं और जो बीड़ी पीता हो, उस का तो ऊपर वाला ही मालिक है. बस, मकान में जो कारीगर आते हैं, वे हर 15 मिनट के बाद बीड़ी पीते हैं. भला बताइए कि वे आप की जान नहीं लेंगे, तो और क्या करेंगे?’’

‘‘लेकिन, मैं क्या करूं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘करना क्या है, इमली के पत्ते पर दंड पेलिए. मकान तो साक्षात काल है, जो मुंह खोले खड़ा है. जो जाता है, वही उस में समा जाता है,’’ महेशजी बोले.

मैं ने कहा, ‘‘जरा, सोचसमझ कर बोलिए. मकान के मामले में कुछ तो अच्छा बोलिए.’’

उन्होंने कहा, ‘‘तुम मेरे हालात देखने के बाद अगर रिस्क लेना चाहते हो, तो शौक से ले लो. मकान वही बना सकता है, जिस का दो नंबर का धंधा हो.’’

‘‘जब एक नंबर ही नहीं है, तो दो नंबर का सवाल ही कहां से आता है?’’

‘‘फिर तो हरि कीर्तन करो. मकान एक ऐसा लड्डू है, जिसे खाने वाला और नहीं खाने वाला दोनों पछताते हैं. मैं ने बनाया है, जान गले में आ गई. लोन के तमाम फौर्म भर कर पैसा उगाह लिया, लेकिन मकान अभी तक अधूरा है. मैं समझता हूं कि अगर मैं ने मकान पूरा बनाया, तो या तो मकान रहेगा या फिर मैं,’’ वे बोले.

यह सुन कर मेरे भी रोंगटे खड़े हो गए. मैं बस इतना ही कह पाया, ‘‘अगर ऐसी बात है, तो मैं मकान न बनाने की शपथ खाता हूं. जिस मकान को बनाने से आदमी को जिंदा ही स्वर्ग नसीब होता है, तो फिर मैं किराए के मकान में ही रह लूंगा.’’

वे हंसते हुए चले गए. उस दिन के बाद से मैं रोज नक्शे बनाता हूं, मकान के स्टाइल पर विचार करता हूं, लेकिन जमीन की बाउंड्रीवाल ही नहीं बन पाती, तो मकान क्या बनेगा.

Best Hindi Satire : सीएम साहब से सामना

Best Hindi Satire : पत्रकार कनछेदी लाल मुख्यमंत्री से रूबरू है . कनछेदी लाल की आज वर्षों की साध पूरी हुई थी. राज्य का धुरंधर मुख्यमंत्री साक्षात्कार के लिए आमने-सामने है. कनछेदी लाल को सुखद अनुभव हो रहा है आत्मा को परम शांति या कहें परमगति मिल गई है.श्रीमान मुख्यमंत्री से उसे बातचीत करनी है, बड़े सौभाग्य से उसे यह मौका मिला है.

कनछेदी लाल बड़े धांसू अखबार नवीस है .पैदा होते ही उन्होंने जन्म दात्री मां से प्रश्न किया- “मां ! तुम्हें आज मुझे पैदा करके कैसी अनुभूति हो रही है ?”फिर पिताश्री की ओर सवाल उछाला, -“मेरे भविष्य के लिए क्या सोच रखा है.”

अब देखिए ! कनछेदी लाल और मुख्यमंत्री आमने सामने बैठे हैं जैसे दो शांत शावक ! एक दूसरे को घूर रहे हों या कहें जैसे दो विशालकाय सर्प या  बब्बर सिंह ! एक दूसरे को घात प्रतिघात के लिए आंखों से आंखें मिलाकर खड़े हो…

कनछेदी लाल के मुंह से बोल नहीं फूट रहे हैं. वह कनछेदीलाल जो लोगों के बात बात में कान काट खाता था इस विशिष्ट मौके पर मौन है . मुंह से बोल नहीं फूट रहे .

