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पंजाब के किसान-हिम्मत की मिसाल

लेखक- रोहित और शाहनवाज

26 नवम्बर वह दिन जब देश के शहरी लोगों को इस बात की भनक लगनी शुरू हुई कि 2 महीने पहले सितंबर में, सरकार ने कोरोना को अवसर बना संसद से ऐसे विवादित कृषि कानून पास किए हैं जिसे ले कर आगे आने वाले दिनों में दिल्ली के बोर्डर जाम होने वाले हैं. दिलचस्प बात यह कि जिस समयपार्लियामेंट के 40 किलोमीटर की परिधि में अधिकतर शहरी लोगों को कृषि कानूनों का ‘क’ भी नहीं पता था, उस समय संसद से सैकड़ों किलोमीटर दूर देहातों में रहने वाले किसान इन कानूनों के खिलाफ पहले से चल रहे अपने आंदोलन की रुपरेखा तैयार कर रहे थे.

शहरी लोगों की नींद तब खुली जब किसान कई स्तरों के मोर्चों को तोड़ते हुए दिल्ली की तरफ कूच कर गए. हजारों की संख्या में पंजाब से किसान अपनी ट्रेक्टरट्रौली लेकर दिल्ली के बौर्डर पर पहुंच गए.आंदोलन की आवाज इतनी बुलंद थी कि नेताओं से ले कर आम जन के कानों को भेद रही थी. स्वाभाविक था कि इस आन्दोलन में अधिकतर किसान पंजाब राज्य से थे, तो एक सवाल लगातार चारों तरफ से घूमने लगा कि आखिर पंजाब के किसानों को इन नए कानूनों से क्या समस्या है?

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यह सवाल हमारे दिमाग में भी खलबली मचाने लगा, जिसे ले कर हम दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों पर जा पहुंचे.अब यह सीधे देखने में आ ही रहा था कि खास रूप से पंजाब केकिसान मोर्चों पर डटे हुए थे, और उन के नेतृत्व में बाकी राज्यों के किसानोंकी भी मोर्चेबंदी होने लगीथी. इस दौरान, हम ने कई किसानों से बात की, जिन्होंने बताया कि वे अपने साथ कई महीनों का राशन, बर्तन, कंबल, रजाई इत्यादि जरुरी सामान ले कर आए हैं. जाहिर है यह एक योजना का हिस्सा था. लेकिन उस दौरान आम लोगों के बीच इस तरह की चर्चा भी गर्म थी कि इस आन्दोलन को भी ठीक उसी तरह कुचल दिया जाएगा जैसे अतीत में भाजपा सरकार द्वारा पुराने आन्दोलनों को कुचला गया है.

किन्तु आज 44 दिनों से भी ज्यादा हो चले हैं और वह सारी गर्म चर्चाएं ठन्डे बस्ते में जाती दिख रही हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि आन्दोलन पहले से अधिक व्यापक, मजबूत और सुनियोजित हो चुका है, जिसे अब आम जन का भी सहयोग मिलता नजर आ रहा है. ऐसे में इस आन्दोलन की मुख्य धुरी के रूप में पंजाब बड़े भाई का किरदार निभा रहा है, जो पुरे देश के किसानों का नेतृत्व कर रहा है.ऐसे में सवाल यह कि बड़े भाई का किरदार अदा करने वाले पंजाब के किसानों के अन्दर सरकार से टकराने की इतनी हिम्मत आखिर आई कहां से?

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एकजुट मजबूत यूनियनें

5 जून को अध्यादेश आने के बाद सब से पहले पंजाब में ही किसानों ने आन्दोलन करना शुरू कर दिया था. भले देश लोकडाउन के चलते कैदखाना बन गया हो लेकिन पंजाब उस दौरान उड़ रहा था. वहां के किसान अपनी घरों की छतों से ही इन अध्यादेशों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे. लौकडाउन हटा तो इस आन्दोलन ने आग पकड़ना शुरू किया. शुरुआत में पंजाब के 11 किसान यूनियनों ने इन कानूनों का विरोध किया. जिन के आन्दोलन भले ही अलग रहे हों, लेकिन एजेंडा एक था ‘नए कृषि कानूनों की वापसी’. इसी के चलते पुरे पंजाब में कई जत्थेबंदियां बढ़ी. अलगअलग मोर्चों पर ‘रेल रोको’, ‘ट्रेक्टर रैली’, नेताओं का घेराव इत्यादि आन्दोलनों को संचालित किया गया. और देखते ही देखते 31 किसान यूनियनों, जिन में खेत मजदूर यूनियन भी शामिल हो गईं. किसानों ने फैसला लिया कि अब इस आन्दोलन को व्यापक बनाने के लिए एक साथ मिल कर एक मंच बनाने की जरुरत है ताकि साझा फैसले लिए जाएं. जिस के बाद उन्होंने संयुक्त मोर्चा का गठन किया.

यह इस आन्दोलन की खूबसूरती है कि तमाम आपसी वैचारिक मतभेदों को दरकिनार कर यह यूनियनें एक मंच पर आ कर सहमतियों का रास्ता खोज रही हैं. इसी के तहत वे तमाम आन्दोलन की योजनाओं की रूपरेखाएं तैयार कर रही हैं जो जाहिर है विशुद्ध लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से गुजर रही है. गौरतलब है कि इन में से अधिकतर किसान यूनियनों का किसी भी राजनैतिक पार्टीयों से सम्बन्ध नहीं है. यह एक बहुत बड़ा कारण भी है कि यह जत्थेबंदियां बिना किसी राजनीतिक दबाव, लोभलाभ के इस आन्दोलन को चला रहे हैं.और यही कारण भी है कि पंजाब के आम किसानों के भीतर अपनी यूनियनों के प्रति एक विश्वास कायम है जो उन्हें इन विपरीत परिस्थितियों में लड़ने की हिम्मत दे रहा है.

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गहरी सामुदायिक भावना और अस्मिता का सवाल

आन्दोलन के शुरूआती समय से ही पंजाब के अलगअलग तबकों, वर्गों, पेशों से एक सुर में इन कृषि कानूनों के खिलाफ आवाज उठने लगी थी. और इन आवाजों को और अधिक तीखा करने का काम खुद सरकार और उस के टटपूंजियों ने किया. जिस दौरान किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे तो उन्हें बदनाम करने के लिए कभी खालिस्तानी, कभी आतंकी, कभी देशद्रोही तो कभी नक्सली कह कर पुकारा जाने लगा. ऐसे में पंजाब के हर व्यक्ति के भीतर सामुदायिक भावना और भी दृढ़ होती चली गई. पंजाब की मिट्टी से जुड़े वे सारे लोग जो देशविदेश में फैले हुए हैं, उन की भावनाओं को भी क्षति पहुंची. और यह बात किसी से छुपी नहीं कि यूरोप के देशों में पंजाब राज्य से जुड़े काफी संख्या में एनआरआई हैं, तो स्वाभाविक था कि वे भी किसान आन्दोलन के समर्थन में आंदोलित हुए.

किसान आन्दोलन की खासियत यह है कि यहां बात पंजाब की अस्मिता से भी जुड़ती दिखाई दे रही है. मानो बात पंजाब बचाने पर आ गई हो. इसी तरह का वाक्यांश सिंघु बौर्डर पर प्रदर्शन में शामिल हुए इंदरजीत का था. इंदरजीत सिदमान बट, लुधियाना से आते हैं. वे कहते हैं, “पंजाबी कौम एक बार कुछ ठान ले तो जान की बाजी लगा कर उसे पूरा करते हैं. और अब तो हमारे जीवन जीने पर हमला है ऐसे में तो हमें बाहर आना ही था.”

किसी भी आन्दोलन में आपसी सामुदायिक भावना का प्रबल होना बेहद जरुरी होता है. इसे समझने के लिए दिल्ली के किसी भी बोर्डर, जहां किसान आन्दोलन चल रहा है, वहां जा कर समझा जा सकता है. हमारी टीम जिस समय भी धरनास्थलों परगई, वहां टूरिस्ट प्रदर्शनकारी कम और वोलिंटियर प्रदर्शनकारी अधिक दिखाई दिए, जो लगातार किसी न किसी काम में व्यस्त रहते, कभी बुजुर्गों की सेवा में, कभी लंगर के काम में, कभी साफसफाई में. मानों हर काम, वहां मौजूद हर व्यक्ति को परफेक्ट्ली बांट दिया गया हो. यह चीजें बिना आपसी समझदारी, प्रेमभाव, और इमानदारी के नहीं हो सकता.

सामुदायिक भावना की प्रबलता का सब से बड़ा उदाहरण इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा सरकार के खुद का कोई भी ऐसा पंजाबी चेहरा इन कानूनों के पक्ष में खुल कर सामने नहीं आ पाया है. छुटपुट सांसद (सनी देओल) ट्विटर पर जरुर आए लेकिन वे पूरी तरह किसानों का विरोध करने में बचते रहे. बल्कि उल्टा 2 दशकों से ऊपर की सहयोगी पार्टी (एसएडी) तक भाजपा से छिटक गई. देखा जाए तो पंजाब पूरा किसान प्रधान राज्य है. यहां रोजगार का मसला पूरा खेती से जुड़ा हुआ है. किसान प्रधान राज्य होने के चलते यहां की राजनीति कृषि से जुड़ी है. ऐसे में जो पार्टी किसानों के हितों के खिलाफ होती है उस का यहां सामूहिक बहिष्कार होता है, और किसानों के लिए मुद्दा जीवन का अपनेआप बन जाता है.वहीँ अगर दूसरा सब से आक्रोशित राज्य, हरियाणा की ही बात की जाए तो कथित किसान हितैषी जेजेपी पार्टी भले ही आज सब से अधिक दबाव में चल रही हो,लेकिन वह भाजपा के साथ जाकर अपनी नैतिकता को दावं पर लगाने को तैयार है.

इंदरजीत कहते हैं, “आज पंजाब में ऐसा माहौल बन चुका है कि अगर लोग आन्दोलन में शामिल नहीं हो पा रहे तो वे खुद को दोषी मान रहे हैं. यह पंजाब की एकजुटता का स्वर्णिम समय है. गांव में लोग बिन कहे एकदुसरे के खेतों का काम कर रहे हैं. एकदुसरे का घरबार संभाल रहे हैं.”

