2022 के विधानसभा चुनाव में जनता के मुददों की जगह हिन्दूमुसलिम के नारों को महत्व देने की बुनियाद तालिबान के नाम पर रखी जाने लगी है. सपा और भाजपा आमनेसामने खडी हो गई है. चुनाव करीब आतेआते तालिबान के नाम पर बयानबाजी और बढगी. अफगानिस्तान में उत्तर प्रदेश के भी तमाम मजदूर फंसे है. ऐसे में यह मुददा दोहरी तलवार का काम कर सकता है.
मुसलिम वोटबैंक को सामने रखकर अलग अलग तरह की रणनीति चुनावों में हमेशा बनती रही है. कभी पाकिस्तान इसका केन्द्र बिन्दू बन जाता था. इस कडी में नया नाम तालिबान का जुड गया है. समाजवादी पार्टी के सांसद डाक्टर शफीकुर्रहमान बर्क ने अपने एक बयान में अफगानिस्तान के कब्जे को भारत की आजादी से जोड दिया. देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से तालिबानियों को जोडने की बात भारतीय जनता पार्टी के पष्चिम उत्तर प्रदेश के क्षेत्रिय उपाध्यक्ष राजेश सिंघल को नागवार गुजरी और उन्होने संभल कोतवाली में पुलिस को तहरीर देकर मुकदमा कायम करने की प्रार्थना पुलिस से की. समाजवादी पार्टी युवजन सभा के महासचिव फैजान चौधरी ने भी मुल्ला बरादर को राष्ट्रपति बनने की बधाई अपने फेसबुक पेज से दी.
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पुलिस ने डाक्टर शफीकुर्रहमान बर्क, फैजान चौधरी और मुहम्मद मुकीम के खिलाफ धारा आईपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह), 153 ए (सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाला बयान), 295 ए (धार्मिक भावना आहत करने वाला) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मुसलिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के पूर्व प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने भी अपने बयान में कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जा जायज है. हिन्दूस्तान का मुसलमान उसे सलाम करता है. यही नहीं मौलाना सज्जाद नोमानी ने पहले के तालिबान और आज के तालिबान में अंतर बताया है. मुसलिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ने इस बयान को मौलाना सज्जाद नोमानी की निजी राय बताया है.
सांसद डाक्टर शफीकुर्रहमान बर्क अपने बयान के पक्ष में खडे है. उन्होने पुलिस में मुकदमें के बाद जारी बयान में कहा ‘मैने हमेशा सच और हक की बात की है. तालिबान को भारत की सरकार ने आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया है. मैे कोइ गलत बयान नहीं दिया है. झूठे मुकदमों से डर कर खामोश नहीं रहेगे. हम कानूनी मदद लेगे.’
राजनीतिक स्वार्थ है तालिबान के पीछे:
अफगानिस्तान में तालिबान ने जो कुछ किया उस पर अलग अलग राय हो सकती है. इसमें मुकदमों की जरूरत नहीं थी. यह भी बात अपनी जगह सही है कि जिस देश में अपनी परेशानियां वहां के लोग तालिबान के मसलें पर रायशुमारी करे.
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अफगानिस्तान में तालिबान का मसला विदेशी मसला है. असल में किसी न किसी मुददे को लेकर देश के मुसलमानों को अलग राह पर चलाने की कोशिश होती है. कभी पाकिस्तान के नाम पर यह होता है. कभी दुनिया के अन्य देशो में अगर मुसलमानो के साथ कोई घटना होती है तो उसकी हिंसक प्रतिक्रिया भारत में सुनाई देने लगती है. इसके पीछे की केवल एक ही वजह होती है कि देश के मुसलमानों में अपनी छवि बनाना.
तालिबान की तारीफ के बहाने सांसद डाक्टर शफीकुर्रहमान बर्क ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह पूरी दुनिया में मुसलमानों के मुददे पर मुखर रहेगे. भारत की आजादी की लडाई और यहां के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से तालिबानियों की तुलना करना गैरवाजिब बात है. भारत में आजादी की लडाई हिंसक नहीं रही. यहां के अंग्रेज शासको को रातोरात चुपके से भागना नहीं पडा. यहां के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों औरतो बच्चों का कत्ल नहीं किया. उनके साथ बेजा सलूक नहीं किया. भारत में आजादी की लडाई शातिपूर्ण ढंग से लडी गई दुनिया जिसकी मिसाल देती है.
हिंदू मुसलिम राजनीति:
डाक्टर शफीकुर्रहमान बर्क सांसद है. उनकी बात का अपना वजन है. वह यह भी कहते है कि वह कभी गलत नहीं कहते. और अपने कहे पर कायम है. असल में वह अपने इस बयान से तालिबानी आंतकियों की तुलना भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से कर रहे है जो तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है. यह बात और है कि इस बयान से देश के मुसलमानों को खुश करके एक वोटबैंक को अपना संदेश देना चाहते है. जिससे इसका राजनीतिक लाभ उठा सके.
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अपने इस बयान से डाक्टर शफीकुर्रहमान बर्क ने हिन्दुत्व की राजनीति करने वालों को एक मुददा दे दिया है. विधानसभा सदन में भाजपा के नेताओं ने कटाक्ष करते कहा कि जिस दल के सांसद तालिबान का समर्थन कर रहे और देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तुलना तालिबानी आतंकवादियों से कर रहे हो वह देश की आजादी की बातें न करे. मुकदमा कायम होने के बाद यह मसला आगे बढेगा और बाद में उत्तर प्रदेश के 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में दिये जाने वाले भाषणों में शामिल होगा.
खास है मुसलिम राजनीति:
हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी को यह लाभकारी लगता है. जब विपक्षी मुसलिम तुष्टीकरण की राजनीति करने लगते है. भाजपा के लिये सबसे लाभकारी होता है कि हिन्दू मुसलिम राजनीति के इर्दगिर्द ही चुनाव हो. ऐसे में सपा और भाजपा दोनोके लिये यह मुफिद है. जातीय आधार को देखे तो उत्तर प्रदेश में मुसलिम वोट 18 से 20 प्रतिशत के करीब है. विधानसभा चुनाव में 80 सीटें ऐसी है जहां मुसलिम मतदाता जीत के गणित कोे मजबूत करते है. राजनीतिक जानकार मानते है कि मुसलिम मतदाता भाजपा के खिलाफ वोट करते है. ऐसे में सपा-बसपा और कांग्रेस जैसे हर दल की चाहत यह होती है कि मुसलिम वोटबैंक उनके साथ रहे.
वहीं भाजपा इस तरह की कोशिश करती है कि चुनाव हिन्दू मुसिलम धुव्रीकरण में फंस जाये. जिससे मुसलिम वोटबैंक की प्रतिक्रिया में हिन्दू वोटबैंक उनके पक्ष में खडा हो जाय. 2014 के बाद होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा की अपने वोटबंैक मानी जाने वाले जातियां मुसलिम विरोध की राजनीति में भाजपा के पक्ष में खडी हो गई. जिसकी वजह से सपा-बसपा एकजुट होकर भी चुनाव जीत नहीं सके. 2022 के विधानसभा चुनाव में तालिबान के नाम पर सपा और भाजपा दोनो ही चुनावी भाषणों में तालियां बजवाने का प्रयास करेगी. पिछले चुनाव से सबक ले चुकी मायावती ने तालिबान के मुददे पर चुप्पी साध ली है.