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क्योंकि वह अमृत है: सरला और रमेश बाबू को लेकर दफ्तर में क्या बात होने लगी थी

सरला ने क्लर्क के पद पर कार्यभार ग्रहण किया और स्टाफ ने उस का भव्य स्वागत किया. स्वभाव व सुंदरता में कमी न रखने वाली युवती को देख कर लगा कि बनाने वाले ने उस की देह व उम्र के हिसाब से उसे अक्ल कम दी है.

यह तब पता चला जब मैं ने मिस सरला से कहा, ‘‘रमेश को गोली मारो और जाओ, चूहों द्वारा क्षतिग्रस्त की गई सभी फाइलों का ब्योरा तैयार करो,’’ इतना कह कर मैं कार्यालय से बाहर चला गया था.

दरअसल, 3 बच्चों के विधुर पिता रमेश वरिष्ठ क्लर्क होने के नाते कर्मचारियों के अच्छे सलाहकार हैं, सो सरला को भी गाइड करने लगे. इसीलिए वह उस के बहुत करीब थे.

अपने परिवार का इकलौता बेटा मैं सरकार के इस दफ्तर में यहां का प्रशासनिक अधिकारी हूं. रमेश बाबू का खूब आदर करता हूं, क्योंकि वह कर्मठ, समझदार, अनुशासित व ईमानदार व्यक्ति हैं. अकसर रमेश बाबू सरला के सामने बैठ कर गाइड करते या कभीकभी सरला को अपने पास बुला लेते और फाइलें उलटपलट कर देखा दिखाया करते.

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उन की इस हरकत पर लोग मजाक करने लगे, ‘‘मिस सरला, अपने को बदल डालो. जमाना बहुत ही खराब है. ऐसा- वैसा कुछ घट गया तो यह दफ्तर बदनाम हो जाएगा.’’

असल में जब भी मैं सरला से कोई फाइल मांगता, उस का उत्तर रमेशजी से ही शुरू होता. उस दिन भी मैं ने चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा मांगा तो वह सहजता से बोली, ‘‘रमेशजी से अभी तैयार करवा लूंगी.’’

हर काम के लिए रमेशजी हैं तो फिर सरला किसलिए है और मैं गुस्से में कह गया, ‘रमेश को गोली मारो.’ पता नहीं वह मेरे बारे में क्याक्या ऊलजलूल सोच रही होगी. मैं अगली सुबह कार्यालय पहुंचा तो सरला ने मुझ से मिलने में देर नहीं की.

‘‘सर, मैं कल से परेशान हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मुसकराते हुए मैं ने उसे खुश करने के लिए कहा, ‘‘फाइलों का ब्योरा तैयार नहीं हुआ? कोई बात नहीं, रमेशजी की मदद ले लो. सरला, अब तुम स्वतंत्र रूप से हर काम करने की कोशिश करो.’’

वह मुझे एक फाइल सौंपते हुए बोली, ‘‘सर, यह लीजिए, चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा, पर मेरी परेशानी कुछ और है.’’

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‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘कल आप ने कहा था कि रमेशजी को गोली मारो. सर, मैं रातभर सोचती रही कि रमेशजी में क्या खराबी हो सकती है जिस की वजह से मैं उन को गोली मारूं. पहेलीनुमा सलाह या अधूरे प्रश्न से मैं बहुत बेचैन होती हूं सर,’’ वह गंभीरतापूर्वक कहती गई.

तभी मेरी मां की उम्र की एक महिला मुझ से मिलने आईं. परिचय से मैं चौंक गया. वह सरला की मां हैं. जरूर सरला से संबंधित कोई शिकायत होगी. यह सोच कर मैं ने उन्हें सादर बिठाया. उन्होंने मेरे सामने वाली कुरसी पर बैठने से पहले अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर कर उस से जाने को कहा तो वह केबिन से निकल गई.

‘‘सर, मैं एक प्रार्थना ले कर आप को परेशान करने आ गई,’’ सरला की मां बोलीं.

‘‘हां, मांजी, आप एक नहीं हजार प्रार्थनाएं कर सकती हैं,’’ मैं ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘बताइए, मांजी.’’

वह बोलीं, ‘‘सर, मेरी सरला कुछ असामान्य हरकतें करती है. उस के सामने कोई बात अधूरी मत छोड़ा कीजिए. कल घर जा कर उस ने धरतीआसमान उठा कर जैसे सिर पर रख लिया हो. देर रात तक समझानेबुझाने के बाद वह सो पाई. बेचैनी में बहुत ही अजीबोगरीब हरकतें करती है. दरअसल, मैं उसे बहुत चाहती हूं, वह मेरी जिंदगी है. मैं ने सोचा कि यह बात आप को बता दूं ताकि कार्यालय में वह ऐसावैसा न करे.’’

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मैं ने आश्चर्य व धैर्यता से कहा, ‘‘मांजी, आप की बेटी का स्वभाव बहुत कुछ मेरी समझ में आ गया है. पिछले सप्ताह से मैं उसे बराबर रीड कर रहा हूं. असहनीय बेचैनी के वक्त वह अपना सिर पटकती होगी, अपने बालों को भींच कर झकझोरती होगी, चीखतीचिल्लाती होगी. बाद में उस के हाथ में जो वस्तु होती है, उसे फेंकती होगी.’’

‘‘हां, सर,’’ मांजी ने गोलगोल आंखें ऊपर करते हुए कहा, ‘‘सबकुछ ऐसा ही करती है. इसीलिए मैं बताने आई हूं कि उसे सामान्य बनाए रखने के लिए सलाहमशविरा यहीं खत्म कर लिया करें अन्यथा वह रात को न सोएगी न सोने देगी. भय है कि कहीं कार्यालय में किसी को कुछ फेंक कर न मार दे.’’

‘‘जी, मांजी, आप की सलाह पर ध्यान दिया जाएगा. पर एक प्रार्थना है कि मैं आप को मांजी कहता हूं इसलिए आप मुझे रजनीश कहिए या बेटा, मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’’

उठते हुए मांजी बोलीं, ‘‘ठीक है बेटा, एक जिज्ञासा हुई कि सरला के लक्षणों को तुम कैसे समझ पाए हो? क्या पिछले दिनों भी कार्यालय में उस ने ऐसा कुछ…’’

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‘‘नहीं, अब तक तो नहीं, पर मैं कुछ मनोभावों के संवेदनों और आप द्वारा बताए जाने से यह सब समझ पाया हूं. मेरा प्रयास रहेगा कि सरला जल्दी ही सामान्य हो जाए,’’ मैं ने मांजी को उत्तर दिया तो वह धन्यवाद दे कर केबिन से बाहर निकली और फिर सरला का माथा चूम कर बाहर चली गईं.

मैं ने अपना प्रभाव जमाने के लिए उन्हें आश्वस्त किया था. संभव है कि हालात मेरे पक्ष में हों और सरला को सामान्य करने का मेरा प्रयास सफल रहे. सरला की शादी के बाद किसी एक पुरुष की जिंदगी तो बिगड़ेगी ही, क्यों न मेरी ही बिगड़े. हालांकि उसे सामान्य करने के लिए शादी ही उपचार नहीं है पर प्रथम शोधप्रयास विवाहोपचार ही सही. वैसे मेरे हाथ के तोते तो उड़ चुके थे फिर भी साहस बटोर कर सरला को बुला कर मैं बोला, ‘‘मिस सरला, मैं एक सलाह दूं, तुम उस पर विचार कर के मुझे बताना.’’

‘‘जी, सर, सलाह बताइए, मैं रमेशजी से समझ लूंगी. रही बात विचार की, सो मैं विचार के अलावा कुछ करती भी तो नहीं, सर,’’ प्रसन्नतापूर्वक सरला ने आंखें मटकाते हुए कहा.

चंचलता उस की आंखों में झलक आई थी. तथास्तु करती परियों जैसी मुसकराहट उस के होंठों पर खिल उठी.

मैं ने सरला को ही शादी की सलाह दे कर उकसाना चाहा ताकि उसे भी कुछकुछ होने लगे और जब तक उस की शादी नहीं हो जाएगी, वह बेचैन रहेगी. घर जा कर अपने मातापिता को तंग करेगी और तब शादी की बात पर गंभीरता से विचारविमर्श होगा.

मैं तो आपादमस्तक सरला के चरित्र से जुड़ गया था और मैं ने उसे सहजता से कह दिया, ‘‘देखो, सरला, अब तुम्हें अपनी शादी कर लेनी चाहिए. अपने मातापिता से तुम यह बात कहो. मैं समझता हूं कि तुम्हारे मातापिता की सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी. उन की चिंता दूर करने का तुम्हारा फर्ज बनता है, सरला.’’

‘‘ठीक है, सर, मैं रमेशजी से पूछ लेती हूं,’’ सरला ने बुद्धुओं जैसी बात कह दी, जैसे उसे पता नहीं कि उसे क्या सलाह दी गई. उस के मन में तो रमेशजी गणेशजी की तरह ऐसे आसन ले कर बैठे थे कि आउट होने का नाम ही नहीं लेते.

मैं ने अपना माथा ठोंका और संयत हो कर बोला, ‘‘सरला, तुम 22 साल की हो और तुम्हारे अच्छे रमेशजी डबल विधुर, पूरे 45 साल के यानी तुम्हारे चाचा हैं. तुम उन्हें चाचा कहा करो.’’

मैं ने सोचा कि रमेश से ही नहीं अगलबगल में भी सब का पत्ता साफ हो जाए, ‘‘और सुनो, बगल में जो रसमोहन बैठता है उसे भैयाजी और उस के भी बगल में अनुराग को मामाजी कहा करो. ये लोग ऐसे रिश्ते के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं.’’

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‘‘जी, सर,’’ कह कर सरला वापस गई और रमेश के पास बैठ कर बोली, ‘‘चाचाजी, आज मैं अपने मम्मीपापा से अपनी शादी की बात करूंगी. क्या ठीक रहेगा, चाचाजी?’’

यह सुन कर रमेशजी तो जैसे दस- मंजिली इमारत से गिर कर बेहोश होती आवाज में बोले, ‘‘ठीक ही रहेगा.’’

5 बजे थे. सरला ने अपना बैग कंधे पर टांगा और रसमोहन से ‘भैयाजी नमस्ते’, अनुराग से ‘मामाजी नमस्ते’ कहते हुए चलती बनी. सभी अपनीअपनी त्योरियां चढ़ा रहे थे और मेरी ओर उंगली उठा कर संकेत कर रहे थे कि यह षड्यंत्र रजनीश सर का ही रचा है.

मैं जानता हूं कि मेरे विभाग के सभी पुरुषकर्मी असल में जानेमाने डोरीलाल हैं. किसी पर भी डोरे डाल सकते हैं. लेकिन शर्मदार होंगे तो इस रिश्ते को निभाएंगे और तब कहीं सरला खुले दिमाग से अपना आगापीछा सोच सकेगी. उस के मातापिता भी अपनी सुकोमल, बचकानी सी बेटी के लिए दामाद का कद, शिक्षा, पद स्तर आदि देखेंगे जिस के लिए पति के रूप में मैं बिलकुल फिट हूं.

अगली सुबह बिना बुलाए सरला मेरे कमरे में आई. मुझे उस से सुन कर बेहद खुशी हुई, ‘‘सर, मैं ने कल चाचाजी, भैयाजी, मामाजी कहा तो ये सब ऐसे देख रहे थे जैसे मैं पागल हूं. आप बताइए, क्या मैं पागल लगती हूं, सर?’’

इस मानसिक रूप से कमजोर लड़की को मैं क्या कहता, सो मैं ने उस के दिमाग के आधार पर समझाया, ‘‘देखो, सरला…चाचा, भैया, मामा लोग लड़कियों को लाड़प्यार में पागल ही कहा करते हैं. तुम्हारे मम्मीपापा भी कई बार तुम्हें ‘पगली कहीं की’ कह देते होंगे.’’

उस की ‘यस सर’ सुनतेसुनते मैं उस के पास आ गया. वह भी अब तक खड़ी हो चुकी थी. अपने को अनियंत्रित होते मैं ने उसे अपने सीने से लगा लिया और वह भी मुझ से चिपक गई, जैसे हम 2 प्रेमी एक लंबे अरसे के बाद मिले हों. हरकत आगे बढ़ी तो मैं ने उस के कंधे भींच कर उस के दोनों गालों पर एक के बाद एक चुंबन की छाप छोड़ दी.

मैं ने उसे जाने को कहा. वह चली गई तो मैं जैसे बेदिल सा हो गया. दिल गया और दर्द रह गया. पहली बार मेरा रोमरोम सिहर उठा, क्योंकि प्रथम बार स्त्रीदेह के स्पर्श की चुभन को अनुभव किया था. जन्मजन्मांतर तक याद रखने लायक प्यार के चुंबनों की छाप से जैसे सारा जहां हिल गया हो. सारे जहां का हिलना मैं ने सरला की देह में होती सिहरन की तरंगों में अनुभव किया.

प्रथम बार मैं ने किसी युवती के लिए अपने दिल में प्रेमज्योति की गरमाहट अनुभव की. काश, यह ज्योति सदा के लिए जल उठे. शायद ऐसी भावनाओं को ही प्यार कहते होंगे? यदि यह सत्य है तो मैं ने इस अद्भुत प्यार को पा लिया है उन पलों में. पहली बार लगा कि मैं अब तक मुर्दा देह था और सरला ने गरम सांसें फूंक कर मुझ में जान डाल दी है.

सरला ने दफ्तर से जाने के पहले मेरी विचारतंद्रा भंग की, ‘‘सर, आज मैं खुश भी हूं और परेशान भी. वह दोपहर पूर्व की घटना मुझ से बारबार कहती है कि मैं आप के 2 चुंबनों का उधार चुका दूं वरना मैं रातभर सो नहीं सकती.’’

मैं मन ही मन बेहद खुश था. यही तो प्यार है, पर इस पगली को कौन समझाए. इसे तो चुंबनों का कर्ज चुकता करना है, नहीं तो वह सो नहीं पाएगी. बस…प्यार हमेशा उधार रखने पर ही मजा देता है पर यह नादान लड़की. बदला चुकाना प्यार नहीं हो सकता. यदि ऐसा हुआ तो मेरी बेचैनी बढ़ेगी और वह निश्ंिचत हो जाएगी अर्थात सिर्फ मेरा प्यार जीवित रहे, यह मुझे गंवारा नहीं है और न ही हालात को.

मैं सरला को निराश नहीं कर सकता था, अत: पूछा, ‘‘सरला, क्या तुम्हें मेरी जरूरत है या एक पुरुष की?’’ और उस के चेहरे पर झलकती मासूमियत को मैं ने बिना उस का उत्तर सुने परखना चाहा. उसे अपने सीने से लगा कर कस कर भींच लिया, ‘‘सरला, इस रजनीश के लिए तुम अपनेआप को समर्पित कर दो. यही प्यार की सनक है. 2 जिंदा देहों के स्पर्श की सनक.’’

और वह भिंचती गई. चुंबनों का कौन कितना कर्जदार रहा, किस ने कितने उधार किए, कुछ होश नहीं था. शायद कुछ हिसाबकिताब न रख पाना ही प्यार होता है. हां, यही सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता.

मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘सरला, हम प्यार की झील में कूद पड़े हैं,’’ मैं ने फिर 2 चुंबन ले कर कहा, ‘‘देखो, अब इन चुंबनों को उधार रहने दो, चुकाने की मत सोचना, आज उधार, कल अदायगी. इसे मेरी ओर से, रजनीश की ओर से उपहार समझना और इसे स्वस्थ व जीवंत रखना.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह चली गई. मुझे इस बात की बेहद खुशी हुई, अब की बार उस ने ‘रमेशजी’ का नाम नहीं लिया. उस के मुड़ते ही मैं धम्म से कुरसी पर बैठ गया. लगा मेरी देह मुर्दा हो गई. सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, तभी तो कल जिंदादेह हो सकूंगा उस से मिल कर, उस से आत्मसात हो कर, अपने चुंबनों को चुकता पा कर. मैं वादा करता हूं कि अब मैं सरला की सनक के लिए फिर दोबारा मरूंगा, क्योंकि वह अमृत है.

घर से दफ्तर के लिए निकला तो मन पर कल के नशे का सुरूर बना हुआ था. मैं कब कार्यालय पहुंचा, पता ही नहीं चला. हो सकता है कि 2 देहों के आत्मसात होने में स्वभावस्वरूप पृथक हों, परंतु नतीजा तो सिर्फ ‘प्यार’ ही होता है.

