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प्रतिशोध-भाग 1: आखिर किस वजह के कारण राणा के लिए डॉ. मीता के मन में प्रतिशोध की भावना थी

आपरेशन थियेटर से निकल कर डा. मीता अपने केबिन में आईं. एप्रिन उतारने के बाद उन्होंने इंटरकाम का बटन दबाते हुए पूछा, ‘‘रीना, क्या डा. दीपक का कोई फोन आया था?’’

‘‘जी, मैम, वह 2 बजे तक कानपुर से लौट आएंगे और लंच घर पर ही करेंगे,’’ इंटरकाम पर रिसेप्शनिस्ट रीना की आवाज सुनाई पड़ी.

‘‘ठीक है,’’ कह कर डा. मीता ने फोन रख दिया और घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 12 बजे थे. वह सोचने लगीं कि

डा. दीपक के लौटने में अभी डेढ़ घंटे का समय है और इतनी देर में अस्पताल का एक राउंड लिया जा सकता है.

डा. मीता ने आज अकेले ही 3 आपरेशन किए थे, इसलिए कुछ थकावट महसूस कर रही थीं. तभी अटेंडेंट कौफी दे गया. वह कुरसी की पुश्त से टेक लगा कर कौफी की चुस्कियां लेने लगीं.

मीता और दीपक लखनऊ मेडिकल कालिज में सहपाठी थे. एम.एस. करने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी. पहले उन्होंने अपना नर्सिंग होम लखनऊ में खोला था किंतु अचानक घटी एक दुर्घटना के कारण उन्हें लखनऊ छोड़ना पड़ गया था.

उस के बाद वे इलाहाबाद चले आए. उन की दिनरात की मेहनत के कारण 3 वर्षों में ही उन के नए नर्सिंग होम की शोहरत काफी बढ़ गई थी. डा. दीपक आज सुबह किसी जरूरी काम से कानपुर गए थे. आज के आपरेशन पूरा करने के बाद डा. मीता उन की प्रतीक्षा कर रही थीं.

अचानक बाहर कुछ शोर सुनाई पड़ा. उन्होंने अटेंडेंट को बुला कर पूछा, ‘‘यह शोर कैसा है?’’

‘‘जी…एक्सीडेंट का एक केस आया है और स्टाफ उन्हें भगा रहा है लेकिन वे लोग भाग नहीं रहे हैं,’’ अटेंडेंट ने हिचकते हुए बताया.

‘‘क्यों भगा रहे हैं? क्या तुम लोगों को पता नहीं कि हमारे नर्सिंग होम में छोटेबड़े सभी का इलाज बिना किसी भेदभाव के किया जाता है,’’ मीता का चेहरा तमतमा उठा. वह जानती थीं कि शहर के कई नर्सिंग होम तो ऐसे हैं जिन में गरीबों को घुसने भी नहीं दिया जाता है.

‘‘जी…वो…’’ अटेंडेंट हकला कर रह गया. ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कहना चाह रहा है किंतु साहस नहीं जुटा पा रहा है.

‘‘यह क्या वो…वो…लगा रखी है,’’ डा. मीता ने अटेंडेंट को डांटा फिर पूछा, ‘‘घायल की हालत कैसी है?’’

‘‘खून काफी बह गया है और वह बेहोश है.’’

‘‘तो फौरन उसे आपरेशन थियेटर में ले चलो. मैं भी पहुंच रही हूं,’’

डा. मीता ने खड़े होते हुए आदेश दिया.

अटेंडेंट हक्काबक्का सा चंद पलों तक उन के चेहरे को देखता रहा फिर आंखें झुकाते हुए बोला, ‘‘जी, मैडम, वह विधायक उपदेश सिंह राणा हैं. नर्सिंग होम के पास ही उन की गाड़ी को एक ट्रक ने टक्कर मार दी है.’’

इतना सुनने के बाद डा. मीता को लगा जैसे कोई ज्वालामुखी फट पड़ा हो और पूरी सृष्टि हिल गई हो. वह धम्म से कुरसी पर गिर पड़ीं. अगर उन्होंने कुरसी के दोनों हत्थों को मजबूती से थाम न लिया होता तो शायद चकरा कर नीचे गिर पड़ती होतीं. उन के दिमाग पर हथौड़े बरसने लगे और सांस धौंकनी की तरह चलने लगी थी. अटेंडेंट उन की मनोदशा को समझ गया था अत: चुपचाप वहां से खिसक गया.

लगभग साढ़े 3 वर्ष पहले की बात है. उस दिन भी डा. मीता अपने पुराने नर्सिंग होम में अकेली थीं. तभी कुछ लोग गोली से बुरी तरह घायल एक व्यक्ति को ले कर आए. उस की गोली निकालने के लिए वह आपरेशन थियेटर में अभी जा ही रही थीं कि फोन की घंटी बज उठी :

‘डा. साहिबा, मैं उपदेश सिंह राणा बोल रहा हूं,’ फोन पर आवाज आई.

‘जी, कहिए,’ डा. मीता अचकचा उठीं.

उपदेश सिंह राणा शहर का आतंक था. छोटेबड़े सभी उस के नाम से थर्राते थे. उस का भला उन से क्या काम?

‘डा. साहिबा, वह मेरी गोली से तो बच गया है लेकिन आप के आपरेशन थियेटर से जिंदा वापस नहीं आना चाहिए,’ उपदेश सिंह राणा ने आदेशात्मक स्वर में कहा.

‘मैं एक डाक्टर हूं और डाक्टर के हाथ लोगों की जान बचाने के लिए उठते हैं, लेने के लिए नहीं,’ डा. मीता ने स्पष्ट इनकार कर दिया.

प्रतिशोधः आखिर किस वजह के कारण राणा के लिए डॉ. मीता के मन में प्रतिशोध की भावना थी

प्रतिशोध-भाग 3 : प्रतिशोधः आखिर किस वजह के कारण राणा के लिए डॉ. मीता के मन में प्रतिशोध की भावना थी

‘‘जी…विधायक उपदेश सिंह राणा हैं.’’

‘‘तुझे होश भी है कि तू क्या कह रहा है?’’ वार्ड बौय का गिरेबान पकड़ डा. दीपक चीख पड़े.

