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पुनरागमन- भाग 1 : मां की ये बचकानी हरकतें आखिर क्या थी

मां के कमरे से जोरजोर से चिल्लाने की आवाज सुन कर नीरू ने किताबें टेबल पर ही एक किनारे खिसकाईं और मां के कमरे की ओर बढ़ गई. कमरे में जा कर देखा तो मां कस कर अपने होंठ भींचे और आंखें बंद किए पलंग पर बैठी थीं. आया हाथ में मग लिए उन से कुल्ला करने के लिए कह रही थी. नीरू के पैरों की आहट पा कर मां ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और फिर आंखें बंद कर के ऐसे बैठ गईं जैसे कुछ देखा ही न हो. नीरू को देखते ही आया दुखी स्वर में बोली, ‘‘देखिए न दीदी, मांजी कितना परेशान कर रही हैं. एक घंटे से मग लिए खड़ी हूं पर मांजी अपना मुंह ही नहीं खोल रही हैं. मुझे दूसरे काम भी तो करने हैं. आप ही बताइए अब मैं क्या करूं?’’

मां की मुखमुद्रा देख कर नीरू को हंसी आ गई. उस ने हंस कर आया से कहा, ‘‘तुम जा कर अपना काम करो, मां को मैं संभाल लूंगी,’’ और यह कहतेकहते नीरू ने मग आया के हाथ से ले कर मां के मुंह के सामने लगा कर मां से कुल्ला करने के लिए कहा. पर मां छोटे बच्चे के समान मुंह बंद किए ही बैठी रहीं. तब नीरू ने उन्हें डांट कर कहा, ‘‘मां, जल्दी करो मुझे औफिस जाना है.’’ नीरू की बात सुन कर मां ने शैतान बच्चे की तरह धीरे से अपनी आधी आंखें खोलीं और मुंह घुमा कर बैठ गईं. परेशान नीरू बारबार घड़ी देख रही थी. आज उस के औफिस में उस की एक जरूरी मीटिंग थी. इसलिए उस का टाइम पर औफिस पहुंचना बहुत जरूरी था. पर मां तो कुछ भी समझना ही नहीं चाहती थीं.

थकहार कर नीरू ने उन के दोनों गाल प्यार से थपथपा कर जोर से कहा, ‘‘मां, मेरे पास इतना समय नहीं है कि तुम्हारे नखरे उठाती रहूं. अब जल्दी से मुंह खोलो और कुल्ला करो.’’ नीरू की बात सुन कर इस बार जब मां ने कुल्ला करने के लिए चुपचाप मुंह में पानी भरा तो नीरू ने चैन की सांस ली. थोड़ी देर तक नीरू इंतजार करती रही कि मां कुल्ला कर के पानी मग में डाल देंगी पर जब मां फिर से मुंह बंद कर के बैठ गईं तो नीरू के गुस्से का ठिकाना न रहा.

गुस्से में नीरू ने मां को झकझोर कर कहा, ‘‘मां, क्या कर रही हो? मैं तो थक गई हूं तुम्हारे नखरे सहतेसहते…’’ नीरू की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि मां ने थुर्र कर के अपने मुंह का पूरा पानी इस प्रकार बाहर फेंका कि एक बूंद भी मग में न गिर कर नीरू के मुंह पर और कमरे में फैल गया. यह देख कर नीरू को जोर से रुलाई आ गई. रोतेरोते उस ने मां से कहा, ‘‘क्यों करती हो तुम ऐसा, क्या बिगाड़ा है मैं ने तुम्हारा? मैं अभी नहा कर साफ कपड़े पहन कर औफिस जाने के लिए तैयार हुई थी और तुम ने मेरे कपड़े और कमरा दोनों ही फिर से गंदे कर दिए. तुम दिन में कितनी बार कमरा गंदा करती हो, कुछ अंदाजा है तुम्हें? आज आया 5 बार पोंछा लगा चुकी है. अगर आया ने काम छोड़ दिया तो? मां तुम समझती क्यों नहीं, मैं अकेली क्याक्या करूं?’’ कहती हुई नीरू अपनी आंखें पोंछती मां के कमरे से बाहर चली गई.

अपने ही कहे शब्दों पर नीरू चौंक गई. उसे लगा उस ने ये शब्द पहले किसी और के मुंह से भी सुने हैं. पर कहां?

औफिस पहुंच कर नीरू मां और घर के बारे में ही सोचती रही. पिताजी की मृत्यु के बाद मां ने अकेले ही चारों भाईबहनों को कितनी मुश्किल से पाला, यह नीरू कभी भूल नहीं सकती. नौकरी, घर, हम छोटे भाईबहन और अकेली मां. हम चारों भाईबहन मां की नाक में दम किए रहते. कभीकभी तो मां रो भी पड़ती थीं. कभी पिताजी को याद कर के रोतेरोते कहती थीं, ‘‘कहां चले गए आप मुझे अकेला छोड़ कर. मैं अकेली क्याक्या करूं.’’ अरे, मां ही तो कहती थीं, ‘मैं अकेली क्याक्या करूं,’ मां तो सचमुच अकेली थीं. मेरे पास तो काम वाली आया, कुक सब हैं. बड़ा सा घर है, रुपयापैसा और सब सुविधाएं मौजूद हैं. तब भी मैं चिड़चिड़ा जाती हूं. अब मैं मां पर अपनी चिढ़ कभी नहीं निकालूंगी. मां की मेहनत से ही तो मुझे ये सबकुछ मिला है वरना मैं कहां इस लायक थी कि आईआईटी में नौकरी कर पाती.

कितनी मेहनत की, कितना समय लगाया मेरे लिए. अभी दिन ही कितने हुए हैं जब छोटी बहन मीतू ने मुझ से कहा था, ‘मां की वजह से तुम इस मुकाम तक पहुंची हो वरना हम सभी तो बस किसी तरह जी रहे हैं. हम तो चाह कर भी मां को कोई सुख नहीं दे सकते. वैसे तुम ने बचपन में मां को कितना परेशान किया है, तुम भूली नहीं होगी. अब मां इसी जन्म में अपना हिसाब पूरा कर रही हैं.’ आज लगता है कि सच ही तो कहती है मेरी बहन. शाम को नीरू मां की पसंद की मिठाई ले कर घर गई. घर में कुहराम मचा था. आया मां के कमरे के बाहर बैठी रो रही थी और अंदर कमरे में मां जोरजोर से चिल्ला रही थीं. नीरू को देखते ही आया दौड़ कर उस के पास आई और रोतेरोते बोली, ‘‘दीदी, अब आप दूसरी आया रख लीजिए, मुझ से आप का काम नहीं हो पाएगा.’’

