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रहनुमा – भाग 1: शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया

मोबाइल की सुरीली सी खनक सुन संध्या ने स्क्रीन पर उभरे नंबर और नाम को देखा, तो उस का हृदय तेजी से धड़क उठा. लेकिन मोबाइल बजता रहा और वह खामोश बैठी रही. 10 मिनट बाद लैंडलाइन की घंटी बजी तो उस ने कौलर आईडी पर नंबर चैक किया. पल भर को उस का जी चाहा कि रिसीवर उठा कर बात कर ले, किंतु अपने मनोभाव को संयत कर उस ने फोन काल को नजरअंदाज करना ही ठीक समझा. फिर संध्या अपने दैनिक क्रियाकलाप निबटाने लगी. सुबह घर की साफसफाई करना, चायनाश्ता बना कर खाना फिर औफिस चले जाना और सांझ ढले थकेमांदे घर लौटना यही उस की दिनचर्या रहती. लेकिन घर लौटने पर खालीखाली सूना घर देख उस का मन उदास हो जाता. देह को ठेलती वह किचन में जा कर चाय बनाती और टीवी औन कर देती. देर रात तक टीवी चलता रहता तो टीवी के शोर से घर का सन्नाटा जैसे समाप्त हो जाता.

रात के सन्नाटे में जरा सी आहट होते ही वह कांप जाती. एक रात जब वह सो रही थी तब मुख्यद्वार के बाहर लगी घंटी बज उठी थी. उस की नींद टूटी तो इतनी रात गए कौन होगा, सोच कर वह सिहर उठी थी. फिर घबरा कर वह चीख उठी थी कि कौन है? लेकिन कोई उत्तर न पाने पर कांपते हाथों से खिड़की का पल्ला खोला था. लेकिन बाहर कोई नजर नहीं आया था.

जब गेट के बाहर की घंटी लगातार बजती रही तो वह कांपते हाथों से दरवाजा खोल लौन में आ गई. गेट की घंटी पूर्वत बज ही रही थी. शायद राह चलते किसी मनचले ने मसखरी करने के लिए घंटी बजा दी थी, जो घंटी का स्विच दबा रह जाने की वजह से लगातार बजती चली जा रही थी. उस ने घंटी का स्विच औफ किया था और तुरंत भीतर जा कर दरवाजेखिड़कियां बंद कर दी थीं. किंतु उस के बाद सारी रात वह सो नहीं सकी थी.

संध्या के पति की मृत्यु हुए बरसों बीत गए हैं. 2 बेटियां हैं जिन का विवाह उस ने स्वयं ही किया है. एक बेटी विदेश में है और दूसरी भारत में ही है. लेकिन कोसों दूर. वैसे संध्या की बढि़या नौकरी है, इसलिए अच्छाखासा वेतन और घर में सभी सुविधाएं हैं. सुबह से शाम कैसे हो जाती है संध्या को पता नहीं चलता, लेकिन सांझ ढले एकांत घर में आना उसे तनमन से थका देता है. बेटियों से रोज बातचीत होती है किंतु वे दोनों अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं, इसलिए ज्यादा समय नहीं दे पातीं. जब कभी वह बीमार हो जाती है तो अपना अकेलापन उसे और भी भयावह लगता है.

उस दिन जब वह सांझ ढले घर लौटी तो देखा कि लैटर बौक्स में एक पत्र पड़ा था. उसे निकाल वह ताला खोल सोफे पर पसर गई थी और उसे पढ़ते ही उस का दिल तेजी से धड़कने लगा था. उस में लिखा था:

संध्याजी,

फोन पर आप से बात न हो सकी, इसलिए मैं पत्र लिखने को विवश हो गया. फिर मेरे हृदय में भावनाओं का जो ज्वार उमड़ रहा है उस की सच्ची अभिव्यक्ति पत्र द्वारा ही संभव है.

मात्र 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद मेरी पत्नी का देहांत हो गया था. तब से अपनी एकमात्र संतान अपने बेटे की परवरिश अकेले ही करी. मन में कभी ब्याह का खयाल नहीं आया. लेकिन जीवन के इस मोड़ पर आप से मिला, तो इच्छा जाग उठी कि अपने जीवन में आप को शामिल कर सकूं. मैं ने अपने बेटे के बारबार आग्रह करने पर ही इस जीवनसंध्या में किसी साथी के विषय में सोचना शुरू किया है. अगले वर्ष नौकरी से रिटायर हो जाऊंगा तो अच्छीखासी पैंशन मिलेगी. इस के अलावा काफी चलअचल संपत्ति का भी मालिक हूं और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी पूर्णतया स्वस्थ और फिट हूं.

आजकल आप के विषय में ही सोचता रहता हूं. मैं जानता हूं कि दुनिया क्या कहेगी, परिवार क्या सोचेगा. मात्र इस सोच के चलते चुप्पी साधे हुए हूं, जबकि प्रसन्न रहना, हंसना और नीरस जिंदगी में बहार लाना कोई पाप नहीं है.

शेखर

संध्या ने पत्र बंद कर एक ओर सरका दिया था, लेकिन लिखने वाले ने अपनी भावनाओं को खुलेपन से व्यक्त किया था, इसलिए उस में संवेदना के तार झनझना उठे थे. रात में भोजन के बाद वह टीवी देखने में मगन थी कि मोबाइल बज उठा था. वह बोल उठी थी, ‘‘क्षमा कीजिएगा. आप जैसा सोचते हैं वैसा होना बिलकुल भी संभव नहीं है. मैं अपने जीवन में खुश और संतुष्ट हूं. मैं अकेली नहीं हूं, मेरा भरापूरा परिवार है,’’ इतना कह कर उस ने फोन काट दिया था और टीवी बंद कर बिस्तर पर लेट गई थी. काफी देर तक वह जागती रही फिर न जाने कब उस की छटपटाहट को निद्रा ने दबोच लिया था.

अगले दिन रोज की तरह औफिस के काम को तत्परता से निबटा वह सांझ ढले घर के लिए निकलने को ही थी कि अपने सामने एकाएक उपस्थित हो गए शख्स को देख चौंक गई थी.

‘‘आप?’’

‘‘हां मैं, मुझे आना ही पड़ा. आप को अचानक क्या हो गया? पहले ‘हां’ और फिर एकदम चुप्पी साध लेना. आप ने स्वयं ही तो पहले मौन स्वीकृति दी थी.’’

संध्या नजरें नहीं मिला पा रही थी. फिर भी बोली थी, ‘‘मुझ से भूल हो गई थी. यह सब इस उम्र में अच्छा नहीं. मुझे घर जल्दी पहुंचना है.’’ उस के शब्द इस के बाद गले में अटक कर रह गए थे.

‘‘आप क्यों संदेहों, आशंकाओं से घिर कर अपनेआप को आहत कर रही हैं?’’

‘‘प्लीज मुझे किसी रिश्ते, संबंध के दलदल में नहीं फंसना है,’’ संध्या झुंझला उठी थी.

घर वापस आ कर वह निढाल सी सोफे पर बैठ गई थी. चाय पीने की इच्छा तो थी, किंतु बनाने का मन नहीं कर रहा था. वह सोच रही थी कि जीवन के शून्याकाश में एकाकी तारे जैसी स्थिति है उस की. वैसे जीवन में आए एकाकीपन के कष्टों की धूप उस के लावण्य को झुलसा नहीं सकी थी. एक दिन औफिस की एक पार्टी के दौरान संध्या ने अपने लंबे बाल खुले रख छोड़े थे, जिन्हें देख उस की सहकर्मी सखियां हैरान हो गई थीं. उस के नित्यप्रति बंधे जूड़े से उन्मुक्त लंबे बाल जो कंधों पर बिखरे थे. उन्हें देख कर एक बोली थी, ‘‘ये आप के बाल हैं या लहराताबलखाता झरना. संध्याजी, आप अपनी उम्र से छोटी और स्मार्ट दिखती हैं. शारीरिक रूप से भी आप बिलकुल फिट हैं.’’