‘‘सर, हम लोग उसे नर्सिंग होम से भगा रहे थे लेकिन मैडम ने जबरन बुला कर उस का आपरेशन किया और अब उसे अपना खून भी दे रही हैं,’’ तब तक  वहां जमा हो चुके कर्मचारियों में से एक ने हिम्मत कर के बताया.

डा. दीपक ने उसे घूर कर देखा फिर बिना कुछ कहे अपने केबिन की ओर चले गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मीता ने ऐसा क्यों किया. क्या किसी ने मीता को इस के लिए मजबूर किया था या कोई और कारण था? सोचतेसोचते डा. दीपक के दिमाग की नसें फटने लगीं लेकिन वह अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं खोज सके.

थोड़ी देर बाद डा. मीता ने वहां प्रवेश किया. उन का चेहरा पत्थर की भांति भावनाशून्य था. डा. दीपक ने आगे बढ़ उन की बांह थाम कांपते स्वर में पूछा, ‘‘मीता…तुम ने… उस की जान क्यों बचाई?’’

‘‘हम लोग डाक्टर हैं. हमारा काम ही लोगों की जान बचाना है,’’ डा. मीता के होंठों ने स्पंदन किया.

डा. दीपक ने पत्नी की बांहों को छोड़ चंद पलों तक उस के चेहरे की ओर देखा फिर मुट्ठियां भींचते हुए बोले, ‘‘लेकिन क्या उस का आपरेशन करते समय तुम्हारे हाथ नहीं कांपे थे?’’

‘‘अगर हाथ कांप जाते तो हम में और सामान्य लोगों में क्या फर्क रह जाता,’’ डा. मीता ने धीमे स्वर में कहा. उन का चेहरा पूर्ववत भावनाशून्य था.

‘‘हम इनसान हैं मीता, इनसान,’’ डा. दीपक तड़प उठे.

‘‘मैं ने इनसानियत का ही फर्ज निभाया है,’’ डा. मीता के होंठ यंत्रवत हिले.

‘‘फर्ज निभाने का शौक था तो निभा लेतीं, महानता की चादर ओढ़ने का शौक था तो ओढ़ लेतीं, लेकिन अपना खून चूसने वाले को अपना खून तो न देतीं,’’

डा. दीपक मेज पर घूंसा मारते हुए चीख पड़े.

डा. मीता ने कोई उत्तर नहीं दिया.

दीपक ने आगे बढ़ कर उन के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और उन की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘मीता, प्लीज, मुझे बताओ ऐसी क्या मजबूरी थी जो तुम ने उस दरिंदे की जान बचाई? क्या किसी ने तुम्हें फिर धमकी दी थी?’’

डा. मीता ने अपनी आंखें बंद कर लीं पर उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था  मानो वह सप्रयास अपने को कुछ कहने से रोक रही हैं.

‘‘मैडम, उस मरीज को होश आ गया,’’ तभी एक नर्स ने वहां आ कर बताया.

डा. मीता के भीतर जैसे कोई शक्ति समा गई हो. दीपक को परे धकेल वह आंधीतूफान की तरह भागते हुए वार्ड की ओर दौड़ पड़ीं. भौचक्के से डा. दीपक अपने को संभालते हुए पीछेपीछे दौड़े.

उपदेश सिंह राणा को अब तक उन के पास खड़े पुलिस वालों ने बता दिया था कि जिस लेडी डाक्टर ने उन का आपरेशन किया था उसी ने उन्हें अपना खून भी दिया है क्योंकि उन के गु्रप का खून किसी ब्लड बैंक में उपलब्ध न था.

‘‘वह महान डाक्टर कौन हैं. मैं उन के दर्शन करना चाहता हूं,’’ राणा ने कराहते हुए कहा.

‘‘लो, वह आ गईं,’’ एक पुलिस वाले ने वार्ड के भीतर आ रही डा. मीता की ओर इशारा किया.

उन पर दृष्टि पड़ते ही राणा को ऐसा झटका लगा जैसे किसी को करंट लग गया हो. घबरा कर उस ने उठना चाहा लेकिन कमजोरी के कारण हिल भी न सका.

‘‘इन्होंने ही आप की जान बचाई है. जीवन भर इन के चरण धो कर पीजिएगा तब भी आप इस ऋण से उऋण नहीं हो सकेंगे,’’ दूसरे पुलिस वाले ने बताया.

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पल भर के लिए राणा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु सत्य अपने पूरे वजूद के साथ सामने उपस्थित था. राणा की आंखों के सामने उस दिन के दृश्य कौंधने लगे जब रोती हुई

डा. मीता हाथ जोड़जोड़ कर विनती कर रही थीं कि उन्होंने सिर्फ एक डाक्टर के फर्ज का पालन किया है किंतु वह उन की एक नहीं सुन रहा था.

आज एक बार फिर उन्होंने सबकुछ भुला कर एक डाक्टर के फर्ज को पूरा किया है. तभी उस की सासें शेष बच पाई हैं.  राणा के भीतर उन से आंख मिलाने का साहस नहीं बचा था. उन के विराट व्यक्तित्व के आगे वह अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था.

बहुत मुश्किल से अपनी पूरी शक्ति को बटोर कर राणा, ने अपने हाथों को जोड़ा और कांपते स्वर में बोला, ‘‘डाक्टर साहिबा, मुझे माफ कर दीजिए.’’

‘‘माफ और तुम्हें,’’ डा. मीता दांत भींचते हुए चीख पड़ीं, ‘‘राणा, तुम ने मेरे साथ जो किया था उस के बाद मैं तो क्या दुनिया की कोई भी औरत मरते दम तक तुम्हें माफ नहीं कर सकती.’’

चीख सुन कर पूरे वार्ड में सन्नाटा छा गया. किसी में भी उसे भंग करने का साहस न था. अपनी ओर डा. मीता को आता देख कर राणा ने एक बार फिर अपनी बिखरती हुई सांसों को बटोरा और लड़खड़ाते स्वर में बोला, ‘‘आप ने जो एहसान किया है मैं उसे कभी…’’

‘‘मैं ने कोई एहसान नहीं किया है तुम पर,’’ डा. मीता राणा की बात को बीच में काट कर फिर चीख पड़ीं, ‘‘तुम क्या समझते हो अपनेआप को? सर्वशक्तिमान? जो जिस की जिंदगी से जब चाहे खेल लेगा? तुम ने मेरी जिंदगी से खेला था, आज मैं ने तुम्हारी जिंदगी से खेला है. मेरे जिस खून को तुम ने अपवित्र किया था आज वही खून तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है. तुम चाह कर भी उसे अपने शरीर से अलग नहीं कर सकते. जब तक जीवित रहोगे यह एहसास तुम्हें कचोटता रहेगा कि तुम्हारी जिंदगी मेरी दी हुई भीख है.