आज कार्यालय में सरला नहीं आई. उस की मम्मी आईं. गंभीर समस्या का एहसास कर के मैं सहम ही नहीं गया, अंतर्मन से विक्षिप्त भी हो गया था क्योंकि इस मुर्दादेह को जिंदा करने वाली तो आई ही नहीं. पर उन की बातों से लगा कि यह दूसरा सुख था जो मेरे रोमरोम में प्रवेश कर रहा था जिसे आत्मसंतुष्टि का नाम दिया जा सके तो मैं धन्य हो जाऊं.

‘‘मेरी बेटी आज रात खूब सोई. सुबह उस में जो फुर्ती देखी है उसे देख कर मुझ से रहा नहीं गया. मुझे विवश हो कर तुम्हारे पास आना पड़ा, बेटा. आखिर कैसे-क्या हुआ? दोचार दिनों में ही उस का परिणाम दिखा. काश, वह ऐसी ही रहे, स्थायी रूप से,’’ मांजी स्थिति बता कर चुप हुईं.

‘‘हां, मांजी,’’ मैं प्रसन्नतापूर्वक बोला, ‘‘असल में मैं ने कल दुनियादारी के बारे में खुश व सामान्य रहने के गुर सरला को सिखाए और मैं चाहता हूं कि आप सरला की शादी कर दें.’’

फिर मैं ने अपने पक्ष में उन्हें सबकुछ बताया और वह खुश हुईं.

मैं ने उन की राय जाननी चाही कि वह मुझे अपने दामाद के रूप में किस तरह स्वीकारती हैं. वह हंसते हुए बोलीं, ‘‘मैं जातिवाद से दूर हूं इसलिए मुझे कोई एतराज नहीं है, बेटा. इतना जरूर है कि आप के परिवार में खासतौर से मातापिता राजी हों तो हमें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मांजी, सभी राजी होंगे तभी हम आगे बात बढ़ाएंगे,’’ मैं ने अपनी सहमति दी.

‘‘अच्छा बेटा, मन में एक बात उपजी है कि सरला दिमाग से असामान्य है, यह जान कर भी तुम उस से शादी क्यों करना चाहते हो?’’ मांजी ने अपनी दुविधा को मिटाना चाहा.

‘‘मांजी, इस का कारण तो मैं खुद भी नहीं जानता पर इतना जरूर है कि वह मुझे बेहद पसंद है. अब सवाल यह है कि शादी के बारे में वह मुझे कितना पसंद करती है.’’

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चलते वक्त मुझे व मेरे मातापिता को अगले दिन छुट्टी पर घर बुलाया. मैं जानता हूं कि मेरे मातापिता मेरी पसंद पर आपत्ति नहीं कर सकते. सो आननफानन में शादी तय हुई.

शादी के ठीक 1 सप्ताह पहले मैं और सरला अवकाश पर गए तथा निमंत्रणपत्र भी कार्यालय में सभी को बांट दिए. सब के चेहरे आश्चर्य से भरे थे. सभी खुश भी थे.

विवाह हुआ और 1 माह बाद हम ने साथसाथ कार्यभार ग्रहण किया. हमारा साथसाथ आना व जाना होने से हमें सभी आशीर्वाद देने की नजर से ही देखते.

Valentine’s Special: क्या हैं रिलेशनशिप के मायने

रिलेशनशिप, प्यार, मोहब्बत, चाहत और जाने किनकिन संज्ञाओं से हम दो प्रेमियों के अटूट बंधन को नाम देते हैं. अटूट इसलिए क्योंकि रिलेशनशिप का अर्थ ही है एकदूसरे से कभी न टूटने वाले रिश्ते की ओर कदम बढ़ाना.

हालांकि रिलेशनशिप के माने बदल रहे हैं, परंतु जिस रिलेशनशिप के विषय में हम बात कर रहे हैं वह 2 लोगों के बीच में आपसी प्रेम है जिस के वे उम्रभर साक्षी रहना चाहते हैं.

किसी के साथ रिलेशनशिप में आने का एहसास ही इतना सुहाना होता है कि इस में व्यक्ति अकसर डूबने लगते हैं और अपने जीवन का लक्ष्य ही इस रिलेशनशिप को बना लेते हैं जोकि सही नहीं है.

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जीवन में प्रेम के अलावा भी बहुत चीजें हैं जिन्हें समझना आवश्यक है. आजकल युवा रिलेशनशिप में आ तो जाते है परंतु कहीं न कहीं वे इस की गहराई को समझने में असमर्थ होते हैं. ऐसा नहीं है कि युवा प्रेम नहीं करते या उन का प्रेम गलत व झूठा है, परंतु प्रेम की परिभाषा प्रेम और प्रेमी के साथ जीना है. युवा 30-40 सालों का साथ तो चाहते हैं परंतु 3-4 साल भी साथ नहीं रह पाते.

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एक अच्छी रिलेशनशिप मानसिक सूकुन देती है. अच्छी रिलेशनशिप वह रिलेशनशिप है जिस में युवा केवल प्रेम के सागर में गोते नहीं लगाते बल्कि एकदूसरे के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं, एकदूसरे के प्रेरणास्रोत बनते हैं, एकदूसरे के हमदर्द बनते हैं. प्रेम करना और किसी का प्रेम बनना एक खास एहसास है जिस का पूरापूरा फायदा प्रेमियों को अपने रिलेशनशिप को बेहतर बनाने के लिए उठाना चाहिए.

रिलेशनशिप और साझेदारी

रिलेशनशिप सचमुच एक खुशहाल जीवन की निशानी है. एक अच्छी रिलेशनशिप एक अच्छी साझेदारी का परिणाम है. व्यक्ति रिलेशनशिप में अकसर खुश और चहकता रहता है. और छोटीमोटी तारीफों से सातवें आसमान पर पहुंच जाता है. यह सब से अच्छा रिश्ता इसलिए होता है क्योंकि यह आप को बहुतकुछ सिखाता है.

अच्छे रिलेशनशिप का अर्थ ही यह है कि वह आप की रोजमर्रा की जिंदगी में ढल जाए, एकदूसरे को आगे बढ़ना सिखाए, मुश्किलों से निकाले.

युवा अकसर रिलेशनशिप को केवल शारीरिक संबंधों की दृष्टि से देखते हैं परंतु रिलेशनशिप का अर्थ सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं है, बल्कि मानसिक और वैयक्तिक संबंध भी है.

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Kisan Andolan: रिहाना ट्विटर विवाद- किसका बहाना, किस पर निशाना?  

रिहाना के एक ट्वीट ने भारतीय समाज की वह छवि सामने ला दी है, जो लागातार धर्मांध और महिला विरोधियों द्वारा छुपाई जाती रही है. जो कहती है कि अगर आप एक राय अथवा ओपिनियन देने वाली महिला हैं तो आप की राय पर चर्चा से ज्यादा माहौल इस बात पर गर्म होगा कि आप ने यह कहने की हिम्मत कैसे कर दी. चर्चा का बिंदु आप की राय से अधिक आप का चरित्र होगा, जिसे लगातार तारतार किया जाएगा. फिर शुरू हो जाएगी वह सारी चारित्रिक छींटाकसी जिस के आधार पर सालोंसाल तक महिलाओं के आजाद खयाल कुतरे गए. उन्हें दासी बनाया गया, ना सिर्फ उन की आजादी को रोका गया, साथ ही भोग मात्र की वस्तु समझा गया.

पिछले ढाई महीने से दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों व विभिन्न राज्यों में किसानों का आन्दोलन लगातार चल रहा है. किसानों की मुख्य मांग उन तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के लिए है जिसे सरकार ने बिना किसानों के रायमशवरा के आननफानन में पास करा दिया. और जब किसानों ने कानूनों के खिलाफ आन्दोलन किया तो उन्हें आतंकवादी, गद्दार, खालिस्तानी, माओवादी, अराजक अब “विदेशी षडयंत्र” कहा जाने लगा है.

rihanna kisan andolan controversy

मौजूदा सरकार नेदिल्ली को ठीक राजामहाराज व मुगल स्टाइल में किलेबंद कर दिया है. 10-12 लेयर की चारों तरफ से स्थाई बेरिकेडिंग, सीमेंट कंक्रीट की मजबूत दीवार, बड़ेबड़े भारीभरकम कंटेनर, कंटीली तारें, सड़कों पर चौड़ी खाई और फिर शरीर को भेद डालने वाले लंबीलंबी कीलें गाढ़ दीहैं.शरीर को भेदने (ना कि ट्रेक्टर के टायर फाड़ने) का अर्थात स्पष्ट है कि अगर किसान बेरिकेड पार करते हैं तो वह अपनी मौत को बुलावा देते हैं.

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दिल्ली के बोर्डर अब देश के अंतरराष्ट्रीय सीमाओं सी प्रतीत होने लगे हैं. कश्मीरनुमा हालात बने दिल्ली के सरहदों में सरकार द्वारालंबे समय से इन्टरनेट ब्लोकेज कर दिया गया है. जो अपनेआप में अनडेमोक्रेटिक और अथोरिटेरीयन प्रक्रिया का हिस्सा है.इसी का जिक्र करते हुए बार्बाडियन अमेरिकन मशहूर पौप स्टार रिहाना ने 2 तारिख को अपने ट्विट्टर से एक ट्वीट किया. जिस में उन्होंने सीएनएन द्वारा धरनास्थलों पर सरकार द्वारा इन्टरनेट सेवा बंद करने को लेकर लिखे एक आर्टिकल का जिक्र करते हुए लिखा कि, “हम इस के बारे में क्यों नहीं बात कर रहे हैं?

यह ट्वीट रिहाना ने सरकार के उन कदमों की तरफ इशारा करते हुए लिखा था जिस के तहत सरकार द्वारा लोकतान्त्रिक अधिकारों का दमन किया जा रहा है. इस में हैरानी नहीं होनी चाहिए कि मात्र 14 घंटों के भीतर रिहाना के ट्वीट को लभगग 2,15,000 रिट्वीट मिले औरसाढ़े 5 लाख लाइक मिल गए. जिस के बाद विदेशों में नामी हस्तियों ने इस पर ट्वीट करना शुरू किया. जो लगातार बढ़ रहे हैं.

रिहाना के इस ट्वीट के बाद कई विदेशी हस्तीयों के ट्वीट व रिट्वीट भारतीय किसानों के पक्ष में आने लगे. जिस में पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थानबर्ग, व्लोगर-मोडेल अमांडा सरनी, बैरन डेविस, कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस, पूर्व एडल्ट स्टार मिया खलीफा इत्यादि थे. यहां तक कि अमेरिकी फुटबालर जूजू स्मिथ ने ट्विटर से भारतीय किसानों की मदद के लिए मेडिकल सपोर्ट के लिए 10 हजार डौलर देने का फैसला किया.

18 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग ने अपने ट्वीट के माध्यम से कहा, “हम भारत के किसानों के आन्दोलन के समर्थन में हैं.” जिस के बाद दिल्ली पुलिस ने सेक्शन 120बी और 153-ए के तहत ग्रेटा व अन्य पर मुकदमा दर्ज किया. दिल्ली पुलिस की इस कार्यवाही के बाद ग्रेटा ने और मजबूती से किसान आन्दोलन को अपना समर्थन दिया और ट्वीट किया. वहीँ मीना हैरिस ने भी किसानों के पक्ष में एक के बाद एक कई ट्वीट लगातार किए.

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Rihanna tweet controvecry

किन्तु रिहाना के इस एक ट्वीट के बाद मानो भाजपा सरकार की चूलें हिलने लगीं, सरकार की तरफ से बिना रिहाना व अन्य नाम लिए व भाजपा के बड़ेबड़े नेताओं द्वारा सीधे तौर पर इसे देश को तोड़ने व बदनाम करने के षडयंत्र का हिस्सा बताया गया. सरकारी महकमे से मिनिस्ट्री औफ़ एक्सटर्नल अफैर्स के स्पोकपर्सन अनुराग श्रीवास्तव ने ट्वीट करते हुए एक एडवाइजरी ही जारी कर दी, फिर उस के बाद सारा कैबिनेट ट्विटरट्विटर खेलने लगा. ध्यान हो तो यह वही कैबिनेट है जिस के अड़ियल रवैये के चलते ही यह गतिरोध बना हुआ है. इस में फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण, होम मिनिस्टर अमित शाह, विदेश मंत्री जय शंकर, किरण रिजूजू सरीखे लम्बे नामों की फेहरिस्त शामिल है. भारत देश के लिएइस से बड़ी शर्मिंदगी क्या हो सकती है कि किसी विदेशी सेलेब्रिटी के एक ट्वीट को इग्नोर अथवा उस की राय को स्वीकृत करने की बजायपूरी सरकार ही उस के खिलाफट्विटर कैम्पैन चलाने लग गई.

ठीक इसी कड़ी में सरकार द्वारा प्रायोजित इस ट्विटर कैम्पैन में भारतीय सेलेब्रिटी और कुछ स्पोर्टस्टार द्वारा एक तय सेट पैटर्न से हैशटेग इंडिया अगेंस्ट प्रोपेगेंडा और हैशटेग इंडिया टूगेदर नाम से ट्विटर ट्रेंड किया गया/करवाया गया. अमांडा ने भारत के इन बौलीवुड स्टार पर तीखी टिप्पणी की. उन्होंने लिखा, “इन लोगों (स्टार) को किस ने हायर किया इसे प्रोपेगेंडा कहने के लिए? ओह्.. कमओन, कम से कम ईमानदार तो बनो.”

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ध्यान देने वाली बात यह कि इन में से लगभग वह हस्तियां व नेता हैं जिन्होंने मोदी द्वारा ट्रंप के लिए किए गए चुनाव प्रचार का कभी विरोध नहीं किया. अमेरिका के चुनाव में भारतीय प्रधानमंत्री के दखल की कभी भी आलोचना नहीं की. पिछले ढाई महीनों से कड़कड़ाती ठंड में लगातार चलते आ रहे किसान आन्दोलन पर एक ट्वीट तक नहीं किया.उन के प्रति अपनी सहानुभूती तक व्यक्त नहीं की. यह वही लोग हैं जिन्होंने इस जनआन्दोलन के दौरान 100 से ऊपर किसानों के शहीद हो जाने पर एक चूं तक नहीं की. फिर एकाएक इन का यह ट्वीट किसी सरकारी मोर्चेबंदी से कम नहीं लगते.सरकार ने असल बात को बड़े चालाकी से इन सेलेब्रिटी और अंधभक्तों द्वारा घुमादिया. इसे ‘राष्ट काअपमान, ‘बाहरी षडयंत्र’ और ‘आतंरिक दखल’ कह कर पूरा मसला ही घुमा दिया, जबकी मुख्य मसला सरकार के अनडेमोक्रेटिक प्रैक्टिसको रोके जाने का है.

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समस्या यह है कि भारत जैसे अद्भुत देश में मुददे का मवाद बनने में अधिक समय नहीं लगता. ठीक यही चीजरिहाना के ट्वीट के बाद शुरू हो गया.शुरुआत सरकार और भाजपा नेताओं के गैरजरुरी और अनौखे ट्वीट से हुई, जो भक्तों तक पहुंच कर पूरी गंदगी पर उतर आई. सोशल मीडिया पर आन्तरिक मामलों पर दखल ना देने के अलावा रिहाना व अन्य विदेशी हस्तियों के खिलाफ ना सिर्फ धड़ाधड़ ट्रोलिंग शुरू हो गई बल्कि उस ट्रोलिंग में मर्दवादी अहंकार, अश्लीलता, नस्लवादी टिप्पणियां भरपूर देखी गईं.

इस का उदाहरण इसी से लगाया जा सकता है कि रिहाना के ट्वीट के कुछ घंटों बाद ही सिंगर क्रिस ब्राउन का नाम ट्रेंड किया जाने लगा.कई भारतीय उज्जड भक्तों ने अपनी डीपी चेंज की और क्रिस ब्राउन की फोटो लगा कर कहा कि “हम आप (क्रिस ब्राउन) से माफी चाहते हैं, हम ने आप को गलत समझा.” इन ट्वीट में वे ट्वीट भी हैं जिन में क्रिस ब्राउन द्वारा रिहाना को फिजिकल असौल्ट और हरैस करने के वाक्या को सही ठहराया गया. ट्वीट कर के कहा जाने लगा की, “रिहाना पर किए असौल्ट के लिए दिल से सम्मान.”, “रिस्पेक्ट क्रिस ब्राउन”, “क्रिस ब्राउन की याद आ रही है”, क्रिस ब्राउन ने कुछ गलत नहीं किया.”

