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रहमान का नाम पूरे रैनावारी इलाके में मशहूर था. पीढ़ी दर पीढ़ी उस का दूध बेचने का काम था. उस के पिता व दादा की लोग आज भी मिसाल देते हैं. दूध में पानी मिलाना वे ठीक नहीं समझते थे. उस की दुकान का दही मानो मलाईयुक्त मक्खन हो. रहमान नमाजी था, पांचों वक्त की नमाज पढ़ता. सब से दुआसलाम करता था.

रहमान की आमदनी ज्यादा न थी. बस, रोजीरोटी ठीकठाक चल रही थी. उस के 2 बेटे, 3 बेटियां थीं. वह सभी को पढ़ाना चाहता था. रहमान को एहसास हो गया था कि आज के जमाने में दोनों बेटों में से कोई भी उस का हाथ नहीं थामेगा, उस का कारोबार उसी के साथ खत्म हो जाएगा. बड़ा बेटा परवेज यों तो पढ़नेलिखने में तेज दिमाग था लेकिन अमीर लड़कों की सोहबत के कारण बिगड़ने लगा था. कभीकभार जब भी दुकान पर आता, मौका मिलते ही गल्ले से पैसे साफ कर देता.

पहले रहमान ने सोचा कि परवेज ऐसा नहीं कर सकता. फिर एक दिन परीक्षा लेने के लिए उस ने कालेज से आते वक्त परवेज को बुलाया और कहा, ‘‘बेटे, जरा दुकान देखना, मैं सामने शाहमीरी के यहां से हिसाब कर के आता हूं.’’

पहले तो परवेज हैरान हुआ कि आज अचानक अब्बू दुकान पर उसे बैठा कर क्यों जा रहे हैं. लेकिन फिर उस ने इस खयाल को हवा में उड़ा दिया और फटाफट गल्ले से हजार रुपए निकाल लिए और दुकान के बाहर कुरसी पर बैठ गया.

अब्बू को आता देख कर फटाफट जाने के लिए उठ खड़ा हुआ और फिर चला गया.

रहमान भी जल्दी से देखने के लिए गल्ला खोल कर पैसे गिनने लगा, हजार रुपए कम देख कर उस को ठेस लगी कि उस का बेटा चोरी करने लगा है.

रहमान बुझे कदमों से रात को जब घर में घुसा, उस का चेहरा देखते ही पत्नी सलमा बोली, ‘‘क्या बात है, चेहरा क्यों उदास है?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘अरे, कुछ तो है. बताओ न, क्या बात है?’’

रहमान खामोश ही रहा. वह अंदर ही अंदर सोचता रहा कि कैसे परवेज को ठीक करे.

समय बीतता गया और परवेज का दुकान में आनाजाना जारी रहा. लेकिन अब रहमान ने गल्ले में ताला लगा दिया था. ताला देख कर परवेज चिढ़ जाता.

तभी एक दिन जमाते इसलामी वाले आए और एक बेटे को मांगने लगे. रहमान उन की मांग को सुन कर हैरान हो गया. वह फैसला ही नहीं कर पा रहा था कि अपने बेटे को धर्म के इन ठेकेदारों के हवाले करे कि नहीं.

पिछले कई महीनों से घाटी में कुछ हरकतें हो रही थीं. जिहाद के नाम पर जुलूस, नारेबाजी रोज की बातें हो गई थीं. कई जवान लड़के घाटी से कई महीनों के लिए गायब हो जाते, मांबाप उन्हें मुजाहिद का नाम दे देते और यही कहते कि उन्होंने अपना पुत्र जिहाद के लिए दे दिया. कई लड़के पाकिस्तानी इलाकों में ट्रेनिंग ले कर वापस आते, पैसों की चमक देख कर वे कुछ भी करने को तैयार रहते.

रहमान रोज रात में सब बच्चों को देख कर अल्लाह का शुक्रिया अदा करता, हमेशा दिल में खटका रहता कि कहीं उस के द्वार पर फिर कोई उस का बेटा मांगने न आ जाए.

आखिर कब तक रहमान बचा रहता, आज अचानक दुकान पर जब मुजाहिरों को आते देखा तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. दबी जबान में रहमान ने अनुरोध किया, ‘‘यहीं का कोई काम दे दो, बच्चे की पढ़ाई खराब हो जाएगी.’’

यूसुफ मौलवी ने कहा, ‘‘आखिर पढ़ कर पैसे ही कमाना है. हम भी इसे टे्रनिंग देंगे. रहा पैसों का सवाल, वे तो घर में इतने आएंगे कि तुम यह दुकान बदल कर  डेरी खोल लेना.’’

रहमान ने बुझे मन से हामी भर ली. अगले माह परवेज का निकाह हो जाने के बाद उस ने उसे ले जाने की बात कही.

अगले माह परवेज का निकाह हो गया.

शमीम दुलहन बन कर घर आ गई. शमीम चांद का टुकड़ा थी, उस का व्यवहार काफी मिलनसार था. कुछ ही दिनों में वह सब की आंखों का तारा बन गई. परवेज तो नजर बचाते ही कमरे में भाग जाता, रहमान देखदेख कर खुश होता लेकिन यूसुफ मौलवी की दी तारीख याद कर दुखी भी होता.

आखिरकार, वह दिन भी आ गया और परवेज को मुजाहिर बाजेगाजे के साथ ले गए.

कई दिनों तक घर में उदासी छाई रही. शमीम घर का सारा काम करती, सब की खिदमत करती. कभीकभार परवेज का फोन आता, सब के दिल को थोड़ी तसल्ली होती. एक दिन यूसुफ मौलवी ने एक व्यक्ति के जरिए कुछ पैसे घर भिजवाए. जाने क्यों रहमान को पैसे पा कर भी सुकून नहीं मिल रहा था, उसे लग रहा था कि जैसे हाथ पर पैसे नहीं अंगार रखे हों.

रहमान ने सलामदुआ कर मौलवी यूसुफ के व्यक्ति को विदा किया. देखतेदेखते 6 महीने बीत गए. एक रात परवेज वापस आया. उस का व्यक्तित्व पूरी तरह बदल चुका था. एके 47 उस के पास थी और बैग में नोटों की गड्डी.

रहमान ने किसी चीज की ओर ध्यान न दिया. वह सिर्फ अपने बेटे को सलामत देख कर खुश हो रहा था. उस की खुशी का तब ठिकाना न रहा जब उस ने सुना कि वह दादा बनने वाला है. वक्तबेवक्त परवेज कहीं जाता और कभी मीटिंग तो कभी ‘उन के’ द्वारा निर्देशित काम को अंजाम दे कर लौटता.

वक्त के साथसाथ घर की आर्थिक स्थिति भी बदलने लगी. परवेज का कमरा आधुनिक आरामदायक चीजों से सज गया. रहमान अपनी वही दूध की दुकान चला रहा था. कई बार परवेज ने उस दुकान को डेरी बनाने के लिए कहा लेकिन रहमान हमेशा टाल जाता. जाने क्यों जितना वह पहले चैन और सुकून से रहता था उतना ही अब वह हमेशा अशांत रहता. उसे लगता पता नहीं कब, क्या होगा. उसे अपनी 3 बेटियों की भी चिंता लगी रहती.

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