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शिकस्त-भाग 2: शाफिया-रेहान के रिश्ते में दरार क्यों आने लगी

जिंदगी ठीक गुजर रही थी. मैं ने खुद को रेहान के हिसाब से ढाल लिया था. एक दिन सासुमां को घबराहट होने लगी, बेचैनी भी थी. उन्हें अस्पताल ले गई. दिल का दौरा पड़ा था. 2 दिनों तक ही इलाज चला, तीसरे दिन वे दुनिया छोड़ गईं.

सासुमां ने हमेशा मेरा बेटी की तरह खयाल रखा. मेरे बच्चों को वे बेहद प्यार करती थीं.

रेहान को भी मां की मौत का बड़ा शौक लगा. काफी चुप से हो गए. हर गम वक्त के साथ भरने लगता है. हम लोग भी धीरेधीरे संभलने लगे. हालात बेहतर होने लगे कि मेरे पापामम्मी का अचानक एक कार ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. मैं रोतीबिलखती घर पहुंची. सारे रिश्तेदार जमा हुए. 10 दिन रह कर सब चले गए. रेहान की भी जौब थी, वे भी चले गए.

अब घर में मैं, बूआ और 15 साल की आबिया रह गए. कुछ समझ में नहीं आता था क्या करूं. रिश्ते के मेरे एक चाचा, जो पड़ोस में रहते थे, ने मुझे समझाया, ‘देखो बेटी, तुम जवान बहन को किसी के सहारे नहीं छोड़ सकतीं. तुम्हारी बूआ या मामा, किसी की भी आबिया की जिम्मेदारी लेने की मंशा नहीं है. उसे अकेले छोड़ा नहीं जा सकता, सो, तुम आबिया को अपने साथ ले जाओ. मैं तुम्हारा घर बेचने की कोशिश करता हूं. पैसे आधेआधे तुम दोनों के नाम पर जमा करा देंगे.’ मुझे उन की बात ठीक लगी. मैं ने रेहान को बताया और आबिया को ले कर घर आ गई. बूआ को एक अच्छा अमाउंट दिया, उन्होंने बहुत साथ दिया था.

वक्त बड़े से बड़े गम का मरहम है. मैं ने आबी का ऐडमिशन अच्छे स्कूल में करवा दिया. वैसे, पढ़ाई में उस का ज्यादा ध्यान नहीं लगता था. टीवी, फिल्म और फैशन उस के खास शौक थे. बचपन में मैं ने लाड़प्यार में बिगाड़ा था. फिर मम्मी भी उस की नजाकत व हुस्न देख कर उसे कुछ काम न करने देती थीं.

आबी के मेरे घर आने के बाद उस की जिम्मेदारी भी मेरे सिर पड़ गई. कहां तो मैं सोच रही थी कि आबी के आने से मेरा काम कुछ हलका हो जाएगा, यहां तो उलटा हुआ. उस के काम भी मुझे करने पड़ते. असद और शीरी के साथसाथ आबी की पढ़ाई, स्कूल की तैयारी में मैं बेहद थक जाती. कभी आबी को कुछ काम करने के लिए डांटती तो रेहान उस का पक्ष लेने लगते, ‘इतनी नाजुक सी गुडि़या है, थक जाएगी. उस के हाथ खराब हो जाएंगे.’ मैं हमेशा की तरह खामोश हो जाती और अपने काम में लग जाती.

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. आबिया अब कालेज में आ गई, बेइंतहा हसीन, स्मार्ट और फैशनेबल.

एक सुबह मेरे लिए बड़ी खूबसूरत साबित हुई, अचानक मेरी दोस्त सोहा आ गई. वह कालेज में लैक्चरार थी. एक सैमिनार में शिरकत करने यहां आई थी. वह पूरा एक हफ्ता यहां रुकने वाली थी. उस दिन इतवार था, सोहा ने आते ही ऐलान कर दिया, ‘आज मैं और शाफिया सिर्फ बातें करेंगे, घर का सारा काम आबिया, रेहान और असद करेंगे.’ सब ने बात मान ली.

हम दोनों ऊपर के कमरे में आ गए और बातों में मगन हो गए. सोहा एक हफ्ता रही. वह रोज सुबह किचन में मेरी मदद करवाती. जाते वक्त बड़ी उदास थी, तनहाई में मुझे गले लगा कर बोली, ‘शाफिया, तुम बहुत सीधी और मासूम हो. हर कोई तुम्हारे जैसा फेयर नहीं होता.’

मैं नासमझी से उसे देखने लगी. उस ने धीरे से कहा, ‘पता नहीं क्यों तुम्हें महसूस नहीं हुआ वरना एक औरत की छठी इंद्रिय इन सब बातों से बड़ी जल्दी आगाह हो जाती है. शायद आबिया तुम्हारी बहन है, इसलिए तुम सोच नहीं सकीं. मुझे आबिया और रेहान के बीच कुछ गलत लगता है. घर में शाम से ले कर रात तक का वक्त दोनों साथ बिताते हैं. वे हंसते हैं, बतियाते हैं, शरारतें करते हैं और तुम किचन में घुसी, मसाले और पसीने में गंधाती, अच्छाअच्छा पका कर उन की खातिर करती रहती हो. वह एक बार भी उठ कर किचन में नहीं झांकती. पूरे वक्त रेहान के साथ, कभी उस के गले में झूल जाती है, कभी कंधे पर सिर रख कर बैठ जाती है. वह कोई बच्ची नहीं है, 18-19 साल की जवान लड़की है.

‘शाफिया, मैं ने उन दोनों की आंखों में मोहब्बत के शोले चमकते देखे हैं. रेहान घर में घुसते ही आबिया को आवाज देता है. तुम्हें खाना पकाने में मसरूफ कर वे दोनों बच्चों को ले कर कभी गार्डन चल देते हैं, कभी पिक्चर चले जाते हैं. तुम जरा याद करो, तुम कब रेहान के साथ घूमने गईर् थीं?’

सोहा की बातें सुन कर मेरे हाथपांव ठंडे पड़ गए. ऐसा लगा जैसे दिल गम की गहराइयों में उतर रहा है. मैं ने ध्यान से सोचा तो मुझे सोहा की बातों में सचाई नजर आने लगी. अब मुझे याद आ रहा था कैसे दोनों मुझे नजअंदाज करते थे. खानों की तारीफें कर के मुझे किचन में बिजी रखते और आबी और रेहान खूब मस्ती करते. दिखाने को बच्चों को शामिल कर लेते. बच्चों को भी अपने मजे व स्वार्थ की खातिर जिद्दी और मूडी बना दिया था. जब देखो तब टीवी, घूमनाफिरना और नएनए खानों की फरमाइशें. और मैं बेवकूफों की तरह उन की फरमाइशें पूरी करती रहती. मेरी आंखों से आबी के लिए अंधी मोहब्बत की पट्टी उतर रही थी. दिल में अजब सी तकलीफ होने लगी, समझ में नहीं आया किस से गिला करूं.

सोहा ने मुझे रोने दिया. जब जरा संभली तो उस ने पीठ सहलाते हुए कहा, ‘शाफी, इस के लिए तुम भी जिम्मेदार हो. तुम्हें आबी को इतनी छूट देनी ही नहीं चाहिए थी. तुम ने अपना हाल क्या बना रखा है. तुम्हारे खूबसूरत व चमकीले बाल कितने बेरंग और रूखे हो रहे हैं. स्किन देखो कैसी रफ हो रही है. तुम ने अपनेआप को काम और किचन में झोंक दिया. तुम्हारे पास अपने लिए एक घंटा भी नहीं है जो कभी ब्यूटीपार्लर जाओ या खुद को संवारो.’

मुझे अपनी लापरवाही और नादानी पर गुस्सा आ रहा था पर मैं कैसे अपनी बेटी जैसी बहन पर शक कर सकती थी? पर अब आंखें नहीं बंद की जा सकती थीं.

सोहा ने कहा, ‘शाफी, तुम पढ़ीलिखी हो, हिम्मत करो, बाहर निकलो और मामले की तहकीकात करो. अभी तक तुम भी मोहब्बत व यकीन के सहर में डूबी हुई थीं. उस से बाहर निकलो और देखो, दुनिया कितनी जालिम है. एक छोटी बहन अपनी मां जैसी बहन का घर उजाड़ सकती है. और रोने की जरूरत नहीं है ऐसे बेहिस लोगों पर. कीमती आंसू बहाने से कुछ हासिल न होगा. सचाई अगर वही है जो मैं कह रही हूं तो पूरे साहस और मजबूती से फैसला करो. अपनी इज्जत और अहं को मोहब्बत के पैरों तले कुचलने मत देना.’

जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं, तो उस समय मुझे अपने जननांग में काफी दर्द होता है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल
मैं 28 साल की विवाहित महिला हूं. लगभग 6 साल पहले मुझे सीजेरियन से बेटा हुआ था. अब जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं, तो उस समय मुझे अपने जननांग में काफी दर्द होता है जो शारीरिक संबंध बनाने के लंबे समय बाद तक मुझे परेशान करता रहता है. इस के पीछे क्या कारण हो सकता है? मुझे इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए क्या करना चाहिए?

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जवाब
आप ही की तरह और बहुत सी महिलाएं मां बनने के बाद कष्टपूर्ण सहवास की परेशानी से गुजरती हैं. ऐसी महिलाएं जिन की संतानें प्राकृतिक रूप से योनिमार्ग से जन्म लेती हैं और जिन में योनि का रास्ता चौड़ा करने के लिए डाक्टर प्रसव के समय ऐपीसिओरोमी का चीरा लगाते हैं, उन में 17 से 45% महिलाएं मां बनने के बाद इस पीड़ा से गुजरती हैं, जबकि सीजेरियन से मां बनने वाली 2 से 19% महिलाएं यह परेशानी बताती हैं.

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मतलब यह कि सीजेरियन के बाद कष्टपूर्ण सहवास की परेशानी कम देखी जाती है, लेकिन हो सकती है. इस के पीछे ठीकठीक कारण क्या है, इस पर मात्र अटकलें ही लगाई जा सकी हैं. समझा यह जाता है कि कुछ महिलाओं में सीजेरियन से गुजरने की मानसिक उद्वेलना आगे चल कर उन के मन में इतनी तीव्र दुश्चिंता पैदा कर देती है कि उन्हें सहवास से ही डर लगने लगता है. उन का अवचेतन यह सोचने लगता है कि कहीं फिर से गर्भवती हुईं तो फिर से सीजेरियन से गुजरना पड़ेगा और इसी मानसिक उद्वेलन में उन का मन सैक्स के प्रति नकारात्मक रवैया बना लेता है.