सामुदायिक भावना का उदाहरण कई मौकों पर देखा जा सकता है, लेकिन सब से जरुरी उस हिस्से परचर्चा की है जो आमतौर पर ऐसे परिघटनाओं से खुद को काट कर चलता है.यह हिस्सा मशहूर हस्तियों का है. यह हिस्सा सीधासरकार के खिलाफ जाने से कतराता है. लेकिन पंजाब एक अपवाद बन कर उभरा है जहां शुरू से ही छोटे से ले कर बड़े कलाकारों, खिलाड़ीयों, वैज्ञानिक, सरकारी मुलाजिम खुल कर इन कानूनों के खिलाफ सामने आए.

शहादत का जज्बा

आन्दोलन के शुरूआती दिनों से पंजाब के किसानों के हावभाव बिलकुल ही अलग थे. हमारी टीम पहले दिन ही सिंघु बोर्डर की तरफ चली गई थी. सिंघु जाने के बाद वहां का नजारा साफ दर्शा रहा था कि किसान किस मकसद से दिल्ली आए हैं. धरनास्थल पर घुसे तो ट्रेक्टरों, ट्रोलियों पर क्रांतिकारियों और शहीदों के पोस्टर चिपके हुए थे. कहीं क्रांतिकारियों की कविताएं तो कहीं गीत वाले बड़े पोस्टर दिख रहे थे.खासकर युवाओं के हाथों में शहीद भगत सिंह, उधम सिंह, पाश इत्यादि की तख्तियां थी.समय गुजरने के साथ अलगअलग बोर्डर पर लाइब्रेरी, बुक स्टाल, टेंट की व्यवस्था अधिक हुई हैं, लेकिन दिलचस्प बात यह कि वह तख्तियां मात्र नामी नहीं हैं. बल्कि उन क्रांतिकारियों को किसान आत्मसात भी कर रहे हैं.

युवाओं के बीच किताबों के माध्यम से भगत सिंह की प्रेजेंस वहां आसानी से देखी जा सकती है. टेंट, लाइब्रेरी, ट्रोली में पाश और भगत सिंह की किताबें पढ़ते हुए युवाओं का दिखना आम है.सिंघु में ‘सांझी सथ’ लाइब्रेरी चलाने वाले वोलिंटियर से जब युवाओं में किताबों की दिलचस्पी के बारे में पूछा गया तो उन में से एक विशाल कुमार का कहना था, ‘यहां हर समय लोग रहते हैं. लाइब्रेरी में खास कर 15 से 40 साल के लोग अधिकतर आते हैं. जिन्हें युवा कहना ठीक रहेगा. पूरे दिन लाइब्रेरी चलती रहती है. हांलाकि यहां लोगों की चोइस उम्र के हिसाब से थोड़ी अलगअलग है. कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन भगत सिंह की ‘जेल नोट बुक’, ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’, ‘संकलित रचना’, करतार सिंह साराभा, उधम सिंह, सुखदेव, किसान आन्दोलन का इतिहास, पंजाब का इतिहास और पाश इत्यादि हम ने इसलिए रखी है क्योंकि युवाओं में इसे ले कर दिलचस्पी है. कुछकुछ तो यहां अलगअलग विषयों पर बहसचर्चा भी करने आते हैं.”

यह आन्दोलन कीएक जरुरी बात है कि आन्दोलन में आन्दोलनकारी किसे अपना आइकन बनाते हैं. ऐसे में पंजाब के किसान और युवा खुद को उस शहादत की विरासत से जोड़ कर देखने लगे हैं, जो इतिहास से इस भूमि के सपूतों ने दी हैं.उत्तराखंड के बाजपुर (काशीपुर) से टीकरी बोर्डर पर आन्दोलन में शामिल, रिटायर्ड सूबेदार मेजर राजदीप ढिल्लन का कहना है, “पंजाब हमेशा से ही देशव्यापी आंदोलनों का नेतृत्व करता आया है. हम ने मुगलों से जंग लड़ी, फिर अंग्रेजों के साथ भी लोहा लिया और अब इन नए कंपनी राज का भी सामना कर रहे हैं. हमें जो गलत लगता है हम एक साथ खड़े हो जाते हैं चाहे जान क्यों ना चली जाए.” गौरतलब है कि 7 जनवरी तक आन्दोलन में शामिल कुल 56 लोगों की मौत हो चुकी है. यह किसान आन्दोलन में शामिल रहे हैं, कुछ ने धरनास्थलों पर इन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ फांसी लगा ली है. ऐसे में किसान इन्हें शहीद का दर्जा देते हैं.

आकड़े मजबूत तो किसान हिम्मती

यह बात अब खुल कर सामने है कि यह नए कानून कृषि से जुड़े सेक्टर में निजी उद्यमों को खुली छूट देने के लिए लाए जा रहे हैं. इस से अब नियंत्रण सरकार से सीधा बड़े उद्योगपतियों के पास जाने वाला है. सरकार भले ही एमएसपी को बनाए रखने की बात कर रही हो लेकिन इन कानूनों से किसान ऐसे ट्रैप में फंसेंगे जिस से कुछ समय बाद एमएसपी का वजूद ही ख़त्म हो जाएगा.वहीँ भंडारण के कानून से मार्किट के भाव अब पूरी तरह कौर्पोरेट के हाथों नियंत्रित रहेंगे. वे फूड चैन सप्लाय को अपने इशारों से चलाएंगे, जिस पर सरकार की कोई रोकटोक नहीं रहेगी.

इस बात को पंजाब के किसान पूरी तरह समझ चुके हैं. यह एक कारण है कि वे सब से ज्यादा आंदोलित नजर आ रहे हैं. लेकिन सवाल यह कि बाकी राज्यों के किसान क्या अपनी बुराई चाहते हैं? क्या उन्हें यह मसला समझ नहीं आ रहा? इस पर राजदीप का कहना है, “देश का किसान इस बात को समझ तो रहा है लेकिन सरकार ने कंडीशन ही ऐसी रख दी है कि बाकि राज्यों के किसान आ ही नहीं पा रहे. अब आप बताइए महाराष्ट्र का किसान बिना ट्रेन के हजारों किलोमीटर दूर क्या पैदल चल कर आ पाएगा? जिन से संभव हो पा रहा है वे बस का महंगा खर्चा उठा कर आ पा रहे हैं. बाकी रही बात यूपी, उत्तराखंड और हरियाणा की तो वे दिल्ली के नजदीक हैं इसलिए आजा रहे हैं.”

हांलाकि वे यह भी मानते हैंपंजाब की तरह बाकी राज्यों में किसान लहर थोड़ी फीकी भी है. इस का कारण लम्बे समय से सरकारों द्वारा पैदा की गई परिस्थितयां हैं. इसे समझने के लिए कुछ आकड़ों पर गौर करने की जरुरत है.पंजाब वह राज्य है जिसने “देश की खाद्य टोकरी” और “भारत के अन्न भंडार” का नाम कमाया है.5 नदियों की यह भूमि पृथ्वी पर सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है. भौगोलिक दृष्टि से देखें तो सम्पूर्ण पंजाब की जमीन के 83.4% हिस्से पर खेती की जाती है.

भारत सरकार कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में टोटल धान के उत्पादन का 97% हिस्सा और गेंहूं का टोटल 70-80% हिस्से की सरकारी खरीद होती है.मुख्य रूप से इस राज्य में धान और गेहूं की फसल उगाई जाती है. ऐसे में सीधा नुकसान पंजाब के किसानों को होने वाला है. इन कानूनों के वजूद में आने से सवाल उन के डूबते भविष्य का बन गया है. देश में कुल 7,320 एपीएमसी मंडियां है जिन में से लगभग 1,850 एपीएमसी की मंडियां अकेले पंजाब में ही है,उन में से 152 बड़ी मंडियां हैं. यानि देश की कुल एपीएमसी मंडियों का एक चौथाई पंजाब में ही मौजूद है.ऐसे में पंजाब में अच्छीखासी एपीएमसी मंडियों का जाल यहीं बिछा हुआ है.

भारत सरकार कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में किसानों के जमीन पर मालिकाने हक की बात करें तो 18.7% सीमान्त किसान,जिन के पास 1 हेक्टेयर से कम जमीन हैं, 16.7% छोटे किसान, जिन के पास 1-2% तक जमीन हैं और 64.6% वे किसान हैं,जिन के पास 2 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन हैं जिन पर वे खेती करते हैं.भारत का 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है यानी 94 फीसदी किसान अपनी खेती को औनेपौने दाम में बेचने को मजबूर हैं. ऐसे में इकलौता पंजाब और बहुत हद तक हरियाणा ऐसे प्रदेश हैं जहां एपीएमसी मंडियां मजबूत हैं. जहां फसल की सरकारी खरीदबेच हो पाती है. इसलिए पंजाब के किसानों के लिए यह जीनेमरने वाली परिस्थित बनी हुई है. यही कारण भी है किएनएसएसओ के आकड़ों के अनुसार पुरे देश में पंजाब के किसानों की औसत आय सब से अधिक है. देश में जहां देश की औसत आय 6,426 है वहीँ पंजाब की 18,056 है.हांलाकि देश के किसानों की औसत मासिक आय का 3 गुना होने के बावजूद पंजाब के किसान कर्ज में डूबे हुए हैं. पंजाब यूनिवर्सिटी, पटिआला के अर्थशास्त्र विभाग के द्वारा 2017 में जारी किए गए एक सर्वे के अनुसार पंजाब में 85.9% कृषक परिवार और लगभग 80% कृषि श्रमिक परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं. ऐसे में निजी उद्यमीयों की दखल का डर उन्हें और भी सता रहा है.

बाकि राज्यों किसानों की हालत पहले ही खस्ता हो चुकी है. वहां सरकारी खरीद ना के बराबर है. एपीएमसी मंडियां उजाड़ हो चुकी हैं. निजी दखल बढ़ चुकी है. ऐसे में अब ये कानून देश के अब बचेकुचे कृषि व्यवस्था पर हमले जैसा है. यही कारण भी है किपंजाब के किसानों के लिए यह सीधा सर के ताज छिनने जैसी बात हो गई है. जिसे पंजाब का किसान हरगिज नहीं चाहता. और वह इस अब सरकार के खिलाफ सीधा संघर्ष करने का माद्दा रख रहा है.