दूसरी तरफ श्रीमान मुख्यमंत्री आत्मविश्वास से लबरेज कनछेदी लाल के सामने बैठे हैं .जाने कितने पत्रकार, संपादकों को उन्होंने पानी पिलाया है, यह अब तो उन्हें भी स्मरण नहीं .मगर कनछेदी लाल के बारे में उन्होंने जो रिपोर्ट देखी है वह स्वयं चकित है ऐसा भी होता है अरे यह कनछेदी लाल तो जन्म लेते ही अपने मां बाप से भिड़ गया था. बड़ा खतरनाक खबरैलू है.

मुख्यमंत्री मोहक मुस्कान बिखेरते हुए बोले -“कहो कनछेदी लाल, क्या जानना चाहते हो ?
मानौ पत्रकारिता ध्वस्त होकर चरमरा कर गिर पड़ी हो. पत्रकारिता के माथे पर किसी ने मुद्गर चला दिया हो या पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो. अभी तक का इतिहास रहा है कनछेदी लाल कभी भी प्रश्न का ब्रह्मास्त्र छोड़ने में एक सेकंड भी देर नहीं करते, मगर आज तो श्रीमान मुख्यमंत्री ने बाजी मार ली. कुर्सी को नमन है सत्ता को प्रणाम है.

कनछेदी लाल को आत्मा ने मानौ धिक्कारा -“रे कनछेदी! तू इतना असहाय कब से हो गया. एक मुख्यमंत्री के सामने हथियार डाल दिए थू है तुझ पर .तू तो बड़ा पत्रकार बनता था कहां गया तेरा वह जज्बा जिसमें बड़े धुरंधर धूल में ओटते दिखा करते थे। अरे! यह मुख्यमंत्री, यह सत्ता तो आती जाती रहेगी मगर तुझे यही रहना है जवाब देना होगा.”

अब जब आत्मा जागृत हुई तो कनछेदी लाल ने पत्रकारिता का ब्रह्मास्त्र निकाला-” श्रीमान ! क्या मुख्यमंत्री का काम सिर्फ आईएएस, आईपीएस के तबादले करना ही है ? और कुछ भी नहीं… सप्ताह 15 दिवस में आप यही करते है.”

कनछेदी लाल के पहले प्रश्न से ही श्रीमान मुख्यमंत्री भीतर तक हिल गए.सोचने लगे यह कनछेदीलाल तो हृदय की सच्चाई बयां कर रहा है सच है, मैं और करता ही क्या हूं । इसने तो मेरी नब्ज पर हाथ रखा है मगर मैं भी कोई कम बड़ा खिलाड़ी नहीं, देखना, कैसा प्रतिउत्तर देता हूं .यह सोचते-सोचते श्रीमान मुख्यमंत्री के चेहरे पर मुस्कान तिर आई, बोले, “कनछेदी लाल ! हमारा पहला और आखरी काम प्रशासन के घोड़े पर लगाम रखना है यह कस कर रखने पर ही प्रदेश में अमन चैन कायम रहता है अन्यथा प्रदेश के हालात भयावह हो सकते हैं.”

यह कह कर श्रीमान मुख्यमंत्री सोचने लगे मैंने कैसा उल्लू बनाया इस कनछेदी लाल को. और जब प्रदेश की जनता यह जवाब सुनेगी तो ताली बजायेगी. निरी मूर्ख है यह जनता जनार्दन. हर एक मुख्यमंत्री तो यही करता है मगर क्या स्थिति-परिस्थिति बदलती है, नहीं न ! यह सोच असहाय श्रीमान मुख्यमंत्री ने कंधे झटके और कनछेदी लाल की और असहाय भाव से दृष्टिपात किया .

कनछेदी लाल मन ही मन भांप गए थे, श्रीमान मुख्यमंत्री की बत्ती गुल हो गई है. अपने कंधे पर शाबाशी की काल्पनिक धौल जमाते कनछेदी लाल ने दूसरा प्रश्न दागा- “श्रीमान! आपने शपथ लेते ही प्रदेश की जनता को वचन दिया था की कानून-व्यवस्था कायम रहेगी. मगर वह तो द्रोपदी के चीर की भांती रोज, नित्य प्रति हरण हो रही है.”