दूसरे मनोवैज्ञानिक कारण भी परेशानी दे सकते हैं. हाल ही में मां बनी महिला को यदि रात में पूरी नींद न मिले, ठीक से आराम न मिल पाए, उचित पोषण न मिले, आमोदप्रमोद का समय और अवसर न मिले तथा उस का मन पति के साथ सहवास को न करे तो यह मनोस्थिति पैदा होनी स्वाभाविक है.

सीजेरियन के बाद टांकों में यदि मवाद पड़ जाए तो बाद में उन के भरने के बाद भी सतही टिशू में आए दुष्परिवर्तनों में महिला दर्द महसूस कर सकती है. कुछ महिलाओं में समस्या हारमोनल भी होती है. ऐस्ट्रोजन हारमोन की कमी होने से योनि की प्राकृतिक स्निग्धता घट जाती है. नतीजतन सहवास कष्टपूर्ण हो जाता है.

कुछ शारीरिक समस्याएं जैसे योनिद्वार में आई सूजन, मूत्रनली में आई सूजन, उस पर उपजी मांस की गांठ, योनिद्वार से सटी बार्थोलिन ग्लैंड में आई सूजन या गुदाद्वार में फिशर बनने पर भी सहवास क्रीड़ा के समय कष्ट होना स्वाभाविक है. इसी तरह गर्भाशयग्रीवा की सूजन और ऐंडोमिट्रिओसिस जैसे रोग भी परेशानी दे सकते हैं.

फिर समस्या यह भी है कि एक बार शुरू में दर्द उठने पर आगे मन में शारीरिक मिलन को ले कर दुश्चिंताएं अपने से बलवती हो उठती हैं. मात्र स्पर्श से ही श्रोणि प्रदेश की पेशियां संकुचित हो उठती हैं, योनि संकुचित हो जाती है और सहवास कठिन हो जाता है. समस्या के एक बार शुरू होने पर आगे प्राय: एक चक्रव्यूह सा बन जाता है. जबजब पतिपत्नी मिलन में बंधना चाहते हैं, पत्नी पीड़ा से भर उठती है.

उचित यही होगा कि पहले आप किसी योग्य स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिल कर अपनी अंदरूनी जांच करा लें. बहुत संभव है कि इसी से समस्या का मूल कारण स्पष्ट हो जाए और आप समस्या का उपयुक्त उपचार ले कर उस से उबर जाएं.

यदि अंदर कोई विकार नहीं मिलता तो वाजिब यह होगा कि आप और आप के पति दोनों दांपत्य मनोविज्ञान में निपुण किसी विशेषज्ञ की सलाह लें. आपस में प्रेम का सेतु रहे, तो सभी परेशानियां देरसबेर दूर हो जाती हैं. सहवास से पहले प्रणय क्रीड़ा में समय देना भी लाभ दे सकता है. उस से योनि की प्राकृतिक स्निग्धता बढ़ जाती है, जिस से सहवास आसान हो जाता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

शिकस्त-भाग 1: शाफिया-रेहान के रिश्ते में दरार क्यों आने लगी

अपनों के हाथों छले जाने का गम व्यक्ति को ताउम्र दर्द देता है. शफिया मोहब्बत व यकीन के सहर में डूबी हुई थी, इसलिए शायद सचाई देख नहीं पाई. लेकिन, अपनी इज्जत और अहं को उस ने मोहब्बत के पैरों तले कुचलने नहीं दिया.

ट्रेन के एयरकंडीशंड कोच में मैं ने मुंह धो कर सिर उठाया. बेसिन पर  लगे आईने में एक चेहरा और नजर आया जो कभी मेरा बहुत अपना था. बहुत प्यारा था. आज वक्त की दूरी बीच में बाधक थी. एक पल में मैं ने सोच लिया था कि मुझे क्या करना है. ब्रश उठा टौवल से मुंह पोंछते हुए अजनबियों की तरह उस के करीब से गुजरते हुए अपनी सीट पर आ कर बैठ गई. नाश्ता आ चुका था.

मैं ने ट्रे सामने रख कर नाश्ता करना शुरू कर दिया. कान उस की तरफ लगे हुए थे पर मिलने की या देखने की ख्वाहिश न थी.

कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ कि वह मेरी सीट के करीब रुकी है, मुझे देख रही है. मैं ने उचटती सी नजर उस पर डाली. उस के चेहरे पर उम्र की लकीरें, एक अजब सी थकन, सबकुछ हार जाने का गम साफ नजर आ रहा था. मैं नाश्ता करती रही. कुछ लमहे वह खड़ी रही, फिर अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

मैं ने चाय पी कर अधूरा नौवेल निकाला और खिड़की से टेक लगा कर पढ़ना शुरू कर दिया. पर किताब के शब्द गायब हो रहे थे. उन की जगह यादों की परछाइयां हाथ थामे खड़ी थीं. मेरा अतीत किसी जिद्दी बच्चे की तरह मेरी उंगली खींच रहा था, ‘चलो एक बार फिर वही हसीन लमहे जी लें,’ और न चाहते हुए भी मेरे कदम जानीपहचानी डगर पर चल पड़े…

हम 2 ही बहनें थीं. मैं बड़ी और मुझ से 12 साल छोटी आबिया. मम्मीपापा ने बड़े प्यार से हमारी परवरिश की थी. बेटा न होने का उन्हें कोई गम न था. मेरी पढ़ाई की हर जरूरत पूरी करना उन दोनों की खुशी थी. पढ़ने में मैं काफी अच्छी थी. शहर के मशहूर कौन्वैंट में पढ़ रही थी. जब मैं 8वीं में थी तो आबिया का जन्म हुआ था. उस की पैदाइश के बाद से मम्मी की कमर और घुटने में दर्द रहने लगा. धीरेधीरे आबी की सारी जिम्मेदारियां मुझ पर आती गईं.

वक्त हंसीखुशी गुजर रहा था. सोहा, जो पड़ोस में रहती थी, से मेरी खूब बनती थी. वह मेरी दोस्त थी. कभी मैं उस के घर पढ़ने चली जाती, कभी वह मेरे घर आ जाती. हम दोनों साथ पढ़ते और आबी को भी साथ रखते. वह सोहा से भी खूब घुलीमिली हुई थी.

दिन गुजरते रहे. मैं ने और सोहा ने फर्स्ट क्लास से बीएससी पास कर लिया. मम्मी का इरादा पोस्टग्रेजुएशन कराने का नहीं था क्योंकि उस की पढ़ाई के लिए बहुत दूर जाना पड़ता. सोहा के कहने पर मैं ने उस के साथ बीएड कोर्स जौइन कर लिया.

बीएड का रिजल्ट अभी आया भी नहीं था कि मेरे लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता आ गया. लड़का एक अच्छी मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता था. पापा के दोस्त का लड़का था. खानदान अच्छा था, देखेभाले लोग थे. रेहान ने किसी शादी में मुझे देख कर वहीं पर पसंद कर लिया था. इकलौता बेटा, पढ़ालिखा खानदान, इसलिए ज्यादा पूछपरख की जरूरत न थी.

पहला रिश्ता ही अच्छा आ जाए तो इनकार करना अच्छा नहीं माना जाता. सो, शादी की तैयारी शुरू हो गई. एमएससी करने की ख्वाहिश शादी की चमकदमक में कहीं नीचे दब गई.

मेरी विदाई के वक्त 7 वर्षीया आबिया का रोना मुझ से देखा नहीं जा रहा था क्योंकि वह मुझ से इतनी घुलीमिली थी कि उस की जुदाई के खयाल से मैं खुद रो पड़ती थी. सोहा ने उस का खूब खयाल रखने का वादा किया.

भीगी आंखों के साथ विदा हो कर मैं ससुराल आ गई. मेरी सास थीं, ससुर का देहांत कुछ महीने पहले ही हुआ था. रेहान का घर बहुत शानदार था. सास का मिजाज भी बहुत अच्छा था. वे खानेपीने की खूब शौकीन थीं. अच्छे खाने का शौक रेहान को भी था.

मम्मी की बीमारी की वजह से काफी छोटी उम्र में ही मैं किचन के काम करने में लग गई थी, इसलिए खाना बनाने में ऐक्सपर्ट हो चुकी थी. मेरी शादी के बाद मम्मी ने फुलटाइम कामवाली रख ली थी, जो खाना भी पकाती थी और आबिया के काम भी करती थी.

शादी के बाद 3-4 महीने तो जैसे पंख लगा कर उड़ गए, घूमनाफिरना, दावतें आदि. फिर जिंदगी अपने रूटीन पर आ गई. मेरी सास यों तो बहुत अच्छी थीं पर घर के कामों में उन की कोई दिलचस्पी न थी. कभीकभार कुछ मदद कर देतीं वरना उन का ज्यादा वक्त टीवी देखने और किताबें पढ़ने में गुजरता. मुझे कोई मलाल न था, मुझे काम करने की आदत थी. ऊपर का काम करने के लिए एक कामवाली भी थी.

शादी के 2 वर्षों बाद बेटा हो गया. घर में खुशी के संगीत बज उठे. मेरा भी खूब खयाल किया जाता. बेटे का नाम असद रखा गया. असद के आने के बाद मेरा मायके जाना काफी कम हो गया. छोटे बच्चे के साथसाथ घर का काम और मसरूफियत बढ़ती जा रही थी. वैसे, असद को तैयार कर के मैं सासुमां को थमा देती और सारे काम संभाल लेती थी.

असद 3 साल का था कि शीरी पैदा हो गई. अब तो जैसे मैं घनचक्कर बन गई. 2 बच्चे संभालना, घर का काम करना मुश्किल होने लगा. रेहान ने मेरी परेशानी देख कर एक कुक का इंतजाम कर दिया. जैसेतैसे 3-4 महीने सब ने

उस के हाथ का खाना बरदाश्त किया. फिर उसे हटा दिया. सास ने बच्चों की जिम्मेदारी ले ली, मैं ने किचन संभाल लिया.

रेहान मेरा बहुत खयाल रखते थे. जन्मदिन, एनिवर्सिरी सब याद रखते, बाकायदा तोहफे लाते, बाहर ले जाते. बस, घर के काम से बेहद जी चुराते. उन के औफिस जाने के बाद कमरे का हाल यों होता जैसे वहां घमासान हुआ हो. बिखरे कपड़े, जूते, टाइयां. जब कोई चीज नहीं मिलती तो अलमारी का सारा सामान बाहर आ जाता और मैं समेटतेसमेटते परेशान हो जाती. पर धीरेधीरे मैं इस की आदी हो गई. मगर इन सब के बीच मेरा वजूद, मेरे शौक, मेरी ख्वाहिशें सब पीछे छूट गईं. महीनों ब्यूटीपार्लर जाना न होता. कपड़े जो हाथ लग गए, पहन लिए. कुछ इंतजाम करने की मुझे फुरसत ही नहीं मिलती थी.