‘‘कमजोर समझ कर जिस नारी के चंद पलों को तुम ने रौंदा था उस के रक्त के चंद कतरे अब हर पल तुम्हारे स्वाभिमान को रौंदते रहेंगे. तुम्हारा रोमरोम तुम्हारे गुनाहों के लिए तुम्हें धिक्कारेगा लेकिन तुम्हें दया की भीख नहीं मिलेगी. जब तक जीवित रहोगे, राणा, तुम प्रायश्चित की आग में जलते रहोगे लेकिन तुम्हें शांति नहीं मिलेगी. यही मेरा प्रतिशोध है.’’

डा. मीता के मुंह से निकला एकएक शब्द गोली की तरह राणा के दिल और दिमाग को छेदे जा रहा था. गुनाहों के बोझ तले दबी उस की अंतर आत्मा में कुछ कहने की शक्ति नहीं बची थी. उस की कायरता बेबसी बन उस की आंखों से छलक पड़ी.

राणा के आंसुओं ने अग्निकुंड में घी का काम किया. डा. मीता गरजते हुए बोलीं, ‘‘इस से पहले कि मेरे अंदर की नारी, डाक्टर को पीछे ढकेल कर सामने आ जाए और मैं तुम्हारा खून कर दूं, दूर हो जाओ मेरी नजरों से. चले जाओ यहां से.’’

हतप्रभ डा. दीपक अब तक चुपचाप खड़े थे. उन्होंने पुलिस वालों को इशारा किया तो वे राणा के बेड को धकेलते हुए बाहर ले जाने लगे.

डा. मीता हिचकियां भरती हुई पूरी शक्ति से डा. दीपक के चौड़े सीने से लिपट गईं. उन्होंने उन्हें अपनी बांहों में यों संभाल लिया जैसे किसी वृक्ष की शाखाएं नन्हे घोंसले को संभाल लेती हैं.

 

प्रतिशोध-भाग 2: प्रतिशोधः आखिर किस वजह के कारण राणा के लिए डॉ. मीता के मन में प्रतिशोध की भावना थी

‘मैं आप के हाथों को बहकने की कीमत देने के लिए तैयार हूं. आप मुंह खोलिए,’ राणा ने हलका सा कहकहा लगाया.

‘आप अपना और मेरा समय बरबाद कर रहे हैं,’ राणा का प्रस्ताव सुन

डा. मीता का मन कसैला हो उठा.

‘डा. साहिबा, कुछ करने से पहले सोच लीजिएगा कि मैं महिलाओं को सिर्फ उपदेश ही नहीं देता बल्कि…’ इतना कहतेकहते राणा क्षण भर के लिए रुका फिर खतरनाक अंदाज में बोला, ‘अगर आप ने मेरे शिकार को बचाने की कोशिश की तो फिर आप का कुछ भी नहीं बच पाएगा.’

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डा. मीता ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया और आपरेशन थियेटर में घुस गईं. उस व्यक्ति की हालत बहुत खराब थी. 3 गोलियां उस की पसलियों में घुस गई थीं. 2 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद वह गोलियां निकाल पाई थीं. अब उस की जान को कोई खतरा नहीं था.

किंतु राणा ने अपनी धमकी को सच कर दिखाया. 2 दिन बाद ही उस ने

डा. मीता का अपहरण कर उन की इज्जत लूट ली. दीपक ने बहुत भागदौड़ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. राणा गिरफ्तार हुआ किंतु 3 दिन बाद ही जमानत पर छूट गया. उस के आतंक के कारण कोई भी उस के खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार नहीं हुआ था.

इस घटना ने डा. मीता को तोड़ कर रख दिया था. वह एक जिंदा लाश बन कर रह गई थीं. हमेशा बुत सी खामोश रहतीं. जागतीं तो भयानक साए उन्हें अपने आसपास मंडराते नजर आते. सोतीं तो स्वप्न में हजारों गिद्ध उन के शरीर को नोंचने लगते. उन की मानसिक हालत बिगड़ती जा रही थी.

मनोचिकित्सकों की सलाह पर दीपक ने वह शहर छोड़ दिया था. नए शहर के नए माहौल ने मरहम का काम किया. अतीत की यादों को करीब आने का मौका न मिल सके, इसलिए डा. दीपक अपने साथ

डा. मीता को भी मरीजों की सेवा में व्यस्त रखते. धीरेधीरे जीवन की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगी थी. दोनों की मेहनत और लगन से इन चंद वर्षों में ही उन के नर्सिंग होम का काफी नाम हो गया था.

इन चंद वर्षों में और भी बहुत कुछ बदल चुका था. अपने आतंक और बूथ कैप्चरिंग के दम पर शहर का दुर्दांत गुंडा उपदेश सिंह राणा दबंग विधायक बन चुका था. अब इसे समय का क्रूर मजाक ही कहा जाए कि डा. मीता की जिंदगी बरबाद करने वाले दरिंदे उपदेश सिंह राणा की जिंदगी बचाने के लिए लोग आज उसे उन की ही शरण में ले आए थे.

डा. मीता की आंखों के सामने उस दिन के दृश्य कौंध गए जब वह गिड़गिड़ाते हुए उस शैतान से दया की भीख मांग रही थी और वह हैवानियत का नंगा नाच नाच रहा था. वह अपने डाक्टरी पेशे की मर्यादा और कर्तव्यनिष्ठा की दुहाई दे रही थीं और वह उन की इज्जत की चादर को तारतार किए दे रहा था. वह रोती रहीं, बिलखती रहीं, तड़पती रहीं पर उस नरपिशाच ने उन की अंतर आत्मा तक को अंगारों से दाग दिया था.