श्रीमान मुख्यमंत्री का मुंह सुख गया.ऐसे यक्ष प्रश्न की तो उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. वह इधर-उधर ताकने लगे यह प्रश्न तो मेरे मन मंदिर में सदैव घंटी बजाता है. यह इस कनछेदी लाल को कैसे खबर हो गई, मगर चेहरे पर मुस्कान ला कर श्रीमान मुख्यमंत्री ने कहा, “हां… यह सच है. मैं आज भी अपने वचन पर कायम हूं मगर यह तो सभी प्रदेशों के हालात हैं. कहां, कानून व्यवस्था के साथ नग्न नाच नहीं हो रहा. दरअसर इसके लिए जनता को कानून का साथ देना होगा .” मुख्यमंत्री यह कह कर इधर-उधर तकने लगे, तो कनछेदी लाल समझ गए चीफ मिनिस्टर अब दूसरे प्रश्न की अपेक्षा कर रहे हैं.
कनछेदी लाल ने अपनी तरकश से तीसरा प्रश्न निकाला और कहा-” श्रीमान मुख्यमंत्री जी ! मैं किसानों की समस्या पर प्रश्न नहीं करता, मैं बेरोजगारों की समस्या और भ्रष्टाचार की बात नहीं करता, मैं आपसे आप की पार्टी के कार्यकर्ताओं के संबंध में यह जानना चाहता हूं कि पार्टी के सैकड़ों हजारों कार्यकर्ता, जिनके पास कोई काम धंधा नहीं है,वह हवा पी कर जिंदा हैं क्या, वह फलते-फूलते कैसे हैं, यह रहस्य है, क्या इसका जवाब आप देंगे.”

श्रीमान मुख्यमंत्री ने मानौ राहत की सांस ली, यह प्रश्न उन्हें बड़ी राहत दे रहा था. उन्होंने सोच लिया कनछेदी लाल को वीआईपी क्षेत्र में एक भूखंड गिफ्ट कर देंगे यह प्रश्न करके उन्होंने पत्रकारिता धर्म का गला दबाने का काम ईमानदारी से किया है. इतने इनाम के हकदार तो अब यह हो जाते हैं .

श्रीमान मुख्यमंत्री ने प्रसन्न भाव से प्रश्न का जवाब दिया फिर कहा चलो ! फिर कभी मिलते हैं… तुम्हारे लिए एक छोटी सी गिफ्ट है जो लेते जाना. उन्होंने पीए की ओर इशारा कर दिया.

कनछेदी लाल मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए. आज पत्रकारिता धर्म का जैसा निर्वाहन किया वह ऐतिहासिक था. ऐसी सफलता तो उन्हें जीवन भर मेहनत करके भी नहीं मिलती जो चार प्रश्न दाग कर मिल गई . मानौ मुख्यमंत्री का साक्षात्कार नहीं था, यह गंगा स्नान था.कनछेदी लाल के कान लाल सुर्ख हो गए थे. वे खुशी-खुशी हाथों में कलम की जगह खंजर लेकर घर की ओर लौटने लगे.

Hindi Story : जन्मपत्री

Hindi Story : बूआ ने भरसक प्रयास किया कि रश्मि की शादी ऐसे लड़के से हो जिस की जन्मपत्री रश्मि की जन्मपत्री से मेल खाती हो और उन के 32 गुण मिलते हों. बूआ अपने प्रयास में जुटी रहीं पर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि बूआ के सारे मनसूबों पर पानी फिर गया. पढि़ए, डा. प्रणव भारती की कहानी.

‘‘ये  लो और क्या चाहिए…पूरे

32 गुण मिल गए हैं,’’

गंगा बूआ ने बड़े गर्व से डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते हुए त्रिवेदी परिवार के सामने रश्मि की जन्मपत्री रख दी.

‘‘आप हांफ क्यों रही हैं? बैठिए तो सही…’’ चंद्रकांत त्रिवेदी ने खाली कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘चंदर, तू तो बस बात ही मत कर. जाने कौन सा राजकुमार ढूंढ़ कर लाएगा बेटी के लिए. कितने रिश्ते ले कर आई हूं…एक भी पसंद नहीं आता. अरे, नाक पर मक्खी ही नहीं बैठने देते तुम लोग… बेटी को बुड्ढी करोगे क्या घर में बिठा कर…?’’ गोपू के हाथ से पानी का गिलास ले कर बूआ गटगट गटक गईं.