Crime Story: दोस्त के 12 टुकड़े

सुशील सरनाइक ने शराब के नशे में अपनी करीबी दोस्त सलोमी के साथ जो अमर्यादित हरकत, वह भी उस के पति के सामने की, बरदाश्त करने लायक नहीं थी. ऐसा ही हुआ भी. लेकिन अब सुशील की मां और बहन.

15दिसंबर, 2020. महाराष्ट्र की आर्थिक राजधानी थाणे से सटे जिला रायगढ़ के नेरल रेलवे स्टेशन (पूर्व) के पास से बहने वाले नाले पर सुबहसुबह काफी लोगों की अचानक भीड़ एकत्र हो गई. वजह यह थी कि गहरे नाले में 2 बड़ेबड़े सूटकेस पड़े होने की खबर थी. नए सूटकेस और उस में से उठने वाली दुर्गंध लोगों के लिए कौतूहल का विषय थी. निस्संदेह उन सूटकेसों में अवश्य कोई ऐसी चीज थी, जो संदिग्ध थी.

किसी व्यक्ति ने नाले में पड़े सूटकेसों की जानकारी जिला पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी वायरलैस द्वारा प्रसारित कर दी. इस से घटना की जानकारी जिले के सभी पुलिस थानों और अधिकारियों को मिल गई. चूंकि मामला नेरल पुलिस थाने के अंतर्गत आता था, इसलिए नेरल थानाप्रभारी तानाजी नारनवर ने सूचना के आधार पर थाने के ड्यूटी अफसर को मामले की डायरी तैयार कर घटनास्थल पर पहुंचने का आदेश दिया.

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ड्यूटी अफसर डायरी बना कर अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से करीब 15-20 मिनट की दूरी पर था, वह पुलिस वैन से जल्द ही वहां पहुंच गए. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस टीम ने पहले वहां पर इकट्ठा भीड़ को दूर हटाया और फिर वहां के 5 व्यक्तियों से नाले से उन दोनों सूटकेसों को बाहर निकलवाया. उन्हें खोल कर देखा गया तो भीड़ और पुलिस के होश उड़ गए. सूटकेसों में किसी व्यक्ति का 12 टुकड़ों में कटा शव भरा था, जो पूरी तरह सड़ गया था. शव का दाहिना हाथ गायब था जो काफी खोजबीन के बाद भी नहीं मिला.

यह वही नाला है, जहां बीब्लंट सैलून कंपनी की फाइनैंस मैनेजर कीर्ति व्यास का शव पाया गया था. (देखें मनोहर कहानियां जुलाई, 2018) मृतक की उम्र 30-31 साल के आसपास रही होगी. सांवला रंग, हृष्टपुष्ट शरीर. शक्लसूरत से वह किसी मध्यमवर्गीय परिवार का लग रहा था. नेरल पुलिस टीम अभी वहां एकत्र भीड़ से शव की शिनाख्त करवा ही रही थी कि एसपी अशोक दुधे, करजात एसडीपीओ अनिल घेर्डीकर, थानाप्रभारी तानाजी नारनवर, अलीबाग एलसीबी (लोकल क्राइम ब्रांच) और फोटोग्राफर के अलावा फिंगरप्रिंट ब्यूरो की टीमें भी आ गईं.

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फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट का काम खत्म हो जाने के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच की जिम्मेदारी करजात एसडीपीओ अनिल घेर्डीकर ने स्वयं संभाल ली. थानाप्रभारी तानाजी नारनवर को आवश्यक निर्देश दे कर घेर्डीकर अपने औफिस चले गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी तानाजी नारनवर ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल रायगढ़ भेज दिया. शिनाख्त न होने से पुलिस टीम समझ गई थी कि मृतक वहां का रहने वाला नहीं था. उस की हत्या कहीं और कर के शव को नाले में डाला गया था. ऐसी स्थिति में आगे की जांच काफी जटिल थी. लेकिन पुलिस टीम इस से निराश नहीं थी. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी हो जाने के बाद एसडीपीओ अनिल घेर्डीकर के निर्देशन में इस हत्याकांड के खुलासे के लिए एक अन्य टीम का गठन किया. उन्होंने नेरल थाने के अलावा कर्जत माथेरान और क्राइम ब्रांच के अफसरों और पुलिसकर्मियों को शामिल कर के मामले की समानांतर जांच का निर्देश दिया.

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उस इलाके का नहीं था मृतक

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर सभी ने अपनीअपनी जिम्मेदारियां संभाल लीं. अब मामले की जांच के लिए सब से जरूरी था मृतक की शिनाख्त, जो जांच टीम के लिए एक चुनौती थी. जैसा कि ऐसे मामलों में होता है, उसी तरह से पुलिस ने वायरलैस मैसेज शहर और जिले के सभी पुलिस थानों में भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि कहीं किसी थाने में उस व्यक्ति की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं करवाई गई है. लेकिन इस से उन्हें तत्काल कोई कामयाबी नहीं मिली.

अब जांच टीम के पास एक ही रास्ता बचा था बारीकी से जांच. घटनास्थल और वह दोनों सूटकेस जो घटनास्थल पर शवों के टुकड़ों से भरे मिले थे. जब उन सूटकेसों की दोबारा जांच की गई तो सूटकेसों में मिले स्टिकरों ने पुलिस टीम को उस दुकान तक पहुंचा दिया, जहां से वे खरीदे गए थे. पता चला 13 दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 10 बजे एक दंपति ने सूटकेस खरीदे थे. उस दुकानदार के बयान और उस की दुकान के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज और मुखबिरों के सहारे पुलिस टीम उस दंपति तक पहुंचने में कामयाब हो गई और फिर उन 12 टुकड़ों के रहस्य का मामला 24 घंटों में ही पूरी तरह सामने आ गया.
पुलिस गिरफ्त में आए अभियुक्त दंपति ने पूछताछ में अपना नाम चार्ल्स नाडर और सलोमी नाडर बताया. मृतक का नाम सुशील कुमार सरनाइक था जो मुंबई के वर्ली इलाके का रहने वाला था और प्राइवेट बैंक का अधिकारी था.

यह जानकारी मिलते ही नेरल पुलिस ने वर्ली पुलिस थाने से संपर्क कर शव की शिनाख्त के लिए मृतक के परिवार वालों को थाने बुला लिया और उन्हें ले कर रायगढ़ जिला अस्पताल गए, जहां मृतक सुशील कुमार सरनाइक को देखते ही उस के परिवार वाले दहाड़ें मार कर रोने लगे. पुलिस टीम ने सांत्वना दे कर उन्हें शांत कराया और कानूनी खानापूर्ति कर मृतक का शव उन्हें सौंप दिया. पुलिस जांच और अभियुक्त नाडर दंपति के बयानों के मुताबिक इस क्रूर अपराध की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह से थी—

31 वर्षीय सुशील कुमार मारुति सरनाइक सांवले रंग का स्वस्थ और हृष्टपुष्ट युवक था. वह दक्षिणी मुंबई स्थित वर्ली के गांधीनगर परिसर की एसआरए द्वारा निर्मित बहुमंजिला इमारत तक्षशिला की पांचवीं मंजिल के फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहता था. परिवार में उस की मां के अलावा एक बहन रेखा थी, जिस की शादी हो चुकी थी. लेकिन वह अधिकतर अपनी बेटी के साथ सुशील और मां के साथ ही रहती थी. परिवार का एकलौता बेटा होने के कारण सुशील के परिवार को उस से काफी प्यार था. यह मध्यवर्गीय परिवार काफी खुशहाल था.

सुशील महत्त्वाकांक्षी युवक था. इस के साथ वह दिलफेंक और रंगीनमिजाज भी था. वह एक बार जिस किसी के संपर्क में आता था, उसे अपना मित्र बना लेता था. हर कोई उस के व्यवहार से प्रभावित हो जाता था. ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद उस ने अपने कैरियर की शुरुआत बीपीओ से शुरू की थी. जहां उस के साथ कई युवक, युवतियां काम करते थे. इन्हीं युवतियों में एक सलोमी भी थी जो ईसाई परिवार से थी.

सुशील पड़ा सलोमी के चक्कर में

28 वर्षीय सलोमी पेडराई जितनी स्वस्थ और सुंदर थी, उतनी ही चंचल भी थी. वह किसी के भी दिल को ठेस पहुंचाने वाली बातें नहीं करती थी. उस के दिल में सभी के प्रति आदर सम्मान था. उस के मधुर व्यवहार के कारण संपर्क में आने वाले लोग उस की तरफ आकर्षित जाते थे. औफिस में सलोमी सुशील की बगल वाली सीट पर बैठती थी. काम के संबंध में दोनों एकदूसरे की मदद भी किया करते थे.
यही कारण था कि धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए और अच्छी दोस्ती हो गई. खाली समय में दोनों एक साथ कौफी हाउस, मूवी, मौलों में शौपिंग कर मौजमस्ती किया करते थे. यह सिलसिला शायद चलता ही रहता, लेकिन दोनों को अलग होना पड़ा. सुशील सरनाइक को एक बैंक का अच्छा औफर मिल गया, जहां उसे वेतन के साथसाथ बहुत सारी सुविधाएं भी मिल रही थीं.

2018 में सुशील सरनाइक की नियुक्ति आईसीआईसीआई बैंक की ग्रांट रोड, मुंबई शाखा में रिलेशनशिप मैनेजर की पोस्ट पर हो गई. सुशील सरनाइक ने बीपीओ की नौकरी छोड़ कर बैंक की नौकरी जौइन कर ली. दूसरी तरफ सलोमी का झुकाव बीपीओ के ओनर चार्ल्स नाडर की तरफ हो गया.

35 वर्षीय चार्ल्स नाडर अफ्रीकी नागरिक था. उस का पूरा परिवार अफ्रीका में रहता था. उस के पिता अफ्रीका के एक बड़े अस्पताल में डाक्टर थे. उस की शिक्षादीक्षा भी अफ्रीका में ही हुई थी. अस्थमा का मरीज होने के कारण उस का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था. कुछ साल पहले जब वह भारत आया तो उसे यहां के पर्यावरण से काफी राहत मिली, इसलिए वह भारत का ही हो कर रह गया. उस ने थाणे जिले के विरार में बीपीओ खोल लिया, जहां सलोमी और सुशील सरनाइक जैसे और कई युवकयुवतियां काम करते थे. सलोमी का झुकाव अपनी तरफ देख कर चार्ल्स नाडर ने भी उस की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया और दोनों लवमैरिज कर मीरा रोड के राजबाग की सोसायटी में किराए पर रहने लगे.

