उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर है तहसील मोहनलालगंज, इसी तहसील के कोराना गांव में 70 साल के बाबूलाल रावत अपने इकलौते बेटे रामकिशुन उर्फ कालिया, उस की पत्नी रेखा और बच्चों के साथ रहते थे. बाबूलाल खेतीकिसानी कर के परिवार का गुजारा करते थे. इस गांव के तमाम लोग नशा करने के आदी हो गए थे.
गांव के लोगों की संगत का असर रामकिशुन पर भी हुआ. वह भी शराब के अलावा दूसरी तरह के नशीले पदार्थों का सेवन करने लगा. लंबे समय तक नशे में रहने का प्रभाव रामकिशुन के शरीर और सोच पर भी पड़ रहा था. वह पहले से अधिक गुस्से में रहने लगा था.
चिड़चिड़े स्वभाव की वजह से वह बातबात पर मारपीट करने लगता. केवल बाहर के लोगों के साथ ही नहीं बल्कि घर में भी वह पत्नी और बच्चों से झगड़ कर मारपीट करता था. उस की नशे की लत से घर के ही नहीं, मोहल्ले के लोग भी परेशान रहते थे.
रात में जब वह ठेके से शराब पी कर चलता तो गांव में घुसते ही गाली देनी शुरू कर देता था. चीखचीख कर गाली देने से गांव वालों को उस के घर लौटने का पता चल जाता था. घर पहुंचते ही वह घर में मारपीट करने लगता था, कभी पिता से कभी पत्नी से तो कभी बेटे के साथ.
जून, 2019 के पहले सप्ताह की बात है. रामकिशुन नशे में धुत हो कर घर आया. पत्नी रेखा ने उसे समझाना शुरू किया, ‘‘इतनी रात गए शराब पी कर घर आते हो, ऊपर से लड़ाईझगड़ा करते हो, यह कोई अच्छी बात है क्या. जानते हो, तुम्हारी वजह से गांव वाले कितना परेशान होते हैं.’’