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वह पूनम की रात-भाग 3 : आखिर क्या हुआ था उस पूनम की रात में

तब अचानक अपने कदम रोक कर बिना कुछ बोले प्रीति मुझ से लिपट गई थी.

‘‘अरे, यह हुई न बात, वैसे मैं तो तुम्हें यों ही छेड़ रहा था,‘‘ मैं ने भी भावुक हो कर उसे अपनी बांहों में समेट लिया था.

प्रीति कुछ देर तक उसी तरह मेरी बांहों में लिपटी रही. दोनों की सांसें अनायास ही तेज हो चली थीं और दिल की धड़कनों का टकराना, दोनों ही महसूस कर रहे थे. फिर मैं ने प्रीति की मौन स्वीकृति को भांप कर प्यार से उस के होंठों को चूम लिया. फिर जब दोनों अलग हुए, तो दोनों की ही आंखों में प्रेम के आंसू झिलमिला रहे थे.

‘‘चलो, अब वापस चलते हैं, काफी देर हो गई,‘‘ अपने मोबाइल पर समय देखते हुए प्रीति ने कहा.

‘‘थोड़ी देर और रुको न, तुम तो जानती हो, मैं इसी रात के लिए शहर से गांव आया हूं. अगर तुम आने का वादा न करती, तो क्या मैं यहां आता?‘‘

‘‘तुम्हें पता है, मैं कितनी होशियारी से निकली हूं. अगर घर में किसी को भनक लग गई तो…‘‘

‘‘तो क्या होगा? हम यहां घूमने ही तो आए हैं, कोई गलत काम तो नहीं कर रहे.‘‘

‘‘मेरे भोले मजनूं, यह शहर नहीं गांव है. मैं यहां 14-15 साल से रह रही हूं. तुम तो बस, 2-3 दिन के लिए कभीकभार ही आते हो. यहां बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.‘‘

‘‘तो डरता कौन है? जब हमारा प्यार सच्चा है, तो मुझे किसी की परवा नहीं.‘‘

‘‘मेरी तो परवा है…‘‘

‘‘तुम्हें कोई कुछ कह कर तो देखे…‘‘

‘‘मैं अपने मांबाप की बात कर रही हूं. अगर वे ही कुछ कहेंगे तो?‘‘

‘‘अरे, उन्हें तो मैं कुछ नहीं कह सकता. मेरे लिए तो वे पूजनीय हैं, क्योंकि उन के कारण ही तो तुम मुझे मिली हो. मैं तो जिंदगी भर उन के पैर धो सकता हूं.‘‘

‘‘तो चलो, चलते हैं,‘‘ प्रीति मुसकराते हुए मेरा हाथ पकड़ कर बोली.

‘‘काश, इस तरह हम रोज मिल पाते,‘‘ मैं ने प्रीति के साथ कदम बढ़ाते हुए आह भर कर कहा.

‘‘इंतजार का मजा लेना भी सीखो. ऐसी चांदनी रात रोज नहीं हुआ करती,‘‘ प्रीति मेरी ओर देखते हंसते हुए बोली.

‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं, थोड़ी देर और ठहर लेते हैं. खैर, छोड़ो. अब तो कुछ दिन कुछ रातें, इंतजार का ही मजा लेना पड़ेगा. तुम महीने भर बाद जो शहर लौटोगी.  मुझे तो शायद कल ही लौटना पड़ेगा,‘‘ मैं ने कुछ उदास स्वर में कहा.

‘‘क्या? तुम कल ही लौट रहे हो,‘‘ प्रीति हैरानी जाहिर करते हुए बोली.

‘‘हां, पापा का फोन आया था. इस बार उन्हें छुट्टी नहीं मिल पाई वरना मम्मीपापा भी सप्ताह भर के लिए यहां आ जाते. वे नहीं आ पाएंगे, इसलिए उन्होंने इस बार दादी को भी साथ ले कर आने के लिए कहा है. अगर तुम भी साथ वापस चलती तो कितना अच्छा होता.‘‘

‘‘अगर चाचाजी आ जाते तो शायद जल्दी लौटना हो जाता, पर उन को भी छुट्टी नहीं मिल पाई. बाबा, खेतों का काम खत्म होने से पहले जाएंगे नहीं और तुम तो जानते हो मैं अकेली जा नहीं सकती.‘‘

‘‘खासकर किसी दूसरी जाति के लोगों के साथ…‘‘

‘‘फिर मुझे ताने सुना रहे हो?‘‘

‘‘नहीं, मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रहा पर कभीकभी सोचने पर विवश हो जाता हूं कि हमारा गांव इतना खूबसूरत है मगर यहां अभी भी जातपांत के पुराने खयालातों से लोग मुक्त नहीं हो पाए हैं. पता नहीं, हमारे प्यार का अंजाम क्या होगा…‘‘

‘‘तो क्या तुम अंजाम से डरते हो?‘‘

‘‘हां, डरता तो हूं. अगर कोई कहेगा, तुम्हारी जिंदगी, तुम्हारी नहीं हो सकती, तो क्या डरना नहीं चाहिए?‘‘

‘‘बिलकुल नहीं डरना चाहिए आप को, क्योंकि आप की जिंदगी हमेशा आप के साथ रहेगी,‘‘ प्रीति मुसकरा कर बोली.

‘‘तो मैं भी अंजाम से नहीं डरता,‘‘ मैं ने भी उसी अंदाज में कहा.

‘‘यह हुई न बात‘‘ फिर शांत स्वर में बोली, ‘‘रमेश, देखना इस गांव में बदलाव हम ही लाएंगे. लोगों को यह मानना पड़ेगा कि इंसानियत से बड़ी दूसरी कोई जात नहीं होती और इंसानियत कहती है कि एकदूसरे को समान दृष्टि से देखा जाए और सभी प्रेम से मिल कर रहें.‘‘

‘‘तुम जब भी इस तरह की बातें करती हो, तो मेरे अंदर एक जोश आ जाता है. आज मैं भी इस पूनम की रात में कसम खाता हूं, रास्ता चाहे जितना कठिन हो, जब तक हमें मंजिल मिल नहीं जाती, मैं हर कदम तुम्हारे साथ रहूंगा,‘‘ मैं ने अपने दोनों हाथों को ऊपर फैला कर बड़े जोश में कहा.

उस रात ढेर सारी उम्मीदों के साथ, दिल में ढेर सारे सपनों को सजाए, एकदूसरे से विदा ले कर, हम दोनों अपनेअपने घर चले गए थे. लेकिन जिस कठिन रास्ते की हम ने कल्पना की थी, वह इतना कंटीला साबित होगा, कभी सोचा न था.

उस रात लौटते वक्त शायद किसी ने हमें देख लिया था. हो सकता है, वह मंदिर का पुजारी, गांव का पंडित ही रहा हो. क्योंकि उस ने ही प्रीति के बाबा को बुलवा कर इस की शिकायत की थी. धर्म के, समाज के ऐसे ठेकेदार, जिन्हें राधाकृष्ण के प्रेम, उन की रासलीला से तो कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन यदि हम जैसे जोड़े उस का अनुसरण करें, तो उन के लिए समाज की मानमर्यादा, उस की इज्जत का सवाल उत्पन्न हो जाता है…

उस दिन प्रीति के साथ क्या हुआ? यह कहने की आवश्यकता नहीं है. उस के घर वाले तो मुझे भी ढूंढ़ने आ गए थे… पर मैं दादी को ले कर शहर के लिए सुबह की बस से पहले ही निकल गया था.

बाद में गांव से प्रीति का फोन आने पर मैं पिताजी के सामने जा कर उन्हें सारी बातें बता कर रोने लगा. हमेशा की तरह एक दोस्त के समान मेरा साथ देते हुए पिताजी मुझे समझा कर तुरंत प्रीति के चाचाजी से बात करने चले गए. जो हम से कुछ ही दूर किराए के मकान में रहते थे. चाचाजी, पिताजी की तरह ही सुलझे विचारों वाले आदमी थे. गांव जा कर सब को काफी समझाने का प्रयास किया. यहां तक कि पंचों से भी बात कर के देखा, लेकिन बात नहीं बन पाई.

भाईभाई के बीच मनमुटाव वाली स्थिति पैदा हो गई. फिर पंचों से भी यह धमकी मिली कि यदि वे समाज की परंपरा के खिलाफ जाएंगे, तो उन्हें जातबिरादरी से बाहर कर दिया जाएगा. कोई उन का छुआ पानी तक नहीं पीएगा.

अंत में हार कर चाचाजी और पिताजी को पुलिस का सहारा लेना पड़ा और न चाहते हुए भी हम दोनों की शादी मजबूरन कोर्ट में करनी पड़ी.

हम दोनों की बस इतनी ही तो इच्छा थी कि समाज के सामने सामाजिक रीतिरिवाज से हम दोनों की शादी हो जाए. लेकिन समाज की रूढि़वादी परंपराओं की दीवार को गिरा पाना आसान काम तो नहीं होता. हम ने प्रयास क्या किया? कितना कुछ घटित हो गया. बाद में यह भी पता चला कि गांव के कुछ लोगों ने हमारे घर को आग लगाई और गांव से हमेशा के लिए हमारा बहिष्कार कर दिया गया.

आज इतने सालों बाद भी स्थिति जस की तस है. हमारे लिए वह रास्ता उतना ही दुर्गम है, जो वापसी को उस गांव तक जाता है. उस रात के बारे में कभी सोचता हूं, तो अपनी उस नादानी पर डर जाता हूं. क्योंकि जिस समाज में जातपांत के आधार पर इंसान का विभाजन होता हो और जहां जवान लड़केलड़की के बीच पवित्र रिश्ते जैसी किसी चीज की कल्पना तक नहीं की जाती, वहां उस सुनसान रात में एक जवान जोड़े को घूमते देख कर क्या उन्हें यों ही छोड़ दिया जाता?

फिर भी पता नहीं क्यों? उस रात को, प्रीति का साथ मैं भी कभी भुला नहीं पाया. आज भी हर ऐसी चांदनी रात में वह पूनम की रात याद आते ही मन भावविभोर हो जाता है.

करें खुद को मोटिवेट

लेखिका- वंदना बाजपेयी

मेरे नाना अकसर एक कहानी सुनाया करते थे. कहानी इस प्रकार थी कि, “एक गांव में एक गरीब लड़का रहता था. उस का नाम मोहन था. मोहन बहुत मेहनती था. काम की तलाश में वह एक लकड़ी के व्यापारी के पास पहुंचा. उस व्यापारी ने उसे जंगल से पेड़ काटने का काम दिया. नई नौकरी से मोहन बहुत उत्साहित था. वह जंगल गया और पहले ही दिन 18 पेड़ काट डाले. व्यापारी ने मोहन को शाबाशी दी. शाबाशी सुन कर मोहन गदगद हो गया. अगले दिन वह और ज्यादा मेहनत से काम करने लगा. इस तरह 3 सप्ताह बीत गए. वह बहुत मेहनत से काम करता, लेकिन यह क्या, अब वह केवल 15 पेड़ ही काट पाता था.

व्यापारी ने कहा, ‘कोई बात नहीं, मेहनत करते रहो.’2-3 सप्ताह और बीत गए. ज्यादा अच्छे परिणाम पाने के लिए उस ने और ज्यादा जोर लगाया. लेकिन केवल 10 पेड़ ही ला सका. अब मोहन बड़ा दुखी हुआ. वह खुद नहीं समझ पा रहा था क्योंकि वह रोज पहले से ज्यादा काम करता लेकिन पेड़ कम काट पाता.

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हार कर उस ने व्यापारी से ही पूछा, ‘मैं सारे दिन मेहनत से काम करता हूं, लेकिन फिर भी क्यों पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है?’

व्यापारी ने कहा, ‘तुम ने अपनी कुल्हाड़ी को धार कब लगाई थी.’मोहन बोला, ‘धार… मेरे पास तो धार लगाने का समय ही नहीं बचता. मैं तो सारे दिन पेड़ काटने में ही व्यस्त रहता हूं.’

व्यापारी ने कहा, ‘बस, इसीलिए तुम्हारी पेड़ों की संख्या दिनप्रतिदिन घटती जा रही है.’

यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है, हम रोज सुबह नौकरी, व्यापार व कोई अन्य काम करने जाते हैं या कई बार हम कोई काम बहुत जोश से शुरू करते हैं. धीरेधीरे वह काम हमें रूटीनी लगने लगता है और हम उस काम को केवल ‘करने के लिए करने’ लगते हैं. पर उस को करने का पहले जैसा जोश और जुनून खोने लगता है. जब ज्यादा मेहनत करने के बाद भी हम उतने अच्छे परिणाम नहीं दे पाते हैं तब हमें जरूरत होती है मन की कुल्हाड़ी को धार देने की, यानी खुद को मोटिवेट करने की, ताकि हम उतने ही समय में उत्साह के साथ ज्यादा से ज्यादा काम कर सकें.

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प्रेरणा के आभाव में धीरेधीरे बड़े उत्साह के साथ पढ़ने के लिए स्टडी टेबल के पास चिपकाए गए टाइम टेबलमात्र शोपीस बन कर रह जाते हैं. औफिस से नोटिस मिल जाता है व व्यवसाय घाटे के साथ डूबने लगता है. ऐसे समय में जरूरी है कि हम खुद को मोटिवेट करें और उत्साहहीनता व निराशा से बाहर निकलें.