सुशील सरनाइक और सलोमी के रास्ते अलग तो हो गए थे मगर उन के दिलों की धड़कन अलग नहीं हुई थी. दोनों फोन पर तो अकसर हंसीमजाक करते ही थे, मौका मिलने पर सुशील सलोमी के घर भी आनेजाने लगा. दोनों नाडर के साथ पार्टी वगैरह कर के जम कर शराब का मजा लेते थे.ऐसी ही एक पार्टी उन्होंने उस रात भी की थी. मगर उस पार्टी का नशा सुशील सरनाइक पर कुछ इस तरह चढ़ा कि वह अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठा. शराब के नशे में वह अपनी मर्यादा लांघ गया. उस ने अपनी और सलोमी की दोस्ती को जो मोड़ दिया, वह बेहद आपत्तिजनक था. उस के पति के लिए तो और भी शर्मनाक.
सलोमी के पति चार्ल्स नाडर को बरदाश्त नहीं हुआ और किचन से चाकू ला कर उस ने एक झटके में सुशील का गला काट दिया. कमरे में सुशील सरनाइक की चीख गूंज उठी.

उधर सुशील सरनाइक 12 दिसंबर, 2020 की सुबह अपनी मां और बहन से यह कह कर घर से निकला था कि वह अपने बैंक के कुछ दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा है. 13 दिसंबर को शाम तक घर लौट आएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. न वह घर आया और न उस का फोन आया. काफी कोशिशों के बाद भी उस से फोन पर संपर्क नहीं हुआ तो उस की मां और बहन को उस की चिंता हुई. रात तो किसी तरह बीत गई, लेकिन दिन उन के लिए पहाड़ जैसा हो गया था.

14 दिसंबर, 2020 की सुबह सुशील सरनाइक के नातेरिश्तेदार और जानपहचान वालों ने पुलिस से मदद लेने की सलाह दी. उन की सलाह पर सुशील सरनाइक की मां और बहन वर्ली पुलिस थाने की शरण में गईं. रात 11 बजे उन्होंने थानाप्रभारी सुखलाल बर्पे से मुलाकात कर उन्हें सुशील के बारे में सारी बातें बता कर मदद की विनती की और गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवा दी. शिकायज दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी ने उन से सुशील का हुलिया और फोटो लिया और जांच का आश्वासन दे कर घर भेज दिया. शिकायत दर्ज होने के12 घंटे बाद ही सुशील के परिवार वालों को जो खबर मिली थी, उस से उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी.

सुशील सरनाइक की हत्या करने के बाद जब नाडर दंपति को होश आया तो उन्हें कानून और सजा का भय सताने लगा. इस से बचने के लिए क्या करें, उन की समझ में नहीं आ रहा था. काफी सोचविचार के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि उस के शव को किसी गुप्त जगह पर डंप करने में ही भलाई है.इस के लिए उन्होंने सुशील सरनाइक का मोबाइल और उस के बैंक एटीएम का सहारा लिया. उस का मोबाइल फिंगरप्रिंट से खुलता था और उस में एटीएम पिन था, यह बात वे अच्छी तरह जानते थे.

12 टुकड़ों में सिमटी जिंदगी

उन्होंने उस का मोबाइल ले कर उस के अंगूठे से मोबाइल का लौक खोला और उस के एटीएम का पिन ले कर बदलापुर जा कर कार्ड से 80 हजार रुपए निकाले, जिस में से उन्होंने शव के टुकड़े करने के लिए एक कटर मशीन और 2 बड़े सूटकेस खरीदे. उन्होंने शव के 12 टुकड़े कर दोनों सूटकेसों में भरे. शव का दाहिना हाथ सूटकेस में नहीं आया तो उसे अलग से एक थैली में पैक किया. इस के बाद दोनों ने 14 दिसंबर की रात सूटकेस ले जा कर नेरल रेलवे स्टेशन के पास गहरे नाले में डाल दिए और घर आ गए. अब पतिपत्नी उस की तरफ से निश्चिंत हो गए. उन का मानना था कि उस नाले से दोनों सूटकेस बह कर खाड़ी में चले जाएंगे, जहां सुशील सरनाइक का अस्तित्व मिट जाएगा.

मगर ऐसा नहीं हुआ. दोनों सूटकेस नेरल पुलिस के हाथ लग गए और सारा मामला खुल गया. नाडर दंपति नेरल पुलिस के शिकंजे में आ गए. नाडर के घर की तलाशी में कटर मशीन के साथ 30 हजार रुपए में 28 हजार रुपए भी पुलिस टीम ने बरामद कर लिए. थाने ला कर सख्ती से पूछताछ करने पर उन्होंने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए हत्या का सच उगल दिया.

पुलिस टीम ने चार्ल्स नाडर और सलोमी नाडर से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उन के विरुद्ध सुशील सरनाइक की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें रायगढ़ जिला जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक पुलिस जांच टीम सुशील सरनाइक के कटे दाहिने की तलाश कर रही थी.

श्वेता तिवारी के नए लुक्स को देख करण वीर बोहरा ने किया ये कमेंट

टीवी अदाकारा श्वेता तिवारी  ने हाल ही में फोटोशूट करवाया है. इस फोटो शूट की तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. टीवी अदाकारा अपने खूबसूरत तस्वीर से लोगों का दिल जीत लिया है.

बता दें कि बिग बॉस एक्स कंटेस्टेंट श्वेता तिवारी बेहद ही हॉट लग रही हैं. इन सभी तस्वीरों में श्वेता तिवारी ने हाई थाई सिल्क गाउन पहना हुआ है. जिसमें वह बेहद ही ग्लैमरस लग रही हैं. फैंस और सेलेब्स इनकी खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

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कसौटी जिंदगी स्टार अपनी लेटेस्ट तस्वीर में बला की खूबसूरत लग रही हैं. फैंस इनकी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं. श्वेता का यह नया लुक लोगों को भी खूब पसंद आ रहा है. इस तस्वीर में श्वेता की बोल्डनेस ने हीला कर रख दिया है.

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तस्वीर में श्वेता ने शिमरी ग्रे कलर का गॉउन पहना हुआ है. इस फोटो में श्वेता तिवारी बोल्ड और बेबाक अंदाज में लग रही हैं. श्वेता तिवारी के हुस्न की तारीफे करता कोई थक नहीं रहा है.

श्वेता तिवारी के लेटेस्ट तस्वीर को देखने के बाद करणवीर बोहरा खुद को रोक नहीं पाएं उन्होंने लिखा ‘आग ही आग’.

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इसके अलावा इस तस्वीर पर और भी बहुत सारे कमेंट आ रहे हैं. जिसमें लोग श्वेता तिवारी के लुक की तारीफ कर रहे हैं. 40 के उम्र में भी श्वेता इतनी खूबसूरत लग रही हैं.

 

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बता दें कि श्वेता तिवारी की बेटी पलक 18 साल की हैं वो भी अपना कैरियर एक्टिंग में आजमा रही हैं. पलक भी अपनी मां श्वेता कि तरह बेहद ही ज्यादा खूबसूरत हैं. पलक और श्वेता जब साथ में खड़ी होती हैं तो एक-दूसरे की बहन नजर आती हैं.

बता दें कि श्वेता तिवारी ने दो शादी कि थी लेकिन उनकी शादी चली नहीं. पति से अलग श्वेता अपने बच्चों के साथ रहती हैं. फिलहाल श्वेता अपने बच्चों के साथ बेहद खुश नजर आती हैं.

बिग बॉस 14: रुबीना दिलाइक के सपोर्ट में आईं काम्या पंजाबी, राखी को कहा हद में रहे

बीते दिनों जो बिग बॉस के घर में हुआ उसे देखकर सभी फैंस हैरान हो गए हैं. बिग बॉस 14 के घर में वैसे तो आए दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा देखने को मिलता है लेकिन इस बार हद पार हो गई. राखी सावंत ने अपनी सारी हदों को पार करते हुए अभिनव शुक्ला को ठरकी कह दी.

जिसके बाद अभिनव शुक्ला और रुबीना दिलाइक गुस्से से लाल हो गए. रुबीना  दिलाइक खुद को न रोकते हुए बाल्टी से भरा पानी राखी सावंत के ऊपर फेंक दिया. जिसके बाद राखी सावंत भी गुस्से में आकर उल्टा सीधा कहने लगी.

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हालांकि रुबीना दिलाइक की इस हरकत से सभी घरवाले दंग रह गए. कुछ लोग रुबीना दिलाइक के कदम की नींदा कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग रुबीना दिलाइक के सपोर्ट में उतर गए हैं. रुबीना दिलाइक की ऑनस्क्रीन सास उनके सपोर्ट में उतर आई हैं.

बता दें कि अब तक राखी सावंत को सपोर्ट कर रही काम्या पंजाबी को राखी सावंत का ठरकी कहना रास नहीं आया है. राखी सावंत के खिलाफ हैं इसबार काम्या पंजाबी. उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट से ट्वीट करते हुए लिखा है कि मैं भी वहीं करती जो रुबीना दिलाइक ने किया है. राखी सावंत आपको पता होना चाहिए कि आपको कहा रुकना है. रुबीना दिलाइक का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

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आखिरकर काम्या पंजाबी के ट्वीट को देखते हुए एक यूजर्स ने लिखा कि अच्छा लगा कि काम्या पंजाबी ने कुछ तो लिखा रुबीना दिलाइक के सपोर्ट के  लिए , इस पर काम्या पंजाबी ने कमेंट करते हुए लिखा कि मैं बहुत पसंद करती हूं .

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इस घटना के बाद बिग बॉस के घर के अंदर का माहौल बहुत ज्यादा गर्म हो चुका है. लोग एक-दूसरे पर कमेंट करने शुरू कर दिए हैं. वहीं रुबीना दिलाइक का गुस्सा अब भी सातवें आसमान पर है.

हीरोइन : आखिर कमला ने इतनी कम उम्र में क्यों शादी की ?

लेखक : शैलेन्द्र सागर

स्थानांतरण हमारे जीवन का एक अंग बन चुका था किंतु लखनऊ स्थानांतरण के नाम पर मेरी पत्नी सदैव आतंकित रहती थी. पहले तो सरकारी मकान की दिक्कत और दूसरे, घर पर कामकाज करने वालों की किल्लत. घर के बाकी सब काम तो जैसेतैसे हो जाते थे किंतु बरतन साफ करना, झाड़ू पोंछा करना ऐसे काम थे जिन्हें सुन कर ही पत्नी का तापमान सामान्य से ऊपर पहुंच जाता था. पूरे घर का वातावरण तनावपूर्ण हो जाता था. दिन भर पत्नी मुझ पर, बच्चों पर और खुद पर भी झल्लाती रहती थी. बच्चों के दोचार थप्पड़ भी लग जाना स्वाभाविक ही था. इसलिए लगभग 5 वर्ष पूर्व जब मैं लखनऊ स्थानांतरित हो कर आया था तो इस आशंका से भयंकर रूप से त्रस्त था.

