लेखक: सुनीत गोस्वामी

कोई भी धार्मिक काम बिना चंदे के नहीं होता. मेहनत की कमाई चंदे के माध्यम से ज्यादातर धार्मिक आयोजनों और अनुष्ठानों में जाती है. आम जनता चंदों से परेशान है, फिर भी धर्म के नाम पर अपनी जेब ढीली करने में कोताही नहीं बरतती. इसलिए चंदे का धंधा खूब फलफूल रहा है.

आगरा एक ऐतिहासिक शहर है. यहां मुगलकाल और ब्रिटिशकाल के कई स्मारक मौजूद हैं. आगरामथुरा राजमार्ग पर जिला मुख्यालय से लगभग 6-7 किलोमीटर दूर एक मुगल स्मारक है, अकबर का मकबरा यानी अकबर टौंब. जहां यह स्मारक स्थित है, उस क्षेत्र को सिकंदरा कहा जाता है.

सिकंदरा से उत्तर की तरफ यहां से दोढ़ाई किलोमीटर दूर एक गांव है कैलास. यमुना किनारे एक तरफ जंगल से घिरा यह स्थल मुख्यतया धार्मिक स्थल है. यहां शिव का एक प्राचीन मंदिर है. इस के बारे में कहा जाता है कि यहां स्थित 2 शिवलिंग परशुराम और इन के पिता जयदग्नि द्वारा स्थापित हैं. बाद में भक्तों ने यहां मंदिर बनवा दिया था.

बहरहाल, जो भी हो, कैलास का यह मंदिर काफी पुराना था, यह सच है. लेकिन 20-25 साल से यह नए स्वरूप में खड़ा है. यहां लाल पत्थर की जगह अब भव्य मार्बल और संगमरमर के पत्थर लगे हैं. मंदिर की ऊंचाई भी आकाश को छूती नजर आती है. और यह सारा कमाल हुआ है चंदे के धंधे से. ऐसा एक नहीं, कई मंदिर और हैं जो चंदे और चढ़ावे से आज विशाल रूप लिए हुए हैं. अब तो ट्रस्ट के नाम पर चंदा उगाही होती है जिस में एक नहीं, कई महंतपुजारियों का हिस्सा होता है जो बराबरबराबर बंटता है और बंटवारे में जहां तीनपांच हुआ, तो वहीं आपस में लड़ाईझगड़ा शुरू हो जाता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...