सूरजमुखी की उन्नत खेती

हमारे देश में सूरजमुखी बेहद कारगर तिलहन फसल मानी जाती है. यह भारत में 1969-70 में हुई खाद्य तेल की कमी के बाद उगाई जाने लगी है. सूरजमुखी का तिलहनी फसलों में खास स्थान है. हमारे देश में मूंगफली, सरसों, तोरिया व सोयाबीन के बाद यह भी एक खास तिलहनी फसल है. सूरजमुखी की औसत उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो कि बहुत कम है. उपज कम होने के खास कारणों में अच्छी किस्मों के कम इस्तेमाल व खाद के असामान्य इस्तेमाल के साथ फसल को कीटों व बीमारियों द्वारा नुकसान पहुंचाना भी शामिल है. सूरजमुखी की फसल 80-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.

मिट्टी व जलवायु : पानी के अच्छे निकास वाली सभी तरह की मिट्टियों में इस की खेती की जा सकती है. लेकिन दोमट व बलुई दोमट मिट्टी जिस का पीएच मान 6.5-8.5 हो, इस के लिए बेहतर होती है. 26 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान में सूरजमुखी की अच्छी फसल ली जा सकती है.

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खेत की तैयारी : खेत की पहले हलकी फिर गहरी जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी और बराबर कर लेना चाहिए. आखिरी जुताई से पहले एफवाईएम की सही मात्रा डाल दें. रीज प्लाऊ की मदद से बोआई के लिए तय दूरी पर मेंड़ें बना लें.

बोआई की विधि : बीजों को बोआई से पहले 1 लीटर पानी में जिंक सल्फेट की 20 ग्राम मात्रा मिला कर बनाए गए घोल में 12 घंटे तक भिगो लें. उस के बाद छाया में 8-9 फीसदी नमी बच जाने तक सुखाएं. उस के बाद बीजों को थायरम या बावेस्टिन से उपचारित करें.

कुछ देर छाया में सुखाने के बाद पीएसबी 200 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजों का उपचार करें. उस के बाद बीजों को 24 घंटे तक सुखाएं.

संकर बीज 60×30 व अन्य बीज 45×30 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेंड़ों पर 30 सेंटीमीटर की गहराई पर बोएं. बरसात होने या पानी भरा होने पर बोआई न करें.

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छंटाई : जब पौधे लगभग 10 दिन के हो जाएं और कहीं पर एक से अधिक पौधे दिखाई पड़ें तो ओज वाले पौधे को छोड़ कर बाकी को उखाड़ दें.

सिंचाई : बोआई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें फिर 7-8 दिनों के अंतर पर करें. ध्यान रखें कि बोआई के दिन, कलिका बनने के समय (30 से 35 दिन), फूल खिलने के समय (40 से 55 दिन) व दाना भरने के समय (65 से 70 दिन) नमी अधिक न हो.

खरपतवारों की रोकथाम : प्री इमरजेंस फ्लूक्लोरीन का 2 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज की बोआई से 4 से 5 दिनों बाद छिड़काव करें. दोबारा 30 से 35 दिनों बाद हाथों से बचे हुए खरपतवारों को उखाड़ दें.

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खास : परागण को बढ़ाने के लिए फूल खिलने के बाद करीब 10 से 15 दिनों तक सुबह 8 से 11 बजे के बीच मुलायम कपड़ा हाथ में लपेट कर फूलों में फेरते जाएं. ं

लगने वाले कीड़े

फलबेधक :  जवान कीड़ा पंख फैला कर 3-4 सेंटीमीटर लंबा होता है. मादा कीट अपने अंडे मिट्टी में, शाखाओं पर या पत्तियों पर एकएक कर के देती है. मादा 4 दिनों में करीब 750 अंडे देती है, जो कि 6-7 दिनों में फूट जाते हैं. इन से पहली अवस्था की सूंड़ी निकलती है, जोकि 14-20 दिनों में पूरी सूंड़ी हो जाती है. इस के बाद सूंड़ी पौधे से उतर कर नीचे मिट्टी में चली जाती है और मिट्टी में कोकून बनाती है.

इस कीड़े की सूंड़ी अवस्था ही नुकसान पहुंचाती है. सूंडि़यां शुरूशुरू में नई और मुलायम पत्तियां खाती हैं, परंतु बड़ी होने पर फूलों या फलों में छेद बना कर उन में घुस जाती हैं और उन्हें अंदर से खाती रहती हैं. कुछ सूंडि़यों को फलों के आधा अंदर और आधा बाहर लटकी अवस्था में देखा जाता है.

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रोकथाम

* सूंडि़यां जब छोटी हों तो उन्हें हाथ से पकड़ कर मार देना चाहिए.

* प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर के कीटों को मार देना चाहिए.

* सूंड़ी दिखाई देने पर पीवी 250 एलई का प्रति हेक्टेयर की दर से 1 हफ्ते के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए.

* 1 किलोग्राम बीटी का छिड़काव करना चाहिए. इस के अलावा 5 फीसदी नीम की निंबौली के सत का इस्तेमाल करना चाहिए.

* सूंडि़यां ज्यादा होने पर क्विनोलफास 25 ईसी या क्लोरोपायरीफास 20 ईसी का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

कटुआ सूंड़ी : यह बीच के आकार का कीड़ा होता है. इस के अगले पंखों पर गोल धब्बे होते हैं. मादा एकएक कर के या समूह में पत्तियों या तने पर अंडे देती है. एक समूह में तकरीबन 30-50 अंडे होते हैं. एक मादा 200-300 तक अंडे देती है. अंडे 8-10 दिनों में फूट जाते हैं, जिन से नई सूंडि़यां निकल आती हैं. ये शुरू में मुलायम पत्तियों को खाती हैं और बाद में पौधे के दूसरे भागों को खाती हैं. सूंडि़यां 3 से 5 हफ्ते के बाद पूरी तरह जवान हो जाती हैं. सूंड़ी 4.75 सेंटीमीटर लंबी व मटमैले काले रंग की होती है. सूंड़ी जमीन में मिट्टी का कोकून बनाती है और उसी के अंदर प्यूपा में बदल जाती है. करीब 10-15 दिनों बाद प्यूपा से कीड़ा बाहर आता है.

इस कीड़े की केवल सूंड़ी अवस्था ही नुकसानदायक होती है. सूंडि़यां दिन में जमीन के अंदर दरारों में या पौधों की जड़ों के पास छिपी रहती हैं और रात में बाहर निकल कर पौधों की पत्तियों, शाखाओं व तनों को काट कर बरबाद कर देती हैं, जिस से फसल को काफी नुकसान होता है.

रोकथाम

* प्रकाश प्रपंच का इस्तेमाल कर के कीटों को आकर्षित कर के नष्ट कर देना चाहिए.

* शुरू में सूंडि़यों की संख्या कम होती है, लिहाजा उन्हें इकट्ठा कर के खत्म कर देना चाहिए.