सोचतेसोचते डा. मीता के जबड़े भिंच गए और आंखों से चिंगारियां फूटने लगीं. बाहर बढ़ रहे शोर के कारण उन की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. क्रोध की अधिकता के चलते वह हांफने सी लगीं. व्याकुलता जब बरदाश्त से बाहर हो गई तो उन्होंने सामने रखा पेपरवेट उठा कर दीवार पर दे मारा. पर न तो पेपरवेट टूटा और न ही दीवार टस से मस हुई.

पेपरवेट फर्श पर गिर कर गोलगोल घूमने लगा. डा. मीता की दृष्टि उस पर ठहर सी गई. पेपरवेट के स्थिर होने पर उन्होंने अपनी दृष्टि ऊपर उठाई. उन में दृढ़ता के चिह्न छाए हुए थे. ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कर गुजरने का फैसला कर चुकी हैं.

इंटरकाम का बटन दबाते हुए डा. मीता ने पूछा, ‘‘रीना, घायल को आपरेशन थियेटर में पहुंचा दिया गया है या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘जी…वो…दरअसल…स्टाफ कह… रहा है…कि…’’ रिसेप्शनिस्ट झिझक के कारण अपनी बात कह नहीं पा रही थी.

‘‘तुम लोग सिर्फ वह करो जो कहा जा रहा है. बाकी क्या करना है, मैं जानती हूं,’’ डा. मीता ने सर्द स्वर में आदेश दिया और आपरेशन थियेटर की ओर चल दीं.

अचानक उन्हें कुछ याद आया. वापस लौट कर उन्होंने इंटरकाम का बटन दबाते हुए कहा, ‘‘रीना, मैं उस आदमी का चेहरा नहीं देख सकती. नर्स से कहो कि आपरेशन टेबल पर पहुंचाने से पहले उस का मुंह किसी कपड़े से बांध दे या ठीक से ढंक दे.’’

इतना कह कर बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए डा. मीता तेजी से आपरेशन थियेटर की ओर चली गईं. घायल के भीतर जाते ही आपरेशन थियेटर का दरवाजा बंद हो गया और उस पर लगा लाल बल्ब जल उठा.

टिक…टिक…टिक…की ध्वनि के साथ घड़ी की सूइयां आगे बढ़ती जा रही थीं. इसी के साथ आपरेशन कक्ष के बाहर खड़े स्टाफ के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. आपरेशन कक्ष के दरवाजे को बंद हुए 2 घंटे से अधिक समय बीत चुका था. भीतर डा. मीता क्या कर रही होंगी इस का अंदाजा होते हुए भी कोई सचाई को अपने होंठों तक नहीं लाना चाहता था.

डा. दीपक 3 बजे लौट आए. भीतर घुसते ही उन्होंने एक वार्ड बौय से पूछा, ‘‘डा. मीता कहां हैं?’’

‘‘थोड़ी देर पहले उन्होंने एक घायल का आपरेशन किया था. उस के बाद…’’ वार्ड बौय कुछ कहतेकहते रुक गया.

‘‘उस के बाद क्या?’’

‘‘उस के बाद वह उसे अपना खून दे रही हैं, क्योंकि उस का ब्लड गु्रप ‘ओ निगेटिव’ है और वह कहीं मिल नहीं सका,’’ वार्ड बौय ने हिचकिचाते हुए बताया.

‘‘ऐसा कौन सा खास मरीज आ गया है जिसे डा. मीता को खुद अपना खून देने की जरूरत आ पड़ी?’’

डा. दीपक ने उत्सुकता से पूछा.

बिग बॉस 14: राखी सावंत की गंदी हरकतों पर आया अभिनव शुक्ला की साली को गुस्सा, कह दी ये बात

बिग बॉस 14 में बीते दिनों का एपिसोड़ बहुत ज्यादा मजेदार रहा है. इस एपिसोड में राखी सावंत ने जमकर अभिनव शुक्ला के साथ अश्लील हरकते करते दिखीं.

सलमान खान इन दोनों के अश्लील हरकत पर समझाते हुए दिखें. मगर अभिनव शुक्ला को राखी सावंत की यह हरकत बेहद ज्यादा गंदी लग रही थी. और वो इसके बाद अंदर से टूटते दिखाई दे रहे थें. इसके साथ ही अभिनव शुक्ला के परिवार को भी राखी सावंत की यह हरकत गंदी लग रही थी.

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हाल ही में अभिनव शुक्ला की साली ज्योतिका दिलाइक ने एक इंटरव्यू के दौरान जमकर राखी सावंत की क्लास लगाते दिखीं. एक रिपोर्ट में ज्योतिका ने कहा कि राखी सावंत को लगता है कि बस किसी की पैंट खींच लेना बहुत अच्छी बात है उन्हें लगता है.

 

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मगर हर इंसान अलग होता है और एक-दूसरे से अलग महसूस करता है. आगे उन्होंने कहा कि हम जिस बैकग्राउंड से आते है ये बहुत बड़ी बात है. ये किसी का पर्सनल स्पेस है और ये लाइन किसी को पार नहीं करनी चाहिए.

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आगे ज्योतिका ने कहा कि ये उनके लिए बड़ी बात है कि किसी की भी पैंट खींचना लेकिन हमारे लिए ये बहुत ज्यादा शर्म की बात है. मेरे हिसाब से राखी सावंत को जीजू का नाड़ा नहीं खींचना चाहिए ये बहुत गलत बात है.

हर किसी का अपना देखने का एक अलग नजरिया है लेकिन राखी ने जो किया वो बहुत ज्यादा गलत का है. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

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बता दें कि इस बात पर रुबीना दिलाइक ने भी राखी सावंत पर गुस्सा जताया था साथ ही अभिनव शुक्ला को भी राखी सावंत से इस बात को लेकर नाराजगी है. अब देखना यह है कि राखी सावंत को इस हफ्ते सलमान खान क्या कहते हैं. सभी फैंस को इस बात का इंतजार है.

तारक मेहता का उल्टा चश्मा :जेठालाल ने जब बबीता जी को कहा आई लव यू, तो बाबू जी ने मारा डंडा

सब टीवी का पसंदीदा शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा हर घर का पसंदीदा शो है. इस सीरियल में जिसका सबको इंतजार था. अब वो हो गया. आखिरकर जेठालाल ने अपने दिल की बात बबीता जी को कह दिया है.

