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Up Byelection Result : उत्तर प्रदेश में ‘साइकिल’ और ‘हाथ’ की दूरी बनी हार की वजह

Up Byelection Result: केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रियंका गांधी की 4 लाख से अधिक वोटों की जीत के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आनंद भवन पर एक होर्डिंग लगी जिस में लिखा था ‘इंदिरा इज बैक’. वोटर अभी भी कांग्रेस से उम्मीद रखे हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ उपचुनाव में सपा ने जिस तरह का व्यवहार किया उस से लोकसभा में नंबर एक की पार्टी बनी सपा को भाजपा के मुकाबले मुंह की खानी पड़ी.

उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनावों को 2027 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीत कर सपा उत्साह से लबरेज थी. कांग्रेस के साथ मिल कर इंडिया गठबंधन को 43 सीटें मिली थीं. उत्तर प्रदेश ने ही भाजपा को बहुमत के आंकड़े से दूर रखा था. इस जीत का श्रेय राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी को गया था. चुनाव के बाद दोनों नेताओं में दूरी बढ़ने लगी. अखिलेश यादव के करीबी लोगों ने उन को समझाया कि कांग्रेस को मिलने वाली सफलता का कारण सपा थी. कांग्रेस जैसेजैसे मजबूत होगी सपा वैसेवैसे कमजोर होगी. इस के बाद कांग्रेस और सपा के बीच बनी दोस्ती में दरार आने लगी.

हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस के बीच सीटों का कोई तालमेल नहीं हुआ. जम्मू कश्मीर में सपा ने अपने प्रत्याशी चुनाव में उतारे. सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस के बाद महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ ही साथ उत्तर प्रदेश में उपचुनाव भी थे. सपा महाराष्ट्र में कांग्रेस से तालमेल कर सीटें चाहती थी. महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ एनसीपी और शिवसेना भी गठबंधन का हिस्सा थी. ऐसे में सपा के लिए बड़ी गुंजाइश नहीं बनी. इस का बदला अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में लेने की सोची. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 3 से 5 सीटें चाहती थी. सपा ने 2 सीटें दी उस में भी कई तरह की शर्तें थीं.

कांग्रेस के कारण सपा के साथ खड़ा था दलित

ऐसे में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में उपचुनाव लड़ने से इंकार कर दिया. अब चुनाव में सपा और कांग्रेस साथ होते हुए भी साथ नहीं थे. कांग्रेस का फोकस महाराष्ट्र, झारखंड और वायनाड सीट पर था. उस के नेता वहीं प्रचार करते नजर आए. उपचुनाव में कांग्रेस मंझवा और फूलपुर सीट अपने लिए चाहती थी. सपा कांग्रेस को खैर और गाजियाबाद सीट दे रही थी. असल में 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दलित और मुसलिम वोट मिले थे. कांग्रेस के साथ होने के कारण ही दलित वोट सपा को मिले थे. ‘दलित और मुसलिम’ वोटों के एक साथ आ जाने से भाजपा को काफी नुकसान हुआ था.

दलित वोट की एक खासियत है कि वह कभी एकजुट हो कर समाजवादी पार्टी को वोट नहीं देता है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कारण सपा को दलित वोट मिल गए. उपचुनाव में कागज के ऊपर सपा-कांग्रेस का गठजोड़ बना था. चुनाव संचालन के लिए कमेटियां भी बनी थीं. इस के बाद सपा ने कांग्रेस के नेताओं को कोई महत्व नहीं दिया था. जिस के कारण कांग्रेस उत्तर प्रदेश में साइलेंट हो गई थी. जिस से चुनावी नतीजे इतने विपरीत आ गए.

2022 की विधान सभा चुनाव में इन्ही 9 सीटों में से 4 करहल, सीसामऊ, कटेहरी और कुदरकी पर सपा और 4 फुलपुर, गाजियाबाद, मंझवा और खैर पर भाजपा ने चुनाव जीता था. एक सीट मीरापुर लोकदल के खाते में गई थी. उस समय लोकदल सपा की सहयोगी पार्टी थी. 2022 के चुनावी नतीजों में देखें तो सपा के पास 5 और भाजपा के पास 4 सीटें थीं. 2024 में जब इन सीटों पर उपचुनाव हुए तो सपा के पास केवल 2 सीटें ही रह गई. जबकि 5 माह ही पहले सपा ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था. इस की मूल वजह दलित वोट रहा जो ‘पीडीए’ यानि पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक का नारा देने के बाद भी सपा के साथ खड़ा नहीं हुआ.

चुनाव प्रचार में नहीं दिखे सपा के सांसद

उपचुनावों में अखिलेश यादव ने पूरी मेहनत के साथ प्रचार किया. यह बात और है कि उन की पार्टी के दूसरे नेताओं ने उस तरह से प्रचार नहीं किया जैसे टोलियां बना कर भाजपा के लोगों ने प्रचार किया. भाजपा की टोलियों ने जमीनी स्तर पर सपा के जातीय गोलबंदी के खिलाफ प्रचार किया. ‘बंटेगे तो कटेंगे’ के नारे को लोगों के बीच ले गए. भाजपा ने इन टोलियों में उन नेताओं को कमान सौंपी जिन जातियों के वोट ज्यादा थे. सपा इस की काट नहीं कर पाई.

सपा को लग रहा था कि दलित उस के साथ हैं, मुसलिम भाजपा को वोट नहीं देगा और पिछड़े भी सपा के साथ हैं. ऐसे में उसे जीत के लिए कांग्रेस के कंधे की जरूरत नहीं है.

सपा का अति आत्मविश्वास उसे ले डूबा. उस ने 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा को आक्सीजन देने का काम किया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ले कर जो विवाद भाजपा में था वह भी खत्म हो गया है. दलित और मुसलिम वोटर ने एक और संकेत दे दिया है कि वह सपा और बसपा की जगह पर दूसरे विकल्प की ओर भी देख रहा है. दलित भाजपा के साथ ही साथ चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी की ओर भी जा रहा है. इन उपचनावों में आजाद समाज पार्टी ने दलित वोटों को अपनी ओर खीचने का काम किया है.

सब से खराब हालत बहुजन समाज पार्टी की रही है. बसपा को कुदरकी में 1036, मीरापुर में 3248, करहल में 8409 और सीसामऊ में 1500 वोट मिले हैं. प्रदेश की तीसरे दर्जे की पार्टी की यह हालत बताती है कि दलित किस तरह से बसपा से दूर जा रहा है. इस के बदले आजाद समाज पार्टी को कुदरकी में 13,896, मीरापुर में 22,661, करहल में 2499 वोट मिले. दलित वोटर आजाद समाज पार्टी के बीच झुकता दिखा तो मुसलिम वोट ओबैसी की पार्टी एआईएमआईएम की तरफ झुकता दिखा. समाजवादी पार्टी को इस खतरे को समझ कर अपनी आगे की रणनीति बनानी चाहिए.

जिन जतियों ने लोकसभा चुनाव में अपना समर्थन सपा को दिया था अब उन की चिंता सपा को नहीं है. सपा के जीते सासंदों की बात करें या हारे हुए, जनता के बीच कोई नहीं जा रहा. उन की परेशानियों को हल करने की दिशा में पहल नहीं कर रहा. सपा में जातीय रूप से यादव सब से हावी रहते हैं. वह दूसरी पिछड़ी जातियों को सहन नहीं करते हैं.

सपा में परिवारवाद हावी है. वहां मुलायम परिवार ही नहीं दूसरे नेताओं के परिजनों को सब से ज्यादा टिकट दिए जाते हैं. जो पार्टी में विरोध के स्वर का मजबूत करता है. 9 विधानसभा सीटों के चुनाव में 3 टिकट परिवार के लोगों को दिए गए. करहल में तेज प्रताप यादव मुलायम परिवार का हिस्सा है. सीसामऊ से चुनाव लड़ी नमीस सोलंकी पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी थीं और कटेहरी से चुनाव लड़ी शोभावती वर्मा सांसद लालजी वर्मा की पत्नी हैं.

इन चुनावों में सपा ने 4 सीटों फूलपुर, सीसामऊ, कुदंरकी और मीरापुर में मुसलिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे जिन के कारण चुनावी समीकरण गड़बड़ हो गया. सपा ने जिन दो सीटों पर जीत हासिल की उन में करहल में 14 हजार और सीसामऊ में 8 हजार से ही जीत हासिल हुई. लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में सपा की सीट वितरण में कमी नजर आई, जिस की वजह से यह हार हुई है. इस से भाजपा लोकसभा चुनाव की हार के नैतिक दबाव से बाहर आ गई है.

सपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में केवल राहुल गांधी और अखिलेश यादव से ही उम्मीद की जाती है कि वह जीत को थाली में परोस कर दे दें. भाजपा में जिस तरह से तीसरे और चौथे नंबर के नेता भी जीत के लिए मेहनत करते हैं उस तरह की मेहनत सपा-कांग्रेस के लोग नहीं करते हैं. ऐसे में दोनों ही दलों को नए सिरे से संगठन पर काम करने की जरूरत है. तभी यह उठ खड़े हो पाएंगे. 2024 की हार के 5 माह के अंदर ही भाजपा ने जो ‘कमबैक’ किया उस से दूसरे दलों को सीखने की जरूरत है.

बिन तेरे सब सून

इंद्रपत्नी की मृत्यु के बाद बेटी के साथ अमेरिका चले गए थे. 65 साल की आयु में जब पत्नी विमला कैंसर के कारण उन का साथ छोड़ गई तो उन की जीवननैया डगमगा उठी. इसी उम्र में तो एकदूसरे के साथ की जरूरत अधिक होती है और इसी अवस्था में वह हाथ छुड़ा कर किनारे हो गई थी.

पिता की मानसिक अवस्था को देख कर अमेरिकावासी दोनों बेटों ने उन्हें अकेला छोड़ना उचित नहीं समझा और जबरदस्ती साथ ले गए. अमेरिका में दोनों बेटे अलगअलग शहर में बसे थे. बड़े बेटे मनुज की पत्नी भारतीय थी और फिर उन के घर में 1 छोटा बच्चा भी था, इसलिए कुछ दिन उस के घर में तो उन का मन लग गया. पर छोटे बेटे रघु के घर वे 1 सप्ताह से अधिक समय नहीं रह पाए. उस की अमेरिकन पत्नी के साथ तो वे ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते थे. उन्हें सारा दिन घर का अकेलापन काटने को दौड़ता था. अत: 2 ही महीनों में वे अपने सूने घर लौट आए थे.

अब घर की 1-1 चीज उन्हें विमला की याद दिलाती और वे सूने घर से भाग कर क्लब में जा बैठते. दोस्तों से गपशप में दिन बिता कर रात को जब घर लौटते तो अपना घर ही उन्हें बेगाना लगता. अब अकेले आदमी को इतने बड़े घर की जरूरत भी नहीं थी. अत: 4 कमरों वाले इस घर को उन्होंने बेचने का मन बना लिया. इंद्र ने सोचा कि वे 2 कमरों वाले किसी फ्लैट में चले जाएंगे. इस बड़े घर में तो पड़ोसी की आवाज भी सुनाई नहीं पड़ती, क्योंकि घर के चारों ओर की दीवारें एक दूरी पैदा करती थीं. फ्लैट सिस्टम में तो सब घरों की दीवारें और दरवाजे इतने जुड़े हुए होते हैं कि न चाहने पर भी पड़ोसी के घर होते शोरगुल को आप सुन सकते हैं.

सभी मित्रों ने भी राय दी कि इतने बड़े घर में रहना अब खतरे से भी खाली नहीं है. आए दिन समाचारपत्रों में खबरें छपती रहती हैं कि बूढ़े या बूढ़ी को मार कर चोर सब लूट ले गए. अत: घर को बेच कर छोटा फ्लैट खरीदने का मन बना कर उन्होंने धीरेधीरे घर का अनावश्यक सामान बेचना शुरू कर दिया. पुराना भारी फर्नीचर नीलामघर भेज दिया. पुराने तांबे और पीतल के बड़ेबड़े बरतनों को अनाथाश्रम में भेज दिया. धोबी, चौकीदार, नौकरानी और ड्राइवर आदि को जो सामान चाहिए था, दे दिया. अंत में बारी आई विमला की अलमारी की. जब उन्होंने उन की अलमारी खोली तो कपड़ों की भरमार देख कर एक बार तो हताश हो कर बैठ गए. उन्हें हैरानी हुई कि विमला के पास इतने अधिक कपड़े थे, फिर भी वह नईनई साडि़यां खरीदती रहती थी.

पहले दिन तो उन्होंने अलमारी को बंद कर दिया. उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि इतने कपड़ों का वे क्या करेंगे. इसी बीच उन्हें किसी काम से मदुरै जाना पड़ा. वे अपनी कार से निकले थे. वापसी पर एक जगह उन की कार का टायर पंक्चर हो गया और उन्हें वहां कुछ घंटे रुकना पड़ा. जब तक कोई सहायता आती और कार चलने लायक होती, वे वहां टहलने लगे. पास ही रेलवे लाइन पर काम चल रहा था और सैकड़ों मजदूर वहां काम पर लगे हुए थे. काम बड़े स्तर पर चल रहा था, इसलिए पास ही मजदूरों की बस्ती बस गई थी.

इंद्र ने ध्यान से देखा कि इन मजदूरों का जीवन कितना कठिन है. हर तरफ अभाव ही अभाव था. कुछ औरतों के शरीर के कपड़े इतने घिस चुके थे कि उन के बीच से उन का शरीर नजर आने लगा था. एक युवा महिला के फटे ब्लाउज को देख कर उन्हें एकदम से अपनी पत्नी के कपड़ों की याद हो आई. वे मन ही मन कुदरत पर मुसकरा उठे कि एक ओर तो जरूरत से ज्यादा दे देती है और दूसरी ओर जरूरत भर का भी नहीं. इसी बीच उन की गाड़ी ठीक हो गई और वे लौट आए.

दूसरे दिन तरोताजा हो कर इंद्र ने फिर से पत्नी की अलमारी खोली तो बहुत ही करीने से रखे ब्लाउज के बंडलों को देखा. जो बंडल सब से पहले उन के हाथ लगा उसे देख कर वे हंस पड़े. वे ब्लाउज 30 साल पुराने थे. कढ़ाई वाले उस लाखे रंग के ब्लाउज को वे कैसे भूल सकते थे. शादी के बाद जब वे हनीमून पर गए तो एक दिन विमला ने यही ब्लाउज पहना था. उस ब्लाउज के हुक पीछे थे. विमला को साड़ी पहनने का उतना अभ्यास नहीं था. कालेज में तो वह सलवारकमीज ही पहनती थी तो अब साड़ी पहनने में उसे बहुत समय लगता था. उस दिन जब वे घूमने के लिए निकलने वाले थे तो विमला को तैयार हो कर बाहर आने के लिए कह कर वे होटल के लौन में आ कर बैठ गए. कुछ समय तो वे पेपर पढ़ते रहे और कुछ समय इधरउधर के प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते रहे. आधे घंटे से ऊपर समय हो गया, मगर विमला बाहर नहीं आई. वे वापस कमरे में गए तो कमरे का दृश्य देख कर जोर से हंस पड़े. कमरे का दरवाजा खोल कर विमला दरवाजे की ओट में हो गई. और वह चादर ओढ़े थी.

 

वे बोले, ‘‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुईं?’’

‘‘नहीं. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी. तुम्हें कैसे बुलाऊं, समझ में नहीं आ रहा था.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘ब्लाउज बंद नहीं हो रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हुक पीछे हैं और मुझ से बंद नहीं हो रहे.’’

‘‘तो कोई दूसरी ड्रैस पहन लेतीं.’’

‘‘पहले यह उतरे तो… मैं तो इस में फंसी बैठी हूं.’’

विमला की स्थिति देख कर वे बहुत हंसे थे. फिर उन्होंने उस के ब्लाउज के पीछे के हुक बंद कर दिए थे. तब कहीं जा कर उस ने साड़ी पहनी थी. ब्लाउज के हुक बंद करने का उन का यह पहला अनुभव था और वे इतना रोमांचित हो गए कि विमला के ब्लाउज के हुक उन्होंने फिर से खोल दिए. वह कहती ही रह गई कि इतनी मुश्किल से साड़ी बांधी है और तुम ने सारी मेहनत बेकार कर दी. उस के बाद जब भी वह इस ब्लाउज को पहनती थी तो दोनों खूब हंसते थे.

मगर आज हंसने वाली बहुत दूर जा चुकी थी. हनीमून के दौरान पहना गया हर ब्लाउज उन्हें याद आने लगा. सफेद मोतियों से सजा काला ब्लाउज तो विमला के गोरे रंग पर बेहद खिलता था. जिस दिन विमला ने यह ब्लाउज पहना था उस की उंगलियां उस की गोरी पीठ पर ही फिसलती रहीं.

तब वह खीज उठी और बोली, ‘‘बस करो सहलाना गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, अपनी बीवी की ही तो पीठ सहला रहा हूं.’’

‘‘मैं ने कहा न गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, तुम्हारी तो पीठ में गुदगुदी हो रही है यहां तो सारे शरीर में गुदगुदी हो रही है.’’

‘‘बस करो अपनी बदमाशी.’’

विमला की खीज को देख कर उन्होंने चलतेचलते ही उसे अपनी बांहों के घेरे में कस कर कैद कर लिया था और वह नीला ब्लाउज तो विमला पर सब से ज्यादा सुंदर लगता था. नीली साड़ी के साथ वह नीला हार और नीली चूडि़यां भी पहन लेती थी. उस की चूडि़यों की खनक इंद्र को परेशान कर जाती थी. विमला जितनी बार भी हाथ उठाती चूडि़यां खनक उठती थीं और सड़क चलता आदमी मुड़ कर देखता कि यह आवाज कहां से आ रही है.

इंद्र चिढ़ाने के लिए विमला से बोले, ‘‘ये चूडि़यां क्या तुम ने राह चलतों को आकर्षित करने के लिए पहनी हैं? जिसे देखो वही मुड़ कर देखता है. यह मुझ से देखा नहीं जाता.’’

तब विमला खूब हंसी और फिर उस ने मजाकमजाक में सारी चूडि़यां उतार कर इंद्र के हवाले करते हुए कहा, ‘‘अब तुम ही

इन्हें संभालो.’’ तब एक पेड़ की छाया में बैठ कर इंद्र ने विमला की गोरी कलाइयों को फिर से चूडि़यों से भर दिया था.

इतनी प्यारी यादों के जाल में इंद्र इतना उलझ गए और 1-1 ब्लाउज को ऐसे सहलाने लगे मानो विमला ही लिपटी हो उन ब्लाउजों में.

इंद्र बड़ी मुश्किल से यादों के जाल से बाहर आए. फिर उन्होंने दूसरा बंडल उठाया. इस बंडल के अधिकतर ब्लाउज प्रिंटेड थे. उन्हें याद हो आया कि एक जमाने में सभी महिलाएं ऐसे ही प्रिंटेड ब्लाउज पहनती थीं. प्लेन साड़ी और प्रिंटेड ब्लाउज का फैशन कई वर्षों तक रहा था. उन्हें उस बंडल में वह काला प्रिंटेड ब्लाउज भी नजर आ गया जिसे खरीदने के चक्कर में उन में आपस में खूब वाक् युद्ध हुआ था.

विमला को एक शादी में जाना था और उस की तैयारी जोरशोर से चल रही थी.

एक दिन सुबह ही चेतावनी मिल गई थी, ‘‘देखो आज शाम को जल्दी वापस आना. मुझे बाजार जाना है. शीला की शादी में मुझे काली साड़ी पहननी है और उस के साथ का प्रिंटेड ब्लाउज खरीदना है.’’

‘‘तुम खुद जा कर ले आना.’’

‘‘नहीं तुम्हारे साथ ही जाना है. उस के साथ की मैचिंग ज्वैलरी भी खरीदनी है.’’

‘‘अच्छा कोशिश करूंगा.’’

‘‘कोशिश नहीं, तुम्हें जरूर आना होगा.’’

‘‘ओ.के. मैडम. आप का हुक्म सिरआंखों पर.’’ पर शाम होतेहोते इंद्र यह बात भूल गए और रात को जब घर लौटे तो चंडीरूपा विमला से उन का सामना हुआ. उन्हें अपनी कही बात याद आई तो तुरंत अपनी गलती को सुधार लेना चाहा. बोले, ‘‘अभी आधा घंटा है बाजार बंद होने में. जल्दी से चलो.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जाना. आधे घंटे में भी कोई खरीदारी होती है?’’

‘‘अरे, तुम चलो तो.

तुम्हारे लिए मैं बाजार फिर से खुलवा लूंगा.’’

‘‘बस करो अपनी बातें. मुझे पता है आजकल तुम मुझे बिलकुल प्यार नहीं करते. सारा दिन काम और फिर दोस्त ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं आजकल.’’

‘‘यही बात मैं तुम्हारे लिए कहूं तो कैसा लगेगा? अब तो तुम्हारे बच्चे ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं. तुम मेरा ध्यान नहीं रखती हो.’’

‘‘शर्म नहीं आती है तुम्हें

ऐसा कहते हुए? बच्चे क्या सिर्फ मेरे हैं?’’

विमला की आंखों में आंसू देख कर वे संभल गए और बोले, ‘‘अब जल्दी चलो. झगड़ा बाद में कर लेंगे,’’ और फिर उन्होंने जबरदस्ती विमला को घसीट कर कार में बैठाया और कार स्टार्ट कर दी थी.