जब काम बोझिल लगने लगे तो अपनेआप से 2 प्रश्न करने चाहिए- पहला, क्या आप जिस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं उस को पाने के लिए कोई प्रेरणा उत्प्रेरक की तरह काम कर रहे हैं? और दूसरा, आप खुद को उस लक्ष्य को पाने के लिए काम में अपनी ऊर्जा झोंक पाते हैं?

यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी काम को करने की इच्छा रखना या उस काम को करने के लिए खुद को इतना मोटिवेट करना कि काम हो जाए, ये  2 अलग बातें हैं. यही वह अंतर भी है जिस से एक लक्ष्य ले कर काम करते 2 व्यक्तियों में से एक को सफल व दूसरे को असफल घोषित किया जाता है. दरअसल, सैल्फ मोटिवेशन वह जादू है जो हमें जिंदगी में सफल करता है. सैल्फ मोटीवेशन वह आंतरिक बल है जो हमें लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ाता है. जब हम ऐसी मनोदशा में होते हैं कि ‘काम छोड़ दें’, ‘अब नहीं हो पा रहा’ या ‘काम कैसे शुरू करें’ तब सैल्फ मोटिवेशन ही हम को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. सैल्फ मोटिवेशन वह हथियार है जो आप को अपने सपनों को पाने, अपने लक्ष्य को हासिल करने व सफलता के मंच को तैयार करने में मदद करता है.

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अगर आप को रहरह कर यह लगता है कि आप जो काम कर रहे हैं उस को करने में आप को मजा नहीं आ रहा है या किस दिशा में आगे बढ़ें, यह सूझ नहीं रहा, तो आप निश्चितरूप से उत्साहहीनता के शिकार हैं. अगर ऐसा है भी, तो सब से पहले तो आप यह समझ लें कि उत्साहहीनता या निराशा का शिकार होने वाले आप अकेले नहीं. हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी इस का अनुभव करता है चाहे वह मोटिवेशनल गुरु ही क्यों न हो. निराशा में सदा घिरे रहने के स्थान पर इस में सुरंग बना कर बाहर निकलना आना चाहिए.

समझिए स्वप्रेरणा के आंतरिक व बाह्य कारणों को

सैल्फ मोटिवेशन के लिए आप को यह समझना बहुत जरूरी है कि आप को प्रेरणा कहां से मिलती है या वे कौन से कारण हैं जिन से प्रेरित हो कर आप ने वह काम करना शुरू किया है. ये कारण 2 प्रकार के हो सकते हैं- आंतरिक व  बाह्य. आंतरिक कारणों में यह आता है कि आप वास्तव में उस काम से प्यार करते हैं, उसे करे बिना आप को अपना जीवन अधूरा लगता है. जब आप निराश हों तो अपने उसी प्यार को जगाइए, जिस के ऊपर हलका सा कुहरा छा गया है. फिर देखिएगा, झूम कर बरसेंगे सफलता के बादल.

बाह्य कारणों में पैसा या पावर आते हैं. ज्यादातर वे लोग जिन्होंने बचपन में बहुत गरीबी देखी होती है या शोषण झेला होता है वे ऐसे ही कामों के प्रति आकर्षित होते हैं जहां ज्यादा पैसा या पावर मिले. कुछ लोग नाम कमाना चाहते हैं, यह भी बाह्य कारण है. आंतरिक कारण जहां खुद ही आसानी से प्रेरित करते हैं वहीँ बाह्य कारणों के लिए हमें उन परिस्थितियों को बारबार याद करना पड़ता है जिस कारण हम ने वह काम करना शुरू किया था.

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हारिए न हिम्मत, बिसारिए न राम

जीवन सत्य है कि दिन और रात की तरह परिस्थितियां भी सदा एकसमान नहीं रहतीं. कभी कम कभी ज्यादा, प्रकृति का नियम है. उत्साह भी कोई ऐसी चीज नहीं है जो हमेशा आप के साथ रहे. यह आताजाता रहता है. जब जाता है तो दुखी न हों. इस बात को समझिए कि भले ही इस समय आप निरुत्साहित महसूस कर रहे हैं, पर यह स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली.

घबराने व निराश होने की जगह कुछ समय के लिए दिमाग को उस काम में लगाइए जिस में आप का मन रमता हो, जैसे संगीत, चित्रकारी, बागबानी आदि. ताकि, आप पूरी तरह रिलैक्स हो सकें. अब बस, अपने लक्ष्य से जुड़े रहिए और पहले जैसे उत्साहजनित प्रेरणा के वापस आने का इंतजार कीजिए. इस दौरान अपने लक्ष्य के बारे में पढ़िए, चिंतन करिए, कुछ सार्थक योजनाएं बनाने का प्रयास करिए.

आशावादी रहिए

नकारात्मक विचार आप की पूरी ऊर्जा चुरा लेते हैं. पस्त हौसलों से किले नहीं ध्वस्त किए जाते हैं. मुझे अकसर याद आती है, ‘चिकन सूप फौर सोल’ की एक सत्यकथा जिस में एक क्षतिग्रस्त स्पाइन वाली लड़की से हर डाक्टर ने कह दिया था कि अब तुम कभी चल नहीं पाओगी. निराशहताश लड़की के मित्र ने उसे समझाया कि “इन डाक्टर्स ने तुम्हारी बीमारी का इलाज तो किया नहीं अलबत्ता एक चीज तुम से चुरा ली.

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“‘क्या?’” लड़की ने पूछा.

“‘होप,’ लड़के ने उत्तर दिया.

तब, उस लड़की ने अपनी आशा को फिर से जाग्रत किया और अपने पैरों पर चल कर मैडिकल साइंस को फेल कर दिया. अगर आप सदैव अपने लक्ष्य के प्रति आशावादी रहते हैं तो यह आशा ही आप की प्रेरणा बन जाएगी. अगर कभी नकारात्मक विचार आए भी, तो उस पर ज्यादा मत सोचिए.

एक ही साधे सब सधे

जब आप एकसाथ कई कामों को हाथ में ले लेते हैं तो आप का किसी खास काम के प्रति ध्यान का विकेंद्रीकरण हो जाता है. इस से आप कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते और आसानी से उत्साहहीनता के शिकार हो जाते हैं. ‘जैक औफ औल ट्रेड्स मास्टर औफ नन’ बनने से अच्छा है, हम अपने कामों की प्राथमिकताएं तय करें. अगर आप को लग रहा है कि आप का काम के प्रति उत्साह कम हो गया है तो अपने दिमाग को चारों तरफ दौड़ाने की जगह एक समय में केवल एक लक्ष्य पर लगा लीजिए. इस से आप का ध्यान व उर्जा एक ही स्थान पर खर्च होगी जिस से आप आसानी से उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं. सफलता की खुशी में आप दूसरे लक्ष्यों पर भी खुशमन से अपनी ऊर्जा खर्च कर सकते हैं.

हौसले बढ़ते हैं आप की परवाज देख कर

निराशा के दौर में ज्यादा से ज्यादा उन लोगों के बारे में पढ़ें, सोचें और बात करें जो सफल हैं. जिन्होंने अपना लक्ष्य पा लिया है. अच्छीअच्छी प्रेरणादायी किताबें पढ़िए, उन की जीवनी व संघर्ष पर ध्यान दीजिए. आप देखेंगे कि हर सफल व्यक्ति असफल हुआ है. पर उस ने असफलता पर रोते हुए आगे चलना बंद नहीं किया और धीरेधीरे मंजिल को प्राप्त किया. उन की जीवनी आप के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी. मन में हौसला उत्पन्न होगा कि “जब वे पा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं. ”रोजरोज इस प्रक्रिया को दोहराने से आप के मन में भी अपने लक्ष्य को पाने का उत्साह जागेगा.

नन्हेनन्हे कदम नापते हैं जहां

ज्यादातर उत्साहहीनता तब उत्पन्न होती है जब आप बहुत बड़ेबड़े लक्ष्य बनाते हैं और उन्हें नहीं पा पाते. आप निराश हो कर सोचने लगते हैं, ‘अरे लक्ष्य तो हासिल हो नहीं पाएगा, तो प्रयास ही क्यों किया जाए.’ कभी अपने बचपन को याद करिए जब आप चलना सीख रहे थे. मां आप से थोड़ी दूर खड़ी हो जाती थी और आजा, आजा कहती थी. आप हिम्मत करते हुए छोटेछोटे डग भरते हुए मां के पास पहुंच जाते थे और अपनी इस उपलब्धि पर खुश होते थे. अभी भी यही करना है. अपने लक्ष्य को छोटेछोटे हिस्सों में बांट लें. जैसेकैसे आप इन्हें पूरा करते जाएं, तो खुद को शाबासी दें. धीरेधीरे आप का उत्साह वापस आता जाएगा.

अपनों की खुशी में ढूंढिए प्रेरणा

आप के अंदर प्रेरणा की चिनगारी नहीं जल पा रही है, तो अपनी योजना को किसी अपने को बताइए जिस के साथ आप अपनी सफलता बांटना चाहते हों. वह व्यक्ति आप का मित्र, पत्नी, बच्चे या हितैशी कोई भी हो सकता है. आप की सफलता की योजना से जरूर उस व्यक्ति की आंखों में चमक आ जाएगी. वह भी आप की सफलता को आप के साथ मनाना चाहेगा. जिस तरह से एक जुगनू क्षणभर में अंधकार को चुनौती दे देता है वैसे ही अपनों के स्नेह व उन को खुश देखने की इच्छा आप को अपने काम को अच्छे तरीके से करने की प्रेरणा देगी.

कल्पना करिए 

खुद को प्रेरित करने का यह सब से आसान व कारगर तरीका है. आप जो लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं उस को प्राप्त करने की कल्पना करिए. कल्पना में देखिए (विजुअलाइज करिए) कि आप ने सफलता हासिल कर ली है. सोचिए, अब आप को कैसा महसूस हो रहा है. अब आप प्रकृति को धन्यवाद दे रहे हैं या परिवार और बच्चों के साथ पार्टी कर रहे हैं. जो लोग आप के करीब हैं वे कितने खुश हैं. निश्चित मानिए कि यह क्रिया आप के लिए प्रेरणा का काम करेगी और आप उत्साह से भर जाएंगे.

अपने लक्ष्य की घोषणा सार्वजानिक रूप से करिए

जब आप अपना लक्ष्य समाज के सामने बता देते हैं तो आप के ऊपर यह दबाव रहता है कि इस काम को पूरा करना ही है अन्यथा आप सार्वजनिक निंदा के पात्र बनेंगे. कौन चाहता है कि लोग उस की खिल्ली उड़ाएं, पीठपीछे कहें कि ‘बड़े चले थे यह काम करने, अब देखो.’ आप भी ऐसी बातें सुनना नहीं चाहते होंगे, न यह चाहते होंगे कि आप की वजह से आप को या आप के परिवार को नीचा देखना पड़े. पर यह सामाजिक दबाव एक उत्प्रेरक का काम करता है. अपने को समाज की नजरों में ऊंचा उठने के लिए आप खुद को पूरी तरह से झोंक देते हैं. सफलता का इस से बड़ा कोई मूल मंत्र नहीं है. यहां यह बात ध्यान देने की है कि एक बार बता कर छोड़ मत दीजिए बल्कि हफ्तेपंद्रह दिनों में अपडेट भी करते रहिए.

समान जीवन वाले लोगों का ग्रुप बनाइए

‘संगति ही गुण उपजे संगति ही गुण जाए.’ मान लीजिए, आप ने कोई लक्ष्य बना लिया और मेहनत भी शुरू कर दी है, पर आप का जिन लोगों के बीच उठनाबैठना है वे कामचोर हैं या दिनरात गपबाजी में दिन व्यतीत करते हैं तब आप अपना उत्साह ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रख पाएंगे. वहीं, अगर आप ऐसे लोगों के साथ हैं जो धुन के पक्के हैं और अपने लक्ष्य को पाने के लिए दिनरात नहीं देखते, कठोर परिश्रम करते हैं तो आप का मन भी उत्साह से भर जाएगा और एक कर्मठ शूरवीर की तरह आप कार्यक्षेत्र में जुट जाएंगे.

अपने समान लक्ष्य वाले लोगों से मिलते जुलते रहिए

जो लोग आप के समान ही लक्ष्य रखते हैं उन से महीनेपंद्रह दिनों में मिलते रहिए. इस से आप उन की सफलता से अपडेट होते रहेंगे. या उन्होंने कैसे प्रयास किया, इस बात की जानकारी आप को होती रहेगी. असफल लोग क्या गलती कर रहे हैं, यह देख कर आप का स्वयं द्वारा की जाने वाली गलतियों पर ध्यान जाएगा. इस के अतिरिक्त, इस विचारविमर्श से नए तथ्य उभर कर सामने आएंगे. उदाहरण के तौर पर, अगर आप गाना सीख रहे हैं तो साधारण श्रोता आप के गायन की वाहवाही करेंगे. पर गायकों की महफिल में आप को एकएक सुर पर चर्चा करने से सही आरोहअवरोह पकड़ने में मदद मिलेगी. साथ ही, समकालीन अच्छे गायकों से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना जाग्रत होगी, जिस से आप को और बेहतर गाने की प्रेरणा मिलेगी.