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रामगोपाल वर्मा के खिलाफ “फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज (FWICE  ) ने उठाया सख्त कदम

‘सत्या’,’ रंगीला’,’ आग’,’ कंपनी’ ,’सरकार’, ‘निशब्द’,’ भूत’,’दौड़’  सहित कई चर्चित फिल्मों का निर्माण व निर्देशन कर चुके फिल्मकार रामगोपाल वर्मा ने लंबे समय से फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कलाकारों ,तकनीशियन और वर्करों की पारिश्रमिक राशि नहीं चुकाई है. जिन लोगों ने इस बाबत अपनी शिकायत “फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इंप्लाइज” (FWICE)के साथ दर्ज कराई है, उसके अनुसार यह रकम सवा करोड़ रुपए से भी अधिक है.
शिकायत मिलने के बाद से “फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज” ने कई बार रामगोपाल वर्मा को नोटिस भेजकर वर्करों का पैसा चुकाने का निवेदन किया. मगर रामगोपाल वर्मा के कानों में अब तक जूं नहीं रेंगी है . परिणामत अब  ” फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज” ने रामगोपाल वर्मा के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए आदेश जारी किया है कि फिल्म इंडस्ट्री की 32 यूनियनों में से किसी भी यूनियन का कोई भी सदस्य भविष्य  में रामगोपाल वर्मा के संग काम नहीं करेगा.
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“फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज” के अध्यक्ष बीएन तिवारी, महासचिव अशोक दुबे और कोषाध्यक्ष गंगेश्वर श्रीवास्तव उर्फ संजू भाई के अनुसार फेडरेशन ने रामगोपाल वर्मा को पहले ही कई कानूनी नोटिस  भेजी थी. मगर रामगोपाल वर्मा ने फेडरेशन की कानूनी नोटिस का सटीक जवाब नहीं दिया और ना ही तकनीशियन और वर्करों का पैसा ही लौटाया. फेडरेशन ने 17 सितंबर 2020 को राम गोपाल वर्मा को पत्र लिखकर वर्करों की पूरी सूची और बकाया राशि लिख कर दिया था. उसके बाद भी कई पत्र भेजें , मगर रामगोपाल वर्मा ने इन पत्रों को बैरंग वापस कर दिया.
 
“फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज” के कुछ के अध्यक्ष बी एन तिवारी कहते हैं-“हमें बीच मे पता चला की कोरोना कॉल में भी राम गोपाल वर्मा अपने एक प्रोजेक्ट की शूटिंग कर रहे हैं ,जिस पर हमने गोवा के मुख्यमंत्री को भी   10 सितंबर 2020 को पत्र लिखा था. हम चाहते थे कि राम गोपाल वर्मा गरीब टेक्नीशियनों , कलाकारों और वर्करों  की बकाए राशि का भुगतान करें  .मगर राम गोपाल वर्मा ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया .जिसके बाद मजबूरी में उनके साथ भविष्य में काम नहीं करने का निर्णय लिया गया.इस बारे में इम्पा और गिल्ड तथा सभी प्रमुख यूनियनों को सूचित कर दिया गया है.”

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अली गोनी और जैस्मिन भसीन के रिश्ते को लेकर लोग आए दिन कुछ न कुछ करते रहते हैं. ऐसे में अली गोनी और जैस्मिन भसीन को बिग ब़स के घर में एक साथ अब लोग ज्यादा बात करने लगे हैं. नेशनल टीवी पर जैस्मिन भसीन ने इस बात को मानी कि अली गोनी उनके लाइफ में अहमियत रखते हैं.

बिग बॉस के घर से बागहर आने के बाद जब जैस्मिन से अली गोनी को लेकर पूछ गया तो उन्होंने एक रिपोर्ट में बात करते हुए कहा कि उनके मन में अली को लेकर खूबसूरत फिलिंग्स है. वह जल्द ही अली के घर वालों से मिलेंगी और दोनों शादी के बंधन में बधने वाले हैं.

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उन्होंने कहा कि मुझे अली से प्यार है लेकिन मैं इस खूबसूरत रिश्ते को नाम देना चाहती हूं. मुझे अली के साथ शादी करना है. हम एक बार या फिर दो बार ही उनके परिवार वालों से मिले होंगे. जल्द मिलकर हम अपने रिश्ते को मंजूरी देंगे.

 

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उम्मीद करते हैं कि आप लोगों को भी हमारा रिश्ता पसंद आएगा. बता दें कि इससे पहले अली गोनी और जैस्मिन भसीन रोहित शेट्टी के शो कतरों के खिलाड़ी 9 में हिस्सा लिया था. जिसमें दोनों को खूब पसंद किया गया था. लेकिन बिग बॉस 14 के घर में आने के बाद इन्होंने अपने रिश्ते को जग जाहिर किया है.

इस महीने बंद होने जा रहा है ‘नागिन 5’, एकता कपूर का नया शो करेगा रिप्लेस

टीवी शो ‘नागिन 5’ देखने वाले फैंस के लिए एक बड़ी खबर आ रही है कि यह शो जल्द ही बंद होने वाला है. शरद मल्होत्रा, सुरभि चंदना और मोहित सेहगल के साथ मिलकर एकता कपूर ने इस शो को 6 महीने पहले शुरू किया था. अब यह शो फरवरी 2021 में ऑफ एयर होने जा रहा है.

हालांकि अभी तक डेट अभी फाइनल नहीं हुआ है कि किस दिन इस शो को बंद किया जाएगा, वहीं टीम को इस बात की जानकारी दी गई है कि शो का आखिरी एपिसोड इस सप्ताह सूट किया जाएगा.

 

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खबर है कि एकता कपूर का नया शो वैंपायर से जुड़ा होगा जो ‘नागिन 5’ को रिप्लेस करेगा.

टीवी सीरियल ‘नागिन 5’ लोगों को अपनी तरफ तब खींचना शुरू किया जब सीरियल में शरद महल्होत्रा और सुरभि चंदेल की केमेस्ट्री दिखाई जानें लगी थी. बता दें कि इस सीरियल में शरद महल्होत्रा ने पहली बार एक विलेन का किरदार निभाया था.

 

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वहीं सुरभि इस सीरियल में बानी का किरदार निभाती नजर आ रही है. एक रिपोर्ट में बात करते हुए सुरभि ने कहा है कि इस सीरियल में वो अपना बेस्ट दे रही है. उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह बड़ी जिम्मेदारी है कि इस सीरियल को कायम रखना जरुरी है. एकता कपूर की हीरोइन बनना बहुत आसान नहीं है.

मैंने इस सीरियल में काम करने के लिए काफी ज्यादा वेटलॉस किया है. एकता कपूर ने जो विश्वास दिखाया मुझे उसमें 200 फीसदी देने होता है. आगे सुरभि ने कहा कि लोगों का प्यार ही हैं कि मैं अपनी जिममेदारी को बखूबी निभा रही हूं. लोगों के ऊपर अपना विश्वास बनाएं रखी हूं. एक्टिंग के दुनिया में बेस्ट देने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है.

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सुरभि चंदेल इस सीरियल के अलावा भी कई सीरियल्स में नजर आ चुकी हैं. जिसमें फैंस ने उन्हें काफी ज्यादा पसंद किया था.

आपका ‘हैंडबैग’ कर सकता है आपको बीमार

‘हैंडबैग’ में आप अपनी जरूरत की हर चीज रखना पसंद करती हैं ताकि जब आप को उस की जरूरत पड़े तब आप तुरंत इस्तेमाल कर सकें. लेकिन क्या आप को पता है कि आप अपने हैंडबैग में जरूरत की चीजों के अलावा और भी कुछ ले कर घूमती हैं? जी हां, आप के पर्स में कई तरह के बैक्टीरिया पैदा होते हैं जो आप को बीमार करते हैं.

एक नई रिसर्च के मुताबिक 90 फीसदी से अधिक हैंडबैग में बैक्टीरिया पनपते हैं, खासतौर पर महिलाओं के पर्स में ऐसा अधिक होता है. रिसर्च में पाया गया है कि रसोई घर, टेबल और बाथरूम जैसी जगहों की तुलना में पर्स में सब से ज्यादा बैक्टीरिया पनपते हैं जो नुकसानदायक होते हैं.

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डेली मेल ने जनरल एडवांस बायोमेडिकल के हवाले से लिखा है कि महिला और पुरुष दोनों में ही संक्रमित रोग फैलने का बड़ा जिम्मेदार उन का पर्स है. हालांकि रिसर्च ये भी कहती है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के पर्स में अधिक बैक्टीरिया होते हैं. रिसर्च के दौरान ये बात भी आई है कि केवल 2.1 फीसदी महिलाएं महीने में एक बार अपना पर्स साफ करती हैं जबकि 81.5 कभी भी अपना पर्स खाली नहीं करतीं.

इन दिनों तो वैसे भी वायरल तेजी से फैल रहा है इसलिए आप स्वस्थ रहना चाहती हैं तो अपने हैंडबैग की सफाई जरूर करें, उस में केवल जरूरत की चीजें ही रखें, वह भी सही तरीके से.

कैसे करें हैंडबैग की सफाई

हलके गुनगुने पानी में लिक्विड साबुन मिक्स कर के हैंडबैग के बाहरी हिस्से की सफाई करें. आप चाहें तो लिक्विड साबुन की जगह पर शैंपू का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. इस से बाहरी हिस्से पर जमी गंदगी दूर हो जाएगी.

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कभी भी हैंडबैग की सफाई के लिए बेबी वाइव्स, विनेगर और अन्य घरेलू सामग्रियों का इस्तेमाल न करें. खास कर के दाग छुड़ाने के लिए क्योंकि इन प्रोडक्ट्स में कैमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, जिस से कलर खराब होने का खतरा रहता है.

लेदर के पर्स को हलके हाथों से मुलायम कपड़े से साफ करें. आप पेट्रोलियम जेली भी यूज कर सकती हैं.

.  हैंडबैग को ऐंटीबैक्टीरियल जैल से साफ करना एक अच्छा विकल्प है.

.  बैग के कोने की सफाई के लिए टूथपिक का इस्तेमाल करें

.जब बैग की सफाई करें तब तुरंत ही उस में सामान न भरें, उसे कुछ देर खुली हवा में रहने दें.

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क्या न करें

. मेकअप के सामान से अपना हैंडबैग न भरें. हैंडबैग में केवल वैसी ही चीजें रखें, जिन का आप रोजमर्रा के दिनों में इस्तेमाल करती हैं और इन प्रोडक्ट्स को भी एक पाउच में अच्छी तरह से पैक कर के रखें और समयसमय पर इस की सफाई करते रहें.

.  खानेपीने की चीजें बैग में न रखें, खासकर के तब जब आप ने पैकेट खोल दिया है. इस से बैग में चीटियां आ सकती हैं.

. बैग को कहीं भी रखने से बचें. खासकर के वैसी जगहों पर जहां बैक्टीरिया ज्यादा पैदा होते हैं.

.अपने हैंडबैग को डस्टबीन न बनाएं. कुछ महिलाओं की आदत होती है कि वे अपनी हर चीज को बैग में ही कैरी करती हैं.

