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खेल जो हो गया फेल: भाग 2

खेल जो हो गया फेल: भाग 1

आखिरी भाग

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पीआरओ तिवारी ने उसी समय यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बता दी. डा. दास के साथ हुई ठगी से मुख्यमंत्री बुरी तरह आहत हुए. उन्होंने उसी समय हौट लाइन पर गोरखपुर (जोन) के पुलिस महानिरीक्षक जयनारायण सिंह से बात की और इस घटना की पूरी जानकारी दी. साथ ही घटना की जांच कर के 2 दिनों के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया.

मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ की फटकार से आईजी आहत हुए. चूंकि एक तो मामला उन के ही विभाग से जुड़ा हुआ था, दूसरे ठगी का आरोप विभाग के एक एसआई पर लगाया जा रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की जांच एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे को सौंप दी. उन्होंने बोत्रे को 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. यह बात 19 मई, 2019 की है.

एएसपी रोहन बोत्रे ने जांच शुरू की तो मामला सच पाया गया. डा. रामशरण दास के यहां लगे सीसीटीवी कैमरे के रिकौर्ड में एसआई शिवप्रकाश सिंह के वहां आने और जाने के फुटेज मौजूद थी. उन्होंने ज्योति सिंह द्वारा दिए गए आवेदन की जांच की तो काफी बड़ा झोल सामने आया, जिसे जान कर एएसपी बोत्रे के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

जिस ज्योति सिंह नाम की युवती द्वारा डा. रामशरण दास पर अमरुतानी (अमरूद का बगीचा) में ले जा कर जबरन दुष्कर्म करने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया था, दरअसल, वह एसआई शिवप्रकाश सिंह के दिमाग की महज एक कोरी कल्पना थी. हकीकत में ज्योति सिंह नाम की कोई युवती थी ही नहीं.

ठगी कर के पैसा कमाने के लिए शिवप्रसाद सिंह ने इस चरित्र को जोड़ कर एक झूठी कहानी बनाई थी. वह इस खेल में अकेला नहीं था. उस के साथ एक और बड़ा खिलाड़ी शामिल था, जो फिल्म ‘मोहरा’ में नसीरुद्दीन शाह के पात्र की तरह परदे के पीछे छिप कर खेल खेल रहा था, ताकि उस का चेहरा बेनकाब न हो सके.

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वह कोई और नहीं बल्कि डा. रामशरण दास का बेहद करीबी और न्यूज चैनल सिटी वन का तथाकथित रिपोर्टर प्रणव त्रिपाठी था. डा. दास को जब इस हकीकत का पता लगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

इस मामले की पटकथा प्रणव त्रिपाठी के शैतानी दिमाग की उपज और एसआई शिवप्रकाश सिंह की खाकी वरदी के मेलजोल से लिखी गई थी. एएसपी बोत्रे की जांच में पूरी हकीकत सामने आ गई.

एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे ने डाक्टर रामशरण दास के साथ हुई ठगी का परदाफाश 24 घंटे में कर दिया. जांच में डाक्टर दास के दिए गए 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों में से प्रणव त्रिपाठी और शिवप्रकाश ने महज 2000 रुपए ही खर्च किए थे. बाकी के 7 लाख 98 हजार रुपए बरामद कर लिए गए.

राजघाट पुलिस ने एसआई शिव प्रकाश सिंह और तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी के खिलाफ भादंवि की धारा 388, 689, 120बी, 506, 419, 420, 468, 471 के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया. अदालत ने कागजी काररवाई कर के दोनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दिया.

खाकी वर्दी के गुरूर में चूर और मीडिया के ग्लैमर की शान में डूबे दोनों आरोपियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब वे खुद कहानी बन कर रह जाएंगे. एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे की पूछताछ में दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूलते हुए जो कहानी बताई. वह कुछ इस तरह थी.

30 वर्षीय शिवप्रकाश सिंह मूलरूप से वाराणसी के सारनाथ का रहने वाला था. उस के पिता वाराणसी में पुलिस विभाग में तैनात थे. वे ईमानदार इंसान थे. कुछ साल पहले उन का आकस्मिक निधन हो गया था.

शिवप्रकाश सिंह उन का बड़ा बेटा था. आश्रित कोटे में पिता की जगह पर शिवप्रकाश सिंह की नियुक्ति हो गई. नियुक्ति के पश्चात सन 2011 में उस की ट्रेनिंग हुई और फिर गोरखपुर में तैनाती मिल गई.

शिवप्रकाश सिंह अपने पिता के आचरण के विपरीत आचरण वाला युवक था. उस की नजर में पुलिस विभाग महज रुपए उगाने की फैक्ट्री मात्र था. वाराणसी से टे्रेनिंग से ले कर जब अपने गोरखपुर जौइन किया तो उस की पहली तैनाती राजघाट थाने की ट्रांसपोर्टनगर चौकी पर हुई.

यह चौकी ठीक राष्ट्रीय राजमार्ग और पौश कालोनी के बीचोबीच थी. इस चौकी पर तैनाती के लिए एसआई रैंक के अफसर मोटी रकम घूस देने के लिए तैयार रहते थे. जब से शिवप्रकाश की तैनाती हुई थी, तभी से उस ने ट्रक चालकों और व्यापारियों से वसूली करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह इस छोटीमोटी ऊपरी कमाई से खुश नहीं था. उसे किसी ऐसे आसामी की तलाश थी, जिसे एक बार हलाल कर के मोटी रकम मिल सके.

शिवप्रकाश सिंह की करतूतों की शिकायतें बड़े अधिकारियों तक भी गईं. लेकिन वह अपनी चिकनीचुपड़ी बातों और व्यवहार से अधिकारियों को ऐसे झांसे में लेता था कि उस का बाल तक बांका नहीं हो पाता था. इस से उस की हिम्मत बढ़ गई थी.

चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह की दोस्ती न्यूज चैनल सिटी वन के तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी से थी. दोनों में अच्छी पटती थी. प्रणव कैंट इलाके के अलहलादपुर मोहल्ले का रहने वाला था. मध्यमवर्गीय परिवार का प्रणव बेहद चालाक और शातिर दिमाग था.

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चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह प्रणव त्रिपाठी की इस अदा का कायल था. दोस्ती होने की वजह से दोनों का साथसाथ उठनाबैठना था. बात इसी साल के फरवरी महीने की है. एक दिन दोनों ट्रांसपोर्टनगर चौकी में बैठे थे. शाम का वक्त था.

शिवप्रकाश और प्रणव दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे. तभी बातोंबातों में चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश ने प्रणव से कहा, ‘‘यार, किसी मोटे आसामी का इंतजाम क्यों नहीं करते, जिस से एक ही झटके में लाखों का वारान्यारा हो जाए.’’

प्रणव ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘है एक मोटा आसामी मेरी नजर में.’’

‘‘कौन है?’’ शिवप्रकाश ने पूछा, ‘‘बताओ मेरी हथेलियों में खुजली हो रही है.’’

‘‘इसी शहर का जानामाना मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. रामशरण श्रीवास्तव.’’

‘‘वाकई आदमी तो सही चुना है, एक ही बार में मोटी रकम मिल सकती है.’’

इस के बाद चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह डा. रामशरण श्रीवास्तव को अपने चंगुल में फांसने के लिए ऐसी युक्ति सोचने लगा जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचने के बाद उस ने एक जबरदस्त योजना बनाई. योजना बनाने के बाद शिवप्रकाश ने दोस्त और तथाकथित पत्रकार प्रणव को चौकी पर बुलाया और उसे योजना के बारे में बता दिया. योजना सुन वह भी चकित हुए बिना नहीं रह सका.

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की योजना सुन कर प्रणव त्रिपाठी ने कहा कि वह इस के सफल होने तक बीच में कभी सामने नहीं आएगा. वह परदे के पीछे रह कर डाक्टर की सारी गोपनीय सूचनाएं देता रहेगा.

इस पर शिव प्रकाश राजी हो गया. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को एक काल्पनिक किरदार ज्योति सिंह द्वारा डा. रामशरण श्रीवास्तव के विरुद्ध दुष्कर्म का शिकायती पत्र लिखा गया.

डा. रामशरण श्रीवास्तव उर्फ रामशरण दास को प्रणव त्रिपाठी कैसे जानता था, जरा इस पहलू भी पर गौर करें. तकरीबन 4 साल पहले डा. रामशरण दास का एक परिचित प्रणव को नौकरी दिलाने के लिए उन के क्लीनिक पर लाया था.

उस के आग्रह पर डाक्टर दास ने प्रणव को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. उस ने थोड़े ही दिनों में अपने अच्छे व्यवहार से डाक्टर दास का दिल और भरोसा जीत लिया. डाक्टर दास उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगे.

प्रणव त्रिपाठी क्लीनिक के साथसाथ डाक्टर दास का कोर्टकचहरी का काम भी देखता था. लिखनेपढ़ने का शौकीन प्रणव उसी दौरान मझोले किस्म के दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों में खबरें लिखने लगा.

दिमाग से तेजतर्रार प्रणव ने उन्हीं खबरों को आधार बना कर पुलिस विभाग में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी. उस की इस कला को देख कर डाक्टर दास उस से खुश रहते थे. धीरेधीरे वे उसे अपने मुंह बोले बेटे की तरह मानने लगे थे.

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इसी बीच प्रणव को ड्रग लेने का चस्का लग गया. जब उसे ड्रग नहीं मिलता था तो वह बीमार पड़ जाता था. तकरीबन एक महीने तक डाक्टर दास ने उस का इलाज किया.

इस के बाद डाक्टर दास ने उसे नौकरी से हटा दिया. फिर वह जुगाड़ लगा कर न्यूज चैनल सिटी वन से जुड़ गया था और खबर देने लगा था. इस चैनल की आड़ में वह अपना उल्लू भी सीधा करता था.

व्यापारियों से उसे जेब खर्च की मोटी रकम मिल जाती थी. डाक्टर दास के यहां से नौकरी से निकाले जाने के बाद भी उस ने उन से संबंध नहीं तोड़ा था. वह बराबर उन के संपर्क में बना रहता था.

बहरहाल, योजना बनाने के बाद इसे अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन शिवप्रकाश यहीं पर एक बड़ी गलती कर बैठा. तथाकथित ज्योति का जो शिकायती पत्र थाने भेजा जाना चाहिए था, वह उस ने स्पीड पोस्ट से पुलिस चौकी के पते पर पोस्ट कर दिया था. यह गलती उसे भारी पड़ गई.

इस चक्रव्यूह में फंसे डाक्टर दास ने 3 लाख एक करीबी मित्र से ले कर शिवप्रकाश को 8 लाख रुपए दिए थे. इतने से भी शिवप्रकाश और प्रणव का लालच कम नहीं हुआ और डा. दास से 2 लाख रुपए और मांगने लगे.

ये लोग डा. दास से 2 लाख रुपए की उगाही कर पाते, इस से पहले ही साजिश का भंडाफोड़ हो गया.

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सौजन्य: मनोहर कहानी

विकृति की इंतहा: भाग 1

भाग 1

सर्व सुलभ होने से स्मार्टफोन कम पढ़ेलिखे युवाओं को भटकाने का काम कर रहे हैं. बरबादी की इस जड़ ने युवाओं को ज्यादा प्रभावित किया है. मोबाइल की स्क्रीन पर युवाओं को वह सब देखने को मिल जाता है, जो उन की जानकारी में शादी के बाद आना चाहिए. सोहेल ऐसा ही भटका हुआ युवक  था, जिस की वजह से…

अंधेरा घिर आया था. रुखसार घर में कामकाज में लगी थी. रात 8 बजने के बाद भी जब बाहर खेलने गया उस का बेटा फैजान घर वापस नहीं आया तो उस ने बड़ी बेटी रुखसाना से कहा कि फैजान को बुला लाए, खाना खा लेगा. फैजान मध्य प्रदेश के शहर रतलाम के राजेंद्र नगर इलाके में रहने वाले मोहम्मद जफर कुरैशी का 5 साल का बेटा था.

जफर पेशे से दरजी था. उस की दुकान हाट की चौकी के पास थी. जफर के 4 से 10 साल तक की उम्र के 4 बच्चे थे. जिस में से फैजान तीसरे नंबर का था. वह रतलाम के गांधी मेमोरियल उर्दू स्कूल में केजी वन में पढ़ रहा था.

चंचल स्वभाव का फैजान स्कूल से आते ही बस्ता फेंक कर मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने के लिए निकल जाता था. फिर वह तब तक घर नहीं आता था, जब तक उसे कोई बुला कर न लाए.

मां के कहने पर रुखसाना फैजान को बुलाने गई लेकिन मैदान में खेल रहे बच्चों में उसे फैजान दिखाई नहीं दिया. वह घबराई हुई घर आई और अपनी अम्मी को फैजान के न मिलने की बात बता दी.

बेटी की बात सुन कर फैजान की मां रुखसार खुद उन बच्चों के पास पहुंची जो मैदान में खेल रहे थे. उस ने बच्चों से फैजान के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि फैजान तो यहां से काफी देर पहले जा चुका है. यह 13 अप्रैल, 2019 की बात है.

इतना सुनते ही वह घबरा गई. उस ने उसी समय यह जानकारी पति जफर कुरैशी को दे दी जो उस समय अपनी टेलरिंग शौप पर था. बेटे के गुम होने की जानकारी मिलते ही जफर भी घर पहुंच गया. जफर के साथसाथ मोहल्ले के कुछ लोग भी फैजान को इधरउधर खोजने लगे.

आधी रात तक फैजान का पता नहीं चला तो जफर कुरैशी अपने रितेदारों और दोस्तों के साथ हाट की पुलिस चौकी पहुंच गया. 5 वर्षीय बच्चे का लापता हो जाना गंभीर मामला था, इसलिए चौकीप्रभारी ने तत्काल इस बात की जानकारी माणक चौक थाने के टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

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टीआई बरडे, एसआई दिनेश राठौर के साथ हाट की चौकी पर पहुंच गए. जफर से पूछताछ के बाद फैजान के अपहरण का मामला दर्ज कर टीआई ने टीम के साथ रात में ही उस की तलाश प्रारंभ कर दी. परंतु सुबह 8 बजे तक भी फैजान की कोई सूचना नहीं मिली.