* खेत में जगहजगह गड्ढे बना देने पर रात में घूमने वाली सूंडि़यां उन में गिर जाती हैं और कुछ खाने को न मिलने पर एकदूसरे को खाने लगती हैं. इन्हें गड्ढों से निकाल कर नष्ट किया जा सकता है.

* खेत में जगहजगह सूखी घास की ढेरियां बना देनी चाहिए व सवेरे ढेर के नीचे जमा सूंडि़यों को मार देना चाहिए.

* फसलचक्र अपनाने से इस कीट का असर कम होता है.

* कीट परजीवी जैसे ब्रेकान वास्प एपेंटेलिस व माइक्रोबे्रकान इस के दुश्मन हैं.

इन के द्वारा इस कीट का सफाया किया जा सकता है.

* सूंड़ी का असर ज्यादा होने पर मेलाथियान 5 फीसदी धूल का 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए या क्लोरोपायरीफास 20 ईसी की 2.5-3 लीटर मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

बिहार की बालदार सूंड़ी : इस कीट की लंबाई 50 मिलीमीटर होती है. इस का सिर, सीना और शरीर के नीचे की सतह हलके पीले रंग की होती है. इस की मादा अपने अंडे गुच्छों में पत्तियों की निचली सतह पर देती है, जो तकरीबन 400-500 तक होते हैं. ये हलके हरे रंग के होते हैं. इन के 8-13 दिनों में फूटने के बाद सूंडि़यां निकल आती हैं और 4-8 हफ्ते में जवान हो जाती हैं. इस के बाद ये मिट्टी में कोकून बनाती हैं. इसी में प्यूपा अवस्था पूरी करती हैं. 1-2 हफ्ते में प्यूपा से प्रौढ़ निकलते हैं. इस का जीवनचक्र 6-12 हफ्ते में पूरा हो जाता है और 1 साल में इस की 3-4 पीढि़यां पाई जाती हैं.

इस कीट की सूंड़ी अवस्था नुकसानदायक होती है. शुरू में सूंडि़यां पत्ती की निचली सतह पर समूह में रह कर छलनी जैसी हो कर सफेद हो जाती हैं और आखिर में सूख कर झड़ जाती हैं. बाद में सूंडि़यां दूसरे पौधों को भी नुकसान पहुंचाती हैं. कभीकभी ये सारी पत्तियों को छलनी कर देती हैं.

रोकथाम

*  प्रकाश प्रपंच द्वारा कीटों को आकर्षित कर के खत्म कर देना चाहिए.

* कीटों के अंडों को जमा कर के खत्म कर देना चाहिए.

* सूंडि़यों को पहली 2 अवस्थाओं में जब वे समूह में रह कर पत्तियों को खाती हैं, जमा कर के नष्ट कर देना चाहिए.

* ज्यादा सूंड़ी लगे पौधों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

* ज्यादा असर होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1.5 लीटर मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

फुदका या जैसिड : यह कीट तकरीबन 4 मिलीमीटर लंबा हरे रंग का होता है. इस के पंखों पर छोटे काले धब्बे होते हैं. सिर पर 2 काले धब्बे होते हैं. इस की मादा पत्तियों की शिराओं के अंदर अंडे देती है, जो लंबे व पीले रंग के होते हैं. लगभग 6-10 दिनों में अंडों से निम्फ निकल आते हैं. लेकिन तापमान के अनुसार इन का जीवनचक्र घटताबढ़ता है.

इस कीट के बच्चे व जवान पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं और भूरे रंग के हो जाते हैं. बाद में पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं. ज्यादा असर होने पर उपज में कमी आ जाती है.

रोकथाम

* कीट लगे पौधे को या जिस हिस्से में कीड़ा लगा हो उसे नष्ट कर देना चाहिए.

* ये कीट रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं, इसलिए प्रकाश प्रपंच का इस्तेमाल कर के कीटों को खत्म किया जा सकता है.

* नाइट्रोजन की सही मात्रा ही इस्तेमाल करनी चाहिए, क्योंकि नाइट्रोजन इस कीट को आकर्षित करता है.

* काइसोपर्ला कार्निया परभक्षी के 50 हजार अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छोड़ने चाहिए.

* ज्यादा प्रकोप होने पर डाईमिथियोट की 1.5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर या इमिडाक्लोप्रिड 0.004 फीसदी का घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

सूरजमुखी के खास रोग

पत्तीधब्बा व झुलसा : सब से पहले यह रोग कानपुर में देखा गया. बाद में अन्य इलाकों में भी इसे देखा गया. अब यह रोग सभी जगहों पर भारी नुकसान करता है. रोगी बीजों की अंकुरण क्षमता में 23 से 32 फीसदी तक की कमी आ सकती है.

पौधे के सभी ऊपरी भागों पर रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं. पत्तियों पर शुरू में तमाम पीले या हलके भूरे धब्बे दिखाई पड़ते हैं. ये धब्बे गोल और बड़े होने पर छल्ले जैसे होते हैं. बाद में ये पूरी पत्ती को घेर लेते हैं. धब्बे तने और फूलों पर भी हो सकते हैं. इस से बीज भी प्रभावित हो सकते हैं.

रोकथाम

* फसल के रोगी हिस्सों को नष्ट कर दें. साफ बीजों को बोने के काम में लें.

* बीजों को 3 ग्राम थाइरम या केप्टान या 2 ग्राम बाविस्टीन से प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर के बोएं. बोआई के 35 दिनों बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैंकोजेब 0.2 का छिड़काव करना चाहिए. इस प्रक्रिया को 10 दिनों के अंतर से दोहराएं.

रोली या रतुआ रस्ट : यह रोग फसल की किसी भी अवस्था में हो सकता है, लेकिन बोआई के 30 दिनों बाद वातावरण की नमी के साथ यह गंभीर हो जाता है. इस के प्रकोप से बीजों की पैदावार और तेल की मात्रा में कमी आती है.

सब से पहले पौधों की निचली पत्तियों पर लालभूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं, जोकि जंगदार धूल से घिरे रहते हैं. बाद में ये धब्बे तनों व पत्तियों पर भी दिखाई पड़ते हैं. बुरी तरह से प्रभावित पत्तियां पीली पड़ कर और सूख कर गिर जाती हैं.

रोकथाम

* फसलचक्र अपनाना चाहिए. बीमार पौधों के बचे हिस्सों व खाली खेतों में खड़े पौधों को खत्म कर देना चाहिए.

* रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैंकोजेब 0.2 के घोल का छिड़काव करना चाहिए. छिड़काव पत्तियों की निचली सतह तक होना चाहिए.

मृदुरोमिल आसिता : इस रोग की तेजी हर साल मौसम पर निर्भर करती है. इस से 95 फीसदी तक नुकसान हो सकता है.

रोगी पौधे लंबाई में छोटे हो कर पत्तियों पर हलके व गहरे रंग के लक्षण दिखा सकते हैं. ये हरे व चिकबरे धब्बे पुरानी पत्तियों से नई पत्तियों पर हमला करते हैं.

