खेल जो हो गया फेल: भाग 1
आखिरी भाग
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पीआरओ तिवारी ने उसी समय यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बता दी. डा. दास के साथ हुई ठगी से मुख्यमंत्री बुरी तरह आहत हुए. उन्होंने उसी समय हौट लाइन पर गोरखपुर (जोन) के पुलिस महानिरीक्षक जयनारायण सिंह से बात की और इस घटना की पूरी जानकारी दी. साथ ही घटना की जांच कर के 2 दिनों के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फटकार से आईजी आहत हुए. चूंकि एक तो मामला उन के ही विभाग से जुड़ा हुआ था, दूसरे ठगी का आरोप विभाग के एक एसआई पर लगाया जा रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की जांच एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे को सौंप दी. उन्होंने बोत्रे को 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. यह बात 19 मई, 2019 की है.
एएसपी रोहन बोत्रे ने जांच शुरू की तो मामला सच पाया गया. डा. रामशरण दास के यहां लगे सीसीटीवी कैमरे के रिकौर्ड में एसआई शिवप्रकाश सिंह के वहां आने और जाने के फुटेज मौजूद थी. उन्होंने ज्योति सिंह द्वारा दिए गए आवेदन की जांच की तो काफी बड़ा झोल सामने आया, जिसे जान कर एएसपी बोत्रे के पैरों तले से जमीन खिसक गई.
जिस ज्योति सिंह नाम की युवती द्वारा डा. रामशरण दास पर अमरुतानी (अमरूद का बगीचा) में ले जा कर जबरन दुष्कर्म करने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया था, दरअसल, वह एसआई शिवप्रकाश सिंह के दिमाग की महज एक कोरी कल्पना थी. हकीकत में ज्योति सिंह नाम की कोई युवती थी ही नहीं.
ठगी कर के पैसा कमाने के लिए शिवप्रसाद सिंह ने इस चरित्र को जोड़ कर एक झूठी कहानी बनाई थी. वह इस खेल में अकेला नहीं था. उस के साथ एक और बड़ा खिलाड़ी शामिल था, जो फिल्म ‘मोहरा’ में नसीरुद्दीन शाह के पात्र की तरह परदे के पीछे छिप कर खेल खेल रहा था, ताकि उस का चेहरा बेनकाब न हो सके.
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वह कोई और नहीं बल्कि डा. रामशरण दास का बेहद करीबी और न्यूज चैनल सिटी वन का तथाकथित रिपोर्टर प्रणव त्रिपाठी था. डा. दास को जब इस हकीकत का पता लगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.
इस मामले की पटकथा प्रणव त्रिपाठी के शैतानी दिमाग की उपज और एसआई शिवप्रकाश सिंह की खाकी वरदी के मेलजोल से लिखी गई थी. एएसपी बोत्रे की जांच में पूरी हकीकत सामने आ गई.
एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे ने डाक्टर रामशरण दास के साथ हुई ठगी का परदाफाश 24 घंटे में कर दिया. जांच में डाक्टर दास के दिए गए 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों में से प्रणव त्रिपाठी और शिवप्रकाश ने महज 2000 रुपए ही खर्च किए थे. बाकी के 7 लाख 98 हजार रुपए बरामद कर लिए गए.
राजघाट पुलिस ने एसआई शिव प्रकाश सिंह और तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी के खिलाफ भादंवि की धारा 388, 689, 120बी, 506, 419, 420, 468, 471 के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया. अदालत ने कागजी काररवाई कर के दोनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दिया.
खाकी वर्दी के गुरूर में चूर और मीडिया के ग्लैमर की शान में डूबे दोनों आरोपियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब वे खुद कहानी बन कर रह जाएंगे. एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे की पूछताछ में दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूलते हुए जो कहानी बताई. वह कुछ इस तरह थी.
30 वर्षीय शिवप्रकाश सिंह मूलरूप से वाराणसी के सारनाथ का रहने वाला था. उस के पिता वाराणसी में पुलिस विभाग में तैनात थे. वे ईमानदार इंसान थे. कुछ साल पहले उन का आकस्मिक निधन हो गया था.
शिवप्रकाश सिंह उन का बड़ा बेटा था. आश्रित कोटे में पिता की जगह पर शिवप्रकाश सिंह की नियुक्ति हो गई. नियुक्ति के पश्चात सन 2011 में उस की ट्रेनिंग हुई और फिर गोरखपुर में तैनाती मिल गई.
शिवप्रकाश सिंह अपने पिता के आचरण के विपरीत आचरण वाला युवक था. उस की नजर में पुलिस विभाग महज रुपए उगाने की फैक्ट्री मात्र था. वाराणसी से टे्रेनिंग से ले कर जब अपने गोरखपुर जौइन किया तो उस की पहली तैनाती राजघाट थाने की ट्रांसपोर्टनगर चौकी पर हुई.
यह चौकी ठीक राष्ट्रीय राजमार्ग और पौश कालोनी के बीचोबीच थी. इस चौकी पर तैनाती के लिए एसआई रैंक के अफसर मोटी रकम घूस देने के लिए तैयार रहते थे. जब से शिवप्रकाश की तैनाती हुई थी, तभी से उस ने ट्रक चालकों और व्यापारियों से वसूली करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह इस छोटीमोटी ऊपरी कमाई से खुश नहीं था. उसे किसी ऐसे आसामी की तलाश थी, जिसे एक बार हलाल कर के मोटी रकम मिल सके.