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कुछ बातों का ध्यान रखें

.  जब बैग खरीदें तब केवल स्टाइल और डिजाइन पर ध्यान न दें बल्कि मैटेरियल पर भी ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि लेदर की तुलना में कौटन व वूलेन फैब्रिक में बैक्टीरिया जल्दी फैलता है.

.  बैग हमेशा वाटरप्रूफ वाले ही लें, क्योंकि नौर्मल बैग में बारिश के दिनों में बैग के अंदर रखा सामान गीला हो जाता है, जिस की वजह से बैक्टीरिया पैदा होते हैं.

.  बैग खरीदते समय स्ट्रिप्स का ध्यान रखें क्योंकि पतले व हार्ड स्ट्रिप्स से शोल्डर मसल्स पर असर पड़ता है. हमेशा सौफ्ट और चौड़े स्ट्रिप्स वाले बैग खरीदें.

.   बैग के वजन का भी ध्यान रखें क्योंकि कुछ बैग का वजन पहले से ही ज्यादा होता है और जब इस में सामान डाला जाता है तो वह और भी ज्यादा भारी हो जाता है.

. कभी भी हैंडबैग को प्लास्टिक बैग में न रखें. इस से बैग जल्दी खराब हो जाता है. इस के लिए तकिए के पुराने कवर को इस्तेमाल करें या फिर कौटन बैग ताकि गंदगी का प्रभाव न पड़े.

.  जब आप बैग का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं तब बैग का सारा सामान निकाल कर टिशू पेपर डाल कर रखें ताकि बैग का शेप बरकरार रहे और बैक्टीरिया न उत्पन्न हो.

इस बात का ध्यान रखें कि बैग में मौइश्चर न बने, क्योंकि इस से बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं.

दीपशिखा : शिखा बार- बार शादी के लिए मना क्यों कर रही थी

सुबह होते ही  दीप  का  मोबाइल बज  उठा, ‘‘हाय जीजू, कैसे हो? रात कैसी थी? दीदी सो रही हैं या नहीं. आप ने उन्हें सोने भी दिया या नहीं?’’

‘‘बसबस, सवाल ही पूछती रहोगी या कुछ जवाब भी देने दोगी,’’ दीप ने बीना से कहा, बीना उस की नईनवेली पत्नी शिखा की लाड़ली बहन है. ‘‘लो बहन से ही पूछो. मैंने सबकुछ कह दिया तो तुम दोनों ही शरम से लाल हो जाओगी.’’

शिखा और बीना की बातें शुरू हुईं तो लगा मानो वर्षों बाद बात हो रही है.

बीना का रिजल्ट निकला. वह पास हो गई थी. शिखा ने ही बीना को पढ़ाया था. नौकरी लगने के फौरन बाद ही शिखा ने बीना को इंजीनियरिंग कालिज में प्रवेश दिला दिया था. कालिज की पढ़ाई का भारी खर्च शिखा के ही कंधों पर था क्योंकि मां एक साधारण अध्यापिका थीं और पिता कुछ नहीं करते थे.

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शिखा को तो मां ने अतिरिक्त ट्यूशन पढ़ापढ़ा कर इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा कराया था पर बीना का बोझ शिखा ने उठा लिया था.

आज की युवा पीढ़ी की तरह मौजमस्ती से दूर केवल पढ़ाई को लक्ष्य बना कर दोनों बहनों ने सफलता प्राप्त की.

शिखा बहुत बड़ी कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर थी, उस का वेतन 20 हजार रुपए महीना था. पर देखने में वह इतनी सीधी थी कि उसे देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह इतनी पढ़ीलिखी है और 20 हजार रुपए महीना कमाने वाली लड़की है.

शिखा देखने में सुंदर भी थी. 2 साल से उस के लिए रिश्ते आ रहे थे पर वह उन्हें टालती जा रही थी.

शिखा ने एक दिन मां से पूछ ही लिया, ‘‘मां, आप लड़के के बारे में पूछ रही थीं न, अगर दूसरी बिरादरी का लड़का होगा तो भी आप मान जाएंगी न?’’

‘‘ओह हो, तो यह बात है. मेरी रानी बिटिया को कोई भा गया है. बता, जल्दी से बता. मुझे बिरादरी अलग होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. बस, लड़का लायक होना चाहिए.’’

‘‘मां, जब एक बार मैं बीमार पड़ी थी तब आफिस के कई साथी हालचाल पूछने आए थे, उन में वह लड़का भी था. उस ने सफेद कुरतापाजामा पहना हुआ था. बाल थोड़े लंबे थे.’’

‘‘अच्छाअच्छा, तू दीप की बात कर रही है जिसे देख कर मैं ने उसे शायर की उपाधि दी थी.’’

‘‘हां, मां. हम दोनों एक ही प्रोजेक्ट पर काम करते हैं. बहुत ही अच्छा लड़का है. मेरी तरह वह भी उड़ने वाले लड़कों में से नहीं है.’’

‘‘उस की मां को पता है कि तुम दूसरी जाति की हो?’’

‘‘उस की मां को सब पता है. वह यह जानती है कि मैं हरियाणा के जाट परिवार से हूं. अब आप की तरफ से अगर हां हो तो दीप मुझे एक दिन अपनी मां से मिलवाने ले जाएगा.’’

‘‘ठीक है जब उन की तरफ से हां हो जाएगी तब हम भी उन से मिल लेंगे.’’

मां बड़ी खुश थीं. एक बड़ा बोझ उन के सिर से जैसे उतर गया हो. अगले इतवार को ही दीप शिखा को अपनी मां से मिलवाने ले गया. शिखा बहुत ही सामान्य कपड़ों में और बिना किसी मेकअप के दीप के घर उन की मां से मिलने आई थी. दीप की मां तो उसे देखते ही मुग्ध हो गई थीं. उन्हें तेजतर्रार लड़कियों से बड़ा डर लगता था.

उन के मन में एक ही इच्छा थी कि दीप को उस की तरह ही सीधी-

सादी लड़की मिले क्योंकि एक  तो वह बेहद सरल स्वभाव का था दूसरे छलकपट और दिखावे से भी बहुत दूर रहता था. बस, अपने काम की दुनिया में वह मस्त रहने वाला इनसान था.

शिखा को देख कर दीप की मां उस से बातें करने में खो गईं. दोनों की बातों में दीप जैसे अकेला पड़ गया तो वह चुपचाप उठ कर कंप्यूटर पर जा बैठा था.

पहली ही मुलाकात में शिखा ने अपने और अपने परिवार के बारे में दीप की मां को सबकुछ बता दिया था. दीप के बारे में तो वह जानती ही थी.

दीप की मां ने पहली मुलाकात में ही शिखा को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर लिया तो दोनों परिवार मिले और बात आगे बढ़ी. शादी की तारीख तय हुई और फिर खरीदारी शुरू हो गई. दीप की मां ने सारी खरीदारी शिखा को साथ ले जा कर की.

इस तरह रोज की मुलाकातों में शिखा की व्यवहारकुशलता और बचत करने की आदत से भी वह परिचित हो गई थीं.

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जीवन की कठिनाइयों ने शिखा को पैसे का मूल्य समझना सिखा दिया था. वह कहीं भी फुजूलखर्ची न तो खुद करती न दूसरों को करने देती थी. दीप की मां जस्सी शिखा के बारे में सोचसोच कर हैरान होती कि देखो जमाने की हवा से शिखा कितनी दूर है. इतना कमाती है फिर भी सोचसमझ कर ही खर्च करती है. जस्सी की ओर से खरीदारी पूरी हो चुकी थी. तभी एक दिन शिखा का फोन आया.

‘‘मां, आप से एक बात पूछनी है. आप बुरा मत मानना और किसी को भी बताना नहीं, यहां तक कि दीप को भी नहीं बताना.’’

‘‘क्या बात है? कोई गंभीर समस्या है क्या?’’

‘‘नहीं मां, कोईर् गंभीर बात नहीं है. पर फिर भी आप की रजामंदी के बिना मैं कुछ नहीं करूंगी.’’

‘‘अच्छा बोलो, मैं वादा करती हूं कि तुम्हारा पूरा साथ दूंगी.’’

‘‘मां शादी पर पहनने वाली ड्रेस मैं बनवाना नहीं चाहती. इधर मैं ने बाजार में सब देखा. कोई भी डे्रस 10-12 हजार रुपए से कम की नहीं है. सिर्फ एक दिन पहनने के लिए इतना पैसा बरबाद करने का मेरा मन नहीं है. क्या मैं किराए पर ले कर पहन लूं. आजकल किराए पर एक से एक बढि़या ड्रेस और साथ में मैचिंग गहने मिलते हैं. आप तो जानती हैं कि मैं दोबारा ऐसे कपड़े पहनने वाली नहीं हूं. यदि आप मेरा साथ देंगी तभी मैं यह कदम उठा सकती हूं. दूसरे दिन ही सब सामान वापस चला जाएगा.’’

‘‘तू कैसी लड़की है?’’ जस्सी ने कहा, ‘‘शादी की डे्रेस पर तो सब लड़कियां अपने पूरे अरमान निकाल लेती हैं और तू कहती है कि बनवानी ही नहीं है. बेटी, मैं पैसे देती हूं, तू अपनी पसंद की बनवा ले.’’

‘‘मां, बात पैसे की नहीं है. मेरी समझ में यह पैसे की बरबादी है. आप भी मेरी बात से सहमत होंगी.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी क्या कहती हैं?’’

‘‘वह कहती हैं कि अगर समधनजी मान जाएं तो ऐसा कर लो. मां को तो मैं ने मना लिया है, अब आप को मनाना बाकी है.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम चाहो वैसा कर लो. मुझे कोई आपत्ति नहीं है और यह रहस्य मेरे तक ही सीमित रहेगा.’’

‘‘थैंक्यू मां,’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.

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जस्सी के मन में अब शिखा के लिए आदर का भाव और भी बढ़ गया. उस ने सोचा कि देखो शिखा कितना सोचती है अपने परिवार के बारे में. बेकार में पैसा उड़ाने में विश्वास नहीं रखती है. कल को पति के घर को भी अच्छे से संभाल लेगी.