शुरू में ये नई पत्तियों की शिराओं के आसपास दिखाई पड़ते हैं. बाद में बढ़ कर सारी पत्तियों को घेर लेते हैं. पूरी तरह बीमार पौधे कम समय तक ही जिंदा रह पाते हैं.

रोकथाम

* फसल के बचे भागों को जला कर खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि इन्हीं से शुरू में बीमारी लगती है.

* 3-4 साल का फसलचक्र अपनाना चाहिए.

* स्वस्थ व उपचारित बीज बोने के काम में लें. बीजोड़ कवक को मेरालेकिसल एपरान 35 एसडी 6 ग्राम प्रति किलोग्राम से उपचारित कर के नष्ट करें.

* रोगरोधी हाइब्रीड किस्म एलएलएसएच 1 व एलएसएच 3 बोएं.

चोटी गलन : जब ज्यादा बरसात होती है या रुकरुक कर बौछारें आती हैं, उस समय इस रोग का फैलाव ज्यादा होता है. इस रोग से पूरे पौधे का ऊपरी हिस्सा गलने लगता है. इस में कई तरह के कवक जैसे राईजोयपस, फ्यूजेरियम, एस्परजिलस, पिथियम, राइजोक्टोनिया व बोट्राइटीस देखे गए हैं.

पौधे के ऊपरी हिस्से के गलने से पहले किसी भी कीटाणु द्वारा कोई घाव या छेद होना जरूरी है. ज्यादा नमी मिलने पर पौधे का ऊपरी भाग बुरी तरह से कवकजाल में घिर जाता है और गलने लगता है.

रोकथाम

* बिना रोग लगा उपचारित बीज बोने के काम में लें.

* खेतों को साफ रखें. पौधों का मलबा खेत में न रखें.

* कवकनाशी मैंकोजेब 75 डब्ल्यूपी 0.2 फीसदी साथ में एंडोसल्फान 0.07 घोल का छिड़काव करें. यह छिड़काव ऊपरी हिस्सा बनने के समय करें.

जड़सड़न : यह रोग फसल की किसी भी अवस्था में देखा जा सकता है. भारत में इस रोग से 30 से 45 फीसदी तक नुकसान देखा गया है. यह रोग कवक मेक्रोफोमिना फैजियोलीना द्वारा होता है.

रोगी पौधे समय से पहले पकने लगते हैं और उन के तनों का रंग सूख कर काला राख जैसा हो जाता है. ऐसे रोगी तनों को चीर कर देखें तो उन में तमाम काले स्कलेरोषिया देखने को मिलते हैं.

बरसात के दिनोें में तनों के अंदर पिथ गल जाता है. रोगी पौधों पर छोटे आकार के शीर्ष लगते हैं और उन में छोटेछोटे सिकुड़े हुए बीज बनते हैं.

रोकथाम

* फसलचक्र अपनाना चाहिए. एक ही खेत में सूरजमुखी की फसल लगातार नहीं उगानी चाहिए.

* कार्बंडाजिम कवकनाशी से बीजोपचार करना चाहिए. जमीन में पानी की निकासी अच्छी होनी चाहिए.

कालरसड़न : यह रोग स्कलेरोशियम रोल्फसोई कवक द्वारा होता है. यह रोग सब

से पहले लातूर (महाराष्ट्र) में 1974 में देखा गया था.

खेत में रोगी पौधों की पहचान आरंभ में उन के फौरन सूखने से की जाती है. पौधों के कालर भागों पर कवक सफेद गुच्छों के रूप में देखी जाती है. ज्यादा संक्रमण पौध अवस्था में होता है. बाद में जमीन की सतह के साथ संक्रमित पौधों के तनों पर गहरे भूरे स्कलेरोशिया देखे जा सकते हैं. संक्रमण पौधों की हर अवस्था में होता है.

रोकथाम

* फसलचक्र अपनाएं और बीजोपचार कर के बीज बोएं.

* अच्छे पानी निकासी वाली जमीन का चुनाव करें.


डा. ऋषिपाल व डा. राजेंद्र सिंह

बिन तुम्हारे : नीपा को भी यह तय करना है कि वह किस तरफ मुडे़

‘‘ममा, लेकिन आप यह कैसे कह सकती हो कि आजकल के बच्चे पेरैंट्स के प्रति गैरजिम्मेदार हैं. किसी को चाहने का मतलब यह तो नहीं कि बच्चे पेरैंट्स के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं. लव अफेयर्स उन की जिंदगी का एक हिस्सा है, पेरैंट्स अपनी जगह हैं. ‘‘पेरैंट्स को जिन बातों से दुख पहुंचता है, बच्चे वही करें और कहें कि वे जिम्मेदार हैं.’’

‘‘ममा, पेरैंट्स की पसंदनापसंद पर बच्चे क्या खुद को वार दें? पेरैंट्स को भी हर वक्त अपनी पसंदनापसंद बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए.’’ ‘‘अभी तू ने अपनी जिस फ्रैंड की बात की, उसी की सोचो, 19 साल की लड़की और लड़का भी 19 साल का, पेरैंट्स ने उन्हें बड़ी उम्मीदों से होस्टल भेजा कि पढ़ कर वे कैरियर बनाएं. अब दोनों अपने पेरैंट्स से झूठ बोल कर अलग फ्लैट में साथ रह रहे हैं. कोर्स किसी तरह पूरा कर भी लें तो क्या दिलदिमाग के भटकाव की वजह से बढि़या कैरियर बन पाएगा उन का? उम्र का यह आकर्षण एक पड़ाव के बाद जिंदगी के कठिन संघर्ष के सामने हथियार डालेगा ही, उस वक्त बीते हुए ये साल उन्हें बरबाद ही लगेंगे.’’

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‘‘लगे भी तो क्या ममा? अभी वे खुश हैं तो क्यों न खुश हो लें? आगे की जिंदगी किस ने देखी है ममा.’’ ‘‘यानी जो लोग भविष्य को संवारने के लिए मेहनत करते हैं वे मूर्ख हैं.’’

‘‘हो सकते हैं या नहीं भी, सवाल है किसे क्या चाहिए.’’ नीपा अपनी बेटी रूबी की दलीलों के आगे पस्त पड़ गई थी. बेटी ने अपनी सहेली की घटना सुनाई तो उसे भी रूबी की चिंता सताने लगी. वह भी तो उसी पीजी में रहती है. उस के अनुसार अब ऐसा तो अकसर हो रहा है. जाने क्या इसे लिवइन कह रहे हैं सब. पेरैंट्स बिना जाने बच्चों की फीस, बिल सबकुछ चुकाते जा रहे हैं और बच्चे अपनी मरजी के मालिक हैं.

