पिता जितेंद्र प्रसाद की विरासत के चलते जितिन प्रसाद को 31 वर्ष की कम उम्र में 2008 में कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री बना दिया, आज वही जितिन  पितृ संस्था कांग्रेस को  टाटा करते हुए भाजपा में प्रदेश में ब्राह्मणों के वोट बैंक की बिनाह पर प्रवेश कर गए हैं!

राजनीति का यह दोमुंहा पन चरित्र देखकर देश की जनता एक बार पुन: हैरान है और चिंतन कर रही है वहीं भाजपा ताल पीट रही है कि अब आगामी विधानसभा  का चुनाव ब्राह्मण वोट बैंक के आधार पर वह फतह कर लेगी

जहां एक तरफ कांग्रेस को उसके नेता छोड़कर जा रहे हैं, वहीं भाजपा अपना कुनबा बढ़ाने में जोर शोर से लगी हुई है और एक तरह से सत्ता का भरपूर दुरूपयोग कर रही है.

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भाजपा की रणनीति साफ है कि विपक्ष के सारे महत्वपूर्ण नेताओं को अपने खेमे में लेकर के उन्हें निशस्त्र कर दिया जाए.

राजनीति की बिसात पर यह एक नया खेल है जिसमें सत्ताधारी पार्टी एन केन प्रकारेण महत्वपूर्ण पार्टियों के कद्दावर नेताओं को अपनी और आकर्षित कर  रही है, ताकि आने वाले चुनाव में उनके पास न चेहरे हों और ना ही सत्ता में वापस आ पाने की कूबत बाकी बचे. दरअसल, यह सीधे-सीधे सत्ता का अपरहण है.

लोकतांत्रिक व्यवस्था में पार्टी बंदी अहम होती है. सत्ता और विपक्ष मिलकर के देश को विकास की सौगात देने का काम करते हैं मगर जब से भारतीय जनता पार्टी मैं नरेंद्र दामोदरदास मोदी और अमित शाह की जोड़ी का प्रभुत्व कायम हुआ है भाजपा को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाने की जगह यह पैंतरा खेला जा रहा है कि क्यों ना विपक्ष को ही अपनी पार्टी में स्थान दे कर के सत्ता पर हमेशा के लिए अपना वर्चस्व कायम कर लिया जाए.

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