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यह एक प्रकार से बेशर्मी की हद है कि जिस महिला के साथ फिजिकल असौल्ट किया गया उस का विरोध करने के लिए, उस के अपराधी व अपराध के समर्थन में ट्रेंड चलाया गया.इस मानसिकता की जड़ ठीक वहीं से पैदा हो रही है जिस ने कठुआ कांड की 8 वर्षीय रेप पीड़िता के खिलाफ अपराधियों का समर्थन किया.

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शर्मनाक बात तो यह कि रिहाना की उस फोटो को बारबार शेयर किया गया जिस में उन का चेहरा फिजिकल असौल्ट से बुरी तरह चोटिल था, इस फोटो को शेयर करते हुए कहा जाने लगा कि “यह (रिहाना) इस से बुरे सजा की हक़दार है. इस के साथ इस से बढ़ कर और होना चाहिए था.”

ध्यान देने वाली बात यह कि इन में से कई ट्रोलर्स सुनियोजित तरीके से एक ही तरह का ट्रेंड करते दिखाई दिए. कुछ ट्विटर हैंडल बिना फोटो और असत्यापित नाम के थे. जिसे देख कर कोई भी जान सकता है कि एक प्रकार से सुनियोजित हमला सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है. भाजपा आईटीसेल लगातार इस प्रक्रिया में भाजपा समर्थन के साथ उन्मुक्त हो कर इस कार्यवाही को अंजाम देता रहा.भारतीय न्यूज़चैनलों से ले कर दक्षिणपंथी वेबसाईटों में रिहाना के चरित्र पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष निशाना साधा जाने लगा.उस के पुराने ट्वीट खंगाले जाने लगे जिस में वह गालीनुमा भाषा का इस्तेमाल कर रही है. उन की अर्धनग्न तसवीरों को जानबूझ कर दिखाया जाने लगा ताकि तथाकथित भारतीय संस्कृति में चरित्रहीन दिखाई जा सके.

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दिलचस्प यह कि कई लोग रिहाना की जगह बेयोंस की फोटो लगा कर मूर्खता से ट्रोल करने लगे.रिहाना को स्टेज पर नाचने वाली ‘नचनिया’ कहा जाने लगा. सोशल मीडिया पर कहा जाने लगा कि,“रिहाना अब नाचने लायक नहीं रही.”, “रिहाना बार डांसर है.” यह ठीक उसी प्रकार के ट्वीट रहे जैसेकांग्रेस की पूर्व प्रेसिडेंट सोंनिया गांधी को बदनाम करने के लिए उन्हें ‘इटालियन बार डांसर’ कहा जाता रहा है. कुछ तरह के ट्वीट्स में उन्हें ‘नाईट गर्ल’ कहा गया.

शर्मनाक बात तो यह कि रिहाना की उस फोटो को बारबार शेयर किया गया जिस में उन का चेहरा फि

ऐसे ही एक नवीन ठाकुर जो खुद को “राष्ट्रवादी” बताते हैं, वह भाजपा नेता कपिल मिश्रा के ट्वीट के सिमिलर ट्वीट में लिखते हैं, “आन्दोलन शुरू हुआ मंडियों पे, अब खत्म होगा……पे.” ऐसे ही एक व्यक्ति आनंद पांडे हैं जो रिहाना को टेग करते हुए लिखते हैं, “मोहतरमा चमड़ी उखाड़ देंगे, अपनी गंदगी अपने साथ रखो, नहीं तो जमीन में गाढ़ देंगे. अपने कपड़े संभाल कर रखो.” वहीँ एक अन्य लिखते हैं, “बार डांसर से शुरू हुआ आंदोलन पोर्न स्टार तक जा पहुंचा है.” ऐसे हीअभिनाश मिश्रा इन हस्तियों पर अभद्र टिप्पणी कर अश्लील मीम शेयर करते हैं. यह कोई एकआध नहीं बल्कि इस तरह की ट्रोलर की फौज इंडिया अगेंस्ट प्रोपेगेंडा और यूनाइटेड इंडिया के हैशटेग से लगातार चलाती रही जिस में महिलाओं के राय पर विचार से अधिक उन के शरीर, चरित्र, रंग इत्यादि पर निशाना साधा गया. खास बात यह कि इन लोगों का जुडाव नहीं न कहीं भाजपा से या उस की आईसेल से आसानी से देखा जा सकता है. कई ट्रोल तो हिन्दूवादी संगठनों द्वारा सुनियोजित तौर से किए गए. किन्तु इस फैर में भारतीय हस्तियों का फंसना दुर्भाग्यपूर्ण है.

इस से सीधासीधा समझा जा सकता है कि ना तो सरकार के पास रिहाना के ट्वीट का तार्किक जवाब था और ना ही उन हैटर्स के पास था जो लगातार अश्लील व महिला विरोधी ट्वीट कर रहे थे.

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कई ट्वीट में उन्हें ‘बेवकूफ़’शब्द से ट्वीट किया गया. यह उन के ओपिनियन कोबिना तर्क के ख़ारिज करने जैसा था.यह चीजें आमतौर पर घरपरिवारों में आसानी से देखने को मिल ही जाती हैं, जहां महिलाओं की राय को समझने, चिंतन करने की बजाय उसे पुरुष सदस्यों द्वारा सिरे से ख़ारिज कर दिया जाता है. ठीक इसी प्रकार ट्विटर पर मशहूर हस्तीयों और ट्रोलर्स द्वारा ऐसे ही एक जैसा मिलताजुलता ट्रेंड रिहाना और बाकी लोगों के लिए सरकार के समर्थन में किया गया. ध्यान देने वाली बात यह कि यही वह सेलेबस है जो अमेरिका में चल रहे ‘ब्लैक लिव्स मेटर’ पर ट्वीट करते पाए गए.हाल यह है कि अब रिहाना समेत ग्रेटा इत्यादि लोगों का पुतला और पोस्टर कट्टर हिन्दू संगठनों द्वारा जलाया जा रहा है,यह हिन्दू संगठन भाजपा द्वारा पालेपौसे गए हैं जिन का स्वरुप जातिवादी, सांप्रदायिक और महिला विरोधी मानसिकता से ओतप्रोत है.

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मसलन जरुरी यह था कि देशवासियों और खास कर सेलेब्रिटी द्वारा यह सोचा जाना चाहिए कि आखिर ऐसी नौबत क्यों आई कि विदेशों से लोगों को किसान आन्दोलन में समर्थन देना पड़ा? क्यों उन्हें ट्वीट करना पड़ा? आखिर सरकार इतने महीनों से हमारे अन्नदाताओं की समस्याओं का निपटारा क्यों नहीं कर पा रही? आखिर क्यों दिल्ली को किलेबंदी में तब्दील किया गया है? आखिर क्यों देश का किसान सड़कों पर आने को मजबूर हुआ है? आखिर क्यों निर्दोष पत्रकारों को बेबुनियाद मामलों में फंसाया जा रहा है?किन्तु मौजूदा स्थिति को देख कर सच तो यह लगता है कि यहां की शहरी और वाइट कौलर तबके की रीढ़ पूरी तरह से सरकार के लिए झुक चुकी है. वे सही को सही और गलत को गलत कहने लायक नहीं रह गए हैं.

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गौरतलब है कि रिहाना ने भारत के किसानों के संदर्भ में ट्विटर पर अपनी बात रखी. भारत में रहने वाले सवर्ण लोगों को उन की यह बात हजम नहीं हुई. क्यों नहीं हुई?सीधा सा कारण यह कि स्वर्ण समाज का एक बड़ा हिस्सा हमेशा से मानता रहा है कि विदेशी या पाश्चात्य संस्कृति भारत के लिए ठीक नहीं है. वहां के विचारों, सभ्यता और रायमशवरों की भारत में कोई जगह नहीं है. ठीक भाजपा जो स्वर्ण समाज की अगुवाई करती आई है वह भी इसी तौर पर कार्यवाहियों को अंजाम देती रही है. इन का मानना है कि पश्चिमी देशों की महिलाओं को हद से ज्यादा आजादी मिली हुई है. वहां महिलाएं पुरुषों की बराबरी रखने में अग्रणी हैं. यही कारण है कि यह लोग जब  देखो भारतीय संस्कृति की दुहाई देते फिरते हैं, और यह इस मामले मने भी दिखा जहां रिहाना को बहाना बना एक सुर में पुरजोर तरीके से तमाम भाजपा पार्टी और हिंदूवादी दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा यह कैम्पैन चलाया गया.

इस कैम्पैन के माध्यम से ना सिर्फ किसान आन्दोलन को विदेशी समर्थन मिलने से रोकने का प्रयत्न किया गया बल्कि देश में उठ रही आवाजों को भी संदेश देने की कोशिश की गई. साथ ही सरकार के पास किसानों के आन्दोलन को गलत ठहराने की सारी देशी वजहें खत्म हो गई तो यह “विदेशी षडयंत्र” एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

आज देश की स्थिति यह है कि सरकारजब चाहे किसी भी चीज को कोई भी षडयंत्र कह कर देश को लगातार मुर्ख बना रही है. जबकि वह खुद किसानों के खिलाफ नए प्रकार का षडयंत्र खड़ा खड़ा कर रही हैऔर पढ़ालिखा तबका जानेअनजाने मुर्ख बन भी रहा है, और देश के लोकतंत्र के ताबूत में दिल्ली बौर्डरों के इर्दगिर्द लगाईं कीलों को गाढ रहा है. यह तबका न सिर्फ अफवाह और भ्रम में सरकार का साथ दे रहा है बल्कि समाज में ऐसे विचार का साथ भी दे रहा है जो न सिर्फ किसान विरोधी है बल्कि दलित, अल्पसंख्यक और महिला विरोधी भी है.

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कौन है रिहाना

रिहाना का जन्म फरवरी 1988 में हुआ था. रिहाना का पूरा नाम रौबिन रिहाना फेंटी है. सेंट माइकल में जन्मी व ब्रिज टाउन में पली बढ़ी रिहाना ने अपने कैरियर की शुरुआत साल 2005 में सिंगर के तौर पर की. उन्होंने शुरुआत में 2 म्यूजिक एल्बम जिन का नाम ‘म्युजिक ऑफ़ द सन’- 2005 और ‘अ गर्ल लाइक मी’- 2006 में रिलीज किया.

रिहाना को ‘अम्ब्रेला’ गाने के लिए ग्रेमी अवार्ड मिल चुका है. रिहाना को “ब्लैक मडोना” के नाम से भी जाना जाता है.रिहाना अपने यंग एज में बौब मारले के गानों से प्रभावित थी.रिहाना 24 चैरिटी और सोशल काउज फाउंडेशन को सपोर्ट करती है. जिन में मुख्य नाम यूनिसेफ, सेफ द चिल्ड्रेन, अल्जाईमर एसोसिएशन, राजिंग मलावी व अन्य है.

रिहाना की अपनी अपना भी फाउंडेशन है जिस का नाम ‘क्लारा लीओनल फाउंडेशन’ है. सीएलएफ ने 5 मिलियन विभिन्न आर्गेनाईजेशन के जरिए अलगअलग देशों में कोविड-19 से लड़ने के लिए चैरिटी की. जिन में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ‘डायरेक्ट रिलीफ पार्टनर इन हेल्थ’भी शामिल था. इस के अलावा रिहाना की होम कंट्री बार्बाडोज में कोविड-19 से लड़ने के लिए 7 लाख डॉलर की आर्थिक मदद की सिर्फ वेंटिलेटर खरीदने के लिए.

रिहाना की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ट्विटर पर रिहाना के लगभग 101 मिलियन फोलोवर्स हैं और जो ट्विटर पर इस समय सब से ज्याद फोलो किये जाने वाले स्टार में से चौथे पायदान पर हैं. ध्यान देने वाली बात यह कि इस लिस्ट में मोदी लगभग 63 मिलियन के साथ 11वें पायदान पर हैं.

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  • रिहाना-क्रिस ब्राउन विवाद

8 फ़रवरी 2009 को 51वे ग्रेमी अवार्ड सेरेमनी से ठीक पहले रिहाना की परफोर्मेंस रद हो गई. कारण था उस समय उन के बौयफ्रेंड क्रिस ब्राउन (जो खुद भी एक सिंगर हैं) द्वारा उन के साथ फिजिकल असौल्ट किया गया. जिन से में रिहाना को ब्राउन के द्वारा बुरी तरह से मारपीट की गई. जिस के चलते उन के शरीर में गहरे चोटों के निशान बन गए थे.

इस खबर ने रातोंरात आग पकड़ ली.पुलिस स्टेशन से रिहाना के घायल चेहरे की तस्वीर रातोंरत वायरल हो गई थी. ‘स्टोपराजी’ नाम की संस्था ने रिहाना का फिसिकल असौल्ट का केस लड़ा. 22 जून 2009 को ब्राउन को इस फिसिकल असौल्ट के लिए दोषी घोषित किए गए. ब्राउन को सजा के तौर पर 5 साल के लिए रिहाना से 50 यार्ड की दूरी बनाए रखने की सजा मिली, इस के साथसाथ 1400 घंटों के लिए लेबर ओरिएंटेड सजा सुनाई गई.

2017 में रिलीज़ हुई एक डोक्युमेंट्री, क्रिस ब्राउन : वेलकम टू माय लाइफ, में क्रिस ब्राउन ने अपने गलती फिर से पब्लिकली स्वीकार की थी. जिस में उन्होंने खुद को उस घटना पर “मोंस्टर” बताया था.उन्होंने कहा, “मुझे याद है वो मुझे लात मारने की कोशिश कर रही थी लेकिन मैं ने बंद मुट्ठी से जोर से उस के होंट पर वार किया. जिस से उस का होंट बुरी तरह फट गया. मैं ने जब देखा तो मैं खुद हैरान रह गया. मुझे महसूस हुआ कि मैं ने ऐसा क्यों किया?”

जिस घटना को खुद क्रिस ब्राउन गिल्ट फील करते हैं उस घटना को जानबूझ कर कुरेद कर रिहाना को ट्रोलर द्वारा तंग करने की कोशिश की गई.

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फिल्म ‘अली: द ब्लाइंड बाक्सर’ सामाजिक भेदभाव के खिलाफ एक लड़ाई है

हर इंसान का जन्म समान रूप से होता है.लेकिन इंसान के जन्म लेने के बाद समाज उसके साथ भेदभाव करते हुए बांट देता है. इंसान को जाति,धर्म से लेकर उसके शारीरिक रंग रूप व शारीरिक बनावट के आधार पर की जाती है.नेत्रहीन यानी कि आंखों की रोशनी खो चुके विकलांगों के साथ सर्वाधिक भेदभाव किया जाता है.नेत्रहीन को बाक्सर बनने की इजाजत नही है.‘बाक्सिंग फेडरेशन नेत्रहीन/दृष्टिहीन दिव्यांग को बाक्सिंग की रिंग में उतरने की इजाजत नहीं देता.

जबकि यूगांडा, इंग्लैंड जैसे देशों में दृष्टिहीन बाक्सर हैं,मगर उन्हें इसे पेशे के रूप में खेलने की इजाजत नहीं है.सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि पैरा ओलंपिक में व्हील चेअर(जिनके पैर नहीं है अथवा जो अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते) पर बैठे दिव्यांग को बाक्सिंग रिंग में उतर कर बाक्सिंग प्रतियोगिता का हिस्सा बनने का हक है,मगर दृष्टिहीन/अंधे इंसान को पैरा ओलंपिक भी बाक्सर बनने की इजाजत नहीं देता.

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इसे नेत्रहीन विकलांगों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव मानते हुए ही पुरस्कृत फिल्म सर्जक जोड़ी बिजाॅय बनर्जी और कौशिक मंडोल ने एक घंटे की फिल्म ‘ अली: द ब्लाइंड बाक्सर’बनायी है,जो कि जन्म से ही अंधे/दृष्टिहीन बालक के बाक्सर बनने की दास्तान है.यह फिल्म इस बात का भी सबूत है कि एक नेत्रहीन दिव्यांग भी बाक्सर बन सकता है और वह बाक्सिंग रिंग के अंदर आंखों से देख सकने वाले किसी भी बाक्सर के साथ प्रतियोगिता कर सकता है.यानीकि बिजाॅय बनर्जी और कौशिक मंडोल एक ज्वलंत मुद्दे पर मकसदपूर्ण फिल्म लेकर आए हैं, जिसे कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कृत किया जा चुका है.