पहली ही दुकान में उन्हें इस काले प्रिंटेड ब्लाउज का कपड़ा मिल गया. फिर ज्वैलरी शौप में काले और सफेद मोतियों की मैचिंग ज्वैलरी भी मिल गई. फिर वे बाहर ही खाना खा कर घर लौटे.

इसी बंडल में उन्हें बिना बांहों का पीली बुंदकी वाला ब्लाउज भी नजर आया. जब विमला ने पहली बार बिना बांहों का ब्लाउज पहना था तो वे अचरज से उसे देखते रह गए थे. फिर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं उन्होंने महसूस की थीं. एक ओर तो वे विमला की गोल मांसल और गोरी बांहों को देखते रह गए, तो दूसरी ओर उन में ईर्ष्या की भावना भी पैदा हो गई. वे विमला को ले कर बहुत ही पजैसिव हो उठे थे इसलिए उन्होंने विमला से कहा, ‘‘मेरी एक बात मानोगी?’’

‘‘बोलो.’’

‘‘यह ब्लाउज पहन कर तुम बाहर मत जाना. लोगों की नजर लग जाएगी.’’

‘‘बेकार की बातें मत करो. मेरी सारी सहेलियां पहनती हैं. किसी को नजर नहीं लगती है. तुम अपनी सोच को जरा विशाल बनाओ. इतने संकुचित विचारों वाले मत बनो.’’

‘‘मुझे जो कहना था, कह दिया. आगे तुम्हारी मरजी,’’ कह कर वे बिलकुल खामोश हो गए.

विमला ने उन की बात रख ली और फिर कभी बिना बांहों वाला ब्लाउज नहीं पहना. उसी बंडल में 20 ब्लाउज ऐसे निकले जो बिना बांहों के थे. लगता था विमला ने एकसाथ ही इतने सारे ब्लाउज सिलवा लिए थे. पर अब देखने से पता चलता कि उन्हें कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया.

अब उन्होंने अगला बंडल उठाया. इस में तरहतरह के ब्लाउज थे. कुछ रेडीमेड ब्लाउज थे, कुछ डिजाइनर ब्लाउज थे, 1-2 ऊनी ब्लाउज और कुछ मखमल के ब्लाउज भी थे.

जब काले मखमल के ब्लाउज पर इंद्र ने हाथ फेरा तो वे बहुत भावुक हो उठे. जब विमला ने यह काला ब्लाउज पहना तो उन की नजर उस की गोरी पीठ और बांहों पर जम कर रह गई.

40 साल पार कर चुकी विमला भी उस नजर से असहज हो उठी और बोली, ‘‘कैसे देख रहे हो? क्या मुझे पहले कभी नहीं देखा?’’

‘‘देखा तो बहुत बार है पर इस मखमली ब्लाउज में तुम्हारी गोरी रंगत बहुत खिल रही है. मन कर रहा है कि देखता ही रहूं.’’

‘‘तो मना किस ने किया है,’’ वह इतरा कर बोली.

कुछ साडि़यां ब्लाउजों सहित हैंगरों पर लटकी थीं. एक पेंटिंग साड़ी इंद्र ने हैंगर सहित उतार ली. हलकी पीली साड़ी पर गहरे पीले रंग के बड़ेबड़े गुलाब बने थे. इस साड़ी को पहन कर 50 की उम्र में भी विमला उन्हें कमसिन नजर आ रही थी. उस की देहयष्टि इस उम्र में भी सुडौल थी. अपने शरीर का रखरखाव वह खूब करती थी. जरा सा मेकअप कर लेती तो अपनी असली उम्र से 10 साल छोटी लगती.

उधर इंद्र ने कभी अपने शरीर की ओर ध्यान नहीं दिया. उन की तोंद निकल आई थी. बाल तो 40 के बाद ही सफेद होने शुरू हो गए थे. बाल काले करने के लिए वे कभी राजी नहीं हुए. सफेद बाल और तोंद के कारण वे अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

तभी तो एक दिन जब उन के एक मित्र घर आए तो गजब हो गया. मित्र का स्वागत करने के लिए विमला ड्राइंगरूम में आई और हैलो कह कर चाय लाने अंदर चली गई. उस दिन विमला ने यही पीली साड़ी पहनी हुई थी. वह चाय की ट्रे रख कर फिर अंदर चली गई.

आधे घंटे बाद जब मित्र चलने लगे तो बोले, ‘‘यार तू ने भाभीजी से मिलवाया ही नहीं.’’

‘‘अरे अभी तो तुम्हें हैलो कह कर चाय रख कर गई थी.’’

‘‘वे भाभी थीं क्या? मैं ने समझा तुम्हारी बेटी है.’’

‘‘अब तुम चुप हो जाओ, नहीं तो मेरे से पिटोगे.’’

‘‘जो मैं ने देखा और महसूस किया, वही तो बोला. अब इस में बुरा मानने की क्या बात है? छोटी उम्र की लड़की से शादी करोगे तो बापबेटी ही तो नजर आओगे.’’

‘‘तुम मेरे मेहमान हो अन्यथा उठा कर बाहर फेंक देता.’’

दोनों की बातें सुन कर विमला भी ड्राइंगरूम में चली आई. फिर अपने पति के बचाव में बोली, ‘‘लगता है भाईसाहब का चश्मा बदलने वाला है. जा कर टैस्ट करवाइए. अब सफेद बालों और काले बालों से तो उम्र नहीं जानी जाती. आप मेरे पति का मजाक नहीं उड़ा सकते.’’

बात हंसी में उड़ा दी गई. पर हकीकत यही थी कि विमला अपनी उम्र से 10 साल छोटी और इंद्र अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

छोटे बेटे की शादी में सिलवाए ब्लाउज ने तो उन्हें हैरानी में ही डाल दिया. अधिकतर विमला अपनी खरीदारी स्वयं ही करती थी और स्वयं ही भुगतान भी करती थी. पर उस दिन दर्जी की दुकान से एक नौकर ब्लाउज ले कर आया और क्व800 की रसीद दे कर पैसे मांगने लगा. क्व800 एक ब्लाउज की सिलवाई देख कर वे चकित रह गए. उन्होंने रुपए तो नौकर को दे दिए पर विमला से सवाल किए बिना नहीं रह पाए.

‘‘तुम्हारे एक ब्लाउज की सिलवाई रू 800 है?’’

‘‘हां, है. पर तुम्हें इस से क्या मतलब? मेरे बेटे की शादी है, मेरा भी सजनेसंवरने का मन है.’’

‘‘इतना महंगा ब्लाउज पहन कर ही तुम लड़के की मां लगोगी?’’

‘‘आज तक तो कभी मेरे खर्च का हिसाब नहीं मांगा. आज भी चुप रहो भावी ससुरजी,’’ कह कर विमला जोर से हंस दी.

उन्हें तो उस ब्लाउज में कुछ विशेष नजर नहीं आया था पर विमला की सहेलियों के बीच वह ब्लाउज चर्चा का विषय रहा. उस ब्लाउज को देखते ही उन्हें विमला का वह सुंदर चेहरा याद हो आया, जो बेटे की शादी की खुशी में दमक रहा था.

फिर उन की नजर कुछ ऐसे ब्लाउजों पर भी पड़ी, जिन्हें देख कर लगता था कि उन्हें कभी पहना ही नहीं गया है. पता नहीं विमला को ब्लाउज सिलवाने का कितना शौक था. उन्हें लगा इतने ब्लाउज देख कर वे पागल हो जाएंगे. औरत का मनोविज्ञान समझना उन की समझ से परे था. पर अफसोस जिस विमला को ब्लाउज सिलवाने का इतना शौक था, वही विमला जीवन के आखिरी दिनों में ब्लाउज नहीं पहन सकती थी.

2 साल पहले उसे स्तन कैंसर हुआ और जब तक उस का इलाज शुरू होता वह पूरी बांह में फैल चुका था. उस से अपनी बांह भी ऊपर नहीं उठती थी. बीमारी और कीमोथेरैपी ने उस के गोरे रंग को भी झुलसा दिया था. 3 महीनों में ही वह अलविदा कह गई थी.

आज इंद्र उन्हीं ब्लाउजों के अंबार में बैठे यादों के सहारे कुछ जीवंत क्षणों को फिर से जीने का प्रयास कर रहे थे. पर कुछ समय बाद वे उठे और उन्होंने अपने नौकर को आवाज लगाई. कहा, ‘‘इस अलमारी के सारे कपड़ों को संदूकों में बंद कर के कार में रख दो.’’

सुबह होते ही इंद्र कार ले कर उस रेलवेलाइन जा पहुंचे और फिर दोनों संदूकों को मजदूरों के हवाले कर बहुत ही हलके मन से घर लौट आए कि विमला के कपड़ों से किसी की नग्नता ढक जाएगी.

प्रायश्चित्त

“राजकुमारी, वापस आ गई वर्क फ्रौम होम से? सुना तो था कि घर पर रह कर काम करते हैं पर मैडम के तो ठाठ ही अलग हैं, हिमाचल को चुना है इस काम के लिए.” बूआ आपे से बाहर हो गई थी मिट्ठी को अपनी आंखों के सामने देख कर.

 

“अपनाअपना समय है, बूआ. कोई अपनी पूरी ज़िंदगी उसी घर में बिता देता है जहां पैदा हुआ हो और किसी को काम करने के लिए अलगअलग औफिस मिल जाते हैं, वह भी मनपसंद जगह पर,” मिट्ठी ने इतराते हुए बूआ के ताने का ताना मान कर ही जवाब दिया.

बूआ पहले से ही गुस्से में थी, अब तो बिफर पड़ी, “सिर पर कुछ ज्यादा चढ़ा दिया है, तुझे. पर मुझे हलके में लेने की गलती मत करना. तेरी सारी पोलपट्टी खोल दूंगी भाई के सामने. नौकरी ख्वाब बन कर रह जाएगी. मुंह पे खुद ही पट्टी लग जाएगी.”

“आप से ऐसी ही उम्मीद है, बूआ. लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले सोच लेना कि मैं मां की तरह नहीं हूं, जो तुम्हारे टौर्चर से तंग आ कर अपनी जान से चली गई.”

बूआ मिट्ठी को मारने के लिए दौड़ी ही थी कि कुक्कू बीच में आ गया. उन्हें दोनों हाथों से पकड़ कर अंदर ले गया. तब तक गुरु भी आ गया था. वह मिट्ठी को उस के कमरे तक छोड़ कर आया. मिट्ठी आंख बंद कर के अपनी कुरसी पर बैठ गई. जो उस ने जाना था उस से भक्ति बूआ के लिए उस की नफ़रत और भी बढ़ गई थी. बचपन से ही उसे बूआ से नफ़रत थी. वजह, उन का दोगला व्यवहार. कुक्कू और गुरु को हमेशा प्राथमिकता देती. घर का कोई भी काम हो, मिट्ठी से करवाती और हर बात में उसे ही पीछे रखती. घर में खाना उन दोनों की पसंद का ही बनता था. मिट्ठी का कुछ मन भी होता तो उस में हज़ार कमियां बता कर बात को टाल दिया जाता. मिट्ठी को समझ नहीं आता था कि वह अपनी ससुराल में न रह कर उन के घर में क्यों रह रही है. सब के सामने उन का बस एक ही गाना था-

‘मां तो छोड़ कर चली गई अपने दोनों बच्चों को. वह तो मेरी ही हिम्मत है जो अपना घरबार छोड़ कर यहां पड़ी हुई हूं इन की परवरिश के लिए.’

‘अब तो हम बड़े हो गए हैं, अब तो अपना घर संभालो जा कर.’ मन ही मन मिट्ठी बुदबुदाती. घर में सबकुछ बूआ की मरजी से ही होता आ रहा था. मिट्ठी और उस का छोटा भाई कुक्कू उन की हर बात मानते आ रहे थे. बूआ का बेटा गुरु भी कुक्कू का हमउम्र था, इसलिए दोनों साथ ही रहते थे. लेकिन मिट्ठी को अब घर में रहना और बूआ के कायदेकानून से चलना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. यही कारण था कि उस ने कालेज पूरा होते ही नौकरी ढूंढ ली थी. पैकेज ज्यादा नहीं था. नौकरी दूसरे शहर में थी. छह महीने होतेहोते कंपनी में उस की अच्छी साख बन गई थी. घर आने का उस का मन ही नहीं होता था. इस बार पापा से ज़िद कर के उस ने हिमाचल वाले फ्लैट में रहने का मन बनाया. वर्क फ्रौम होम ले लिया. कुक्कू को जैसे ही भनक लगी, तुरंत उस के पास आया.

“देखो दीदी, मैं जानता हूं, तू हिमाचल क्यों जा रही है. मां के बारे में जानने का मेरा भी उतना ही मन है जितना तुम्हारा. बस, मैं कभी दिखाता नहीं हूं. मेरी भी अब छुट्टियां हैं. मैं भी वहीं पर कोई इंटर्नशिप कर लूंगा.”

मिट्ठी को कुक्कू की बात सही लगी और उसे साथ ले जाने को तैयार हो गई. गुरु को उस के पापा ने अपने पास बुला लिया था, इसलिए दोनों भाईबहन अपनाअपना सामान ले कर रवाना हो गए. बूआ अपने बेटे गुरु को उन के साथ भेजना चाहती थी लेकिन पति को मना नहीं पाई. भौंहें तान कर मिट्ठी और कुक्कू को विदा किया.

“गगन, तूने भेज तो दिया हिमाचल पर कोई बीती बात बच्चों के सामने आ गई तो क्या होगा ? उसी फ्लैट में रुकने की क्या पड़ी थी, किसी होटल में भी तो रुक सकते थे. तुम तो सब कुछ भूल गए हो.” बूआ ने लगभग डांटते हुए अपने भाई गगन को अपनी बात समझाने की कोशिश की.

“दीदी, 20 साल बीत चुके हैं उस घटना को. हम ने कोई जुर्म नहीं किया है जो छिपे रहेंगे और बच्चों को उस फ्लैट से दूर रखेंगे. वे दोनों उसी फ्लैट में पैदा हुए थे. अपनी जन्मभूमि इंसान को अपनी ओर खींच कर बुला ही लेती है. आप डरिए मत. सब ठीक होगा.” गगन ने अपनी बड़ी बहन को समझाने की कोशिश की.

“मिट्ठी अब कब तक ऐसे ही बैठी रहेगी? चल उठ, नहा कर आ जा. नाश्ता ठंडा हो गया है. हम दोनों कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं? मुझे भी सुनना है तुम लोग कैसे बिता कर आए हो मेरे बिना पूरा एक महीना.” गुरु मिट्ठी को बाथरूम भेज कर ही कमरे से बाहर गया.

“पापा मेरी कंपनी का एक औफिस शिमला में भी है. मैं ने सोचा है वहीं पर ट्रांसफर ले लेती हूं. अपना फ्लैट तो है ही वहां पर,” शाम को पापा घर आए तो मिट्ठी ने प्रस्ताव रखा.

“देखो बेटा, कुछ दिन वहां जा कर रहना दूसरी बात है और वहीं ठहर जाना बिलकुल अलग. तुम जहां हो, अभी वहीं पर रह कर काम करो,” पापा की स्पष्ट न थी.

“पापा, आप ने भी तो सालों वहां पर नौकरी की है. अपना फ्लैट बंद पड़ा है, मैं रहूंगी तो उस का अच्छे से रखरखाव भी हो जाएगा. फिर मेरा मन है वहां जा कर रहने का. प्लीज, एक बार मेरी तरह सोच कर देखो न,” मिट्ठी ने डरतेडरते अपनी बात दोहराई.

“तुझे सीधी तरह से कोई बात क्यों नहीं समझ आती है, लड़की? गगन वैसे ही उन बातों को याद करके परेशान हो जाता है, तुम हो कि खुद के अलावा किसी के बारे में सोचती ही नहीं हो. जा कर अपना काम करो,” बूआ ने अपने लहजे में मिट्ठी को डांटा. पापा के सामने मिट्ठी चुप रह जाती थी लेकिन आज उसे गुस्सा आ गया.

“आप से कौन बात कर रहा है, बूआ? पापा को ही जवाब देने दो. हिमाचल के नाम से इतना डर क्यों जाती हो? कहीं आप के कहने से ही तो पापा वापस नहीं आए वहां से, आप को इसी घर में जो रहना था?” गुस्से में मिट्ठी बोलती चली गई.

गुरु और कुक्कू आ कर उसे अपने साथ ले गए. घर में क्लेश पसर गया. उस रात किसी ने भी खाना नहीं खाया. गगन का गुस्सा शांत हुआ तो बेटी पर प्यार उमड़ पड़ा और उस के कमरे में आ गए. मिट्ठी लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी. उसे देख कर गगन जाने के लिए वापस मुड़े, तभी बेटी ने आवाज़ लगाई.

“आइए पापा, मेरा काम तो पूरा हो गया है. बस, कुछ फोटो देख रही थी हिमाचल की.” गगन मिट्ठी के पास दूसरी कुरसी पर बैठ कर फोटो देखने लगे.

“यह फोटो तुम्हे कहां से मिली?” गगन, मिट्ठी, कुक्कू और नीतू की फोटो थी. मिट्ठी ने आश्चर्य से पापा को देखा, बोली, “फ्लैट के स्टोररूम में कुछ सामान पड़ा हुआ था. यह फोटो उस समान में ही थी.” मिट्ठी ने बताया तो गगन ने आगे पूछा, “बाकी सामान कहां है?”

“इस में है, पापा. आपकी और मम्मी की बहुत सारी यादें. मैं अपने साथ उठा लाई. मिट्ठी ने एक थैला गगन के हाथ में थमा कर दरवाज़ा बंद कर दिया. उसे डर था कि पापा को उन के कमरे में नहीं पाएंगी, तो भक्ति बूआ यहीं धमक पड़ेंगी. पापा जितनी देर घर में रहते हैं, उन की नज़र उन्हीं पर रहती है बूआ की, विशेष रूप से जब मिट्ठी आसपास हो तब. पापा उदास हो गए थे उन फोटो को देख कर, मम्मी के छोटेमोटे सामान को देख कर.

“कितना समझाता था कि छोटीछोटी बातों को दिल से लगाना ठीक नहीं लेकिन उसे तो बात की तह तक जाना होता था. क्यों कही, किस ने कही, क्या जवाब देना चाहिए था, बस, इसी में घुलती रहती थी.”

मिट्ठी को अच्छा लगा. बड़े दिनों बाद पापा ने मम्मी के बारे में खुल कर कुछ बोला था. पर अचानक पापा खड़े हो गए. “बेटा, तुम अपना काम करो, मैं चलता हूं. तुम्हारी बूआ ने दूध बना कर रख दिया होगा. उस के भी सोने का टाइम हो गया है. दिनभर काम में लगी रहती है.” दरवाजा बंद कर के पापा मिट्ठी के कमरे से बाहर निकल गए.

बूआ के लिए पापा की चिंता नई बात न थी. उन के एहसान में दबे हुए थे, पापा. उन के बच्चों की परवरिश कर के बूआ ने उन पर बड़ा एहसान चढ़ा दिया था. मिट्ठी ने सामान वापस समेट कर रख दिया. किसी और को पता चल जाता तो बात का बतंगड़ बन जाता. मां के बारे में घर में कोई भी बात नहीं करता था. कुक्कू के ऊपर बूआ अपना अतिरिक्त प्यार लुटाती थी, इसलिए उसे मां की कमी बस तभी महसूस होती जब मिट्ठी को रोते हुए देखता. मिट्ठी जब भी घर में होती उसे मां की कमी हर पल महसूस होती. बचपन के दिन याद आ जाते. मां कैसे हर जगह उसे साथ रखती थीं.

‘लड़के की इतनी परवा नहीं है जितनी लड़की की है. दिनभर इसी के चोंचलों में लगी रहती है. पढ़लिख कर दिमाग खराब हो जाता है छोरियों का. आखिर वंश तो लड़के से ही चलेगा. लड़की को तो एक दिन अपने घर चली जाना है.’ बूआ के ऐसे ताने से मां आहत होती लेकिन हंस कर जवाब देती.

‘दीदी, आप और मैं भी तो लड़कियां ही हैं. और फिर आप के घर का तो रिवाज़ है. आप अपनी ससुराल नहीं गईं तो मिट्ठी को भी यहीं रख लेंगे.’ मां के जवाब से बूआ आपे से बाहर हो जाती.

‘मेरी क्या रीस करनी है? मेरी तो मां बचपन में ही मर गई थी. गगन को अपने हाथों से पाला है मैं ने. कोई बूआ, चाची या ताई भी नहीं थी जो संभाल लेती. गगन ही नहीं जाने देता है. रहो अपने घर और ससुर की भी रोटी सेंको. मैं तो कल ही चली जाऊंगी अपने घर.’

मां फिर हंस पड़ती. ‘नाराज़ क्यों होती हो, दीदी? आप के भाई ही मुझे साथ ले कर गए हैं. मेरा तो मन भी नहीं लगता वहां. यहां छोड़ेंगे तो ससुरजी को रोटी नहीं, सब्जी भी खिलाऊंगी. रिटायर हो गए हैं, खुद ही सब काम करते हैं फिर भी. मुझे अच्छा नहीं लगता है.’

बूआ बात को पकड़ कर अपने पक्ष में कर लेती. ‘तो इसीलिए तो अपना घरबार छोड़ कर पड़ी हूं यहां. तुम अपना घर संभाल लेती तो गगन क्यों मुझे रोके रखता?’ कुछ भी कर के मां के सिर पर हर बात पटक दिया करती थी, बूआ.

