Download App

अंकिता लोखंडे ने ब्यॉफ्रेंड विक्की के साथ मनाया अपना जन्मदिन , फैंस ने याद किया सुशांत सिंह को

अंकिता लोखंडे के लिए आज का दिन बेहद खास आज अंकिता लोखंडे अपने ब्यॉफ्रेंड के साथ अपना 36 वां जन्मदिन मना रही हैं. इस खास मौके पर अंकिता ने अपने ब्यॉफ्रेंड विक्की जैन के साथ एक पार्टी आयोजित किया.

इस पार्टी में अंकिता लोखंडे के परिवार और कुछ खास दोस्त शामिल थें. वहीं अंकिता लोकंडे के फैंस उन्हें सुबह से बधाई  दे रहे हैं. अंकिता लोखंडे केक काटते वक्त अपनें फैंस के खातिर लाइव भी आई थी. जिसे देखकर अंकिता लोखंडे के फैंस काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे थें.

ये भी पढ़ें- ‘नागिन 5’: वीर देगा बानी को धोखा , चांदनी के साथ लेगा सात फेरे

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ankita Lokhande (@lokhandeankita)

अंकिता ने सोशल मीडिया पर तस्वीर शेयर करते लिखा मेरा बर्थडे काफी स्पेशल है. शेयर किए हुए तस्वीर में अंकिता लोखंडे रेड और ब्लू कलर के आउटफिटमें नजर आ रही हैं.

ये भी पढ़ें- ड्रग्स केस में करण जौहर को एनसीबी के डायरेक्टर ने भेजा समन, मांगा है जवाब

केक काटने से पहले उन्होंने विश मांगी तब केक काटा . जिसमें उनके फैंस लाइक और शेयर कर रहे हैं. वहीं कुछ फैंस अंकिता लोखंडे के जनमदिन वाले दिन सुशआंत सिंह राजपूत को याद किया जिससे पता चलता है कि फैंस अभी तक सुशांत सिंह राजपूत को भूल नहीं पाएं हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ankita Lokhande (@lokhandeankita)

तभी अंकिला लोखंडे के बर्थ डे पर सुशांत सिंह राजपूत का नाम लिख रहे हैं. सुशआंत सिंह राजपूत को यादकरके फैंस काफी ज्यादा इमोशनल हो गए.

येभी पढ़ें- ‘‘क्रिमिनल जस्टिसः बिहाईंड क्लोज्ड डोर्स’’से दूसरी बार डिजिटल में नजर

कयास लगाया जा रहा है कि अंकिता लोखंडे जल्द अपने ब्यॉफ्रेंड विक्की जैन के साथ शादी के बंदन में बंधने वाली हैं.

पैसा नहीं पैशन है: दिल्ली के किसान आन्दोलन की ताकत

20 दिसंबर 2020 को मैं पूरा दिन टीकरी बोर्डर के किसान आंदोलन में था. मैंने अपनी अब तक की जिंदगी में सैकड़ों छोटे बड़े किसान आंदोलन देखें हैं. एक पत्रकार के रूप में भी और आम आदमी के रूप में भी. दो साल पहले का नासिक से किसानों का मुंबई मार्च भी देखा है, इसके पहले भी देश के कई हिस्सों में किसान आंदोलनों को देखा है. टिकैत के किसान आंदोलन को शामली जाकर कवर किया है. लेकिन जैसा किसान आंदोलन इस समय दिल्ली की सीमाओं में चल रहा है, वैसा आंदोलन मैंने कभी देखा तो है ही नहीं, शायद कल्पना भी नहीं की. लोग इतने दृढ़ और आत्मविश्वास से भरे हैं कि थकान, निराशा और किसी भी तरह की कोई परेशानी दूर दूर तक उनके चेहरे में नहीं दिखती.

हो सकता है इसके लिए इनके विरोधी यह कह दें कि यह खाये पीये पंजाब के किसानों का आंदोलन है, इसलिए यहां कोई समस्या नहीं दिखती. लेकिन यह बात पूरी तरह से गलत है. टीकरी बोर्डर में मैंने जो करीब 8 से 10 किलोमीटर तक लंबे आंदोलनकारी पड़ाव को घूम घूमकर देखा है, उसमें कहीं पर भी मुझे 30-35 पर्सेंट से ज्यादा सरदार नहीं दिखे. हां, बड़ी संख्या में इस आंदोलन का नेतृत्व जरूर सरदार किसान संभाल रहे हैं. नेताओं के रूप में ही नहीं आंदोलनस्थल में भाषणा देने वालों में भी और भाषणों को बैठकर सुनने वालों में भी सरदारों की संख्या बाकियों से ज्यादा दिखती है. लेकिन ओवर आल  संख्या गैरसरदारों की ही ज्यादा है. जहां तक खाने पीने की किसी समस्या के न होने की बात है, तो कल मैंने पूरे आंदोलनस्थल में करीब 110 से ज्यादा जगहों पर खाना पीना बनते और बंटते देखा. इसका साफ मतलब है कि किसान अपने साथ खूब सारा राशन पानी खुद लेकर आये हैं और अलग अलग जगहों पर जहां उनके गांव या इलाके का पड़ाव पड़ा है, वहीं उनका खाना बन रहा है.

ये भी पढ़ें- बर्ड वाचिंग पक्षी अवलोकन एक अजब चसका

लेकिन पूरे आंदोलन इलाके में कोई भी व्यक्ति कहीं भी खाना खा सकता है. पूरा आंदोलनस्थल एक साझी रसोई के तौरपर दिखता है . सिर्फ आंदोलनकारी ही नहीं वहां मौजूद हर व्यक्ति को दिनभर हर जगह, खाने के लिए विनम्र आग्रह किये जाते हैं. हर 100-100 मीटर की दूरी पर बढ़िया चाय बनी हुई रखी है, जिसका जितना मन आये पीए. चाय के साथ कई जगहों पर भुने चने, मूंगफली और कुछ जगहों पर तो बिस्कुट आदि भी रखें हैं. आंदोलन बहुत ही व्यवस्थित और खुशहाल ढंग से चल रहा है, जिसमें समाज के हर वर्ग की भूमिका है. कल मैंने पूरे दिन लोगों को तमाम चीजें लाकर आंदोलकारियों को देते देखा है. एक सज्जन करीब 6 बोरे मूंगफली लाये थे, एक बंदा छोटे वाले ई-रिक्शा ट्राली में करीब 3-4 बोझ पालक काटकर लाया था. एक ट्रक छाछ यानी मट्ठा कुछ लोग लेकर आये थे. एक सज्जन को मैंने करीब आधी ट्राली आलू और इतने ही फूलगोभी लाते देखा. एक आदमी एक छोटी मेटाडोर भर 200 मिलीलीटर पानी की बोतले लाया था. एक बंदा करीब आधी ट्राली संतरे लेकर आया था और यकीन मानिये इनमें से कोई भी सरदार नहीं था. सब आसपास के हरियाणवी लोग थे.