नीपा को इतना तनाव, इतना भय क्यों सताने लगा है. किस बात की आशंका है, क्यों दिल घबरा रहा है? रूबी अपनी अलग स्ट्रौंग सोच रखती है इसलिए? या इसलिए कि गरमी की छुट्टियों में घर आ कर रूबी ने ममा के दिमाग को भरपूर रिपेयर करने की कोशिश की. नीपा क्यों बेटी के चेहरे को बारबार पढ़ने की कोशिश कर रही है? अपने पति अनादि से वह कुछ कहना चाहती है पर चुप हो जाती है. कहीं रूबी ने खुद की सिचुएशन का ही सहेली के नाम से… नहींनहीं, उस ने अपनी बेटी को बड़े अच्छे संस्कार दिए हैं, वह अपनी मां को इस तरह दुख नहीं दे सकती. 3-4 दिनों से रूबी से बात नहीं हो पा रही थी. वीडियो कौल तो उस ने बंद ही कर दी थी जाने कितने महीनों से. फोन में गड़बड़ी की बात कह कर टाल जाती. अब इतने दिन खोजखबर न मिलने पर नीपा की बेचैनी बढ़ गई. अनादि से सारी बातें कहनी पड़ीं उसे. उन्होंने पीजी की एक लड़की को फोन किया. पता चला, कालेज में 4 दिनों की छुट्टी देख रूबी दोस्तों के साथ कहीं घूमने गई है, इसलिए फोन पर बात नहीं हो सकती रूबी से.

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मामला जटिल देख दोनों दूसरे शहर में रह रही बेटी के पीजी पहुंचे. पर बेटी वहां कहां. वह तो किसी लड़के के साथ एक फ्लैट किराए पर ले कर रहती है. लड़का उसी की क्लास का है. अनादि स्तब्ध थे और नीपा का सिर चकरा गया. धम्म से नीचे जमीन पर बैठ गई. उबकाई से बेहोशी सी छाने लगी थी उस पर. दिल की धड़कनें चीख रही थीं बेसुध.

अब क्या? बेटी के पास उन्हें जाना था. बेटी के बिना या बेटी के इन कृत्यों के बिना? इकलौती बेटी के बिना जी पाना तो इन दोनों के लिए बहुत मुश्किल था. बेटी की उमंगें अभी आजादी की दलीलों के बीच पंख झपट रही हैं, वह तो पीछे नहीं मुड़ेगी. ममापापा बेटी के पास पहुंचे तो रूबी ने न ही उन की आंखों में देखा और न ही दिल ने दिल से बात करने की कोशिश की.

नीपा ने खुद को समझाया. वक्त की मांग थी, वरना उन की आंखों की ज्योति आज इस तरह आंखें फेर ले…लड़का निहार भी वहीं था. उन्हें तो उस में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जो रूबी ने उस में देखा था. हो सकता है नीपा न देख पा रही हो. फिर समझाया खुद को उस ने. भविष्य क्या? ‘‘आगे चल कर शादी करोगे बेटा रूबी से? कुछ सोचा है?’’

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‘‘ममा, आगे देखना बंद करें आप. आज में जीना सीखें यही काफी है. अभी हम पढ़ते हुए पार्टटाइम जौब भी करेंगे. आप अगर हमारी मदद करेंगे तो हम आप से जुड़े रहेंगे. निहार ने भी घर वालों को बता दिया है. मजबूरी हो गई तो पढ़ाई छोड़ देंगे. अभी हम साथ ही रहेंगे जब तक जमा. अब आप की मरजी.’’ नीपा की आंखों में धुंधलका सा छाने लगा. ये आंसू थे या दर्द का सैलाब? वह कुछ समझ नहीं पा रही थी. बस, इतना ही समझ पाई कि बेटी से दोनों को बेइंतहा प्यार है. और इस प्यार के लिए उन्हें किसी शर्त की जरूरत नहीं थी.

लंबे समय तक फोन पर चैटिंग-टैक्स्ट, नेक पेन का कारण

पेशे से बैंकर रश्मि को लगातार गरदन में दर्द रहने लगा था. दरअसल, 6 महीने पहले रश्मि को गरदन में अकड़न महसूस हुई और इस के बाद से सिरदर्द भी रहने लगा. जब दर्द ज्यादा बढ़ गया तो रश्मि ने फिजीशियन से सलाह ली. तब उसे पता चला कि वह टैक्स्ट नैक नामक बीमारी से पीडि़त है, जो लगातार मोबाइल पर मैसेज करने की वजह से होती है.

इस बारे में नोएडा के फोर्टीस अस्पताल के डा. राहुल गुप्ता का कहना है, ‘‘आजकल किशोर अधिक समय तक मोबाइल पर मैसेज और चैट करने में बिताते हैं. वे इस बात से अनजान रहते हैं कि इस से उन की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है. अधिक समय तक सिर झुका कर मोबाइल पर बात करने या चैट करने से टैक्स्ट नैक होने का खतरा बढ़ जाता है. लगातार सिर झुकाने से रीढ़ की हड्डी, कर्व और बोनी खंड में बदलाव से मुद्रा में बदलाव, मांसपेशियों में अकड़न और दर्द महसूस होता है.’’

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जानकारी के अनुसार मोबाइल फोन से बातचीत की निर्भरता की वजह से मैसेज करने में तेजी से वृद्धि हुई है. मोबाइल फोन के अलावा टैबलेट, आईपैड जैसे उपकरणों का इस्तेमाल भी ‘टैक्स्ट नैक’ सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार है.

इस में सिरदर्द, पीठ के ऊपरी भाग, कंधे व गरदन में दर्द के साथ रीढ़ की हड्डी में वक्रता आ जाती है और अगर टैक्स्ट नैक को बिना इलाज के छोड़ दिया जाए तो इस से रीढ़ की हड्डी में अपक्षयीय समस्याएं जैसे डिस्क कंप्रैशन और डिस्क प्रोलेप्स की समस्या हो सकती है.

शुरुआती स्टेज में तो फिजियोथेरैपी या दवाओं से इसे  ठीक किया जा सकता है, लेकिन गंभीर मामलों में सर्जरी जैसे डिस्क रिप्लेसमैंट की आवश्यकता पड़ती है.

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पारंपरिक सर्जरियों में विकृत डिस्क के बीच 2 सर्विकल वर्टिबे्र को हटा कर उस में वर्टिबे्र को मजबूती देने के लिए ठोस हड्डी की तरह बोन ग्राफ्ट लगाया जाता है. विकृत डिस्क को पूरी तरह से हटा कर ही दर्द को दूर किया जाता है, क्योंकि भारी डिस्क रीढ़ की तंत्रिकाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं जिस से गरदन और बांह में दर्द होता है. हालांकि फ्यूजन प्रक्रिया में रीढ़ की गति और लचीलापन बाधा बनते हैं.