दूसरे दिन रतलाम के एसपी गौरव तिवारी ने माणक चौक के टीआई रेवल सिंह बरडे को फैजान की खोज निकालने में तेजी लाने के निर्देश दिए. फैजान के परिवार वाले भी उस की तलाश में भटक रहे थे. पुलिस के पूछने पर जफर कुरैशी ने बता दिया था कि उस की व उस के परिवार की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए पुलिस आसपास के कुओं, नालों आदि को भी तलाश कर चुकी थी पर फैजान का कोई सुराग नहीं मिला. इस के बाद एसपी गौरव तिवारी ने एएसपी इंद्रजीत सिंह बाकलवार के नेतृत्व में सीएसपी मान सिंह ठाकुर, टीआई (माणक चौक) रेवल सिंह बरडे, टीआई (दीनदयाल नगर) वी.डी. जोशी, टीआई (नामली) किशोर पाटनवाल और एसआई दिनेश राठौर सहित 14 सदस्यीय एसआईटी का गठन कर उन्हें फैजान को खोजने की जिम्मेदारी सौंप दी.

इस टीम ने हाट रोड पर फैजान के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, जिस में फैजान शाम लगभग 5 बजे सड़क पर दौड़ कर एक तरफ जाता दिखाई दिया. लेकिन इस के बाद वह किसी भी कैमरे की रेंज में नहीं आया.

इस फुटेज से केवल इतना ही पता चला कि उस समय वह पास की एक दुकान पर टौफी खरीदने के लिए गया था. पुलिस ने दुकानदार से पूछताछ करने के अलावा सीसीटीवी कैमरों में कैद हुए वाहनों के नंबर के आधार पर उन के मालिकों से भी पूछताछ की लेकिन कुछ  हाथ नहीं आया. धीरेधीरे समय बीतने पर जहां लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, वहीं फैजान के परिवार वालों का रोरो कर बुरा हाल था.

फैजान के गायब हुए 7 दिन बीत चुके थे. वह किस के साथ कहां चला गया, इस सवाल का किसी को कोई उत्तर नहीं मिल रहा था. इधर रतलाम रेंज के डीआईजी गौरव राजपूत ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और एसपी से अपराधियों के खिलाफ सख्त काररवाई करने के निर्देश दिए.

टीआई रेवल सिंह बरडे ने थाना क्षेत्र के कई बदमाशों को पूछताछ के लिए उठाया. इस के अलावा उन्होंने क्षेत्र के मोबाइल टावरों के संपर्क में आए हजारों मोबाइल नंबरों की भी जांच की.

दूसरी तरफ फैजान को लापता हुए लंबा समय बीत जाने पर भी न तो उस की कोई खबर मिली और न ही किसी ने फिरौती की मांग की तो पुलिस ने अपनी जांच जफर कुरैशी के परिवार की तरफ मोड़ दी.

जफर और उस के आसपास रहने वाले लोगों की गतिविधियों पर नजर रखते हुए पुलिस उन से पूछताछ करने लगी. लेकिन फिर भी कुछ हाथ नहीं आया. जिस के चलते घटना से 8 दिन बाद मामले की कमान एसपी गौरव तिवारी ने अपने हाथ में ले ली.

नौवें दिन 22 अप्रैल, 2019 को एसपी रतलाम पूरी टीम ले कर उस इलाके में पहुंचे, जहां से फैजान गायब हुआ था. इस टीम ने हाट रोड, गौशाला रोड, तोपखाना रोड, राजेंद्र नगर, कंबल पट्टी, मदीना कालोनी और सुभाष नगर इलाके के चप्पेचप्पे में फैजान को ढूंढा.

साथ ही एक बार फिर परिवार के लोगों से पूछताछ की. अब तक लगभग डेढ़ सौ लोगों से पूछताछ की जा चुकी थी. लेकिन इस के बाद भी फैजान का पता नहीं चल पा रहा था.

घटना के 11वें दिन यानी 23 अप्रैल को पूरे मामले में चौंका देने वाला नाटकीय मोड़ आ गया. एक दिन पहले एसपी गौरव तिवारी स्वयं अपनी टीम के साथ हाट रोड के चप्पेचप्पे में फैजान की खोज कर चुके थे. मगर अगले ही दिन फैजान के घर से महज 100 कदम दूर नाले में पुलिस को एक संदिग्ध बोरा मिला.

बोरे से आ रही बदबू से पुलिस समझ गई कि बड़ा खुलासा हो सकता है. हुआ भी वही. प्लास्टिक के उस बोरे को खोल कर देखा गया तो उस के अंदर 5 साल के मासूम फैजान का सड़ा हुआ शव निकला.

फैजान के मुंह और हाथोंपैरों पर टेप चिपका था. लाश को देखने से ही लग रहा था कि फैजान की हत्या हफ्ते भर पहले की जा चुकी थी.

मामला गंभीर था, इसलिए एसपी के निर्देश पर मैडिकल कालेज से एफएसएल अधिकारी डा. एन.एस. हुसैनी और जिला एफएसएल अधिकारी डा. अतुल मित्तल भी मौके पर पहुंच गए. बारीकी से जांच करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

इस घटना से पुलिस के सामने एक बात तो साफ हो गई कि फैजान का हत्यारा इसी बस्ती में आसपास कहीं छिपा हुआ है. क्योंकि जिस जगह पर लाश मिली थी, एक दिन पहले वहां वह बोरी नहीं थी. लापता होते समय फैजान ने टीशर्ट और हाफ पैंट पहन रखी थी. जबकि लाश के शरीर पर टीशर्ट तो वही थी, जबकि हाफ पैंट की जगह शव को जींस पहना दी गई थी. इसलिए मामले में शक की सुई परिवार की तरफ भी मुड़ रही थी.

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लेकिन जिस परिवार का मासूम इस तरह दुनिया छोड़ गया हो, उस परिवार पर सीधे शक नहीं किया जा सकता. इसलिए एसपी गौरव तिवारी ने एसआईटी को मोहल्ले में रहने वाले हर शख्स की पिछले 15 दिनों की कुंडली बनाने के निर्देश दिए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि फैजान की मौत करीब 10 दिन पहले यानी उसी रोज हो चुकी थी, जिस रोज वह गायब हुआ था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मासूम के साथ दुष्कर्म किए जाने की बात सामने आई थी.

अगली कड़ी में पढ़ें: आखिर इस घटना को अंजाम किसने दिया था ?

खेल जो हो गया फेल: भाग 1

भाग-1

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कैंट क्षेत्र में एक ऐतिहासिक और पौश कालोनी है, जिसे राम प्रसाद बिस्मिल पार्क के नाम से जाना जाता है. अमर शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल का इस कालोनी से गहरा संबंध था. उन्होंने यहीं छिप कर अंग्रेजों से लोहा लिया था.

इस वीआईपी कालोनी में विभिन्न रोगों के कई विख्यात चिकित्सकों के अपने निजी नर्सिंगहोम हैं. इसी पौश कालोनी में मनोरोगियों के पूर्वांचल के जानेमाने चिकित्सक 65 वर्षीय रामशरण दास उर्फ रामशरण श्रीवास्तव रहते हैं. उन का आवास और नर्सिंगहोम दोनों ही बिस्मिल पार्क रोड पर स्थित हैं.

रोज की तरह 16 मई, 2019 की सुबह निर्धारित समय पर डा. रामशरण दास अपने क्लीनिक पर जा कर बैठे और मरीजों को देखने लगे. 4 घंटे मरीजों को देखने के बाद दोपहर करीब 2 बजे वह लंच करने घर जाने के लिए  उठे ही थे कि उन के मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने मोबाइल के स्क्रीन पर डिस्पले हो रहे नंबर को ध्यान को देखा.

नंबर किसी अपरिचित का था. उन्होंने काल रिसीव नहीं की. फोन कमीज की जेब में रख कर वह घर की ओर बढ़ गए. उन्होंने सोचा कोई परिचित होगा तो दोबारा काल करेगा. क्लीनिक से निकल कर जैसे ही वह घर की तरफ बढे़ तभी दोबारा फोन की घंटी बजने लगी.

डा. रामशरण दास ने कमीज की जेब से फोन निकाल कर देखा तो उस पर डिस्पले हो रहा नंबर पहले वाला ही था. उन्होंने काल रिसीव कर हैलो कहा तो दूसरी ओर से रोबीली सी आवाज आई, ‘‘क्या मैं डा. रामशरण श्रीवास्तव से बात कर रहा हूं?’’

‘‘हां, मैं डा. रामशरण श्रीवास्तव ही बोल रहा हूं.’’ अपना नाम सुन कर वे चौंके. दरअसल, लोग डाक्टर को रामशरण दास के नाम से जानते थे. लेकिन फोन करने वाले ने उन्हें रामशरण श्रीवास्तव कह कर संबोधित किया तो वह चौंके, क्योंकि ये नाम उन के करीबी ही जानते थे. उन्होंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस चौकी से चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह बोल रहा हूं.’’ फोन करने वाले ने अपना परिचय दिया.

‘‘जी, बताइए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं.’’ परिचय जानने के बाद डा. रामशरण ने सम्मानपूर्वक सवाल किया.

‘‘डाक्टर साहब, आप शाम को ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस चौकी पर आ कर मुझ से मिल लीजिए. ज्योति सिंह नाम की एक महिला ने आप के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है.’’ यह सुन कर डाक्टर दास हतप्रभ रह गए. उन्होंने बुझे मन से पूछा, ‘‘महिला ने मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन मैं तो ऐसी किसी महिला को नहीं जानता जिसे मुझ से कोई शिकायत हो.’’

‘‘शाम को जब आप चौकी पर आएंगे तो पता चल जाएगा.’’ इतना कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

एक पल के लिए डा. रामशरण दास को ये बात मजाक लगी. उन्होंने सोचा कि किसी परिचित को उन का मोबाइल नंबर मिल गया  होगा और वह मजाक कर रहा होगा. लेकिन मन ही मन वे परेशान भी थे.

आखिर कौन ऐसी महिला है जिस ने उन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंचे और जल्दी ही लंच कर के क्लीनिक लौट आए. उन का घर नर्सिंगहोम परिसर में द्वितीय तल पर था.

उन के मन में बारबार फोन करने वाले व्यक्ति की बातें गूंज रही थीं. क्लीनिक आने के बाद वे कुछ देर वहां बैठे और फिर सच्चाई जानने के लिए शाम 6 बजे के करीब ड्राइवर को ले कर कार से ट्रांसपोर्टनगर चौकी जा पहुंचे.

चौकी पहुंच कर उन्होंने पहरे पर तैनात संतरी से चौकी प्रभारी शिवप्रकाश सिंह से मिलने की बात कही. संतरी ने उन्हें चौकी प्रभारी शिवप्रकाश सिंह से मिलवा दिया. खाकी वरदी पहने शिवप्रकाश सिंह रिवाल्विंग चेयर पर बैठे थे. डा. रामशरण दास ने उन्हें अपना परिचय दिया तो उन्होंने डाक्टर दास का गर्मजोशी से स्वागत किया. डाक्टर सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठ गए.

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चौकी इंचार्ज का यह एटिट्यूड देख कर डा. रामशरण दास को थोड़ा अजीब महसूस हुआ. फिर भी उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया था. उन से थोड़ी देर इधरउधर की बात करने के बाद शिव प्रकाश उन्हें ले कर विजिटर रूम में चले गए. कमरे में 2 अलगअलग कुरसियां पड़ी थीं. एक कुरसी पर चौकी इंचार्ज खुद बैठ गए और दूसरी पर डाक्टर दास.

शिवप्रकाश ने एक फाइल से शिकायती पत्र निकाला और डाक्टर की ओर बढ़ा दिया. शिकायती पत्र किसी ज्योति सिंह नाम की युवती ने दिया था. उस में लिखा था कि 6 मार्च, 2019 की शाम को वह डाक्टर दास के क्लीनिक पर गई थी. वह अंतिम मरीज थी और क्लीनिक में सन्नाटा था.

रात हो गई थी. डाक्टर दास ने कहा कि रात में अकेली कैसे जाओगी, मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगा. उन्होंने उसे कार में बैठाया और ट्रांसपोर्टनगर स्थित अमरुतानी (अमरुद का बगीचा) ले गए. जहां उन्होंने उस के साथ रेप किया. चीखने पर उन्होंने जान से मारने की धमकी दी. बाद में उसे कुछ रुपए दे कर भगा दिया.

पत्र दिखा कर चौकी इंचार्ज सिंह ने डाक्टर दास से कहा कि यह पत्र स्पीडपोस्ट के जरिए 12 मार्च, 2019 को मिला था, लेकिन चुनावी  व्यस्तता की वजह से वह इस शिकायत की जांच नहीं कर सके.

शिकायती पत्र में महिला द्वारा रेप की बात का जिक्र देख कर डाक्टर दास के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. पत्र पढ़ कर उन की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले. उन के चेहरे पर खुद ब खुद परेशानी और डर के मिलेजुले भाव उभर आए.

शिकायती पत्र फाइल में रखते हुए चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह ने डाक्टर दास से कहा, ‘‘रेप के मामलों में बड़ेबड़े बर्बाद हो जाते हैं. इसी शहर के डाक्टर डी.पी. सिंह, विधायक कुलदीप सेंगर या फिर मंत्री गायत्री प्रसाद को देखें, आज तक जेल में सड़ रहे हैं. सोच लो, मैं मदद करने की कोशिश करूंगा.’’

रेप के हश्र की जो तसवीर चौकी इंचार्ज ने डाक्टर दास के सामने पेश की थी, उसे सुन कर वह एक बार फिर पसीनापसीना हो गए. लेकिन उन्हें चौकी इंचार्ज की मदद करने वाली बात खटकी. उस समय डाक्टर दास वापस क्लीनिक लौट आए.

