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सुबह घीसू 4 आदमी और ले आया और शन्नो उन के साथ सामान सैट करवाने लगी. मैं खेतों की ओर निकल गया. पट्टी वाले आम को जा कर देखा, खूब निकले थे। पहले 1 साल छोड़ कर आम लगते थे. मैं पिछले 2 सालों से जड़ों को खोद कर खाद डलवा रहा था. उस का नतीजा यह निकला कि पिछले साल की तरह इस बार भी अमिया (टिकोरा) खूब निकले थे।

आम का यह पेड़ हमारे बजुर्गों की धरोहर है. इस पेड़ का नाम ‘पट्टी वाला आम’ कैसे पड़ा, मैं नहीं जानता. मैं बचपन में बाबे मुंशी के साथ यहां आया करता था, आमों की रखवाली के लिए. जहां हम आम चूसते थे, वहीं घीसू और उस के दोस्तों के साथ एक खेल खेला करते थे. बड़ा अजीब सा खेल था. एक डंडा फैंक कर सभी पेड़ों पर चढ़ जाते थे. जो सब से ऊपर चढ़ता था, वह जीतता था.

पहले पट्टी वाले खेत के साथ शरीकों के खेत थे. वे सारे खेत, अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए मेरे आगे बेच गए थे. किसी को विदेश जाना था. किसी को शहर जा कर बसना था. कोई गांव रहना ही नहीं चाहता था. सारी जमीन मिला कर कोई 10 किल्ले का बड़ा खेत बन गया था. गांव में चौधरी बिशन के खेत को छोड़ कर, चकबंदी के बाद उस के 40 किल्ले के खेत एक ही जगह थे. उस के बाद यह पट्टी वाले आम का खेत इतना बड़ा था.

धान काट कर गेहूं की फसल बोई गई थी. वहीं इस बड़े खेत को पानी देने के लिए सरकार को नलकूप लगाने की अर्जी दी थी. मंजूरी भी मिल गई थी. एक कंपनी से इसे लगाने की बात चल रही है. आशा है, इसी महीने नलकूप भी लग जाएगा. पानी लगाने के लिए पास में ही छोटी नहर बहती है. उस में कभी पानी आता है, कभी नहीं आता. बड़ी मारामारी रहती है. इसलिए अपना नलकूप लगाना बेहतर समझा.

लंच का समय घर आया तो शन्नो पूरा सामान सैट कर चुकी थी. मैं ने पूछा, “क्या बनाया है?””दालमानी और चावल. आप की फैवरिट.””वाह, मजा आएगा.”मानी वास्तव में महानी का अपभ्रंश शब्द है. यह ईमली को भिगो कर बनाई जाती है। कच्चे आम की महानी भी बनाया जाता है. बहुत स्वादिष्ट डिश है. एक बार जो खा लेता है, वह बारबार खाना चाहता है.

“और घीसू, गांव के क्या हालचाल हैं?” लंच करते हुए मैं ने उस से पूछा.”गांव का हाल कुछ अच्छा नहीं है. भाभी मित्री थी न, उस की मौत पिछले साल हो गई थी. उस के अकेले बेटे की मौत भी 2 महीने पहले हो गई.”उस की इकलौती बेटी चंपा बेसहारा हो गई थी. उस के चाचे भाई थुडू ने गांव मदीनपुर में उस से दोगुनी उम्र के दुआजू (ऐसा आदमी जिस की पहली बीवी मर गई हो, बच्चों को संभालने के लिए वह दूसरी शादी कर ले) के साथ शादी कर दी.

“अरे हां, पिछले महीने आई थी वह. तब मैं ने पूछा था,”चंपा, कैसी हो?”कहने लगी, ‘‘वैसे तो सब ठीक है. खानेपीने की कोई कमी नहीं है. बस, उस की पहली पत्नी के 2 बच्चे संभालने पड़ते हैं.’’”बेचारी को छोटी उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभालनी पड़ रही थी.”

“गरीबी की मार है, घीसू. मित्री भाभी होतीं तो कम से कम वह दुआजू से शादी न होने देतीं,’’ मैं ने अफसोस जताते हुए कहा.”नहीं, साहबजी, मित्री भाभी भी क्या कर लेतीं. गरीबी इतनी थी कि कईकई दिन भूखे रहना पड़ता था.”

भला हो सरपंच साहब का कि निब्बे के मरने के बाद चंपा के लिए उन के घर से खाना आता रहा. शादी में भी उन्होंने ही सारा खर्च किया. भाई थुडू ने कुछ भी नहीं किया. शरीक कहां कुछ करते हैं. इसी तरह चाचा पालो के जाने के बाद बेसहारा धन्नी चाची के लिए खाना भी सरपंच के यहां से आने लगा.

उस के बदले चाची धन्नी उन के घर का काम करने लगीं. चाचे पालो के समय धन्नी चाची घर की रानी थीं. बेटी की शादी हो गई और बेटा शहर में जा कर बस गया. चाची धन्नी को कोई पूछता तक नहीं था.

“चाचे सुक्खी का परिवार तो ठीक है न?””कहां ठीक है, साहबजी. चाचा सुक्खी, खुद निक्कमा आदमी था. शराब पी कर यहांतहां पड़ा रहता था. उस की बीवी ने सुक्खी के रहते किसी दूसरे आदमी से संबंध बना लिए थे. एक रोज वह घर से भाग गई. उसे अपने 3 बेटों की भी परवाह नहीं रही. सुक्खी शराब से मर गया. उस का बड़ा बेटा भी कहीं चला गया. बाकी के दोनों बेटे पठानकोट में कहीं मजदूरी करते हैं. घर और जमीन बंजर पड़ी है. वैसे भी इतनी जमीन कहां थी कि दालरोटी निकल पाती.’’

“अफसोस है, सब समय का फेर है, घीसू. हमारा परिवार कैसे बिखर गया था? मां से ले कर सब भाईयों तक एक से बढ़ कर एक बेईमान और धोखेबाज थे. मैं भी क्या कर लेता अगर मेरे पास पैसा न होता।

“खैर, घीसू, मेरे पास बहुत काम रहेगा. पट्टी वाले खेत में लगे गेहूं से घास निकालना है. अगर इस तरह के कोई जवान हैं तो मेरे पास ले आओ. कम से कम उन की दालरोटी तो चलेगी. मेरे पास हमेशा काम रहेगा. अभी ट्यूबवेल लगना है. उस के लिए पक्का कमरा बनेगा. मैं सोचता हूं कि हमारी जो हवेली बनी है उसे ठीक करवा दूं. 2 भैंसें रखी जा सकेंगी.

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