इसलिए यह कहना कि यह आंदोलन समृद्ध एनआरआई सरदारों के पैसे से चल रहा है, बिल्कुल गलत है. गलत ही नहीं है बल्कि यहां मौजूद देश के आम लोगों खासकर किसानों के भाईचारे को नकारने जैसा है . लेकिन जब मैं मजबूत आंदोलन की बात कर रहा हूं तो वह आंदोलनकारियों के पास खाने पीने की तमाम चीजों के होने की वजह से नहीं कह रहा. इस आंदोलन की सबसे बड़ी बात जिसने मुझ आकर्षित किया और जिसके चलते मैं आंदोलकारियों के प्रति प्रेम और भाईचारे की भावना से भर गया, वह है इस आंदोलन में शामिल विशेषकर पंजाब की नयी पीढ़ी. शायद मैंने अपने जीवन में पहला ऐसा आंदोलन देखा है, जहां मंहगे कपड़े पहने और कीमती गैजेट हाथों में लिये नयी पीढ़ी के नौजवान जो कॉलेज छात्र हैं, कुछ अलग अलग संस्थानों में काम कर रहे लोग हैं, वे सब पूरी शिद्दत से आंदोलन में शामिल हैं. उनके कपड़ों से लेकर उनकी गाड़ियों तक में हर जगह ‘आई लव खेती’ के स्टीकर लगे हैं. इस आंदोलन को जिन लोगों ने खालिस्तानियों से जोड़ा था, उनके छुद्र आरोपों पर मुझे गुस्सा नहीं बल्कि हंसी आती है. जो लोग कहते हैं कि आंदोलन में खालिस्तानी शामिल हैं या इसके पर्दे के पीछे वे मौजूद हैं.

ये भी पढें- बेसहारा रोहिंग्याओं को खिलाना पाप है

मैं यकीन से कहता हूं कि कोई सचमुच खालिस्तानी यहां आ जाए तो वह गुस्से से भर जाए और कुछ मिनटों में ही आंदोलनस्थल को छोड़कर चला जाए. क्योंकि आंदोलनस्थल में हर जगह भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस जैसे दर्जनों ऐसे क्रांतिकारियों के पोस्टर लहरा रहे हैं, जिन्हें देखकर ही खालिस्तानियों का खून सूख जाता है. भगत सिंह के दर्जनों कोट्स पूरे आंदोलन स्थल में जगह जगह लगे हैं. उनके लेखों और विभिन्न मुद्दों पर उनके संबोधनों की किताबें बिक रही हैं. हद तो यह है कि चाय के ड्रमों में भी भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों के तस्वीरें लगी हुई हैं.

ये भी पढें- समाजसेवा और नेतागीरी भी है जरूरी

क्या किसी ऐसी जगह कोई खालिस्तानी अपवाद के तौरपर भी रह सकता है, जहां हर तरफ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सरदार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों का जलवा हो? शायद आरोप लगाने वालों को मालूम नहीं है कि जब खालिस्तानी आंदोलन चरम पर था, तो सबसे ज्यादा पंजाब में वही लोग मारे गये थे, जो भगत सिंह की विचारधारा पर ही यकीन नहीं करते थे बल्कि सीना तानकर खालिस्तानियों के सामने उस विचार के साथ खड़े होने की जुर्रत करते थे. क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू ‘पाश’ को भी इसी वजह से खालिस्तानियों ने मारा था. इसके बाद भी दिल्ली में रह रहे लोगों को अगर इस आंदोलन को लेकर कोई शक हो उन्हें एक बार व्यक्तिगत रूप से यहां जाकर देखना चाहिए कि यह कितनी जनभावना और भारतीयता से ओतप्रोत माहौल में हो रहा है.

आइसलैंड रेफ्रिजरेटर में रखी जायेगी कोरोना वैक्सीन

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कोरोना वैक्सीन की सुरक्षित स्टोरेज तथा कोल्ड चेन के सम्बन्ध में फूलप्रूफ व्यवस्था करने के निर्देश दिए है. उन्होंने कहा है कि कोविड-19 वैक्सीन के स्टोरेज सेन्टर में सभी आवश्यक प्रबन्ध सुनिश्चित किए जाएं. उन्होंने कोरोना वैक्सीनेशन कार्य को ध्यान में रखते हुए बायोमेडिकल वेस्ट के समुचित निस्तारण की व्यवस्था करने के निर्देश भी दिए हैं.
मुख्यमंत्री जी आज यहां लोक भवन में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में कोरोना वैक्सीनेशन के सम्बन्ध में की जा रही व्यवस्थाओं की समीक्षा कर रहे थे. उन्होंने निर्देश दिए कि कोरोना वैक्सीन सेन्टर में वैक्सीन लगने के बाद सम्बन्धित व्यक्ति के लिए कुछ समय रुकने की भी व्यवस्था की जाए. उन्होंने वैक्सीन सेन्टर पर सुरक्षा के व्यापक इन्तजाम सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश में कोविड-19 का टीकाकरण कार्य निर्धारित टाइम लाइन के अनुसार सम्पन्न किया जा सके, इसके लिए आवश्यक है कि पर्याप्त संख्या में वैक्सीनेटर्स की उपलब्धता रहे जनपद स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारम्भ हो गये है. उन्होंने वैक्सीन लगाने के लिए वैक्सीनेटर्स को तैयार करने का कार्य पूरी तेजी से संचालित करने के निर्देश दिए है. कोरोना वैक्सीन की मानकों के अनुरूप स्टोरेज के लिए आईसलैण्ड रेफ्रिजरेटर तथा डीपफ्रीजर भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे हैं. प्रदेश में 2.5 लाख लीटर वैक्सीन की भण्डारण क्षमता सृजित हो गई है. वैक्सीनेशन कार्य के लिए 06 करोड़ सिरिंज की आवश्यकता होगी. अब तक 4.5 करोड़ सिरिंज का आवंटन कर दिया गया है.

एक वैक्सीनेशन टीम द्वारा प्रतिदिन 100 लोगों का टीकाकरण किया जाएगा. प्रत्येक वैक्सीनेशन टीम के साथ एक पुलिस काॅन्टेबल तथा एक होमगार्ड की ड्यूटी लगाई जाएगी. जिस व्यक्ति को टीका लगाया जाएगा उसके फोन पर टीका लगाने का समय, स्थान व दिनांक सूचित किया जाएगा. टीकाकरण के पश्चात सम्बन्धित व्यक्ति को वैक्सीनेशन सेन्टर पर 30 मिनट रुकना होगा. प्रदेश में कोरोना वैक्सीन की स्टोरेज के लिए 35,000 केन्द्र स्थापित किए जाएंगे.

बैठक में स्वास्थ्य राज्य मंत्री श्री अतुल गर्ग, मुख्य सचिव श्री आर0के0 तिवारी, अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त श्री आलोक टण्डन, कृषि उत्पादन आयुक्त श्री आलोक सिन्हा, अपर मुख्य सचिव गृह श्री अवनीश कुमार अवस्थी, पुलिस महानिदेशक श्री हितेश सी0 अवस्थी, अपर मुख्य सचिव राजस्व श्रीमती रेणुका कुमार, अपर मुख्य सचिव वित्त श्री संजीव मित्तल, अपर मुख्य सचिव एम0एस0एम0ई0 तथा सूचना श्री नवनीत सहगल, अपर मुख्य सचिव पंचायतीराज एवं ग्राम्य विकास श्री मनोज कुमार सिंह, अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री श्री एस0पी0 गोयल, अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य श्री अमित मोहन प्रसाद, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य श्री आलोक कुमार, सचिव मुख्यमंत्री श्री आलोक कुमार, सूचना निदेशक श्री शिशिर सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

बिग बॉस 14 : क्या राहुल वैद्य एक बार फिर बिग बॉस के घर से बाहर होेंगे?

राहुल वैद्य की रीएंट्री के बाद से ही बिग बॉस 14 की शआंति खत्म हो गई है. राहुल वैद्या जबसे वापस आएं हैं तबसे एजाज खान को टारगेट करने लगे हैं. राहुल वैद्या सभी के सामने एजाज खान पर आरोप लगाते नजर आएं.