शादी का दिन आ पहुंचा. गुलाबी रंग के लहंगेचुनरी में शिखा का सौंदर्य निखर उठा था. गहने उस की सुंदरता को और भी बढ़ा रहे थे. शिखा की डोली विदा हो कर दीप के घर आ गई थी. सब तरह के रीतिरिवाजों से निबट कर जब आराम करने के लिए शिखा अपने कमरे में जाने लगी तो उस ने अपनी सास को इशारे से कमरे में बुला लिया. बहुत ही ध्यान से शिखा ने कपड़े उतार कर अटैची में बंद किए. सब गहने उतार कर डब्बे में रखे. इस काम में जस्सी ने शिखा की मदद की. बहुत ही ध्यान से दर्जनों सेफ्टीपिन लहंगे और चुनरी से निकाले. सबकुछ सहेज कर रखने के बाद शिखा ने राहत की सांस ली और अपनी सास को एक बार फिर दिल से थैंक्यू कहा.

सास ने प्यार से उसे बांहों में भर लिया और बोलीं, ‘‘बेटी, जैसे तुम ने अपने मायके का पूरा ध्यान रखा है उसी तरह से ससुराल का भी ध्यान रखना.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है मां. अब तो यह मेरा घर है. मेरी जान इसी पर न्योछावर है.’’

रात होतेहोते दीप के दोस्तों और मौसेरे, चचेरे भाईबहनों ने मिल कर बोलना शुरू किया, ‘‘अरे दीप, किस होटल में कमरा बुक किया है. चलो, तुम दोनों को छोड़ आएं.’’

‘‘हम अपनेआप चले जाएंगे, तुम लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

घर मेहमानों से भरा हुआ था क्योंकि वह 2 कमरों का एक छोटा सा फ्लैट था. दीप भी जानता था कि समाज के रिवाज के अनुसार उसे शिखा को ले कर किसी होटल में जाना ही पड़ेगा, अन्यथा आज की सोच वाले उस के दोस्त उस का पीछा नहीं छोड़ेंगे. रात के 10 बज चुके थे, दीप और शिखा ने सब को ‘बाय’ किया और अपनी कार में घर से चल दिए. रास्ते में शिखा ने दीप से पूछा कि होटल के कमरे में कितने रुपए लगेंगे?

‘‘पांचसितारा होटल में 5 हजार, तीनसितारा होटल में 3 हजार और एक सितारा होटल में 1 हजार रुपए. तुम बोलो कि तुम्हें कहां चलना है, पैसे का प्रबंध मैं ने कर रखा है.’’

‘‘और कंपनी के गेस्ट हाउस के कमरे के कितने?’’

‘‘मुफ्त. केवल 100 रुपए चौकीदार को टिप के रूप में देने पड़ेंगे.’’

‘‘तो चलो वहीं चलते हैं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है. लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘मेरा दिमाग बिलकुल ठीक है,’’ शिखा बोली, ‘‘मैं लोगों की चिंता नहीं करती. पैसे की बरबादी मैं नहीं करती, यह तुम अच्छे से जानते हो.’’

‘‘यह रात फिर कभी नहीं आएगी. बाद में ताना मत मारना कि मैं कंजूस हूं.’’

‘‘नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा,’’ इतना कह कर शिखा ने धीरे से दीप के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

दीप ने कार गेस्ट हाउस की दिशा में मोड़ दी. रात बहुत हो चुकी थी फिर भी सड़क के किनारे एक फूल वाला अपने फूल समेटने की तैयारी में था. दीप ने कार रोकी और उस के सारे गुलाब के फूल खरीद लिए. दीप जानता था कि शिखा को गुलाब के फूल बहुत अच्छे लगते हैं.वह सप्ताह में एक दिन गुलाब के फूलों का एक गुच्छा खरीद कर घर ले जाती थी और उन्हें ही सहेज कर हफ्ता निकाल देती थी.

कार गुलाबों से महक उठी. गेस्ट हाउस के उस कमरे को दोनों ने मिल कर सजाया. दोनों के दिलों में प्यार की महक थी इसलिए वह साधारण सा कमरा भी किसी पांचसितारा होटल से अधिक सुंदर लग रहा था. दोनों एकदूसरे की बाहों में खो गए थे.

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सुबह होते ही घर जाने की तैयारी हुई. शिखा बहुत ही खुश नजर आ रही थी. दीप ने पूछा, ‘‘क्या बात है बहुत खुश हो.’’

‘‘हां, वो तो है. मैं बहुत खुश हूं क्योंकि आज मैं दीपशिखा बन गई हूं.’’

‘‘दीप भी तो शिखा के बिना अधूरा था,’’ दीप बोला, ‘‘चलो, अब दीपशिखा मिल कर चलें,’’ शिखा हसंती हुई बोली.

शिखा का खिला हुआ चेहरा देख कर जस्सी ने उसे गले से लगा लिया था. शिखा की खुशी का एक और राज भी था जिसे उस ने मां को नहीं बताया था. पहले दिन से उस ने अपने घर की सुरक्षा का बीमा अपने हाथों में ले लिया था.

जनवरी महीना है खास : करें खेती किसानी से जुड़े जरूरी काम

नए साल का जनवरी महीना किसानों के लिए खास होता है. वजह, यह महीना खेती, पशुपालन, मधुमक्खीपालन, मछलीपालन, मुरगीपालन, मशरूम उत्पादन, फूलों की खेती समेत सब्जियों की खेती के लिए मुफीद माना जाता है. वैसे तो इस महीने कड़ाके की सर्दी पड़ती है, जो कुछ फसलों के लिए फायदेमंद है, तो कुछ फसलों को ठंड व पाले से बचाने के लिए ज्यादा देखभाल की जरूरत पड़ती है. तो आइए जानते हैं जनवरी महीने में खेती से जुड़े कामों के बारे में :

रबी सीजन में ज्यादातर किसान बोआई और जुताई से जुड़े काम निबटा चुके होंगे. ऐसे में खेती से जुड़े अपने यंत्रों की मरम्मत और देखभाल पर विशेष ध्यान दें, ताकि इन कृषि यंत्रों में स्थायी खराबी आने से बचा जा सके. इस से इन की काम करने की कूवत भी बढ़ जाती है. वहीं दूसरी ओर ऐसे में ट्रैक्टर के ब्रेक, तेल का स्तर, फिल्टर वगैरह को जरूरत के मुताबिक ठीकठाक कर लेना चाहिए और समयसमय पर जांचपरख कर लेनी चाहिए. किसान अपने रोटावेटर, हैप्पी सीडर, जीरो टिलेज, रोटो सीड ड्रिल, स्ट्रा रीपर, निराईगुड़ाई के स्वचालित यंत्र, लेजर लैंड लैवलर, स्वचालित और ट्रैक्टर से चलने वाले छिड़काव यंत्रों की साफसफाई कर लें. इस के अलावा यंत्रों के नटबोल्ट की जांच अवश्य करें.

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अगर नटबोल्ट ढीले हैं, तो उन को तुरंत दुरुस्त कर दें. मशीन के बेरिंग व अन्य घूमने वाले भागों में मोबिल औयल व ग्रीस अवश्य डालें. बेरिंग के ढक्कन को ढक कर रखें. कृषि यंत्रों के ऐसे भाग, जो उर्वरक व मिट्टी के संपर्क में आते हों, उन्हें अच्छी तरह से साफ करना चाहिए. जुताई से जुड़े कृषि यंत्रों के जो भाग घिस गए हैं, उन में धार लगा लेनी चाहिए. कृषि यंत्रों के उचित गति से काम करने के लिए यंत्र में एडजस्टमैंट कर लेना चाहिए, जिस से बेल्ट आदि का तनाव ठीक रहे और यंत्र ढंग से काम करे. बीज व उर्वरक बोआई यंत्र और फसल सुरक्षा यंत्रों वगैरह का परीक्षण के अंतर्गत कैलिब्रिशन कर के ठीक कर लेना चाहिए, जिस से उचित मात्रा में बीज व उर्वरक डाले जा सकें.

साथ ही, सभी प्रकार के स्प्रेयर के नोजल के छेदों को अच्छी तरह से साफ कर लें और दवा टैंक को धो कर रखें, जिस से जंग वगैरह न लगे. गेहूं की खेती करने वाले किसान अपनी फसल में दूसरी सिंचाई बोआई के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय करें और तीसरी सिंचाई बोआई के 60-65 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें. जिन किसानों ने जौ की फसल ले रखी है, वे जौ की फसल की दूसरी सिंचाई बोआई के 55-60 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें. जौ और गेहूं की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्यूमिनियम फास्फाइड की टिकिया का प्रयोग करें. चना की फसल में फूल आने के पहले एक हलकी सिंचाई अवश्य करें. जिन किसानों ने मटर की खेती की है, वे फसल में फूल आने से पहले एक हलकी सिंचाई कर दें.

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इस के अलावा फसल में भभूतिया यानी पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्लूपी 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लिटर की दर से छिड़काव करें. इस की एक हेक्टेयर में 1.5 किलोग्राम मात्रा की जरूरत पड़ती है या फफूंदीनाशक फ्लूसिलाजोल 40 प्रतिशत ईसी की 120 मिली मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. राई और सरसों में दाना भरने की अवस्था में दूसरी सिंचाई करें, वहीं जिन किसानों ने शीतकालीन मक्का की खेती कर रखी है, वे फसल की दूसरी निराईगुड़ाई, बोआई के 40-45 दिन बाद कर के खरपतवार निकाल दें. साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि मक्का फसल की दूसरी सिंचाई बोआई के 55-60 दिन बाद करें व तीसरी सिंचाई बोआई के 75-80 दिन बाद अवश्य करें.

इस महीने किसान गन्ने की फसल की कटाई कर चीनी मिलों को बेच दें, जिस से ग्रीष्मकालीन सब्जियों के लिए खेत समय से खाली हो जाएं. इस के अलावा इस महीने गन्ने से बनाया जाने वाला गुड़ ज्यादा स्वादिष्ठ होता है. ऐसे में गुड़ का व्यवसाय करने वाले किसान इस महीने गुड़ बना कर ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं. जिन किसानों ने बैंगन और टमाटर की पौध लगा रखी है, वे जनवरी महीने के आखिरी सप्ताह तक इस की रोपाई कर दें. रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें, इस के बाद 8-10 दिन बाद सिंचाई करें. जिन किसान भाइयों ने टमाटर और बैंगन की शरद मौसम की फसल लगा रखी है, वे अच्छी गुणवत्ता और कीमत के लिए समय पर फलों की तुड़ाई करें.

