रात के 2 बजे के करीब अनुभा की आंखें खुलीं तो उस ने देखा, सुगम बिस्तर पर नहीं है. 5-7 मिनट बाद जब सुगम वापस नहीं आया तो अनुभा को कुछ चिंता हुई. वह उठ कर बाहर की तरफ जाने वाले दरवाजे पर गई तो उस ने पाया दरवाजे की सांकल खुली हुई है. सुगम को अचानक बाहर जाने की क्या जरूरत आ पड़ी. अनुभा यह सोच ही रही थी कि पास के कमरे से खुसुरफुसुर की आवाजें आईं. संभवतया सुलभा की बच्ची को कोई परेशानी हुई होगी. यही सोच कर शायद उस ने सामने वाला दरवाजा न खोल कर कमरों को जोड़ने वाला दरवाजा खोलने का निर्णय लिया होगा. निश्चित रूप से कोई बड़ी परेशानी रही होगी. वरना यह दरवाजा तो दिन के समय तक दोनों तरफ से बंद रहता है. आशंकाओं से भरी अनुभा ने कुछ झिझकते हुए दरवाजा खोल दिया.

आंखों के सामने का दृश्य अविश्वसनीय था. सुगम और सुलभा अंतरंग प्रणय की अवस्था में थे. अनुभा को कुछ समझ में नहीं आया की वह क्या करे. उसे चक्कर सा आ गया, वह गिरने लगी. ‘सुगम...’ अनुभा गिरने से पहले पूरी ताकत लगा कर चीखी. अनुभा की चीख में इतनी तेजी तो थी ही कि वह प्रगत प्रताप और जैविका की नींद खोल सके.

‘‘यह तो अनुभा की आवाज है. पेट से है. कहीं कुछ गड़बड़,’’ कहते हुए आशंकित जैविका उठ बैठी.

‘‘चलो,चल कर कर देखते हैं,’’ प्रगत प्रताप बिस्तर छोड़ते हुए बोले.

तेज कदमों से दोनों सुगम के कमरे की तरफ चल दिए. चूंकि आगे वाले दरवाजे का सांकल खुला हुआ ही था, इसलिए ढकेलते ही खुल गया. कमरे में सुगम व अनुभा दोनों को न पा कर वे भी कमरों को जोड़ने वाले दरवाजे की तरफ दौड़े.

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