रहनुमा – भाग 2: शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया

फिर बातों ही बातों में संध्या को पुनर्विवाह की सलाह सभी ने दे डाली थी. संध्या को बहुत अटपटा लगा था यह हासपरिहास, लेकिन 2-4 दिन बाद उसे फिर ऐसे ही वाक्य सुनने को मिले थे. एक रोज तो अचानक ही संध्या के औफिस का सहकर्मी उस के समक्ष अपने एक मित्र शेखर को ले कर उपस्थित हो गया था और बिना किसी भूमिका के उस ने विवाह प्रस्ताव उस के सम्मुख रख दिया था. शेखर ने उस के सामने बैठ कर स्वयं ही अपना परिचय दिया था कि वह प्रतिष्ठित और उच्च पद पर है और पत्नी की मृत्यु हुए कई वर्ष बीत चुके हैं. एक डाक्टर पुत्र है, जो विवाहित है और 2 छोटे बच्चों का पिता है. पिता के अकेलेपन की त्रासदी पुत्र को भीतर ही भीतर बेचैन किए हुए है. इसलिए उस का आग्रह है कि वे अपनी जीवनसंध्या में अपने लिए उपयुक्त साथी खोज लें.

शेखर का यह आकस्मिक प्रस्ताव संध्या को असंतुलित कर गया था, लेकिन उस के बाद से शेखर के फोन संध्या के पास बराबर आने लगे थे. संध्या कभी तो संक्षिप्त वार्तालाप कर फोन बंद कर दिया करती थी, तो कभी रिसीव ही नहीं करती थी. कभी फोन उठाती लेकिन मुंह से बोल न निकलते. खामोशी की भी अपनी ही जबान होती है, जिसे फोन करने वाला तुरंत समझ जाता है. लेकिन जिस ‘हां’ को शेखर सुनना चाहता था वह सहमति नदारद रहती.

संध्या की ससुराल की तरफ से तो कोई रिश्तेदारी थी नहीं, मायके में पिताजी थे और 2 भाई थे. उस ने अपनी भाभी से शेखर के प्रस्ताव के विषय में बात की थी, तो बात पूरे घर में फैल गई थी. किसी की तरफ से अच्छा रेस्पौंस नहीं मिला था. संध्या के पिताजी तो इस बात को जान कर क्रोध में फोन पर बरस पड़े थे, ‘‘अब तुम्हारी उम्र मोहमाया के बंधनों से नजात पाने की है या बेसिरपैर के संबंध से बंधने की है? कुछ अध्यात्म की ओर मन लगाओ और अच्छा साहित्य पढ़ो. समय फालतू है तो समाजसेवा की सोचो. रिटायरमैंट के बाद खाली समय बिताने की समस्या अभी से क्यों है तुम्हारे दिमाग में? इस उम्र में स्वयं को बंधन में बांधना एकदम वाहियात बात है.’’

घर वालों का नकारात्मक रवैया शेखर को संध्या ने बता दिया था और फिर बोली थी कि आप अपने लिए किसी अन्य साथी की खोज करिए, मैं ऐसे ही ठीक हूं. संध्या की बेरुखी के बाद भी शेखर ने उसे समझाने का असफल प्रयास किया था. फिर स्वयं भी मौन साध लिया था. उस के फोन आने बंद हो गए थे और दिन गुजरते जा रहे थे. शुरू में तो संध्या ने राहत की सांस ली थी, किंतु 1 हफ्ता बीत गया तो उस की फोन की प्रतीक्षा में बेचैनी बढ़ने लगी थी. मन एक नई उलझन में उलझता जा रहा था कि क्या हो गया? मेरी बेरुखी से ही फोन आने बंद हो गए शायद? या शायद शेखर ने भी अपना बचकाना विचार छोड़ दिया होगा और यही उचित भी है. इस उम्र में किसी के साथ जुड़ने, संग रहने का क्या मतलब?

लेकिन उस का अधीर मन यह भी कहता कि वह स्वयं ही फोन कर ले. किंतु संस्कारी चित्त राजी न होता. एक दिन मन के हाथों हार कर संध्या ने मोबाइल पर शेखर का नंबर पंच कर हलकी सी मिस्ड कौल दे दी थी. ऐसा करने से उस का हृदय जोरों से धड़क उठा था.

उस के मोबाइल पर तुरंत यह संदेश आ गया था, ‘मैं बहुत परेशान हूं, अभी बात नहीं कर पाऊंगा.’

‘क्या हुआ? कैसी परेशानी?’ उस ने सवाल भेजा था पर उस का कोई जवाब नहीं आया था. अगले दिन संध्या यह सोच कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई थी कि व्यर्थ ही उस ने अपने मन को बेकार के झंझट में फंसाया. किंतु भावनाओं के ठहरे हुए दरिया में अचानक एक पत्थर आ गिरा था. एक दिन मोबाइल की घंटी बजी, तो संध्या ने स्क्रीन पर नजर डाली. उस पर शेखर का नाम था. उस ने कांपते हाथों से मोबाइल हाथों में थामा तो शेखर का अक्स उभर आया था. शेखर ने बताया था कि उन का इकलौता बेटा डाक्टरों और सहायकों की टीम के साथ किसी गांव में फैली महामारी का इलाज करने और बीमारों की तीमारदारी के लिए गया था. लेकिन मरीजों को भलाचंगा करतेकरते वह स्वयं भी रोग की चपेट में आ गया था. इसलिए वह उस के बेहतर इलाज के लिए उसे तुरंत दिल्ली ले कर गया था. वहां बढि़या मैडिकल सेवा की बदौलत उस की सेहत में सुधार होने लगा और अब वह धीरेधीरे पूर्ण स्वस्थ हो रहा है. मैं बहुत परेशान और व्यस्त रहा, क्योंकि बहुत भागदौड़ रही. और कैसी हैं आप? अच्छा फोन बंद करता हूं. डाक्टर के पास जा रहा हूं.

संध्या ने फिर कभी कोशिश नहीं की फोन करने की, न ही दूसरी तरफ से कोई समाचार आया.

एक दिन संध्या औफिस से निकल अपने दुपहिया वाहन पर सवार विचारों में खोई चली जा रही थी कि उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उस की एक चीख निकली और वह वाहन समेत सड़क पर जा गिरी. उस के बाद उसे नहीं मालूम कि क्या हुआ. आंखें खुलीं तो उस ने स्वयं को अस्पताल में पाया. कोई भलामानुस उसे अस्पताल ले आया था और फिर घर भी छोड़ गया था.

नशे से बढ़ रहे घरेलू अपराध

शराब का नशा केवल सेहत और आर्थिक नुकसान ही नहीं पहुंचाता है. समाज में अपराध का सबसे बडा कारण शराब का नशा होता जा रहा है. घरेलू अपराध में शराब का नशा सबसे बडा कारण बनता जा रहा है. शराब के नशे में छेडछाड, बलात्कार, मारपीट ही नहीं हत्या जैसे जघन्य अपराध भी होने लगे है. शराब के नशे में करीबी रिश्तों के भी कत्ल होने लगे है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज में नशे के शिकार नशेडी बेटे ने बुजुर्ग पिता को पीट-पीट कर उतारा मौत के घाट उतार दिया.

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मोहनलालगंज के कोराना गांव में रहने वाले 70 साल के बाबूलाल रावत अपने इकलौते बेटे रामकिशुन उर्फ कालिया व पोतो के साथ रहता था. रामकिशुन नशे का आदी था. नशे में वह घर में सभी से मार पिटाई करता था. रामकिशुन के नशे की लत के चलते पिटाई से नाराज होकर उसकी पत्नी रेखा पन्द्रह दिन पहले अपने मायके चली गयी थी. 18 जून मगंलवार की शाम पांच बजे रामकिशुन नशे में धुत होकर आया. मामूली बात पर वह अपने बङे बेटे रामकरन की डंडो से पिटाई करने लगा.

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यह देखकर रामकिशुन के पिता पोते को बचाने के लिये आये. वह लकडी काटने जा रहे थे. उनको हाथ में कुल्हाङी थी. बाबा बाबूलाल ने पोते की पिटाई का विरोध करते हुये एक कुल्हाङी बेटे रामकिशुन को मार दी जिसके बाद उसकी आंखों के पास से खून निकलने लगा. जिसके बाद आगबबूला होकर रामकिशुन ने पिता बाबूलाल की डंडो से पिटाई  शुरू कर दी. रामकिशुन ने पिता का सिर फोङने के साथ ही उनको मरणासन्न अवस्था में छोड कर मौके से भाग निकला.