वह अपने क्लीनिक पर लौट तो जरूर आए लेकिन उन का हालबेहाल था. वे इस सोच में डूबे थे कि उन की किसी ज्योति सिंह से कभी मुलाकात हुई थी या नहीं. आखिर वह उन पर ऐसा घिनौना आरोप क्यों लगा रही है. फिर उन्होंने दूसरे नजरिए से सोचना शुरू कर दिया. यानी कहीं उन्हें फंसाने के लिए उन के विरुद्ध कोई बड़ी साजिश तो नहीं रची जा रही.

उन्होंने जब से शिकायती पत्र पढ़ा था, परेशान होते हुए भी इस बात को किसी से बता नहीं पा रहे थे. वजह यही कि लोग सुन कर उन के बारे में क्या सोचेंगे. बात मीडिया तक पहुंच गई तो उन की इज्जत की धज्जियां उड़ जाएंगी.

काफी सोचविचार के बाद डाक्टर दास को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने इस बारे में अपनी पत्नी को सब कुछ बता दिया. बात सुन कर पत्नी भी परेशान हो गईं. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि सोचने से कुछ नहीं होगा. इस मुसीबत से निकलने के लिए उन्हें कोई कारगर रास्ता तलाश करना होगा.

उसी रात 10 बजे के करीब उन के मोबाइल पर एक फोन और आया. डिसप्ले नंबर देख कर उन का चेहरा खुशी से खिल उठा. वह नंबर एक परिचित का था, जो शहर के न्यूज चैनल सिटी वन का पत्रकार था. उस का नाम प्रणव त्रिपाठी था. उसे डाक्टर दास बेटे की तरह मानते थे और स्नेह भी करते थे.

डा. रामशरण दास ने काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘कैसे हो बेटा?’’

‘‘फर्स्टक्लास डाक्टर अंकल,’’ उत्तर दे कर प्रणव ने उन से पूछा, ‘‘और आप कैसे हैं अंकल?’’

‘‘क्या बताऊं बेटा, ठीक भी हूं और नहीं भी.’’ डाक्टर दास ने नर्वस हो कर कहा.

‘‘बात क्या है, अंकल. ऐसी बात तो आप ने कभी नहीं की. मेरे लायक सेवा हो बताइए, मैं आप की पूरी मदद करूंगा.’’

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‘‘नहीं बेटा, तुम ने मेरे लिए इतना सोचा, यही मेरे लिए काफी है. आज के जमाने में कोई कहां दूसरे के लिए सोचता है. एक बात है, जिस में तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’ सकुचाते हुए डाक्टर दास बोेले.

‘‘हां…हां… अंकल बताइए. मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘तुम तो न्यूज चैनल के रिपोर्टर हो और पुलिस विभाग में तुम्हारी अच्छी पकड़ भी है.’’

‘‘हां, अंकल है, पुलिस अधिकारियों से मेरे अच्छे संबंध हैं. पर बात क्या है?’’

इस के बाद डा. रामशरण दास ने प्रणव त्रिपाठी को पूरी बात बता दी. उन की बात सुन कर उस ने मदद करने की हामी भी भर दी. प्रणव से बात करने के बाद डाक्टर दास को थोड़ी शांति मिली. मन का बोझ कुछ कम हो गया. उस रात उन्होंने आराम की भरपूर नींद ली.

अगली सुबह वह उठे तो खुद को तरोताजा महसूस कर रहे थे. दिन भर वे अपने क्लीनिक में व्यस्त रहे. फिर रात को वे खा पी कर सो गए. रात एक बजे ट्रांसपोर्ट नगर के चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह अकेले ही डा. दास के रामप्रसाद बिस्मिल पार्क स्थित आवास पर पहुंच गए. उस समय डा. दास गहरी नींद में थे.

डाक्टर दास के आवास पर पहुंच कर शिवप्रकाश ने डोरबेल बजाई तो उन की नींद खुल गई. उन्होंने दरवाजा खोला तो चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह को देख कर अवाक रह गए. उन्होंने उसे ड्राइंगरूम में ले जा कर बैठा दिया और खुद कपड़े चेंज कर के उस के पास जा बैठे.

करीब 2 घंटे तक शिवप्रकाश सिंह वहीं बैठा रहा और रेप के शिकायत वाले लेटर को मुद्दा बना कर उन से पूछताछ करता रहा. बाद में उस ने कहा, ‘‘देखो डाक्टर, शिकायत करने वाली लड़की ज्योति और मुझे 5-5 लाख रुपए दे दो, वरना जेल भेज दूंगा. उस के बाद क्या होगा तुम समझना.’’

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की बात और आवाज में बदतमीजी और रुआब आ गया था. उस की धमकी सुन कर डाक्टर दास बुरी तरह परेशान हो गए. कोई रास्ता न देख उन्होंने शिवप्रकाश से अगले दिन दोपहर तक का समय मांग लिया.

चौकी इंचार्ज के वहां से जाने के बाद डाक्टर दास ने थोड़ी राहत की सांस ली. वह समझ गए कि ये पूरी साजिश पैसों के लिए रची गई है. इस खेल में उन का कोई परिचित भी है, जो उन से संबंधित पूरी जानकारी चौकी इंचार्ज को दे रहा है. ऐसा कौन है यह बात उन की समझ में नहीं आ रही थी. यह बीती 17 मई की बात है.

खैर, अगले दिन 18 मई, 2019 की दोपहर चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह डाक्टर रामशरण दास के क्लीनिक पर पहुंच गए. उस समय डाक्टर दास मरीजों की जांच करने में व्यस्त थे. क्लीनिक पहुंचते ही शिवप्रकाश सिंह ने कंपाउंडर से अपने आने की सूचना उन्हें भेजवा दी.

चौकी इंचार्ज के आने की सूचना मिलते ही डाक्टर साहब परेशान हो गए. वे समझ गए कि बिना पैसे लिए उस से पीछा छूटने वाला नहीं है. उन्होंने सफेद रंग के बैग में 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों के बंडल बना कर 8 लाख रुपए जमा कर लिए थे. उन्होंने कंपाउंडर से कह कर चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह को अपने चैंबर मे बुलवा लिया.

कंपाउंडर की सूचना मिलते ही शिवप्रकाश डा. दास के चैंबर में जा पहुंचा. चैंबर में डा. दास अकेले थे. शिवप्रकाश को देखते ही उन का खून खौल उठा, लेकिन वे अपने गुस्से को पी गए. वे उसे एक पल के लिए भी बरदास्त नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने रुपए से भरा बैग उसे दे दिया.

रुपए मिलते ही चौकी इंचार्ज के चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गई. जैसे ही रुपए से भरा बैग ले कर चौकी इंचार्ज क्लीनिक से जाने लगा, वैसे ही डा. दास ने चौकी इंचार्ज के सामने उस महिला से मिलने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी, जिस ने उन पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था. रामशरण दास की बात सुन कर चौकी इंचार्ज शिवप्रसाद नहीं कुछ बोला और वहां से रुपयों से भरा बैग ले कर चला गया.

शिवप्रकाश सिंह के क्लीनिक से जाने के बाद रामशरण दास पत्नी को साथ ले कर सीधे इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. एस.पी. गुप्ता के घर जा पहुंचे और अपने साथ हुई शरमनाक घटना के बारे में उन्हें विस्तार से बता कर उन से मदद की मांग की.

बात काफी गंभीर थी. आईएमए के अध्यक्ष डा. एस.पी. गुप्ता ने सचिव राजेश गुप्ता को तुरंत अपने आवास पर बुलाया. साथ ही संगठन के सभी पदाधिकारियों को भी बुलवा लिया. आईएमए के पदाधिकारी डाक्टर दास को ले कर एसएसपी के औफिस गए. चूंकि उस दिन चुनाव था, इसलिए डाक्टर सुनील गुप्ता की एसएसपी से मुलाकात नहीं हो पाई.

डा. दास को ले कर सभी पदाधिकारी शिकायत करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पीआरओ द्वारिका तिवारी से मिलने गोरखनाथ मंदिर जा पहुंचे. इन लोगों ने पीआरओ द्वारिका प्रसाद से मुलाकात कर के उन्हें लिखित शिकायत दे दी.

सौजन्य: मनोहर कहानी

अगली कड़ी में पढ़ें- उस डौक्टर के करतूतों की क्या सजा मिली?

डौक्टर के सीने में डायलिसिस की गोली: भाग 2

डौक्टर के सीने में डायलिसिस की गोली: भाग 1

भाग-2

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पुलिस ने पहले तो परिवार के लोगों से जानकारी ली कि उन्हें कभी किसी ने फिरौती के लिए तो फोन नहीं किया था या फिर किसी के साथ उन का झगड़ा तो नहीं हुआ था. इस बारे में परिवार के सदस्यों से कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

इस के बाद पुलिस की एक टीम ने अस्पताल के डाक्टरों, नर्सों और कर्मचारियों से पूछताछ की. किसी मरीज ने डाक्टर के साथ झगड़ा किया हो, किसी मरीज की मौत के बाद उस के घर वालों ने झगड़ा किया हो या कोई धमकी दी हो. पर ऐसा कोई वाकया सामने नहीं आया.

इस हत्या के बाद शहर के सभी डाक्टर डरे हुए थे. अभी तक डाक्टर की हत्या के कारणों का खुलासा नहीं हुआ था. पुलिस इस मामले को फिरौती व पुरानी रंजिश से भी जोड़ कर देख रही थी.

पुलिस ने दोबारा डा. राजीव गुप्ता के ड्राइवर साहिल से गहराई से पूछताछ कर जानकारी ली. तीनों आरोपी कैसे दिखते थे?  इस पूछताछ में ड्राइवर ने बताया कि एक आरोपी सेहत में हट्टाकट्टा था और बाकी के 2 आरोपी दुबलेपतले थे.

2 लोगों ने अपने चेहरे ढंके हुए थे और बाइक चालक का चेहरा खुला था, पर वह उन्हें ठीक से देख नहीं पाया था क्योंकि गोली चलते ही वह कार से उतर कर पास वाली झुग्गियों की तरफ भाग गया था.

साहिल के इस बयान के बाद पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई तो एक के बाद एक तार जुड़ते चले गए. बाइक पर सवार एक व्यक्ति डा. राजीव गुप्ता के ही अस्पताल का पूर्व कर्मचारी था. पुलिस ने उस की कुंडली खंगाली तो पता चला कि वह  डायलिसिस तकनीशियन था और गांव पाढ़ा का रहने वाला था. लेकिन फिलहाल वह आर.के. पुरम में रह रहा था.

वह डा. गुप्ता के पास पिछले 10 सालों से काम कर रहा था. बाद में डा. गुप्ता ने दिसंबर, 2018 में किसी बात पर उसे अस्पताल से निकाल दिया था. दूसरी ओर पुलिस की एक टीम शहर के चौक चौराहे पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाल रही थी.

इन फुटेज में वारदात से पहले बाइक पर सवार 3 युवकों को सेक्टर-16 में जाते देखा गया था. उस फुटेज को पुलिस ने ड्राइवर सहित अस्पताल के स्टाफ को दिखाया तो उन्होंने आरोपी पवन दहिया को पहचान लिया.

फिर क्या था. पुलिस की 8 टीमों ने ड्राइवर के बताए हुलिए से 10 घंटों में यानी सुबह पांच बजे तक पवन दहिया सहित 2 युवकों रमन उर्फ सेठी निवासी बड़ा मंगलपुर, शिवकुमार उर्फ शिबू निवासी रामनगर को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा के पास से गिरफ्तार किया गया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों से वह देसी कट्टा भी बरामद कर लिया, जिस से उन्होंने डाक्टर पर गोलियां चलाई थीं. 8 जुलाई, 2019 को तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन का 7 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया.

रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में डा. राजीव गुप्ता की हत्या का जो कारण सामने आया, वह था नौकरी से निकाले गए एक कर्मचारी की रंजिश. मुख्य आरोपी पवन डा. राजीव गुप्ता के पास काम करता था.

पवन डा. गुप्ता के साथ 10 साल तक बतौर डायलिसिस टेक्नीशियन के तौर पर काम कर चुका था. उस ने इस वारदात को अपने 2 साथियों के साथ मिल कर अंजाम दिया. डा. राजीव गुप्ता ने पवन को नौकरी से निकाल दिया था, जिस के बाद उसे कहीं और काम नहीं मिल रहा था. इसलिए वह डा. राजीव से रंजिश रखने लगा था.

दरअसल पवन दहिया को बचपन से ही हथियार रखने का शौक था. उस के फेसबुक पेज पर उस का जो फोटो लगा था, वह भी हथियारों के साथ था. उसे एक शौक यह भी था कि हर समय उस के साथ 3-4 चेले रहें और उस के कहे अनुसार काम करें.

पवन ने साल 2009 में असलहे का लाइसेंस बनवा कर एक रिवौल्वर खरीदा था. तभी से उस के रंगढंग बदल से गए थे. वह दुबलापतला इंसान था. लेकिन रिवौल्वर की धाक जमाने के लिए उस ने जिम जौइन किया और अपनी सेहत बना कर हट्टाकट्टा जवान बन गया.

अब वह हर समय रिवौल्वर अपने पास रखता था और लोगों पर धौंस जमाता था. यहां तक कि वह अस्पताल भी अपनी रिवौल्वर के साथ आता था. उस के यारदोस्त भी किसी पर रौब जमाने के लिए उसे साथ ले जाने लगे थे. इसी वजह से वह कभी भी समय पर अस्पताल नहीं पहुंचता था. मरीज उस का घंटों बैठ कर इंतजार करते और थकहार कर वापस लौट जाते.

डा. राजीव को जब पवन की इस हरकत का पता चला तो उन्होंने अस्पताल का मालिक और बड़ा होने के नाते पवन को समझाया. एक बार नहीं, बारबार समझाया. उसे मौखिक और लिखित चेतावनियां दी गईं. पर पवन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अपने अस्पताल की प्रतिष्ठा को देखते हुए राजीव गुप्ता ने पवन को दिसंबर 2018 में नौकरी से निकाल दिया था. नौकरी से निकाले जाने के बाद वह जहां भी नौकरी मांगने जाता, उसे नौकरी नहीं मिलती थी. धीरेधीरे पवन के दिमाग में यह बात घर करने लगी थी कि डा. राजीव ही दूसरे डाक्टरों को उसे नौकरी देने से मना करता होगा. वह डा. राजीव से रंजिश रखने लगा और उन से बदला लेने की फिराक में रहने लगा.

