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लेखिका -कविता वर्मा    

बंद दरवाजे के पीछे 2 जवान लोगों के बीच कुछ नहीं हुआ होगा का विश्वास किसी को दिलवाना कितना कठिन था, यह प्रिया ने अगले दिन जाना जब सब की आंखों में एक उत्सुकता देखी, एक दबीछिपी मुसकान जो एक चेहरे से दूसरे की आंखों तक और फिर अन्य चेहरों तक दौड़ती रही. इस मुसकान में 'कुछ' होने का जो विश्वास था, उसे खारिज करन असंभव था. एक ने तो पूछ ही लिया कि यह पहला मौका था या इस के पहले भी ऐसा हो चुका है. किसी ने पूछा कि क्या वाकई वे दोनों इस रिश्ते के लिए गंभीर हैं या यह सिर्फ टाइमपास है? प्रिया के जवाब देने के पहले ही किसी ने कहा था कि आजकल तो यह सब कौमन हो गया है. वैसे भी, घरपरिवार से दूर कुछ भी कर लो, किसी को क्या पता चलता है?

सिर्फ एक रात में साथ के लोगों की प्रिया की तरफ सोच इस कदर बदल जाएगी, यह तो उस ने सोचा ही नहीं था. बंद दरवाजे के पीछे का सच लोगों के लिए एक बड़ा झूठ था और उसे झुठला पाना असंभव था. मुनीश भी उस की मनोस्थिति समझ रहा था. वह यह भी समझ रहा था कि उस ने प्रिया को उस की बात मानने को मजबूर कर के उस की स्थिति बहुत खराब कर दी है. मुंबई जैसे महानगर में जहां लोग बगल में रहने वाले की खबर नहीं रखते, जहां किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होता वहां भी लोग इस तरह सोचते हैं, यह उस ने कहां सोचा था? आश्चर्य यह था कि उन सब की नजरों में प्रिया की छवि बिगड़ी थी. उसे किसी ने कुछ नहीं कहा था और इस बात ने न सिर्फ प्रिया को बल्कि उसे भी आहत किया था.

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