भागदौड़ कर के दारुलशफा (विधायक निवास) के चक्कर काट कर मुझे कालोनी में मकान मिल गया था. वह मेरे लिए कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था. किराए के मकानों की दशा से कौन परिचित नहीं है. खुशामद और सामर्थ्य से परे किराया और दिनप्रतिदिन की कहासुनी. तनाव का एक छोटा हिस्सा मकान मिलने से अवश्य कम हुआ था किंतु उस का अधिकांश भाग तब तक घर पर मंडराता रहा जब तक चौकाबासन करने वाली महरी की व्यवस्था नहीं हो गई.

वास्तव में पत्नी से अधिक महरी की चिंता मुझे थी. मैं ने लखनऊ आते ही पूछताछ करनी प्रारंभ कर दी थी. आसपास के घरों में सुबहशाम आतीजाती महरीनुमा औरतों पर निगाह रखना शुरू कर दिया था. 1-2 महरियां दीख पड़ीं, लेकिन उन्होंने बात करते ही ‘खाली नहीं’ की तख्ती दिखा दी. एक सप्ताह बाद पत्नी का धैर्य तेज धूप में कच्ची दीवार सा चटखने लगा. 15 दिन बीततेबीतते उस के चेहरे पर तनाव भी परिलक्षित होना स्वाभाविक ही था.

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इतनी बड़ी कालोनी में मेरे ही विभाग के अनेक अधिकारी निवास करते थे. धीरेधीरे मैं ने सभी के सामने महरी की समस्या रखी. अंतत: कमला के बारे में मुझे पता चला किंतु सहयोगी अरविंदजी ने मुझे उस की चर्चा के साथ ही सचेत करते हुए कह दिया था, ‘‘भाई, कालोनी की हीरोइन है कमला, एकदम आधुनिका. बड़ी नखरेबाज. उस की हर किसी के साथ निभ पाना संभव नहीं है.’’

मैं ने पत्नी को आ कर सब बता दिया था और कमला को बुलाने का आग्रह किया था.

कमला आई थी तो उसे देख कर मैं भी पहले दिन ही चकित रह गया था. वह देखने में 30 के आसपास थी. सांवला रंग किंतु तीखे नाकनक्श, सलीके से संवरी हुई आकृति और साफसुथरे कपड़े, अंगूठी से घिरी 2 उंगलियां, कलाई में घड़ी और साधारण एड़ी वाली चप्पलें. उसे देख कर यह विश्वास नहीं हुआ कि वह स्त्री घरों में बरतन मांजने और झाड़ू पोंछे का काम करती थी.

प्रारंभिक वार्त्ता के बाद कमला ने कार्य प्रारंभ कर दिया था. बाद में पता चला था कि वह इत्तफाक ही था कि एक अधिकारी के स्थानांतरण के फलस्वरूप कमला अभी हाल में ही खाली हुई थी. वरना उस का नियम था कि वह एक ही समय में 5 से अधिक घरों में काम नहीं करती थी.

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कमला का काम जहां एक ओर अति स्वच्छ व व्यवस्थित था वहीं दूसरी ओर उस में स्वयं एक सौम्यता व गंभीरता दीख पड़ती थी. घड़ी की सूइयों के साथ वह प्रात: सवा 8 बजे आती थी और 45 मिनट में सारे कार्यों से निवृत्त हो कर चली जाती थी. सायं ठीक सवा 5 बजे कमला घर में घुसती थी और पौने 6 बजे तक घर से निकल जाती थी. न तो वह अधिक बोलती थी और न ही उसे सुनने की कोई आदत थी.

जैसेजैसे समय बीतता गया, हम कमला के बारे में और अधिक जानते गए. उस का पति बीमा कार्यालय में चपरासी था. 3 बच्चे थे उन के. बड़ा लड़का और 2 लड़कियां. कमला को देख कर हम तो यही सोचते थे कि अभी बच्चे छोटे ही होंगे. किंतु मुझे उस दिन घोर आश्चर्य हुआ जब एक 16-17 वर्षीय लड़के ने घर आ कर पूछा था, ‘‘मां आई थीं?’’

‘‘किस की मां?’’ पत्नी ने सकपका कर पूछा था.

‘‘मेरी मां, कमलाजी.’’

‘‘कमला,’’ पत्नी हतप्रभ सी धीरे से मुसकरा दी. फिर सहजता धारण कर के बोली, ‘‘हमारे यहां तो सवा 5 बजे आती है. अभी तो देर है.’’

वह लड़का अभिवादन कर के लौट गया.

पता नहीं क्यों पत्नी के हृदय में एक कुलबुलाहट सी हुई. उस दिन कमला के आने पर पत्नी ने उस के लड़के के आने के बारे में बताते हुए बातों का सिलसिला शुरू कर दिया.

‘‘जी, बीबीजी,’’ कमला ने बताया, ‘‘घर पर अचानक कुछ मेहमान आ गए थे. जल्दी में थे. इसलिए लड़का ढूंढ़ रहा था.’’

‘‘मगर तुम्हारा लड़का और इतना बड़ा?’’ पत्नी रोक न सकी अपनी जिज्ञासा को.

कमला ने शरम से मुंह नीचे कर लिया. पहली बार उस के चेहरे पर स्मित की लहरें उभर आईं.

‘‘तुम देखने में तो इतनी बड़ी उम्र की नहीं लगती हो?’’ पत्नी ने धीरे से बात बनाई थी.

कमला हंसने लगी. फिर दबे स्वर में बोली, ‘‘बीबीजी, कुछ तो शादी ही जल्दी हो गई थी. वैसे अब 33 की तो हो ही रही हूं.’’

कमला ने आगे बताया था कि उस के पिता बरेली में एक स्कूल में अध्यापक थे. घर में पढ़नेलिखने का वातावरण भी था. कमला की 2 बहनों ने इंटर पास किया था. उन की शादी हो गई थी. छोटा भाई बी.ए. कर के कचहरी में बाबू हो गया था.

कमला जब केवल 15 वर्ष की ही थी तो पड़ोस में रह रहे नवयुवक के प्रेमजाल में फंस कर वह उस के साथ लखनऊ चली आई थी. उस समय वह 9वीं की परीक्षा दे चुकी थी. नवयुवक यानी उस के पति के मामा ने उन्हें शरण दी थी तथा कचहरी में विवाह कराया था. उस का पति हाईस्कूल पास था. मामा ने ही सिफारिश कर के उस की बीमा दफ्तर में नौकरी लगवा दी थी.

कमला के पिता और घर के अन्य सदस्य उस घटना के बाद इतने अपमानित व क्षुब्ध थे कि उन्होंने कमला से सदा के लिए अपने संबंध विच्छेद कर लिए थे. उधर पति के घर वाले भी उतने ही नाराज थे किंतु धीरेधीरे उन से संबंध सुधर गए थे.

लगभग 1 वर्ष बाद पुत्र का जन्म हुआ था और बाद में 2 लड़कियों का. अब उन में से एक 15 साल की थी और दूसरी 9 साल की.

हमें लखनऊ में आए लगभग 3 साल बीत चुके थे. अब सब व्यवस्थित हो चला था. कमला से कभीकभार खुल कर बातें भी होने लगी थीं किंतु न तो उस के नित्यक्रम में कोई अंतर आया था और न ही उस में.

कमला की कुछ और भी विशिष्टताएं थीं. वह कभी हमारे घर पर कुछ खातीपीती नहीं थी. और तो और वह कभी चाय भी नहीं लेती थी. घर से खाने का कोई सामान स्वीकार न करना और न ही तीजत्योहार पर किसी अतिरिक्त पैसे, कपड़े या वस्तु की मांग करना. प्रारंभ में हमें लगा कि संभवत: महानगर की ऐसी ही प्रथा हो, किंतु बाद में यह भ्रांति भी दूर हो गई.

उस दिन के बाद कमला का लड़का भी कभी हमारे घर नहीं आया था. पता चला था कि वह हाईस्कूल की परीक्षा में 2 बार फेल हो चुका था. अब तीसरी बार परीक्षा दी थी.

कमला की लड़कियों का हमारे घर पर आने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था.

एक दिन जब पत्नी ने कमला से उस की 2 दिन की अनुपस्थिति में किसी लड़की को काम पर भेजने को कहा था तो पहली बार कमला रोष व खीज भरे स्वर में बोली थी, ‘‘नहीं, बीबीजी, मैं अपनी लड़की को नहीं भेज सकती. जो काम मैं उन बच्चों के लिए करती हूं वह उन को करते नहीं देख सकती हूं.’’

उस वर्ष जब हाईस्कूल बोर्ड का परीक्षाफल आया और कमला का लड़का तीसरी बार अनुत्तीर्ण हुआ तो कमला क्षोभ व यंत्रणा से टूटी सी लगती थी. पत्नी के पूछने पर उस के नेत्र छलछला उठे. फिर सिसकियां ले कर रोने लगी. साथ ही भरभराए स्वर में कहने लगी, ‘‘बीबीजी, सिर्फ इन बच्चों के लिए यह काम करना शुरू किया था, जिस से वे अच्छी तरह रह सकें, अच्छा पहनेंखाएं और पढ़लिख कर लायक बन जाएं.’’

कुछ पल शांत रही कमला. फिर बताने लगी, ‘‘बाबूजी, हमारे पूरे खानदान में यह काम किसी ने नहीं किया था, लेकिन मैं ने सिर्फ बच्चों की खातिर यह धंधा अपनाया था.’’

साड़ी का पल्लू निकाल कर कमला ने आंसू पोंछे. फिर आगे बोली, ‘‘मेरा आदमी मुझ से इस धंधे के पीछे बड़ा नाराज हुआ. दुखी भी हुआ. घर के गुजारे लायक उस को पैसा मिलता था. उस के साथ के चपरासी ऐसे ही रह रहे हैं, लेकिन मैं ने जिद कर के यह काम किया. जानती थी कि उस की आमदनी में काम तो चल जाएगा. लेकिन मैं बच्चों को पढ़ालिखा नहीं सकूंगी. उन्हें ठीक तरह नहीं रख पाऊंगी.

‘‘मैं ने मुन्ना को बड़े चाव से पढ़ाना चाहा था, लेकिन वह पढ़ता ही नहीं है. उस के पापा तो पिछले साल ही पढ़ाई बंद करा रहे थे. उसे कपड़े की दुकान पर लगवा भी दिया था, लेकिन मैं ने जिद कर के वह काम छुड़वाया और पढ़ने भेजा.

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‘‘आज सुबह जब नतीजा आया तो मुन्ना को तो डांटाडपटा ही मेरे आदमी ने, मुझे भी बुराभला कहा. फिर आज ही मुन्ना काम पर चला गया उस दुकान पर.’’