प्रस्तुत है फिल्मकार जोड़ी बिजाॅय बनर्जी और कौशिक मंडोल के बिजाॅय बनर्जी संग हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..
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अपनी पृष्ठभूमि और अब तक की यात्रा के बारे में बताएं?

-मेरा जन्म व परवरिश कलकत्ता में हुई.जाधवपुर युनिवर्सिटी से 1995 में मैने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की.फिर 1999 में मैंने दिल्ली से इंटरनेशनल बिजनेस विषय में एमबीए किया.1999 में ही मेरा कारपोरेट जगत में कैरियर शुरू हुआ.मैं कुछ वर्ष विदेश में भी रहा.कई कंपनियों में उच्च पदों पर रहा.एक कंपनी का सीईओ भी रहा.मैं यूरोप,इंग्लैंड,एशिया के कई देशों में रहा.कारपोरेट जगत में काफी व्यस्त जिंदगी रही.पर मेरे मन में फिल्म बनाने की इच्छा रही है.फिल्म के प्रति मेरा पैशन रहा है.2014 में मैने फिल्म निर्माण करने की ठान ली.इसलिए मैंने अपनी नौकरी छोड़कर इस दिशा में काम करने का मन बनाया.इसमें मेरे मित्र कौशिक मंडोल का साथ मिला.वर्ह आई आईटी खड़कपुर,इलेक्ट्रॉनिक्स से हैं और वह अभी भी इंफोसिस,पुणे में कार्यरत हैं.कहानी सुनाना हम दोनों का पैशन है.हमने ऑडियो विज्युअल माध्यम का उपयोग कर उन कहानियों को सुनाने का निर्णय लिया,जो कि समाज से निकली हों,मगर जिन्हे हम देख नही पाते हैं या हम उन्हे अनदेखा कर देते हैं.

ऐसी कहानियां कहने में ही हम दोनों की रूचि है.हम लोगो ने 2015 में बंगला भाषा में एक 20 मिनट की लघु फिल्म ‘उपहार’बनायी थी.इसमें हमने एक बच्चे के नजरिए से दिखाया है कि एक एकाकी परिवार की वजह से रिश्तों  में  किस तरह से असर पड़ता है.इस फिल्म को कई अंतरराष्ट्रीय  पुरस्कार,बाल कलाकार को सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का अवार्ड भी मिला.यहां से हमारी सिनेमाई यात्रा शुरू हुई.हमने फिल्म मेकिंग का कोई कोर्स नहीं किया है.काम करते हुए ही सीखा.इसके बाद हमने एक घंटे की फिल्म ‘अली: द ब्लाइंड बाॅक्सर’बनायी.

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फिल्म‘लकी: द ब्लाइंड बाक्सर’ बनाने का ख्याल कैसे आया?
-‘उपहार’को मिली सफलता व शोहरत ने हमें कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया.तब हमने सोचना शुरू किया कि किस विषय को उठाया जाए?हमने महसूस किया कि हमारे यहां सामाजिक भेदभाव काफी हैं.यह बात मुझे व कौशिक को काफी कष्ट देती है.मेरा मानना है कि हम सभी समान स्तर पर ही पैदा होते हैं,उसके बाद समाज हम पर लेबल लगाता है.समाज हमे स्किन/चमड़ी के रंग,शारीरिक बनावट आदि के आधार पर बांटती है और यह तय करती है कि कौन हमारे समकक्ष है,कौन हसमे उंचा है और कौन हमसे नीचा है.यह बातें हमें कष्ट देती है.इसी बीच हमें यह जानकर आष्चर्य हुआ कि दृष्टिहीन/अंधे इंसान को समाज में ‘बेचारा’की दृष्टि से देखा जाता है.

इतना ही नहीं खेल जगत में एक ऐसा क्षेत्र है,जहां नेत्रहीनों को अछूत माना जाता है.और यह खेल है बाॅक्सिंग.इस बात ने हमें आश्चर्य  चकित करने के साथ ही तकलीफ पहुॅचायी और सोचने पर भी मजबूर किया.बाॅक्सिंग फेडरेशन का नियम है कि दृष्टिहीन इंसान बाॅक्सिंग का हिस्सा नहीं बन सकते और इस नियम को बदला नहीं जा सकता.पैरा ओलंपिक में जूड़ो,कराटे जैसे शरीर को छूने वाले खेल दृष्टिहीनों के लिए हैं,मगर बाॅक्सिंग नही है.अब आप खुद सोचिए कि एक इंसान व्हील चेअर पर बैठा हुआ है,उसके पैर नही है,तब भी वह बाॅक्सिंग कर सकता है,मगर दृष्टिहीन इंसान बाॅक्सिंग नहीं कर सकता.

जबकि मेरी रूचि बाक्सिंग में काफी रही है.क्योंकि बाॅॅक्सिंग सिर्फ एक खेल नही हैं,यह तो बाॅक्सिंग रिंग में तीन मिनट तक ‘मोमेंट आफ सरवाइवल’यानीकि खुद को जीवंत रखने का पल है.

हम सैलाॅन की ‘राॅकी’ सहित कई फिल्में देख चुके हैं.‘बाॅक्सिंग’के खेल में यह बात मायने नहीं रखती कि आपको कितनी बड़ी चोट लगी है, बल्कि मायने यह रखता है कि चोटिल होने के बावजूद आप कितनी जल्दी उठ खड़े होते हैं.कितनी जल्दी चोट से उबरते हैं.ऐसे में हमें लगा कि यदि समाज व खेल जगत में इतना भेदभाव है,तो क्यों हैं? क्या वास्तव में दृष्टिहीन का बाॅक्स बनना मुमकीन नही है.तब हमने इस पर शोध करना शुरू किया.

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आपने शोध में क्या पाया?

-हमने शोध में पाया कि भारत में एक भी दृष्टिहीन बाॅक्सर नही है.पूरे विश्व में तीन चार लोग हैं.मसलन, यूगांडा,आस्टे्लिया व इंग्लैंड में हैं.यह वह लोग हैं,जो कि वयस्क हैं और किसी दुर्घटना में अपनी आंखों की रोशनी खो बैठने के बाद अंधे हो गए.जब आप उम्र के किसी पड़ाव में आकर दृष्टिहीन हो जाए,तो इसका मनोवैज्ञानिक असर होता है,यह लोग फ्रस्ट्रेशन में पंचिंग करने लगे. पंचिंग करते करते यह बाॅक्सर बन गए.अमरीका के ए ले में ‘मिक्स मार्शल आर्ट’का खेल होता है.थाईलैंड व यूके में एक दृष्टिहीन लड़का है और बाॅक्सिंग करता है.यूगांडा के कम्पाला शहर में बशीर रामनाथन लंबे समय से बाॅक्सिंग फेडरेशन से मांग कर रहे हैं कि उसे लायसेंस दिया जाए,वह प्रोफेशनल बाॅक्सिंग करना चाहता है.पर बाॅक्सिंग फेडरेशन उसे लायसेंस देने को तैयार नही है,जबकि उसने बाॅक्सिंग सीखी है.फेडरेशन का कहना है कि हम तुम्हे प्रोफेशनल बाॅक्सर से लड़ने के लिए अवसर देंगे,मगर हम देख सकने वाले बाक्सर की आंख में पटी बांध देंगे,यह बात शबीर रामनाथन को मंजूर नही.वह कहता है कि मुझे सामान्य बाॅक्सर संग ही बाक्सिंग प्रतियोगिता करनी है.शबीर का मनना है कि दृष्टिहीन होते हुए भी उसने अपने तरीके से देखना सीखा है.

यदि आंखों की रोशनी वाले को उसकी आंख पर पट्टी बांधकररिंग में उतारोगे,तो यह उसके साथ अन्याय होगा.मेरे कहने का अर्थ यह है कि हर दृष्टिहीन इंसान अपने तरीके से देखता है,पर हम उसकी तारीफ नही कर पाते.हमने जितने भी ऐसे उदाहरण देखे,वह सभी किसी न किसी दुर्घटना में अंधे हो चुके है,उसके बाद उन्होने बाॅक्सिंग के बारे में सोचा.

शोध करने के बाद हमने ऐसे बालक के बारे में कहानी सोची जो कि जन्म से अंधा है और बाॅक्सर बनता है.एक बाक्सर की जरुरत के अनुसार उसके पंच में दम है, उसके अंदर जुनून है, मगर आंख में रोशनी नही है.तो क्या वह बाॅक्सर के रूप में अपनी यात्रा को आगे बढ़ा सकता है?इस तरह की कहानी के माध्यम से हम स्वयं यह जानना व परखना चाहते थे कि एक दृष्टिहीन इंसान का बाॅक्सर बनना संभव/मुमकीन है या नहीं है.

हमारे देश में कई एनजीओ है,जो कि अपने फायद के लिए कुछ गतिविधियां करते रहते हैं.अंधों के लिए फुुटबाल स्टेडियम का उद्घाटन हुआ,तो वहां कुछ अंधे बालकों को लेकर गए.दिन भर धूप में खड़ा रखा, मगर फुटबाल को पैर तक मारने नहीं दिया.सिर्फ नेता आए,इन बालको संग फोटो खिंचवायी,इसके अलावा कुछ नहीं.इस तरह के अनुभव इन दृष्टिहीन बालकों को होते रहे हैं.वह दृष्टिहीन बालक के माता पिता से उनके बच्चे को कुछ बना देने के झूठे आश्वासन देते रहते हैं.

फिल्म ‘‘अली:द ब्लाइंड बाक्सर’’ की कहानी क्या है?

-यह कहानी एक सोलह सत्रह वर्ष के जन्म से ही दृष्टिहीन बालक अली की है.उसके माता पिता मध्यमवर्गीय हैं और बहन है.वह स्कूल जाता है.एक सामान्य जिंदगी जी रहा है.उसके मम्मी पापा मानते हैं कि उनका बेटा दुनिया में किसी से कम नहीं है.उसके माता पिता के पास अक्सर एनजीओ के लोग आकर बड़ी बड़ी बातें करके जा चुके हैं.एक दिन एक बाक्सिंग कोच की नजर अली पर पड़ती है और वह उसे बाक्सर बनाने का निर्णय लेता है.जिसके लिए अली व उसके माता पिता भी तैयार हो जाते हैं.प्रशिक्षण हासिल करने के बाद अली बाक्सिंग रिंग में उतर कर आंखों से देख सकने वाले बाॅक्सिंग चैंम्पियन से प्रतियोगिता करता है और विजयी होता है.अंततः अली पूरे समाज के सामने दिखाता है कि वह बाक्सिंग कर सकता है.वह एक बेहतरीन बाॅक्सर है.

फिल्म ‘अली द ब्लाइंड बाक्सर’ में एक अंधे बालक को बाक्सर बनाने की बात की गयी है?

-इसी के साथ हमने इस फिल्म में दिव्यांग बच्चों का अपने माता पिता के साथ किस तरह का इक्वेषन होता है,इसे भी चित्रित किया है.एक घटना ऐसी घटित होती है कि बाॅक्सिंग कोच की नजर अली पर पड़ती है.उसे कुछ अहसास होता है और वह तय करता है कि वह अली को बाॅक्सिंग सिखाएगा.उसके बाद अली व उस कोच की यात्रा शुरू होती है.साथ में सामाजिक इनजस्टिस/ अन्याय की बातों को भी उठायी हैं.सबसे बड़ी बात यह कि हम स्वयं यह समझना चाहते थे कि क्या यह सिर्फ एक मानसिकता का मुद्दा है या तकनीकी अड़चन है.
हम मानते है कि बॉक्सिंग ताकत और चपलता का खतरनाक खेल है.गलत जगह जबड़ा टूटा या मुक्का मारा जाए,तो एक पल की देरी से जान का खतरा होता है.मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि नेत्रहीन/अंधा इंसान अपने तरीके से देख सकता है.

कलाकारों का चयन?

-पटकथा लिखने के बाद हमने सोचा कि यदि हमने किसी आंखों की रोशनी वाले कलाकार को अली के किरदार में लेकर फिल्म बनाई,तो हमारा जो मकसद है,वह तो पूरा नहीं हो सकता.इसलिए हमने अली के किरदार को निभाने के लिए सोलह सत्रह वर्ष के दृष्टिहीन बालक की तलाष षुरू की.क्योंकि हमारी फिल्म महज किसी किरदार को अंधा दिखाने के मकसद से नही बनी है.बल्कि हम एक दृष्टिहीन इंसान इंसान को दिखाना चाहते थे,जो कि आम जिंदगी जी रहा है.दूसरी बात यह हमारी खुद की यह प्रयोगात्मक यात्रा इस बात को समझने के लिए थी कि आंखों की रोषनी न होने पर भी इंसान बाॅक्सर बन सकता है या नहीं?ऐसे में अली के किरदार के लिए किसी अंधे युवक को चुनना हमारे लिए काफी कठिन रहा.पर हमने तलाष जारी रखी.काफी समय लगा.हमें अली के किरदार के लिए शब्बीर शेख नामक बालक ‘पुणे अंध विद्यालय’में मिला,जो कि दसवीं कक्षा का छात्र था.अब तो वह बारहवीं कक्षा में पहुॅच गया है.उसकी आंखों की रोशनी एक संक्रमण के चलते एक वर्ष की उम्र में ही चली गयी थी.उसके पापा बीड़ के एक गांव में किसान हैं.उसका भाई तौसिफ भी अंधा है.यदि हमें षब्बीर षेख या उसके जैसा कोई लड़का नहीं मिलता, तो हम यह फिल्म नहीं बनाते.

हम चाहते थे कि कोई भी कलाकार कैमरे के सामने अभिनय करने की बजाय स्वाभाविक ढंग से काम करे.क्योंकि हमारी फिल्म की कहानी हमारे समाज के आम इंसान की कहानी है.इसमें जो बाक्सर हैं,जिसके साथ अली को रिंग के अंदर बाक्सिंग करनी है,वह आठवें लेबल का बाक्सिंग चैंम्पियन साहिर वाघमारे है.कोच के किरदार में बाक्सिंग व फिटनेस ट्रेनर और इंटरनेशनल स्तर पर पुरस्कृत बौडीबिल्डर आकाश आहुते हैं.उसने भारत का प्रतिनिधित्व किया है.अली की बहन के किरदार में राष्ट्रीय स्तर की बाॅक्सिंग चैंपियन है.मैचे के रेफरी के किरदार में वास्तविक बाक्सिंग मैच रेफरी राकेश भानु हैं.अली के पापा के किरदार में अनुज सेंगर व मां के किरदार में अर्चना पाटिल है,निजी जीवन में इनके बच्चे भी किसी अन्य रूप से विकलांग हैं,तो यह विकलांग बच्चों की मानसिकता वगैरह को समझते हैं.इसलिए इन सभी ने हमारी कहानी के अपने किरदारों को पहले से जिया हुआ था.नकुल तलवरकर हमारे साउंड रिकाॅर्डिस्ट हैं.विनय देषपांडे एडीटर और संगीतकार भी हैं.

अली के किरदार के लिए शब्बीर शेख ही क्यों?

-(बहुत अच्छा सवाल है)…. हमने जो पटकथा लिखी थी,उसमें अली की शारीरिक बनावट के बारे में विस्तार से सोचकर लिखा था कि उसके कंधे चैड़े व मजबूत होने चाहिए.उसका कद उंचा होना चाहिए.हमने यह सब सिनेमा के दृष्टिकोण से सोचा था.नेत्रहीन इंसानो की आंखे दो तरह की होती हैं.एक वह जिसकी आंखे डिफाॅम्र्ड/कुरूप हों,दूसरा वह जिसकी आंखें कुरूप नहीं होती है, मगर उसकी आंखों में रोशनी नहीं होती है.हम दोनों तरह की आंखों वाले नेत्रहीन बालक को अपनी फिल्म से जोड़ने को तैयार था.हमने यह सोचा था कि वह आत्म विष्वासी नजर आना चाहिए.उसके हाथ भी लंबे होने चाहिए.हम जब पुणे के अंध स्कूल पहुॅचे,तो वहां लड़कों की भीड़ में मैने देखा कि एक लड़का बिंदासपना के साथ चलकर आ रहा है.वह खेलों में भी रूचि रखता हैै.वह क्रिकेट में आल राउंडर है.वह अपनी क्रिकेट टीम का कैप्टन भी है और कई शील्ड जीत चुका है.वह मलखम करता है.पुणे का यह अंध विद्यालय मलखम के लिए प्रसिद्ध है.फिर हमने कुछ लड़कांे से बात भी की थी.शब्बीर से भी बात की.फिर स्कूल के प्रिंसिपल व शब्बीर के माता पिता से बात की.शब्बीर के माता पिता तुरंत तैयार हो गए,और उनका पूरा सपोर्ट मिला.

