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Diwali Special : बादाम दीप

बादाम दीप का नाम सुनते ही ऐसा लग रहा है कि यह बादाम से बना हुआ होगा. इस मिठआई को बनाकर आप किसी खास दिन अपने मेहमानों को परोस सकते हैं . आइए जानते हैं कैसे बनाएं इस मिठाई को.

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समाग्री

बादाम -2 कप

शक्कर- 1 कप

पानी तीन बड़े चम्मच

खाने वाले नारंगी रंग

विधि

-बादाम के छिलके सहित बारीक पिस लें.

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-एक कड़ाही में शक्कर डालकर उसमें थोड़ा पानी डालकर चाशनी बनाते हुए चलाएं.

-अब चाश्नी में नारंगी रंग मिलाएं.

-अब चाश्नी में पिसे हुए बादाम डालकर मिलाते रहें. जब तक अच्छे मिल न जाएं.

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-अब मिश्रण को थोड़ा  ठंडा होने दे फिर दो भागों में बांटकर इन्हें दिए के अकार में बना लें फिर इसमें इसमें खोए और किशमिश डालकर सजा दें.

 

 

फसल अवशेष प्रबंधन यंत्र मोबाइल श्रेडर

फसल कटाई के बाद फसलों की जड़ें खेत में रह जाती हैं, जिन्हें खेत में मिलाना या उखाड़ना मुश्किल काम होता है. इस काम में काफी मेहनत और खर्चा भी होता है. इस फसल अवशेषों का प्रबंधन कृषि यंत्रों से किया जाए, तो किसान के लिए यह काम आसान हो जाता है. ‘शक्तिमान’ के नाम से कृषि यंत्र बनाने वाली ‘तीर्थ एग्रो टैक्नोलौजी’ कंपनी का कहना है कि हाथ से खेत में फसल के डंठल का सफाया करने के लिए प्रति एकड़ 4 एकड़ जनशक्ति की जरूरत पड़ती है.

खेत की फसल के डंठल को बाहर खींचने, काटने, जमा करने और सुखाने व जलाने का काम बड़ा मुश्किल है और समय लेने वाला है. साथ ही, यह तौरतरीका ईंधन संसाधनों को बरबाद करने वाला भी है. इस काम को आसान बनाने वाला कृषि यंत्र मोबाइल श्रेडर है. इस यंत्र से कटी हुई डंठल, फसल अवशेष खेत में फैला कर मिला सकते हैं. इस के अलावा ट्रौली में भी इकट्ठा कर सकते हैं. ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस मोबाइल श्रेडर से इन कृषि अवशेषों से पेपर पल्प व लकड़ी को औद्योगिक इकाइयों में भी उपयोग में लाया जा सकता है.

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यह मोबाइल श्रेडर यंत्र फसल में जड़ों को बारीक काट कर खेत में फैलाने में सक्षम है. नष्ट किए गए फसल अवशेषों से खेत में ही जैविक खाद बनाई जा सकती है, जिस से खेत की मिट्टी में भी सुधार होता है. मिट्टी में नमी बनी रहती है और खेत में घासफूस, खरपतवार की रोकथाम होती है. इस मोबाइल श्रेडर यंत्र को 40 हौर्सपावर या अधिक पावर वाले टै्रक्टर के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है, जो एक घंटे में एक एकड़ खेत को कवर कर सकता है. अधिक जानकारी के लिए फोन नंबर 91-2827661637 पर संपर्क कर सकते हैं.

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ठ्ठ ‘रोटरी मल्चर’ बनाए फसल अवशेष का चूरा धान, गन्ना जैसी फसलों की कटाई के बाद उस में बहुत मात्रा में फसल अवशेष रह जाते हैं, जिन में बहुत से किसान आग लगा देते हैं, जो खेत की मिट्टी के साथसाथ पर्यावरण को भी खराब करते हैं, इसलिए इस तरह के अवशेषों को खेत में न जला कर उन का खेत में ही खाद बना दिया जाए तो वह खेती में जैविक खाद का काम करते हैं, जिस से खेती में होने वाले खर्च में भी कमी आती है और फसल पैदावार भी अच्छी मिलती है.

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रोटरी मल्चर से करें यह काम : फसल अवशेषों का बारीक काटने व खेत से निकालने के लिए रोटरी मल्चर बेहतर कृषि यंत्र है. यह फसल के अवशेष, गन्ने के कूड़े को खरपतवार को खेत में ही बारीकबारीक काट कर खेत में मिला देता है. यह खेत में पानी की होने वाली कमी को भी रोकता है. मिट्टी में नमी बनी रहती है. खरपतवार में भी कमी आती है. इस यंत्र का इस्तेमाल धान काटने के बाद खेत में कर सकते हैं. बिना खेत जोते ही खेत में जीरो यंत्र से गेहूं की सीधी बोआई की जा सकती है.

आधी तसवीर -भाग 1 : भैया के लिए मनशा के मन में था कैसा शक

वह दरवाजे के पास आ कर रुक गई थी. एक क्षण उन बंद दरवाजों को देखा. महसूस किया कि हृदय की धड़कन कुछ तेज हो गई है. चेहरे पर शायद कोई भाव हलकी छाया ले कर आया. एक विषाद की रेखा खिंची और आंखें कुछ नम हो गईं. साड़ी का पल्लू संभालते हुए हाथ घंटी के बटन पर गया तो उस में थोड़ा कंपन स्पष्ट झलक रहा था. जब तक रीता ने आ कर द्वार खोला, उसे कुछ क्षण मिल गए अपने को संभालने के लिए, ‘‘अरे, मनशा दीदी आप?’’ आश्चर्य से रीता की आंखें खुली रह गईं. ‘‘हां, मैं ही हूं. क्यों यकीन नहीं हो रहा?’’

‘‘यह बात नहीं, पर आप के इधर आने की आशा नहीं थी.’’ ‘‘आशा…’’ मनशा आगे नहीं बोली. लगा जैसे शब्द अटक गए हैं.

दोनों चल कर ड्राइंगरूम में आ गईं. कालीन में उस का पांव उलझा, तो रीता ने उसे सहारा दे दिया. उस से लगे झटके से स्मृति की एक खिड़की सहसा खुल गई. उस दिन भी इसी तरह सूने घर में घंटी पर रवि ने दरवाजा खोला था और अपनी बांहों का सहारा दे कर वह जब उसे ड्राइंगरूम में लाया था तो मनशा का पांव कालीन में उलझ गया था. वह गिरने ही वाली थी कि रवि ने उसे संभाल लिया था. ‘बस, इसी तरह संभाले रहना,’ उस के यही शब्द थे जिस पर रवि ने गरदन हिलाहिला कर स्वीकृति दी थी और उसे आश्वस्त किया था. उसे सोफे पर बैठा कर रवि ने अपलक निशब्द उसे कितनी देर तक निहार कर कहा था, ‘तुम्हें चुपचाप देखने की इच्छा कई बार हुई है. इस में एक विचित्र से आनंद का अनुभव होता है, सच.’ मनशा को लगा 20-22 वर्ष बाद रीता उसी घटना को दोहरा रही है और वह उस की चुप्पी और सूनी खाली नजरों को सहन नहीं कर पा रही है. ‘‘क्या बात है, रीता? इतनी अजनबी तो मत बनो कि मुझे डर लगे.’’

‘‘नहीं दीदी, यह बात नहीं. बहुत दिनों से आप को देखा नहीं न, वही कसर पूरी कर रही थी.’’ फिर थोड़ा हंस कर बोली, ‘‘वैसे 20-22 वर्ष अजनबी बनने के लिए काफी होते हैं. लोग सबकुछ भूल जाते हैं और दुनिया भी बदल जाती है.’’ ‘‘नहीं, रीता, कोई कुछ नहीं भूलता. सिर्फ याद का एहसास नहीं करा पाता और इस विवशता में सब जीते हैं. उस से कुछ लाभ नहीं मिलता सिवा मानसिक अशांति के,’’ मनशा बोली.