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बैंगन में फल तब तोड़े जाने चाहिए, जब वे मुलायम हों और उन में ज्यादा बीज न बने हों. फूलगोभी की खेती करने वाले किसान यह ध्यान दें कि फूल उस समय काटने चाहिए, जब वे ठोस, सफेद व धब्बेरहित बिलकुल साफ हों. फूल तेज धार वाले चाकू से काटे जाएं और फूल के साथ पत्तियों के कम से कम 2 चक्र भी हों. यदि कटाई में देर हो गई तो फूल सकता है. कटाई करते समय 2-3 बाहरी पत्तियां रखें, जिस से बाजार ले जाते समय गांठें खराब न हों. आलू की खेती करने वाले किसान इस महीने के पहले सप्ताह तक हर हाल में पौधों के ऊपरी भाग यानी डंठल को काट दें. उस के बाद आलू को 20-25 दिन तक जमीन के अंदर ही पड़ा रहने दें.

ऐसा करने से आलू का छिलका कड़ा हो जाएगा और खराब नहीं होगा. जो किसान चप्पन कद्दू की खेती करना चाहते हैं, वे जनवरी महीने के पहले सप्ताह में बोआई जरूर कर लें. बोआई के पहले यह सुनिश्चित कर लें कि खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी हो. इस से बीजों का अंकुरण व बढ़वार अच्छा होता है. इस की उन्नत किस्में आस्ट्रेलियन ग्रीन, पूसा अलंकार, अर्ली यलो प्रोलिफिक, पंजाब चप्पन कद्दू व मैक्सिको चप्पन कद्दू हैं. जनवरी महीने के दूसरे सप्ताह से खीरा की बोआई की जा सकती है. इस समय बोई जाने वाली उन्नत प्रजातियों में हिमांगी, जापानी लौंग ग्रीन, ज्वाइंट सैट, पूना खीरा, पूसा संयोग, शीतल, फाइन सेट, स्टेट 8, खीरा 90, खीरा 75, हाईब्रिड 1 और हाईब्रिड 2, कल्यानपुर हरा खीरा शामिल हैं. वहीं दूसरी ओर इसी दौरान ककड़ी भी बोई जा सकती है.

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इस के लिए एक एकड़ भूमि में एक किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. जो किसान अरबी की खेती करना चाहते हैं, वे इस महीने खेत की तैयारी जरूर कर लें, जिस से फरवरी महीने में समय से बोआई की जा सके. जनवरी महीने में गरमियों के लिए पालक की बोआई की जा सकती है. ऐसे में जो किसान पालक की फसल लेना चाहते हैं, वह जनवरी महीने में बोआई कर सकते हैं. जो किसान मचान विधि से सब्जियों की खेती करना चाहते हैं, वे इस महीने करेला, लौकी, तोरई, नेनुआ की बोआई करें. जायद में मिर्च और भिंडी की फसल के लिए खेत की तैयारी अभी से शुरू कर दें. मशरूम की खेती करने वाले किसान तैयार फसल की समय से तुड़ाई कर साइज व क्वालिटी के अनुसार ग्रेडिंग कर पैकिंग लें. इस से बाजार मूल्य अच्छा मिलता है. तुड़ाई के पश्चात जल्द से जल्द मशरूम को बाजार में पहुंचाने का बंदोबस्त करें. बागों की निराईगुड़ाई और सफाई का काम करें.

आम के नवरोपित व अमरूद, पपीता और लीची के बागों की सिंचाई करें. जनवरी महीने में आंवला के बाग में गुड़ाई करें और थाले बनाएं. आंवला के एक साल के पौधे के लिए 10 किलोग्राम गोबर या कंपोस्ट खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फेट व 75 ग्राम पोटाश देना आवश्यक होता है. 10 साल या उस से ऊपर के पौधे में यह मात्रा बढ़ा कर 100 किलोग्राम गोबर या कंपोस्ट खाद, 1 किलोग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फेट व 750 ग्राम पोटाश देनी चाहिए. गुलाब के फूलों की खेती में समयसमय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई करें. जरूरत पड़ने पर बंडिंग व इस के जमीन में लगाने का काम कर लें. जनवरी महीने में अधिक सर्दी पड़ती है, इसलिए पशु सुस्त व थकान सी महसूस करता है. ऐसे में सामान्य से नीचे तापमान जाने पर पशुपालकों को उन के खानपान व रखरखाव पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है, जिस से पशु के बीमार होने की संभावना कम हो जाती है. जनवरी महीने में पशुओं के नीचे सफाई का विशेष ध्यान रखें. ज्यादा देर तक उन्हें गीले में न बैठने दें.

धूप निकलने पर उन्हें शेड के अंदर से बाहर निकालें. रात में पशुओं को ठंडा पानी न पिलाएं. जनवरी महीने में अगर अत्यधिक ठंड पड़ रही हो, तो ऐसी दशा में पशुओं को नहलाएं नहीं, केवल उन की ब्रश से सफाई करें, जिस से पशुओं के शरीर से गोबर, मिट्टी आदि साफ हो जाए. सर्दियों के मौसम में पशुओं व छोटे बछड़ेबछियों को दिन में धूप के समय ही ताजा व कुनकुने पानी से नहलाएं. कई बार सर्दी में पशुओं को निमोनिया, इनफ्लुएंजा यानी नजला, निमोनाइटिस यानी फेफड़ों का संक्रमण व टाइफाइड हो जाने से पशु की मौत हो जाती है. सर्दी के मौसम में पशुओं के बच्चों का भी खास ध्यान रखें. उन्हें अधिक दूध पिलाने के साथसाथ कृमिनाशक दवा पिलानी चाहिए.

बीमारी का अंदेशा होने पर तुरंत पशु चिकित्सक के परामर्श के अनुसार उपचार दिलाएं. ठंड में पैदा होने वाले बछड़ेबछियों के शरीर को बोरी, पुआल आदि से रगड़ कर साफ करें, जिस से उन के शरीर को गरमी मिलती रहे और खून का संचार भी ठीक रहे. ठंड में बछड़ेबछियों को सफेद दस्त, निमोनिया आदि बीमारियों से बचाया जा सके. याद रहे, पशुघर को चारों तरफ से ढक कर रखने से अधिक नमी बनी रहती है, जिस से रोगजनक कीटाणु के बढ़ने की संभावना होती है. यह भी ध्यान रहे, छोटे बछड़ों के बाड़ों के अंदर का तापमान 7-8 डिगरी सैंटीग्रेड से कम न हो. यदि आवश्यक सम झें तो रात के समय इन शेडों में हीटर का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. बछड़ेबछियों को दिन के समय धूप में कुछ समय के लिए खुला छोड़ दें, ताकि वे दौड़भाग कर स्फूर्तिवान हो जाएं. नोट : कृषि यंत्रों के रखरखाव से जुड़ी जानकारी विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र, सुल्तानपुर के वैज्ञानिक कृषि अभियंत्रण इं. वरुण कुमार द्वारा सु झाए गए हैं.

ओमा: चित्रा और अर्नव गांव के किनारे क्यों रहना चाहते थे

लेखक-आरएस खरे

ओमा का यह नित्य का नियम बन गया था, जब दोपहर के 2 बजते ही वे घर के बाहर पड़ी आराम कुरसी पर आ कर बैठ जातीं. वजह, यह लीसा के आने के इंतजार का समय होता.

5 साल की लीसा किंडरगार्टन से छुट्टी होते ही पीठ पर स्कूल बैग लादे तेज कदमों से घर की ओर चल पड़ती. कुछ दूरी तक तो उस की सहेलियां साथसाथ चलतीं, फिर वे अपनेअपने घरों की ओर मुड़ जातीं.

लीसा का घर सब से आखिरी में आता. डेढ़ किलोमीटर चल कर आने में लीसा को एक या दो बार अपनी पानी की बोतल से 2-3 घूंट पानी पीना पड़ता. उस के पैरों की गति तब बढ़ जाती, जब उसे सौ मीटर दूर से अपना घर दिखाई देने लगता.

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तीनमंजिला वाले मकान के बीच वाले तल्ले में लीसा अपने पापा और मम्मा के साथ रहती है. नीचे वाले तल्ले में ओमा रहती हैं (जरमनी में ग्रैंड मदर को ओमा कहते हैं) और सब से ऊपर वाली मंजिल में रूबिया आंटी और मोहम्मद अंकल रहते हैं.

ओमा इस मकान की मालकिन की मां हैं. मकान मालकिन, जिन्हें सभी किराएदार ‘लैंड लेडी‘ कह कर संबोधित करते हैं, इस तीनमंजिला मकान से तीन घर छोड़ कर चैथे मकान में रहती हैं.

80 साल की ओमा यहां अकेली रहती हैं. जरमनी में 80 साल के वृद्ध महिलापुरुष उतने ही स्वस्थ दिखते हैं, जितने भारत में 60-65 के. वे अपने सभी काम खुद करती हैं. वैसे भी इस देश में घरेलू नौकर जैसी कोई व्यवस्था नहीं है.

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सूरज निकलने के पहले ओमा रोजाना उठती हैं और दिन की शुरुआत अपने बगीचे की साफसफाई से करती हैं. वे चुनचुन कर मुरझाई पत्तियों को पौधों से अलग करतीं, खुरपी से पौधों की जड़ों के आसपास की मिट्टी को उथलपुथल करतीं और अंत में एकएक पौधे को सींचतीं.

सुबह के 8 बजते ही वे अपनी साइकिल उठातीं और 2 किलोमीटर दूर बेकरी से ताजी ब्रेड और अंडे लातीं. इस देश में साइकिल 3 साल के छोटे से बच्चे से ले कर 90-95 साल तक के बुड्ढे सभी चलाते हैं.

साढ़े 11 बजे से साढ़े 12 बजे तक का दोपहर वाला समय उन का चर्च में प्रार्थना के लिए होता. चर्च से आ कर वे लंच लेतीं, फिर लीसा के आने के इंतजार में बाहर आ कर कुरसी पर बैठ जाती हैं.

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लीसा के पापा अर्नव और मम्मा चित्रा, 10 साल पहले जरमनी आए थे. उन्हें उन की भारतीय कंपनी की ओर से एक साल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में बेंगलुरु से वोल्डार्फ भेजा गया था, तब उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन के टैलेंट को देखते हुए जरमन कंपनी उन्हें यहीं रख लेगी.

चित्रा और अर्नव ने भी अन्य भारतीयों की तरह शहर में रहने के बजाय दूर गांव में रहना पसंद किया. इस की मुख्य वजह शहर की तुलना में गांव में आधे किराए में अच्छा मकान मिल जाना तो था ही, साथ ही साथ गांव का शांत और स्वच्छ पर्यावरण भी था.