कहतेकहते कमला का स्वर बोझिल हो कर टूट सा गया.

‘‘कैसी दुकान है?’’ कुछ देर शांत रह कर कुछ न सूझते हुए पत्नी ने पूछ लिया.

‘‘कपड़े की, जनपथ में है.’’

‘‘कितना देंगे?’’

‘‘यही करीब 300-350 रुपए. मगर बीबीजी, मुझे पैसे का क्या करना है. मुन्ना पढ़ लेता तो जीवन की आस पूरी हो जाती. मेरा यों दरदर ठोकरें खाना सफल हो जाता,’’ कहते हुए कमला की आंखों में एक गीली परत सी जम गई.

कमला की व्यथा सुन कर मैं भी दुखित हो चला था. सचमुच एक विडंबना ही तो थी यह उस की.

उस घटना के बाद कमला दुखी व परेशान सी रहने लगी थी. ऐसा लगता था जैसे कोई दुख उस के हृदय को लगातार बरमे की तरह सालता था. मानो काले बादलों का साया उस के अंतरंग में घुटन सी पैदा कर रहा था. सब काम नियमित रूप से करते हुए भी कमला स्फूर्तिहीन व निस्पंद सी दीख पड़ती थी. कभीकभी यह आशंका होती थी कि कहीं वह काम करना ही न छोड़ दे. किंतु जब 6 माह बीत गए तो पत्नी आश्वस्त हो गई. कमला भी धीरेधीरे सामान्य हो चली थी.

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एक दिन कमला ने एक सप्ताह के अवकाश के संबंध में पत्नी से कहा तो उस का आशंकित हो उठना स्वाभाविक था, ‘‘क्या कामवाम छोड़ने का विचार है?’’ अपने संदेह व आशंका को एक धीमी मुसकान से ढांपते हुए पत्नी ने पूछा था.

‘‘नहीं, बीबीजी, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ कमला ने सहजता से उत्तर दिया, ‘‘मेरी लड़की की शादी है.’’

‘‘सचमुच?’’ पत्नी ने अचंभे से कमला को देखा.

‘‘हां, बीबीजी. 17 पूरे कर चली है. लड़का मिल गया है सो शादी पक्की कर डाली है.’’

‘‘ठीक ही तो किया तुम ने.’’

‘‘और करती भी क्या. उस को भी पढ़ाने की लाख कोशिश की, लेकिन 9वीं से आगे नहीं पढ़ सकी. मेरी ही तरह रही,’’ कह कर हंस दी वह, ‘‘मैं ने सोचा कि कुछ और न हो इस से पहले ही उस के हाथ पीले कर दूं और छुट्टी पा लूं.’’

कमला के आग्रह पर हम दोनों विवाह में सम्मिलित हुए थे. पत्नी एक बार पहले भी उस के घर जा चुकी थी. उस ने मुझे कमला के घर के रखरखाव के बारे में बताया था. टीवी, सोफा, खाने की मेजकुरसियां, ड्रेसिंग टेबल, सबकुछ उस के घर में था.

आज उस का घर देख कर मैं भी चकित रह गया था. शादी का स्तर भी मध्यवर्गीय परिवार जैसा ही था. कहीं कोई कमी नहीं दीख पड़ी. वह सब देख कर जाने क्यों मेरे हृदय में कहीं अंदर अतीव सुख व संतोष की भावना प्रवाहित हो गई थी.

लड़की के विवाह के बाद एक बार फिर हमें ऐसा लगा कि अब कमला अवश्य काम छोड़ देगी, किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ.

एक दिन पत्नी ने मुझे बताया कि कमला मुझ से कोई बात करना चाहती थी. सुन कर मुझे आश्चर्य हुआ. अगले दिन मैं ने स्वयं कमला से पूछा था, ‘‘कमला, तुम्हें कुछ बात करनी थी?’’

‘‘जी, बाबूजी,’’ हाथ धो कर वह मेरे पास आ कर नीचे जमीन पर बैठ गई, ‘‘कुछ काम था.’’

‘‘बोलो?’’ आत्मीयता भरे स्वर में मैं ने इजाजत दी थी.

‘‘छोटी मुन्नी का किसी अच्छे स्कूल में दाखिला करा दीजिए.’’

‘‘किस क्लास में?’’

‘‘जी, उस ने कानवेंट से 5वीं पास की है. क्लास में दूसरे नंबर पर आई है. अब छठी में जाएगी. उस की अध्यापिका उस की बड़ी तारीफ कर रही थीं. कह रही थीं कि मैं उसे खूब पढ़ाऊं. मैं उसे किसी अच्छे अंगरेजी स्कूल या सेंट्रल स्कूल में डालना चाहती हूं. मेरी हिम्मत नहीं पड़ती थी. इसलिए आप से ही विनती करने आई हूं.’’

मैं स्तंभित सा सुनता रहा.

‘‘क्यों नहीं. आज ही ले आओ उसे. मैं ले कर चला जाऊंगा. दाखिला भी करवा दूंगा,’’ मैं ने कमला को आश्वासन दिया.

कमला मेरे पैरों को छूने लगी, ‘‘मुझ पर बड़ा एहसान होगा आप का. यह लड़की पढ़ लेगी तो जीवनभर आप को याद करूंगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने कभी बताया ही नहीं कि तुम्हारी लड़की कानवेंट में है और पढ़ने में इतनी अच्छी है.’’

‘‘बाबूजी, क्या बताती, मेरी तो आखिरी आशा है वह. कभी लगता है उस को दूसरों से ज्यादा मेरी ही नजर न लग जाए.’’

मैं सुन कर हंसने लगा. वातावरण की गंभीरता टूट चुकी थी. इसलिए मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘मगर तुम ने उसे दोनों बच्चों के बीच कैसे पाला?’’

‘‘बस, बाबूजी, शुरू से छोटी मुन्नी को एकदम अलग ही रखा दोनों बच्चों से. उस के लिए अध्यापक लगाए, पढ़ाने से ज्यादा उस को अलग रखने के लिए. वह जो मांगती है, उसे देती हूं,’’ कुछ क्षण रुक कर फिर धीमे से कहने लगी कमला, ‘‘उसे आज तक यह नहीं मालूम कि मैं क्या काम करती हूं. बाबूजी, हो सकता है कि वह जान कर अच्छे बच्चों में खुल कर घुलमिल न पाए.’’

कमला की आंखें डबडबा उठी थीं. मेरे दिल के तार भी जैसे झंकृत हो उठे थे.

कमला उठ कर अपने काम में लग गई.

तब से मैं भी यह मानता हूं कि कमला वास्तव में हीरोइन है. उस रूप में नहीं जिस में लोग उसे कहतेसमझते हैं बल्कि एक नए अर्थ में, एक नए संदर्भ में.

कितने रूप-भाग 1: सुलभा जगदीश से अचानक घृणा क्यों करने लगी

सुलभा का एक हाथ अधखुले किवाड़ पर था. वह उसी स्थान पर लकवा मारे मनुष्य की तरह जड़ सी हो गईर् थी. शरीर व मस्तिष्क दोनों पर ही बेहोशी सी तारी हो गईर् थी मानो. उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. क्या जो कुछ उस ने सुना वह सच है? जगदीश इस तरह की बात कर सकता है? जगदीश, उस का दीशू, जिसे वह बचपन से जानती है, जिस के विषय में उसे विश्वास था कि वह उस की नसनस से परिचित है…वह?

आगे क्या बातें हुईं वह उस के जड़ हो चुके कानों ने नहीं सुनीं. थोड़ी देर बाद जब उस के दोस्त की आवाज कान में पड़ी, ‘‘चलता हूं यार, तेरे रंग में भंग नहीं डालूंगा,’’ तो मानो उसे होश आया.

अधखुले कपाट को धीरे से बंद कर के अपनी चुन्नी से सिर और मुंह को अच्छी तरह ढक कर वह शीघ्रता से मुड़ी और लगभग दौड़ती हुई बगल में अपने घर के फाटक से अंदर प्रवेश कर के एक झाड़ी की आड़ में खड़ी हो गई.

जगदीश के दोस्त ने सड़क पार खड़ी अपनी कार का दरवाजा खोला, अंगूठा ऊपर कर घर के दरवाजे पर खड़े जगदीश को इशारा सा किया और कार स्टार्ट कर निकल गया.

जगदीश के अधिकांश मित्रों को वह पहचानती है, पर यह शायद कोईर् नया है. भाभी बता रही थीं, आजकल उस की बड़ेबड़ों से मित्रता है. इधर कंस्ट्रक्शन में काफी कमाई कर ली है उस ने.

जगदीश अपने घर के सदर दरवाजे में दोनों हाथ सीने पर बांधे सीधा तन कर खड़ा था. सुलभा कुछ क्षण उस की इस उम्र में भी सुंदर, सुगठित ऊंचीलंबी काया को देखती रही, फिर मुंह फेर लिया. आश्चर्य…? उसे जगदीश से घृणा या वितृष्णा का अनुभव नहीं हो रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि इसे निराशा कहे या विश्वास की टूटन या मन में स्थापित किसी प्रिय सुपरिचित मूर्ति का खंडित होना. वास्तव में उस के मस्तिष्क की जड़ता उसे कुछ अनुभव करने ही नहीं दे रही थी. कुछ भी सोचनेसमझने में असमर्थ वह थोड़ी देर यों ही खड़ी रही.

घर के अंदर बजती टैलीफोन की घंटी की आवाज ने उसे कुछ विचलित किया. वह समझ रही थी कि फोन जगदीश का ही होगा और उत्तर न पा कर वह कहीं खुद ही न आ धमके, घबरा कर फाटक खोल कर वह सड़क पर आ गई और बिना कुछ सोचेसमझे जगदीश के घर की विपरीत दिशा में तेजी से चलने लगी. वह इस समय जगदीश का सामना करने के मूड में बिलकुल नहीं थी. दो कदम चलते ही उसे औटो मिल गया. औटो में बैठ कर पीछे देखने पर उस ने पाया कि जगदीश अपने घर की सीढि़यां उतर चुका था. उस ने औटो वाले को तेज चलने का आदेश दिया.

उस के बचपन की सहेली सुधा उसे यों अचानक देख कर आश्चर्यचकित रह गई. वह बोली, ‘‘अरे तू, तू कब आई? तेरा तो पता ही नहीं चलता. कब मायके आती है कब जाती है. मिले हुए कितना अरसा हो गया, पता भी है? शुक्र है आज तुझे याद तो आई कि मैं भी इसी शहर में रहती हूं.’’