बाबूलाल की खराब हालत देखकर पोता रामकरन मरणासन्न हालत में बाबा को इलाज के लिये सिसेंडी के निजी हास्पिटल ले गया. जहाँ डाक्टरो के जबाब देने पर सीएचसी मोहनलालगंज लेकर गया. वहा डाक्टरो ने बाबूलाल की हालत गम्भीर देखते हुये लखनऊ के ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया. जहाँ डाक्टरो ने भर्ती कर इलाज भी शुरू किया लेकिन पैसे खत्म होने पर उसने डाक्टर से मिन्नते कर बाबा को डिस्चार्ज कराकर घर ले आया. देर रात एक बजे बुजुर्ग बाबूलाल ने घर पर दम तोङ दिया.

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बुद्ववार की सुबह पोते रामकरन की सूचना के बाद इस्पेक्टंर जीडी शुक्ला पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंचकर मृतक के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिये भेजने के साथ ही आरोपी बेटे रामकिशुन को गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. इस्पेक्टंर जीडी शुक्ला ने बताया मृतक के पोते रामकरन की तहरीर पर उसके पिता रामकिशुन के विरूद्व गैर इरादन हत्या सहित अन्य धाराओ में मुकदमा दर्ज कर आरोपी को हिरासत में लेकर पुछताछ के बाद जेल भेज दिया. अगर रामकिशुन नशे का आदी नहीं होता तो वह पिता की हत्या नहीं करता और उसे जेल नहीं जाना पडता. नशे की आदत ने पूरे परिवार का तबाह कर दिया है.

स्पौंडीलोसिस इलाज आधुनिक तकनीकों से

स्पौंडीलोसिस बीमारी मुख्यतया रीढ़ की हड्डी में अकड़न और डीजैनरेशन से होती है. यह बीमारी वर्टिब्रा या कशेरुका के बीच के कुशन यानी इंटरवर्टिबल डिस्क में कैल्शियम के डीजैनरेशन या किसी चोट के कारण होती है. कशेरुका डिस्क के आकार की 33 हड्डियों से बनी होती है. यह बहुत मजबूत होने के साथसाथ लचीली भी होती है जो सिर से ले कर पेड़ू तक काम करती है. यह न सिर्फ कमर को सहारा देती है, बल्कि पूरे शरीर को भी आधार प्रदान करती है. रीढ़ की हड्डी मेरुदंड को लपेटे रहती है जिस में तंत्रिका टिश्यू और दिमाग को आधार देने वाली कोशिकाएं मौजूद होती हैं. हालांकि लगातार कमर पर वजन पड़ने, गलत मुद्रा में बैठने और डाइट में कैल्शियम की कमी के कारण कमर से जुड़े कई विकार हो सकते हैं, जिन में स्पौंडिलोसिस प्रमुख विकार है.

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कितने तरह के स्पौंडीलोसिस

स्पौंडीलोसिस  को 3 रूपों में बांटा गया है :

सर्वाइकल स्पौंडीलोसिस  : इस विकार में गरदन प्रभावित होती है. गरदन के निचले हिस्से, कंधे और कौलरबोन में दर्द होता है. हालांकि यह बीमारी उम्रदराज लोगों को प्रभावित करती है लेकिन आजकल की अस्वस्थ जीवनशैली, बैठने व कंप्यूटर पर ज्यादा समय तक काम करने की वजह से युवाओं में भी सर्वाइकल स्पौंडीलोसिस  के मामलों में वृद्धि हो रही है. गरदन की स्पाइन में हड्डियों के घिसाव व कार्टिलेज की कमी के चलते सर्वाइकल की समस्या उत्पन्न होने लगती है. इस की वजहें मुख्यतया दुर्घटना में गरदन में चोट आना, लगातार बहुत झुक कर पढ़ना या काम करना, लेट कर पढ़ना या टीवी देखना, व्यायाम न करना, चिंता व संतुलित आहार न लेना हैं. काफी लोग इस बात से अनजान होते हैं कि अधिक समय सिर झुका कर मोबाइल पर बात करने या चैट करने से भी गरदन में दर्द होने लगता है.

लगातार सिर झुकाने से रीढ़ की हड्डी, कर्व और बोनी खंड में बदलाव होने से मुद्रा में बदलाव, मांसपेशियों में अकड़न और दर्द हो सकता है. इस के अलावा सर्दी के मौसम में रीढ़ की हड्डी में दर्द ज्यादा बढ़ जाता है और ज्यादा ठंड में गरदन पर ज्यादा दबाव पड़ता है. अगर समय रहते गरदन के दर्द का पता चल जाए तो दवाओं और फिजियोथैरेपी की मदद से उसे मैनेज किया जा सकता है लेकिन गंभीर स्थिति में सर्जरी की जरूरत पड़ती है.

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लंबर स्पौंडीलोसिस  : इस बीमारी में पीठ का निचला हिस्सा प्रभावित होता है. यह विकार भी युवाओं व अधेड़ लोगों को बहुत ज्यादा प्रभावित कर रहा है. निचला लंबर एरिया ज्यादा भारी यांत्रिक बलों को सहन करता है, इसलिए अन्य क्षेत्रों के मुकाबले इस डिस्क के फेल होने के मामले ज्यादा होते हैं. यह रीढ़ की हड्डी का विकार है. इस स्थिति में अकड़न या झुनझुनाहट, मांसपेशियों में कमजोरी, गंभीर दर्द और दर्द पैरों की ओर जाता है.

गौरतलब है कि सर्वाइकल स्पौंडीलोसिस की तरह इस विकार में भी ज्यादा समय तक डैस्क जौब, तनावपूर्ण जीवनशैली के कारण रीढ़ की हड्डी पर दबाव बढ़ने लगता है और यह विकृति होने लगती है. इस के अलावा डाइट में कैल्शियम की कमी, धूम्रपान, शराब के सेवन और सही मुद्रा में न बैठनेउठने से खासतौर पर युवाओं में रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं.

थोराएसिस स्पौंडीलोसिस  : इस बीमारी में पीठ का ऊपरी व मध्य भाग प्रभावित होता है.

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किसे है ज्यादा जोखिम

आमतौर पर ज्यादातर मामले सर्वाइकल और लंबर स्पौंडीलोसिस  के पाए जाते हैं. थोराएसिस स्पौंडीलोसिस  में लक्षण उभर कर सामने नहीं आते हैं. इस बीमारी के 40 पार पुरुष व महिलाओं में होने का जोखिम होता है. लेकिन आजकल की अस्वस्थ जीवनशैली के चलते युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. दरअसल, शरीर की रीढ़ की हड्डी भी दूसरे अंगों की तरह बेहतर काम करने के लिए बनी है. हालांकि जब पीठ पर बहुत ज्यादा बोझ आ जाता है तो इस में विकृति आनी शुरू हो जाती है जिस से कमर में दर्द रहने लगता है और कई बार यह दर्द गंभीर स्पौंडीलोसिस  में बदल जाता है.

क्या है इलाज

अगर बीमारी की पहचान शुरुआत में ही हो जाए तो दवाओं व फिजियोथैरेपी से ठीक करने की कोशिश की जाती है. लेकिन भारतीय परिवेश में देखा जाए तो हम पीठदर्द को तब तक नजरअंदाज करते हैं जब तक कि वह असहनीय स्थिति में न पहुंच जाए. अकसर लोग दर्द में पेनकिलर्स लेते रहते हैं. दर्द के ज्यादा बढ़ जाने या पेनकिलर दवाओं का असर न होने पर ही लोग डाक्टर से परामर्श लेते हैं. ऐसी स्थिति में कई बार विकार इतना बढ़ चुका होता है कि डाक्टर के पास सर्जरी के अलावा विकल्प नहीं बचता.

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इलाज की नई तकनीक

मैडिकल क्षेत्र में आ रही नईनई तकनीकों के चलते इस समस्या का समाधान संभव है. खासतौर से मिनिमल एक्सेस स्पाइनल तकनीक यानी मास्ट के जरिए रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्या का आसानी से इलाज किया जाता है. मास्ट तकनीक नेविगेशन और नर्व मौनिटरिंग सिस्टम से लैस है. मास्ट तकनीक में कीहोल सर्जरी प्रक्रिया अपनाई जाती है ताकि आसपास की मांसपेशियों को क्षति न पहुंचे. यह रीढ़ की हड्डी की सर्जरी की जटिलता को न सिर्फ कम करती है, बल्कि इस की प्रक्रिया छोटी, सुरक्षित, किफायती व दागमुक्त है. स्पाइन सर्जरियों की तकनीकों में आए नए विकास से सर्जरी के परिणाम बेहतर और सटीक आते हैं.