दरअसल, तारक मेहता का उल्टा चश्मा में जेठालाल बबीता जी को पूरी हिम्मत करके आइ लव यू कहने वाला है. जी हां इस बात का सबूत आपको तारक मेहता की जानकारी आपको तारक मेहता के लेटेस्ट प्रोमो को देखने के बाद मिला है.

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जी हां आप यह जानकर थोड़ा शॉक्ड़ हुए होगे लेकिन इस बात की जानकारी आपको नए एपिसोड़ में देखने को मिल जाएगा. लेकिन वह बात अलगहै कि जेठालाल को बबीता जी को आई लव यू कहना बहुत ज्यादा भारी पड़ने वाला है.

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जैसे ही जेठालाल बाबीता जी के सामने अपना मुंह खोलेगा वैसे ही जेठालाल के बाबू जी की एंट्री हो जाएगी. जेठालाल के मुंह से आई लव यू सुनते ही बाबू जी का खून खौल जाएगा. जिसके बाद बाबू जी अपने छड़ी से जेठालाल की धुलाई करने वाले हैं.

बाबू जी जेठा लाल से कहेंगे कि आई लव यू कहने की तुम्हें हिम्मत कैसे हुई. अब बाबू जी के गुस्से को देखकर जेठालाल की हालत खराब हो जाएगी. बता दें कि जेठा लाल ने सच में बबीता जी को प्रपोज नहीं कि. है. बल्कि जेठालाल और बबीता जी शादी का नाटक कर रहे हैं.

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जेठा लाल आज तक बबीता जी को अपने दिल की बात नहीं कह पाएं हैं तो यह देखकर फैंस को खुशी मिलेगी. जेठालाल हमेशा से बबीता जी को पसंद करता था.

अब फैंस बस दयाबेन की वापसी का इंतजार कर रहे हैं कि उनकी वापसी होगी. वहीं जेठा लाल का पूरा फोक्स बबीता जी पर है.

नया प्रयोग -भाग 1: बूआ का आना बड़ी सूनामी जैसा क्यों लगता था

‘‘इतना कुछ कह दिया बूआ ने, आप एक बार बात तो करतीं.’’

‘‘मधुमक्खी का छत्ता है यह औरत, अपनी औकात दिखाई है इस ने, अब इस कीचड़ में कौन हाथ डाले, रहने दे स्नेहा, जाने दे इसे.’’

मीना ने कस कर बांह पकड़ ली स्नेहा की. उस के पीछे जाने ही नहीं दिया. अवाक् थी स्नेहा. कितना सचझूठ, कह दिया बूआ ने. इतना सब कि वह हैरान है सुन कर.

‘‘आप इतना डरती क्यों हैं, चाची? जवाब तो देतीं.’’

‘‘डरती नहीं हूं मैं, स्नेहा. बहुत लंबी जबान है मेरे पास भी. मगर मुझे और भी बहुत काम हैं करने को. यह तो आग लगाने ही आई थी, आग लगा कर चली गई. कम से कम मुझे इस आग को और हवा नहीं देनी. अभी यहां झगड़ा शुरू हो जाता. शादी वाला घर है, कितने काम हैं जो मुझे देखने हैं.’’

अपनी चाची के शब्दों पर भी हैरान रह गई स्नेहा. कमाल की सहनशीलता. इतना सब बूआ ने कह दिया और चाची बस चुपचाप सुनती रहीं. उस का हाथ थपक कर अंदर चली गईं और वह वहीं खड़ी की खड़ी रह गई. यही सोच रही है अगर उस की चाची की जगह वह होती तो अब तक वास्तव में लड़ाई शुरू हो ही चुकी होती.

चाची घर के कामों में व्यस्त हो गईं और स्नेहा बड़ी गहराई से उन के चेहरे पर आतेजाते भाव पढ़ती रही. कहीं न कहीं उसे वे सारे के सारे भाव वैसे ही लग रहे थे जैसे उस की अपनी मां के चेहरे पर होते थे, जब वे जिंदा थीं. जब कभी भी बूआ आ कर जाती थी, पापा कईकई दिन घर में क्लेश करते थे. चाचा और पापा बहुत प्यार करते हैं अपनी बहन से और यह प्यार इतना तंग, इतना दमघोंटू है कि उस में किसी और की जगह है ही नहीं.

‘विजया कह रही थी, तुम ने उसे समय से खाना नहीं दिया. नाश्ता भी देर से देती थी और दोपहर का खाना भी.’

‘दीदी खुद ही कहती थीं कि वह नहा कर खाएगी. अब जब नहा लेगी तभी तो दूंगी.’

‘तो क्या 11 बजे तक वह भूखी ही रहती थी?’

‘तब तक 4 कप चाय और बिस्कुट आदि खाती रहती थी. कभी सेब, कभी पपीता और केला आदि. क्यों? क्या कहा उस ने? इस बार रुपए खो जाने की बात नहीं की क्या?’

चिढ़ जाती थीं मां. घर की शांति पूरी तरह ध्वस्त हो जाती. हम भी घबरा जाते थे जब बूआ आती थी. पापा बिना बात हम पर भड़कते रहते मानो बूआ को जताते रहते, देखो, मैं आज भी तुम से अपने बच्चों से ज्यादा प्यार करता हूं. खीजा करते थे हम कि पता नहीं इस बार घर में कैसा तांडव होगा और उस का असर कितने दिन चलेगा. बूआ का आना किसी बड़ी सूनामी जैसा लगता और उस के जाने  के बाद वैसा जैसे सूनामी के बाद की बरबादी. हफ्तों लग जाते थे हमें अपना घर संभालने में. मां का मुंह फूला रहता और पापा उठतेबैठते यही शिकायतें दोहराते रहते कि उन की बहन की इज्जत नहीं की गई, उसे समय पर खानापीना नहीं मिला, उस के सोने के बाद मां बाजार चली गईं, वह बोर हो गई क्योंकि उस से किसी ने बात नहीं की, खाने में नमक ज्यादा था. और खासतौर पर इस बात की नाराजगी कि जितनी बार बूआ ने चाय पी, मां ने उन के साथ चाय नहीं पी.