‘‘अच्छा, दीदी, घर पर सब कैसे हैं?’’ ‘‘पहले चाय या कौफी तो पिलाओ, बातें फिर कर लेंगे,’’ वह हंसी.

‘‘ओह सौरी, यह तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा,’’ और रीता हंसती हुई उठ कर चली गई. मनशा थोड़ी राहत महसूस करने लगी. जाने क्यों वातावरण में उसे एक बोझिलपन महसूस होने लगा था. वह उठ कर सामने के कमरे की ओर बढ़ने लगी. विचारों की कडि़यां जुड़ती चली गईं. 20 वर्षों बाद वह इस घर में आई है. जीवन का सारा काम ही तब से जाने कैसा हो गया था. ऐसा लगता कि मन की भीतरी तहों में दबी सारी कोमल भावनाएं समाप्त सी हो गई हैं. वर्तमान की चढ़ती परत अतीत को धीरेधीरे दबा गई थी. रवि संसार से उठ गया था और भैया भी. केवल उन से छुई स्मृतियां ही शेष रह गई थीं.

रवि के साथ जीवन को जोड़ने का सपना सहसा टूट गया था. घटनाएं रहस्य के आवरण में धुंधलाती गई थीं. प्रभात के साथ जीवन चलने लगा-इच्छाअनिच्छा से अभी भी चल ही रहा है. उन एकदो वर्षों में जो जीवन उसे जीना था उस की मीठी महक को संजो कर रखने की कामना के बावजूद उस ने उसे भूलना चाहा था. वह अपनेआप से लड़ती भी रही कि बीते हुए उन क्षणों से अपना नाता तोड़ ले और नए तानेबाने में अपने को खपा कर सबकुछ भुला दे, पर वह ऊपरी तौर पर ही अपने को समर्थ बना सकी थी, भीतर की आग बुझी नहीं. 20 वर्षों के अंतराल के बाद भी नहीं.

आज ज्वालामुखी की तरह धधक उठने के एहसास से ही वह आश्चर्यचकित हो सिहर उठी थी. क्या 20 वर्षों बाद भी ऐसा लग सकता है कि घटनाएं अभीअभी बीती हैं, जैसे वह इस कमरे में कलपरसों ही आ कर गई है, जैसे अभी रवि कमरे का दरवाजा खोल कर प्रकट हो जाएगा. उस की आंखें भर आईं. वह भारी कदमों से कमरे की ओर बढ़ गई. कोई खास परिवर्तन नहीं था. सामने छोटी मेज पर वह तसवीर उसी फ्रेम में वैसी ही थी. कागज पुराना हो गया था पर रवि का चेहरा उतनी ही ताजगी से पूर्ण था. जनता पार्क के फौआरे के सामने उस ने रवि के साथ यह फोटो खिंचवाई थी. रवि की बांह उस की बांह से आगे आ गई थी और मनशा की साड़ी का आंचल उस की पैंट पर गया था. ठीक बीच से जब रवि ने तसवीर को काटा था तो एक में उस की बांह का भाग रह गया और इस में उस की साड़ी का आंचल रह गया.

2-3 वाक्य कमरे में फिर प्रतिध्वनित हुए, ‘मैं ने तुम्हारा आंचल थामा है मनशा और तुम्हें बांहों का सहारा दिया है. अपनी शादी के दिन इसे फिर जोड़ कर एक कर देंगे.’ वह कितनी देर तक रवि के कंधे पर सिर टिका सपनों की दुनिया में खोई रही थी उस दिन. उन्होंने एमए में साथसाथ प्रवेश किया था. भाषा विज्ञान के पीरियड में प्रोफैसर के कमरे में अकसर रवि और मनशा साथ बैठते. कभी उन की आपस में कुहनी छू जाती तो कभी बांह. सिहरन की प्रतिक्रिया दोनों ओर होती और फिर धीरेधीरे यह अच्छा लगने लगा. तभी रवि मनशा के बड़े भैया से मिला और फिर तो उस का मनशा के घर में बराबर आनाजाना होने लगा. तुषार से घनिष्ठता बढ़ने के साथसाथ मनशा से भी अलग से संबंध विकसित होते चले गए. वह पहले से अधिक भावुक और गंभीर रहने लगी, अधिक एकांतप्रिय और खोईखोई सी दिखाई देने लगी.

आधी तसवीर -भाग 3 : भैया के लिए मनशा के मन में था कैसा शक

मनशा सबकुछ सोच कर भी भैया की बात नहीं मान सकती थी. किसी और से ब्याह करने की कल्पना तक उस के मस्तिष्क में नहीं आ पाती थी. घर के वातावरण में उसे एक अजीब सा खिंचाव और उपेक्षा का भाव महसूस होता जा रहा था जो यह एहसास करा रहा था मानो उस ने घर की इच्छा के विरुद्ध बहुत बड़ा अपराध कर डाला हो. भैया से अगली बहस में उस ने जीवन का अंत करना अधिक उपयुक्त मान लिया था. उसे इस सीमा तक हठी देख तुषार को बहुत क्रोध आया था, पर उस ने हंस कर इतना ही कहा, ‘नहीं, मनशा, तुम्हें जान देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’ घर के तनाव में थोड़ी ढील महसूस होने लगी, जैसे प्रसंग टल गया हो. तुषार भी पहले की अपेक्षा कम खिंचा हुआ सा रहने लगा. पर न अब रवि आता और न मनशा ही बाहर जाती थी. मनशा कोई जिद कर के तनाव बढ़ाना नहीं चाहती थी.

तभी सहसा एक दिन शाम को समाचार मिला कि रवि सख्त बीमार है और उसे अस्पताल में भरती किया गया है. मांबाप के मना करने पर भी मनशा सीधे अस्पताल पहुंच गई. देखा इमरजैंसी वार्ड में रवि को औक्सीजन और ग्लूकोज दिया जा रहा है. उस का सारा चेहरा स्याह हो रहा था. चारों ओर भीड़ में विचित्र सी चर्चा थी. मामला जहर का माना जा रहा था. रवि किसी डिनर पार्टी में गया था. नाखूनों का रंग बदल गया था. डाक्टरों ने पुलिस को इत्तला करनी चाही पर तुषार ने समय पर पहुंच कर अपने मित्र विक्टर की सहायता से केस बनाने का मामला रुकवा दिया. यह पता नहीं चल पा रहा था कि जहर उसे किसी दूसरे ने दिया या उस ने स्वयं लिया था. रवि बेहोश था और उस की हालत नाजुक थी.

मनशा के पांव तले से धरती खिसकती जा रही थी. एकएक क्षण काटे नहीं कट रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों और कैसे हो गया. फिर सहसा बिजली की तरह मस्तिष्क में विचार कौंधा. कल शाम को भैया भी तो उस पार्टी में गए थे. फिर तबीयत इन्हीं की क्यों खराब हुई? बहुत रात गए वह लौट आई.

डाक्टर पूरी रात रवि को बचाने का प्रयत्न करते रहे पर सुबह होतेहोते वे हार गए. दाहसंस्कार बिना किसी विलंब के तुरंत कर दिया गया. मनशा गुमसुम सी कमरे में बैठी रही. न बोल सकी और न रो सकी. रहरह कर कुछ बातें मस्तिष्क की सूनी दीवारों से टकरा जातीं और उन के केंद्र में तुषार भैया आ जाते. ‘तुम्हें जान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’ कोई महीनेभर पहले उन्होंने कहा था, फिर पार्टी में तुषार के साथ रवि का होना उस की उलझन बढ़ा रहा था. वहां क्या हुआ? क्या भैया से कोई बहस हुई? क्या भैया ने उसे मेरा खयाल छोड़ने की धमकी दी? क्या इसीलिए उस ने आत्महत्या कर ली कि मुझे नहीं पा सकता था? एक बार उस ने कहा भी था, ‘तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता, मनशा.’ क्या यह स्थिति उस ने मान ली थी कि बिना उस से पूछे? या…उसे… नहीं…नहीं…कौन कर सकता है यह काम…क्या भैया… ‘नहीं…नहीं…’ वह

जोर से चीखी. मां हड़बड़ा कर कमरे में आईं. देखा वह बेहोश हो गई है. थोड़ीथोड़ी देर में होश आता तो वह कुछ बड़बड़ाने लगती.