खुद को इनाम दीजिए

‘इनाम, वह भी खुद को?’ अजीब लगता है पर सैल्फ मोटिवेशन का बहुत कारगर तरीका है. अपने लक्ष्य को कई छोटे हिस्सों में बांटिए. और हर हिस्से के पूरा होने पर एक इनाम रखिए. वह इनाम महज इतना भी हो सकता है कि काम का इतना हिस्सा पूरा होने के बाद एक कप कौफी पिएंगे. देखिएगा वह  कौफी रोज की कौफी से अलग ही स्वाद देगी. उस में जीत का नशा जो मिला होगा. आप यह भी इनाम दे सकते हैं कि इतना काम पूरा होने के बाद नई खरीदी किताब पढ़ेंगे, या कोई पसंदीदा काम करेंगे. कुछ भी हो, अपनी छोटीछोटी जीत को सैलिब्रेट करिए. इस से आप को आगे काम पूरा करने की जबरदस्त प्रेरणा मिलेगी.

अपनी योजनाओं की तिथिवार डायरी बनाइए

आप कौन सा काम कब करना चाहते हैं, इस की तिथिवार डायरी बनाइए, जैसे आप लेखक हैं तो आप की डायरी कुछ यों बनेगी-

इस डायरी को बारबार पलटिए और अपने निश्चय को पक्का करते रहिए. यह आप को अदृश्य प्रेरणा से नवाजता रहेगा.

अगर आप वास्तव में किसी काम को करना चाहते हैं तो एक खूबसूरत वाक्य याद रखिए जो वाल्ट डिज्नी कहा करते थे, ‘मुझे नहीं लगता कि कोई भी चढ़ाई उस व्यक्ति के लिए असंभव होती है जिसे अपने सपनों को सच बनाने का हुनर आता है.’ सपनों को सच बनाने का हुनर निर्भर करता है सैल्फ मोटिवेशन पर. इसलिए जब लगे कुछ मनमुताबिक नहीं हो रहा है, तो कुछ पल ठहरिए. अपने आप को मोटिवेट करिए. फिर देखिए चमत्कार. एकएक कर के सफलता के दरवाजे आप के लिए खुलते चले जाएंगे.

वह पूनम की रात-भाग 2 : आखिर क्या हुआ था उस पूनम की रात में

‘‘ख्वाब ही तो है, जो हम दोनों हमेशा से देखते रहे थे. ऐसी चांदनी रात में एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले, कुदरत के ऐसे खूबसूरत नजारे को निहारते, एकदूसरे में खोए, जब सारी दुनिया सो रही हो, हम जागते रहें…‘‘

‘‘सच कहा तुम ने, मैं ने ऐसी ही रात की कल्पना की थी.‘‘

‘‘तो फिर अब मुझे वह गाना सुनाओ, मोहम्मद रफी वाला, जो तुम हमेशा गुनगुनाते रहते हो.‘‘

‘‘कौन सा खोयाखोया चांद वाला…‘‘ मैं ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘हां, गाओ न,‘‘ प्रीति खुशी से मुसकराते हुए आग्रहपूर्वक बोली.

‘‘एक शर्त पर,‘‘ मैं ने रुक कर कहा.

‘‘क्या,‘‘ कह कर प्रीति मुझे घूरने लगी.

‘‘तुम्हें भी उस फिल्म का गाना सुनाना होगा, जो मैं ने तुम्हें नैट से डाउनलोड कर के दिया था,‘‘ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘फिल्म ‘पाकीजा‘ का ‘मौसम है आशिकाना…‘‘ प्रीति मुसकराते हुए बोली.

‘‘हां,‘‘  कह कर मैं फिर से मुसकराया.

‘‘हमें मंजूर है, हुजूरेआला,‘‘ प्रीति भी जैसे चहक उठी.

उस चांदनी रात में गुनगुनाते हुए दोनों एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले आगे बढ़ते जा रहे थे. कुछ देर बाद दोनों टुंगरी के ऊपर थे. जहां से चांदनी रात की खूबसूरती अपने पूरे शबाब में दिख रही थी. चारों तरफ पूनम की चांदनी दूर तक बिखरी हुई थी. आसमान अब भी साफ था, लेकिन कहीं से आए छोटेछोटे आवारा बादल चांद से जैसे जबरदस्ती आंखमिचौली का खेल रहे थे.

उस दिलकश खेल को देख कर दोनों के आनंद की सीमा न रही, मन नाच उठा. फिर उस जगह की खामोशी में, रात के उस सन्नाटे में एकदूसरे के धड़कते हुए दिल की आवाज सुन कर अंगड़ाइयां लेते मीठे एहसासों से, अंदर कहां से यह आवाज आ रही थी… जैसे यह चांद कभी डूबे नहीं, यह वक्त यहीं रुक जाए, यह रात कभी खत्म न हो. काश, यह दुनिया इतनी ही सुंदर होती, जहां कोईर् पाबंदी, कोई रोकटोक नहीं होती. सभी एकदूसरे से यों प्रेम करते. इस रात में जो शांति, जो संतोष का एहसास है, ऐसा ही सब के दिलों में होता. किसी को किसी से कोई बैर नहीं होता.

‘‘प्रीति, तुम्हें नहीं लगता हम दोनों जैसा सोचते हैं, ऐसा काम तो कवि या लेखक लोग करते हैं यानी कल्पना की दुनिया में जीना. वे ऐसी दुनिया या माहौल का सृजन करते हैं, जो आज के दौर में संभव ही नहीं है.‘‘

‘‘संभव है, चाहे नहीं, पर सचाई तो सचाई होती है. जिंदगी इस चांदनी रात के समान ही होनी चाहिए, शीतल, बिलकुल स्निग्ध, एकदम तृप्त. फिर सकारात्मक सोच ही जीवन को गति प्रदान करती है. जहां उम्मीद है, जिंदगी भी वहीं है.‘‘

‘‘अरे वाह, तुम्हारी इन्हीं बातों से तो मैं तुम्हारा इतना दीवाना हूं. तुम इतनी गहराई की बातें सोच कैसे लेती हो?‘‘

‘‘जब जिंदगी में किसी से सच्चा प्यार होता है, तो मन गहराई में उतरने की कला अपनेआप सीख लेता है. फिर जिसे साहित्य से भी प्यार हो, उसे सीखने में अधिक समय नहीं लगता.‘‘

‘‘प्रीति, अगर तुम मेरी जिंदगी में न आती, तो शायद मैं आज गलत रास्ते में भटक गया होता. मुझे अधिक हुड़दंगबाजी तो कभी पसंद नहीं थी. मगर आधुनिकता के नाम पर अपने दोस्तों के साथ, पौप अंगरेजी गाने सुनना और इंटरनैट पर गंदी फिल्में देखने का नशा तो चढ़ ही चुका था. अगर इस बार परीक्षाओं में मेरा बढि़या रिजल्ट आया है, तो सिर्फ तुम्हारी वजह से. अब मैं अपने उन दोस्तों से भी शान से कहता हूं कि क्लासिकल गाने एक बार दिल से सुन कर देखो, उस के रस में, उस के जज्बातों में डूब कर देखो, तुम्हें भी मेरी तरह किसी न किसी प्रीति से जरूर प्यार हो जाएगा.‘‘

‘‘तुम अब वे फिल्में तो कभी नहीं देखते न?‘‘ प्रीति ने अचानक इस तरह से प्रश्न किया, जैसे कोई अच्छी शिक्षिका अपने छात्र को उस का सबक फिर से याद दिला रही हो.

मैं ने भी डरने का नाटक करते, उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं, कभी नहीं… अब देखूंगा भी तो तुम्हारे साथ शादी के बाद ही.‘‘

‘‘तो अभी से मन में सब सोच कर रखा है?‘‘ शिक्षिका के होंठों पर मुसकान थी, लेकिन नाराजगी स्पष्ट झलक रही थी.

‘मुझे कहीं डांट न पड़ जाए‘ यह सोच कर मैं ने झट से अपने दोनों कान पकड़ कर कहा, ‘‘अरे, नहीं बाबा, जिंदगी में कभी नहीं देखूंगा. मैं तो बस, यों ही मजाक कर रहा था पर तुम से एक बात कहने की इच्छा हो रही है.‘‘

‘‘क्या…‘‘ अपनी आंखें फिर बड़ी कर प्रीति मुझे घूरने लगी.

उसे गुस्साते देख कर, मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यही कि तुम अभी और भी खूबसूरत लग रही हो. सच कहता हूं, उस चांद से भी खूबसूरत…‘‘

‘‘अच्छा जी, तो अब  मुझे बहकाने की कोशिश हो रही है,‘‘ प्रीति फिर मुंह बना कर बोली पर चेहरे पर मुसकान थी.

‘‘सच कहता हूं, जब भी तुम्हारी ये झील जैसी आंखें और गुलाब की पंखडि़यों जैसे होंठों को देखता हूं, तो अपने दिल को समझा नहीं पाता हूं. कम से कम एक किस तो दे दो,‘‘ मैं याचना कर बैठा.

इस पर फिर अपने गाल फुला कर प्रीति बोली, ‘‘ऐसी बातें करोगे, तो मैं चली जाऊंगी.‘‘

‘‘तो चली जाओ. भले ही मुझे नाराजगी न हो, यह रात और यह चांदनी, यह मौसम और ये नजारे तुम से जरूर नाराज होे जाएंगे. कहेंगे, यह लड़की कितनी पत्थर दिल है,‘‘ रूठी मैना को मनाने के चक्कर में मैं ने भी रूठने का नाटक किया.

मसूर की उन्नत खेती

लेखक- संदीप कुमार

दलहनी वर्ग में मसूर सब से पुरानी और खास फसल है. मसूर का दुनियाभर में भारत की श्रेणी क्षेत्रफल के अनुसार पहला व उत्पादन के अनुसार दूसरा नंबर है और भारत में क्षेत्रफल के अनुसार मध्य प्रदेश की प्रथम श्रेणी है. प्रचलित दालों में सर्वाधिक पौष्टिक होने के साथसाथ इस दाल को खाने से पेट के विकार समाप्त हो जाते हैं. रोगियों के लिए मसूर की दाल अत्यंत लाभप्रद मानी जाती है. यह रक्तवर्धक और रक्त में गाढ़ा लाने वाली होती है. इसी के साथ दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज व अनियमित पाचन क्रिया में भी लाभकारी होती है. दाल के अलावा मसूर का उपयोग विविध नमकीन और मिठाइयां बनाने में भी किया जाता है. इस का हरा व सूखा चारा जानवरों के लिए स्वादिष्ठ व पौष्टिक होता है यानी सेहत के लिए फायदेमंद है.

मसूर के 100 ग्राम दाने में औसतन 25 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम वसा, 60.8 ग्राम कार्बोहाइडेट, 3.2 ग्राम रेशा, 68 मिलीग्राम कैल्शियम, 7 मिलीग्राम लोहा, 0.21 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन, 0.51 मिलीग्राम थाइमिन और 4.8 मिलीग्राम नियासिन पाया जाता है यानी मानव जीवन के लिए आवश्यक बहुत से खनिज, लवण और विटामिनों से भरपूर दाल है. मसूर मध्य व उत्तर भारत के बारानी वर्षा आश्रित क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती है. मध्य प्रदेश में लगभग 39.56 फीसदी (5.85 लाख हेक्टेयर) में इस की बोआई होती है. इस के बाद उत्तर प्रदेश व बिहार में 34.36 फीसदी व 12.40 फीसदी है. उत्पादन के अनुसार उत्तर प्रदेश की प्रथम श्रेणी 36.65 फीसदी (3.80 लाख टन) व मध्य प्रदेश 28.82 का द्वितीय स्थान है और अधिकतम उत्पादकता बिहार राज्य (1124 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) व सब से कम महाराष्ट्र राज्य (410 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) है.

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राष्ट्रीय औसत उपज 753 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो बहुत कम है. दलहनी फसल होने के कारण इस की जड़ों में गांठें पाई जाती हैं, जिन में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण भूमि में करते हैं, इस से भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ती है. इसलिए फसल चक्र में इसे शामिल करने से दूसरी फसलों के पोषक तत्त्वों की कुछ भरपाई करती है. इस के अलावा भूमि क्षरण को रोकने के लिए मसूर को आवरण फसल के रूप में भी उगाया जाता है. मसूर की खेती कम वर्षा और विपरीत परिस्थितियों वाली जलवायु में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है. बाजार में मसूर की बढ़ती मांग को देखते हुए इस की औसत पैदावार बढ़ाना नितांत आवश्यक है. प्रति इकाई मसूर की उपज बढ़ाने के लिए निम्न वैज्ञानिक तकनीक का अनुसरण करना चाहिए : भूमि व जलवायु मसूर की खेती के लिए हलकी दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है. उत्तरी भारत में मैदानों की दोमट मिट्टी और दक्षिण भारत की लाल लेटेराइट मिट्टी में मसूर की खेती अच्छी प्रकार से की जा रही है.

अच्छी फसल के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.8-7.5 के बीच होना चाहिए. मसूर शरद ऋतु की फसल है, जिस की खेती रबी में की जाती है. पौधों की वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु, परंतु फसल पकने के समय उच्च तापक्रम की आवश्यकता होती है. मसूर की फसल वृद्धि के लिए 18 से 30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान सही रहता है, जहां 80-100 सैंटीमीटर तक वार्षिक वर्षा होती है. मसूर की खेती बिना सिंचाई के भी बारानी परिस्थिति के वर्षा नमी संरक्षित क्षेत्र में की जाती है. खेत की तैयारी खरीफ फसल काटने के बाद 2 से 3 आड़ीखड़ी जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से की जाती हैं, जिस से मिट्टी भुरभुरी व नरम हो जाए. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चला कर मिट्टी बारीक और समतल कर लेते हैं. भारी मटियार मिट्टी में हलकी दोमट की अपेक्षा अधिक जुताइयां करनी पड़ती हैं.