‘मैं बारबार चाय नहीं पी सकती, पता है न आप को. क्या बचपना है स्नेहा यह. तुम समझाती क्यों नहीं अपने पापा को. विजया आ कर चली तो जाती है, पीछे तूफान मचा जाती है. दिमाग उस का खराब है और भोगना हमें पड़ता है.’

यह बूआ सदा मुसीबत थी स्नेहा के परिवार के लिए. और अब यहां भी वही मुसीबत. स्नेहा के परिवार में तो साल में एक बार आती थी क्योंकि पापा की नौकरी दूसरे शहर में थी मगर यहां चाचा के घर तो वह स्थानीय रिश्तेदार है. वह भी ऐसी रिश्तेदार जो चाहती है भाई के घर में छींक भी मारी जाए तो बहन से पूछ कर.

5 साल पहले इसी तरह के तनाव में स्नेहा की मां की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी और सहसा कहानी समाप्त. मां की मौत पर सब सदमे में थे और बूआ की वही राम कहानीस्नेहा और उस का भाई तब होस्टल से घर आए थे. मां की जगह घर में गहरा शून्य था और उस की जगह पर थे पापा और बूआ के चोंचले. चाची रसोई संभाले थीं और पापा अपनी लाड़ली बहन को.

‘पापा, क्या आप को हमारी मां से प्यार था? कैसे इंसान हैं आप. हमारी मां की चिता अभी ठंडी नहीं हुई और बूआ के नखरे शुरू हो भी गए. ऐसा क्या खास प्यार है आप भाईबहन का. क्या अनोखे भाई हैं आप जिसे अपने परिवार का दुख बहन के चोंचलों के सामने नजर ही नहीं आता.’

‘क्या बक रहा है तू?’

‘बक नहीं रहा, समझा रहा हूं. रिश्तों में तालमेल रखना सीखिए आप. बहन की सच्चीझूठी बातों से अपना घर जला कर भी समझ में नहीं आ रहा आप को. हमारी मां मर गई है पापा और आप अभी भी बूआ का ही चेहरा देख रहे हैं.’

ऐसी दूरी आ गई तब पिता और बच्चों के बीच कि मां के जाते ही मानो वे पितृविहीन भी हो गए. स्नेहा की शादी हो गई और भाई बेंगलुरु चला गया अपनी नौकरी पर. पापा अकेले हैं दिल्ली में. टिफिन वाला सुबहशाम डब्बा पकड़ा जाता है और नाश्ते में वे डबलरोटी या फलदूध ले लेते हैं.

हम तो हैं ही इसी लायक : बेटे की दवा से वह क्यों परेशान था

उन्होंने पूरी गंभीरता से टीवी पर ओपनली कहा कि उन की पुत्रबटी बेटावेटा कुछ नहीं देती, उस का तो कोरा शास्त्रीय नाम पुत्रजीवक है. अब समझने वाले जो समझ कर उन की दवाई खाते रहें. उसे खा देश के तमाम बेटे की चाह रखने वाले इस भ्रम में न रहें कि यह दवाईर् खाने वालों के बेटा होगा. चांस नो प्रतिशत.

मित्रो, यह सुन कर मेरे तो पैरोंतले से जमीन खिसक गई है. इतने ज्ञानी होने के बाद भी वे हम जैसों के साथ कैसे छल कर सकते हैं? सिर के ऊपर छत तो पहले ही नहीं थी, जो बचाखुचा आसमान था, अब तो वह भी सरक गया है. सिर और पैर दोनों ही जगह से आधारहीन हो कर रह गया हूं. इन्होंने तो विपक्ष वालों से अपना पिंड छुड़ाने के लिए हड़बड़ाहट में सच कह दिया पर मेरे तो हाथपांव ही नहीं, मैं तो पूरा ही फूल गया हूं. यह तो कोई बात नहीं होती कि साहब, बस कह दिया, सो कह दिया. पर पैसे डूबे किस के? मेरे जैसों के ही न. और आप तो जानते हैं कि हर वर्ग के बंदे के लिए पैसे से अधिक कुछ प्यारा नहीं होता. फिर मैं तो ठहरा मिडल क्लास का बंदा. चाय के 5 रुपए भी 10 बार गिन कर देता हूं. चमड़ी चली जाए, पर दमड़ी न जाए.

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कम से कम एक जिम्मेदार सिटिजन होने के नाते जनाब से यह उम्मीद कतई न थी कि आप मेरे जैसे लाखों आंखों के अंधों को बेटे का सपना दिखा हम से दवाई की डाउन पेमैंट ले राह चलते को बेटे का हाथ अंधेरे में थमाएंगे. बेटे का बाप बनाने के लालच दे हमें हरकुछ खिलाएंगे. वह भी डब्बे पर छपी पूरी कीमत पहले ले कर.

जनाब, बेटे के लिए हरकुछ ही खाना होता तो अपने महल्ले के खानदानी दवाखाने वाले से ही शर्तिया बेटा होने की दवाई क्यों न ले लेता, जो बेटा होने के बाद ही दवाई की पूरी पेमैंट लेता है, वह भी आसान किस्तों में, जितने की किस्त ग्राहक को बिठानी हो, अपनी सुविधा से बिठा ले. चाहे तो पैसे बेटा दे जब वह कमाने लग जाए. वह भी बिना किसी ब्याज के.

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बेटे के नाम पर दवाई की डोज कम या अधिक लेने पर बेटी हो तो कोई पेमैंट नहीं. सारी की सारी खुराकों की पेमैंट माफ. सरकार भी ऐसा नहीं कर सकती. वह तो थोड़ीबहुत टोकन मनी लेता है, उसे भी 2 रुपया सैकड़ा की दर से बेटी होने पर ब्याज सहित सादर वापस कर देता है. पर आप के बंदों ने तो मुझ जैसों को जो भ्रम की दवाई खिलाई उस ने दिमाग का चैन भी छीना और जेब का भी. पर उस ने महल्ले के जिनजिन बापों को बेटा होने की दवाई दी, उन के, जिस की भी दया से हुए हों, बेटे ही हुए.