धीरेधीरे वह सामान्य होने लगी. उस ने महसूस किया, भैया उस से कतरा रहे हैं और इसी आधार पर उन के प्रति संदेह का जो सांप कुंडली मार कर उस के मन में बैठा वह भैया के जीवनपर्यंत वैसा ही रहा. उन की मृत्यु के बाद भी मन की अदालत में वह उन्हें निर्दोष घोषित नहीं कर सकी. दुनिया और जीवन का चक्र जैसा चलना था चला. प्रभात से ही उस का ब्याह हुआ. बच्चे हुए और अब उन का भी ब्याह होने जा रहा था.

न जाने आंखों से कितने आंसू बह गए. रीता दरवाजे पर ही खड़ी रही. मनशा ने ही मुड़ कर देखा तो उस के गले लग कर फिर रो पड़ी. रवि की मृत्यु के बाद वह आज पहली बार रोई है. रीता कुछ समझ नहीं पा रही थी. हम सचमुच जीवन में कितना कुछ बोझ लिए जीते हैं और उसे लिए ही मर भी जाते हैं. यह रहस्य कोई कभी नहीं जान पाता है, केवल उस की झलक मात्र ही कोई घटना कभी दे जाती है. वे दोनों ड्राइंगरूम में आ कर बैठ गईं. मनशा ने स्थिर हो कौफी पी और अपने बेटे की शादी का कार्ड रीता की ओर बढ़ा दिया. वह बेहद प्रसन्न हुई यह देख कर कि लड़की दूसरी जाति की है. रीता की जिज्ञासा फूट पड़ी, ‘दीदी, जो आप जीवन में नहीं कर सकीं उसे बेटे के जीवन में करते समय कोईर् दिक्कत तो नहीं हो रही है?’

‘हुई थी…भैया ने जैसे सामाजिक स्तर की बातचीत की थी वैसा तो आज भी पूरी तरह नहीं, फिर भी हम इतना आगे तो बढ़े ही हैं कि इतना कर सकें…प्रभात नहीं चाहते थे. बड़ेबुजुर्ग भी नाराज हैं, पर मैं ने मनीष और दीपा के संबंध में संतोषजनक ढंग से सब जाना तो फिर अड़ गई. मैं बेटा नहीं खोना चाहती थी. किसी तरह का खतरा नहीं उठाने की ठान ली. सोच लिया अपनी जान दे दूंगी पर इस को बचा लूंगी, मन का बोझ इस से हलका हो जाएगा.’ उस के चेहरे पर हंसी की रेखा उभर कर विलीन हो गई. घरपरिवार की कितनी ही बातें कर मनशा चलने को उद्यत हुई तो बैग से एक कागज का पैकेट सा रीता के हाथ में थमा कर कहा, ‘इसे भी रख लो.’

‘यह क्या है दीदी?’ ‘आधी तसवीर, जिसे तुम्हारे रवि भैया जोड़ना चाहते थे. जब कभी तुम सुनो कि मनशा दीदी नहीं रहीं तो उस तसवीर से इसे जोड़ देना ताकि वह पूरी हो जाए. यह जिम्मेदारी तुम्हें ही सौंप सकती हूं, रीता.’ वह डबडबाती आंखों के साथ दरवाजे से बाहर निकल गई. अतीत को मुड़ कर दोबारा देखने की हिम्मत उस में नहीं बची थी.

 

आधी तसवीर -भाग 2 : भैया के लिए मनशा के मन में था कैसा शक

अपने में आए इस परिवर्तन से मनशा खुद भी असुविधा महसूस करने लगी क्योंकि उस का संपर्क का दायरा सिमट कर उस पर और रवि पर केंद्रित हो गया था. कानों में रवि के वाक्य ही प्रतिध्वनित होते रहते थे, जिन्होंने सपनों की एक दुनिया बसा दी थी. ‘वे कौन से संस्कार होते हैं जो दो प्राणियों को इस तरह जोड़ देते हैं कि दूसरे के बिना जीवन निरर्थक लगने लगता है. ‘तुम्हें मेरे साथ देख कर नियति की नीयत न खराब हो जाए. सच, इसीलिए मैं ने उस चित्र के 2 भाग कर दिए.’ रवि के कंधे पर सिर रखे वह घंटों उस के हृदय की धड़कन को महसूस करती रही. उस की धड़कन से सिर्फ एक ही आवाज निकलती रही, मनशा…मनशा…मनशा. वे क्षण उसे आज भी याद हैं जैसे बीते थे. सामने बालसमंद झील का नीला जल बूढ़ी पहाडि़यों की युवा चट्टानों से अठखेलियां कर रहा था. रहरह कर मछलियां छपाक से छलांग लगातीं और पेट की रोशनी में चमक कर विलीन हो जातीं. झील की सारी सतह पर चलने वाला यह दृश्य किसी नववधू की चुनरी में चमकने वाले सितारों की झिलमिल सा लग रहा था. बांध पर बने महल के सामने बड़े प्लेटफौर्म पर बैंचें लगी हुई थीं. मनशा का हाथ रवि के हाथ में था. उसे सहलातेसहलाते ही उस ने कहा था, ‘मनशा, समय ठहर क्यों नहीं जाता है?’

मनशा ने एक बहुत ही मधुर दृष्टि से उसे देख कर दूसरे हाथ की उंगली उस के होंठों पर रख दी थी, ‘नहीं, रवि, समय के ठहरने की कामना मत करो. ठहराव में जीवन नहीं होता, शून्य होता है और शून्य-नहीं, वहां कुछ नहीं होता.’

रवि हंस पड़ा था, ‘साहित्य का अध्ययन करतेकरते तुम दार्शनिक भी हो गई हो.’ न जाने ऐसे कितने दृश्यखंड समय की भित्ती पर बनते गए और अपनी स्मृतियां मानसपटल पर छोड़ते गए. बीते हुए एकएक क्षण की स्मृति में जीने में इतना ही समय फिर बीत जाएगा और जब इन क्षणों का अंत आएगा तब? क्या फिर से उस अंत को झेला जा सकता है? क्या कभी कोई ऐसी सामर्थ्य जुटा पाएगा, जीवन के कटु और यथार्थ सत्य को फिर से जी सकने की, उस का सामना करने की? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इसीलिए जीवन की नियति ऐसी नहीं हुई. चलतेचलते ही जीवन की दिशा और धारा मुड़ जाती हैं या अवरुद्ध हो जाती हैं. हम कल्पना भी नहीं कर पाते कि सत्य घटित होने लगता है.

मनशा के जीवन के सामने कब प्रश्नचिह्न लग गया, उसे इस का भान भी नहीं हुआ. घर के वातावरण में एक सरसराहट होने लगी. कुछ सामान्य से हट कर हो रहा था जो मनशा की जानकारी से दूर था. मां, बाबूजी और भैया की मंत्रणाएं होने लगीं. तब आशय उस की समझ में आ गया. मां ने उस की जिज्ञासा अधिक नहीं रखी. उदयपुर का एक इंजीनियर लड़का उस के लिए देखा जा रहा था. उस ने मां से रोषभरे आश्चर्य से कहा, ‘मेरी शादी, और मुझ से कुछ कहा तक नहीं.’ ‘कुछ निश्चित होता तभी तो कहती.’

‘तो निश्चित होने के बाद कहा जा रहा है. पर मां, सिर्फ कहना ही तो काफी नहीं, पूछना भी तो होता है.’ ‘मनशा, इस घर की यह परंपरा नहीं रही है.’

‘जानती हूं, परंपरा तो नई अब बनेगी. मैं उस से शादी नहीं करूंगी.’ ‘मनशा.’

‘हां, मां, मैं उस से शादी नहीं करूंगी.’ जब उस ने दोहराया तो मां का गुस्सा भड़क उठा, ‘फिर किस से करेगी? मैं भी तो सुनूं.’