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अमृतधारा अस्पताल के संचालक व आईएमए के पूर्व प्रधान डा. राजीव गुप्ता की हत्या को अंजाम देने के लिए पवन दहिया ने अपने लाइसैंसी रिवौल्वर का इस्तेमाल नहीं किया था, बल्कि उस ने उत्तर प्रदेश से 50 हजार रुपए में देसी पिस्तौल खरीदा था.

इस के बाद उस ने अपने दोस्त शिव कुमार और रमन निवासी मंगलपुर को पैसे का लालच दे कर डाक्टर की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया. पवन ने दोनों को कहा कि वह उस के साथ मिल कर एक काम करेंगे तो मोटा पैसा आएगा, जो भी पैसा मिलेगा उसे आपस में बांट लेंगे.

रिमांड के दौरान पवन ने बताया कि उसे हुक्का पीने का शौक है. वह घर के बाहर ही मजमा लगा कर दोस्तों के साथ हुक्का पीता था. मंगलपुर निवासी शिव कुमार और रमन भी इसी हुक्के के कारण उस के दोस्त बने थे.

पवन ने उन्हें अपना चेला बना लिया था. वे उस के कहे अनुसार काम करते थे. पूछताछ में रमन और शिव कुमार ने बताया कि उन के पास रोजगार नहीं था, कुछ ही दिनों में पवन ने अच्छा पैसा कमा लिया था, इसलिए वे उस के साथ जुड़ गए ताकि पैसा कमाया जा सके.

डा. राजीव गुप्ता की हत्या के समय शिव कुमार बाइक चला रहा था, जबकि उस के पीछे रमन बैठा था और सब से पीछे मुंह ढके पवन दहिया बैठा हुआ था. शाम 5 बज कर 5 मिनट पर तीनों बदमाश बाइक से जाते हुए आईटीआई चौक के कैमरे में कैद हुए थे.

डा. गुप्ता नमस्ते चौक के पास से होते हुए जब होटल येलो सफायर, सेक्टर-16 से अमृतधारा अस्पताल की ओर जा रहे थे, तभी बदमाशों ने सेक्टर-16 के चौक के पास ब्रेकर पर बाइक खड़ी कर दी थी और डाक्टर के वापस आने का इंतजार करने लगे थे.

जब डा. राजीव वापस आए तो ब्रेकर पर गाड़ी धीमी होते ही पवन ने फायरिंग शुरू कर दीं. डाक्टर गुप्ता ड्राइवर साहिल के साथ अगली सीट पर बैठे हुए थे. एक के बाद एक बदमाशों ने शीशे पर 3 गोलियां दागीं, जो डाक्टर गुप्ता के हाथों पर लगीं.

इस के बाद पवन ने साइड के आधे खुले शीशे के पास जा कर डाक्टर की छाती पर 3 गोलियां दाग दीं. डाक्टर की हत्या करने के बाद तीनों आरोपी पहले पवन के घर गए. वहां से पवन ने अपनी स्विफ्ट कार ली और फिर वे उसी में सवार हो कर उत्तर प्रदेश भाग रहे थे. इस दौरान पुलिस को इस बात की भनक लग गई थी. सुबह 5 बजे ही पुलिस ने तीनों आरोपियों को उत्तर प्रदेश-हरियाणा सीमा पर गिरफ्तार कर लिया.

जिस बाइक पर सवार हो कर इन तीनों आरोपियों ने वारदात को अंजाम दिया था, वह बाइक शिवकुमार की थी. इस बाइक की नंबर प्लेट आरोपियों ने उतार दी थी ताकि कोई नंबर नोट ना कर सके. जिसे रिमांड के दौरान पुलिस ने बरामद कर लिया. इस पूरी वारदात को बदले की भावना से अंजाम दिया गया था.

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7 जुलाई को शाम साढ़े 5 बजे जुंडला गेट स्थित शिवपुरी के श्मशानघाट में डा. राजीव गुप्ता का अंतिम संस्कार किया गया.

रिमांड की समाप्ति के बाद तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर जिला जेल भेजा गया. पवन दहिया इतना चालाक था कि डाक्टर राजीव गुप्ता की हत्या करने के बाद उस ने यह खबर रात 9 बजे बड़े दुख के साथ अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की थी ताकि कोई उस पर संदेह ना करे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां

डौक्टर के सीने में डायलिसिस की गोली: भाग 1

2 अस्पतालों के मालिक और इंडियन मैडिकल एसोसिएशन (करनाल) के पूर्व प्रधान डा. राजीव गुप्ता करनाल के नामचीन व्यक्ति थे. दिनदहाड़े उन की हत्या हो जाना बड़ी बात थी. लेकिन पुलिस टीमों में जब मेहनतमशक्कत से पूरी कोशिश की तो तीनों हत्यारे पकड़े गए. इन हत्यारों में…

वो3 लोग थे. तीनों में से 2 ने अपनी पहचान छिपाने के लिए चेहरों को कपड़े से ढक रखा था. तीनों करनाल के सेक्टर-16 के चौक के पास होटल येलो सफायर के पीछे वाली सुनसान सड़क पर खड़े थे. उन के पास बिना नंबर प्लेट की स्पलेंडर बाइक थी. उन्हें संभवत: किसी के आने का इंतजार था. उन की नजरें सामने से आने वाले वाहनों का जायजा ले रही थी.

उन के हावभाव देख कर ऐसा लगता था जैसे किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिराक में वहां खड़े हों. सवा 6 बजे सामने से आती हुई सफेद रंग की क्रेटा कार नंबर एचआर05ए यू4934 को देख कर तीनों चौकन्ने हो गए. तुरंत बाइक स्टार्ट कर वे तीनों धीरेधीरे कार की दिशा में बढ़ने लगे.

कार चौक की तरफ से आ रही थी. जैसे ही कार स्पीड ब्रेकर पर पहुंच कर धीमी हुई, बाइक सवारों ने अपनी बाइक कार के आगे लगा कर उसे रोक लिया और 2 लोगों ने बाइक से उतर कर कार के सामने से गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

कार के शीशे को भेदती हुई गोलियां कार ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठे व्यक्ति को लगीं. हमलावरों ने 3 गोलियां चलाने के बाद कार के बिलकुल पास जा कर 3 गोलियां और चलाईं. फिर बाइक पर सवार हो कर वहां से फरार हो गए. इस बीच कार का ड्राइवर घबरा कर अपनी जान बचाने के लिए कार से उतर कर निकल भागा था.

हमलावरों के जाने के बाद उस ने मदद के लिए चिल्लाना शुरू कर दिया. सामने से आते हुए बाइक सवार और आशीष नाम के एक कार चालक सहित कुछ लोगों ने इस वारदात को अंजाम देते हुए देखा था. कुछ लोगों की मदद से गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को तुरंत पास के प्रसिद्ध अस्पताल अमृतधारा माई में लाया गया था.

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जिस कार में फायरिंग हुई, उस में अमृतधारा माई अस्पताल के संचालक व इंडियन मैडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की करनाल इकाई के पूर्व प्रधान 56 वर्षीय डा. राजीव गुप्ता थे. अज्ञात लोगों ने उन्हें गोलियां मार कर बुरी तरह से घायल कर दिया था. उन्हें उपचार हेतु उन्हीं के आधुनिक अस्पताल में भरती कराया गया.

डाक्टर राजीव गुप्ता शहर के नामचीन व्यक्ति थे. वह केवल करनाल में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मशहूर थे. गरीबों का कम पैसों में इलाज करने के साथ वे कई सामाजिक संस्थाओं के चेयरपरसन भी थे. उन पर हमला होने की खबर जंगल की आग की तरह पूरे शहर में फैल गई.

तमाम लोग अमृतधारा अस्पताल की ओर दौड़े. देर रात तक अस्पताल के बाहर डाक्टरों और शहर के गणमान्य लोगों का तांता लग गया. यह घटना 6 जुलाई, 2019 शाम की है.

डाक्टर राजीव गुप्ता को करीब साढ़े 6 बजे सेक्टर-16 के चौक पर गोलियां मारी गई थीं. इस के बाद आननफानन में उन्हें उन के ही अस्पताल अमृतधारा माई ले जाया गया. पहले से ही सूचना मिल जाने के कारण अस्पताल में पूरा स्टाफ इमरजेंसी में अलर्ट था. साथ ही कई अस्पतालों के डाक्टर भी मौके पर पहुंच गए थे.

डा. गुप्ता की हालत गंभीर होने के कारण उन्हें तुरंत आईसीयू में ले जा कर वेंटीलेटर पर रखा गया. आननफानन में उन्हें बचाने के लिए डाक्टरों की टीम बनाई गई. टीम में शहर के टौप के सर्जन, एनेस्थीसिया और मैडिसन के डाक्टरों को शामिल किया गया.

मूलचंद अस्पताल के संचालक सर्जन डा. संदीप चौधरी, श्री रामचंद्र अस्पताल के डा. रोहित गोयल, मिगलानी नर्सिंगहोम के डा. ओ.पी. मिगलानी ने उन का औपरेशन किया.

इस दौरान अमृतधारा के आईसीयू के इंचार्ज डा. सामित समेत मैडिसन के डाक्टर कमल चराया और एनेस्थीसिया के डा. मक्कड़ की टीम भी मौजूद रही. बदमाशों ने डाक्टर पर 3 राउंड फायर किए थे, जिस में से 2 गोलियां उन की छाती पर लगी थीं और एक दिल के करीब.

डा. गुप्ता को बचाने के लिए डाक्टरों ने एक घंटे तक तमाम कोशिशें कीं, छाती से गोलियों को निकालने के लिए सर्जरी की गई. लेकिन तब तक डा. गुप्ता की धड़कनें रुक चुकी थीं. करीब 8 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

डाक्टरों का कहना था कि छाती में गोलियां लगने के कारण ब्लीडिंग ज्यादा हो गई थी. हालांकि उन्हें खून भी चढ़ाया गया, लेकिन हार्ट फेल होने के कारण उन्हें नहीं बचाया जा सका. डा. गुप्ता को बचाने के लिए जहां डाक्टरों ने पूरी कोशिश की, वहीं अस्पताल के अन्य स्टाफ ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

सूचना मिलने पर करनाल रेंज के आईजी योगेंद्र नेहरा व एसपी सुरेंद्र सिंह भौरिया, डीएसपी करनाल बलजीत सिंह, डीएसपी वीरेंदर सिंह, सीआईए स्टाफ प्रमुख दीपेंदर राणा सहित थाना सिटी करनाल के इंचार्ज इंसपेक्टर हरविंदर सिंह क्राइम टीम और एफएसएल की टीम अमृतधारा अस्पताल पहुंच गई थीं.

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अस्पताल के डाक्टरों से मृत डाक्टर राजीव गुप्ता का हाल जानने के बाद सभी टीमों ने घटनास्थल पर जा कर वहां का मौकामुआयना किया. वहां से एफएसएल की टीम ने साक्ष्य जुटाए और गोलियों के खाली खोखे बरामद कर अपने कब्जे में लिए.

डा. राजीव के ड्राइवर साहिल से भी पूछताछ की गई. साहिल पिछले 8 सालों से उन के साथ बतौर असिस्टेंट और ड्राइवर का काम कर रहा था. 6 जुलाई, 2019 को साहिल से पूछताछ के बाद उसी के बयान पर डा. राजीव की हत्या का मुकदमा धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर तुरंत काररवाई शुरू कर दी गई.

राजीव गुप्ता का घर आईटीआई चौक स्थित अमृतधारा अस्पताल परिसर में ही था. वहां पुलिस तैनात कर दी गई और अस्पताल को भी पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया. डा. राजीव गुप्ता करनाल के बड़े डाक्टरों में से एक थे. उन का एक अस्पताल कर्ण गेट स्थित चौड़ा बाजार में और दूसरा आईटीआई चौक पर था.

राजीव बहुत मिलनसार व्यक्ति थे और शहर के सामाजिक कामों में सक्रिय रहते थे. इसीलिए उन की हत्या के बाद कई सवाल खड़े हो रहे थे, जबकि पुलिस के हाथ अभी तक कुछ नहीं लगा था.

अगली सुबह 8 बजे आननफानन में हरियाणा के डीजीपी मनोज यादव चंडीगढ़ से करनाल पहुंच गए. उन के कुछ देर बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर भी डाक्टर के परिवार को सांत्वना देने उन के घर पहुंचे.

डीजीपी मनोज यादव ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद मुख्यमंत्री और आला पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की. इस मीटिंग में डा. राजीव की हत्या के मामले को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए 8 टीमें बनाने की बात तय हुई.

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डा. राजीव गुप्ता के हत्यारों को पकड़ना पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. वारदात के तुरंत बाद एसपी सुरेंद्र सिंह भौरिया और एएसपी मुकेश की अध्यक्षता में थाना पुलिस और सीआईए स्टाफ की 8 टीमों का गठन कर दिया गया, लेकिन हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिलने के कारण पुलिस की जांच किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रही थी.

अगली कड़ी में पढ़ें- क्या पुलिस डा. राजीव गुप्ता के हत्यारों को पकड़ पाई?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां

बिखर गई खुशी: भाग 2

बिखर गई खुशी: भाग 1

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आखिरी भाग

19 वर्षीय खुशी परिहार मध्य प्रदेश के जिला सतना के एक गांव की रहने वाली थी. उस के पिता जगदीश परिहार सर्विस करते थे. वह खुशी को एक अच्छी शिक्षिका बनाना चाहते थे लेकिन खुशी तो कुछ और ही बनना चाहती थी.

खुशी जितनी खूबसूरत और चंचल थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह बचपन से ही टीवी सीरियल्स, फिल्म और मौडलिंग की दीवानी थी. वह जब भी किसी मैगजीन और टीवी पर किसी मौडल, अभिनेत्री को देखती तो उस की आंखों में भी वैसे ही सतरंगी सपने नाचने लगते थे.

पढ़ाईलिखाई में तेज होने के कारण परिवार खुशी को प्यार तो करता था, लेकिन उस के अरमानों को देखसुन कर घर वाले डर जाते थे. क्योंकि उन में बेटी को वहां तक पहुंचाने की ताकत नहीं थी.