चंद्रकांत, रश्मि और उस का भाई विक्की यानी विकास मजे से कुरकुरे टोस्ट कुतरते रहे. मुसकराहट उन के चेहरों पर पसरी रही पर चंद्रकांत त्रिवेदी की पत्नी स्मिता की आंखें गीली हो आईं. आखिर 27 वर्ष की हो गई है उन की बेटी. पीएच.डी. कर चुकी है. डिगरी कालेज में लेक्चरर हो गई है. अब क्या…घर पर ही बैठी रहेगी?

चंद्रकांत ने तो जाने कितने लड़के बताए अपनी पत्नी को पर स्मिता जिद पर अड़ी ही रहीं कि जब तक लड़के के पूरे गुण नहीं मिलेंगे तब तक रश्मि के रिश्ते का सवाल ही नहीं उठता. जो कोई लड़का मिलता स्मिता को कोई न कोई कमी उस में दिखाई दे जाती. चंद्रकांत परेशान हो गए थे. वे शहर के जानेमाने उद्योगपति थे. स्टील की 4 फैक्टरियों के मालिक थे. उन की बेटी के लिए कितने ही रिश्ते लाइन में खड़े रहते पर पत्नी थीं कि हर रिश्ते में कोई न कोई अड़ंगा लगा देतीं और उन का साथ देतीं गंगा बूआ.

गंगा बूआ 80 साल से ऊपर की हो गई होंगी. चंद्रकांत ने तो अपने बचपन से उन्हें यहीं देखा था. उन के पिता शशिकांत त्रिवेदी की छोटी बहन हैं गंगा बूआ. बचपन में ही बूआ का ब्याह हो गया था. ब्याह हुआ और 15 वर्ष की उम्र में ही वह विधवा हो गई थीं. मातापिता तो पहले ही चल बसे थे, अत: अपने इकलौते भाई के पास ही वे अपना जीवन व्यतीत कर रही थीं.

घर में कोई कमी तो थी नहीं. अंगरेजों के जमाने से 2-3 गाडि़यां, महल सी कोठी, नौकरचाकर सबकुछ उन के पिता के पास था. फिर शशिकांत इतने प्रबुद्ध निकले कि जयपुर शहर के पहले आई.ए.एस. अफसर बने. उन के ही पुत्र चंद्रकांत हैं. चंद्रकांत की पत्नी स्मिता वैसे तो शिक्षित है, एम.ए. पास हैं पर न जाने उन के और गंगा बूआ के बीच क्या खिचड़ी पकती रहती है कि स्मिता की हंसी ही गायब हो गई है. उन्हें हर पल अपनी बेटी की ही चिंता सताती रहती है. चंद्रकांत ने अपनी बूआ के साथ अपनी पत्नी को हमेशा खुसरपुसर करते ही पाया है.

गंगा बूआ के मन में यह विश्वास पत्थर की लकीर सा बन गया है कि उन का वैधव्य उन की जन्मपत्री न मिलाने के कारण ही हुआ है. उन के पिता व भाई आर्यसमाजी विचारों के थे और कुंडली आदि मिलाने में उन का कोई विश्वास नहीं था. शशिकांत के बहुत करीबी दोस्त सेठ रतनलाल शर्मा ने अपने बेटे संयोग के लिए गंगा बूआ को मांग लिया था और फिर बिना किसी सामाजिक दिखावे के उन का विवाह संयोग से कर दिया गया था. शर्माजी का विचार था कि वे अपनी पुत्रवधू को बिटिया से भी अधिक स्नेह व ममता से सींचेंगे और उस को अच्छी से अच्छी शिक्षा देंगे, लेकिन विवाह के 8 दिन भी नहीं हुए थे कि कोठी के बड़े से बगीचे में नवविवाहित संयोग सांप के काटने से मर गया. जुड़वां भाई सुयोग चीखें मारमार कर अपने मरे भाई को झंझोड़ रहा था. पल भर में ही पूरा वातावरण भय और दुख का पर्याय बन गया था.