उस की धाराप्रवाह चलती बातों को बीच में ही रोक कर सुलभा ने तनिक हंस कर कहा, ‘‘अच्छा, बातें बाद में होंगी, पहले औटो वाले को पैसे तो दे दे, आते समय पर्र्स उठाना ही भूल गई. भैयाभाभी किसी पार्टी में गए हैं, उन्हें फोन कर दूंगी वापसी में वे मुझे लेते जाएंगे.’’

सुधा के साथ इधरउधर की बातों में सुलभा शाम की घटना को भुलाने की कोशिश करती रही. सुधा के पति दौरे पर थे, यह जानकर सुलभा को अच्छा लगा. उस के साथ ही बेमन से खाना भी खा लिया. घर पर तो शायद वह कुछ खा ही न पाती.

अकेले सांझ बिताने की बोरियत से छुटकारा पाने के उत्साह में, यों अचानक सहेली के आगमन से, सुधा का सुलभा की असमंजसता पर ध्यान ही नहीं गया. सुलभा ने चैन की सांस ली.

भैयाभाभी के साथ घर लौटते रात के 12 बज गए थे. पर सुलभा की आंखों में नींद नहीं थी. अब तक का जीवन एक फिल्म की रील की भांति उस के जेहन में घूम रहा था.

दोनों की माताएं शायद दूर की मौसेरी बहनें थीं. पर उन का परस्पर परिचय पड़ोसी होने के नाते ही हुआ था. उस दूर के रिश्ते की जानकारी भी परिचय होने के बाद ही हुई. पर विभाजन के बाद भारत आए विस्थापित परिवारों को इस नए और अजनबी परिवेश के चलते रिश्ते की इस पतली सी डोर ने भी मजबूती से बांध दिया था. कभीकभी तो इतना सौहार्द बेहद नजदीकी रिश्तों में भी नहीं हो पाता.

जगदीश और सुलभा हमउम्र थे. जहां सुलभा दोनों भाइयों में छोटी थी, वहीं जगदीश अपने मातापिता की जेठी संतान था. जो उन के ब्याह के 7-8 वर्षों बाद पैदा होने के कारण मातापिता, विशेषकर माता, का बहुत लाड़ला था और 5 वर्ष बाद दूसरे भाई के जन्म के बाद भी उस के लाड़प्यार में कमी नहीं आई थी.

कितने रूप-भाग 3 : सुलभा जगदीश से अचानक घृणा क्यों करने लगी

सुलभा हंस पड़ी थी. ‘बुरा तो रुक्मिणी को लगना चाहिए, नहीं?’

बचपन से दोनों परिवारों को उन में अभिन्नता देखते आने के कारण उन का आपसी व्यवहार स्वाभाविक ही लगता था. पर दूसरे परिवेश से आई उषा को शायद उन का व्यवहार असामान्य लगता है. सुलभा ने कई बार यह महसूस किया है, हालांकि इस बारे में गंभीरता से नहीं सोचा.

पर, अपने खुले स्वभाव के कारण विकास ने कभी अन्यथा नहीं लिया जबकि सुलभा ने देखा कि मिलने पर विकास जब जगदीश की पीठ पर धौल जमा कर ‘और साले साहब, क्या हालचाल हैं’  कहते हैं, ‘नवाजिश है आप की’ कहते जगदीश मन ही मन कसमसा जाता, हालांकि ऊपर से हंसता रहता है.

भाभी नहाने गई थीं. सुलभा और जगदीश बैठे बातें कर रहे थे. एकाएक किसी बात का रिस्पौंस न पा कर सुलभा ने जगदीश की ओर देखा, लगा जैसे उस ने सुलभा की बात सुनी ही न हो. वह जाने कैसी नजरों से उसे एकटक देख रहा था.

सुलभा कुछ सकुचा कर उठने को हुई कि जगदीश ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘सुनो सुली, मेरी बात ध्यान से सुनो और प्लीज नाराज मत होना. मैं…मैं तुम्हें…तुम मेरी बात समझ रही हो न. देखो इधर मेरी आंखों में देखो सुली, क्या तुम्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता? मैं…मैं तुम्हारे लिए वर्षों से तड़प रहा हूं. क्या तुम सचमुच कुछ भी नहीं समझतीं, या…’’

सुलभा उत्तेजित हो कर कुछ कहने को हुई, तो वह उस के मुंह पर हाथ रख कर बोला, ‘‘नहीं, पहले तुम मेरी पूरी बात सुन लो, सुली, अभी कुछ मत कहो. अच्छी तरह सोच लो. मैं आज रात 8 बजे के बाद अपने घर में तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा, प्लीज.’’ आंखों में आंसू भर कर उस ने हाथ जोड़ दिए. फिर बोला, ‘‘देखो, यह मेरी अंतिम इच्छा है. एक बार पूरी कर दो. इस के बाद मैं तुम से कुछ नहीं मांगूंगा.

‘‘देखो, मैं जानता हूं तुम और विकास एकदूसरे को बहुत प्यार करते हो, हालांकि यही बात मैं अपने और उषा के लिए नहीं कह सकता, शायद, इस के लिए मैं ही अधिक दोषी हूं. पर कभीकभी मुझे लगता है कि मुझे तुम्हारे ब्याह के समय ही विरोध करना चाहिए था. पर तब मैं अपनी भावनाएं अच्छी तरह समझ नहीं पाया था और बाद में बहुत देर हो चुकी थी.

‘‘तुम मेरी गर्लफ्रैंड्स के बारे में जानती हो, पर विश्वास मानो मैं उन सब में तुम्हें ही ढूंढ़ता रहा हूं. उषा बच्चों के साथ मायके गई हुई है और तुम्हारे भैयाभाभी को आज रात किसी पार्टी में जाना है. ऐसा अवसर फिर कभी नहीं मिलेगा. आजकल तुम यहां आती ही कितना हो. मुश्किल से 2-3 दिन या किसी विशेष अवसर पर. और अकेले तो कितने अरसे बाद आई हो. देखो, मेरा दिल मत तोड़ना सुली. तुम्हें अपने दीशू की कसम.’’ उसे कुछ कहने का मौका दिए बिना ही रूमाल से आंसू पोंछता वह जल्दीजल्दी चला गया.

सुलभा सन्न रह गई. उसे याद आया कुछ वर्षों पहले भी उस ने कुछ इसी तरह का इशारा किया था. वह लज्जा और क्रोध से लाल हो गई थी. उस का रौद्र रूप देख कर जगदीश सकपका गया था, कान पकड़ कर हंसते हुए बोला था, ‘सौरी बाबा, सौरी, मजाक कर रहा था.’

‘दिमाग ठीक है तुम्हारा? ऐसा भी मजाक होता है? बच्चे नहीं हो कि जो मुंह में आया बक दिया. आज के बाद मुझ से बात करने की भी कोशिश मत करना’, क्रोध और क्षोभ से वह उठ खड़ी हुई थी.

जगदीश एकदम घबरा गया था, ‘माफ कर दो सुली. मगर ऐसा गजब न करना, तुम्हारे पैर पड़ता हूं. माफ कर दो प्लीज.’ और उस ने सचमुच सुलभा के पैर पकड़ लिए थे.

तो क्या यह इतने वर्षों से ही यह इच्छा मन में रखे है, वह तो कब का उस बात को भूल चुकी थी. और आज इस उम्र में…सुलभा का बेटा इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में है, बेटी मैडिकल के प्रथम वर्ष में है. खुद जगदीश की बेटी इस वर्ष कालेज जौइन करेगी.

उस ने अपने मन को टटोलने का यत्न किया. पर उस के अपने मन में तो सदा जगदीश के लिए दोस्तीभाव ही रहा है. उस का प्यार तो विकास ही है. और जगदीश का आज का प्रस्ताव क्या प्यार है? क्या पुरुष की दृष्टि में नारी का एक यही रूप है? छि:, उस का सिर घूम रहा था, दिमाग मानो कुछ भी सोचनेसमझने में असमर्थ हो रहा था. भाभी के कुछ एहसास करने पर सिरदर्द का बहाना बना कर वह अपने कमरे में जा कर लेट गई.

शाम तक उस की यही हालत रही. पहले उस ने सोचा, भैयाभाभी के साथ पार्टी में चली जाए, पर अनजान, अपरिचित लोगों से मिलने और वार्त्तालाप करने लायक उस की मनोस्थिति नहीं थी. फिर भाभी ने साथ चलने के लिए खास अनुरोध भी नहीं किया था. पार्टी उन की सहेली की शादी की वर्षगांठ की थी और उस ने शायद चुनिंदा लोगों को ही बुलाया था.

दिनभर वह इसी ऊहापोह में रही कि क्या करे. अंधेरा होने पर जब वह जगदीश के घर की ओर चली, तब तक तय नहीं कर पाई थी कि वह क्यों जा रही है और उस से क्या कहेगी. पर वह यह भी जानती थी कि उस के न जाने पर वह खुद ही आ धमकेगा.

जगदीश के घर के सदर दरवाजे के पल्ले यों ही भिड़े थे. सुलभा ने उसे खोलने के लिए पल्ले पर हाथ रखा ही था कि एक अपरिचित स्वर सुन कर ठिठक गई, ‘‘तो आज तुम बिलकुल नहीं लोगे? मैं ने तो सोचा था कि भाभी नहीं हैं, सो, आज जरा जम कर बैठेंगे.’’

‘‘नहीं यार, आज तो बिलकुल नहीं. उसे डिं्रक से सख्त नफरत है. आज जब मेरे जीवनभर का अरमान पूरा होने जा रहा है, मैं यह रिस्क नहीं ले सकता.’’

‘‘पर यार, मेरी समझ में नहीं आ रहा. अब इतने वर्षों बाद ऐसा भी क्या है. अरे, तुझे कोई कमी है. एक से एक परी तेरे एक इशारे की प्रतीक्षा में रहती है. और तू है कि इस अधेड़ उम्र की स्त्री के लिए इतना बेचैन हो रहा है?’’

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‘‘तू नहीं समझेगा. आज तक मुझे किसी युवती ने इनकार नहीं किया जिस पर भी मैं ने हाथ रखा, सिर्फ इसी ने…मुझे अपना सारा वजूद ही झूठा लगता था, मैं ने जिंदगी में कभी किसी स्तर पर हार नहीं मानी. न खेल में, न बिजनैस में, न प्रेम में. हार मैं सहन नहीं कर सकता. किसी कीमत पर नहीं. आज, आज लगता है मैं एवरेस्ट फतह कर लूंगा.’’