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कृत्रिम सर्विकल डिस्क रिप्लेसमैंट थेरैपी में पुरानी व विकृत डिस्क को प्रोस्थैटिक उपकरण (कृत्रिम डिस्क) को विशेष तरीके से डिजाइन किया जाता है जो वर्टिब्रे भाग को गतिशीलता प्रदान करता है. मोबाइल धातु को डिस्क वर्टिब्रे के बीच में स्थापित किया जाता है, जिस से गतिशीलता मिलती है जिस में यह प्राकृतिक तरीके से झुकने, बढ़ने, एक तरफ झुकने, घूमने और सरेखण जैसे कि ऊंचाई और वक्रता मिलती है.

अंडर एज ड्राइविंग को करें ना

याद करो जब आप बचपन में कार पार्किंग में जाकर बंद कार को चलाने की कोशिश करते थें. उस वक्त आपको कार चलाना सिर्फ एक गेम लगता था. लेकिन रूकिए कार चलाना कोई गेम नहीं है जब तक आप एक सही उम्र में नहीं आ जाते.

अगर आप पेरेंट्स हैं और आप चाहते हैं कि आपके बच्चे कार चलाएं और पड़ोस तक लेकर जाएं तो आपको ध्यान रखना होगा कि आपके बच्चे सही उम्र में ही कार चलाएं. क्योंकि ड्राइविंग करने की क्षमता उम्र और एक्सपीरियंस के साथ आती है. ऐसे में ज्यादाजल्दबाजी में कहीं आपके बच्चे से कोई गलती न हो जाएं इस बात का ख्याल आपको रखना होगा. क्योंकि कई बार आपको ऐसी गटनाएं सुनने को मिलती है जिसमें कम उम्र के बच्चों से गलती हो जाती है. इसिलिए कार चलाने के दौरान अपने बच्चों को साथ ही साथ लोगों के भी सुरक्षा का ध्यान रखें.

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आज कल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी कार चलाने के लिए ज्यादा इच्छुक होते हैं इसलिए सभी यंगस्टर्स के लिए एक सलाह है कि वह अपने सही समय और सही उम्र का इंतजार करें. जब तक आपको कार चलाने की सर्टिफिकेट न मिल जाए तब तक कार को कहीं लेकर न जाएं. इससे आपके साथ- साथ रोड़ पर यात्रा कर रहे लोगों को भी नुकसान हो सकता है. कोई भी काम आप सही समय और सही उम्र से करते हैं तो आपको किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आती है. सही समय का इंतजार करें.#BeTheBetterGuy

मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ और अक्षय कुमार की खास मुलाकात, फिल्म ‘रामसेतु’ को लेकर चर्चा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तीन दिन से मुंबई में डेरा जमाए हुए हैं और बॉलीवुड की हस्तियों के साथ बैठकें कर रहे हैं.मुंबई पहुॅचने पर सबसे पहले योगी आदित्यनाथ ने फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार संग बात की.उस वक्त कहा जा रहा था कि योगी आदित्यनाथ और अक्षय कुमार के बीच उत्तर प्रदेश में प्रस्ताविक फिल्मसिटी के सिलसिले में ही गहन मंत्रणा होनी है.मगर सारे कयास गलत साबित हुए.

सूत्रों के अनुसार योगी आदित्यनाथ और अक्षय कुमार के बीच मुंबई के त्रिडेंट होटल में तकरीबन डेढ़ घंटे लंबी बैठक में फिल्मसिटी को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई.बल्कि दोनों के बीच अक्षय कुमार की नई फिल्म‘‘राम सेतु’’ को लेकर लंबी चर्चा हुई.

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अक्षय कुमार अपने साथ अपना लैपटाॅप भी लेकर गए थे.सूत्र बताते है कि अक्षय कुमार ने लैपटाॅप पर योगी आदित्यनाथ को अपनी फिल्म ‘रामसेतु’के पोस्टर व फिल्म की कल्पना के बारे में विस्तार से बताया.

इतना ही नही अक्षय कुमार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी इस फिल्म को अयोध्या में फिल्माने के लिए अनुमति भी मांगी.अक्षय कुमार से फिल्म की विषयवस्तु के संबंध में विस्तार से जानने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ काफी प्रसन्नचित नजर आए और हर संभव मदद का आष्वासन दिया.

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ज्ञातब्य है कि दीवाली के दिन अक्षय कुमार ने अपनी नई फिल्म‘राम सेतु’का पोस्टर सोशल मीडिया पर साझा करते हुए लिखा था-‘‘इस दीपावली,भारत राष्ट् के आदर्ष और महानायक भगवान श्रीराम की पुण्य स्मृतियों को युगों युगों तक भारत की चेतना में सुरक्षित रखने के लिए एक ऐसा सेतु बनाएं,जो आने वाली पीढ़ियों को राम से जोड़कर रखे.इसी प्रयास में हमारा भी यह छोटा सा संकल्प है..राम सेतु..’’
फिल्म राम सेतु का निर्माण अरूणा भाटिया और विक्रम मल्होत्रा कर रहे हैं.

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इस फिल्म के रचनात्मक निर्माता डाॅं. चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं.डां. चंद्र प्रकाष द्विवेदी के निर्देशन में बन रही फिल्म‘‘पृथ्वीराज’में अभिनय कर रहे हैं.डां.चंद्रप्रकाश इससे पहले सीरियल ‘चाणक्य’के अलावा राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत फिल्म‘पिंजर’ सहित कई धारावाहिकों व फिल्मों का निर्देषन कर चुके हैं.जबकि फिल्म के निर्देशक अभिषेक शर्मा हैं.इस फिल्म में अक्षय कुमार ही मुख्य भूमिका निभाएंगे.

बच्चों के लिए इस तरह बनाएं सूखी मूंग दाल , सेहत के लिए भी है फायदेमंद

हम सभी अपने बचपन से सुनते आ रह हैं कि मूंग दाल प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है. यह फटाफट बनने वाला नाश्ता है. यह स्वाद में जितना अच्छा होता है. उतना ही सेहतमंद भी होता है. अगर आप भी अपने बच्चों को मूंग दाल एक बार खालाएंगे तो इसकी फरमाइश रोज आने लगेगी.

आइए जानते हैं कैसे बनाएं मूंग दाल कम समय में अपने घर पर

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समाग्री

मूंग दाल

जीरा

हिंग

हल्दी पाउडर

लाल मिर्च

नमक

घी

विधि

सबसे पहले मूंग दाल को अच्छे से साफ करके बीन लीजिए फिर 20 मिनट के लिए भिंगो दीजिए. अब प्रेशर कुकक में घी को थोड़ा गर्म करके उसमें जीरा डालिए. जब जीरा चटकना शुरू हो जाए तो उसमें हींग डाल दीजिए. अब उसमें हल्दी पाउडर डालकर कुछ सेकेंड्स के लिए भूनें.