‘शायद घर में सब को इस का अंदाजा हो गया होगा.’ ‘मनशा,’ मां ने उस का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. जातपांत, समाज का कोई खयाल ही नहीं है?’

मनशा हाथ छुड़ा कर कमरे में चली गई.

घर में सहसा ही तनाव व्याप्त हो गया. शाम को तुषार के सामने रोरो कर मां ने अपने मन की व्यथा कह सुनाई. बाबूजी को सबकुछ नहीं बताया गया. तुषार इस समस्या को हल करने की चेष्टा करने लगा. उसे विश्वास था वह मनशा को समझा देगा, और नहीं मानेगी तो थोड़ी डांटफटकार भी कर लेगा. मन से वह भी इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि मनशा पराई जाति के लड़के रवि से ब्याह करे. वह जानता था, कालेज के जीवन में प्रेमप्यार के प्रसंग बन ही जाते

हैं पर… ‘भैया, क्या तुम भी मेरी स्थिति को नहीं समझ सकते? मां और बाबूजी तो पुराने संस्कारों से बंधे हैं लेकिन अब तो सारा जमाना नईर् हवा में नई परंपराएं स्थापित करता जा रहा है. हम पढ़लिख कर भी क्या नए विचार नहीं अपनाएंगे?’

‘मनशा,’ तुषार ने समझाना चाहा, ‘मैं बिना तुम्हारे कहे सब जानता हूं. यह भी मानता हूं कि रवि के सिवा तुम्हारी कोई पसंद नहीं हो सकती. पर यह कैसे संभव है? वह हमारी जाति का कहां है?’ ‘क्या उस के दूसरी जाति के होने जैसी छोटी सी बात ही अड़चन है.’

‘तुम इसे छोटी बात मानती हो?’ ‘भैया, इस बाधा का जमाना अब नहीं रहा. उस में कोई कमी नहीं है.’

‘मनशा…’ तुषार ने फिर प्रयास किया, ‘‘आज समाज में इस घर की जो प्रतिष्ठा है वह इस रिश्ते के होते ही कितनी रह जाएगी, यह तुम ने सोचा है? यह ब्याह होगा भी तो प्रेमविवाह अधिक होगा अंतर्जातीय कम. मैं सच कहता हूं कि बाद में तालेमल बैठाना तुम्हारे लिए बहुत कठिन होगा. तुम एकसाथ दोनों समाजों से कट जाओगी. मां और बाबूजी बाद में तुम्हें कितना स्नेह दे सकेंगे? और उस घर में तुम कितना प्यार पा सकोगी? इस की कल्पना कर के देखो तो सही.’ मनशा ने सिर्फ भैया को देखा, बोली कुछ नहीं. तुषार ही आगे बोलता रहा, ‘व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर जीवन के सारे पहलुओं पर जरा ठंडे दिल से सोचने की जरूरत है, मनशा. जल्दी में कुछ भी निर्णय ठीक से नहीं लिया जा सकता. फिर सभी महापुरुषों ने यही कहा है कि प्रेम अमर होता है, किसी ने ब्याह अमर होने की बात नहीं कही, क्योंकि उस का महत्त्व नहीं है.’ अपने अंतिम शब्दों पर जोर दे कर वह कमरे से बाहर चला गया.

हर कामयाबी का एक ही सीक्रेट है जुनून

वैज्ञानिक गैलीलियो गैलिली इटली के रहने वाले थे. 1609 में उन्हें पता चला कि हॉलैंड के कुछ वैज्ञानिकों ने एक दूरबीन बनाई है. फिर क्या था, उन्हें भी दूरबीन बनाने का जुनून सवार हो गया और यह जानकार हैरानी होगी कि गैलीलियो ने महज यह बात सुनकर ही हालैंड के वैज्ञानिकों से कहीं बेहतर दूरबीन बना ली, क्योंकि उन्हें दूरबीन बनाने को लेकर जुनून सवार हो गया था. यह बिल्कुल सही कहा जाता है कि जुनून शुरुआत है जीनियस होने की. गैलीलियो ही नहीं दुनिया का कोई भी वह वैज्ञानिक जिसने जीवन को उलट पलट कर देने वाली खोज की है, ऐसे सभी वैज्ञानिक धुन के बहुत पक्के रहे हैं.

इतिहास की जितनी भी बड़ी सफलताएं हैं- चाहे भयानक युद्धों में जीत हासिल करना रहा हो, चाहे विज्ञान की कोई असम्भव सी लगने वाली खोज रही हो, चाहे कारोबार में झंडा बुलंद करने का ख्वाब रहा हो. ये तमाम सफलताएं जिस एक चीज के चलते मिली हैं, उसे जुनून कहते हैं. इंसान के जुनून के सामने इंसान ही नहीं कुदरत की भी हर बाधा को हार माननी पड़ी है. ‘पॉवर ऑफ पैशन इज अल्टीमेट पॉवर’, लग्न की शक्ति ही निर्णायक शक्ति है. ज्यादा दूर क्यों जाते हैं. भारत के मारवाड़ी समाज को ही देख लें. मारवाड़ियों की आबादी देश की कुल आबादी का 1 प्रतिशत भी नहीं है, लेकिन देश की जीडीपी में इस समाज का 20 प्रतिशत से भी ज्यादा योगदान है. देश की संपत्ति का 28 प्रतिशत सिर्फ अग्रवाल समाज के पास है. क्या कभी  आपने सोचा है, इसकी वजह क्या है? जी, हां! इस सम्पन्नता का और सफलता का राज है जुनून.

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अपने काम को लेकर जुनून होना, सफलता की तकरीबन गारंटी है. दुनिया में ऐसी अनगिनत सफल शख्सियतें हुईं हैं जिनकी सफलता का सबसे बड़ा आधार उनका जुनून रहा है. यह जुनून ही था जो इन लोगों की रगों में खून बनकर दौड़ता था. यह जुनून ही था जो इन्हें गर्मी, सर्दी भूख और बीमारी तक का एहसास नहीं होने दिया, जब तक इन्हें सफलता नहीं मिल गई. आज तक दुनिया के सबसे सफल संगीतकार माने गये बीथोवन इतने जुनूनी थे कि वह जब किसी धुन की रचना कर रहे होते और कई कई दिनों तक बिना सोए धुन की खोज में डूबा रहना पड़ता तो वह नींद न आये इसलिए कम से कम खाना खाते थे. इसके बाद भी अगर नींद आती थी तो अपने सिर को ठंडे पानी में डुबो देते थे. वह तभी आराम करते थे, जब वह मन माफिक धुन रच डालते थे, इसके पहले नहीं. बीथोवन कहा करते थे, ‘हम अगर सीखना न छोड़ें और जुनून को गलबहियां डालें तो हर वह काम कर सकते हैं, जिसे असंभव कहते हैं.’

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अल्बर्ट आइंसटाईन भी हद दर्जे के जुनूनी थे. वह तो साफ कहते थे, ‘मेरे पास कोई खास टैलेंट नहीं है. मैं तो बस जुनून की हद तक जिज्ञासु हूं. यही मेरी सफलता का राज है.’ जी, हां! अगर सपनों की उड़ान को जुनून के पंख मिल जाएं तो सपनों को सच करना हमेशा चुटकी बजाने भर का काम होता है. हां, एक बात जरूर याद रखना चाहिए जुनून के साथ यह भी तय हो कि हमारा जुनून सही और सकारात्मक दिशा में है या नहीं? क्योंकि अगर हमने गलत दिशा में अपने जुनून को झोंक दिया तो सफलता तो मिलेगी, लेकिन वह हमें विख्यात नहीं कुख्यात करेगी. अगर हमने गलत दिशा में जुनून को झांेक दिया तो वह एक झटके में ही हमें अर्स से फर्श में पहुंचा सकता है. इसलिए कहां, जुनून का इस्तेमाल करें इसकी समझ का होना भी बहुत जरूरी है. सफलता इसी संतुलित समीकरण का नतीजा होती है.