सुलभा को लगा था मानो किसी ने उस के कानों में पिघलता सीसा उड़ेल दिया हो. रातभर जगदीश के शब्द उस के वजूद पर कोड़े से बरसाते रहे. उस के गुस्से की सीमा नहीं थी. बचपन से ले कर आज तक का समय उस की आंखों के सामने फिल्म की रील सा घूम गया. वह अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि बचपन से अब तक देखा, सुना और जाना हुआ सच था या आज का उस का यह रूप. मनुष्य के कितने रूप होते हैं? कब कौन सा रूप प्रकट हो जाएगा, कौन जान सकता है? क्या पुरुष का यही रूप उस का असली और सच्चा रूप है? क्या खून के रिश्तों के अलावा पुरुष की नजरों में स्त्रीपुरुष का यही एक रिश्ता है? बाकी सब गौण हैं? मित्रता भी एक दिखावा ही है? क्या वह अब किसी चीज पर विश्वास कर पाएगी?

सुबह अपना सामान संभालती वह सोच रही थी, भैयाभाभी से यों अचानक लौट जाने का कौन सा बहाना बनाएगी. वह अब कभी जगदीश का सामना पहले की तरह सहज भाव में कर पाएगी? पता नहीं. पर आज तो हरगिज नहीं कर पाएगी.

 

मैं बिजनैसमैन हूं, मेरी पत्नी और मेरे बीच इतनी तू तू मैं मैं हो गई कि वह घर छोड़ कर चली गई, जिस से मैं काफी अपसैट हूं, क्या करूं?

सवाल
मैं बिजनैसमैन हूं जिस कारण मुझे घर आने में अकसर देरी हो जाती है. मेरी पत्नी का जन्मदिन था और मैं उस दिन भी घर पर जल्दी नहीं आ पाया जिस कारण वह मुझ से नाराज हो गई है. उस दिन हम दोनों के बीच इतनी तूतू मैंमैं हो गई कि वह घर छोड़ कर चली गई, जिस से मैं काफी अपसैट हूं. क्या करूं?

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जवाब
जब आप की शादी हुई थी तब आप नौकरी करते थे या फिर स्वयं का बिजनैस था, इस बात का जिक्र आप ने नहीं किया. लेकिन फिर भी काम तो काम ही है, कुछ हद तक तो आप की पत्नी की नाराजगी सही है, क्योंकि इस स्पैशल डे को वह आप के साथ जो मनाना चाहती थी. लेकिन इतना भी क्या रूठना कि वह घर छोड़ कर ही चली जाए. आप को उस के सामने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए उसे प्यार से समझाना होगा कि अगर कमाऊंगा नहीं, तो खिलाऊंगा क्या.

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बिजनैस में उतारचढ़ाव भी चलते रहते हैं, ऐसे में बचत कर के रखना भी जरूरी है. उसे यह भी बताएं कि बिजनैस में कब जरूरी काम आ जाए, कहा नहीं जा सकता. फिर भी मैं खुद को सुधारने की कोशिश करूंगा. लेकिन उसे भी घर छोड़ने की आदत को सुधारना होगा और एकदूसरे की समस्या को समझ कर चलना होगा, तभी रिश्ते में मिठास आने के साथ हमारी गृहस्थी अच्छी तरह से चल पाएगी.

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जब पति को लगे पत्नी खटकने

प्राचीनकाल से ही भारत पुरुषप्रधान देश है. लेकिन अब समय करवट ले चुका है. महिला हो या पुरुष दोनों को ही समानता से देखा जाता है. ऐसे में यदि बात पति और पत्नी के बीच की हो तो दोनों ही आधुनिक काल में सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते दिखते हैं. पर कई बार ऐसा होता है कि पति अपनी पत्नी से यदि किसी चीज में कम है तो वह हीनभावना का शिकार होने लगता है और उसे पत्नी कांटे के समान लगने लगती है.

ऐसे में जरूरी है पतिपत्नी में आपसी तालमेल, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि पतिपत्नी में खटास नहीं होती है, लेकिन दूसरे लोग ताने कसकस कर आग में घी का काम करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि इस कठिन स्थिति से निकलने की कोशिश पतिपत्नी दोनों करें.

गलत मानसिकता में रचाबसा समाज समाज में यह मानसिकता हमेशा बनी रहती है कि पत्नी के बजाय पति का ओहदा हमेशा उच्च होता है. पत्नी के उच्च शिक्षित, सुंदर, मशहूर और सफल होने से पति को ईगो प्रौब्लम होने लगती है. समाज की दृष्टि से पति को पत्नी की तुलना में प्रतिभाशाली, गुणी, उच्च पदस्थ आदि होना चाहिए. लेकिन पतिपत्नी को समझना चाहिए कि यह आप की अपनी जिंदगी है. इस में छोटाबड़ा कोई माने नहीं रखता है.

यदि पत्नी ऊंचे ओहदे पर है

अकसर देखने में आता है कि पत्नी का ऊंचे ओहदे पर होना समाज में लोगों को गवारा नहीं होता. ऐसा ही कुछ शालिनी के साथ हुआ. उस की लव मैरिज थी. वह उच्च शिक्षा प्राप्त और एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर कार्य करती थी जबकि पति अरुण उस से कम पढ़ालिखा और अपनी पत्नी के मुकाबले निम्न पद पर था. अकसर उस से लोग कहते रहते थे कि तुझे इतनी शिक्षित और कमाऊ बीवी कहां से मिल गई. साथ ही, शालिनी भी उसे ताने देती रहती थी. इन सभी बातों से अरुण इतना अधिक डिप्रेशन में रहने लगा कि उस के मन में अपनी पत्नी के खिलाफ जहर घुलने लगा और फिर तलाक की नौबत आ गई.

पत्नी दे ध्यान: पत्नी के सामने यदि ऐसी स्थिति आए तो वह इस से घबराए नहीं, बल्कि डट कर सामना करे. कई बार हम सामने वालों की गलतियां गिना देते हैं, लेकिन कहीं न कहीं हम में भी खोट होता है. अकसर एक बड़े ओहदे पर होने के कारण पत्नी अपने पति को खरीखोटी सुनाती रहती है जैसे वह अपनी पढ़ाई व कमाई के नशे में चूर अपने पति की कमियों का उपहास उड़ाती रहती है कि घर का सारा खर्च तो उस की कमाई पर ही चलता है.

कई कमाऊ पत्नियां सब के सामने यह कहती पाई जाती हैं कि अरे यह कलर टीवी तो मैं लाई हूं, वरना इन के वेतन से तो ब्लैक ऐंड व्हाइट ही आता. इन सब बातों से रिश्तों में खटास बढ़ती है. ऐसी स्थिति में पत्नियों को चाहिए कि वे अपने पति को प्रोत्साहित करें कि वे भी जीवन में तरक्की करें न कि हीनभावना से ग्रस्त हो कर कौंप्लैक्स पर्सनैलिटी बन जाएं.

पति ध्यान दें: पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी से हीनभावना रखने के बजाय उसे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दे. यदि कोई बाहरी व्यक्ति कमज्यादा तनख्वाह का मुद्दा उठाए तो कहे कि हमारे घर में सब कुछ साझा है और हम दोनों पतिपत्नी मिलजुल कर घर की जिम्मेदारियां निभाते हैं.

पत्नी का खूबसूरत होना

वैसे तो हर आदमी की चाह होती है कि उस की पत्नी खूबसूरत हो, लेकिन यदि पत्नी बेहद खूबसूरत हो और पति कम स्मार्ट और सिंपल हो तो लोग यह बोलते नहीं रुकते कि अरे देखो तो लंगूर के मुंह में अंगूर या बंदर के गले में मोतियों की माला. ऐसे में पति को पत्नी बेहद खटकने लगती है. वह न चाह कर भी उसे ताने देता रहता है.

वैसे तो पत्नी की तारीफें पति को गर्व से भर देती हैं, लेकिन जब पत्नी की आकर्षक पर्सनैलिटी पति के साधारण व्यक्तित्व को और दबा देती है, तब संतुलित विचारों वाला पति और भी बौखला जाता है. नतीजतन, पति अपनी सुंदर पत्नी के साथ पार्टीसमारोह में जाने से बचने लगता है. अगर साथ ले जाना जरूरी हो तो पार्टी में पहुंच कर पत्नी से अलगथलग खड़ा रहता है. सजनेधजने तक पर भी ताने देता है.

पत्नी ध्यान दे: ऐसे में पत्नी को समझदारी से काम लेना चाहिए. यदि पत्नी को लगता है कि उस का पति उस की खूबसूरती को ले कर हीनभावना महसूस कर रहा है तो वह पति को समझाए कि पति से बढ़ कर उस के लिए दुनिया में कोई माने नहीं रखता है. साथ ही अपने पति के सामने किसी आकर्षक दिखने वाले आदमी की बात भी न करे. किसी महफिल या समारोह में पति के हाथों में हाथ डाल कर यह दिखाने की कोशिश करे कि वह पति को दिल से प्रेम करती है.

पति ध्यान दे: जिंदगी में उतारचढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन पत्नी पति का हर परिस्थितियों में साथ निभाती है. ऐसे में जरूरी है कि पति लोगों की बातों को नजरअंदाज करे, क्योंकि कुछ लोगों का काम ही होता है कि दूसरे के खुशहाल परिवार में आग लगाना. यदि पतिपत्नी दोनों एकदूसरे का साथ सही से निभाएं तो दूसरा कोई उंगली नहीं उठा सकता.

मायके के पैसे का घमंड

कई बार ऐसा होता है कि पत्नी के मायके में ससुराल के मुकाबले ज्यादा पैसा होता है. पत्नी की सहज मगर रईस जीवनशैली उस के मायके वालों का लैवल, गाडि़यां, कोठियां आदि पति को हीनता का एहसास दिलाने लगते हैं. साथ ही पत्नी भी पति के समक्ष मायके में ज्यादा पैसे होने का राग अलापती रहती है. बातबात पर अपने मायके के सुख बखान कर पति को ताने देती रहती है, जिस से पति हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है और उसे पत्नी खटकने लगती है.

पत्नी ध्यान दे: पतिपत्नी के रिश्ते में एकदूसरे का सम्मान सब से ज्यादा अहम होता है. पत्नी को चाहिए कि वह अपने मातापिता के पैसे पर इतना अभिमान न करे कि उस से दूसरे को ठेस पहुंचे. हमेशा मायके के ऐश्वर्य को अपने पति के सामने न जताए. इस से पति के अहम को ठेस पहुंचती है, साथ ही वह पत्नी को मायके जैसा सुख न देने के कारण हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है.

पति ध्यान दें: कई बार पत्नी के कुछ खरीदने पर या किसी डिमांड पर पति क्रोधित हो कर उस के मायके के ऐश्वर्य को ले कर उलटासीधा बोलने लगता है. ऐसे में जरूरी यह होता है कि आप प्रेमपूर्वक आपस में बैठ कर बात करें न कि लड़ाई ही इस विषय का समाधान है. जैसे पत्नी का बारबार अपने मायके के सुख के ताने देना पति को खराब लगता है ऐसे ही पति का पत्नी के मायके के लिए बोलना भी उसे खराब लगता है.

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