टैक्सी एअरपोर्ट के डिपार्चर टर्मिनल के बाहर रुकी. मीरा और आनंद उतरे. टैक्सी ड्राइवर ने डिक्की खोली और स्ट्रोली निकाल कर आनंद को पकड़ाई. आनंद ने झुक कर मीरा के पांव छुए.

‘‘अच्छा मां, मैं जा रहा हूं. अपना खयाल रखना. मेरे बारे में आप को कोई आशंका नहीं होनी चाहिए. मैं अपनी देखभाल अच्छी तरह कर सकता हूं. मैं आप को समयसमय पर फोन किया करूंगा और पढ़ाई खत्म होते ही भारत लौट आऊंगा आप की देखभाल करने के लिए,’’ यह कह कर आनंद ने मीरा से विदा ली.

‘‘जाओ बेटे, अच्छे से रहना. मेरे बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम सुखी रहो और तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूरी हों,’’ मीरा ने प्रसन्नता के साथ उसे विदा किया. आनंद टर्मिनल की ओर घूमा और मीरा टैक्सी में वापस बैठी. उस की आंखें सूखी थीं क्योंकि उस ने आंसू रोक रखे थे. वह टैक्सी ड्राइवर के सामने रोना नहीं चाहती थी. घर लौटते समय वह मन ही मन सोचने लगी, आनंद उस का इकलौता पुत्र था, जो अपने पिता की मौत के 6 महीने बाद पैदा हुआ था. मीरा ने उसे अकेले, अपने दम पर, पढ़ालिखा कर बड़ा किया था. और आज आनंद उसे छोड़ कर चला गया था. हमेशा के लिए तो नहीं, पर मीरा को शक था कि अब जब भी आनंद भारत लौटेगा तो वह सिर्फ चंद दिनों के लिए ही उस से मिलने के लिए आएगा. उस ने हमेशा सोचा था कि आनंद को वह अपने पति मेजर विजय की तरह फौजी बना देगी, पर यह बात उस के बेटे के दिमाग में कभी नहीं जमी. वह तो बचपन से ही अमेरिका में जा कर बस जाने के सपने देखने लगा था. फौज में जाता तो उस का सपना अधूरा रह जाता. अपने सपने पूरे करने के लिए आनंद ने दिनरात पढ़ाई की जिस के कारण वह यूनिवर्सिटी में गोल्ड मैडलिस्ट बना, यानी अव्वल नंबर पर आया. उसे अमेरिका में आगे पढ़ाई करने के लिए बहुत अच्छी स्कौलरशिप मिली. अब उसे कौन रोक सकता था.

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