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बहरहाल जुनून हमारी सफलता में इसलिए बड़ी भूमिका निभाता है; क्योंकि वह इंसान के भीतर असीम ऊर्जा का संचार करता है. अब यह हम पर निर्भर करता है कि इस ऊर्जा का इस्तेमाल सकारात्मक सफलता हासिल करने के लिए करते हैं या नकारात्मक क्योंकि ऊर्जा जुनून तो देता है, चैन का विवेक उसकी जिम्मेदारी नहीं होती.

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इसलिए हमें यह खुद तय करना है कि हम अपने जुनून का इस्तेमाल मानवता की भलाई के लिए करना चाहते हैं या आतंकवादियों की तरह अपने तमाम साहस और दिलेरी का इस्तेमाल इंसानियत को नीचा दिखाने के लिए करते हैं. जुनून की ताकत यह होती है कि वह आपसे वह सब करवा लेता है, जो सामान्य तौरपर आप नहीं कर सकते. जुनून वास्तव में एक ऐसी ताकत है तो हर नामुमकिन को मुमकिन बना देता है. इससे जिंदगी में सफलता का हर वह बंद दरवाजा आसानी से खुल जाता है, जिसके खुलने की बड़ों-बड़ों को भी उम्मीद नहीं हुआ करते. इसलिए जब भी कोई लक्ष्य निर्धारित करें तो इसे हासिल करने में अपना सब कुछ झोंक दें. झोंक देने का यह जुनून कभी जाया नहीं होगा. यह आपको सफलता दिलाकर ही रहेगा.

 

Crime Story: जहरीली प्रेम कहानी

पारुल और विकास के बीच नईनई जानपहचान हुई थी. दोनों ही ठाकुरगंज के होम्योपैथी अस्पताल में साफसफाई का काम करते थे. वैसे तो दोनों की मुलाकात कम ही होती थी, क्योंकि दोनों के काम करने का समय अलगअलग था. लेकिन जब से दोनों के बीच एकदूसरे के प्रति लगाव बढ़ा था, समय निकाल कर दोनों मिलने और बातचीत करने की कोशिश करते थे.

पारुल ने विकास को अपने बारे में सच बता दिया था. विकास के साथ उस का ऐसा लगाव था कि वह उस से कोई बात छिपाना नहीं चाहती थी.

एक दिन पारुल अपने बारे में बता रही थी और विकास उस की बातें सुन रहा था. पारुल बोली, ‘‘मेरी शादी को 14 साल हो गए. कम उम्र में शादी हो गई थी. मेरे 3 बच्चे भी हैं. मैं सोचती हूं कि जब हम दोस्ती कर रहे हैं तो एकदूसरे की हर बात को समझ लें.

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‘‘मेरे पति तो जेल में हैं. ससुराल वालों से मेरा कोई संपर्क नहीं रह गया है. मैं अपने 3 बच्चों का पालनपोषण अपनी मां के पास रह कर करती हूं.’’शाम का समय था. विकास और पारुल ठाकुरगंज से कुछ दूर गुलालाघाट के पास गोमती के किनारे बैठे थे. दोनों ही एकदूसरे से बहुत सारी बातें करने के मूड में थे. दोनों को कई दिनों बाद आपस में बात करने का मौका मिला था. ‘‘तुम्हारी शादी हो चुकी है तो मैं भी कुंवारा नहीं हूं. मैं बरेली से यहां नौकरी करने आया था. मेरी शादी 8-9 महीने पहले हुई है. शादी के कुछ महीने बाद से ही पत्नी के साथ मेरे संबंध ठीक नहीं रहे. मैं 5 महीने से अलग रह रहा हूं.

मेरी पत्नी की भी मेरे साथ रहने की कोई इच्छा नहीं है. ऐसे में मैं उस के साथ रहूं या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता.’’ पारुल की बातें सुन कर विकास ने कहा.

आप की शादी तो पिछले साल ही हुई है, फिर भी आप पत्नी को छोड़ मुझे पसंद करते हैं. ऐसा क्यों?’’ पारुल ने विकास से पूछा.

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शादी के बाद से ही पत्नी से मेरे आत्मिक संबंध नहीं रह सके. पतिपत्नी होते हुए भी ऐसा लगता था जैसे हम एकदूसरे से अनजान हैं. जब से आप मिलीं, आप से अपनापन लगने लगा. मैं अपनी पत्नी के साथ खुश नहीं हूं. हम दोनों ही अलग हो जाना चाहते हैं.’’ विकास ने पारुल की बात का जबाव दिया.

विकास बरेली जिले के प्रेम नगर का रहने वाला था. वह नौकरी करने लखनऊ आया था. रश्मि के साथ उस की शादी 2018 के जून में हुई थी. 4-5 महीने दोनों साथ रहे, पर इस के बाद वह पत्नी से अलग रहने लगा.

पारुल और विकास की मुलाकात साल 2019 के जून में हुई थी. शुरुआती कई महीनों तक दोनों में बातचीत नहीं होती थी. दोनों बस एकदूसरे को देखते रहते थे.

जब बातचीत होने लगी और एकदूसरे की पंसद नापसंद पर बात हुई तो पहले पारुल ने खुद को शादीशुदा बताया. तब विकास ने हंसते हुए कहा, ‘‘शादीशुदा तो मैं भी हूं. लेकिन बच्चे नहीं हैं. हमारी शादी पिछले साल हुई थी.’’

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जब पता चला कि दोनों ही शादीशुदा हैं तो वे निकट आने लगे. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी के साथ खुश नहीं थे.पारुल का पति रिंकू आटोरिक्शा चलाता था. शादी के 7 साल बाद परिवार में हुई हत्या में रिंकू को जेल हो गई. उस समय तक पारुल के 3 बच्चे मुसकान, पवन और गगन हो चुके थे. पति के जेल जाने के बाद उस की सुसराल वालों ने उस से संबंध नहीं रखे.

पारुल अपने बच्चों को ले कर अपनी मां सुषमा के साथ रहने लगी. वहीं पर पारुल ने अपने बच्चों का स्कूल में एडमिशन करा दिया. अब पारुल पर मां का दबाव रहता था. वह उस की एकएक गतिविधि पर पूरी नजर रखती थी.

इधर धीरेधीरे पारुल और विकास के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. सही मायनों में दोनों ही एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करने लगे थे. एकदूसरे के साथ दोनों का पूरी तरह से तालमेल बैठ गया था. कभी साथ घूमने जाते तो कभी एक साथ फिल्म देखते.

जब पारुल की मां को जानकारी मिली तो उस ने पारुल को समझाया और ऐसे संबंधों से दूर रहने को कहा. पर पारुल मानने को तैयार नहीं थी. कुछ दिन बाद दोनों फिर मिलने लगे. पारुल की मां सुषमा को लग रहा था कि विकास उन की बेटी को बहका कर अपने साथ रखता है. पारुल और विकास के संबंधों को ले कर मोहल्ले के लोगों और नातेरिश्तेदारों में भी चर्चा होने लगी थी.

दूसरी ओर पारुल को विकास के साथ संबंधों की लत लग चुकी थी. वह किसी भी स्थिति में विकास से दूर नहीं रहना चाहती थी. विकास भी पूरी तरह पारुल का दीवाना हो चुका था.

जब पारुल की मां और करीबी रिश्तेदारों का दबाव पड़ने लगा तो दोनों ने लखनऊ छोड़ने का फैसला कर लिया.पारुल के सामने सब से बड़ी परेशानी उस के बच्चे थे. प्यार के लिए पारुल ने उन का मोह भी छोड़ दिया. उस ने विकास से कहा, ‘‘अब हम साथ रहेंगे. हमारे बच्चे भी हमारे बीच में नहीं आएंगे. हम लोग यहां से कहीं दूर चलेंगे. बच्चे यहीं रहेंगे. जब समय ठीक होगा, तब हम वापस आ कर बच्चों को अपने साथ रख लेगे.’’