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अब उसमें भिंगी हुई मूंग की दाल  डालकर अच्छे से मिलाए. अब इसमें मिर्च और बाकी अन्य मसाला को डालकर अच्छे से मिलाए. मिलाने के बाद उसे एक सिटा लगा दें. सिटी निकालने के बाद आप देखेंगे कि मूंग का दाल एकदम खिला खिला सुखा बनता है जो खाने में बहुत अच्छा लगता है.

आप चाहे तो इस दाल को कड़ाही में भी बना सकते हैं. इस दाल को सर्व करते समय मीठी चटनी या फिर दही के साथ सर्व करें.

दिशा परमार के लिए राहुल वैद्या की मां ने दिया ग्रीन सिग्नल

राहुल वैद्या और दिशा परमार के फैंस इन दिनों सातवें आसमान पर हैं. रहे भी क्यों न बात ही कुछ ऐसी है. इन दोनों के फैंस अभी से शादी के ख्वाब सजानें लगे हैं. वहीं अब राहुल वैद्या की मां  ने भी ग्रीन सिग्नल दे दिया है.

बता दें कि राहुल वैद्या की मां गीता ने एक इंटरव्यू में कहा है कि मैं दिशा परमार को अपने घर की बहू बनाने के लिए बेकरार हूं. साथ ही उन्होंने कहा कि राहुल वैद्या ने अपनी फिलींग्स के बारे में कभी कुछ नहीं बताया कि वह दिशा परमार को कितना चाहते हैं.

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आगे उन्होंने कहा कि दिशा और राहुल एक दूसरे के साथ म्यूजिक वीडियो में काम कर चुके हैं. दोनों की बॉन्डिंग काफी अच्छी है. वह कई दफा मेरे घर आ चुकी है. मैं उसके साथ अच्छा वक्त बीता चुकी हूं. मुझे अच्छी लगती है. मैं अपने बेटे के लिए उसे पर्फ्केट मानती हूं.

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अगर हमारे दोनों बच्चे साथ में खुश हैं तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मैं इस रिश्ते से खुश हूं. दरअसल, राहुल वैद्या ने दिशा परमार को बिग बॉस के घर में किया था. जिसके बाद से सभी को इनके रिश्ते के बारे में पता चल गया था. हालांकि दिशा परमार अभी तक इस बारे में किसी से कुछ नहीं कही हैं.

 

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वहीं खबर ये भी आ रही है कि बिग बॉस के मेकर्स ने दिशा परमार को बिग बॉस में आने का न्योता दिया था लेकिन दिशा ने बिग बॉस के घर में आने से मना कर दिया है.

बिग बॉस 14:  पवित्रा पुनिया ने एजाज खान के लिए लिखा इमोशनल पोस्ट, कहा मेरा दिल टूट गया

बिग बॉस का घर एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां हर कंटेस्टेंट को आजादी है कि वह अपने मन की बात करते हैं. ऐसा आपको बिग बॉस के हर सीजन में देखने को मिलता है. इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. बिग बॉस के घर में इम्यूनिटी स्टोन हासिल करने का टास्क दिया गया था. जिसमें अपने जिंदगी की कुछ ऐसी सच्चाई बतानी थी जिसके बारे में आपने कभी किसी को नहीं बताई होगी.

एजाज खान ने इस टास्क को जीता उन्होंने बताया कि वह बचपन में यौन शोषण का शिकार हो चुके हैं. यह राज अभी तक उन्होंने किसी को नहीं बताया था. एजाज खान की दर्द भरी कहानी सुनने के बाद सभी घरवाले इमोशनल हो गए थें.

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वहीं कुछ कंटेस्टेंट के आंसू छलक गए थें. जिसके बाद सभी ने एजाज खान को हिम्मत वाला भी बताया कि वह अपनी वर्षो पुरानी बात पूरा दुनिया के सामने रखें. इस दौरान बिग बॉस के घर से जा चुकी पवित्रा पुनिया ने एजाज खान के लिए एक पोस्ट लिखा है. जिसमें उन्होंने लिखा है कि तुम्हारी इज्जत हमारी नजरों में दोगुना बढ़ गई है. पहले से ज्यादा मैं तुम्हें इज्जत देने लगी हूं. अब मुझे समझ आ रहा है कि आखिर क्यों तुम मुझे छुने से मना करते थें. मैं पूरी उम्मीद के साथ कह सकती हूं कि तुम ही होगे इस शो के विजेता.

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आगे पवित्रा ने लिखा यह जानकर मेरा दिल टूट गया कि तुम्हारे साथ ऐसा भी हुआ है.

पवित्रा पुनिया के इस ट्वीट को लोग बहुत ज्यादा पसंद कर रहे हैं. इस पर फैंस के बहुत सारे कमेंट आ रहे हैं. लोगों का कहना है कि एजाज खान बहुत स्ट्रोंग कंटेस्टेंट हैं.

सहचारिणी-भाग 1: छोटी मां के आते ही क्या परिवर्तन हुआ

आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से खास दिन है. मेरा एक लंबा इंतजार समाप्त हुआ. तुम मेरी जिंदगी में आए. या यों कहूं कि तुम्हारी जिंदगी में मैं आ गई. तुम्हारी नजर जैसे ही मुझ पर पड़ी, मेरा मन पुलकित हो उठा. लेकिन मुझे डर लगा कि कहीं तुम मेरा तिरस्कार न कर दो, क्योंकि पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है. लोग आते, मुझे देखते, नाकभौं सिकोड़ते और बिना कुछ कहे चले जाते. मैं लोगों से तिरस्कृत हो कर अपमानित महसूस करती. जीवन के सीलन भरे अंधेरों में भटकतेभटकते कभी यहां टकराती कभी वहां. कभी यहां चोट लगती तो कभी वहां. चोट खातेखाते हृदय क्षतविक्षत हो गया था. दम घुटने लगा था मेरा. जीने की चाह ही नहीं रह गई थी. मैं ऐसी जिंदगी से छुटकारा पाना चाहती थी. धीरेधीरे मेरा आत्मविश्वास खोता जा रहा था.

वैसे मुझ में आत्मविश्वास था ही कहां? वह तो मेरी मां के जाने पर उन के साथ चला गया था. वे बहुत प्यार करती थीं मुझे. उन की मीठी आवाज में लोरी सुने बिना मुझे नींद नहीं आती थी. मैं परी थी, राजकुमारी थी उन के लिए. पता नहीं वे मुझ जैसी साधारण रूपरंग वाली सामान्य सी लड़की में कहां से खूबियां ढूंढ़ लेती थीं.

मगर मेरे पास यह सुख बहुत कम समय रहा. मैं जब 5 वर्ष की थी, मेरी मां मुझे छोड़ कर इस दुनिया से चली गईं. फिर अगले बरस ही घर में मेरी छोटी मां आ गईं. उन्हें पा कर मैं बहुत खुश हो गई थी कि चलो मुझे फिर से मां मिल गईं.

