कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कांच का टूटना अच्छा नहीं होता. जरा संभल कर काम किया कर,’ पुष्पा ने अपनी बहू अंजना को  टोकते हुए कहा.

अंजना चाह कर भी कुछ न कह पाई… पिछले एक हफ्ते से उस की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी, उस पर नौकरानी के न आने के कारण काम भी बढ़ गया था. चाय का कप धोते हुए न जाने कैसे उस के हाथ से फिसल गया और टूट गया… उस ने झाड़ू उठाई और फर्श पर पड़े कप के टुकड़े साफ करने लगी.

‘तेरी मां ने कुछ सिखाया है या नहीं, अरे शाम ढले घर में झाड़ू लगाने से लक्ष्मीजी घर में प्रवेश नहीं करतीं. झाड़ू से नहीं कपड़े से इन टुकड़ों को उठा,’ पुष्पा ने क्रोध भरे स्वर में अंजना से कहा.

उसी समय भावेश ने घर में प्रवेश किया. मां को अंजना पर क्रोधित होते देख उस ने शांत स्वर में कहा, ‘मां तुम्हें याद है, जब मैं इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा के लिए जा रहा था तो मुझे अचानक छींक आ गई. तुम ने मुझे दही, पेड़ा दोबारा खिला कर उस अपशगुन को शगुन में बदला, किंतु जैसे ही मैं घर के दरवाजे से बाहर निकला, एक काली बिल्ली मेरे सामने से निकल गई. तुम ने तुरंत मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा था कि 10 मिनट के अंदर 2-2 अपशगुन… आज मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगी.

‘तुम्हारी हर बात सुन कर सदा शांत रहने वाले पिताजी ने उस दिन मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा था कि बेटा जल्दी चल. हम पहले ही लेट हो गए हैं. अगर अपनी मां की बात सुनता रहा, परीक्षा में लेट हो गया तो उस से बड़ा अपशगुन कोई नहीं होगा.

‘मां तुम्हारे उस अपशगुन के बावजूद उस वर्ष हायर सेकंडरी की परीक्षा में मेरिट लिस्ट में न केवल मेरा नाम आया, वरन उसी वर्ष मेरा आईआईटी, कानपुर के लिए चयन भी हो गया. इस के बावजूद भी तुम आज तक शगुनअपशगुन के चक्कर में, यह न करो वह न करो में लगी हुई हो. जिसे जैसा करना है करने दो… दुनिया बदल रही है, तुम भी स्वयं को बदलो. अब यह टोकाटोकी बंद करो.’

मां को छोटी सी बात पर बिगड़ते देख सदा शांत रहने वाले भावेश के स्वर में आज न जाने कैसे तीखापन आ गया था.’बहुत आया बीवी की तरफदारी करने वाला… ऐसे ही तोड़तीफोड़ती रही तो जम चुकी तेरी गृहस्थी. तिलतिल कर के जोड़ी जाती है गृहस्थी.

‘एक तुम लोग हो… पूरा कप का सेट बिगड़ गया और कुछ फर्क ही नहीं पड़ा. तभी तो आज की पीढ़ी दोनों के कमाने पर भी सदा पैसे की कमी का रोना रोती रहती है. एक हम लोग थे… पाईपाई जोड़ी तभी तुम्हें आज इस लायक बना पाए हैं.’

बेटे का तीखा स्वर सुन कर भी पुष्पा चुप न रह सकी और अंजना पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए आदतन बोल उठी.‘क्यों राई का पहाड़ बनाने पर तुली हो? जब देखो तब जराजरा सी बात पर टोकाटोकी… परेशान हो गया हूं रोज की चिकचिक सुन कर. एक कप ही तो टूटा है…

‘घर आ कर थोड़ा सुकून पाना चाहता हूं, पर यहां भी चैन नहीं. वह कोशिश तो कर रही है तुम्हारे साथ निभाने की. तुम यह क्यों नहीं समझती कि तुम मेरी मां हो, तो वह मेरी पत्नी है…’‘तो निभा न पत्नी के प्रति दायित्व… मां का क्या, वह तो कैसे भी रह लेगी. भले की बात समझाओ तो वह भी बुरी लगने लगती है… न जाने कैसा जमाना आ गया है?’ पुष्पा ने कहा.

‘मां, मैं तुम्हारी अवमानना नहीं कर रहा हूं… सिर्फ यह समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि अगर अंजना से कभी कोई गलती हो भी जाती है, तो उसे ताना मार कर समझाने के बजाय प्यार से भी तो समझाया जा सकता है…’ भावेश ने स्वर में नरमी लाते हुए कहा.

‘अब तो मेरी हर बात तुम लोगों को बुरी लगती है… इस के कदम रखते ही तू इतना बदल जाएगा, मैं सोच भी नहीं सकती… अब तो तेरे लिए सबकुछ वही है, वह सही, मैं गलत…’ क्रोध से बिफरते हुए मां पुष्पा बोली.’मैं नहीं जानता कि क्या सही है और क्या गलत? मैं घर में सुखशांति चाहता हूं,’ इस बार भावेश के स्वर में फिर तल्खी आ गई.

‘इस का मतलब तो यही है कि मैं ही बेवजह लड़ाई करती हूं?’ पुष्पा ने क्रोधित स्वर में कहा.अंजना ने बीचबचाव करने का प्रयत्न किया तो वे बिफरते हुई बोलीं, ‘पहले तो स्वयं आग लगाती है, फिर अच्छी बनने के लिए पानी डालने आ जाती है…

‘हट, मेरे सामने से, तेरी जैसी मैं ने खूब देखी हैं… पहले मेरे बेटे को फंसा लिया, अब उसे मुझ से दूर करने पर तुली है…’मां की जलीकटी सुन कर अंजना की आंखों में आंसू भर आए और वह अंदर चली गई… पर, भावेश चुप न रह पाया.

बहुत दिनों से मां का अंजना पर छोटीछोटी बात पर क्रोधित होना व चिल्लाना, यह न करो वह न करो की बंदिशों में बांधना उस से सहन नहीं हो रहा था और आज कप टूटने पर इतना बखेड़ा… उस ने बीचबचाव करते हुए मां को समझाना चाहा तो बात संभलने के बजाय बिगड़ती ही चली गई.

उस ने सोचा कि जब बात इतनी बढ़ ही गई है तो आज निबटारा कर ही लिया जाए. कम से कम रोजरोज की चिकचिक से तो नजात मिलेगी. अतः वह भी ऊंचे स्वर से बोला, ‘तुम से तुम्हारा बेटा दूर उस ने नहीं, बल्कि तुम्हारी रोज की टोकाटोकी ने किया है. तुम समझती नहीं या समझना नहीं चाहती कि वह अब तुम्हारी बहू के साथ इस घर की सदस्य भी है. जब तुम उस से ठीक से बात करोगी, तभी वह तुम्हारा सम्मान कर पाएगी.’

‘हां, हां, मैं ही बुरी हूं… कितना कृतघ्न हो गया है तू…? तेरे लिए मैं ने क्याक्या नहीं किया… सब भूल गया. उस कल की छोकरी के लिए आज तू मेरा अपमान करने से भी नहीं चूक रहा है. इस से तो पैदा ही न हुआ होता तो कम से कम यह दुर्दिन तो नहीं देखना पड़ता…

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...