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विकास ने फैसला किया कि वह पारुल को ले कर अपने घर बरेली चला जाएगा. दिसंबर, 2019 की बात है. पारुल और विकास लखनऊ छोड़ कर बरेली चले आए. यहां दोनों साथ रहने लगे. पारुल के लखनऊ छोड़ने का सारा ठीकरा उस की मां सुषमा ने विकास के ऊपर फोड़ दिया.

सुषमा ने लखनऊ की कृष्णानगर कोतवाली में जा कर एक प्रार्थनापत्र दिया और विकास पर अपनी बेटी पारुल को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप लगाया. पुलिस ने प्रार्थनापत्र रख लिया.

पुलिस ने रिपोर्ट लिखने की जगह एनसीआर दर्ज की. पुलिस का मानना था कि पारुल बालिग है, 3 बच्चों की मां है और अपना भलाबुरा समझती है. वह जहां भी गई होगी, अपनी मरजी से गई होगी.

कई माह बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो पारुल की मां सुषमा ने कोर्ट की शरण ली. 14 अगस्त, 2020 को कोर्ट ने पुलिस को धारा 498 और 506 के तहत मुकदमा कायम करने का आदेश दिया.

पुलिस ऐसे मामलों की विवेचना 155 (2) के तहत करती है. इस में किसी तरह का कोई वारंट जारी नहीं होता. पुलिस दोनों को कोर्ट के सामने पेश करती है, जहां दोनों कोर्ट के सामने बयान देते हैं. कोर्ट अपने विवेक से फैसला देती है.

20 सितंबर, 2020 की रात लखनऊ के थाना कृष्णानगर के दरोगा भरत पाठक एक सिपाही और विकास व पारुल के 2 रिश्तेदारों को साथ ले कर बरेली गए. पुलिस रात में ही पारुल और विकास को कार से ले कर लखनऊ वापस लौटने लगी.

पुलिस द्वारा लखनऊ लाए जाने की बात पारुल और विकास को पता चल चुकी थी. उन के मन में भय था कि लखनऊ ले जा कर पुलिस दोनों को अलग कर देगी, जेल भी भेज सकती है.

पारुल ने अपने पति को देखा था. हत्या के आरोप में 8 साल बाद भी वह जेल से बाहर नहीं आ सका था. विकास सीधासादा था, उसे भी पुलिस, जेल और कचहरी के चक्कर से डर लग रहा था. ऐसे में दोनों ने फैसला किया कि वे साथ रह नहीं सकते तो साथ मर तो सकते हैं.

रात के समय जब पुलिस ने लखनऊ चलने के लिए कहा तो दोनों ने तैयार होने का समय मांगा. पारुल ने अपने पास कीटनाशक दवा की 4 गोली वाला पैकेट रख रखा था. दोनों कपड़े पहन कर वापस आए तो पुलिस ने पारुल की तलाशी नहीं ली.

पुलिस की दिक्कत यह थी कि वह अपने साथ कोई महिला सिपाही ले कर नहीं आई थी, जिस से उस की तलाशी नहीं ली जा सकी.

पुलिस ने पारुल विकास को अर्टिगा गाड़ी में बैठाया और बरेली से लखनऊ के लिए निकल गई. आगे की सीट पर दारोगा भरत पाठक और एक सिपाही बैठा था. पीछे वाली सीट पर विकास और पारुल को बैठाया गया था, जबकि बीच की सीट पर दोनों के रिश्तेदार बैठे थे.

गाड़ी बरेली से चली तो रात का समय था. ड्राइवर को छोड़ कर सभी लोग सो गए. अपनी योजना के मुताबिक पारुल और विकास ने कीटनाशक की 2-2 गोलियां खा लीं.

कुछ ही देर में दोनों को उल्टी होने लगी. पुलिस वालों को लगा कि गाड़ी में बैठ कर अकसर कई लोगों को उल्टी होेने लगती है, शायद वैसा ही कुछ होगा.

जब गाड़ी सीतापुर पहुंची तो सो रहे लोगों की नींद खुली. पीछे की सीट से उल्टी की बदबू आ रही थी. आगे की सीट पर बैठे लोगों ने पारुल और विकास को आवाज दी, पर दोनों में से कोई नहीं बोला. पास से देखने पर पता चला दोनों बेसुध हैं. दोनों की तलाशी ली गई. उन के पास कीटनाशक दवा का एक पैकेट मिला, जिस में 2 गोलियां शेष बची थीं.

इस से पता चल गया कि दोनों ने वही दवा खाई है. लखनऊ पहुंच कर पुलिस दोनों को ले कर लखनऊ मैडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर पहुंची, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

दो प्रेमियों के आत्महत्या करने का मसला पूरे लखनऊ में चर्चा का विषय बन गया. शुरुआत में विकास और पारुल के घर वालों ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाया. बाद में उन्हें भी लगा कि पुलिस, कचहरी और कानून के डर से पारुल और विकास ने आत्महत्या की है.

विकास और पारुल दोनों ही बालिग थे. अपना भलाबुरा समझते थे. परिवार वालों ने अगर आपसी सहमति से समझाबुझा कर फैसला लिया होता तो दोनों को यह कदम नहीं उठाना पड़ता.

इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं. ऐसे मामलों में पुलिस की प्रताड़ना प्रेमीजनों के मन में भय पैदा कर देती है. पुलिस, समाज और कचहरी के भय से प्रेमी युगल ऐसे कदम उठा लेते हैं. ऐसे में समाज और कानून दोनों को संवेदनशीलता से काम लेना चाहिए.

Crime Story: अपराधियों के निशाने पर अकेले रहने वाले बुजुर्ग

घरपरिवार से अलग रह रहे बुजुर्ग अपराधियों के लिए सौफ्ट टारगेट होते हैं. आएदिन खबर आती रहती है कि अकेले बुजुर्ग दंपती को लूटपाट के इरादे से अपराधियों ने मार डाला. ऐसे में बुजुर्गों की सुरक्षा बड़ी चिंता का विषय है. अभी हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में अकेले रह रहे 75 वर्षीय बुजुर्ग के पी अग्रवाल की मुंह दबा कर की गई हत्या ने एक बार फिर अकेले रहने वाले बुजुर्गों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं. के पी अग्रवाल के घर के अंदर व नीचे तलघर पर चल रहे उन के सर्विस सैंटर में सारा सामान बिखरा पड़ा मिला, जिस में कैश, ज्वैलरी सबकुछ गायब था.

उन की 2 बेटियों की शादी हो चुकी है और बेटा अपने परिवार के साथ दुबई में रहता है. खुशदिल व मिलनसार के पी अग्रवाल सभी सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे. वे अपना घर, अपने पड़ोसियों व जानपहचान वालों को छोड़ कर नई जगह नहीं जाना चाहते थे, क्योंकि वे यहां अपने लोगों के बीच अपनत्व की भावना महसूस करते थे. अकेले रहने की जिद ने आखिरकार उन की जान ले ली. आर्थिकरूप से समृद्ध परंतु अकेले रह रहे के पी अग्रवाल किसी शातिर अपराधी की निगाहों में आ गए, जिस ने लूट की नीयत से बड़ी आसानी से उन्हें अपना शिकार बना डाला.

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2019 में दिल्ली के ही पौश इलाके वसंत विहार में रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी विष्णु माथुर और उन की पत्नी का कत्ल कर दिया गया था. यही नहीं, उन के साथ रह रही उन की फुलटाइम मेड को भी हत्यारों ने बड़ी निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया था. घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था. शायद हत्यारे लूट के इरादे से घर में घुसे थे. पार्टटाइम नौकरानी जब काम पर आई तब इस ट्रिपल मर्डर का खुलासा हुआ. देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य महानगरों में भी अकेले रह रहे बुजुर्ग आज इन अपराधियों के रडार पर हैं. बल्कि, देखा जाए तो देश के तकरीबन हर शहर में इस तरह की घटनाएं अब आम हो चली हैं. स दरौली के थाना क्षेत्र बलहुं में 3 मई को अकेली रह रही बुजुर्ग औरत शैलदेवी की हत्या का मामला सामने आया था. उस का पति और इकलौता बेटा दिल्ली में काम करते थे और वह अकेली घर पर रह कर खेतीबाड़ी से संबंधित काम देखा करती थी.