शब्बीर ने बाॅक्सिंग सीखने के लिए हामी क्यों भरी?

-उसकी सोच सिर्फ इतनी थी कि यदि कोई उससे कहे कि वह नेत्रहीन है,इसलिए यह काम नहीं कर सकता, तो वह उस काम को करके दिखाएगा.शब्बीर खुद को किसी भी सामान्य बालक से कमतर नही आंकता.वास्तव में नेत्रहीन इंसान के देखने का तरीका अलग होता है,यह बात हर इंसान को समझनी चाहिए.यही बात हम अपनी फिल्म के माध्यम से भी पूरे विष्व के लोगों, खासकर बाॅक्सिंग फेडरेशन को समझाना चाहते हैं.

शब्बीर की याददाष्त तेज है.हमने उसके लिए फिल्म की पटकथा को ब्रेल भाषा में नहीं बनाया.हमने संवाद कहे और उसे याद हो गए.सच कहूं तो हमने स्वयंउससे कुछ न कुछ सीखा.

फिर शब्बीर शेख को बाक्सिंग कैसे सिखायी?

-अली के किरदार के लिए शब्बीर शेख का चयन करने के बाद अहम सवाल था कि क्या वह बाॅक्सिंग सीखना चाहेगा और सीख सकेगा?शब्बीर ने कहा कि वह सीखना चाहता है.तब हमने उसके विद्यालय और उसके माता पिता से इस बात के लिए इजाजत लेकर उसे पूरे चार माह तक ट्रेनिंग दिलायी.उसकी ट्रेनिंग के दौरान बिना फिल्म की शूटिंग किए हम अपनी फिल्म को देख रहे थे.

हमारे सामने समस्या थी कि शब्बीर को बाॅक्सिंग की शिक्षा कैसे देंगें? क्योंकि हमारे यहां ऐसा कोई ट्रेनर नही है,जो कि दृष्टिहीन को बाॅक्सिंग सिखाता हो.और न ही कोई मैन्युअल आदि ही है.हमने कई बाल मनोवैज्ञानिक डाक्टरों से बात की.कई बाक्सरों से बात की.बाक्सिंग की ट्रेनिंग देेने वालों से बात की.हमने शोध के दौरान उन खेलों के बारे में जाना,जिन खेलों का अंधे खेल सकते हैं और यह जाना कि वहां पर उन्हें उन खेलों के ट्रेनिंग कैसे दी जाती है.और हमने खुद ही बाॅक्सिंग मैन्युअल बनाया कि किस तरह एक अंधे बालक को बाॅक्सिंग सिखायी जा सकती है.उसी आधार पर ट्रेनिंग ने शब्बीर शेख को बाॅक्सिंग की ट्रेनिंग दी.
देखिए,शोध आदि से हमारी समझ में आया कि बाॅक्सिंग टाइमिंग और स्पेस को समझने का खेल है.दृष्टिहीन व्यक्ति यह कैसे समझेगा?इसके लिए ट्रेनिंग देते समय कोच के दाहिने पैर को शब्बीर के बाएं पैर के साथ बांध दिया.इससे हुआ यह कि कोच जैसे जैसे अपना पैर आगे बढ़ा रहा था,वैसे वैसे षब्बीर भी कर रहा था.पंच वह आवाज के हिसाब से करता था.इसमें सामने वाले की साॅंस,चले आदि की आवाज को आधार बनाया.कई तरह की तकनीक अपनाकर उसे बाॅक्सर बनाया.उसने भी काफी मेहनत करके इसे सीखा.अब तो वह प्रोफेशनल बाक्सर बनने के साथ ही दृष्टिहीनों को बाॅक्सिंग सिखाना भी चाहता है.फिलहाल उसने दो लड़कों को सिखा दिया है.

फिर हमने एक वीडियो बनाया, जिसमें वह साहिल नामक युवक को बाक्सिंग सिखाता है.उसने जिस तरह से सीखा है,उसी तरह से वह दूसरे लड़के को सिखा रहा है.इससे हमें अहसास हुआ कि एक दृष्टिहीन /अंधा इंसान का बाॅक्सर बनना मुमकीन है. फिर हमने अपनी पटकथा के हर दृष्य को लेकर सभी कलाकारों के साथ वर्कषाॅप किया.क्योंकि हमारी फिल्म में अनुभवी कलाकार कोई नही है.सभी ने पहली बार कैमरे का सामना किया है, इसलिए वर्कषाॅप के दौरान इन्हे ग्रूम करना पड़ा.हाॅं!हर कलाकार निजी जिंदगी में जिस पेषे में है,उसी का किरदार उसने इस फिल्म में निभाया है.

हमने पहले से रिंग के अंदर के फाइटिंग दृष्यों को कैमरे के एंगल आदि के अनुसार कोरियोग्राफ नहीं किया था.बल्कि हमने साहिल से कहा कि तुम बाॅक्सिंग में चैंपियन हो और शब्बीर तुमने बाॅक्सिंग सीखी है,अब आप दोनो बाक्सिंग करो,हम अपना कैमरा उसी हिसाब से एडजस्ट कर लेंगें.इन दोनो ने बाक्सिंग रिंग के अंदर दो राउंड की वास्तविक फाइटिंग की,जिसे हमने अपने कैमरे में कैद किया.इस दौरान शब्बीर का ओंठ भी फट गया.पर शब्बीर व उसके पिता ने कहा कि कोई बात नहीं, चिंता न करें.

शब्बीर को रिंग के अंदर साहिल के संग फाइट करते देख कोच राकेष भानु ने ऐलान किया कि शब्बीर के अंदर बाक्सर है और अब वह आगे उसे मुफ्त में सिखाएंगे.

शब्बीर शेख भारत का पहला दृष्टि हीन/अंधा बाक्सर है.जिस खेल के साथ वह कभी जुड़ा हुआ नहीं था,जिसके बारे में उसने कल्पना भी नहीं की थी,उसी खेल को लेकर उसका अपना आत्मविष्वास जबरदस्त बढ़ा है.यह बात फिल्म के अंदर उसके किरदार में दिखाता है.सच कहूं तो अब फिक्षन,रियालिटी में बदल चुका है.कल्पना, हकीकत में में बदल चुकी है.

आपने 2015 में लघु फिल्म ‘उपहार’ बनायी थी.उसके बाद ‘अलीः द ब्लाइंड बाक्सर’को आने में चार पांच वर्ष का समय लग गया?

-हमें ‘अली द ब्लाइंड बाक्सर’की पटकथा लिखने में करीबन डेढ़ वर्ष का समय लग गया.क्योंकि उससे पहले हमने काफी शोध कार्य किया,कुछ बाल मनोवैज्ञानिकों व डाक्टरों से भी बातचीत की.बाल मनोवैज्ञानिकों से बात करने के पीछे मकसद यह समझना था कि एक नेत्रहीन बालक बाॅक्सिंग सीख सकता है या नहीं.अगर बिना सच को समझे हम आगे बढ़ जाते और बाद में पता चलता कि ऐसा ंसंभव नहीं है,तो हमारी मेहनत,समय व पैसा बर्बाद होता.और जिस बाल को लेगें, उसका सबसे अधिक उत्साह खत्म होगा.
फिर हमें अपने घर का किचन भी चलाना था,तो बीच बीच में उसके लिए भी कुछ काम करते रहे.उसके बाद अली के किरदार की तलाश में शब्बीर तक पहुॅचने में भी वक्त लगा.हमें खुद यह सीखना पड़ा कि बाक्सिंग के दृष्य कैसे फिल्माए जाते हैं.इसकी फोटोग्राफी भी मैने स्वयं की है.इस फिल्म के निर्माण में तेरह लोगों से थोड़ी थोड़ी सी रकम ली है,जो कि भारत के अलावा दूसरे देश के हमारे दोस्त हैं,उन सभी के नाम हमने कार्यकारी निर्माता के रूप में फिल्म में दिए हैं.

फिल्म किन फिल्म समारोहों  में दिखायी जा चुकी हैं और वहां पर किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?

-.पिछले एक वर्ष से यह फिल्म कई फिल्म समारोहों में घूम रही है.भूटान के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में विकलांगता सेक्शन की फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ फिल्म घोषित की गई.भूटान इंटरनेशल फिल्म फेस्टिवल में इसे सर्वश्रेष्ठ मोबाइल फिल्म का भी पुरस्कार दिया गया,यह क्यों दिया गया,मैं समझ नहीं पाया.कोलकाता इंटरनेशनल कल्ट फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार भी मिला.षांति निकेतन के टैगोर इंटरनेशनल फिल्म महोत्सव में ‘उत्कृष्ट उपलब्धि‘ पुरस्कार मिला.इसके अलावा कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों के लिए चयन हो चुका है.

अमरीका में कैलीफोर्निया व लास ऐंजेल्स के एक फिल्म समारोह के लिए चयन हुआ है.इस फिल्म का अफीका प्रीमियर केन्या में हो चुका है.‘केन्या इंटरनेशनल स्पोट्र्स फिल्म फेस्टिवल’होता है,यह अफ्रीका का अपना खेलों को समर्पित फिल्म समारोह है.इस फिल्म समारोह में पूरे विष्व की फिल्में शामिल हुई थी.इस फिल्म फेस्टिवल के निदेशक आसिफ करीम पहले क्रिकेट टीम के कैप्टन रहे हैं.उनका केन्या सरकार में अच्छी पहुॅच है.आसिफ करीम ने मेरी फिल्म की तारीफ की और अब वह केन्या सरकार और केन्या की पैरालाॅटिक कमेटी से बात कर रहे हैं कि फिल्म‘अली: द ब्लाइंड बाॅक्सर’ सबसे बड़ा सबूत है कि एक नेत्रहीन इंसान बाॅक्सर बन सकता है,इसलिए सरकार को चाहिए कि वह नेत्रहीनों को भी बाॅक्सिंग के क्षेत्र में आने की इजाजत दे और उन्हे प्रोत्साहित करे.

केन्या में इस फिल्म को आम जनता को दिखाया गया,बाकी फिल्मफेस्टिवल तो ‘कोविड 19’के चलते ऑन लाइन ही हुए.

हम अपनी इस फिल्म को ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’के लिए भी इस वर्ष भेजना चाहते हैं.इसके पीछे हमारा मकसद यह कि ज्यूरी में शामिल लोग देखेंगे,कि ऐसा संभव है.हम शब्बीर के माध्यम से शब्बीर जैसे नेत्रहीनों/ विकलांगो के अंदर उत्साह का सृजन करने के साथ ही इनके प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव लाना चाहते हैं.

भावी योजना?

-जी!हमने दूसरी फिल्म की योजना पर काम कर लिया है,यह फीचर फिल्म बांगला भाषा में होगी.यह एक दिन की कहानी है.जिसका हीरो अंधा है.हमने इसके लिए सुभाष डे को अनुबंधित किया है.जो कि जन्म से अंधे हैं और भारत के एकमात्र अंधे थिएटर निर्देशक हैं.उनका थिएटर ग्रुप है..‘‘ओनली देष’/द अदर वल्र्ड’’.इसके सभी 42 सदस्य अंधे हैं.उच्च कोटि का थिएटर करते हैं.उनकी पत्नी भी नेत्रहीन है.

लव जिहाद कानून में शुद्धि पर भी प्रतिबंध

उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे सब से बड़े भाजपाशासित राज्य मध्य प्रदेश में भी धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियों पर सरकारी लगाम लगाने के लिए मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 वजूद में आ गया है. इस अध्यादेश के मसौदे में कोई नई खास बात नहीं है बल्कि यह पुराने कई कानूनों का खिचड़ी संस्करण है जिस का इकलौता मकसद यह जताना है कि भाजपा अपने हिंदू राष्ट्र के उस एजेंडे पर कायम है जिस का बड़ा रास्ता दलितों के साथसाथ मुसलमानों और ईसाईयों को डराने से हो कर जाता है. आमतौर पर कानूनों का मकसद अपराधियों को सजा दिलाना और न्याय व्यवस्था में आम लोगों का भरोसा कायम रखना होता है. जबकि, यह नया कानून इन पैमानों पर खरा उतरने के बजाय दहशत फैलाता हुआ लगता है.

धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियां हमेशा से ही हिंदू धर्म के ठेकेदारों की बड़ी परेशानी और  सिरदर्दी रहीं है. लेकिन इन ठेकेदारों ने यह सोचने की जहमत कभी नहीं उठाई कि क्यों खासतौर से निचले तबके के हिंदू यानी दलित ही इसलाम, बौद्ध या ईसाई धर्म कुबूल कर लेते हैं और खासतौर से ही हिंदू लड़कियां शादी के लिए धर्म बदलने को आसानी से राजी हो जाती हैं.

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इस सवाल का जवाब या समस्या का हल नएनए कानूनों से नहीं मिलना क्योंकि जो हिंदू, वजह कुछ भी हो, धर्म परिवर्तित करते हैं वे, दरअसल, वर्णव्यवस्था, जातिगत भेदभाव, शोषण और प्रताड़ना से इतने आजिज आ चुके होते हैं कि उन्हें समाज में रहने में घुटन महसूस होने लगती है. दलित दूल्हे को घोड़ी पर बरात निकालने पर मारा गया, दलित को मंदिर में प्रवेश करने पर कूटा गया, दलित को कुएं से पानी नहीं भरने दिया गया, नाई ने दलित के बाल काटने से इनकार किया और सिंह सरनेम लिखने पर दलितों की हुई धुनाई जैसी कई वेरायटियों वाली खबरें रोजमर्रा की बाते हैं.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही मुरादाबाद के कोई 50 दलितों ने इसलाम अपना लिया था जिस से भगवा खेमे में सनाका खिंच गया था. 13 मई, 2017 को इन दलितों ने साफतौर पर कहा था कि योगी सरकार में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं और चूंकि भाजपा कार्यकर्ता ही कर रहे हैं, इसलिए उन का हिंदू धर्म से मोहभंग हो गया है. इन दलितों ने अपने घरों में रखी हिंदू देवीदेवताओं की मूर्तियों को नदी में बहा दिया था.

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ऐसी छिटपुट घटनाएं अकसर होती रहती हैं. लेकिन पिछले साल फरवरी के दूसरे हफ्ते में तमिलनाडु के कोयम्बटूर में एकसाथ 400 दलितों ने इसलाम ग्रहण कर लिया था. तब तमिल पुलीगल काची नाम के एक दलित संगठन के बैनर तले सभी दलितों ने हलफनामे के जरिए स्वेच्छा और बिना किसी दबाब या प्रलोभन के इसलाम कुबूल करने की बात कही थी. दलित से मुसलमान बने पंगुडी ने बानू नाम लेने के बाद मार्के की बात यह कही थी कि हिंदू धर्म से आजादी, जातिगत भेदभाव और छुआछूत को दूर करने का इकलौता रास्ता यही है. बाद में किस्तों में मुसलमान बने दलितों की तादाद 3 हजार तक पहुंच गई थी.

नए कानून, नई दहशत

ऐसे मामलों से हिंदुत्व के ठेकेदार कोई सबक लेते सुधरते नहीं, फिर उन से यह उम्मीद करना तो बेकार की बात है कि वे कभी इस तथ्य पर गौर करेंगे कि उन के धर्म में दूसरे धर्म के लोग क्यों शामिल नहीं होते. यहीं से उन की तिलमिलाहट शुरू होती है और अपनी कमजोरियों व खामियों को ढकने के लिए वे हिंदू राष्ट्र का राग आलापना शुरू करते गिनाने लगते हैं कि पहले अंग्रेजों और फिर मुगलों ने सोने की चिड़िया वाले उन के देश को लूटा, मंदिर तोड़े, औरतों की आबरू लूटी और हमारे महान धर्म व संस्कृति को तहसनहस कर डाला.

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गुजरे कल की आधेअधूरे सच वाली इन बातों का बदला लेने को अब भगवा गैंग अचानक हरकत में आ गया है. नया लव जिहाद कानून इस बात का सुबूत है, जिस का मकसद अल्पसंख्यकों में महज दहशत फैलाना और सवर्ण हिंदुओं को इस खुशफहमी में रखना है कि सब्र रखो, देश अब सनातन धर्म के मार्ग पर चल पड़ा है और जल्द ही सबकुछ हमारा होगा.

धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियों का हल लव जिहाद कानून के जरिए ढूंढने की कोशिश एक फुजूल बात है क्योंकि, दरअसल, समस्या कुछ और है जिस से लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है. बात मध्य प्रदेश की करें, तो धार्मिक स्वंतत्रता अध्यादेश खामियों से भरा पड़ा है. इस की धारा 2(1)(क) कहती है कि, प्रलोभन से अभिप्रेत है और इस में सम्मिलित है, नकद अथवा वस्तु के रूप में कोई दान या परितोषण या भौतिक लाभ या रोजगार किसी धार्मिक निकाय द्वारा संचालित विद्यालय में शिक्षा बेहतर जीवनशैली दैवीय प्रसाद या उस का वचन या अन्यथा के रूप में किसी प्रलोभन देने का कोई कार्य.”

मुरादाबाद और कोयम्बटूर के मामलों में दलितों ने साफसाफ धर्मांतरण की वजह बताई थी कि वे क्यों मुसलमान बन रहे हैं. इस पूरे अध्यादेश में कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि अगर कोई प्रताड़ना और शोषण के चलते धर्म परिवर्तन करता है तो उस धर्म के मुखियाओं को भी  कोई सजा दी जाएगी. यहां सरकार यह भी स्पष्ट नहीं कर पाई है कि बेहतर जीवनशैली से उस का अभिप्राय क्या है और किसी धार्मिक संस्था द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा से उसे क्या एतराज है और ये बातें किस लिहाज से लालच के दायरे में आती हैं.

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जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में बनाए गए इस कानून के नियम ही नहीं बनाए गए हैं जिस से यह समझ आए कि इस पर अमल कैसे होगा. लेकिन मौटेतौर पर 2 बातें लोगों को समझ आईं कि अब धर्मांतरण से पहले संबंधितों को 2 महीने पहले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी और अगर कोई शादी के मकसद से धर्म बदल रहा है तो यह अपराध होगा, यानी, अब धर्मांतरण काफी कठिन बना दिया गया है.

सब से ज्यादा दिलचस्प बात जो लोग चाहते थे वह यह है कि धर्म छिपा कर शादी करने वालों को सजा दी जाए तो उस के बारे में धारा 5 में कहा गया है कि,

“परंतु यह कि जो कोई भी उस के द्वारा माने जाने वाले धर्म से भिन्न किसी धर्म के व्यक्ति से विवाह करना चाहता है और अपना धर्म इस प्रकार छिपाता है कि अन्य व्यक्ति, जिस से वह विवाह करना चाहता है, विश्वास करता है कि उस का धर्म वास्तव में वही है जो कि उस का है, को कारावास 3 वर्ष से कम का न होगा, यह 10 वर्ष तक का भी हो सकता है तथा जुर्माने का भी दायी होगा जो 50 हजार रुपए से कम का नहीं होगा, दंडित किया जाएगा.”

बोलचाल की भाषा में इस का मतलब यह है कि कोई असलम नाम का युवक अमर नाम रख कर जनेऊ धारण कर, भगवा कपड़े पहन और टीका लगा कर आशा नाम की युवती को धोखा दे कर उस से शादी करेगा तो वह अपराधी होगा. यह लव जिहाद कानून का पूरा सार है और इसीलिए यह कानून गढ़ा गया है. सोशल मीडिया पर बीते 3 सालों से इस तरह की पोस्टें प्रवाहित हो रहीं थीं या जानबूझ कर की जा रहीं थी, एक ही बात है कि मुसलिम लड़के धार्मिक पहचान बदल कर हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं और फिर उन से शादी कर उन्हें मुसलमान बनने पर मजबूर करते हैं और वे नहीं मानतीं तो उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं.

यह नई बात नहीं है. यह पहले भी अपराध था और किसी असलम को फूल माला नहीं पहनाई जा रही थी बल्कि कानून के तहत दोषी पाए जाने पर सजा ही दी जा रही थी. इस में कोई शक नहीं कि ऐसा हो रहा था लेकिन यह इतना छिटपुट था कि उस के लिए अलग से कानून बनाना बेतुकी और गैरजरूरी बात है और उस पर होहल्ला मचाने का मकसद मुसलमानों को डराना भर है जिस से वे हिंदू लड़की से प्यार और शादी की बात ही न सोचें.

आजादी पर पहरा

इस कानून के जरिए शिवराज सरकार ने मुसलिम युवकों से ज्यादा हिंदू युवतियों की आजादी पर अंकुश लगाने की कोशिश की है क्योंकि वे जागरूक होते जातपांत, रूढ़ियों और धर्म की बंदिशें तोड़ने लगी हैं. नए दौर की शिक्षित युवतियां आर्थिक और सामाजिक रूप से भी आत्मनिर्भर हो चली हैं, इसलिए खुद की जिंदगी से जुड़े अहम फैसलों के लिए, धर्म तो दूर की बात है, वे अपने अभिभावकों की भी मुहताज नहीं रह गईं हैं. भोपाल के नामी नूतन कालेज में पढ़ी एक छात्रा आरती रैकवार (आग्रह पर बदला हुआ नाम) की मानें तो कोई 5 साल पहले उस की एक ब्राम्हण सहेली ने किसी की परवा न करते हुए एक मुसलिम लड़के से शादी कर ली थी.

थोड़ा बवंडर सहेली के परिवारजनों ने मचाया पर चूंकि दोनों वयस्क और नौकरीपेशा थे, इसलिए कुछ खास हल्ला नहीं मचा. अब वह युवती एक बच्चे की मां है और पति के साथ खुशीखुशी रह रही है. इस युवती को खुशी इस बात की भी है कि उस ने अपनी मरजी से पसंद का जीवनसाथी चुना. लेकिन कुछ रुक कर आरती कहती है कि, “अब इस कानून के लागू होने के बाद युवाओं में दहशत है क्योंकि कई हिंदू लड़कियां मुसलमान लड़कों को और कई मुसलमान युवतियां हिंदू लड़कों को चाहती हैं.”

बकौल आरती, दहशत इस बात की कि हिंदू संगठन के लोगों ने हुड़दंग मचा रखा है. यह एक तरह से दोनों धर्मों के युवाओं को खुली धौंस है कि वे आपस में प्यार और शादी का ख़याल दिल से निकाल दें. ये हुड़दंगी आएदिन पार्कों, मौल्स और रैस्टोरैंट्स वगैरह में रेकी किया करते हैं कि कहीं कोई प्यार तो नहीं कर रहा. एकाध मामले में कोई हिंदू लड़की मुसलमान लड़के के साथ पकड़ी, यानी, साथ बैठी पाई गई, तो इन लोगों ने शहर सिर पर उठा लिया. मामला बीती 9 सितंबर का है जब संस्कृति बचाओ मंच के कार्यकर्ताओं ने जौहरी होटल पर धावा बोलते कुछ लड़केलड़कियों को पकड़ा था और आरोप यह लगाया था कि यहां लव जिहाद हो रहा था. अब तो न केवल भोपाल, बल्कि देशभर में यह हुड़दंग रोज की बात हो चली है. आरती दावे से कहती है कि “ये लोग इस वेलैंटाइन डे पर खूब हुड़दंग मचाएंगे.”

अभिभावक भी हैं इन के साथ 

असल में हिंदू मांबाप भी अपनी लड़कियों को ले कर इस चिंता में रहते हैं कि उन की लाड़ली  कहीं अपनी मरजी से शादी न कर ले. इसलिए कोई भी हिंदूवादी संगठनों के हुड़दंग का विरोध नहीं करता. आरती आगे कहती है, “अब तो कानून भी इन के साथ है. अब तक लव जिहाद के महज 2 मामले कथित रूप से सामने आए हैं, उन में अहम रोल इन्हीं लोगों का है. आज अगर मेरी सहेली शादी करती तो यह मुमकिन ही नहीं हो पाता क्योंकि पहले उसे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को खबर देनी पड़ती और आर्य समाज मंदिर, जहां से उस ने शादी की थी, के कर्ताधर्ता भी शादी कराने से इनकार कर देते.”

यानी, अब गोपनीयता की गारंटी खत्म हो गई है. कौन, कहां, किस से शादी करने वाला है, यह बात प्रशासन की तरफ से भी लीक हो सकती है और शादी कराने वाले धर्मस्थलों से भी, क्योंकि इन्हें भी नया कानून बाध्य करता है कि वे धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादी की पूर्व सूचना दें नहीं तो सजा भुगतने को तैयार रहें. अधिनियम की धारा 10(2) में निर्देश है कि, “कोई धर्माचार्य और / या कोई व्यक्ति जो धर्म संपरिवर्तन का आयोजन करना चाहता है उसे जिले के जिला मजिस्ट्रेट को, जहां ऐसा धर्म संपरिवर्तन किया जाना प्रस्तावित है, ऐसे प्रारूप में जैसे कि विहित किया जाए, 60 दिवस पूर्व सूचना देगा.”

अब डर यह भी है कि इस नए कानून को हथियार बनाते धड़ल्ले से मांबाप अपनी मरजी से शादी करने वाली बेटी के अरमानों का गला घोंटेंगे क्योंकि अधिकांश सवर्ण हिंदू तो यह भी नहीं चाहते कि उन की बेटी, मुसलमान और ईसाई तो दूर की बात है, अपने से छोटी जाति वाले लड़के से भी शादी करे. अब होगा यह कि लड़की अगर छोटी जाति वाले लड़के के साथ भागी तो वे उसे अपहरण बताते लड़के को मुसलमान बताएंगे. पकड़े जाने के बाद लड़के की जो पूजा हवालात में होगी, उस से उसे ज्ञान प्राप्त हो जाएगा कि यह इश्कविश्क बेकार की बात है. शादी बराबरी वालों यानी अपनी ही जाति में करना ठीक रहता है. खुद को बजाय असलम के अमर साबित करने में उसे पसीने छूट जाने हैं.

प्यार और आजादी पर पहरा बिठाने वाले इस कानून ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की इमेज कट्टरवादी हिंदू नेता की बना दी है जिस से वे युवाओं की नजर में भी विलेन बन गए हैं. लेकिन उन की मजबूरी ऊपर से आए आदेशनिर्देश हैं कि जैसे भी हो और जितना भी हो, ऊंची जाति वाले हिंदुओं को खुश करने वाले फैसले लो. सो, वे ले रहे हैं, वरना उन्हें चलता कर देने में कोई लिहाज भगवा खेमा नहीं करेगा. इसी जल्दबाजी में शिवराज सिंह यह भूल गए कि नया अधिनियम शुद्धि को भी प्रतिबंधित करता हुआ है.

आर्य समाज बनाम आरएसएस

जिन युवाओं के अभिभावक मरजी से उन्हें शादी नहीं करने देते, आर्य समाज मंदिर उन के लिए बेहद मुफीद और सस्ते साबित होते हैं (और अब तक सुरक्षित भी थे) क्योंकि वहां कम खर्च में मान्यताप्राप्त शादी हो जाती है. भोपाल के 10 नंबर मार्केट स्थित आर्य समाज मंदिर की कर्ताधर्ता अर्चना सोनी बताती हैं कि, “अकेले भोपाल के 3 आर्य समाज मंदिरों में औसतन प्रतिदिन 5 शादियां होती हैं जिन में से 3 में युवा घर, जाति या समाज वालों से विद्रोह कर शादी कर रहे होते हैं.”

एक वरिष्ठ समाजसेवी धर्मेंद्र कौशल मानते हैं कि लव जिहाद कानून से आर्य समाज पद्धति से होने वाली शादियों की संख्या कम होगी जिस के कई दुष्परिणाम भी सामने आएंगे क्योंकि आर्य समाज के नाम पर फर्जीवाड़ा भी होने लगा है. अकेले भोपाल में ही कई आर्यसमाजियों ने शादी कराने की दुकानें खोल ली हैं. अंतर्धर्मीय शादियां कराने वाले सहूलियत के चलते इन के पास जाने को मजबूर होंगे क्योंकि ये लोग डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को अंतर्धर्मीय शादियों की सूचना न देने के पैसे भी जोड़ों से वसूलेंगे. बकौल धर्मेन्द्र, कई मुसलमान युवक हिंदू युवती से शादी करने के लिए खुद हिंदू बन जाते हैं जिन की शुद्धि आर्य समाज मंदिर में की जाती है. नए कानून में यह भी कहा गया है कि, “पैतृक धर्म में वापसी धर्मांतरण नहीं माना जाएगा, लेकिन, इस में शुद्धिकरण की बात नहीं की गई है.”

शुद्धिकरण के इतिहास के बारे में नई पीढ़ी तो यह बिलकुल भी नहीं जानती कि इसे आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुरू किया था और स्वामी श्रद्धानंद ने इसे एक मुहिम की शक्ल दी थी. 20वीं सदी से शुरू हुए शुद्धि आंदोलन का असल मकसद उन दलित आदिवासियों को हिंदू धर्म में वापस लाना था जो मुरादाबाद और कोयम्बटूर के दलितों की तरह प्रताड़ना, छुआछूत के चलते ईसाई या मुसलमान हो गए थे. यह अभियान बड़े पैमाने पर चला था जिस का विरोध ईसाईयों और मुसलमानों के अलावा ऊंची जाति वाले हिंदुओं ने भी किया था क्योंकि उन की नजर में दक्षिणा न चढ़ा पाने वाले शूद्र पशुतुल्य हुआ करते थे.

आर्य समाज हिंदू धर्म में व्याप्त उन कुरीतियों की भी मुखालफत करता है जिन में बलि, दानदक्षिणा, मूर्तिपूजा, बालविवाह, तीर्थयात्रा, पूर्वजों की पूजा, जातिव्यवस्था आदि शामिल हैं जिन से सदियों से ब्राह्मणों की रोजीरोटी चल रही है. पंडेपुजारियों को आर्य समाजी सिद्धांत, जो मूलतया सुधारवादी थे, कभी फूटी आंख नहीं सुहाए.

अब यह टकराव नई शक्ल में देखने में आ रहा है जिसे आरएसएस बनाम आर्य समाज कहे जाने में किसी लिहाज की जरूरत नहीं. लव जिहाद कानून में शुद्धि की बात इसीलिए जानबूझ कर उड़ाई गई है क्योंकि आरएसएस वाले हिंदू शुद्धि में यकीन ही नहीं करते लेकिन हिंदुओं की घटती आबादी का रोना हर कभी रोते इसे राष्ट्रवाद के लिए खतरा जरूर बताते रहते हैं. दिक्कत तो यह है कि यह वर्ग वे सब बुराइयां नहीं छोड़ना चाहता जिन का आर्य समाज विरोध करता है.

यह श्रेष्ठि वर्ग चाहता है कि शादियां भी सनातनी रीतिरिवाजों से हों, इसलिए आर्य समाजी शादियों को लव जिहाद कानून के जरिए हतोत्साहित किया जा रहा है. लेकिन धर्मेंद्र कौशल इसे आर्य समाज और आरएसएस का टकराव नहीं मानते, क्यों?, इस सवाल का जवाब भोपाल के ही एक आर्यसमाजी आर सी श्रीवास्तव यह कहते देते हैं कि, “असल में इन दिनों हर कोई भगवा रंग में रंगा जा रहा है. तूती उन लोगों की बोल रही है जिन्होंने हिंदू धर्म का नाश करने में कोई कसर न पहले छोड़ी थी, न आज छोड़ रहे हैं. ये लोग नहीं चाहते कि जातिगत रूप से हिंदू एक हों.” बकौल आर सी श्रीवास्तव, हालत तो यह है कि संघियों ने आर्य समाज के उन कई स्थलों पर कब्जा कर रखा है जिन्हें शाखा चलाने को मित्रवत दे दिया गया था.

यह मतभेदों की शुरुआत है क्योंकि आरएसएस और भाजपा जिस एजेंडे पर चल रहे हैं वह हिंदुओं में फूट डाल कर राज करते रहना है. अब यह कब तक चलेगा और इस का हश्र क्या होगा, यह कह पाना मुश्किल है लेकिन अमेरिका में जिस तरह रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप खारिज कर दिए गए, उसे देख महसूस तो यही होता है कि लोकतंत्र में कट्टरवाद की उम्र बहुत ज्यादा नहीं होती. लव जिहाद जैसे कानून एक अनूठे तरीके से कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं जबकि जरूरत इस बात की है कि अंतर्धर्मीय और अंतरजातीय शादियों को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन मिले.