यह बड़े शहर में रह कर ही संभव हो सकता था. गांव के स्कूल से खुशी ने कई बार ब्यूटी क्वीन का अवार्ड अपने नाम किए थे लेकिन उस की चमक गांव तक ही सीमित थी.

खुशी बचपन से ही अपनी मौसी के काफी करीब थी. उस की मौसी नागपुर में रहती थीं. वह भी खुशी के शौक से अनजान नहीं थीं. उन्होंने खुशी को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और 10वीं पास करने के बाद उसे अपने पास नागपुर बुला लिया.

नागपुर आ कर जब उस ने अपना पोर्टफोलियो विज्ञापन एजेंसियों को भेजा तो उसे इवन फैशन शो कंपनी में जौब मिल गई. जौब मिलने के बाद खुशी ने अपनी आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी. उस ने नागपुर के जानेमाने स्कूल में एडमिशन ले लिया. अब खुशी अपनी पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम विज्ञापन कंपनियों और फैशन शो के लिए काम करने लगी.

धीरेधीरे खुशी की पहचान बननी शुरू हुई तो उस के परिचय का दायरा भी बढ़ने लगा. फैशन और मौडलिंग जगत में उस के चर्चे होने लगे. धीरेधीरे सोशल मीडिया पर उस के हजारों फैंस बन गए थे. खुशी भी उन का दिल रखने के लिए उन का मैसेज पढ़ती थी और अपने हिसाब से जवाब भी देती थी. वह अपने नएनए पोजों के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी.

इस तरह नागपुर आए उसे 3 साल गुजर गए. अब उस का बी.कौम. का अंतिम वर्ष था. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पूरी तरह मौडलिंग और टीवी की दुनिया में उतरती, इस के पहले ही उस की जिंदगी में मनचले अशरफ शेख की एंट्री हो गई.

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अपने प्रति अशरफ शेख की दीवानगी देख कर खुशी भी धीरेधीरे उस के करीब आ गई. कुछ ही दिनों में दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. अशरफ शेख दिल खोल कर खुशी पर पैसा बहा रहा था. वह उस की हर जरूरत पूरी करता था.

अशरफ शेख और खुशी की दोस्ती की खबर जब खुशी के परिवार वालों और मौसी तक पहुंची तो उन्होंने उसे आड़े हाथों लिया. उन्होंने उसे समझाया भी. चूंकि अशरफ दूसरे धर्म का था, इसलिए उसे समाज और रिश्तों के विषय में भी बताया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. खुशी अशरफ शेख के प्यार में गले तक डूब चुकी थी.

मौसी और परिवार वालों की बातों पर ध्यान न दे कर वह अशरफ शेख के लिए मौसी का घर छोड़ कर उस के साथ गिट्टी खदान में किराए का मकान ले कर लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

अब खुशी पूरी तरह से आजाद थी. कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. अशरफ शेख उस का बराबर ध्यान रखता था. उसे उस के कालेज और फैशन शो में ले कर जाता था.

बाद में खुशी ने तो अपना नाम भी बदल कर जास शेख रख लिया था. प्यार का एहसास दिलाने के लिए उस ने हाथ और दिल पर टैटू भी बनवा लिए थे.

खुशी अशरफ शेख के साथ खुश थी. वह मौडलिंग के क्षेत्र में अपना दायरा बढ़ाने में लगी  थी. उस का सपना था कि वह सुपरमौडल बने, जिस से देश भर में उस का नाम हो. लेकिन अशरफ शेख ने जब से खुशी के साथ निकाह करने का फैसला किया था, दोनों के बीच तकरार बढ़ गई थी.

इस की वजह यह थी कि अशरफ नहीं चाहता था कि खुशी बाहरी लोगों से मिले और देर रात तक घर से बाहर रहे. वह अब खुशी के हर फैसले में अपनी टांग अड़ाने लगा था. वह चाहता था कि खुशी अब मौडलिंग वगैरह का चक्कर छोड़े और सारा दिन उस के साथ रहे और मौजमस्ती करे.

लेकिन खुशी को यह सब मंजूर नहीं था. उस का कहना था कि उस ने जो सपना बचपन से देखा है, उसे हर हाल में पूरा करना है. मौडलिंग की दुनिया में वह अपने आप को आकाश में देखना चाहती थी, जो अशरफ को गवारा नहीं था. इसी सब को ले कर अब खुशी और अशरफ के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. दोनों में अकसर तकरार और छोटेमोटे झगड़े भी होने लगे थे.

अशरफ को यकीन हो गया था कि खुशी अपने इरादों से पीछे हटने वाली नहीं है. अब तक वह खुशी पर बहुत रुपए खर्च कर चुका था और खुशी उस का अहसान मानने को तैयार नहीं थी. खुशी का मानना था कि प्यार में पैसों का कोई मूल्य नहीं होता.

यह बात अशरफ को चुभ गई थी. उस ने अपने 5 महीनों के प्यार और दोस्ती को ताख पर रख दिया और घटना के 2 दिन पहले 12 जुलाई, 2019 को अपनी कार नंबर एमएच03ए एम4769 से खुशी को ले कर एक लंबी ड्राइव पर निकल गया.

दोनों नागपुर शहर से काफी दूर ग्रामीण इलाके में आ गए थे. कुछ समय वह पाटुर्णानागपुर रोड पर यूं ही कार को दौड़ाता रहा फिर दोनों ने सावली गांव के करीब स्थित कलमेश्वर इलाके के शर्मा ढाबे पर  खाना खाया और जम कर शराब पी.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इलाका सुनसान हो गया था. कार में बैठने के बाद अशरफ शेख ने अपना वही पुराना राग छेड़ दिया, जिस से खुशी नाराज हो गई. खुशी पर भी नशा चढ़ गया था. उस का कहना था कि वह आजाद थी और आजाद रहेगी. वह जिस पेशे में है, उस में उसे हजारों लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है. उन का कहना मानना पड़ता है. अगर तुम्हें मुझ से कोई तकलीफ है तो तुम मुझ से बे्रकअप कर सकते हो.

‘‘मुझे लगता है कि अब तुम्हारा मन मुझ से भर गया है और तुम किसी और की तलाश में हो.’’ अशरफ बोला.

‘‘यह तुम्हारा सिरदर्द है मेरा नहीं. मैं जैसी पहले थी अब भी वैसी ही रहूंगी.’’ खुशी ने कहा तो दोनों की कहासुनी मारपीट तक पहुंच गई. उसी समय अशरफ अपना आपा खो बैठा और कार के अंदर ही खुशी के सिर पर मार कर उसे बेहोश कर दिया.

खुशी के बेहोश होने के बाद अशरफ इतना डर गया कि वह अपनी कार सावली गांव के इलाके में एक सुनसान जगह पर ले गया और उस ने खुशी को हाइवे किनारे जला दिया.

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इस के बाद अपनी और खुशी की पहचान छिपाने के लिए उस ने कार के अंदर से टायर बदलने का जैक निकाल कर उस का चेहरा विकृत किया और उस के ऊपर बैटरी का एसिड डाल दिया.

खुशी का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने खुशी का मोबाइल अपने पास रख लिया, जिसे क्राइम टीम ने बरामद कर लिया था. इस के बाद वह आराम से अपने घर चला गया और खुशी की मौसी को फोन पर बताया कि उस का और खुशी का झगड़ा हो गया है. वह अपने गांव चली गई है.

उस का मानना था कि 2-4 दिनों में खुशी के शव को जानवर खा जाएंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. लेकिन यह उस की भूल थी. वह क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार के हत्थे चढ़ गया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने अशरफ से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे केलवद ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मट्टामी को सौंप दिया. आगे की जांच टीआई सुरेश मट्टामी कर रहे थे.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

बिखर गई खुशी: भाग 1

15जुलाई, 2019 की सुबह के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे. महाराष्ट्र की शीतकालीन राजधानी नागपुर के ग्रामीण इलाके के सावली गांव की पुलिस पाटिल (चौकीदार) ज्योति कोसरकर अपने घर पर बैठी थी, तभी उस के पास गांव का एक आदमी आया और उस ने घबराई आवाज में उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चौंक उठी.

वह बिना देर किए उस आदमी को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर स्तब्ध रह गई. पाटुर्णा-नागपुर एक्सप्रैस हाइवे से करीब 25 फीट की दूरी पर गड्ढे में एक युवती का शव पड़ा हुआ था, जिस की उम्र करीब 19-20 साल के आसपास थी. युवती के ब्रांडेड कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी अच्छे घर की रही होगी.

उस की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस का चेहरा एसिड से जला कर विकृत कर दिया गया था. उस का एक हाथ गायब था, जिसे देख कर लग रहा था कि संभवत: उस का हाथ रात में किसी जंगली जानवर ने खा लिया होगा. घटनास्थल को देख कर यह बात साफ हो गई थी कि उस युवती की हत्या कहीं और की गई थी.

पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर लाश को देख ही रही थी कि वहां आसपास के गांवों के काफी लोग एकत्र हो गए.

ज्योति कोसरकर ने वहां मौजूद लोगों से उस युवती के बारे में पूछा तो कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. आखिर ज्योति कोसरकर ने लाश मिलने की खबर स्थानीय ग्रामीण पुलिस थाने को दे दी.

सूचना मिलने पर ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मद्दामी, एएसआई अनिल दरेकर, कांस्टेबल राजू खेतकर, रवींद्र चपट आदि को साथ ले कर तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर से लाश की जानकारी ली और शव के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

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वह युवती कौन और कहां की रहने वाली थी, यह बात वहां मौजूद लोगों से पता नहीं लग सकी. टीआई सुरेश मद्दामी मौकामुआयना कर ही रहे थे कि एसपी (देहात) राकेश ओला, डीसीपी मोनिका राऊत, एसीपी संजय जोगंदड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए.

फोरैंसिक टीम भी आ गई थी. कुछ देर बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी वहां पहुंच गई. जांच टीमों ने मौके से सबूत जुटाए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद टीआई सुरेश मद्दामी और क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे ने अपनी और उस युवती की शिनाख्त छिपाने की पूरीपूरी कोशिश की है.

जिस तरह उस युवती की हत्या हुई थी, उस में प्यार का ऐंगल नजर आ रहा था. हत्यारा युवती से काफी नाराज था. शव देख कर यह बात साफ हो गई थी कि युवती शहर की रहने वाली थी.

मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. इस के साथ ही थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच इस केस की जांच में जुट गईं.

पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह अपनी जांच कहां से शुरू करे. क्योंकि जांच के नाम पर उस के पास कुछ नहीं था. केवल युवती के बाएं हाथ पर लव बर्ड (प्यार के पंछी) और सीने पर क्वीन (दिल की रानी) के टैटू के अलावा कोई पहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने हार नहीं मानी.

पुलिस ने मृतक युवती की शिनाख्त के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो बहुत जल्द सफलता मिल गई. इस से न सिर्फ मृतका की शिनाख्त हुई बल्कि 10 घंटों के अंदर ही क्राइम ब्रांच ने अपने अथक प्रयासों के बाद मामले को सुलझा भी लिया.

पुलिस ने जब मृतका की फोटो सोशल मीडिया पर डाली तो जल्द ही वायरल हो गई. एक से 2, 2 से 3 ग्रुपों से होते हुए मृत युवती का फोटो जब फुटला तालाब परिसर में स्थित एक पान की दुकान पर पहुंचा तो दुकानदार ने फोटो पहचान लिया.

फोटो उभरती हुई मौडल खुशी का था. पान वाले ने खुशी को कई बार एक स्मार्ट युवक के साथ घूमते और धरेरा होटल में आतेजाते देखा था.

यह जानकारी जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार को मिली तो वह और ज्यादा सक्रिय हो गए. उन्होंने उस युवती की सारी जानकारी कुछ ही समय में इकट्ठा कर ली. उन्होंने खुशी के इंस्टाग्राम को खंगाला तो ठीक वैसा ही टैटू खुशी के हाथ और सीने पर मिल गया, जैसा कि मृत युवती के शरीर पर था. इस से यह साबित हो गया कि वह शव खुशी का ही था.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों को खुशी के इंस्टाग्राम प्रोफाइल में उस का पूरा नाम और उस के बारे में जानकारी मिल गई. उस का पूरा नाम खुशी परिहार था. वह अपनी मौसी के साथ रहती थी और राय इंगलिश स्कूल और जूनियर कालेज में बी.कौम. अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह पार्टटाइम मुंबई और नागपुर में मौडलिंग करती थी.

खुशी की शिनाख्त से पुलिस और क्राइम ब्रांच का सिरदर्द तो खत्म हो गया था. अब जांच अधिकारियों के आगे खुशी परिहार के हत्यारों तक पहुंचना था. पुलिस ने जब खुशी की मौसी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि खुशी कई महीनों से उन के साथ नहीं है. वह अपने दोस्त अशरफ शेख के साथ लिवइन रिलेशन में वेलकम हाउसिंग सोसायटी, हजारीबाग पहाड़गंज गिट्टी खदान के पास रही थी.

पुलिस ने जब मौसी को खुशी की हत्या की खबर दी तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं और उन्होंने अपना संदेह अशरफ शेख पर जाहिर किया. उन का कहना था कि घटना की रात अशरफ शेख ने उन्हें फोन कर बताया था कि खुशी और उस के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. वह उस से नाराज हो कर अपने गांव चली गई है.

क्राइम ब्रांच टीम को खुशी की मौसी की बातों से यह पता चल गया कि मामले में किसी न किसी रूप में अशरफ शेख की भूमिका जरूर है. अत: क्राइम ब्रांच ने अशरफ शेख का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

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इस के अलावा शहर के सभी पुलिस थानों को अशरफ शेख के बारे में जानकारी दे दी गई. इस का नतीजा यह हुआ कि अशरफ शेख को गिट्टी खदान पुलिस की सहायता से कुछ घंटों में दबोच लिया गया.

