लेखक-आदित्य, स्नातकोत्तर छात्र, सीओएचएफ नेरी, और मांगेराम सुथार डा. जेएन भाटिया, चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय,

हरियाणा प्याज व लहसुन कंद समूह की मुख्य रूप से 2 ऐसी फसलें हैं, जिन का सब्जियों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान है. देश में इन की खपत और विदेशी मुद्रा अर्जन में बहुत बड़ा योगदान है. वैसे तो दुनिया में भारत प्याज और लहसुन की खेती में अग्रणी है, पर इन की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता दूसरे देशों से कम है. इस के लिए दूसरे उपायों के साथ जरूरी है कि इन फसलों की रोगों व कीड़ों से सुरक्षा की जाए. यहां इन फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों व रोग की पहचान और उन की रोकथाम के बारे में जानकारी दी गई है.

स्टेमफिलियम/झुलसा रोग लक्षण : यह रोग पत्तियों और डंठलों पर छोटेछोटे सफेद और हलके पीले धब्बों के रूप में पाया जाता है, जो बाद में एकदूसरे से मिल कर बड़े भूरे रंग के धब्बों में बदल जाते हैं. अंत में ये धब्बे गहरे भूरे रंग या काले रंग के हो जाते हैं. धब्बे की जगह पर बीज का डंठल टूट कर गिर जाता है. पत्तियां धीरेधीरे सिर की तरफ से सूखना शुरू करती हैं और आधार की तरफ बढ़ कर पूरी सूख जाती हैं. अनुकूल मौसम मिलते ही यह रोग बड़ी तेजी से फैलता है और कभीकभी फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है.

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रोकथाम  साफसुथरी खेती फसल को निरोग रखती है- गरमी के महीने में गहरी जुताई और सौर उपचार काफी लाभदायक रहता है. * दीर्घकालीन असंबंधित फसलों का फसल चक्र अपनाना चाहिए. रोग के लक्षण दिखाई देते ही इंडोफिल एम-45 400 ग्राम या कौपर औक्सीक्लोराइड-50, 500 ग्राम या प्रोपीकोनाजोल 20 फीसदी ईसी 200 मिलीलिटर प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लिटर पानी में घोल बना कर और किसी चिपकने वाले पदार्थ के साथ मिला कर 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें. बैंगनी धब्बा

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