इसी तरह, 2019 में देहरादून के डोईवाला कोतवाली क्षेत्र में 65 वर्षीय बुजुर्ग मलकीत सिंह अपने घर में मरे पाए गए थे. सुबह उन के नौकर के आने पर हत्या का खुलासा हो सका था. ये बुजुर्ग भी अकेले रहते थे. स साइबर सिटी गुरुग्राम के डीएलएफ फेज-1 इलाके में 70 वर्षीया महिला की उस के घर में गला घोंट कर हत्या कर दी गई. वृद्ध महिला के शरीर से चूडि़यां और सोने की चेन सहित सभी कीमती सामान गायब मिले. स यूपी के लखनऊ में अकेले रहने वाले बुजुर्ग दंपती कृष्णदत्त पांडेय और उन की पत्नी माधुरी पांडेय की निर्मम हत्या कर दी गई. जान लेने के बाद हत्यारे घर में रखी नकदी एवं लाखों रुपयों के गहने लूट कर ले गए. कृष्णदत्त पांडेय रेलवे से रिटायर्ड कर्मचारी थे. उन की एक बेटी मंजू शादीशुदा है और बेटा अमरीश दुबई में डाक्टर है. उन के घर में रह रहे किराएदारों के आने पर उक्त घटना का पता चल सका.

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उपरोक्त सभी घटनाएं समाज में बुजुर्गों के खिलाफ बढ़ते अपराधों की सूची में नित नए नाम जोड़ती जा रही हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ड्स के मुताबिक, इस मामले में मुंबई पहले स्थान पर है. विश्व के सब से सुरक्षित कहे जाने वाले शहरों में से एक कोलकाता में भी ऐसे मामलों में 38 फीसदी वृद्धि हुई है. यूनाइटेड नैशंस पौपुलेशन फंड (यूएनपीएफ) ने भी बीते साल अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2050 में भारत में बुजुर्गों की संख्या बढ़ कर तीनगुना हो जाएगी. आंकड़ों की यह सूची स्थिति की गंभीरता पर प्रकाश डालने के लिए काफी है. ऐसे में अकेले रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा उन के बच्चों के लिए खासी चिंता का विषय बन जाती है.

आज के दौर में व्यस्त जिंदगी की तेज रफ्तार और उस से कदमताल करते बच्चे पहले अपनी उच्चशिक्षा, फिर सफल कैरियर के लिए पूरी इच्छाशक्ति से कृतसंकल्प हैं. इस में उन के अभिभावकों का भी अहम रोल रहता है. पर यही बच्चे जब हौसलों के पंख मजबूत कर ख्वाहिशों की उड़ान भरते हैं तो पीछे रह जाती है थके हुए कमजोर कदमों की धीमी पदचाप, जिसे समाज में रह रहे शातिर अपराधी आसानी से सूंघ लेते हैं और नृशंसता से उन का शिकार कर अपना घिनौना मकसद पूरा कर लेते हैं. उपरोक्त अधिकतर मामलों में सामने आया है कि इन नृशंस हत्याओं के पीछे अपराधी का मुख्य मकसद लूटपाट करना था. ऐसी हालत में तर्कसंगत दृष्टि से यह सम?ाने की आवश्यकता है कि आखिर बुजुर्गों के अकेले रहने के कौनकौन से कारण हो सकते हैं.

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व्यर्थ की जिद या अकड़ परिवर्तन प्रकृति का नियम है. परंतु कुछ बुजुर्ग समयानुसार आए बदलावों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते. दूसरे शब्दों में कहें तो पूरी जिंदगी अपने हिसाब से चलने वाले बुजुर्ग बुजुर्गियत के इस दौर में बच्चों के कहे अनुसार चलने में अपनी शान को कम सम?ाते हैं. नतीजतन, अपनी जिद या अकड़ में बच्चों के साथ जाना या रहना पसंद नहीं करते हैं. उपरोक्त तथ्य तब और भी पुख्ता तरीके से मजबूत हो जाता है जब वे आर्थिकरूप से आत्मनिर्भर हों, यानी उन के पास घर, मकान या रुपएपैसों की कमी न हो. 65 वर्षीय रमाकांत सहाय शहर के जानेमाने वकील थे.

आज भी घरपरिवार में उन का रौब चलता था. इकलौती बेटी का ससुराल उसी शहर में था और दोनों बेटों में से एक मलयेशिया तो दूसरा यूके में सैटल्ड था. बेटों के पास घूमनेफिरने के इरादे से जाना उन्हें कभी नहीं खला. लेकिन जब पत्नी की अचानक हुई मौत के बाद बेटों ने उन्हें अपने पास शिफ्ट हो जाने को कहा तो उन्होंने यह कह कर साफ इनकार कर दिया कि किसी और के पास रहने के बजाय वे अकेले अपने तरीके से रहना अधिक पसंद करेंगे. बच्चे भी क्या करते, उन के हठ के आगे किसी की एक न चली. एक साल तक तो सब ठीक चलता रहा, पर एक रात उन के घर पर चोरों ने धावा बोला और उन्हें बांध कर एक कोने में डाल दिया व काफी माल लूट कर भाग गए.

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बाद में पुलिस तहकीकात में पता चला कि घर में खाना बनाने वाली बाई ने उन के अकेले रहने और घर की संपन्नता का बखान कभी अपने पति से किया था. उसी ने बाद में अपने दोस्तों के साथ मिल कर उन्हें लूटने की योजना बनाई थी. पैसारुपया तो वापस नहीं मिला, गनीमत रही कि रमाकांत की जान बच गई. अपनेपन का मोह कई बार बुजुर्ग अपने पुश्तैनी या स्वयं के बनाए मकान में रहने का मोह नहीं छोड़ पाते और अकेले रहने का जोखिम उठाते हैं. उस वातावरण या जगह से उन्हें अपनेपन की महक महसूस होती है. लिहाजा, वे किसी भी कीमत पर अपने निवास स्थान को छोड़ने को राजी नहीं होते जहां वे सालों से रहते आए हैं.

नई जगह में एडजस्ट न हो पाने का डर कई बार मातापिता अपने बच्चों के साथ जाने या रहने से इसलिए भी कतराते हैं क्योंकि नई जगह में नए लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने में उन्हें घबराहट या परेशानी होती है. सो, बच्चों के साथ नई जगह शिफ्ट होने के बजाय वे अकेले रहना अधिक सुविधाजनक महसूस करते हैं. अन्य वजहें इस सचाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि बच्चों के गैरजिम्मेदाराना रवैए के कारण भी कई बुजुर्ग अकेले रहने को मजबूर हैं. कई बार बच्चे स्वयं ही पेरैंट्स के साथ रहना पसंद नहीं करते, न ही उन्हें अपने साथ रखने को राजी होते हैं. कारण कोई भी हो, पर शारीरिक रूप से अशक्त हो चुके ये बुजुर्ग अकेले रहते हुए अकसर ही किसी अपराधी मनोवृत्ति का शिकार हो अपनी जान गंवा बैठते हैं. सुरक्षा में सेंध अब एक महत्त्वपूर्ण बिंदु यह सामने आता है कि अकेले रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा को आखिर किस तरह से खतरा है या वे कौन सी खामियां हैं जिन के चलते उन की सुरक्षा में चूक हो जाती है और असमय ही उन्हें इस तरह मृत्यु का ग्रास बनना पड़ता है?