गंगोत्तरी ठीक से विवाह का मतलब भी कहां समझ पाई थी तबतक कि वैधव्य की कालिमा ने उसे निगल लिया. कुछ दिन तक वह ससुराल में रही. सेठ रतनलाल के परिवार के लोगों ने गंगोत्तरी का ध्यान रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी परंतु वहां वह बहुत भयभीत हो गई थी. मस्तिष्क पर इस दुर्घटना का इतना भयानक प्रभाव पड़ा था कि रात को सोतेसोते भी वह बहकीबहकी बातें करने लगी. थक कर इस शर्त पर उसे उस के मातापिता के पास भेज दिया गया कि वह उन की अमानत के रूप में वहां रहेगी.

गंगोत्तरी की पढ़ाई फिर शुरू करवा दी गई. कुछ सालों बाद शर्माजी ने संयोग के जुड़वां भाई सुयोग से उस का विवाह करने का प्रस्ताव रखा. कुछ समय तक सोचनेसमझने के बाद त्रिवेदी परिवार ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया परंतु गंगोत्तरी ने जो ‘न’ की हठ पकड़ी तो छोड़ने का नाम ही नहीं लिया.

बहुत समझाया गया उसे पर तबतक वह काफी समझदार हो चुकी थी और उसे विवाह व वैधव्य का अर्थ समझ में आने लगा था. उस का कहना था कि एक बार उस के साथ जो हुआ वही उस की नियति है, बस…अब वह पढ़ेगी और शिक्षिका बन कर जीवनयापन करेगी. फिर किसी ने उस से अधिक जिद नहीं की. इस प्रकार मातापिता की मृत्यु के बाद भी गंगोत्तरी इसी घर में रह गई. चंद्रकांत से ले कर उन के बच्चे, घर के नौकरचाकर, यहां तक कि पड़ोसी भी उन्हें प्यार से गंगा बूआ कह कर पुकारने लगे थे.

यद्यपि गंगा बूआ अब काफी बूढ़ी होे गई हैं, फिर भी घर की हर समस्या के साथ वे जुड़ी रहती हैं. उन्होंने स्मिता को अपना उदाहरण दे कर बड़े विस्तार से समझा दिया था कि घर की इकलौती लाड़ली रश्मि का विवाह बिना जन्मपत्री मिलाए न करे. बस, स्मिता के दिलोदिमाग पर गंगा बूआ की बात इतनी गहरी समा गई कि जब भी उन के पति किसी रिश्ते की बात करते वे गंगा बूआ की ओट में हो जातीं. उन्होंने ही गंगा बूआ को हरी झंडी दिखा रखी थी कि वे स्वयं जा कर पीढि़यों से चले आ रहे पंडितों के उस परिवार के श्रेष्ठ पंडित से जन्मपत्रियों का मिलान करवाएं जिसे बूआ शहर का श्रेष्ठ पंडित समझती हैं. वैसे स्मिता का विवाह भी तो बिना जन्मपत्री मिलाए हुआ था और वह बहुत सुखी थीं पर रश्मि के मामले में गंगा बूआ ने न जाने उन्हें क्या घुट्टी पिला दी थी कि बस…

आज गंगा बूआ सुबह ही नहाधो कर ड्राइवर को साथ ले कर निकल गई थीं. बूआ बेशक विधवा थीं, पर सदा ठसक से रहती थीं. ड्राइवर के बिना घर से बाहर न निकलतीं. उन के पहनावे इतने लकदक होते जो उन के व्यक्तित्व में चार चांद लगा देते थे. कहीं भी बिना जन्मपत्री मिलाए विवाह की बात होती तो वे अपना मंतव्य प्रकट किए बिना न रहतीं.

घर के सदस्य बेशक गंगा बूआ की इस बात से थोड़ा नाराज रहते पर कोई भी उन का अपमान नहीं कर सकता था. सब मन ही मन हंसते, बुदबुदाते रहते, ‘आज फिर गंगा बूआ रश्मि की जन्मपत्री किसी से मिलवा कर लाई होंगी…’ सब ने मन ही मन सोचा.

