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कल तो हद ही कर दी. जब वह उन को खाने के लिए कहने गई, तब तो उन्होंने खाना खाने से मना कर दिया, किंतु भूख बरदाश्त न होने पर उन्होंने रात में चुपचाप उठ कर खाना खाया और सो गईं, जबकि मां के न खाने के कारण भावेश ने भूख नहीं है, कह कर खाने से मना कर दिया था. वह अकेले कैसे खाती... उसे बनाबनाया  खाना उठा कर फ्रिज में रखना पड़ा और आज सुबह भी भावेश नाश्ता बनने के बावजूद बिना कुछ खाए औफिस चले गए. वह समझ नहीं पा रही थी कि भावेश का गुस्सा उस पर है या मां पर... आखिर कैसे वह सामंजस्य स्थापित करे...? वही कितना झुके...? सबकुछ भूल कर वह सुबह की चाय देने गई, तो फिर वैसी ही जलीकटी... आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी... मन इतना खराब था कि आज उस का औफिस जाने का भी मन नहीं हुआ. कमरे में आ कर उस ने छुट्टी का मेल कर दिया.

पुष्पा ने अंजना को कमरे में जाते देखा तो सोचा कि जाती है तो जाए, मुझे क्या? मैं किसी को मनाने नहीं जाऊंगी... अपनेआप अक्ल ठिकाने आ जाएगी. तेवर तो देखो इस लड़की के... पता नहीं अपने को क्या समझती है...?

पूरी जिंदगी तो उन्होंने बच्चों की परवरिश में लगा दी... दीप्ति के विवाह के बाद सोचा था कि बेटे का विवाह अपनी इच्छानुसार करूंगी. उस के विवाह में मोटा दहेज ले कर अपनी उन सारी इच्छाओं को पूरा करूंगी, जो पारिवारिक दायित्वों के चलते पूरा नहीं कर पाई, पर भावेश ने उन के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया... एक दिन इसे सामने ला कर खड़ा कर दिया और कहा, ‘मां आशीर्वाद दो...’

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