राहुल वैद्या ने एजाज खान पर आरोप लगाए है कि एजाज खान फीमेल कंटेस्टेंट पर अपनी मर्दानगी दिखआते हैं. इस आरोप के बाद एजाज खान का गुस्सा सातवें आसमाव पर चला गया और फिर उन दोनों की लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था.

ये भी पढ़ें- सयोनी: हर स्तर पर प्रभावहीन

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ColorsTV (@colorstv)

इन दोनों की लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि दोनों में हाथा-पाई होने लगता है. शो का प्रोमो रिलीज हुआ है जिसमें राहुल वैद्या एजाज खान को धक्का मारते नजर आ रहे हैं. वहीं बाकी घर वाले दोनों को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं. कयास लगाया जा रहा है कि राहुल वैद्या की इस हरकत की वजह से उन्हें घर से बाहर निकाला जा सकता है.

ये भी पढ़ें- ‘नागिन 5’: वीर देगा बानी को धोखा , चांदनी के साथ लेगा सात फेरे

एजाज खान इस घर में शुरुआत दिनों से ही काफी मजबूत नजर आएं है उनके फैन फ्लॉविंग भी काफी ज्यादा है. इन सभी घटना को देखते हुए कयास लगाया जा रहा है कि राहुल वैद्या को घर से जल्द बाहर कर दिया जाएगा.

ये भी पढ़ें- ड्रग्स केस में करण जौहर को एनसीबी के डायरेक्टर ने भेजा समन, मांगा है जवाब

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ColorsTV (@colorstv)

अब देखऩा है अपकमिंग एपिसोड में क्या दिखाया जाएगा. क्या राहुल वैद्या फाइनलिस्ट बन पाएंगे या नहीं.

मसूर की फसल को कीट व बीमारियों से बचाएं

लेखक- संदीप कुमार

पिछले अंक में आप ने मसूर की खेती करने के आधुनिक तरीकों को जाना, जिस में खेत तैयार करने से ले कर उन्नत बीजों की जानकारी व रखरखाव तक की जानकारी दी गई थी. अब इस बार बात करते हैं मसूर की फसल में लगने वाले कीट व बीमारियों के बारे में. आमतौर पर मसूर में भी दलहनी फसलों में लगने वाले कीट व बीमारियां होती हैं, जिन से फसल का बचाव करना जरूरी है. आइए जानते हैं कुछ खास बातें माहू मसूर में आमतौर पर माहू सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला कीड़ा है. यह कीट 45 से 50 दिन की अवस्था में पौधों का रस चूसता है, जिस से पौधे कमजोर हो जाते हैं. उपज में 25 से 30 फीसदी तक की कमी हो जाती है. यह कीट पौधों का रस चूसने के साथसाथ अपने उदर से एक चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ता है, जिस से पत्तियों पर काले रंग की फफूंद पैदा हो जाती है. साथ ही, पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है.

प्रबंधन फसल की बोआई समय से करने से इस का प्रकोप कम होता है.फसल में नाइट्रोजन का ज्यादा इस्तेमाल न करें.  माहू का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, जिस से माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं.  परभक्षी कौक्सीनेलिड्स या सिरफिड या फिर क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर 50,000-10,0000 अंडे या सूंड़ी प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें.

ये भी पढ़ें- पंखिया सेम किसानों के आय का नया विकल्प

नीम का अर्क 5 फीसदी या 1.25 लिटर नीम का तेल 100 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें. बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.  इंडोपथोरा व वरर्टिसिलयम लेकानाई इंटोमोपथोजनिक फंजाई (रोगकारक कवक) का माहू का प्रकोप होने पर छिड़काव करें.  जरूरी होने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल/0.5 मिलीलिटर प्रति लिटर, थियोमेथोक्सम 25 डब्लूजी/1-1.5 ग्राम प्रति लिटर या मेटासिस्टौक्स 25 ईसी 1.25-2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से छिड़काव करना चाहिए. कर्तन कीट (एग्रोटिस एप्सिलान) यह कीट मसूर के अलावा सोलेनियसी परिवार के पौधों और कपास व दलहनी फसलों पर भी हमला करता है. यह रात के वातावरण में निकल कर नर व मादा संभोग कर के पत्तियों पर अंडे देते हैं.

इन की जीवनचक्र क्रिया वातावरण के हिसाब से 1-2 महीने में पूरी होती है. इस की सूंड़ी जमीन में मसूर के पौधे के पास मिलती है और जमीन की सतह से पौधे और इस की शाखाओं के 30-35 दिन की फसल में काटती है. प्रबंधन  खेतों के पास प्रकाश प्रपंच 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर प्रौढ़ कीटों को आकर्षित कर के नष्ट किया जा सकता है, जिस की वजह से इस की संख्या को कम किया जा सकता है.  खेतों के बीचबीच में घासफूस के छोटेछोटे ढेर शाम के समय लगा देने चाहिए. रात में जब सूंडि़यां खाने को निकलती हैं, तो बाद में इन्हीं में छिपेंगी, जिन्हें घास हटाने पर आसानी से नष्ट किया जा सकता है. * प्रकोप बढ़ने पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी 1 लिटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़काव करें.

ये भी पढ़ें- सर्दी में गन्ने की खेती

 

सैमीलूपर (प्लूसिया ओरिचेल्सिया) इस कीट की सूंडि़यां हरे रंग की होती हैं, जो पीठ को ऊपर उठा कर यानी अर्धलूप बनाती हुई चलती हैं, इसलिए इसे सैमीलूपर कहा जाता है. यह पत्तियों को कुतर कर खाती है. एक मादा अपने जीवनकाल में 400-500 तक अंडे देती है. अंडों से 6-7 दिन में सूंडि़यां निकलती हैं जो 30-40 दिन तक सक्रिय रह कर पूर्ण विकसित हो जाती हैं. पूर्ण विकसित सूंडि़यां पत्तियों को लपेट कर उन्हीं के अंदर प्यूपा बनाती हैं, जिन से 1-2 हफ्ते बाद सुनहरे रंग का पतंगा बाहर निकलता है. प्रबंधन  खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिए और रोग व कीट प्रतिरोधी जातियों की बोआई करनी चाहिए.  बीज को कीटनाशी व फफूंदनाशकों से उपचार कर लेना चाहिए.  खेत में 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं.  खेत में परजीवी पक्षियों के बैठने के लिए 10 ठिकाने प्रति हेक्टेयर के अनुसार लगाएं. * प्रकोप बढ़ने पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी 1 लिटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़काव करें.

बीमारियों की रोकथाम उकठा यह भूमिजनित बीमारी है. बोआई के 20 से 25 दिन के बाद इस बीमारी के प्रकोप से पौधे पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं. पौधों का ऊपरी भाग एक तरफ ?ाक जाता है और अंत में मुर?ा कर पौधा मर जाता है. उकठा बीमारी से बचाने के लिए उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए. साथ ही, पुरानी फसलों के अवशेषों को मिट्टी में दबा देना चाहिए. खेतों के आसपास सफाई रखें. रोकथाम उकठा बीमारी की रोकथाम के लिए सदैव रोगरोधी प्रजातियों की बोआई करनी चाहिए. जिन क्षेत्रों में यह बीमारी बारबार आती हो, वहां पर 3 से 4 वर्षा तक मसूर की फसल नहीं लेनी चाहिए.