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उन्नत किस्मों का चयन देशी किस्मों की अपेक्षा उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज का उपयोग करने से दूसरी फसलों की तरह मसूर से भी अधिकतम उपज 20 से 25 फीसदी अधिक ली जा सकती है. भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लिए मसूर की नवीनतम अनुमोदित किस्में इस प्रकार हैं : उत्तरपश्चिम मैदानी क्षेत्र : एलएल-147, पंत एल-406, पंत एल-639, समना, एलएच 84-8, एल-4076, शिवालिक, पंत एल-4, प्रिया, डीपीएल-15, पंत लेंटिल-5, पूसा वैभव और डीपीएल-62. उत्तरपूर्व मैदानी क्षेत्र : एडब्लूबीएल-58, पंत एल-406, डीपीएल-63, पंत एल-639, मलिका के-75, के एलएस-218 और एचयूएल-671. मध्य क्षेत्र : जेएलएस-1, सीहोर 74-3, मलिका के 75, एल 4076, जवाहर लेंटिल-3, नूरी, पंत एल 639 और आईपीएल-81. बीज की मात्रा अधिक उपज के लिए खेत में पर्याप्त पौध संख्या होना आवश्यक है. इस के लिए प्रमाणित किस्म का स्वस्थ बीज संस्तुत मात्रा में प्रयोग करना अनिवार्य है. बीज की मात्रा में जलवायु बोआई की विविध बीज की अंकुरण क्षमता और किस्म पर निर्भर करती है.

समय पर मसूर की बोआई के लिए उन्नत किस्मों का 30 से 35 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. देर से बोआई करने पर 50 से 60 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है. देर से बोआई करने पर 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बोना चाहिए. मिश्रित फसल में आमतौर पर बीज की दर आधीआधी रखी जाती है. बिजाई से पहले करें बीजोपचार स्वस्थ बीजों को बोआई के पूर्व थाइरम या बाविस्टिन 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें. इस के उपरांत बीजों को मसूर के राइजोबियम कल्चर और स्फुर घोलक जीवाणु पीएसबी कल्चर प्रत्येक को 5 ग्राम कुल 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर छायादार स्थान में सुखा कर बोआई सुबह या शाम को करनी चाहिए. समय पर बोआई मसूर की बोआई रबी में अक्तूबर से दिसंबर तक होती है, परंतु अधिक उपज के लिए मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर का समय सही है.

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ज्यादा देर से बोआई करने पर कीट व बीमारी का प्रकोप अधिक होता है. देर से बोने पर यदि भूमि में नमी कम हो, तो हलकी सिंचाई करने के बाद बीज बोना चाहिए. बोआई का तरीका अच्छी उपज के लिए केरा या पोरा विधि से कतार बोनी करें. इस क्रिया से खेत समतल होने के अलावा बीज भी ढक जाते हैं. पोरा विधि में देशी हल के पीछे पोरा चोंगा लगा कर बोनी कतार में की जाती है. इस के लिए सीड ड्रिल का भी प्रयोग किया जाने लगा है. पोरा अथवा सीड ड्रिल से बीज उचित गहराई और समान दूरी पर गिरते हैं. अगेती फसल की बोआई पंक्तियों में 30 सैंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए. पछेती फसल की बोआई के लिए पंक्तियों की दूरी 20 से 25 सैंटीमीटर रखते हैं मसूर का बीज अपेक्षाकृत छोटा होने के कारण इस की उथली 3-4 सैंटीमीटर बोआई सही होती है. आजकल शून्य जुताई तकनीक से भी जीरो टिल सीड ड्रिल से मसूर की बोआई की जा रही है,

जिस में खर्च कम आता है और समय की बचत भी होती है. संतुलित पोषण दलहनी फसल होने के कारण मसूर को पिछली फसल में दी गई खाद के अवशेषों पर उगाया जाता है, परंतु अच्छी उपज हासिल करने के लिए मृदा परीक्षण के बाद संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है. सिंचित अवस्था में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम सल्फर, 20 किलोग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से बीज बोआई करते समय डालना चाहिए. असिंचित दशा में क्रमश: 15:30:10:10 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के समय कूंड़ में देना सही रहता है. फास्फोरस को सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में देने से आवश्यक सल्फर तत्त्व की पूर्ति भी हो जाती है. जिंक की कमी वाली भूमियों में जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अन्य उर्वरकों के साथ दिया जा सकता है.

उर्वरकों को बोआई के समय कतारों में बीज तकरीबन 5 सैंटीमीटर की दूरी पर और बीज की सतह से 3 से 4 सैंटीमीटर की गहराई पर देना अच्छा रहता है. सिंचाई मसूर में सूखा सहन करने की क्षमता होती है. आमतौर पर सिंचाई नहीं की जाती है, फिर भी सिंचित क्षेत्रों में 1 से 2 सिंचाई करने से उपज में वृद्धि होती है. पहली सिंचाई शाखा निकलते समय यानी बोआई के 40 से 45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई फलियों में दाना भरते समय बोआई के 70 से 75 दिन बाद करनी चाहिए. ध्यान रखें कि पानी अधिक न होने पाए. बोआई स्प्रिंकलर से सिंचाई करें या खेत में स्ट्रिप बना कर हलकी सिंचाई करना लाभकारी रहता है. अधिक सिंचाई मसूर की फसल के लिए लाभकारी नहीं रहती है. खेत में जल निकास का उत्तम प्रबंध होना आवश्यक रहता है. खरपतवार नियंत्रण मसूर की फसल में खरपतवारों द्वारा अधिक हानि होती है. यदि समय पर खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान नहीं दिया गया, तो उपज में 30 से 35 फीसदी तक की कमी आ सकती है.

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खरपतवार से रहित समय 45 से 60 दिन बहुत जरूरी है. फसल पद्धति मसूर की खेती खरीफ की फसलें लेने के बाद की जाती है. मसूर की मिश्रित खेती जैसे सरसों, मसूर जौमसूर का प्रचलन है. शरदकालीन गन्ने की 2 कतारों के बीच मसूर की 2 कतारों 1.2 बोई जाती है. इस में मसूर को 30 सैंटीमीटर की दूरी पर बोया जाता है. कटाई व मड़ाई मसूर की फसल 110 से 140 दिन में पक जाती है. बोने के समय के अनुसार मसूर की फसल की कटाई फरवरी व मार्च महीने की जाती है.

जब 70 से 80 प्रतिशत फलियां भूरे रंग की हो जाएं और पौधे पीले पड़ने लगे या पक जाएं तो फसल की कटाई करनी चाहिए. कटाई दरांती द्वारा सावधानीपूर्वक करनी चाहिए, जिस से फलियां चटकने न पाएं. काटने के बाद फसल को एक हफ्ते तक खलिहान में सुखाते हैं. इस के बाद दौय चला कर या थ्रेशर द्वारा दाने अलग कर हवा में साफ कर लिए जाते हैं. उपज और भंडारण मसूर की उपज बोई गई किस्म बोने का समय और मिट्टी में नमी की उपलब्धता पर निर्भर करती है. मौसम अनुकूल होने पर और नवीन उत्पादन तकनीक का अनुसरण करने पर मसूर दानों की उपज 20 से 25 क्विंटल और भूसे की उपज 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है. भंडारण करने से पहले दानों को अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए. दानों में 9 से 11 फीसदी नमी रहने तक सुखाने के बाद उचित स्थान पर इन का भंडारण करना चाहिए.

थोड़ी कसरत, थोड़ी दौड़, बचाए रखती है जीवन की डोर

वर्तमान समय में महिलाओं ने भले ही बड़ी उपलब्धियां हासिल कर ली हों, मगर कामयाबी की रेस में अपने स्वास्थ्य को उन्होंने काफी पीछे छोड़ दिया है. इसीलिए आज महिलाएं कई तरह की मानसिक सहित और कई शारीरिक बीमारियों की शिकार हैं. इस बाबत फिटनैस ट्रेनर सोनिया बजाज कहती हैं कि अधिकतर बीमारियों की उपज थकावट और तनाव है. कामकाजी महिलाओं को इन दोनों ही स्थितियों से गुजरना पड़ता है, क्योंकि उन पर दफ्तर और घर दोनों की जिम्मेदारियों का बोझ होता है. इस चक्कर में उन के लिए अपने लिए समय निकाल पाना बेहद मुश्किल होता है. फिर भी पूरे दिन में 30 मिनट खुद के लिए निकाल कर व्यायाम करना या हलकीफुलकी सैर करना मानसिक तनाव को कम करती है और शारीरिक ऊर्जा बढ़ाती है.

क्यों जरूरी है चलना

आधुनिक युग में अगर महिलाओं का काम बढ़ा है तो उसे करने के लिए सुविधाओं में भी इजाफा हुआ है. उदाहरण के तौर पर लिफ्ट, कंप्यूटर और मोबाइल को ही ले लीजिए. जहां पहले भागभाग कर दफ्तर के काम करने पड़ते थे वहीं अब बैठेबैठे ही हर काम हो जाता है. घर पर मौजूद हाइटैक ऐप्लायंसिस ने भी महिलाओं की शारीरिक गतिविधियों को कम कर दिया है. इस बारे में सोनिया कहती हैं कि हो सकता कि बैठेबैठे काम करने से कम समय में अधिक काम हो जाता हो, मगर इस का स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है. खासतौर पर इस से वजन बढ़ने और दिल का रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. जबकि थोड़ाबहुत चलते रहने पर रक्तसंचार अच्छा रहता है, शरीर के हर अंग तक सही मात्र में औक्सीजन पहुंचती रहती है, जिस से वजन भी नहीं बढ़ता है और ब्लडप्रैशर भी नियंत्रित रहता है.

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वैसे तो जितना तेज चला जाए सेहत के लिए उतना ही अच्छा होता है, मगर दफ्तर में यह संभव नहीं है. इसलिए हर 1 घंटे में 2 मिनट के लिए अपनी सीट से उठ कर थोड़ा टहल लेना भी फायदेमंद साबित हो सकता है. मगर आंतों में जमी चरबी को कम करने के लिए हफ्ते में 3 दिन 30 मिनट तेज चलना हर महिला के लिए जरूरी है वरना लिवर और गुरदों से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

तेज चलने के और भी फायदे हैं:

– 30 मिनट तेज चलने से 150 से ले कर 200 कैलोरीज बर्न की जा सकती हैं.

– तेज चलना टाइप 2 डायबिटीज की संभावना को भी कम करता है.

– दिमाग के महत्त्वपूर्ण हिस्से हिप्पोकैंपस का वौल्यूम भी तेज रफ्तार चलने से 2% बढ़ जाता है. इस से स्मरणशक्ति बढ़ती है.

– तेज चलने से इम्यून सिस्टम भी बढ़ता है, जिस से शरीर के रोगग्रस्त होने की संभावना कम हो जाती है.

व्यायाम से रहें फिट

तेज चलने के साथसाथ व्यायाम करना भी महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है. महिलाओं को भ्रम होता है कि व्यायाम केवल वजन कम करने के लिए किया जाता है जबकि ऐसा नहीं है. व्यायाम से कई शारीरिक और मानसिक बीमारियों का इलाज संभव है. दिलचस्प बात यह है कि व्यायाम करने के लिए जिम जाने की भी जरूरत नहीं है. घर पर ही कुछ समय निकाल कर थोड़ाबहुत व्यायाम किया जा सकता है. व्यायाम के निम्नलिखित लाभ हैं:

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– 30 की उम्र के बाद महिलाओं में हड्डियों से जुड़ी परेशानियां बढ़ जाती हैं, जिन में औस्टियोपोरोसिस सब से प्रमुख है. इस बीमारी में हड्डियां कमजोर हो कर टूटने लगती हैं. इस से बचने के लिए वेट लिफ्टिंग, जौगिंग, हाइकिंग और रस्सी कूदने जैसे व्यायाम किए जा सकते हैं. इस से हड्डियां मजबूत होती हैं.

– उम्र के साथसाथ महिलाओं की मांसपेशियों में टिशूज बनना बंद हो जाते हैं. ऐसा मैटाबोलिज्म लैवल के कम होने से होता है. इस से मोटापा बढ़ने लगता है. मगर व्यायाम मैटाबोलिज्म लैवल को बढ़ाता है, जिस से मांसपेशियों में टिशू बनने की गति तेज हो जाती है.

– कब्ज की समस्या में भी व्यायाम काफी मददगार है. इस समस्या के लिए ऐरोबिक, स्विमिंग और बाइकिंग व्यायाम सब से अच्छे हैं. इन से रक्तसंचार सुचारु होता है और गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट तक पहुंचता है, जिस से खाना अच्छी तरह से हजम हो जाता है.

– व्यायाम करते समय मस्तिष्क से रिलीज होने वाले न्यूरोट्रांसमिटर्स और ऐंडोर्फिन कैमिकल अवसाद, बेचैनी और तनाव को भी कम करते हैं.

– व्यायाम मुंहासों की समस्या का भी सब से अच्छा समाधान है. दरअसल, व्यायाम करते समय पसीने के साथ डीएचइए एवं डीएचटी जैसे हारमोन भी रिलीज होते हैं, जो त्वचा के बंद छिद्रों को खोलते हैं, जिस से त्वचा की गहरी परतों में छिपी गंदगी बाहर निकल जाती है.