मिनिमल इनवेसिव स्पाइन सर्जरी

(एमआईएसएस) में एक छोटा सा चीरा लगाया जाता है व मांसपेशियों को फैला दिया जाता है और माइक्रोसर्जिकल तकनीक के जरिए तसवीर देख कर रीढ़ की हड्डी की विकृति को ठीक किया जाता है. पारंपरिक सर्जरी में रीढ़ की हड्डियों के आसपास की मांसपेशियों को काट कर उस में सुरंग जैसा बना कर रीढ़ की हड्डी का जायजा ले कर सर्जरी की जाती थी लेकिन मिनिमल इनवेसिव स्पाइन सर्जरी में मांसपेशियों को फैला कर धीरेधीरे अलग किया जाता है. मास्ट तकनीक द्वारा सर्जरी करने से रोगी को रिकवरी में कम समय लगता है. यह तकनीक दर्द और सर्जरी के बाद जुड़ी जटिलताओं को भी कम करती है. मास्ट सर्जरी में रोगी को बेहतरीन परिणाम मिलते हैं. इस में रोगी को शारीरिक दर्द तो कम होता ही है, साथ ही चीरफाड़ ज्यादा नहीं होती. कम चीरफाड़ करने वाली हड्डी की इस सर्जरी को कीहोल या माइक्रोस्कोपिक सर्जरी भी कहते हैं. इस प्रक्रिया में शरीर में बड़ी चीरफाड़ करने के बजाय मात्र 3-4 छोटे छेद किए जाते हैं.

रीढ़ की हड्डी का औपरेशन करने में मास्ट के उच्चस्तरीय उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. इस से अंदरूनी अंगों को देखने में मदद मिलती है जिस से औपरेशन करने में आसानी होती है और सटीक परिणाम मिलते हैं. इस प्रक्रिया में रोगी की रिकवरी इतनी जल्दी होती है कि उसे उसी दिन या अगले दिन चलने की सलाह दी जाती है और हफ्ते के भीतर रोगी अपने रोजमर्रा के काम कर सकता है. बस, 6 हफ्ते तक भारी चीजें उठाने का परहेज किया जाता है. आम औपरेशन के बाद सर्जरी के निशान दिखाई देते हैं जिस के चलते रोगी पर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ते हैं लेकिन इस तकनीक में रोगी के शरीर पर कोई निशान नहीं पड़ता जिस से वे बेहिचक किसी भी तरह के कपडे़ पहन सकते हैं.

रीढ़ की हड्डी का औपरेशन करने में मास्ट के अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. मरीज के अंदरूनी भागों को आसानी से देखा जा सकता है, जिस से औपरेशन करने में सटीक परिणाम मिलते हैं.

मास्ट तकनीक के फायदे

  1. इस से रोगी की जल्दी रिकवरी होती है और वह उसी दिन या दूसरे दिन चलफिर सकता है.
  2. इस प्रक्रिया में खून का कम नुकसान होता है जिस से रोगी को तनाव कम होता है.
  3. इस से संक्रमण होने का खतरा कम रहता है.
  4. शरीर पर निशान नाममात्र होते हैं.
  5. रीढ़ की हड्डी के टिश्यू और मांसपेशियों का नुकसान कम होता है.
  6. औपरेशन के बाद रोगी को दर्द कम होता है.
  7. जल्द ही रोगी रोजमर्रा की जिंदगी के काम करने में सक्षम होता है.
    (लेखक बीएलके अस्पताल, नई दिल्ली में स्पाइन सर्जरी के कंस्ल्टैंट हैं.) 

उत्तर प्रदेश : गुस्सा जाहिर करती जनता

त्रेता युग के रामराज में सरकार के लोग वेशभूषा बदल कर जनता के दुखदर्द को राजा तक पहुंचाने का काम करते थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रामराज में जनता अब गुस्सा जाहिर करने लगी है. गुस्सा जाहिर करने के लिए जनता अपनी जान को भी दांव पर लगाने से परहेज नहीं कर रही है. अपनी आवाज को सरकार तक पहुंचाने के लिए लोग विधानसभा भवन और भाजपा कार्यालय के सामने आत्मदाह करने लगे हैं. आत्मदाह की आधा दर्जन घटनाएं इस का सुबूत हैं.

अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद प्रदेश में रामराज बनाने का दावा फेल हो चुका है. जनता की बात नहीं सुनी जा रही जिस से भड़के लोग आत्मदाह का रास्ता चुन रहे हैं.

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उत्तर प्रदेश के विधानसभा भवन, लोकभवन और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय के बीच 200 मीटर की लंबी सड़क आत्मदाह का केंद्र बन गई है. हाई सिक्योरिटी जोन में विधानसभा के चारों तरफ 650 वर्गमीटर का विशेष निगरानी घेरा बनाया गया है. यहां के चप्पेचप्पे पर अत्याधुनिक साधनों से लैस पुलिस लगाई गई है. पुलिस को गच्चा देने के लिए पीड़ित पक्ष ने आत्मदाह की जगह वहीं पर बड़ी मात्रा मे नींद की गोलियां खा कर जान देने की कोशिश शुरू कर दी. अक्तूबर महीने में विधानसभा भवन के सामने इस तरह की 6 घटनाएं घट चुकी हैं.

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4 मामलों में आग लगा कर जान देने की कोशिश की गई जिस में 2 औरतों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. विधानसभा भवन और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय अपनी दुखभरी दास्तान कहने के लिए हौट स्पौट बन गया है.

विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह की घटनाएं अनलौक 2 के बाद से तेज हुई. 17 जुलाई को अमेठी की रहने वाली सोफिया और उस की बेटी ने खुद को आग लगा ली. सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान सोफिया की मौत हो गई. 13 अक्तूबर को महाराजगंज जिले की रहले वाली अजंलि तिवारी उर्फ आयशा ने भाजपा प्रदेश कार्यालय के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. जली अवस्था में पुलिस ने सिविल अस्पताल में भरती कराया, जहां उस की मौत हो गई. 19 अक्तूबर को लखनऊ के ही हुसैनगंज इलाके के रहने वाले सुरेंद्र चक्रवर्ती ने आत्मदाह करने की कोशिश की. इसी दिन बाराबंकी का रहने वाला परिवार भी आत्मदाह के इरादे से विधानसभा भवन के सामने पहुंचा था. उसे पुलिस ने पहले ही पकड़ लिया था. 22 अक्तूबर को बेबी खान नामक औरत नींद की गोलियां खा कर बदहवास हालत में विधानसभा गेट के सामने पहुंची, पर पुलिस ने उस को भी पकड़ लिया था.

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कोई नहीं सुनता दर्द

जैसेजैसे सरकार ने जनता की आवाज को सुनना बंद कर दिया है, वैसेवैसे इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. फिल्म ‘शोले‘ में पानी की टंकी के उपर चढ़ कर बसंती से मिलने की जिद को सभी ने देखा था. अखिलेश सरकार में परेशान एक नौजवान विधानसभा भवन के सामने पेड़ पर चढ़ कर फांसी लगाने की जिद कर रहा था.

आत्मदाह करने वाले सुरेंद्र चक्रवर्ती डायमंड डेरी कालोनी में जावेद के घर में किराए के मकान में रहता था. वह फोटोकौपी मशीन का कारोबार करता था. साल 2013 से मकान के किराए को ले कर विवाद चल रहा था.

‘तालाबंदी‘ के दौरान बेरोजगारी बढ़ने से सुरेंद्र बेहद परेशान था. ऐसे में जब मकान मालिक ने उस का सामान घर से निकाल कर सड़क पर फेंक दिया, तब आर्थिक तंगी में उसे विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने का रास्ता ही समझ आया.

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लखनऊ के सिविल अस्पताल में भरती सुरेंद्र चक्रवर्ती ने बताया, ‘मेरा किराएदारी का मुकदमा चल रहा था. ऐसे में मेरे सामान को जब घर से बाहर फेंक दिया गया, तो मेरे सामने कोई रास्ता नहीं था. पुलिस भी मेरी बात सुन नहीं रही थी. वह मकान मालिक के दबाव में थी. मैं कब तक चुप रहता.