इस के अलावा बीजों को बोने से पहले थाइरम नामक फफूंदीनाशक से उपचारित करना लाभकारी पाया गया है.  आजकल उकठा बीमारी के नियंत्रण के लिए पर्यावरण हितैषी ट्राइकोडर्मा नाम फफूंद का प्रयोग भी लाभकारी सिद्ध हो रहा है, जो नियंत्रण के रूप में विभिन्न मृदाजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए उपयोगी है. रतुआ इस बीमारी में फरवरी या इस के बाद तनों व पत्तियों पर गुलाबी से भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं, जो बाद में काले पड़ने लगते हैं. रोकथाम  इस की रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों जैसे पंत एल-236, पंत एल-406 व नरेंद्र मसूर-1 का प्रयोग करना चाहिए.

ये भी पढञें- नकदी फसल है गन्ना

कटाई के उपरांत रोगग्रसित पौधों को इकट्ठा कर जला देना चाहिए. इस के अतिरिक्त बीमारी का अधिक प्रकोप होने पर डाइथेन एम-45 का 0.2 फीसदी घोल का 12 से 15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें. चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण फसल बोआई के 80 से 90 दिन बाद पत्तियों की निचली सतह पर छोटेछोटे सफेद धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में सफेद चूर्ण के रूप में पूरी पत्ती, तने और फलियों पर फैल जाते हैं. ज्यादा संक्रमण की हालत में पौधों में हरे रंग की कमी क्लोरोसिस हो जाती है. रोकथाम * रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए.

मसूर की रोगरोधी किस्मों को चुनें.  गंधक 20 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से संक्रमित खेत में बिखेर कर इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है.  कुछ सल्फरयुक्त पदार्थ जैसे सल्फेक्स या एक्सेसाल 0.3 फीसदी छिड़काव करने से भी बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है. कटाई एवं मड़ाई जब 70 से 80 फीसदी फलियां भूरे रंग की हो जाएं और पौधा पीला पड़ जाए, तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए.

दत्तक बेटी-घनश्यामभाई को लोग क्या सलाह दे रहे थें

लंदन के वेंबली में ज्यादातर गुजराती रहते हैं. नैरोबी से आ कर बसे घनश्याम सुंदरलाल अमीन भी अपनी पत्नी सुनंदा के साथ वेंबली में ही रहते थे. वह लंदन में भूमिगत ट्रेन के ड्राइवर थे. नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद पत्नी के साथ आराम से रह रहे थे.

सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें सोशल स्कीम के तहत अच्छा पैसा मिल रहा था. इस के अलावा उन की खुद की बचत भी थी. उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी, कमी बस यह थी कि वह निस्संतान थे.

किसी दोस्त ने घनश्यामभाई को सलाह दी कि वह कोई बच्चा गोद ले लें. ब्रिटेन में बच्चा गोद लेना बहुत मुश्किल है, भारतीय परिवार के लिए तो और भी मुश्किल. इसलिए घनश्यामभाई ने अपने किसी भारतीय मित्र की सलाह पर कोलकाता की एक स्वयंसेवी संस्था से संपर्क किया. उस संस्था ने एक अनाथाश्रम से उन का संपर्क करा दिया.

ये भी पढञें- छोटी छोटी बातें : इनसान कभी अपना बचपन छोड़ना नहीं चाहता

अनाथाश्रम ने घनश्यामभाई से कोलकाता आने को कहा. घनश्यामभाई पत्नी के साथ कोलकाता आ गए. कोलकाता के उस अनाथाश्रम में उन्हें सुचित्रा नाम की एक लड़की पसंद आ गई. वह 15 साल की थी. जन्म से बंगाली और मात्र बंगला तथा हिंदी बोलती थी. देखने में एकदम भोली, सुंदर और मुग्धा थी. पतिपत्नी ने सुचित्रा को पसंद कर लिया. सुचित्रा भी उन के साथ लंदन जाने को तैयार हो गई. घनश्यामभाई ने सुचित्रा को गोद लेने की तमाम कानूनी प्रक्रिया पूरी कर लीं. सुचित्रा को वीजा दिलाने में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा. तरहतरह के प्रमाणपत्र देने पड़े. आखिर 6 महीने बाद सुचित्रा को वीजा मिल गया.

सुचित्रा लंदन पहुंच गई. उस के लिए वहां सब कुछ नयानया था. नया देश, नई दुनिया, नई भाषा, नए लोग. सब कुछ नया. वहां उस का एक स्कूल में दाखिल करा दिया गया. उस ने जल्दी ही अंगरेजी सीख ली. वह गोरी थी और छोटी भी, इसलिए जल्दी से गोरे बच्चों के साथ घुलमिल गई. स्कूल में तमाम गुजराती, पंजाबी और बांग्लादेश से आए परिवारों के बच्चे पढ़ते थे.

ये भी पढें- मेरे घर के सामने : कैसे उड़ा हमारा दिन का चैन

सुचित्रा अब बड़ी होने लगी. वह अकेली लंदन में अंडरग्राउंड ट्रेन में सफर कर सकती थी. बिलकुल अकेली पिकाडाली तक जा सकती थी. वह पढ़ने में भी अच्छी थी. सुचित्रा को गोद लेने वाले घनश्यामभाई और उन की पत्नी सुनंदा अपनी इस बेटी से खुश थे.

छुट्टी के दिनों में वे कभी उसे मैडम तुषाद म्युजियम दिखाने ले जाते तो कभी उसे हाइड पार्क घुमाने ले जाते. मित्रों के घर पार्टी में भी सुचित्रा को हमेशा साथ रखते. सुचित्रा सुनंदा को ‘मम्मी’ कहती तो वह खुश हो जातीं. उन्हें ऐसा लगता कि सुचित्रा उन की कोख जनी बेटी है.

वह स्कूल तो जा ही रही थी. अब कभीकभार अपनी सहेली के घर रुक जाती. फिर वह हर शनिवार को सहेली के घर रुकने लगी. अभी वह 17 साल की ही थी. एक दिन सुनंदा को पता चला कि सुचित्रा घर से तो अपनी सहेली के घर जा कर रुकने की बात कह कर गई थी, पर वह सहेली के घर गई नहीं थी. उन्होंने सुचित्रा से सख्ती से पूछताछ की तो वह खीझ कर बोली, ‘‘दिस इज नन औफ योर बिजनैस.’’

सुचित्रा की इस बात से घनश्यामभाई और सुनंदा को गहरा आघात लगा. कुछ दिनों बाद एक दूसरी घटना घटी.सुचित्रा अकसर स्कूल नहीं जाती थी. घनश्यामभाई और सुनंदा ने जब उस से पूछा तो उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. पतिपत्नी ने सुचित्रा की सहेलियों से पूछताछ की तो पता चला कि वह सुखबीर नाम के एक पंजाबी लड़के के साथ घूमती है. चालू स्कूल में भी वह स्कूल छोड़ कर उस के साथ बाहर घूमने चली जाती है.

ये भी पढञें- ममता : क्या ममता का रूप भी कभी बदल पाता है

घनश्यामभाई ने शाम को सुचित्रा से पूछा, ‘‘मुझे पता चला है कि तुम सुखबीर नाम के किसी लड़के के साथ घूमती हो, क्या यह सच है?’’

‘‘आई एम ए फ्री गर्ल,’’ सुचित्रा ने कहा, ‘‘मैं कहां जाती हूं और बाहर जा कर क्या करती हूं, यह आप को बिलकुल नहीं पूछना चाहिए.’’सुनंदा ने कहा, ‘‘पर बेटा, तुम हमारी बेटी हो. हमें चिंता होती है. तुम अभी 17 साल की ही तो हो.’’