साहब, आप का तो जो कुछ भी होगा, भला ही होगा, पर अब मेरा क्या होगा, बाबा. मैं तो इस आस में आप की दवाई की डोज बिना नागा पूरी ईमानदारी से ले रहा था कि इधर मेरे बेटा हुआ और उधर अच्छे दिनों का द्वार खुला. पर आप ने तो मेरे लिए बुरे दिनों का द्वार भी बंद कर दिया. मैं तो पूरी आस्था से आप के डाक्टरों द्वारा बताए जाने पर एक साल से रोटी के बदले भी ये दवाई प्रसाद समझ खा रहा था.

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आप भी कमाल के बंदे हो जनाब. माना आप हमारे ग्रुप के नहीं, पर फिर भी हम केवल बेटे की चाह रखने वाले मानसिक रोगियों से आप मजाक कैसे कर सकते हैं? हम बेटे की चाह रखने वाले तो समाज में हरेक के मजाक का शिकार होते रहते हैं. अपने घर में ही हमें हमारी बीवियां मजाक की दृष्टि से देखती हैं. पर एक हम ही आप जैसे के भरोसे चलने वाले हैं, जो नहीं मानते, तो नहीं मानते. आज की डेट में माना बंदा पैसे दे कर सबकुछ खरीदता है पर कम से कम मजाक तो नहीं खरीदता. मजाक तो बिन पैसे लिए सरकार हम बंदों के साथ काफी कर लेती है.

साहब, हम तो वे बंदे हैं जो दिन में बीसियों बार हर रोज किसी न किसी के हाथों ठगे जाते हैं. अब तो उस दिन हमें नींद नहीं आती जिस रोज हम ठगे न गए हों. ऐसे में, एक ठगी और सही. आखिर, हम तो हैं ही इसी लायक.

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बॉन्ड में निवेश कम जोखिम और ज्यादा रिटर्न

लेखक–मनीषा अग्रवाल

यदि आप निवेश का जरिया खोज रहे हैं जहां आप को कम जोखिम और ज्यादा रिटर्न मिले तो सब से फायदेमंद इस समय बौंड में निवेश करना है. आइए जानें बौंड के बारे में. आजकल बैंक एफडी का ब्याज तेजी से घट रहा है. ऐसी स्थिति में निवेशक निश्चित ब्याज पाने वाले किसी और निवेश के मौके को तलाश रहे हैं. बौंड्स इस के लिए एक अच्छा विकल्प है. इस के जरिए आप अपने निवेश तथा मूलधन पर अधिक जोखिम लिए बिना अच्छे रिटर्न ले सकते हैं.

बौंड एक निश्चित आय की तरह होता है जिस में निवेशक किसी कंपनी या सरकार को निश्चित समय के लिए ऋ ण देते हैं. बौंड को हिंदी में ऋ णपत्र भी कहा जाता है. बौंड कंपनी तथा सरकार के लिए पैसा जुटाने का एक माध्यम है. कंपनी अपने कारोबार के विस्तार के लिए समयसमय पर बौंड से पैसा जुटाती है. सरकार भी राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए या दूसरे महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए पैसा इकट्ठा करने हेतु बौंड जारी करती है. अर्थात सरकार और कंपनी बौंड के जरिए कर्ज लेते हैं. सरकारी बौंड को गवर्नमैंट बौंड कहते हैं. सरकारी बौंड को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इस पैसे की जिम्मेदारी पूरी तरह से सरकार की होती है.

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कंपनी के बौंड में निवेश के पहले उस कंपनी की वित्तीय स्थिति को देखना जरूरी होता है. कंपनी के बौंड को कौर्पोरेट बौंड कहा जाता है. बौंड एक फिक्स्ड रेट इंस्ट्रूमैंट है क्योंकि इस में ब्याज दर पहले से तय होती है. पहले बड़े निवेशक ही बौंड्स में निवेश कर पाते थे. अब इस में छोटे निवेशकों को भी निवेश की अनुमति है. बौंड की मैच्योरिटी अवधि 1 से 30 साल तक हो सकती है. यह मैच्योरिटी अवधि समाप्त होने पर तय नियमों के अनुसार आप का पैसा वापस मिल जाता है. बौंड की ब्याज दर को कूपन रेट कहते हैं. बौंड का प्राइस पहले से तय होता है. बौंड से मिलने वाले रिटर्न को यील्ड कहा जाता है.

बौंड्स के प्राइस तथा बौंड के यील्ड में विपरीत संबंध होता है. एक बौंड को खरीदने के लिए जितनी अधिक कीमत चुकाई जाती है, बौंड यील्ड उसी अनुपात में कम हो जाता है. ज्यादातर बौंड्स पर यील्ड टू मैच्योरिटी अभी करीब 4.5 फीसदी है.

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कुछ खास बौंड्स सरकारी बौंड : इन के कुछ उदाहरण हैं- सौवेरन गोल्ड बौंड : 2.5 फीसदी ब्याज (2020 में छोटे निवेशकों ने इन में विशेषरूप से निवेश किया) जीओआई सेविंग्स बौंड : 7.75 फीसदी. कैपिटल गेन बौंड, एनएचएआईएंड आरईसी. इंडियन रेलवे फाइनैंस कौर्पोरेशन टैक्सफ्री बौंड.

भारत बौंड. म्युनिसिपल बौंड : नगरनिगम अपने किसी प्रोजैक्ट, निर्माण अथवा कुछ और सरकारी खर्चों के लिए बौंड जारी करता है. लखनऊ नगरनिगम ने बंबई स्टौक एक्सचेंज में अपना बौंड लिस्ट करवाया है. कौर्पोरेट बौंड : ये प्राइवेट सैक्टर के द्वारा जारी किए जाते हैं. श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनैंस के बौंड (10.25 फीसदी) 2020 में उपलब्ध थे.

सिक्योर बौंड : इन में पैसा सुरक्षित रहता है. यूपीपीसीएल (10.15 फीसदी) एक सिक्योर बौंड है. इनसिक्योर बौंड : ये बौंड्स काफी रिस्की होते हैं जबकि इन बौंड्स को लुभावना बनाने के लिए ब्याज दर ज्यादा रखी जाती है. जीरो कूपन बौंड : इन में कोई ब्याज नहीं मिलता बल्कि कंपनी की प्राइस वैल्यू से कम प्राइस में खरीद कर इन में मुनाफा कमाया जाता है.