वे बहुत सुंदर थीं. शायद इसी सुंदरता के वश में आ गए थे मेरे बाबूजी. मगर सुंदरता में बसा था विकराल स्वभाव. अपनी शादी के दौरान पूरे समय छोटी मां मुझे अपने साथ चिपकाए रहीं तो मैं बहुत खुश हो गई थी कि छोटी मां भी मुझे मेरी अपनी मां की तरह प्यार करेंगी. लेकिन धीरेधीरे असलियत सामने आई. बरस की छोटी सी उम्र में ही मेरे दिल ने मुझे चेता दिया कि खबरदार खतरा. मगर यह खतरा क्या था, यह मेरी समझ में नहीं आया.

सब के सामने तो छोटी मां दिखाती थीं कि वे मुझे बहुत प्यार करती हैं. मुझे अच्छे कपड़े और वे सारी चीजें मिलती थीं, जो हर छोटे बच्चे को मिलती हैं. पर केवल लोगों को दिखाने के लिए. यह कोई नहीं समझ पा रहा था कि मैं प्यार के लिए तरस रही हूं और छोटी मां के दोगले व्यवहार से सहमी हुई हूं.

सुंदर दिखने वाली छोटी मां जब दिल दहलाने वाली बातें कहतीं तो मैं कांप जाती. वे दूसरों के सामने तो शहद में घुली बातें करतीं पर अकेले में उतनी ही कड़वाहट होती थी उन की बातों में. उन की हर बात में यही बात दोहराई जाती थी कि मैं इतनी बदनसीब हूं कि बचपन में ही मां को खा गई. और मैं इतनी बदसूरत हूं कि किसी को भी अच्छी नहीं लग सकती.

उस समय उन की बात और कुटिल मुसकान का मुझे अर्थ समझ में नहीं आता था. मगर जैसेजैसे मैं बड़ी होती गई वैसेवैसे मुझे समझ में आने लगा. मगर मेरा दुख बांटने वाला कोई न था. मैं किस से कहूं और क्या कहूं? मेरे पिता भी अब मेरे नहीं रह गए थे. वे पहले भी मुझ से बहुत जुड़े हुए नहीं थे पर अब तो उन से जैसे नाता ही टूट गया था.

मैं जब युवा हुई तो मैं ने देखा कि दुनिया बड़ी रंगीन है. चारों तरफ सुंदरता है, खुशियां हैं, आजादी है और मौजमस्ती है. पर मेरे लिए कुछ भी नहीं था. मैं लड़कों से दूर रहती. अड़ोसपड़ोस के लोग घर में आते तो मुझ से नौकरानी सा व्यवहार करते. मेरी हंसी उड़ाते. अब आगे मैं कुछ न कहूंगी. कहने के लिए है ही क्या? मैं पूरी तरह अंतर्मुखी, डरपोक और कायर बन चुकी थी.

लेकिन कहते हैं न हर अंधेरी रात की एक सुनहरी सुबह होती है. सुनहरी सुबह मेरी जिंदगी में भी तब आई जब तुम बहार बन कर मेरी वीरान जिंदगी में आए.

तुम्हारी वह नजर… मैं कैसे भूल जाऊं उसे. मुझे देखते ही तुम्हारी आंखों में जो चमक आ गई थी वह जैसे मुझे एक नई जिंदगी दे गई. याद है मुझे वह दिन जब तुम किसी काम से मेरे घर आए थे. काम तुरंत पूरा न होने के कारण तुम्हें अगले दिन भी हमारे घर रुक जाना पड़ा था.

उन 2 दिनों में जब कभी हमारी नजरें टकरा जातीं या पानी या चाय देते समय जरा भी उंगलियां छू जातीं तो मेरा तनमन रोमांचित हो उठता. मेरी जिंदगी में उत्साह की नई लहर दौड़ गई थी.

फिर सब कुछ बहुत जल्दीजल्दी घट गया और तुम हमेशा के लिए मेरी जिंदगी में आ गए. एक लंबी तपस्या जैसे सफल हो गई. छोटी मां ने अनजाने में ही मुझ पर बहुत बड़ा उपकार कर दिया. उन्हें लगा होगा बिना दहेज के इतना अच्छा रिश्ता मिल रहा है और यह अनचाही बला जितनी जल्दी घर से निकल जाए उतना अच्छा.

तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जा कर ही मुझे पता चला कि तुम दफ्तर जा कर कलम घिसने वाले व्यक्ति नहीं, बल्कि फैशन डिजाइनिंग क्षेत्र के बहुत बड़ी हस्ती हो. तुम्हारा आलीशान मकान तो किसी फिल्म के सैट से कम नहीं था. नौकरचाकर, ऐशोआराम की कमी नहीं थी. मैं तो जैसे सातवें आसमान में पहुंच गई थी. फिर भी मेरे दिमाग में वही संदेह. इतने बड़े आदमी हो कर तुम ने मुझे क्यों चुना?

मेरी जिंदगी में कई अविस्मरणीय घटनाएं घटीं. अलौकिक आनंद के पल भी आए. जब भी तुम्हें कोई सफलता मिलती तुम मुझे अपनी बांहों में भर लेते और सीने से लगा लेते. उस स्पर्श की सुकोमलता तथा तुम्हारी आंखों में लहराता प्यार का सागर और तुम्हारे नम होंठों की नरमी को मैं कैसे भूल सकती हूं? ऐसे मधुर क्षणों में मुझे अपने पर गर्व होता. पर दूसरे ही पल मन में यह शंका शूल सी चुभती कि क्या मैं इस सुख के काबिल हूं? तुम मुझ पर इतने मेहरबान क्यों? जब कभी मैं ने अपने इन विचारों को तुम्हारे सामने प्रकट किया, तुम्हारे होंठों पर वही निश्छल हंसी आ जाती जिस ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था. फिर मैं सब कुछ भूल कर तुम्हारे प्यार में खो जाती.

मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए तुम कहते, ‘‘तुम नहीं जानतीं कि तुम क्या हो. अब रही सुंदरता की बात, तो मुझे रैंप पर कैटवाक करती विश्व सुंदरी नहीं चाहिए. मुझे जो सुंदरता चाहिए वह तुम में है.’’

‘‘एक बात कहूं, तुम ने मुझे अपना कर मुझे वह सम्मान दिया है, जो किसी को विरले ही मिलता है. मगर एक प्रश्न है मेरा…’’

‘‘हां मुझे मालूम है. अब तुम यह पूछोगी न कि तुम तो दावा करते हो कि मैं तुम्हें पहली ही नजर में भा गई. मगर पहली ही नजर में तुम्हें मेरे बारे में सब कुछ कैसे पता चला? यही है न तुम्हारा प्रश्न?’’ तुम ने मेरी आंखों में झांकते हुए शरारत भरी हंसी के साथ कहा तो मुझे मानना ही पड़ा कि तुम सुंदरता ही नहीं लोगों के दिलों के भी पारखी हो.

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