‘‘यू आर नौट माई बायोलौजिकल मदर. आई ऐम योर एडाप्टेड गर्ल. आप ने अपने स्वार्थ के लिए मुझे गोद लिया है. मैं आप की कोख से पैदा नहीं हुई हूं. मेरे ऊपर आप के मर्यादित अधिकार हैं, समझीं?’’

‘‘मतलब?’’ सुनंदा ने पूछा.आई एम नौट ए पार्ट आफ योर बौडी. मैं तुम्हारे शरीर का कोई भी हिस्सा नहीं हूं. मेरे शरीर पर मेरा ही अधिकार है?’’

सुचित्रा की बात सुन कर घनश्यामभाई को गुस्सा आ गया. उन्होंने सुचित्रा को एक तमाचा मार दिया. सुचित्रा चिल्लाई, ‘‘दिस इज फर्स्ट एंड लास्ट. अगर दूसरी बार तुम ने ऐसा किया तो मैं पुलिस बुला लूंगी.’’

घनश्यामभाई ने कहा, ‘‘मैं खुद ही पुलिस को बताऊंगा कि मेरे द्वारा गोद ली गई बेटी पढ़ने की उम्र में गलत काम करती है. तुम्हें सोशल काउंसलिंग में भेज दूंगा. उस के बाद भी नहीं सुधरी तो तुम्हें फिर इंडिया जाना होगा.’’

इंडिया वापस भेजने की बात सुन कर सुचित्रा सोच में पड़ गई. वह एकदम चुप हो गई और अपने बैडरूम में चली गई.अगले दिन उठ कर उस ने मम्मीपापा से ‘सौरी’ कहा. घनश्यामभाई और सुनंदा शांत हो गए. सुनंदा ने कहा, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारी पढ़नेलिखने की उम्र है. तुम अच्छी तरह पढ़लिख कर अपना कैरियर बना लो. अभी तुम टीनएज हो. जिस लड़के के साथ मन हो, नहीं घूम सकतीं.’’

सुचित्रा ने सिर झुका कर कहा, ‘‘मम्मी, अब इस तरह की गलती दोबारा नहीं करूंगी.’’ इस के बाद वह नियमित रूप से स्कूल जाने लगी. सुचित्रा स्कूल नहीं आती, यह शिकायतें आनी बंद हो गईं.

घनश्यामभाई ने अपनी तरह से पता किया तो मालूम हुआ कि सुचित्रा नियमित स्कूल जाती है. धीरेधीरे इस बात को काफी समय बीत गया.

एक दिन घनश्यामभाई और सुनंदा के पड़ोसियों ने पुलिस से शिकायत की कि हमारे बगल वाले घर से बहुत तेज दुर्गंध आ रही है. तुरंत पुलिस आ गई. घर का दरवाजा बंद था. लेकिन अंदर से स्टौपर नहीं लगा था. पुलिस ने धक्का मारा तो दरवाजा खुल गया. पुलिस ने अंदर जा कर देखा तो बैडरूम में घनश्यामभाई और उन की पत्नी की लाशें पड़ी थीं.

पूछताछ में पड़ोसियों ने बताया कि इन के साथ इन की गोद ली गई बेटी भी रहती थी. उस समय वह घर में नहीं थी. दोनों लाशों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उन की गोद ली गई बेटी गायब थी. पता चला कई दिनों से वह स्कूल भी नहीं गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो बताया गया कि पतिपत्नी के मरने से पहले खाने में नींद की दवा दी गई थी. उस के बाद घनश्यामभाई की हत्या चाकू से और सुनंदा की हत्या मुंह पर तकिया रख कर की गई थी.

पुलिस का पहला शक मारे गए पतिपत्नी की दत्तक बेटी सुचित्रा पर गया. उन्होंने घनश्यामभाई और सुचित्रा के मोबाइल का काल रिकौर्ड चैक किया. 2 ही दिनों में पुलिस सुचित्रा के बौयफ्रैंड सुखबीर के घर पहुंच गई.

सुखबीर अकेला ही अपनी विधवा मां के साथ रहता था. सुचित्रा भी उसी के घर मिल गई. पुलिस ने दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो सुचित्रा और सुखबीर ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने प्रेम का विरोध करने की वजह से घनश्यामभाई और सुनंदा की हत्या की थी.

सुचित्रा ने बताया, ‘‘उस रात मैं ने ही अपने पालक मातापिता के खाने में नींद की गोलियां मिला दी थीं, जिस से वे जाग न सकें. दोनों गहरी नींद सो गए तो सुखबीर को बुला लिया. उस के बाद अपनी पालक माता सुनंदा के मुंह पर तकिया रख कर पूरी ताकत से दबाए रखा तो उन की सांसों की डोर टूट गई.

‘‘सुनंदा के छटपटाने की आवाज सुन कर मेरे पालक पिता घनश्यामभाई जाग गए. सुखबीर अपने साथ चाकू लाया था. उसी चाकू से उस ने घनश्यामभाई पर ताबड़तोड़ वार कर के उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया. उस के बाद हम दोनों भाग गए.’’

दोनों के बयान सुन कर पुलिस स्तब्ध रह गई. सुचित्रा अभी नाबालिग थी. पुलिस ने उस की मैडिकल जांच कराई तो पता चला कि वह गर्भवती है.

सुचित्रा ने जो किया, उसे सुन कर तो अब यही लगता है कि इस तरह बच्चे को गोद लेने में भी सौ बार सोचना चाहिए

मटर की कचौड़ी

सर्दियों में आएं हर घर में कुछन कुछ बनते रहता है. ऐसे में आप भी अपने घर में ट्राई करें  मटर की कचौड़ी . इसे लगभग हर घर में बनाई जाती है. तो आइए जानते हैं कैसे सर्दियों में घर पर बनाएं मटर की कचौड़ी .

समाग्री

आटा

मटर

तेल

धनिया

जीरा

नमक

गरम मसाला

ये भी पढ़ें- लंच में बनाएं ब्रेड बिरयानी

विधि

सबसे पहले आटा को गुंथे, उसके बाद मटर को साफ करके उसे उबाल लें , इसके बाद से मटर को अच्छे से साफ करके उसे मैश कर लें.

जब मटर मैश हो जाए तो उसमें सभी मसाले को मिक्स कर लें. नमक अपने स्वाद अनुसार डालें.जब नमक डल जाए तो उस मटर को कुछ देर कड़ाही में गर्म करके भूने उसके बाद उसे आटे कि लोइया बनाकर उसमें मटर को डाल दें.

ये भी पढ़ें- Winter Special :सर्दियों में बनाएं मटर की कचौड़ी

अब पूरी की आकार में बेलकर उसे छान लें. यह मटर की कचौड़ी आप चाहें तो अपने मन पसंदीदा सब्जी के साथ खा सकती हैं.

 

लिपस्टिक -भाग 1: देवेश क्यों परेशान हो जाता जब करिश्मा और मधुरिमा आपस में मिलते

मधुरिमा ने लाल ड्रैस के साथ लाल रंग की लिपस्टिक लगाई और जब वह आईने में देखने लगी तो उसे खुद अपने पर प्यार आ गया था.

मन ही मन खुद पर इतराते हुए वह सोच रही थी कि आज की डील तो फाइनल हो कर ही रहेगी. जब स्त्री हो कर उस का अपना मन खुद को देख कर काबू नहीं हो पा रहा है तो पुरुषों का क्या कुसूर?