वैसे यहां के गांव भी शहरों की तरह सर्वसुविधा संपन्न हैं. व्यवस्थित रूप से आकर्षक बसाहट, स्वच्छ सपाट चिकनी सड़कें ,चैबीसों घंटे शुद्ध ठंडा और गरम पानी, चारों तरफ हरियाली और उत्तम ड्रेनेज सिस्टम. कितनी भी तेज बारिश हो, ना तो कभी पानी भरेगा और ना ही कभी बिजली जाएगी.

हारेनबर्ग नाम के इस गांव में किंडरगार्टन के अतिरिक्त 8वीं जमात तक का स्कूल, छोटा सा अस्पताल, खेल का मैदान, जिम्नेजियम और 2 बड़े सुपर मार्केट हैं, जिस में जरूरत की सभी चीजें मिल जाती हैं.

हारेनबर्ग की दोनों दिशाओं में 10- 12 किलोमीटर की दूरी पर 2 छोटे शहर हैं, जहां अच्छा मार्केट, बड़ा अस्पताल, सैलून व पैट्रोल पंप हैं.

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चित्रा और अर्नव को अभी जरमन नागरिकता नहीं मिली है, पर लीसा को जन्म लेते ही यहां की नागरिकता मिल चुकी है. वजह, जिले के मेयर लीसा के लिए स्वयं उपहार ले कर बधाई देने घर आए थे. यहां की प्रथा है, जरमन शिशु के जन्म होने पर उस की नागरिकता संबंधी समस्त औपचारिकताएं तत्क्षण पूरी हो जाती हैं और उस जिले के मेयर को सूचित किया जाता है, फिर मेयर स्वयं उपहार के साथ शिशु से मिलने आते हैं.

लीसा के जन्म के समय ओमा और लैंड लेडी ने चित्रा की वैसी ही सेवा की थी, जैसी एक मां अपनी बेटी की गर्भावस्था के दौरान करती है.

इस देश में अगर किसी बाहरी व्यक्ति को किसी परेशानी का सामना करना होता है तो वह है, यहां की डाइश भाषा. सभी जरमन डाइश में ही बात करना पसंद करते हैं. चित्रा और अर्नव ने शुरुआती परेशानी के बाद जल्दी ही डाइश भाषा की कोचिंग लेनी शुरू कर दी थी. नतीजा रहा कि वे अब तीनों स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके हैं और डाइश बोलने लगे हैं. लीसा भी है तो अभी 5 साल की, पर वह डाइश, अंगरेजी और हिंदी तीनों भाषाएं अच्छी तरह से बोल लेती है.

किंडरगार्टन से लौट कर आने पर वह ओमा की टीचर बन जाती है और ओमा बन जाती हैं, किंडरगार्टन की स्टूडेंट. ओमा जानबूझ कर गलतियां करती हैं, ताकि लीसा से प्यारभरी डांट खा सकें.

ओमा के फ्रिज में वे सभी तरह की आइसक्रीम और जूस रखे होते हैं, जो लीसा को पसंद हैं.

किंडरगार्टन से लौटने पर लीसा जैसे ही घर के पास पहुंचने को होती, ओमा को बाहर इंतजार करते बैठे देख, मुसकराते हुए दौड़ लगाती और पीठ से बैग उतार कर ओमा की गोदी में फेंक, सीधे उन की रसोई में घुस जाती. फिर अपनी मनपसंद आइसक्रीम फ्रिज से निकाल कर डाइनिंग टेबल पर आ कर खाने बैठ जाती.

ओमा लीसा के आने के पहले ही डाइनिंग टेबल पर सारे व्यंजन सजा कर रख देती हैं. लीसा या तो आमलेट या अपनी पसंद का कोई अन्य आइटम खाती, फिर अपनी सहेलियों के बारे में ओमा को विस्तार से बताना शुरू कर देती. शाम 4 बजे तक लीसा की धमाचौकड़ी चलती, जब तक चित्रा औफिस से नहीं आ जाती. चित्रा की कार पोर्च में पार्क होते ही लीसा अपना बैग उठा कर अपने घर की सीढ़ियां चढ़ने लगती.

ओमा का यह समय आराम करने का होता. शाम को वे या तो घूमने निकलतीं या फिर अपने बगीचे में बैठ कर सामने खेल रहे बच्चों को निहारती रहती हैं. जब कभी लीसा की सहेलियां खेलने के लिए नहीं आतीं, तब लीसा के साथ उस के पापा अर्नव खेल रहे होते हैं.

ओमा को शायद खाली बैठना पसंद ही नहीं था. वे बगीचे में बैठीं या तो स्वेटर बुन रही होतीं या मोजे बना रही होतीं. उन्होंने लीसा के लिए अनेक रंगबिरंगे स्वेटर और मोजे बना कर चित्रा को दिए हैं.

चित्राअर्नव की शादी की सालगिरह पर उन्होंने क्रोशिया से खूबसूरत मेज कवर बना कर चित्रा को भेंट किया था. केक बनाने में तो वे माहिर हैं. सप्ताह में 2-3 दिन उन के बनाए हुए स्वादिष्ठ केक चित्रा और अर्नव को भी खाने को मिलते हैं. ओमा और लीसा की जुगलबंदी देख लैंड लेडी कहती हैं, जरूर इन दोनों का कोई पूर्व जन्म का रिश्ता रहा होगा. चित्रा को वे दिन कभी नहीं भूलते, जब 3 माह पहले अगस्त के महीने में लीसा बीमार पड़ी थी. इतना तेज बुखार था कि उस का पूरा बदन जल रहा था. तब ओमा चर्च में घंटों बैठे प्रार्थना करती रहती थीं.

एक दिन चर्च के फादर ने ओमा से उन के उदास होने की वजह पूछी थी और तब वे चर्च से पवित्र जल ले कर आई थीं. उस जल को, लीसा के माथे पर देर तक वे लगाती रही थीं. दवा और दुआ दोनों ने अपना काम किया था और अगले दिन लीसा ठीक हो चली थी.

नवंबर माह के तीसरे सप्ताह में, इस बार यहां का तापमान माइनस में पहुंचने लगा था. बर्फबारी भी शुरू हो गई थी. औरों की तरह चित्रा और अर्नव ने भी अपनीअपनी कारों के समर टायर बदलवा कर विंटर टायर लगवा लिए थे.

यूरोपियन देशों में बर्फ गिरने के पहले टायर बदलना अनिवार्य होता है. सर्दियों के लिए अलग टायर होते हैं, जो बर्फ पर फिसलन रोकते हैं.

ओमा ने अभी से क्रिसमस की तैयारियां शुरू कर दी थीं. इस बार उन्होंने लीसा के लिए कुछ सरप्राइज सोच रखा था. क्रिसमस पर पूरा हारेनबर्ग सज कर तैयार हो जाता है, ठीक उसी तरह जैसे दीवाली पर भारत के शहर सज जाते हैं.

लीसा भी क्रिसमस को ले कर बेहद उत्साहित है. किंडरगार्टन के सारे बच्चे अब क्रिसमस की ही बातें करते हैं. अर्नव और चित्रा अगले रविवार को क्रिसमस मेला देखने जाने की योजना बना ही रहे थे, तभी चित्रा के पास मां का फोन आया. भाई की शादी की खुशखबरी थी. मां ने बड़े प्यार से आग्रह किया था कि यदि वे लोग जल्दी पहुंच सकें तो सभी तैयारियों में बड़ी मदद मिल जाएगी.

चित्रा और अर्नव ने देर तक सलाहमशवरा उपरांत भारत यात्रा को अंतिम रूप दिया. एक माह की यात्रा में 15 दिन चित्रा को मां के पास भोपाल में रहना था और बाकी के 15 दिन ससुराल में.

लीसा उदास थी, क्योंकि उस का क्रिसमस सेलिब्रेशन छूट रहा था. ओमा भी निरुत्साहित हो गईं, उन की प्रिय लीसा एक माह के लिए उन से दूर जा रही थी.

भोपाल पहुंच कर चित्रा भाई की शादी की तैयारियों में जीजान से लग गई.

जलवायु परिवर्तन का सब से अधिक असर बच्चों पर पड़ता है, उन्हें नई जगह के वातावरण से सामंजस्य बनाने में समय लगता है. लीसा को अगले सप्ताह ही सर्दीजुकाम के साथ बुखार आ गया. जरमनी में होते तो वहां डाक्टर बच्चों को तुरंत कोई दवा नहीं देते, 3 दिन तक इंतजार करने को कहते हैं. बुखार ज्यादा बढे़, तो ठंडे पानी की पट्टी रखने को कहते हैं. पर यहां उस की नानी परेशान हो उठीं.

चित्रा ने मां को आश्वस्त किया. चित्रा अपने साथ पेरासिटामोल दवा ले कर आई थी, किंतु अर्नव ने एक दिन और इंतजार करने को कहा. चित्रा की मां का देसी उपचार में विश्वास था, सो वे काढ़ा बना कर ले आईं. लीसा ने किसी तरह एक घूंट गटका, फिर उसे और पिलाना मुश्किल हो गया.

देर रात लीसा सपने में जोर से चीखी, फिर बैठ कर रोने लगी. चित्रा और अर्नव भी उठ कर बैठ गए.

चित्रा ने जब लीसा को सीने से लगाते हुए प्यार किया, तब उस का सिसकना बंद हुआ. लीसा पसीने से भीगी हुई थी, पर उस का बुखार उतर चुका था. कुछ देर बाद चित्रा ने लीसा से प्यार से पूछा, ‘‘लीसा, तुम कोई सपना देख रही थी? सपने में ऐसा क्या देखा कि इतनी जोर से चीखी?‘‘

‘‘मैं और ओमा जंगल में जा रहे थे, तभी एक टाइगर आ गया. टाइगर मेरे ऊपर झपटा, तो मुझे बचाने के लिए बीच में ओमा आ गईं. तभी टाइगर उन का एक हाथ मुंह में दबा कर ले गया और उन के कटे हुए हाथ से खून बह रहा था.‘‘

‘‘तुम ने कल टाइगर वाला कोई टीवी सीरियल देखा था क्या?‘‘

‘‘हां, पर उस में दो टाइगर आपस में फाइट कर रहे थे.‘‘

‘‘चलो, कोई बात नहीं, सपना था. ओमा बिलकुल ठीक हैं, कल वीडियो काल पर तुम्हारी बात भी करा देंगे. मैं दूसरे कपड़े लाती हूं, इन्हें बदल देते हैं, पसीने से भीग गए हैं.‘‘

अगले दिन लीसा ने जिद पकड़ ली कि उसे ओमा से बात करनी है. चित्रा ने ओमा को कई बार फोन लगाया, पर हर बार उन का मोबाइल स्विच औफ बता रहा था. अर्नव ने चित्रा से कहा, ‘‘मैं मोहम्मद को फोन लगाता हूं, वह नीचे जा कर ओमा से बात करा देगा.‘‘

मोहम्मद ने फोन पर बताया कि वह अपने देश तुर्की आया हुआ है और उसे ओमा के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

चित्रा ने कहा, ‘‘मैं लैंड लेडी को फोन लगाती हूं. हो सकता है, ओमा अपनी बेटी के यहां गई हों.‘‘

लैंड लेडी ने जो बताया, उस से चित्रा की चीख निकल गई.