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परपेच्युअल बौंड्स : ये बिना मैच्योरिटी की तारीख वाले बौंड होते हैं. इन पर भी साधारण बौंड की तरह ही फिक्स रिटर्न मिलता है. इन में ज्यादा शर्तें नहीं होतीं. इन में कंपनी के शेयरों की तरह कंपनी में हिस्सेदारी मिलती है. इन को अपनी सुविधानुसार आप बेच सकते हैं. पीएनबी परपेच्युअल बौंड्स (9.15 फीसदी) ऐसा ही बौंड है. खरीदे हुए इन बौंड्स को सैकंडरी मार्केट के जरिए आप किसी दूसरे इन्वैस्टर को भी बेच सकते हैं. पर यदि आप अपने खरीदे हुए बौंड्स के पूरे लाभ लेना चाहते हैं तो आप उसे पूरे समय तक होल्ड करिए. यदि आप ऐसे निवेश का जरिया खोज रहे हैं जहां आप को कम जोखिम और ज्यादा रिटर्न मिले तो आप को सरकारी बौंड या अच्छी कै्रडिट रेटिंग वाली कंपनी के बौंड में निवेश करना चाहिए.

कोरोनिल वर्सेस वैक्सीन

भारत भूमि युगे युगे कोरोनिल वर्सेस वैक्सीन डिप्रैशन एक तरह का मानसिक आसन है जिस में पीडि़त के हाथ, पैर और दिमाग तक सुन्न पड़ जाते हैं, हालांकि होता और भी बहुत कुछ है जिस का सटीक वर्णन योगगुरु व खरबपति कारोबारी बाबा रामदेव बेहतर कर सकते हैं जो इन दिनों भीषण डिप्रैशन की गिरफ्त में हैं. वजह है, बाजार में कोरोना वैक्सीन का आगमन जिस से उन की कंपनी पतंजलि की कथित कोरोना नाशक दवा कोरोनिल की बिक्री पर ग्रहण गहराता जा रहा है.

लौकडाउन के पहले तक बाबा की आयुर्वेदिक दवाओं व उत्पादों का जादू आम लोगों के सिर से उतरने के चलते पतंजलि घाटे में आने लगी थी. झल्लाए बाबा ने अपने जातिभाई सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सुर में सुर मिलाते साफ कह दिया है कि वे कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाएंगे. जाहिर है, लगवाएंगे तो लोग सवाल और शक भी करेंगे. अब धंधा बढ़ाने को बाबा को तुरंत आयुर्वेदिक वैक्सीन लौंच कर देनी चाहिए. मुख्यमंत्री बलात्कारी या… अधिकतर बलात्कार पीडि़ता इतनी मासूम, भोली और नादान होती हैं कि उन्हें कई बार तो सालोंसाल बाद सम झ आता है कि अमुक दिन या रात जो कुछ भी हुआ था वह मरजी से किया गया आनंददायक सहवास नहीं, बल्कि बलात्कार था, तो वे हायहाय करने लगती हैं.

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लेकिन इस दिलचस्प मामले में आरोपी पीडि़ता के पास था भी या नहीं, यह तय कर पाना ही मुश्किल है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर मुंबई की एक मौडल ने आरोप लगाया है कि 5 सितंबर, 2013 को मुख्यमंत्री रहते उन्होंने होटल ताज लैंड्स एंड में उस के साथ बुरा काम किया था और इस के लिए वे बाकायदा एक असिस्टैंट बलात्कारी सुरेश नागरे के साथ हवाई जहाज से मुंबई आए थे. जादू के जोर से जासूसी उपन्यासों जैसा मामला कई हवाहवाई बातों के साथ उठा तो झामुमो और भाजपा में परंपरागत तूतूमैंमैं शुरू हो गई, जिस में भगवा गैंग को मुंह की खानी पड़ी क्योंकि हर किसी को यह मामला प्लांट किया हुआ लग रहा है.

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मैडम चीफ मिनिस्टर इस में शक नहीं कि बसपा प्रमुख मायावती ने एक वक्त में वह कर दिखाया था जो मानव कल्पना से परे था. अब यह और बात है कि भगवा स्नेह के चलते वे अपनी पहचान खोने लगी हैं. लेकिन, हालिया फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ के प्रदर्शन के पहले ही मायावती की फिर चर्चा हुई. रिचा चड्डा अभिनीत इस फिल्म के बारे में आमराय यह बनी कि हो न हो यह जरूर मायावती की बायोपिक है जिस में एक कामयाब दलित महिला के हाथ में झाड़ू थमा कर उस की छवि को गलत तरीके से दिखाया गया है और इस की टैगलाइन में 2 शाश्वत शब्द अनटचेबल और अनस्पौटेबल लिखे गए हैं. सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित इस फिल्म के कई प्रसंग मायावती की जिंदगी से मेल खाते हुए हैं जिन पर बसपा का एतराज एक तरह से फिल्म की पब्लिसिटी ही साबित हो रहा है.

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उन्हें तो खुश इस बात पर होना चाहिए कि वर्णव्यवस्था वाले धर्म, छिछोरे समाज और जातिगत राजनीति का सच दिखाने की हिम्मत तो किसी ने की. वरना आजकल दलितों की सुध लेता ही कौन है. हम तो डूबे ही हैं… पहले उन्होंने अपने गढ़ छिंदवाड़ा में संन्यास के संकेत दिए, फिर कुछ दिनों बाद भोपाल में बोले कि कुछ भी हो जाए आखिरी सांस तक मध्य प्रदेश में ही रहेंगे. मध्य प्रदेश के पूर्व और सवावर्षीय अल्पकार्यकाल के मुख्यमंत्री बुजुर्ग नेता कमलनाथ के इन बयानों पर किसी ने चूं तक नहीं की. इस से ‘पुरुष बलि नहीं होत है समय होत बलबान…’ वाला दोहा जरूर याद आया. सार यह है कि वे गेरुए कपड़े पहन लें या फिर लकदक सूटबूट में रहें, सत्तारूढ़ भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. फर्क उन अधेड़ कांग्रेसियों पर पड़ रहा है जिन्हें कांग्रेसी बस में कंडक्टर या ड्राइवर वाली सीट नहीं मिल रही. जानकारों को डर तो इस बात का है कि कहीं ये लोग ही संन्यास न लेने लगें. फिर, कांग्रेस का क्या होगा, इस पर गौर कौन करेगा.

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