औफिस पहुंची. मिस्टर देवेश उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उसे देखते ही उन्होंने शरारत से सीटी बजाई. ये ही तो हैं उन की कंपनी का तुरुप का इक्का. लड़की में गजब का टैलेंट हैं. वह जहां कहीं भी उन के साथ जाती हैं, डील करवा कर ही आती हैं. 23 वर्ष की उम्र के हिसाब से मधुरिमा काफ़ी तेज़ थी.

मिस्टर देवेश जैसे ही मधुरिमा के साथ बाहर निकले तो करिश्मा से टकरा गए. करिश्मा को देखते ही उन का मूड खराब हो गया था. करिश्मा अगर चाहे तो इस कंपनी के वारेन्यारे कर सकती है, पर उसे तो बस काम से मतलब है. प्रैजेंटेशन गजब का बनाती है और हर क्लाइंट को अपनी बात अच्छे से समझाने में सक्षम है. पर फिर भी वह  आज तक उस लक्ष्मणरेखा को पार नहीं कर पाई है, जिसे बड़ी आसानी से पार कर के मधुरिमा ने अपने लिए सोने की लंका खड़ी कर ली थी.

मधुरिमा ज़्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. पर मर्दों को पटाने में दक्ष थी. यह ही उस की काबिलीयत थी जिस के सहारे वह धीरेधीरे एक रिसैप्शनिस्ट के पद से बौस की ख़ास बन गई थी. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि मधुरिमा, मिस्टर देवेश की उपपत्नी है. पर इन सब बातों से मधुरिमा की तेज रफ़्तार पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.

करिश्मा जब मधुरिमा से कहती, ‘मधु, हर कंपनी में ऐसा वर्क कल्चर नहीं होता है. कुछ स्किल्स बढ़ाओ, कब तक इस कंपनी में रेंगती रहोगी?’

मधुरिमा तब मुसकराते हुए बोलती, ‘जिस के पास जो है करिश्मा, वह उसे ही तो प्रयोग करेगा. तुम जैसी साधरण शक्लसूरत वाली लड़कियां मुझ से अधिक पढ़ालिखा होने पर भी, मुझ से कम कमा रही हैं. प्रैजेंटेशन तुम बनाती हो, पर प्रोजैक्ट मैं ही फाइनल करवा सकती हूं. मेरी बात मानो, इस मुर्दनी से चेहरे पर लिपस्टिक के एकदो कोट अवश्य लगा लिया करो, सामने वाले को अच्छा लगेगा.’

करिश्मा को मालूम था कि मधुरिमा कुछ गलत नहीं कह रही थी. पर वह उन लड़कियों में से नहीं थी जो काबिलीयत के बजाय लिपस्टिक के बलबूते पर तरक़्क़ी करती हैं.

अगले दिन औफिस में मिस्टर देवेश ने पार्टी का आयोजन किया था. पार्टी के मौके पर मिस्टर देवेश ने बोला, ‘हमारी इवैंट कंपनी के लिए आज बहुत बड़ा दिन है. मिस मधुरिमा की मेहनत के कारण हमें इस वर्ष का सब से बड़ा कौन्ट्रैक्ट मिला है.

दफ़्तर के सभी लोगों के चेहरों   पर व्यंग्यात्मक मुसकान आ गई थी. मधुरिमा पार्टी की स्टार थी.

करिश्मा का मन खिन्न हो उठा था. दिनरात मेहनत कर के उस ने प्रैजेंटेशन बनाई थी. अगर प्रैजेंटेशन ही अच्छी न बनती तो उन लोगों को वहां एंट्री ही न मिल पाती. करिश्मा यही  सब सोच रही थी कि विवेक हाथों में जूस का गिलास ले कर आ गया और बोला, ‘करिश्मा, क्या सोच रही हो?’

‘इस रंगबिरंगी दुनिया का यह उसूल है कि  जो दिखता है वह ही बिकता है,’ करिश्मा बोली, ‘जानते तो हो , मैं चाह कर भी उस राह पर नहीं चल सकती.’

विवेक को करिश्मा से लगाव सा था. इस कंपनी में वह सब से अलग थी. विवेक करिश्मा को उत्साहित करते हुए बोला, ‘करिश्मा, तुम मेहनत करती रहो, मुझे विश्वास है कि तुम जरूर कोई करिश्मा कर के रहोगी.’

ग्रे और पर्पल सूट में करिश्मा बहुत ही सौम्य लग रही थी. वहीँ, मधुरिमा लाल फ्रौक में एकदम आग लग रही थी.

आज करिश्मा जैसे ही दफ़्तर में घुसी, तो देखा एक नया  चेहरा मिस्टर देवेश के केबिन में था. विवेक करिश्मा को देख कर हंसते हुए बोला, ‘अब देखो, मधुरिमा की  नई प्रतिद्वंद्वी आ गई है.’

करिश्मा गुस्से से  बोली, ‘क्या पता काम में बढ़िया हो, तुम लड़कियों के बारे में बहुत जजमैंटल हो, विकास. हर छोटे कपड़े पहनने वाली लड़की नाक़ाबिल नहीं होती.’

मिस्टर देवेश की छोटी सी इवैंट कंपनी थी- ‘पार्टी मास्टर.’ मिस्टर देवेश कानपुर  से दिल्ली नौकरी करने आए थे. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया था कि उन की नौकरी के वेतन में उन के बड़ेबड़े सपने पूरे नहीं हो सकते. इसलिए कुछ सालों बाद उन्होंने यह इवैंट मैनेजमैंट कंपनी खोल ली थी. शुरू के एकदो वर्ष के भीतर ही उन्हें समझ आ गया था कि मेहनत के साथसाथ इस क्षेत्र में सफल होने के लिए और भी हुनर चाहिए. धीरेधीरे उन की कंपनी में विवेक, करिश्मा, मधुरिमा, सोहैल और जस्सी जुड़ गए थे. सोहैल और जस्सी कंपनी के लिए प्रोजैक्ट लाते थे. उन प्रोजैक्ट के लिए प्लानिंग का काम करिश्मा और विवेक करते थे. लेकिन बहुत बार फाइनल होतेहोते डील अटक जाती थी. हाई सोसाइटी में बहुत सारे क्लाइंट्स को कुछ फ़ेवर चाहिए होते थे.

मिस्टर देवेश ने इशारों से करिश्मा को ये सब समझाना चाहा था लेकिन वह टस से मस नहीं हुई थी. तभी सोहैल के तहत मधुरिमा का इस कंपनी में पदार्पण हुआ था. मधुरिमा कपड़ों के साथसाथ विचारों में भी काफी खुली हुई थी. उस ने  ‘पार्टी मास्टर’  को ग्लैमरस बना दिया था. कंपनी बहुत तेजी के साथ तरक्क़ी की राह पर अग्रसर थी. मधुरिमा कहने को किसी भी कार्य में

Crime Story: दोस्ती बनी गले की फांस

सौजन्या- सत्यकथा

महाराष्ट्र के जिला सतारा का रहने वाला 30 वर्षीय आकाश सावले पिछले 2-3 सालों से मुंबई से सटे थाणे जिले के वाड़ेघर गांव में अपनी पत्नी किरण के साथ रहता था. दोनों ने लवमैरिज की थी.

प्रेमिका से पत्नी बनी किरण को किसी प्रकार की कोई तकलीफ न हो, इस के लिए आकाश रातदिन मेहनत करता था. वह एक व्यवहारकुशल युवक था. इसलिए वह जल्दी ही बस्ती के लोगों से घुलमिल गया था.