‘‘चित्रा बड़ी दुखद सूचना है, ओमा हाइडलबर्ग के सिटी अस्पताल में एडमिट हैं. 2 दिन पहले रात में उन्होंने कोई सपना देखा था कि लीसा दरवाजे पर खड़ी उन्हें आवाज दे रही है. वे हड़बड़ा कर उठीं तो लड़खड़ा कर गिर पड़ीं. उन का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया है. आवाज भी साफ नहीं निकल रही है. लीसा को बारबार याद कर रही हैं. डाक्टर ने बोला है, ठीक हो जाएंगी, पर कुछ माह लगेंगे.‘‘

चित्रा ने लीसा को सिर्फ यही बताया कि ओमा अभी वीडियो काल पर नहीं आ सकतीं, उन की तबीयत ठीक नहीं है, डाक्टर ने आराम करने को कहा है.
×××
एक माह बाद जब चित्रा और अर्नव लीसा के साथ वापस जरमनी पहुंचे, तो लीसा ओमा से मिलने की खुशियों भरी कल्पना में डूबी हुई थी. फ्रैंकफर्ट हवाईअड्डे से बाहर निकल कर कार में बैठते ही उसे लग रहा था कि काश, कुछ ऐसा हो जाए कि उस की कार उड़ कर ओमा के पास पहुंच जाए.

उधर, ओमा की दुनिया तो पूरी तरह उलटपुलट हो चुकी थी. कभी खाली ना बैठने वाली ओमा अब व्हीलचेयर पर गुमसुम सी बैठी रहतीं. उन के साथ अब चौबीसों घंटे केयरटेकर रोमानियन महिला डोरोथी रहती.

डोरोथी ओमा के सारे काम करती. उन्हें उठानेबिठाने से ले कर खाना खिलाने, सुलाने तक के. एक प्रकार से ओमा अब डोरोथी पर ही पूरी तरह से निर्भर थीं.

चित्रा के कार से उतरने के पहले ही लीसा दौड़ कर ओमा के बंद दरवाजे को खटखटा रही थी. डोरोथी ने जब दरवाजा खोला, तो लीसा उसे देख कर वहीं ठिठक गई. तब तक चित्रा ने वहां पहुंच कर डोरोथी को पूरी बात समझाई.

अंदर बिस्तर पर लेटी ओमा को देख लीसा मुसकुराई तो उन्हें ऐसा आभास हुआ कि स्वयं ‘जीसस‘ आ कर सामने खड़े हो गए हैं. उन के मुंह से अस्पष्ट सी आवाज निकली, ‘‘यीशु…‘‘ और आंखों से आंसू बह चले.

चित्रा ने अपनी हथेली से उन के आंसू पोंछे और लीसा का हाथ उन के हाथ में पकड़ा दिया.

नया सवेरा-भाग 1: घर की बड़ी बहू सभी को गंवार क्यों समझती थी

बड़े भाईसाहब की रोजरोज देर से घर आने की आदत आखिर पिताजी से छिपी न रह सकी. बड़ी भाभी ने उन्हें बचाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, किंतु छोटी भाभी के कारण आखिर यह बात उन तक पहुंच ही गई. बड़ी भाभी बंबई में पलीबढ़ी थीं. खातेपीते अच्छे परिवार से आई थीं. ऐसा नहीं था कि हम लोग उन के मुकाबले कम थे. पिताजी बैंक में मैनेजर थे. मां जरूर कम पढ़ीलिखी थीं किंतु समझदार थीं.

बड़ी भाभी बंबई से आई थीं, शायद इसी कारण हम सभी को गंवार समझती थीं क्योंकि हम जौनपुर जैसे छोटे शहर में रहते थे. हां, भैया को वे जरूर आधुनिक समझती थीं. कारण, घर के बड़े बेटे होने के नाते उन का लालनपालन बड़े लाड़प्यार से हुआ था. कौन्वैंट में पढ़ने के कारण धाराप्रवाह अंगरेजी बोल लेते थे. सुबह से ही बड़ी भाभी का बड़बड़ाना चालू था, ‘जाने क्या समझते हैं सब अपनेआप को. आखिर हैं तो जौनपुर जैसे छोटे शहर के…रहेंगे गंवार के गंवार. किसी को आगे बढ़ते देख ही नहीं सकते. हमारे बंबई में देखो, रातरात भर लोग बाहर रहते हैं किंतु कोई हंगामा नहीं होता.’

छोटी भाभी सिर झुकाए आटा गूंधती रहीं जैसे कुछ सुनाई न दे रहा हो. मुझे कालेज जाने में देर हो रही थी. हिम्मत कर के रसोई में पहुंची. धीमी आवाज में बोली, ‘‘भाभी, मेरा टिफिन.’’

‘‘लो आ गई…कालेज में पहुंच गई, किंतु अभी तक प्राइमरी के बच्चों की तरह बैग में टिफिन डाल कर जाएगी. एक हमारे यहां बंबई में सिर्फ एक कौपी उठाई, पैसे लिए और बस भाग चले.’’ वहां रुक कर और सुनने की हिम्मत नहीं हुई. सोचने लगी, ‘आखिर भाभी को हो क्या गया है, आज से पहले उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा.’

जैसे ही भोजनकक्ष में गई, छोटे भैया की आवाज सुन कर पैर रुक गए.

‘‘आखिर आप करते क्या हैं बाहर आधी रात तक? हम सभी की नींद खराब करते हैं…’’

पिताजी बीच में ही बोल पड़े, ‘‘बेटे, आखिर ऐसी कौन सी कमाई करते हो जिस के कारण तुम्हें आधीआधी रात तक बाहर रहना पड़ता है? तुम्हारा दफ्तर तो 5 बजे तक बंद हो जाता है न?’’

‘‘पिताजी, दफ्तर के बाद कभी मीटिंग होती है, बड़ेबड़े लोगों के साथ उठनाबैठना पड़ता है. आगे बढ़ने के लिए आखिर उन के तौरतरीके भी तो सीखने पड़ते हैं,’’ बड़े भैया ने अत्यंत धीमी आवाज में कहा.

पिताजी के सामने किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी तेज आवाज में बोलने की. वे न ऊंचा बोलते थे और न ही उन्हें ऊंची आवाज पसंद थी. वे बड़े भैया को हिदायत दे कर छड़ी संभालते हुए बाहर निकल गए. किंतु मां से नहीं रहा गया, उन्होंने बड़े भैया को डांटते हुए कहा, ‘‘तुझ को पिताजी से झूठ बोलते शर्म नहीं आती. आगे बढ़ने की इतनी ही फिक्र थी तो 3-3 ट्यूशनों के बावजूद तुम कभी प्रथम क्यों नहीं आए? मन लगा कर पढ़ा होता तो यह नाटक करने की जरूरत ही न पड़ती. हम सब को पाठ पढ़ाने चले हो. रात 12 बजे कौन सी शिक्षा लेते हो, जरा मैं भी तो सुनूं.’’

‘‘मां, तुम क्या जानो दफ्तर की बातें. तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आएगा. तुम तो बस आराम करो और छोटे, तू अपने काम से काम रख,’’ बड़े भैया ने छोटे भैया की तरफ घूर कर कहा.

तभी पीठ पर किसी का स्पर्श पा मैं पीछे पलटी. बड़ी भाभी टिफिन लिए खड़ी थीं. कंधे पर हाथ रख प्यार से बोलीं, ‘‘मेरे कहे का बुरा मत मानना, बीनू, पता नहीं मुझे क्या हो गया था.’’

मैं ने मुसकराते हुए टिफिन लिया और बिना कुछ कहे बाहर चली गई.

करीब 10-12 दिनों तक सब ठीक चलता रहा. बड़े भैया भी समय से घर आ जाते थे. मां, पिताजी तो पहले खा कर सोने चले जाते. बाद में हम सभी साथ खाना खाते. इकट्ठे खाना खाते बड़ा अच्छा लगता. दोनों भाभियों में भी पहले की तरह बात होने लगी थी. अचानक एक रात ‘खटखट’ की आवाज से नींद खुल गई. मन आशंका से कांप गया. बगल का कमरा बड़े भैया का था. हिम्मत कर के मैं उठी. सोचा, उन्हें उठा दूं. कुंडी खोलतेखोलते किसी की आवाज सुन अचानक हाथ रुक गया. ध्यान से सुनने पर पता चला कि यह बड़े भैया की आवाज है. वे भाभी से कह रहे थे, ‘‘दरवाजा बंद कर के सो जाओ. जल्दी लौट आऊंगा.’’

घड़ी की तरफ देखा, साढ़े 11 बज रहे थे. आखिर क्या बात है? इतनी रात गए भैया क्यों बाहर जा रहे हैं? कहीं किसी की तबीयत तो नहीं खराब हो गई? किंतु आवाज तो बस बड़े भैया, भाभी की ही थी. सोचा, जा कर भाभी से पूछूं, किंतु हिम्मत न हुई.इसी उधेड़बुन में नींद गायब हो गई. काफी कोशिश के बाद जब हलकी नींद आई ही थी कि ‘खटपट’ सुन कर आंख फिर खुल गई. शायद भैया आ गए थे. घड़ी देखी, 3 बज रहे थे. भैया ने बाहर जाना छोड़ा नहीं था. सब की आंखों में धूल झोंकने के लिए यह चाल चली थी. उन की इस चाल में भाभी भी शरीक थीं.

रात को आनेजाने का सिलसिला करीब रोज ही चलता था. एक रात दरवाजे पर होती लगातार दस्तक से मेरी नींद उचट गई. भाभी को शायद गहरी नींद आ गई थी. मैं जल्दी से उठी क्योंकि नहीं चाहती थी कि मांजी उठ जाएं और पिताजी तक बात पहुंचे. जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, बदबू का एक झोंका अंदर तक हिला गया. भैया ने शायद ज्यादा पी ली थी. अंदर आते ही बोले, ‘‘क्यों जानू, आज इतनी…’’ तभी मेरी तरफ नजर पड़ते ही खामोश हो गए.

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