‘मुझे लगा कि अब जान की कीमत पर ही सही पर गूंगेबहरे प्रशासन के सामने अपनी बात कहनी है. मेरे घर से विधानसभा की दूरी एक किलोमीटर थी. मुझे लगा कि अगर सरकार के सामने अपनी आवाज उठाई जाए तो शायद वह मेरी पीड़ा सुन सकेगी. ऐसे में विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने का फैसला किया.‘

बाराबंकी के रहने वाला नसीर और उस का परिवार भी विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने पहुंचा था, पर पुलिस ने पहले ही पकड़ लिया. नसीर सरकारी जमीन पर दुकान लगाता था. नगरनिगम ने दुकान तोड़ दी. परेशान नसीर को कुछ समझ नहीं आया तो सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उस ने यह रास्ता चुना था.

लखनऊ के राजाजीपुरम की रहने वाली बेबी खान का भाई अपराधी था. पुलिस उसे पकड़ने घर जाती थी. जब वह नहीं मिलता था, तो पुलिस घर वालों के साथ गालीगलौज और बदतमीजी करती थी. पुलिस की इस हरकत से बचने के लिए उस ने यह कदम उठाया.

लखनऊ के ही सिविल अस्पताल में भरती बेबी खान ने बताया, ‘मेरे भाई को पुलिस परेशान कर रही थी. उसे पुराने मुकदमों की धमकी दे कर जेल भेजने के लिए पकड़ने की कोशिश कर रही थी. भाई का मेरे घर किसी भी तरह से कोई आनाजाना नहीं था. इस के बाद भी हर दूसरेतीसरे दिन पुलिस हमारे घर पहुंच जाती थी. पुलिस अकसर रात को घर जाती थी.

‘हम जिस महल्ले में रहते हैं वहां बदनामी होती थी. हम ने कई बार पुलिस को समझाने की कोशिश की कि हम से उस का कोई मतलब नहीं है. ऐसे में उलटे पुलिस हमें ही धमकी दे रही थी. ऐसी बदनामी से बचने के लिए ही हम ने विधानसभा और भाजपा के औफिस के सामने जान देने का संकल्प ले लिया था.’

महाराजगंज की रहने वाली अंजलि तिवारी उर्फ आयशा छत्तीसगढ की रहने वाली थी. महाराजगंज के अखिलेश के साथ उस की शादी हुई. इस के बाद दोनों में विवाद हो गया और वे अलग हो गए.

अंजलि ने मोहम्मद आलम के साथ निकाह किया और आयशा बन कर उस के साथ रहने लगी. कुछ दिन के बाद आलम नौकरी करने अरब चला गया तो उस के घर वालों ने आयशा को ससुराल से निकाल दिया. अंजलि ने पुलिस में शिकायत की तो पुलिस ने सुना नहीं, लिहाजा उस ने आत्मदाह करने का फैसला लिया.

युद्ध सी तैयारी

आत्मदाह की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस को युद्ध की सी तैयारी करनी पड़ी है. विधानसभा भवन और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय के सामने आत्मदाह और जान देने की घटनाओं को रोकने के लिए हर 10 कदम पर पुलिस लगा दी गई है.

पुलिस आयुक्त सुजीत कुमार पांडेय बताते हैं, ‘इस क्षेत्र में आनेजाने वालों पर नजर रखी जा रही है. पुलिस के साथ अग्निशमन वाहन, आग बुझाने के उपकरण, कंबल और एंबुलैंस का इंतजाम किया गया है. इस के साथ सभी थानों को हाई अलर्ट भेजा गया है, जिस में आत्मदाह की धमकी देने वालो की सूचनाएं जमा करने और जरूरी कार्यवाही करने के लिए कहा गया है.’

विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह जैसी घटनाओं को रोकने के लिए 18 पुलिस टीमों को तैनात किया गया है. इस के अलावा 50 कंबल, 15 अग्निशमन उपकरण, 4 दोपहिया वाहन, 3 चार पहिया वाहन, एक अग्निशमन वाहन और एक एंबुलैंस वाहन तैनात किया गया है.

विधानसभा भवन लखनऊ के चारबाग से हजरतगंज मुख्य मार्ग पर बना है. मुख्य सड़क मार्ग होने के चलते यहां पर यातायात खूब रहता है. अब यह मार्ग रात के समय बंद कर दिया गया है. सुबह 6 बजे से यह मार्ग यातायात के लिए खोला जाता है. शनिवार और रविवार को यह रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया गया है.

बढ़ रहा है असंतोष

वरिष्ठ पत्रकार योगेश श्रीवास्तव कहते है, ‘सभी घटनाओं की विवेचना करें तो एक बात साफतौर पर दिखती है कि व्यवस्था के प्रति जनता में अंसतोष बढ़ता जा रहा है. लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वह किस से अपनी बात कहे. थानों में पुलिस अपनी मनमानी करती है. कई बार वह आरोपी के साथ मिल कर पीड़ित के ऊपर ही दबाव बनाने लगती है. अपराध की तमाम घटनाओ में यह बात सामने आती है. उन्नाव के चर्चित रेप कांड, जिस में भाजपा के विधायक रहे कुलदीप सेंगर पर आरोप था, में भी जब उन्नाव की पुलिस ने लड़की की बात नहीं सुनी तो लड़की ने मुख्यमंत्री आवास के पास आत्मदाह करने की कोशिश की थी. उस के बाद उस के मामले में पुलिस ने सुनवाई शुरू की थी.

‘यह घटनाएं देखदेख कर दूसरे परेशान लोगों को भी यही रास्ता सरल लगता है जिस से ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं.’

4 पीएम अखबार के संपादक संजय शर्मा कहते हैं, ‘पुलिस नहीं सुनती तो लोग अपने जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों, सांसद और विधायक के पास फरियाद ले कर जाते हैं. पिछले दिनों पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी और उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य राज्य मंत्री अतुल गर्ग के 2 फोन ओडियो वायरल हुए, जिन में उन्होंने पीड़ितों की बात नहीं सुनी. उन्हें बुराभला कहा. वे पीडित दोनों मामलों में अपने परिजनो के अस्पताल में भरती होने का दर्द बता कर मदद मांगने गए थे.

‘जब पीड़ित जनता की बात नहीं सुनी जाती तो उसे अपनी बात सुनवाने के लिए यह रास्ता ही दिखता है, जिस की वजह से इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं.’

मनोविज्ञानी समाजसेवी डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘इस तरह के मामलों में जिस तरह से मीडिया रिपोर्टिंग करने लगी है उस में भी संवदेनशीलता की जरूरत है. मीडिया का समाज पर बहुत असर पड़ता है. इन घटनाओं को देख कर लगता है कि अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का यह सब से आसान रास्ता है.

‘अगर लोगो को शुरुआती लैवल पर सुन लिया जाए और परेशानी को दूर कर दिया जाए तो लोग ऐसे कदम कम उठाएंगे. इस तरह के काम पहले भी होते रहे हैं.’

बिग बॉस 14: राहुल के सपोर्ट में उतरी काम्या पंजाबी और देबीना बनर्जी, जैस्मिन को बताया फेक

बिग बॉस 14 में अब हर रोज नए –नए ड्रामे होने शुरू हो गए है. इस ड्रामे ने पूरी दुनिया में हलचल मचाने शुरु कर दिए हैं.  राहुल वैद्या और जैस्मिन के लड़ाई पर अब बाहरी कलाकार भी अपनी प्रतिक्रिया देने लगे हैं.

बता दें कि जैस्मिन और राहुल वैद्या के बीच लंबे समय से लड़ाई चल रही है. लेकि कैप्टेंसी के टास्क पर दोनों एक- दूसरे पर भड़क गए थें. कैप्टेंसी के टास्क कै दौरान राहुल वैद्या ने जोर-जबरदस्ती से बैग छीन लिया था. जिसके बाद जैस्मिन पूरे घर में हंगामा मचाती नजर आई थीं.