 

कई सालों बाद इस बार नाना मिट्ठी के सामने ही आए. मां के जाने के बाद हर साल नाना दोनों नातियों से मिलने बेटी की ससुराल आते थे. न कोई उन से बात करता था और न ही कोई उन के पास बैठता था. अकेले आते थे और दोनों बच्चों को उन के हिस्से का चैक दे कर चले जाते थे. नाना ने अपनी वसीयत में अपने बेटे और बेटी को बराबर का हिस्सा दिया था. सालभर की कमाई का आधा हिस्सा बेटी के दोनों बच्चों को दे जाते थे उस के जाने के बाद.

‘कितना फजीता किया था हमारे परिवार का इस आदमी ने. अब लाड़ बिखेरने आता है, बच्चों पर. इस की बेटी गई तो पुलिस ले कर गया था फ्लैट पर. अखबार में भी खबर दी कि मार दिया मेरी बेटी को,’ नाना चले गए तो बूआ का बड़बड़ाना शुरू हो गया.

“वे हमारे नाना हैं, बूआ. उन के बारे में ऐसा सोचना ठीक नहीं,” कुक्कू ने बोला तो बूआ ऐसे शुरू हुई जैसे इंतज़ार ही कर रही थी.

“तेरे दादा और पापा को जेल की हवा खानी पड़ती. वह तो तेरी मां की मैडिकल जांच में नहीं निकला कि उस को मारा है किसी ने.” मिट्ठी चाहती थी कि बूआ और भी कुछ बोल दे. “आप तो तब फ्लैट पर ही थी बूआ. पूजा भी आप ने ही रखवाई थी और पंडित को भी आप ही ले कर गई थी. आप को तो सच पता था, फिर आप ने क्यों छिपाया यह सब.” बूआ आज़ पहली बार डर अपने चेहरे पर छिपा नहीं पाई.

“तुझे किस ने बताया यह सब?” मिट्ठी इसी सवाल का जवाब देना चाहती थी.

“आप के पंडित ने, उन सब लोगों ने जो पूजा में आए थे, पड़ोस वाले.” बूआ सीधे मिट्ठी के सामने आ कर खड़ी हो गई.

“इसीलिए मैं नहीं चाहती थी कि तू जाए वहां पर. यही सब कर के आई है वर्क फ्रौम होम के बहाने.” बूआ के हर शब्द से गुस्सा टपक रहा था.

“मम्मी, पापा आए हैं. थोड़ा ध्यान उन पर दो. अकेले बैठे हैं बैठक में.” गुरु बूआ को वहां से ले गया और मिट्ठी भी पीजी वापस जाने के लिए अपना सामान पैक करने चली गई. गुरु 2 साल से खाली घूम रहा था. छोटीमोटी नौकरी उसे समझ नहीं आती थी और बड़ी के लायक न तो उस में काबिलीयत थी और न ही उस ने कोशिश की. जैसेतैसे इंजीनियरिंग पास की थी.

“मां, मुझे उसी कंपनी में नौकरी मिल गई है जिस में मामा काम करते थे.” गुरु ने घोषणा की तो बूआ रसोई से लड्डू का डब्बा उठा कर ले आई. कुक्कू ने लड्डू खा कर डब्बा उन के हाथ से ले लिया.

“बूआ, तुम खा लो, फिर बैठक में ले जा रहा हूं और वहां से बच कर नहीं आएंगे.” बूआ रोकती रह गई पर कुक्कू डब्बा उठा कर भाग गया. मिट्ठी बिना कुछ कहे ही घर से निकल गई. बूआ ने रोकने की कोशिश नहीं की. पीजी में जाते ही बिस्तर पर लेट गई. हमेशा की तरह मां याद आ रही थी.

‘एक हफ्ता तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी मां?’ मां पहली बार कुक्कू को ले कर नाना के घर गई तो मिट्ठी को पापा ने अपने पास ही रोक लिया था. रोतेरोते मुंह से निकल गया था मिट्ठी के. बाथरूम में चली गई मुंह धोने के लिए जिस से पीजी की बाकी लड़कियों को शक न हो. हर बार घर से आ कर एकदो दिन इसी तरह परेशान रहती थी मिट्ठी.

चार दिनों बाद ही पापा का फोन आया, देख कर मिट्ठी सोच में पड़ गई. पहली बार में तो फोन उठाना ही भूल गई. दूसरी बार जब आया तो उठाया, ‘बेटा, तुम्हारी भक्ति बूआ एक पूजा करवाना चाहती हैं. शिमला वाला फ्लैट तुम्हारी मां के जाने के बाद से बंद ही है. अब गुरु वहीं रहेगा, इसलिए पूजा कर के उसे पवित्र करवाना चाहती हैं. अगले रविवार को तुम भी थोड़ा समय निकाल लेना.”

“पापा, आप को पता है, मां जब से गई हैं, विश्वास उठ गया है मेरा पूजापाठ से.” मिट्ठी ने स्पष्ट किया.

“जानता हूं, बेटा. पर हो सकता है यह पूजा तुम्हारे टूटे विश्वास को जोड़ने में कामयाब हो जाए. ऐसा करते हैं, इस पूजा को तुम ही करवाओ. पंडितजी से तो मिल ही चुकी हो.” मिट्ठी समझ गई, वह मना नहीं कर पाएगी पापा को. तभी एक विचार उस के दिमाग में कौंधा.

“ठीक है पापा, कोशिश करती हूं. फ्राइडे तक आप को बताती हूं. भक्ति बूआ को बोलना अब उन के टैंशन के दिन गए. पंडितजी से मैं खुद ही बात कर लूंगी.”

 

पापा की खुशी फ़ोन पर ही फूट पड़ी. “अब उस का एहसान चुकाने का समय आ गया है. खुद को भुला कर उस ने हमारे घर को संभाला है. तुम ने यह ज़िम्मेदारी ले कर मेरे दिल का बोझ हलका कर दिया है.” पापा फ़ोन रखने ही वाले थे कि मिट्ठी ने कहा, “पापा, मैं चाहती हूं कि इस पूजा में नाना को भी बुलाऊं. मां के जाने के बाद नानी भी चली गईं. वे भी अकेले ही हैं. दादाजी भी गांव में चले गए हैं उस के बाद. प्लीज, उन दोनों को भी बुलाने दीजिए.”

कुछ देर तक पापा ने कुछ नहीं कहा लेकिन फ़ोन नहीं काटा. फिर यह कहते हुए फ़ोन रखा, “तुम कहती हो तो मना कैसे कर सकता हूं. बुला लो. भक्ति को मैं समझा लूंगा.”

मिट्ठी ने कमरे से बाहर आ कर आसमान की ओर देखा. उसे महसूस हुआ जैसे मां वहीं से मुसकरा कर कह रही है. “आखिर तुम ने रास्ता निकाल ही लिया सच से परदा उठाने का.” मिट्ठी केवल निर्देश दे रही थी और कुक्कू उस का पालन कर रहा था. पापा ने इस बार चौका लगाया था. “भक्ति दीदी, तुम इतने सालों से सब संभालती आ रही हो, अब मुझे भी कुछ करने का अवसर दो. इस बार पूजा की पूरी ज़िम्मेदारी मैं संभाल लूंगा. आजकल वैसे भी सब काम मोबाइल से हो जाते हैं. लंचटाइम में औफिस में बैठ कर सब प्रबंध कर दूंगा.”

भक्ति सकपका कर बोली, “गगन, क्या तू भी यही मानता है कि मेरी पूजा के कारण ही नीतू की जान गई?”

गगन ने दीदी का हाथ पकड़ लिया. “ऐसा कुछ नहीं है, दीदी. तुम ने मिट्ठी और कुक्कू के लिए कितनाकुछ किया है. मैं भी चाहता हूं कि गुरु को नौकरी मिलने और वहां सैट होने में मदद कर पाऊं. बस, इसीलिए आप को तनाव नहीं देना चाहता हूं.”

भक्ति का दिल भाई की बात मानने से इनकार कर रहा था लेकिन उसे मना भी नहीं कर सकती थी. “ठीक है, गगन. मुझे तो इस बात की खुशी है कि तू पूजा के लिए तैयार हो गया है. कितने साल हो गए, घर में कोई शुभ काम नहीं हुआ.”

“अब होगा दीदी और आप को परेशान भी नहीं होना पड़ेगा. बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन को भी ज़िम्मेदारी लेना सीखना चाहिए न. बस, इस बार उन की ही सहायता लूंगा.”

निश्चित तारीख पर सब लोग शिमला के उस फ्लैट में इकट्ठे  हो गए. दादाजी और नाना को कुक्कू ने मना लिया. सब काम तैयार हो गया तो मिट्ठी भी आ गई. पूजा शुरू हुई. पंडितजी ने हवन और आरती करने के बाद जैसे ही जाने को कहा, भक्ति बूआ ने आदतन उन्हें रोक लिया. “पंडितजी, गुरु की कुंडली देख कर बताइए कि क्या सावधानियां रखनी हैं और कुछ ऊंचनीच हो जाए तो क्या उपाय होगा?”

पंडितजी ने काफ़ी देर तक कुंडली को देख कर कुछ गणना की, फिर बोले, “गुरु मामा की छोड़ी हुई नौकरी पकड़ रहा है. उन्हीं के घर में रहेगा तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बहूरानी की आत्मा इन से संपर्क करे.” भक्ति बूआ ने तुरंत गुरु की कुंडली पंडितजी के हाथ से ले ली. लेकिन उन्होंने अपनी बात जारी रखी. “आज़ की पूजा में ही अगर कुछ मंत्र और पढ़ लिए जाएं और सच्चे दिल से बहूरानी को याद कर के उन से माफ़ी मांगी जाए तो बला टल सकती है.”

सब भक्ति बूआ की ओर देख रहे थे.

“तो जो सही है वो करो, मैं कौन सा मना कर रही हूं. इन बातों का कुछ मतलब थोड़े ही है.” बूआ उठ कर जाना चाहती थी लेकिन फूफाजी ने बिठा दिया.

“पंडितजी, जो बाकी है उस को भी पूरा कीजिए. बेटे को मुश्किल से रोज़गार मिला है, उस में कोई अड़चन न आए, उस का उपाय आप शुरू कीजिए.”

पंडितजी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए. सबसे पहले नानाजी बोले. “नीतू बेटा, अगर तू सुन रही है तो मुझे माफ़ करना. मैं समय से तुम्हारी चिट्ठी नहीं पढ़ सका. तुम बच्चों को ले कर मेरे पास आना चाहती थीं लेकिन तुम्हारा खत मुझे तुम्हारे जाने के बाद मिला.”

अब पापा भी चुप नहीं रहे. पहली बार उन्होंने बच्चों के सामने अपनी पत्नी को ले कर कुछ कहा. “मैं भी खतावार हूं, नीतू. तुम्हारे मना करने पर भी मैं ने अपने बिजनैस के जनून के कारण नौकरी छोड़ी और तुम्हें तुम्हारे घर भी नहीं जाने दिया. मुझे डर था कि ससुराल में मेरी साख कम हो जाएगी.”

अब पंडितजी ने बोल कर सब को चौंका दिया. “हो सके तो माफ़ कर देना, बहूरानी. मैं नहीं जानता था कि तुम पूरे महीने व्रत कर रही थी. मैं ने ही भक्तिजी के कहने पर यह घोषणा की थी कि तुम्हारे कुंडली दोष के कारण ही गगन की नौकरी गई है और व्यवसाय भी शुरू नहीं हो पा रहा है. मुझे पता होता तो तुम्हें लगातार 3 दिन निर्जल, निराहार व्रत का उपाय न बताता.” सब की नजर भक्ति की ओर थी.

फूफाजी ने उन्हें कुछ बोलने के लिए हाथ से इशारा किया. भक्ति बूआ रोते हुए बोली, “नीतू, हो सके तो मुझे भी माफ़ करना. पंडितजी से बात कर के मैं ने ही वह पूजा रखी थी. मेरे कहने पर ही उन्होंने कुंडली देखी थी. दूध पीते बच्चे की मां ऐसी कठिन विधि नहीं अपना पाएगी यह जानते हुए भी मैं ने तुम पर दबाव बनाया.” बूआ बोल ही रही थी कि मिट्ठी बीच में बोल पड़ी.

“मां को 3 दिनों से उलटीदस्त हो रहे थे, फिर भी वे पूजा के काम में लगी रहीं और अपनी दवाई भी नहीं ले पाईं व्रत करने के कारण. अगर दवा लेतीं तो उन को हार्टअटैक न आता.”

आज़ पहली बार भक्ति बूआ ने मिट्ठी को घूर कर नहीं देखा.

नाना उठ कर खड़े हो गए. “बस, यही जानने के लिए मैं बेचैन था. अगर सही बात पता चल जाती तो मैं पुलिस के पास कभी न जाता. मेरी बेटी अचानक चली गई, अपनी नातियों से रिश्ता क्यों तोड़ता.”

कुक्कू ने नाना को पकड़ कर बिठा दिया और खुद भी उन के पास ही बैठ गया. फूफाजी ने भक्ति बूआ को वहां से उठा दिया और सामान ले कर चलने लगे. आज़ गगन ने उन्हें नहीं रोका.

बूआ खुद ही गगन के पास आई. “हो सके तो माफ़ कर देना, मेरे भाई. इसी एक गलती को सुधारने के लिए अपने घर नहीं गई.”

“पर मुझे तो सच बता देतीं, दीदी. जीनामरना अपने हाथ में नहीं है लेकिन मेरे विश्वास का कुछ तो मान रखतीं आप.”

भक्ति बूआ साड़ी के पल्लू में मुंह छिपा कर रो रही थी. फूफाजी ने आ कर पापा को सांत्वना दी.

“इस गलती की सज़ा अब मिलेगी इस को. अब यह तब तक तुम्हारे घर नहीं आएगी जब तक तुम बुलाओगे नहीं.” दादाजी उठने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मिट्ठी ने उन्हें रोक दिया.

“भक्ति को विदा कर देता हूं, बेटा. शादी के 26 साल बाद ससुराल जा रही है. अब तो तू सब संभाल लेगी. उस को जाने दो.”

कुक्कू पंडितजी की ओर देख कर मुसकरा दिया. उन के प्रायश्चित्त पाठ ने वह कर दिखाया था जो सालों से कोई नहीं कर पाया था.

***

Rave Party : एक्‍ट्रैस की पार्टी में पहुंची पुलिस

बात 18 मई, 2024 की है. सुनहरी शाम थी. देवाशीष राय थीम पार्क में चहलकदमी कर रहा था, तभी उस की निगाह सामने पड़ी तो एक सूटेडबूटेड अधेड़ उम्र का शख्स भी उसे काफी देर से घूर सा रहा था. देवाशीष ने अपने दिमाग पर जोर डाला, कहीं यह आदमी उस की जानपहचान वाला तो नहीं है. 

तभी वह व्यक्ति धीमेधीमे सधे हुए कदमों से चलता हुआ देवाशीष के बिलकुल सामने आ कर खड़ा हो गया. दोनों एक क्षण के लिए एकदूसरे को देख कर मुसकराए. उस व्यक्ति के हाथ में चिप्स का पैकेट था, जिसे वह अकेले खा रहा था. 

जी, मैं ने अपने दिमाग पर काफी जोर डाला, लेकिन आप को पहचान नहीं पाया’’ देवाशीष ने बात की शुरुआत करते हुए कहा. 

भाईसाहब, मैं भी आप को नहीं जानता हूं. वह तो अकेलेअकेले मैं काफी बोर सा हो रहा था. तभी आप मुझे सामने से दिख गए. इसलिए आप के पास चला आया,’’ अजनबी ने चिप्स का पैकेट देवाशीष की ओर बढ़ाते हुए कहा.

जी, मेरा नाम देवीसिंह है. मैं यहां बेंगलुरु में एक फर्म में मैनेजर हूं.’’ देवाशीष ने अपना असली परिचय छिपाते हुए दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया.

देवीसिंहजी, आप से मिल कर बड़ी खुशी हुई. मेरा नाम पवन खत्री है. मेरा यहां पर कंसट्रक्शन का काम है. चलो, एक से दो भले, आप के साथ अब मेरा भी समय यहां पर कुछ देर के लिए अच्छा गुजर जाएगा.’’ पवन ने अपना परिचय देते हुए कहा.

बस, कुछ देर में इन दोनों की अच्छीखासी दोस्ती भी हो गई थी. दोनों करीब एक घंटे तक थीम पार्क में घूमते रहे. आपस में खूब बातचीत भी करते रहे. देवाशीष यानी देवीसिंह ज्यादा बोल नहीं रहा था, वह केवल पवन खत्री की बातों को बड़ी गंभीरता के साथ सुन रहा था. पवन खत्री ने इस बीच देवीसिंह को अपना विजिटिंग कार्ड भी दे दिया था. अब तक वहां पर उन दोनों को काफी देर भी हो चुकी थी.

पुलिस को ऐसे लगी रेव पार्टी की भनक

देवीसिंहजी, आजकल मैं बहुत ज्यादा बिजी हूं, आप को मैं ने अपना कार्ड तो दे ही दिया है, कल संडे भी है. आप के मनोरंजन के लिए मेरे पास बहुत ही अच्छा प्लान है. आप सुबह १० बजे तक मेरे औफिस पहुंच जाइए. कल आप को मैं जन्नत की सैर जरूर करवा दूंगा.’’ पवन ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा. 

पवनजी, मैं समझा नहीं? जन्नत की कैसी सैर करा रहे हैं आप मुझे?’’ देवीसिंह ने पूछा.

देवीसिंहजी, अभी बातचीत में पता चला कि आप सिंगल हो, आप की शादी तो नहीं हुई है न अभी तक?’’ पवन ने कहा. 

जी, आप सही कह रहे हैं. मैं अभी कुंवारा ही हूं. वैसे घर वाले मेरे लिए लड़की ढूंढ रहे हैं. आप बताओ न, आप मुझे जन्नत की कैसी सैर करवाने वाले हैं?’’ देवी सिंह ने उत्सुकता से पूछा.

”यार देवी सिंहजी, आप जवान हो, अच्छी नौकरी करते हो, मैं तुम्हें नशे और शबाब की ऐसी महफिल में ले चलूंगा, जिस से तुम्हारी रात रंगीन हो जाएगी. बात काफी गोपनीय है, इसलिए जरा मेरे पास आ जाइए.’’ यह कह कर पवन खत्री देवी सिंह के कान में फुसफुसाने लगा था.

रेव पार्टी में दिग्गज ऐक्टर भी थे शामिल

पवन खत्री की सारी बात सुन कर देवीसिंह तो जैसे खुशी के मारे उछल ही पड़ा था, वह पवन खत्री की बात तुरंत मान गया और उस ने इस के लिए औनलाइन उसे एडवांस रकम देनी चाही, पर पवन खत्री ने कहा कि पैसे तो कैश में देने होंगे और इस तरह दोनों की डील पक्की हो गई थी. 

दूसरे दिन देवीसिंह ने सारा पैसा नकद पवन खत्री के औफिस में जा कर दे दिया फिर उस ने यह बात बेंगलुरु के डीसीपी (क्राइम II) आर. श्रीनिवास गौड़ा को उन के औफिस में जा कर बता दी. असल में देवाशीष राय पुलिस का एक विश्वस्त मुखबिर था, जिसे पुलिस ने एक खास काम दे रखा था.

डीसीपी के द्वारा यह बात जब बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत एक विशेष पुलिस टीम का गठन अपर पुलिस आयुक्त (पूर्वी) बेंगलुरु शहर डा. चंद्रगुप्त एवं डीसीपी (क्राइम II) बेंगलुरु शहर आर. श्रीनिवास गौड़ा के नेतृत्व में कर दिया. इस के अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर ने इस विशेष टीम में केंद्रीय अपराध शाखा (सीसीबी) को भी शामिल कर लिया.

बेंगलुरु के बाहरी इलाके अनेकल ताकुल के सिंगोना अग्रहारा गांव में जीएम फार्महाउस में 19 मई, 2024 की रात को पुलिस ने छापा मारा तो वहां से फार्महाउस के मालिक सहित १०४ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया, जिस में तेलुगु अभिनेत्री हेमा का नाम भी था.

एफआईआर के मुताबिक इस रेव पार्टी में 74 पुरुष और 30 महिलाएं शामिल थीं. पुलिस ने पार्टी में शामिल लोगों के पास से 14.4 ग्राम एमडीएमए गोलियां, 1.16 ग्राम एमडीएमए क्रिस्टल, ६ ग्राम हाइड्रो कैनविस, 5 ग्राम कोकीन, कोकीन कोटिंग वाले 500 मूल्यवर्ग के नोट, 6 ग्राम हाइड्रो गांजा, 5 मोबाइल फोन और 2 कारें जब्त कीं. 

20 मई, 2024 को तेलुगु अभिनेत्री हेमा ने एक वीडियो जारी करते हुए दावा किया कि वह 18-19 मई, 2024 को बेंगलुरु में कहीं भी नहीं गई थी और हैदराबाद के एक फार्महाउस में आराम कर रही थी. उस ने वीडियो में अपील की, ”मेरे बेंगलुरु में रेव पार्टी में शामिल होने की खबर का बिलकुल भी विश्वास न किया जाए.’’ 