अशरफ शेख को जब क्राइम ब्रांच औफिस में ला कर उस से पूछताछ की गई तो वह जांच अधिकारियों को भी गुमराह करने की कोशिश करने लगा. लेकिन क्राइम ब्रांच ने जब सख्ती की तो वह फूटफूट कर रोने लगा और अपना गुनाह स्वीकार कर के मौडल खुशी परिहार की हत्या करने की बात मान ली. उस ने मर्डर मिस्ट्री की जो कहानी बताई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी.

21 वर्षीय अशरफ शेख नागपुर के आईबीएम रोड गिट्टी खदान इलाके का रहने वाला था. उस का पिता अफसर शेख ड्रग तस्कर था. अभी हाल ही में उसे नागपुर पुलिस ने करीब 400 किलोग्राम गांजे के साथ गिरफ्तार किया था. अशरफ शेख उस का सब से छोटा बेटा था.

बेटा नशे के धंधे में न पड़े, इसलिए अफसर ने उसे गिट्टी खदान में एक बड़ा सा हेयर कटिंग सैलून खुलवा दिया था. लेकिन उस हेयर कटिंग सैलून में अशरफ शेख का मन नहीं लगता था. वह शानोशौकत के साथ आवारागर्दी करता था. खूबसूरत लड़कियां उस की कमजोरी थीं.

अपने सभी भाइयों में सुंदर अशरफ रंगीनमिजाज युवक था. यही कारण था कि अपने दोस्तों की मार्फत वह शहर की महंगी पार्टियों और फैशन शो वगैरह में जाने लगा था.

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इसी के चलते उस की कई मौडल लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. एक फैशन शो में उस ने जब खुशी को देखा तो वह उस का दीवाना हो गया. खुशी से और ज्यादा नजदीकियां बनाने के लिए वह उस की हर पार्टी और फैशन शो में जाने लगा था.

अगली कड़ी में पढ़ें-   आखिर  मौडल खुशी की हत्या क्यों हुई थी?

सौजन्य: मनोहर कहानियां

उन्नाव रेप कांड: अपराध को बढ़ाता राजनीतिक संरक्षण

उन्नाव के विधायक कुलदीप सेंगर जेल के अंदर से अपने रसूख का प्रयोग करते रहे. कोर्ट के आदेश के बाद भी सीबीआई ने उन्नाव रेप कांड की जांच धीमी रखी. सीबीआई पर सत्ता का दबाव साफ दिखता है. रेप पीडि़त लड़की ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी परेशानी बताने के लिए पत्र लिखा तो वह पत्र भी उस तक नहीं पहुंचा.

पीडि़त लड़की को जान से मारने के लिए विधायक ने चक्रव्यूह रचा. सड़क दुर्घटना में उस को मारने की साजिश में रेप पीडि़त लड़की और उस के परिवार को मारने के लिए कार पर ट्रक के टक्कर मारने की योजना बनी. रेप की घटना के 3 वर्षों बाद भी रेप कांड पर सत्ता का दबाव देखा जाता है. कुलदीप की घटना बताती है कि भाजपा दबंग नेताओं को पार्टी में शामिल कर रही है. दबंग और गुंडे टाइप के जो नेता पहले समाजवादी पार्टी में होते थे, अब वे भाजपा में शामिल हो रहे हैं.

ऐसे दबंग विधायकों की कहानी नई नहीं है. मधुमिता हत्याकांड के बाद उस की बहन निधि ने मजबूती से लड़ाई लड़ी तो बाहुबलि नेता अमरमणि त्रिपाठी और उन की पत्नी मधुमणि को जेल के अंदर ही जिंदगी तमाम करनी पड़ रही है. ऐसे कई और मामले भी हैं. रेप कांड में फंसे उन्नाव के बाहुबलि विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने रेप के मामले में पीडि़त को कमजोर करने के लिए हर दांव आजमा लिया पर उस की एक न चली. पूरा देश एक स्वर में कुलदीप सेंगर को सजा दिए जाने की मांग करते हुए पीडि़त के साथ खड़ा नजर आने लगा. इस का प्रभाव यह हुआ कि भारतीय जनता पार्टी को कुलदीप सेंगर को पार्टी से बाहर करना पड़ा.

28 जुलाई को रायबरेली के गुरुबख्शगंज थाना क्षेत्र में रेप पीडि़ता अपने परिवार व वकील के साथ रायबरेली जेल में बंद अपने चाचा से मिलने जा रही थी. इसी दौरान उस की कार को मौरंग से लदे एक ट्रक ने टक्कर मार दी. इस में पीडि़त और उस का वकील महेंद्र सिंह बुरी तरह से घायल हो गए और पीडि़त की चाची व मौसी की मौके पर ही मौत हो गई. सड़क दुर्घटना के मामले में पीडि़त लड़की के परिवारजनों ने यह मुकदमा लिखाया कि विधायक कुलदीप सेंगर ने रेप पीडि़ता को जान से मारने के उद्देश्य से यह हादसा कराया है.

कसौटी पर सीबीआई

कुलदीप सेंगर का नाम सामने आते ही राजनीति तेज हो गई. संसद से सड़क तक हंगामा शुरू हो गया. केंद्र और प्रदेश में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी पर यह आरोप लगा कि भाजपा अपने विधायक को बचाने का प्रयास कर रही है. सरकार के संरक्षण में विधायक कुलदीप सेंगर ने अपने खिलाफ बलात्कार के मुकदमे के सुबूत मिटाने के लिए सड़क हादसे की साजिश रची थी. भाजपा ने इस मामले के बाद कुलदीप सेंगर को पार्टी से बरखास्त कर दिया है. इस के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह पीडि़त परिवार को 25 लाख रुपए मुआवजा दे.

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सड़क हादसे की जांच भी सीबीआई को सौंप दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरा मुकदमा दिल्ली ट्रांसफर कर दिया जाए. रेप पीडि़ता की सुरक्षा की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश पुलिस की जगह सीआरपीएफ को सौंप दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि वह दुर्घटना मामले की जांच 7 दिनों में पूरी करे. इस के साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 45 दिनों में केस को खत्म किया जाए. सीबीआई ने अपनी शुरुआती जांच में रेप के आरोप में विधायक कुलदीप सेंगर के खिलाफ सुबूत जमा करने की बात कही है. ऐक्सिडैंट की घटना के 10 दिनों बाद भी रेप पीडि़ता की हालत गंभीर बनी हुई है. उस को बेहतर इलाज के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज से दिल्ली के एम्स अस्पताल भेज दिया गया है.

देखने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई कैसे 45 दिनों में मामले की पूरी जांच कर के अदालत से फैसला दिलाती है. सीबीआई के सामने सब से बड़ी चुनौती उन तथ्यों तक पहुंचने की भी है कि सड़क हादसा कुलदीप सेंगर की शह पर हुआ है. इस के लिए सीबीआई लाई डिटैक्टर से ले कर दूसरी वैज्ञानिक जांच का सहारा ले रही है.

क्या है पूरी घटना

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 56 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के माखी गांव का मामला कुछ ऐसा था. कविता (बदला हुआ नाम) के पिता और दोनों चाचा 15 साल पहले कुलदीप सेंगर के करीबी हुआ करते थे. एक ही जाति के होने के कारण आपसी तालमेल भी बेहतर था. एकदूसरे के सुखदुख में साझीदार होते थे. इन की आपस में गहरी दोस्ती थी. दोनों ही परिवार माखी गांव के सराय थोक के रहने वाले थे. कविता के ताऊ सब से दबंग थे.

कुलदीप सेंगर ने कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू की. चुनावी सफर में कांग्रेस का सिक्का कमजोर था तो वे विधानसभा का पहला चुनाव बसपा यानी बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लडे़ और 2002 में पहली बार उन्नाव की सदर विधानसभा सीट से विधायक बने.

कुलदीप के विधायक बनने के बाद कविता के परिवारजनों के साथ कुलदीप का व्यवहार बदलने लगा. जहां पूरा समाज कुलदीप को ‘विधायकजी’ कहने लगा था वहीं कविता के ताऊ कुलदीप को उन के नाम से बुलाते थे. अपनी छवि को बचाने के लिए कुलदीप ने इस परिवार से दूरी बनानी शुरू की.

कविता के पिता और उन के दोनों भाइयों को यह लगा कि कुलदीप के भाव बढ़ गए हैं. वे किसी न किसी तरह से उन को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहे. यह मनमुटाव बढ़ता गया. एक तरफ जहां कविता का परिवार कुलदीप का विरोध कर रहा था वहीं कुलदीप अपना राजनीतिक सफर बढ़ाते गए.

कविता के ताऊ पर करीब एक दर्जन मुकदमे माखी और दूसरे थानाक्षेत्र में कायम थे. करीब 10 वर्षों पहले उन्नाव शहर में भीड़ ने ईंटपत्थरों से हमला कर के कविता के ताऊ को मार दिया. कविता के परिवार के लोगों ने इस घटना का जिम्मेदार विधायक कुलदीप को ही माना था.

कविता के ताऊ की मौत के बाद उस के चाचा उन्नाव छोड़ कर दिल्ली चले गए. वहां उन्होंने अपना इलैक्ट्रिक वायर का बिजनैस शुरू किया. उन के ऊपर करीब 10 मुकदमे थे. कविता के पिता अकेले रह गए. उन के ऊपर भी 2 दर्जन मुकदमे कायम थे. नशा और मुकदमों का बोझ उन को बेहाल कर चुका था.

कुलदीप ने 2007 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर बांगरमऊ विधानसभा से जीता और 2012 में भगवंत नगर विधानसभा से जीता. 2017 के विधानसभा में कुलदीप ने भाजपा का दामन थामा और बांगरमऊ से विधायक बन गए. विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के परिवार की कविता के परिवार से रंजिश बनी रही. उन्नाव जिले की पहचान दबंगों वाली है. यहां अपराधी प्रवत्ति के लोगों की बहुतायत है. माखी गांव बाकी गांवों से संपन्न माना जाता है. यहां कारोबार भी दूसरों की अपेक्षा अच्छा चलता है.

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कविता से बलात्कार

कविता के साथ हुए बलात्कार के मसले पर जो जानकारी सामने आई उस के अनुसार, जून 2017 में राखी (बदला हुआ नाम) नामक महिला कविता को ले कर विधायक कुलदीप के पास गई. वहां विधायक ने उसे बंधक बना लिया. उस के साथ बलात्कार किया गया.

बलात्कार का आरोप विधायक के भाई और साथियों पर लगा. घटना के 8 दिनों बाद कविता औरैया जिले के पास मिली. कविता और उस के पिता ने इस बात की शिकायत थाने में की. तब पुलिस ने 3 आरोपी युवकों को जेल भेज दिया. घटना में विधायक का नाम शामिल नहीं हुआ. कविता और उस का परिवार विधायक के नाम को भी मुकदमे में शामिल कराना चाहते थे.

एक साल तक कविता और उस का परिवार विधायक के खिलाफ गैंगरेप का मुकदमा लिखाने के लिए उत्तर प्रदेश के गृहविभाग से ले कर उन्नाव के एसपी तक भटकता रहा. इस के बाद भी विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुई. विधायक के खिलाफ मुकदमा न लिखे जाने के कारण कविता और उस के परिवार के लोगों ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत कोर्ट से मुकदमा लिखे जाने की अपील की. कविता का यह प्रयास करना उस पर भारी पड़ गया. विधायक के लोगों ने उस पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाना शुरू किया. ऐसा न करने पर खमियाजा भुगतने को तैयार रहने की धमकी मिली.

मारपीट, जेल और हिरासत में मौत

3 अप्रैल, 2018 को विधायक के छोटे भाई ने कविता के पिता के साथ मारपीट की और मुकदमा वापस लिए जाने के लिए कहा. कविता और उस के परिवारजनों ने पुलिस में मुकदमा लिखाया. इस के साथ ही साथ विधायक के लोगों की तरफ से भी मुकदमा लिखाया गया. पुलिस ने क्रौस एफआईआर दर्ज की पर केवल कविता के पिता को ही जेल भेजा.

कविता का आरोप है कि जेल में विधायक के लोगों ने उस के पिता की खूब पिटाई की. 8 अप्रैल को कविता अपने परिवारजनों के साथ राजधानी लखनऊ आई और सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास, कालीदास मार्ग पहुंच गई. यहां उस ने आत्मदाह करने की कोशिश की. पुलिस ने उस को पकड़ लिया. गौतमपल्ली थाने में कविता को रखा गया. वहां से पूरे मामले की जांच के लिए एसपी उन्नाव को कहा गया. इस बीच जेल में ही कविता के पिता

की मौत हो गई. पोस्टमौर्टम रिपोर्ट के अनुसार, पिटाई और घाव में सैप्टिक हो जाने से मौत हुई. किसी लड़की के लिए इस से दर्दनाक क्या हो सकता है कि जिस समय वह न्याय की मांग ले कर मुख्यमंत्री से मिले उसी समय उस का पिता मौत के मुंह में चला जाए.

सरकार की सक्रियता के बाद कविता के पिता पर एकतरफा कार्यवाही करने के साथ जेल भेजने के दोषी माखी थाने के एसओ अशोक सिंह भदौरिया सहित 6 पुलिस वालों को सस्पैंड कर दिया गया. मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई. उन्नाव की एसपी पुष्पाजंलि ने बताया कि 3 अप्रैल को कविता के पिता के साथ की गई मारपीट में शामिल सभी 4 आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

3 अप्रैल की मारपीट की घटना में जिस तरह से पुलिस ने केवल कविता के पिता को जेल भेजा उसी तरह से अगर विरोधी पक्ष के नामजद 4 लोगों को जेल भेज दिया होता तो मामला इतना गंभीर न होता. इस से साफ पता चलता है कि पुलिस पद और पैसे के दबाव में काम करती है. कविता के पिता के साथ दूसरे लोगों को जेल भेजा गया होता तो शायद उन की मौत न होती.

कविता का आरोप है कि कोर्ट द्वारा कायम गैंगरेप के मुकदमे में विधायक का नाम आने के बाद उन पर मुकदमा वापस लिए जाने का दबाव बनाया गया, जिस की वजह से यह घटना घटी. सड़क दुर्घटना में पीडि़त की चाची और मौसी की मौत के बाद अब मामला नए मोड़ पर पहुंच चुका है. पीडि़त को न्याय की उम्मीद है. अदालत के आदेश के बाद जल्द न्याय की उम्मीद और भी अधिक बलवती हो गई है.