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वहीं पिछले एपिसोड में जैस्मिन भसीन ने राहुल वैद्या पर पानी फेंककर अपना गुस्सा जाहिर की थी. वहीं टीवी जगत के कई कलाकार जैस्मिन भसीन के हरकतों को बचकाना बताया है. इन कलाकारों का कहना है कि राहुल वैद्या अपना टास्क पूरा कर रहे थें.

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जैस्मिन भसीन हमेशा से हारे के बाद अपनी हार को स्वीकार करने की जगह अपनी गलती पर गुस्सा दिखाती हैं. काम्या पंजाबी ने राहुल को सपोर्ट करते हुए ट्विट किया है कि राहुल तुम गलत नहीं हो.


वहीं जयभानुशाली और देबीना ने भी ट्विट करते हुए राहुल को सपोर्ट किया है. इसके अलावा टीवी जगत के और भी कई कलाकार है जो राहुल के सपोर्ट में उतर आएं है.

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हालांकि जैस्मिन भी अपनी जिद् के आगे किसी की सुनती नहीं हैं. हर दिन बिग बॉस के घर के अंदर हो रहे ड्रामे में कुछ नया ट्विस्ट जरूर होता है. वहीं आज रात का शो बहुत ज्यादा मजेदार होने वाला है. आज के इस एपिसोड में दिखाया जाएगा कि राहुल वैद्या खुलेआम जस्मिन को गलत ठहराएंगे. जिसे सुनने के बाद जैस्मिन गुस्से से आग बबूला हो जाएंगी.

संजय दत्त ने लंग कैसर को हराने के बाद बदला अपना लुक, फैंस बोले ‘बाबा इज बैक’

संजय दत्त पिछले कुछ समय से कैंसर जैसे गंभीर बीमारी से जुझ रहे थें. संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त ने इस बात की जानकारी कुछ समय पहले ही दिया था कि संजय दत्त अब खतरे से बाहर है. संजय दत्त के इस खबर के बाहर आते ही फैंस के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ आई है.

संजय दत्त कैंसर के जंग को जीतने के बाद अपना लुक भी बदल लिया है. जिसे देखने के बाद फैंस कमेंट कर रहे हैं बाबा इज बैक. संजय दत्त हमेशा काले बाल में नजर आते थे लेकिन अब उन्होंने अपने बाल का रंग सफेद करवा लिया है.

Gorgeousness overload

 

 

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Gearing up for #Adheera!⚔️ #KGFChapter2

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संजय दत्त के नए लुक की तस्वीर उनके जाने माने हेयर डिजाइनर ने अपे इंस्टाग्राम पोस्ट पर शेयर किया है. फैंस को संजय दत्त का नया लुक खूब पसंद आ रहा है. संजय दत्त के नए लुक को देखे के बाद फैंस लगातार कमेंट किए जा रहे हैं.

 

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Thank you for always being a constant in my life. I wish you all the happiness of the world. Happy Birthday @priyadutt ❤️

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संजय दत्त इस लुक में अपने हेयर डिजाइनर के साथ भी पोज देते जर आ रहे हैं. वहीं खबर ये भी आ रही है कि संजय दत्त जल्द ही अपनी अपकमिंग फिल्म केजीएफ 2 की शूटिंग शुरू करने वाले हैं. इस फिल्म में वह खलनायक और अधीरा के किरदार में नजर आने वाले हैं.

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बता दें कि हाल ही में संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त ने अपने बच्चों का जन्मदिन मनाया था. जिसे उन्होंने दुबई में सेलिब्रेट किया था. हालांकि उस दौरान संजय दत्त वहां मौजूद नहीं थें. संजय दत्त वीडियो कॉल के दौरान लगातार अपने बच्चों के साथ बने हुए थें.

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संजय दत्त की पत्नी ने इस बात की जानकारी देते हुए बच्चों का जन्मदिन मनाया था कि अब उनके पति खतरे से बाहर है इसलिए वह इस दिन को सेलिब्रेट कर रहे हैं. संजय दत्त अपने बच्चों को खूब मिस कर रहे थें.

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली हरकत कर रहा है राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने पिछले दिनों 8 राज्यों- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मिजोरम, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और मेघालय को निर्देश दिया है कि वे अपने यहां बाल संरक्षण गृहों में रह रहे बच्चों को उनके परिवार के पास वापस भेजना सुनिश्चित करें. गौरतलब है कि भारत में जितने बच्चे बाल संरक्षण गृहों में रह रहे हैं, उनमें 70 फीसदी बच्चे अकेले इन्हीं 8 राज्यों के बाल संरक्षण गृहों में रह रहे हैं. वैसे देशभर के बाल संरक्षण गृहों में कुल 2,56,000 बच्चे रहे रहे हैं. इन संरक्षण गृहों में बच्चों को तब लाया जाता है, जब वे अपने घरों में या जहां वे रह रहे हैं, वहां शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से वे सुरक्षित न हों. ऐसे में एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो का यह निर्देश कि 100 दिनों के भीतर संरक्षण गृहों से बच्चों को वापस उनके घर भेजा जाना जिलाधिकारी और कलेक्टर सुनिश्चित करें,एक निहायत  अटपटा किस्म का आदेश है.

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क्योंकि अगर ये बच्चे जहां रह रहे हैं, वहां सुरक्षित होते या उन्हें किसी किस्म की शिकायत न होती तो भला यहां आते ही क्यों? शायद यही वजह है कि देशभर के 788 मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं ने एक खुला पत्र लिखकर एनसीपीसीआर के इस प्रस्ताव का विरोध किया है. यह विरोध इसलिए वाजिब है क्योंकि इस कोरोना महामारी के समय, जहां वे बच्चे तक अपने घरों में सुरक्षित नहीं हैं, जिन्हें किसी किस्म की शारीरिक या भावनात्मक असुरक्षा नहीं है, वहीं ऐसे बच्चों को वापस उन घरों में भेजना कितना न्याय संगत होगा,जहां से उन्हें उनकी तमाम तरह की असुरक्षाओं को ध्यान में रखते हुए ही निकाला गया था ? साल 2015 में एनसीपीसीआर ने बच्चों के संरक्षण के लिए जो कानून बनाया था,यह निर्देश उस कानून की मूलभावना का उल्लंघन है.

गौरतलब है कि साल 2018-19 में 7,164 चाइल्ड केयर संस्थाओं के सोशल ऑडिट से मालूम हुआ था कि इनमें 2,56,369 बच्चे रह रहे हैं. कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों में निर्धारित सीमा से अधिक बच्चे शेल्टर्स में रह रहे हैं. इसमें शक नहीं है कि बच्चों को केयर व सुरक्षा की जरूरत है और ये आवश्यकताएं रोजाना के आधार पर बदलती रहती हैं. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि शेल्टर्स में भी बच्चों के साथ कोई खास अच्छा सलूक नहीं होता.

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इस साल सितम्बर में सरकार ने स्वयं संसद में स्वीकार किया कि 2017-18 व 2019-20 के बीच यानी पिछले तीन वर्ष के दौरान एनसीपीसीआर को शेल्टर्स में बच्चों के साथ यातना, यौन शोषण व हिंसा की 41 गंभीर शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से सबसे ज्यादा (14) उत्तर प्रदेश से इसके बाद बिहार व मध्य प्रदेश से 8-8 और दिल्ली से सात थीं.लेकिन क्या इसके बावजूद इस कोविड-19 महामारी में बच्चों को शेल्टर्स से उनके घर वापस भेजना ठीक होगा? जवाब है नहीं.

सवाल है,जब एनसीपीसीआर बच्चों की इन तमाम समस्याओं को भली भांति जानता है, तो फिर उन्हें उन्हीं पारिवारिक स्थितियों में क्यों भेजना चाहता है, जहां वह ऐसी स्थितियों का शिकार हुए थे. यह कहने में बहुत आसान है कि बच्चे अपने घर में ज्यादा सुरक्षित होते हैं. लेकिन वे अपने घर में सुरक्षित नहीं थे, तभी तो वहां से निकाले गये और अब जब वापस उन्हीं घरों में जाएंगे तो एक तो वह जिनके संरक्षण में रहेंगे, वे भला अब क्यों उन्हें प्रताड़ित करने से डरेंगे. लेकिन इससे भी बड़ी समस्या इन बच्चों के अंदर उन्हीं घरों में वापस जाने से, जहां से वे यहां आये थे, यह होगी कि उनका आत्मविश्वास बिल्कुल टूट जायेगा. वह हर पल दहशत में जीएंगे.

