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‘‘हमारे फ्लैट बहुत महंगे हो गए हैं, अब 50 लाख से कम में नहीं मिल पाएंगे. आप का बजट कितना है, बताइए. ऋषि नगर में सस्ते फ्लैट बन रहे हैं, उधर शायद, आप का काम बन जाए.’’

एमबीए कर रहा है हमारा बड़ा बेटा. इतने बडे़ बच्चे की जबान पर सब के सामने रोक लगाना आसान नहीं होता.

‘‘मौसाजी, दीवाली के दिन आप हमारे घर खाली हाथ ही चले आए? क्या मौसी ने कुछ भेजा नहीं हमारे लिए? क्या मौसी बड़ी कंजूस हो गई हैं. अभी फोन कर के पूछता हूं, क्या हमारी याद नहीं है मौसी को?’’

मोनू ने झट से सौम्या को फोन भी लगा दिया और नाराजगी भी जता दी.

‘‘मौसी कह रही हैं समय नहीं मिला कुछ बनाने का. अरे, घर में हड्डियां तोड़ने की क्या जरूरत थी. सोहन हलवाई के पास 200 रुपए से ले कर 1 हजार रुपए किलो तक सब मिलता है. वहीं से ले कर भेज देतीं. कंजूस कहीं की. क्या है मौसाजी, आप के साथ रह कर भी मौसी बदली नहीं. हम जैसी कंजूस ही रहीं. मौसाजी, आप ही कुछ मीठा ले आते न.’’

डर लग रहा था मुझे. खिसिया सा गया था विजय. मोनू ने उस के मित्रों को सारा घर घुमा कर दिखाया.

‘‘लकड़ी का काम ही कम से कम 5-6 लाख रुपए का है. पूरे घर का पेंट कराया था 1 लाख रुपया तो तभी लग गया था. 50 लाख रुपए तो फ्लैट की कीमत होगी. ऊपर का काम ही 10 लाख रुपए का है. 60 लाख रुपए तक कीमत होगी हमारी तरफ. इतना बजट है तो बताइए. मैं प्रौपर्टी डीलर का पता बता देता हूं.’’

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