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अत: महिलाएं अपनी जीवनशैली में थोड़ा सा बदलाव कर यदि 30 मिनट भी निकाल लें, तो खुद को कई गंभीर रोगों से बचा सकती हैं

Crime Story: इंस्टेंट प्यार

लेखक-  आर.के. राजू

शादीशुदा और 4 बच्चों की मां रीनू ने पहली गलती कपिल से अवैध संबंध बना कर की, दूसरी गलती उस ने इस संबंध को स्थाई बनाने के लिए अपनी छोटी बहन की शादी कपिल से करा कर की. उस की तीसरी गलती कपिल को रिश्तेदार बना कर घर में रखने की थी. और चौथी गलती पति शिवकुमार को मौत के घाट उतरवाने की. इतनी गलतियां करने के बाद…

20जून, 2020 की सुबह की बात है. मुरादाबाद शहर के सिरकोई भूड़ की रहने वाली वीरवती रोजाना की
तरह सुबह की सैर के लिए निकली थीं. लेकिन उन्होंने मोहल्ले में जो कुछ देखा, उसे देख वह हक्कीबक्की रह गईं. वीरवती जब गली नंबर एक के पास पहुंचीं तो वहां एक युवक की लाश पड़ी थी. जिज्ञासावश वह लाश के नजदीक पहुंचीं तो उन की चीख निकल गई, क्योंकि वह लाश उन के सगे भांजे शिवकुमार की थी. शिवकुमार उसी गली में रहता था, जिस गली में उस की लाश पड़ी थी. वीरवती रोती हुई शिवकुमार के घर पहुंचीं और यह खबर दी. शिवकुमार के पिता रामकुमार परिवार के लोगों के साथ तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

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शिवकुमार का सिर कुचला हुआ था और पास में ही खून से सनी एक ईंट पड़ी थी. ईंट को देख कर वह समझ गए कि उसी से शिवकुमार का सिर कुचला गया है. घर वालों की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले के और लोग भी वहां जमा हो गए. कुछ ही देर में शिवकुमार की हत्या की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. फिर क्या था, थोड़ी ही देर में वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि शिवकुमार की हत्या किस ने और क्यों की.इसी दौरान किसी ने फोन कर के इस की सूचना थाना मझोला पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह उसी समय रात्रि गश्त से लौटे थे, हत्या की खबर सुन कर वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश और घटनास्थल का मुआयना किया. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया और यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सुबूत जुटाए. पुलिस ने खून से सनी ईंट अपने कब्जे में ले ली.

सूचना मिलने के बाद एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद और तत्कालीन एएसपी दीपक भूकर भी वहां आ गए. मृतक के घर वाले वहां मौजूद थे, मृतक की शिनाख्त हो चुकी थी. हत्यारे ने जिस तरह से शिवकुमार का सिर कुचला था, उसे देख कर लग रहा था कि हत्यारे की उस से कोई गहरी रंजिश रही होगी. मृतक के घर वालों और अन्य लोगों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शिवकुमार का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

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पूछताछ में मृतक की पत्नी रीनू ने बताया कि उस के पति ने 2 लोगों से कर्ज ले रखा था. कर्ज न चुकाने की वजह से वे शिवकुमार को काफी तंग कर रहे थे. रीनू ने आरोप लगाया कि शायद उन्हीं लोगों ने उस के पति की हत्या की होगी. जबकि मृतक के छोटे भाई राजकुमार ने हत्या का शक मृतक के साढ़ू कपिल उर्फ मोनू पर जताया. इतना ही नहीं, उस ने थाने पहुंच कर कपिल उर्फ मोनू के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करा दी.
नामजद रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी. संदिग्ध आरोपी कपिल मुरादाबाद शहर के ही लाइनपार इलाके के प्रकाशनगर में रहता था. पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. इस से उस पर पुलिस का शक बढ़ गया. कपिल से पूछताछ जरूरी थी, लिहाजा पुलिस ने उस की खोजबीन शुरू कर दी. थानाप्रभारी ने कपिल की तलाश में मुखबिर भी लगा दिए.

इस का नतीजा यह निकला कि 23 जून, 2020 को एक मुखबिर से मिली सूचना के बाद पुलिस ने शिवकुमार के साढ़ू कपिल उर्फ मोनू को मुरादाबाद दिल्ली हाइवे पर स्थित बस स्टाप से गिरफ्तार कर लिया. वह दिल्ली भागने की फिराक में था. थाने ला कर कपिल से शिवकुमार की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई, तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि शिवकुमार की हत्या में उस की पत्नी रीनू भी शामिल थी.कपिल उर्फ मोनू से पूछताछ के बाद शिवकुमार की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी.

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महानगर मुरादाबाद का एक मोहल्ला है सिरकोई भूड़. रामकुमार अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहते थे. उन के परिवार में 4 बेटियों के अलावा 2 बेटे थे. रामकुमार मुरादाबाद के जलकल विभाग में नलकूप औपरेटर थे. इस नौकरी से ही वह परिवार का पालनपोषण करते थे. उन्होंने सन 2007 में बड़े बेटे शिवकुमार की शादी मुरादाबाद जिले के ही गांव मझरा निवासी नरेश कुमार की बेटी रीनू के साथ की थी.
जैसेजैसे रामकुमार का रिटायरमेंट का समय नजदीक आता जा रहा था, वैसेवैसे उन की चिंता बढ़ती जा रही थी. वजह यह थी कि उन के दोनों बेटों में से कोई भी पढ़लिख कर काबिल नहीं बन सका था. करीब 2 साल पहले रामकुमार रिटायर हो गए, लेकिन इस से पहले उन्होंने नगर आयुक्त संजय चौहान से अनुरोध कर बड़े बेटे शिवकुमार को जलकल विभाग में संविदा के तौर पर नलकूप चालक की नौकरी दिलवा दी थी.
शिवकुमार की ड्यूटी उस के घर से कुछ ही दूर पर कांशीराम नगर में थी.

उस का काम नलकूप चला कर पानी का टैंक भरने का था. बेटे की नौकरी लग जाने के बाद रामकुमार ने राहत की सांस ली. मुरादाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा विकसित किए गए कांशीराम नगर के पास ही बुद्धा पार्क है. इस पार्क में सैकड़ों लोग घूमने आते हैं, जिस से सुबहशाम चहलपहल रहती है. इसी पार्क के बाहर कपिल उर्फ मोनू फास्टफूड का काउंटर लगाता था. वह शहर के लाइनपार स्थित प्रकाश नगर में रहता था. कपिल बहुत स्वादिष्ट फास्टफूड बनाता था, उस के पास ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी.
शिवकुमार की पत्नी रीनू अकसर कपिल का फास्टफूड खाने जाती थी. कपिल बहुत बातूनी था. रीनू को भी उस से बात करना अच्छा लगता था. बातचीत के दौरान दोनों की दोस्ती हो गई.

इस के बाद कपिल रीनू के कहने पर उस के घर पर ही बर्गर, पिज्जा आदि देने के बहाने जाने लगा. दोनों जब फुरसत में होते तो फोन पर खूब बातें करते थे. बातचीत का दायरा बढ़ा तो दोनों का एकदूसरे की तरफ झुकाव हो गया, दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. रीनू यह भी भूल गई कि वह शादीशुदा ही नहीं, 4 बच्चों की मां भी है. वह जो कर रही है वह सही नहीं है. वह कपिल के आकर्षण में बंध चुकी थी. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए.रीनू का पति शिवकुमार अकसर रात की ड्यूटी करता था. उस के ड्यूटी चले जाने के बाद मीनू फोन कर के कपिल को अपने घर बुला लेती थी. उस के बाद दोनों अपनी हसरतें पूरी करते थे.

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ढूंढ लिया स्थाई जुगाड़

पिछले करीब 2 साल से उन का यही सिलसिला चल रहा था. रीनू किसी भी तरह कपिल से दूर नहीं होना चाहती थी. इस के लिए उस ने एक योजना बनाई. इस योजना के तहत उस ने कपिल के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि वह उस की छोटी बहन रिंकी से शादी कर ले तो इस रिश्ते की आड़ में उन के संबंध यूं ही बने रहेंगे और उन पर किसी को शक भी नहीं होगा. यह बात कपिल की समझ में आ गई.रीनू और कपिल ने अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए योजना तो बना ली थी, लेकिन यह योजना शिवकुमार के बिना साकार नहीं हो सकती थी. लिहाजा एक दिन रीनू ने पति से कहा, ‘‘हम लोग काफी दिनों से रिंकी के लिए लड़का तलाश रहे हैं, लेकिन अभी तक कहीं कोई बात नहीं बनी. हम लोग बुद्धा पार्क के पास जिस कपिल के पास फास्टफूड खाने जाते हैं, वह मुझे सही लगा. तुम उस से बात कर के देखो.’’

शिवकुमार को पत्नी की चाल का पता नहीं था. उसे कपिल अच्छा लड़का नजर आया, क्योंकि वह अच्छा कमा रहा था. उस ने सोचा कि अगर रिंकी की शादी कपिल से हो जाएगी तो वह सुख से रहेगी.सोचविचार कर शिवकुमार ने कपिल के सामने अपनी साली रिंकी के साथ शादी का प्रस्ताव रखा. इस पर कपिल ने कहा कि पहले वह लड़की को देखेगा, उस के बाद ही कोई जवाब देगा. निर्धारित समय पर रीनू ने अपने घर पर ही लड़की दिखाने का प्रोग्राम निश्चित कर लिया.

कपिल अपने घर वालों के साथ रीनू के घर पहुंचा. उन्होंने लड़की को पसंद कर लिया. आगे की बातचीत करने के बाद रिंकी से कपिल की शादी हो गई. यह करीब डेढ़ साल पहले की बात है. शिवकुमार ने साली की शादी में दिल खोल कर पैसा खर्च किया.रिंकी से शादी हो जाने के बाद कपिल का रीनू के घर आनाजाना बढ़ गया. अब दोनों रिश्तेदार हो गए थे, इसलिए दोनों के रिश्ते पर किसी को शक नहीं हुआ. लेकिन गलत काम ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता. एक न एक दिन पोल खुल ही जाती है.कोरोना महामारी के बाद पूरे देश में लौकडाउन लग गया. लौकडाउन लगने के बाद कपिल का फास्टफूड का काउंटर भी बंद हो गया था. इस के बाद वह अकसर रीनू के घर पर ही पड़ा रहने लगा.

शिवकुमार को शक हुआ कि वह उस के घर पर ही क्यों पड़ा रहता है. उस ने कपिल पर निगाह रखनी शुरू कर दी. अपनी पत्नी और कपिल के व्यवहार से शिवकुमार को शक हो गया कि दोनों के बीच जरूर कोई चक्कर चल रहा है. शिवकुमार की नजरों में चढ़ा कपिलइस बारे में उस ने पत्नी से बात की तो रीनू ने उसे समझाया कि लौकडाउन में काम बंद पड़ा है, इसलिए कपिल यहां आ जाता है.लेकिन शिवकुमार पत्नी की इस बात से संतुष्ट नहीं हुआ. तब उस ने पत्नी के साथ सख्ती बरती. उस ने अपने साढ़ू कपिल से भी कह दिया कि वह घर न आया करे.

पति की यह बात रीनू को बहुत बुरी लगी. वह कपिल के पक्ष में खड़ी हो गई. उस ने कहा कि जब ये हमारे रिश्तेदार हैं तो इन्हें आने से कैसे रोक सकते हैं. इस बात को ले कर शिवकुमार और कपिल के बीच कई बार झगड़ा हुआ. इस के बाद भी कपिल ने रीनू के पास आना बंद नहीं किया. शिवकुमार रात को जब अपनी ड्यूटी पर चला जाता, कपिल उस के घर पहुंच जाता था.19-20 जून, 2020 की रात को करीब 12 बजे शिवकुमार अपनी ड्यूटी पर चला गया. पति के जाते ही मीनू ने फोन कर के कपिल को घर बुला लिया. इस के बाद दोनों अपनी हसरतें पूरी करने में जुट गए.

उधर 3-4 घंटे में पानी का टैंक भरने के बाद शिवकुमार सुबह करीब 4 बजे घर लौट आया. दरवाजा खुलवाने के लिए उस ने रीनू को आवाज दी. लेकिन वह कपिल के साथ रंगरलियां मना रही थी. शिवकुमार की आवाज सुन कर दोनों हड़बड़ा गए. अपने कपड़े संभालती हुई रीनू दरवाजा खोलने आई. उस समय शिवकुमार शराब के नशे में था. उस ने कमरे में कपिल को देखा तो आगबबूला हो गया. उसे समझते देर न लगी कि कमरे में क्या हो रहा था.गुस्से में आगबबूला शिवकुमार कपिल से भिड़ गया. रीनू उस का बचाव करने के लिए सामने आई, तो शिवकुमार ने पत्नी को भी गालियां दीं. शोरशराबा हुआ तो रीनू और कपिल को विश्वास हो गया कि अब उन की पोल खुल जाएगी. लिहाजा दोनों ने एकदूसरे की ओर देख कर आंखों ही आंखों में इशारा कर एक षडयंत्र रच लिया.

फंस गया शिवकुमार

इस षडयंत्र के तहत कपिल ने शिवकुमार को बिस्तर पर गिरा लिया और उस के सीने पर सवार हो गया. तभी रीनू ने तकिया उठा कर कपिल को दे दिया. कपिल ने तकिया शिवकुमार के मुंह पर रख कर जोरों से दबाया. रीनू ने पति के पैर दबा रखे थे. सांस घुटने से कुछ ही देर में शिवकुमार की मौत हो गई.
खुद को बचाने के लिए दोनों ने शिवकुमार की लाश गली में डाल दी. वह कहीं जीवित न रह जाए, इसलिए कपिल ने गली में पड़ी एक ईंट से शिवकुमार के सिर को बुरी तरह से कुचल दिया.