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इस संबंध में एनसीपीसीआर बहुत मासूम सा तर्क देता है कि वह इन बच्चों को उनके परिवार से मिलाना चाहता है. लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या इन बच्चों को बिना किसी समस्या के उनके घरों से निकालकर बाल संरक्षण घरों में रखा गया था? राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग पता नहीं क्यों उस हकीकत को नहीं समझना चाहता, जिसके चलते यह व्यवस्था की गई है? एनसीपीसीआर तमाम बाल मानवाधिकार संगठनों की अनसुनी करते हुए उन राज्यों में  जिला अधिकारियों और कलेक्टरों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि उसके आदेश का पालन हो. जब बार बार बाल मानवाधिकार संगठन इसके लिए चिंता जताते हैं, तो एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो कहते हैं कि जिन बच्चों को उनके घर भेजा जाना संभव न हो, उन्हें गोद देने की प्रक्रिया शुरु कर दी जाए.

इस तरह के विकल्पों से लगता है जैसे एनसीपीसीआर बजिद है कि बच्चों को बाल संरक्षण घरों में न रखा जाए; क्योंकि उसके मुताबिक वहां बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. यह लगभग वैसा ही तर्क है कि चूंकि पुलिस के द्वारा अपराध रोके जा सकने संभव नहीं हो रहे तो क्यों न पुलिस को डिसमिस कर दिया जाना चाहिए. हैरानी की बात यह है कि जिन तर्कों से एनसीपीसीआर को खुद सोचना चाहिए कि आखिर बच्चों को संरक्षण घरों में रखने की जरूरत क्यों पड़ती है? उल्टे उन्हीं तर्कों से वो बच्चों को यहां न रखने की वकालत कर रहे हैं.

प्रियांक कानूनगो के मुताबिक यह उस राष्ट्र की विफलता होती है, जिसके बच्चों को बाल संरक्षणगृहों में रहना पड़े. निश्चित रूप से वो सही कह रहे हैं, लेकिन क्या जिन घरों में बच्चे असुरक्षित थे, पीड़ित थे, वहां बिना यह सुनिश्चित किये कि स्थितियां कैसी हैं, वापस भेजना कोई समझदारी या राष्ट्रीय गौरव का विषय होगा?

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दरअसल ऐसे मामलों को भौतिक तर्कों की बजाय संवेदनशीलता के आईने में देखना चाहिए. लेकिन संकट ये है कि पिछले कुछ सालों से तमाम संस्थान किसी मामले में तभी संवेदनशील होते हैं, जब ऐसा होने के लिए उन्हें ऊपर से आदेश मिलता है, वरना तो वह कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. बाल संरक्षण गृहों में बच्चों को दोबारा सख्ती के साथ भेजना उनके प्रति कोई अच्छी भावना नहीं बल्कि संवेदनहीनता है.

फिटनैस हैजिटेशन: न बाबा न

रोज की तरह अपनी सोसायटी के कम्युनिटी पार्क में सैर पर निकलीं माहम और शुभ्रा अचानक एक लेडी फिटनैस ट्रेनर को पार्क में कुछ लोगों को योग व फिटनैस मंत्र सिखाते देख चौंकीं. इस कक्षा में युवकों, अधेड़ों के साथसाथ कुछ युवतियां व बड़ी उम्र की महिलाएं भी शामिल थीं. शुभ्रा को झकझोरते हुए माहम बोली, ‘‘शुभ्रा, चल बात करते हैं उस लेडी टीचर से. मैं तो कब से यह चाह रही थी कि कोई लेडी टीचर आए और हमें योग व फिटनैस के मंत्र दे. देख आज हमें अपने ही पार्क में सुनहरा अवसर मिल रहा है.’’

इस पर शुभ्रा के मन में भी योग कक्षा में शामिल होने की इच्छा तो जागी लेकिन वह हैजिटेशन करती बोली, ‘‘न बाबा न, मैं नहीं जाती.’’ शुभ्रा की बात सुन कर माहम भी हैजिटेट हुई और बोली, ‘‘तू ठीक कहती है शुभ्रा, भला इतने युवकों व अधेड़ों के बीच हम सहजता से ऐक्सरसाइज कैसे कर पाएंगी?’’ कहते हुए दोनों आगे बढ़ गईं. शुभ्रा और माहम जैसी युवतियां अपनी तंदुरुस्ती के प्रति सतर्क होने के बावजूद हैजिटेशन की शिकार हो कर मनचाही गतिविधियों में शामिल नहीं हो पातीं. एक आंकड़े के मुताबिक 60-70% युवतियां सिर्फ संकोच की वजह से ही अपनी सेहत को ले कर लापरवाह रहती हैं.

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ऐसे में अकसर कहा जाता है कि पारंपरिक भारतीय परिवेश में युवतियों के लिए फिटनैस और सेहत की आजमाइश मुफीद नहीं, वे तो घरपरिवार संभालते ही ज्यादा अच्छी लगती हैं. इस वाक्य को बहुत हद तक युवतियों की अपनी सेहत और फिटनैस के प्रति झिझक ने भी हवा दी है. आज भी जब हम देखते हैं कि जिम, व्यायामशालाएं, ऐरोबिक्स और योग कक्षाओं में युवकों के मुकाबले युवतियों की गिनती उंगली पर की जा सकती है, सोचने पर विवश हो जाते हैं कि आखिर युवतियों में इतनी फिटनैस हैजिटेशन क्यों?

हालांकि पहले की अपेक्षा युवतियां अपनी सेहत और फिटनैस को ले कर काफी सजग व सतर्क हो रही हैं पर अभी भी युवतियों का एक बड़ा तबका ऐसा है जो सिर्फ झिझक और संकोच के मारे खुद को ऐसी कक्षाओं और फिटनैस सैंटर्स से दूर रखे हुए है. मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक सुझाव के बावजूद अधिकतर युवतियां फिटनैस क्लासेस से खुद को इसलिए नहीं जोड़ पातीं, क्योंकि उन के भीतर हैजिटेशन और ‘फन फियर’ होता है कि कोई उन का मजाक न उड़ा दे.

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बात फिटनैस की हो तो संकोच कैसा

आखिर सेहतमंद और सुंदर काया पाने का अधिकार सभी को है, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री. कहा भी गया है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का वास होता है तो फिर अपनी फिटनैस के प्रति ऐसी लापरवाही क्यों? सजग, सतर्क और चुस्त बनें और जीवन में आगे बढ़ें. अगर आप स्वस्थ रहेंगी तो आप में आत्मविश्वास भी जगेगा और आप अपने परिवार को सूझबूझ और कौशल के साथ प्रगति पथ पर आगे बढ़ाते हुए प्रशंसा की पात्र भी बनेंगी. वहीं अगर मन ही बुझाबुझा, थका व निष्क्रिय होगा तो परिणाम भी वैसे ही मिलेंगे. कहने का तात्पर्य यह है कि जब युवक इतनी सजगता के साथ अपनी सेहत और फिटनैस का खयाल रख सकते हैं तो युवतियां भला क्यों पीछे रहें. आखिर आप की काया आप की अनमोल संपत्ति है, जिस की सुरक्षा व तंदुरुस्ती का खयाल आप कोही रखना होगा, तो फिर तोड़ डालिए संकोच की इस दीवार को और अपने शरीर को सेहतमंद रखने की जुगत में जुट जाइए, आज और अभी से.

सैर पर जाएं, तो इन्हें नजरअंदाज करें

पार्क को गौसिप का अड्डा न बनाएं : अकसर युवतियां घर से सैर पर निकलती हैं लेकिन पार्क में पहुंच कर घरगृहस्थी की समस्याओं, पारिवारिक क्लेशों जैसी बेवजह की अर्थहीन गौसिप में लग जाती हैं, जिस के कारण ऐक्सरसाइज पीछे छूट जाती है और गपबाजी अहम हो जाती है. अत: कोशिश करें कि फिट रहने का जो मूल प्रयोजन है उसे सार्थक करें.

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समूह में जाने के बजाय अकेली सैर पर जाएं : समूह या झुंड में सैर पर जाने के बजाय कोशिश करें कि अकेली सैर पर जाएं. समूह या साथी के साथ सैर पर जाने से आप का ध्यान बातचीत या दूसरी ओर बंटा रहेगा. अकेली होंगी तो खुद पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर पाएंगी, जिस के सार्थक परिणाम निकलेंगे.