उस ने मीडिया से बातचीत करते हुए आगे कहा, ”मैं ने कुछ भी गलत नहीं किया है. वे मुझ पर झूठा आरोप लगा रहे हैं, मैं ने ड्रग्स नहीं ली थी. मैं ने हैदराबाद से अपनी वहां मौजूदगी से इंकार करते हुए एक वीडियो भी शेयर किया था, बेंगलुरु से नहीं. मैं ने हैदराबाद में बिरयानी पकाते हुए अपना एक वीडियो भी पोस्ट किया था.’’

इस रेव पार्टी में पुलिस ने टौलीवुड अभिनेत्री आशी राय को भी 22 मई, 2024 को गिरफ्तार किया था. लोकप्रिय तेलुगु अभिनेत्री आशी राय ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिस में उस ने दावा किया कि हालांकि वह पार्टी में मौजूद थी, लेकिन उसे पता नहीं था कि अंदर क्या चल रहा है. उसे रेव पार्टी के बारे में बिलकुल भी पता नहीं था. पुलिस आशी राय से विस्तृत पूछताछ कर रही थी. 

अभिनेता श्रीकांत मेका ने क्यों किया अफवाहों का खंडन

कई लोगों को यह खबर सुन कर आश्चर्य हुआ कि बेंगलुरु रेव पार्टी में तेलुगु अभिनेता श्रीकांत मेका को गिरफ्तार किया गया है. कुछ अखबारों व न्यूज चैनल्स ने इस खबर को प्रसारित भी किया था. उस की गिरफ्तारी की खबर जैसे जंगल में आग की तरह फैल गई और तेलुगु सिनेमा उद्योग में तो जैसे हड़कंप ही मच गया था.

इस खबर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अभिनेता श्रीकांत ने खुद मीडिया के सामने आ कर गिरफ्तारी की अफवाहों को खारिज किया. उस ने बेंगलुरु रेव पार्टी में अपनी मौजूदगी पर कहा, ”मैं अपने घर के सामने खड़ा हूं और सभी लोग इस की अच्छी तरह से जांच कर सकते हैं. बेंगलुरु में पुलिस द्वारा पकड़े गए रेव पार्टी में अपना नाम देख कर मैं एकदम से चौंक गया था. पहले तो मेरे परिवार के सदस्यों ने इस खबर पर हंसी उड़ाई, लेकिन जब यह खबर बड़े पैमाने पर प्रसारित हुई और यूट्यूब पर भी चलने लगी तो मैं ने स्पष्टीकरण जारी करने का फैसला किया.’’ 

उस ने आगे कहा, ”मेरे कई मीडिया मित्रों ने मुझे व्यक्तिगत रूप से फोन किया और किसी भी खबर को प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले मुझ से पुष्टि की, लेकिन कुछ चैनलों ने तथ्यों की पुष्टि के बिना इसे प्रकाशित और प्रसारित कर दिया. मुझे लगता है कि यह उन की गलती नहीं है, क्योंकि पहली बार जब मैं ने उस व्यक्ति की तसवीर देखी तो वह मुझ से मिलताजुलता सा चेहरा था, हालांकि उस की दाढ़ी थी. 

मैं एक बार फिर स्पष्ट कर रहा हूं कि मुझे रेव पार्टियों में जाने की आदत नहीं है और मुझे नहीं पता इस का क्या मतलब है. कभीकभी मैं जन्मदिन की पार्टियों में चला जाता हूं, लेकिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के एक घंटे के भीतर ही वहां से चला आता हूं. मैं मीडिया से अनुरोध करता हूं कि वे किसी भी खबर को प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले उस की पुष्टि करें और तथ्यों की पूरीपूरी जांच करें, क्योंकि पहले भी मीडिया ने मेरे बारे में यह अफवाह फैलाई थी कि मैं तलाक ले रहा हूं.’’ 

तेलुगु अभिनेत्री हेमा क्यों हुई गिरफ्तार

बेंगलुरु सिटी पुलिस द्वारा यह ज्वलंत केस केंद्रीय अपराध शाखा (सीसीबी) को ट्रांसफर कर दिया गया था. केंद्रीय अपराध शाखा (सीसीबी) ने सोमवार 3 जून, 2024 को तेलुगु अभिनेत्री हेमा को अपने कार्यालय में बुलाया. अभिनेत्री ने अपनी पहचान छिपाने के लिए बुरका पहन कर अधिकारियों के सामने अपनी गवाही और स्पष्टीकरण दिया. 

सीसीबी ने इस से पहले तेलुगु ऐक्ट्रैस हेमा सहित करीब 8 लोगों को नोटिस भेजा था. अभिनेत्री हेमा द्वारा संतोषजनक जबाब न दिए जाने पर बेंगलुरु पुलिस ने 3 जून, 2024 को ऐक्ट्रैस को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस के अनुसार इस मामले में ऐक्ट्रैस हेमा को बचाने के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से प्रभावशाली लोगों की ओर से अनावश्यक दबाब भी बनाया जा रहा था. पुलिस जांच से यह भी पता चला कि गिरफ्तार लोगों से की जा रही पूछताछ से ड्रग्स रैकेट का परदाफाश हो सकता है. 

पुलिस सूत्रों ने पुष्टि करते हुए बताया कि 50 से अधिक पुरुषों और करीब 30 महिलाओं ने रेव पार्टी में नशीले पदार्थों का सेवन किया था. एंटी नारकोटिक्स विंग इस मामले की गहराई से जांच करने में जुट गई.

सीसीबी के अतिरिक्त आयुक्त डा. चंद्रगुप्त ने कहा कि अभिनेत्री हेमा की गिरफ्तारी मादक पदार्थों के सेवन, छापे के दौरान गलत नाम (कृष्णवेनी), गलत फोन नंबर देने, रेव पार्टी में ड्रग्स के बारे में पहले से ही जानकारी होने और वीडियो बयानों के जरिए जांच को गुमराह करने के प्रयासों के आधार पर की गई है. 4 जून, 2024 को अभिनेत्री हेमा को अनेकल की अदालत में पेश किया गया. 

क्या होती है रेव पार्टी

बेंगलुरु में आयोजित रेव पार्टी पर पुलिस द्वारा छापेमारी के बाद बड़ेबड़े महानगरों में होने वाली रेव पार्टियां एक बार फिर चर्चा में आ गई हैं. इन रेव पार्टियों में जम कर नशा होता है और इस के लिए सारे नियमकायदे तोड़ दिए जाते हैं. 

करीब 2 साल पहले बौलीवुड अभिनेत्री श्रद्धा कपूर के भाई सिद्धांत कपूर को पुलिस ने बेंगलुरु के एक होटल में चल रही रेव पार्टी में छापेमारी के दौरान हिरासत में लिया था.

बिग बौस विजेता और यूट्यूबर एल्विश यादव के जरिए भी दिल्ली-एनसीआर में होने वाली रेव पार्टियां चर्चा में आ चुकी हैं. महानगरों के होटलों और बड़े शहर से जुड़े इलाकों के फार्महाउस में आमतौर पर रेव पार्टियां आयोजित हुआ करती हैं, जिन में युवाओं की बड़े पैमाने पर भागीदारी होती है. 

आमतौर पर ये सभी युवा धनी व बड़े घरों से ताल्लुक रखने वाले होते हैं. एक रात की इन रेव पार्टियों में लाखों रुपए पानी की तरह बहा दिए जाते हैं. जो भी युवा इन पार्टियों में आते हैं वे सभी महंगी गाडिय़ों में आते हैं. और तो और लड़कियों की मौजूदगी भी इन पार्टियों में खूब रहती है.

देश के लगभग सभी बड़े शहरों में इन रेव पार्टियों का चलन बढ़ता ही जा रहा है. इन पार्टियों में २ खास तरह की ड्रग्स का चलन ज्यादा है, जिसे लेने के बाद लोग 6 से 8 घंटे तक आराम से डांस कर सकते हैं. हालांकि ये ड्रग्स बहुत अधिक नुकसानदायक होते हैं. ये दोनों ही ड्रग्स गैरकानूनी हैं. इन्हें न तो बेच सकते हैं और न ही इन का सेवन कर सकते हैं, लेकिन खास बात तो यह है कि रेव पार्टियों में ये ड्रग्स आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं. 

इन के नाम हैं एसिड और एक्सटेसी. ये दोनों ही ड्रग्स काफी ज्यादा महंगे हैं. जिन के पास पैसे की कोई कमी नहीं होती, वे एसिड व एक्सटेसी जैसी महंगी ड्रग्स खरीद लेते हैं, जिन के पास उतना पैसा नहीं होता वे लोग हशीश या गांजा का सेवन करते हैं.

इन रेव पार्टियों में शराब, ड्रग्स, म्यूजिक और सैक्स का काकटेल होता है. ये पार्टियां बड़े ही गुपचुप तरीके से आयोजित की जाती हैं. वाट्सऐप, टेलीग्राम के जरिए सीक्रेट ग्रुप बना कर इस में लोगों को आकर्षित कर आमंत्रण दिया जाता है. जिन्हें बुलाया जाता है वो सर्किल के बाहर के लोगों को तनिक भी भनक तक नहीं लगने देते. 

आमतौर पर ये रेव पार्टियां नशीले पदार्थ बेचने वालों के लिए सब से सुरक्षित व भरोसेमंद जगह होती हैं. इन पार्टियों में 20 हजार, 30 हजार या 60 हजार वाट का म्यूजिक भी नौनस्टाप बजाया जाता है. इस तेज संगीत और नशे के काकटेल में सारे बंधन टूट जाते हैं, जहां फिर युवा नजदीकियां बढ़ा सकते हैं.

अब तो कई जगह इन रेव पार्टियों में तरहतरह के सांपों से दंश ले कर भी नशा कराया जाने लगा है, उस के लिए खासतौर से राजस्थान और देश के अन्य हिस्सों से सांप पालने वाले सपेरे बुलाए जाते हैं, जिन्हें यहां पर आने और लोगों को सांपों से कटाने के लिए मोटी रकम दी जाती है. 

ऐसा लगता है कि इन रेव पार्टियों में नशे का कोई अंत ही नहीं है. यहां पर हर तरह का नशा आजमा कर हर तरह की मस्ती की जाती है. इस के लिए विदेशी युवतियां भी हायर की जाती हैं. 

इस की भयावहता का दौर 1980 के दशक में ग्रेट ब्रिटेन में शुरू हुआ था, जो धीरेधीरे इतना बढ़ता गया कि लंदन के अधिकांश डांस क्लबों को पीछे छोड़ दिया. इस के बाद डांस क्लबों से निकल कर ये रेव शहर के बाहरी इलाकों के खुले मैदानों में आयोजित की जाने लगी, जिस में हजारों लोग शामिल होने लगे. 

इस के बाद धीरेधीरे इन रेव पार्टियों का क्रेज अमेरिकी शहरों में भी देखा जाने लगा, लेकिन धीरेधीरे कई क्रिमिनल भी इस से जुड़ते चले गए. जिन्होंने इस तरह की रेव पार्टियों को कमाई के नजरिए से देखना शुरू कर दिया.

बाकी देशों की तरह यह प्रचलन धीरेधीरे भारत में भी सफल होने लगा. हालांकि इस का मुख्य केंद्र गोवा माना जाता है, जहां पर विदेशी पर्यटकों ने समुद्र के तट को काफी उपयुक्त स्थान पाया, जहां खुले मैदानों में इन पार्टियों को आयोजित किया जाने लगा. बेहद तेज संगीत के शोर, आसानी से उपलब्ध होने वाले ड्रग्स के चलते अमीर परिवारों के अधिकतर युवाओं को रेव पार्टियों ने अपनी पकड़ में ले लिया. 

इस के बाद मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे शहरों से होते हुए अब यह कल्चर देश के छोटे शहरों को भी अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है. हालांकि भारत में इस तरह की रेव पार्टियां प्रतिबंधित हैं, जहां अवैध तरीके से ड्रग्स का इस्तेमाल किया जाता है. अगर कोई व्यक्ति इस तरह की पार्टी में जाता है या इसे आर्गेनाइज करता है तो गिरफ्तारी के बाद सजा का भी प्रावधान है. यही कारण है कि देश के अलगअलग क्षेत्रों में इस तरह की घटनाओं पर नारकोटिक्स विभाग की अकसर कड़ी नजर रहती है.

कौन है तेलुगु अभिनेत्री हेमा सैयद हेमा का जन्म 20 नवंबर, 1972 को रजोले, पूर्वी गोदावरी, आंध्र प्रदेश में हुआ था. इस के जन्म का नाम कृष्णा वेणी, पूरा नाम कोल्ला हेमा और हेमा सैयद है. छोटी उम्र से ही उसे फिल्में देखने का शौक था और आगे चल कर वह हीरोइन बनना चाहती थी. फिल्मों में काम करने की तीव्र इच्छा होने के कारण वह अपनी मां के साथ मद्रास चली गई और जूनियर आर्टिस्ट सप्लायर गंगा की मदद से उसे छोटेमोटे रोल करने का मौका मिलने लगा. 

फिल्म इंडस्ट्री में आने के बाद उस ने अपना नाम बदल कर हेमा रख लिया. उस ने ७वीं कक्षा तक ही स्कूली पढ़ाई की है और अभिनय में व्यस्त होने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर सकी. हेमा का मानना था कि अगर छोटे किरदारों में अभिनय ठीक ढंग से किया जाए तो बड़े किरदार अवश्य मिल सकते हैं.

अपनी कड़ी मेहनत से वह रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘क्षण क्षणम’ में अभिनेत्री की सहेली के किरदार में चुनी गई. इस फिल्म की अभिनेत्री श्रीदेवी थी और इस किरदार ने उसे खूब नाम दिलाया. हेमा का विवाह 1993 में तेलुगु इंडस्ट्री के जानेमाने फोटोग्राफी निर्देशक सैयद जान अहमद के साथ हुआ. 

1993 में शादी से पहले उस ने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया. इस बीच उस के एक बेटा समरथ व एक बेटी ईशा का जन्म हुआ. शादी के बाद उस ने लगभग ७ सालों तक अभिनय से दूरी बनाए रखी.

शादी के 7 साल बाद उस ने कृष्णा वामसी द्वारा निर्देशित फिल्म मुरारीसे अपनी दूसरी पारी शुरू की. उस की दूसरी पारी काफी अच्छी रही, जिस में मुरारी, बालकृष्ण की नरसिम्हा नायडू, जयम मनदेस जैसी हिट फिल्में शामिल हैं. हेमा ने अपनी दूसरी पारी में डेढ़ सौ से ज्यादा फिल्में कीं और कुल मिला कर अब तक 240 से अधिक फिल्मों में काम कर चुकी है. 

हेमा 2014 के लोकसभा चुनावों में मंडपेटा निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतरी, मगर वह चुनाव हार गई थी. हेमा ने तेलुगु फिल्मों में ही नहीं बल्कि हिंदी, तमिल और मलयालम फिल्मों में भी अभिनय किया है. 2016 में वह फिल्म तूतक तूतक तूतियामें भी दिखाई दी थी, जिस में सोनू सूद, तमन्ना भाटिया और प्रभुदेवा ने भी अभिनय किया था. इस फिल्म में हेमा ने देव (तमन्ना भाटिया का किरदार) की मां की भूमिका निभाई थी. 

2019 में वह तेलुगु रियलिटी शो बिग बौस के तीसरे सीजन में दिखाई दी थी, लेकिन शो के नौवें दिन उसे शो से बाहर कर दिया गया था. हेमा को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है. तेलुगु अभिनेत्री हेमा ने कभी यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उम्र के इस पड़ाव में उसे इतनी जलालत का सामना करना पड़ेगा. 3 जून, 2024 को पूछताछ में वह सीसीबी के साथ सहयोग करने में विफल रही. मैडिकल जांच में यह पुष्टि भी हुई कि उस रात हेमा ने ड्रग्स का सेवन किया था. 

बेंगलुरु पुलिस की ओर से उसे पहले भी २ बार पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया गया था, लेकिन वह पूछताछ के लिए पेश नहीं हुई थी, अंत में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. रेव पार्टी में सैक्स रैकेट का है शक

बेंगलुरु रेव पार्टी में नशीले पदार्थ जब्त किए गए और कुछ गिरफ्तारियां भी की गईं. अब कर्नाटक पुलिस को लगता है कि ड्रग्स के साथसाथ यहां पर सैक्स रैकेट भी चल रहा था. पुलिस अब इस ऐंगल से भी जांच कर रही है. जांच में यह बात भी सामने आई कि इस रेव पार्टी में 200 से अधिक लोग शामिल हुए थे. पार्टी में शामिल कई लोग छापेमारी से पहले चले गए.

पुलिस सूत्रों के अनुसार हर व्यक्ति से इस रेव पार्टी में प्रवेश के लिए 2 लाख रुपए लिए गए थे. पुलिस ने कहा कि उन्हें पूरा संदेह है कि पार्टी आयोजक सैक्स रैकेट भी चला रहे थे. हर चीज की योजना बनाई गई थी और पार्टी में शामिल होने वाले लोगों की सभी मांगें पूरी की गई थीं. कौन है बेंगलुरु रेव पार्टी का मुख्य आरोपी लंकापल्ली वासु बताया जा रहा है कि यह रेव पार्टी लंकापल्ली वासु के जन्मदिन के जश्न की आड़ में एक बहुत बड़े आलीशान तरीके से आयोजित की गई थी, जिस में करीब 50 लाख रुपए खर्च हुए थे.

पुलिस ने रेव पार्टी के मुख्य आरोपी लंकापल्ली वासु को जब गिरफ्तार किया और उस के बारे में विस्तृत जांचपड़ताल की तो उस के काले साम्राज्य का चिट्ठा उजागर हो गया. इस पार्टी का संचालक लंकापल्ली वासु आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा ब्रह्मनगरी मठ स्ट्रीट का निवासी है. वह एक सामान्य परिवार से है, जहां उस की मां डोसा बेच कर अपना गुजारा करती है. 

उस के पिता का देहांत हो चुका है. वासु की २ बड़ी बहनें और एक बड़ा भाई है. वह बचपन से ही एक अच्छा क्रिकेटर बनना चाहता था. खेल के प्रति जुनून ने उसे एक सट्टेबाज बना दिया. वह क्रिकेट, हौकी और कबड्डी जैसे प्रमुख खेलों में सट्टेबाज के रूप में काम करता था. लंकापल्ली वासु बेंगलुरु, चेन्नै, मुंबई, विशाखापत्तनम, हैदराबाद, विजयवाड़ा, तिरुपति, चित्तूर, कुरनूल आदि प्रमुख शहरों से सट्टेबाजी का संचालन करता था. उस ने कई राज्यों में सट्टेबाजी का नेटवर्क स्थापित कर रखा है. 

केवल विजयवाड़ा में ही उस ने 150 से अधिक सट्टेबाजी के केंद्र स्थापित कर रखे हैं. बाद में उस ने अपने व्यवसाय का विस्तार करते हुए हैदराबाद और बेंगलुरु शहरों में पब चलाए. वासु की पत्नी और 2 बेटियां विजयवाड़ा में रहती हैं. लंकापल्ली वासु जहां भी जाता है, हवाई जहाज में सफर करता है. वह जहां पर भी आताजाता था, एयरपोर्ट पर उस के समर्थकों और लग्जरी कारों की एक बड़ी भीड़ इकट्ठा हो जाती थी. उस के पास करोड़ों मूल्य वाली 4 लग्जरी गाडिय़ां भी हैं, उस का अपना एक आलीशान विला भी है, जिस की कीमत करोड़ों में है. 

इसी बीच 3 जून, 2024 को बेंगलुरु पुलिस ने इस सनसनीखेज मामले में बेंगलुरु से एक ड्रग तस्कर को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस की पहचान बेंगलुरु के डीजे हाल्ली निवासी उमर शरीफ के रूप में हुई है. पुलिस ने आरोपी उमर शरीफ के पास से 40 एमडीएमए की गोलियां जब्त कीं. पुलिस के मुताबिक आरोपी रेव पार्टी में मौजूद था और आयोजकों ने उसे कई तरह की ड्रग्स सप्लाई करने को कहा था.

राज्य के गृहमंत्री डा. जी. परमेश्वर ने इस घटना के बारे में अपना बयान देते हुए कहा कि सरकार का लक्ष्य कर्नाटक को नशामुक्त राज्य बनाना है और वह किसी भी हालत में इन रेव पार्टियों को बरदाश्त नहीं करेगी. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि जो छात्र पढ़ाई करने के लिए हमारे राज्य में आते हैं और ड्रग्स लेने और उन्हें बेचने में शामिल होते हैं, उन सभी पर कड़ी नजर रखी जा रही है. ऐसे स्टूडेंट्स को उन के राज्यों में वापस भेज दिया जाएगा.

20 मई, 2024 को छापेमारी के दौरान बेंगलुरु पुलिस को एक विधायक और मंत्री (आंध्र प्रदेश) की तसवीर लगी एक कार भी बरामद हुई थी, सीसीबी अब इस बात की जांच कर रही है कि लग्जरी कार का मालिक कौन है और उसे विधायक का स्टीकर कैसे मिला. सीसीबी उन सभी लोगों को नोटिस जारी कर रही है, जो नशे के सेवन के लिए सकारात्मक पाए गए थे. 

इस फार्महाउस के मालिक रियल्टी फर्म कानकोर्ड के प्रबंध निदेशक गोपाल रेड्ïडी हैं. लंकापल्ली वासु और गोपाल रेड्ïडी दोस्त हैं.  पुलिस ने अब तक तेलुगु अभिनेत्री हेमा (52 वर्ष), लंकापल्ली वासु (35 वर्ष), वी. राणाधीर (43 वर्ष), मोहम्मद अबूबकर सिद्ïदीकी (21 वर्ष), वाई.एम. अरुण कुमार (35 वर्ष), उमर शरीफ (35 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया है. 