गोपनीयता भंग करना अकेलेपन से घबरा कर कई बुजुर्ग किसी से भी बातचीत करने में गुरेज नहीं करते और इसी दौरान जानेअनजाने उन्हें कुछ ऐसी जानकारी भी दे बैठते हैं जो अपराधी मानसिकता वाले व्यक्ति के लिए मददगार हो जाती हैं. समाजशास्त्री राघवेंद्र पटेल कहते हैं, ‘‘अकेले रहते बुजुर्गों को घर में कोई समस्या आने पर कई बार बाहर से प्लम्बर, इलैक्ट्रिशियन आदि को बुलाना जरूरी हो जाता है. इन में से अगर कोई व्यक्ति अपराधी प्रवृत्ति का होता है तो वह घर की समृद्धि व इन का अकेलापन सूंघ लेता है व धीरेधीरे इन की मदद का दिखावा कर इन से आत्मीयता बढ़ाता है और फिर अपनी लूट की योजना को अंजाम तक पहुंचाता है. किसी पर भी बहुत जल्दी भरोसा कर लेना शारीरिक अक्षमता व अकेलेपन की लाचारी बुजुर्गों को अंदर ही अंदर अवसादग्रस्त कर देती है. लिहाजा, किसी से भी जरा सा प्रेम या अपनापन मिलते ही वे उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगते हैं और उस के आगे अपनी लाचारी व आर्थिक संपन्नता का बखान कर उस के लालच को हवा दे कर उस की बुरी नीयत का शिकार हो बैठते हैं.

नौकरों के सामने पैसे या ज्वैलरी का दिखावा करना राजधानी दिल्ली में लोकल लैवल पर बुजुर्गों का सिक्योरिटी औडिट करने वाले बीट कौंस्टेबल राजीव दुबे बताते हैं, ‘‘अकसर बुजुर्गों द्वारा अपने पुराने नौकर, ड्राइवर या धोबी आदि पर अतिविश्वास करना उन्हें मुश्किल में डाल जाता है. क्योंकि वे इन लोगों के सामने आसानी से अपना लौकर खोल कर पैसा, ज्वैलरी व अन्य कीमती सामान का प्रदर्शन करते हैं, जिस से व्यक्ति के मन में लालच आते देर नहीं लगती.’’ सो, कभी भी नौकरों आदि के सामने अपनी संपन्नता का बखान करने से बचना चाहिए. बिना वैरिफिकेशन के किसी को नौकरी पर रखना शरीर से थकेहारे बुजुर्ग कई बार अपनी मदद या सेवा के लिए बिना प्रौपर वैरिफिकेशन के नौकर या मेड आदि रख लेते हैं.

उन की यह छोटी सी गलती आगे जा कर किसी भयावह घटना में तबदील हो जाती है. अकसर ही ऐसी घटी कई घटनाओं में घर के नौकर मुख्यतया संलिप्त पाए गए हैं. यहां एक और बात भी गौर करने लायक है. अकेले रह रहे बुजुर्गों को सब से अधिक खतरा चोरी, सेंधमारी या लूट की नीयत वाले बदमाशों से होता है, जो अकसर विरोध करने या पहचाने जाने के डर से इन की हत्या कर देते हैं और ऐसा व्यक्ति ज्यादातर इन के परिचितों में से ही एक होता है. वरना एकदम अनजान अपराधी, जो ऐसे आसान शिकार की टोह में घूमते फिरते हैं, सामान्यतया लूट के दौरान हत्या जैसा जघन्य कांड करने से बचते हैं.

सुरक्षा के उपाय तो आइए अब जानते हैं कि सुरक्षा के किन उपायों को अपना कर बुजुर्गों की चिंता से काफी हद तक नजात पाई जा सकती है- द्य घर के मेनगेट पर मजबूत चेन लगवाएं, जिस से अनचाही एंट्री से बचा जा सके. द्य घर के अंदर व बाहर मुख्य जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगवाएं. द्य बीट औफिसर और अपने थाने का फोन नंबर अपने पास रखें ताकि जरूरत पड़ने पर सीधी मदद मांगी जा सके. द्य नौकर या मेड की नियुक्ति पर प्रौपर पुलिस वैरिफिकेशन करवाएं.

पासपड़ोसियों के संपर्क में रहें जिस से वे रोजाना आप के हालचाल लेते रहें और किसी भी अनचाही स्थिति में आप की सहायता कर सकें. द्य घर के नौकरों, ड्राइवर या अन्य किसी व्यक्ति के सामने फोन पर बाहर रह रहे अपने बच्चों से पैसों आदि के बारे में चर्चा करने से बचें. द्य चाहे कितना भी पुराना और विश्वस्त नौकर क्यों न हो, उस के सामने अपना लौकर आदि खोलने से बचें. द्य दरवाजों पर मजबूत और एक्स्ट्रा लौक लगवाएं. उपरोक्त टिप्स अपना कर कई आकस्मिक खतरों से बुजुर्गों का बचाव काफी हद तक किया जा सकता है. वैसे, कई राज्य सरकारों द्वारा अकेले रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा हेतु एहतियातन अब कड़े कदम उठाए जा रहे हैं, जिन में इन का थानेवार नाम, पता और मोबाइल नंबर दर्ज किया जाता है. कई प्लांस जैसे ‘सवेरा योजना’, ‘सीनियर सिटिजन सेल’ आदि बनाए गए हैं जिन में संबंधित थानों में इन का रजिस्ट्रेशन कराया जाता है.

तत्काल मदद के लिए इन्हें टोलफ्री हैल्पलाइन नंबर मुहैया कराए जाते हैं जिस पर किसी भी परिस्थिति या परेशानी में वे सीधी मदद की गुहार लगा सकें और तुरंत ही उन तक सहायता पहुंचाई जा सके. आजकल अकेले रह रहे बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय पुलिस भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. समयसमय पर टैलीफोन पर बात कर के उन से उन के हालचाल मालूम किए जाते हैं. इस के अलावा, फील्ड विजिट के जरिए भी बुजुर्गों को उन की सुरक्षा का भरोसा दिया जाता है व उन की समस्याओं को दूर किया जाता है. सो, यदि आप के मातापिता भी बुजुर्ग हो चले हैं तो जहां तक हो सके उन्हें अपने पास रखें और यदि साथ न रख सकें तो कम से कम उन की सुरक्षा के समुचित उपाय करें. आखिर आप के बुजुर्ग आप की जिम्मेदारी हैं. उन से लगातार संपर्क में रहें, रोजाना थोड़ी देर उन से बात अवश्य करें ताकि वे स्वयं को अकेला व असहाय न सम?ों और न ही किसी अप्रिय घटना के शिकार हों.

Bigg boss 14: एंडी ने उतारी एजाज खान की आरती तो काम्या पंजाबी ने कही ये बात

बिग बॉस 14 में इस बार भू पुछले बार की तरह कुछ ऐसा हो रहा है जिसे देखने के बाद यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि एजाज खान इस बार के विनर के लिए फिक्सड करके लाए गए हैं. इससे पहले ये आरोप सिद्धार्थ शुक्ला पर लगे थें.

बता दें कि इस वक्त एजाज खान घर में मजबूत सितारे के तौर पर नजर आ रहे हैं. यहां तक की घर में एंट्री लेने वाले सदस्य भी एजाज खान को सही और बाकी सभी लोगों को गलत बता रहे हैं.

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वीकेंड के वार में जहां सलमान खान खुलकर घरवालों के सामने एजाज खान की तारीफ करते नजर आएं वहीं घर वाले उनसे नाराज भी नजर आ रहे थें.

वहीं फराह खान बतौर जज बनकर पहुंची बिग बॉस के घर में उन्होंने भी एजाज खान को ज्यादातर मामले में एजाज खान को सही ठहराया.

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ऐसे में कुछ लोग अपनी दबी हुई जुबांन से ये भी कहने लगे है कि इस सीजन के फिक्सड विनर एजाज खान होंगे. अब देखना ये है कि यह बात कितनी सही है और कितनी गलत है. ऐसे में बिग बॉस एक्स कंटेस्टेंट एंडी कुमार का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है. जिसमें एंडी कुमार एजाज खान की आरती उतारते दिख रहे हैं.

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इस वीडियो को देखने के बाद काम्या पंजाबी खुद को रोक नहीं पाई. उन्होंने हंसने वाली इमोजी सेंड कर एंडी की वीडियो की जमकर तारीफ की.

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टीवी अदाकारा काम्या पंजाबी कविता कौशिक की जमकर तारीफ कर रही हैं. एब देखना यह है कि आखिर बिग बॉस 14 का विनर कौन होगा.

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