अवसर न गंवाएं :  शुभ्रा और माहम की भांति आप भी दूर खड़ी रह कर कातर निगाहों से सब को फिटनैस का पाठ पढ़ते बस देखती न रहें बल्कि आसपास जहां कहीं भी आप को योग या व्यायाम करने का अवसर मिले तो उसे गंवाएं नहीं. इस में संकोच कैसा? हैजिटेशन दूर कर पूरे मनोयोग से फिटनैस मंत्र सीखें.

पहल करने से न चूकें : कई बार अवसर उपलब्ध नहीं होते तो पहल भी करनी पड़ती है. अगर आप के क्षेत्र में या आसपास कोई फिटनैस सैंटर नहीं है तो इस के लिए आगे बढ़ कर आप खुद प्रयास कर सकती हैं. चाहें तो आरडब्लूए के सदस्यों से बात कर फिटनैस सैंटर की व्यवस्था करवाएं. आजकल तो एमएलए और ब्लौक स्तर पर वार्ड कमिशनर्स द्वारा उन के विकास फंड से उन के अपने विधानसभा क्षेत्र में मुफ्त में फिटनैस सैंटर्स खोले जा रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर के बहुत से योग व फिटनैस प्रशिक्षण संस्थान हैं जो समुचित संसाधन उपलब्ध कराने पर आप के क्षेत्र में प्रशिक्षण दे सकते हैं. इस के लिए भी कोशिश की जा सकती है.

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संकोच छोड़ें, सेहत के प्रति सजग बनें

चूंकि सेहत को ले कर आज हर कोई फिक्रमंद है चाहे पुरुष हो या स्त्री. आप भी अपनी सेहत के प्रति सजग बनें और बिना हैजिटेशन फिटनैस सैंटर जाएं व खुले दिमाग से मनमाफिक स्टैप्स करें. हो सकता है शुरू में लोग आप पर हंसें या मजाक बनाएं पर उन्हें नजरअंदाज कर आप व्यायाम करें. कल को यही लोग आप को सराहेंगे. इसलिए डिगें नहीं और न ही अपना आत्मविश्वास खोएं. बीत गए वे दिन जब युवतियां हीनभावना, कुंठा के कारण संकोचवश मनमाफिक खेलकूद या अन्य गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पाती थीं. आज शरीर को आकर्षक व फिट रखने के लिए युवतियों ने स्वयं ही आगे बढ़ कर अपने लिए तंदुरुस्ती के दरवाजे खोल लिए हैं. हैल्थ के प्रति युवतियों की बढ़ती जागरूकता ने यह साबित कर दिया है कि अच्छी हैल्थ सिर्फ युवकों की बपौती नहीं. अत: फिटनैस के मामले में संकोच, झिझक को कहें ना और सेहत को कहें हां.

निराईगुड़ाई को आसान बनाते कृषि यंत्र

आज के समय में खेती करने के तौरतरीकों में खासा बदलाव आ चुका?है. पारंपरिक तरीके से की जाने वाली खेती में अब मशीनों का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है, जिस से फसल उत्पादन में तो बढ़ोतरी हो ही रही?है, खर्चा भी कम हो रहा है और फसल की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है. निराईगुड़ाई के काम में पहले किसानों का पूरा परिवार खेत में जुट जाता था. जरूरत होने पर बाहर के मजदूरों से भी काम लेना पड़ जाता था, जिस से मजदूरी भी बढ़ जाती थी. इस काम को करने के लिए कईकई दिन लग जाते थे, लेकिन अब निराईगुड़ाई के लिए हाथ से चलने वाली मशीनों से ले कर ट्रैक्टर में जोड़ कर चलने वाले तमाम यंत्र बाजार में मौजूद हैं. इन यंत्रों को किसान अपनी जरूरत के हिसाब से खरीद सकते हैं. छोटे जोत वाले किसानों के लिए कम कीमत वाले यंत्र और बड़े किसानों के लिए बड़े यंत्र बाजार में तैयार मिलते?हैं. इन को किसान अपनी जरूरत और पसंद के मुताबिक ले सकते?हैं.

सब से पहले किसान यह जान लें कि निराईगुड़ाई करने वाले यंत्रों का इस्तेमाल कतार में बोई जाने वाली फसलों में ही होता?है. इसलिए कोशिश करें कि फसल को कतारों में ही बोएं यानी छिटकवां तरीके से बीज न बोएं. कतार में बोने से बीजों की बचत के साथसाथ पैदावार भी अच्छी होती?है और फसल की देखरेख के साथसाथ दूसरे काम भी बेहतर तरीके से होते?हैं.

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ट्रेकआन कल्टीवेटर कम वीडर

अमर हैड एंड गीयर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी द्वारा बनाया गया यह यंत्र गन्ना, कपास, मैंथा, फूल, पपीता और केले की फसलों व दूसरी कतार वाली फसलों की निराईगुड़ाई व खाद मिलाने के काम आता है. यह यंत्र पहाड़ी इलाकों में कृषि व बागानों के काम के लिए भी कारगर है. इस से खेती करना आसान हो जाता?है और निराईगुड़ाई का खर्च तकरीबन 30 से 40 रुपए प्रति बीघा आता है. यह कल्टीवेटर कम वीडर 2 माडलों में मौजूद है. पहला मौडल टीके160पी पेट्रोल से चलने वाला है व दूसरा मौडल टीके 200के मिट्टी के तेल यानी केरोसिन से चलने वाला है. दोनों में 4 स्ट्रोक इंजन हैं. इस में 4.8 हार्सपावर का इंजन लगा है. इस में लगे रोटर की चौड़ाई 12 से 18 इंच तक है. इस यंत्र का वजन तकरीबन 80 किलोग्राम है.

यह यंत्र अपनेआप आगे की ओर खेत तैयार करता हुआ चलता है. मशीन को धकेलना नहीं पड़ता है. जरूरत के मुताबिक रोटर की चौड़ाई व गहराई घटाईबढ़ाई जा सकती है. इस यंत्र से जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिए अमर हैड एंड गीयर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी के मोबाइल नंबरों 09412782074, 9412703140 और फोन नंबर 0121-2514056 पर बात कर सकते?हैं.

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पूसा वीडर

यह निराईगुड़ाई के लिए बहुत कम कीमत में मौजूद है. 8 किलोग्राम वजन वाले इस साधारण यंत्र से भी निराईगुड़ाई का काम किया जाता है. यंत्र में लगे हैंडल को अपनी सुविधानुसार ऊपरनीचे एडजस्ट कर सकते हैं. इस यंत्र को खड़े हो कर ही चलाया जाता है.

पूसा 4 पहिए का वीडर

इस यंत्र में निराईगुड़ाई करने के लिए 30 सेंटीमीटर चौड़ा फाल लगा है. इस यंत्र से 40 सेंटीमीटर या उस से ज्यादा कतार से कतार की दूरी वाली फसलों की गुड़ाई कर सकते हैं. यंत्र का वजन तकरीबन 12 किलोग्राम है. खड़े हो कर 1 व्यक्ति द्वारा इसे चलाया जाता है. हाथ से चला कर गुड़ाई करने वाले ये दोनों यंत्र भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली द्वारा बनाए गए हैं. इन के लिए आप इस संस्थान के कृषि अभियांत्रिकी विभाग से संपर्क कर के पूरी जानकारी ले सकते?हैं. वैसे इस प्रकार के यंत्र कई आम मशीन निर्माता भी बनाते हैं. इस बारे में अपने आसपास भी कृषि मशीन बनाने वालों से पता कर सकते हैं, क्योंकि यह बहुत ही साधारण यंत्र है.

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पावर टिलर चालित यंत्र

यह कतारों में बोई गई फसलों के लिए कारगर यंत्र?है. केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान भोपाल, मध्य प्रदेश द्वारा बनाए गए इस यंत्र को 8-10 हार्स पावर के टिलर के साथ जोड़ कर चलाया जा सकता है. इस की कीमत करीब 18000 से 20000 रुपए है. इस यंत्र की ज्यादा जानकारी के लिए फोन नंबरों 0755-2521139 व 2521133 पर संपर्क कर सकते हैं.

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