गोपू ने बूआ के सामने नाश्ते की प्लेट रख दी थी और टोस्टर में से टोस्ट निकाल कर मक्खन लगा रहा था, तभी बूआ बोलीं, ‘‘अरे, गोपू, मैं किस के दांतों से खाऊंगी ये कड़क टोस्ट, ला, मुझे बिना सिंकी ब्रेड और बटरबाउल उठा दे और हां, मेरा दलिया कहां है?’’

गोपू ने बूआ के सामने उन का नाश्ता ला कर रख दिया. आज बूआ कुछ अलग ही मूड में थीं.

‘‘क्यों स्मिता, तुम क्यों चुप हो और तुम्हारा चेहरा इतना फीका क्यों पड़ गया है?’’ बूआ ने एक चम्मच दलिया मुंह में रखते हुए स्मिता की ओर रुख किया.

स्मिता कुछ बोली तो नहीं…एक नजर बूआ पर डाल कर मानो उन से आंखों ही आंखों में कुछ कह डाला.

‘‘देखो चंदर, मैं ने इस लड़के के परिवार को शाम की चाय पर बुला लिया है…’’ उन्होंने अपने बैग से लड़के का फोटो निकाल कर चंद्रकांत की ओर बढ़ाया.

‘‘पर बूआ आप पहले रश्मि से तो पूछ लीजिए कि वह शाम को घर पर रहेगी भी या नहीं,’’ चंद्रकांत ने धीरे से बूआजी के सामने यह बात रख दी, ‘‘और हां, यह भी बूआजी कि उसे यह लड़का पसंद भी है या नहीं,’’

‘‘देखो चंदर, आज 3 साल से लड़के की तलाश हो रही है पर इस के लिए कोई अच्छे गुणों वाला लड़का ही नहीं मिलता. और ये बात तो तय है कि बिना कुंडली मिलाए न तो मैं राजी होऊंगी और न ही स्मिता, क्यों स्मिता?’’ एक बार फिर बूआ ने स्मिता की ओर नजर घुमाई.

स्मिता चुप थीं.

नाश्ता कर के सब उठ गए और अपनेअपने कमरों में जाने लगे.

‘‘मैं जरा आराम कर लूं…थक गई हूं,’’ इतना बोल कर बूआ ने भी अपना बैग समेटा, ‘‘स्मिता, बाद में मेरे कमरे में आना.’’ बूआजी का यह आदेश स्मिता को था.

तभी चंद्रकांत ने पत्नी की ओर देख कर कहा, ‘‘स्मिता, तुम जरा कमरे में चलो. तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

स्मिता आंखें नीची कर के बूआ की ओर देखती हुई पति के पीछे चल दीं. बूआ को लगा, कुछ तो गड़बड़ है. वातावरण की दबीदबी खामोशी और स्मिता की दबीदबी चुप्पी के पीछे मानो कोई गहरा राज झांक रहा था.

वे सुबह से उठ कर, नित्य कर्म से निवृत्त हो कर बाहर निकलने में ऐसी निढाल हो गई थीं कि कुछ अधिक सोचविचार किए बिना उन्होंने अपने कमरे में जा कर स्वयं को पलंग पर डाल दिया. आज वैसे भी रविवार था. सब घर पर ही रहने वाले थे. थोड़ा आराम कर के लंच पर बात करेंगी. शाम को आने का न्योता तो दे आई हैं पर ‘मीनूवीनू’ तो तय करना होगा न. बूआजी बड़ी चिंतित थीं.

गंगा बूआ पूरे जोशोखरोश में थीं. उत्साह उन के भीतर पंख फड़फड़ा रहा था पर थकान थी कि उम्र की हंसी उड़ाने लगी थी. पलंग पर पहुंचते ही न जाने कब उन की आंख लग गई. जब वे सो कर उठीं तो दोपहर के साढ़े 3 बजे थे.

‘कितना समय हो गया. मुझे किसी ने उठाया भी नहीं,’ बूआ बड़बड़ाती हुई कपड़े संभालती कमरे से बाहर निकलीं.

