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‘‘पता नहीं, शायद आल्प्स पर्वत की पहाडि़यों पर हैं.’’

‘‘और बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘पता नहीं. आओ उठो, देखते हैं.’’ सहारा दे कर उस ने रीना को खड़ा किया. फिर एकदूसरे का हाथ थामे एकदूसरे को सहारा दे चलने लगे. मगर किस तरफ जाएं. सब तरफ बर्फ की चादर बिछी थी.

सूरज आसमान के बीचोंबीच था. पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर और दक्षिण दिशा किधर थी. सब तरफ बर्फ की चादर बिछी. दूर तक ऊंचेऊंचे पहाड़ बर्फ से ढके थे.

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पेड़पौधे, वनस्पति किसी का नामोनिशान नहीं था.

‘‘यहां भटकना ऐसा है जैसे किसी रेगिस्तान में भटकना,’’ रीना ने कहा.

‘‘आप का मोबाइल फोन कहां है?’’

रीना ने वक्षस्थल के बीच में हाथ डाला. छोटी पौकेट में उस का मोबाइल फोन था. वह भी जाम था. उस को सर्दी लग रही थी. साड़ीब्लाउज के ऊपर उस ने हलका स्वैटर डाला हुआ था. कैप्टन अक्षय चौहान सफेद पैंटशर्ट पर हलकी ऊनी जैकेट पहने था. उस ने रीना के शरीर की कंपकंपी को महसूस करते हुए अपनी जैकेट उतार कर उसे पहना दी.

‘‘यहां कहां और कब तक भटकेंगे?’’

‘‘एक जगह स्थिर बैठने के बजाय चलते रहना बेहतर है. बैठे रहने से शरीर सुन्न पड़ जाएगा.’’ कहते हुए कैप्टन ने अपना बायां बाजू उस की कमर में डाल दिया और उस को अपने साथ सटा धीरेधीरे चलने लगा.

आम हालत में अपने क्रू के किसी साथी या किसी अन्य को यों बांहों में लेना संभव नहीं था. मगर अब हालात जिंदगी और मौत के थे. रीना ने शरीर को ढीला छोड़ दिया.

लगभग एक फर्लांग चलने के बाद उन को हवाई जहाज का एक पंख बर्फ में धंसा मिला. इस से उन को आशा बंधी कि हवाई जहाज के बाकी हिस्से भी आसपास होंगे.

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