हो इस का उलटा रहा है जो युवाओं से उन की प्राइवेसी, खुशी और हक छीन रहा है.

मंदीप पुनिया की गिरफ्तारी संदेह के घेरे में?

लेखक- रोहित और शाहनवाज

स्वतंत्र पत्रकार मंदीप पुनिया को तिहाड़ जेल मेजिस्ट्रेट ने 14 दिनों की ज्युडिशियल कस्टडी में भेजा गया है. मंदीप की ओर से एडवोकेट सरीम नवेद, अकरम खान और कामरान जावेद ने जमानत याचिका दायर की थी जिस में उन्होंने कई बिन्दुओं में मंदीप का हिरासत में लिया जाना गलत ठहराया था.

जिस में वकीलों के एफिडेविट में कहा गया था कि मंदीप पुनिया की हिरासत या संभावित गिरफ्तारी के बारे में देर रात तक उन के परिवार के सदस्यों को कोई जानकारी नहीं दी गई थी. शाम 6:40 बजे हिरासत में लिए जाने के बाद उन की एफआईआर रात 1:21 बजे दर्ज की गई. पुनिया केवल अपने पत्रकार होने के कर्तव्यों को अंजाम दे रहे थे. अभियुक्त एक स्वतंत्र पत्रकार है लेकिन यह उसे गिरफ्तार करने के लिए कोई आधार नहीं हो सकता है.

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दिल्ली पुलिस ने शनिवार 30 जनवरी को सिंघू बौर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को कवर करने वाले दो पत्रकारों को हिरासत में लिया. उन में से एक मंदीप पुनिया हैं जो स्वतंत्र पत्रकार हैं व दि कारवां पत्रिका के लिए लिखते रहें हैं. इस के साथ ही मंदीप किसान भी हैं जो शुरूआती दिनों से किसान आन्दोलन को कवर कर रहे थे. दुसरे पत्रकार, धर्मेंद्र सिंह हैं जो औनलाइन न्यूज़ इंडिया (यूट्यूब चैनल) के लिए काम करते हैं.

दिल्ली पुलिस ने मनदीप को कथित तौर पर पुलिसकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार करने और एक लोक सेवक के काम में बाधा डालने के चलते गिरफ्तार किया. पुलिस ने आईपीसी की धारा 186 (सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में लोक सेवक की बाधा), धारा 353 (कर्तव्य के निष्पादन में एक लोक सेवक पर हमला) और धारा 332 के तहत एक एफआईआर अलीपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज की है.

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द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बकौल पुलिस, “मंदीप प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े थे और उन के पास प्रेस आईडी कार्ड नहीं था. वह उन बैरिकेड्स के माध्यम से जाने की कोशिश कर रहे थे, जिन्हें इलाके को अलग करने और सुरक्षित रखने के लिए लगाया गया था. इतने में पुलिसकर्मियों और उन के बीच एक विवाद शुरू हो गया. उन्होंने दुर्व्यवहार किया और हाथापाई भी की. उन्हें तब हिरासत में लिया गया था.”

किन्तु इस के उलट अब दिल्ली पुलिस खुद सवालों के घेरे में आ रही है. दिल्ली पुलिस पर एक आरोप अब यह लग रहा है कि पुनिया पर की गई यह कार्यवाही प्रतिक्रियात्मक है. दरअसल शुक्रवार 29 जनवरी के दिन सिंघु बौर्डर पर किसानों के विरोध स्थल पर तथाकथित स्थानीय लोगों द्वारा हिंसा भड़काने की जगह को मंदीप कवर कर रहे थे. मंदीप ने उसी दिन एक फेसबुक लाइव कर सोशल मीडिया पर यह बताया था कि हिंसा फैलाने वाले लोगों का वास्ता बीजेपी के साथ है. उन्होंने उस विडियो में यह भी बताया की मौके पर स्थित पुलिसकर्मी मूकदर्शक बनी हिंसा होते हुए देख रही थी और हिंसा करने वालों को नहीं रोक रही थी.

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विडियो में उन्होंने कहा, “50-60 लोगों की भीड़ हाथों में तिरंगा लेकर पहुंची. वे किसानों को गाली देने लगे और उन्हें सबक सिखाने की धमकी देने लगे. जल्द ही उन्होंने पथराव भी शुरू कर दिया.”

पुनिया ने कहा कि उस भीड़ में केवल 50-60 लोग ही शामिल थे और वहां मौजूद पुलिस कर्मियों की संख्या लगभग 4000-5000 थी. “2,000 पुलिस सिर्फ हिंसा भड़काने आई भीड़ को बैक-अप प्रदान कर रहे थे.” पुनिया ने अपने फेसबुक लाइव में कहा, “जब दिल्ली पुलिस ने उन्हें बैकअप मुहैया कराया तो उन्होंने (भीड़ ने) पथराव करना शुरू कर दिया. उन्होंने पेट्रोल बम फेंका और तंबू जलाने का प्रयास किया.”

पुनिया ने किसानों पर हमला करने आई भीड़ में शामिल लोगों और भाजपा के साथ संबंध स्थापित करने की तस्वीरें भी दिखाईं. जिसे आम आदमी पार्टी ने भी कुछ समय बाद प्रेस कांफ्रेंस कर सार्वजनिक किया. मंदीप ने शुक्रवार की हिंसा की सही रिपोर्टिंग नहीं करने के लिए मीडिया बिरादरी पर अपनी निराशा व्यक्त की थी. उन्होंने कहा, “जिस तरह से मीडिया ने इस (हिंसा) की खबरें दी, उस से मुझे बहुत दुख होता है. पहली बार ऐसा हुआ है कि मीडिया की रिपोर्टिंग वास्तव में हुई घटना के पूरी तरह से विपरीत है. उन में से कुछ वास्तव में अच्छे पत्रकार हैं, जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. उन्होंने भी गलत रिपोर्टिंग की है.”

इस बीच मंदीप को हिरासत में लेने वाली एक वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल होने लगी, जिस में देखा जा सकता है कि 10-12 पुलिसकर्मियों द्वारा मंदीप को घसीट कर ले कर जाया जा रहा है. जो अपनेआप में एक पत्रकार के साथ पुलिस का बर्बर रवैय्या दिखाता है. इस मसले पर जब हम ने लोकमत के पत्रकार अनुराग आनंद से बात की तो वह कहते हैं कि, “सब जानते हैं कि सिंघु बौर्डर पर जगहजगह कैमेरे लगे हुए हैं. पुलिस कह रही है कि मंदीप ने बेरिकेड फांदने और बदतमीजी करने की कोशिश की, यदि ऐसा है तो दिल्ली पुलिस को वह विडियो सार्वजानिक करनी चाहिए.”

अनुराग ने दिल्ली पुलिस की इस कार्यवाही को संदेह से देखा हैं. वे कहते हैं, “मंदीप को दिल्ली पुलिस ने पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया, यह कितनी बेतुकी बात है. यह हमेशा संभावना होती है कि जब किसी जगह पर हिंसा हो रही हो, उस समय पत्रकार कवर करने के लिए एक जगह से दूसरी जगह मोमेंट, वेसुअल्स, बाइट के लिए भागता है, अगर दिल्ली पुलिस इस पर बेरिकेड तोड़ने का आरोप लगा रही है तो पुलिस की यह दलील अस्वीकार्य है.”

अनुराग आगे कहते हैं, “ऐसा लग ही नहीं रहा की उसे हिरासत में लिया जा रहा हो, ऐसा दिखाई दे रहा है मानो उसे किडनेप किया जा रहा हो. ऐसे समय में जब आन्दोलन को ले कर लोगों के मन में या वहां जिस क्षेत्र में वह रह रहा हो, तरहतरह की भावनाएं पैदा हो रही हैं, तब मंदीप को हिरासत में लेने के बाद उस के घर वालों को इन्फौर्म नहीं करना, किसी किडनैपर का माइंडसेट दिखाता है. और सब से बड़ी बात यह कि कोर्ट में मंदीप के पक्ष के वकील के बगैर उसे पेश कर देना, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. ”

मंदीप को इस तरह से हिरासत में लिए जाने से दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाना बेहद लाजमी है. एक तरफ मंदीप ने खुद की इन्वेस्टीगेशन के बल पर सिंघु बौर्डर पर हिंसा करने वालों को बेनकाब करने का दावा किया, जिस में खुद को तथाकथित स्थानीय बताए जाने वाले लोगों के लिंक भाजपा से जुड़ते दिखाई दिए, वहीँ पुलिस की उन लोगों के साथ संलिप्तता के संगीन आरोप भी लगाए, बजाए इस के कि मंदीप द्वारा लगाए इन आरोपों की जांच पुलिस करती, उसे ही उल्टा गिरफ्तार किया जाना हैरान करता है.

ध्यान हो तो 26 जनवरी की घटना के बाद धरनास्थलों को खाली कराए जाने को ले कर जिस प्रकार दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों पर हलचल शुरू हुई, गाजीपुर बौर्डर पर लौनी के भाजपा विधायक नन्दकिशोर गुज्जर का किसानों को धमकाना, तथाकथित स्थानीय लोगों का पुलिस की शह में लठ ले कर वहां पहुंचना हैरान करता है, जिस की जांच की जानी चाहिए थी, किन्तु मंदीप की फाइंडिंग्स पर जांच करने के बजाय पुलिस ने मंदीप को ही हिरासत में ले लिया.

मंदीप को हिरासत में लिए जाने पर दि मिल्लेनियम पोस्ट अखबार की 26 वर्षीय निकिता जैन कहती हैं, “ये केवल एक पत्रकार पर अटैक नहीं बल्कि ये सभी पत्रकारों पर अटैक है. पुलिस का बिना किसी सबूत के इस तरह से किसी को भी हिरासत में लिया जाना बेहद डरावना है. पत्रकारिता किसी भी समय में सेफ नहीं रहा लेकिन मंदीप के साथ जो हुआ वह बहुत ही गलत था.”

सही तथ्य उजागर करने वालों पर गिर रही गाज

सरकार का पत्रकारों पर इस तरह से सेडिशन और यूएपीए जैसे संगीन धाराओं के लगाने के विषय पर निकिता कहती हैं, “ये वौइसेस पर अटैक है. मीडिया में आधे लोग तो सरकार के माउथपीस बन चुके हैं और जो बाकि बचे हैं और सही रिपोर्टिंग करते हैं, उन पर ये सब चार्जेस लगा कर उन की आवाजों को उठने से रोकना चाहते हैं, बंद करना चाहते हैं. ताकि वो सही रिपोर्टिंग न करें और सही तथ्य छिप जाएं.”

अनुराग का कहना है, “एक सिटिजन जर्नालिस्ज्म का भी कांसेप्ट होता है. अगर उस के पास किसी संसथान का आईकार्ड नहीं तो एक नागरिक होने के नाते वह वीडिओ बना सकता है. उस का पूरा हक है. पुलिस जब किसी पत्रकार पर इस तरह से एक्शन लेती है सभी पत्रकारों को एक पंक्ति में खड़ा हो कर इस का विरोध करना चाहिए. लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहले जब किसी नौजवान पत्रकारों पर इस तरह के एक्शन होते थे तब इस के खिलाफ पत्रकार समूहों से आवाज उठती रहती थीं, लकिन मंदीप पुनिया के इस घटना पर पत्रकार संस्थाओं का खुल कर विरोध न करना दुखद है. ऐसे में यह जरुरी है कि नौजवान पत्रकार और फ्रीलांस पत्रकारों का भी एक संगठन बने जिस से इस तरह के मामलों से निपटा जाए.”

तिहाड़ जेल मेजिस्ट्रेट के द्वारा मंदीप को 14 दिनों के ज्युडीसिअल कस्टडी में भेजे जाने के बाद 2 फरवरी को रोहिणी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के द्वारा 25,000 रूपए के मुचलके पर उन्हें जमानत दे दी गई है. इस के साथ कोर्ट ने मंदीप को कुछ शर्तों पर जमानत दी है. जिस में पहली शर्त यह कि वह बिना बताए देश के बाहर नहीं जा सकते, एसएचओ को उन्हें अपना मोबाइल नंबर और एड्रेस देना होगा और जांच के लिए जब भी पुलिस को उन की जरुरत होगी तो उन्हें सहयोग करना होगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि क्योंकि मंदीप के खिलाफ एफआईआर खुद पुलिस की तरफ से दर्ज करवाई गई थी इसीलिए मंदीप सबूतों और गवाहों को प्रभावित नहीं कर सकते जिस के लिए उन्हें जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है. मंदीप ने पुलिस हिरासत में रहते हुए भी अपने पत्रकारिता के धर्म को नहीं छोड़ा. रिहाई के बाद जब मंदीप तिहाड़ से बाहर निकले और एनडीटीवी से बात कि तो उन्होंने बताया कि वो जेल में भी वहां मौजूद किसानों को बात की और जल्द ही एक रिपोर्ट वो पब्लिश करने वाले हैं.

बिग बॉस 14: क्या घरवालों से नफरत करने लगे हैं सलमान खान?

बॉलीवुड दबंग स्टार और बिग बॉस शो के होस्ट सलमान खान का इन दिनों गुस्सा सातवें आसमान पर है. सलमान खान हर वीकेंड के वार में शो के सदस्यों को उनकी हकीकत दिखाते हैं,लेकिन इस बार वीकेंड के वार में उनका विकराल रूप देखऩे को मिला.

फैंस का मानना है कि बिग बॉस 14 में जो चीजे चल रही हैं उससे सलमान खान नाराज चल रहे हैं. वह अपने कंटेस्टेंट का मुंह नहीं देखना चाहते हैं. सलमान खान के गुस्से का शिकार इन दिनों कोई भी हो सकता है.

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कुछ दिनों पहले राखी सावंत की अश्लील हरकत को देखने के बावजूद भी सलमान खान ने राखी की बजाय अभिनव शुक्ला और रुबीना दिलाइक की क्लास लगाई थी. सलमान खान नहीं चाहते हैं कि बिग बॉस फ्लॉप होने की जिम्मेगारी उन पर डाली जाए.

तभी तो हर वीकेंड के वार में सलमान खान बिना वजह घरवालों की क्लास लगा देते हैं. जिससे घर वाले भी सलमान से नाराज रहते हैं लेकिन उस वक्त वह कुछ कह नहीं पाते हैं.

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सलमान खान ने निक्की तम्बोली और राहुल वैद्या पर जमकर निशाना साधा है. यहीं नहीं सलमान खान के निशाने पर रुबीना दिलाइक और अभिनव शुक्ला भी हैं. सलमान खान मौका मिलते ही उन्हें डांट लगाने लगा देते हैं.

वहीं सलमान खान ने अर्शी खान को भी कभी नहीं सराहा है. इसलिए सलमान खआन के गुस्से से इन दिनों हर कोई बच के रहना चाहता है.

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कुछ वक्त पहले बिग बॉस शो के मेकर्स इस शो कि टीआरपी को लेकर बहुत ज्यादा परेशान थें. खैर अब शो की टीआरपी अच्छी हो गई है लेकिन फिर भी सभी को इस

एक साल चलेगा चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि सामूहिकता की जिस शक्ति ने गुलामी की बेड़ियां को तोड़ा वही भारत को दुनिया की बड़ी ताकत बनाएगी. सामूहिकता की यह शक्ति, आत्मनिर्भर भारत की ताकत है. देश को आत्मनिर्भर बनाने में सामूहिक भागीदारी बढ़ाने का संकल्प लेने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि देश की एकता और सम्मान सबसे बड़ा है. इसी भावना से प्रत्येक देशवासी को साथ लेकर आगे बढ़ना है. उन्होंने विश्वास जताया कि देश के विकास की यात्रा एक नये भारत के निर्माण के साथ पूर्ण होगी.

प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव का शुभारम्भ किया. उन्होंने इस अवसर पर चौरी चौरा की घटना पर केन्द्रित एक डाक टिकट भी जारी किया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर स्थित चौरी चौरा स्मारक स्थल से इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए. प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम के साथ जुड़ने के पश्चात संगीत नाटक एकेडमी द्वारा चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव का थीम सॉन्ग ‘चौरी चौरा के वीरों ने रचा नया इतिहास’ प्रस्तुत किया गया.

कार्यक्रम के दौरान प्रदेश के सूचना विभाग द्वारा चौरी चौरा की घटना के सम्बन्ध में तैयार की गयी डॉक्यूमेण्ट्री भी प्रदर्शित की गयी. इस अवसर पर विभिन्न विभागों द्वारा प्रदर्शनी/स्टॉल भी लगाये गये.