बीमार मानसिकता की निशानी है बलात्कार

सालदरसाल बलात्कार की घटनाओं की तादाद बढ़ती जा रही है जिन में बलात्कार के बाद हत्या और दूसरे जघन्य अपराधों को अंजाम दिया जाता है. पुलिस, वकील और बलात्कार में फंसे लोगों से की गई बातचीत से बलात्कार के 3 कारण पता चलते है. एक, जब आदमी नशे की हालत में हो, दूसरा, जब वह किसी से बदला लेना चाहे और तीसरा, जब औरत आदमी के बीच आपसी सहमति से संबंध बने, फिर किसी वजह से औरत बलात्कार का आरोप लगाने लगे.

अपनी पड़ोसी औरत के साथबलात्कार के आरोप में जेल में बंद रामअधीन (बदला हुआ नाम) नामक युवक का कहना है, ‘‘हम लोग आपस में संबंध रखे हुए थे. कहीं कोई परेशानी नही थी. एक दिन जब उस की ननद ने हमें अंतरंग अवस्था में देख लिया तो उस औरत ने बलात्कार का आरोप लगा दिया.’’

बलात्कार के आरोप में पकडे़ गए और फिर जमानत पर छूटे दिनेश पाल (बदला हुआ नाम) कहता है, ‘‘बलात्कार का मजे से कोई लेनादेना नहीं होता है. एक पल को संबंध बनाने का खयाल आता है. उसी के बाद जो भी सामने आता है उसी के साथ शारीरिक संबंध बन जाते हैं. इस के बाद बहुत पछतावा होता है. जब मामला अदालत और थाने तक जाता है तो बहुत परेशानी होती है.’’

एक बार बलात्कार का दाग दामन पर लग जाता है तो समाज बहुत खराब नजरों से देखता है. दिनेश की शादी की बात चल रही थी उसी समय उस पर बलात्कार का आरोप लगा. दिनेश जमानत पर छूट आया लेकिन उस की शादी टूट गई. अब कोई भी उस से रिश्ता जोड़ने नहीं आ रहा है.

दिनेश बताता है कि बलात्कार बहुत ही परेशानी की बात होती है. एक तो लड़की किसी तरह का कोई सहयोग नहीं करती. दूसरे, अपने बचाव में वह हाथपांव चलाती है. ऐसे में चोट लगने का खतरा रहता है. शायद यही वजह होती है कि कभीकभी बलात्कार की शिकार लड़की के अंग के बाहर ही वीर्यपात हो जाता है.

बलात्कार करने वाले महसूस करते हैं कि अगर रजामंदी के साथ किसी लड़की से संबंध बनाए जाएं तो वह आसान होता है. रजामंदी के साथ सैक्स करने वाली लड़की की तलाश करना भी आसान काम नहीं होता. इस के लिए बहुत पैसों की जरूरत होती है. समय की जरूरत होती है. इस के अलावा वही लड़की सैक्स के लिए राजी होती है जिस को आप से लाभ हो.

जो लड़कियां वास्तव में बलात्कार का शिकार होती हैं, वे पुरुष के साथ संबंधों से भयभीत हो जाती हैं.

लखनऊ की पारिवारिक अदालत में रमा (बदला हुआ नाम) का एक  मुकदमा चल रहा है. रमा जब 14 साल की थी, उस के मामा के लड़के ने जबरदस्ती सैक्स संबंध बनाए जिस से वह बहुतडर गई थी. जब रमा की शादी हुई और उस का पति सैक्स संबंध बनाने आया तो रमा डर गई. उस ने संबंध बनाने से इनकार कर दिया. यह बात आगे बढ़ी, तो पति ने रमा के साथ मारपीट की और उस को तलाक देने के लिए कह दिया. कुछ लड़कियां बलात्कार की बात को भूल जाती हैं. उन का जीवन आगे ठीक रहता है.

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मानसिक इलाज जरूरी

मनोचिकित्सक डा. मधु पाठक कहती हैं, ‘‘बलात्कार की शिकार लड़कियां यह जानने की कोशिश करती हैं कि उन को बच्चा तो नहीं ठहरने वाला होगा. बलात्कार की शिकार लड़कियों की काउंसलिंग होनी चाहिए, जिस से उन के मन का डर निकल जाए. अब बाजार में इस तरह की दवाएं आती हैं जिन को खाने से बलात्कार के बाद बच्चा ठहरने की संभावना नहीं होती. जरूरत इस बात की है कि यह दवा बलात्कार होने के 72 घंटे के अंदर ही खा ली जाए.’’

वे कहती हैं कि बलात्कार करना या करने की सोचना पुरुष की एक तरह की मानसिक बीमारी होती है. इस के लिए काफी हद तक ब्रेन और हार्मोंस जिम्मेदार होते हैं. शरीर के बढ़े हुए हार्मोंस आदमी को सैक्स करने के लिए भड़काते हैं. इन लोगों का ब्रेन हार्मोंस का संतुलन बना कर नहीं रख पाता है, इसीलिए बलात्कारी पहले गलती करता है, फिर पछताता है.

पति-पत्नी का परायापन

पंकज मिश्रा उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के गांव भंगेल में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शैली मिश्रा उर्फ निधि और एक 7 साल का बेटा था. पेशे से इलैक्ट्रिशियन पंकज नोएडा के ही सेक्टर-135 में स्थित जेपी कौसमोस सोसायटी में नौकरी करता था.

20 जून, 2019 की सुबह 8 बजे पंकज घर से काम पर जाने के लिए साइकिल पर निकला. कुछ देर बाद जब वह सेक्टर-132 स्थित एक आईटी कंपनी के नजदीक सुनसान जगह से गुजर रहा था, तभी मोटरसाइकिल से 2 लोग उस के पास पहुंचे और उन्होंने पंकज को रुकने का इशारा किया.

पंकज ने साइकिल रोक दी. इस से पहले कि पंकज बाइक सवारों को समझ पाता, उन में से एक ने पंकज पर गोली चला दी. गोली लगते ही पंकज साइकिल सहित वहीं गिर पड़ा. वहां से गुजर रहे किसी राहगीर ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

चूंकि यह इलाका नोएडा के एक्सप्रैसवे थाने के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना एक्सप्रैसवे थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही नोएडा एक्सप्रैसवे थाने के थानाप्रभारी भुवनेश कुमार एसआई अनूप कुमार यादव, दिनेश कुमार सोलंकी, गुरविंदर सिंह के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस पंकज को नजदीक के एक प्राइवेट अस्पताल ले गई, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो जेब में पहचान का कोई कागज नहीं मिला. जेब में सिर्फ एक मोबाइल मिला. उस की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मोबाइल फोन में मौजूद नंबरों पर काल करनी शुरू की.

इसी प्रयास में शारदा प्रसाद मिश्रा नाम के व्यक्ति से बात हुई. उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई पंकज मिश्रा का है जो नोएडा के भंगेल गांव में रहता है. पुलिस ने उसे अस्पताल बुला लिया ताकि लाश की शिनाख्त हो सके. शारदा प्रसाद अस्पताल पहुंच गया. पुलिस ने जब उसे उस युवक की लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने छोटे भाई पंकज मिश्रा के तौर पर कर दी.

उस ने पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी भुवनेश कुमार को बताया कि पंकज जेपी कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था और घटना के समय अपने काम पर जा रहा था. शिनाख्त हो जाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दी गई. इस के बाद थानाप्रभारी भुवनेश कुमार फिर से वारदात वाली जगह सेक्टर-132 पहुंचे. उन्होंने आसपास के लोगों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने बताया कि बाइक सवार 2 लोगों ने साइकिल सवार युवक को गोली मारी थी.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने शारदा प्रसाद मिश्रा की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ पंकज मिश्रा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. एसएसपी वैभवकृष्ण के निर्देश पर थानाप्रभारी भुवनेश कुमार टीम के साथ केस की जांच करने में जुट गए.

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केस की गुत्थी सुलझाने के लिए उन्होंने जांचपड़ताल शुरू की. क्योंकि बदमाशों ने उस से किसी प्रकार की लूटपाट नहीं की थी, इसलिए इस संभावना को बल मिल रहा था कि शायद पंकज से किसी की कोई पुरानी रंजिश रही होगी, जिस के कारण मौका ताड़ कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया.

पंकज भंगेल में एक किराए के मकान में रहता था. थानाप्रभारी पूछताछ के लिए उस के घर पर पहुंच गए. घर पर मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा मिली. थानाप्रभारी ने शैली मिश्रा से पंकज की दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने किसी भी व्यक्ति के साथ रंजिश से साफ इनकार कर दिया.

मृतक के भाई शरदा प्रसाद मिश्रा से भी किसी से रंजिश आदि के बारे में पूछा गया. उस ने भी ऐसी किसी दुश्मनी से अनभिज्ञता जाहिर की. यह सब देख कर पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए अन्य संभावित कारणों के बारे में जांचपड़ताल की.

मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा से थानाप्रभारी ने और भी कई तरह के सवाल किए तो उस के बयानों में कुछ विरोधाभास मिला. इस पर पुलिस ने पंकज और शैली मिश्रा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन जांचपड़ताल की. पता चला कि शैली मिश्रा की एक मोबाइल नंबर पर अकसर बातें होती थीं.

जब उस मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो वह सुरेश सिधवानी नाम के एक युवक का निकला जो नोएडा के सेक्टर-82 में रहता था. पुलिस ने शैली से कुछ नहीं कहा, बल्कि सुरेश सिधवानी को पूछताछ के लिए उस के घर से उठा लिया. थाने में उससे सख्ती से उस के और शैली मिश्रा के बारे में पूछा गया तो उस ने सारा सच उगल दिया.

उस ने बताया कि पिछले 2 सालों से उस के और शैली मिश्रा के बीच गहरी दोस्ती है, जो अवैध संबंधों में बदल गई थी. उस ने और शैली ने योजना बना कर पंकज को रास्ते से हटाया है.

इस के बाद पुलिस ने शैली मिश्रा को भी भंगेल स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. वहां उस ने पहले से हिरासत में लिए गए सुरेश सिधवानी को देखा तो उस के चेहरे का रंग उतर गया. अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा पूछताछ में शैली ने भी स्वीकार कर लिया कि पंकज की हत्या उसी के इशारे पर की गई थी.

दोनों से विस्तार से पूछताछ करने पर पंकज की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला अयोध्या का रहने वाला पंकज मिश्रा पिछले कई सालों से अपनी पत्नी शैली और 7 साल के बेटे के साथ नोएडा के भंगेल गांव में रह रहा था. वह कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उस से उस के परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था.

घरगृहस्थी चलाने में आ रही दुश्वारियों से दोनों हमेशा परेशान रहते थे. शैली सुंदर होने के साथसाथ कुछ पढ़ीलिखी भी थी. उस ने सोचा कि बेटे को स्कूल छोड़ने के बाद वह दिन भर घर में अकेली पड़ीपड़ी बोर होती रहती है, इसलिए उसे कहीं पर दिन की नौकरी मिल जाए तो काफी कुछ दुश्वारियां कम हो जाएंगी.

उस दिन जब पंकज कौसमोस सोसायटी से ड्यूटी करने के बाद घर लौटा तो शैली ने उस से अपने मन की बात कही. शैली की बात सुन कर पंकज सोच में डूब गया. उस का दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि शैली घर की दहलीज लांघ कर कहीं नौकरी करने जाए. लेकिन घर की परिस्थितियां इस बात की ओर इशारा कर रही थीं कि उस की तनख्वाह में घर बड़ी मुश्किलों से चलता है. कई बार मुश्किलें आने पर उसे अपनी जानपहचान वालों से रुपए उधार मांगने पड़ते हैं, जिन्हें बाद में चुकाना भी काफी कठिन हो जाता है.

शैली को एकटक देखते हुए उस ने कहा, ‘‘शैली, मैं चाहता तो नहीं हूं कि तुम कहीं काम करो, लेकिन हालात को देखते हुए तुम से नौकरी करने के लिए कहना पड़ रहा है. अगर तुम्हें नौकरी करनी ही है तो कहीं पास में ही नौकरी तलाश करो.’’

पति को चिंतित देख शैली ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी चिंता मत करो, अपना अच्छाबुरा अच्छी तरह जानती हूं.’’

इस के बाद वह अगले दिन से ही अपने लिए नौकरी की तलाश में जुट गई. थोड़ी कोशिश के बाद उसे एक बिल्डर के यहां नौकरी मिल गई. अब वह भी नौकरी पर जाने लगी. पत्नी के नौकरी करने से पंकज की आर्थिक स्थिति ठीक हो गई. पैसे आए तो दोनों के चेहरों पर खुशी की लाली थिरकने लगी.

कुछ महीने तक तो पंकज के घर में सब कुछ ठीक था, परंतु एक साल गुजरने के बाद शैली के रंगढंग में काफी कुछ बदलाव आ गया. उस के रहनसहन और पहनावे को देख कर लगता था कि वह मौडर्न घराने से ताल्लुक रखती है. औफिस से घर आने में वह कई बार लेट भी हो जाती थी. पंकज ने इस दौरान महसूस किया था कि शैली की चालढाल अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी. अब उस के पास महंगा मोबाइल फोन आ गया था, जिस पर वह हमेशा व्यस्त रहती थी.

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एक दिन पंकज शैली के मोबाइल का वाट्सऐप देख रहा था. उसे वहां कुछ ऐसे फोटो देखने को मिले, जिस में वह एक अपरिचित आदमी के साथ काफी खुश नजर आ रही थी. उस फोटो के बारे में पूछने के लिए पंकज ने शैली को अपने पास बुलाया तो उस के चेहरे की रंगत उड़ गई.