फार्महाउस इवेंट मैनेजमेंट कंपनी मेसर्स विक्ट्री को किराए पर दिया गया था, जिस का मैनेजमेंट लंकापल्ली वासु कर रहा था, जिस में 19 मई की रात को जन्मदिन की पार्टी रखी थी. कथा लिखी जाने तक तेलुगु अभिनेत्री हेमा सहित अन्य आरोपियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. वहीं दूसरी ओर मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन ने भी ऐक्ट्रैस हेमा को फिलहाल सस्पेंड कर दिया है.

(कहानी पुलिस सूत्रों पर आधारित है. तथ्यों का नाट्य रूपांतरण किया गया है. कथा में देवाशीष और पवन खत्री नाम काल्पनिक हैं)

 

पंगा : मीना का हौसला

‘‘अरे राशिद, आज तो चांद जमीन पर उतर आया है,’’ मीना को सफेद कपड़ों में देख कर आफताब ने फबती कसी.

मीना सिर झुका कर आगे बढ़ गई. उस पर फबतियां कसना और इस प्रकार से छेड़ना, आफताब और उस के साथियों का रोज का काम हो गया था. लेकिन मीना सिर झुका कर उन के सामने से यों ही निकल जाया करती. उसे समझ नहीं आता कि वह क्या करे? आफताब के साथ हमेशा 5-6 मुस्टंडे होते, जिन्हें देख कर मीना मन ही मन घबरा जाती थी.

मीना जब सुबह 7 बजे ट्यूशन पढ़ने जाती तो आफताब उसे अपने साथियों के साथ वहीं खड़ा मिलता और जब वह 8 बजे वापस आती तब भी आफताब और उस के मुस्टंडे दोस्त वहीं खड़े मिलते. दिनोदिन आफताब की हरकतें बढ़ती ही जा रही थीं.

एक दिन हिम्मत कर के मीना ने आफताब की शिकायत अपने पापा से की. मीना की शिकायत सुन कर उस के पापा खुद उसे ट्यूशन छोड़ने जाने लगे. उस के पापा को इन गुंडों की पुलिस में शिकायत करने या उन से उलझने के बजाय यही रास्ता बेहतर लगा.

एक दिन मीना के पापा को सवेरे कहीं जाना था इसलिए उन्होंने उस के छोटे भाई मोहन को साथ भेज दिया. जैसे ही मीना और मोहन आफताब की आवारा टोली के सामने से गुजरे तो आफताब ने फबती कसी, ‘‘अरे, यार अब्दुल्ला, आज तो बेगम साले साहब को साथ ले कर आई हैं.’’

यह सुन कर मोहन का खून खौल गया. वह आफताब और उस के साथियों से भिड़ गया, पर वह अकेला 5 गुंडों से कैसे लड़ता. उन्होंने उस की जम कर पिटाई कर दी. महल्ले वाले भी चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे, क्योंकि कोई भी आफताब की आवारा मित्रमंडली से पंगा नहीं लेना चाहता था.

शाम को जब मीना के पापा को इस घटना का पता चला तो उन्होंने भी चुप रहना ही बेहतर समझा. मोहन ने अपने पापा से कहा, ‘‘पापा, यह जो हमारी बदनामी और बेइज्जती हुई है इस की वजह मीना दीदी हैं. आप इन की ट्यूशन छुड़वा दीजिए.’’

मोहन के मुंह से यह बात सुन मीना हतप्रभ रह गई. उसे यह बात चुभ गई कि इस बेइज्जती की वजह वह खुद है. उसे उन गुंडों के हाथों भाई के पिटने का बहुत दुख था. लेकिन भाई के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उस का कलेजा धक रह गया. वह सोच में पड़ गई कि वह क्या करे? सोचतेसोचते उसे लगा कि जैसे उस में हिम्मत आती जा रही है. सो, उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब उसे क्या करना है? उस ने उन आवारा टोली से निबटने की सारी तैयारी कर ली.

अगले दिन सवेरे अकेले ही मीना ट्यूशन के लिए निकली. उस ने न अपने भाई को साथ लिया और न ही पापा को. जैसे ही मीना आफताब की आवरा टोली के सामने से गुजरी उन्होंने अपनी आदत के अनुसार फबती कसते हुए कहा, ‘‘अरे, आज तो लाल गुलाब अंगारे बरसाता हुआ आ रहा है.’’

इतना सुनते ही मीना ने पूरी ताकत से एक तमाचा आफताब के गाल पर जड़ दिया. इस झन्नाटेदार तमाचे से आफताब के होश उड़ गए. उस के साथी भी एकाएक घटी इस घटना से ठगे रह गए. इस से पहले कि आफताब संभलता मीना ने दूसरा तमाचा उस की कनपटी पर जड़ दिया. तमाचा खा कर आफताब हक्काबक्का रह गया. वह उस पर हाथ उठाने ही वाला था कि तभी पास खड़े एक आदमी ने उस का हाथ पकड़ते हुए रोबीली आवाज में कहा, ‘‘खबरदार, अगर लड़की पर हाथ उठाया.’’

यह देख आफताब के साथी वहां से भागने की तैयारी करने लगे, तभी उन सभी को उस आदमी के इशारे पर उस के साथियों ने दबोच लिया.

आफताब इन लोगों से जोरआजमाइश करना चाहता था. तभी वह आदमी बोला, ‘‘अगर तुम में से किसी ने भी जोरआजमाइश करने की कोशिश की तो तुम सब की हवालात में खबर लूंगा. इस समय तुम सब पुलिस की गिरफ्त में हो और मैं हूं इंस्पेक्टर जतिन.’’

यह सुन कर उन आवारा लड़कों की पांव तले जमीन खिसक गई. उन के हाथपैर ढीले पड़ गए. इंस्पेक्टर जतिन ने मोबाइल से फोन कर मोड़ पर जीप लिए खड़े ड्राइवर को बुला लिया. फिर उन्हें पुलिस जीप में बैठा कर थाने लाया गया.

तब तक मीना के मम्मीपापा और भाई भी थाने पहुंच गए. इंस्पेक्टर जतिन उन्हें वहां ले गए जहां मीना अपनी सहेली सरिता के साथ बैठी हंसहंस कर बातें करती हुई नाश्ता कर रही थी.

इस से पहले कि मीना के मम्मीपापा उस से कुछ पूछते, इंस्पेक्टर जतिन खुद ही बोल पड़े, ‘‘देवेश बाबू, इस के पीछे मीना की हिम्मत और समझदारी है. कल मीना ने सरिता को फोन पर सारी घटना बताई. तब मैं ने मीना को यहां बुला कर योजना बनाई और बस, आफताब की आवारा टोली पकड़ में आ गई.

‘‘देवेश बाबू, एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगा कि इस प्रकार के मामलों में कभी चुप नहीं बैठना चाहिए. इस की शिकायत आप को पहले ही दिन थाने में करनी चाहिए थी. लेकिन आप तो मोहन की पिटाई के बाद भी बुजदिल बने खामोश बैठे रहे. तभी तो इन गुंडों और समाज विरोधी तत्त्वों की हिम्मत बढ़ती है.’’

यह सुन कर मीना के मम्मीपापा को अफसोस हुआ. मोहन धीरे से बोला, ‘‘अंकल, सौरी.’’

‘‘मोहन बेटा, तुम भी उस दिन झगड़े के बाद सीधे पुलिस थाने आ जाते तो हम तुरंत कार्यवाही करते. पुलिस तो होती ही जनता की सुरक्षा के लिए है. उसे अपना मित्र समझना चाहिए.’’

इंस्पेक्टर जतिन की बातें सुन कर मीना के मम्मीपापा व भाई की उन की आंखें खुल गईं. वे मीना को ले कर घर आ गए. इस हिम्मतपूर्ण कार्य से मीना का मानसम्मान सब की नजरों में बढ़ गया. लोग कहते, ‘‘देखो भई, यही है वह हिम्मत वाली लड़की जिस ने गुंडों की पिटाई की.’’

अब मीना को छेड़ना तो दूर, आवारा लड़के उसे देख कर भाग खड़े होते. मीना के हौसले की चर्चा सारे शहर में थी अब वह सब के लिए एक उदाहरण बन गई थी.

Emotional story : शादी का कार्ड

रश्मि आंटी ई…ई…ई…’’ यह पुकार सुन कर लगा जैसे यह मेरा सात समंदर पार वैंकूवर में किसी अपने की मिठास भरी पुकार का भ्रम मात्र है. परदेस में भला मुझे कौन पहचानता है?  पीछे मुड़ कर देखा तो एक 30-35 वर्षीय सौम्य सी युवती मुझे पुकार रही थी. चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. हां अरे, यह तो लिपि है. मेरे चेहरे पर आई मुसकान को देख कर वह अपनी वही पुरानी मुसकान ले कर बांहें फैला कर मेरी ओर बढ़ी.

इतने बरसों बाद मिलने की चाह में मेरे कदम भी तेजी से उस की ओर बढ़ गए. वह दौड़ कर मेरी बांहों में सिमट गई. हम दोनों की बांहों की कसावट यह जता रही थी कि आज के इस मिलन की खुशी जैसे सदियों की बेताबी का परिणाम हो.

मेरी बहू मिताली पास ही हैरान सी खड़ी थी. ‘‘बेटी, कहां चली गई थीं तुम अचानक? कितना सोचती थी मैं तुम्हारे बारे में? जाने कैसी होगी? कहां होगी मेरी लिपि? कुछ भी तो पता नहीं चला था तुम्हारा?’’ मेरे हजार सवाल थे और लिपि की बस गरम आंसुओं की बूंदें मेरे कंधे पर गिरती हुई जैसे सारे जवाब बन कर बरस रही थीं.

मैं ने लिपि को बांहों से दूर कर सामने किया, देखना चाहती थी कि वक्त के अंतराल ने उसे कितना कुछ बदलाव दिया.

‘‘आंटी, मेरा भी एक पल नहीं बीता होगा आप को बिना याद किए. दुख के पलों में आप मेरा सहारा बनीं. मैं इन खुशियों में भी आप को शामिल करना चाहती थी. मगर कहां ढूंढ़ती? बस, सोचती रहती थी कि कभी तो आंटी से मिल सकूं,’’ भरे गले से लिपि बोली.

‘‘लिपि, यह मेरी बहू मिताली है. इस की जिद पर ही मैं कनाडा आई हूं वरना तुम से मिलने के लिए मुझे एक और जन्म लेना पड़ता,’’ मैं ने मुसकरा कर माहौल को सामान्य करना चाहा.

‘‘मां के चेहरे की खुशी देख कर मैं समझ सकती हूं कि आप दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए कितनी बेताब रही हैं. आप अपना एड्रैस और फोन नंबर दे दीजिए. मैं मां को आप के घर ले आऊंगी. फिर आप दोनों जी भर कर गुजरे दिनों को याद कीजिएगा,’’ मिताली ने नोटपैड निकालते हुए कहा.

 

‘‘भाभी, मैं हाउसवाइफ हूं. मेरा घर इस ‘प्रेस्टीज मौल’ से अधिक दूरी पर नहीं है. आंटी को जल्दी ही मेरे घर लाइएगा. मुझे आंटी से ढेर सारी बातें करनी हैं,’’ मुझे जल्दी घर बुलाने के लिए उतावली होते हुए उस ने एड्रैस और फोन नंबर लिखते हुए मिताली से कहा.

‘‘मां, लगता है आप के साथ बहुत लंबा समय गुजारा है लिपि ने. बहुत खुश नजर आ रही थी आप से मिल कर,’’ रास्ते में कार में मिताली ने जिक्र छेड़ा.

‘‘हां, लिपि का परिवार ग्वालियर में हमारा पड़ोसी था. ग्वालियर में रिटायरमैंट तक हम 5 साल रहे. ग्वालियर की यादों के साथ लिपि का भोला मासूम चेहरा हमेशा याद आता है. बेहद शालीन लिपि अपनी सौम्य, सरल मुसकान और आदर के साथ बातचीत कर पहली मुलाकात में ही प्रभावित कर लेती थी.

‘‘जब हम स्थानांतरण के बाद ग्वालियर शासकीय आवास में पहुंचे तो पास ही 2 घर छोड़ कर तीसरे क्वार्टर में चौधरी साहब, उन की पत्नी और लिपि रहते थे. चौधरी साहब का अविवाहित बेटा लखनऊ में सर्विस कर रहा था और बड़ी बेटी शादी के बाद झांसी में रह रही थी,’’ बहुत कुछ कह कर भी मैं बहुत कुछ छिपा गई लिपि के बारे में.

रात को एकांत में लिपि फिर याद आ ग. उन दिनों लिपि का अधिकांश समय अपनी बीमार मां की सेवा में ही गुजरता था. फिर भी शाम को मुझ से मिलने का समय वह निकाल ही लेती थी. मैं भी चौधरी साहब की पत्नी शीलाजी का हालचाल लेने जबतब उन के घर चली जाती थी.

शीलाजी की बीमारी की गंभीरता ने उन्हें असमय ही जीवन से मुक्त कर दिया. 10 वर्षों से रक्त कैंसर से जूझ रही शीलाजी का जब निधन हुआ था तब लिपि एमए फाइनल में थी. असमय मां का बिछुड़ना और सारे दिन के एकांत ने उसे गुमसुम कर दिया था. हमेशा सूजी, पथराई आंखों में नमी समेटे वह अब शाम को भी बाहर आने से कतराने लगी थी. चौधरी साहब ने औफिस जाना आरंभ कर दिया था. उन के लिए घर तो रात्रिभोजन और रैनबसेरे का ठिकाना मात्र ही रह गया था.

लिपि को देख कर लगता था कि वह इस गम से उबरने की जगह दुख के समंदर में और भी डूबती जा रही है. सहमी, पीली पड़ती लिपि दुखी ही नहीं, भयभीत भी लगती थी. आतेजाते दी जा रही दिलासा उसे जरा भी गम से उबार नहीं पा रही थी. दुखते जख्मों को कुरेदने और सहलाने के लिए उस का मौन इजाजत ही नहीं दे रहा था.

मुझे लिपि में अपनी दूर ब्याही बेटी  अर्पिता की छवि दिखाई देती थी.  फिर भला उस की मायूसी मुझ से कैसे बर्दाश्त होती? मैं ने उस की दीर्घ चुप्पी के बावजूद उसे अधिक समय देना शुरू कर दिया था. ‘बेटी लिपि, अब तुम अपने पापा की ओर ध्यान दो. तुम्हारे दुखी रहने से उन का दुख भी बढ़ जाता है. जीवनसाथी खोने का गम तो है ही, तुम्हें दुखी देख कर वे भी सामान्य नहीं हो पा रहे हैं. अपने लिए नहीं तो पापा के लिए तो सामान्य होने की कोशिश करो,’ मैं ने प्यार से लिपि को सहलाते हुए कहा था.

पापा का नाम सुनते ही उस की आंखों में घृणा का जो सैलाब उठा उसे मैं ने साफसाफ महसूस किया. कुछ न कह पाने की घुटन में उस ने मुझे अपलक देखा और फिर फूटफूट कर रोने लगी. मेरे बहुत समझाने पर हिचकियां लेते हुए वह अपने अंदर छिपी सारी दास्तान कह गई, ‘आंटी, मैं मम्मी के दुनिया से जाते ही बिलकुल अकेली हो गई हूं. भैया और दीदी तेरहवीं के बाद ही अपनेअपने शहर चले गए थे. मां की लंबी बीमारी के कारण घर की व्यवस्थाएं नौकरों के भरोसे बेतरतीब ही थीं. मैं ने जब से होश संभाला, पापा को मम्मी की सेवा और दवाओं का खयाल रखते देखा और कभीकभी खीज कर अपनी बदकिस्मती पर चिल्लाते भी.

‘मेरे बड़े होते ही मम्मी का खयाल स्वत: ही मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया. पापा के झुंझलाने से आहत मम्मी मुझ से बस यही कहती थीं कि बेटी, मैं बस तुम्हें ससुराल विदा करने के लिए ही अपनी सांसें थामे हूं. वरना अब मेरा जीने का बिलकुल भी जी नहीं करता. लेकिन मम्मी मुझे बिना विदा किए ही दुनिया से विदा हो गईं.

 

‘पापा को मैं ने पहले कभी घर पर शराब पीते नहीं देखा था लेकिन अब पापा घर पर ही शराब की बोतल ले कर बैठ जाते हैं. जैसेजैसे नशा चढ़ता है, पापा का बड़बड़ाना भी बढ़ जाता है. इतने सालों से दबाई अतृप्त कामनाएं, शराब के नशे में बहक कर बड़बड़ाने में और हावभावों से बाहर आने लगती हैं. पापा कहते हैं कि उन्होंने अपनी सारी जवानी एक जिंदा लाश को ढोने में बरबाद कर दी. अब वे भरपूर जीवन जीना चाहते हैं. रिश्तों की गरिमा और पवित्रता को भुला कर वासना और शराब के नशे में डूबे हुए पापा मुझे बेटी के कर्तव्यों के निर्वहन का पाठ पढ़ाते हैं.

‘मेरे आसपास अश्लील माहौल बना कर मुझे अपनी तृप्ति का साधन बनाना चाहते हैं. वे कामुक बन मुझे पाने का प्रयास करते हैं और मैं खुद को इस बड़े घर में बचातीछिपाती भागती हूं. नशे में डूबे पापा हमारे पवित्र रिश्ते को भूल कर खुद को मात्र नर और मुझे नारी के रूप में ही देखते हैं.

‘अब तो उन के हाथों में बोतल देख कर मैं खुद को एक कमरे में बंद कर लेती हूं. वे बाहर बैठे मुझे धिक्कारते और उकसाते रहते हैं और कुछ देर बाद नींद और नशे में निढाल हो कर सो जाते हैं. सुबह उठ कर नशे में बोली गई आधीअधूरी याद, बदतमीजी के लिए मेरे पैरों पर गिर कर रोरो कर माफी मांग लेते हैं और जल्दी ही घर से बाहर चले जाते हैं.

‘ऊंचे सुरक्षित परकोटे के घर में मैं सब से सुरक्षित रिश्ते से ही असुरक्षित रह कर किस तरह दिन काट रही हूं, यह मैं ही जानती हूं. इस समस्या का समाधान मुझे दूरदूर तक नजर नहीं आ रहा है,’ कह कर सिर झुकाए बैठ गई थी लिपि. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी थी.

मैं सुन कर आश्चर्यचकित थी कि चौधरी साहब इतना भी गिर सकते हैं. लिपि अपने अविवाहित भाई रौनक के पास भी नहीं जा सकती थी और झांसी में उस की दीदी अभी संयुक्त परिवार में अपनी जगह बनाने में ही संघर्षरत थी. वहां लिपि का कुछ दिन भी रह पाना मुश्किल था.  घबरा कर लिपि आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण अंजाम का मन बनाने लगी थी. लेकिन आत्महत्या अपने पीछे बहुत से अनुत्तरित सवाल छोड़ जाती है, यह समझदार लिपि जानती थी. मैं ने उसे चौधरी साहब और रौनक के साथ गंभीरतापूर्वक बात कर उस के विवाह के बाद एक खुशहाल जिंदगी का ख्वाब दिखा कर उसे दिलासा दी. अब मैं उसे अधिक से अधिक समय अपने साथ रखने लगी थी.  मुझे अपनी बेटी की निश्चित डेट पर हो रही औपरेशन द्वारा डिलीवरी के लिए बेंगलुरु जाना था. मैं चिंतित थी कि मेरे यहां से जाने के बाद लिपि अपना मन कैसे बहलाएगी?

यह एक संयोग ही था कि मेरे बेंगलुरु जाने से एक दिन पहले रौनक लखनऊ से घर आया. मेरे पास अधिक समय नहीं था इसलिए मैं उसे निसंकोच अपने घर बुला लाई. एक अविवाहित बेटे के पिता की विचलित मानसिकता और उन की छत्रछाया में पिता से असुरक्षित बहन का दर्द कहना जरा मुश्किल ही था, लेकिन लिपि के भविष्य को देखते हुए रौनक को सबकुछ थोड़े में समझाना जरूरी था.  सारी बात सुन कर उस का मन पिता के प्रति आक्रोश से?भर उठा. मैं ने उसे समझाया कि वह क्रोध और जोश में नहीं बल्कि ठंडे दिमाग से ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे जो लिपि के लिए सुरक्षित और बेहतर हो.

अगली सुबह मैं अकेली बेंगलुरु के लिए रवाना हो गई थी और जा कर अर्पिता की डिलीवरी से पूर्व की तैयारी में व्यस्त हो गई थी कि तीसरे दिन मेरे पति ने फोन पर बताया कि तुम्हारे जाने के बाद अगली शाम रौनक लिपि को झांसी भेजने के लिए स्टेशन गया था कि पीछे घर पर अकेले बैठे चौधरी साहब की हार्टअटैक से मृत्यु हो गई.

रौनक को अंदर से बंद घर में पापा टेबल से टिके हुए कुरसी पर बैठे मिले. बेचारे चौधरी साहब का कुछ पढ़ते हुए ही हार्ट फेल हो गया. लिपि और उस की बहन भी आ गई हैं. चौधरी साहब का अंतिम संस्कार हो गया है और मैं कल 1 माह के टूर पर पटना जा रहा हूं.’