इस काम को अंजाम देने के बाद कपिल अपने घर चला गया. सुबह करीब 5 बजे जब शिवकुमार की मौसी वीरवती घर से सैर के लिए निकलीं, तब उन्होंने गली में शिवकुमार की लाश देखी. इस के बाद उन्होंने शोर मचा कर हत्या की जानकारी घर वालों को दी.कपिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रीनू को भी गिरफ्तार कर लिया. रीनू ने भी पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने 23 जून,2020 को कपिल कुमार उर्फ मोनू और रीनू को शिवकुमार की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया.

वह पूनम की रात-भाग 1 : आखिर क्या हुआ था उस पूनम की रात में

दिल ढूंढ़ता, है फिर वही… फुरसत के रात दिन…‘ सामने वाले मकान से आते इस गाने की धुन को सुन कर मैं जल्दी से छत पर आ गया. शायद कोई साउंड बौक्स पर या कैसियो से इस गाने की धुन को बजा रहा था.

‘‘वाह, कितना सुंदर…‘‘ मेरे मुंह से अनायास ही निकला. छत पर उस गाने की धुन और भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी. मैं चुपचाप खड़ा गाने की धुन को सुनने लगा.

उस धुन को सुन कर ऐसा लग रहा था, जैसे कानों के रास्ते दिल में कोई अमृतरस टपक रहा हो. ऊपर से मौसम भी काफी खुशगवार था. साफ आसमान, टिमटिमाते तारे, हौलेहौले बहती ठंडी हवाएं मन आनंदित हो उठा. तभी मैं ने देखा, ऊंचीऊंची इमारतों की ओट से बड़ा सा गोलगोल चमकता हुआ चांद, अपना चेहरा बाहर निकालने का इस तरह से प्रयास कर रहा है, जैसे कोई नईनवेली दुलहन शर्मोहया से लबरेज आहिस्ताआहिस्ता अपना घूंघट हटा रही हो. प्रकृति के इस खूबसूरत नजारे को देख कर मैं ठगा सा रह गया.

‘‘क्या देख रहे हो?‘‘ तभी अचानक पीछे से प्रीति की आवाज आई. उस की आवाज सुन कर क्षण भर के लिए मैं चौंक गया. फिर उसे देख कर मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, तुम भी देखो,  कितना खूबसूरत नजारा है न.‘‘

‘‘बहुत सुंदर है, आज पूनम की रात जो है.‘‘ प्रीति मेरे बगल में आ कर मुझ से सट कर खड़ी हो गई. फिर वह भी उस खूबसूरत नजारे को अपलक निहारने लगी.

‘‘ऐसी रात में अगर सारी रात भी जागना पड़ जाए, तो कुछ गम नहीं,‘‘ भावातिरेक में मैं ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘तुम्हें वह पूनम की रात याद है न?‘‘ प्रीति अपनी झील जैसी झिलमिलाती आंखों से मेरी ओर देखती, जैसे मुझे कुछ याद दिलाने का प्रयास करते हुए बोली.

‘‘उस रात को कैसे भूल सकता हूं? उस रात तो जैसे चांद ही धरती पर उतर आया था…‘‘ मैं ने गंभीर हो कर उदासी भरे स्वर में कहा.

उस गाने की धुन अभी भी सुनाई पड़ रही थी. चांद भी इमारतों की ओट से निकल आया था. उस की चांदनी से आंखों की ज्योत्सना बढ़ती जा रही थी पर उस रात की याद आते ही, मेरे साथसाथ प्रीति के चेहरे पर भी उदासी की झलक उतर आई. मैं ने देखा, इस के बावजूद उस के होंठों पर हलकी सी मुसकान उभर आई थी, लेकिन आंखों में तैर आए पानी को वह छिपा नहीं पाई. मैं ने उस के कंधे पर हौले से हाथ रख कर जैसे ढांढ़स बंधाने का प्रयास किया.

उस रात मेरी आंखों में नींद ही नहीं थी. बस, बिस्तर पर बारबार मैं करवटें बदल रहा था और अपने कमरे की खुली खिड़की से बाहर के नजारे को निहारे जा रहा था.

बाहर चांदी की चादर की तरह पूनम की चांदनी बिखरी हुई थी, जिस में सभी नजारे नहा रहे थे. ऐसी खूबसूरती को देख मेरे मन में आनंद की लहरें उमड़ रही थीं. खिड़की के ठीक सामने, आंगन में लगे जामुन की नईनई कोमल पत्तियों की चमक ऐसी थी, जैसे उन पर पिघली हुई चांदी की पतलीपतली परत चढ़ा दी गई हो. फिर हवा के झोंकों से अठखेलियां करती, उन पत्तियों की सरसराहट से मन में मदहोशी के साथ दिल में गुदगुदी सी पैदा हो रही थी.

दादी खाना खाने के बाद जैसा कि अकसर गांव में होता है, सीधे अपने कमरे में चली गई थीं. शायद वे सो रही थीं. रात के 9 बज चुके थे इसलिए चारों तरफ गहरी खामोशी थी. बस, कभीकभार कुत्तों के भौंकने की आवाज आती थी और दूर मैदानों में टुंगरी के आसपास उस निशाचरपक्षी के बोलने की आवाज सुनाईर् पड़ रही थी, जिसे कभी देखा तो नहीं, पर दादी से उस के बारे में सुना जरूर था, ‘रात को चरने वाली उस चिडि़या का नाम ‘टिटिटोहों‘ है. वह अधिकतर चांदनी रात में ही निकलती है.‘ उस का बोलना पता नहीं क्यों मेरे मन को हमेशा ही मोहित सा कर देता. लगता जैसे वह चांदनी रात में अपने साथ विचरण करने के लिए बुला रही हो.

मेरे दिल की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी, मन अधीर होता जा रहा था. उस वक्त एकएक पल जैसे घंटे के समान लग रहा था पर घड़ी के कांटे को मेरी तड़प से शायद कोई मतलब नहीं था. उस की चाल इतनी सुस्त जान पड़ रही थी कि अपने पर काबू रखना मुश्किल होता जा रहा था. फिर बड़ी मुश्किल से जब घड़ी के मिनट का कांटा तय समय पर जा कर अटका, तो मैं उसी बेचैनी के साथ जल्दी से

अपने बिस्तर से उठ कर आहिस्ताआहिस्ता अपने कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

गांव के बाहर स्थित मंदिर के पास प्रीति पहले से मेरा इंतजार कर रही थी. प्रीति को देखते ही खुशी से मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई, लेकिन अनजानी आशंका से थोड़ी घबराहट भी हुई, ‘‘कोई गड़बड़ तो नहीं हुई न,‘‘ पास पहुंचते ही मैं ने धीरे से पूछा था.

‘‘कोई गड़बड़ नहीं हुई. सभी सो चुके थे. मैं बड़ी सावधानी से निकली हूं,‘‘ प्रीति मुसकरा कर बोली थी.

‘‘तो चलो, चलते हैं,‘‘ मैं ने उत्साहित हो कर प्रीति का हाथ थामते हुए कहा.

फिर दोनों एकदूसरे का हाथ थामे टुंगरी की ओर जाने लगे. रास्ते में दोनों तरफ पुटूस के झुरमुट थे, जिन में जुगनुओं की झिलमिलाती लड़ी देखते बन रही थी. ऊपर चांदनी रात की खूबसूरती, दोनों के मन को जैसे बहकाए जा रही थी.

दोनों जब खुले मैदान में पहुंचे, तो नजारा और भी खूबसूरत हो उठा. साफ नीला आसमान, टिमटिमाते तारे और बड़ा गोल सा चांदी जैसा चमकता चांद, जिस की बरसती चांदनी में पूरी धरती जैसे स्नान कर रही थी और मंदमंद बहती हवा मन को जैसे मदहोश किए जा रही थी.

अचानक बेखुदी में दोनों के कदम तेज हो गए और एकदूसरे का हाथ पकड़, मैदान में दौड़ने लगे. अब टुंगरी भी बिलकुल पास ही थी. वह निशाचर चिडि़या नजदीक ही कहीं आवाज दे रही थी. तभी उस के पंख फड़फड़ाए और वह उड़ती नजर आई. मेरा दिल एक बार फिर से धक रह गया.

‘‘प्रीति, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब हकीकत है. कहीं यह ख्वाब तो नहीं,‘‘ मैं ने प्रीति की नाजुक हथेली को जोर से भींच कर कहा. अपने बहकते जज्बातों को मैं जैसे रोक नहीं पा रहा था.