वह कहने लगी कि यह औफिस में ही काम करने वाला व्यक्ति है. मगर पंकज को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. इस के बाद उन दोनों के बीच किसी न किसी बात को ले कर नोकझोंक होने लगी. अब तक पंकज को पूरी तरह यकीन हो गया था कि शैली फोटो में जिस व्यक्ति के साथ है, उस से उस के अवैध संबंध होंगे.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस रात शैली देर से घर लौटी थी. पंकज ने उस पर आरोप लगाया कि वह अपने प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी, तभी घर आने में देर हो गई. पंकज ने उस समय उसे काफी भलाबुरा कहा था. शैली भी कहां चुप रहने वाली थी. उस ने भी कह दिया कि तुम मेरे ऊपर इतना शक करते हो तो मुझे तलाक दे दो. मेरी तुम्हारे साथ अब नहीं निभ सकती.

शैली की बात सुन कर पंकज सन्न रह गया. उसे उम्मीद नहीं थी कि शैली कभी उसे छोड़ कर सदा के लिए उस से दूर जाने का इरादा बना लेगी. लड़झगड़ कर उस रात दोनों सो गए. लेकिन उस दिन के बाद शैली हर 2-4 दिनों के बाद पंकज से तलाक ले कर अलग रहने पर दबाव बनाने लगी.

दरअसल, शैली जहां नौकरी करती थी, उस की बगल में सेक्टर-82 निवासी सुरेश सिधवानी की दुकान थी. सुरेश सिधवानी मूलरूप से राजस्थान का रहने वाला था. वह शादीशुदा था लेकिन अपनी पत्नी से अधिक शैली को प्यार करता था. जब उस की पत्नी को शैली के साथ उस के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने उसे रोकने की कोशिश की.

लेकिन सुरेश सिधवानी के सिर पर शैली के इश्क का भूल चढ़ा था, इसलिए उस ने पत्नी की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दिया. आखिर वह सुरेश को छोड़ कर चली गई. पत्नी के घर छोड़ चले जाने के बाद सुरेश ने शैली को अपने पति से तलाक लेने पर जोर डालना शुरू कर दिया, ताकि दोनों हमेशा के लिए एक हो कर रह सकें. लेकिन पंकज मिश्रा इस के लिए राजी नहीं हुआ. उसे अपने बेटे और खानदान की इज्जत अधिक प्यारी थी.

जब शैली को लगा कि पंकज उसे तलाक नहीं देगा तब उस ने सुरेश से कहा, ‘‘सुरेश, अगर तुम मुझे सच में प्यार करते हो और हमेशा के लिए अपना बनाना चाहते हो तो पहले पंकज को खत्म करना होगा.’’

सुरेश भी यही चाहता था, इसलिए उस ने कहा कि तुम अब परेशान मत होना, मैं इस का इंतजाम कर दूंगा.

सुरेश सिधवानी के पास नंगला चरणजीतदास का रहने वाला मोटर मैकेनिक इंद्रजीत आता रहता था. वह उस का विश्वासपात्र भी था. सुरेश ने पंकज की हत्या के बारे में उस से बात की. साथ ही यह भी कहा कि इस काम के एवज में वह उसे 10 लाख रुपए देगा.

इतनी बड़ी रकम के लालच में इंद्रजीत तैयार हो गया. उस ने पंकज की हत्या करने के लिए 50 हजार रुपए की पेशगी भी ले ली.

पंकज की हत्या करने की सुपारी लेने के बाद इंद्रजीत इस काम के लिए अपने दोस्त ककराला फेज-2 निवासी मोनू से मिला. उस ने मोनू से सारी बात तय कर के उसे .32 बोर की एक पिस्तौल तथा 3 गोलियां सौंप दीं.

मोनू ने गेझा, नोएडा निवासी अपने दोस्त सूरज तंवर को अपने साथ लिया. इस के बाद वे सभी पंकज की रेकी करने लगे. उन्होंने पता लगा लिया कि पंकज अपनी ड्यूटी के लिए किस रास्ते से आताजाता है. पूरी योजना बनाने के बाद 20 जून, 2019 को ये लोग पंकज का पीछा करने लगे. जैसे ही पंकज एक सुनसान जगह पर पहुंचा तो उसे रोकने के बाद गोली मार दी, जिस से घटनास्थल पर ही पंकज की मृत्यु हो गई.

पुलिस ने उन से पूछताछ के बाद इंद्रजीत, मोनू और सूरज भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर वारदात में इस्तेमाल पिस्तौल और बिना नंबर प्लेट वाली मोटरसाइकिल भी बरामद हो गई.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने पंकज हत्याकांड के पांचों आरोपियों सुरेश सिधवानी, शैली मिश्रा, इंद्रजीत, मोनू और सूरज तंवर को गौतमबुद्धनगर की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

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सूरज तंवर की उम्र 19 साल है और वह गेझा गांव के स्कूल में 12वीं का छात्र है. वह अपनी गर्लफ्रैंड की जरूरतों को पूरा करने के लालच में इस हत्याकांड में शामिल हुआ था. पंकज की हत्या और शैली मिश्रा के जेल चले जाने के बाद पंकज का 7 वर्षीय बेटा अपने चाचा के पास था.

नशेड़ी बेटे की करतूत

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर है तहसील मोहनलालगंज, इसी तहसील के कोराना गांव में 70 साल के बाबूलाल रावत अपने इकलौते बेटे रामकिशुन उर्फ कालिया, उस की पत्नी रेखा और बच्चों के साथ रहते थे. बाबूलाल खेतीकिसानी  कर के परिवार का गुजारा करते थे. इस गांव के तमाम लोग नशा करने के आदी हो गए थे.

गांव के लोगों की संगत का असर रामकिशुन पर भी हुआ. वह भी शराब के अलावा दूसरी तरह के नशीले पदार्थों का सेवन करने लगा. लंबे समय तक नशे में रहने का प्रभाव रामकिशुन के शरीर और सोच पर भी पड़ रहा था. वह पहले से अधिक गुस्से में रहने लगा था.

चिड़चिड़े स्वभाव की वजह से वह बातबात पर मारपीट करने लगता. केवल बाहर के लोगों के साथ ही नहीं बल्कि घर में भी वह पत्नी और बच्चों से झगड़ कर मारपीट करता था. उस की नशे की लत से घर के ही नहीं, मोहल्ले के लोग भी परेशान रहते थे.

रात में जब वह ठेके से शराब पी कर चलता तो गांव में घुसते ही गाली देनी शुरू कर देता था. चीखचीख कर गाली देने से गांव वालों को उस के घर लौटने का पता चल जाता था. घर पहुंचते ही वह घर में मारपीट करने लगता था, कभी पिता से कभी पत्नी से तो कभी बेटे के साथ.

जून, 2019 के पहले सप्ताह की बात है. रामकिशुन नशे में धुत हो कर घर आया. पत्नी रेखा ने उसे समझाना शुरू किया, ‘‘इतनी रात गए शराब पी कर घर आते हो, ऊपर से लड़ाईझगड़ा करते हो, यह कोई अच्छी बात है क्या. जानते हो, तुम्हारी वजह से गांव वाले कितना परेशान होते हैं.’’

रामकिशुन भी लड़खड़ाई आवाज में बोला, ‘‘मैं शराब अपने पैसे से पीता हूं. इस से गांव वालों का क्या लेनादेना. किसी के कहने का मेरे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. तुम भी कान खोल कर सुन लो, मुझे ज्यादा समझाने की कोशिश मत करो. बस अपना काम करो.’’

रेखा भी मानने वाली नहीं थी. उसे पता था कि वह अभी नशे में है. ऐसी हालत में समझाने का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि सुबह नशा उतरने पर वह सब भूल जाएगा. इस से बेहतर तो यह है कि इस से कल दिन में बात की जाए.

अगले दिन रेखा ने घर वालों के सामने पति रामकिशुन को समझाना शुरू किया. शुरुआत में तो वह इधरउधर की बातें कर के खुद को बचने की कोशिश करता रहा, इस के बाद भी जब रेखा ने रात के नशे की बात को ले कर बवाल जारी रखा तो रामकिशुन झगड़ा करने लगा. रेखा भी चुप रहने वालों में नहीं थी. उस ने झगड़े के बीच ही अपना फैसला सुना दिया, ‘‘अगर तुम नहीं सुधर सकते तो अपना घर संभालो, मैं अपने मायके चली जाऊंगी.’’

रेखा की धमकी ने 1-2 दिन तो असर दिखाया, इस के बाद रामकिशुन फिर से नशा कर के आने लगा. अब पानी सिर से ऊपर जा रह था, रेखा ने सोचा कि समझौता करने से कोई लाभ नहीं. उसे घर छोड़ कर चले जाना चाहिए. इस के बाद रेखा पति और बेटे को छोड़ कर अपने मायके चली गई.

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रामकिशुन नशे का आदी था. पत्नी के घर छोड़ कर जाने का उस के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा बल्कि पत्नी के जाने के बाद तो वह और भी अधिक आजाद हो गया. वह देर रात तो वापस आता ही, अब वह दिन में भी नशा करने लगा था.

नशे में वह घर में सभी से मारपिटाई करता था. उस की पत्नी रेखा 15 दिन बीत जाने के बाद भी घर वापस नहीं आई थी. ऐसे में घर की जिम्मेदारी भी रामकिशुन के ऊपर आ गई थी. जिस से वह और भी अधिक चिड़चिड़ा हो गया था. 18 जून, 2019 की शाम 5 बजे रामकिशुन नशे में धुत हो कर घर आया. सुबह वह अपने बेटे रामकरन को घर के कुछ काम करने के लिए कह कर गया था, वह काम पूरे नहीं हुए तो गुस्से में आ कर रामकिशुन ने बेटे रामकरन की पिटाई शुरू कर दी.

अपने पोते की पिटाई होते देख रामकिशुन के पिता बाबूलाल गुस्से में आ गए. उन्हें नशा करने की वजह से बेटे पर गुस्सा तो पहले से था. अब यह गुस्सा और भी अधिक बढ़ गया था.

वह बोले, ‘‘पत्नी घर छोड़ कर चली गई, इस के बाद भी तुम्हें समझ नहीं आया कि शराब छोड़ दो. ध्यान रखो, यदि नशा करना बंद नहीं किया तो एकएक कर के सारा परिवार तुम्हें छोड़ देगा. बेटे को पीटते हुए तुम्हें शर्म नहीं आ रही.’’

रामकिशुन ने पिता की बात को दरकिनार कर के बेटे की पिटाई जारी रखी. वह बोला, ‘‘जब मैं इसे समझा कर गया था तो इस ने काम क्यों नहीं किया? इस की मां घर छोड़ कर चली गई है तो बदले में इसे ही काम करना होगा.’’

बाबूलाल अपने पोते को बचाने के लिए आए तो वह बोला, ‘‘देखो, यह मामला हमारे बापबेटे के बीच का है. तुम बीच में मत बोलो.’’ यह कह कर उस ने पिता को झगड़े से दूर रहने को कहा.

बाबूलाल के हाथ में कुल्हाड़ी थी. वह जंगल से लकड़ी काट कर वापस आ रहे थे. पोते की पिटाई का विरोध करते और उसे बचाने के प्रयास में कुल्हाड़ी रामकिशुन को लग गई. इस से उस की आंखों के पास से खून निकलने लगा. रामकिशुन को इस बात की गलतफहमी हो गई कि पिता ने उस पर कुल्हाड़ी से हमला किया है. आंख के पास से खून बहता देख कर वह पिता पर आगबबूला हो गया.

रामकिशुन बेटे को पीटना छोड़ कर पिता बाबूलाल की तरफ बढ़ गया. उस ने पिता के हाथ से कुल्हाड़ी ले कर फेंक दी और डंडे से पिता की पिटाई शुरू कर दी. पिटाई में बाबूलाल का सिर फूट गया पर इस बात का खयाल रामकिशुन को नहीं आया. बेतहाशा पिटाई से बाबूलाल की हालत खराब हो गई. रामकिशुन उन्हें मरणासन्न अवस्था में छोड़ कर भाग निकला.

बाबूलाल की खराब हालत देख कर पोता रामकरन बाबा को इलाज के लिए सिसेंडी कस्बे के एक निजी अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने बाबूलाल की खराब हालत और पुलिस केस देख कर जवाब दे दिया. वहां से निराश हो कर रामकरन बाबा को ले कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, मोहनलालगंज ले गया.

वहां डाक्टरों ने बाबूलाल की गंभीर हालत देखते हुए उन्हें लखनऊ के ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया. ट्रामा सेंटर के डाक्टरों ने बाबूलाल को एडमिट कर इलाज शुरू कर दिया. बाबा के इलाज में पैसा खर्च होने लगा. रामकरन के पास जो पैसे थे वह जल्दी ही खत्म हो गए.

रामकरन ने पैसों के इंतजाम के लिए प्रयास किए, पर कोई मदद करने वाला नहीं था. लोगों ने समझाया कि पैसे नहीं हैं तो अब बाबूलाल को यहां रखना ठीक नहीं है. अच्छा होगा कि घर पर ही रखा जाए. वहीं इन की सेवा की जाए.

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इलाज का कोई रास्ता न देख कर रामकरन ने डाक्टरों से कहा कि उस के पास पैसे खत्म हो चुके हैं ऐसे में हम बाबा को अपने गांव वापस ले जाना चाहते हैं. डाक्टरों से मिन्नतें कर के रामकरन अपने बाबा को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर घर ले आया. उसी दिन देर रात बाबूलाल ने अपने घर पर दम तोड़ दिया.

बाबूलाल की मौत के बाद सुबह को रामकरन ने पूरे मामले की सूचना मोहनलालगंज पुलिस को दे दी तो इंसपेक्टर जी.डी. शुक्ला बाबूलाल के घर पहुंच गए.

जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पुलिस ने रामकरन की सूचना पर उस के पिता रामकिशुन के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उस की पड़ताल शुरू कर दी. इंसपेक्टर जी.डी. शुक्ला ने एक पुलिस टीम का गठन कर के रामकिशुन की तलाश शुरू कर दी.

इसी बीच पुलिस को पता चला कि रामकिशुन गांव के बाहर छिपा हुआ है, पुलिस ने पिता बाबूलाल की हत्या के आरोप में रामकिशुन को गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया. अगर रामकिशुन नशे का आदी नहीं होता तो वह पिता की हत्या नहीं करता और न ही उसे जेल जाना पड़ता. नशे की आदत ने पूरे परिवार को तबाह कर दिया.

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

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