प्रधानमंत्री ने कहा कि 100 वर्ष पहले चौरी चौरा की घटना का संदेश बहुत बड़ा और व्यापक था. अनेक कारणों से पहले जब इस घटना की बात हुई, इसे आगजनी के रूप में देखा गया. आगजनी किन परिस्थितियों में हुई, वह महत्वपूर्ण है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी व उनकी टीम को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि चौरी चौरा के इतिहास को आज जो स्थान दिया जा रहा है, वह प्रशंसनीय है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव के शुभारम्भ के साथ ही, पूरे वर्ष विभिन्न कार्यक्रम होंगे. देश की आजादी के 75 वें वर्ष में प्रवेश के समय यह कार्यक्रम अत्यन्त प्रासंगिक हैं. चौरी चौरा की घटना आम मानवी का स्वतःस्फूर्त संग्राम था. इस संग्राम के शहीदों का बलिदान प्रेरणादायी है. बाबा राघवदास, महामना पं0 मदन मोहन मालवीय का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी कम घटनाएं होंगी, जिसमें 19 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गयी हो. अंग्रेज सरकार अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देना चाहती थी, किन्तु बाबा राघवदास, महामना पं0 मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से 150 से अधिक लोगों को फांसी से बचा लिया गया.

प्रधानमंत्री जी ने कार्यक्रम से युवाओं को जोड़े जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे उन्हें इतिहास के अनकहे लोगों की जानकारी मिलेगी. भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय युवाओं को स्वतंत्रता सेनानियों एवं स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं पर किताबें व शोध पत्र लिखने के लिए कार्यक्रम चला रहा है. इससे चौरी चौरा की घटना के सेनानियों का व्यक्तित्व और कृतित्व सामने लाया जा सकता है. चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव के कार्यक्रमों को लोककला और संस्कृति से जोड़े जाने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री जी व उनकी टीम की सराहना की.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि चौरी चौरा के संग्राम में किसानों की भरपूर भूमिका थी. वर्तमान सरकार ने विगत 06 वर्षाें में किसान को आगे बढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास किया है. कोरोना काल में भी कृषि में वृद्धि हुई तथा रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन हुआ. केन्द्रीय बजट में किसान कल्याण के लिए कई प्राविधान हैं. 1000 मण्डियों को ई-नाम से जोड़ा जाएगा. इससे किसानों को मण्डी में अपनी फसल को बेचने में आसानी होगी. ग्रामीण क्षेत्र के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर फण्ड को बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है. इससे किसान लाभान्वित और आत्मनिर्भर तथा कृषि लाभकारी होगी.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना का कार्य तेजी से संचालित है. यह योजना ग्रामीण विकास में सहायक है. इसके अन्तर्गत ग्रामीणों को उनके घर, जमीन के मालिकाना हक का अभिलेख उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे ग्रामीण जमीन का मूल्य बढ़ेगा. कर्ज लेने में आसानी होगी.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकार के प्रयास से किस तरह देश व प्रदेश की तस्वीर बदल रही है, गोरखपुर इसका उदाहरण है. यहां खाद कारखाना फिर से शुरु हो रहा है. इससे किसानों को लाभ होगा व युवाओं को रोजगार मिलेगा.

पूर्वांचल में कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया गया है. 04 लेन व 06 लेन की सड़कें बन रही हैं. गोरखपुर से 08 शहरों हेतु हवाई यात्रा सुविधा उपलब्ध हो गयी है. कुशीनगर में इण्टरनेशनल एयरपोर्ट की स्थापना से क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. यह सभी विकास कार्य स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि हैं.

कार्यक्रम स्थल चौरी चौरा, गोरखपुर में उपस्थित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने अपने स्वागत सम्बोधन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी का कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए आभार प्रकट करते हुए कहा कि चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव भारत माता के अमर बलिदानी सपूतों के प्रति श्रद्धा व सम्मान व्यक्त करने का अवसर है. चौरी चौरा की घटना 04 फरवरी, 1922 को इसी स्थान पर हुई थी. प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा व मार्गदर्शन में राज्य सरकार ने चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव के आयोजन का निर्णय लिया.

मुख्यमंत्री ने कहा कि चौरी चौरा में आमजन और पुलिस की गोली से तीन लोग शहीद हुए. ब्रिटिश सरकार द्वारा 228 स्वतंत्रता सेनानियों पर मुकदमा चलाया गया. 225 स्वतंत्रता सेनानियों को सजा हुई. इनमें से 19 को मृत्यु दण्ड, 14 को आजीवन कारावास, 19 को आठ वर्ष का कारावास, 57 को पांच वर्ष का कारावास, 20 को तीन वर्ष का कारावास तथा 03 को दो वर्ष के कारावास की सजा दी गयी. इस घटना को ध्यान में रखकर वर्ष 1857 से वर्ष 1947 के मध्य के सभी शहीद स्मारकों एवं आजादी के बाद विभिन्न युद्धों में शहीद अमर बलिदानियों के शहीद स्थलों पर राज्य सरकार द्वारा वर्ष भर चलने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला प्रारम्भ की जा रही है. उन्होंने कहा कि चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव का ‘लोगो’ ‘स्वरक्तैः स्वराष्ट्रं रक्षेत्’ अर्थात ‘हम अपने रक्त से अपने राष्ट्र की रक्षा करते हैं’, स्वतंत्रता आन्दोलन के शहीदों के जीवन आदर्शाें से ओतप्रोत है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि सायंकालीन सत्र में सभी शहीद स्मारकों व शहीद स्थलों पर पुलिस बैण्ड द्वारा राष्ट्रभक्ति के गीतों का कार्यक्रम, कवि गोष्ठी का आयोजन तथा दीपोत्सव का कार्यक्रम होगा. स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी तिथियों पर अमर स्वाधीनता सेनानियों, उनसे जुड़े स्मारकों और शहीद स्थलों पर, उन तिथियों पर मुख्य आयोजन के साथ ही, प्रदेश में समस्त शहीद स्मारकों व शहीद स्थलों पर कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे. विद्यालयों में लेखन, पेंटिंग, वाद-विवाद प्रतियोगिता, ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित साहित्य की प्रदर्शनी आयोजित की जाएगी. स्वतंत्रता सेनानियों एवं घटनाओं के सम्बन्ध में विशिष्ट शोध को बढ़ावा देने का कार्यक्रम भी प्रारम्भ हो रहा है.

कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री जी ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों को शॉल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया. इनमें श्री रामनवल, श्री ओमप्रकाश, श्री लाल किशुन, श्री गुलाब, सुश्री सावित्री, श्री वीरेन्द्र, श्री रामआशीष, श्री मानसिंह यादव, श्री हरिलाल, श्री सौदागर अली, श्री लल्लन, श्री रामराज, श्री मैनुद्दीन, श्री सत्याचरण, श्री दशरथ और श्री राम नारायण त्रिपाठी सम्मिलित हैं. इसके अतिरिक्त उन्होंने 100 दिव्यांगजन को मोटराइज्ड ट्राईसाइकिल का वितरण किया तथा हरी झण्डी दिखाकर उन्हें रवाना किया. इससे पूर्व, मुख्यमंत्री जी ने शहीद स्मारक, चौरी चौरा पर शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की. उन्होंने संग्रहालय का भ्रमण कर कराये जा रहे सौन्दर्यीकरण कार्याें का निरीक्षण किया तथा राष्ट्र गीत वन्दे मातरम के समवेतिक गान में प्रतिभाग किया.

कार्यक्रम के अन्त में पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ0 नीलकंठ तिवारी ने अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम को सांसद श्री कमलेश पासवान, विधायक श्रीमती संगीता यादव ने भी सम्बोधित किया.

इस अवसर पर समाज कल्याण मंत्री श्री रमापति शास्त्री सहित जनप्रतिनिधिगण व अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे.

बिग बॉस 14: देबोलीना भट्टाचार्जी को हुआ अपनी गलती का एहसास , शहनाज गिल से मांगी माफी

बिग बॉस 14 के घर में आज देबोलीना भट्टाचार्जी जबरदस्त हंगामा मचाने वाली हैं.  देबोलीना भट्टाचार्जी ने अर्शी खान पर अपना गुस्सा बरसाया है. देबोलीना आज जमकर घर में तोड़फोड़ करने वाली हैं.

देबोलीना भट्टाचार्जी का यह विकराल रूप देखकर फैंस परेशान हो जाएंगे , आखिर क्यों इतनी ज्यादा बिगड़ गई है देबोलीना भट्टाचार्जी. वहीं खबर है कि बिग बॉस 14 में  देबोलीना  अपनी जानी दुश्मन शहनाज गिल से मांफी मांगी है.

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आने वाले एपिसोड में आप भी देबोलीना भट्टाचार्जी जी की बातें सुनकर हैरान हो जाएंगी. वहीं देबोलीना के मांफी मांगने के बाद रुबीना दिलाइक और राहुल वैद्या एक-दूसरे से बातचीत करते नजर आएं.

देबोलीना  ने सरेआम ये बात कही है कि राखी सावंत कि तरह शहनाज गिल भी लोगों के सामने अपनी बातों को रखती थी लेकिन उनकी कोई सुनता नहीं था. आगे उन्होंने कहा कि मुझे अब समझ आ रहा है कि शहनाज गिल के साथ कितना बुरा हुआ था.

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बात करते हुए राहुल वैद्या, रुबीना दिलाइक रश्मि देसाई का जिक्र कर रहे थें. बता दें कि बिग बॉस 13 में देबोलीना भट्टाचार्जी और रश्मि देसाई एक -दूसरे के साथ अच्छी दोस्ती के लिए जानी जाती हैं.

वहीं शहनाज गिल के दोस्त सिद्धार्थ शुक्ला को आए दिन रश्मि देसाई सपोर्ट करती नजर आ रही थी. लेकिन देबोलीना भट्टाचार्जी और शहनाज गिल कभी अच्छे दोस्त नहीं बन पाई थी.

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खैर देखते हैं देबोलीना भट्टाचार्जी और शहनाज गिल के बीच अच्छी दोस्ती हो पाएगी या नहीं . खैर फैंस को भी इस चीज का इंतजार है कि क्या होगा शहनाज का अगला रिएक्शन.

इन दिनों बिग बॉस की टीआरपी सुर्खियों में हैं देखते हैं कौन बनेगा इस सीजन का विजेता

आत्ममंथन-भाग 1

‘‘तुम भी खा लेतीं,’’ गुस्सा छोड़ते हुए प्रीतम ने कहा.

‘‘नहीं, अभी नहीं. अभी तो मुझे बरतन मांजने हैं’’, मैं ने कहा.

‘‘क्यों, कामवाली नहीं आई क्या?’’

‘‘नहीं, कल उस की तबीयत खराब थी. कह रही थी शायद आज नहीं आ सकेगी.’’

‘‘फिर तुम ने पहले ही क्यों नहीं बता दिया? कम से कम मैं अपने अंडरगारमैंट्स धो कर सुखाने के लिए डाल देता.’’

‘‘मैं अपने कपड़ों के साथ धो डालूंगी. वैसे भी काम ही क्या रहता है सारा दिन. तुम दफ्तर चले जाते हो और रोहन स्कूल, तो मैं सारा दिन बेकार बैठी रहती हूं.’’

‘‘सच, कभीकभी लगता है कि मैं ने तुम से नौकरी छुड़वा कर कोई बड़ी गलती कर डाली है.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं कहते. सच मानो तो मैं बहुत खुश हूं घर पर रह कर, वरना पहले तो बस दो कौर ठूंस लिए और दौड़ पड़े दफ्तर को बस पकड़ने के लिए. फिर सारा दिन फाइलों से सिर फोड़ना. अब तो आराम ही आराम है. न देर होने की चिंता, न बस छूट जाने की फिक्र’’, मैं ने बड़े ही नाटकीय ढंग से कहा. फिर भी लगा कि प्रीतम को विश्वास नहीं आ रहा है. वह पूछ बैठा, ‘‘सच कह रही हो?’’

‘‘तो क्या झूठ कह रही हूं?’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

प्रीतम आश्वस्त हो कर उठा. वाशबेसिन से हाथ धो कर आया और टौवल से हाथ पोंछते हुए बोला, ‘‘अब तुम भी जल्दी से स्नान कर के खाना खा लो.’’

‘‘पहले घर की सफाई तो कर लूं.’’

प्रीतम ने मोजेजूते पहने और मैं ने औफिस बैग थमाया. वह उठ कर जाने लगा तो मैं ने उसे स्नेहसिक्त दृष्टि से देख कर कहा, ‘‘शाम को जल्दी आ जाना.’’

‘‘जरूर.’’

प्रीतम मेरा दायां गाल थपथपा कर बाहर निकल गया. उस ने आंगन में खड़ी बाइक स्टार्ट की और फिर फ्लाइंग किस करता हुआ फाटक से बाहर निकल गया.

मैं चौखट से उसे ओझल होने तक देखती रही. फिर मुड़ पड़ी. घर खालीखाली और चुपचुप सा लगा. अंदर जाते ही एक प्रकार की घुटन सी महसूस हुई. मुझे बचपन से ही न अकेले रहने की आदत है, न चुप रहने की. प्रीतम के जाने के बाद कामवाली से बतियाने लगती हूं. उस का सारा काम हो जाए तो भी उसे बातों में उलझाए रखती हूं. लेकिन आज तो कामवाली भी नहीं आई थी. अब तो सिर्फ दीवारों से ही बात कर सकती थी.

मैं ने झूठे बरतन उठाए और सिंक में रख दिए. मेज पोंछ कर उस पर लगे शीशे में अपना चेहरा देखा. उस में मुझे अपना अक्स धुंधलाधुंधला सा दिखाई दिया. सोचा, कहीं मैं अपनेआप को झुठला तो नहीं रही हूं. कभीकभी मेरे मुंह से मेरे मन की बात निकलतेनिकलते क्यों रह जाती है? आज प्रीतम से जो कुछ कहा वह क्या सच है? फिर यह घुटन कैसी? ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि मैं किसी खूंटे से बंध गई हूं, बस, एक ही दायरे में घूमती हुई.

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सवेरे मैं ने बहुत जरूरी बरतन ही मांजे थे. बाकी के यों ही पड़े थे. मैं उठ कर रसोई में गई और बरतन मांजने

शुरू कर दिए. बरतन ज्यादा नहीं थे. 3 आदमियों के बरतन होते ही कितने हैं?

शादी के बाद प्रीतम के साथ मैं यहां चली आई. यहां बड़ौदा में न मेरा कोई ससुराल वाला रहता था, न कोई मायके वाला. मायका था बेंगलुरु में और ससुराल मुंबई में. मांबाप का रिश्ता तो शादी के बाद टूट सा ही जाता है, लेकिन सास भी नहीं आई थीं मेरे साथ. उन्हें ससुर और मेरे देवरननदों की चिंता थी. प्रीतम शादी से पहले कभीकभार घर पर ही पका कर खा लेते थे. इसलिए उन्होंने गैस चूल्हा, सिलैंडर और कुछेक बरतन खरीद लिए थे. यहां आते वक्त मेरी मां और सास ने कुछ बरतन दे दिए थे और मेरी घरगृहस्थी अच्छी तरह बस गई थी.

सहेलियों से सुन रखा था कि अकेले रहने वाले व्यक्ति से शादी करने पर खूब मौज रहती है. लेकिन मैं यहां प्रीतम के साथ अकेले रहने पर भी उदास रहती हूं. घर जैसे खाने को दौड़ता है. शादी से पहले कभी इस तरह घंटों घर पर रहने की नौबत नहीं आई थी. कालेज की पढ़ाई के बाद नौकरी कर ली और छुट्टियों के दिनों में भी घर पर रही तो दोचार आदमियों से घिरी हुई.

मैं ने बरतन सजा कर रख दिए और झाड़ू लगाने लगी. घर बड़ा नहीं है. एक बैडरूम, एक ड्राइंगरूम, किचन और बाथरूम. झाड़ू लगा कर मैं गुसलखाने में गई और कपड़े धोने लगी. फिर स्नान कर के कपड़े सुखाने के लिए स्टैंड पर डाल दिए.

खाना खा कर मैं सोफे पर लेट गई और मुझे नींद सी आने लगी. सहसा दरवाजे की घंटी की आवाज सुन कर मैं हड़बड़ा कर उठी. जा कर देखा तो शशि थी.

अगले भाग में पढ़िए शशि से मिलकर क्यों नौकरी के लिए बैचेन हो गई वो… 

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