शिवप्रकाश सिंह की करतूतों की शिकायतें बड़े अधिकारियों तक भी गईं. लेकिन वह अपनी चिकनीचुपड़ी बातों और व्यवहार से अधिकारियों को ऐसे झांसे में लेता था कि उस का बाल तक बांका नहीं हो पाता था. इस से उस की हिम्मत बढ़ गई थी.
चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह की दोस्ती न्यूज चैनल सिटी वन के तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी से थी. दोनों में अच्छी पटती थी. प्रणव कैंट इलाके के अलहलादपुर मोहल्ले का रहने वाला था. मध्यमवर्गीय परिवार का प्रणव बेहद चालाक और शातिर दिमाग था.
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चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह प्रणव त्रिपाठी की इस अदा का कायल था. दोस्ती होने की वजह से दोनों का साथसाथ उठनाबैठना था. बात इसी साल के फरवरी महीने की है. एक दिन दोनों ट्रांसपोर्टनगर चौकी में बैठे थे. शाम का वक्त था.
शिवप्रकाश और प्रणव दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे. तभी बातोंबातों में चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश ने प्रणव से कहा, ‘‘यार, किसी मोटे आसामी का इंतजाम क्यों नहीं करते, जिस से एक ही झटके में लाखों का वारान्यारा हो जाए.’’
प्रणव ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘है एक मोटा आसामी मेरी नजर में.’’
‘‘कौन है?’’ शिवप्रकाश ने पूछा, ‘‘बताओ मेरी हथेलियों में खुजली हो रही है.’’
‘‘इसी शहर का जानामाना मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. रामशरण श्रीवास्तव.’’
‘‘वाकई आदमी तो सही चुना है, एक ही बार में मोटी रकम मिल सकती है.’’
इस के बाद चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह डा. रामशरण श्रीवास्तव को अपने चंगुल में फांसने के लिए ऐसी युक्ति सोचने लगा जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.
काफी सोचने के बाद उस ने एक जबरदस्त योजना बनाई. योजना बनाने के बाद शिवप्रकाश ने दोस्त और तथाकथित पत्रकार प्रणव को चौकी पर बुलाया और उसे योजना के बारे में बता दिया. योजना सुन वह भी चकित हुए बिना नहीं रह सका.
चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की योजना सुन कर प्रणव त्रिपाठी ने कहा कि वह इस के सफल होने तक बीच में कभी सामने नहीं आएगा. वह परदे के पीछे रह कर डाक्टर की सारी गोपनीय सूचनाएं देता रहेगा.
इस पर शिव प्रकाश राजी हो गया. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को एक काल्पनिक किरदार ज्योति सिंह द्वारा डा. रामशरण श्रीवास्तव के विरुद्ध दुष्कर्म का शिकायती पत्र लिखा गया.
डा. रामशरण श्रीवास्तव उर्फ रामशरण दास को प्रणव त्रिपाठी कैसे जानता था, जरा इस पहलू भी पर गौर करें. तकरीबन 4 साल पहले डा. रामशरण दास का एक परिचित प्रणव को नौकरी दिलाने के लिए उन के क्लीनिक पर लाया था.
उस के आग्रह पर डाक्टर दास ने प्रणव को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. उस ने थोड़े ही दिनों में अपने अच्छे व्यवहार से डाक्टर दास का दिल और भरोसा जीत लिया. डाक्टर दास उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगे.
प्रणव त्रिपाठी क्लीनिक के साथसाथ डाक्टर दास का कोर्टकचहरी का काम भी देखता था. लिखनेपढ़ने का शौकीन प्रणव उसी दौरान मझोले किस्म के दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों में खबरें लिखने लगा.
दिमाग से तेजतर्रार प्रणव ने उन्हीं खबरों को आधार बना कर पुलिस विभाग में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी. उस की इस कला को देख कर डाक्टर दास उस से खुश रहते थे. धीरेधीरे वे उसे अपने मुंह बोले बेटे की तरह मानने लगे थे.
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इसी बीच प्रणव को ड्रग लेने का चस्का लग गया. जब उसे ड्रग नहीं मिलता था तो वह बीमार पड़ जाता था. तकरीबन एक महीने तक डाक्टर दास ने उस का इलाज किया.
इस के बाद डाक्टर दास ने उसे नौकरी से हटा दिया. फिर वह जुगाड़ लगा कर न्यूज चैनल सिटी वन से जुड़ गया था और खबर देने लगा था. इस चैनल की आड़ में वह अपना उल्लू भी सीधा करता था.
व्यापारियों से उसे जेब खर्च की मोटी रकम मिल जाती थी. डाक्टर दास के यहां से नौकरी से निकाले जाने के बाद भी उस ने उन से संबंध नहीं तोड़ा था. वह बराबर उन के संपर्क में बना रहता था.
बहरहाल, योजना बनाने के बाद इसे अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन शिवप्रकाश यहीं पर एक बड़ी गलती कर बैठा. तथाकथित ज्योति का जो शिकायती पत्र थाने भेजा जाना चाहिए था, वह उस ने स्पीड पोस्ट से पुलिस चौकी के पते पर पोस्ट कर दिया था. यह गलती उसे भारी पड़ गई.
इस चक्रव्यूह में फंसे डाक्टर दास ने 3 लाख एक करीबी मित्र से ले कर शिवप्रकाश को 8 लाख रुपए दिए थे. इतने से भी शिवप्रकाश और प्रणव का लालच कम नहीं हुआ और डा. दास से 2 लाख रुपए और मांगने लगे.
ये लोग डा. दास से 2 लाख रुपए की उगाही कर पाते, इस से पहले ही साजिश का भंडाफोड़ हो गया.
सौजन्य: मनोहर कहानी