गोवध संरक्षण कानून : निर्दोषों को जेल भेजने का जरिया

राम और गंगा के बाद गाय को धर्म की राजनीति का केंद्र बनाया जा रहा है. कृष्ण और शिव के बहाने गाय का महत्व जनता को समझाया जाता है. धार्मिक कहानियों में गाय का दान स्वर्ग के रास्ते को प्रशस्त करता है. गोवध संरक्षण कानून को कड़ा करने का काम किया गया, जिस से गोरक्षा के नाम पर हिंसा शुरू हो गई.
यह कानून निर्दोष लोगों के उत्पीड़न का जरीया बन गया. पुलिस और सरकार हिंसा करने वालों की जगह पीड़ितों को ही परेशान करने लगी. धार्मिक महत्व के बाद भी भारत में केवल मुसलिम और ईसाई ही नहीं, कुछ हिंदू जातियां भी गाय के मांस को खाती हैं. बीफ कारोबार की नजर से देखें, तो भारत से बड़ी मात्रा में बीफ विदेशों में भेजा जाता है.
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गोवध संरक्षण कानून पूरे देश में लागू नहीं है. हर प्रदेश ने अपने हिसाब से इसे लागू किया है. तमाम कानूनों की तरह गोवध संरक्षण कानून भी सवालों के घेरे में है. हाईकोर्ट इस के क्रियान्वयन से संतुष्ट नहीं है.
गोवध संरक्षण कानून का उद्देश्य गाय और उस के वंश में वृद्वि, संरक्षण और संवर्धन था. साल 2010 से 2017 के बीच के आंकडे़ बताते हैं कि गोवध कानून का प्रयोग सामाजिक समरसता को तोड़ने और निर्दोषों के उत्पीड़न में प्रयोग होने लगा.
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद ऐसे मामले और भी बढ़े. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उत्तर प्रदेश में गोवध संरक्षण कानून का दुरुपयोग हो रहा है. छुट्टा जानवर किसानों की फसल बरबाद कर रहे हैं और सड़कों पर दुर्घटना की वजह बन रहे हैं.
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बात केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. देश के अलगअलग राज्यों में ऐसी घटनाएं बताती हैं कि गोसंरक्षण के नाम पर केवल सरकार ही निर्दोषों का उत्पीड़न नहीं कर रही, बल्कि तमाम निजी संगठन और सेनाएं भी इस की आड़ में दंगेफसाद कर रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ने गोवध संरक्षण कानून पर सवालिया निशान लगा दिया है?
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ समय पहले गोवध संरक्षण के लिए काम करने वाले निजी संगठनों और सेनाओं पर सवाल उठाया था.
इस पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा था कि गोरक्षा का दावा करने वाले तकरीबन 70-80 फीसदी लोग असामाजिक काम में शामिल मिलेंगे. गोरक्षा का दावा करने वाले लोग अपनी दुकानें चला रहे हैं. कुछ लोग गोरक्षा के नाम पर समाज में तनाव पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं. मैं देशवासियों को बताना चाहता हूं कि फर्जी गोरक्षकों से सचेत रहें. ऐसे लोगों की पहचान करने की जरूरत है, जो समाज के तानेबाने को नष्ट करना चाहते हैं. इस के बाद भी किसी सरकार ने अपनी कार्यशैली में सुधार नहीं किया. इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला इस का उदाहरण है.
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*मुखर हुआ हाईकोर्ट :*
उत्तर प्रदेश के शामली जिले के भवन थाने में गाय की तस्करी को ले कर अगस्त माह में मुकदमा कायम हुआ था. पुलिस ने मौके से किसी को नहीं पकडा था. एक महीने के बाद रहमू उर्फ रहमुद्दीन के खिलाफ मुकदमा कायम हुआ. 5 अगस्त को पुलिस ने उसे पकड कर जेल भेज दिया.
रहमू उर्फ रहमुद्दीन के परिवार के लोगों ने सेशन कोर्ट में जमानत के लिए प्रार्थनापत्र दिया. वहां से जमानत न मिलने के बाद मामला हाईकोर्ट में आया.
रहमू उर्फ रहमुददीन के वकील ने हाईकोर्ट को बताया कि आरोपी कई महीने से जेल में बंद है. एफआईआर में उस के खिलाफ कोई विशेष आरोप भी नहीं है. उस को घटनास्थल से पकड़ा भी नहीं गया.
26 अक्तूबर को हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ ने रहमू उर्फ रहमुद्दीन के मुकदमे को देखा, तब उन को लगा कि गोवध संरक्षण कानून का किस तरह से दुरुपयोग हो रहा है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ ने ना केवल आरोपी रहमू उर्फ रहमुद्दीन को जमानत देने का काम किया, बल्कि गोवध संरक्षण कानून की आड़ में लोगों के उत्पीड़न पर भी कड़ी टिप्पणी करते हुए छुट्टा जानवरों के रखरखाव पर भी चिंता व्यक्त की.
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हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा, ‘इस कानून को ‘निर्दोषों‘ के खिलाफ दुरुपयोग किया जा रहा है.’ यह कहते हुए हाईकोर्ट ने शामली जिले के निवासी आरोपी रहमू उर्फ रहमुद्दीन को सशर्त जमानत पर रिहा करने का भी आदेश दिया.
हाईकोर्ट ने गोमांस की तस्करी में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब भी कोई मांस पकड़ा जाता है, इसे गोमांस के रूप में दिखाया जाता है. कई बार इस की जांच भी फौरेंसिक लैब में नहीं कराई जाती है. इस कानून का गलत इस्तेमाल निर्दोषों के खिलाफ किया जा रहा है. हाईकोर्ट ने छुट्टा जानवरों की देखभाल की हालत पर भी चिंता व्यक्त की.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में गोहत्या और तस्करी के मुकदमों में पुलिस की कार्यशैली को ले कर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते कहा ‘जब कभी गोमांस तैयार किया जाता है, तो रिकवरी मैमो तैयार नहीं किया जाता है. ज्यादातर मामलों में बरामद मांस को फौरेंसिक लैब में जांच के लिए नहीं भेजा जाता है. आरोपी को उस अपराध में जेल जाना होता है, जिस में 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. एफआईआर में आरोपी के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं है. उसे ना तो घटनास्थल से पकड़ा गया और ना ही पुलिस ने यह जानने का प्रयास किया कि बरामद मांस वास्तव में गाय का है या किसी अन्य जानवर का. इस की वजह से आरोपी ऐसे अपराध के लिए जेल में सड़ता रहता है, जो शायद उस ने किया ही नहीं. इतना ही नहीं, जब भी गायों को बरामद दिखाया जाता है, तो उस का जब्ती मैमो भी नहीं बनाया जाता है. किसी को पता नहीं चलता कि बरामद होने के बाद गाएं कहां जाती हैं.‘
हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ ने अपने फैसले में छुट्टा जानवरों की समस्या पर भी सवाल उठाते हुए कहा, ‘दूध न देने वाली गायों को छोड़ना समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है. वे किसानों की फसल बरबाद कर रहे हैं. पहले किसान नीलगाय से डरते थे, अब उन्हें अपनी फसलों को छुट्टा गायों से भी बचाना होता है. गाय चाहे सड़क पर हो या खेतों में उन के परित्याग का समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.‘
हाईकोर्ट ने कहा, ‘अगर गोवध कानून को उस की भावना के तहत लागू किया जाना है, तो छुट्टा गायों को या तो उन के मालिकों के यहां रखना होगा या उन के लिए आश्रय की व्यवस्था करनी होगी.‘
*गोवध संरक्षण कानून का दुरुपयोग :*
गोवध संरक्षण कानून के संबंध में ‘इंडिया स्पैंड’ की रिपोर्ट पूरे देश के सच को बताती है. इस में कहा गया है कि गोवध से जुड़ी हिंसा के मामले नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा की सरकार बनने के बाद बढे़ हैं.
साल 2010 से 2017 के बीच गोवंश को ले कर हुई हिंसा में 57 फीसदी मुसलिम शिकार हुए. हिंसा में मारे जाने वाले लोगों में 86 फीसदी मुसलिम थे. 8 सालों में हिंसा की 63 घटनाओं में 28 लोग मारे गए. इन में 24 मुसलिम थे. इन में 124 लोग घायल हुए. गोवंश हिंसा के 97 फीसदी मामले मोदी सरकार के आने के बाद हुए. हिंसा के 52 फीसदी मामले झूठी अफवाहों की वजह से हुए. हिंसा से जुडे़ 63 मामलों में से 32 भाजपाशासित राज्यों में हुए.
‘इंडिया स्पैंड’ के अनुसार, साल 2017 में गोवंश से जुडे़ हिंसा के मामलों में तेजी आई. जून, 2017 तक ही 20 मामले हुए. इन मामलों में भीड़ के द्वारा हत्या, हत्या की कोशिश, उत्पीड़न, सामूहिक बलात्कार के मामले शामिल हैं. जंजीर में बांध कर नंगा घुमाने और पीड़ितों को फांसी पर लटकाने की घटनाए भी हुईं.
गोवंश से जुडी हिंसा के सब से ज्यादा 10 मामले उत्तर प्रदेश, 9 हरियाणा, 6 गुजरात, 4 मध्य प्रदेश, 4 दिल्ली, 4 राजस्थान में दर्ज किए गए. बंगाल, ओडिशा, असम में एकएक मामला दर्ज किया गया.
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हुई कुल 139 गिरफ्तारियों में से आधे से अधिक 76 गिरफ्तारियां गौहत्या के मामलों में हुई हैं. इस साल 26 अगस्त तक राज्य में गोहत्या के 1,716 मामले दर्ज किए गए हैं और 4,000 से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
आंकडे बताते हैं कि 32 मामलों में पुलिस कोई सुबूत पेश नहीं कर सकी और क्लोजर रिपोर्ट लगानी पड़ी. इस से पता चलता है कि जस्टिस सिद्धार्थ ने गोरक्षा कानून के क्रियान्वयन पर ऐसे ही टिप्पणी नहीं की है. इस के पीछे ठोस वजहें भी हैं.
*साल दर साल बिगड़ते हालात :*
राजस्थान के रहने वाले पहलू खान साल 2017 में हरियाणा के नूंह जिले से 2 गाय खरीद कर जयपुर अपने घर ले जा रहे थे. इसी बीच भीड़ ने उन को गोवंश का तस्कर मान कर हमला कर दिया. भीड़ ने पहलू खान और उन के बेटों पर गोवंश की तस्करी का आरोप लगाया.
पहलू खान की मौब लिंचिंग में हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने पहलू खान पर हमला करने वालों के खिलाफ हत्या का केस तो बहुत बाद में दर्ज किया, पर पहलू खान, उन के बेटों और पिकअप ड्राइवर के खिलाफ गोवंश की तस्करी का मामला सब से पहले दर्ज कर लिया.
पहलू खान के बेटों ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर के खिलाफ अपील की थी और उन का कहना था कि वे गोवंश की तस्करी नहीं कर रहे थे, बल्कि इसे खरीदा था और इस के पेपर भी थे. पुलिस ने पहलू खान के बेटों के तर्क को नहीं माना था. उन पर गोवंश  की तस्करी का मुकदमा कायम कर दिया था.
उत्तर प्रदेश के नोएडा, दादरी गांव में सितंबर, 2015 को उग्र भीड़ ने मोहम्मद अखलाक के घर में घुस कर उस की हत्या कर दी. उस के बेटे दानिश को पीटपीट कर अधमरा कर दिया. भीड़ का गुस्सा इस अफवाह पर था कि मोहम्मद अखलाक के घर में गोमांस पकाया गया है.
उत्तर प्रदेश पुलिस ने घटना की जांच के दौरान अखलाक के घर से बरामद मीट को फौरेंसिक जांच के लिए भेजा था. मथुरा की लैब से उस की जांच रिपोर्ट आने के बाद इस बात की पुष्टि हो गई थी कि घर में पकने वाला मीट मटन होने के बजाय गोमांस ही था.
पुलिस ने जिन लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया, उन में अखलाक का भाई जान मोहम्मद, अखलाक की मां असगरी, अखलाक की पत्नी इकरामन, अखलाक का बेटा दानिश खान, अखलाक की बेटी शाहिस्ता और रिश्तेदार सोनी का नाम शामिल था.
अखलाक के परिवार की शिकायत पर 19 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. पुलिस की जांच में तमाम तरह की खामी पाई गई, जिस से आरोपियों को बचाव का मौका मिला.
पुलिस ने जिस तत्परता से अखलाक के परिवार के लोगों पर मुकदमा लिखाया, उस तत्परता से अखलाक की हत्या करने वालों पर मुकदमा नहीं लिखाया गया.
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पुलिस इंस्पैक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी गई थी. हत्या का आरोप भीड़ पर लगा था. भीड़ को उकसा कर हिंसा भड़काने के मुख्य आरोपी के रूप में पुलिस ने योगेश राज को पकड़ा था.
योगेश राज ने कहा कि ‘3 दिसंबर की घटना गोकशी को ले कर हुई थी. 20-25 गोवंश को बेरहमी से काटा गया था. इस को ले कर हिंदू संगठनों ने जाम लगाया था.
‘मैं जाम खुलवा कर स्याना कोतवाली में मुकदमा दर्ज करवाने चला गया था. मुझे इंस्पैक्टर की मौत के विषय में कुछ नहीं मालूम. क्योंकि उस वक्त मैं वहां मौजूद था, न ही मुझे उस घटना के बारे में कोई जानकारी है.
शहीद इंस्पैक्टर सुबोध की पत्नी कहती है कि पुलिस ने ही सही से तफतीश नहीं की. मुझे अब डर है कि ये लोग एक दिन मुझे भी मार डालेंगे.
इस मामले में पुलिस की कार्यवाही पर शुरू से ही सवाल उठते रहे हैं. पहले पुलिस ने 4 लोगों को गोकशी के इलजाम में जेल भेजा, बाद में एसआईटी ने उन्हें निर्दोष बता कर छोड़ दिया और 4 दूसरे लोगों को पकड़ा.
पुलिस ने जीतू फौजी को इंस्पैक्टर की हत्या का मुलजिम बनाया. बाद में एसआईटी ने उसे निर्दोष पाया और कलुआ नट पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ. इंस्पैक्टर की पिस्तौल छीन कर उन की हत्या हुई, लेकिन वह आज तक बरामद नहीं हुई.
राजस्थान में 30 मई, 2015 को भीड़ ने नागौर जिले के बिरलोका गांव में मांस की दुकान चलाने वाले 60 वर्षीय अब्दुल गफ्फार कुरैशी की डंडे और लोहे की छड़ से बेरहमी से पिटाई की थी. अगले दिन उन की मौत हो गई. भीड़ ने उन के घर और दुकान को भी तोड़ डाला था. घटना के 2 साल बाद पुलिस ने हमले के 3 अभियुक्तों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया.
उत्तर प्रदेश के दादरी शहर में 2 अगस्त, 2015 को कैमराला गांव में मवेशी चोर होने के संदेह में भीड़ ने 3 लोगों अनफ, आरिफ और नाजिम को पीटपीट कर मार डाला था. भीड़ ने उन के ट्रक पर 2 भैंसें मिलने के बाद उस में आग भी लगा दी थी.
पुलिस का कहना था कि ‘जब गाय मारी जाती हैं, तो भावनाएं भड़क जाती हैं और ऐसी चीजें हो सकती हैं.‘
पुलिस ने मृतकों के खिलाफ ही चोरी, जबरन घुसने और हत्या के प्रयास का मामला दायर किया. आरोप लगाया कि पहले उन्होंने गोलीबारी शुरू की थी.
जम्मूकश्मीर में 9 अक्तूबर, 2015 को उधमपुर जिले में हिंदू भीड़ ने एक ट्रक पर कथित रूप से गैसोलीन बम फेंके थे. यह ट्रक 18 वर्षीय जाहिद भट्ट चला रहे थे और भीड़ को संदेह था वह बीफ की ढुलाई कर रहे थे. 10 दिन बाद चोट के कारण अस्पताल में उस की मौत हो गई. उस के साथ सफर कर रहे 2 अन्य भी घायल हुए थे. भट्ट के ट्रक में कोयला मिला था.
शिमला के पास एक गांव सराहन में भीड़ ने 14 अक्तूबर, 2015 को उत्तर प्रदेश के निवासी नोमान को इस संदेह में कथित तौर पर पीटपीट कर मार डाला कि वे गायों को तस्करी कर रहे हैं. भीड़ ने ट्रक पर सवार 4 अन्य लोगों को भी पीटा. पुलिस ने उन 4 लोगों को तुरंत गिरफ्तार कर गोहत्या निषेध और पशु क्रूरता निवारण कानूनों के तहत मुकदमा दर्ज किया. साथ ही, पुलिस ने हत्या का मामला भी दर्ज किया और कहा कि वह इस बिंदु पर जांच करेगी कि हमले के पीछे हिंदू अतिवादी समूह बजरंग दल के सदस्य थे या नहीं.
झारखंड में 18 मार्च, 2016 को 35 वर्षीय मुसलिम मवेशी व्यापारी मोहम्मद मजलुम अंसारी और 12 वर्षीय लड़के मोहम्मद इम्तयाज खान के शव एक पेड़ से लटके हुए मिले थे. उन के हाथ पीठ पीछे बंधे थे और उन के शरीर पर चोटों के निशान थे. पुलिस ने 8 लोगों को गिरफ्तार किया, जिन में कुछ स्थानीय गौरक्षक समूह से जुड़े थे. मामला अभी अदालत में लंबित है.
मध्य प्रदेश में साल 2017 में गौरक्षकों द्वारा मध्य प्रदेश में रेलगाड़ियों और रेलवे स्टेशनों पर मुसलिम पुरुषों और महिलाओं पर इसलिए हमला किया गया, क्योंकि उन पर गौ तस्करी का शक किया गया था. ऐसे ही आरोपों में भीड़ के गौरक्षक भीड़ के द्वारा गुजरात में दलितों को नंगा कर पीटने, हरियाणा में 2 पुरुषों को जबरन गोबर खिलाने, गौमूत्र पिलाने, जयपुर में मुसलिम होटल में छापा मारने, हरियाणा में मुसलिमों के त्योहार ईद से पहले बीफ के लिए सड़क किनारे लगने वाले खाने की दुकानों और रेस्तरां की जांच करने जैसी तमाम घटनाएं घटीं. हरियाणा में अपने घर पर बीफ खाने के संदेह पर लोगों का कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया और हत्या की गई.
गुजरात में साल 2015-16 में गौरक्षकों के उग्र अभियान के कारण हिंसक भीड़ ने 7 अलगअलग घटनाओं में एक 12 वर्षीय लड़के सहित कम से कम 10 मुसलिमों की हत्या की है. गौहत्या के संदेह में 4 दलितों को नंगा किया, उन्हें एक कार से  बांधा और लाठी और बेल्ट से पिटाई की. कई मामलों में हमलावरों ने पीड़ितों से नकदी और सेलफोन भी लूट लिया और उन की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.
*धर्म की राजनीति के लिए गोवध संरक्षण कानून*:
गोवध संरक्षण कानून का काम गोवंश के विकास करने का था. यह कानून धर्म की राजनीति का जरीया बन गया. उत्तर प्रदेश इस का केंद्र बिंदु बन गया. यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को धर्म की राजनीति का ब्रांड अंबेसडर बना दिया गया.
मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठते ही योगी आदित्यनाथ ने गाय के सरंक्षण को ले कर कडे़ कदम उठाए गए. उत्तर प्रदेश सरकार ने 1955 में बने गौ हत्या निवारण कानून में सशोधन के लिए उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश पेश किया. इस के बाद उत्तर प्रदेश में गाय की हत्या पर 10 साल तक की सजा और 3 से 5 लाख रुपए तक का जुर्माना तय हो गया.
इस के अलावा गोवंश के अंगभंग करने पर 7 साल की जेल और 3 लाख रुपए तक जुर्माना लगाया गया. गोकशी का आरोप साबित होने पर जुर्माना और सजा दोनो का प्रावधान भी रखा गया. साथ ही, गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कार्यवाही और संपत्ति जब्त करने का भी प्रावधान किया गया है. गोवंश का अंगभंग करने और जीवन को खतरा पैदा करने के आरोपी को एक से ले कर 7 साल तक की सजा और एक लाख से ले कर 3 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है.
सरकार ने कहा कि अध्यादेश का मकसद उत्तर प्रदेश गोवध निवारण कानून 1955 को और अधिक संगठित और प्रभावी बनाना व गोवंशीय पशुओं की रक्षा और गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों पर पूरी तरह से लगाम लगाना है.
उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955 दिनांक 6 जनवरी, 1956 को राज्य में लागू हुआ था. उसी साल इस की नियमावली बनी थी. इस कानून में अब तक 4 बार और नियमावली में 2 बार संशोधन हो चुका है.
सरकार का कहना है कि इस संशोधन से गोवंशीय पशुओं का संरक्षण प्रभावी ढंग से हो सकेगा. गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन पर अंकुश लगाने में भी मदद मिलेगी.
उत्तर प्रदेश के अलावा देश के दूसरे राज्यों में भी ऐसे कानून हैं. झारखंड में  गोमांस  के परिवहन, बिक्री या रखने और यहां तक कि अपमान और अपराध करने के प्रयास में न्यूनतम एक साल का और अधिकतम 10 सालों तक के कठोर कारावास का प्रावधान है.
राजस्थान में इस तरह के अपराध पर 5 साल तक के कारावास, उत्तराखंड में परिवहन में कम से कम 3 और अधिकतम 7 साल का सख्त कारावास हो सकता है. वहीं गुजरात में परिवहन और यहां तक कि बीफ को रखने के लिए 3 साल तक का कारावास दिया जाता है.
हरियाणा में बीफ की बिक्री पर 3 साल और 5 साल तक न्यूनतम कठोर कारावास शामिल है. गोवा और पंजाब बीफ के परिवहन और बिक्री के लिए 2 साल का कारावास शामिल है.
दिल्ली, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में यह अपराध एक साल के कारावास द्वारा दंडनीय है. 26 मई, 2017 को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पूरे देश के खुले बाजारों में पशुओ के वध और बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, जिस में पशु विधियों की क्रूरता की रोकथाम की बात कही गई थी. जुलाई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस कानून पर रोक लगा दी थी.
*धर्म की राजनीति ने खराब किया माहौल :*
गौहत्या के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस कदम को धर्म की राजनीति में क्रांतिकारी माना गया. इस की वजह है कि हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है. ऋग्वेद में गाय को महत्व दिया गया. भगवद गीता में कहा गया है कि गौहत्या से बड़ा पाप दूसरा नहीं है. चरक सुश्रुत और वागभट्ट में लिखा गया कि गाय से बीमारियां दूर होती हैं. हिंदुओं की धार्मिक मान्यताओं में गाय में देवीदेवताओं का वास माना जाता है. मनु संहिता में लिखा है कि गुरु, शिक्षक, मातापिता, ब्राह्मण, गाय और योगी की हत्या पाप है. गोवध संरक्षण कानून को अमल में लाने के बहाने इस से निर्दोष लोगों को फंसाने का काम तेजी पकड़ने लगा.
देश में गाय की तादाद तकरीबन 19 करोड़, 34 लाख, 62 हजार, 8 सौ है. पहले गांवों में यह पशुपालन में आता था. गाय से पीने के लिए दूध, पूजा के दीपक के लिए घी और चूल्हे के लिए गोबर देती है. गाय के दूध से देश के लाखों परिवारों की जीविका चलती है. गाय का आर्थिक मूल्य अन्य किसी भी जानवर से अधिक माना गया है. भारत में गायों के 1 साल के गोबर का आर्थिक मूल्य तकरीबन 5,000 करोड़ रुपए बताया जाता है. गाय के गोबर का ईंधन 50 मिलियन टन जलाऊ लकड़ी की बचत करता है.
गाय की हत्या के नाम पर बीफ कारोबार के साथ ही साथ इस को यहां से वहां ले जाना, बिक्री करना या गौमांस रखना भी अपराध मान लिया गया है. यही नहीं, बीफ खाने वाले लोगों को भी अपराधी घोषित किया जा रहा है. गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले इन कानूनों ने बहुत ही भयंकर रूप से गौमांस का सेवन व खपत करने वालों को अपराधी बना दिया है. इन में केवल मुसलिम ही नहीं हैं, ईसाई और कई हिंदू धर्म को मानने वाली जातियां भी शामिल हैं. केंद्र सरकार के स्तर पर ऐसा कोई कानून नहीं है. इस की वजह यह है कि देश में बहुत सारे ऐसे राज्य हैं, जहां बीफ खाया जाता है. गौहत्या और गौमांस के सेवन पर प्रतिबंध लगाने की मांग उच्च जाति के हिंदू वर्गों द्वारा की जाती रही है. जैसेजैसे गांवों में खेती की जमीन कम होने लगी, लोगों ने पशुपालन छोड़ दिया. ऐसे में गाय और उस के वंश के जानवर लोगों पर बोझ बनने लगे. इन का कारोबार बंद होने के बाद ये सड़कों और खेतों में छुटटा घूमने लगे, जो सभी के लिए परेशानी का सबब बनने लगे. गोवध संरक्षण कानून के सहारे लोगों का उत्पीड़न होने लगा.
*गौरक्षा के नाम पर मौब लिंचिंग :*
साल 2015 के बाद गौरक्षा के नाम पर कई निजी संगठन बन गए. गौरक्षा दलों के द्वारा राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में सब से पहले ऐसे लोगों के साथ मौब लिंचिंग की गई. ऐसे में गोवंश कारोबार बंद हो गया. गाय के संरक्षण के लिए सरकार ने आश्रय स्थल बनाने की बात कही, पर यह बहुत अच्छी तरह से काम नहीं कर रहे हैं.
भारत की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी हिंदू है, जिन में ज्यादातर लोग गाय को पूजते हैं. इस के दुनियाभर में ‘बीफ’ का सब से ज्यादा निर्यात करने वाले देशों में से भारत भी एक है. गौहत्या पर कोई केंद्रीय कानून नहीं है. जिन राज्यों को इस के लिए लाइसेंस मिला है, वहां ऐसे पशुओ को ‘फिट फौर स्लौटर सर्टिफिकेट’ दिया जाता है. सर्टिफिकेट पशु की उम्र, काम करने की क्षमता और बच्चे पैदा करने की क्षमता देख कर दिया जाता है. उस की कटाई हो सकती है.
इन सभी राज्यों में सजा और जुर्माने पर रुख भी कुछ नरम है. जेल की सजा 6 महीने से 2 साल के बीच है, जबकि जुर्माने की अधिकतम रकम सिर्फ 1,000 रुपए है. आंशिक प्रतिबंध 8 राज्यों बिहार, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा और 4 केंद्रशासित राज्यों दमन और दीव, दादर और नागर हवेली, पांडिचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में लागू है. केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और एक केंद्रशासित राज्य लक्षद्वीप में गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. यहां गाय, बछड़ा, बैल, सांड़ और भैंस का मांस खुलेतौर पर बाजार में बिकता है और खाया जाता है.