‘‘अरे, गोपू, कमली…कहां गए सब के सब…और आज खाने पर भी नहीं उठाया मुझे,’’ बूआ नौकरों को पुकारती हुई रसोईघर की ओर चल दीं. उन्हें गोपू दिखाई दिया, ‘‘गोपू, मुझे खाने के लिए भी नहीं उठाया. और सब लोग कहां हैं?’’

‘‘जी बूआ, आज किसी ने भी खाना नहीं खाया और सब बाहर गए हैं,’’ गोपू का उत्तर था.

‘बाहर गए हैं? मुझे बताया भी नहीं,’ बूआ अपने में ही बड़बड़ाने लगी थीं.

‘‘बूआजी, मैं महाराज को बोलता हूं आप का खाना लगाने के लिए. आप बैठें,’’ यह कहते हुए गोपू रसोईघर की ओर चला गया.

कुछ अनमने मन से बूआ वाशबेसिन पर गईं, मुंह व आंखों पर पानी के छींटे मारते हुए उन्होंने बेसिन पर लगे शीशे में अपना चेहरा देखा. थकावट अब भी उन के चेहरे पर विराजमान थी. नैपकिन से हाथ पोंछ कर वे मेज पर आ बैठीं. गोपू गरमागरम खाना ले आया था.

खाना खातेखाते उन्हें याद आया कि वे पंडितजी से कह आई थीं कि घर पर चर्चा कर के वे लड़के वालों को निमंत्रण देने के लिए चंदर से फोन करवा देंगी. आखिर लड़की का बाप है, फर्ज बनता है उस का कि वह फोन कर के लड़के वालों को घर आने का निमंत्रण दे. खाना खातेखाते बूआ सोचने लगीं कि न जाने कहां चले गए सब लोग…अभी तो उन्हें सब के साथ बैठ कर मेहमानों की आवभगत के लिए तैयारी करवानी थी.

‘खाना खा कर चंदर को फोन करूंगी,’ बूआ ने सोचा और जल्दीजल्दी खाना खा कर जैसे ही कुरसी से खड़ी हुईं कि उन की नजर ने ‘ड्राइंगरूम’ के मुख्यद्वार से परिवार के सारे सदस्यों  को घर में प्रवेश करते हुए देखा.

और…यह क्या, रश्मि ने दुलहन का लिबास पहन रखा है? उन्हें आश्चर्य हुआ और वे उन की ओर बढ़ गईं. स्मिता के अलावा परिवार के सभी सदस्यों के चेहरे पर हंसी थी और आंखों में चमक.

‘‘लो, बूआजी भी आ गईं,’’ चंद्रकांत ने एक लंबे, गोरेचिट्टे, सुदर्शन व्यक्तित्व के लड़के को बूआजी के सामने खड़ा कर दिया.

‘‘रश्मिज ग्रैंड मदर,’’ चंद्रकांत ने कहा तो युवक ने आगे बढ़ कर बूआ के चरणस्पर्श कर लिए.

गंगा बूआ हकबका सी गई थीं.

‘‘बूआजी, यह सैमसन जौन है. आज होटल ‘हैवन’ में इस की रश्मि से शादी है. चलिए, सब को वहां पहुंचना है.’’

‘‘पर…ये…वो जन्मपत्री…’’ बूआजी हकबका कर बोलीं, फिर स्मिता पर नजर डाली. उस का चेहरा उतरा हुआ था.

‘‘अरे, बूआजी, जन्मपत्री तो इन की ऊपर वाले ने मिला कर भेजी है. चिंता मत करिए. चलिए, जल्दी तैयार हो जाइए. सैमसन के मातापिता भी होटल में ठहरे हैं. उन से भी मिलना है. फिर वे लोग अमेरिका वापस लौट जाएंगे.’’

चंद्रकांत बड़े उत्साहित थे. फिर बोले, ‘‘देखिएगा, किस धूमधाम से भारतीय रिवाज के अनुसार शादी होगी.’’

बूआजी किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी रह गई थीं. उन की नजर में रश्मि की जन्मपत्री के टुकड़े हवा में तैर रहे थे.

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