चौधरी साहब के निधन को लिपि के लिए सुखद मोड़ कहूं या दुखद, यह तय नहीं कर पा रही थी मैं. तब फोन भी हर घर में कहां होते थे. मैं कैसे दिलासा देती लिपि को? बेचारी लिपि कैसे…कहां… रहेगी अब? उत्तर को वक्त के हाथों में सौंप कर मैं अर्पिता और उस के नवजात बेटे में व्यस्त हो गई थी.

3माह बाद ग्वालियर आई तो चौधरी साहब के उजड़े घर को देख कर मन में एक टीस पैदा हुई. पति ने बताया कि रौनक चौधरी साहब की तेरहवीं के बाद घर के अधिकांश सामान को बेच कर लिपि को अपने साथ ले गया है. मैं उस वक्त टूर पर था, इसलिए जाते वक्त मुलाकात नहीं हो सकी और उन का लखनऊ का एड्रैस भी नहीं ले सका.

लिपि मेरे दिलोदिमाग पर छाई रही लेकिन उस से मिलने की अधूरी हसरत इतने सालों बाद वैंकूवर में पूरी हो सकी.  सोमवार को नूनशिफ्ट जौइन करने के लिए तैयार होते समय मिताली ने कहा, ‘‘मां, मेरी लिपि से फोन पर बात हो गई है. मैं आप को उस के यहां छोड़ देती हूं. आप तैयार हो जाइए. वह आप को वापस यहां छोड़ते समय घर भी देख लेगी.’’

लिपि अपने अपार्टमैंट के गेट पर ही हमारा इंतजार करती मिली. मिताली के औफिस रवाना होते ही लिपि ने कहा, ‘‘आंटी, आप से ढेर सारी बातें करनी हैं. आइए, पहले इस पार्क में धूप में बैठते हैं. मैं जानती हूं कि आप तब से आज तक न जाने कितनी बार मेरे बारे में सोच कर परेशान हुई होंगी.’’

‘‘हां लिपि, चौधरी साहब के गुजरने के बाद तुम ग्वालियर से लखनऊ चली गई थीं, फिर तुम्हारे बारे में कुछ पता ही नहीं चला. चौधरी साहब की अचानक मृत्यु ने तो हमें अचंभित ही कर दिया था. प्रकृति की लीला बड़ी विचित्र है,’’ मैं ने अफसोस के साथ कहा.

‘‘आंटी जो कुछ बताया जाता है वह हमेशा सच नहीं होता. रौनक भैया उस दिन आप के यहां से आ कर चुप, पर बहुत आक्रोशित थे. पापा ने रात को शराब पी कर भैया से कहा कि अब तुम लिपि को समझाओ कि यह मां के गम में रोनाधोना भूल कर मेरा ध्यान रखे और अपनी पढ़ाई में मन लगाए.

‘‘सुन कर भैया भड़क गए थे. पापा के मेरे साथ ओछे व्यवहार पर उन्होंने पापा को बहुत खरीखोटी सुनाईं और कलियुगी पिता के रूप में उन्हें बेहद धिक्कारा. बेटे से लांछित पापा अपनी करतूतों से शर्मिंदा बैठे रह गए. उन्हें लगा कि ये सारी बातें मैं ने ही भैया को बताई हैं.

‘‘भैया की छुट्टियां बाकी थीं लेकिन वे मुझे झांसी दीदी के पास कुछ दिन भेज कर किसी अन्य शहर में मेरी शिक्षा और होस्टल का इंतजाम करना चाहते थे. वे मुझे झांसी के लिए स्टेशन पर ट्रेन में बिठा कर वापस घर पहुंचे तो दरवाजा अंदर से बंद था.

 

‘‘बारबार घंटी बजाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो भैया पीछे आंगन की दीवार फांद कर अंदर पहुंचे तो पापा कुरसी पर बैठे सामने मेज पर सिर के बल टिके हुए मिले. उन के सीधे हाथ में कलम था और बाएं हाथ की कलाई से खून बह रहा था. भैया ने उन्हें बिस्तर पर लिटाया. तब तक उन के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. भैया ने डाक्टर अंकल और झांसी में दीदी को फोन कर दिया था. पापा ने शर्मिंदा हो कर आत्महत्या करने के लिए अपने बाएं हाथ की कलाई की नस काट ली थी और फिर मेरे और भैया के नाम एक खत लिखना शुरू किया था. ‘‘होश में रहने तक वे खत लिखते रहे, जिस में वे केवल हम से माफी मांगते रहे. उन्हें अपने किए व्यवहार का बहुत पछतावा था. वे अपनी गलतियों के साथ और जीना नहीं चाहते थे. पत्र में उन्होंने आत्महत्या को हृदयाघात से स्वाभाविक मौत के रूप में प्रचारित करने की विनती की थी.

‘‘भैया ने डाक्टर अंकल से भी आत्महत्या का राज उन तक ही सीमित रखने की प्रार्थना की और छिपा कर रखे उन के सुसाइड नोट को एक बार मुझे पढ़वा कर नष्ट कर दिया था.

‘‘हम दोनों अनाथ भाईबहन शीघ्र ही लखनऊ चले गए थे. मैं अवसादग्रस्त हो गई थी इसलिए आप से भी कोई संपर्क नहीं कर पाई. भैया ने मुझे बहुत हिम्मत दी और मनोचिकित्सक से परामर्श किया. लखनऊ में हम युवा भाईबहन को भी लोग शक की दृष्टि से देखते थे लेकिन तभी अंधेरे में आशा की किरण जागी. भैया के दोस्त केतन ने भैया से मेरा हाथ मांगा. सच कहूं, तो आंटी केतन का हाथ थामते ही मेरे जीवन में खुशियों का प्रवेश हो गया. केतन बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं. मेरे दुख और एकाकीपन से उबरने में उन्होंने मुझे बहुत धैर्य से प्रेरित किया. मेरे दुख का स्वाभाविक कारण वे मम्मीपापा की असामयिक मृत्यु ही मानते हैं.

‘‘मैं ने अपनी शादी का कार्ड आप के पते पर भेजा था. लेकिन बाद में पता चला कि अंकल के रिटायरमैंट के बाद आप लोग वहां से चले गए थे. मैं और केतन 2 वर्ष पहले ही कनाडा आए हैं. अब मैं अपनी पिछली जिंदगी की सारी कड़ुवाहटें भूल कर केतन के साथ बहुत खुश हूं. बस, एक ख्वाहिश थी, आप से मिल कर अपनी खुशियां बांटने की. वह आज पूरी हो गई. आप के कंधे पर सिर रख कर रोई हूं आंटी. खुशी से गलबहियां डाल कर आप को भी आनंदित करने की चाह आज पूरी हो गई.’’

लिपि यह कह कर गले में बांहें डाल कर मुग्ध हो गई थी. मैं ने उस की बांहों को खींच लिया, उस की खुशियों को और करीब से महसूस करने के लिए.

 

‘‘आंटी, मैं पिछली जिंदगी की ये कसैली यादें अपने घर की दरोदीवार में गूंजने से दूर रखना चाहती हूं, इसलिए आप को यहां पार्क में ले आई थी. आइए, आंटी, अब चलते हैं. मेरे प्यारे घर में केतन भी आज जल्दी आते होंगे, आप से मिलने के लिए,’’ लिपि ने उत्साह से कहा और मैं उठ कर मंत्रमुग्ध सी उस के पीछेपीछे चल दी उस की बगिया में महकते खुशियों के फूल चुनने के लिए.

Sad Story : झूठे इश्‍क का इम्तिहान

मारिया की जिंदगी में कमी थी प्यार और रिश्तों की, इसलिए नौशाद का इजहारे मोहब्बत वह कुबूल कर बैठी. शादी कर वह अपना जीवन महकाना चाहती थी…

मारिया की ड्यूटी आईसीयू में थी. जब वह बैड नंबर 5 के पास पहुंची तो सुन्न रह गई. उस के पांव जैसे जमीन ने जकड़ लिए. बैड पर नौशाद था, वही चौड़ी पेशानी, गोरा रंग, घुंघराले बाल. उस का रंग पीला हो रहा था. गुलाबी होंठों पर शानदार मूंछें, बड़ीबड़ी आंखें बंद थीं. वह नींद के इंजैक्शन के असर में था.

मारिया ने खुद को संभाला. एक नजर उस पर डाली. सब ठीक था. वैसे वह उस के ड्यूटीचार्ट में न था. बोझिल कदमों से वह अपनी सीट पर आ गई. मरीजों के चार्ट भरने लगी. उस के दिलोदिमाग में एक तूफान बरपा था. जहां वह काम करती थी वहां जज्बात नहीं, फर्ज का महत्त्व था. वह मुस्तैदी से मरीज अटैंड करती रही.

काम खत्म कर अपने क्वार्टर पर पहुंची तो उस के सब्र का बांध जैसे टूट गया. आंसुओं का सैलाब बह निकला. रोने के बाद दिल को थोड़ा सुकून मिल गया. उस ने एक कप कौफी बनाई. मग ले कर छोटे से गार्डन में बैठ गई. फूलों की खुशबू और ठंडी हवा ने अच्छा असर किया. उस की तबीयत बहाल हो गई. खुशबू का सफर कब यादों की वादियों में ले गया, पता ही नहीं चला.

मारिया ने नर्सिंग का कोर्स पूरा कर लिया तो उसे एक अच्छे नर्सिंगहोम में जौब मिली. अपनी मेहनत व लगन से वह जल्द ही अच्छी व टैलेंटेड नर्सों में गिनी जाने लगी. वह पेशेंट्स से बड़े प्यार से पेश आती. उन का बहुत खयाल रखती. व्यवहार में जितनी विनम्र, सूरत में उतनी ही खूबसूरत, गंदमी रंगत, बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी होंठ. जो उसे देखता, देखता ही रह जाता. होंठों पर हमेशा मुसकान.

उन्हीं दिनों नर्सिंगहोम में एक पेशेंट भरती हुआ. उस का टायफायड बिगड़ गया था. वह लापरवाह था. परहेज भी नहीं करता था. उस की मां ने परेशान हो कर नर्सिंगहोम में भरती कर दिया. उस के रूम में मारिया की ड्यूटी थी. अपने अच्छे व्यवहार और मीठी जबान से जल्द ही उस ने मरीज और मर्ज दोनों पर काबू पा लिया.

मारिया के समझाने से वह वक्त पर दवाई लेता और परहेज भी करता. एक हफ्ते में उस की तबीयत करीबकरीब ठीक हो गईर्. नौशाद की अम्मा बहुत खुश हुई. बेटे के जल्दी ठीक होने में वह मारिया का हाथ मानती. वह बारबार उस के एहसान का शुक्रिया अदा करती. मारिया को पता ही नहीं चला कब उस ने नौशाद के दिल पर सेंध लगा दी.

अब नौशाद उस से अकसर मिलने आ जाता. शुक्रिया कहने के बहाने एक बार कीमती गिफ्ट भी ले आया. मारिया ने सख्ती से इनकार कर दिया और गिफ्ट नहीं लिया. धीरेधीरे अपने प्यारभरे व्यवहार और शालीन तरीके से नौशाद ने मारिया के दिल को मोम कर दिया. अगर रस्सी पत्थर पर बारबार घिसी जाए तो पत्थर पर भी निशान बन जाता है, वह तो फिर एक लड़की का नाजुक दिल था. वैसे भी, मारिया प्यार की प्यासी और रिश्तों को तरसी हुई थी.

मारिया ने जब मैट्रिक किया, उसी वक्त उस के मम्मीपापा एक ऐक्सिडैंट में चल बसे थे. करीबी कोई रिश्तेदार न था. रिश्ते के एक चाचा मारिया को अपने साथ ले आए. अच्छा पैसा मिलने की उम्मीद थी. चाचा के 5 बच्चे थे, मुश्किल से गुजरबसर होती थी.

मारिया के पापा के पैसों के लिए दौड़धूप की, उसे समझा कर पैसा अपने अकाउंट में डाल लिया. अच्छीखासी रकम थी. चाचा ने इतना किया कि मारिया की आगे की पढ़ाई अच्छे से करवाई. वह पढ़ने में तेज भी थी. अच्छे इंस्टिट्यूट से उसे नर्सिंग की डिगरी दिलवाई. उस की सारी सहूलियतों का खयाल रखा. जैसे ही उस का नर्सिंग का कोर्स पूरा हुआ, उसे एक अच्छे नर्सिंगहोम में जौब मिल गई.

जौब मिलते ही चाचा ने हाथ खड़े कर दिए और कहा, ‘हम ने अपना फर्ज पूरा कर दिया. अब तुम अपने पैरों पर खड़ी हो गई हो. तुम्हें दूसरे शहर में जौब मिल गई. तुम्हारे पापा का पैसा भी खत्म हो गया. इस से ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते हैं. हमारे सामने हमारे 5 बच्चे भी हैं.’

चाची तो वैसे ही उस से खार खाती थी, जल्दी से बोल पड़ी, ‘हम से जो बना, कर दिया. आगे हम से कोईर् उम्मीद न रखना. अपनी सैलरी जमा कर के शादीब्याह की तैयारी करना. हमें हमारी

3 लड़कियों को ठिकाने लगाना है. वहां इज्जत से नौकरी करना, हमारा नाम खराब मत करना. अगर कोई गलत काम करोगी तो हमारी लड़कियों की शादी होनी मुश्किल हो जाएगी.’

सारी नसीहतें सुन कर मारिया नई नौकरी पर रवाना हुई. वह जानती थी कि उस के पापा के काफी पैसे बचे हैं. पर बहस करने से या मांगने से कोई फायदा न था. चाचा सारे जहां के खर्चे गिना देते. उस का पैकेज अच्छा था. अस्पताल में नर्सों के लिए बढि़या होस्टल था. मारिया जल्द ही सब से ऐडजस्ट हो गई. अपने मिलनसार व्यवहार से जल्द ही वह पौपुलर हो गई.

एना से उस की अच्छी दोस्ती हो गई. वह उस के साथ काम करती थी. एना अपने पेरैंटस के साथ रहती थी. उस के डैडी माजिद अली शहर के मशहूर एडवोकेट थे. जिंदगी चैन से गुजर रही थी कि नौशाद से मुलाकात हो गई. नौशाद की मोहब्बत के जादू से वह लाख चाह कर भी बच न सकी. एना उस की राजदार भी थी. मारिया ने नौशाद के प्रपोजल के बारे में एना को बताया.

एना ने कहा, ‘हमें यह बात डैडी को बतानी चाहिए. उन दोनों ने नौशाद के प्रस्ताव की बात माजिद अली को बताई. माजिद अली ने कहा, ‘मारिया बेटा, मैं 8-10 दिनों में नौशाद के बारे में पूरी मालूमात कर के तुम्हें बताऊंगा. उस के बाद ही तुम कोई फैसला करना.’

कुछ दिनों बाद माजिद साहब ने बताया, ‘नौशाद एक अच्छा कारोबारी आदमी है. इनकम काफी अच्छी है. लेदर की फैक्टरी है. सोसायटी में नाम व इज्जत है. परिवार भी छोटा है. पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. एक बहन आस्ट्रेलिया में है. शादी के बाद वह वहीं सैटल हो गई है. घर में बस मां है. नौशाद घुड़सवारी व घोड़ों का शौकीन है. स्थानीय क्लब का मैंबर है. पर एक बुरी लत है कि शराब पीता है. वैसे, आजकल हाई सोसायटी में शराब पीना आम बात है. ये सब बातें देखते हुए तुम खुद सोचसमझ कर फैसला करो. मुझे तो रिश्ता अच्छा लग रहा है. बाकी तुम देख लो बेटा.’ मारिया ने खूब सोचसमझ कर रिश्ते के लिए हां कर दी.

शादी का सारा इंतजाम माजिद साहब ने किया. शादी में चाचाचाची के अलावा उस की सहेलियां व माजिद साहब के कुछ दोस्त शामिल हुए. बरात में कम ही लोग थे. नौशाद के बहनबहनोई और कुछ रिश्तेदार व दोस्त. शादी में चाचा ने एक चेन व लौकेट दिए.

मारिया शादी के बाद नौशाद के शानदार बंगले में आ गई. अम्मा ने उस का शानदार स्वागत किया. धीरेधीरे सब मेहमान चले गए. अब घर पर अम्मा और मारिया व एक पुरानी बूआ थीं. सर्वेंट क्वार्टर में चौकीदार व उस की फैमिली रहती थी. अम्मा बेहद प्यार से पेश आतीं. वे दोनों हनीमून पर हिमाचल प्रदेश गए. 2-3 महीने नौशाद की जनूनी मोहब्बत में कैसे गुजर गए, पता नहीं चला.

जिंदगी ऐश से गुजर रही थी. धीरेधीरे सामान्य जीवन शुरू हो गया. मारिया ने नर्सिंगहोम जाना शुरू कर दिया. घर का सारा काम बूआ करतीं. कभीकभार मारिया शौक से कुछ पका लेती. सास बिलकुल मां की तरह चाहती थीं.

मारिया अपनी ड्यूटी के साथसाथ नौशाद व अम्मा का भी खूब खयाल रखती. सुखभरे दिन बड़ी तेजी से गुजर रहे थे. सुखों की भी अपनी एक मियाद होती है. अब नौशाद के सिर से मारिया की मोहब्बत का नशा उतर रहा था.

अकसर ही नौशाद पी कर घर आता. मारिया ने प्यार व गुस्से से उसे समझाने की बहुत कोशिश की. पर उस पर कुछ असर न हुआ. ऐसे जनूनी लोग जब कुछ पाने की तमन्ना करते हैं तो उस के पीछे पागल हो जाते हैं और जब पा लेते हैं तो वह चाहत, वह जनून कम हो जाता है.

एक दिन करीब आधी रात को नौशाद नशे में धुत आया. मारिया ने बुराभला कहना शुरू किया. नौशाद भड़क उठा. जम कर तकरार हुई. नशे में नौशाद ने मारिया को धक्का दिया. वह गिर पड़ी. गुस्से में उस ने उसे 2-3 लातें जमा दीं. चीख सुन कर अम्मा आ गईं. जबरदस्ती नौशाद को हटाया. उसे बहुत बुराभला कहा. पर उसे होश कहां था. वह वहीं बिस्तर पर ढेर हो गया. अम्मा मारिया को अपने साथ ले गईं. बाम लगा कर सिंकाई की. उसे बहुत समझाया, बहुत प्यार किया.

दूसरे दिन मारिया कमरे से बाहर न निकली, न अस्पताल गई. नौशाद 1-2 बार कमरे में आया पर मारिया ने मुंह फेर लिया. 2 दिनों तक ऐसे ही चलता रहा. तीसरे दिन शाम को नौशाद जल्दी आ गया, साथ में फूलों का गजरा लाया. मारिया से खूब माफी मांगी. बहुत मिन्नत की और वादा किया कि अब ऐसा नहीं होगा. मारिया के पास माफ करने के अलावा और कोई रास्ता न था. नौशाद पीता तो अभी भी था पर घर जल्दी आ जाता था. मारिया हालात से समझौता करने पर मजबूर थी. वैसे भी, नर्सों के बारे में गलत बातें मशहूर हैं. सब उस पर ही इलजाम लगाते.

उस दिन मारिया के अस्पताल में कार्यक्रम था. एक बच्ची खुशी का बर्थडे था. उस की मां बच्ची को जन्म देते ही चल बसी. पति उसे

छोड़ चुका था. एक विडो नर्स ने

सारी कार्यवाही पूरी कर के उसे बेटी

बना लिया.

अस्पताल का सारा स्टाफ उसे बेटी की तरह प्यार करता था. उस का बर्थडे अस्पताल में शानदार तरीके से मनाया जाता था. मारिया उस बर्थडे में शामिल होने के लिए घर से अच्छी साड़ी ले कर गई थी. अम्मा को बता दिया था कि आने में उसे देर होगी. प्रोग्राम खत्म होतेहोते रात हो गई. उस के सहयोगी डाक्टर राय उसे छोड़ने आए थे. नौशाद घर आ चुका था.

सजीसंवरी मारिया घर में दाखिल हुई. वह अम्मा को प्रोग्राम के बारे में बता रही थी कि कमरे से नौशाद निकला. वह गुस्से से तप रहा था, चिल्ला कर बोला, ‘इतना सजधज कर किस के साथ घूम रही हो? कौन तुम्हें ले कर आया है? शुरू कर दीं अपनी आवारागर्दियां? तुम लोग कभी सुधर नहीं सकते.’

वह गुस्से से उफन रहा था. उस के मुंह से फेन निकल रहा था. उस ने जोर से मारिया को एक थप्पड़ मारा. मारिया जमीन पर गिर गई. उस ने झल्ला कर एक लात जमाई.

अम्मा ने धक्का मार कर उसे दूर किया. अम्मा के गले लग कर मारिया देर रात तक रोती रही. बर्थडे की सारी खुशी मटियामेट हो गई. 2-3 दिनों तक वह घर में रही. पूरे घर का माहौल खराब हो गया. मारिया ने उस से बात करनी छोड़ दी.

ऐसे कब तक चलता. फिर से नौशाद ने खूब मनाया, बहुत शर्मिंदा हुआ, बहुत माफी मांगी, ढेरों वादे किए. न चाहते हुए भी मारिया को झुकना पड़ा. पर इस बार उसे बड़ी चोट पहुंची थी. उस ने एक बड़ा फैसला किया, नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उसे घर बचाना था. उसे घर या नौकरी में से किसी एक को चुनना था. उस ने घरगृहस्थी चुनी. अब घर में सुकून हो गया. जिंदगी अपनी डगर पर चल पड़ी. फिर भी नौशाद कभी ज्यादा पी कर आता, तो हाथ उठा देता. मारिया हालात से समझौता करने को मजबूर थी.