शहनाज गिल के पिता ने दिया बयान, जानें क्या है वजह

बिग बॉस 13 से मशहूर हुई शहनाज गिल इन दिनों सिद्धार्थ शुक्ला के साथ चंडीगढ़ में म्यूजिक एलबम की शूटिंग में व्यस्त हैं. शहनाज गिल को लोगों ने बिग बॉस 13 के बाद से पसंद करना शुरू कर दिए थें.

शहनाज और सिद्धार्थ इससे पहले मुंबई में म्यूजिक एलबम की शूटिंग कर रहे थें. इससे पहले भी शहनाज और सिद्धार्थ की जोड़ी को लोगों ने पर्दे पर काफी पसंद किया था. रिल लाइफ की जोड़ी को लोगों ने रियल लाइफ के कपल के रूप में देखने लगे थें.

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हाल ही में शहनाज गिल के पिता ने जो बयान दिया था उसे देखने के बाद सभी फैंस हैरान हैं. दरअसल , शहनाज गिल संतोक सुख ने इस म्यूजिक एलबम के बाद से कहा है कि मैं अपनी बेटी स जीवन में कभी नहीं बात करुंगा.

 

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शहनाज गिल के पापा ने बताया उनकी बेटी ने इस बात की जानकारी दी कि वह चंडीगढ़ में हे लेकिन वह थोड़ा वक्त निकालकर घर नहीं आई अपने दादा जी को देखने के लिए . आगे उन्होंने बताया कि शहनाज के दाद जी के घुटने का ऑपरेशन हुआ है. आगे उन्होंने बताया कि अब हम शहनाज से कभी नहीं मिलेंगे.

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हमें उसके मैनेजर का नंबर भी नहीं पता है. अब मैंने कसम खाई है कि मैं उससे दोबारा कभी नहीं मिलूंगा.

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शहनाज के पिता ने कहा कि शहनाज के पिता के साथ –साथ उनके दोस्त और रिश्तेदार भी उनसे मिलने का इंतजार कर रहे हैं. उसे पंजाब आकर अपने परिवार वालों से मिलना चाहिए. जहां वो है उससे घर की दूरी सिर्फ 2 घंटे की है.

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अब देखना ये है कि शहनाज अपने पापा और परिवार वालों को कैसे मनाती हैं.

बिग बॉस 14: मेकर्स ने दिया अभिनव शुक्ला को ये टास्क, यूजर्स ने कमेंट कर बताया घटिया

बिग बॉस 14 में आए दिन नए-नए ड्रामें देखने को मिलते रहते हैं. ऐसे में बिग बॉस 14 में बीती रात को नॉमिनेशन टास्क हुआ जिसमें  अलग- अलग ग्रुप के लोग अपने पार्टनर को बचाते नजर आएं.

वहीं इस नॉमिनेशन टास्क में एक- दूसरे को बचाने के लिए अपने किमती सामन को कुर्बान करते नजर आएं. जैस्मिन भसीन , निक्की तम्बोली और रुबीना दिलाइक ने अपने दोस्तों को बचाने के लिए अपनी कीमती सामान की कुर्बानी देती नजर आई.

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वहीं अभिनव शुक्ला अपनी दोस्त कविता कौशिक को बचाने के लिए निक्की तम्बोली से मांफी मांगते नजर आएं. बता दें कि बिग बॉस ने शर्त रखी थी कि अगर अभिनव शुक्ला निक्की तम्बोली के सामने घुटने टेगकर मांफी मांगे तो कविता कौशिक नॉमिनेशन से बच जाएंगी. अभिनव ने ऐसे ही किया उन्होंने कहा तुम सही थी मैं गलत था.

बिग बॉस ने ये भी मांग कर डाली की क्यूटी पुट्टि की तोहफे दे दी जाए. बस फिर क्या था ये बात सुनते ही अभिनव ने फिर से टॉस्क पूरा किया. और उन्होंने फिर से निक्की से मांफी मांगी. इतना ही नहीं अभिनव के साथ- साथ रुबीना भी घुटने पर टीकी नजर आई.

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अभिनव शुक्ला की वजह से अब कविता कौशिक सेफ है. इसके बाद सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग करने लगे हैं. इस टास्क के बाद से लोगों का मानना है कि मेकर्स नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं अभिनव शुक्ला को.

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इस टास्क के बाद टास्क में रुबीना दिलाइक और अभिनव शुक्ला को नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है. इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेकर्स के टास्क को घटिया बता रहे हैं. अब देखना ये है कि आगे बिग बॉस में क्या होता है.

 

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