आकाश सावले जो कमाता था, सारे पैसे किरण के हाथों पर रख देता था. पति की इस ईमानदारी पर किरण काफी खुश थी. उसे ऐसा लगता था कि उस ने अपने जीवन के प्रति जो फैसला किया था, वह सही था. लेकिन उस की यह सोच कुछ दिनों बाद ही गलत साबित हो गई.

ये भी पढ़ें- Crime Story : ‘उधारी ‘ का उधार का प्यार

आकाश सावले जब अपने काम पर चला जाता तो घर का सारा काम निपटाने के बाद घर में अकेली किरण का मन ऊब जाता था. उस का टाइम पास नहीं होता था. वह चाहती थी कि वह भी कहीं नौकरी करे. इस से टाइम भी पास हो जाएगा और चार पैसे भी घर आएंगे. इस बारे में उस ने पति आकाश से कहा कि दोनों काम करेंगे तो उन की आय भी बढ़ेगी और उन के सारे सपने भी पूरे हो जाएंगे.

किरण की यह बात आकाश सावले को ठीक लगी. यही नहीं, उस ने अपने एक परिचित के सहयोग से पत्नी को भिवंडी के एक कारखाने में काम पर भी लगवा दिया.रविवार, 9 अगस्त, 2020 की शाम 5 बजे किरण सब्जी लेने के लिए जब घर से निकली तो फिर वापस लौट कर नहीं आई. आकाश सावले को किरण की चिंता सता रही थी. जैसेजैसे अंधेरा घना होता जा रहा था, वैसेवैसे आकाश के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं.

रात किसी तरह से बीत गई. किरण का मोबाइल भी स्विच्ड औफ था. सुबह होते ही बस्ती के लोगों के साथ उस ने किरण की तलाश शुरू कर दी. पूरा दिन उस ने अपने नातेरिश्तेदारों से किरण के बारे में पूछताछ की, लेकिन कहीं से भी उस की जानकारी नहीं मिल सकी.

ये भी पढ़ें-Crime Story: 18 दिन की दुल्हन का जाल

पूरे 24 घंटों तक आकाश सावले अपने दोस्तों, जानपहचान वालों के साथ किरण की तलाश कर के जब थक गया और किरण का कहीं पता नहीं चला तो वह पुलिस को पत्नी के गुम होने की सूचना देने का फैसला किया. आकाश ने थाना कोनगांव जा कर वहां के ड्यूटी अफसर एसआई जीवन शेरखाने को सारी बातें बताईं और किरण सावले के गायब होने की सूचना दर्ज करवा दी.

पुलिस ने किरण की गुमशुदगी दर्ज कर उस के हुलिया और फोटो के आधार पर अपनी जांच शुरू कर दी. शिकायत दर्ज हुए अभी 12 घंटे भी नहीं हुए थे कि कोनगांव पुलिस को एक चौंकाने वाली खबर मिली.

12 अगस्त, 2020 की सुबह लगभग 9 बजे पुलिस कंट्रोल रूम से यह खबर आई कि मुंबई-नासिक हाइवे रंजनोली नाका भिवंडी में स्थित टाटा आमंत्रा बिल्डिंग के पीछे पेड़ पर किसी युवती का शव लटका हुआ है. शायद आत्महत्या का मामला है.

चूंकि यह क्षेत्र थाना कोनगांव के अंतर्गत आता था, इसलिए कोनगांव थाने के एसआई जीवन शेरखाने तुरंत अपने सहायकों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने प्रारंभिक काररवाई कर शव पेड़ से नीचे उतरवाया और शिनाख्त के लिए आकाश सावले को बुला लिया.

ये भी पढ़ें- Crime Story: हम बेवफा न थे

मामला काफी जटिल और सनसनीखेज था. पुलिस ने इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ थानाप्रभारी आर.टी. काटकर को भी दे दी. एसआई जीवन शेरखाने अभी अपने सहयोगियों के साथ मामले की जांच कर ही रहे थे कि सूचना पा कर थाणे के डीसीपी अंकित गोयल और थानाप्रभारी आर.टी. काटकर भी मौकाएवारदात पर आ पहुंचे थे.

डीसीपी अंकित गोयल ने युवती के शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी आर.टी. काटकर को कुछ दिशानिर्देश दे कर अपने औफिस लौट गए.

उन के जाने के बाद थानाप्रभारी आर.टी. काटकर ने मामले की औपचारिकताएं पूरी कर युवती के शव को पोस्टमार्टम के  लिए भिवंडी के सिविल अस्पताल भेज दिया और थाने लौट आए.

थाने आ कर आत्महत्या का मामला दर्ज कर उन्होंने जांच शुरू कर दी. इस से पहले कि पुलिस टीम उस युवती की आत्महत्या की कडि़यां जोड़ पाती, मामले में एक नया मोड़ आ गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने मामले को उलझा दिया था.

पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों ने इस बात का खुलासा किया कि युवती की मौत आत्महत्या न हो कर एक साजिश के तहत हत्या थी, जिसे हत्यारे ने बड़ी होशियारी से अंजाम दिया था. हत्यारे ने 21-22 साल की किरण सावले की हत्या कर उस के शव को पेड़ से लटका दिया था. हत्यारे ने यह काम 3 दिन पहले किया था.

इस से स्पष्ट हो गया कि किरण की मौत आत्महत्या न हो कर एक सोचीसमझी साजिश के तहत की गई हत्या थी, यह जानकारी मिलने पर क्राइम ब्रांच भी सतर्क हो गई. क्राइम ब्रांच के डीसीपी प्रवीण पवार ने मामले की गंभीरता को समझा और जांच क्राइम ब्रांच यूनिट 3 के इंसपेक्टर संजू जौन को सौंप दी.

इंसपेक्टर संजू जौन ने एक टीम का गठन किया, जिस में उन्होंने असिस्टेंट इंसपेक्टर भूषण दामया, एसआई नितिन मुदगुन, हैडकांस्टेबल दत्ताराम भोसले, राजेंद्र धोलप, मंगेश शिरके, अजीत राजपूत आदि को शामिल कर कोनगांव पुलिस के साथ मामले की समानांतर जांच शुरू कर दी. साथ ही अपने मुखबिरों को भी जिम्मेदारी सौंप दी.

क्राइम ब्रांच के मुखबिरों ने 24 घंटे के अंदर ही इंसपेक्टर संजू जौन को यह खबर दे दी कि इस घटना का मुख्य अभियुक्त दीपक रूपवते डोंबिवली (पश्चिम) इलाके में घूम रहा है.

खबर महत्त्वपूर्ण थी. इंसपेक्टर संजू जौन ने इस खबर को तुरंत कोनगांव पुलिस थाने से साझा किया और पूरे डोंबिवली पश्चिम में अपना सर्च औपरेशन शुरू कर दिया. नतीजा जल्दी सामने आ गया.

क्राइम ब्रांच टीम और कोनगांव थाना पुलिस ने संयुक्त अभियान में दीपक रूपवते को कोपर ब्रिज के पास से दबोच लिया. पूछताछ में उस ने अपना नाम दीपक जगन्नाथ रूपवते बताया.

उस से क्राइम ब्रांच औफिस में पूछताछ की गई तो दीपक रूपवते अपना गुनाह स्वीकार करने में आनाकानी करता रहा, लेकिन जब सख्त रुख अपनाया गया तो वह तोते की तरह बोलने लगा. उस ने किरण सावले की हत्या का पूरा राज खोल दिया.

31 वर्षीय दीपक जगन्नाथ रूपवते अच्छी कदकाठी का युवक था. उस के पिता का नाम जगन्नाथ रूपवते था. जगन्नाथ रूपवते मूलरूप से महाराष्ट्र के लातूर जिले के रहने वाले थे. सालों पहले वह अपने परिवार के साथ कल्याण के गोविंद नगर इलाके में आ कर बस गए थे. रोजीरोटी के लिए उन्होंने मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली.