शादी को 2 साल हो गए. उस के दिल में औलाद की आरजू पल रही थी. अम्मा ने खुले शब्दों में औलाद की फरमाइश कर दी थी. उस की आरजू पूरी हुई. मारिया ने अम्मा को खुशखबरी सुनाई. अम्मा बहुत खुश हुईं. उन्होंने मारिया को पूरी तरह आराम करने की हिदायत दे दी. नौशाद ने कोई खास खुशी का इजहार नहीं किया. अम्मा उस का खूब खयाल रखतीं. दिन अच्छे गुजर रहे थे.

उस दिन नौशाद जल्दी आ गया था. मारिया जब कमरे में गई तो वह पैग बना रहा था. मारिया खामोश ही रही. कुछ कहने का मतलब एक हंगामा खड़ा करना. नौशाद कहने लगा, ‘मारिया, तुम अपने अस्पताल में तो अल्ट्रासाउंड करवा सकती हो, ताकि पता चल जाए लड़का है या लड़की. मुझे तो बेटा चाहिए.’

मारिया ने अल्ट्रासाउंड कराने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘मुझे नहीं जानना है कि लड़की है या लड़का. जो भी होगा, उसे मैं सिरआंखों पर रखूंगी. मैं तुम्हारी कोई शर्त नहीं सुनूंगी. मैं मां हूं, मुझे हक है बच्चे को जन्म देने का चाहे वह लड़का हो या लड़की.’

बात बढ़ती गई. नौशाद को उस का इनकार सुन कर गुस्सा आ गया. फिर नशा भी चढ़ रहा था. मारिया पलंग पर लेटी थी. उस ने मारना शुरू कर दिया. एक लात उस के पेट पर मारी. मारिया बुरी तरह तड़प रही थी. पेट पकड़ कर रो रही थी. चीख रही थी. अम्मा व बूआ ने फौरन सहारा दे कर मारिया को उठाया. उसे अस्पताल ले गईं. वहां फौरन ही उस का इलाज शुरू हो गया. कुछ देर बाद डाक्टर ने आ कर बताया कि मारिया का अबौर्शन करना पड़ा. उस की हालत सीरियस है.

अम्मा और बूआ पूरी रात रोती रहीं. दूसरे दिन मारिया की हालत थोड़ी संभली. नौशाद आया तो अम्मा ने उसे खूब डांटा, मना करती थी मत मार बीवी को लातें. उस की कोख में तेरा बच्चा पल रहा है, तेरे खानदान का नाम लेवा. पर तुझे अपने गुस्से पर काबू कब रहता है? नशे में पागल हो जाता है. अब सिर पकड़ कर रो, बच्चा पेट में ही मर गया.

एना और माजिद साहब भी आ गए. वे लोग रोज आते रहे. मारिया की देखरेख करते रहे. नौशाद की मारिया के सामने जाने की हिम्मत नहीं हुई. हिम्मत कर के गया तो मारिया ने न तो आंखें खोलीं, न उस से बात की. उस का सदमा बहुत बड़ा था. मारिया जब अस्पताल से डिस्चार्ज हुई तो उस ने अम्मा से साफ कह दिया कि वह नौशाद के साथ नहीं रह सकती.

मारिया एना व माजिद साहब के साथ उन के घर चली गई. नौशाद ने मिलने की, मनाने की बहुत कोशिश की, पर मारिया नहीं मिली. अब माजिद साहब एक मजबूत दीवार बन कर खड़े हो गए थे.

नौशाद फिर आया तो मारिया ने तलाक की मांग रख दी. नौशाद ने खूब माफी मांगी, मिन्नतें कीं पर इस बार मारिया के मातृत्व पर लात पड़ी थी, वह बरदाश्त न कर सकी, तलाक पर अड़ गई. नौशाद ने साफ इनकार कर दिया. मारिया ने माजिद साहब से कहा, ‘‘अगर नौशाद तलाक देने पर नहीं राजी है तो आप उसे खुला (खुला जब पत्नी पति से अलग होना चाहती है, इस में उसे खर्चा व मेहर नहीं मिलता) का नोटिस दे दें.’’

माजिद साहब की कोशिश से उसे जल्दी खुला मिल गया. एना और उस की अम्मी ने खूब खयाल रखा. अम्मा 2-3 बार आईं. मारिया को समझाने व मनाने की बहुत कोशिश की. पर मारिया अलग होने का फैसला कर चुकी थी. धीरेधीरे उस के जिस्म के साथसाथ दिल के जख्म भी भरने लगे. 3 महीने बाद उसे इस अस्पताल में जौब मिल गई. यहां स्टाफक्वार्टर भी थे. वह उस में शिफ्ट हो गई.

माजिद साहब और एना ने बहुत चाहा कि वह उन के घर में ही रहे, पर वह न मानी. उस ने स्टाफक्वार्टर में रहना ही मुनासिब समझा. माजिद साहब और उन की पत्नी बराबर आते और उस की खोजखबर लेते रहे.

एना की शादी पर वह पूरा एक  हफ्ता उस के यहां रही. शादी का काफी काम उस ने संभाल लिया. शादी में इरशाद, माजिद साहब का भतीजा, दुबई से आया था. काफी स्मार्ट और अच्छी नौकरी पर था. पर मनपसंद लड़की की तलाश में अभी तक शादी न की थी. उसे मारिया बहुत पसंद आई. माजिद साहब से उस ने कहा कि उस की शादी की बात चलाएं. माजिद साहब ने उसे मारिया की जिंदगी की दर्दभरी दास्तान सुना दी. सबकुछ जान कर भी इरशाद मारिया से ही शादी करना चाहता था.

माजिद साहब ने जब मारिया से इस बारे में बात की तो उस ने साफ इनकार करते हुए कहा, ‘‘अंकल, मैं ने एक शादी में इतना कुछ भुगत लिया है. अब तो शादी के नाम से मुझे कंपकंपी होती है. आप उन्हें मना कर दें. अभी तो मैं सोच भी नहीं सकती.’’

माजिद साहब ने इरशाद को मारिया के इनकार के बारे में बता दिया. पर उस ने उम्मीद न छोड़ी.

डेढ़ साल बाद आज नौशाद को आईसीयू में यों पड़ा देख कर मारिया के पुराने जख्म ताजा हो गए. दर्द फिर आंखों से बह निकला. दूसरे दिन वह अस्पताल गई तो अम्मा बाहर ही मिल गईं. उसे गले लगा कर सिसक पड़ीं.

जबरदस्ती उसे नौशाद के पास ले गईं और कहा, ‘‘देखो, तुम पर जुल्म करने वाले को कैसी सजा मिली है.’’ यह कह कर उन्होंने चादर हटा दी. नौशाद का एक पांव घुटने के पास से कटा हुआ था. मारिया देख कर सहम गई. अम्मा रोते हुए बोलने लगीं, ‘‘वह इन्हीं पैरों से तुम्हें मारता था न, इसी लात ने तुम्हारी कोख उजाड़ी थी. देखो, उस का क्या अंजाम हुआ. नशे में बड़ा ऐक्सिडैंट कर बैठा.’’

नौशाद ने टूटेफूटे शब्दों में माफी मांगी. मारिया की मिन्नतें करने लगा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. मारिया का दिल भर आया. वह आईसीयू से बाहर आ गई. अम्मा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘बेटा, मेरा बच्चा अपने किए को भुगत रहा है. बहुत पछता रहा है. तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी अहमियत का अंदाजा हुआ उसे. बहुत परेशान था. पर अब रोने से क्या हासिल था? मारिया, मेरी तुम से गुजारिश है, एक बार फिर उसे सहारा दे दो. तुम्हारे सिवा उसे कोई नहीं संभाल सकता. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. तुम लौट आओ. तुम्हारे बिना हम सब बरबाद हैं.’’

मारिया ने अम्मा के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘अम्मा, अब यह नामुमकिन है. मैं किसी कीमत पर उस राह पर वापस नहीं पलट सकती. जो कुछ मुझ पर गुजरी है उस ने मेरे जिस्म ही नहीं, जिंदगी को भी तारतार कर दिया है. मैं अब उस के साथ एक पल गुजारने की सोच भी नहीं सकती. आप से अपील है आप अपने दिल में भी इस बात का खयाल न लाएं. आप उस की दूसरी जगह शादी कर दें.’’

मारिया घर लौट कर उस बारे में ही सोचती रही. उसे लगा, अम्मा के आंसू और मिन्नतें वह कब तक टालेगी? इस का कोई स्थायी हल निकालना जरूरी है. कुछ देर में उस के दिमाग ने फैसला सुना दिया. मारिया ने माजिद साहब को फोन लगाया और कहा, ‘‘अंकल, मैं इरशाद से शादी करने के लिए तैयार हूं. आप उन्हें हां कर दें.’’ अब किसी नए इम्तिहान में पड़ने का उस का कोई इरादा न था, नौशाद से बचने का सही हल इरशाद से शादी करना था.

आज उस ने दिल से नहीं, दिमाग से फैसला लिया था. दिल से फैसले का अंजाम वह देख चुकी थी.

Satire : स्‍वर्ग का द्वार और गधे का सवाल

रशीद धोबी की अचानक मृत्यु हो गई. संयोगवश या सदमे से या फिर इस खुशी से कि अब उसे बो झ नहीं ढोना पड़ेगा, उस का गधा भी उसी दिन दुनिया से विदा हो गया.

बेचारे रशीद के खाते में कोई गलत काम तो था ही नहीं. सो, वह सीधा स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचा. लेकिन समस्या यह हुई कि पीछेपीछे उस का वफादार गधा भी आ गया और जिद करने लगा कि वह भी अपने मालिक यानी उन के संग स्वर्ग जाएगा. मगर दूतों ने उसे एंट्री देने से साफ इनकार कर दिया क्योंकि गधों के लिए स्वर्ग में रहने का कोई प्रावधान नहीं था.

रशीद ने गधे को सम झाया, ‘‘भाई, तू मेरा टाइम बरबाद मत कर और लौट जा. स्वर्ग में भला गधा कैसे रह सकता है?’’

परंतु गधा अड़ गया, ‘‘वाहवाह, जीवनभर आप की सेवा की, बो झ ढोता रहा, डंडे खाए, डांट सुनी और मरा भी तो आप के साथ. अब आप अकेले ही स्वर्ग में मजे लूटना चाहते हैं. सच है कि मनुष्य जैसा स्वार्थी जीव कोईर् दूसरा नहीं. लेकिन मैं तो आप के साथ ही रहूंगा.’’

 

रशीद ने कहा, ‘‘देखो भई, यदि तुम कुत्ते होते, तो स्वर्ग जा भी सकते थे. दूसरा कोई जानवर इतना हाईफ्लाइंग नहीं हो सकता.’’

‘‘मैं कुछ सम झा नहीं?’’ गधे ने सिर हिलाते हुए कहा.

रशीद  झुं झला गया, ‘‘बात तो बिलकुल साफ है. तुम जैसे कितने ही जानवर हैं जो मनुष्य की सेवा करने के लिए जीवनभर कड़ी से कड़ी मेहनत करते हैं, जैसे बैल, भैंस, घोड़े, बकरी, भेड़. ऊंट आदि. क्या तुम ने इन सब की सुरक्षा, इलाज, फैशन, मेकअप, ब्यूटी शो या कुछ नहीं तो गुडलिविंग कंडीशन के लिए कभी किसी संस्था, किसी एनजीओ, किसी आश्रम या फेसबुक का नाम सुना है जो इन पशुओं को एडौप्ट करने यानी गोद लेने या सुरक्षा देने के लिए बनाई गई हो?

‘‘फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने अपने कुत्ते के लिए एक फेसबुक अकाउंट ‘बीस्ट’ के नाम से खोल रखा है. कुछ समय पहले नफीसा अली ने अपने कुत्ते ‘माचो’ की सेवा करने के लिए ग्लैमर की दुनिया से कुछ दिनों की छुट्टी ले ली थी. यही नहीं, उन्होंने अपने एक दूसरे पेट डौग की याद में इंग्लिश भाषा में एक पुस्तक भी लिख डाली जिस का नाम है, ‘हाऊ चीका बिकेम अ स्टार ऐंड अदर डौग स्टोरीज.’

‘‘गुल पनाग ऐसी दरियादिल हैं कि अपने कुत्ते माईलो को हवाई जहाज का सफर करवाती हैं और ऐसे होटलों में चेकइन करती हैं जहां कुत्तों के ठहरने की भी व्यवस्था हो. जैसा कि मुंबई के फोर सीजन होटल में.’’

‘‘लेकिन बहुत सारे कुत्ते गरीबी की हालत में इधरउधर मारे फिरते हैं. उन्हें तो कोई नहीं पूछता?’’ गधे ने एतराज किया.

रसीद हंस पड़ा, ‘‘इतनी सी बात नहीं सम झे? आखिरकार हो तो तुम गधे ही. सुनो भाई, फाइवस्टार लाइफ कौन गुजारता है? अमीर और चमकीले लोग. तो, कुत्ते भी वही मौज करते हैं जो उच्च कोटि यानी उच्च वंश के हों. जैसे, अमिताभ बच्चन ने एक शैनौक पाल रखा है. शाहरुख खान ने अपने लिए 2 कुत्ते विदेश से इंपोर्ट करवाए थे, तो प्रियंका चोपड़ा एक कोकर स्पैनियल ब्रांड के इश्क में डूबी हुई थीं.’’

गधे ने रशीद का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘आप का सामान्य ज्ञान काफी वीक है. आप को यह पता नहीं कि अब देशी गरीब कुत्तों का समय भी आ गया है. सुना है हौलीवुड की स्टार पामेला एंडरसन ने कुछ दिनों पहले मुंबई के एक अनाथ कुत्ते यानी सड़क पर फिरने वाले आवारा कुत्ते को एडौप्ट किया यानी गोद लिया है.’’

‘‘यह तो एक अपवाद है. प्रश्न यह है कि क्या आज तक किसी ने दूसरे किसी पशु को गोद लिया है? गाय व भैंस जिन के दूध के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है, उन की लिविंग कंडीशन क्या है? वे  कितनी गंदी, गीली, कूड़ेकरकट तथा कीड़ेमकोड़े से भरी हुई जगहों में बांधी जाती हैं. चारे के नाम पर उन्हें जूठन व सूखी घास खाने को मिलती है,’’ गधे के मालिक रशीद ने कहा.

अब गधे ने धीरे से व्यंग्य किया, ‘‘लेकिन, गाय माता का तो बहुत आदरसत्कार करते हैं.’’

रशीद भड़क उठा, ‘‘ऐसे पाखंड से उसे क्या लाभ पहुंचता है? क्या कभी किसी ने गाय को अपना पेट बनाया है? क्या कोई उस के गले में किसी फैशन डिजाइनर का बनाया हुआ बहुमूल्य चमकता हुआ पट्टा डाल कर शान से सैर करने निकला है? पनीर, दही, मक्खन, आइसक्रीम व दूध से बने अन्य हजारों व्यंजन बेच कर मिलियन और बिलियन कमाने वाले किस इंडस्ट्रियलिस्ट ने अपनी गायभैंसों के लिए फेसबुक अकाउंट खोला है?

‘‘उन के रहने की जगह को क्या एयरकंडीशंड बनाया है? उन के गले में बांहें डाल कर क्या अपनी तसवीर छपवाई या पोस्ट की है? प्रतिदिन 100 एवं 200 टन लोहे की छड़ें, पत्थर, सीमेंट और ईंटों आदि से भरी गाड़ी खींचने वाले और उस पर भी गाड़ीवान के हंटर खाने वाले मासूम बेजबान बैल और भैंसे के बारे में किसी ने कोई पुस्तक लिखी है? क्या कोई एनजीओ गठित हुआ?’’

‘‘आखिरकार, ऐसा अन्याय क्यों है?’’ गधा बेचारा बड़ा हैरान था.

‘‘इसलिए कि मनुष्य को पक्षपात की आदत पड़ चुकी है. सो, हमारी हाईटैक मौडर्न सोसाइटी केवल ऊंची नस्ल के विदेशी कुत्तों को ही महत्त्व देती है. साईं आश्रम डौग एडौप्शन हो या फैंडीकोज, इन साइटों के सारे पेज इसी तरह के कुत्तों की तसवीरों से भरे पड़े हैं. सो, अब तुम भी मेरा रास्ता छोड़ दो, और जा कर विधाता से शिकायत करो,’’ रशीद ने अपनी बात रखी.

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रशीद के तर्कों को सुन कर बेचारा गधा लाजवाब हो कर वापस जाने लगा. इतनी देर में स्वर्ग में एंट्री का समय समाप्त होने लगा और द्वार बंद किए जाने लगे.

रशीद के पैरोंतले मानो आकाश सरकने लगा. गधा भी पछता रहा था. गधे को सहसा एक आइडिया, फ्लैशलाइट की भांति कौंधा. जल्दी से उस ने कुत्ते की आवाज बना कर भौं…भौं…भौं… जोर व शोर से भूंकना शुरू कर दिया. रशीद को भी इशारा मिल गया था. उस ने तुरंत गधे  के गले में बांहें डाल दीं और बड़े गर्व से दूतों से बोला, ‘‘जी, यह मेरा पेट अलसेशियन गुड्डू है. यह एक फैंसी ड्रैस शो, मेरा मतलब है डौग फैंसी ड्रैस शो, में भाग लेने गया था. सहसा इसे मेरी मृत्यु की खबर मिली तो मेकअप और कौस्ट्यूम चेंज किए बिना ही मेरे पीछेपीछे भागता हुआ आ गया. प्रेम और वफा तो इसे कहते हैं. आई लव माई गुड्डू.’’

रशीद ने भावविभोर होने की अच्छी अदाकारी की. दूत प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. ‘‘औफकोर्स, लव और वफादारी का यह अतुल्य नमूना है.’’ एक दूत ने प्रशंसाभरी निगाहों से उसे निहारते हुए कहा.

दूसरे दूत गधे की ओर देखते हुए नम्रता से बोले, ‘‘वाट अ वंडरफुल डौग. यू कैन टेक योर मास्टर विद यू. रशीद भी तुम्हारे साथ स्वर्ग जा सकता है. वी हैव नो औब्जैकशन.’’

‘‘हिपहिपहुरररे’’ रशीद और उस का गधा शीघ्रता से दौड़ कर स्वर्ग के भीतर प्रवेश कर गए.

उन दोनों में आज भी यह विवाद जारी है कि कौन किस की चतुराई के कारण स्वर्ग के मजे लूट रहा है.

पाठक महोदय, आप किस का झ्र साथ देंगे…

Hindi Kahani : घिनौना आरोप

दामोदर के ऊपर कामिनी समेत 20 औरतों ने छेड़छाड़ करने का केस दायर किया था. प्रधानमंत्री ने सख्ती दिखाते हुए उन्हें मंत्री पद से हटा दिया. चूंकि वे वरिष्ठ मंत्री रहे हैं इसलिए उन से इस्तीफा लिया गया और अदालत के फैसले के आधार पर उन के ऊपर कार्यवाही होगी.

इस सब में प्रधानमंत्री का बयान आग में घी का काम कर रहा था, ‘मैं ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारियों का पालन करते हुए दामोदर से इस्तीफा ले कर मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया है. अदालत बिना किसी दबाव के इस मसले पर फैसला लेगी.’

‘‘बड़ा ईमानदार बनता है. सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली,’’ दामोदर गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. वे राजनीति में 50 साल यों ही नहीं गुजार चुके थे. उस में भी वे 30 साल से ज्यादा पत्रकारिता जगत में गुजार चुके थे. कामिनी को वे ही पत्रकारिता में लाए थे.

शाम को अपनी सफाई में दी गई प्रैस कौंफ्रैंस में दामोदर वहां आए पत्रकारों पर फट पड़े, ‘‘मैं खुद पत्रकार के रूप में सालों से आप के साथ रहा हूं और काम कर रहा हूं. इन आरोपों में कोई दम नहीं है, पर पत्रकार के रूप में आप सब जांच में सहयोग दें और सच को छापें.

‘‘मैं ने भी मंत्री पद से इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि न्यायपालिका में मेरा पूरा विश्वास है कि वह सही जांच करेगी. दूसरी बात यह है कि जिस दिन की बात कामिनी बता रही हैं, उस दौरान मैं प्रधानमंत्री के श्रीलंका दौरे को कवर करने वहां गया था और एक वक्त में मैं 2 जगह नहीं रह सकता.’’

‘‘फिर कामिनी ने आप पर आरोप क्यों लगाया?’’ एक पत्रकार का यह सवाल था.

‘‘आरोप तो कोई भी किसी पर लगा सकता है, मेरे इतने साल के पत्रकारिता और राजनीति के कैरियर में जब कोई गलती नहीं दिखाई दी तो मेरा सीधा चरित्र हनन कर डाला,’’ दामोदर मानो सफाई देते हुए बोले.

मीटिंग खत्म कर के वे कमरे में लौटे तो उन का कामिनी की पुरानी बातों और यादों पर ध्यान चला गया.

‘कामिनी, आप क्या लिखती हैं?’ दामोदर उस की रचनाओं और बायोडाटा को देखते हुए बोले थे.

‘कुछ नहीं बस आज से जुड़े विषयों पर छिटपुट रचनाएं लिखी हैं.’

‘अभी तुरंत कुछ लिख कर दीजिए,’ दामोदर 4 पेज देते हुए बोले थे.

कामिनी ने थोड़ी ही देर में एक ज्वलंत विषय पर रचना लिख कर दे दी थी. इस के बाद इतिहास से एमए पास कामिनी अकसर लिखती और उस की रचना छपने लगी थी.

 

उस दिन भी कवरेज के लिए जब दामोदर कानपुर गए थे, तो कामिनी उन के साथ थी. बारिश हो रही थी. रात के 11 बजे जब वे कमरे में पहुंचे तो दोनों भीग चुके थे.

इस के बाद दामोदर ने कामिनी के साथ होटल में छक कर मजे लूटे थे. कामिनी ने भी भरपूर सहयोग दिया था. आग में घी तब पड़ा था, जब दामोदर कामिनी के बजाय राधा से शादी कर बैठे थे.

‘इतने दिनों तक मेरा इस्तेमाल किया, फिर…’ कामिनी बिफरते हुए बोली थी.

‘फिर क्या, हम दोनों ने एकदूसरे का इस्तेमाल किया है. तुम ने मेरे नाम का और मैं ने तुम्हारा. यह दुनिया ऐसे ही कारोबार पर चलती है,’ दामोदर सपाट लहजे में बोले थे.‘मैं आप को बदनाम कर दूंगी. आखिर उस राधा ने क्या दिया है आप को?’ कामिनी गुस्सा में बड़बड़ा रही थी.

‘तुम खुद टूट जाओगी. दूसरी बात यह कि मैं ने मंत्री की बेटी से शादी की है, तो अब सब अपनेआप मिल जाएगा,’ दामोदर सफाई देते हुए बोले थे.

फिर धीरेधीरे दोनों दूर हो गए थे. दामोदर ने सालों से कामिनी का चेहरा नहीं देखा था. इतने सालों के बाद वह न जाने कहां से टपक पड़ी थी.

अगर कामिनी ने अदालत में सुबूत पेश कर दिया तो उन्हें जेल होगी और हर्जाना भी देना पड़ेगा. सांसद की कुरसी भी छिन जाएगी.

‘क्या करूं…’ दामोदर सोच रहे थे कि उन्हें जग्गा याद आ गया. वे जग्गा के पास खुद पहुंचे थे.

‘‘आप जाइए, मैं इस का इलाज कर देता हूं. आप बस 20 औरतों के लिए 25 लाख रुपए का इंतजाम कर दें,’’ वह शराब पीता हुआ बोला.

‘‘पैसा कल तक पहुंच जाएगा. तुम काम शुरू कर दो,’’ दामोदर हामी भरते हुए बोले.

अगले दिन दोपहर के 12 बजे प्रैस कौंफ्रैंस कर उन सभी 20 औरतों ने नाम समेत माफी मांगी और आरोप वापस ले लिया.

अब तो दामोदर मंत्री पद पर दोबारा आ गए. इस मसले पर जब उन से पूछा गया तो वे झट बोल उठे, ‘‘वे सब

मेरी बहन जैसी हैं. मैं तो उन से कभी मिला नहीं, उन्हें जानता तक नहीं. बस राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल की गई मुहरें थीं. मुझे साजिश करने वाला चाहिए मुहरें नहीं.’’

‘‘मगर, वे सब औरतें कहां गईं?’’ एक पत्रकार ने पूछा.

‘‘यह सवाल आप उन से पूछिए जिन्होंने मुझ पर ऐसा घिनौना आरोप लगवाया है. वह तो भला हो उन बहनों का, जिन का जमीर जाग गया और आज मैं आप के सामने हूं. मेरे सामने खुदकुशी के सिवा कोई रास्ता नहीं था,’’ घडि़याली आंसू बहाते दामोदर के इस जवाब ने सब को चुप कर दिया था.

 

दामोदर दोबारा सही हो गए, तो झट रात में जग्गा को फोन लगाया.

‘आप चिंता मत करो, सारा काम ठीक से हो गया है,’ जग्गा ने कहा.

‘‘फिर भी कहीं कुछ…’’ दामोदर थोड़े शंकित थे.

‘कोई अगरमगर नहीं… जग्गा पूरे पैसे ले कर आधा काम नहीं करता है.’

अब दामोदर ने चैन की सांस ली. अब वे कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, ऐसा सोच कर वे हलका महसूस करने लगे और धीरेधीरे नींद के आगोश में चले गए.

Extramarital Love : अच्‍छा है संभल जाएं

बात उन दिनों की है जब मेरी नियुक्ति एक अच्छी कंपनी में एक अच्छे ‘पे पैकेज’ के साथ हुई थी और मैं कंपनी के गैस्टहाउस में रह रहा था. दिल्ली में वैसे भी मकान ढूंढ़ने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है.

एक दिन शाम को लगभग 7 बजे मेरे पास एक लड़की का फोन आया, ‘सर, मैं आशा बोल रही हूं. मैं आप से आज ही मिलना चाहती हूं. आप थोड़ा समय दे सकते हैं? मैं अगर आज आप से नहीं मिली तो बहुत देर हो जाएगी.’

मैं ने हामी भर दी और उसे आधे घंटे बाद किसी समय आने के लिए कह दिया. 8 बजे आशा मेरे पास गैस्टहाउस के रूम में थी.

‘‘सर, मैं आप की कंपनी में एक जूनियर औफिसर के पद के लिए इंटरव्यू दे चुकी हूं. अभी इस विषय में निर्णय लिया नहीं गया है. मेरे घर के हालात अच्छे नहीं हैं. मेरे पिता का निधन मेरे बचपन में ही हो गया था. मां ने मुझे बड़ी कठिनाइयों के साथ पाला है और मैं ही उन का एकमात्र सहारा हूं,’’ कह कर वह भावुक हो गई और उस की आंखों से आंसू छलक गए.

मैं उस की भावना से भरी बातचीत से प्रभावित हो चुका था. उस की सुंदरता पर मैं मुग्ध हो गया था. मेरी उम्र उन दिनों लगभग 30 की रही होगी और मैं अविवाहित भी था.

दूसरे ही दिन आशा का बायोडाटा मैं ने अपने औफिस में मंगा लिया. लेकिन उस की प्रतिभा के आधार पर उस का चयन हो चुका था. आशा को तो यही लगा कि उस का चयन मेरी वजह से हुआ है.

आशा का प्लेसमैंट मेरे ही विभाग में हो गया. उस की नजदीकियां जैसेजैसे बढ़ती गईं मुझे वह और भी अच्छी लगने लगी. अब तो वह बगैर किसी पूर्व सूचना के साधिकार गैस्टहाउस में मेरे कमरे में आने लगी थी. कभी चाय पर तो कभी डिनर पर. उस का साथ मुझे भाने लगा था.

हम दोनों की नजदीकियां जगजाहिर न होते हुए भी औफिस के कर्मचारियों को मन ही मन खटकती थीं. हम दोनों ने दफ्तर में पूरी सतर्कता रखी थी, लेकिन जब वह गैस्टहाउस में मेरे रूम में होती थी, तो हमें पूरी स्वतंत्रता होती थी. लेकिन दैहिक संबंध की दिशा में न बढ़ कर हम लोग अपने प्यार का इजहार एकदूसरे की पीठ थपथपा कर अकसर कर लिया करते थे. कभी चुंबन और आलिंगन से हम दोनों ने एकदूसरे को प्यार नहीं किया था. हां, अपनी कल्पना में मैं उसे कई बार चूम चुका था.

अचानक आशा का ट्रांसफर इलाहाबाद हो गया. फिर हम दोनों  एकदूसरे के संपर्क में नहीं रहे. दूरी चाहत बढ़ा देती है, लेकिन मैं अपने मन को अकसर समझाता था कि इस के बारे में ज्यादा मत सोचो, फिर वक्त गुजरता गया और आशा की यादें धीरेधीरे धुंधली पड़ती गईं.

आशा से बिछड़े 10 साल गुजर चुके थे. मेरा विवाह हो चुका था. मेरी पत्नी मधु बहुत सुंदर और सुशील है और वह सही माने में एक सफल गृहिणी है. शादी हुए अभी कुछ ही समय हुआ था, इसलिए संतान के विषय में मैं ने और मेरी पत्नी ने कोई जल्दबाजी न करने का फैसला किया हुआ था. अभी तो हम एकदूसरे का साथ ऐंजौय करना चाहते थे. मेरी नौकरी दिल्ली में ही जारी थी.

एक दिन एक पेस्ट्री की दुकान पर मैं पेस्ट्री लेने के लिए रुका था. तभी पीछे से आई एक महिला के स्वर ने मुझे चौंका दिया.

‘‘सर, नमस्ते, आप ने मुझे पहचाना?’’

मैं मुड़ा तो देखा आशा खड़ी थी.

‘‘नमस्ते, तुम्हारी याददाश्त की प्रशंसा करनी होगी. इतने अरसे बाद मिली हो और मुझे तुरंत पहचान भी लिया,’’ मैं ने कहा.

उस के साथ बिताए दिनों की स्मृति मस्तिष्क में पुन: जाग्रत हो चुकी थी. इतने अरसे बाद भी उसे देख कर मुझे लगा कि अभी भी उस की सुंदरता बरकरार है.

‘‘इतने दिनों बाद.. दिल्ली कब आईं?’’

‘‘मैं यहीं आ गई हूं और यहीं जौब कर रही हूं. आज घर के लिए कुछ केकपेस्ट्री वगैरह लेने आई हूं. मेरे हसबैंड और सास दोनों को पेस्ट्री बहुत अच्छी लगती है.’’

‘‘जो कुछ तुम ने पैक कराया है उस का पेमैंट मैं अपने सामान के साथ कर दूंगा,’’ कहते हुए मैं ने काउंटर पर पैसे दे दिए. आशा नानुकर करती रही. मैं ने आशा की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे साथ ही चलो मैं तुम्हें ड्रौप भी कर दूंगा और तुम्हारे घर के लोगों से मिल भी लूंगा.’’

थोड़ी ही देर में मैं आशा के घर पहुंच गया. आशा ने रास्ते में बताया कि उस के पति का नाम जतिन है. उन का अपना बिजनैस है. विवाह 3 वर्ष पूर्व हुआ था. अभी उन की कोई संतान नहीं हुई है.

आशा की सास ने घर का मुख्य द्वार खोलते हुए मेरा स्वागत किया. आशा ने मेरा परिचय कराया, ‘‘मम्मीजी, ये श्रीकांत हैं. 10 साल पहले मैं इन के दफ्तर में ही काम करती थी. इन्होंने मेरी बहुत सहायता की थी. बहुत अपनापन दिया था.’’

खैर, हम लोगों ने साथसाथ चाय पी. जतिन अभी अपने कामकाज से वापस नहीं आया था. मैं ने आशा की प्रशंसा करते हुए मांजी से कहा, ‘‘आप के घर व ड्राइंगरूम का इंटीरियर बहुत अच्छा है.’’

मांजी ने कहा, ‘‘यह सब तो आशा का कमाल है. आशा को घर सजाने का बहुत शौक है.’’

एक दिन मैं आशा के घर पहुंचा तो मांजी तो घर पर ही थीं पर जतिन अभी वापस घर नहीं पहुंचा था. जतिन अकसर अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहता था. आशा मुझे बैठा कर चाय बनाने चली गई. मैं ड्राइंगरूम में मांजी के साथ बातचीत करता रहा.

जब आशा चाय ले कर आई तो मैं ने मांजी से कहा, ‘‘आशा चाय बहुत अच्छी बनाती है.’’

‘‘तारीफ करना तो कोई श्रीकांतजी से सीखे. ये तो प्रशंसा करने में माहिर हैं. जतिन के पास तो इतना समय ही नहीं होता है कि वे कभी मेरी ओर गौर से देखें,’’ कहते हुए आशा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दूसरे कमरे की ओर ले कर चली, ‘‘आइए, मैं आप को जतिन का कंप्यूटर दिखाती हूं.’’

यह तो मात्र बहाना था मुझे एकांत में ले जाने का. मांजी रसोई में व्यस्त हो चुकी थीं. ‘‘मम्मीजी का बहुत सहारा है. वैसे तो अच्छाखासा समय औफिस में गुजर जाता है पर आप यह तो मानेंगे ही कि प्यार और स्नेह की भूख अपनी जगह होती है. बड़ा मन करता है कोई अपनापन जताए, अपना सा लगे, मुहब्बत से गले लगाए. पर ऐसा कुछ जतिन के साथ कभी हो ही नहीं पाता…’’ कहतेकहते वह मेरे निकट आ गई.

प्यार से उस की पीठ सहलाते हुए मैं ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मुझे तुम अपना ही समझो. अब जब एक अंतराल के बाद हम दोबारा मिले हैं तो मैं प्यार की कमी तुम्हें कभी महसूस नहीं होने दूंगा.’’

मांजी के आने की आहट से हम दोनों सतर्क हो गए. आशा की पीठ पर जो हलका सा स्पर्श हुआ था उस से मेरे मन में कई प्रश्न उठ खड़े हुए. शायद आशा को मुझ से कहीं अधिक अपेक्षा रही होगी. इन एकांत के क्षणों में, कुछ भी हो सकता था.

एक दिन मेरी पत्नी मधु किटी पार्टी से लौट कर घर आई. बातचीत के दौरान मधु ने मुझे बताया, ‘‘किटी पार्टी में मिसेज चोपड़ा तुम्हारे बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक रहती हैं. वे तुम से बहुत इंप्रैस्ड हैं. अकसर तुम्हारी तारीफ करती हैं.’’

मैं ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘मधु मुझे पता चला है तुम भी मेरी तारीफ में अपनी सहेलियों से बहुत बातें करती हो.’’

मधु ने प्रतिक्रिया में बस इतना कहा, ‘‘मैं झूठी तारीफ नहीं करती. आप हर तरह से तारीफ के काबिल हैं,’’ फिर मेरी पीठ सहलाते हुए बड़े प्यार से कहा, ‘‘यू आर रियली स्वीट हसबैंड.’’

मैं फूला नहीं समाया और आत्मविभोर हो गया. आशा अकसर अपने औफिस से मेरे कार्यालय में आ जाती थी और मैं उसे उस के घर ड्रौप कर दिया करता था. अपनी कंपनी में आशा अपने मधुर व्यवहार और कार्यशैली में गुणवत्ता के कारण, कई प्रमोशन प्राप्त कर चुकी थी. उसे उस के दफ्तर में सभी बहुत पसंद करते थे.

एक दिन जब वह कार में मेरे साथ अपने घर की ओर जा रही थी तो मैं उस के मांसल शरीर पर मुग्ध हो उठा. मेरे मन में बिताए दिनों की नजदीकियां तरोताजा हो उठीं.

तब मन में खयाल आता था कि काश आशा के साथ मेरी नजदीकी कुछ इस तरह बन सके कि मजा आ जाए. पर अकसर मुझे अपने इस विचार पर हंसी आती थी. आशा जैसी लड़की का निकट होना एक संयोग की ही बात थी.

कार में आशा को मेरा एकटक उसे देखना अच्छा भी लगता था, लेकिन मेरी नैतिकता इस वासना की चिनगारी को ठंडा कर देती थी. जब आशा खिलखिला कर हंसती थी तो मुझे बहुत अच्छी लगती थी. आशा के मन में मेरे लिए प्रेम पनप रहा है ऐसा मैं ने अकसर महसूस किया था. एक बार उस के घर गया तो उस के पति जतिन से मुलाकात हुई. वह एक सभ्य और सुलझा हुआ इंसान था.

मैं आशा के घर जाता रहता था. वह कभीकभी बच्चों जैसी मासूमियत के साथ हठ कर के मुझ से किसी चीज की मांग कर बैठती थी तो जतिन उसे समझाता था.

उत्तर में वह कहती थी, ‘‘तुम हम दोनों के बीच में मत पड़ो, जतिन. मैं सर से जो चाहती हूं साधिकार लूंगी. ये उम्र में हम से बड़े हैं और इन से हम लोग कुछ भी ले सकते हैं.’’

मैं ने आशा को उस की शादी की सालगिरह के मौके पर सोने का इयररिंग्स भेंट किया जिन्हें पहन कर उस ने कहा, ‘‘कैसी लग रही हूं इसे पहन कर?’’

मैं ने कहा, ‘‘बहुत सुंदर.’’

मेरे करीब आ कर उस ने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया और बोली, ‘‘मुझे आप का आशीर्वाद चाहिए, सारी जिंदगी. बस ऐसे ही प्यार करते रहिएगा.’’

मैं ने कुछ नहीं कहा किंतु मन ही मन खुश था.

मेरी मर्यादा ने मुझे बांध रखा था. लेकिन अकसर आशा के मुख पर आतेजाते  हावभाव उस के दिल में छिपे तूफान को छिपाने में असमर्थ होते थे.

एक दिन किसी कार्यवश जतिन को लखनऊ जाना पड़ा. अपने औफिस से लौटते हुए आशा को ले कर मैं आशा के घर पहुंचा. रास्ते भर आशा बहुत प्रसन्न दिखाई दी. घर पहुंचने पर आशा ने अपने पर्स से घर की चाबी निकाली. मेरे पूछने पर आशा ने बताया, ‘‘2 दिन पहले मम्मीजी मेरे जेठ के यहां कानपुर गई हैं. वापसी में जतिन उन्हें कानपुर से ले आएंगे.’’

थोड़ी देर बाद जब मैं ने उस के घर से जाना चाहा तो आशा ने कहा, ‘‘आप रुक जाइए. ऐसी भी क्या जल्दी है? आज मैं घर पर आप को ट्रीट दूंगी. खाना हम साथ ही खाएंगे. अकेले रहने का मौका तो कभीकभी ही मिलता है,’’ कहते हुए उस ने मुझे बाहुपाश में लेने की चेष्टा की. मेरे समीप होने का वह पूरा लाभ उठाना चाहती थी. पहले तो मैं ने संकोचवश वहां से हटना चाहा किंतु उस का आकर्षण मेरी विवशता बन गया. ऐसे अंतरंग क्षणों में हम एकाकार हो गए. एक अलौकिक दुनिया में खोए रहे.

दूसरे दिन भी इसी आनंद की पुनरावृत्ति हुई. हम दोनों भोजन कर चुके थे. आशा ने कहा, ‘‘आप थोड़ी देर संगीत का आनंद लें. मैं बस थोड़ा फ्रैश हो कर आती हूं. वह आई तो हलके आसमानी रंग की साड़ी में थी और बहुत प्रसन्न थी, ‘‘अभी तो मैं आप को बिलकुल नहीं जाने दूंगी. बस थोड़ा समय ही तो लगेगा,’’ कह कर उस ने मेरा हाथ थाम लिया और दूसरे कमरे की ओर ले चली.

मंद स्वर में उस ने पूछा, ‘‘मैं दुलहन जैसी सुंदर लग रही हूं न?’’ फिर इतराते हुए कहा, ‘‘आज मैं ने शृंगार आप के लिए ही किया है. आप मुझे जी भर कर प्यार कर सकते हैं. मैं प्रेम की गहराई में डूब जाना चाहती हूं…’’ वह बोली.

बहकने लगी थी वह और मुझे बाहुपाश में लेने के लिए मचल रही थी. मैं कदम बढ़ा कर बहुत दूर तक जा सकता था. प्रलोभन चरम सीमा पर था. हालात विवश कर रहे थे देहसंबंध के लिए.

उसे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैं एकाएक पलंग से उठ खड़ा हुआ, ‘‘जरा इधर आओ मेरे निकट,’’ मैं ने आशा से कहा, ‘‘मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं, तुम्हारे व्यक्तित्व में कई अच्छी बातें हैं लेकिन जो प्रेम तुम मुझ में ढूंढ़ने का प्रयास कर रही हो वह जतिन के हृदय में भी हिलोरें मार रहा है. नदी को जानने के लिए गहराई में उतरना पड़ता है. किनारे पर खड़े हो कर नदी की गहराई पता नहीं चलती है. तुम्हारा समर्पण और सान्निध्य केवल जतिन के लिए है.’’

वह सब जो आसानी से उपलब्ध है उसे कोई इतनी आसानी से ठुकरा सकता है, ऐसा आशा ने कभी सोचा न था.

थोड़ी देर वह चुप रही फिर उस ने बहुत भावुक हो कर कहा, ‘‘आज की इस निकटता ने हमारे संबंधों को एक नया अर्थ दिया है. यह आप ने सिद्ध कर दिया है. आप ने मेरी नजदीकी से कोई लाभ नहीं उठाना चाहा. जो पवित्र प्रेम और सम्मान आप ने मुझे दिया है उसे मैं जिंदगी भर याद रखूंगी. आप हमारे घर आतेजाते अवश्य रहिएगा. आप को अभी भी रोकने की मेरी चाहत है लेकिन जाने का निश्चय आप कर चुके हैं.’’

लौटते वक्त मैं सोच रहा था कि एक सुंदर लड़की का रूप मेरी रूह में समा चुका है. वह भी मुझे पसंद करती है, लेकिन हमारी सोच के तरीके बदल चुके हैं.

सब से अधिक प्रसन्नता मुझे इस बात की थी कि मैं ने अपनी पत्नी के विश्वास को कोई चोट नहीं पहुंचाई थी. हमारा अपनेअपने हिस्से का जो प्यार होता है, हमें उसी पर गर्व महसूस करना चाहिए.

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