दीपक रूपवते उन का एकलौता बेटा था, जिसे घर के सभी लोग प्यार करते थे. जगन्नाथ रूपवते और उन की पत्नी चाहती थी कि उन का बेटा पढ़लिख कर काबिल बन जाए. इस के लिए वह उस की सारी जरूरतें पूरी करते थे.

लेकिन नतीजा उलटा ही निकला. पढ़ाईलिखाई में उस की कोई रुचि नहीं थी. उस ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की. अच्छी शिक्षादीक्षा न होने के कारण उसे कोई अच्छा काम भी नहीं मिल सका.

जिस जगह दीपक रूपवते रहता था, उस जगह के आटो ड्राइवरों से उस की अच्छी दोस्ती थी. लिहाजा दीपक ने भी तय कर लिया कि वह भी आटोरिक्शा चलाएगा. दोस्तों की मदद से उस ने अपना लाइसैंस भी बनवा लिया.

लेकिन उस के मातापिता को उस का आटोचालक बनना पसंद नहीं था. वह चाहते थे कि उन का बेटा ड्राइवर बनने के बजाय किसी अच्छी नौकरी में जाए लेकिन उन के सपने सच नहीं हुए. दीपक ने मातापिता की एक नहीं सुनी और आटो चलाने लगा.

आटोचालक बनने के बाद उस के मातापिता ने उस के योग्य लड़की की तलाश की तो उन की यह तलाश जल्द ही पूरी हो गई. गांव के ही एक रिश्ते की लड़की उन्हें पसंद आ गई. करीब 5 साल पहले दीपक की शादी पूरे रस्मोरिवाज के साथ हो गई थी.

शादी के शुरुआती दिनों में दीपक रूपवते पत्नी के प्यार में आकंठ डूबा रहता था. लेकिन जैसेजैसे समय गुजरता गया, दोनों के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर किचकिच शुरू हो गई. यह तब और बढ़ गई, जब वह 2 बच्चों का पिता बन गया.

दीपक चाहता था कि उस की पत्नी बच्चों को संभालने के साथसाथ पहले जैसी ही बनसंवर कर रहे. लेकिन गांव के परिवेश में पलीबढ़ी उस की पत्नी चाह कर भी उस के हिसाब से रह नहीं पाती थी. जिस की वजह से वह दीपक के दिल में अपनी जगह नहीं बना पा रही थी.

दीपक रूपवते के दिल में अपने लिए बेरुखी देख कर पत्नी ने उस का दिल जीतने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाकाम रही. वह जब आटो चला कर आता, तब वह उस की मनपसंद की साड़ी पहनती, सजतीसंवरती, उस की पसंद का खाना बनाती, मीठीमीठी बातें कर उस का दिल जीतने की कोशिश करती. इस के बावजूद भी दीपक उस से दूरी ही बनाए रखता था.

दरअसल, रंगीनमिजाज दीपक अपनी पत्नी में वही छवि देखना चाहता था, जिस तरह की सुंदर, हसीन युवतियां उस के आटो में बैठती थीं. शादी के पहले दीपक ऐसी ही युवती की कल्पना किया करता था, जो उसे अपनी पत्नी में नहीं दिखाई देती थी.

ऐसा रिश्ता भला कितने दिन चलता, रोजरोज की जलीकटी सुनने के बजाए एक दिन उस की पत्नी ने उस से और बच्चों से अपना रिश्ता खत्म कर उस का घर छोड़ दिया.

8-10 महीने अकेले रहने के बाद दीपक की जिंदगी में किरण सावले आई. किरण सावले और दीपक का मिलना एक संयोग था. किरण हमेशा अपने काम पर जाने के लिए बसस्टौप पर आती थी. अगर कभी उस की बस समय पर नहीं आती थी तो मजबूरी में उसे आटो से जाना पड़ता था.

उस दिन भी ऐसा ही हुआ. संयोग से उस दिन किरण के पास आटो का पूरा किराया नहीं था. ऐसे में दीपक ने उस की मदद की. दूसरे दिन जब किरण ने उसे बाकी किराया देने की कोशिश की तो दीपक ने लेने से मना कर दिया.

बस यहीं से दीपक और किरण एकदूसरे के करीब आ गए. किरण ने दीपक का फोन नंबर भी ले लिया.

अब जब भी किरण को समय पर बस नहीं मिलती, तो वह दीपक को फोन कर के बुला लेती. दीपक उसे उस के कारखाने पहुंचा आता था. 2-4 बार दीपक के आटो में आनेजाने पर दोनों की झिझक भी दूर हो गई. दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करने लगे.

दोनों ने एकदूसरे के सामने अपनेअपने जीवन के सारे पन्ने खोल कर रख दिए. दीपक ने अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में ऐसा कुछ बताया कि किरण को उस से हमदर्दी हो गई, जिसे दीपक ने किरण का प्रेम समझ लिया.

अब दीपक अकसर किरण से मिलता, उस की राह देखता. उसे अपने आटो से काम पर छोड़ता और ड्यूटी पूरी होने के बाद आटो से उस के घर के पास छोड़ देता. दोनों की घनिष्ठता बढ़ी तो दोनों फोन पर घंटों बातें करने लगे. इतना ही नहीं, वे समय निकाल कर मूवी देखते, मौल में घूमते, शौपिंग करते.

आखिरकार एक दिन वह समय भी आ गया, जब दीपक ने किरण से शादी का प्रस्ताव रखा तो किरण ने उसे हंसी में टाल दिया. कहा, ‘‘मुझे तुम से शादी कर के खुशी होगी, लेकिन मैं यह नहीं कर सकती. क्योंकि मेरा पति मुझे बहुत प्यार करता है. इस के अलावा हमारा एक समाज है, हम एक दोस्त हैं और दोस्त ही रहेंगे.’’

लेकिन दीपक इस से संतुष्ट नहीं था. वह किरण से प्यार करने लगा था. उसे अपना जीवनसाथी बना कर अपना घर बसाना चाहता था. उस ने किरण को कई बार शादी के लिए प्रपोज किया था, लेकिन अपने मनमुताबिक जवाब न पा कर वह उस से नाराज रहने लगा और उस ने किरण के प्रति एक क्रूर फैसला कर लिया था.

घटना के दिन रात 8 बजे दीपक ने किरण को घुमाने के बहाने से अपने आटो में बिठाया. फिर वह कल्याण से भिवंडी रंजनोली नाका टाटा आमंत्रा बिल्डिंग के पीछे स्थित झाडि़यों के पीछे ले गया. वहां उस ने एक बार फिर किरण से शादी करने का आग्रह किया, लेकिन किरण ने इनकार कर दिया.

इस से गुस्सा हो कर दीपक ने किरण की ओढ़नी उस के गले में डाल कर उस की हत्या कर दी. पुलिस को गुमराह करने के लिए उस ने वारदात को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की. इस के लिए उस ने उसी ओढ़नी का फंदा बना कर शव को वहां एक पेड़ पर लटका दिया. फिर उस का पर्स और मोबाइल फोन ले कर फरार हो गया.

दीपक जगन्नाथ रूपवते से विस्तृत पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच ने उसे कोनगांव थाना पुलिस के हवाले कर दिया. कोनगांव पुलिस ने उसे भिवंडी कोर्ट में पेश कर 7 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया. विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दीपक को फिर से भिवंडी कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें